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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू. ६ सातावेदनीयादि कर्मानुभावनिरूपणम् १९९ वलवीर्यपुरुषकारपराक्रमः १०, इष्टस्वरता ११, कान्तस्वरता १२, प्रियस्वरता १३, मनोज्ञस्वरता १४ यं बेदयते पुद्गलं वा पुद्गलान् वा पुद्गलपरिणामं वा वित्रसया वा पुद्गलानां परिणामं, तेषां वोदयेन शुभनाम कर्म वेदयते, एतत् खलु गौतम ! शुभनाम कर्म, एष खलु गौतम ! शुभनाम्नः कर्मणो यावत् चतुर्दशविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, दुःखनाम्नः खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! एवञ्चैव, नवरम् अनिष्टाः शब्दाः, यावद् ही स्वरता, दीनस्वरता अकान्तस्वरता, यं वेदयते शेष ं शेष - तच्चैव यावत् चतुर्दशविधः अनुभावः प्रज्ञतः, उच्चैर्गोत्रस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन पृच्छा, गौतम ! उच्चैर्गी( इट्ठस्सरया) इष्ट स्वरता ( कंतस्सरया) कान्तस्वरता ( पियस्सरया ) प्रियस्वरा ( मणुण्णस्मरया) मनोज्ञ स्वरता । (जं वेएइ पोग्गलं वा) जिस बुद्गल को वेदता है ( पोग्गले वा) पुदगलों को (पोग्गल परिणाम वा ) या पुदगल परिणाम को (वीससा वा ) स्वभाव से (पोग्गलाणं परिणामं ) पुद्गलों के परिणाम को । (तेसिं वा उदरणं) उनके उदय से (सुभनामं कम्म) शुभनामकर्म को (वेएड) वेदता है (एसण गोयमा ! सुहनामकम्मे ) हे गौतम ! यह शुभनाम कर्म है ( एसणं' गोयमा ! सुहनामस्स कम्मस्स जाव चउद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते) हे गौतम ! यह शुभनाम कर्म का यावत् चौदह प्रकार का अनुभाव कहा है । (दुहनामस्स णं भंते! पुच्छा ! ) हे भगवन् ! अशुभ नामकर्म के अनुभाव संबंधी प्रश्न ? (गोमा ! एवं चेव ) हे गौतम! इसी प्रकार (णवरं) विशेष (अणिट्ठा सा ) अनिष्टशब्द (जाव) यावत् (हीणस्सरया) हीनस्वरता ( दीणस्सरया) दीनस्वरता (अकंतस्सरया) अकान्तस्वरता (जं) जो (वेदेइ) वेदता हैं (सेसं तं चैव ) शेष वही (जाव) यावत् ( चउदसव अणभावे पण्णत्ते) चौदह प्रकार का अनुभाव कहा है । ( उच्चागोयस्स ण भंते! कम्मस्स) हे भगवन् ! उच्चगोत्र कर्म का ( जीवेणं) (पियस्सरया) प्रियस्परता ( मणुण्णस्सरया) भने।ज्ञस्वरता. (जवेएइ पोग्गलं वा) ने युगलने वेहे छे (पोग्गले वा) युगसोने (पोग्गल परिणाम वा) अगर पुहगत परिणामाने (वीससा वा ) स्वभावथी (पोग्गलाण परिणामं ) युगसोना परिणाम. (तेसिवा उदएणं) तेभना यथा ( सुभणाम कम्म) शुभनाम भने ( वेएइ) वेहे छे (एस जं गोयमा ! सुनामकम्मे ) हे गौतम ! या शुभनाम उर्भ छे (एसण गोयमा ! सुहणामसम्म जाव चउद्दसविहे अनुभावे पण्णत्ते) हे गौतम! या शुभनाम अर्मना यावत् यौह प्रारना અનુભાવ કહ્યા છે. (दुहनामस्स णं भंते! पुच्छा) हे भगवन ! अशुभनाम उना अनुभव समन्धी पृथ्छा ! (गोयमा ! एवंचेव) हे गौतम! अरे (णवर) विशेष (अनिष्ठा सद्दा) अनिष्ठ (जाव) यावत् (हीणस्सरया ) हीनश्वरता ( दीणस्तरया) हीनस्वरता (अकं तस्सरया) अान्त स्वरता (ज) (वेदेइ) वेढे छे (सेस त चेव) शेष तेम ४ छे (जाव) यावत् (चउद्दसविहे अणुभावे पण्णत्ते) यौ अारना अनुलाव ह्या छे. (उच्चागोयस्स णं भंते! कम्मस्स) हे लगवन् ! तुभ्य गोत्र अर्मन | શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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