Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू. ६ सातावेदनीयादि कर्मानुभावनिरूपणम्
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वलवीर्यपुरुषकारपराक्रमः १०, इष्टस्वरता ११, कान्तस्वरता १२, प्रियस्वरता १३, मनोज्ञस्वरता १४ यं बेदयते पुद्गलं वा पुद्गलान् वा पुद्गलपरिणामं वा वित्रसया वा पुद्गलानां परिणामं, तेषां वोदयेन शुभनाम कर्म वेदयते, एतत् खलु गौतम ! शुभनाम कर्म, एष खलु गौतम ! शुभनाम्नः कर्मणो यावत् चतुर्दशविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, दुःखनाम्नः खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! एवञ्चैव, नवरम् अनिष्टाः शब्दाः, यावद् ही स्वरता, दीनस्वरता अकान्तस्वरता, यं वेदयते शेष ं शेष - तच्चैव यावत् चतुर्दशविधः अनुभावः प्रज्ञतः, उच्चैर्गोत्रस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन पृच्छा, गौतम ! उच्चैर्गी( इट्ठस्सरया) इष्ट स्वरता ( कंतस्सरया) कान्तस्वरता ( पियस्सरया ) प्रियस्वरा ( मणुण्णस्मरया) मनोज्ञ स्वरता ।
(जं वेएइ पोग्गलं वा) जिस बुद्गल को वेदता है ( पोग्गले वा) पुदगलों को (पोग्गल परिणाम वा ) या पुदगल परिणाम को (वीससा वा ) स्वभाव से (पोग्गलाणं परिणामं ) पुद्गलों के परिणाम को । (तेसिं वा उदरणं) उनके उदय से (सुभनामं कम्म) शुभनामकर्म को (वेएड) वेदता है (एसण गोयमा ! सुहनामकम्मे ) हे गौतम ! यह शुभनाम कर्म है ( एसणं' गोयमा ! सुहनामस्स कम्मस्स जाव चउद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते) हे गौतम ! यह शुभनाम कर्म का यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा है ।
(दुहनामस्स णं भंते! पुच्छा ! ) हे भगवन् ! अशुभ नामकर्म के अनुभाव संबंधी प्रश्न ? (गोमा ! एवं चेव ) हे गौतम! इसी प्रकार (णवरं) विशेष (अणिट्ठा सा ) अनिष्टशब्द (जाव) यावत् (हीणस्सरया) हीनस्वरता ( दीणस्सरया) दीनस्वरता (अकंतस्सरया) अकान्तस्वरता (जं) जो (वेदेइ) वेदता हैं (सेसं तं चैव ) शेष वही (जाव) यावत् ( चउदसव अणभावे पण्णत्ते) चौदह प्रकार का अनुभाव कहा है ।
( उच्चागोयस्स ण भंते! कम्मस्स) हे भगवन् ! उच्चगोत्र कर्म का ( जीवेणं) (पियस्सरया) प्रियस्परता ( मणुण्णस्सरया) भने।ज्ञस्वरता.
(जवेएइ पोग्गलं वा) ने युगलने वेहे छे (पोग्गले वा) युगसोने (पोग्गल परिणाम वा) अगर पुहगत परिणामाने (वीससा वा ) स्वभावथी (पोग्गलाण परिणामं ) युगसोना परिणाम.
(तेसिवा उदएणं) तेभना यथा ( सुभणाम कम्म) शुभनाम भने ( वेएइ) वेहे छे (एस जं गोयमा ! सुनामकम्मे ) हे गौतम ! या शुभनाम उर्भ छे (एसण गोयमा ! सुहणामसम्म जाव चउद्दसविहे अनुभावे पण्णत्ते) हे गौतम! या शुभनाम अर्मना यावत् यौह प्रारना અનુભાવ કહ્યા છે.
(दुहनामस्स णं भंते! पुच्छा) हे भगवन ! अशुभनाम उना अनुभव समन्धी पृथ्छा ! (गोयमा ! एवंचेव) हे गौतम! अरे (णवर) विशेष (अनिष्ठा सद्दा) अनिष्ठ (जाव) यावत् (हीणस्सरया ) हीनश्वरता ( दीणस्तरया) हीनस्वरता (अकं तस्सरया) अान्त स्वरता (ज) (वेदेइ) वेढे छे (सेस त चेव) शेष तेम ४ छे (जाव) यावत् (चउद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते) यौ अारना अनुलाव ह्या छे. (उच्चागोयस्स णं भंते! कम्मस्स) हे लगवन् ! तुभ्य गोत्र अर्मन |
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫