Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे गौतम ! नियमाद् वेदयते, एवं यावद् वैमानिकः, नवरं मनुष्यो यथा जीवः, जीवाः खलु भदन्त ! ज्ञानावरणीयं कर्म वेदयन्ते ? गौतम ! वेदयन्ते एवञ्चैव, एवं यावद् बैमानिकाः, एवं यथा ज्ञानावरणीयं तथा दर्शनावरणीयं मोहनीयम् अन्तराइयञ्च, वेदनीयायुर्नामगोत्राणि एवञ्चैव नवरं मनुष्योऽपि नियमाद् वेदयते, एवम् एते एकत्वपृथक्त्वकाः षोडशदण्डकाः ।। सू. ४॥
टीका--अथ 'कति कर्मप्रकृती र्वेदयते' इति चतुर्थद्वार प्ररूपयितुमाह-'जीवेणं हे गौतम ! कोई वेदता है, कोई नहीं वेदता है ।
(नेरइएणं भंते! णाणावरणिज्ज कम्मं वेएइ?) हे भगवन्! क्या नारक ज्ञानावरणीय कर्म को वेदता है? (गोयमा! नियमा वेएइ) हे गौतम नियम से वेदता है (एवं जाव वेमाणिए) इसी प्रकार यावत् वैमानिक (णवरं मासे जहा जीवे) विशेष-मनुष्य की वक्तव्यता जीव के समान ।
(जीवा णं भंते णाणावरणिज्ज कम्म वेदेति ?) हे भगवन् ! क्या मनुष्य ज्ञाना. वरणीय कर्म का वेदन करते हैं ? (गोयमा! वेदेति) हे गौतम ! वेदन करते हैं (एवं चेव) इसी प्रकार (एवं जाव वेमाणिया) इसी प्रकार वैमानिकों तक (एवं जहा णाणावरणिज्न) इस प्रकार जैसे ज्ञानावरणीय (तहा दंसणावरणिज्ज) उसी प्रकार दर्शनावरणीय (मोहणिज्ज) मोहनीय (अंतराइयं च) और अन्तराय (वेयणिज्जाउनाम गोयाई एवं चेव) वेदनीय-आयु-नाम और गोत्र कर्म इसी प्रकार (नवरं) विशेष (मणूसे वि नियमा वेएइ)मनुष्य भी नियम से वेदता है (एवं) इस प्रकार (एए) ये (एगत्त पोहत्तिया) एकवचन और वहुवचन संबंधी (सोलस) सोलह (दंडगा) दण्डक होते हैं ।
टीकार्थ- जीव कितनी प्रकृतियों का वेदन करता है, इस चौथे द्वार की प्ररूभन हे छ ? (गोयमा ! अत्थेगइए वेएइ अत्थेगइए नो वेएइ) हे गौतम ! यो छ,
नथी वहा)
(नरइएण भते ! णाणावरणिज्ज कम्म वेएइ) मापन शुना२४ साना१२४ीय भने हेछ ? (गोयमा नियमा वेएइ) गौतम ! नियमथी वहेछ (एव जाव वेमाणिए) मे घरे यावत् वैमानि (णवरं मणूसे जहा जीवे) विशेष-मनुष्यनी पतव्यता छपना समान समावी.
(जीवाणं भते णाणावरणिज्ज कम्म वेदेति ?) भगवन् ! शुमनुष्य ज्ञानावणीय भनु वहन ४२ छ ? (गेायमा ! वेदेति) हे गौतम ! वेहन रे छ (एवं चेव) मे घरे (एवं जाव वेमाणिया) से सारे मानि। सुधी (एवं जहा णाणावरणिज्ज) मे रेनशाना परीय (तहा दसणावरणिज्ज) से ४ारे शनावरणीय (मोहणिज्ज) भाडनीय (अंतराइयच) भने सतराय (वेयजिज्जाउनाम गोयाइएवं चेव) येहनीय, आयु, नाम भने गोत्र भी
आरे (नवर) विशेष (मसेवि नियमा वेएइ) मनुष्य ५। नियमथा बेहेछ (एव) ये मारे (एए) मा (एगत्तपोहत्तिया) मेययन भने गड्ययन संधी) (सेलस) सण (दंडगा) ६४ थाय छे.
ટીકાર્ય–જીવ કેટલી પ્રકૃતિનું વેદન કહે છે, આ ચેથા દ્વારની પ્રરૂપણ કરાય છે
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫