Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० ९ कर्मस्थितिनिरूपणम् रेकाणि, मिथ्यात्व वेदनीयस्य जघन्येन सागरोपमं पल्योपमस्य असंख्येयभागोनम्, उत्कृष्टेन सप्ततिः कोटी कोटयः सप्त च वर्षसहस्राणि अबाधा, अबाधोना कर्मस्थितिः कर्मनिषेकः, सम्यमिथगात्ववेदनीयस्थ जघन्येन अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टेन अन्तर्मुहृतम्, कषायद्वादशकस्य जघन्येन सागरोपमस्य चत्वारः सप्तभागाः पल्योपमस्य असंख्येयभागोनाः, उत्कृष्टेन चत्वारिंशत् सगरोपमकोटीकोटयः, चत्वारिंशद् वर्षशतानि अबाधा, यावद् निषेकः, क्रोधसंज्वलनं जहण्णेणं अतोमुहत्त) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त (उकोसेणं छावटि सागरोवमाई साइरेगाई) उत्कृष्ट कुछ अधिक छियासठ सागरोपन।
(मिच्छत्तवेयणिजस जहण्णेणं सागरोवमं पलि भोवमस्स अमंखेजइभागेण ऊणगं) मिथ्यात्व वेदनीय की जघन्य स्थिति पत्यापम का असंख्यात वे भाग कम एक सागरोषन की (उको सेणं सत्तरि कोडाकोडीओ) उस्कृष्ट सत्तर कोडा. कोडी सागरोपम (नत्त य वामसहस्साई अबाहा) सात हजार वर्षे का अबाधा काल (अवाहणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अयाधा काल कम कर्म स्थिति कर्म निषेक का काल है। ___(सम्मामिच्छत्तवेणिजस्स जहाणेणं अंतोनुहत्तं) सम्पर मिथ्यात्व वेदनीय मिश्रप्रकृति की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त की (उकोशेणं अंतोप्नुहुत्तं) उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त की (कसाय बारसगस्स जहणणं सागरोचमस्स चत्तारि सत्त भागा पलिओवमस्त असंखेज इभागेणं ऊणया) कषाय द्वादशक की जघन्य स्थिति पल्योपप का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम के सात भागों में से चार भाग अर्थात् : भाग (उकोसेणं चत्तालीसं सागरोवम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट चालीस कोडाकोडी सागरोपम (चलाउोसं वासपाई अवाहा) चालीस सौ वर्ष का
गौतम! धन्य मन्तभुत (उकोसेणं छावढि सागरोयम इं साइरेगाई) Grgot tiss અધિક છાસઠ સાગરોપમ
(मिच्छत्तवेयणिज्जरस जहण्णेणं सागरोवमं पलिओवमस्स अस खेज्जइभागेण अणिगं) મિથ્યાત્વ વેદનીયની જઘન્ય રિથતિ પલ્યોપમને અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન એક सागरी ५भना(उकोसेणं सत्तरिकोडाकोडीओ) कृष्ट त२ ।।डी सारोपम (सत्त य वाससहरसाई आब हा) सात २ वषन। 24 घास (अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो) समाधास न्यून स्थिति मनिषे४ ४ास छ. (सम्मामिच्छत्तवेयणिज्जस्स जहण्णेणं अंतोमुहत्त) सम्य भिया वहनीय-भिप्रतिनीधन्य स्थिति सन्तभुइतना छे. (उक्कोसेगं अंतोमुहुत्तं) अष्ट ५५ मन्तभुत नी. (कसाय बारसगस्स जहण्णेणं सागरो
मम्स चत्तारि सत्तभागो पलिओवमरस असंखेज्जइभागेणं ऊणया) पा५ दशनी वन्य સ્થિતિ પમના અસંખ્યાતમે ભાગ ન્યૂન સાગરોપમના સાત ભાગમાંથી ચાર ભાગ ४ मास (कोसणं चत्तालीतं सागरोरमकोडाकोडोओ) पृष्ट यासीस 11डी सागरी५म (चत्तालीसं वाससयाई अबाहा) यालीस वर्षने मास (जाय निसेगो) यावत्
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫