Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे पविधबन्धको वा एकविधबन्धको वा, मिथ्या निशल्यविरतः खल भदन्त ! नैरयिकः कति कमप्रकृती बंध्नाति ? गौतम ! सप्तविधबन्धको वा अष्टविधबन्धको वा यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः, मनुष्यो यथा जीवः, वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमा. निको यथा नैरयिकः, मिथ्यादर्शनशल्यविरताः खलु भदन्त ! जीवाः कति कर्मप्रकृती बंध्नन्ति ? गौतम! ते चैव सप्तविंशति भङ्गा भणितव्याः, मिथ्यादर्शनशल्यविरताः खलु भदन्त! नैरयिकाः कतिकर्म प्रकृति बध्नन्ति? गौतम ! सर्वेऽपितावद् भवेयुः विहबंधए वा, अविहब धए वा, छविहबंधए वा, एगविहबंधए वा, अबधए वा ) हे गौतम! सात कर्म प्रकृतियों का बन्धक होता है,अथवा आठ का बंधक होता है,या छह प्रकृति का बंधक होता है. अगर एक का बंधक होता है अथवा अबंधक होता है।
(मिच्छादसणसल्लविरए ण भंते! नेरइए कति कम्मपगडीओ बधति?)हे भगवन ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत नारक जीव कितनी कर्मप्रकृतियां बांधता हैं ? (गोयमा ! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहब धए वा ) हे गौतम ! सात प्रकृतियों का वंधक अथवा आठ प्रकृतियोंका बधक होता है । (जाव पंचिंदियतिरिक्ख जोगिए ) यावत पंचेन्द्रियतिर्यंच ( मणूसे जाव जीवे ) मनुष्य समुच्चय जीव के समान (वाणमंतरजोइसिय वेमाणिए जहा नेरइए) वानव्यन्तर, ज्योतिष्क, वैमानिक नारको के समान (मिच्छादसणसल्लविरयाण भंते ! जीवा कति कम्मपगडीओ बंधंति !) हे भगवन् ! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत अनेक जीव कितनी कर्म प्रकृतियां बांधते हैं ? (गोयमा ! ते चेव सत्तावीस भंगा भाणियव्या) हे गौतम ! वे ही सत्ताईस भंग कहने चाहिए।
(मिच्छादसणसल्ल विरया णभंते! नेरइया कति कम्मपगडीओ बधति?) भागवान्! मिथ्यादर्शनशल्य से विरत नारक जीव कितनी कर्मप्रकृतियां बांधते हैं? (गोयमा!
(गायमा ! सत्तविहबंधएवा, अहविहबंधएवा, छविहबंधर वा, एगविहबंधएवा, अंबंधए वा ) હે ગૌતમ! સાત પ્રકૃતિને બધેક થાય છે અથવા આઠનબન્ધક થાય છે, અગર છના બન્ધક થાય છે, અથવા એકના બંધક થાય છે, અથવા અબંધક હોય છે
(मिच्छादसणसल्लविरए ण भंते! कम्मपगडीओषधंति) भानू ! भियान शस्यथा पिरत ना२४ असीम प्रतिय। मां छ? गोयमा ! सतविहबंधए वा, अविबंधए वा) गौतम सात प्रतिमा नाम 24थवा मा प्रतियाना : थाय छ (जाव पचिंदिय तिरिक्खजोणि ए) यावत् ५ येन्द्रिय लियय (मणूसे जाव जीवे) भनुश्य सभुस्ययन समान (वाणभंतरजोइसियमाणिए जहा नेरइए) वानव्यन्त२, ज्योति, अने वैमानिको नारोनी समान समाचा.
(मिच्छादसणसल्लविरयाण भते! जीवा कतिकम्मपगडीओ बंधति ? )भगवन् ! भियाशन शल्यथा वि२त भने ७५ सी ४' प्रकृतियो मधे छ ? (गोयमा ! ते चेव सत्ताविस भगा भणियत्वा) गोतम ते सात्यावीस 1 उपाय
(मिच्छादमणसल्लविरयाणं भते ! नेरइया कतिकम्मपगडीओ बधंति ? ) सायन् ! भिथ्याह
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫