Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टोका पद २३ उ. २ सू. ७ कर्मप्रकृतिनिरूपणम्
२५५ न्येषु शरीरेषु तेषामस्थिशून्यत्वात्, तच्च षड्विधमित्यो वक्ष्यते ६, संघातनाम-संघात्यन्ते-एकत्री क्रियन्ते औदारिकादि शरीरपुद्गला येन तत् संयात तच्च तन्नामचेति संघातनाम, तच्च पञ्चविधमित्यप्यग्रे वक्ष्यते ७, संस्थाननाम संस्थानमू-आकारविशेष; तथा यस्य कर्मण उदयवशात् तेम्वेव गृहीत संघातातीतबद्धेषु औदारिकादिषु गुगलेषु संस्थानविशेषो भवति तत्संस्थानम्, तच्च तन्नामचेति संस्थाननाम, लख्य पइविधमित्यग्रे वक्ष्यते ८, वर्ण नाम-पर्ण्य ते-भूष्य ते शरीरमने नेति वर्ण : सच पञ्च प्रकारकः, तज्जन नामापि पञ्चविघमित्यग्रे वक्ष्यते ९, गन्धनाम -गन्ध्यते आनायते इति गन्धः सद्धिविधः, तन्निवन्धनं गन्धनामापि द्विविधम् १०, रसनाम रस्यते-आस्वाचते इति रसः, स पञ्चविधः, तन्निवन्धन रसनामापि पञ्चविधम् ११, शरीर हड्डियों बाले नहीं होते । संहनन के छह भेद आगे कहे जाएंगे।
(७) संपात नाम कर्म-जो औदारिक शरीर आदि के पुद्गलों को एकत्र करता है, वह नाम कर्म संघात नाम कर्म कहा जाता है । उसके पांच भेद हैं, यह आगे कहा जाएगा।
(८) संस्थान नाम कर्म-संस्थान का अर्थ है आकार । जिस कर्म के उदय से गृहीत, संघातित और बद्ध औदारिकादि पुद्गलों में आकृति उत्पन्न होती है, वह संस्थान नाम कर्म कहलाता है । उसके छह भेद आगे कहे जाएंगे।
(९) वर्णनामकर्म-जिसके द्वारा शरीर वर्णित अर्थात् भूषित हो वह वर्ण कहलाता है। उसका जनक कर्म वर्णनाम कम है।
(१०) गन्ध नामकर्म-जिसे सूपा जाय वह गंध कहलाता है। गंध दो प्रकार का होता है। उसका कारणभूत कर्म भी दो प्रकार का है।
(११) रसनाम कर्म-जिसका आस्वादन किया जाय वह रस के पांच प्रकार આદારિક શરીરમાં જ થઈ શકે છે અન્ય શરીરોમાં નહીં, કેમ કે અન્ય શરીર હાડકાંઓવાળાં નથી હોતાં, સંહનના છ ભેદ આગળ ઉપર કહેવાશે.
(૭) સંઘાત નામકર્મ – જે દારિક શરીર આદિના પુદ્ગલેને એકત્ર કરે છે, તે નામકર્મ સંઘાત નામકર્મ કહેવાય છે. તેના પાંચ ભેદ છે, તે આગળ કહેવાશે,
(८) संस्थान नाम-सस्थाननी अर्थ छ सा२ भना यथी गृहीत, સંઘાતિત અને બદ્ધ ઔદારિકાદિ પુદગલમાં આકૃતિ ઉત્પન્ન થાય છે, તે સંસ્થાન નામકર્મ કહેવાય છે, તેના છ ભેદ આગળ કહેવાશે. | (૯) વર્ણનામકર્મ–જેના દ્વારા શરીર વણિત અર્થાત ભૂષિત બને તે વર્ણ કહેવાય છે. તેનાં પાંચ ભેદ છે. તેના જનકકમ વર્ણનામકર્મ છે.
(१०) आयनामम:- सुधयामां आये ते ग डपाय . ५ मे जतनी હોય છે, તેમાં કારણભૂત કર્મ પણ બે પ્રકારનાં છે.
(११) २सनाम:-नु आवाहन राय ते २स. २सना पांय ५२ मने छ,
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫