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प्रमेयबोधिना टीका पद २३ सू. ६ सातावेदनीयादि कर्मानुभावनिरूपणम् सया वा पुद्गलानां परिणाम तेषां वा उदयेन यावत् अष्टविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, अन्तरायस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन पृच्छा ? गौतम ! अन्तरायस्य कर्मणो जीवेन बद्धस्य यावत् पश्चविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, तद्यथा दानान्तरायः, लाभान्तरायः, भोगान्तरायः, उपभोगान्तरायः, वीर्यान्तरायः, यं वेदयते पुद्गलं यावत् विस्रसया वा पुद्गलानां परिणाम तेषां वा उदयेन अन्तरायं कर्म वेदयते, एतत् खलु गौतम ! अन्तरायं कर्म, एष खलु गौतम ! यावत् पश्चविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः ! प्रज्ञापनायां त्रयोविंशतितमस्य पदस्य प्रथमोद्देशकः ॥२३-१॥ ६॥ पुदगलों को अथवा पुदगल परिणाम को (वीससा वा) या स्वभाव से (पोग्गलाणं परिणाम) पुद्गलों के परिणाम को। (तेसिं वा उदएणं) उनके उदय से (जाव) यावत् (अट्टविहे अणुभावे पण्णत्ते) आठ प्रकार का अनुभाव कहा है !
(अंतराइयस्स णं भंते! कम्मस्स) हे भगवन्! अन्तराय कर्म का (जीवेणं) जीव द्वारा (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ! अंतराइयस्स कम्मस्स) हे गौतम ! अन्तराय कर्म का (जीवेण बद्धस्स) जीव के द्वारा बांधे हुए का (जाव) यावत् (पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते) पांच प्रकार का अनुभाव कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (दाण तराए) दान में विघ्न (लाभंतराए) लाभ में विघ्न (भोगंतराए) भोग में विघ्न (उवभोगतराए) उपभोग में विघ्न (वीरियंतराए) वीर्य में विघ्न । (जं वेदेइ पोग्गल) जिस पुद्गल को वेदता है (जाव) यावत् (वीससा वा) अथवा स्वभाव से (पोग्गलाण परिणाम) पुद्गलों के परिणाम को । (तेसिं वा उदएणं) उनके उदय से (अंतराइयं कम्म वेदेइ) अन्तराय कर्म को वेदता है (एस ण गोयमा ! अंतराइए कम्मे) हे गौतम ! यह अन्तराय कर्म हैं (एस ण गोयमा ! जाव पंचविहे अणुभावे) हे गौतम ! यह यावत् पांच प्रकार का अनुभाव યાવત્ ઐશ્વર્યાની વિહીનતા.
(जवेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणाम वा) हे छे, हमलने, है पुगताने अथवा Yसन पा२भने (वीससावा) मगर खमाथी (पोग्गलाणं परिणाम) Yसोना परिणामने.
(तेसिवा उदएणं) तेभना यथा (जाव) यावत् (अटूठविहे अणुभावे पण्णते) 248 रन मनुमा ४ा छे. (अंतरायस्स णं भाते कम्मस्स) भगवन् ! सतराय मना (जीवेण) 04. द्वा२। (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा अंतराइयस्स कम्मस्स) गौतम! अन्तराय मना (जीवेणं बद्धस्स) पना द्वारा मासाना (जाव) यावत (पंचविहे अणुभावे पण्णत्ते) यांय ४२न। मनुभाव ४ा छ (तौं जहा) ते या प्रारे (दाणतराए) हानमा विन (लाभ तराए) समाविन (भोगतराए) लेागमा विन (उवभोगतराए) अपांगमा विन (वीरियतराए) वायभा विघ्न.
(जवेदेइ पोग्गल) है हमलने वे छ (जाव) यावत् (वीससावा) अथवा स्यमाथी (पोग्गलाण परिणाम) सोना परिणामने..
(तेसिवा उदएण) तेमना यथा (अंतराइयं कम्म देइ) अन्तरायमन हे छ ( एसणं (गोयमा! अंतराइए कम्में) गीतम! मेमन्तराय छ (एस ण गोयमा ! जाव पंचविहे अणुभावे)
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫