Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनीरीका पद २३ उ. २ सू. ७ कर्मप्रकृतिनिरूपणम् अयशः कीर्तिनाम ४० निर्माणनाम ४१ तीर्थकरनामकर्म ४२। गति ताम खलु भदन्त! कर्म कतिविध प्रज्ञप्तम् ! गौतम! चतुर्विध प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-निरयगतिनाम, तियग्गतिनाम, मनुष्य ातिनाम, देवगतिनाम, जातिनाम खलु भदन्त ! कम पृच्छा, गौतम ! पञ्चविधं प्रज्ञप्तम, तद्यपा-एकेन्द्रिय जातिनाम यावत पञ्चेन्द्रिय जातिनाम, शरीरनाम, खलु भदन्त! कर्म कतिविधं प्रज्ञप्तम् ? गौतम ! पञ्चविध प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-औदारिक शरीरनाम. यावत् कार्मणशरीरनाम, शरीरोपाङ्गनाम खलु भदन्त ! कतिविधं प्रज्ञप्तम्? नाम । (दभगणामे) दुर्भग नाम । (सूमरणामे) सुस्वर नाम । (दूसरणामे) दुस्वर नाम कर्म । (आदेज्जणा मे) आदेय नाम । (अणादेजनामे) अना देय नाम । (जसोकित्ति नामे) यशः किति नाम । (अनसोकित्ति नामे) अपयशः कीर्ति नाम (निम्माण नामे) निर्माण नाम । (तित्थगरणा मे) तीर्थकर नाम कर्म ।।
(गइनामेणं भंते कम्में कइविहे पण्ण) हे भगवन् ! गतिनाम कर्म कितने प्रकार का है। (गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! चार प्रकारका है । (तं जहा-निरयगतिणामे, तिरियगतिणामे, मणु यगतिणामे, देवगतिणामे) वह इस प्रकार- नरकगति नामकम, तिर्यंचगति नामकर्म. मनुष्यगति नामकर्म, देवगति नामकर्म ।
(जाइणामेण भंते ! कम्मे पुच्छा ?) हे भगवन् ! जाति नामकर्म विषयक पृच्छा। (गोपमा ! पंवविहे पण्णते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है। (तंजहा-एगिदिय जाइण मे जाव पंचिंदिय जाइणामे) वह इस प्रकार - एकेन्द्रिय जाति नाम कम यावत् पंचेन्द्रिय जाति नामकर्म ।
(सरीरणामे णं भंते ! कई विहे पण ते?) हे भावन् ! शरीर नाम कम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा ! पंवयि हे पणते) हे गौतम ! पांच प्रकार का कहा है। (तं जहा-ओरालिय सरीरनामे जाव कम्मगसरीरणामे ) वह इस प्रकार-औदारिक हुन नाम (सुसरणामे) सु२५२नाम (दूसरणामे) हु२५२नामम' (आदेजणामे) आयनाम (अणादेजणामे) मनायनाम (जसोकि त्तनामे) यश: तिनाम (अजसोकित्तिनामे) अयश: श्रीति नाम (निम्माणनामे) निर्भालनाम (तित्थगरणामें) ताथ २ नाम
(गइनामे णं भते कम्मे कविहे पपणो ?) लगवन् तिनामभसा नां छ? (गेयमा ! च उबिहे पण हे गीतम! य॥२ ४२न छ (त जहा- निरयगतिनामे, तिरियगतिणामे, मणुयगतिणामे, देवगतिणामे) ते मारे-न२ मिनाम भनियतिनाम भी, मनुष्यગતિનામ કમ, દેવગતિ નામકર્મ
(जाइणामेण भंते ! कम्मे पुच्छा') भगवन ! ति नाम ४ विषय: २७(गोयमा । पंचविहे पाणारे) मौतम ! ५iय ५४१२i si छ (त जहा-एगिदियजाइणामे जाव पंचिंदियजाइणामे) ते पाशते-मेन्द्रिय जति नामभ यावत पथेन्द्रिय तिनाम में
(सरीरगामे ण भते. कइविहे पागने ?) हमवन् ! शरीरनाम भटमा मारना या छ ? (गोयमा पंचविहे पण्णत्ते) हे गौतम ! पांय प्र०२॥ ४था छ (तौं जहा -ओरालिय सरीरनामे
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫