Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ ९० ११ एकेन्द्रियकर्मप्रकृतिस्थितिपरिमाणनिरूपणम् ३९९ एकेन्द्रियाः पुरुषवेदकर्म बध्नन्ति, 'एगिदिया णपुंसगवेयस्स कम्मस्स जहण्णेणं सागरोवमस्स दो सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणए' एकेन्द्रिया नपुंसकवेदस्य कर्मणो जघ. न्येन सागरोपमस्स द्वौ सप्तभागो : पल्योपमस्यासंख्येय भागोनौ बन्धं कुर्वन्ति 'उक्को सेणं तेचेव पडि पुण्णे बंधति' उत्कृष्टेन तौचैव परिपूणों द्वौ सप्तभागौ । एकेन्द्रिया नपुंसकवेदकम बध्नन्ति, 'हासरतीए जहा पुरिसंवंदस्स' हास्यरत्योः कर्मणो बन्धो यथा पुरुषवेदस्य कर्मण एकेन्द्रियाणामुक्तस्तथा वक्तव्यः, 'अतिभयोगदुगुंछाप जहाणपुंसगवेयरस' अरतिभयशोक जुगुप्सामा बन्यो यथा एकेन्द्रियाणां नपुंयकवेदस्योक्तस्तथा वक्तव्यः, 'नेमइयाऊ देवाऊ य निरयगतिनाम देवगतिनाम वेउब्धियसरीरनाम आहारगसरीरनाम नेरइयाणुपुब्बी नाम देवाणुपुच्चीनाम तित्यगरणाम एयाणि पयाणिण बंधंति' नायिकायुष्यं देवायुष्यश्च निरयगति नाम देवगतिनाम वैक्रियशरीरनाम आहारक शरीर नाम नैरयिकानुपूर्वीनाम देवानुपूर्वीनाम तीर्थकरनाम एतानि पदानि -एतद्नरप्रतिपायानि कर्माणि एकेन्द्रियाः न बध्नन्ति तथा भवस्वाभाव्यात्, 'तिरिक्खजोणियाउयस्म जहण्णेणं अंतोमुख' तिर्यग्योनिकायुष्यं कर्म एकेन्द्रिया जघन्येनान्तर्मुहूर्त बध्नन्ति, 'उको सेणं पुवकोडी सत्तहिं वाससहस्से हि वास महस्सति भागेण रोपम का पूर्ण भाग का करते हैं । एकेन्द्रिय जीव नपुंसक वेदकर्म का बन्ध जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम रसागरोपल के 3 भाग का और उत्कृष्ट सागरोपम के परिपूर्ण भाग का करते हैं। ___ हास्य और रति कर्म का बन्ध पुरुष वेद के समान कह लेना चाहिए। अरति, भय, शोक और जुगुप्साकर्म का बन्ध नपुंसक वेद के समान समझना चाहिए। एकेन्द्रिय जीव नरकायु, देवायु, नरकगतिनाम, देवगतिनाम कर्म वैक्रियशरीरनाम कर्म, आहारकशरीरनाम कर्म, नरकानुपूर्वीनाम, देवानुपूर्वीनाम और तीर्थकरनाम कर्म का बन्ध करते नहीं हैं, क्योंकि एकेन्द्रिय भव का स्वभाव ही ऐसा है। तिर्यंचायुकर्म का एकेन्द्रिय जीव जघन्य अन्तर्मुहर्त का और
એકેન્દ્રિય જીવ નપુંસકવેદકર્મને બંધ જઘન્યથી પાપમનો અસંખ્યાતમો ભાગ એ છે એવા સાગરેપમને જે ભાગને અને ઉત્કૃષ્ટથી સાગરોપમને પરિપૂર્ણ ૩ ભાગને
હાસ્ય અને રતિ કર્મને બંધ પુરુષની સમાન કહે જોઈએ.
અરતિ, ભય, શેક અને જુગુપ્સા કર્મને બંધ નપુંસક વેદના બંધની સમાન સમજ જોઈએ.
એકેન્દ્રિય જીવ નરકાય, દેવાય, નરકગતિ નામકમ, દેવગતિનામકર્મ, ક્રિય શરીર નામકર્મ, આહારક શરીર નામકર્મ, નરકાસુપૂવી નામકર્મ. દેવાનુપૂર્વી નામકર્મ, અને તીર્થકર નામકર્મને બંધ કરતા નથી, કારણ કે એકેન્દ્રિયના સ્વભાવમાં જ એવું છે,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫