Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयबोधिनी टीका पद २३ सू. ५ कर्मप्रकृतिबन्धद्वारनिरूपणम्
परिणामं पप्प इविहे अणुभावे पण्णत्ते ! गोयमा ! दरिसणावरणिजस्स कम्मरस जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते, तं जहा — णिद्दा, णिद्दा णिद्दा, पयला, पयला पयला, थीद्धी चक्खुदंसणावरणे, अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदंसणावरणे, केवल सणावरणे, जं वेदेइ पोग्गलं वा पोग्गले वा पोग्गलपरिणमं वा, वीससा वा पोग्गलाणं परिणाम तेर्सिवा उदरणं पासियव्वं ण पास, पासिकामे विणपासइ, पासित्ता विष पासइ, उच्छष्णदंसणी यावि भव. दरिसणावरणजस्स कम्मस्स उदएणं, एस णं गोयमा ! दरिसणावर णिज्जे कम्मे, एस णं गोयमा ! दरिसणावर णिज्जस्स कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गल परिणामं पप्प णवविहे अणुभावे पण्णत्ते " ॥ सू ५ ॥
छाया - ज्ञानावरणीस्य खलु भदन्त ! कर्मणो जीवेन बद्धस्य स्पृष्टस्य बद्धस्पर्शस्पृष्टस्य सञ्चितस्य चितस्य उपचितस्य आपाकप्राप्तास्य विपाकप्राप्तस्य फलप्राप्तस्य उदयप्राप्तस्य जीवन कृतस्य जीवेन निर्वर्तितस्य जीवेन परिणामितस्य स्वयं वा उदीर्णस्य परेण वा उदीरितस्य तदुभयेन वा उदीर्यमाणस्य गतिं प्राप्य स्थितिप्राप्य
पंचम द्वार वक्तव्यता
( णाणावर णिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स) हे भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म का (जीवे) जीव के द्वारा (बद्धस्स) बांधे हुए का ( पुट्ठेस्स) स्पृष्ट किये का ( बद्धफासपुरूस) बांधे और स्पर्श से स्पृष्ट किये का ( संचियस्स) संचित किये का ( चियरस) चित किये का ( उवचियस्स) उपचित किये का ( आवागपत्तस्स) किंचित् पाक को प्राप्त (विवागपत्तस्स) विपाक को प्राप्त ( फलपत्तस्स) फल को प्राप्त (उदयपत्तस्स ) उदय को प्राप्त (जीवेणं कयस्स) जीव के द्वारा कृत (जीवेण निव्वत्तियस्स) जीव के द्वारा उत्पादित (जीवेणं परिणामियस्स) जीव के द्वारा परिणामित (सयं वा उदिष्णस्स) स्वयं ही उदय को प्राप्त (परेण वा उदिरीयस्स) अथवा दूसरे द्वारा उदीरणा પાંચમા દ્વારની વક્તવ્યતા
शब्दार्थ - (णाणावरणी ज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स) हे भगवन् ! ज्ञानावराशी भेना (जीवेण ) लवना द्वारा (बद्धस्स) मद्ध थयेसना (पुठ्ठस्स) स्पृष्ट थयेसना ( बद्धफासपुट्ठेस्स) जांघेला ने स्पर्शर्थी स्पृष्ट रेखाना (संचियस्स) संचित उरलाना (चियस्स) थितारेसाना ( उवचियस्स) उपस्थित
लाना (आवागपत्तस्स) पाउने प्राप्त (विवागपत्तस्स) विपाउने प्राप्त (फलपत्तस्स) इणने प्राप्त ( उदयपत्तस्स) अध्यने प्राप्त ( जीवेण कयस्स ) व द्वारा त ( जीवेण निवत्तियस्स ) 4 द्वारा उत्पादित ( जीवेण परिणामियस्स ) लवना द्वारा परिणामित ( सयंवा उदिष्णस्स ) स्वयभन
२३
शब्दार्थ :
१७७
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શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૫