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________________ प्रज्ञापनासूत्रे तद्यथा-नैरयिकायुष्यम् तिर्यगायुष्यम् मनुष्यायुष्यं देवायुष्यम् , यं वेदयते पुद्गलं वा पुद्गलान् वा पुद्गलपरिणामं वा विस्रसया वा पुद्गलानां परिणाम तेषां वा उदयेन आयुष्यं कर्म वेदयते वा, एतत् खलु गौतम ! आयुष्यं कर्म एष खलु गौतम ! आयुष्य कर्मणो यावच्चतुर्विधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, शुभनाम्नः खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन पृच्छा, गौतम ! शुभनाम्नः खलु कर्मणो जीबेन चतुर्दशविधोऽनुभावः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-इष्टाः शब्दाः १, इष्टानि रूपाणि २, इष्टा गन्धाः ३, इष्टाः रसाः ४, इष्टाः स्पर्शाः ५, इष्टा गतिः ६, इष्टा स्थितिः ७, इष्टं लावण्यम् ८, इष्टा यशः कीर्तिः ९, इष्ट उत्थानकर्म तिर्यंचायु (मणुयाउए) मनुष्यायु (देवाउए) देवायु । (जं वेदेइ) जो वेदता है (पोग्गलं वा) पुद्गल को (पोग्गले वा) या पुद्गलों को (पोग्गलपरिणाम वा) या पुद्गल परिणाम को (वीससा वा पोग्गलाण परिणाम) या स्वभाव से पुद्गलपरिणाम को। (तेसिंवा उदएण) उनके उदय से (आउय कम्म वेदेइ) आयु कर्म को वेदता है (एसण गोयमा ! आउए कम्मे) हे गौतम ! यह आयुष्य कर्म है (एसण गोयमा ! आउकम्मस्स जाव चउविहे अणुभावे पण्णत्ते) हे गौतम ! यह आयुकर्म का यावत् चार प्रकार का अनुभाव कहा है। (मुहणामस्स ण भंते कम्मस्स)हे भगवन्! शुभनामकर्म का(जीवणं)जीवद्वारा(पुच्छा) प्रश्न (गोयमा! सुहणामस्स णं कम्मस्स) हे गौतम! शुभनामकर्म का (जीवेण) जीवद्वारा (जाय) यावत् (चउद्दसविहे अणुभावे पण्ण) चौदह प्रकार का अनुभाव कहा है । ___ (तं जहा) बह इस प्रकार (इहा सद्दा)इष्टशब्द (इटा रूवा) इष्टरूष (इट्ठा गंधा)इष्टगंध (इटारसा) इष्टरस (इट्टा फासा) इष्टस्पर्श (इटा गई) इष्ट गति (इटा ठिई) इष्टस्थिति (इटे लावण्णे) इष्टलावण्य (इछा जसोकित्ती) इष्ट यशःकति (इटे उठाण कम्म बलचीरियपुरिसवकार परवक मे इष्ट उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार, पराक्रम (जं वेदेइ पोग्गलं वा) ने वहेछ पुगतान (पोग्गले वा) मा पुगिसोने (पोग्गलपरिणामवा) मा पुगस परियाभने (वीससा वा पोग्गलाण परिणाम) मया २५माथा पुल परिणामन. (तेसिवा उदएण) तेमन यथी (आउय कम्म वेदेइ) मायुमने ये छ (पस णं गोयमा ! आउए कम्मे) हे गौतम! मा मायुष्यभछ (एसण गोयमा ! आउकम्मस्स जाव चउविहे अणुभावे पण्ण) ६ गतम! मा मायुभिना यावत् न्या२ ॥२ना अनुसार या . (सुहणामस्स ण मते कम्मस्स) भगवन् ! शुमनाम भना (जीवेणं) पास (पुच्छा) प्रश्न (गोयमा ! सुहणामस्सण कम्मस्स) शुभनाम भना (जीवेणं) द्वारा (जाव) यावत (चउद्दसविहे अणुभावे पण्ण) यो प्रा२ना मनुभाव या छे. (तबहा) त म ३ (इटा सद्दा) 5ष्ट ४ (इटूठा रूवा) 8७८३५ (इट्टा गंधा) ष्ट गध (इष्टा रसा) ट२स (इहा फासा) ८२५श (इटागई) गति (इछा ठिई) स्थिति (इहे लावण्णे) टमा५य (इष्ठा जसो कित्ती) Uष्ट यश: ति(इठे उहाणकम्मवलवीरिय पुरिसक्कार परक्कमें) आष्ट Sत्यान, भीमस, पाय, ५३१४१२ ५। (इस्सरया) एटस्वरता (कतरस्सरया) आन्त५स्वरत શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫
SR No.006350
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages1173
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_pragyapana
File Size76 MB
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