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प्रज्ञापनासूत्रे त्रस्य कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावद् अष्टविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः तद्यथा-जातिविशिष्टता १, कुलविशिष्टता २, बलविशिष्टता ३, रूपविशिष्टता ४, तपोविशिष्टता ५, श्रुतविशिष्टता ६, लाभविशिष्टता ७, ऐश्वर्यविशिष्टता ८, यं बेदयते पुद्गलं वा पुद्गलान् वा पुद्गलपरिणामंवा विस्रसया वा पुद्गलानां परिणामं तेषां वा उदयेन यावद अष्टविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, नीचैर्गोत्रस्य खलु भदन्त ! पृच्छा, गौतम ! एवञ्चव, नवरं जाति बिहीनता यावद् ऐश्वर्यविहीनता, यं वेदयते पुद्गलं वा, पुद्गलान् वा पुद्गलपरिणामं वा विस्त्रजीव द्वारा (पुच्छा) प्रश्न (गोयभा ! उच्चागोयस्स कम्मस्स जीवेण बद्धस्स) जीव के द्वारा बद्ध उच्चगोत्र कर्म का (जाव ) यावत् ( अट्टविहे अणुभावे पण्णते ) आठ प्रकार का अनुभाव कहा है।
(तं जहा) वह इस प्रकार (जाइविसिट्टया) जाति की विशिष्टता (कुलविसिट्ठया) कुल की विशिष्टता (बल विसिट्टया) बल की विशिष्टता (रूव विसिट्टया) रूप की विशिष्टता ( तब विसिट्टया ) तप की विशिष्टता (सुयविसिट्ठया) श्रुतकी विशिष्ठता (लाभविसिट्टया ) लाभ की विशिष्ठता (इस्सरिय विसिट्ठया) ऐश्वर्य की विशिष्टता ।
(जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणामं वा) जिस पुद्गल का, पुद्गलों को या पुद्गलपरिणाम को वेदता है । (वीससा वा) अथवा स्वभाव से (पोग्गलाण परिणाम) पुदगलों के परिणाम को। ( तेसिं वा उदएणं ) उनके उदय से (जाव) यावत् (अट्टबिहे अणुभावे पण्णत्ते) आठ प्रकार का अनुभाव कहा है ।
(णीया गोयस्स णं भंते !) हे भगवन् ! नीच गोत्र के विषय में पुच्छा) पृच्छा-प्रश्न है (गोयमा ! एवं चेव) हे गौतम ! इसी प्रकार (णाबरं) विशेष (जाइवि हीणया) जाति की होनता (जाब इस्सरियविहीणया) याक्त ऐश्रर्य की विहीनता !
(जं वेदेइ पुग्गल वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा) जो वेदता है, पुद्गलकों, (जीवेण ७१।२। (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ! उच्चागोयस्स कम्मस्स जीवेणबद्धस्स) द्वारा पर स्यगोत्रमना (जाव) यावत (अविहे अणुभावे पण्ण) मारना अनुभाष मुथा छ.
(तजहा) ते या घडारे (जाइविसिट्ठया) मतिनी विशिष्टता (कुलविसिहया) सना विशिटता (बलविसिहया) पनी विशिष्टता (रूवविसिष्ठ्या) ३५नी विशिष्टता (तवविसिट्टया) त५ विशिष्टता (सुय विसिष्ठया) श्रतनी विशिष्टता (लाभ विसिट्टया) सान विशिष्टता (इस्सरिय विसिहया) એશ્વર્યાની વિશિષ્ટતા.
(ज'वेदेइ पोग्गलंबा पागले वा पोग्गलपरिणाम वा) हासने पुशहाने या हार परिणामाने येथे (वीससावा) अथवा समावथा (पोग्गलाण परिणाम) पुगताना परिक्षामने.
(तेसिवा उदएण) तेमना यथा (जाव) यावत (अट्ठविहे अणुभावे पण्ण) 18 मारना અનુભાવ કહ્યા છે. न (णीयागोयस्स ण भते !) भगवन् ! नीय गोत्रनी (पुच्छा) २७। (गोयमा ! एवं चेव) हे गौतम ! मेरी प्रारे (गंवर) विशेष (जाइविहीणया) तिनी हीनता (जाव इस्सरिय विहीणया)
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫