Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रबोधिनी टीका पद २३ सू० १२ द्विन्द्रियादिकर्मबन्धस्थितिनिरूपणम्
४१७
शतानि वाघा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, यशः कीर्तिनाम्नः उच्चैर्गोत्रस्य एवचैत्र, नवरं जघन्येन अष्टौ मुहूर्तानि, अन्तरायस्य यथा ज्ञानावरणीयस्य, शेषेषु सर्वेषु स्थानेषु संहननेषु संस्थानेषु वर्णेषु गन्धेषु च जघन्येन अन्तः सागरोपमकोटीकोटयः, उत्कृष्टेन या यस्य औधिक स्थितिः मणिता तां बध्नन्ति, नवरम् इदं नानात्वम् अबाधा अबाधोनं नोच्यते, एवम् आनुपूर्व्या सर्वेषां यावद् अन्तरायस्य तावद् भणितव्यम् ॥ सू० १२ ॥
टीका-पूर्वमेकेन्द्रियबन्धकानधिकृत्य जघन्योत्कृष्टाभ्यां कर्मस्थितिपरिमाणं प्रतिपादिअवधाकाल कम कर्मस्थिति कर्म निषेक का काल ( जसो किन्तिनामाए ) यशः कीर्त्तिनामकर्म का ( उच्चगोत्तस्स एवं चेव) उच्चगोत्र का इसी प्रकार (नवरं जहणेणं अट्ठमुत्ता) विशेष यह कि जघन्य आठ मुहूर्त्त (अंतराइयस्स जहा णाणावर णिज्जस्स) अन्तराय कर्म का ज्ञानावरणीय के समान (सेसएस सव्वे ठाणेसु) शेष सब स्थानों में (संघयणेषु) संहननों में (संठाणेसु) संस्थानों में (ण्णेसु) वर्णों में (गंधेसु) गंधों में (य) और (जहणेणं अंतो सागरोचमकोडाकोडीओ) जघन्य अन्तःसागरोपम कोटा कोटी (उक्कोसेर्ण) उत्कृष्ट रूप से (जा जस्स ओहिया ठिई भणिया) जो जिसकी सामान्य स्थिति कही है (तं बंधंति) उसको बांधते हैं (नवरं इमं नाणत्तं) विशेष भेद यह है कि (अवाहा) अबाधा ( अबाहूणिया ण बुच्चइ) और अबाधाहीन नहीं कहा जाता ( एवं आणुपुच्चीए सव्वेसिं) इसी प्रकार सब आनुपूर्वियों का (जाब अंतराइयस्स) यावत् अन्तराय का: (ताव) वहां तक (भाणियव्यं) कहना चाहिए || सू० १२||
टीकार्थ - इस से पूर्व एकेन्द्रिय बन्धकों की अपेक्षा से कर्मों की जघन्य और
( जसो कित्तिनामाए, ऊच्चागोत्तस्स एवं चेत्र ) यशःमीर्ति नामम्र्मनी अने उभ्य गोत्रना મધ એ પ્રમાણે સમજવા.
(नवर जहणेणं अट्ठमुहुत्ता) - विशेष मे छे हे धन्यथी आठ मुहूर्त, (अंतरा इयस्स जहा णाणावर णिज्जस्स) - तराना अंध ज्ञानावरणीयनी समान समय.
(सेसेसु सव्वे ठाणे ) - माडीनां सर्प स्थानामां (संघयणेसु) - सहननामां, (संठाणेसु) स ंस्थानामां, (वण्णेसु) पशु मां, (गंधेसु) - गंधामां, (य) - अने पणी ( जहणेणं अंतो सागरोवम कोडाकोडीओ ) धन्यथी अतः डोडाडोडी सागरेभने।, ( उक्कोसेणं जा जस्स ओहिया ठिई भणिया तं बधति) - उत्कृष्ट ३ये थे बेनी सामान्य सोधिठ स्थिति उही छे. तेने मांधेछे.
(नवर इमं नातं ) - विशेषभां लेह मे छे है (अबाहा, अबाहूणिया ण वुच्चई) - अमाधा 'आज' भने 'साधा अजहीन' से हेवानुं होतु नथी. ( एवं आणुपुब्बीए सव्वेसिं जाव अंतराईयस्स) प्रमाणे मधी मानुपूर्वी भानुं यावत् अंतरायनुं (ताव भणियव्या) - त्यां સુધીનુ કહેવુ જોઇએ સૂ॰ ૧૨૫
-मे
ટીકા-આ અગાઉ એકેન્દ્રિય ખધકોની અપેક્ષાએ કર્મોની જધન્ય અને ઉત્કૃષ્ટ
प्र० ५३
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫