Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ उ. २ सू. ७ कर्मप्रकृतिनिरूपणम् शेषाणि सर्वाणि एकाकाराणि प्रज्ञप्तानि यावत् तीर्थकरनाम, नवरं विहायोगतिनाम द्विविधं प्रज्ञप्तम, तद्यथा-प्रशस्तविहायोगतिनाम अप्रशस्त विहायोगतिनाम च, गोत्रं खलु भदन्त ! कर्म कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! द्विविधं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- उच्चैगोत्रञ्च, नीचेंगोत्रञ्च, उच्चैर्गोत्र खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम , अष्टविध प्रज्ञप्तम् , तद्यथा-जाति विशिष्टता यावद-ऐश्वर्यविशिष्टता, एवं नीचैर्गोत्रमपि, न वरं जातिविहीनता यावद-ऐश्वर्यविहीनता, अन्तरायं खलु भदन्त ! कर्म कतिविध प्रज्ञप्तम्? गौतमः पञ्चषिधं प्रश्चप्तम् , तद्यथा-दानान्तरायं यावद् वीर्यान्तरायम् ॥७॥ है (तजहा-नेरइय आणु पुवीजाव देवाणु पुव्धी) नैरयिकानु पूर्वी यावत् देवानुपूर्वी (उस्सासनामे एगागारे पण्णा) उच्छ्वास नाम कर्म एक प्रकार का है (सेसाणि सब्याणि) शेष सव (एगागाराई पण्णत्ताई) एकाकार एक एक प्रकार के कहे हैं (जाव तित्थगर नामे) तीर्थ कर नाम तक (णवरं) विशेष (विहायगतिनामे दुविहे पण्ण) विहायोगति नाम कर्म दो प्रकार का कहा हैं (त जहा-पसत्थ निहाय गइ नामे, अपसत्थ णिहाय गइनामे य) वह इस प्रकार-प्रशस्त विहायो गति, अप्रशस्त विहायोगति ।।
(गोएणं भंते ! कम्मे कइविहे पणतो) हे भगवन् ! गोत्रकर्म कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! दो प्रकार का कहा है (तजहा-उच्चागोए य नीया गोए य) वह इस प्रकार-उच्चगोत्र और नीच गोत्र । (उच्चागोए ण भंते ! कइविहे पण्णते? ) हे भगवन् ! उच्वगोत्र कितने प्रकार का कहा हैं ? ( गोयमा! अट्टबिहे पण्णचे) हे गौतम ! आठ प्रकार का कहा है (त जहा-जाइ विसिट्टिया जाव इसरिय विसिट्टया) वह इस प्रकार-जाति विशिष्टता यावत् ऐश्वये विशिष्टता (एवं नीयागोए वि) इसी प्रकार नीचगोत्र भी (णवरं) विशेष जाति विहीण या जाव इस्सरियविहीणया) जाति विहीनता यावत् ऐश्वर्य विहीनता नेरइयआणुपुब्बी जाव देवाणुपुबी) नयनुपूर्वी यावत् हेवानुपूषा (उस्सासनामें एगागारे पण्णते) २७पास नाम भ मे प्रा२नु छ (सेसाणि सत्याशि) शेष ५५i (एगागाराइ पण्णत्ताइ) मे ४१४१२ मे मे प्रा२ना या छ (जाव तित्थगर नामें) तीय ४२ नाम सुधी (णवरं) विशेष (विहायगतिनामे दुविहे पण्णते) विडायोगति नाम भ में प्रा२न। ४i 2 (तौं जहापसत्थ विहायगइनामें, अपसत्थ विहाय गइनामें य) ते शत प्रशस्त विडायोगति, मप्रशस्त વિહા ગંતિ નામ કમ
(गोएण भते ! कम्मे कइविहे पण्णते) भगवन् ! गोत्र भटमा ४२ना ४७यां छ? (गोयमा दुबिहे पण्णत्त) हे गौतम ! मे Rai ti छ (त जहा-उच्चागाए य नीया गोए य) ते २॥ ४३ अश्य गोत्र अननीय पत्र (उच्चागे।ए ण भते ! कइविहे पण्णते?) भगवन् ! 622 गोत्र 21 प्रा२ना ४९यां छ? (गायमा ! अविहे पणत्ते) गौतम! 2418 ४२॥ ४६यां छ (त जहा - जाइ विसिट्टिया जाय इस्सरिय विसिहया) ते मा प्रारे-ति विशिष्टता या त्य य विशिष्टता (एवं नीयागोए वि) मे ४१२ नीय गोत्र सधी ४थन ५६५
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫