Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २२ सू. ९ प्राणातिपातविरमणनिरूपणम् खल भदन्त ! नरयिकस्य किम् आरम्भिकी क्रिया क्रियते यायद् मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया क्रियते ? गौतम ! आरम्भिकी क्रिया क्रियते यावद् अप्रत्याख्यानक्रियाऽपि क्रियते मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया नो क्रियते, एवं यावत् स्तनितकुमारस्य,मिथ्यादर्शनशल्यविरतस्य खलु भदन्त ! पश्चेन्द्रियतिर्यस्यानिकस्य एवमेव पृच्छा गौतम! आरम्भिको क्रिया क्रियते यावद् मायाप्रत्यया क्रिया क्रियते, अप्रत्याख्यानक्रियास्यात क्रियते, स्यात् नो क्रियते, मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया नो क्रियते, मनुष्यस्य यथा जीवस्य, वानख्यान क्रिया (मिच्छादसणवत्तिया न कज्जइ ) मिथ्यादर्शनप्रत्यया नहीं होती।
(मिच्छादसणसल्लविरयस्स णं भंते ! नेरइयस्स) हे भगवन् ! मिथ्यादर्शन शल्य क्रिया से विरत नारकको (किं आरंभिया किरिया कज्जइ ?) क्या आरंभिकी क्रिया होती हैं ? ( जाव मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जइ ?) यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, (गोयमा ! आरंभिया किरिया कज्जइ जाव अपच्चक्खाणकिरिया वि कज्जइ)हे गौतम! आरंभिकी क्रिया होती है, याक्त् अप्रत्याख्यान क्रिया भी होती है (मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कज्जइ) मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया नहीं होती (एवं जाव थणियकुमारस्स) इसी प्रकार यावत् स्तनित कुमार को।
(मिच्छादसणसल्लविरयस्स गं भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा) मिथ्यादर्शनशल्य से विरत पंचेन्द्रिय तिर्यच के विषय में हे भगवन् ! इसी प्रकार प्रश्न (गोयमा! आरंभिया किरिया कज्जइ) हे गौतम! आरंभिकी क्रिया होती है (जाव माया वतिया किरिया कज्जइ) यावत् मायाप्रत्यया क्रिया होती है (अपच्चक्खाणकिरिया सिय कज्जइ सिय नो कजइ) अप्रत्याख्यान क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नही होती (मिच्छादसणवत्तिया किरियानो कज्जइ) मिथ्यादर्शन प्रत्यया क्रिया नहीं होती है (मणूसस्स जहा जीवस्स) मनुष्य को जीव के समान (वानमंतरजोइसियवेमाणिए जहा दसणवत्तिया न कज्जइ) भिथ्याशनशक्यप्रत्यया नया थती.
(मिच्छादसणसल्लविरयस्स ण भते! नेरइयस्स) सायन ! मिथ्याशन शल्यथा पिरत ना२४ने (किं आरंभिया किरिया कज्जइ) शुमामि लिया थायछ ? ( जाव मिच्छादसण वत्तिया किरिया कज्जइ !) याक्त भिया प्रत्ययाला याय छे? (गोयमा ! आभिया किरिया कज्जइ जाव अपचक्खाणकिरिया चि कज्जइ) हे गौतम ! मालियो थाय छे, यावत् सप्र. त्याज्यान या थाय छ (मिच्छादसणवत्तिया किरिया नो कज्जइ ) [मयानि प्रत्यया या नथी थती (चं जाव थणियकुमारस्स) से आरे यावत् स्तनि शुभारने
(मिच्छादसणसल्लविरयस्स ण भंते! पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स एवमेव पुच्छा) मिथ्या शान सस्यथा विरत पयन्द्रियति यना समयमा भगवान मेरीत प्रश्न (गोयमा! आरमिया किरिया कज्जइ) हे गौतम मामिडीया थाय छे (जाव मायावत्तिया किरिया कज्जइ ) यापत माया प्रत्यया या थाय छ (अपच्चक्खाणकिरिया सिय उजइ, सिय नो कज्जई) मप्रत्याभ्यानाध्या हाथित् थाय छे हाथित नया थती (मिच्छादंसणवत्तिया किरिया नो कन्जइ) भियानप्रत्यया (श्या नया यती (मणूसस्स जहा जीघस्स) मनुष्यने अपनी सभान (याणमंतर जोइसिय
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫