Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू० ९ कर्मस्थितिनिरूपणम्
२८१ कम स्थितिवक्तव्यता शब्दार्थ-(णाणावरगिजस्स णं भंते ! कम्मरस केवइयं कालं ठिई पण्णता?) हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म की स्थिति कितने काल को कही है ? (गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्कोसेणं तीसं सागरोपमकोडाकोडीओ) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की (तिण्णिय वास सहस्साई अवाहा) तीन हजार वर्ष का अबाधाकाल है, (अबाहणिया कम्म ठिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति कम निषेक का काल है।।
(णिद्दापंचगस्स णं भंते ! कम्मस्स केवईयं कालं ठिई पण्णत्ता?) हे भगवन् ! निद्रापंचक कर्म की स्थिति कितने काल की कहो है ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागगेवमस्स तिणि सत्त भागा पलियोपमस्स असंखेज्जइ भागेणं ऊणिया) हे गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम सागरोपम के की (उकोसेणं तीसं सागरोपम कोडाकोडीओ) उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम (तिणि य वाससहस्साई अबाहा) अबाधा काल तीन हजार वर्ष का (अबाहूणिया कम्मट्टिई कम्मनिसेगो) अबाधा काल कम कर्म स्थिति कर्म निषेक का काल कहा है।
(दसणचउक्कस्स गं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भगयन् ! दर्शनचतुष्क की कितने काल की स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोपम कोडाकोडोओ) हे गौतम ! जघन्य अन्त:
કર્મ સ્થિતિ વક્તવ્યતા शाय:-(णाणावरणिजस्स णं भंते ! कम्मरस केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) -मपन्! ज्ञानापरणीय भनी स्थिति eaumनी 30 छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुतं, उक्को सेणं तीसं सागरोत्रमकोडाकोडीओ) गोतम! धन्य मन्तभुत नी, भने कृष्ट त्रास
33131 सा५मनी (तिणि य वाससहस्साई अबाहा) M२ वर्षना अ sta छ (अबाहूणिया कम्मठिई कम्मनिसेगो) समाधा४६ म भनी स्थिति मनिषेधना स छ)
(णिदापंचगस्स णं भंते ! कम्मस्स केवईयं कालं ठिई पण्णता ?) भगवन् निद्रा पाय भनी स्थिति सा नी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागा पलियोवमस्स असंखेज्जहभागेणं ऊणिया) हे गौतम ! य पक्ष्योपमा सयामा मास न्यून सा॥२५५ना उनी (उकोसेणं तीस सागरोवमकोडाकोडीओ) कृष्ट त्रीस डी सागरे।५म (तिण्णि य वाससहस्साई अबाहा) माघ १ १ २ वर्षनी (आबाहूणिया कम्मदुिई कम्मनिसेगो) मनाया न्यून स्थिति भनिन। त्रि.
(दसणच उक्करस णं भंते ! कमस्स केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) 3 मापन् ! न यतुनीटसा पनी स्थिति ही छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ) हे गौतम ! धन्य अन्तकृत नी, पृष्ट श्रीस tish All
प्र० ३६
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫