Book Title: Chautis Sthan Darshan
Author(s): Aadisagarmuni
Publisher: Ulfatrayji Jain Haryana
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमः सिद्धेभ्यः 8 चौंतीस-स्थान दर्शन लेखक या संग्रह कर्ता परम पूज्य १०८ श्री आदिसागर मुनि महाराज (जन्मभूमि शेडबाल जि० बेलगाँव कर्नाटक) सहायक संग्रहकर्ता और प्रकाशक श्री पंडित ब्र० उलफतराय जी जैन (जन्मभूमि रोहतक, हरयाणा) श्री वीर निर्वाण सं० २४६४, विक्रम सं० २०२४, शा० शब्दे १८६० प्रथम संस्करण । १००० प्रति खिस्ति शक सन् १९६८ ईस्वी 1१० रुपये Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राक्कथन 'चौतीस पान दर्शन' यह अनूठा ग्रन्थराज प्राज श्रादि संसार सम्बन्धी जितनी भी प्रवस्थायें हैं या हो प्रकाशित हो रहा है जिसकी मृझे अपाधि प्रसन्नता हो सकती हैं उनका नकंगध शुद्धशास्त्र सिद्ध गरिणत प्रस्तुत नही है। ग्रन्थका विषय जैनदर्शनांतर्गत कर्मतस्वज्ञान से करने का उत्तरदायित्व स्वभावतः जैनदर्शन के ऊपर सम्बद्ध है और कर्मतने ज्ञान यह करगानुयोग से सम्बद्ध है __ आता है। मज पाठक इससे परिचित ही हैं कि संपूर्ण जिनवाणी चार विभागों में विभाजित है : १. प्रथमानुयोग . द्रव्यानुयोग वह केवल 'प्रहद' कहकर या 'प्रगम्य' कहकर अपने ३. चरणानुयोग और ४. कररणानुयोग । चारों अनुयोगों उत्तरदायित्व को समाप्त करना भी नहीं पाहता। की प्राचीन ग्रन्थराशि प्रस्यन्त समृद्ध है । करगानयोग यह संसार सम्बन्धी जितनी विचिवतायें जोव सम्बद्ध हैं, यारों एक निरतिवार निर्दोष निर्विकल्प परिणत प्रस्तुत करता है। गतियाँ मनुष्य-देव नारक या नियंच उसमें प्राप्त होने चतुर्गति भ्रमण के कारणभूत जीवों के परिमाणों की वाले नाना जाति के देह उनके वर्ण रस गधादिया विचित्रता यह भी एक ऐसा महत्वपूर्ण विषय है जिस पर प्राकाराकारादि तथा कम या अधिक इन्द्रियों को सुडौल मनीषियों ने काफी विचार किया है जैनदर्शन आत्मवादी या बेडौल रचनायें, प्रात्म प्रदेशों का शरीरापार से होने है अनात्मवादी नहीं है नास्तिक नहीं है पूर्ण आस्तिक वाला कंपन स्त्री पुरुष या नपुसके के आकार आदि को है । यह वस्तुस्थिति होते हुये भी जीन अपने सुख दुःख के लिए ईश्वरवादियों की तरह अनदा और किसी सर्व व्यवस्था का जैसा उसके पास उत्तर है उसी प्रकार जीवों शक्तिमान स्वतन्त्र मित्र व्यक्ति या शक्ति को स्वीकार के परिणामों की जो अन्तरंग सम्बन्धी जितनी विचित्रतायें नहीं करता । उसका तो वह घोषवाक्य रहा है हैं कोई क्रोधी कोई क्षमाशील कोई गर्व-छल और लोभ से अभिभूत है तो दूसरा तरसम रूप से मदकषायो या स्वयं कृतं कर्म यतारमना पूरा फलं तदीय समते विकारहीन पाया जाता है; कोई स्वभावत: सुबुद्ध तो शुभाशुभम् । परेण वसं यदि सभ्यते स्फुटं स्वय कृतं कर्म दूसरा कोरा निर्बुद्ध, कोई संयमशील तो कोई असंयम निरर्थक रवा । जीव चाहे किसी गति का हो उसे प्राप्त के कीचड़ में फंसा हुआ, कोई श्रद्धावान् दृष्टि सम्पन्न होने वाले शुभाशुभ फल यह सब उसी के भली बुरी तो दूसरा श्रद्धाविहीन दृष्टि शून्य, किसी को संकल्प करनी के-करतूत के फल हैं 'जो बस करे सो तस फल विकल्पों का सुसंस्कृत सामग्य होता है, तो किसी में उसकी पाय' 'जंसी रनी सी भरनी' आदि उक्तियों के मूल में किचिन्मात्रा भी नहीं पायी जाती। इन सारी विचित्रजो तस्व है, सिद्धांत है. वही जैनदर्शन का हाई है, 'श्वरः तामों का या सम्भाब्य सारी विचित्रतामों का जनदर्शन प्रेरितो गच्छेत् स्वर्ग वा श्वभ्रमेव वा।' आदि मान्यताओं के पास तर्क-शुद्ध विचार है। सक्षप में यह कह सकते हैं से वह संकड़ों कोस दूर है दूसरा यदि सुख दुःखों का विश्व का बाहरी भूप और अन्तरंग स्वरूप का ठीक दाता है और यह जीव उसको भोक्ता होगा तो इसकेद्वारा ठीक हिसाब बैठालने में ईश्वर या ईश्वरसम दूसरी स्व. होने वाली पाप पुण्य क्रियायें या धर्मानुष्ठान इन सब ही तन्त्र शक्ति के मान्यता के बिना भी जैनदर्शन समर्थ का कोई अर्थ या प्रयोजन सिद्ध नहीं होता, इसलिये लोक हा है वह अपने समृद्ध कर्मतत्वज्ञान के बल पर ही हो परलोक सुख दुःख, रोग तीरोग, इटानिष्ट संयोग वियोग पाया है। उसके परिज्ञान के लिए जैनदर्शन समान बस्नु Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोतीस स्थान दर्शन व्यवस्था भी संक्षेप में देखती होनो। वह लोक को पश्य परिपूर्ण मानता है जीव-युद्गल धर्म प्रथमं आकाश और काल ये मूल में छः स्वयंभू है। सबस द्रव्य स्वरूप भिन्न भिन्न है । जीव सवेतन है शेष चेतन है । पुदगल मूर्तिक है शेष यमूर्तिक है। धर्म-अव मार संख्या में एक एक है काला संख्यात है। जीवों को संख्या अति है पुत्रों की जीवों से भी अत्यधिक अनंत है। सब ही अनादि अपने गुण पर्यायों में स्वयं सहभावी या है मावों रूप से व्याप्त है। हर समय में उत्पाद व्यय श्रय रूप है । इनमें से जीव और मन को छोड़कर दोष बा धर्म प्रथमं प्राकाश और काल में शुद्ध है परस्पर में से तो यहाँ एक ना ही है। रही बात जीव और पुद्गलकों की इनमें भी जिनका पुसे (सूक्ष्म या स्थूल) सम्बन्ध सदा के लिए छूटा है ऐसे अनन्त जीव हैं ये भी शुद्ध सिद्ध कहलाते हैं। वे भविष्य में पुनबंध का कारण हो विद्यमान न रहने के कारण बन्धनवद नहीं होते हैं इनका मुक्त परमात्मा विदेही मुक्तात्मा आदि श्रनन्त शुभ नामों से स्मरण किया जाता है। पुदगल द्रव्य मूर्तिक- रूपी है स्पर्श रस गंध व वे उसके मूल गुण हैं। इन गुणों से वह अभिन्न ही रहता है चाहे वह स्थूल स्कंधों के रूप में ही या सूक्ष्म परमाणुओं के रूप में हो । परमाणु अवस्था शुद्ध रूप होती है परमाणुओं की संख्या अनंत है, स्कंध स्वभावतः प्रशुद्ध होती है उनकी ख्वा ममत होते हुए भी मूल में स्कंधों की जातियां तेईस है । जिनमें से जीव के साथ सम्पर्क विशेष जिनका होता है ऐसी पांच प्रकार की स्कंध जातियां हैं जिनको १. श्राहार २. तेजस वर्गमा भाषावा४. मनोवगंगा और नोर्मवगा कहते हैं। ये उत्तरोत्तर सुक्ष्म है । अपना अपना कार्य करने में परस्पर सहयोग से समर्थ है। इनका जीव भावों के निमित्त से योग (प्रदेश कंपन) और उपयोग से (शुभाशुभ परिणति से) आवागमन अनादि से होता म्रा रहा है; और भविष्य में भी जीव समीचीन पुरुषार्थं से जब तक सदा के लिए शुद्ध नहीं होता है तब तक तो इन स्कंध पुद्गलों का आवागमन अपनी अपनी - | ११ योग्यता से होता ही रहेगा। यही जीव का संसार कहा जाता है और इस प्रक्रिया के कारण जीव ससारी कहा जाता है । समयपाय इनमें भय जीव यथायें पुरुषार्थ से विकसित रत्न से सम्पन्न होने पर संबर निर्जरा करता हुमा युक्त हो सकता है। क्षेत्र में जनदर्शन में इस प्रकार वस्तु व्यवस्था है । यह वस्तु व्यवस्था जनदर्शन को मौलिकता है और सूर्यप्रकाश में प्रत्यक्षगत वस्तु की तरह इसका स्पष्टता श्रवबोध होने पर एक जिज्ञासा सहज ही जागृत होती है कि, जीव और कर्मवगंगा तथा नोकर्म गंगा का (आहार वगणा भाषावगंगा तेजसवगंगा और मनोव का ) ग्रहण कब से करता था रहा है? क्यों करता है ? किन किन कागों से करता है ? कब तक करता रहेगा ? उनमें न्यूनाधिकता का क्या कारण है ? उससे जीव की हानि ही है? या कुछ लाभ भी है ? ग्रहण बन्द होने के उपाय कौन से हैं ? आदि प्रश्नमालिका खड़ी होती है। इसका तात्विक भूमिका पर जो विचार मूलवाही कप में किया गया है वह सदा खप्तत्व विचार कहा जाता है। उपरोक्त जीव वेतना लक्षण उपयोग स्वरूपात्मक है। स्वाद गुणविचिष्ट पुद्गल जीव रूपये विविक्षित है। शीवों का विभाव विकार रूप परिणामन के निमित होने पर तस लोहा जैसे जल का पाप करता है उस प्रकार बंड जीवो के कर्मकर्मका ग्रहण होता है वे विभाव और ग्रहण दोनों में करते हैं वे विभाग कपाय तथा प्रदेशों के साथ कर्मस्यों का संदेस्य कहा जाता है। जब कोई सम्यग्ज्ञानी महात्मा अन्तष्टि संपन्न अन्तरा मा स्वानुभूति सनाय होता है उस समय उसकी जीवनी अन्तर्या परिवर्तित होता है तब से व विशुद्ध परि ग्राम और उसके निमित से अभिनव कर्मस्कंधों का आनव-निरोध संर' कहा जाता है। पूर्व संचितों की क्रमशः क्षपणा के तिमि रूप विशुद्ध परिणाम तथा क्रम क्षपणा को 'विजय' कहते है इसी तरह वे सातिशय विशुद्ध परिणाम भी पूर्वसंचित कर्मों के सम्पूर्ण क्षपण में निर्मित है उनकी 'भावमोश' यह संज्ञा होती है तथा सदा के लिए संपूर्ण कमों का सर्व प्रकार से अलग होना द्रव्य मोक्ष' है और जोब मुक्त है। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन जीवभाव तथा कमबंध इनका तथा पूर्वबद्ध कर्मा का यया सुनिश्चित सहायता पहुंचनी है 1 अथ निर्माताओं ने समय उदय और मीनभानों का परस्पर निमित्त नमित्तिक स्वयं साविशय प्रयत्न करणे अध्यन करन वालों को सुचवस्थित सम्पन्य धिारित हो जाने पर संसार विषय सुलभ किया है । इस ग्रन्थ के निर्मागा में प० पू० मम्बन्धी सारी विनितानों के विषय में जितनी भी १०८ मुनि श्री प्राधिनागरजी महाराज (शेडवाल नथा Hum टॉसी प्रकाशीता मित जोगा। सम्माननीय पडित उसकतरापनी रोना (हरयाना। इन वाता हत्ता के रूप में किसी व्यक्ति विशेष के मानने की दोनों स्वाध्याय मग्न प्रशस्त अध्यवसायियों का वर्षों का प्रविसम्मा ही नहीं रहेगी। निज के पूण पापों का सर्जन परिथम निहित है बिज पाठकादि इस परिश्रमशीलता का में और भुक्तान में यह प्रागी जैने स्वयं जिम्मेवार होता याच मूल्यांकन कर सकते है। मैं भी इन अथकपरिहै उगी प्रकार कर्मनाश करके अनन् अबिनाशी गर्ष यमों की हृदय में सराहना करता हूं पूर्व में मुनी साधु सम्पन्न परम थष्ठ अवस्था के प्राप्त करने में भी यह स्वयं गगा यौर प्रशस्न अध्यवसाय मग्न ज्ञानी लोग इस प्रकार समर्थ होता है वह मिदान्त ग्रन्थ का धार मनन मोर का प्रशस्त अव्यवसाम महीनों करते थे। उससे एक बात अध्ययन करने से ग्राम ही आप मुस्पष्ट होता जाता है तो निश्चित है कि राग द्वेष के लिये निमितभ्रत अन्याय और स्वावलंबन पूर्वक सम्पूर्ण स्वतन्त्रता की शपता सांसारिक संकल्प विकल्पों से हैं लोग अपनी प्रास्मा को दृष्टिपथ में आ जाता है । ठीक तरह म बना लेते थे दोनों महान पत्रों का मैं हृदय से ग्राभारी हं उन्होंने प्रकारग ही बीतराग प्रेम इन सात तावों में में ग्राचा बन्ध तथा संवर-निर्जरा इस व्यक्ति पर अधिक मात्रा में किया है और जान का मनीषियों ने भी सूक्ष्म मूहमसभ विचार करने की पद्धति विशेष न होने ये भी प्रस्तावना के रूप में लिखने के निश्चित रूप से निर्धारित की है यह भी एक महत्वपूर्ण लिये नाव्य किया। इसमें जो भी भुने हों यह मेरी हैं और पद्धति है। चौतीस स्थान ये मुख्य रूप से सम्मुख रस्त्र कर सच्चाई हो वह पूण्य जिन वाली माता को प्रारमा है। कर्मवर्गगानों के विषय में कार्यकारग्गाद भायों का पूरा उसे हमारी शतशः वंदना हो। ख्याल रखकर जो विचार प्रपंच हो सकता है वही इस अन्य का महत्वपुर्ण विषय विशेष है। प्राचीन पार्य पाशा एवं विश्वास करता है कि स्वाध्याय मी प्राधों का उस प्राधार है। प्रानत गाथा, संस्कृत लोक जनता इस रिश्रम से प्रवश्य ही उचित लाभ उठायेगी। भाष्य महाभाष्य प्रादिप से भी इस विषय का किसी साथ ही साथ प्रभु चरणों में यह हार्दिक प्रार्थना करता मात्रा में वर्णन है फिर भी नक्शों के द्वारा आलेखों के हूं कि जिनवाणी माता की मवानों के लिये ग्रंथ द्वारा इस विषय का स्पष्ट बोध सहज में होने से दर्पण निर्मातामों को भविष्य में भी सदीर्घ जीवनी पौर स्वाध्याय में प्रनिबिन की तरह विषयावबोध स्पष्ट-मूस्पष्ट होने में प्रध्ववसाय की इसी तरह शान्ति विशेष का लाभ हो। कारेजा विनीत १६११६ डा. हेमचन्द वैद्य न्यायतीर्थ माणिकचन्द नबरे Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इस शौंतीस-स्थान वर्शन अन्य । मूल स्तम्भ कर्म-सिद्धान्त लेखक-पं. ताराचन्द जैन, शास्त्री न्यायतीयं नागपुर. असोम आकाश दो ठीक पम्य-माग में लोक (विश्व ) की रहस्यमय विचित्र रचना है । षड्दर्शन के मणेताओं तथा अन्य दार्शनिकों ने अपनी अपनी प्रतिमा के बनसार लोक के इस रहस्य को जानने एवं उसे प्रकट करने का प्रयत्न किया है। परन्तु अपने सीमित बुदिल से विशाल लोक के रहस्य को न जानने के कारण उनमें से कुछ ने सर्वशत्रित सम्पन्न, एक ईश्वर को ही लोक का नियन्ता उदघोषित किया है । तथा कुछ ने परिणामी नित्य प्रकृति को ही इसका निर्माता माना है। परन्तु जैन दर्शन में पोक रचना सम्बन्धी माना नसमें नियमिक है जित अपति राग-देष-मोह और अज्ञान आदि समस्त आत्मिक दोषों और दुर्वलताओं पर विजय प्राप्त करने वाले पूर्ण बताग, मी एवं हितीपदेशी परमात्मा द्वारा प्ररूपित किया गया है। इस अवसपिणी काल में हर दर्शन के प्रणेता भगवान वक्षनदेवादि चोरोस तीपंकर हए है। उन लोकहितेषी महापुरुषोन अपने केवलज्ञान से लोकालोकका पूर्ण यस्य यथावत जानकर भिमारकार से उसका स्वरूप प्रकट किया है। लोक विभाग भाकाश द्रव्य अनन्त है। इस अनन्त (अमर्याद) आकाश के बिलकुल बीच में जीव, • पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन यह द्रव्यों के मेल से ही मोफ निर्मित हुआ है। लोक के मुख्य तीन विभाग है ऊलोक, मध्यलोक और अघी लोका उछलोक के सर्वोपरि भाग में (तनपातवम्य में) मुख्यतः सिद्ध परमात्मा अनुपम अनम सुख का निरावाषरूप से अनुभव करते हुए विराज रहे है। उससे नीचे सथिसिद्धि आदि अनुपम घोमासम्पन्न ३९ विमानों की सौंदर्य पूर्ण रचना है । इन विमानों (स्वर्गभूमि) में पूण्याधिकारी जीवों का जन्म हुआ करता है । जो भी मन व्य शुभ भावों से जितना पूष्यसंचय करता है, वह मरने के बाद तदनकुल भागावभंग सहित स्वर्ग में जन्म धारणकर चिरकाल तक एन्द्रिक सुख भोगता है। जो मनध्य रत्नश्यरूप धर्म का आराधम का वह स्वामति के बससे आयभादि वर्मो का अन्तकर सीका में सतत निवास करता है । तथा कतिपय रत्नन यपारी जीव पुण्यातिदाय और शुभ भावों से भरकर देवाय का बन्ध करके सवार्यासधि आदि पश्च अनुत्तर और नवअमुविक्षों में दन्न पर्याय धारण करते हैं। वहां पर भी ये भोगोप मोगोमें अनासक्त रहते हूए तस्व चर्चा और तत्वान चिन्तन में सेतस सागर सेसंदीपंकाल को भी अनायास व्यतीत कर देते है। कध्वंलोक से नीरे मध्यम कोक की प्राकृतिक रचना है। इसमें मयनबसी देव, व्यंतर देव और सूर्म, घद्र आदि ज्योति देव, मनप्य और विविध प्रकार के तिवन निवास करने है । इस लोक में जम्बूद्वीपरादि असंख्य द्वीप और समुद्रों की महत्वपूर्ण रचना है। इसकेचे अधोलोक न्यायास्या है। नीचे नाचे सात नरक अमिया अनादिकाल से विद्यमान हैं। इनमें पाप संडर करनेवाले जीवही अपने पापों का फल भोगने के लिये दहा जन्म धारण करते है। सभी नारकी निरन्तर दुखानुभव करते हुए सुदीर्थ काल व्यतील कर अपने भावानुसार मनुष्प अथवा सिप पर्याय धारण करते है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पूर्ण लोक चौदह राजू ऊंचा सात राज़ चौडा और ३४३ घन राज प्रमाण है । इसके निमाण म किसी ईश्वरादि व्यक्ति विशेष का महत्व नही । यह लोक अनादि निधन है। इसका निमाण १५ (प्राकृतिक) हुआ है। घद्रव्य और लोकरचना भाकाश व्यापक तथा अनंत प्रदेशी द्वन्ध होने से अब ग्याका आधार है। इसके असंख्यात मध्यप्रदेश में असंख्पात प्रदेशी अनन्त जोव द्रव्य, अनंतानन्त पुदगल व्या असंख्यात देशों एक अन्य चमं द्वध्य, अधर्मदव्य और एक प्रदेशी असलयात काम ठप मरे हए है। समस्त द्रा अनादि काल स स्वय विविध पर्यायों में परिणमित होते हुए परिणमनदा आकाव्य में आश्रयरूप से विधमान हमार भविष्य में भी इसी प्रकार की प्राकृतिक रचना सदा विद्यमान रहेगी। इन छह द्रव्यों का यह विचित्र पाश्चतिक मेलही लोक कहा जाता है । इस लोक के निर्माता ये जीवाद छ, द्रवप ही है । इसकी रचना एवं व्यवस्था के लिये अनन्त शक्तिश ला ईश्वरादि की कल्पना तक संगत नहीं है । परमेश्वर सम्पूर्ण रागवृष और मोहरहित पूर्ण बीतरामी होते है, ने अनेक विरुद्ध कार्यो के कर्ता कसे बन सकते है । न छहों ट्रयों में परमाण और नाना आकार को धारण किये हए स्वरूप पुमदल दही भूतिक है । यह स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण गणों का धारक है। संसार में जो भी स्पर्शनादि इन्द्रियों में ज्ञान हाता है, यह सब पुदगल द्रव्य पुदगल द्रक्ष्य में भिन्न जीवाद पांचों द्रव्य इद्रियों से ग्रहण नही हात है, बे अमूर्तिक है। बौद्रव्य अक्षम द्रव्य काल द्रव्य और आकाश द्रव्य आगममाण और यनित से ही सिद्ध किये जाते है। बीच द्रव्य अनन्त है, ये क्त जीब और संसारि-जीव दो भागों में विभक्त है । मक्त जाय ताश ज्ञान दर्शन सुखमय अमर्त रुप लोकान में संस्थित है. इसलियं उनको अल्पज्ञानी जानन में असमर्थ है। हम लोगों को आगम से ही उनको जानकारी हो सकती है । जीवकी संसारावस्था मनुष्य, पशु-पक्षी, क्षुद्ध जन्तु और पश्वी, जल, अग्नि, वाय एवं अपित बनस्पतिमा जोभी दृष्टि मांचर हो रहे है, वे सब संसारी जीव मारि-जीव अनादिकाल से कमों के निमित्त से निजस्वरूप को घुस ख्य-क्षेत्र-काल-भव और भावमय सदी (पश्च पराक्तनमय) ससार में परिभ्रमण कर रहे है । प्रत्येक जीव का अनादि से स्वर्ण-पाषाण के समान कर्मों के साथ सम्बन्ध बना हुआ है। जब कामो का उदय होता है, वो जब उसके निमिस से स्वयं रागी, द्वेषी, मोही और अज्ञानी बन जाता है और जब जीव कोधादि रूप विभावमय परिणमन करता है तब जीव के विकृतभावों का निमित्त पाकर कार्माणवर्गणारूप पुदगल द्रव्य स्वयं जीव से सम्बद्ध हो जाते है। विकारी जीवों के विमावों का निमित्त मिलने पर कार्माण-वर्गणा में नियम से यिकारी पर्याय उत्पन्न होती है । पुदगल द्रव्य की इस विकारो पर्याय को ही कर्म कहते है । कर्म के निमित से स्वरूप से भष्ट हए जीव नरक, नियंच, मनव और देवगति में विविध अवस्थाओं को पुनः पुन: ग्रहण करते है और छोड़ते है । चौरासी लाख योनियों में जीव के परिभ्रमण का नाम ही संसार है । प्रत्येक जीय अनानि से सम्पूर्ण लोक में (द्रव्य-क्षेत्र-काल ) भावरूप संसार में परिभ्रमण कर से है। वस्तुतः जीप कौर कर्म के सम्पर्क को हा संसार कहते है। जीव के साथ यह अटल Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ नियम मही है. किकामोदय के निमित्त से बह नियम से राग-देष मोह और अज्ञानमय विभावरूप परिणमें । जब जीव स्वरुपावलम्बन के बल से दर्शनशान चारित्रमय परिणमन करता है । उस ई भी विभाव परिणति नहीं होती है। विभाब परिणतिरूप प्रमादावस्था के अभाव में जीव के कर्मों का आसत्र और बन्ध रुक जाता है 1बन्ध के अभाव में जीव का जन्म मरणरूप संसार समाप्त हो जाता है। जीव और कर्म नवोन वाघामाव होने पर पूर्व वढे कम आत्मविशद्धि से निजागं हो जाते है। मम्पूर्ण कर्मों का आत्मा से विच्छंद होते ही आरमा मुक्त हो जाता है। जैनागम में कम-विष्य का विस्सत वर्णन है । भगवान ऋषभ देवादि चौबीस तीर्थकरों के प्रामाणिक उपदेश का सार यहणकर मंघावी महान तार्किक जैनाचार्यों में षटखण्डागम, गोम्मटसार-कर्मकाण्ड आदि ग्रन्यों में कर्म सिद्धान्त का विरजत वर्णन किया है। कर्म का सामाग्यस्य रूप नाचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चकवती ने निम्नप्रकार है. पयडो सः माय', जीवगाणं अणाइगम्बन्धों। कणयांवले मलव ताण अथित्तं सय सिद्धं ।। असे जलक, स्वभाव शीतल, पवन का स्वभाव तिरछा बहना और अग्निका स्वभाव कार की ओर जना है । उमा प्रकार निमित्त के बिना वस्तु का जो सहज स्वभाव होता है, उसे प्रकृति, लक्षी अथवा स्वभाव कहते है। यहा पर दस्तू शब्दसे जीब और पुदगल का ग्रहण किया गया है। इन दोनों में से जीव का स्वभाव रागादिरूप से परिणमने काह और कर्म का स्वभाव जीव को रागादिप से परिणमाने में निमित्त होने का है । पोवालिक कर्म और जीव क, यह सम्बन्ध अनादि का है। जैसे खदान से निकर ने वाले - पाषाण में सोने और मल का मेल कब हआ कहना अशवम है, उसी तरह चेतन जीव द्रव्य और जड कग द्रव्य के सम्बन के विषय में तक करना अनपयोगी है। इसीलिये आचार्य देव ने इन दोनो द्रव्यों के संयोग को अनादिकालीन स्वीपार किया है। वलादि आर्ष ग्रन्थों में भी संसारि जी का अनादिद्रव्य कर्म के साथ सम्पर्क माना है । अनादिकालीन द्रव्य कर्म के उदय होने पर उसके निमित से जोर र गाद करायरूप विमाव परिणति में परिणमित होता है । स्वभाव से हो उन व्यों का ऐसा पारस्परिक कार्य कारण भाव चला आ रहा है । कभी जीव के रागादि विभावरूप निमित्त कारण से पुदगल द्रभ्य विकृत होकर कमरुप में परिवर्तित हो जाते है । और कभी कर्मोदय का निमित्त प्राप्त कर जीव विभावरूप में परिणमन करत है। इस तरह सहजरूा से दोनों द्रव्यों में कार्य कारण भावबना हुआ है। शाले मिस अहम' में ऐसा प्रतीति जीव का अस्तित्व सिद्ध करती है और कर्मका अस्तित्व कोईधनी कोई निधन, कोई मखं कोई विज्ञान, इत्यादि चित्रिता प्रत्यक्ष देखने से सिद्ध होती है। वास्तव में हम आस्मा की विविध नरकादि अवस्थाओं के होने में निमित्त है । और वह जीव की उस अवस्था के योग्य शरीर, इन्द्रिपादि प्राप्ति का प्रमुख हेतु है । इसलिये जीव द्रव्य और कर्म दोनों ही पदार्थ अनुभव सिद्ध जीव औदारिकादि शरीरसहित शरीर नामा नारकर्म के उदम से मन, बचन और काय योग से ज्ञानावरण दि आ3 कमरूप होनेवाली कर्मवर्गणाओं को एक औदारिक, बैंक्रियिक हारक और जसरीर Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९ रूप परिणमली जो वथाओं को चारों ओर से ग्रह करता है। गोम्मटारकर्मकाण्ड में कहा भी है। देोदयेष महिओ षो आहरदि कम्मणोकम्मं । पद्रियराज्यमंतास ओम् ॥ गंगा सबसे पहले को धारण करती है। यह कर्म योग के निमिस से सचित रूप जानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोनोष, आयु, नाम, गोत्र और प्रवराय इन आठ भागों में होता है । इन आठ कर्मों का एकमा स्वभाव व कार्य नहीं है । जैसे कि निम्नलिखित प्रमाणों से सिद्ध है । आवरण-मोहन घादीजीवगुण वादणत दो | उग जामं गोदं वैयणियं तद् अधादिति ॥ केवलानंदंसणमणत विश्यिच खयिय सम्म । यिदियदि समयादि ॥ अर्थात जीव ज्ञान दर्शन दानादि श्राकिभावों का तथा मशिन प्रज्ञान अवधिज्ञान भावों का ज्ञानावरण, दर्शनाचण, मोहन य और अन्य साविक सम्यक जाति चारित्र और शाकि मन:पर्ययज्ञान और सम्यत्वादि क्षम्योपशिक चार कर्मों से घात किया जाता है । अतः इन चारों कमों की पाति कर्मसंज्ञा है अर्थात ज्ञानावरण, दर्शनावरण मोहनीय और अन्तराय जीन के सम्पूर्ण अनुजीत का नहीं होना कहलाते है तु आबू नाम गोत्र और वेदनीय इनर पर भी जोर के किसी भी अनुविगुण असाधारण रूप का अभाव नहीं होता अर्थात आयु आदि चारों द्रश्य कर्मों के उदय रहते हुए भी यह जीन केवलज्ञान, केवलदर्शन साथिसम्यकश्य, अनंत और अनन्तवीर्य का नाम करके महंत परमात्मा बन जाता है। इसीलिये इन चारों कर्मों को अघातिया कर्म कहते है । अलिक बी के स्वरूप का धान नहीं करते, परन्तु बोव के साथ जबतक उनका उदयादिरूप से सब रहता है जी तब तक मुक्त नहीं होता है। इन कर्मो की स्थित पूर्ण होते ही जीव नियम से कर्मों की कaिया टूटने पर पूर्ण स्वतंत्र होकर मुक्त या सिद्ध बन जाते हैं । इन अघातिया कर्मों का निम्मप्रकार समि करूपमयसार भणादि वृत्तम्हि जीवस्स ववद्वाणं करेदि आऊ भ मदिआदि जीव भेदं देवादी पोग्गलाण भेदंन । गदियंतरपरिणयन करेदिणाम अणेयवि । संतान कमेणानय जीवावरणस्स गोदमि दिसण्णा । उच्च णीच चरण उणीदुवे गोदं । वा कमवण वेणियं सुहसवयं सादं दुख समसादं तं वेदयदीदि वेदणिमं ॥ कर्मकाण्ड गाथा ११, १२, १३, १४ भावार्थ कर्मों के उदय से ही जिस का बस्ति हूं और दर्शनमोड़ तथा पारिष मोहनीय कर्मों के उदय जीव जीव और पर्या faf पि हो क सु 2 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० उदय से जो बुद्धि को प्राप्त हो रहा है संसार अनादि है। उस संसारब्ती कारागृह में आयु कर्म हो वह जीव नरक विच मनुष्य और देवगति पर्यायों में ६का रहता है। इसी से अर्हत अवस्था प्राप्त होने पर भी जीव मनुष्य पर्याय में प्राप्त होनेवाले औदारिक शरीर में मनुष्यायु की समाप्ति तक रुका रहता है । और जाम के अन्तिम निवेोदय होते (आयु कर्म की निर्जरा होने पर) ही वह मुक्त हो जाता है। 4 नामकर्म चित्रकार की तरह अनेक कार्यों को किया करता है। यह कर्म नारकी वीर जीव की पर्यायों के भेदों को मौदारिकादि शरीर के भेदों को तथा जीव के एक पति से दूसरी गतिरूप परिणमन को कराता है इस कर्मा जीव के हाथ पौदहवें गुपस्थान तक संबन्ध बनाता है। इस द्वारा निर्मित औदारिक शरीररूप कारागृह से मुक्त होने पर ही जीव सिद्धावस्था को प्राप्त करता है। कुल की परिपाटी के क्रम से चले आये जीव के आचरण को गोत्र कहते हैं । उस कुल परंपरा में कंवा आवरण हावे तो उसे उपगोत्र कहते हैं और यदि नीच आचरण होवे तो मीच गोत्र कहते है इस कर्म से भी जीव के विकाश में कोई बाधा नहीं होती है । स्पर्शनादि इन्द्रियों का अपने अपने स्पर्शादि विषयों का अनुभव करना बेदनीय कर्म है। वेदनीय कर्म के सातावेदनीय और असातावेदनीय दो भेद हैं। उसमे दुखरूप अनुभव करामा असातावेदनीय है और मुरूप अनुभव करामा सातावेदनीय है। अर्थात् जीव को रूप अनुभव वेदनीय कर्म द्वारा हुआ करता है। इस प्रकार संसार जीव का कर्मों के साथ अननस सम्बन्ध पता आरहा है। योग के निमित्त मे जो विषय पुद्गल द्रव्य से पुद्गल स्कंध जो योगों का निमित्त पाकर जीव के साथ सम्पर्क स्थापित लेते हैं आग देशों के साथ सम्बन्धित होते है, वे पुद्गल कब आत्मा से सम्बद्ध होते ही कर्म कहलाने लगते हैं और सरकाल हो उसी योगबल से उस कर्म द्रव्य का ज्ञानावरणादिरूप से आठ भेदमें तथा १४८ प्रभेदों में विभाग हो जाता है । कर्मद्रव्य के इस भेदरूप] स्वभाव मेव का नाम ही प्रकृतिबन्ध हैं て I अर्थात उस कर्मगंगा में दिकारी जीव के सम्पर्क से शीव के ज्ञानादि गुणों के बात करने और परतंत्र बनाये रखने का स्वयं स्वभाव निर्मित होता है। कमों में इस प्रकार की पाक्ति का बना रहना ही प्रकृति के प्रदेशों के साथ कर्मप्रदेशों का घुल मिल जाना ही प्रदेशबन्ध है के साथ इन कर्मों का इसो स्वभाव से बने रहने की कालमर्यादा का निर्माण जीवके कोषादि कषागों पर आधारित रहता है। प्रकृतिबन्ध के समय जीव के जिस तरह के तीव्रादि संक्लेश परिणाम रहते है कर्मों में वंसी ही ज्यादा और कम स्थिति पडती है इसी की स्थितित्रन्य कहते हैं । और उसी कषायानुसार इन कर्मों में फल देने की शक्ति का निर्माण होता है। कमोंके उदय होनेपर हो जीवों को बद्ध कर्मो का फल मिलता है इस कर्मफलानुभव का नाम ही अनुमागत्य है। इस प्रकार एक समय में योगों द्वारा अप्ठ कर्म द्रदय में चार प्रकार की दाक्ति आविर्भूत हो तो, जिसे प्रकृति बन्ध स्थिति बन्ध अनुभव और प्रदेशबन्ध कहते हैं वारों में अनुभागही अर्थात कमों का विपाक ही जीव को सुख दुखी करने में निर्मित होता है। कमों को चार अवस्थायें बधावस्था को प्राप्त प्रकृतियों के उदय का फल जोव को विभिन्न समय और अवस्थाओं में प्राप्त हुआ करता है। एक सौ अठतालीस प्रकृतियों में से औवारिक शरीर से लेकर स्वयं नाम तक ५० तथा निर्माण व उद्योत स्थिर अस्थिर शुभ अशुभ प्रत्येक साधारण अगुरु लघु अवसरबात इन बालक प्रकृतियों के उदय का फल जीव को पुद्गल के माध्यम से ही मिलता है। इसीलिये इस प्रकृतियों Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को पुबल विपाकी कहते हैं। जैसा कि निम्न आगम वाक्य से स्पष्ट है। देहादी फासंता पण्णासा णिमिणताव अगलंच । यि र सुह-पतंय दुम अगुरूतिय पागल विवाई। कम काण्ड गा.१७ भरकाय, तिर्षगायु, मनध्यायु और देवाय इन चारों आयु फर्म को प्रकृतियों का बन्न होने पर इनके उदय का फल जीव को भरकादि अवस्था में ही प्राप्त होता है। इसीलिये इन प्रकतिओं को मविपाको संज्ञा है। प्रत्येक आय का उपभोग जीव को जन्मानन्तर उसी जाति की पर्याय में प्राप्त होता है। नरकायु का फल नरकपर्याय में ही प्राप्त हो सकता है। सिर्यन आदि किसी भी अवस्था में नरकाम् का उदय नहा हो सकता है इसी तरह बाकी तीनों आय कर्म की प्रकृतियों का नियम है । करकग-यानपूर्वी, तियं गत्यानपुर्वी, मनुष्यगत्यामुपुर्जी और देवगत्यानपूर्वी नाम कर्म की इन चार प्रकृतियों का परिपाक (उदय) मरने के पश्चात नवीन जन्म धारण करने के लिये परलोक को गमन करते हए जोव के मार्ग में होता है इसीसे इन प्रकृतिका को क्षेत्र विपाकी कहा गया है। जैसा की निम्नलिखित अपवाक्य से सिद्ध है। आऊमी मव निवाई खंत विवाई हय आण तुम्बीओ। अत्तरि अवसेसा जीव विवाई मुणेयवा।। कर्मकाण्ड गा६३८ भावार्थ-मरकादि चार आय मविपाकी है. क्योंकि नारकादि पर्यायों के होने पर हो इन प्रकृतियों का फल प्राप्त होता है और चार आनुपुर्वी क्षेत्र विपाकी हैं । अवशेष रचो ७८ प्रकृतियां जीवविपाकी है । इन अठहत्तर प्रकृतिओं का फल जीवको नारकादि पर्यायों में प्राप्त होता है। वे प्रकृतियां नोचे लिखे अनुसार है। वेणिय-गोद-यादीणे कायण्णातु णामपबडीणं । सत्तावीसं चेदे अत्तरि जीवविवाई।। वेदनीय को २ गोत्रकर्म की २ धातिया कमों को ४७ और नाम कमकी तीर्थकर आदि ससाइस प्रकृतियों का फल जीव ही मनुष्यादि पर्यायों में उपाजित करता है । इस प्रकार कर्म प्रकृतियों का परिपाक उमकी निजकी शक्ति से हुआ करता है। कर्मों का आवाका काल वोग और कषायों से कर्मों का बन्ध होते ही वे कम तुरन्त फल नहीं देते उसके लिये विशेष नियम है । इस नियम को आबाघा काल कहते हैं अधांत अल्पवा अधिक स्थिति बन्ध के अनुसार जल्प अधिक विरहकाल के अनन्तर कर्म उदय में माने लगते हैं। आपापा का निम्न प्रकार लक्षण है। कम्मसकवेणागय दवे य एदि उदय स्वेण । रूवेणू दीरणस्स य आबाहा जाव ताव हो। भावार्थ-कामणि शरीर मामा नामकर्म के उदय से योग द्वारा आत्मा में कम रूपसे प्राप्त हुए पूग द्रव्य जब तक उदय से अथवा उदीरणारूप से परिणत नहीं होते उतने काल को आबाधा कहते हैं। कम प्रतिओंकी भाषा के विषय में आगमोक्त विधि इस प्रकार है। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ उदयसिहं आबा हा कोडकोडि उहीणं । वासस्यं तपति भागणय सेसट्ठिदीनंच ॥ जिन कर्म प्रकृतियों की एक कोडाकोडी सागर प्रमाण स्थिति बन्धती हैं उन फर्मों की सौ वर्ष प्रमाण आवाधा निर्मित होती है । इस विधि से अंशिक नियमानुसार कर्म स्थिति के प्रमाण से न्यून व afe air fromी जाती है । परन्तु जिन मंत्रकृतियों की उत्कृष्ट स्थिति अन्तःकोडाफोडी प्रमाण बन्ती है, उनकी जाबाचा मुहुर्त मात्र होती हैं। समस्त जवन्ध स्थितियों की आवाषा स्थिति से संख्यास गुणी कम होती हैं। आयुकर्म की बाधा के विषय में निम्नप्रकार नियम है। वाणं कोडितिभा गादासंपवद्धयोति हये | आउस य आवाहाण हिदिपडिभागमाऊस्स !! भावार्थ- आप कर्म की आबाधा होडपूर्व के तीसरे भाग से लेकर आसपाढा प्रमाण अर्थात जिस काल से अलकाल नहीं है ऐसे आवली के असंख्यातवें भाव प्रमाण मात्र है। परन्तु बायु कर्म की आवाजा स्थिति के अनुसार भाग की हुई नहीं होती है । उदीरणा अर्थात कर्म स्थिति पूर्ण होने से पहले ही विशुद्धि के बलसे कर्मों को उदयावली में लाकर खिरादेना ऐसी हालत में आयु को छोड़कर सालों कर्मों की बाबाधा एक आदली मात्र है ! बन्धो हुई तद्भव संबन्धी भुज्यमान आयु की उदीरणा हो सकती है । परन्तु आयु की यह उदीरणा केवल कर्मभूमिज मनुष्य और तियंत्र के ही संभावित है । समस्त देव नारकी, मोगभूमिज मनुष्य और वियंच के मुज्यमान आयु की उदीरणा नहीं होती है। कर्मभूमिज मनुष्य और तियंचों को अकाल मरण भी होता है अकाल मृत्यु कुछ विद्वानों का आयु के विषय में ऐसा मत है कि आयु की स्थिति के पूर्ण होने पर ही जीवों का मरण होता हूं किसी भी जीव का बदलीचात वरण ( अकाल मृत्यु ) नहीं होती है । परन्तु जैनागम में अकाल मरण का प्रचुर उल्लेख मिलता है निम्नलिखित वाक्यों से अकाल मरण की पुष्टि होती हैं। सिवेषणरसक्खय-भय- तथ्यगण संकिले से ह उसासाहाराणं णिरोह दो विज माक || गो. कर्म काण्ड गाबा ५७ आयुषमं के निषेक प्रतिसमय समानरूप से उदित होते रहते हैं। आयु के अन्तिम निषेक की स्थिति के पूर्ण होने पर ही उसका उदय हुआ करता है और उसी समय जीव की यह पर्याय समाप्त हो जाती है। मा आयु के समाप्त होते ही परमत्र सम्बन्धी आयु का उदय नारम्भ हो जाता है उस आयु के उदय होते ही नवीन पर्याय प्राप्त हो जाती है । संसारी जीव के प्रत्येक समय कोई न कोई एक आयु का उदय अवश्य हुआ करता है । वशकरण 1 कर्म की सामान्यरूप से १० अवस्थायें मानी गई है । गोम्मटसार कर्मकाण्ड में इन अवस्थाओं को करण कहा गया है। उनका स्वरूप निम्नप्रकार है । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३ कम्माणं सम्बंधी बंधी उबकट्टणं हवे बढि । संक्रमणमत्थगदी हाणी ओक्कट्टणंणाम || अण्णादयस्तु सहणमुदीरणा अस्थितं । सत्सकालपत्तं उदओहो दित्ति गिट्टिको || उदकमयेचसुविददु कमेणोक्कं । उवसंतंचणिघत्तिं णिकाचिदं होदिकम् | 1 भावार्थ — कर्मद्रव्य का आत्मदेशों के साथ जानावरणादिरूप से सम्बन्ध होना कत्धकरण हैं बद कमों की स्थिति का अनुमान के जढ़ने को कष्ण कहते हैं । बरू प्रकृति की स्थिति और अनुभाग का कम हो जाना अपकर्षण करण है जिस के उदय का अभी समय नहीं आया ऐसी कर्मप्रकृति का अपकर्षण के बलसे उदगावली में प्राप्त करना उदीरणाकरण है। पुद्गल द्रव्य का कर्म रहन सत्करण कहलाता है। कर्मप्रकृति का फल देने का समय प्राप्त हो जाना उदयकरण हैं। जिससे कर्म उदयावली ( उदोरणा) अवस्था को प्राप्त न हो सके वह उपशान्त करण है । जिसमे कर्म प्रकृति उदयावली और सक्रमण अवस्था की न प्राप्त कर सके उसे निवशिकरण कहते हैं जिसे प्रकृति की उदीरणा, संक्रमण, उत्कर्षण और अपकर्षण ये चारों अवस्थायें न हो सके उसे निकाषितकरण कहते हैं । आयुकमे में संक्रमणकरण नहीं होता अर्थात महकादि की आयु बन्धने के अनन्तर वह आयु बदलकर तियंगाय, मनुष्याय और देवा से परिणामों के बदलते पर भी परिवर्तित नहीं हो सकती ही नरकादि की आयु को स्थिति में शुभाशुभ परिणामों से उत्कर्षणकरण और अपकर्षणकरण तथा अन्य सात भी करण आयुकर्म के होते है । बाकी समस्त कर्मों में दशकरण सकते हैं । गुणस्थानो की अपेक्षा प्रथम मिध्यादृष्टि से लेकर अपूर्वकरण अठवें गुणस्थान तक १० करण होते हैं । अपूर्वकरण गुणस्थान से ऊपर राजस्थान तकः ७ करण ही होते हैं। इसके बाद सयोगकेवली तक संक्रमणकरण के बिना ६ करण ह होते हैं और अपन केबी के सत्व और उदय दो ही करण पाये जाते हैं । इस तरह जीव के परिणामों के निमित्त से कर्मों की व्यवस्था होती है । उपसंहार समस्त द्रव्यों में परिणमनशील योग्यता है । इसी मावरूप योग्यता से ही समय द्रध्यों में निरन्तर उत्पाद-व्यय और भौव्य हुआ करता है । इसी स्वाभाविक परिणमन शीलता या भावरूप योग्यता मे प्रत्येक द्रव्य पर्यायान्तर प्राप्त करता है। जोव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य में भावरूप योग्यता के साथ हो क्रियारूप योग्यता भी पायी जाती है। जीव प्रदेशों का हलन चलनरूप परिथंद होता है, उसे क्रिया कहते हैं और प्रत्येक वस्तु में होनेवाले प्रवाहरूप परिणमन को भाव कहते हैं। इसीसे तत्वावसूत्र आदि ग्रन्थों में जीव और पुद्गल यो द्रव्यों को सक्रिय मानकर अवशेय धर्म, अवमं, काल और आकाश इन चार roat को faos बताया गया है। क्रियावीशक्ति के कारण ही जीव क्रियावान पुद्गल द्रव्यके निमित्त से आनाददि सत्यरूप से स्वयं परिवर्तित होता है अर्थात समस्त सत्वों में जोव का अन्वय पाया जाता है. इसलिये जीवही उनका आधार है । जीव द्रव्य स्वतः सिद्ध है, मनादि अनंत है, अमूर्ति है और ज्ञानद अनन्त धर्मों का अविष्टि आधार होनेसे अविनाशी है । परन्तु पर्यायार्थिक दृष्टि से जोक मुक्त और अमुक्त दो भागों में विभक्त हैं । जीव अनादिसे ज्ञानावरणादि बाठ कर्मों से मुच्छित होकर आत्मस्वरूप को भूले हुए हैं और राम Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वेषादिरूप परिणत होकर बद्ध होते हैं, अत एव संसारी है। जैसे जीवात्मा अनादि है और जब पुद्गल भी अनादि है, मेसे ही जीव और कर्म इन दोनोंका वन्व भी अनादि है, क्योंकि जीव और कर्म का ऐसा ही सम्बन्ध अनादि चला आरहा है। यदि जीव पहले से हो कर्मरहित माना जावे तो रागादि विभावरूप अशुद्धि के अभाव उसके बन्ध का अभाव मानना पडेगा और यदि शुद्ध अवस्थामें भी उसके बन्छ माना जावेगा तो फिर जीवको मोक्ष कैसे प्राप्त हो सकेगा। इस तरह मुक्ति का अमात्र मानना पड़ेगा । इसी प्रकार पुद्गल द्रव्यको भी यदि सबंधा सुद्ध मान लिया जाता है की जैसे विनाकारण के आरमा के सहजरूप से ज्ञान प्राप्त होता है, वैसे ही इसमे अकारण क्रोधादि प्राप्त होने लगेगे। और तब बन्धके कारण मूत्र कोचादिक के निर्निमित्त पाये जाने से यातो बन्ध शाश्वत होगा अथवा कोषादि के अभाव माननेपर म्रन्य और गुणका अभाव मानना पड़ेगा। इसलिये जोव और कर्म का अनादि सम्बन्ध है । यही बात पञ्चाध्यायी में पंडित राजमलजी ने निम्नरूप से प्रकट की हैं । बद्धयथा ससंसारी स्यादलब्धस्वरूपवान् । यूनादितोऽभिज्ञयावृतिकर्मभि:। थानादिः जीवात्मा यथावादिश्वपुद्गल । इयोन्योऽप्यनादिः स्यात् संबंधी जोवकर्मणोः ॥ तद्यायदिनिष्कर्मा जीवः प्रागेव तादृशः । बन्धाभावोऽथ शुद्धेऽपि बन्बपचेनिवृत्तिः कथम् ।। अथ चेद्गलः शुद्धः सतः प्राभनादितः । हैतोविना यथाज्ञानं तथा कोषादिरात्मनः ॥ एवं वन्यस्यनित्यत्वं हेतोः सद्भावतोऽथवा । द्रव्याभावो गुणाभावो क्रोधादीनामदर्शनात् ॥ 1 जिस प्रकार कोई किसी का उपकार करता है और दूसरा उसका प्रत्युपकार करता है। वैसेही अशुद्ध रागादि भावों का कारण कर्म है और रागादिभाव उस कर्म के कारण है आदाय यह है कि पूर्वबद्ध कर्मके उदय से रागाविभाव होते हैं और रागादिभावों के निमित्तसे नवीन कर्मों का बन्ध होता है । इन आर्य हुए नवीन कर्मों के परिपाक होने से फिर रागादिभाव होते है और उन रागादिभावों के निभिससे पुनः अन्य नूतन कमौका बन्ध होता है। इस प्रकार जीव और कर्म का सम्बन्ध सन्तान की अपेक्षा अनादि है और इसीका नाम संसार है। वह संसार जीव के सम्यग्दर्शनादि शुद्ध भावों के बिरा दुमच्य है। पंचाध्यायी में निम्नरूप से यह विषय प्रगट किया गया है। जीवस्याद्युगादिभावानां कर्मकारणम् । कर्मणस्तस्य रागादिभाषा: प्रत्युपकारिवत् ।। पूर्वकर्मोदयाद भावोभाना प्रत्यग्र संचयः । तस्य पाकापुनर्भावो भावाद् बन्धः पुनस्ततः 11 एवं सन्त नतोऽनादिः सम्बन्धो जीवकर्मणोः । संसारःसच दुमच्यो बिना सम्यगादिना || न केवलं प्रदेशानांवन्धः स्याद् साक्षस्तद्वयोरिति 11 वद्यपि जीय स्वभावतः अमूर्त और चैतन्य स्वरूप है तथापि उसमें अनादिकालीन ऐसी योग्यता है जिससे वह जड़ मूर्तिक कर्म से बचता है और कर्म भी स्वभावसे ऐसी योग्यताबाला है जिससे जीव से सम्बद्ध होकर जीव की विकृतिमें निमित्त होता है। जीव के अनूर्त ज्ञान गुण का मदिरादिमूर्ती द्रव्य के सम्बन्ध से मूच्छित होना प्रत्यक्ष से देखा जाता है उसी प्रकार सदात्मक अमूर्त जीवको विकृति में निमिश होता है। अमूर्त जीव का सदात्मक मूर्तक्रमं से बन्ध होने में कोई बाधा प्रतीत नहीं होती है, यद्यपि जीव का इस बन्धरूप संसार से उन्मुक्त होना कठिन प्रतीत होता है, परन्तु जीव का कर्मबन्ध Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से मुक्त होना असंभव नही है । जइ जीव स्वानुभव के बलसे सम्यग्दर्शनादिरूप से परिणमता है तब संसार को कारणमूत जीय की विभाव परिणति का पूर्ण अभाव हो जाता है और जोव मुक्त होकर सिध्द परमात्मा बन जाता है। इस यन्त्र में कर्मों की कुल १४८ उत्तर प्रकृतियों में गन्ध और उदय के समय शरीर से अचिनाभाव सम्बन्ध रखनेवाले पांव बन्धन और पांच संघात अलग नहीं दिखाये जाले शरीर बन्धन में हो उनका अन्तर्भाव कर लिया जाता है। इसी तरह पुदगल के २० गुणों का अभेद विवक्षासे वर्ष, गन्ध, रस और स्पर्श में हो बस्ताव होना है। इस तरह कुल २६ प्रकृतियों के बटाने पर १२२ प्रकृतियां ही उदय योग्य मानी गई है। और बन्धवम्या में सम्यक्त्व और सम्प्रडिमथ्याव मिथ्यात्व से प्रमक नहीं है, अतः बन्ध योग्य कुल १२० प्रकृति ही मानी गई है। प्रथम मुणस्थान में तीर्थकर ,आहारक शरीर आहारक अंगोपांग इन तीनों प्रकति ओंका बन्ध नहीं होता इसलिमें सिर्फ १७ प्रतियां ही इस गणस्थान में बन्धने योग्य मानी गई है। * चतुर्थ गुणस्थान और पंचमादि समी गुणस्थानी मेंजो १४८ आदि प्रकृतियों को सत्ता दिखाई गई है वह उपशम सभ्यबसपी:ो कर लिया गया। सागिय का विवक्षा में विध्यावादि सात प्रकृतियों का क्षय हो जाने से सात प्रकृतियां कम हो जाती हूँ । -5 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मबन्धादियन्त्र इस यन्त्र द्वारा कर्मप्रकृतियों के बन्य-बन्धथुच्छिति आदिका गुणस्थान क्रमसे उल्लेख किया गया है। सत्ता बन्ध म. न. गुणस्थान का नाम व्युछित्ति । उदय । उदय उच्छिति संख्या सख्या सत्तासंध्या म्युपिछत्ति संख्या संख्या . ...-- - -- -- - -- मिथ्यात्व ११७ १४८ सातादन १११ १४५ ३ सयरिमध्यात्व | ७४ " | " | " . . | " | ४ असंमतसम्पदृष्टि ७७ देशविरत १४७ । प्रमत्त संयत | अभ्रमत्तसंयत १४६ अपूर्वकरण | ५८ १४२ - - १४२ अनिवृत्तिकरण २२ --- - सूक्ष्मसापराय | १७ १४२ उपशांसमोह १४२ क्षीणकषाय १३ | सयोग केवली ! १ भयोगकेवली Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ' ( ५५ ) लेखक - डॉ. हेमचंदजी जैन कारंजा जी. अकोला महाराष्ट्र. इस ३४ स्थान दर्शन ग्रंथ के प्रकाशक ब्रम्हचारी उल्कतराय जैन रोहतक (हरीयाना ) की जीवनी: १ ) तीन अगस्त सन १८९० को सोनीपत नगर जी. रोहतक (हरीयाना ) मे लालाबुधुमलजी जैन अग्रवाल के घर जन्म हुवा | ६ वर्षकी आयुमै आपने अपने फुफाजी लाला उदमीरामजी जंन रोहतक के घर दत्तकपुत्र बने, बचपनसेही धर्मसंस्कार हृदयमे उत्पन्नहोते रहे है । २) रोहतक गव्हर्मेन्ट हायस्कुलमे मैट्रीक तक अंग्रेजी हिन्दी, उर्दु, पारसी संस्कृत आदिका अध्ययन कीया | व्यापारी भाषा मुडी हीन्दी का भी ज्ञान प्राप्त कोया । बम्बई मे व्यापारी क्षेत्र तथा महाराष्ट्र, गुजरातमे धार्मीक संबंध 'कारण गुजराती, महाराष्ट्रीयका भी 1 ज्ञान प्राप्त कोया ३) १६ वर्ष की आयुमे सोनीपत निवासी एक जैन अग्रवाल कन्यासे विवाह हुवा जो ६ मास के बाद मरण को प्राप्त हो गयी । ४ ) विवाहके कुछ समय बाद दत्तक पिताजीकाभी स्वर्गवास हो गया उनका व्यापार संभालने के लीए विद्या अध्ययन छोडना पडा । ५) कुछ समय बाद दुसरा विवाह रेवाडी जी. गुडगांवा निवासी लाला प्रभुदयालजी दीगंबर अग्रवाल जैन की कन्या से हुता योगसे वह भी ७ नरा तक वायु रोगसे पीडीत रही । उसके चार भाई हैं १) वाबु करमचंदजी जैन अॅडव्होकेट सुपरीमकोर्ट दील्ली । २) बाबु मेहेरनदजी जैन अॅड : होकेट गुडगांवा हरीयाना) ३) वाबु एस. सी. जैन भारत केन्द्र सरकार के इन्शुअरंस खाते के हेड रहे है । ४ ) बाबु जे सी. जैन दीर्घकाल तक टाइम्स ऑफ इन्डीया के जनरल मेनेजर रहे है। ६) तीसरा विवाह २४ वर्ष की आयुमे गृहाणा जी रोहतक (हरीयाना) के दीगंबर जैन कन्या विवाह हुवा । जिनके भाई लाला चत्रसेन और लाला हरनामसींग है । इस तीसरी देवी का नाम सुख देविजी हैं । इन्होने ४ पुत्र दो कन्याओं को जन्म दिया. एक कन्या सुपुत्री पदमा देवी स्वर्गवास होगई शेष पांच बहन भाई इस प्रकार हैं । १ पी. सी. जैन एरोड्राम ऑफीसर कलकत्ता २ श्रीपाल जैन व्यापारी बम्बई ३) डॉ. एस एस. जैन एफ आर. सी. एस. लन्डन एडिन वर्ग ४) पि. के. जैन टाइम्स ऑफ इंडिया बंबई को पुनः ब्रांचके ऑफिसर है । ५) श्रीमती जयमाला देवी जिसने बी. ए. डिगरी प्राप्त किया है। बाबु इन्द्रकुमारजी एम. ए. मेरठ की धर्मपत्नि बनी है । ७) प्रकाशक ब्रम्हचारी उलफतराय ३० वर्ष की आयुमे व्यापार के लिये बंबई आगये वहां गेहूं, अलसी, रुई, चांदी सोनेकी दलाली का काम कया। बैंको को हाजर चांदी सोना गोली की भी सप्लाय की, ८) व्यापार के साथ साथ दिगंबर जैन भोलेश्वर मंदीर मे प्रातःकाल, गुलालवाडी मंदीरजी मे रात्रीको तीस वर्षतक निजपर कल्याण के रूपमे आनरंरी तौर पर शास्त्र प्रवचन कीया । जिस समय संघपती सेठ पुनमचंद घासीलालजी ने सिखर समेव तीर्थ यात्रा संघ निकाला साथ मे बारित्र चक्रवर्ती साम्राज्य नायक तो मुर्ती सिद्धांत पारंगत १०८ श्री बाचार्य शांतीसागरजी मुनीमहाराजभी संघ के साथ पधारे थे उस समय ब्रम्हचारी उलफतरायजीने ६ मास तक पैदल यात्रा करके संघ सेवासे पुण्य लाभ लिया था । ९) ५९ वर्ष के आयुमे १०८ आचार्य श्री वीरसागरजी मुनी महाराजसे सवाई माधवपुरमे दुसरी प्रतिमा धारणकर घरका कामकाज छोडदिया घर मेही उदासीन रुपसे रहने लगे । १०) ६३ वर्ष के आयुमे महाराष्ट्र प्रांतके सातारा जिल्हे के लोनद मुकामपर चारित्र्यचक्रवर्ती साम्राज्यनायक १०८ आचार्य श्री शांतीसागरजी महाराजके चरण कमलोंमे ७ वी प्रतिमा धारण करके घर छोड़ दिया । देश विदेश भ्रमण करने लगे । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ॥ ११) ६४ वर्ष की आयु मे महाराष्ट्र प्रांतके नागपुर नगर से २८ मंल पर स्थित रामटेक अतिशय क्षेत्रस्थित १००८ श्री महावीर दिगंबर जैन गुरु कुलका अधिष्ठाता पनेका कार्य एक वर्ष तक संभाला । १२) ७० वर्ष के आयुमे महाराष्ट्र प्रांत अकोला जिल्हेके कारंजा नगरमे ज्ञानसुर्य आभिक्ष्ण ज्ञानोपयोगी १०८ श्री आदिसागरजी महाराज इसग्रंयके संग्रहकर्ता जिनकी आज्ञा से इस ग्रंथ निर्माण में सहायता संग्रह कर्ता के रुपमे सहयोग दिया । १३) ७८ वर्ष के आधुमे उपरोक्त गुरु महाराजजीकी आज्ञा पाकर यह-३४ स्थान दर्शन ग्रंथका प्रकाशन कर पूज्य त्यागी महाराज, जैन मंदिरो, जनताके कर कमलोमै उपरोक्त ग्रंथ भेट कर रहा । धनउपार्जन का कोई लक्षनहीं हैं । निजपर कल्यानही एक हेतु हैं । कर्म सिद्धांत बहोत गंभीर विषय है । संग्रह कर्ता गुरुदेव दक्षिण में थे, प्रकाशक उत्तर प्रदेशके मेरठ नगर मे थे गुरुदेवकी देखरेख न होने के कारण बहोत भूल रह गई है जिसका शुद्धी पत्रक तयार करके इस ग्रंथ के अंतमे जोड़ दिया गया है । आशा है इस भूल और अज्ञान के लिये जनता-क्षमा प्रदान करेगी। जो भुल अभी रह गयी हो उसको सुधार करके हमको या प्रकाशक को सुचित करनेकी कृपा प्रदान करेगी। लेखक ब्रम्हचारी उलफतराय दिगंबर जैन इस ३४ स्थान दर्शन ग्रंथके सहायक सग्रह कर्ता व प्रकाशक जन्म भुमि सोनीपत दत्तक भुमि रोहतक (हरीयाना) ॥ लेख माला ।। (क) मानवताकानाशक एक भाव और मानवताके रक्षक तीन भाव इस प्रकार है। (ख) दुर्योधनको पहिला रौद्र रस चढा - सेनाबल - कपिबल - जनबल को शक्ती शाली जानकर पांच पांडवको पुर्णतया नष्ट करके चक्रवर्ती राजा बननेका भाव बना जैसा वर्तमान समय में कुछ व्यक्ति संसारको नष्ट करके नई समाज वादी दुनिया बसानी चाहते है। भरें दर्बारमे जहां धतराष्ट्र भीष्म पिता मय दोनाचार्य आदि तथा सब प्रजा बैठी थी-द्रोपदी का चीर हरण करके पांच पांडवका मनोबल गिराकर उनको नष्ट करके पूर्ण राजपर अधिकार करना चाहता था। यह भावना पहिला रौद्र रसबल था । उसको इस रौद्र रसमे हि पुणं शक्ती दिखाई दे रही थी। परंतु द्रोपदीको इस रससे अनंत गुनाबल भगवत भक्ति में दिखाई दे रहा था जिस समय चीर हरण हो रहा था द्रोपदी की भक्ति भगवानके चरणोमे लगी हुयी थी उस भक्ति रसका यह प्रभाव हुआ कि दुशासन चीर खीचते खीचते गिर पड़ा चीर हरण नहीं हो सका आकाश से देव लोग पुष्पों की वर्षा करने लगे। जब इस अन्याय को देखकर भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव जोश मे आकर आपेसे बाहर होकर दुर्योधन को नष्ट करने के लिये उत्तेजित होते थे उस समय युधीष्टीर महाराजकी दृष्टि तिसरे शांति रस पर लगी हुयी थी जो ये समझ रहे थे शांती रस मे अपूर्व बल होता है। एक पापी अपनेहि पापसे नष्ट हो जाता हैं । और ऐसाही हुआ अंतमें दुर्योधन आदि सौ भाईयोका पुर्णतया नाश हो गया ड) जब कालांतर में पांच पांडव नग्न दिगंबर मुनी बनके शत्रुजय पर्वतपर ध्याना रुद थे उस समय दुर्योधनके भानजोनें अपने सौ मामा ओंका बदला लेनेके लिये बाईस लोहेके आभुषणोंको आग पर तपाकर पांचों पांडव के शरीरमे पहना दिये जब शरीर जलने लगा तव पांच पांडवने शरीर का मोह छोड कर चौथे आत्मरसमे तल्लीन हो गये उसी समय ३ पांडव कर्म काटकर मोक्ष चले गये २ पांडव सर्वार्थ सिद्धी चले गये। अगले भवमे वह भी मोक्ष चले जायेगे। ज इस नीति पर भारत सरकार चल रही है। चारो औरसे सर्व विषयपर अपना झेंडा फैराने के लिये भारत पर तरह तरहके उपद्रव चला रहें हैं । परंतू भारत सरकार युधिष्टर महाराजकी तरह बड़े धैर्य और शांती से अपने देशकी रक्षा तो कर रहे है परंतु उत्तेजित होकर कोसी दुसरे देशपर आक्रमन करनेका भाव स्वप्नमें भी नही सोचते लेख नंबर २॥ संसार के नव रसः- संसारवर्धक ४ रस है । संसार विरोधक ४ रस है । और मोक्ष प्राप्तिका एक रस है। कुल इस तरह ९ रस हुये। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७ ) १) श्रृंगार रस :- पुण्यभाव से मिले धन, पुत्र, परिवार, वस्त्र सवारी, मकान, बागबगीचे, राज्य वैभव लक्ष्मी प्राप्त करके निज कल्याण मार्ग, भूलजाना इससे संसार भ्रमण चलताही रहता है । R) रौद्र रस:- मानवताको भूलकर दानवतासे सर्व संसारपर छाजानानेकर भाव चोर डाकू अन्यायी राजा बालक बालकाओं स्त्री पुरुष आदिको हरण कर्ताओं पर बनता है। तो ऐसे व्यक्ति योंको नरक त्रिच गति मे भारी दुख भोगना पडता है। इस संसार मे यही रस जोरसे छाया हुआ है । ३) भय रस:- बलवान अन्याय करता हुआ भयभीत रहता है। कमजोर को बलवान सहायक न मिल जावे और बलहीन भय भीत होता है । जन, धन, जीवन, घमं प्रतिष्ठा से कैसे बचे ? (४) विभित्स रस:- जब डाकू छातीपर पिस्तोल रखकर चलता है। ताली मांगता है, घन पूछता है उस समय विचार धारायें नष्ट हो जाती है। तो समझ नही रहती है क्या करू ? ५) सूचना: 1:- उपर के चारों रस उत्तरोत्तर संसार दुख तथा भ्रमण बढाते है नरक निगोद पहुँचाते हैं । करुणा रस: - दुखी रोगो तथा जिस पर बलवान अन्याय कर रहा हो उसकी रक्षा करने का भाव हो जाना । ६) बोर रस:- बलवान की शक्ती से न घबराकर अपना तन मन धन सर्व कमजोर की रक्षा के लिये जोड देना और कम जोर को बचा लेना । ७) अदभुत रस:- कमजोर को जब अपनी घातक अवस्था से अचानक बलवान की सहायता से रक्षा हो जाती है । तो उस समय कमजोर को धर्म और भगवान पर पुर्ण श्रद्धा आ जाती है। तो भगवान की शक्ति अपरंपार है सच्चे रक्षक भगवान हो है । ८) शांति रस:- अचानक धन हानि इष्ट वियोग रोग जल प्रलय भूकंप स्त्रपर शत्रु आक्रमण चोर ढाकू आक्रमण हो उस समय घं मही लोडना शांति से रक्षा का प्रयत्न करना या आत्म ध्यान मे लीन हो जाना यह शांति ग्स कहलाता है। 1 सूचना:- ये चार रस धीरे धीरे पूर्व बंध कर्मों का रम क्षीण करते करते आत्म रस मे झुका लेते है । आत्म रस :- इस मे आत्मा को दृष्ट निज आत्मरस में तीन हो जाती है । सर्व कर्म नष्ट हो जाते है | आत्मा मोक्ष मे जाकर विराजमान हो जाती है । ९) || लेख नं ३ ॥ आत्मा की तीन अवस्थायों (१) बहिरात्मा (२) अंतरात्मा ( ३ ) परमात्मा १) बहिरात्मा:- मिथ्यात्व अविरत प्रमाद कषाय और योग इनपांचो से अकड़ी हुई आत्मा अनंत संसार में भ्रमण कर रही है। यह आत्माएँ बहिरात्मा कहलाती है । वस्तु का स्वरुप उल्टा दिखाई देता है। अपनी इच्छाओ पर नियंत्रण नहीं होता है। सब प्रकार के जीवोकी विराधना होतो रहती है । इच्छाएँ प्रबल होने से पाप बनता रहता है। कषाये मंद होने से पुण्य बंध होता रहता है | परन्तु आत्म स्वरुप ज्ञान नहीं हो पाता । इस अवस्था का नाम बहिरात्मा हैं । २) अंतरात्मा:- मिथ्यात्व अन्याय अभक्ष्य घटने से सम्यकदृष्टि बनकर ११ प्रतिमा रूप देशदूत २८ मूल गुण रूप सकलसंयम द्वारा कर्म बंधसंसार भ्रमण ढीला होते होते १२ वे गुण स्थान के परिणाम हो जाते है । यहां संसार की वस्तुओंका राग पुर्ण नष्ट हो जाता है । ये अवस्थाएँ अंतरात्मा कहलाती है । ३) परमात्माः ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनय, अंतराय का पुर्ण अभाव हो जाने से आत्मा का ज्ञान दर्शन चारित्र वीर्य गुण पुर्ण रूप से प्रगट हो जाता हैं। परन्तु जहां तक आयु अघातिया नाम गोत्र वेदनीय कर्म बाकी है। अरहंत अवस्था मे संसार में ही रहते है । सफल परमात्मा कहलाते हैं। ऊपर कहे ४ अघातिया कर्म भी नष्ट हो जाते हैं तो वे मोक्ष मे चले जाते है । वहाँ उनका नाम निकल परमात्मा होता है । . Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) ॥ लेख नं. ४ ॥ जिनवाणी के ४ अनुयोग ( भाग ) सभी अनुयोग प्राणियोंका कल्याण करता है । १) प्रथमानुयोग :- ये प्रकाश डालता है। कौन प्राणी निगोद से निकलकर अरहंत बनकर मोक्ष चला गया इस अनुयोग में आदि पुराण, उत्तरपुराण, पदमपुराण, हरिवंश पुराण आदि अनेक ग्रंथ हैं । २) चरणानुयोगः- ये प्रकाश डालता है। इस मार्गपर चलने से दानवता नष्ट होती चली जाती है । मान वता पथपर चलकर आत्मा परमात्मा बन जाती है । ५ मिध्यात १२ अवृत १५ योग २५ कषाय सब मिलकर, सत्तावन, आश्रव कहलाते है। वो ही ससार बढाते है और इनके निराकरण करनेके लिये तीन गुप्ति, पांच समिती, दस धर्म, १२ अनुप्रेक्षा २२ परिषहजय ५ चरित्र के सब मिलकर ५७ सम्बर कहलाते हैं । इनसे ही प्राणी मानवता पथपर चलकर कर्म को नष्ट करके भगवान बनजातः है । इसके आधीन सागार, अनागार, श्रावकाचार, मुलाचार आदि अनेक ग्रंथ है । ३) करणानुयोग:- इस प्रकार से जाना जाता है इनके भाव भूल से आत्मा चार गति, पंचेंद्री, ६ काय में संसार में भ्रमण कर रहा है। उस कर्म सुधाको बतानेवाले षट खंडागम, धवल, महाधवल कर्म कान्ड, जीवबंध गोमटसार आदि कर्म बतानेवाले अनेक ग्रंथ उपलब्ध है । ४) द्रव्यानुयोग :- विज्ञान है, जिसको आज की भाषामें सायन्स भी कहते है जो ये प्रकाश डालता है, वास्तविक आत्मा का क्या स्वरुप है। उसपर लक्ष्य हो जानेपर सब संसार, वस्तुओं से सहजही राग भाव हटजाने से निज आत्मरस प्रगट हो जाता है । सुचना:- कोई भी अनुयोग पढो अगर दृष्टि अपने आत्म शरीरस्वरुप पर लगी रहेंगी तो सर्वही चारों अनुयोग कल्याण कारी हो जायेंगे । अगर दृष्टि आत्मरस से हटकर संसार रस पर लगी रहेगी, तो किसी भी अनुयोग के पढनेसे आत्म कल्याण नही होगा, । ५) निश्चय और व्यवहार धर्मका अनिवार्य सहयोग:१) निश्चय धर्म - अभेद, एक, विकी अवस्थायें है, इसका छद्मस्थ जीवो के अधिक से अधिक अंतरमुहूर्त ९ समय कम ४८ मिनिट भी है। इतने समय भी अगर उपयोग एकाग्र हो जाय तो केवल ज्ञान केवल दर्शन अनंत सुख अनंत वीर्य आत्मा के निज गुण प्रगट हो जाते है । अनंतानंत काल तक स्थिर रहते है । परन्तु छद्मस्थ जीवोका उपयोग इतने समय एकाग्र नही रहकर चंचल अस्थिर डामाडोल होता रहता है, तब व्यवहार धर्म ही आत्माको अशुभ उपयोग मिथ्या देव गुरु शास्त्र श्रद्धा, हिन्सा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह की निरगल तृष्णा रूप भावनाओ में जाने से रोकता है। सत्य देव गुरु, शास्त्र, श्रद्धा-पंच पांपों का श्रेणी बद्ध थोडा थोडा त्याग या महावृत रुप पुर्ण २८ मूल गुण रुप महावृत ५ इंद्री विजय ५ समिती ५ षटावश्यक ६ नग्न रहना १ भुमिशयन १ स्नान त्याग १ खड़ा रहकर भोजन लेना २४ घन्टे में एक ही बार भोजन लेना, १ दंत मंजन नही करना १, केश लुंच ( हाथ से केश उखाड़ना ) कुल २८ मूल गुण व्यवहार चरित्र ही बताये गये हैं । प्रकाशक के बिना किसी संकेत के अपनी ज्ञान दान भावनाओं से इस ग्रंथ प्रकाशन मे द्रव्यदेने वालो की नामावली इस प्रकार है : ५०० रु. सेठ मोतीलालजी गुलाब सावजी, नागपुर. २०० रु. दख्खन वीन मोटर सर्वीस ट्रान्सपोर्ट कार्पोरेशन प्रोप्राटर मिर्जा ब्रदर्स चिकोडी जिल्हा बेलगाव (अधिप्रांत) २०१६ सेठ बनवारीलालजी गिरधारीलालजी जैन जेजानी, नागपुर १०१ रु. श्रीमती कस्तुरीदेवी धर्म पत्नी श्री मानकचंदजी जैन कासलीवाल नागपुर सुमतोबाई किल्लेदार नागपूर १०१ रु. १०१ रु. १०१ रु. aircarई धर्मपत्नी श्री नेमीचंदजी, पाटनी नागपूर चमेलीदेवी वर्म पत्नी श्री नानकचंदजी, जैन नागपूर ܕܕ " Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०१ रु, श्रीमती तुलसीबाई धर्मपत्नी श्री कस्तुरचंदजी घनसोरवाले नागपुर १०१ रु. श्रीयुत नेमगोडा देवगोंडा जैन, बेडकीहॉल ता. चिकोडी जि. बेलगांव (आंध्रप्रदेश) १०१ रु. श्रीयुत सिंगई मूलचंदजी अध्यक्ष परवार मंदीर ट्रस्ट, नागपूर १११ रु सेठ कल्लुमलजी पदमचंदजी मालिक फर्म सेठ नंदलालजी प्रेमचंदजी परवार नागपुर, १७१९रु. ।। प्रकाशक का आभार प्रदर्शन ॥ १) मैं ब्रम्हचारी उल्फतराय जैन रोहतक (हरियाणा) निवासी श्री १००८ महावीर भगवान के चरण कमलों को नमस्कार करके उनसे बार-बार प्रार्थना करता हूँ। जिस तरह इस ग्रंथ के प्रकाशन और निर्माण में सहयोग देकर पुण्य उपार्जन करने का मुझे शुभ अवसर प्राप्त हुआ हैं, इसी तरह मेरी अंतिम समाधि भी आत्म रस पूर्वक सम्पन्न हो। मै अग्हवारी नत्यूलालजी जैन बारा सिवनी (मध्यप्रदेश) निवासी का आभार प्रदर्शन करता है जिनके निमित्त और सहयोग से मझें कारंजा जिल्हा अकोला (महाराष्ट्र प्रांत में परम तपस्वी आभीक्षण ज्ञानोपयोगी ज्ञान सूर्य १०८ श्री आदिसागरजी महाराज जैन मुनि (जिन की जन्म भूमि शेडवाल जिला देलगांव मंसूर प्रांत है) के दर्शन और चरण स्पर्श करनेका पुण्य अवसर प्राप्त हुआ। ३) मै उपरोक्त मुनिमहाराज का भी परम कृतज्ञ हूं जिन्होंने इस ग्रंथ का निर्माण करते हए मुझे भी कुछ सहयोग देने का अवसर प्रदान किया और मुझे प्रकाशन करने की स्वीकारता प्रदान की। ४) समाज सेवी ओर भावुक वक्ता और लेखक आदरणीय डाक्टर हेमचन्दजी कारंजा जिल अकोला (महाराष्ट्र) निवासी का भी आभार प्रदर्शन करता हूं जिन्होंने मुझे समय समय पर इस ग्रंथ के प्रकाशन में सहयोग दिया और अंत में इस पथ को प्रस्तावना लिखने की भी कृपा की। | जैन समाज काभी आभार प्रदर्शन करता है। जो समय समय पर मझे प्रोत्साहन देते रहे । तथा आदरणिय श्री महावीर ब्रम्हचर्य आश्रम । कारंजा के प्राण बाल ब्रम्हचारी परमदानी भीयुत पं. माणिकचंदजी दाटियाजी का भी आभार प्रदर्शन करता हूं। जिन्होने इस ग्रंथ की प्रस्तावना लिखने की कृपा की है। ग्रहस्थाश्रम के मेरे सुपुत्र प्रेमचंद (पी, सी.) जैन, एम. ए. विमान ऑफिसर कलकत्ता, श्रीपाल जैन व्यापारी बंबई, डाक्टर शांतिस्वरुप (एस. एस.) जैन बंबई, पिताम्बर कुमार (पी. के.)जैन (टाइम्स ऑफ इंन्डीया की पूना ब्रांच के आफीसर,) सुपुत्री जयमाला देवी जो मेरठ नगर के आदरणीय श्री. इंद्रकुमारजी जैन एम. ए. की अर्धागनि बनी, तथा श्री इंद्रकुमारजी जैन एम, ए. तथा उनके पूज्य माज सेवी पिता सेठ सुकमालचंदजी का भी आभार प्रदर्शन करता है जिन्होने इस ग्रंथ के प्रकाशन मे मुझे असीम प्रोत्साहन दिया है और बहुत भारी परिश्रम किया है। चिरंजीव हरनामसिंह जैन गोहाना ने (जिला रोहतक हरियाना प्रांत) निवासी जो (उपरोक्त मेरे सुपुत्र प्रेमचन्दजी के आदरणीय मामाजी हैं) अपना सब काम छोडकर ६ महीने मेरे साथ रहकर अपूर्व सेवा की और प्रकाशन में, सहयोग दिया। परबार दिगंबर जैन मंदिर ट्रस्ट के प्रधान श्रीयुत सिंघई मूलचन्दजी जैन नागपुर तथा आदरणीय पं. ताराचंदजी शास्त्री, न्यायतीर्थ मुख्याध्यापक दिन महावीर पाठशाला नागपुर और श्रीयुत मानिकचन्दजी मोतीलालजी जैन कासलीवाल नागपुर का भी आभार प्रदर्शन करता हूँ जो मुझे हर समय इस काम में प्रोत्साहन देते रहे और आवश्यकता पड़ने पर भारी प्रकाशन कार्य में परिश्रम भी करते रहे। में उन आदरणीय सज्जनों का भी परम कृतज्ञ हैं जिन्होंने मेरे किसी संकेत के बिना अपनी ज्ञान भक्ति के कारण इस ग्रंथ के प्रकाशन में कुछ द्रव्य भेंट किया जिनके नाम की सूची इस ग्रंथ में अलग छापी गई है। १०) मैं आदरणीय पं. ताराचंदजी शास्त्री न्यायतीर्थ का पुनः आभार प्रदर्शन करता हूं। जिन्होने इस ग्रंथके ७९३ से ८४० पन्नों तक तथा प्रारंभिक पन्नोंका भ्रूफ संशोधन बहुत परिश्रम करके ग्रंथ की छपाई की त्रुटियों को दूर करने की बड़ी कृपा की तथा मेरे बहुत आग्रह करनेपर कम सिद्धान्तपर एक अपूर्व लेख लिखने को भी कृपा दृष्टि की तथा जो पुस्तकें उनके मार्फत बिक्री होंगी वह मुल्य Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०.३ पाठशालामें जमा कराने का भार उनपर रखा वह उन्होंने सहर्ष स्वीकार करने की कृपा की। ११) सि. मूलचंदजी ने भी मध्यप्रान्त, राजस्थान तथा विदर्भ क्षेत्रके मंदिरों तथा १०८ पूज्य श्री मुनिराजों के करकमलोमेंभी अर्पण करनेका भार सहन करने का आश्वासन देकर मुझे कृतार्थ किया । इस भारी प्रकाशन कार्य के संपादन करनेमे भी जब मेरा उत्साह गिरते देखा तब भी मेरे उत्साह को नही गिरने दिया। निरंतर मुझे प्रोत्साहित करते रहे । इन दोनों सज्जनोंकी प्रेरणासेहो यह भारी काम सहज रुप सम्पन्न हो सका है। में इन दोनों महाशयोंकाभी पुनः आभारप्रदर्शन करता हूँ। समाज सेवक -विषय-सूची ब्रम्हचारी उल्फतराम अन प्रकाशक, रोहतक (हरियाणा) विषय पुस्तक का पन्ना नं. विषय पुस्तक का पन्ना नं. मंगलाचरण १) औदयिक भाव २१ २३) २३ ३४ स्थान नाम के उत्तर भेद कोष्टक संख्या २) पारणामिक भाव ३ ३४ स्थान उत्तर भेद को नामावली अवगाहना सामान्यजीव नामावली गण स्थान नाम व स्वरुप १४ जीवसमास १२) मिथ्यात्व गुण स्थान ६ पर्याप्ति १३) सासादन १० प्राण १३) मिश्र अव्रत ४ संज्ञा १४ मार्गणा देश वृत ॥ " ४ गति मार्गणा प्रमत्त " ॥ मंत्रमत्त ५ इंद्री मार्गणा ॥ अपूर्व करण । । ६ काय , अनिवृति करण गुण स्थान १५ योग , सुक्ष्म सापराय ॥ ॥ ७० ३ वेद । उपशांत मोह । ३५ कषाय मागंणा १६) । क्षीण मोह , " ८ज्ञान सयोग केवली , " ७ संयम अयोगकेवलो " ४ दर्शन , अतीत (सिद्ध भगवान) ६ लेश्या मार्गणा नरक गति २ भव्य त्रियंच ६ सम्यक्त्व । २ संजी मनुष्य " ॥ ॥ २ आहारक , गतिरहित (सिद्धगति) १७२) १६ ध्यान एक इंद्रीय १७४) ५७ आश्रव २१) दो ॥ १८० ५३ भाव २२) तीन, १८५ २ औपशमिक भाव चार, १९० ९क्षायक भाव २२) असंज्ञी पंचेंद्री १९५ १८क्षयोपसमिक भाव २२) संज्ञी पंचेंद्री २००) ७८) ८१ १७) ११३) देव १२ उपयोग २२) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इंद्रिय रहित ( सिद्ध भगवान ) पृथ्वी कायक जल अग्नि चाय वनस्पति अनुभय औदार 11 त्रस 17 अकायक ( सिद्ध जीव ) उभय मनोयोग " सत्य असत्य 27 सत्य बचन योग असत्य उभय बचन योग " Rafae मिश्र विक्रियक वेक्रिक मिश्र आहारक आहारक मिश्र कार्माण अयोग 12 पुरुष वेद स्त्री नपुंसक अपगत 17 13 असंयम संगमा संयम 17 13 "P काययोग " काययोग 17 "P " 33 अतानुबंधी अप्रत्याख्यानी प्रत्याख्यानी $7 संज्वलन क्रोध मान माया कषाय संज्वलन लोभ हास्यादिक नी कषाय अकषाय 27 कषाय 18 कुमति कुश्रुति ज्ञान कुअवधिज्ञान ( विभंग ज्ञान ) मति श्रुति ज्ञान " अवधि मनः पर्ययं " केवल ज्ञान २०५) २११) २२१) २२४ ) २२८) २३१) २३४ ) २४६ ) २४८) २५६ ) २६२ } २६६ ) २७० ) २७५. २८२ ) २८९) २९४) २९९) २९९ ) ३०३) ३१२) ३१४ ) ३२७) ३३४ ) ३४५) ३५२} ३६२) ३७४) ३८५) ३९८) ४०७ ) ४१४ ) ४१८) ४२८) ४३४ ) ४४६) ४५२) ४५६) ४५९) ४६९) ( ३१ ) सामायिक छेदो पस्थापना संयम परिहारविशुद्धि सुक्ष्म सापराय यथारव्यात संयम चक्षु प्रच अवधि केवल पद्म शक्ल अलेश्या " संयम संयम रहित ( सिद्ध गति) ४९८ ) दर्शन 12 कृष्ण-नील लेश्या कापोत पोत मिथ्यात्व सासादन मिश्र " " आहारक अनाहारक 32 " ار " भव्य अभव्य मध्य अभव्य रहित (सिद्धगति ) प्रथमोपशम सम्यकत्व द्वितियोपशम क्षायोपशम क्षायिक संज्ञो असंज्ञी नासंज्ञी नामसंज्ञी ३४ स्थान दोहे २४ दण्डक " 13 , 23 " ४७४) ४७९) ४८३ ) ४८६ ) मुलोत्तरक प्रकृतियाँ अवस्था संख्या मुलोत्तरकर्म प्रकृतियां विशेष विवरण मुलोत्तरमं प्रकृतियां स्थित बंध उदय युच्छति से पहले बंध व्युच्छति उदय व्युच्छति के बाद बंध व्युच्छति उदय बंध विच्छति एक साथ ४९२) ५०८) ५१४) ५२५) ५२८ ) ५३९ ) ५५० ) ५६०) ५६३) ५७३ ) ५७५) ५८८) ५९७) ५९९) ६०२) ६११) ६१६) ६२४) ६३० ) ६४१ ) ६७२ ) ६८४) १०८ आचार्य शांतिसागरजी महाराज ६९४ ) का समाधि समय ६५३) ६६३). ६६८) ६९७ ७०२ ) ७०६) ७०९) ७१४) ७१६) ७१७ ) ७१७ ) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) ७१८) ७२३) गुण स्थान पर अपने ही उदय में बंध प्रकृतियाँ दुसरी प्रकृतियो के उदय मे बंध प्रकृतियां अपने तथा पर के उदय मे बंध प्रकृतियां ७१८) निरन्तर बंध प्रकृतियां ७१८) शांत्तर बंध " ७१८) शांत्तर निरन्तर बंघ , ७१८) उद्वेलन संक्रमण प्रकृतियां विध्यात संक्रमण प्रकृतियां अधःप्रवृत्त संक्रमण ७१९) गुण संक्रमण ७५ ७२०) सर्व संक्रमण ५२ ७२०) प्रियंच एकादश ७२०) कर्म कांड की शक्तियोंकी कुछ ज्ञातव्य वाते ७२१) ६ सहननपर जागति ७२१) ६ सहनन पर सात नरक जागति ५ ज्ञानावरणी बंध स्वरुप ७२२) ९ दर्शनावरणी , २ वेदनीय ७२३) २८ मोहनोयकर्म ७२३) ४ आय कर्म ९३ नामकर्म ७२५) २ गोत्रकर्म ५ अंतरायकम ७२९) ४ कषाय काय बासना कषाय वासना काल ४ प्रकार मरण भेद ७३० तीर्थकर प्रकृति बंध नियम आहारक शरीर बंध गुण स्थान ७३१) व्युच्छति व्याख्या १४ गुण स्थान बंध व्यच्छति ७३२) १४ गुण स्थान अबंध बंध व्यच्छति ७३४) १४ गुण स्थान अबंध बंध प्रकृतियों के नाम सादी अनादि ध्रुव अध्रुव बंध संख्या अबाधा काल स्वरुप एक जीव के एक समय में प्रकृति बंध संख्या ७३८) आयुकर्म बंध स्थान ७३० नाम कर्म बंध स्थान ७४०) आहारक और तिर्थकार एक स्थान में एक जीव के सत्ता नहीं ७४२) गुण स्थान अनुदय उदय व्यु छति प्रकृतियां ७४३) उदीरणा व्याख्या ७४३) गण स्थान अनुदय उदय व्यच्छति ७४४) उदय उदीरणा विशेषताएं गुण स्थान अनुउदीरणा व्युच्छति प्रकृतियां कर्मोदय कर्म स्वामीपना ७४७) सत्व कर्म प्रकृतिया गुण स्थान असत्व सत्व व्यच्छति ७४९) उपशम श्रेणी स्वरुप ७५१) ५ प्रकार संक्रमण ७५१) ५ प्रकार संक्रमण प्रकृति कोष्टक ७५३) ५ संक्रमण प्रकृतियां नाम __ स्थिति अनुभाग प्रदेश बंध संक्रमण ७५६) ५ संक्रमण भागाहार ७५७) १० करण ७५७) स्वमुखों दई परमुखोदयी प्रकृतिया ७५८) अपकर्षण गुण स्थान ७५८) मुल प्रकृतियां बंध उदय उदीरणा सत्व गुण स्थान ७६०) उदय स्थान ३ उदय स्थान ७ सत्व स्थान ३ ७६१) गुण स्थान पर उपयोग स्थान गण स्थान पर संयम स्थान ७६३ गुण स्थान पर लेश्या स्थान नरकों में भाव लेश्या स्थान नारको मरकर कहां कहां जन्म लेता है ७६४) त्रिर्यंच " " मनुष्य " " " ७६५) कौनसा मिथ्या दृष्टि कौनसा देव " बनता हैं ? भाव लिंगी मरकर कहां जन्म ले सकता है ७६५) ७२९) Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण स्थान पर सम्यकत्य प्राप्ति गुण स्थान पर चढने और उतरने का क्रम गुण स्थान का मरकर कहां कहां जन्म ले सकता है । किन अवस्थाओं में मरण नही होता है नाम कर्म उदय के ५ नियत स्थान तथा स्वामीपना समुद्घात केवली व्याख्या उद्वेलना प्रकृतियां १३ संयम विराना कितनी बार तीर्थंकर आहारक सत्ता एक जीव के एक साथ नहीं आयु बंध उदय सत्ता आयु बंघ ८ अपकर्षण आयु कर्म भंग ७६६) ७६६ ) ७६७) ७६८ ) ७६८) ७६९ ७७० ७७० ७७१ ) ७७१) ७७१ ) ७७२) ७७२) 1963) (७७८) ७७९) ७७९) ७८० ) ७८१ ) ७८३) ७८५) कर्में स्थिति रचना ७८५} शब्द कोष (अकारादि रुप ) ७८६) श्रीयत पंडित ताराचंदजो शास्त्री न्यायतीर्थ तथा सिंगई मूलचन्दजी अध्यक्ष परवार मंदीर ट्रस्ट का नागपूर इस ग्रन्थ पर शुभ संदेश ७९४) श्रीयुत सुरजमलजी प्रेम आगरा का शुभ संदेश ७७४) ७७६) मूल भाव ५ उत्तर भाव ५३ मूल भाव ५ उत्तर भाव ५३ नाम भाव भंग गुणस्थानों पर ५ मूलभाव गुन स्थानों पर ५३ भाव कोष्टक ३६३ प्रकार मिथ्या दृष्टियों के भंग ३ कर्म स्वरूप आश्रव मूल वेद ४ गुणस्वाद पराभव गुणस्थानों पर ५७ आश्रव नाम ८ कर्मों पर आश्रव भावों की व्याख्या प्रकाशक को नम्र प्रार्थना- माननीय विद्वानों से विनय पूर्वक प्रार्थना करता हूं कि मैं इस ग्रन्थ का प्रकाशक ब्रह्मचारी उल्फतराय मंदज्ञानी हूं कर्म सिद्धांत बहुत गृह विषय हैं । लेखक पुज्य श्री १०८ आदिसागरजी मुनि महाराज प्रकाशन स्थान मेरठ से हजारों मील दूर आंध्रप्रदेश में विद्यमान थे इस कारण से भूलतो बहुत आई है परन्तु पं. ताराचंदजी शास्त्री न्यायतीर्थं नागपूर तथा श्रीयुत सि. मूलचंदजी अध्यक्ष परवार मंदिर ट्रस्ट नागपूर ने बहुत भारी परिश्रम करके विषय का संशोधन तो बहुत कुछ करदिया है अबभी पाठक सज्जनों की दृष्टि में जो भूल और दिखाई दे तो कृपा करके भूल को शुद्ध करलेना । मुझको क्षमा करना भूल सुधार की सूचना लेखक और प्रकाशक को देने के कष्ट सहन करने की कृपा दृष्टि करना । पुस्तक प्राप्त करने के १३ केन्द्रों की नामावली सूची शुद्धि पत्रक ७९४१ लेखक ब्रह्मचारी उत्तराय रोहतक [हरियाना] भगवान महावीर शांति का संदेश आपका सेवक ब्र. उल्फतशय रोहतक (हरियाना) -pl हे भव्य जीवो नर से नारायण बनने के पांच मार्ग इस प्रकार है: ७९५) ७९६) १) सरवेषु मंत्री - जीवो जीने दो । जब जन प्राणियों को धन भूमि देश राज स्त्री वैभव बढाने की इच्छायें प्रबल होती जाती है । मानवता नष्ट होती चली जाती है। दानवता भयंकर रूप बना देती है । आज सारे विश्व में नर संहार चल रहा हैं भयंकर राज युद्ध, राज विद्रोह, चोरी डकैती, रेलों, वाहनों के उपद्रव हडताल आग लगाना गृह युद्ध भाषा सांप्रदायकता पद लोलुपता स्वार्थ भावना के नाम पर मानवता को भूल बैठा है । यह सुख शांति देश उन्नति आत्म कल्याण के विरुद्ध जा रहा है । प्राणी मात्र पर मित्रता ही एक मात्र शांति मार्ग है । पशु पक्षी जल थल नभ के प्राणियों में भी तुम्हारी जैसी आत्मा है। सब ही सुख शांति से जीना चाहते है । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४] २) गणष प्रमोद:- जो प्राणी सेवाभावी दानी ज्ञानी माता पिता भाई बहिन घर मुखिया समाज नेता राज अधिकारियों का सन्मान करता है । वो ही अपनी आत्मा को उन्नत बना सकता है । मुक्ति पा सकता है। ३) क्लिष्टेष जीवेषु कृपा परत्व:- जो प्राणी दुग्नी दरिद्रों अंत्रों, लुले लंगडे अनाथ गरीब भाईयों को अपनी भुजा अपना हृदय समझकर उनकी अपने तन, मन, धन से रक्षा करता है । वो ही संसार स्वर्ग मोक्ष मुख पा सकता है। मध्यस्थभावं विपरीत वृत्तौ सदा ममात्मा बुध धातु देव:- जो दुष्ट प्राणी हमारी मेवाओं का बदला दानवता म देते है । हमारा धन प्राण स्त्री संपदा छीनना चाहते है, नष्ट करना चाहते हैं नो तुम अपनी रक्षा तो करों। परन्तु तुम भी सामने जैसा दुष्ट बनकर प्राण हरण, धर्म स्थान नष्ट करना, आग लगाना जैसे पाप कायं मत करो । आम के वृक्ष से ज्ञान तो प्राप्त करो 1 पत्थर मारने वाले को भी फल देता है। आत्मरस पान आत्म ध्यानः- स्त्री पुत्र धन संपदा राज वैभव मित्र राज को संसार में फसाने वाला समझकर सब का त्याग करके बाण प्रस्थाश्रम ग्रहण कर त्यागी बन निरजन बन पर्वत चोटी पर्वत गुफा, वृक्षों की कोटर में आत्म ध्यान आत्म समाधि लगाकर आत्म स्वरूप में एकाग्र हो जाता है । वोही आत्मा नर से नारायण बनकर सिद्ध लोक में जाकर आत्मा का अनंत दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य का सुख भोगता है । यही अंतिम महावीर संदेश है । शुभं ता. १-६-१९६८ -: प्रकाशक के उद्गार :भगवान से नम्र प्रार्थना [भजन नं. ॥ १ ॥] कैसे पहुंचु तेरे द्वार ।। टेक ॥ भवसागर में भटक रहा हूं-छाम रहा अंधियार। नैया डूब रही है-स्वामी दिखता नहीं किनार। तुम ही लगा दो पार ॥१॥ पर को अपना जान रहा हूं-करता उन्ही से प्यार । निज रस की कछु खवर नहीं है ड़ब रहा मझ धार । __ बेडा करा तुम पार ॥ २ ॥ नरभव कठिन मिला अब सेवक कर आतम उद्धार । मोह गहल में चूका मरख-मलना पड़े संसार | ___ कर आतम उद्धार ।। ३ ॥ आत्म दुर्बलता पर पश्चात्ताप [भजन नं. ॥२॥ भन्न दुख कसे कटे हों जिनेश्वर मो को बड़ा अंदेशा है | टेक ।। नही ज्ञान काया बल इंद्री-दान देन नही पैसा है। भव सुधरन को तप बहुत तपये-यह तन तो अब ऐसा है ।।। १।। निरा दिन आरत ध्यान रहत है-धर्म ना जानु कैसा है । विषय कषाय चाह उर मेरे लोम चखम जम जैसा है । ।। २।। मो में लक्षण कौन तिरण को मलिन तेल पट जैसा है। आप ही तारो तो पार उतारों-मो मन में तो अभिलाषा है । ।। ३ ।। Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५० भक्ति रस की महिमा (भजन नं.॥३॥) भजन से रख ध्यान प्राणी भजन से रख ध्यान 11 टेक ।। भजन से पट खंड नव निधि होत भरत समान । तिरे भव सागर से भाई-पाप को अवसान ।। १ ।। नबल शकर सिंघ मरकट-कर भजन श्रद्धान । भये वषम सेन आदि जगत गरू पहुंच गये निर्वाण ।। २ ।। कहत नयनानंद जगमें-भजन समम निधान । भये अरहंत सिद्ध आचार्य-पहुंच गये निर्वाण ।। ३ ।। मानवता का पथ प्रदर्शन (भजन नं. ॥४॥) सब करनी दया बिन थोथीरे ।। टेक ।। चंद्र बिना जैसे रजनी निरफल । नीर बिना जैसे सरोवर निरफल । आत्र बिना जैसे मोतीरे ॥१॥ ज्ञान बिना जिया ज्योति रे ॥२॥ छाया हीन तरोपर की छवि नयाननंद नहीं होती रे ।। ३ ।। कर्म सिद्धांत का प्रकाश (भजन नं. ॥५॥) सुख दुख दाता कोई नहीं जीव को पाप पुण्य निज कारण वीरा ॥ टेक ।। सीताजी को अन्गि कुंड में किया सुरोंने निरमलनीरा । जब हर लीनी थी रावण ने तब क्यों ना आये कोई सुरधीरा ॥१॥ बारीषेन पे खडग चलायो फूल माल कीनी सुरधीरा । तब क्यों ना आये तीन दिवस लग गिदडी भखें सुकु माल शरीरा ॥२॥ पांडव मुनि जारे दुश्मन ने पाप निकांक्षित फल गंभीरा । मानतुंग अडतालीस ता ले तोडके छेदी बंध जंजीरा ॥ ३ ॥ ऐसे ही सुख-दुख होत जीव को पाप पुण्य जब चलत समीरा। मंगल हर्ष विषादन करना घिर रखना चहिये निज हीयरा ॥४॥ ध्यानी का आत्म रस पान (भजन नं.॥६॥) देखो कैसे योगी ध्यान लगावे ध्यान लगावे आपेको पावे ॥ टेक ।। ज्ञान सुधा रस जल भरलावे चुल्हा शील बनावे । करम काट को नुग चुग बाले ध्यान अग्नि प्रजलावे ॥१॥ अनुभव भाजन निजगुण तंदुल-समता क्षीर मिलावे । सोहं मिष्ट निशांकित व्यंजन-समकित छोक लगावे ॥३॥ स्यादवाद सप्तमंग मसाले गिनती पारना पाये। निश्चय नय का चमचा फेरे घृत भावना भावे ॥३॥ आप ही पकावे आप ही खावे-खावत नाही अंघावे। तदपि मुक्ति पद पंकज सेवे नयनानंद सिरनावे ।।४।। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || 38 || नमः सिद्धेभ्यः * चौतीस स्थान दर्शन * - मंगलाचरण .।। २ ।। णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं ॥ १ ।। चत्तारि मंगलं, अरहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगल, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं मग भगवान महादेव गणी । मगलं कुन्दकुन्दार्यो, जैन धर्मोऽस्तु मङगलम् ॥ ३ " सर्व मगलमाङ्गल्यं, सर्व कल्याण कारकम् । प्रधानं सर्व धर्माणां जैनं जयतु शासनम् ।। ४ ।। चौतीस स्थानोंके नाम -- गाथा गुण- जीवा - पज्जती पाणा सण्णा तहेव विष्णेया । गइदियेच कार्य जोएवेए कसायणाणे य ।। १ ।। संजम - दंसण- लेस्सा- भविया सम्मन -सणि आहारे । उदओगरे क्षाणाणिय आसत्र भावा तहा मुणेयव्वा ॥ २ ॥ ओगाहणा य बंधोदय पयडीओ य सत्तपयडी य I संखा खेत्तं फासण संजुत्ता ते हवंति तीसंतु ॥ कालो य अंतरं पुण जाइय कुलकोडिसंजया स चउती गणाणि हवंति जइया कमेणते गहिया ।। ४ ।। ३ ॥ । * Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) क्रमांक चौंतीस स्थानों के नाम, और उत्तर भेदों की तथा कोष्ठकों की संख्या (क्रमांक ) स्थान १. गुणस्थान २. जीवसमास ३. पर्याप्ति ५. ६. उत्तर भेव कोष्टक क्रमांक ७. 6. क्राय ९. योग १०. वेद ११. कपाय १४ १४ ४. प्राण संज्ञा गति ४+१ इन्द्रिय जाति ५+१ ६+१ १५+१ ३+१ १०० ४ २५+१ ८ (५+३) ७+१ ४ १२. ज्ञान १३. संयम १४. दर्शन १५. लेश्या १६. भव्यत्व २+१ १७. सम्यक्त्व ६ (३+१+१+१) १८. संज्ञी २+१ ६+१ १ से १५ 51 25 " J १६ से २० २१ से २७ २८ से ३४ ३५ से ४६ ४७ से ५० ५१ से ५७ ५८ से ६३ ६४ से ७० ७१ से ७४ ७५ से ८० ८१-८२-८३ ८४ से ९० ९१-९२-९३ क्रमांक स्थान १९. आहारक २०. उपयोग २१. ध्यान २२. आस्रव २३. भाव २४. २५. २६. २७. २८. २९. ३०. स्पर्शन ३१. काल उत्तर भेद कोष्टक क्रमांक अवगाहना बंधप्रकृतियां उदय प्रकृतियां सत्यप्रकृतियां संख्या क्षेत्र १२ १६ ५७ ५३ २ 11 १२० १२२ १४८ " " け נן ९४ से १५ ३२. अन्तर ३३. जाति (योनि) ८४ लाख ३४. कुल 37 33 " "P 12 = = 11 21 "7 " ور 17 १९९ ।। . लाख कोटि कुल जानना. 17 Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थानों के उत्तर भेदों की नामावली (१) गुणस्थान १४ (३) पर्याप्ति ६ १ मिथ्यात्व गुणस्थान १ आहार पर्याप्ति २ सासादन ॥ २ शरीर " ३ मिथ ३ इन्द्रिय , ४ असंयत (अविरत) ४ श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति ५ देशसंयत (संयतासंयत) ५ भाषा पर्याप्ति ६ प्रमत्त ६ मन पर्याप्ति ७ अप्रमत्त (४) प्राण १० ८ अपूर्वकरण १ आयु प्राण १ अनिवृत्तिकरण २ कायबल प्राण १० सूक्ष्मसांपराय - इन्द्रिय प्राण-५ ११ उपशांतमोह १२ क्षीण मोह (कषाय) ३ (१) स्पर्शनेन्द्रिय प्राण १३ सयोग केंबली ४ (२) रसनेन्द्रिय , १४ अयोग केवली ५ (३) नाणेन्द्रिय , (२) जीवसमास १४ । ६ (४) चक्षुरिन्द्रिय , ७ (५) कर्णेन्द्रिय , १ एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त ८ श्वासोच्छ्वास , २ , अपर्याप्त ९ बचन बल " ३ , सूक्ष्म पयोप्त १० मनोबल ४ , सूक्ष्म अपर्याप्त (५) संज्ञा ४ ५ द्विन्द्रिय पर्याप्त ६ द्विन्द्रिय अपर्याप्त १ आहार संज्ञा ७ विन्द्रिय पर्याप्त २ भय संज्ञा ८ , अपर्याप्त ३ मथुम संज्ञा ९ चतुरिन्द्रिय पर्याप्त ४ परिग्रह संज्ञा १० , अपर्याप्त (६) गति ४ ११ असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त १ नरक गति १२ , , अपर्याप्त २ तिर्यंच गति १३ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त ३ मनुष्य गति । १४ , . , अपप्ति ४ देव गति (७) इन्द्रिय जाति ५ १ एकेन्द्रिय जाति २ द्विन्द्रिय जाति ३ त्रिन्द्रिय जाति ४ चतुरिन्त्रिय जाति ५ पंचेन्द्रिय जाति (८) काय ६ १ पृथ्वी काय २ अप् (जल) काय ३ तेज (अग्नि) काय ४ वायु काय ५ वनस्पति काय ६ अस काय . (९) योग १५ मनोयोग-४ १ सत्य मनोयोग २ असत्य मनोयोग ३ उभय मनोयोग ४ अनुभय मनोयोग वचन योग-४ ५ सत्य वचन योग ६ असत्य वचन योग ७ इभय वचन योग ८ अनुभव वचन योग काय योग-७ ९ औदारिक काय योग १० औ. मिश्रकाय योग ११ वक्रियक काययोग १२ व. मिश्र काय योग Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (१५) अशुभ लेश्या-३ १ कृष्ण लेश्या २ नील , ३ कापोत , शुभ लेश्या-३ ४ पीत लेश्या ५ पद्म । ६ शुक्ल , (१६) भव्यत्व २ १ भव्य २ अभव्य १३ आहारक काय योग १९ अरति नोकषाय १४ आ. मिश्र काय योग २० शोक , १५ कार्माण काय योग २१ भय , (१०) वेद (लिंग) ३ . २२ जुगुप्सा ,, २३ नपुंसक वेद , १ नपुंसक वेद २४ स्त्री वेद , २ स्त्री वेद २५ पुरूप वेद, ३ पुरुष वेद (१२) ज्ञान ८ (११) कषाय २५ कुज्ञान-३ समानुबंधो-१ १ कुमतिज्ञान १ क्रोध कषाय २ कुश्रुतज्ञान २ मान । ३ कुअवधि (विभंग) ज्ञान ३ माया , ४ लोभ , ४ मतिज्ञान अप्रत्याख्यान-४ ५ तज्ञान ५ क्रोध कषाय ६ अवधिज्ञान ६ मान । ७ मनः पर्ययज्ञान ७ माया , ८ केवल ज्ञान ८ लोभ । प्रत्याख्यान-४ (१३) संयम ७ ९ क्रोध कषाय १ असंयम १० मान , २ संयमासंयम ११ माया , ३ सामायिक संयम १२ लोभ ॥ ४ छेदोपस्थापना , संज्वलन-४ ५ परिहारविशुद्धि , ६ सूक्ष्मसापराय ॥ १३ क्रोध कपाय ७ यथाख्यात , १४ मान । १५ माया , (१४) दर्शन ४ १६ लोभ । १ अचक्षु दर्शन नोकषाय-९ २ चक्षु दर्शन १७ हास्य नोकषाय ३ अबधि दर्शन १८ रति ॥ 'फेमल दान (१७) सम्यक्त्व १ मिथ्यात्व (अवस्था) २ सासादन (।) ३ मिथ ( ,) ४ उपशमसम्यक्त्व ५ क्षयोपशम (वेदक) स० (१८) संज्ञी २ १ संज्ञी २ असंज्ञी (१९) आहारक २ १ आहारक २ अनाहारक (२०) उपयोग ज्ञानोपयोग-८ १ कुमति ज्ञानोपयांग २ कृश्रुत ३.कुनधि , Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ४ मतिज्ञानोपयोग (२२) आस्रव ५७ (२) क्षायिक भाव-९ ५ श्रुन ॥ मिथ्यात्व-५ ३ क्षायिक ज्ञान ६ अवधि १ एकांत मिथ्यात्व ४ क्षायिक दर्शन ७ मन:पर्यय ज्ञानोपयोग २ विनय मिथ्यात्व ५ क्षायिक सम्यक्त्व ८ केवल ज्ञानोपयोग ३ विपरीत मिथ्याल्न ६ क्षायिक चारित्र । ७ क्षायिक दान '४ संशय मिथ्यात्व दर्शनोपयोग-४ ९ अचक्षु दर्शनोपयोग ५ अज्ञान मिथ्यात्व ८ क्षायिक लाभ ९ क्षायिक भोग १० चक्षु दर्शनोपयोग अविरत-१२ १० क्षायिक उपभोग ११ अवधि दर्शनोपयोग हिंसक के अबस्था-६ ११ क्षायिक वीर्य १२ केवल दर्शनोपयोग ६ एकेन्द्रिय अवस्था (३) क्षायोपमिक (मिश्र) (२१) ध्यान १६ ७ द्विन्द्रिय अवस्था भाव-१८ आतथ्यान-४ ८ विन्द्रिय अवस्था कुज्ञान-३ १ इष्टवियोग आर्तध्यान ९ चतुरिन्द्रिय अवस्था १२ कुमति ज्ञान २ अनिष्ट संयोग आर्तघ्यान १० असंजी पंचेन्द्रिय अवस्था । ३ पीडा चिंतन आर्तध्यान १३ कुश्रुत ज्ञान ११ संज्ञी पंचेन्द्रिय अवस्था १४ कुअवधि (विभंग) ज्ञान ४ निदान बंध आर्तध्यान रौत्र ध्यान-४ हिंस्यके अवस्था-६ ज्ञान-४ ५ हिसानंद रौद्रध्यान १२ पृथ्वी कायिक जीव १५ मति ज्ञान ६ मृषानंद , १३ जल कायिक जीव १६ श्रुति ज्ञान ७ चौर्यानंद । १४ अग्नि कायिक जीव १७ अवधि ज्ञान ८ परिग्रहानंद , १५ वायु कायिका जीव १८ मनःपर्यय ज्ञान धर्म ध्यान-४ १६ वनस्पति कायिक जीव वर्शन-३ १७ बस कायिक जीव । ९ आज्ञाविचय धर्मध्यान १९ अचक्षु दर्शन १० अपायविचय , कषाय-२५ पूर्वोक्त २० चक्षु दर्शन ११ विपाक विचय , योग-१५ पूर्वोक्त २१ अवधि दर्शन १२ संस्थानविचय । ये सब ५७ आस्रव जानना क्षयोपशमलनिघ-५ शुक्ल ध्याग-४ १३ पृथक्त्व वितर्कवीचार (२३) भाव ५३ २२ क्षयोपशम दान २३ क्षयोपशम लाभ १४ एकत्ववितर्क अवीचार (१) औपशमिक भाव-२ २४ क्षयोपशय भोग १५ सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति १. उपशम सम्यक्त्व २५ क्षयोपशम उपभोग १६ व्युपरतक्रियानिबर्तीनि २ उपशम चारित्र २६ क्षयोपशम वीर्य Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) चौंतीस स्थान दर्शन २७ क्षायोपशमिक (वेदक) सं० ३५ स्त्री लिंग २८ सराग चारित्र (संयम) ३६ पुरूष लिंग २९ देशसंयम (संयमासंयम) कषाय-४ ३७ अोधप (४) औदयिक भाव २१ ३८ मान कषाय गति-४ ३९ माया कषाय ३० नरक गति ४० लोभ कषाय ३१ तिर्यंच गति ३२ मनुष्य गति लेझ्या-६ ३३ देवगति अशुभ लेश्या-३ ४१ कृष्ण लेश्या लिंग (वेव)-३ ४२ नील लेश्या ३४ नपुंसक लिंग ४३ कापोत लेश्या शुभ लेश्या-३ ४४ पीत लेश्या ४५ पद्म लेश्या ४६ शुक्ल लेश्या ४७-मिथ्यावर्शन (मिध्यात्व) ४८ असंयम ४९ अज्ञान ५० असिद्धत्व (५) पारिणामिक भाव-३ ५१ जीवत्व भाव ५२ भव्यत्व भाव ५३ अभव्यत्व भाव (२४) अवगाहना जीवों के देहप्रमाण अवगाहना का वर्णन करना इस स्थान का प्रयोजन है। सो हरएक कोष्टक में देखो। (५५) बंध प्रकृतियां-१२० ८. कर्मों की उत्तर प्रकृतियां १४८ है, इनमें से-- (१) ज्ञानावरणको प्रकृतियां-५ १. मतिज्ञानाबरण, २. श्रुतज्ञानावरण, ३. अवधि ज्ञानावरण, ४. मनःपर्यय ज्ञानाबरण, ५. केवल ज्ञानावरण । (२) दर्शनावरणको प्रकृतियां-९ ६. अचलदर्शनावरण, ७. चक्षुदर्शनाबरण, ८. अबधिदर्शनावरण. ९. केवल दर्शनावरण, १०. निद्रानिद्रा, ११. प्रचलाप्रचला, १२. स्त्यानगृद्धि, १३. निद्रा, १४. प्रचला । (३) वेदनीयको प्रकृतियां-२ १५. सातावेदनीय, १६. अशातावेदनीय। (४) मोहनीय की प्रकृतियां-२६ इनमें से दर्शन मोहनीय को प्रकृति-१ १७. मिथ्या दर्शन (मिथ्यात्व का) का बंध जानना। चारित्र मोहनीय को प्रकृतियां-२५ ___ अनन्तानुबन्धीकषाय-४ १८. क्रोध, १९, मान, २०. माया, २१. लोभ । अप्रत्याख्यानाबरणकषाय-४ २२. क्रोध, २३. मान, २४. माया, २५. लोभ । प्रत्याख्यानावरणकषाय-४ २६. क्रोध, २७. मान, २८. माया, २९. लोभ । संज्वलनकषाय-४ ३०, क्रोध, ३१. मान, ३२. माया, ३३. लोभ.. नोकषाय-९ (ईषत् कषाय भी कहते है।) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन वेट ३४. हास्य, ३५. रति, ३६. अरति, स्पर्शाविनाम कर्म को प्रकृतियां-४ ३७. शोक, ३८. भय, ३९. जुगुप्सा, ४०, ७७ स्पर्शनाम कर्म, ७८ रसनाम कर्म, नपुसकवेद ४१. स्त्री वेद, ४२. पुरूष वेद. ७९ गंधनाम कर्म, ८० वर्णनाम कर्म (५) आयु कर्म की प्रकृतियां.४ आनुपूर्वोनाम कर्म की प्रकृतियां-४ ४३ नरकायु. ४४ तिथंचायु, ४५ मनुष्याय, ८१ नरक गत्यानुपूर्वी, ८२ तिर्यगत्यानु.४६ देवायु पूर्वी, ८३ मनुष्यगत्यानुपूर्वी, ८४ देवगत्यानुपूर्वी (6) नाम कर्म को प्रकृतियां-६७ ८५ अगुरुलघु, ८६ उपघात, ८७ परगतिनाम कर्म की प्रकृतियां-४ घात, ८८ आंतप, ८१ उद्योत, ९० उच्छ्वास, ९१ प्रशस्त विहायोगति, ९२ अप्रशस्त बिहायो४७ नरकगति, ४८ तिर्यंचगति, ४९ मनुष्यति, ५० देवगति गति, ९३ प्रत्येक, ९४ साधारण, ९५ अस, ९६ स्थावर, ९७ सुभग, ९८ दुर्भग, ९९ सुस्वर, जातिनाम कर्म को प्रकृतियां-५ १०० दुस्वर, १०१ शुभ, १०२ अशुभ, ५१ एकेन्द्रिय जाति, ५२ द्वीन्द्रिय जाति, १०३ सूक्ष्म, १०४, बादर, १०५ पर्याप्ति, ५३ त्रीन्द्रिय जाति, ५४ चतुरिन्द्रिय जाति, १०६ अपर्याप्ति, १०७ स्थिर, १०८ अस्थिर, ५५ पंचेन्द्रिय जाति १०९ आदेय, ११० अनादेय, १११ यश कीति, ११२ अयश कीति, ११३ तीर्यकर प्रकृति । शरीरनाम कर्म की प्रकृतियां-५ सूचना-नामकर्भ की ९३ प्रकृतियों में ५६ औदारिक, ५५ वैश्यिक, ५८ ।। बंध प्रकृतियां-६७ है । कारण शरीर नामकर्म आहारक, ५९ तेजस, ६० कार्माण शरीर में बंधन ५, और संघात ५, ये गभित हो जाते अंगोपांगनाम कर्म की प्रतिकृया-३ है, इस लिये ये १० कम हो गये, और स्पर्श, ६१ औदारिकाङ्गोपांग, ६२ वैक्रिय- रस, गंध, वर्ण इन्हें ४ गिने, इस लिये शेष १६ काङ्गोपांग, ६३ आहारकाङ्गोपांग, ६४ यह कम हो गये, इस प्रकार १०+१६ = २६ निर्माण नामकर्म, प्रकृतियां घट जाने से नामकर्म की बंध योग्य संस्थान नामकार्य की प्रकृतियां-६ प्रकृतियां ६७ जानना। (७) गोत्रकर्म की प्रकृतियां-२ ६५ समचतुरस्र संस्थान, ६६ न्यग्रोधपरि ११४-उच्च गोत्र और ११५, नीच गोत्र मंडल संस्थान, ६७ स्वाति संस्थान, ६८ कुजक यह २ जानना। संस्थान, ६९ वामन संस्थान, ७० टुंडक संस्थान (८) अन्तराय की प्रकृतियां-५ संहमननाम कर्म की प्रकृतियां-६ ११६. यानान्तराय, ११७. लाभान्तराय, ७१ बज्रवृषभनाराच संहनन, ७२ वज्र- ११८. भोगान्तराय, ११९. उपभोगान्तराय, नाराच संहनन, ७३ नाराच संहनन, ७४ अर्ध- १२०. वीर्यांतराय । नाराच संहनन, ७५ कीलक संहनन, ७६ असं- इस प्रकार ज्ञानावरण की ५, दर्शनाप्राप्तासृपाटिका संहनन वरणको ९, वेदनीय की २, मोहनीय की २६, Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (<) चौतीस स्थान दर्शन आयु की ४, नाम कर्म की ६७, गोत्र की २, और अन्तराय की ५, ये सब मिलकर १२० प्रकृतियां बंध योग्य है । ५, वेद ९, (२६) उदय प्रकृतियां १२२ ज्ञानावरणकी दर्शनावरणकी नीयकी २, मोहनीयकी २८, आयुकर्म की ४, नामकर्मकी ६७ ( जो बंध प्रकृतियों में है ) गोत्रकर्मकी अन्तरायकी ५. इस प्रकार उदय योग्य प्रकृतियां १२२ है । २ सूचना:- - जब प्रथमोपशम सम्यक्त्व हो तब मिथ्यात्व के ( १ ) मिथ्यात्व ( २ ) सम्यग्मिथ्यात्व ( ३ ) सम्यक् प्रकृति इस तरह तीन भाग हो जाते हैं । इनमें से सिर्फ मिथ्यात्वका बंध होता है शेष २ की सत्ता हो जाती है । और यह दो प्रकृतियां उदय में भी आ सकती है । इस प्रकार दर्शन मोहनीय की दो प्रकृतियां बढ़ जाने से उदय योग्य प्रकृतियां १२२ जानना । (२७) सत्व - प्रकृतियां १४८ ज्ञानावरणकी ५. दर्शनावरणकी ९. वेदनीकी २. मोहिनीकी २८. आयुकर्मकी ४. नामकर्मकी ९३. गोत्रकर्मको २ अन्तरायकी ५. यह सब मिलकर अर्थात् आठो कर्मों की सब मिलाकर सत्त्व प्रकृतियां १४८ है । ( २८ ) संख्या किस स्थान में जीव कितने है, यह बतलाना इसका प्रयोजन है। सो हरएक कोष्टक में देखो । (२९) क्षेत्र जीव कितने क्षेत्र में रहते है, यह बात बतलाना है। सो हरेक कोष्टक में क्षेत्र देखो | (३०) स्पर्शन समुद्घात, उपपाद आदि प्रकारों से भूत, भविष्यत्, वर्तमान में जीव कहां तक जा सकता है, यह बात स्पर्शन में बतलाना है । सो हरेक कोष्टक में देखो । (३१) काल विविक्षित स्थानवाले जीव कितने काल तक लगातार उस स्थान में रहते है, यह बात काल में बतलाना है । सो हरेएक कोष्टक में देखो | ( २३ ) अन्तर ( विरहकाल) विविक्षित स्थान को छोड़कर फिर उसी स्थान में जीव आ जावे, इतने बीच में कोई विविक्षित जीव उस स्थान में न रहे उस बीच के काल को अन्तर कहते है । सो हरेएक कोष्टक में देखो । (३३) जाति (योनि) ८४ लाख है । उत्पत्तिस्थान को योनि या जाति कहते है । किन जीवों की कितनी जाति है, यह निम्न प्रकार जानना । (१) नित्यनिगोदकी ( २ ) इतरनिगोदकी (३) पृथ्वी कायिककी (४) जल (५) अग्नि (६) वायु r1 " " (७) वनस्पति (८) द्वीन्द्रियकी (९) श्रीन्द्रियको (१०) चतुरिन्द्रियको (११) तिर्यंचपंचेन्द्रियकी ( १२ ) नारककी 23 ७ लाख ७ लाख ७ लाख ७ लाख ७ लाख ७ लाख १० लाख २ लाख २ लाख २ लाख ४ लाख ४ लाख Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ७ लाख कोटि (१३) देवकी ४ लाख (३) अग्नि , लाख कोटि (१४) मनुष्यकी १४ लाख (४) बायु ॥ ७ लाख कोटि यह सब मिलाकर ८४ लाख योनि (५) वनस्पति , २८ लाख कोटि जानना । (६) द्वान्द्रियकी (७) त्रीन्द्रियकी ८ लाख कोटि सूचना-कुछ और स्पष्टीकरण यह है कि, (८) चतुरिन्द्रियकी १ लाख कोटि एकेन्द्रिय (स्थावरकायिक) की ५२ लाख, (९) जलचर की १२१। लाख कोदि प्रसकायिक की ३२ लाख, विकलत्रय की ६ लाख, पंचेन्द्रिय की २६ लाख, तिर्यचकी ६२ (१०) स्थलचर (पशु) की १० लाख कोटि लाख जाति (योनि) जानना ।। (११) नभचर (पक्षी) की १२ लाख कोटि (१२) छातीसे चलनेवालोंकी ५ लाख कोटि यह जो ८४ लाख योनि है यह सचित्त, (१३) देवकी २६ लाख कोटि अचित्त, सचित्ताचित्त, शीत, उष्ण, शीतोष्ण, (१४) नारककी २५ लाख कोटि संवृत, बिवृत, संवृताविवृत, इन नव भेदो के भेद प्रभेदोसे ८४ लाख हो जाते है । (१५) मनुष्यको १४ लाख कोटि (३४) कुल जोड़ १९९|| लाख कोटि १९९।। लाख कोटि कुल है । शरीर के सूचना-कुछ और स्पष्टीकरण यह है भेद के कारणभूत नोकर्मबर्गणावों के भेद को कि, त्रिर्यचकी १३४।। लाख कोटि, एकेन्द्रियकी कुल कहते है। ६७ लाख कोटि, पंचेन्द्रिय त्रिर्यचकी ४३।। यह सब निम्न प्रकार जानना- __लाख कोटि, पंचेन्द्रियकी १०६।। लाख कोटि, (१) पृथ्वी कायिककी २२ लाख कोटि विकलत्रयकी २४ लाख कोटि, जोड़ करने पर (२) जल , ७ लाख कोटि होते है। Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 20 ) चौंतीस स्थान दर्शन 4 १. गुणस्थान और गुणस्थानों का स्वरूप गुणस्थान- मोह और योग के निमित्त से होनेवाली आत्मा के सम्यक्व और चारित्र गुणों की अवस्थाओं को गुणस्थान कहते है, यह गुणस्थान १४ होते हैं । ( १ ) मिथ्यात्व - मोक्ष मार्ग के प्रयोजन भूत जीवादि सात तत्त्वों में यथार्थ श्रद्धा न होने को मिथ्यात्व कहते है । मिथ्यात्व में जीव देह को आत्मा मानता है । तथा अन्य भी परपदार्थों को अपना मानता है । कषाय परिणामों से भिन्न ज्ञानमात्र आत्मा का अनुभवन नहीं कर सकता है | (२) सासादन या सासादन सम्यक्त्यउपशमसम्यक्त्व नष्ट हो जाने पर मिध्यात्वका उदय न आ पाने तक अनन्तानुवन्धी कपाय के उदयसे जो अयथार्थ भाव रहता है उसे सासा - दन सम्यक्त्व गुणस्थान कहते है । (३) मिश्र या सम्यग्मिथ्यात्व - जहां ऐसा परिणाम हो जो न केवल सम्यक्त्व रूप हो और न केवल मिध्यात्वरूप हो, किन्तु मिला हुआ हो उसे मिश्र या सम्यग्मिथ्यात्व ऋते है । (४) असंयत या अविरत सभ्यत्व - जहां सम्यग्दर्शन तो प्रगट हो गया हो, किन्तु किसी भी प्रकार का व्रत ( संयमासंयम या संयम ) न हुआ हो, उसे असंयत या अविरत सम्यक्त्व कहते है । इस गुणस्थान में उपशम-वेदकarfarera ये तीनों प्रकार के सभ्यक्त्व हो सकते है । (५) वैशसंयत या संयतासंयत या जहां सम्यग्दर्शन भी प्रगट हो गया देश हो और संयमासंयम भी हो गया हो उसे देश संयत या संयता संयत या देशविरत कहते है । ( ६ ) प्रमत्त या प्रमत्तविरत जहां महाव्रत का भी धारण हो चुका हो किन्तु संज्वलन कषायका उदय मंद न होने से प्रसाद हो वह प्रमत्त या प्रमत्तविरत है । (७) अप्रमत्त या अप्रमत्तविरत जहां संज्वलन कषाय का उदय मन्द होने से प्रमाद नहीं रहा उसे अप्रमत्त या अप्रमत्तविरत कहते है । इसके दो भेद है । १. स्वस्थान अप्रमत्त बिरत और २ रा सातिशय अप्रमत्तविरत, स्वस्थान अप्रमत्तविरत मुनि छठवें गुणस्थान में पहुंचते है और इस प्रकार छटं से सातवें में, और सातवें से छठे में परिणाम आते जाते रहते हैं । सातिशय अप्रमत्तविरत मुनि के अधःकरण - परिणाम होते है वे यदि चारित्र मोहनीयका उपशम प्रारंभ करते है तो उपशम श्रेणि चढ़ते है और यदि क्षय प्रारंभ करते है तो क्षपक श्रेणि चढ़ते है । सो वे दोनों ( उपशम या क्षपक श्रेणि चढ़नेवाले मुनि) आठवे गुणस्थान में पहुंचते है । सातिशय अप्रमत्तविरत मुनि के परिणाम का नाम अथःकरण इसलिये है कि इसके काल में विविक्षित समयवर्ती मुनि के परिणाम के सदृश कुछ पूर्व उत्तर समयवर्ती मुनियों के परिणाम हो सकते हैं । (८) अपूर्व करण - इस गुणस्थान में अगले अगले समय में अपूर्व अपूर्व परिणाम होते है, ये उपशमक और क्षपक दोनों तरह के होते है । इस परिणाम का अपूर्व करण नाम इस लिये भी है कि इसके काल में समान समयवर्ती मुनियों के परिणाम सदृशभी हो Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन जांय, किन्तु विविक्षित समय में भिन्न ( पूर्व या उत्तर) समयवर्ती मुनियों के परिणाम विसदृश ही होंगे । इस गुणस्थान में प्रतिसमय अनन्तगुणी विशुद्धि होती है, कर्मों की स्थितिका घात होने लगता है, स्थितिबंध कम हो जाते है; बहुत सा अनुभाग नष्ट हो जाता है, असंख्यात गुणी प्रदेश निर्जरा होती है, अनेक अशुभ प्रकृतियां शुभ में बदल जाती है । ( ९ ) अनिवृत्तिकरण - इस गुणस्थान में चढ़ते हुये अधिक विशुद्ध परिणाम होते है, यह उपशमक और क्षपक दोनों प्रकार के होते है । इस परिणाम का अनिवृत्तिकरण नाम इस लिये है कि इसके काल में विविक्षित समय में जितने मुनि होंगे सबका समान ही परिणाम होगा. यहां भी भिन्न समयवालों के परिणाम विसदृश ही होंगे । इस गुणस्थान में चारित्र मोहनीय की २० प्रकृतियों का ( अप्रत्याख्यानावरण ४, प्रत्याख्यानावरण ४, संज्वलन ३, हास्यादि ९ ) उपशम या क्षय हो जाता है । (१०) सूक्ष्म सांप राय- नवमें गुणस्थान में होनेवाले उपशम या क्षय के बाद जब केवल संज्वलन सूक्ष्म लोभ रह जाता है. ऐसा जीव सूक्ष्म सांपराय गुणस्थानवर्ती कहा जाता है, इस गुणस्थान में सूक्ष्म सांपराय चारित्र होता है जिसके द्वारा अन्त में इस गुणस्थानवाला जीव सूक्ष्म लोभ का भी उपशम या क्षय कर देता है । (११) उपशांतमोह ( कषाय ) - समस्त मोहनीय कर्मका उपशम हो चुकते ही जीव उपशांत मोह गुणस्थानवर्ती हो जाता है. इस गुणस्थान में थथाख्यात चारित्र हो जाता है । किन्तु उपशम का काल समाप्त होते ही दशवें गुणस्थान में गिरना पड़ता है । या मरण हो (११) तो चौथे गुणस्थान में एकदम आना पड़ता है । (१२) क्षीणमोह ( कषाय ) - क्षपक श्रेणि से चढ़नेवाला मुनि ही समस्त मोहनीय के क्षय होते ही क्षीण मोह गुणस्थानवर्ती हो जाता है । इस गुणस्थान में यथाख्यात चारित्र हो जाता है । तथा इसके अन्त समय में ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय - कर्मका भी क्षय हो जाता है । ( क्षपक श्रेणि से चढ़नेवाला मुनि ग्यारहवे गुणस्थान में नहीं जाता है; वह दसवें गुणस्थान से बारहवें गुणस्थान में आ जाता है | ) I (१३) सयोग केवलो -चारों घातिया कर्म के नष्ट होते ही यह आत्मा सकल परमात्मा हो जाता है। इस केवली भगवान जब तक योग रहता है तब तक उन्हें सघोग haली कहते है । इनके बिहार भी होता है, दिव्यध्वनि भी खिरती है । तिर्थङ्कर संयोग केवली के समवशरण की रचना होती है, सामान्य सयोग केवली के गन्धकुटी की रचना होती है । इन सबका नाम अर्हन्त परमेष्ठी भी है । अन्तिम अन्तर्मुहूर्त में इन के बादर योग नष्ट होकर सूक्ष्म योग रह जाता है । और अन्तिम समय में यह सूक्ष्म योग भी नष्ट हो जाता है । (१४) अयोग केवली - योग के नष्ट होते ही ये परमात्मा - अयोग केवली हो जाते है । शरीर के क्षेत्र में रहते हुये भी इनके प्रदेशों का शरीर से सम्बन्ध नहीं रहता । इनका काल 'अ इ उ ऋ लृ इन पांच हस्व अक्षरों के उच्चारने के बराबर रहता है । इस गुणस्थान में उपांत्य और अंत्य समय में शेष Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) तीस स्थान दर्शन बची हुई ७२ और १३ प्रकृतियों का क्षय हो जाता है । इसके बाद ही ये प्रभु गुणस्थानातीत सिद्ध भगवान हो जाते है । २ जीवसमास जीवसमास - जिन सदृश धर्मोद्वारा अनेक जीवों का संग्रह किया जा सके उन सदृश धर्मो का नाम जीवसमास है । ये १४ होते हैं । (१) एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त-जिन जीवों स्पर्शन इन्द्रिय है तथा बादर शरीर ( जो दूसरे बादर को रोक सके और जो दूसरे बादर से रुक सके) है और जिन की शरीर पर्याप्ति भी पूर्ण हो गई है वे एकेन्द्रिय बादर पर्याप्त है । ये पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति रूप पांच प्रकार के होते हैं । (२) एकेन्द्रिय बावर अपर्याप्त - एकेन्द्रिय बादरों में उत्पन्न होने वाले जीव, उस आयू के प्रारंभ से लेकर जब तक उनकी शरीर पर्याप्त पूर्ण नहीं होती, तब तक बादर अपर्याप्त कहलाते है । इनमें से जो जीव ऐसे है कि जो पर्याप्ति पूर्ण न कर सकेंगे और मरण हो जायगा उन्हें लब्ध्य पर्याप्त कहते है । और जो जीव ऐसे है किं जिनकी पर्याप्ति पूर्ण अभी तो नहीं हुई, परन्तु पर्याप्त पूर्ण नियम से करेंगे उन्हें निवृत्यपर्याप्त कहते है । इन जीवसमासों में अपर्याप्त शब्द से दोनों अपर्याप्तों का ग्रहण करना चाहिये । ( ३ ) एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त जो जीव एकेन्द्रिय है, सूक्ष्म, ( जिन का शरीर न दूसरे को रोक सकता है और न दूसरे से रुक सकता है और सूक्ष्म नामकर्म का जिनके उदय है ) है एवं पर्याप्त है। उन्हें एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त कहते है । (४) एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त - एकेन्द्रिय, सूक्ष्म, अपर्याप्त नामकर्म का जिनके उदय है उन जीवों को एकेन्द्रिय सूक्ष्म अपर्याप्त कहते हैं । (५) हीन्द्रिय पर्याप्त- जिनके स्पर्शन, रसना ये दो इन्द्रिय है तथा जो पर्याप्त हो चुके है उन्हें द्वन्द्रिय पर्याप्त कहते हैं । ( ६ ) द्वीन्द्रिय अपर्याप्त उन कीन्द्रिय जीवों को जो पर्याप्त है या अभी निर्वृत्यपर्याप्त है उन्हें द्वीन्द्रिय अपर्याप्त कहते है । ( ७ ) श्रीन्द्रिय पर्याप्त - जिनके स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रिय है और जो पर्याप्त हो चुके है, उन्हें त्रीन्द्रिय पर्याप्त कहते है । (८) श्रीन्द्रिय अपर्याप्त उन त्रीन्द्रिय जीवों को जो लब्ध्य पर्याप्त या अभी निर्वृत्य पर्याप्त है उन्हें त्रीन्द्रिय अपर्याप्त कहते हैं । (२) चतुरिन्द्रिय पर्याप्ति-जिन जीवों के स्पर्शन, रसना, घ्राण और चक्षु ये चार इन्द्रियां है जो पर्याप्त हो चुके हैं उन्हें चतुरिद्रि पर्याप्त कहते है । (१०) चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त उन चतुरिन्द्रिय जीवों को जो लन्ध्यपर्याप्त या अभी निर्वृत्यपर्याप्त है, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त कहते है । I (११) असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जिनके स्पर्शन, रसना, घाण, चक्षु और श्रोत ये पांचों इन्द्रियां हो किन्तु मन नहीं हो वे असंज्ञी पंचेन्द्रिय कहलाते है । वे पर्याप्ति पूर्ण हो चुकने पर असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कहलाते है । असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव केवल तिर्यंचगति में होते है । एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीव भी केवल तिर्यंच होते है । ( १२ ) असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त - उन असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों को जो लब्ध्य पर्याप्त है या अभी निर्वृत्यपर्याप्त है असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त कहते है । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (१३) संजो पंचेन्द्रिय पर्याप्त-मंजी अर्थात मनसहित पंचेन्द्रिय जोध पर्याप्ति पूर्ण हो चुकने पर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कहलाते है। (१४) संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त-उन संजी पंचेन्द्रिय जीवों को जो लभ्यपर्याप्त है या अभी निर्वृत्यपर्याप्त है, संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त कहते है। सूचना-सिद्ध भगवान अतीत जीवसमास होते है। ३ पर्याप्ति पर्याप्ति--आहार वर्गणा, भाषावर्गणा, मनोवर्गणा के परमाणुवों को शरीर, इन्द्रिय आदि रूप परिणमावने की शक्ति की पूर्णता को पर्याप्ति कहते है । यह ६ होते है ।। (१) आहार पर्याप्ति-आहार वर्गणा के परमाणओं को खल और रम भागरूप परिणमावने के कारण भूत जीव की शक्ति की पूर्णता को आहार पर्याप्ति कहते है । (२) शरीर पर्याप्ति-जिन परमाणुओं को खलरूप परिणमायाथा उनका हाड वगैरह कठिन अवयवरूप और जिनको रसरूप परिणमाया था उनको रुधिरादिक द्रवरूप परिणमावने को कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को शरीर पर्याप्ति कहते है। (३) इन्द्रिय पर्याप्ति-आहार वर्गणा के परमाणुओं को इन्द्रिय के आकार परिणमावने को तथा इन्द्रिय द्वारा विषय ग्रहण करने को कारणभूत जीव की शक्ति को पूर्णता को इन्द्रिय पर्याप्ति कहते है। (४) श्वासोच्छवास पर्याप्ति-आहारवर्गणा के परमाणुओं को श्वासोच्छवासरूप परिणमावने के कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को श्वासोच्छवास पर्याप्ति कहते है। (५) भाषा पर्याप्ति-भाषा वर्गणा के परमाणुओं को वचनरुप परिणमायने के कारण भूत जीव की शक्ति की पूर्णता को भाषा पर्याप्ति कहते है । (६) मन: पर्याप्ति-मनोवर्गणा के परमाणुओं को हृदयस्थान में आठ पांखुड़ाके कमलाकार मनरूप परिणमावने को तथा उसके द्वारा यथावत् विचार करने के कारणभूत जीव की शक्ति की पूर्णता को मनः पर्याप्ति कहते है । सूचना-सिद्ध भगवान को अतीत पर्याप्त कहते है। ४.प्राण प्राण-जिनके संयोग से यह जीव जीवन अवस्था को प्राप्त हो और वियोग से मरण अवस्थाको प्राप्त हो उनको प्राण कहते है। ये १० होते है । सूचना-सिद्ध भगवान अतीत प्राण कहे जाते है। ५.संज्ञा संज्ञा-वांछाके संस्कार को संज्ञा कहते है । ये ४ होते है। (१) आहार संज्ञा-आहार संबंधी वांछा के संस्कार को आहार संज्ञा कहते है । (२) भय संजा-भय संबंधी परिणाम के संस्कार को भय संज्ञा कहते है। (३) मैयुन संशा-मैथुन संबंधी वांछा के संस्कार को मैथुन संज्ञा कहते है । (४)परिग्रह संज्ञा-परिग्रह संबंधी वांछा के संस्कार को परिग्रह संज्ञा कहते है । सूचना-दयाम गुणस्थान से ऊपर जीव' । अतीत संज्ञा वाले होते है। Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) चाती धाम दर्शन मार्गणा अगति-गति से रहित जीवों की गति को ___ अगति या सिद्धगति कहते हैं। इनके गति नहीं मागंणा-जिन धर्म विशेषों से जीवों की । ___ है, ये गति रहित है। खोज हो सके, उन धर्म विशेषों से जीवों को खोजना मार्गणा है । ये १८ होते है । ७. इन्द्रियजाति मार्गणा ६. गति मार्गणा इन्द्रिय जाति-इन्द्रियावरण के क्षयोपशम , मे होने वाले संमारी आत्माने वाहा' चिह्न गति मार्गणा-गति मार्गणा नामकर्म के । विशेष को इन्द्रिय कहते है। इस की मार्गणा उदय से उस उस गति विषयका भावके कारण ५+१ है। भूत जीव का अवस्था विशेष को गति वाहने (१) एकेन्द्रियसे-पंचेन्द्रिय तक का है । इस गति की मार्गणा ४+१ है। वर्णन हो चुका है। (१) नरक गति-मध्य लोक के नीचे ___अतिन्द्रिय जाति-जो इन्द्रियों में (द्रव्येसात नरक है, उनमें नारकी जीव रहते है। न्द्रिय व भावेन्द्रिय दोनों से) रहित है वह उन्हें बहुत काल पर्यत घोर दुःख सहना पड़ता। अतीन्द्रिय कहलाते है। है, उनकी गति को नरक गति कहते है । (२) तिर्यच गति-नारकी, मनुन्य व ८. काय मार्गणा देव के अतिरिक्त जितने संसारी जीव है, वे सब काय-आत्मप्रवृत्ति अर्थात् योगसे संचित तिर्यंच कहलाते है । एकेन्द्रिय (जिसमें निगोद पुद्गलपिण्ड को काय कहते है । इसकी मार्गणा भी शामील है), द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, अतुरिन्द्रिय, असंजी पंचेन्द्रिय ये नो नियम से विर्यच होने अकाय-जिनके कोई प्रकार का काय है और सिंह, घोड़ा, हाथी, कबुनर मत्स्य आदि नहीं रहा वे अकायिक (अकाय ) कहलाते है । संज्ञी जीब भी तिर्यच होते है। उनकी गनि को विर्यच गनि कहते है । ९. योग मार्गणा (३) मनुष्य गति-स्त्री, पुरुष, बालक, योग-मन, वचन, काय के निमित्त से बालिका मनुष्य कहे जाते है, इनकी गति को आत्मप्रदेश के परिस्पंद (हलन, चलन) का मनुष्य गति कहते है। कारणभूत जो प्रयत्न होता है उसे योग कहते (४) देव गति-भवनबासो, व्यन्तर है इस की मार्गणा १५+१ है । (जिन के निवास स्थान पहले नरक पृथ्वीके (१) सत्यमनो योग-सत्य वचन के खर भाग और पक भाग में है। ) ज्योतिष्य कारणभूत मनको सत्यमन कहते है, उसके (सूर्य, चन्द्र, तारादि) और वैमानिक (१६ निमित्त से होनेवाले योग को सत्यमनो योग स्वर्ग, नव वेवक, नत्र अनुदिश, पंचानुत्तर में कहते है । रहनेवाले देब) इन चार प्रकार के देवों की (२) असत्यमनो योग-असत्य वचन के गति को देव गति कहते है। . कारणभूत मन को असत्यमन कहते है और Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ।' उसके निमित्त से होनेवाले योग को असत्यमनो योग कहते है। (३) उभयमनो योग-उभय (सत्य, असत्य दोनों) मन के निमित्त से होनेवाले योग को उभयमनो योग कहते है । (४) अनभयमनो योग-अनुभय (न सत्य न असत्य) मन के निमित्त से होनेवाले योग को अनुभयमनो योग कहते है। (५) सत्यवचन योग-सत्यवचन के निमित्त से होने वाले योग को सत्यवचन योग कहते है। (६) असत्यवचन योग-असत्यवचन के निमित्त से होनेवाले योग को असत्यवचन योग कहते है । (७) उभयवचन योग-उभय (सत्य, असत्य दोनों) बचन के निमित्त से होनेवाले योग को उभयवचन योग कहते है । (८) अनुभयवचन योग-अनुभय(न सत्य व असत्य) वचन के निमित्त से होनेवाले योग को अनुभयवचन योग कहते है । (९) औदारिक काययोग-मनुप्य तियनों के शरीर को औदारिक शरीर कहते है, उसके निमित्त से जो योग होता है उसे औदारिक काय योग कहते है। (१०) औवारिक मिश्रकाय योग-कोई प्राणी मरकर मनुष्य या नियंत्र गति में स्थानपर पहुंचा, वहां पहुंचते ही वह औदारिक वर्गणाओं को ग्रहण करने लगता है उस समय से अन्तमुहूर्त तक (जब तक शरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती) कार्माण मिथित औदारिक वर्गणाओं के द्वारा उत्पन्न हुई शक्ति से जीव के प्रदेश में परिस्पंद के लिये जो उस जीव का प्रयत्न होता है उसे भौदारिक मिश्रकाय योग कहते है। (११) वैयिक काय योग-देव व नारकीयों के शरीर को क्रियक काययोग कहते है । उसके निमित्त से जो योग होता है उसे वैक्रियक काययोग कहते है। (१२) वैकियक मिश्रकाय योग-कोई मनुष्य या तियच मरकर देव या नरक गति में स्थानपर पहुंचा, वहां पहुंचते ही वह वैक्रियक वर्गणाओं को ग्रहण करने लगता है, उस समय से अन्तर्मुहर्त तक (जब तक गरीर पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती) कार्माण मिथित वक्रियक वर्गणाओं के द्वारा उत्पन्न हुई शक्ति से जीव के प्रदेशों में परिस्पंद के लिये जो उस जीव का प्रयत्न होता है उसे बैंक्रियक मिश्रकाय योग कहते है । (१३) आहारक काययोग-सूक्ष्म तत्वमें संदेह होने पर या तीर्थ वन्दनादि के निमित्त आहारक ऋद्धिवाले छठे गुणस्थानवर्ती मुनियों के मस्तिष्क से एक हाथ का धवल, शुभ, व्याघात रहित आहारक शरीर निकलता है उसे आहारक काययोग कहते है। उसके निमितसे होनेवाले योग को आहारक काय योग कहते है। (१४) आहारक मिश्रकाय योग-आहारक शरीर की पर्याप्ति जब तक पूर्ण नहीं होती तब तक औदारिक व आहारक वर्गणाओं के द्वारा उत्पन्न हुई शक्ति से जीव के प्रदेशों में परिस्पंद के लिये जो प्रयत्न होता है उसे आहारक मिथकाय योग कहते है। (१५) कार्माणकाय योग-मोडेवाली विग्रह गति को प्राप्त चारों गतियों के जीवों के तथा प्रतर और लोकपूर्ण समुद्घात को प्राप्त केवली जिन के कार्माण काय होता है। उसके निमिन से होनेवाले योग को कार्माणकाय योग कहते है। Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन अयोग-अयोग केवली व सिद्ध भगवान के योग नहीं होता है । योग रहित अवस्था को अयोग कहते है। १०. वेद मार्गणा वेव-पुरुष वेद, स्त्री वेद, नपुंसक वेद के उदय से उत्पन्न हुई मैथुनकी अभिलाषा को वेद कहते है । इसकी मार्गणा ३+१ है। (१) नपुंसकवेद-जिससे स्त्री और पुरुष इन दोनों के साथ रमण करने का भाव हो उसे नपुंसकवेद कहते हैं। (२) स्त्रीवेव-जिससे पुरुष के साथ रमण करने की इच्छा हो उसे स्त्रीवेद कहते हैं। (३) पुरुषवेद-जिससे स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा हो उसे पुवेद या पुरुषवेद कहते है। अपगतवेद-जहां वेद का अभाव हो उसे अपगतवेद जानना । ११. कषाय-मार्गणा कषाय-जो आत्मा के सम्यक्त्व, देशचारित्र, सकलचारित्र, और यथाख्यातचारित्ररूप गुण को घाते, उसे कयाय कहते हैं। इसकी मार्गणा २५+१ है। (१) से (४) अनन्तानुबंधी क्रोत्र, मान, माया, लोभ-उन्हें कहते हैं जो आत्मा के सम्यक्त्य गुण को पाते। (५) से (८) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, मान, माया, लोभ-उन्हें कहते हैं जो देशप्रारित्र को घातें. (देशचारित्र धावक, पंचमगुण-स्थानवर्ती जीव के होता है) (९) से (१२) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ-उन्हें कहते हैं जो सकल चारित्र को घातें । (सकल चारित्र मुनियों को होता है) (१३) से १६) संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ--उन्हें कहते हैं जो यथाख्यात चारित्र को घातें । (यथाख्यात चारित्र ११, १२, १३, १४ वे गुणस्थान में होता है) १७) हास्य-हंसने के परिणाम को हास्य कहते हैं। (१८) रति-इष्ट पदार्थ में प्रीति करने को रति कहते हैं। (१९) अरलि-अनिष्ट पदार्थों में अप्रीति करने को अरति कहते हैं। (२०) शोक-रंज के परिणाम को शोक कहते हैं । (२१) भय--डर को भग्य कहते हैं। (१२) जुगुप्सा-लानि को जुगुप्सा कहते हैं । (२३-२४-२५) नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, पुरुषवेद-इन हरेक का वर्णन हो चुका है। अकषाय-कषाय के अभाव को अकपाय कहते हैं। १२. ज्ञान-मार्गणा ज्ञान-वस्तु के जानने को ज्ञान कहते हैं । इसकी मार्गणा ८ है। (१) कुमतिज्ञान-सम्यक्त्व के म होने पर होनेवाले मतिज्ञानको कुमतिज्ञान कहते हैं । (२) कुवतज्ञान-सम्यक्त्व के न होने पर होने वाले श्रुतज्ञान को कुश्रुतज्ञान कहते हैं । (३) कुअघि शान-सम्यक्त्व के न होने पर होनेवाले अवधिज्ञान को कुअवधिज्ञान कहते हैं । इसका दूसरा नाम विभङ्ग-अवधिज्ञान है। (४) मतिज्ञान-इन्द्रिय और मन के निमित्त से उत्पन्न होनेवाले ज्ञान को मतिझान कहते हैं। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन (१७) (५) श्रुतज्ञान मतिज्ञान से जाने हुये होनेपर फिर से प्रतों के पालन करने को छेदोपदार्थ के संबंध में अन्य विशेष जानने को श्रुत- स्थापना संयम कहते हैं। भान कहते हैं । ५) परिहार विशुद्धिसंयम-जिसमें हिंसा (६) अवधि ज्ञान-इन्द्रिय और मन की का परिवार प्रधान हो ऐने गद्धिमाप्त मंयम सहायता के बिना, आत्मीय शक्ति से रूपी को परिहारविशति संयम कहते हैं। पदार्थों को द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा (६) सूक्ष्म पाराय मंयम-मूक्ष्म कषाय लेकर जानने को अबधिज्ञान कहते हैं । (सूक्ष्मलोभ) वाले जीवों के जो संयम होता है (७) मनापय ज्ञान-दूसरे के मन में उसे सूक्ष्मसापराय संयम कहते हैं । तिष्ठते हुए (स्थित) रूपी पदार्थों को इन्द्रिय (७) यथास्पात संयम-कपाय के अभाव और मन की सहायता के बिना आत्मीय में जो आत्मा का अनुष्ठान होता है उसमें शक्ति से जानने को मनःपर्यय ज्ञान कहते हैं। निवास करने को यथाव्यात संयम कहते हैं । (0) केवलज्ञान-तीन लोक, तीन काल- असंयम-संयम-संयमासंयम रहित-सिद्ध वर्ती समस्त द्रव्य पर्यायों को एक साथ स्पष्ट भगवान् सदा अपने शुद्ध वरूप में स्थित है। जानना केवल ज्ञान है। उनके ये नीनों नहीं पाये जाने । १३. संयम-मार्गणा १४. दर्शन-मार्गणा संयम-अहिंसादि पंच व्रत धारण करना, दर्शन-आत्माभिमुन अबलोकन को दर्शन ईर्यापथ आदि पंच समितियों का पालन करना, कहते हैं । इराकी मार्गणा ४ है। क्रोधादि कषाओं का निग्रह करना, मनोयोग, (:) अवक्षःसन-चरिमिस के अलावा वचनयोग, काययोग इन तीनों योगों को रोकना, अन्य इन्द्रिय व मन में उत्पन्न होनेवाले दर्शन पांचों इन्द्रियों का विजय करना सो मंयम है। को अचक्षुदर्शन कहते है । इसकी मार्गणा +१ है। . २) चक्षुदर्शन-चगिन्द्रियजन्त्र ज्ञान (१) असंयम-जहां किसी प्रकार के से पहले होनेवाले दर्शन को चक्षदर्शन संयम या संयमासंयम का लेश भी न हो उसे कहते हैं। असंयम कहते हैं । (३) अग्दिर्शन-अवधिज्ञान से पहले (२) संयमासंयम-जिनके त्रसकी अवि- होनेवाले दर्शन को अवधिदर्शन कहते हैं। रति का त्याग हो चुका हो, जिनके अणुव्रत का (४) केवदर्शन-केबलज्ञान के साथधारण है उनके चारित्र को संयमासंयम ___ साथ होनेवाले दर्शन को केवलदर्शन कहते हैं । कहते हैं। (३) सामायिक संयम-सब प्रकार की १५, लेश्या-मार्गणा अविरति से विरक्त होना, और समताभाव लेश्या-कषाय से अनुरंजित योगप्रवृति धारण करना, सामायिक संयम है। को लेश्या कहते हैं । इसकी मार्गणा ६+१ है । (४) छेचोपस्थापना संयम-भेदरूप से (१) कृष्णलेश्या-जोत्र क्रोध करनेवाला व्रत के धारण करने को या यतों में छेद (भंग) हो, बैर को न छोड़े लड़ने का जिसका स्वभाव Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८) चौतीस स्थान दर्शन हो, धर्म और दया से रहित हो, दुष्ट हो, जो किसी के वश न हो, ये लक्षण कृष्णलेश्या है ( २ ) नीललेश्या - काम करने में मन्द हो, स्वच्छन्द हो, कार्य करने में विवेकरहित हो, विषयों में लम्पट हो, कामी, मायाचारी. आलसी हो, दूसरे लोग जिसके अभिप्राय को सहसा नहीं जान सके, अति निद्रालु हो, दूसरों के ठगने में चतुर हो, परिग्रह में तीन लालसा हो, ये लक्षण नील लेश्या के है । (३) कापोत लेश्या - से, निन्दा करे, द्वेष करे, शोकाकुल हो, भयभीत हो, ईर्ष्या करे, दूसरों का तिरस्कार करे अपनी विविध प्रशंसा करे, दूसरे का विश्वास न करे स्तुति करनेवाले पर संतुष्ट होवे रण में मरण चाहे, स्तुति करनेवाले को खूब धन देवे अपना कार्य अकार्य न देखे । ये लक्षण कापोतलेश्या के है । (४) पीतलेश्या - कार्य, अकार्य, सेव्य, सेव्य को समझने वाला हो, सर्व-समदर्शी हो । दया -परायण हो, दानरत, कोमल परिणामी हो । ये लक्षण पीतलेश्या के है । (५) पलेश्या त्यागी, भद्र, उत्तम कार्य करनेवाला, सहनशील, साधु, गुरु, पुजारत हो । ये लक्षण पद्मलेश्या के है । (६) शुक्ललेश्या - पक्षपात न करे, निदान न बांधे, सब में समानता की दृष्टि रक्खे, इष्टराग अनिष्ट द्वेष न करे । ये लक्षण शुक्ललेश्या के है । १६. भव्यत्व - मार्गणा भव्यत्व-जिन जीवों के अनन्त चतुष्टयरूपसिद्धि व्यक्त होने की योग्यता हो वे भव्य है । उनके भाव को भव्यत्व कहते हैं । इसकी मार्गणा २०१ है । ( १ ) भव्य - इसका वर्णन ऊपर हो चुका है । (२) अभव्य - उक्त योग्यता के अभाव को अभव्यत्व कहते हैं । अनुभव सिंह जीव न भव्य है और न अभव्य है । - ९७. सम्यक्त्व - मार्गणा सम्यक्त्व - मोक्षमार्ग के प्रयोजनभूत तत्त्वों के यथार्थ ज्ञान को सम्यक्त्व कहते हैं। इसकी मार्गणा ६ है | (१) मिथ्यात्व - मिध्यात्व प्रकृति के उदय से तत्वों के अश्रद्धानरूप विपरीत अभिप्राय को मिथ्यात्व कहते हैं । ( २ ) सासादन सम्यक्त्व - सम्यक्त्व की विराबता होने पर अनन्तानुबन्धी कषाय के उदय से यदि मिथ्यात्व का उदय न आये तो मिध्यात्व का उदय आने तक होनेवाला विपरीत आशय सासादन सम्यक्त्व कहलाता है । ( ३ ) सम्यग्मिथ्यात्व - सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के उदय से जो मिश्र परिणाम होता है, जिसे न तो सम्यक्त्वरूप ही कह सकते है और न मिध्यात्वरूप ही कह सकते है। किन्तु जो कुछ समीचीन व कुछ असमीचीन है उसे सम्यग्मिथ्यात्व कहते है । (४) उपशम सम्यक्त्व अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, मिध्यात्व, सम्यमिथ्यात्व और सभ्यक् प्रकृति इन ७ प्रकृतियों के उपनाम से जो मभ्यक्त्व होता है उसे उपगम सम्यक्त्व कहते है । इसके एक प्रथमोपशम सम्यक्त्व और दूसरा द्वितीयोपशम सम्यक्त्व ऐसे दो भेद है । Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (अ) प्रथमोपशम सम्यक्रय-मिथ्यात्व के मलिन, अगाढ़, (जो कि सूक्ष्म दोष है) दोष अनन्तर जो उपशम सम्यक्त्व होता है उसे लगते है। प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहते है । अनादि मिथ्या १८ संज्ञी मार्गणा दृष्टि मिश्रप्रकृति व सम्यक्प्रकृति की उचलाना कर चुकने वाले जीवों के अनातानुबंधी ४ संज-जो संशी अर्थात् मन सहित है उन्हें मिथ्याव : इन पांच के उपयम से प्रथनापगम ___ संज्ञी कहते है । इसकी मार्गणा २+१ है। सम्यक्त्व होता है, और ७ को सत्तावालो के (१) संजी-संज्ञो पंचेन्द्रियही होते है। ये प्रकृतियों के उपशम से प्रथम सम्यमा वा अतिदमें में। ये जाते है। होता है। (२) असंजी-एकेन्द्रियसे लेकर असंशी (ब) द्वितीयोपशम सम्यक्र-क्षायोपश- पंचेन्द्रिय तक होते है । ये सब तिथंच है। मिक सम्यक्त्व के अनन्तर जो उपशम सम्यक्त्व अनु भय-सयोगकेवशी व अयोग केवली व होता है उसे द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहते है। सिद्धभगवान् है, य न संज्ञी है क्यों कि मन और यह भी ७ प्रकृतियों के उपशम रो होता नही, और न असंज्ञी है क्यों कि अविवेकी नही। है । सप्तम गुणस्थानवी जीव यदि उगम सयोगीके यद्यपि द्रव्यमन' है परंतु भावमन श्रेणी चढ़े तब उसकं क्षायिक मम्यक्त्व या नही है । उपशम सम्यक्त्व होना आवश्यक है । वहां यदि १९ आहारक मार्गणा उपशम सभ्यक्त्व करे तब द्वितीयोपशम सम्यक्त्व कहलाता है। द्वितीयोपशम सम्यक्त्व में मरण ____ आहारक-शरीर, मन, वचन, के योग्य हो सकता है, यदि मरण ही तो देव गति में ही वर्गणावों को ग्रहण करना, आहारक कहलाता जावेगा । प्रथमोपशम सम्यक्त्व में मरण नहीं ___ जब कोई जीब मरकर दूसरी गतिमें जाता है। तब जन्मस्थान पर पहुँचते ही (५) क्षायिक सम्यक्त्व-अनन्तानबंधी आहारक हो जाता है, इससे पहले अनाहारकक्रोध, मान, माया, लोभ, मिथ्यात्न, सम्य रहता है, किन्तु ऋजु गतिसे जानेवाला - म्मिथ्यात्व और सम्यग्रकृति इन सात प्रकृतियों अनाहारक नहीं होता, क्योंकि वह एक समयमें के क्षय से जो सम्यक्त्र होता है उस क्षायिक ही जन्मस्थान पर पहुंच जाता है। तेरहवें स यक्ल्त्र कहते है। गुणस्थानवर्ती जीव जब केवल–समुद्घात करते १६)क्षायोपशमिक (वेदक) सयक्त्व- है तब प्रतरके २ समय, और लोकपूर्ण का १ अनन्तानबंधी ४, मिथ्यात्व १, सम्बग्मिथ्वात्व समय इन तीन समयों में अनाहारक होते है, १. इन ६ प्रकृतियों का उदयाभावी क्षघ ५ शेष समय अाहारक होते है 1 अयोग-केवली उपशम से तथा सम्यक्प्रकृति के उदय से जो और सिद्धभगवान् अनाहारकही होते है । सम्यक्त्व होता है । उसे क्षायोपशामिकः या वेदक २० उपयोग सम्यक्त्व कहते है। इस सम्यक्त्व में सम्यकाप्रकृति के उदय के कारण सम्यग्दर्शन में चल, उपयोग-बाह्य तथा अभ्यन्तर कारणों के होता । Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहते है। चौंतीस स्थान दर्शन -- द्वारा होनेवाली आत्माके चेतना गुणको परि- (६) मृषानन्द-झूठ में आनन्द मानना व णति को उपयोग कहते हैं। ये २ है।' झूठ के लिए चिन्तवन करना गो मृषानन्द (१) साकारोपयोग-ज्ञानोपयोग को रौद्रध्यान है। (७) चौर्यानन्द-चोरी में आनन्द मानना (२) निराकारोपयोग-दर्शनोपयोग को बचोरी के लिए चिन्तवन करना चौर्यानन्द कहते है। रौद्रध्यान है। (१) ज्ञानोपयोग हो. नं. ५. से ६६ (८) परिग्रहानन्द-परिग्रह में आनन्द देखो। मानना व परिग्रह याने विषय की रक्षा के २) दर्शनोपयोग-को नं. ७१ से ७४ लिए चिन्तवन करना. परिग्रहानन्द रौद्रदेखो। ध्यान है। २१. ध्यान ___ रुद्र = क्रूर, उसके भाव को रौद्र ध्यान-एक विषय में चिन्लवन के रुकने वाहते हैं। को ध्यान कहते हैं । ये १६ है । (९) आज्ञाविचय धर्मध्यान-आगम की १ इष्टवियोगजजा ध्यान-इष्ट पदार्थ आज्ञा की श्रद्धा से तस्व चिन्तवन करना आज्ञाके वियोग होने पर उसके संयोग के लिए विचय धर्मज्ञान है। चितवन करना इष्ट वियोगज आर्तध्यान है । (१०) अपाय विचय-अपने या परके (२) अनिष्ट संयोगज-अनिष्ट पदार्थ रागादिभाव जो दुःख के मूल है. उनके विनाश को संयोग होने पर उसके वियोग के लिए होने के विषय में चिन्तवन करना अपायविचय चितवन करना, अनिष्ट संयोगज आर्त- धर्मध्यान है। ध्यान है। (११) वियाक विचय-कर्मों के फल के ३) पीडचितन या वेदनाप्रभव आत- संबंध में संवेगवर्द्धक चिन्तवन करना विपाकध्यान-झारीरिक पीड़ा होने पर उसके संबंध विचय धर्मध्यान है । में चितवन करना पीड़ाचितन धार्तध्यान है। (१२) संस्थानविचय-लोक के आकार (४) निदानबंध-भोगविषयों की चाह काल आदि के आश्रय जीव के परिभ्रमणादि संबंधी चितवन को निदान या निदानबंध आर्त- विषयक असारता का चिन्तवन करना और ध्यान कही है। अरहन्त, सिद्ध, मंत्रपद आदि के आश्रय से आर्त यान में दुःखरूप परिणाम रहता तत्त्वचिन्तवन करना संस्थानविय धर्महै । आत्ति = दुःख उसमें होने वाले को आतं ध्यान है। कहते हैं। (१३) पृथक्त्व वितर्कवीचार शुक्ल {५) हिसानन्द रौद्रध्यान कृत कारित ध्यान-अर्थ, योग व शब्दों को परिवर्तनसहित आदि हिंसा में आनंद मानना ब हिंसा के श्रुत के चिन्तवन को पृथक्त्व वितर्फवीचार लिए चितवन करना, हिंसानन्द रोद्रध्यान है। शुक्लध्यान कहते हैं । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (३१) - - - (१४) एकत्ववितर्क अवीचार-एक ही अर्थ में एक ही योग से उन्हीं शब्दों में श्रुत के चिन्तवन को एकत्ववितर्क अवीचार शुक्लध्यान कहते हैं। (१५) सूचनक्रिया प्रतिपाति-सयोग केवली के अतिम अन्तर्मुह में बार बादर योग भी नष्ट हो जाता है तब सूक्ष्म काययोग से भी दूर होने के लिए जो योग, उपयोग की स्थिरता है उसे सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति शुक्लध्यान कहते हैं । (१६) व्युपरतक्रिया निवृत्ति-समस्त योग नष्ट हो चुकने पर अयोग केवली के यह व्युपरकिया निवृत्ति नामक शुक्लभ्यान होता है। २२. आस्रव आत्रब-कर्मों के आने के कारणभूत भाव । को आस्रव कहते हैं । इसके ५७ भेद है ।। (१) एकान्त मिथ्यात्व-अनन्त धर्मात्मक वस्तु होने पर भी उसमें एक धर्मका ही श्रद्धा न करना एकान्त मिथ्यात्व है।। (२) विपरीत मिथ्यात्व-वस्तू के स्वरूप से विपरीत स्वरूप को श्रद्धा करना विपरीत मिथ्यात्व है। (३) संशय मिथ्यात्व-वस्तू के स्वरूप में संशय करना संशय मिथ्यात्व है। (४) वनयिक (विनय) मिथ्यात्व-देव, कुदेव में तत्त्व, अतत्व में शास्त्र, कुशास्त्र में, गुरू, कुगुरू में, सभी को भला मानकर विनय करना विनयमिथ्यात्व है। (५) अजान मिथ्यात्य-हित, अहित का विवेक न रखना अज्ञान मिथ्यात्व है। (६) पृथ्वीकायिक अविरति-पृथ्वीकाबिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को पृथ्वीकायिक अविरति कहते हैं । (७। जलकायिक अविरति-जलकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को जलकाय: अभिरति कहते हैं। (८) अग्निकायिक अविरति-अग्निकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को अग्निकायिक अविरति कहते हैं। (९) वायुकायिक अविरति-वायुकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को वायुकायिक अविरति कहते हैं। (१०) वनस्पतिकायिक अविरति-बनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को बनस्पतिकायिक अविरति कहते हैं । (११) सकायिक अविरति-यसकायिक (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय) जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को प्रसकायिक अविरति कहते हैं। (१२) स्पर्शनेन्द्रिय विषय-अविरतिस्पर्शन इन्द्रिय के विषयों से विरक्त न होने को स्पर्शनेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । (१३) रसनेन्द्रिय विषय-अविरतिरसना इन्द्रिय के विषय (स्वाद) से विरक्त न होने को रसनेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । (१४) घ्राणेन्द्रियविषय-अविरति-घ्राण इन्द्रिय के विषय से विरक्त न होने को धाणेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । (१५) चक्षुरिन्द्रिय विषय-अविरति-वक्ष इन्द्रिय के विषय से विरक्त न होने को चक्षुरिन्द्रिय विषय-अति (१६) श्रोत्रेन्द्रिय विषय-अविरतिश्रोत्र इन्द्रिय के विषय से विरक्त न होने को धोत्रेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२) चौतीस स्थान दर्शन - - (१७) मनोविषय-अविरति-मन के (४) क्षायिक दर्शन-दर्शना बरण कार्म के विषय से (सन्मान, आराम की चाह आदि से) क्षय से जो दर्शन प्रगट हो उसे क्षायिक दर्शन बिरक्त न होने को मनविषय-अविरति (केवल दर्शन) कहते हैं। कहते हैं। {५) क्षायिक सम्यक्त्व-इस का वर्णन (१८) से (४२) कषाय २५. इनका होचका हैं। वर्णन कपाश मार्गणा में हो चुका है। (६) क्षायिक चारित्र-चारित्र मोहनीय (४३) से (५७) योग १५. इनवा की २१ प्रकतियों के क्षयमे जो चारित्र हो उसे वर्णन योगमार्गणा में हो चुका है। , क्षायिक चारित्र कहते हैं। २३. भाव (७) क्षायिक दान-जो दानान्तराय के - भाव-अपने प्रतिपक्षी कर्मों के उपशम क्षय से प्रगट हो उसे क्षायिक दान कहते हैं । आदि होने पर जो गुण (स्वभाव याउदय की (८) क्षायिक लाभ-जो लाभान्त राय के अपेक्षा विभाव रूप) प्रगट हो उन्हें भाव क्षय से प्रगट हो उसे क्षायिक लाभ कहते हैं । कहते हैं--इनका उपादान कारण जीब है। (९) क्षायिक भोग-जो भोगान्तराय के अर्थात् ये जीव में ही होते हैं। अन्य द्रव्य में क्षय से प्रगट हो उसे क्षायिक भोग कहते हैं । नहींहोते; इसलिये ये जीव के निज तत्व या (१०) क्षायिक उपभोग-जो उपभोगाअसाधारण भाव कहलाते हैं । ये भाव ५३ होते तराय के क्षय से प्रगट हो उमें क्षायिक १. औपशमिक भाव २ है उपभोग कहते हैं। {११) क्षायिक वीर्य-जो वीर्यान्तराय के औपशामिक-अपने प्रतिपक्षी कर्मों के क्षय से प्रगट हो उसे आयिक वीर्य कहते हैं । उपशम होने पर जो गुण (भाव) प्रगट हों उन्हें औपशमिक भाव कहते हैं । ३. क्षायोपशमिक (मिश्र) (१) औपशमिक सम्यक्त्व-इस का वर्णन भाव १८ है हो चुका हैं । (२) औपशमिक चारित्र-चारित्र मोह क्षायोयमिक भाव-अपने प्रतिपक्षी कर्मों मीय की २१ प्रकृतियों के उपशम से जो चारित्र में से किन्हीं--कर्मों के स्पर्द्धको के उदयाभावी हो उसे औपशमिक चारित्र कहते हैं। क्षय से किन्हीं स्पर्द्धकों के उपशम से व किन्हीं स्पर्द्धकों के उदय से जो भाव प्रगट हो उन्हें २. क्षायिक भाव ९ है क्षायोपशमिक (मिथ) भाव कहते हैं । क्षायिक भाव-अपने प्रतिपक्षी कर्मों के (१२), (१३), (१४) कुज्ञान ३-इनका क्षय से जो गुण (भाव) प्रगट हों उन्हें क्षायिक वर्णन हो चुका हैं। भाव कहते हैं । (१५) से (१८) ज्ञान ४-इनका वर्णन (३) क्षायिक ज्ञान-ज्ञानावरण कर्म के हो चुका हैं। क्षय से जो ज्ञान प्रगट हो उसे क्षायिक ज्ञान - (१९, २०, २१) दर्शन ३--इनका भी (केवल ज्ञान) कहते हैं । वर्णन हो चुका हैं । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ २३ ) क्षायोपशमिकलब्धि ५दानान्तराय आदि के क्षयोपशम से क्षायोपशमिक दान आदि ५ लब्धि होते हैं । इनका वर्णन हो चुका है । चौतीस स्थान दर्शन (२७) क्षायोपशमिक वेदक सम्यक्त्वइसका वर्णन हो चुका हैं । ( २८ ) क्षायोपशमिक चारित्र या सराय संघम-अप्रत्याख्यानावरण ४ व प्रत्याख्यावरण ४ इन आठ प्रकृतियों के क्षयोपशमने महाव्रतादिरूप चारित्र होता है उसे क्षायोपशमिक ( सराग ) चारित्र कहते हैं । (२९) वेश संयम ( संयमासंयम ) - इस का वर्णन हो चुका हैं । ४. औदयिक भाव २१ होते है औदयिक भाव - अपनी उत्पत्ति के निमित्तभूत कमों के उदय से जो भाव प्रगट हां उन्हें औयिक भाव कहते हैं । (३० से ३३ ) गति ४- इनका वर्णन गतिमार्गणा में हो चुका हैं । (३४, ३५, ३६ ) लिंग ३- इनका वर्णन हो चुका हैं। (३७ से ४० ) कषाय ४ - इनका वर्णन हो चुका है। (४१ से ४६ ) लेश्या ६ - इनका वर्णन लेश्या मागंणा में हो चुका हैं । (४७) मिथ्यादर्शन - इसका सम्यक्त्व मार्गणा में बताया गया है । ( ४८ ) असंयम - इसका मार्गणा में हो चुका हैं । स्वरूप वर्णन संयम (४९) अज्ञान - ज्ञानावरण कर्म के उदय से जो ज्ञान का अभावरूप भाव है उसे अज्ञान भाव कहते है यह अज्ञान औदयिक हैं । (५०) असिद्धत्व - जब तक आठ कर्मों का अभाव नहीं होता, तब तक असिद्धत्व भाव हैं । ५. पारिणामिक भाव ३ है पारिणामिक भाव - जो फर्मों के उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम की अपेक्षा के बिना होवे वह पारिणामिक भाव है, ये ३ होते हैं । (५१) जीवत्व भाव - जिस से जीवे वह जीवत्व है । वह दो प्रकार का है । १ ला ज्ञान दर्शनरूप और २ रा दशप्राणरूप, इनमें ज्ञानदर्शनरूप जीवत्व शुद्ध पारिणामिक भाव है । और प्राणरूप जीवत्व अशुद्ध पारिणामिक भाव हैं । (५२) भव्यत्व- इसका वर्णन भव्यत्व मार्गणा में हो चुका हैं । (२३) (५३) अभव्यत्व - इसका वर्णन भव्यत्व गण में हो चुका हैं। २४. अवगाहना जिन जीवों के देह है उनके देह प्रमाण तथा देह रहित ( सिद्ध) जीवों के जितने शरीर से मोक्ष गये है, उतने प्रमाण अवगाहना का वर्णन करना इस स्थान का प्रयोजन हैं । २५ बंध प्रकृतियां - १२० होते है । २६ उदय -१२२ - १४८ २७ सत्व २८ संख्या २९ क्षेत्र३० स्पर्शन 27 13 13 " इनका वर्णन कोष्टकों में देखो । ३१ काल ३२ अन्तर (विरहकाल ) - ३३ जाति (योनि) - ८४ लाख है । ३४ कुल-१९९।। लाख कोटि कुल है । इन सब का वर्णन उत्तर भेदों की नामावली में किया है। वहां देखो । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान्य जीवों के सामान्य आलाप नं. स्थान पर्याप्त-कालमें । अपर्याप्त-कालमें । सिद्ध जीब १ गुणस्थान १४ १४ गुण स्थान | १४ गुण स्थान | अगुणस्थान २ जीवसमास १४ । १४ जीबसमास | १४ जीवसमास अजीवसमास ३ पयाप्ति ६ पर्याप्तियां संजीपर्याप्त । ६ अपर्याप्तियां इन्हीं संजी. | अतीत पर्याप्ति आहार ____ के होती है। जीवों के होती है। शरीर ५ मनःपर्याप्लिके बिना उक्त | ५ उन्हीं जीवों के अपूर्णता इन्द्रिय पाची ही पर्याप्तियां । को प्राप्त वं ही पांच आनापान अमंजीपंचेन्द्रिय पर्याप्तों अपर्याप्तियां होती है। भाषा सेलेकर द्वीन्द्रिय-पर्याप्नक | मन जीबों तक होती है। । ये छह पर्याप्तियां | ४ भाषा और मनःपर्याप्ति | ४ इन्ही एकन्द्रिय जीवों के के बिना चार पर्याप्तियां अपर्याप्तकाल में अपूर्णता एकेन्द्रिय पर्याप्नों के होती को प्राप्त ये ही चार अपर्याप्तियां होती है। ४ प्राण १० १० प्राण संजीपंचेन्द्रिय पर्याः | ७ आनापान वचनबल, मनी- अतीत प्राण स्पर्शनेन्द्रिय प्तकों के होते हैं। बल बिना शेष सात प्राण | रसनेन्द्रिय ९ प्राण मनोबलके बिना शेष | संजीपंचेन्द्रिय अपर्याप्तकों । घ्राणेन्द्रिय नोप्राण असशी-पंचेन्द्रिय | के होते है । चक्षुरिन्द्रिय पर्याप्तकों के होते हैं। । ७ आनापान, वचनबल बिना अपर्याप्त अवथोत्रेन्द्रिय ८ प्राण श्रोत्रन्द्रिय प्राण- | सातप्राण अमंजी पं. अप- स्था में जिन मनोबल बिना पंप ८ प्राण चतु- र्याप्नकों के होते हैं। जिन प्राणों को वचनवल घटाया है वह रिन्द्रिय जीवों के होते हैं। । ६ प्राण आनापान, वचनबल कायवल ७ प्राण चक्षुरिन्द्रिय प्राण- | चिमा शेष छह प्राण चतु, अवस्था की श्वासोच्छ्वास बिना शेष ७ प्राण रिन्द्रिय जीवों के होते हैं । अपेक्षा है परंतु आयुप्राण श्रीन्द्रिय के होते हैं । ५ आनापान, वचनवल बिना लन्धिरूप सब ये दश प्राण है। ६ प्राण प्राणेन्द्रिय प्राण- | शेष पांच प्राण त्रीन्द्रिय प्राण अपर्याप्त बिना शंष ६ प्राण | जीवों होते हैं। अवस्था म भी द्वीन्द्रिय के होते हैं। पर्याप्तवत ४ प्राण रसनेन्द्रिय वचनबल । ४ आनापान, वचनबल बिना । सनि गिने जाते है। ये दो के बिना पाष चार | दोष चार प्राण बोन्टिय दिखा षट्खडाप्राण एकन्द्रिय के होते है।। के होते हैं। गमकाल प्रह४ प्राण केवली भगवान के ! ३ आनापान के बिना शेष पना गाथा पांच इन्द्रिय व मनोबल | तीन प्राण एकेन्द्रिय के |११९ को छोड़कर शेष चार | होते हैं। प्राण होते हैं । | ३ योग निरोध के समय । ... । । सुचना उपयोग Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन वचनबल का अभाव हो जा ने पर कायबल, आनापान, और। आयु के तीन प्राण होते हैं। २ प्राण तेरहवे गुण स्थान के अंत में क्रायबल और आय ये दो प्राण होते हैं। १ चौदह मुंग स्थानमें केवल एक आय प्राण होता है।। क्षीण संज्ञा ५ संज्ञा ४ आहार, भय, मंथन और परिग्रह संज्ञा ये चार है। ६ गति ४ ४ नरकगति,तिर्यंचगति,मनुष्य ४ पर्याप्तवत् जानना __ गति, देवगति ये चारगति | सिद्ध गति ७ जाति ५ ८ काय ६ ९ योग १५ ५ एकेन्द्रियादि पांच जातियां | ५ पर्याप्तवत् जानना । अतीत जाति होती है। ६ पृथिवीकाय आदि छह | ६ पर्याप्तवत् जानना । अतीत काय काय होते है। ११ मत्यमनोयोग, असत्यम- १ औदारिकमिथकाय योग, | अयोग नोयोग, उभयमनो योग, २ वक्रियक मिश्रकाय योग, अनुभय-मनोयोग, सत्य- ३ आहारक मिथकाय योग, वचनयोग, असत्य वचन तथा कार्माणकाय योग योग, उभयवचनयोग, यह ४ होते है। अनुभय वचनयोगऔदारिक काययोग, वैक्रियककाय योग आहारकाय योग यह ११ योग । अपगत वेद १० वेद ३ नपुंसक वेद Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन स्त्री वेद पुरुष वेद ये तीन वेद है। ११ कषाय ४ १२ ज्ञान ८ १३ संयम ४ अनंतानुबंधी अप्रत्या ख्यान | पर्याप्तवत् अकषाय प्रत्याख्यान, संज्वलन, क्रोध भान-माया-लोभ ये चार, कषाय होती हैं। ८ कुमति, कुवत, कुअवधि- | कुअवधिज्ञान घटाकर शेष ७ । केवल जान ज्ञान, मति, श्रुत, अवधि, | जान पर्याप्तवत् मनःपर्यय और कंवल ज्ञान ये ८ ज्ञान होते हैं। ७ असंयम संयमासंयम, संयम, सामायिक, परिहारविशुद्धि । संयमासंयम, परिहारविशुद्धि, | संयम,संयमासूक्ष्म सांपराव और यथा सुक्ष्म सांपराय घटाकर शेष ! संयम,असंथम ख्यात ये ७ होते हैं। | ४ संयम पर्याप्तवत् रहित ४ चक्षदर्शन, अचक्षुदर्शन, पर्याप्तवत् केवल दर्शन अवधिदर्शन और कंबल दर्शन ये ४ होते हैं। ६ द्रव्य और भाव के भेद | पर्याप्तवत् अलेश्या से छह लेश्याएं होती हैं। २ भव्य और अभव्य जीव । पर्याप्तवत् अनुभय १४ दर्शन ४ १५ लेश्या ६ १६ भव्य २ १७ सम्यक्त्व ६ ६ सम्यक्त्व मिथ्यात्व, सासादन मिथ घटाकर शेष, पर्याप्त- क्षायिकमिध, उपशम. क्षयोपशम व मम्यक्त्व और क्षायिक ये छह होते । १८ संशी २ अनुभय १९ आहारक २ २० उपयोग २ २ संज्ञी और असंजी ये दो । पर्याप्तवत् होते हैं। १ आहारक आहारक और अनाहारक २ साकार उपयोग और पर्याप्तवन् अनाकार उपयोग भी होते । युगपत उपयोग Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१ ३०-पान सामान्य पाना पर्याप्त मिथ्यात्व गुण स्थान में सफाप्ति १जीत के नाना एक जीव के नाना जीवों की अपेक्षा समय में एक समय में गागा जीव को अपेक्षा सप जीव के माना समय में . जाब के एक भाप में मशन सन १ गुगण मगन चारों गनिनों में हरक मिच्याव क पि गुगार जन जननामि गुणमि गुगा। १ मिच्याव जानना की नं. १ १६ देखी : त्रीव ममान ११ १ ममान १ नापन (केन्द्रिय न न गयो ।) एहिन्द्रिय मृा पर्याप्त मपपर्याः । (२)" "प्रया (२) " वारर ' i) चादर . (३) वादर पनि जान्दिन दबाब निर्या()" "घपया (4) श्रीन्द्रिय " (४) त्रीयि " . 122) डीन्द्रिय पर्वत (2) चनुर्तिव्य" । (४) नुमिन्दिर " (६)" अपयांप्ट (असंका प.. | वसा पं. (७) वीन्द्रिय पर्याप्त भयो पन्द्रिय" (७) मी प. . (८) " पति र्यात प्रथा ये ७ अर्याम अपन्या (६) चतुरिन्द्रिय पर्वात (नरक मन-ब- गनियों में .. १गमाम १ समान 2) रक-मनष्य-देव गुमास समान (१२)' अपर्याः हरेक में कोनं१६-१८- to -१-मति नेहम्म में का ?:-१८-फोनं १-१%(११) अनंती पं. पाठ हो निम्तिव पांग जानना १६ देखी संजी पदिय अपर्यात १६ दयो । १२ ग्डो (१२) " पं० प्रन्यन नं१५.१८- देखो | अन्ना जानना (३) मंडी पं० पर्याप्त । (२) चि गनि में | १ सयाम | १ मा को नं. १६-२८-१६ दना समान । १ समास (१४), "अपर्या | ७ पर्या परम्या डानना की.नं. १७ देखो को नं०१७ देवी (3) निरंच पति में मो० नं०१७ देखी क.नं. १७ देखो १४ जीव समास को नं. ३ देना ७प्राप्त रवस्थ जानना जानना कोन. १७ सो Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P ३ पर्या (१) आर्या (२) शरीर (३) इि (४) ध्यानोच्छवास प० (५) भाषा पर्याप्त (६) मन पर्याप्त ये ६ पर्याति जानना ५ संज्ञा " आहार, भय, तीस स्थान दर्शन ૨ te ४ प्रागा (१) प्रायु प्रा (२) कायल प्राण (३) इन्द्रिय प्रा ५. (स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, श्रोन्द्रिय प्राण ने ५) (४) (५) वज्रमवन प्राण, (६) मनोवल प्रागा, ये १० प्राय जानना ६-५-४-६ के मंग (१) नव-मनुष्य-गति में हरेक में ६ का भंग को० नं ७ १६-१८ - १६ देवो (२) निर्मक गति में ६-२-४-६ के भंग को० नं० १ ( २६ ) कोष्टक ०१ (२) निर्यच गति में i १ मंग १ भंग को० नं० १६-१०-कीनं १६१ १६ देखी १६ देखो ? भंग को० नं० १७ देखी ? भंग कॉ० नं० १३ देखो १० १ मंग १ भंग १०-६-८-६-६-४-१० क० नं० १६-१०- कोनं १६-१८ के भंग १६ देखी १६ देखी १) नरक- मनुष्य- देवगति में हरेक में १० का भंग कोनं० १५-१६ देखो ९ मंग १ भंग १०-२-६-७-६-४- १० को० नं० १७ देखो ! को० नं० १७ के भंग को० नं० १७ देखो: देखो | १ भंग १ भंग (१) चारों गतियों में हरेक में को० नं० १६ से १२ को० नं० १६ से देखो १६ देखी T 1 | उपयोग रूप ३ पय सवन सूचना-पत्र २४ पर देखो ३-३ के भंग 1 मन भाषा-वा (२) (४) चारों गतियों में हरेक में ३का संग प्राहार, शरीर, पर्यात ३ का भंग जानना ००१०१२ दे 6. मनोल वचनबल, वागच्छवास ये ३ घटक (७) ७-७-६-५-४० के ग (१) नरक मनुष्यदेव में हरेक म २. ७ का भंग पो० नं० १६ १५-१६ मिध्यान्य गुरण स्थान में (१) चारों गतियों में हरेक में ७ १ मंग ० नं० १६ से १६ देखी 2. भंग (२) दिर्यच गति में १ भंग 19-७-६.५-४-३७ के भंग को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखी ८ १ भंग को० नं० १६ से १९ देखो १ मंग को० नं० १६ से १६ देख को० नं०१६-१०- कोनं० १६-१८१६ देखी १६ देसो १ भंग १ मंग को० नं० १७ देखी १ मंग को० नं० १६ से १६ देखी Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन । २७ ) कोष्टक नं०१ मिय्यान्व गुण स्थान में - - मैथुन, परिग्रह ४ का भंग को.नं. १६ | ४ का मग को गजानना से १९ देखो से देखो पति गति गनिमति नरक, नियंत्र- मनुष्य | चारों गति जानना नारों में से कोई 1 में मे कोई । चान गति जानना चारी में कोई चारों में से कोई देवगति ४ जानना पति जानना । यति पति बानना । गति जानना ७ इन्द्रिय जाति ५ । १बात जाने , य, व-: १बानि । जाति (१) एकेद्रिय जानि (१) नाक-माप्य-देवमति में को•०१६-१८-कोनं०१६-१८- गति में हरेक में को.नं.१६-१८-कोनं १६-10(२) हीन्द्रिय ज नि । १६खो १६ देखो १ पवेन्द्रिय जानि जानना १६ देखो १६ देखो (३) वीन्द्रिय व नि । पचन्द्रिय जाति जानना | को.नं.16-१५-१६ (१रिद्रय जानि को नं. १६-१८-१६ देखों देखो (५) पचेन्द्रिय जाति नियंच गति में जाति । जाति (3) तिर्यच गति में | जाति जाति ५-१के भंग कोन. १७को नं. १ देखो को.नं. १ ५-१के भंगको न०१७ देखो | को सं० १७ देखो दहो । को नं. १७ देखो | देखो काय पृथ्वी, पप (जल), 1) नरक, मनुष्य, देवगति में को.नं. १६-१८-कान: 11-16- (१) नरक, मनप्य, देव-को.नं.१६-१८-कोन०१६-१.. तेज (अन्नि), वायु, हरेक में १६ देखी M E १६ देखो मा सात महल म । १६देता १६देखो वनस्पनि, घसकाय, १जनकाय जानना | १ सकाय जानना ये काय जानना कोनं १६-16-देखो कोनं०१६-१५-१६ देखो (२) नियर गति में | काय १काव । (२) नियंच गनि में काय काय - के भंग को नं० को.नं. १७ देलो कोनं०१७ देलों -के मंगको नं०१७ देतो कोनं०१७ देखो १७ देगा। को००७ देखो एवोन 10 रयोग २ माहारक मिथकाययोम श्री. मित्र कायबोग, | श्री. मिथ कायांग, मर० काययोम, ये ।। 46 मिथ बाबयोप, यावे. मिश्रकाययोग घटाकर (११) कामणि काययोम, भौर कामारग कापयोग ये ३ पटाकर (१०) पोग जानना ९-२-१-१ के अंग १-२ ने भग (१) नरक-मनुष्य-देवगति में को.नं. १६-१८-कोनं०१६-१८- (१) चारों गलियों में को .१६ से को0नं०१६ से हरेक में १९ देस्रो १६ देखो । हरेक में १६ देखो १६ देखो । , भंग Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २८ ) कोप्टक नं. १ चौतीस स्थान दर्शन मिथ्यात्व गुरण स्थान में का भंग हो० न०१६-१-- को नं०१८ मा (२) नियंगति में भंगपंग है-२-१-६ भंग को००१ देखो कोनाचा i को नं. १७ देवी १० वेद १ भंग बंद नपुंसक बंद, स्त्री वेद (1) नरक गति में को० नं. १६ देको कोनं० १६ देवी (1) नरक गति में न०१६ या कोनं १ देखो पुरुष वेद ये ३ जागना १ नमक बेद जानना |" नामक वेद जानना की नं. १६ देखो | कोः नं०१६ मा ' (२) निर्यच गति में भग वेद तिरंच गनिमें १ भंग दद ३-१--२ के भंग को.नं. १७ देखा कोन०१७ देला ३-1-के भंग को० न०१७ देखा को नं. १७ देखो को नं०१७ देखो | कोनं०१७ दलो (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १वेद (2) मनुष्य गति में । गारे भंग १ वेद ३-२ केभंग को नं०१८ देखो को न देवा -के भंग को नं०१८ देषो कोनं० १८ देन्त्री को १८ देखो | को नं०१८ देखो (४) देव गति में सारे भंग वेद (४) दत्र गति में सारे भंग वेद -के भंग को० नं १६ दवा को नं: १८ देखो २-१ भंग को न०१६ इन्त्री कोन १६ देखो को नं. १६ देखो को २०१५ देखो ११ कषाय मार भंग १ भंग २५ सारे भंग भंग अनन्तानुबन्धी कषाय । (१) नरक गति में ! --- के भंग --हफे भंगों () नरक गनिम -:- के भर --- के ४.अप्रत्याख्यान क४२३ भंग को नं१८ देना में गे कोई : भंग २३ का भंगको नं०१८ देखी भगी में से कोई प्रत्यास्यान कषाय ४, को० न० १६ देखो । की नं. १६ देखो १ भंग संज्वलन कषाय ४, (२) तिर्यच गनि में (२) तियन गति में मार भग नोकपाय थे २५ २५-२३-२५-२४ के भंग , २५-२:-२५-२४ के भंग 5-5-- के भंग कवाय जानना को० नं०१७ देखो : को० नं० १७ देखो (३) मनृत्य गति में सारे मंग १ भंग (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग २५-२४ के मंग -७-८-६ के भं6-७-८- २५-२४ के मंग 3-2-6 के भंग | 5-3-८ के को० नं. १ देखो को नं. १८ देतो मंगों में से कोई . का. नं०१८ देखो को नं. १८ देखो भंगों में से कोई १ मंग Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( २६) कोप्टक नं. १ मिथ्यात्व गुण स्थान ( बगनि में ०४-२२ के भंग कोनं०१६ देखा तारे भंग १ भंग ७-5- के भग | -- को न याभगी में गे काम 14) देव गनि म . २४-२४-०३ भंग की नं दला मा भंग १ भंग '5--२ भंग के को० न. १ को भंगों में से कोई १२ नान सारे भंग ।मान मा भंग १ज्ञान कुमनि, नुक्षु नि, (१) नरफ गनि में को.नं. १६ देखो कोनं १ दधी अविमान घनाकार (२) को ना १६ देखा नं. १६ देखो कभवधि ज्ञान ये (1) ३ का मंग (E) कपि में। भंग नानाभन | (B) तिर्यत्र गति में को. २०१७ देखो को नं १७ वेला कॉल नं. हो । २-- के भंग (२) निधन नगि में १ मा ज्ञान को नं. १७ देखो सारे भग जान के भंग को देखो कोन० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ० नं०१८ दखो कोन- १ नयाँ को० न०१७ देलो इ.३ के भंग ।(३) मनुष्य रवि | सारे भंन १ज्ञान को००१८ देखी | सारे भंग १जान २-२ भंग की नं० १८ देवो कोनं. १८ देखो ' (४) देव भनि में को नं. १६ देशो कोन०१६ घेतो पो नो । ३ का भंग (४) देवनि में सारे भंग ज्ञान का० .० १९ देखो २-२ के भग का .नं११ देखो कोनं०१६ देखा को न देतो नमा-यहां कुअवधि जान में मांग नहीं होना. (देगा मो०० गा० ३२३) १३ संयम असयम । (१) चारों गतियों में हरेक में (१) चारों गतियों में १प्रमंचम जानना वा० नं०१६ स १६ देखो १ संयम जानना का० नं०१६ ६ देग्यो। १४ दर्शन १ भंग । १ दर्शन । १ भंग १दन I(१) नरक गति में को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो (१) नरत गति में मो० नं०१६ रो कोनं०१६ देखो चक्षु दर्शन ये (२) २का भंग | २ का अंग i को नं०१६ देसों | कोनं १६ देखो Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं. १ मिथ्यात्व गुण स्थान में लेण्या १५ श्या कृष्ण-नोल-कापान, पीत, पय, शुक्ल ६ संख्या जानना -- - - - - (क) तियन गति में १दान (२तियच गति में भंग ।। दर्शन १-२-२ के भंग को० नं०१७ देखो का नं. १७ देखो १.२.२-२ के भंग । को.नं. १७ देवो कोनं०१७ दन्दो कर न०१७ देखो को.नं. १७ देखो () मनुष्य मति में मारे भंग १ दर्गन (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ वर्णन २-२ क भंग कानं. १६ देखो कोनं। देखो २-२ केभंग को०.नं. १८ देती को नं १८ देखो कोल नं०१८ देखो को० नं०१८ देखो | (४) देव गति में मंग | १दन () देवगति में । भंग । १ बर्शन २ का मंग का नं १९ देखो नं १६ दरो, २..के भंग को नं.१६ रेखो को न देखो को नं. १६ देखो को नं.६ देखो (2) नरक गति में की नं०१६ देखो को नं०१६ देखो (१) नरक गनि में को नं. १६ दलो को नं. १६ देखो का भंग ३का भंग गोल नं०१६ दमो को.नं.१६ देखो । (२) निर्यच गदि में १ भंग जेन्या ) तियर गति में १ भंग १ लेश्या ३-६- के भंग कोन १७ देवो कोन०६७ देतो 3-1 के भंग का नं. १७ देखो को नं १७ देयो कोनं०१७ देखो को० नं०१७ देवो । (1) मनुष्य गनि में सारे भंग । १ लेश्या (1) मनुष्य गति में । गारे भंग १ लेश्या को नः १८ देखो कोल्नं.१८ देखो -१ के भंग को नं. १ को कोनं १८ देवो कोल नं. १देनो । को नं.९८ देखो (१)वगति में १ भंग ले श्या ( (स्वगनि में वगनि में १ मंः । १ लाया १-१-१ के भंग को नं. ११ देखो बोनं १६ देखो -:- के भंग कोर नं०१६ देवी को न १६ देखो को नं. १६ वो योनं १९ देखो १ भंग भंग | चारों मयिों में हरेक में कौर नं. १ मे १६ को नं. १ मा गतियों में हरेक में कोः नं. १ग । बाय १६ २ का मंग देखो | १९ देखा १६ देसी ।२ का भंग १६ देखो १६ देखो को नं० १५ से १६ देखो कोनं. ११३ दंखों वागें गतियों में हरेक में मिथ्यात्व | मिश्याग्ब चारों गतियों में हरेक में| मिध्याव मिथ्यात्व मिध्यात्व जानना । १.मिथ्यात्व जानना को००१८ मे १६ देखो कान.१ मे १६ देखा। भन्य, अभय १३ न्याय मिथ्यात्व Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक ०१ मिथ्यात्व गुरु स्थान में को नं. १७ देखो । ग्रहस्था ५. - - - - - १८सनी १ भंग १ भग प्रसंजी, मंजी (१) नरक, मनुष्य, दंवगति में | कोड नं.१६.१-कानं०१६-१८- (१) नरक, मनुष्य, दत्र- की नं. -१८. कोः नं.१६. हरेक में १६ देषो । १६ देगी गति में हरेक में दो १-५१ दवा १ मंदी जानना को जानना कानं० १६१८-१६ देखा कोन 15-2: देखा । (२) निर्यच गति में १ भंग । १ मंग (२) निर्यच गनिमें भंग । मंग १-१-१ के मंग को० नं0 लो कोनो १-१-१ के भगको नं. १ को १७ देखो को १७ देखो १६ ग्राहारब आहारक, अनाहार | चारों गनियों में हरेक में थाहारक । माहारवा चारों गतियों में हरेक में । को नं०१६ से कोनं १ मे १ अाहारक जानना १-१ के भंग १६देखो . | को० न०१६ से १६ देतो को० नं.१६ से १६ देदो २० उपयोग १ भंग १:पयोग १ भंग | उपयोग शानोपयोग ३, (१) नरक गति में हरेक में को०१६ देवों को०१६ देखो अवधि शान पटाकर ( दर्शनोपयोग २, ५ का भंग (१। नत्र गनि में को. नं० १६ देशो की नं.१६ देख वे ५ उपयोग जानना को न०१६ देखो : ४ का मंग (२) निर्यन गति में १ भंग १ उपग को नं.१६ देखो ३-४-५-1 के मंग को० नं०१०चो को००१७दखा () नियंच गनि में १ भंग १ उपयोग का न. १७ देतो २-४-४-४ के भंग का० न०१७ देगयो कोनं १७ देखो (2) मनुश्य गति में १ भंन । १ उपयोग कोल नं: १७खो ५-2 के भंग को.नं. १८ देखो कोल्न- १८ देखो (1) मनुप्य गति में सारे नंग । १ उपयोग को० नं० १८ देखो ४.४ के भंग कोः ०१ देखो कोन०१ देखो (४)य गान में भंग १ उपयोग को नं. १८ देखो । ५ का भंग को० नं० १६ देखो बोन१९ देखो (4) देवगति में मंग ।। उपयोग को० नं०१६ देखो के भंग को२०१६ देखो को२०१६ देखो २१ ध्यान को नं० १६ देवो । (१)शातध्यान ४, १ भंग १ ध्यान : : भन ध्यान (रष्टवियोग, मनिष्ट | (१) चारों गतियों में हरेक में । को० नं०१६ से | कोनं १६ से (१) चारों गलियों में हरेक में को: ०१६ से कोन०१६ से सयोग, पीड़ा चितन, ८ का भंग १६ देखो ११ देखाएका भंग १६दंडो १६ देखो को नं० १६ से १६ देखो। को.नं. १६ से ११ देखो' Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ? निदान वध से 5) (२) चैत्र ध्यान ४ (हिंगाम मृपानन्द चीन परिग्रहान्द २२ वाखव ५५. झाग १, १. आहारक काय ये घटाकर (५५) २३ भाष मिथ्यादर्शन अश्न १ बज्ञान १, ६४ , दर्श अन५ । गति ४ कपाय ४ ६ ३(४) (१) नरकगति में ८६ भंग फो० नं० १६ देखी (२) निच तिने ३६-३८-३१-४०-४१ २१-५० भंग T ! ५२ प्रचि १, fait ?. काग १. को० नं० १७ (३) मनुष्य गति में ५२-५० के भंग को० नं० १० ४) देव में ५००४ के भंग को (3) (१) नरकगति ܪ २६ को ५६ # २४-२५-०७-३१०२७ के को० न० ६० देखी i ( ३२ । कोप्टक सं० १ सारे नंग सारे भंग ००१६१६ सारे भंग कोनं १७ देखी 1 i १ भंग १८ देखी ६ भंग को० नं० १६ देखी १ भंग १ भंग मारे भंग मम वचनयोग ४ ० योग १. वं 3 काययोग ११० कर (२५) (१) नरक गति में ८२ भंग कोनं (२) गि १३३६-४३४४-४३ के भंग ००१० | ( ३ ) मनुष्य गति में १४३ ग ००१ देखी ४) गति में १४२ १ मंग भंग ६ १. मंग मियानगुणस्थान में ०१६ खो ग ३३ सारे मंग को० नं० १६ १६ अधि ज्ञान पटाकर (==) (१) नरकग में २५ का नग १७०० १६ सारे भंग सारे भंग १ भंग को० नं० १६ देखो का०० १६ देखी 1 १ भंग 5 नारे भंग १ भग को० नं० १७ देखो को०० १७ देवो १ भंग को० नं० १= देवो ० नं. १० नंग नं०१८ १ भग १ भंग ० नं०१२को नं० १० गारे भंग १ मंग १६ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.१ मिथ्यात्व गुण स्थान में १ मंग मसिद्धत्व १, !(3) मनुप्य गति में भंग (२) नियंच गति में । मारभंग भंग पारिगामिक भाव ३, ३१-२७ के भंग कोन. १८ देखो को२०१८ देखो २४-२५-२-२२-२४ भंग की नं०१३ देवो कोनं०१० मा ये ३४ भाव जानना फो० नं१८ देखो को० नं०१७ देखो (४) देवगति में । १ भंग १ भंग (B) भनुज गति में कोई भंग । भम २५-२-२४ के भंग को०० १६ देखो को.नं.१६ देखा ३०-२४ के भंगको न०१८ देखो को नं०१ देत को० नं०१६ देखो को न०१- देखो । | (१) दंव गति में १ भंग । १ भंग । २६-२६-२३ के भंगको नं १६ देखो कोम १९टेन को नं० १६ देखो २४ अवमाहना-जघन्य अवगाहना बनाल के पसंख्यात भाग जानना, (यह अवगाहना माय पर्याभक जीव की है।) उत्कृष्ट अवगाहना - १००० (एक हजार) योजन को जानना, (वह मबगाना स्वयं भूरमग सरोवर का कमन (धनस्पति काय और स्वय मुग्नगा समुद्र में पंचेन्द्रिय महामत्स्य की होती है। विशेष खुलासा को न०१६ मे ३४ देखो। २५ बंध कृतियाँ-११७ बंधयोग्य १२० प्रकृतियां जानावरणीय ५, दर्शनावराय , पंदनीय २. मोहनीय २८, (नम्पग्मिध्यान्त्र, सम्मान ये २ घटाकर २६) माबु ४, नामकर्म के ६७ (स्मोदिक ४, गनि ४, जाति , गगैर ५, संस्थान ६, अंगोपांग , संहनन ६, मामपूर्षी ४, विहायोग्दति २, नुरुलघु १, उपधात १, परधान , उपद्रवाममालप, उद्यान , स्थावर १, बादर १, मूक्ष्म १, पर्याप्त १, भपयाप्त १, प्रत्येक गरीर १, साधारण शरीर , स्थिर १, मन्धिर, मुभ १. अशुभ १, मुभग १, दूर्भग १, सुस्वर १, दृस्वर १, ग्रादय १. मनादेय १. याः कीनि १, पण: प्रति १, निनांग १, तीर्थकर १, ये ६५) गोत्र २, अन्नराव ५, ये १२० प्रति जानना, इनमे गे माहारकादक ३, नीयंकर प्रकृति ये ३ प्रकृति घटाकर ११७ प्रकृति जानना। २६ उदय प्रकृतियां-११७ उदययोग्य १२२ प्रकृतियां-वंघ योग्य १२. प्रकृतियों में मिथ्यात्व प्रति का उदय के यम पनीनवड सप २ में पातो है, (मिथ्यात्व, सम्बग्मिथ्यास्व, सम्यत्र प्रनि ३) इसलिये उदय प १२ प्रतियां जानना, इनमें से चाहारक दिक २, नाबंकर प्रकृति १, सम्यम् मिथ्यात्व १, मम्यक् प्रकृति, इन पांच प्रकृतियों का उद्धा इन गुना स्थान में नहीं होता, इसलिये १२२ में से प्रकृतियां पटाकर ११७ जानना। २७ सत्व प्रकृतियां-१४८ नामकर्म को जिन २६ प्रकृतियों का अर्थात् स्पर्श ८, ग्म , गंध २, , न २ प्ररियों में में म्पर्श ? म ?, वर्ग १, इन । प्रकृतियों का ही बंध होता है। इमलिथै य । प्रतियां घटाने में अंय १६ प्रातिया और इभी दर बंधन १, सघात ५ इन १० प्रकृतियों का पांच शरीर के साथ प्रविनाभावी मम्बन्ध र १० प्रहनियों का अलग बन्ध Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ २३ ३० ३ ३२ ३३ ३४ ( ३१ ख } नहीं होता इसलिये स्पर्शादि १६ और ये १० इन २६ प्रकृतियों का बन्ध में अभाव दिखाया गया था वह सत्ता में धाकर जुड़ जाती है। उदययोग्य १२२ में से छोड़ी हुई २६ प्रकृतियों को जोड़कर सम्रारूप १४८ प्रकृति जानमा )। संख्या- प्रनन्तानन्त जोब जानना । क्षेत्र—जन रहने का स्थान सर्वलोक है । यहां क्षेत्र स्थावर जीव की अपेक्षा जानना ( सकाय जीत्रो का क्षेत्र मा को जानना । स्पर्शन- सर्वलोक (विग्रह गति में और मारणांतिक समुद्घात की अपेक्षा जानना) फाल जीव निरन्तर रहने की अपेक्षा समय वह काल कहलाता है । नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल अर्थात् सर्वलोक में निरन्तर मिथ्या दृष्टि पाये जाते हैं। जैसे सूक्ष्म निगोदिया जांव लोककाश के सर्व प्रदेश में मौजूद है, एक जीव अनादि मिव्या दृष्टि अनादि काल में चला भा रहा है। सादिमिय्या दृष्टि निरन्तर अन्तर्मुहूर्त से देशांन अपुद्गल परावर्तन कान तक रह सकता है। इसके बाद सम्यक्व ग्रहण करके निश्चय रूप से मोक्ष में चला जायगा । अन्तर - मिथ्यात्व छूटने के बाद दुबारा जितने समय के बाद मिथ्या दृष्टि बने वह समय अन्तर कहलाता है। नाना जीवों की अपेक्षा कभी भी अन्तर नहीं पडता । एक जीव का मिथ्यात्व छूटने के बाद श्रन्तर्मुहुर्त तक उपदान सम्यग्दृष्टि रहकर फिर दुबारा मिथ्या दृष्टि बन नकता है। मिथ्या दृष्टि जीव जब क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि बन जाता है तब वह जीव अगर क्षायिक सम्यग्दृष्टि न बने तो १३२ सागर काल के बाद फिर मिथ्या दृष्टि बन सकता है । जाति (योनि) - ८४ लाख योनि जानना । उनका विवरण पृथ्वीकाय ७ लाख, जलकाय लाख, अग्निकाय ७ लाख, वयुका ७ लाख नित्यनियोग ७ लाख, इतर निगोद ७ लाख, प्रत्येक वनस्पति १० लाख, दीन्द्रिय २ लाख, भीन्द्रिय २ लाख, चतुरिन्द्रिव २ लाख पंचेन्द्रिय पशु ४ लाख, तारको ४ लाख, देव ४ लाख, मनुष्य १४ लाख इस प्रकार ८४ लाख योति जानता । कुल – १६६ ।। लाख कोटिकुल जानना, उनका विवरण पृथ्वीका २२ लाख कोटि, जलकाय ७ लाख कोटि परिनकाय लाख कोटि, वायुकाय ७ लाख कोटि, वनस्पतिकाय २८ लाख कोटि हीन्द्रिय ७ लाख कोटि चीद्रिय लाख कोटि चतुरिन्द्रिय लाख कोटि जनचर पंचेन्द्रिय १२ ।। लाख कोटि स्थलचर पंचेन्द्रिय १० लाख कोटि, नभचर पंचेन्द्रिय १२ लाख कोटि छाती चलने वाले सर्पादिक है लाख कोटि, नारकी २५ लाख कोटि देव २६ लाख कोटि, मनुष्य १४ लाख कोटि इस प्रकार २६२ ।। लाख कोटि कुल जानना । सूचना – कोई प्राचार्य मनुष्य गति में १२ लाख कोटि कुल गिनकर चारों गतियों में १६७।। लाख कोटि कुल मानते है। गोटमार - जीव कांड गाया १९३ मे ११६ के अनुसार । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर २ सामादन गुण स्थान क्रम स्थानाम मामानमाला पर्याप्त अपर्याप्त मामान आलाप एक समय में माना जाबों ? समय में एक जीब को अपेक्षा बालाप | की अपेक्षा पालाप मामान प्रालाप १ ममय नाना जीव की एक समय मे १ जीव अपेक्षा गारापकी अपेक्षा पालाप १ मामादन १सासादन | गुला स्थान २ जीव समास संजी पंचेन्द्रीय | पर्याप्ति अपर्या तक केन्द्रीय सूक्ष्म अपर्याप्त " वादर " वे इन्द्रीय ने इन्ट्रीय चौ इन्द्रीय असंजी पंचन्द्रीय " मंशीप चेन्द्रीय " सूचना माहार पर्याप्त तक ही सासादनी रहता है उसकी अपेक्षा ये सात स्थान शंटे है परनु शरीर पर्याप्ती प्राप्त होते ही मिथ्या दृष्टि बन जाना है। ६-५सर्व अवस्था कोई १ अवस्था लब्धि का पर्याप्त बत प्रपनी अपनी पर्याप्तो प्राधान | उपयोग रूप । हो कोष्टक | प्रमाण गः अबस्वायें | कोई अवस्था अपनी अपनी अपने अपने सामास सामास प्रमाण प्रमाण २ पर्याप्ती काठक १ प्रमागा संज्ञी पंचेन्द्रीय पर्याप्त ही होता है १० ४ प्रारा १०१० कोष्ठक १ प्रमाण संत्री पंचेन्द्रीय पर्याप्त हो होता है ५संजा ४४४ कोकप्रमाण Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ गत कोक १ प्रमाण ७ इन्द्री पांच कोहक १ प्रमाण चौतीस स्थान दर्शन - काय 5 कोष्ठक १ प्रमाण १ संज्ञी पंचद्रीय त्रस १ योग कोष्टक १ प्रमाण १० वेद तीन कोष्टक १ प्रमाण ११ कषाय कोष्टक १ प्रमाण १२ ज्ञान तीन कुमति श्रुति कुम ३ संगम प्रनंयम २५ संज्ञी पंचेन्द्रीम १३ काय योग कारमा कार्य योग घठाकर ३ चौदारिक मित्रकाम नियंत्र और मनुष्य में काय योग चटाकर योग नारकी और देव के प्रौदारिक वैकुयक मिश्र काय योग बटाकर E २५ ४ 9 ܕ -- के मंग कोष्टक १८ प्रमा ३२ के भंग तीन का मंग कुमति कुति कुअवधि दो का भग कुमति कु. नि ( ३४ ) कोष्टक नम्बर २ | ५ कोई गति कोई १ योग कोई १ बंद कोई १ भंग कोई १ कुनाम ६ सासादनी मरकर नरक में नहीं जाता x माहार पर्याप्त तक ही सासादन गुरंग स्थान रह सकता है ४ कोप्टक १ मा आहार पर्याप्त तक ही ३ श्रीदारिक मिय कृषक मिश्र कार्मारण ये तीन काय योग ३ मराठी गोमट सार कर्मकांड कोष्टक २१ प्रमारगु २५ २ कुमति 1 भासादन गुण स्थान ५. 8 मासादनी मरकर अग्नि काय वायु काय में जन्म नहीं लेता है १ ७-६ के भंग पर्याव २ का मंग कोई १ इन्द्री कोई १ काय कोई १ योग कोई १ वेद कोई १ भंग कोई ज्ञान Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन २ चक्षु पचनु १६ भव्य १७ सम्यक्त्व १- संजी १५ ला कोष्टक १ श्रमण पर्यात यवस्था में भब्य ही ४७ प्रौदारिक मिश्र वेकयक मिश्र कारमाण ये तीन काय योग 1 घटाकर मामादन २ | संभी मसंजी | संशी ही ( ३५ ) कोष्टक नम्बर २ ३-६-१-३-१ के भंग तीन का भंग नरकगति में कृष्ण लोन कापान ६ का भंग नियंच मनुध्व गति में १ का भंग भवनत्रक देवों में गीत लेख्या १ का मंग कल्पवासी देवों में पीन पदम शुक्ल १ का मंगलपातीत ग्रहमन्द्रो में शुक्ल लेश्या १ १ को १ दर्शन कोई १ लेग्या अपने अपने स्थान प्रमाण विशेष विगम मराठी गोमट सार कर्म का प २४२ से २६६ तक देखो पर्यात अवस्था में : सामदन गुण स्थान ৬ ३-१ • सासादनी मरकर नरक में नहीं जाता का भंग तिर्वच गति में कृष्ण नील कामोत ६ का मंग मनुष गति में सर्व लेण्या ३ का भंग भवनत्रक देवों में कृपण नील कापोत का मंग कल्पवानी देवों में पीत पदम और शुक्ल १ का भंगतीत सड़क में म लिश्या १ ३ का भंग एकेन्द्री से चन्द्र नियंचों में ॠण तीन कापोत १ का भंग यसंज्ञी पंचेन्द्री तियंचों में पीन लेश्या १ १ ०-३-६-६-६-१ के संग कोई १ व्या कोठा नं ०७ में मे एकेन्द्र से प्रसंज्ञी पंचेन्द्रो तक अजी संज्ञी पंचेन्द्री संजी ८ | कोई १ दर्शन कोई अवस्था Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर २ सामदन गुण स्थान १९ अाहारक २ | अनाहारक ही १ का भंग काई १ अवस्या मनाहारक | विग्रह गति में । पाहारक अनाहारक १ का भंग निवृति पर्याप्त अवस्था में । याहारक २. उपयोग 3-के भंग कोई १ उपयोग । ४ कुप्रवधि । कोई १ उपयोग कुमत्ती कुभूति । ।४ का भंग कृपवधि जान घटाकर प्रयपि भान ले २रे गुण ५ का भंग अवधि जान जोड़कर प्रचक्षु दो दर्शन ये ४ गुग्ग २१ घ्मान | । कोई १ स्थान कोष्टक १ प्रमाग - -३४-३५-१६-३७, ४४-४६-४५ के बंग १ समय के भी का ४०- । ४०-४-2 के भंग १० मे १७ तक कोष्टक नं.१ में छदारिक ४४ का भंग नरक गति में बणेनकोष्टक १६ प्रवृत १२ । ० का भंग सासादनी मरकर का कोई १ भंग ५ मिध्यान घटाकर । मित्र अबृत १२ कषाय २३ । मे १२ तक देखो कयाय २५ । नरक में नहीं जाता । । वकृयक मिव । योगह | योग : । ३३ का भंग एकेन्द्रीय निरयंच । मारमारण ये । १६ का भंग मंत्री पंचेन्ना । प्रवृत्त ७ काय २३ । तीन काय योग नियंच और मनुप के । बोग पटाकर अबुन १२ कषाय २५ । 3४ का मंग दो हनीय के प्रबृन वोम कोष्टक १७ -गिनकर १८ प्रमाण 12 काग ने इन्द्रीय के घवृतः १५ का भंग देव गती में । को गिनकर वृन १२ कगाय २१ का भंग हॊइन्दौर के योग है कोटक अवन १० मिनकर १६ प्रमागा 5 का भंग असंजी पंचेन्द्रीय के मवृत ११ गिदकर ४. का भंग मंडी पंचाद्री नियंच मनुष कर्म - - - -- भूमियों के Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नम्बर २ सासादन गुण स्थान ।। चौतीस स्थान दर्शन २ । ३ अचूत १२ कषाय ६ का भंग नांग भूमियां मनुष्य वीपन के नमक वेद घटाकार का मन नथा यही ह का भंग १६ स्वर्गों तक के रंदों के भी होता है - का मंग कल्पातीत महीन्द्रों के स्त्री वेद भी वट जाता है २८ कोई तीन नति का कोई घटाकर मंग पर्याप्त , करना २६ भाव ३२ २६ कोई ३ गति घटाकर १७ का कोई १ का भंग १ कुनबधि ज्ञान कोष्टक नं. १८ । प्रमाण सन्धि लिग असंयम अज्ञान प्रसिद्धव भब्यत्व १ जीवत्व कवाय २४ पबगाना कोष्टक नं. १ के प्रमाण Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बंध प्रकृति १०१ काष्टक ० १ की वष योग प्रकृनियों में मे मिच्यात १ नायक वर १ नरक गति नरक गत्यान: नरक आयु २५ एकेन्द्री प्रादि जाति ४ इन्टक संस्थान १ पाटि महनन १ आतप साधारण मूक्ष्म अस्थावर अपयोति ४ मे १६ घटाकर शेष १०१ का बंध होना है। उदय प्रकृति १०६ कोप्टर का उदय योग १. प्रकृतियों में से मिथ्यात १ एकेन्द्री आदि जाति ४ नरक गत्यानपूर्वी १ पातप । साधारण सूक्ष्म प्रस्यावर अपर्याप्त ११ घटाकर मेष १०६ का उदय होता है ये मान्यता प्राचारीय यतीपमा आचार्य मत के अनुसार है परन्तु भूततली प्राचार्य महाराज अपर्याप्त अवस्था में स्थावर १ एकेन्द्री प्रादि जाति का उपय भी अपर्याप्त अवस्था के प्राहार पर्याप्त तक मानते हैं। सत्ता १४५ कोष्टक न.१ की १४ को सत्ता प्रकृतियों में से प्राहारक द्विक २ और तीर्थकर की सत्ता वाले जीव सासादन गुण स्थान में नहीं पाते हैं नौवे मुरग लागे: नर र शोघे ही मिथ्यात गुण स्थान में पहुंच जाते है। संख्या असंख्यात । क्षेत्र लोक का प्रसंच्यातवां भाग । सर्शन लोक का असंख्यानबां माग । काल नाना जीवों की अपेक्षा सर्व काल १ जीब को अपेक्षा १ आंवनी से अन्तर्मुहुर्त काल । अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं १ जीव की अपेक्षा पर्व पुगदल परावर्तन काल । योनि कोष्टक नं. १ को चौरासी लाख योनि में से पग्नि काय ७ लाख और वायु काय 5 लाख कुल १४ लाख घटाकर शेष ७० लाख कारणा सासावन गुगण स्थान वाला मरकर अग्नि काय वायु काय में जन्म नहीं लेता है। कुल १६६३ लाख कोटि का टक नं. १ के १६६: लाभ को में से अग्नि काय वात्र कोटि वायु काय ७ लाख कोटि घट जाते हैं कारण इनमें सामादन गुण स्थान नाला मरका जन्म नहीं लेता है। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ३ मिश्र मुण स्थान ० स्थान नाम मामान पालाप - - - - - । प्रपात - पर्याप्त - नाना जीवों की अपेक्षा । एक जोव अपेक्षा नाना समय में - - - - गव जीव अपेक्षा | समय से -- - - - - - - ----- - - - ।। - १ गुण स्थान | मिश्च नग स्थान चा गनिचों में हरेक में जानना • जीव समान . १ । मजो पंचन्द्रिय पर्याप्त चारों गतियो में हरेक में जानना ३ पर्याप्ति को नं. १ देखो चारों गतियों में हरेक में ६ का भंग-को.नं. १६ से १६ के समान ४पास १० १० को न०१ देखो चारों गतियों में, हरेक में ११ का मंग-को.नं.१६ से १६ देखो ५ संज्ञा को नं०१ देलो पारों गतियों में हरेक में ४ का भंग-को.नं.१६ से १६ के समान ६ गति को नं. १ देखो चारों गति जानना पूचना-उस मिश्र गुगा मान में मरण नहीं होता। (देखो गोर क. गा, ५४६) नया यह विग्रह पति बौदारिक मिध काययोग, या 4कृषक मिश्र काय योग की या कारण काय वोग इनको अवस्थाय नहीं होती इसलिये यहां अपर्याप्त अवस्था नहीं है। दिखा मो. क. गा. ३१ से ३१६) । १ गमि चारों गति में बाई १ नति गनि । ममें कोई पनि । ७ इन्द्रिय जाति १पंचेन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति चारों गतियों में हरेक में जानना ८काय त्रसकाय त्रसकाय चारों गनियों में हरेक में जानना है योग मनोयोग ४ वचनयोग४ । पौ. कापयोग या वं. काययोग घटाकर (8) और काययोग १ काय । करों गतियों में हरेक में योग। ये १० योग जानना' का भंग-की.नं.१६ से १६ समान जानना ९ का भंग जानना | को० नं.१६ से १० देखो बांग भंग में में काई १ योग जानना को नं.१६ से १६ देखो Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० वेद ११ कवाय २ को० नं० १ वेस्बो (१) नरक गति में – १ नपुंसक वेद जानना को० नं० १६ देवो १२ ान 1 (२) नियंत्र - मनुष्य गति हरेक में ३-२ के भंग को० नं० १७-१० देखो ! (३) बेड गति में २-१ के भंग को० नं० १६ सा २१ - (१) नरकगति में १६ का मंग को० नं० १६ देखी निर्यच – मनुष्य गति में हरेक में २१-१० के भंग को० नं० १७-१८ देखी (३) देव पति में - २०१६ के मंग को सं० १६ देखो ३ ३ को० नं० १ देखो चारों गतियों में हरेक में ३ का मंग को० नं० १६ से १६ देखो ११ अनंतानुबंधों कषाय ४२ टाकर २१ जानना १३ संगम चौंतीस स्थान दर्शन १४ दर्शन १५ लेश्या ३ को० नं० १६ देख असंपम १६ भव्यन्त्र को० नं० १ दे ४० ) कोष्टक नम्बर ३ मव्य " १ चारों गनियों में, हरेक १ में असंयम जानना को० नं० १६ १६ देखी ५ चारों गतियों में, हरेक में ३ का मंग को० नं० १६ से १६ देखो व (१) तरक गति में ३ का भंग को० नं० १३ देख (२) निमंद - मनुष्य गति में हरेक में ६-६ के भंग को० नं० १७-१० देखो (३) देवगति में १-३-१ के को नं० १३ देखो ? चारों गतियों में, हरेक में भव्य जानना को० नं० १६ मे १६ देखो १ वेद १ मंग को० नं० १६ देखी को० नं० १६ देखो कां न० १३-१८ देखी की० नं० १२-१८ देखी को० नं० १६ देखी सारे मंग को० नं० १६ देखी १ मंग को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो को० नं० १७-१८ देखो को० नं० १६ देखी १ भंग १ ज्ञान को० नं० १६ से १२ देखो को० नं० १६ से १६ देखो I को० नं० १७-१८ देखी | नं १२ देख सासादन गुण स्थान १ १ को० नं० १६ मे १६ देखी को० नं० १६ मे १६ देखो १ भंग १ दर्शन को० नं० १६ मे १८ को० नं०१६ से १६ देखी १ म क० न० १६ दन्त्रों फो० नं० १७-१ देखी को० नं० १६ देखो १ को० नं० १६ देखी ० नं०१७-१८ देख नं० १ | को० नं० १६ से १३ देखो कॉ० मं० १६ से १६ देखो 6--0 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौवीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.३ मामादन गुण स्थान - . ६ जानोपयोग १० मम्यरत्न मिथ चारी गलियों में हार गे: मिना को नं.१६ गदखा को नं०१६ से १६ देखा का नं. १६ मे १६ दखी १- मनी मंजी चारों गलियों में, हरक में १ संजी जानना को को नं०१६ मे देखो "को नं०१६ मे देखो नं. मे १९ देखो १६ पाहारक "ग्राबारक पाहारक चागं गनियों म. हरेत्र में प्राहाक जानना का न १६न १६ तम्तो को न देखो | फो नं०१म१६ देखा २. उगमांग ४-६ के भंग ..कोई रंग कोई 1 उपयोग चारों गलियों में, हरेक में ६ का भंग की का नं. १८ मे १३ देखो को न०१६ १६ देखो दर्शनोपयोग : नं.१ में १६ के मुजिब जानना . १ ध्यान का भंग कोई १ च्यान मानध्यान , द्रध्यान ४, माना। नारों गतिवों में हरेक में ६ का भंग को नं०१६-११ देखो को नं०१६ से १६ विचम धर्मध्यान ध्यान जानना को नं० १६ मे १६ के मुजिब जानना २२ प्रापत्र सारे भंग मिध्यान्व ५, अनमानबंधी (१नरक गति में-४ का भंग | को नं.१६ देखा । को नं.१६ देखो' कवाय ६, प्रा. मिश्रकाय को नं १६ के मुजिब जानना योग १. पा. कायद्योग लियं च-मनुष्य पनि हक में ५२-१ के | को नं.१७-१८.देखो ! को नं.१७-१८ देखो प्रो. मिथकायद्योग, भंग को नं. १३-१८ के मुजिव जानना । व• मिश्रकायद्योग । (३)पंच गनि में- ४१-४० के अंग को ! को ने. १६ देखो . | को २०१६ देखो। कार्माणकायद्योग, ये :८ । नं. ११ के मजिव जानना नटाका ४३ पासव जानना मारे भंग कुजन ३, दर्शन, (१) नरक गान में-२५ का मंग को · को में०१८ देवो । को न०१५ देखो। लगिनि , लिंग: नं.१ के मुजिब जानना कवाय ४, लण्या E, प्रमंयम १. (२) निर्व च-मनुष्य गति में हरेक में 0-२६ के- को नं.१- देखो । को नं०१७-१८ देखो अज्ञान १, अमिद्धन्द ..मन्यत्व १ भंग को नं०१७-१८ के मुजिब जानना ये ३३ भाव जानना (६) देव गति में-२४-२६-२३ के भंग को को २०१६ देखो | को नं०१८ देखो नं० १६ के मुजिब जानना १ भंग को नं. Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपना-म मित्र स्थान में कोई प्राचार्य अवधिदर्शन नहीं मानते हैं। पर यहां गो. क. पा. १२०-६२१-६२२ के अनुसार लिखा है। (मरारी गो. क. कोष्टक नं० २१४ देखो)। २४ गाहना-कोष्टक नम्बर १ के मुजिन आनना परन्तु यहाँ उत्कृष्ट प्रवगाहना महामत्स्य की जानना, विशेष भुनासा को मं० १६ मे १६ देखो। २५ च प्रकृति-26 जानावरणीय ५, दर्शनावरणीय : (निद्रानिद्रा, प्रचनाप्रचना, स्थानद्ध ये ३ महानिद्रा घटाफर ६) मोहनोपकषाय ११ (मन्नानुबंधी कवाय ४, नमक वेद १. स्त्री वेद१. ६ पटाकर १९) वेदनीय २, नाम कम के ३६(मनुष्य गति १, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, देवगति १, देवगत्यानपूर्वी, पंचन्दय जाति १, प्रौदारिक रोर, बैंकियिक शरीर १, तेजस शरीर१, कार्मास शरीर १, औदारिक अंगोपांन .व. अंनापांन. समचतुरस्रमस्थान १, वज्जवृषभ नाराच मंहनन, निर्माण १, स्पर्शादि ४, प्रशस्त विहायोगति ! अगुहलपु१, उपधान १, परधान !, श्वासोच्छवास १, प्रत्येक !, बादर , म १, पर्याप्त १, सुभग १, स्थिर १, अस्थिर १ शुभ, अशुभ १, मुस्वर १, मादय १, यमः कायि ३६) उन्नगोत्र १, पंतगय ५ ये ७४ प्रकृतियां जानना। २६ उबय प्रकृतियां - -१०० को नं० के १११ प्रकृनियों में में अनंतानुबंधोय कषाय 1, एकेन्दिवादि जानि ४, लियं च मनुष्य देवगत्यानुपूर्वी ३, स्थावर १.पे १२ प्रकृति पटाकर और मम्यमिप. जोकर १११-१२ १-१०० उच्य प्रकृनिया जानना । सत्य प्रकृतियां-१४७, तोयंकर प्रति घटाकर जानना । सूचना-जिस जीव के ४थे गुण में तीर्थकर प्रकृति का बंध हो चुका है वह जीव उतरते समय में ३रे गुण स्थान में नहीं पाता । सल्या–पल्य के अमंस्थातवें भाग प्रमाण जीव जानना । क्षेत्र-ल्ब का प्रसंन्यानवां माग प्रमाण क्षेत्र जानना । स्पर्शन -१५ मर्ग का मिय गुग्ण स्थान र्याम देव नीमने नरक नक जाना है इसलिए ८ गज जानना । काल-नाना जीनों की मोक्षा प्रतमहतं मे नेकर पन्य के भय नवें भाग तक इस गुरण में हमकते है। एक जीव की योजा अन्त मुंहन से प्रलं मुहून तक रह सकता है। ३२ अन्तर नाना जीवों को परेशा-एक ममप में पल्प के अपंगात भाग नक मंमार में कोई भी जीव इस मिण गुगा स्थान में नहीं पाया जाना पोक जीब की अपेक्षा अन्न मुह मे लेकर देशोन अचं पुद्गल परावर्तन काल बीतने पर सादिमिथ्या हरिट के दुवारा मिथ गुग्ण म्यान जरूर हो सकता है। ३३ जाति (योनि) २६ लाख जानना. नरक की , नाख, पंचेन्द्रिय पशु ४ लाख, देवति । म ख, मनुष्यगति के १४ लाख ये ०६ लाख जानना । १४ कुल---१३॥ लाख कोडि कुल जानना- नरक गति २५ नाव कोरिकुल, देवगति २६ लाख कौडि कुल, मनुष्य भत्ति १४ लास कोहि कर, पंचेन्द्रिय तिर्यच १३।। नाल कोहि कुल, ये 1.1 ना कोडि कुन जानना । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४ असंयत (अविरत) गुण स्थान पर्याम अपर्याप्त स्थान मामाग्य प्राताप नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के एक जीव है । नाना ममय में | एक समय में . नाना 'एक जीव के ' | नान समय के ,जोच के समय के --. १ गुगा स्थान अमबन चारों गनियों में हरेक में प्रमंयत गुगण जानना का नं१५ से १६ देखो कीनं०१६ ११ सो को ०१:गे चारों गनियों में-हरेक में को नं. १६ मे को न०१६ १६ देखी १ अभयन गूण जानना । १६ दम्रो । मे १९ देखो परन्तु निर्य र पति में | कंवल भोग भूमि को। अपक्षा जानना कर्मभूमि में ४था गुण नहीं होना । २ बीच यमाम मंजी पंचेन्द्रि पर्याप्त और अपर्याप्त में । चागं गतियों में हरंक में कोनं०१६म ,संज्ञी पं० पर्याप्त जानना [१६ देसो को नं. १६ मे १९ देखो ३ पर्यानि को नं. १ देखो मागं गतियों में हरक में का मंग को नं.१६१६ दहो| कान-१६ मे १६ देखो को नं०१६ मे चारों गतियों में हरेक में कोनं. १६ मे को नं०१६ १६ देखो मंगीपं० अपर्याप्त जागना १६ देखो से १९ देखो [परन्तु नियं च गति में केवल भोग भूमि की : : अपेक्षा जानना को नं। १ मे १९ देखो १ भंग भंग १ को नं. १६ मे लम्धि रूप उपयोग मप को नं. १ से | को नं. १६ १६ देखो चारों गतियों में हरेक में है। देखो में १६ देखो का मंग को नं०१६ १६ देखी परन्तु नियं। | च गति में के बल भोग | भूमि की उपेक्षा जानना . १ अंग कोनं.१६ से चारों गनियों में हरेक में कोनसे को १ १६ देखो का भंग को नं. १६ १६ देखो से १६ वेसो से १६ देखो परन्तु तिर्यच । प्राण को न देखो चारों गतियों में हरेक में १० का मंग को नं. १६ से १६ देखो , भंग कोन०१६ मे १६ देखो Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ 10 १ चीतोस स्थान दर्शन संज्ञा को नं० १ ति को नं० बो द्रिय जाति पंचेंद्रिय जाति Y चारों तियों में हरे में ४ क मांग की नं० १६ मे १६ देखो चारों जानना चारों गतियों में हरेक में पंचेन्द्रिय जाति जागन को ० १६ मे १९ देखी ( ४.) कोष्टक नं० ४ " मंग ४ गतियों में से कोई १ गति जानना १ मंग को नं० १६ मे १६ देश को नं० १६ मे १६ न खां ५. १. मति ४रानियों मे से कोई १ गति असंयत ( अविरत ) गुण स्थान 1 । १ भंग का नं ०.१६ से चारों गतियों में हरेक में १६ देखी ४ का भंग को नं १६ से १६ देखो परन्तु तियं च गति में केवल भोगभूमि 'की अपेक्षा जानना 1 कोनं १६ से १२ देखी गति में केवल भोगं भूमि की अपेक्षा जानना Y ४ (१) नरकगति में पहले नरक की प्रपेक्षा जानना (२) तियं च गति में भोग भूमि की अपेक्षा * जानता (३) मनुष्य गति में कर्म 'भूमि और मोग भूमि । प्रोक्ष जानना (४) देव गति से -१ स्वर्ग से स्वार्थसिद्धि तक के देवों की अपेक्षा जानना aafee देवों में बा गुण नहीं होता १ चारों गतियों में हक में १ पंचेन्द्रिय जानना को नं० १६१६ देवी स्तुति में केवल भोग भूमि को अपेक्षा जानना १ मंग को नं० १६ से १० देखो १ भंग को नं १६ मे १६ देखो १ गति १ गति कौनं०१६ को पं० १६ देशो १६ देखो को नं० १७ देसो को न० १७ देखो को नं०१८ देखी को नं० १८ देखो को नं० १६ देखो की नं० १६ देखो को नं० १६ से को नं० १६ मे १६ देख १६ देखो Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं. ४ असंयम (अविरत) मुण स्थान चौंतीस स्थान दर्शन १ । २ । मनाय चारों नियों में होक में कान ?: मे को नं. १: म चाग गनियों में अंग्क में का नं. १ मे कोनम १त्रसकाय जानना वो १६ दे. १ वसकाय जानना १६ देखो देखो | कोनं. ६ दवा की न. १६ मे १६ देवा | परन्तु लियं च गति में केवल भोम भूमि की अपेक्षा जानना . मंग | ? यांग प्राहार का मिधवाय पो. मिथकाय योग ?.. पौ. मिश्र काय याग १, बांग , मार काय । व मिथकाय योग, 4. मिथ काय योग मांग घटाकर कार्या काय योग कार्मागा काय योग १. से : घटाकर (१०) । ये तीन योग जानना १ भंग योग चारों गनियों में हरच में भंग १ योग (चारों गतियों में हरेक में को नं० १६ से | को नं.१६ का भग को न म को नं १६ मे को नं०१६ में १-२ के भंग को नं. १६ देखो । में १६ दखा १६ देखो । १६ देखो १६ से १९ देखो परन्तु तयंच मति में केवल भोग भूमि की अपेक्षा जानना २ को दबा (१)नक गति में को नं०१६ देखो को नं. १६ देखा (१) नरक गति में- को नं० १६ देखो को नं० १६ नपुंसक बंद जानना १ नपुंसक वेद जानना 1 देवो का नं.१६ देखो । को नं०१६ देखो (२) तियंत्र मनुष्य गति में । का न०१३-१८ को नं. १७-१८ (२) तिथंच गति में-भोग का नं० १० देखो को न." नरक में ३-२ के भंग का देखो | देखो भूमि अपेजा १ पुरुष वेद नं०१७-१८ देखो जानना को नं०१७ देखी। (३) देव गति में-२-१-१के कान १६ देखो को नं० ११ देखा (३) मनुष्य देव गति में . की नं०१८-'कानं०१७ भंग का नं०१६ देवा हरेक में १-१ के भंग को ' १६ देखो १- देखो नं०१८-१९ देखी ११ घाय २१ स्व भंग भंग स्वभंग । १अंग. अनंतानुबंधी कषाय (1) नरक गति में १६ का भंग को नं. १६ देखो को नं०१६ देखो स्त्री वेद घटाकर का नं०१५ देखों को नं०१६ घटाकर । को नं०१६ देना (१) नरक गति में १६ का. देखो मंगको नं०१६ देखो कवाय २१ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ४ (असंयत अविरत) गुण स्थान ४ । (२) तियंच गति में २१.२० | १ मॅग ? भंग (२) तिर्यच गति में भांग | भंग १ भंग के अंग को न. १७ देखी ! का नं.१७ देखो को नं०१७ देखा भूमि की अपेक्षा ११ को नं०१७ देखो को नं०१४ (2) मनुष्य गति में २१- ० १ भंग १ भंग | का भंग को नं १० देखो देखो के भंग को नं० १८ देखो | को नं०१८ दखो का न०१८ देखा (३) मनुष्य गति में १२-[ भंग १ भग 14) देव गनि में 0-१६-१९१ मंग१ मंग १ ६ के अंग को न०१८को नं.१८ देखो को नं.१% के भंग की नं. १६ देवो ! को नं. १६ देखो कोनं १६ देखो देखो (6) देव गनि म १६-१६- १ भंग । १ भंग १६ के भंग को नं०१६को नं०१९ देशों, को नं०११ १२ जान मति-भूत-प्रधि ज्ञान ये (३) भंन मान मंग । १ जान । (१) नरक गनि में ३ का भंग का नं०१६ देखो को नं०१६ देखो ( नरक गति में ३ का भंगका नं०१६ देखो को नं०१६ को नं० १६ देखो को० नं १६ देखो | ! देखो (२) तिथंच गति में ३-३ के | १ मंग । ।ज्ञान (२) तिर्यच गनि में केवल १ भंग १ज्ञान भंग को नं० १७ देखा को नं०१७ देखो को नं० १७ देखो भोग भूमि की अपेक्षा को नं०१७ देखो को नं०१५ (३) मनुष्य गनि में 3-2 के १ मंग जान । ३ का भंग को में देखो भंग को नं. १८ देखो को नं.१- देखो को नं.- देखो १७ देखो जान 14) देव गनियों में ३ का भंग १ मंग ज्ञान | मनुष्य गति में ३-2 के मारे भंग का नं०१८ को न १६ देखा क. नं. १६ देखो को नं. १६ देवो भंग को नं०१८ देन्बो की नं0यो देखो (१च गति में -३ के | भंग १ज्ञान भंग को न०१६देवा को न०१६ देखो को नं०१२ चाग गनियों में हरक में | १ असंयम जानना को नं०१६ मे का नं.१६ | नागें गतियों में हरेक में । को नं. १६ मे का नं०१६ का नं०१६ मे १६ देयों देवा में देखो | १६मयन जान्ना को १६दनो मे देखो नं० १६ मे ११ देखी परन्तु निव गनि में देवन योग भूमि को प्राक्षा मानना ग १ दान 12)नाम गनि में : का को नं. १६ देखो की नं.१६ देखा, (१) नरक गति में : का कोनं १६ देखो। को न भम की नं०१६ खो भंग को २०१६देखो : अयम अथवा १४ दान को नं. १ मा Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४ असंयत (अविरत) गुण स्थान देवो . को नया (निय च गन में 3- क भ र दर्जन 3) तिच गनि में केवल ..भग १दान । भंग को न: १३ दलो का नं०१ दवा का न देखो मोगभूमि को अपेक्षा को न दे वो को न.१५ मनुष्य पनि में ३- मारे मग | १ दर्शन ! का भंग को मंग कीनं०१८ देवा को नं. १ देखो की नं०१-दखी देखो १ दर्शन (3)दव गति में : का मार भंग | दान । मनप्य गान में मारे भंग को नं. १ भंग को नं. १६ देखो 'क नं. १ देखा की नं०१६ देवों के अंग को नं.१८ दंडा को नं०१- देखो देखा 16) देव ग में ३-: के मार भग की नं.१६ नंग की नं बो का नं. १६ दखा देखा। मंग | १लेदया ? भंगलेल्या नरक मनि में ३ मा को न देखो को ०१६ देखो (2) नरक गति में : का का नं.१ देखो को नं. १६ । भंग को देखा। - भंग को नं. १ देखो । देवा ' नियं च गति में :- के . भंग | लन्या (२) निर्यच मति में भांग मंग ले चा भंग का नं देवा को न ५ देवी को नं.१ दखो भूमि की असा: का कानदेनो को नं. | मनुष्य गान में E-3 के मारे भंग । १ नम्या | भंग को नं. १ देखो भंग को नं०१८ मा को नं १८ देखो को नं. १८ देखो मनप्य गति में -१ । मारे भंग १लेश्या दव गनि में 2. :--. . भंग । श्या । के भंग को नं. १ का नं०१८ देखो को नं०१८ के भंग का न देवा । रान-१६ दवा का नं११ देखो देखो । देखो (४) देव गति ३-१-2 के १ मंग ल या भंग का नं०११ देखी को नं०१६ देखा की नं०१९ देखो देखो १६ भव्यत्व भव्य चारों गनियों में हरेक में १ भम्बना . १६ मे १६ को नं०१६ से चारों गतियों में हरेक में, को नं.१ मे १ जानना का नं. १६१९ देन्यो । १६ देखो भन्ध जानना को २०१९ देखो को नं० १६ दखा १६ से देखो परन्तु मे १६ देखी निर्यच गति में भोगभूमिः को अपेक्षा जानना मा भंग | १ मम्यक्त्व ३ मारे मंग (१) नरक गति में २-३ के भंग की नं १६ देखा को नं० १६दखा (१) नरकगति में का भंग को न देखोसम्यक्त्व को नं. १६ दही को नं १६ दखो | कोनं१६ देखो १७ सम्बवक्त्व उपशाम-झायिक क्षयोपसरामसम्पयन्व ३ जानना 3 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४ असंयत (अविरत) गुन स्थान निर्यच गति में .-३ के भं ग मम्यक्त्व [ (२) तिर्वच गति में- १ भंग १ सम्यक्त्व अंग को नं०१७देखा को नं. देखो को नं. १७ देखा भौग भूमि की अपेक्षा | को नं.१७ को नं.१७ देखो (1) मनुष्य गति में:- के । मार भम सम्यक्त्व जानना देखो | भंग को नं- दम्बा को नं. १८ देखो को नं० १८ देखो ) मनुष्य गनि में २-२ सारे भंग १ सम्यक्च १४दंवगति में २-3-के | मारे भय ,सम्यक्त्व | के भंग को नं०% को नं०१८ देबो को नं. १८ देशों मंग का नं० १६ दबा को नं०१६ देखो को नं० १९ देखो देखो (४) देव गति में-३ का यारे भंग गम्यक्त 'भंग को नं. ११ को न देनोको नं० १९ देखो १८ मंज्ञा बारों पतियों में हरेक में को नं०१में | कोन. चागेंगतियों में हरेक में। को नं. १६ मे | को नं०१६ में १ संजी जानना का १६ मे १६देखा१संजो जानन १६ देयो । १६ देखो नं. १६ मे १६ देखो को नं. १६ से १६ देखा तो न.१७ दलो परन्तु तिच गति में मोग भूमि की अपेक्षा जानना १६ पाहारक दोनों प्रकाश अवस्था बाढ़ाक. अनाहारक चारों गतियों में हरेक में कोनं. १६ मे को नं.१ 'चाग गतियों में हक में ] को ना में की नं. १६ में १ माहास जानना १६ देशो से १६ देखः । १-१ के भं' का नं०१६] देख । १६ देखो को नः १ न १६ दबी मे १६ देखा गत नियंन । गान में केवल मोम भूमि । को अपेक्षा जानना २. स्थान १ भंग १ उपदोग । 'भंग उपयोग जानालयांग : चारों गलिया मन में कोन १ मे का न.१में चारी गतिया में हरेक में कान में | का नं० १६ म दर्शनोपनाम: का मंच दलो १६दखाका भंग जानना का दिन १९५खा ये जान्ना को नं.१ मे १६ देवी न०१६म १६ देखी । परनु निरंच गति में केवल भोग भूमि की प्रपेक्षा जानना सूचना-मवधि दांन में मग्या हो सकता है । परन्तु मनृश्य धोर वन्य- दामी दश में ही उम्म लगा । (दवा गो कम्ग ३०८- ३२५) Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतास स्थान दर्शन कोष्टक न०४ असंयत (भविरत) गुण स्थान - - - १२ १ भंग । १ घ्यान प्रानं ध्यान वारी मनियों में हरक में को नं. १६ से कोन. १६ मे पाय विचय धर्म ध्यान को नं.१ मे का नं०१६ र ध्यान ०का भग ११ नो ११ दवा पटाका (२) १६ देखो मे १६ दनो माता विनय को नं ११ स १६ देख। चारों गनियों म-हरेक में अपाय निचय ६ का भंग का नं.१७ १० ध्यान जानना म १६ दवा पान्नु नियंच गति य केवल भांग भूमि यात्रा जानना. . . पावर मिथ्याल । मो० मिष काय योग ! मनोयांग ४, वचन योग कोन: १६ मे . अदनानुबंध कियाय ४ व मिथ काय योग ८ मौ० का बाग १ मे १६ देखो प्रा. मिथ काम यांग! कर्माण काय योग १६ घटाकर (३६) पाहारक काय योग ये चटाकर भंग १ य ११ घटाकर ( )(१) नरक गति में ४ का मंग भं ग (2) नरक गति में ३३ १ भंग को नं०१८ भंग का नं. १ को कोन१६ देखों को नं०१६देखो को नं १६ देखो को नं१६ देखो देखो ... ( निर्वच मनि म :-52 १ भंग १ भंग (E) निर्यच गति म' १ भंग भंग के भंग को नं०१७ दबो की नं. १७ देखो को नं-१७ देखो भोग भुमि अपेक्षा ३३ को नं०१७ देखो को नं०१७ का भग को नं०१६ दखा देखो (3 मनुष्य गति में ४-४१ १ मग भंग (३) मनुष्य गति में १ भंग . १ भंग के भंग की नं.१% देवो की नं०१८ देखो को नं. १ देखो, ३३-३३ के भंग को को नं०१८ देखो को नं.१६ नं०१८ दगी (४) देवति में 62-४४- १ भंग १ भंग (४) देवनि में भंग १ मर के मंग का नं. १६ देखा को नं० १६ देखो को नं. १६ देखो २३-22-३२ के अंग को की नं०१६ देखो' को नं. १६ नं०१० देखो देखो १३ মাৰি। भंग भंग उपशम सम्यक्त्व १ ११) नरक गति में १८.१० को न: १६ देखा को नं०१६ देखो (1) नरक गति में २३ । १ भग १ भंग क्षामिक गम्पकत्व ? के भंग का नं० १६देवो । का भंग की नं०१६ देखो को नं०१६ देसो कोन०१६ जान ३, दर्शन ३ -क्षयोपशमनधि ५ (२) तिर्यच गति ३२. १ १ भंग भंग (२) निर्वच गति में भोग भंग १ मंग क्षयोपशम सम्यक्त्व के मंग को नं. १७ देखोकी नं०१७ देखो की नं०१७ देखो भूमि की अपेक्षा २५ का को नं. १७ देखोनं० १७ देखो - Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४ असंयम (मविरत) गुण स्थान सति', कगा . भंग को नं०१७ देता लिग, ध्या '(3) मनुष्य गनि म३३-२६१ भंग १ मंग () मनुष्य गनि में । मंग । १ मंग असंयम १. प्रज्ञान १. के मंग की नं० १८ दखी का नं.१८ देखो को नं०१८ देखो -२५ के भंग को नं. १८ देखो को न०१८ देखो प्रसिद्धत, जीवन (४) देव गति भ२६-२८- १भंग १ मंग को नं. १८ देखो १ गंग १मंग । अव्यत्व १ ३६ भाव ! २६-०५ के भंग को नं. को नं. १६ देखो को नं. १६ देखा (1) देव गति में ०-२८ को नं. १६ देखो को नं. १६ देस जानना १३ देखा -२६-२६ के भंग: को नं० १६देखो प्रवगाहन की नं. १६ मे १६ देखी। जय प्रकृतियां-७३ काष्टक नाबर : के ७४ प्रतियों में तोरकर प्रकृति १, मनुप्यायु १, दबायु १ ये जोड़कर ७७ जानना । जयप्रकृतिया–१४. को नं. ३ के १०० प्रकृनियों में सभ्यभित्र्याव घटाकर, सम्पति और पानपूर्वी । जोड़कर १००-१-१६+५-१०४ उदयप्रकृनि जानना । सल्व प्रकृतियां-१४८. उपशम मम्पान की अपेक्षा १५ जानना क्षाविक सम्यक्म की प्रोक्षा ११ जानना अर्थात अनंनानृबंधी कयाय ४, मिथ्यावाभिघ्याख, सम्पग्मिय्यान्व, सम्बकप्रकृति में प्र० घटाकर १४१ जानना । संख्या-पत्य के प्रमच्यान भाग प्रमाण जानना । क्षेत्र-नांकका प्रमरुपानवां भाग प्रमाण जानना। स्पशन -गाना जीवों की अोला-गर्वकाल जानना । एक जीव की अपना- राजू प्रमाण जानना । ३१ कार नाना जीवों को अपना–पर्वकाल जाना । एक जीव की अपेक्षा--ग्रन मुहनं काल मे : या अधिक ३. गागर काल प्रमाग जानना । -ना-जाना जीरों की अपना कोई ग्रन्तर नहीं पड़ना एक जीव की अपेक्षा-म्यान्व छूटने के बाद अन्नं महत लेकर देशोन पर्धपदगल परानन फैन नथा अन्ना पट मकना है। २५ जाति (योनि) लाल जानना, विशेष बनामा को न० ६ में देखो। कुल-५७८ लाख कोटि कुल जानना । विगै लामा को नं। ३ में देवी । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऋ स्थान नाम सामान आलाप ? गुगा स्थान जीव समाम पर्यात ४ प्रा ५. संज्ञा गनि मोतीय स्थान दर्शन ८ काय देश संयंत गंजी पं० पर्याप्त E को नं० १ देखी को नं १ देखी को नं० १ देख २ नियं च मनुष्य गति ७ इन्द्रम जाति १ पंचेन्द्रिय जाति १ अलकाय मर्यादेत नाना जीवों की अपेक्षा ( ५.१ ) कोष्टक नवर ५ ३ 5 देण संयन (मंगना संयत या देश बन ) नियंत्र और मनुष्य गतियं जानना को नं०१७-१८ देवां मंत्री पवेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था दोनों गनियों में को नं० १३-१६ के मुजिब ܝ ܕ निर्यन फोर मनुष्य गनियों में हरेक में का भंग को नं० १७-१८ के जिव तिर्वच और मनुष्य गतियों में हरेक में १० का भंग को ०१७-१८ के सृजिव ? 9 की नं० १०-१ को नं० १७-१८ देखो १ भंग १ मंग ६ का भंग ६ का भंग को०१७-१८ देखो को नं० १७-१८ देखी १ भंग ? भंग १० का मंग १० का भंग को नं०१७-१८ देखी की नं० १७४८ देखो १ भंग १ भंग ४ का मंग को मं० १७-१= देखो १ गति दोनों में से कोई गति को २०१७-१८ देखी १ ४ का मंग को नं० १७-१८ देखो १ गति दोनों में से कोई ? गति को नं० १७-१८ देखी १ १ पंचेन्द्रिय जाति दोनों गनियों में हरेक में कोनं १के मुजिव की नं० १७-१८ देखो को नं० १७-१८ देखी १ पंचेद्रिय जानि * तिथंच और मनुष्य गतियों में हरेक में ४ का भंग की नं १३१ जि २ नियंच और मनुष्य में दोनों गति जानता एक गांव के नाना समय मे १ त्रसकाय तिर्यंच और मनुष्य गतियों में हरेक में १ त्रगकाय जानना की नं० १७-१८ देखो देश संयन गुण स्थान में एक जांच के एक समय में १ करे नं०१७-१८ देखा की नं०] १३-१० देखा ! १ को नं० १७-१८ देखो को नं०१७-१८ देखो अपर्याप्त ६.9-5 सूचना इस देश मयत गुग्गा स्थान में विग्रह गति और औदारिक मिश्र काय यांग सा वैकिय मिश्र काय योग की अवस्थाये नहीं ! होती इसलिये यहां अपर्याप्त यवस्था नही है(देखो गो० क० गाँ १२ मे ११६) Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबीस स्थान दर्शन ६योग १० वेद को नं० १ ११ व मनोयोग वचन योग ग याच ९, मे जानना ३ अनमानुबंधी कषाय ८, प्रत्याख्यान कषाय 5. घटाकर (१७) ये १२ जान ३ को नं० ४ देखो १३ संयम १४ वर्षान को नं०४ देखा १५. लेण्या तीन देव संयम १६ भव्यत्व मध्य त्व १७ सम्यक्व ३ या जाना की नं० ४ देखी ? ( ५२ ) कोष्टक नं ० ५ | नियंत्र और मनुष्य गतियों में हरेक में का भंग मुजिन १ भंग ६ के मंग में से कोई १ योग जानना को नं० १६ से १६ देलो १ मंग नियंच औौर मनुष्य गतियों में हुरेक में ३ का भंग | ३ का भंग को मं० १७ - ३ के मंग में से कोई को नं० १७ से १८ के मुजिब १ वेद जानना १ बंद १८ देखो को नं १७ मे १८. देखो १ मंग و ؟ (१)१७ का मंग की नं० १७ के मुजिब (२) मनुष्य गति में १७ का मंग ३ तिर्वच और मनुष्य गतियों में हरेक में ३ का भंग को नं० १७ १८ के मुजिब १ देशसंयम (संयमनयम) १ मंग का भंग को नं० १७ से १८ देखी ६ सारे भंग को नं० १७ देवो सार मंग की नं० १८ देखो १ मंग को नं० १७–१८ देखो ३ १ मंग नीयंत्र और मनुष्य गतियों में हरेक में ३ का मंग को नं० १३-१८ को नं० १०-१० के मुजिव 3 नियंत्र और मनुष्य गतियों में जानना बजे नं० १३०१ दे 1 निउँच और मनुष्य गति में हरेक में ३ का अंग | नं० १७-१०. को नं १०-१० के मुजिब १ भंग १ भव्यत्व च (१) तिच नति में २ का भंग को नं०१७ के मुजिब नीच और मनुष्य गतियों में हरेक में ? देश संयम को नं० १३ १० देखो | को नं० १७ १८ देख जानना को नं० १७-१८ देव को नं० देशसंयत गुणस्थान ' १ भंग की नं० १७ देखी | . १ भंग को नं० १७-१८ देखो १ जान |को नं० १७-१८ देखो १ की नं० १७-१७ देखो १ सीको २०१७-१८ देखो १ नव्या व नं० १०-१- देखो १ सम्यक्त्व को नं० १७ दो | ६-७-८ Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५ श संयत गुण स्थान ___ । २ । ६-७-८ _ | _........ ........--.-...-.----...--- १ १० (२) मनुष्य गति में ३ का भंग को० नं०१८ के सारे मंग १ सम्यक्त्व समान को० न०१८ देखो । को० न०१० देखो १८ संशी १संज्ञी संजी नियंच और मनुष्य गतियों में हरेक में जानना को नं०१७-१८ देखो को.नं.१५-१८ देखो को.नं. १७-१८ देखो। १६ पाहारक पाहारक तिर्वच और मनुष्य मतियों में हरेक में जानना को० को नं०१७-१८ देखो | को० नं० १७-१८ देखो न०१७-१८ देखो २० उपयोग १ उपयोग को० नं०४ देखो तिथंच भोर मनुष्य गतियों में हरेक में ६ का भंग को.नं.१७:८ देखो | को० नं०१७-१८ देखो को नं१७-१८ के समान २१ ध्यान ११ १ मंग १ ध्यान को नं. ४ में दिपाक- तिर्यंच और मनुष्य गनि में हरेक में ११ का भंग को.नं.१७-१- देखो को नं. १७-१८ देखो! विचय धर्म ध्यान जोड़कर को० नं. १७१८ के समान ११ ध्यान जानना २२पासव सारे भंग अविरत ११ (हिसक के विषय नियंच और मनुष्य नति में हरेक में ३७ का भंग | को० न०१७-१८ देखो को नं.१७-१८ देखो + हिस्य का ५ का भंग को नं. १७-१८ के समान जानना ये ११) प्रत्याख्यान कषाय ४, मज्वलन कषाय ४, नो कवाय, मनोयोग ४, बचनयोग ४, प्रौदारिक काययोग १ ये (३.) जान । २३ भाव ३१ सारे मंग उपशम मायिक स २, मान ३, तिथंच या भनूय्य गति घटाकर (३.) को न. १७, देस्तो । को. नं०१७ देखो दर्शन : लब्धि ५, क्षयोप-1 (१) तिर्यच गति में २६ का भंग सामान्य के ३१ के सम सम्यक्त्व १, संयमा भंग में से क्षापिक सस्यकत्व मनुष्य गति १,ये मयम १ मनुष्य मा १ । दो घटाकर २६ का भंग को० नं०१७ के तियर गति १, कषाय ४ । ममान जानना Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५ देश संयत गुण स्थान सिम ३, नुम लेश्या २, (२) मनुष्य गात में ३ का भंग सामान्य के ३१ प्रशान १, प्रसिदत्व १, । के भाग में से तिर्यच गति ? घटाकर 3 का जीबुत्व १, भव्यत्व !, ये! मग को० न०१८ के समान जानना ३१ भाव जानना सारं भंग वा० १८ के समान को० न०१८ देखो २८ अवगाहना--कोनं०१७-१८ देखो। बध प्रकृतियां–७ को नं. ४ के ७७ प्रकृतियों में से अप्रत्यास्यान कषाय 1, मनुष्पतिक २, मनुष्य-मायु १, प्रौदारिकद्विक २, बजवृषभनाराच महनन १, ये १० पटाकर ६७ जानना । उदय प्रकृतियां-७ को नं. ४ के १०४ प्रकृतियों में से मप्रत्याख्यान कषाय ४, नरकद्विक २. नरकायु १, देवद्विक २, देवायु १, बंक्रियिद्विक २, दुभंग १, अनादेय १, प्रवनाः कीर्ति १, मनुष्यगत्यापूर्वी १, तिथंच गत्यानुपूर्वी १, ये १७ प्रकृतियां घटाकर ८७ जानना । सत्व प्रकृति-१४७ उपशम सम्यकद की अपेक्षा नरकायु १, घटाकर १४८-१-१४७ जानना । सूचना:-यदि नरकायु सत्ता में हो तो उसे पंचम गुण स्थान प्रहरण नहीं कर सकता है । १४०-क्षायिक सम्यक्त्व की अपेक्षा को नं. ४ के १४१ प्रकृतियों में से नरकायु १ घटाकर १४० । संख्या-पल्य के प्रख्यात भाग प्रमाण जानना। क्षेत्र-लोक के वसंख्यातवें भाग प्रभारण जानना । स्पर्शन--माना जीवों की अपेक्षा लोक के असंख्यातवे भाग प्रमाण जानना। एक जीव की अपेक्षा ६ राजु मध्य लोक में भरणांतिक समुहात बाला १६वें स्वर्ग की उपपाद शय्या को स्पर्च कर सकता है। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना : एक जीव की अपेक्षा अन्त मुहूर्त से लेकर देशोन एक कोटिपूर्व तक देशव्रत में रह सकता है। अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं । एक लोव की पेक्षा अन्तमुहर्त से देशोन अर्घ पुद्गल परावर्तन काल गये पीछे निश्चय रूप से देशव्रत प्राप्त हो सकता है। जाति (योनि)-१८ लाख जानना (तियंच पंचेन्द्रिय पशु ४ लाख, मनुष्य १४ लाख ये १८ लाख जानना) कुत-५७॥ लाख कोटिकुल जानना । (पंचेन्द्रिय तियंच में ४३ लाख कोटिफुल, और मनुष्य के १४ लाख कोटिकुल से ५१ लाख कोटिकुल जानना) Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० स्थान सामान्य असाय १ गुण स्थान चौंतीस स्थान दर्शन ३ पर्या २ २ जीव समाम संज्ञी पं० पर्याप्त अपर्याप्त ४ प्राण प्रमत्त को० नं० १ देखी ५ संजा को० नं० १ देखो को० नं० १ देखो ६ गति, मनुष्य गति ७ इन्द्रिय जाति पंसि जाति ८ काय त्रसकाय १ : पर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा 3 १ प्रमत्त गुगा स्थान मनुष्य नति में जानना को० नं० १८ देखी २१ मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त कोदन ६ ६ का मंग को० नं० १८ के अनुसार जानता १० १० का भंग को० नं० १८ के समान जानना ४ • का भंग को० नं० १८ के समान जानना मनुष्य गति १ पद्रिय जाति १ चमकाय ( ५५ ) कोष्टक नं० ६ " एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में Y १ ! को० नं० १८ देखो को नं० १८ देखो ५ १ १. को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देवी १ मंग ६ का भंग | को० नं० १८ देशे 1 १ मंग ६ का भंग को० नं० १० देखो १ मन १ भंग १० का भंग १० का भंग को० नं० १० देखो को० नं० १५ देखो १ मंग १ मंग ४ का भंग ४ का भंग को० नं० १८ देखोको० नं० १८ देखी १ १ १ अपर्याप्त नाना जीवों को अपेक्षा | १ संजी पंचेन्द्रिय अपर्या को० नं० १५ देखो ३ ३ का भंग को० नं० १५. समान जानना ध रूप ६ पर्यात जानो सूचना १: पेज नं० ५.६. देखो प्रमत्त गुरण स्थान १ जीव के नाना समय में १ 13 1 १ १ प्रमत्त गुण स्थान को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो को० नं० १० १ देखो १ जीव के एक समय में ८ १ भंग ३ का मंग को० नं० १८ देखो * १ को० नं० १५ देखो को० नं० १८ देखो १ मंग का भग को नं० १८ देखों ७ १ मंग ७ का मंग को० नं० १८ के समान जानना को० ४ १९ मंग ७ का भंग १७ का मंग नं० १८ देखो को नं० १८ देखो १ मंग १ मंग ४ का मंग को० नं० १८ ४ का भंग ४ का भंग के समान जानना को० नं० १८ देखो को ०न० १८ देघो १ १ १ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | ये (११) १० वेद . ६ योग मनोयोग ४, वचन योग ४, श्री० ० काय योग १. श्रा० मिश्रका योग १, बहारक काय यांग ११ कथाय चौतीस स्थान दर्शन ३ १२ जान ર H को० नं० १ देखी १३ संज्वलन कथाय ४. नवनो कषाय ६, ये १३ जानना १३ सयम ११ 1 मति श्रुत, अवधि, मन पर्यय ज्ञान ये ४ ज्ञान जानना सामायिक छेदोपस्था पना परिहार वि० ३ संयम जानना १० सारे भंग मा० मिश्रकार्य योग १ घटाकर को० नं० १८ देखो (१०) जानना १-२ के भंग को० नं० १८ के समान ર ३-१ के मंग को० नं० १८ के समान १३ १२-११ के भंग को० नं० १८ के समान * ४-३ के मंग को० नं०] १८ के समान ( ५६ ) कोष्टक नं० ६ गारे प को० नं० १८ देखो 2 ३ ३-२ के भंग को० नं० १८ के समान | १ आहारक मिश्र काययोग को० नं० १० देखो को० नं० १४ देखो १ का मंग I को० नं० १० के समान I 1 १ योग कोनं० १८ देखो सूचना २-पेज ५२ र १ ने को० नं० १८ देखो ! एक पुरुष वेद जानना १ का भंग को० नं० १० के समान प्रमत्त गुण स्थान सारे मंग ?? मारे भंग १ भंग को० नं० १० देखो को० नं० १= देखो स्त्री नपुंसक वेद २ घटाकर को० नं० १० देखो (११) बनना १९ का मंग को० नं०१८ के समान जानना १ को० नं० १८ देखो को०नं० १८ देखी i १ भंग को० नं० १८ देखो सारे भंग १ ज्ञान ३ सारे भंग १ जान को० नं० १० देखो को० नं० १८ देखो मनः पर्यय ज्ञान घटाकर ३ को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देशो 1 1 ३ का भंग को० नं०१८ के समान | सूचना ३-पंज ५६ पर सारे भंग सारे मंग १ संयम १ संयम को० नं० १६ देखो की०० १८ देखोपरिहार विशु संयमघटाकर को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो (२) जानना २ का मंग को० नं० १८ के समान जानना सूचना: ४ पेज ५६ पर Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { चौतीस स्थान दर्शन १४ दर्शन को० नं० ४ देखी १५ लेश्या ३ शुभ लेखा १६ भव्यत्व भव्य व १७ सम्यक्त्व उपचम क्षायिक क्षयोपशम ये (३) १८ संज्ञी संज्ञी १६ आहारक २० उपयोग ज्ञानोपयोग ४ दर्शनीयोग ३, ये जानना २१ ध्यान Э प्राहारक 19 श्रार्तध्यान (अनिष्ट संयोग, पीडा चितन निदान बंध) धर्म ध्यान ४, ७ ध्यान जानना ३ का मंग को नं १५ के समान ३ ३ का भंग को० नं० १८ के समान जानना १ भव्यस्व जानना ها ७-६ के मंग को० नं० १८ के समान जानना ( ५७ ) कोष्टक नं० ६ १ ३ सारे मंग ३-२ के भंग को० नं० १० २-२ के भंग जानना के समान जानना को० नं० १८ देखी १ संज्ञी १ प्राहारक ७ ७ का भंग को० नं० १८ के समान जानना १ भंग ३ का मंत्र जानना १ मंग ने का भग जानना १ १ सारे भंग ७-६ के भंग जानना को० नं १० देखो १ भंग ७ का मंग जानना को० नं० १८ देखी ५ ३ १ दर्श । ३ के भंग में से३ का भंग को० नं० १८ कोई १ दर्शन के समान जानना जानना १ ३ के भंग में से कोई १ लेश्या जानन । १ १ सम्यक्त्व ३-२ के भंगों में से कोई १ सम्यक्त्व १ ३ ३ का भंग को० नं० १८ के समान १ ध्यान ७ के भंग में से कोई १ ध्यान जानना १ २ का मंग को० नं० १८ के समान जानना १ संजी १ १ आहारक १ उपयोग ६ ७-६ के मंगों मे मनः पर्वयज्ञान घटाकर (६) से कोई १ जानना ६ का मंग को० उपयोग १०१ के समान जानना 9 ७ का मंग पर्याप्तवन् जानना को० नं० १८ देखी प्रमत्त गुण स्थान 6. १ मग ३ का भंग जानना १ भंग २ का मंग जानना सारे भंग २ का मंग जानना को० नं० १८ देखो ? = दर्शन के भंग में से कोई १ दर्शन जानना १ लेदया ३ के भंग में से कोई १ लेश्या जानना १ १ सम्यक्त्व २ भंग में से कोई १ सम्यक्त्व १ १ सारे मग १ उपयोग ६ का मंग जानना ६ के भंग में से को० नं० १८ देखो कोई १ उपयोग जानना १ मंग १ ध्यान ७ का भंग ७ के मंग में जानना से कोई १ को० नं० १८ देखो ध्यान जानना Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टगत प्रमत्त गुण स्थान - - - - २२ प्राप्रव २२ या २ सारे भंग । १ मंग सारे मंग । १ भंग संज्वलन कषाय४, नवनो (1) सौदारिक काय योग की अपने अपने स्थान के मंग्वलन कवाय ४, अपने अपने कषाय ६, मनोयोग : भपेक्षा २२ का भंग | सारे मंग जानना दास्यादिनोकवाय ६ स्थान के सारे वचनयोग ४, मो. काय संज्वलन कषाय ४ । ५-६-७ के भंग |५-६-७ के भंगों पुरुष वेद, पाहारक | भंग जानना योग १, मा. मिश्रकाय हास्यादिनो कषाय ६, । जानना में से कोई १ ग, मिथकाय योग । योग १. प्राहारक काय | वेद ३, मनोयोग ४ को० नं० १८ देखो। जानना ये १२ भाव जानना योग १, ये (२४) बचत योग ४, प्रो. १२ का भंग ५-६-७ के भंग ५-६-७के अंगों काययोग १ ये २२ का को० नं.१८के समान | जानना में से कोई भंग भंग जानना को० न०१८ जानना कोनं० १६ देखो जानना देखो सुचना-यहां यह विवरण (२) प्राहारक काययोग की पाहारक मित्र काय अपेक्षा २० का भंग मज्वलन योग की अपेक्षा ही कवाय ४, हास्यादिनों जानना कषाय ६, पुरुष वेद । मनायोग ४, बचन यांग ४, आहारक काययोग १, ये २०१का भंग जानना को० नं.१- देखो २१ भाद उपशम-सायिक म०२, ज्ञान ४, न ३, नन्धि ५, क्षयोपगम-सम्यक्त्वर मनुष्य पनि १, कषाय ४ लिग ३, शुभ लेश्या ३, मराग संयम १.पक्षान। मसिद्धत्व १, जीवत्व भच्यस्व १, ये (३१) सारे भंग भंग अंग १ भंग ३६ का भंग को.नं. १८१७का भंग १७ के भंगों में प्राहारक काययोग बी | १ का मंग १७ का भगों में के समान पो काययोग | कोनं.१८के से कोई 1 अंग प्रपेक्षा २७ का भंग को० नं. १८के में कोई १ मंग की अपेक्षा जानना २७के : समान ज्ञानना को० नं०१८ समान समान जानना । गागना भग कोनं १८ के समान याहारक काययोग क. अपेक्षा जानना Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सूचना १-यहा आहारक की अपेक्षा निवृत्ति पर्याप्ति ही होती है, लब्धि पर्यातक नहीं होती है। सूचना २-इस प्रमत्त गुण स्थान में प्रौदारिक कापयोग की अपेक्षा अपर्याप्त अवस्था नही होती परन्तु माहारक मिश्रकाय योग की अपेक्षा अपर्याप्त प्रवस्था होती है। सामो० ३१-३१७) भूचना ३-पाहारककाय योग तथा स्त्री वेद नपुसक वेद के उदय में मनः पर्यय ज्ञान नहीं होता (देखो गाय का गा० ३२४) सूचना ४–यहां माहारक मिश्र कायरोग में परिहार वि० संयम नहीं होता । (देखो मो. क० गा० ३२४) पक्षाहना-प्रौदारिक शरीर को अपेक्षा ३॥ हाथ से लेकर ५२५ धनुष नक जानना। प्राहारक संजम शरीर को अपेक्षा एक हाथ जानना । विशेष लामाको० नं०१५ देखो। बंध प्रकृतिमा - ६३ को० न० ५ के ६७ प्रकृतियों में से प्रत्याख्यान कषाय ४ घटाकर ६३ प्रकृतियां जानना । सबय प्रतियां--८१ को० नं. ५ के ६७ प्रकृतियों में से प्रत्यास्थान कपास ४, तिर्यच गति , तियंच गयानृपूर्वी १ नीच गोत्र १, उचोत १ ये -प्रकृतियो पटाकर पोर पाहारदिक २ जोड़कर मर्याद ७-८-७९ -८१ जानना। सस्व प्रकृतिया-१४६ चोंचे गुण स्थान को उपशम सम्यमत्व की अपेक्षा १४८ प्रकृतियों में से नरकायु १ भौर तियंचायु १ २ घटाकर १४६ जानना। १३६ चौथे गुण स्थान को क्षायिक सम्यक्त्व की अपेक्षा १४१ प्रकृत्तियों में से नरकायु १ मौर तिथंचायु १२ घटाकर १५ बानना संहा-(५६३९८२०६) पांच करोड़ पानवे माख अठ्यानक हजार दो सौ छः के समान बानना । क्षेत्र लोक के मसंख्यात्तवें भाग प्रमाण जानना। स्पर्शन--लोक के असल्यान भाग प्रमाण जानना। कास नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय आनना । सूचना-वह भाव की अपेक्षा वर्णन है। पारीर की मुद्रा की अपेक्षा नहीं है। प्रमत प्रप्रमत्त भाव समय समय में बदलते रहते है। अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा मन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा अन्तमुहूर्त से देशोन अर्घपुद्गल परावर्तन काल तक प्रबत्त भाव नहीं बन सके । जाति (योनि)-१४ लाख योनि जानना । कुल-१४ लाख काटिकुल मनुष्य के जानना। ३. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोप्टक नं०७ प्रगत गुण स्थान चौंतीस स्थान दर्शन क! स्थान | सामान्य । पर्याप्त | पालाप । अपर्याय नाना जावों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा नाना ममय में एक जीब की अपेक्षा एक समय में १ मुगा स्पान सूचना २ जोवसमाज १अप्रमत्त गुण स्थान बोन.१५ देखो १ मंजी पंचन्द्रिय पर्याप्ति अवस्था को नं०१८ देखो ६ का भंग को.नं. १८ देखो ३ पर्याप्ति को० नं०१ देखो | ४ प्राण को नं०१ देखा । ५ मंगा भय, मैथुन, परिग्रह ६ गति ७ इन्द्रिय जाति १ भंग ६ का अंग १ भंग १० का मंग १ भंग ३ का भंग १० का मंच को न.१८ के समान इस प्रमत्त गुण स्थान | में विग्रह गति और मौदारिक मित्र कापयोप यात्रिय मिथ योग योग की भवस्थायें नहीं होती इसलिये यहां अपर्याप्त अवस्था नहीं १ भंग ६ का भंग १ मंन १० का भंग १ भंग 2 का भंग (देखो गो० क. गा. ३१२ से.१६) ३ का भंग को.नं.१% इंडो १ मनुष्य गति जानना १पनन्द्रिय जाति जानना को० नं. १८ देयो १त्रगकाम जानना को नः १८ देखो ८ काय १ योग चांनं०५ देखो का भंग को००१८ देखो १ गति का भग जानना । १योग के भंग में ये कोई १योग जानता के मंगों पे में कोई १ देद जानना १ भंग ३ का मंग न सक, स्त्री, पुरूष वेद ३ का भंग की नं० १६ देखो ११ कवाय संज्वलन कषाय ४ नवनोकषाय १३ का भंन को.नं.१८ के समान |४-५-६ के अंगों में से ४-५-६ के भंग जानना कोई मंग जानना Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँबीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७ अप्रमत्त गुण स्थान १ मंग का भंग को न १८ के मुबिन का अंग । -- - - -- य! कपाय भानना १२ भान कोन. देदा १८ संयम मामायिक, छदोय म्यापना, परिहारवि शुद्धि १। दर्शन को न दचा । का भग का नं.के मुखिर ३ का भग मंग 1-५-६ के भंग में से कोई ज्ञान जानना गंयम के मंग में से कोई १ संयम जानना १दर्शन के भंग में से कोई १दर्शन जानना १लश्या के भंग में से कोई १ लेश्या जानमा १ मंग ३ का भग १ का भंग को में १८ के मुजिन । नीन शुभ लेण्या । ३ का मंस की नं.१ के मुजिव ३ का भंग १ मव्यत्व १६मव्यत्व १७ सम्यस्च को नं.४ देखो । का भंग की नं०१८ के मुजिय १ भंग का भग सम्यक्त्य ३ के मंग में से कोई । १ सम्यक्त्व जानना १८ बंशी १६ माहारव २० उपयोग मंजी १ प्राहारक की नं.६ देखा का भंग को नं.१% के मुजिब का भग २१ ध्यान पार धर्म व्यान का मंग का न.१८ के मुजिब का भग १ उपयोग के भंग में मे कोई १उपयोग जानना १ ध्यान र के भंग में से कोई १ ध्यान जानना १भंग ५-६-७ के भगों में से कोई १ मंग जानना को नं०१८ देखो २२का भन की नं०१८ के मुजिर २२ भासव संज्वलन कबाब नवनोकाय मनोयोग४, बचन योग। यौफाय योग ये (२२) । ५-६-७ के भंग की नं. १६ देखा Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७ अप्रमत्त गुण स्थान :--- - .-. . .- -. २३ भाव को नं. ६ देखा ३१का भग की नं.१८ मजिब १.क! भर कान- कमबब भगो मे गमा गजाननः मन... पक्षमाहना को नं. १ देनः। बंब प्र—ि५६ को ० के ६ प्रतियों में अस्थिर, धन, पराश को.नि १. वर्ग: शाक ! प्रमाना! घटाकर और प्राहारक होकर अर्थात :.-.५+५६ प्रकृतियां बनन' । उनय, प्रहनियां-कोन. ६ के १ कुतियों में में महानिद्रा (निद्रा निवा. प्रचना बना पाई। ग्राहारकर से ५ पर जानना। मात्र प्रकृतियां-४६ या ??: को न० कविध जानना । सम्या - FREE.३दी फगर छान नाद निन्चानबे हजार एक मौ नॉन निन।। मेव-नोक के संव्यानवें नाग प्राग हानना। स्पर्शन- के प्रसन्यान भाग प्रमाण जानना। कार-काना जीवों को पटा पाल जानना । पप जात ना पक्षा ममा जमा" । सूचना-मन-नाप्रमान गुमधन ने ममा मना में मान द्वननत रहते हैं। प्रत्तर--नाना जीवों को धरना पनर नहीं है । जीव की यात्रा न नहान TRA र मन पर ननदो गां। न र ननाय पनि आनना । कुल ल काम हागना । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन टक : अपूर्वकरण गृग स्थान पान मामाद घाना गाना ब्रोधी को साभा की नाना नम्र में । बडोद सर: ननयम १ मुख स्थान जीय ममाम यापमा बराबरमा कोन' चा RESET Fair ... त्या गमला :: नग की न... क अनकारना : भंग Eाग . पाशि को न.१ दमा प्राग की न.१ देखा नजा ना, मं बन परिवर येता जाननः •ा भंग का नं. के अब जानना • नभन ३ का भंग का नं.१% नजि जानना का मन मनुष्य पनि जानना पंचेन्द्रिय नाति जानना १त्रमकाय जानना • इनिय जानि . काय ह गोग को नं. ५. दचा यांग का मंग क१ र्गब ET नंग गंग जाननः नपुंसक स्त्री पुरुष बंद का नग को न०१८ के जिब : भंग का गंग को दे मुजिन ह.भग ने का १ वेद जानना मग ४-५- के भंगों में म कोई भंग जनना की नं.: देवी मंज्वलन कषाय ४. नवनो कषाय. ये १६ कपाय जानना १२ ज्ञान मति अन अवधि मनः पयंय ज्ञान ये(४) 11-५-६ केभर जानना ४ का मंग का नं. १ के मजिक भंग ४वा भंग के भंग में मे काद: Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ १३ संयम सामायिक छेदोपस्थापना १४ वर्शन सुदर्शन चक्षुदर्शन अवधिदर्शन मे (३) १५ नेस्या शुक्ल 'लेश्या १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व उपशमादिक स १८ संशी १६ आहारक १० उपयोग को नं० ६ रेनो २१ म्यान テ २२ प्रावि को न० देखो २५ भाव २ को नं० १० देखी (१४) कोष्टक मं २ २ का भंग की न० १८ के मुि ३ ३ का भंग को नं० १८ के मुजिब १ शुक्ल लेश्या को नं० १६ देखो १ मव्यत्व को नं० १८ देख २ २ का मंग को न० १८ के सृजिब १ सज्ञां जानता को नं० १८ देखी १ आहारक जानना को नं० १० देखो 19 ७ का भंग को नं० १८ के मुजिब १ पृथक्त्व वितर्क विचार मुक्त ध्यान को नं. १० देखो २२ २ का भंग १८ के मुजिब د २६ २३ का मग को नं० १८ के मुजि को नं० १० दे १ भा २ का मंग १ भग ३ का भग को नं० १० देखो १ १ १ मंग २ का मंग १ १ १ मंग १७ का मंग मारे भंग ५-६-२ के भग को नं० १० १ मंग १७ का भग को नं० १८ देख कर्यकरण गुण स्थान पू ज्ञान जानना का नं० १८ देखो १ संयम २ के संग में से कोई १ संयम जानना १ दर्शन ३ के भंग में मे कोई १ दर्शन जानना को नं० १८ दे १ १ १ सम्मवस्व २ के मंग में से कोई १ सम्यक्त्व जानना १ १ १ उपयोग ७ के भंग में से कोड १ उपयोग जानना १ १ मंग ५-३७ के मंगों में ने कोर्ड १ मंग जानना को नं० १० दे १ भंग १७ के अंगों में से कोई भंग जाना को नं १८ दे Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रदगाहना--को नं०१८ देखो। बंब प्रक्रिया को नं.७ के १६ प्रकृनियों में ये वायु , घटाकर ५८ जानना । ये जो प्रनिया पंचना हैं वे सर पहला भाग में खती है ऐसा जानना। दूस'माय म५६ जानना ऊपर क ५८ प्रकृतियों में में निद्रा पौर प्रचला २ चटाकर बंधती है दिखा गॉ. क. पा. ४५६) तोसरे भाग में ... थे भाग में -- भाग में -. वें भाग में -२६ प्रकृतियां रंधती है, निम्न प्रकार जानना गो० कर्मकार (मराठी) में जो बंधब्युटित्ति कोष्टक २० है उसमे जो वा ___भाव में बताये हवे ३० प्रकृतियां ऊपर के ५६ प्रकृतियों में से २६ प्रतिया पटाकर जानना देखो गो० का मा० २१७) 9 भाग में -२२ प्रकृतियां जो संघती है दे कार के २६ प्रकृतियों में में हास्य-रति , भय-मप्पा २, ये घटाकर २० जानना। सूचना- रोक बधयुधित्ति के ७ भंग क्षपक यगो को अपेक्षा ही पड़ते है। २९ वय प्रकृतियां-१२ को न.७ के ७६ प्रकृतियों में से प्रमप्राप्तामपाटिका संहनन १. कनीक सहनन . अर्घनाराचसंहनन सम्पर प्रकृति १. ये घटाकर ७२ जानना। २. सत्व प्रकृतिमा . १४३, चौथे गुण स्थान १४-प्रसानियों में में नाकाय १. नियंचायू १, अनन्तानवधा कगार पटाकर शेष १४२ की मत्ता उपम सम्यक्त्व की उपयम धेगी में जानना ।। १३६. चौथे गुरण स्थान के क्षायिक मम्यगृष्य की १४१ प्रकृतियों में ये नरकायु १. तिथंचायु १. पे दो घटाकर शेष १३६ को सत्ता भाषिक सम्यक्त्व की उपशम श्रेणी में जानन। १३८, चौये गुण स्थान हायिक सम्यगृहस्टी की १४१ प्रकृतियों में से नरकायु, नियंचायु १. दवायु १ये ३ घटाकर शव १३८ प्रकृतियों को सत्ता मायिक सम्यगृष्टी की क्षपक में गली में जानना । मंख्या .-२६६ उपशम श्रेणी में, और ५१८ क्षयक घणी में जानना । मंत्र-लोक के पसंख्यानवे भाग प्रमाण जानना । स्पर्षन-लोक के प्रसंख्यात भाग प्रमाण जानना । कास-उपगम श्रेणी में एक ममय में अन्नम्हतं प्रौर क्षयक यंत्रों में प्रन्स इतं से प्रगतहत जानना। अन्तर-नाना जीचों को अपेक्षा उपशम श्रेणी में गक समय से लेकर वर्ष प्रथक्व तक पोर धाक यसो में एक समय से लेकर छ: मास तक जानना एक जीव की अपेक्षा उपशम चंपो में एक समय में देशीन अE पदमल परावर्तन कान तक मार जानना। वाति (योनि) १४ लाख योनि मनुष्य को जानना । कुल-१४ लाख कोटिकुल मनुष्य की जानना । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नबर अनिवृत्तिकरण गुण स्थान में . स्वान नाम सामान पालाप स्थति अपर्याय नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना . समय में एक जीन के एक समय में १ गुण स्पान २ जीव समास १ पनिवृनिकरण गुण स्थान । १ पंजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था को नं१८ देखो का भंग को नं.१८ के मुजिब भग का भंग ६का भग १. का भंग को २०१८ के मनिव १.का मंग के पति की न.१ देली ४ प्राण को नं०१ देतो . परियह गति • इन्द्रिय जाति संज्ञा २ २-१के भग को नं.१८ के भूचित्र दोनों भंग २-१ के मंन .. : 1.11 में से कोई मंग जानना १ मनुष्य गति जानना १पंचेन्द्रिय जाति जानना !त्रमकाय जानना योग को ना ५ देखो का भंग को नं०१८के मुजिब १ मंग १ का भंग योग के भंग में से कोई योग जानना मग । 1-1-1-- के भंग का नं.१ देखो ३-६-१-० के मंग :-१. भंग में में कोई कान- वो जंग जानना ' को नं० १० देखो --५---३.१ के भग। 3-६-५-6-22-2. भगो जानना मे मे कोई १ मंग मानना । को नं. १८ देखा ! को न०१८ देखो । ११ कषाय मंग्नन कषाय ४ बेद ३ थे ७ जानना के जिव ---है,-२-१ के संग को नं.१ बानना Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ६ अनिवृत्तिकरण गुण स्थान - - - - १ मंग को नं ६ देदो का भंग को नं. १ के मुजिव का भंग " मयम समायिक, छेदापस्थापना २ का भंग को न.१ के मुपिन का भंग १जान ४ भग में से कोई धान जानना यम । के भग में में कोई १सयम जानना १दर्शन | ३ के भंग में से कोई दर्शन जानना १४ दर्शन की न.देखो का भंन का नं०१८ के मजिब का भंग १५ लेश्या मुक्न लेश्या जानना भव्यन्व जानना १५ सम्यक्रव उपशम बायिक भव ! २ का भग को न०१८ के मुजिब १ भग का भंग १मम्यक्त्व के भंग में से कोई १ सम्यक्त्व जानना १८ संजी १ संजी ११प्राहारक ३. उपयोग को न. ६ देखों ७ का भंग को नं०१८ के मुजिय मग ७का मन | १ उपयोग के भंग में से कोई १ उपयोग जानना , पृथक्त्व वितर्क विचार शुक्ल त्यान को नं.१% देखो १६ १६.१५-१४-१३-१२-११-१० के भग को न.१८ के मुजिब जानना २२ मानव संज्वलन कषाय ४ बेद ३, मनोयोग ४ बचन योग, मोशरिक का योग १ (१६) | सार भग -के भंग जानना को नं. १ इलो मंग ३-२ के मंगों में से कोई ! भंग जानना को न०१८के देखो को न० ८ देखो २६-२८-२७-२६-२५-२४-२३२ मंग की नं.१% के पुनित्र जानना मारे भग पपन अपने स्थान के भंग जानना १ भग 1१) सरद भाग में १६ के भंग में से कोई '१ मंग जानता Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर मनिवृत्तिकरण गुण स्थान ६-७-- i(१) सवेद भाग में १७का भंग जानना (२) प्रवेद भाग में १६ का भंग जानना को न०१५ दसो (२) पवेद भाग में १६ के अंगों में से कोई मंग जानना को नं०१८ देखो .२. अवगाहना को नं. १८ देखो। बंबपतिया- २२ पहले भाग में-ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, मोहनीय ५ (कषाय, पुरुष वेद १, भन्तराय. सातावेदनीय " सन्दगोत्र १, यशकीर्ती १, में २२ जानना । : २१. दूसरे भाग में पुरुषवेद घटाकर २१ जानना । २०. तीसरे भाग में-क्रोधकषाय घटाकर २० जानना। १६. चौथे भाग में- मान कवाय घटाकर १६ जानना । १८. पांचचे भय में-माया कषाय घटाकर १८ जानना । १७. छटदे भाग क-लोक कषाय घटाकर १७ जानना । इस प्रकार छः भार्गों में कर्म प्रकृतियों का बंध सदता जाता है। का उदय प्रकृतियो-६६. पहले भाग में-को न के ७२ प्रकृतियों में से यहां हास्यादि प्रकृनियों का उदय घटाकर ६६ जामना । ६५. दूहरे माग में-नपुंसक वेद घटाकर ६५ जानना । ६८. नीसरे भाग में घीवेद घराकर ६४ जानना । १३. चौधे भाग में- पुरुच वेद घटाकर ६६ जानना । ६२. पांचवे भाग में--क्रोध कषाय घटाकर जानता । ६१. एटवे भाग में मानकषाय घटाकर ६१ जानना। ६.. सातदे भाग में-माया कनय घटाकर ६० बानना। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्य प्रकृति-१४२११३८ को न के जिन भानगा। प्रनिर 1 विधागलामा निम्न प्रकार जालना। यह भेद अपन वंगी की अपेक्षा होते रे। पले भाग के प्रारम्भ में-१६८ को मना है। इनम नरकटिक :, नियंत्रक, कन्दियादि जानि। मानप, उद्यांत । महानिशा : (निहानिद्रा, प्रचना प्रचना, सन्यानदि), माघारमा, मुम, स्थानर १. ६ प्रतिया पहले भाग के अन्न में घटाने से दूसरे भाग के प्रारम्भ में १२० को मना जानना । रे भाग के प्रारम्भ की १२६ प्रकृतियों में से दूर भाग के अन्त में ममत्यास्यान कपाय, प्रत्याभयान का ये = प्रकृतिय! घटाने में तीसरे भाग के प्रारम्भ में १४ की मत्ता जानना । देरे भाग के प्रारम्भ की ११४ प्रकनियों में में तोमर, भाग के अन्न में नमक वैट ! कटाने में बौथ भाग के प्रागम में ११ को मत्ता जानना। म्ये भाग के प्रारम्भ की ११.प्र.नियों में में चौथे भाग के पन्त में ग्वा वेद १ पटान म पांचवे भाग के प्रारम्भ में भी मना जानना। वे भाग के प्रारम्भ का ११ प्रकृनियों में में पांचवे भाग के पन्न में झाम्पादिनः ।नांकयाय घटान में चटव भाग के प्रारम्भ म १०६ की सना जानना। व भाम के प्रारम्भ की १० प्रकृतियों में छटवे भाम के अन्त में पुरुष बंद । घटान ग मानव भाग के प्रारम्भ में १०५ का मना जानता। वे भाग प्रारम्भ की १०५ प्रवृनियों में से मामव भाग के अन्त में कोधकषाय घटाने में आठवे भाग के प्रारम्भ में का मना जानना। मद भाग के प्रारम्भ के १.४ प्रकनियों में से आठवे भाय के अन्त में मानकषाय घटाने से नौवं भाम के प्रारम्भ में १० को मत्ता जानना। स्वे भाग के प्रारम्भ के १०३ प्रकृतियों में से नवे भाग के अन्न में मायाकषाय घटाने में दसवे गुण स्थान के प्रारम्भ में १०२ की सप्ता जानना । (देखो गो० क० गा० से ३४२) संख्या-- उपशम यंगगी में पौर ५६८ सपक नंग्गी में जानना । क्षेत्र-लोक के असंख्यातन भाग प्रमाग जानना । स्पशन-लोक के यमयात भाग प्रमाण जानना।। काल-उपशम श्रेणी की अपेक्षा एक समय में अन्तमहतं तक धौर अपक अंगी की अपक्षा अन्न महतं में पन्तम हुन तक इस मुगम स्थान में रहने का काल जानना। अंतर--नाना जीवों की अपेक्षा उपशम श्रेणी में एक समय से लेकर वर्ष पृथक्त्व नक जानना घोर भपक अंगगी में एक समय में लकर ६ मास तक संसार में कोई जीवन चढ़े और एक जीव को अपेक्षा उपशम गगी में गम समय में देशोन अर्धपुद्गल परावर्तन कान तक व्युच्छेद पड़ता है अर्थात अन्तर जानना। नाति (योनि)-मनुष्यगति के श्लास योनि जानना । --मनष्य १४ लाख कोटि ४ कूल जानना। ३२ ३ Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थान १ पोतोस स्थान दर्शन १ गुगा स्थान २ जीव समाज ३ ति त्रास 2 ९ बांग ५ संभा ६ गति • इन्द्रिय जाति काम सामान्य आलाप वेद काम १२ ज्ञान १३ मं को नं. १ देखी । की नं. १ देखो को नं० ५ देखा को नं० देख ܕ पर्याप्त नाना बीवों की अपेक्षा ३ १ सूक्ष्य सांपराय गुगा स्थान १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था कामं को नं० १८ के मृजिव ܐ १० का मंच की नं० १८ के मुि १ परिग्रह संज्ञा जानना १ मनुष्य गति जानना १ पंचेन्द्रिय जाति जानना १ त्रमकाय जानना ६ ६ का भंग को नं० १८ के मुजिन • यपगत वेद जानना १ मुध्म लोभ जानना 5 का भंग को नं० १२ के मुजिब १ सूक्ष्म पराय सब जानना () कोष्टक नं. १० एक जोव के नाना समय में १ १ १ १ भंग ६ का मंग १ भंग भ १ मंग ३ का भंग १ १ भग ६ का भंग ० १ भग ४ का मं सूक्ष्म सम्पराय मुन स्थान अपर्याप्त एक गांव के एकसमय में L I १ मंग ६ का भंग १ मंग १० का मंग ! ! k १ योग का भंग D १ योग जानना १ जान के संग में से कोई १ जान जानना ६-७ सूचना । इस सूक्ष्मसांपराय गुण स्थान में प्रयाप्त अवस्था नहीं होती है Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक न. १० सांपराय गुण स्थान १४ दान ३ कानं० दस भंग का भग का भंग को न के मित्र शन के भंग में में काई दन जानना १ १४ लेण्या १६ भव्यत्व १. मम्बकत्व उपशम प्राधिक म. ' शुक्ल मश्या जानना , भय्यद जानन' • का भंग को नं १ के पुत्र का भंग १ सम्यक्त्व के भंग में मे कोई मम्यक्त्व जानना मजी जामा १ पाहाग्क जानना १ भम का भग १८ मी माहारक २० उपयोग का नं. दखा २१ ध्यान २२ मानव मूक्ष्म लोभ १. मनोयोग ४, वचन योग ४, प्रो. काय योग १ये. का भंग' का ना कमजिव १ चकन्च क्निक विचार का ध्यान को नं०१५ देखो १ उपयोग के मंग में ये कोई । १ गयोग जानना १० का मंम का नं.१ केनचित्र २ का भंग | २ का भंग को नं. !१% के मुजिव । २३ २३ का भंग को २० : के मजिद २३ भाव २३ को नं. ८ के २६ के भावों में से क्रोध मान माया कषाय ३. चिग३, ये ६ पटाकर २३ जानना १मंग १. का भंग को न०१६ के भंग में में कोई १- के मुजिब । १ मंग जानना Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहन-कोन. १८ देखो। व प्रकृतियां-१ कोष्टक नं. 1 के, २२ प्रकृतियों में से संज्वसन कषाय ४ मोर पुरुष देद १ ये घटाकर १७ प्रकृत्तियां जानना । ६. को . ६६ प्रकृतियों में से कोष-मान माया ये कवाय, मोर वेद: ये ६ बटाकर । प्रकृतियां जानना । सत्य प्रकृति-१४२, १३६, १३८, १०२ को न० के मुबिन जानना । या-२६६ उपशम धेगी में पौर ५६ क्षपक अंगो मे जानना । अर्थात अढाई दीग में इतने जीव यदि हो तो एक समय में हो सकते हैं। मंत्र-लोक के असंख्यात भार प्रमाण जानना । स्पर्शन-लोक का मसंख्यानां नाग प्रमाण जानना। काम-उपशम सम्यक्त्व को अपेक्षा एक समय में अन्तमुइन नक जानना और आयिक सम्यक्त्व की अपेक्षा अन्नम हतं स यन्नमुंहतं तक जानना । अन्तर-को नं. १ के मुजिब जानना । जाति (धोनी)-मनुष्य की १४ लाख योनि मानना। कुल-मनुष्य की १४ लाख कोटि कुल नानना । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोम स्थान दर्शन कोष्टक नं० ११ उपशांत कषाय गुण स्थान पर्याप्त अपर्यात म्थान | पालाप सानाम्य नाना जीवों की अपेक्षा गगक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में ६-७-८ गुण स्थान २जीब मम् उपमांत कगाय (मोह) गुराग स्थान ! संजो पन्द्रिय पर्याप्त प्रबम्या मंग !: का भंग को नं. १ के मृजिद १० १. का भग को नं०१८ के मुजिब जानना ० अपगत पंजा जानना के भंग भंग १० का भंग भंग का भग १ भंग १० या भंग मूचना-इस उपशांत कयाय (मोह) गुरण में अपर्याप्त अवस्था न होती है। . पर्याप्ति को नं०१ देखो ४ प्राण कोन देखो ५ मंशा गति . इन्द्रिय जाति १ मनुप्य गति जानना पंनेन्द्रिय जानि जानना प्रमकाय जानना १ यंग को नं. ५ देखो भंग ६ का मंग पाग के यांन मे में कोई योग जानना है का भंग को दं०१८ के मुजिब • अपगत वेद जागना ० प्रकषाय जानना ११ कषाय १२ ज्ञान को नं. देखो का भग को नं. : मांजन मध्यान मवम जानना , भग का मम के भंग में में कोई जान जानना ! भंग १३ संयम १४ दान को नं.: देदो १५लेश्या 3 का भंन को नंत १८ के मुजिब १शुद्ध नया जानना को भंग न ३ के भंगों में से कोई। १दन जानना १६ भव्यत मन्य जानना Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतास स्थान दर्शन कोष्टक ने०११ उपशीत कषाय गुण स्थान १५ मध्यक्रव उषधामक्षाबिक म. • का भग का नं० १८ क जिन का अंग १ सम्मपरख २के भंग में से कोई १ सम्यक् जानना ८ मंजी १६ माहारक २० उपाय को नं. ६ देखा मनी जानना ? पाहा रक जानना ३ का भंग की न.१% के मुजिब ! का भंग का भंग १उपमि 2 के भम में कोई १ उपयोग जानना . २१ ध्यान पृथक्त्व वितर्क विचार शुक्ल त्र्यान । १ भंग २ वानव को नं०५ देखो का भंग को २०१८ के मुजिय है के भंग में में के भंग में से कोई कोई योग . योग जानना २३ भाब १ मंग को नं. ५ देखा । २१ का भंग को नं. १० के मुजिब १५ का भंग । १५ के भमों में म कोई भागे में में मुभम लाभ को नं. १५ के १मंग जानना सायिक चारित्र १२ मुजिब घट कर २१ भाव जानना जानना २४ गाहनाको नं०१८ देखो। बंब प्रकृतिषा-१ सातावदनीय जानना । उघय प्रकृतियाँ-५१ को न०१० के ६० प्रकृतियों में में मृध्म नोभ १ घटाकर ५६ जानना । मत्व प्रकृतियां-१४२, १३६ को न मुजिब जानना । मुचना:-यह गुण स्थान क्षगक अंगी वालों के नहीं होता है। सस्षा-२६E इन जीव जानना। क्षेत्र-लांक का असल्यातवा भाग प्रमाण जानना । म्पर्शन-लोक का संख्यात्तवा भाग प्रमाण जानना । काख-अन्नहर्त में अतन्तमुहूतं तक जानना। अन्तर -एक समय में देशोन अर्घ पुदगल परावर्तन काल प्रमाण के बाद दुबारा उपशम अंगा मिलेगी। अति (योनि)-१४ लाख मनुष्य योनि जानना पुष१४ लात कोटिकुन मनुष्य के प्रानना । Manporn.in .. Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीय स्थान दर्शन कोष्टक नबर १२ क्षीण कषाय गुण स्थान में ० स्थान नाम सामान पालाप पर्याप्त अपर्याप्त नाना जोवों का मरक्षा गफ जोब के नाना समयम एक जीव के एक समय में १ गुण म्पान २ जीव समास लोग जपाय (मोह) गुरण स्थान मर्जः पदिय पर्यात प्रवस्था मूचना-इस क्षीरपकषाय (मोह) iगुगा में अपर्याप्त घवस्या नहीं होती है। की. देवा . भंग का रंग १ भंग .का भग बा भग १ मंग १. का भंग को न. १ देखो का मंग का नं. १८ के जिर १० १. का भंग को न०१८ के मुजिन (0) अपरत मंशा जानना , मनुष्य गति जानना , पंचेन्द्रिय जाति जानना १ सकाय जानना . हन्दिम जाति . काय १ योन का नं. ५ दमा का भंग को न १ के मुजिब १. भंग १का भंग के अंग में से कोई यांग जानना । 10)प्रपन वेद जानना (0) प्रकवाय जानना "कवाय १२ ज्ञान कानदया का भंग को नं०१८ के मुभिर जान के भंग में में कोई । मान जामना 'यदान वयम जानना १. दर्शन की नं. ६न्या का मग को नं०१८ के मुजिब ३का भंग दोन | ३ के भंग में से कोई दर्शन जानना : १५ लेग्या शुक्न लेण्या जानना Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोन्टक नं० १२ क्षीणकषाय (मोह) गुण स्थान - - .: भत्र्यत्व मम्यक्त्व १८ सजा १६ माहारक २. उपयोग भत्र जानना या यम्बकम जानना म.नी जानना काहारब डानना भग का भग ३ भंग की भूबिद शकत्व बित के अविचार शुक्ल ध्यान १ उपयोग के मन में से कोई ..जाग जाना " यान २ मायन को नं.५ देखो । का भय को न० १: के मूजिय ! भग के भंग में से कोई 1 के भग में से कोई । यांग जानना यांग जानना भग भग '१५का भंग की न. १५ के अंगों में से कोई .:: के मुजिब जानना | १मंग जानना को न.१८ देखो "माय को नं० ११ के२१ भावों में स उपशम नम्बक्त्व १ उपक्षमचारिव १पेर घटाकर शेष ११ से सायिक चारित्र जोडकर २० भाव जानना २. दे भग को नं०१८ के मुनव Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * 40 4.-om प्रगाहना-कोन.१- देखो। बंब प्रकृतियां -1 साना वेदनौब जानना ! जय प्रकृतियां--५७. को नं. ११ के ५६ प्रकृत्तियों में से दचनाराच संहनन १, नाराच संहनन १ मे २ घटाकर ५७ जानता। सत्व प्रकृतिया-१०१, को नं. १० के सपक अंगी के १३२ प्रकृनियों में में सूक्ष्मताभ १ घटाकर १०१ का सता जानना । संख्या-५३८ जीव जानना । क्षेत्र-सोक का पसंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । वर्शन-लोक का असंख्य प्रमाण मानना। कार-अन्तमुहर्न में अन्न मुहतं जानना ! अन्तर --नाना जीवों को पपेक्षा एक समय रो ६ मास तक कोई भी जीव क्षीरणयोहीन होगा और एक जीव को अपेक्षा अन्तर न.। जाति (योनि)-१४ लाख मनुष्य योनि जानना । कुल-१४ लाख कोटिकुन मनुष्य को जानना । Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १३ मयोगबली गुण स्थान में पर्याक्ष अपर्याप्त क्रमांकस्थानसामान मानार नाना जीवों की अपेक्षा नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के | नानाडा में एक जीव के । एकगमय में । १जीव के एक जीव के 'नाना समय के कए समय के १ गूगा स्थान १ १ मयोग केवली गृगाः १ मयोग केवी गुन्ग २ जीव समास मंत्री पं० ५० अपत | संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्ति अवस्था | मंजो पंचेन्द्रिय अपर्याप्त ३पर्याप्ति । १ भंग ! १भंग को नं. १ यो । वा भंग की नं० १८ देखो | का भंग । का भंग | ३ का भंग को नं०१८ देखा ३ का भंग का भंग नन्धि रूप ६ का भंग · नन्धि रूप ६ लब्दिरूप: ! का भंग - का भंग १ भंग भंग ४ प्राग १भंग भं ग प्रा.यूबन १, काय बन? २ का भंग । २का भंग पायु, नाय पल का भंग का नं०१८के । ४ का भंग का भेगम २ प्रमाण जानना स्वासोच्छवास मृभिब जानना २ का भंग को नं. १८ देवी : वचन रस ।।. मना १०) अपगन मजा गति मना गनिजानना निय जानि पंचांग जानि प्रमकम्य जानना योग । दोनों भंग . १ वोग दोनों भंग . . योग भ-य मनःयोग ?! यात काम ५.३ के भग ५-३ के भगों में काम ग का ग . २.१ के भंग :-१ के भगों पत्नुभय योग को मित्र काय योग । में कोई योग घोभिनाय न . म में कोई मत्य वचन मंग . जानना । ये योग जानना व जानना +भय योग ५- भंग २. के भंग कंन ? के । काय योग की न०१- के मुजिब मुजिव जनना पौ० मित्र काय योग, कामगि काय यंग Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबीस स्थान दर्शन It ) कोष्टक नं. १३ । ५ । सयोग केवली गुण स्थान में यांग जानना ११ कराय १२ जान १: मंगम १४ दर्शन १५ श्या १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्य १८मी ११ आहारक भाहारक, प्रनाहारक (0) अपाद बेद (.) पकधाब कदल निजानन्द . पयाभ्यान जानना केवल दर्शन जानना !शुक्न नेप्या जानका १भव्यन्व १ गायिक सम्यक्त्व (१) भनुभय मंत्री गहारक जानना को नं. १- देखो । दोनों प्रवस्था अवस्था (:)ो. मित्रकाय योग में । प्राहारक और दोनों में से पाहारक अवस्था जानना अनाहारक कोई १ अवस्था (कामगा काय योग में की नं०१-देलो जानना । प्रनाहारक अवस्था जानना । को नं. १० को नं. १८ देखो दोनों युगपत जानना दोनों युगपत जानना | १ का भंग युगपत जानना युगपत जानना | यूपत्त ___ को नं०१८ देखो जानना २० उपयोग केवलज्ञानोपयोन १ केवल दर्शनोपयोग ये जानना २१ व्यान २ का भंग को नं० १८ के मुजिब जानना सारे मंग १ सूक्ष्म किया प्रतिपाति शुक्ल ध्यान जानना २२ यात्रव ऊपर के कगंक देखो योग स्थान के योग मानव जानना कार्माण का योग १ प्रो. पिथकाय योग ये २ घट कर ५ का भंग को नं०१८ के मुजिब जानना ५-३ के मंग को नं०१८ के मजिव सारे भंग सारे भंग । सारे भंग १-१के मंगो ५-३ के भंगों में से ५-3 के मों में क.माणिक का योग १ २-१ के अंगों में में से कोई १ काई । योग से कोई १ मोग सौमिप्रकाय योग से कोई बोन योगजानना ये २ योग जानता । जानना २-१के मंग को नं०१८ के ! जानना Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १३ मयोगकेवलौ गुण स्थान १४ | १ भंग पर्याप्त बल को नं०१८ देखो १४ का भंग कोनं .१८दे १४ का मंग को नं. १ देखो २३ मात्र १४ भंग १मंग सायिक सम्वक्त्व १क्षामिक' १ का भंग को नं.१ के १४ का भंग को १४ का भग ही eH : देवन ज्ञान केंगल नं०१८के मुबि जानना दर्शन १,धायिक लब्धि, मनुष्य गति १, शुक्ल ! लेश्या १, प्रसिद्धत्व १. जीवत्व १, भन्यत्व १. ये १४ भाद जानना अवगाहना-कानं014 देखो। बंध प्रतियां-१ मानावेदनीय (यह भी उपचार से बंध) बानना । उस कृतियां-४० को नं. १२ के ५७ प्रकृतियों में से ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ६, (महानिद्रा ३ पटाकर ). प्रत्नराय ५ ये १६ घटाकर मोर नोर्थकर प्रकृति जोड़कर अर्थात ५७-१-४११-४२ जागना। सत्य प्रकृतियां ..८५ का न - १२ के १०१ प्रकृतियों में से पानावरणीय ५ दर्शनावरगोय, अन्तराय", ये १६ वटाकर ५ जानना। मंख्या-(८६८५०२) पार लाख अड्यान हजार पांच मी दो जीव जानना । क्षेत्र-लोक का असंख्यातयां भाग प्रमाण कपाट समुद्घात को अपक्षः जानना और प्रतर ममुधारायें असंपात नोक प्रमाण जानना और लोक पूरी नमुनपान में मचे लोक जानना । म्पशन-कार के क्षेत्र म्यान के मुजिब जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा मकान जानना । एक जीव को अपेक्षा मन्तह से देशोन कोटि पूर्व वर्ष तक जानना । मंचर-पन्तर नहीं है। आति (योनि) -के १४ लाख मनुष्य योनि जानना । लि --१४ लाख कोटि कुल मनुष्य की जानना । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन क्रम स्थान १ १ गुसा हणन २ जीव समस ३ पर्याप्त ४ प्राण ५. संजा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति काय योग को नं० १ देखो 5 ९ १० वेद ११ कवाय १२ ज्ञान १३ म १४. १५ लेप्या १६ भव्यन्व १७ सम्यवस्थ १८ मं मामान्य ग्रालाप १६ २० उपयोग २१ ध्यान २२ व २ पर्यात ( १ ) कोष्टक नं० १४ नाना जीवों की अपेक्षा १ प्रयोग केवली गु स्थान १ की पंचेन्द्रिय पर्यास अवस्था ६ ६ का मंग को नं० १८ के मुजि १ आयु प्राण जानना (०) अपगत संज्ञा जानना १ मनुष्यगति जानना १ पत्रिय जाति जानना १ सकाय जानना (०) प्रयोग जानना (७) अपगवेद जानना (e) कपाय जानना १ केवल ज्ञान जानना १ यवाख्यान संयम जानना १ केवल दर्शन जानना (c) मलेच्या जानना -१ भव्यत्य जानना १ क्षायिक सम्याव जानना (०) अनुभव संजी (नसंज्ञो न यज्ञी) ? अनाहारक जानना १गल दर्शनोपयोग ये (२) १ ब्रतमानिनी शुध्यात (a) खवरहिन अवस्था जानना एक जीव के नाना समय में १ १ १ भंय ६ का मंग १ युगपत जानना १ ० प्रयोग केवलो गुण स्थान पर्यात एक जीव के एक समय में १ १ मंग २ का भंग १ · १ २ युगपत् जानना T ६-७-६ सूचना: इस प्रयोग केवलो सूरण स्थान में पर्यात प्रवस्था नहीं होती है। Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१४ अयोग केवली गुण स्थान १५ का मंग को नं. १८ के मुजिब जानना १३ भाव १? को ना १२ १४ भावों मेंन मुक्न लेन्या १ घटाकर शेष १३ भाव जानना १३ का भंग का नं. १८:१३ का अंग से नं: १५ के पुजित २४ २६ कमगाहना -को न०१८ देखा। क्य प्रकृतियां.प्रकृतियां---मनु-बायु र मानीय , मनुष्यमान पंचेन्द्रिय जाति १, मकवाय १, बादरकाय १, पक्ष १. सुभव है. प्रादेय १, यगोनि १, तोर्यकर १ थे १२ प्रकरयां जानना । मूत्रमा:- सामान्य कंवनी के नीकर प्रकृति १ घटाकर ११ प्रकृति जानना। सब प्रकृतिमा-५ द्विचरम ममय में को नं.१ के मुविज ८५ और चरम समय में उदय को १२ प्रकृतियों में प्रसासा वेदनीय ? जोड़कर १३ जानना। अपना- सामान्य केबली की उदव की ११ प्रकृतियों में असाता वेदनीय १ मिलाकर १२ की सत्ता जानना । संम्या-५६ जीव जानना । क्षेत्र पीक का प्रसंगयातवा भाग प्रमाण जानना । स्पन-लोक का अमन्यातवा भाग प्रमाण जानना । बाल---अन्त- हर्त से अन्तर्मुहतं जानना ।। मुचना-१४चे गुन्ग स्थान की स्थिनि जो दो समय की बताई गई है यह ५ सत्ता प्रकृतियों की नाश करने की अपेक्षा जानना मोर श्र... ऋ, ल बोलने में जितने समय एगें पूर्ण काल को बालन । अन्तर-एक समय में कार मास नक दम गुण स्थान में कोई भी जोव नहीं पड़े। जाति (योनि)-१४ लाख मनुष्य योनि जानना । कुल–१४ लाख कोटिकुन मनुष्य को जानना । १२ १४ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० स्थान नाम सामान बालाप १ २ ३ X 5 t * संजा ६ गति 13 है गुण स्थान जीव समास पर्याप्त प्रारण इन्द्रिय जानि काय योग वेद १० ११ कवाय १२ ज्ञान १३ संव १४ दर्शन १५ लेश्या १६ भव्यत्य चौतीस स्थान दर्शन १७ मम्यऋव ?= #fit १६ बाहारक २० उपयोग २१ ध्यान २२ लाखव २३ भाव ५ " पयांत नाना जीवों की अपेक्षा गुरए स्थान जानना जोव समास पर्याप्त "भा अपगत मंजा निरहित अवस्था इन्द्रियरहित काय योग प्रगत वेद, 12 י प्रकष य PL १ केवल ज्ञान ३ " 37 37 "I 21 21 P IT ( १ ) कोष्टक नंबर १५ 1 18 74 संगम, संयम, मममायम रहित अवस्था १ केवल दर्शन जानना अलेप्या अनुभय " १ क्षायिक सम्यक्त्व जानना अनुभम अनुभय 21 २ केवल ज्ञान केवल दर्शन दोनों युगपत जानता ध्यान रहित हावस्था जानना शनिव " " ५. आफ जान क्षविक दर्जन क्षार्षिक वीर्य क्षायिक सम्यक्rs, जीवत्व से (५) अतीत गुण स्थान या सिद्ध भगवान् एक जीव के नाना समय में Y १ केवल शान १ केवल दर्शन ९ सायकं सम्यद २ युगपत् जाना ५. भाव जानना प्रत एक जीव के एक समय में ५. १ केवल ज्ञान १ केवल दर्शन काहिम्याव २ दुगर जाना ५. भाव जानना ६-७-८ सूचना-पो ही पर्याप्त पवस्या नहीं होती है। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपना :-माई प्राचार्य कायिक भाव और जीवत्व ये१. भार मानते हैं। अवगाहना—को नं०१८ देखो। बंध प्रकृतियां--बंध रहित । बय प्रकृतिया-उदय रहित । सरय प्रतिया--सत्व रहित मना-मनन्त जानना । क्षेत्र-४५ लाख पोजन सिद्ध ताक (सिद्ध शिला) स्पर्शन-सिद्ध भगवान स्थिर रहते है। काल-पर्वकाल। अन्तर--अन्नहिन । ति (योनि)-जाति रहिन । कुन-कुन रहित। जति में Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० १६ नरक गति में चौतीस स्थान दर्शन *० स्थान सामान्य प्राचाग पर्याप्त अपर्याप्त १जीन बनाना एक जीव के समय में एक ममय में एक जीव के नाना एक जीच के एक समय में | समय में नाना जीव की अपेक्षा नाना चावा का अपना १४ गगाल जानना ले मिथ्यात्व, सासादन, मिथ, मविरत मृग्गा ये ४ गुग० जानना । सारे गुण स्थान ये दोनों गुमा जानना पुग ने ये गुण में में कोई १ नृग्गा मारे मुग्गः १ गुणः । १ से ४ सारे गगण. १स में कोई | १ले थे ये २ गुग न जाना माः जाजा जानना सुचना- मनुष्य और | निर्यच गति याना जीव सामान गुरुः स्थान में मरपर नरक गति में ! जन्म नहीं लेना, इसलिये वहां नरक गति में मातादन गुग स्थान नहीं । होता । (देखा गो. का २जीव समास संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याम " अपर्याप्त ये २ जानना पर्याप्ति की नं०१ देखो १ पर्याप्त अवस्था । १ जीव समास । १ समास १ प्रगर्याप्त अवस्था समाम १ समास १ में ४ गुगा में १ संजी पं० पर्याप्त मंत्री पं० पर्याप्त ले ये गुग में १ मंजी पं० पर्याप्त संजी पं० अपमंत्री पं० गति जानना जानना । जानता १ संजी पं० अपर्याप्त अवस्था जानना , र्याप्त जानना जानना . भंग । १ भग १ भंग १ भंग १ मे ४ गुग में ६का भंन जानना का मंग 'मन-भाषा-श्वासोच्छवास ३ का भंग जानना ३ मा भंग का भंग जानना ये ३ पटाकर शेष १३) जामना मामाग्यवत जानना इथे गुण. मे ३ का भंग ग्राहार शरीर । इन्द्रिय पर्याप्ति ये ३ का भंग जानना Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ! ४ प्राण १० को० नं० १ देखो ५. संज्ञा चौंतीस स्थान दर्शन I ६ गति को० नं० १ देखो २ १ नरकगति ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति ८ काय जसकाय १ यसकाय १० १ से ४ गु० में १० के भंग सामान्यवत् जानमा १ से ४ गुगा में ४ का भग सामान्यवद जानना १ १ से ४ गुग्गु० १ नरक गति जानना १ १ से ४ गु० में १ पंचेन्द्रिय (संजी) जाति १ से ४ गुण० में १ सकाय जानता ( } कोष्टक नं० १६ Y भंग १० का भंग १ भग ४ का भंग १ १ नरक गति १ मंग १ का भंग १ xसकाय १ भंग ४ का मंग १ नरक गति ७ मनोबल, वचनबल श्वास पेटकर (७) १ले अचे ! मं । ७ का भग आयु प्राण कायवल प्रारण १ इन्द्रिय प्रारण ४, ये प्राण जानना १ श्रसकाय कुराक ४ १४ गुगा० में ४ का भाग पर्याप्तवत जानना १ १ संज्ञी पं० जाति संज्ञी पं० जाति १ले ४थे गुर 2 १ ले ४ गुण ० १ नरक गति जानना | सूचना - १ले गुणस्थान में भरने वाला जीव सात ही (१ से ७ नरक) नरकों | में जन्म ले सकता है। परन्तु वे गुणस्थान में मरने वाला जीव १ले नरक में ही जन्म ले सकता है। १ में १ मंत्री पं० जाति जानना ! १ १ले थे गुण० में १ जसकाय जानना 19 नरक गति में १ भंग STT HOT १ मंग ४ का भंग नरक गति १ मंत्री पं० जाति त्रसकाय १ मंग ७ का मंग १ भंग ४ का मंग १ नरक गति संक्षी पं० जानि १ त्रसफाय Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १६ नरक गति में १योग १ भंग हयोग प्रा. मिश्रकाय योग १, पाहारक काय योग, पौ. मित्र य योग १, प्रो. काय योग १. ये ४ घटाकर (११) 4. मिश्वकाय योग! कामारणकाय योग १. ये घटाका (6) ने ४ गुगा में है का अंग मनोयोग ४. वचन योग४ वै० काय गोग, ये का भंग जानना १ मंग १योग दै० मिश्रकाय योग, कार्माणकाय योग ये २ योग जानना १ का भंग जानना | १ के भंग में मे १-२ के भंग कोई १ योग ल ४थे गंगा में १-२के भंगों में .१.२ के भंग जानना १ का भंग-माणिकाय | मे कोई १ भंग । में में कोई १ योग विग्रह मति में | जानना | योग जानना जानना २ का मंग-जामाकाय योग१.40 मिश्रकाय योग १, ये २ का भंग निवृन्य पर्याय (याहार पति के समय) अबस्या . में जानना नपुमक वेद १ मे ४ गुरंग - में ममक वे! नमक वेद ने ये गण. में । नामक वेद नमक वेद ११ कपाय २३१ नमत्र वेद जानना नासक वेद जानना स्त्री-भर वेद २३ सारे अंग भंग सारे भंग १ भंग ये २ घटाकर २३) २३-१ के भंग अपने अपने स्मारह के भंग २३-१६ के भंग अपने अपने म्यान । (१) ने २२ गुगल में | के मारे भंग मे गे कोई, (११ गूगग में के सारे ग जानना २३ का मेम-सामान्यवत् । 5.5-8 के भंग भंग जानना २: का भंग पर्याप्तवत् | १ने गुरग. में | ७-८-८ के भंग जानना ! को० न० १. ७-८-5 के भंग गर्याभवत पर्याप्शयन जानना जानना (२) २४थे गुग में करे ये गगा । । *गे गूगल में (1) गुगा० में । ४थे सुगम में ६-9- के भंग १६ का भंग पर चे २ .८ भंग- ७-८ के मंगों १६ का भंग पर्याप्तवत् । ३-७-८ के भग पर्याप्तवत् के मंग में ये अनावंबी को००१८ के | में गे कोई१ म तिवत् जानना जानना कराय ४, घटाकर शेष ममान अंग जानना । सूचना-यह भंग ले १६ का भग जानना नरक की अपेक्षा जानना Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दशन कोष्टक २०१६ नरक गति में - - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - असयम सारे भग । १ जान सारे भंग १जान कुजान, ज्ञान ३ -३के भग बुधवधिनान घटाकर ) ये ६ जान जानना १० म० मे १-२-गुग में : के भग में .३ के भग ३का के भग का भंग गे कोई १ज्ञान (११ गामे का मंगल गमाग में तीन कुजान जानना ! जानना मनि कृयन ये २ जानन। काभन जानना के से (कुमति-श्रुत-कुनधि) 1) मा में में काई जान । (२) ४८ नुग में ४थे गुगग में ।३ के भंग में मे का भग मनि-त्रत- का भंग जानना। ४३ गुगा में : का भंग तीन ज्ञान का भग कोई १ज्ञान अवधि ज्ञान ये 2 का भंग | ३ के भंग में से (मलि-थल-प्रपंधि जान) । जानना भूचना-पह का भम पट्टएर । काई १ न जानना नरक की अपेक्षा जानता । जानना १३ संयम १ मे ४ गुना में । असंयम १४ये गुगा में प्रनयम । १ सयम १ प्रनयम जानना १धनयम जानना १४ दर्शन १ भग । १ दर्शन प्रचक्ष दर्षन १. २.३ के भंग 12-के भंग चल दर्शन १, (E) ले रे गुग में | ले रे गुरण में। २ के भंग में ) ले गण में ले गुण में । के भंग में से अवधि दर्शन २ का भग २ का मंग से कोई १ दर्शन का भंग पर्याप्तवत् २ का भंग कोई १ दर्शन ये ३ दर्शन मानना प्रचक्षु दर्शन १, चक्षु दर्शन | जानना । (२) मा में । ४थे मूसा में के भंग में से १ये २ का भंय जानना ३ का भग पारितवन का मंन । कोई१दर्शन (२)रे ये गुमा में |३रे ४ये गुण में ३ के भंग में से गुचना -यहां का भंग । ३ का अंग सामान्यबन तीनों ३ का भंग कोई १ दर्शन ' पहले नरक की अपेक्षा । दर्शन जानना । जानना । जानना। १५ तेश्या | १ भंग । १लेश्या । १ भंग | लेश्या अनुभमेश्या । |३ का भंग जानना ३ के भंग में से ले थे गुगण में काम ३ का भंग कृष्ण-नील-कागोता कोई । लेश्या । ३ का भंग पर्याप्नवत । कोई १ लेश्या ये ३ अशुभ लेश्या जानना । | जानना । जानना १६ भव्यत्त । १ भंग १बस्था । १ भंग १अवस्था भव्य, प्रभव्य । २.-१ के भंग २-२ के भंग । (१) ने गुगण में । रले मुम्मा में २ के भंग पें । (१) १ले गुण. में ले गुण- में | २ क भग में Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १६ नरक गति में १७ सम्यवाद मिथ्यारब, सागादन, मिश्र, उपगम, सायिक, क्षयोपगम ये ६ जानना - - का भंग-भव्य, प्रभब्य । २का मोई, २६. भंग-पर्याप्तवत का भग कोई ये जानना । अवस्था अवस्था (२) रे रे ४थे पुरण में रे रे ये गुण में १ भव्य (२) गुगण , में मृण में । १भव्य १ भव्य ही जानना १ भव्य ही जानना! जानना भव्य ही जानना ।१ भल्य हो जानना| जानना । सारे भंग । १ मम्यधन्य सारं मंग १ सम्यक्त्व १.१-१-३-२ के भंग | मामादन. मिश्र, उपशम । '(१.१वे गुगण में । श्ले गरण में | मिथ्यात्व । ये घटा र (३) १ मिथ्यात्व जामना १ मिथ्यात्य १-२के भंग (२)२२ गुम्ग में रेगा में सामादन । (१) ने गुग में जे मृग में । मिथ्यात्व १मासादन जानना सामादन १मिथ्यात्व जानन।। १ मिथ्याव (३) ३रे गुरण में । ३रे गरा, में मिथ । अर्थात मिपान में नर जानना । मिथ जानना १ मिश्र । कर ले नरक से सातों । (४) ४ गुण में ४चे युग में । ३-१ के अंगों । ही नरसों में जन्म । ने नरक में | १.२ का भंग । में से कोई लेता है। का भंग-उपशम. | सम्यक्त्व । (२) थे नुग्म में मुरण में के भंग में क्षायिक, क्षयोपशम ३ . | जानना २ का भग-१ये नरक में। का भंग । से कोई का भंग जानना क्षायिक, क्षयोपशम ये 2 का । सम्बकत्व रे से उवे तक नरक में भंग जानना अथांत ४थे २ का भंग-ऊपर के के गुग्म में मरने वाला | भंग में से क्षायिक स०१ जीत्र ने नरक में | घटाकर उपशम, क्षयोपशम सम्यक्त्व जानना (१) भूचना--द्वितीयोपशम सम्यक्त्वो मर कर नरक में नहीं आता है (२) सूचना- यहां २ का भंग (ले नरक की अपेक्षा जानना - १८ राज्ञी १ से ४ गुमा० में १ संजो जानना १ संशी संजी संज्ञी ले ४थे गुगल में १ संज्ञो जानना सभी Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० १६ नरक गति में चोटीस स्थान दर्शन ___१ । २ । यानादिचय धर्म ध्यान ? गैर ध्यान ४, प्राज्ञाजोरकर ६ का भंग वित्रय धर्भ ध्यान जानना ये भंग (21 ४ो गृगग० मे व गुमा० में १० के भंग में | १० का भंग-ऊपर के १० का भग | से कोई १ च्यान के भंग में भपाय विचय! जानना धर्म ध्यान १ जोड़कर १० का भंग जानना २२ प्राव YE सारं भंग १ भंग सारे भंग | पा० मियकाय योग १, ।। वै० मिथकाय योग १ अपने अगन स्थान सारे मंग में से | वचनयोग ४, मनोयोग | अपने अपने स्थान । सारे भग में से मा० काय योग, कार्माकाय योग १ के सारे भंग | कोई १ मग । ४, 4. काय योग १, के सारे मंग कोई १ मंग प्रो. मिथकाय योग १, ' ये घटाकर (४६) जानना जानता ये घटाकर (४२) | जानना जानना और काय योग १ ४६-४४-४० के भंग ४२-१३ केभंग स्त्री-पुरुष वंद २ ये ६ (२) १ले गुगण में हले गूगा में ११ से १८ तक (१) १ले गुगण में १ले गुण में ११ से १८ तक घटाकर (५१) १६ का भंग । ११ से १८ तक ! के भंगों में से | ४२ का भंग-पर्याप्त के ११ से १५ तक के के भगों में से मिश्यास्य ५, अविरत | के मंग-को.नं. | कोई एक मंग | ४६ के भंग में में योग । भंग-को-नं. कोई भंग (हिंसक इन्द्रिय विषय ६ | १% देखो जानना घटाकर १५ देखो जानना हिम्य ६) १२, कषाय २३ 40 मिश्रकाय योग १ (स्त्री-पुरुष वेद घटाकर) कारणकाय योग १ वचनयोग ।, मनोयोग ४, ये २ जोष्टकर ४२ का ! 4. काय योग १, ये ४६ भंग जानना का भग (२) ४थे गुम्प० में ४थे गुण में से १६ तक (२) सासादन गुण. में । २रे गुण में १ मे १७ तक ३३ का मंग-कार के | से १६ तक के । के अंगों में से ४४ का भंग-ऊपर के ४ १० से १७ तक के के मंगों में से | ४२ के भंग में में भंग-कोनं० । कोई भंग के भंग में से मिथ्यात्व ५ | भंग-को० नं कोई १ भंग | मिथ्यात्व ५, अनन्ता- १८ देखो जानना घटाकर ४४ का भंग ८ देखो जानना नुबंधी कषाय ४, ये जानना घटाफर २२ का भंग (३) ३रे ४ गुणा में ३रे ये गुण में | ६ से १६ तक जानना ४० का भंग-ऊपर के ४४ से १६ तक के के भंगों में से Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतोम स्थान दर्शन काप्टक नं० १६ नरक गति में नंग के भंन में गे परन्त नबंधी भंग-को० कोई भंग काय ४ घटाकर ४०. देखो । जानका भंग जानना मारे ग १ भंग । मारे मंग १ भंग उपगम-शामित्र उपमम मम्यपत्र १, सम्यकत्र २. । मनधिनान १ कृवान ६. ज्ञान , (१) ले ना में ल गुगा: में ! भंगों में चे २ घणकर (१) वन, लयि , । २६ का भग ?: का भंग-2 में कोई भंग । २५-२५ के भंग क्षयांगनम सम्यक्त्व : जान ३, दर्शन २, देखो जानना । (१) ले गुग में ले गुगाल में ? के भंवों में नरक गनि १. कषाय४, लब्धि ५, नरक गति १ । ' को नं. १८ । २५ का अंग-पर्याप्न के १० का भंग मे कोई १ मंग नपुसक लिग १ बपाय ४, नपु'मक लिंग, देखो २८ के भंग में से कौन०१८ देखी । को० नं० १८ प्रमुभ लश्या, अनुलेन्पा :, मिथ्या । कुअवधि जान घटाकर मिथ्यादर्शन १, दन १, नयम १, =". का अंग हानना अमयम । अज्ञान है । मजान १, अमिय, । (२ ४थे गुगा. में थे गगाल में के मंगों में प्रसिदत्व १, पारिन् । पारिवामिक भाव : २७ का भंग १७ का भंग ।मे कोई भंग रगामिन भाव ३ ।। ये २६ का भंग जानना पर्याप्न के २० केभंग को००१ यो नं. १ ये भाव जानना । (२) २ गगात में रेगुग में के भंगों में में से उपक्षम सम्बवत्व २४ क भग-कार के , १६ का भग-जोल ने कोई १ भंग। घटाकर २५ का भम । भंग में म मिय्यादर्शन नं. १६ देखा । जानना जानता १. अभयान १, ये | पोरनं०१८ घटाकर २४ का भंग । । देखी । पनाः यह २७ ग जामना भग थे मुगः म्थान में . १३) रे गुगण में ३रे मुग्गर |१६ के भंगों में मर कर ने नरक में 2. का भग-ऊपर के ४ १६का भंग !मे कोई भंग | पाने वाले जीवों के लिये। के भंग में अववि दर्शन , को० नं०१८ देखो। जानना जानना जोड़कर २५ का भंग ! को० नं १८ जानना देखो (४) ये नूगा में । वे रण में के भंग में १ले नरक में १८ का भंग कोई १ भंग । जानना ! सो Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन २ २० का भंग उपगम क्षायिक सम्यचस्व २, ज्ञान ३, दर्शन ३, विव क्षयोपशमसम्यक्त्व, नरक गति १, कमान ४. नपुंसक लिंग २. अशुभ श्या ३, असंयम १ अज्ञान १, अनिल १, जीवब १, भव्यत्व १२८ का भंग जानना २ नरक में उये तक के नरक में - २ का मंग ऊपर के २८ के भंग में ग क्षायिक मम्म १, घटाकर २७ का मंग जानना ( ८६ व ' कोष्टक नं० १६ ५ को० नं० १८ देखी को० नं० १८ देखो, 15 नरक गति में Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ पवाहना-१ले नरक की जघन्य अवगाहना ७ घनुष : हाथ मंगल प्रमागा मिना मोर वें नरममा उत्कृष्ट अवगाहना ५०० धन्य । जानना, बीच के अनेक भेदों को अवगाहना जानना । बंध प्रकृतियां-१०१ ११) ने रे रे नरक में पयोम अवस्था में १०१ प्रकृतियों बन्ध होता है । बन्धयोग्य १२० प्रनियों में से नरक हिक २, नरकायु १, देवद्विक २, देवाय १, वैक्रियकतिष २, पाहा रकदिक २, एकन्द्रियादि जाति ४. साधारण १. मूक्ष्म १. स्थानर , अपर्याप्ति १. मातप १ इन १६ प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता। कारण नारकी मारकर इन अवस्थामों में जन्म नहीं ले सकता है । इसलिय में १६ प्रतियां घटाकर १०१ जानना । EE (२) ले २२ रे नरक में निर्वृत्य पर्याप्त अवस्था में तिर्यचायु १, मनुष्याय १ इन दोनों का इन्ध नहीं होता इसलिय ये २ ऊपर के १०१ प्रकृनिया में म घटाकर ६६ प्रकृतियों का बन्ध जानना। १०० (३) ४ ५ ६ ७ नरक में पर्याप्त अवस्था में १०० प्रकृतियों का बन्ध होता है। ऊपर के १०१ प्रकृतियों में से वीर्वकर प्रकृति १ घटाकर १०० जानना (देखो गो० क० मा०६३) 22 () ये व ६वें नरक में निकृत्य पर्याप्त अवस्था में तिर्यचायु १, मनुष्यायु १ व २ का बन्ध नहीं होता इसलिये थे २ ऊपर के १०० प्रकृतियों में से घटाकर ६८ प्रकृतियों का कम जानना । ६५ (५) ७३ नरक के नित्य पर्याप्त अवस्था में मनुष्य गति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी १, उच्चगोत्र १, इन ३ प्रकृतियों का बन्ध नहीं होता इसलिये ये ३ ऊपर के १८ प्रकृतियों में से घटाकर ६५ का बन्ध जानना । उदय प्रकृतियां-७६ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ६ (तीन महानिद्रा घटाकर), वेदनीय २, मिथ्यात्व-सम्यग्मिथ्यात्त-सम्यक् प्रकृति ३, कषाय २३, (स्त्री-पुरुष वेद घटाकर), नरकायु १, नीचगोत्र १, अन्तराय ५, नामकर्म ३०, (नरक गति १, पंचेन्द्रिय बाति , निर्माण १, बैंक्रियकत्रिक २, तेजस १, कार्माण १, हुंडक संस्थान १, स्पादि ४, नरकगत्यानुपूर्वी १, प्रगुरुसवु १, उपघात १, परपात १, उच्छवास १, अप्रशस्त विहायोगति १, प्रत्येक १, बादर १, त्रस १, पर्याप्ति १, दुर्भग १, स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, प्रशुभ १. दु:स्वर १, अनादेय १.मयणकीर्ति १ये ३०) इन ७६ प्रकृतियों का उदय जाममा । (देखो गोक० गा०२६०) सत्व प्रकृतियां-१४७ (१) १ल २रे ३रे नरक में देवायु १ घटाकर १४७ प्रकृतियों का पत्ता जानना । १४६ (२) ४थे ५३ ६ नरक में देवायु १. तीर्थकर प्रकृति १ये २ घटाकर १४६ का सत्ता जानना। १४५ (३ ७वें नरक में मनुष्यायु का बन्ध नहीं कर सकता इसलिय देवायु, तीर्थकर प्रति १, मनुष्वायु १ ये ३ घटाकर १४५ प्रकृज्ञियों का सत्ता जानना । २६ २७ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संख्या असंख्यात नारको जानना । क्षेत्र-लोक का पसंख्यातवां भाग प्रमाण जानना। स्पर्शन--6 मध्यातवा भाग प्रमाक्ष जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा १ले नरक में जघन्य आयु १० हजार वर्ष जानना भोर सातवें नरक में उत्कृष्ट प्रायु ३३ सागर प्रमाण जानना, बीच के अनेक भेद जानना । प्रन्सर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई मन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा अन्तमुंहूतं से भसंल्यात पुद्गल परावर्तन काल तक नारकी नहीं बन सकता है। जाति (योनि)-४ लाख योनि जानना । हुस-२५ लाख कोटिकुल नरक में जानना । ५४ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक २०१७ चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य पालाप| पर्याप्त तिथंच गति में अपर्याप्त 11 जीव के नाना । एक जीव के नाना जीवों की अपेक्षा समय में । एक समय में । एक जीब के नाना एक जीव के एक समय में समय में नाना जोव को क्षा १ गुण स्थान ५, । सारे गुणः | १ गुण सारे गुण स्थान | १ गुण. मिथ्यात्व, सासादन, : (१) कर्म भूमि में १ से ५ तक से ४ गुण जानना १से ५ में से | (१) कर्म भूमि में ले | १ने रे गुण. १-२ में से कोई मित्र, अविरत देश के गुण स्थान जानना १ गुण. संयत ये (५) (२) भोग भूमि में १ ४ तक से ४ गुण जानना १से ४ में से | (२) भूमि भूमि में १-२-४ गुण. १-२-४ में से के मुगण स्थान कोई १ गुण | १-२-४ गुण जानना जानना कोई १ गुण २जीव समास १४ | ७ पर्याप्त अवस्था १ समास १ समास ७ अपर्याप्त अवस्था १ समास १समास को००१ देखो ७-१-१ के भंग ७-६-१ में भंग । (१) कर्म भूमि में (१) कर्म भूमि में पहले गुमा में पहले गुण में |७ में से कोई पहले गुण में १ले गुण में ।७ में से कोई ७ जीव समास पर्याप्त |७ में से कोई १ | समास जानना ७जीव समास अपर्याप्त ७ में से कोई११ समास अवस्था जानना | समास जानना मनस्या जानना | समास जानना . जानना २२ से ५ तक के गुण में २रे से ६ गुण में मंत्री पं०पर्याप्त २रे गुण में | २रे गए. में में से कोई १ संजी पं० पर्याप्त जानना मंजी १० पर्याप्त जानना ६ जीव समास अपर्याप्त । ६ में से कोई१ १ समास (१) भोग भूमि में से ४ गुण में १ संजीप० पर्याप्त अवस्था एकेन्द्रिय सूक्ष्म समास जानना जानना '१ से ४ गुग में १ संज्ञो पं० पर्यास जानना अपति घटाकर दोष नहीं १संजी पं० पर्याप्त जानना जानना समास जानना (२) भोग भूमि में १-२-४ गुरण में संजी पं० पर्याप्त १ मंत्री पं० अए १ संज्ञी पं० अपर्याप्त जानना जानना यति जानना ३पर्याप्ति १ भंग १ मंग १ भंग १ मंग को नं०१देखो -५-४.६ के भंग मन-माया-उवासो Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १७ तिथंच गति १.२ मूगा में का भंग ३ का भग जानना ....४ गुग में का मंग | ३ का भग जानना (१) कर्म भूमि में 2 घटाकर गंग | मे ५ गुग में म५ नग्न मे का मग ३-2 के भंग का मंग मंजी पं. का भग (१) कर्म भूमि में ' जोन में गामान्यवन नरेगा में जानना का भग-माहार, पारोर म १ल गण में । ५४ के अंगों ' इन्द्रिय पर्याप्ति के 2 का अंग का भंग द्विन्द्रिय से ५-४ के भंग में । में में को। जानना अमजी पंगन्टिय तक के में कोई भंग नं -ग जामन () भोग भूमि में नीचों में एक मनपर्यामि जानना ...४ मुगा में पटाका ५ बा भंग बा भग उपर नि . . अनुसार जानना । जानना मुचना-लब्धिमा पपन अपरं. का भंग-कप्रिय मचं स्थानों में पर्याम जाणे म मन और भाषा अवस्था वे ममान मर्च पाहिये पटावर पमियां होती हैं। . का भन जानना () भंग भूमि में । १ से ४ गरा में म४ गुगण में का भंग । का भग भामान्यवत का भंग | जानना जानना भंग । १ भंग १०----5-६-४-१० मनोबल, बचन बल, व्यामो के भंग शाम प्रामा, ये घटा र. 1)सम भूमि में १ से १ गुण म्यानों में ५ बाग में हरेक में १० -5-1-1-1-1.3 के मंग में. क. मग हक में का का भंग (2) नम भूमि में । संझी पदिय जावों में भंग जानना जानना ने मुग्न में मामान्पा जानना का भंग मंजी गुगण में ले गगा में 2-1-3-६-४ के न्द्रिम जीवों में ४ भाग १७ कोनं०१ देख भंग : भंग १ले रे गुगण में ! 3-3-६-५-४-३ 3-3-६-५-४-३ के भंग में में के नंगों में में कार कोई मंग Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबीस स्थान दर्शन कोष्टर ने तियंच गति का भम प्रसा -5-5-1.के भगों में से कोई मनांबल, वचनबत, वासीगनन्द्रिय जीवा म एक मनो- भंगा में में कोई : भंग जानना | बाम, ये पारण पटाकर बल प्रागा पटाका १ का भंग भंग जानना : का भग जानना जानना का भंग असंगी। का भंग गिन्द्रिय पचन्द्रिय जीवा में ऊपर के जीवा में मनीबन पौर कग मा चन्मिय क के भंग न्द्रिय प्राण य२ घटाकर के मजिब जानना का भंग जानना 3 का भंग चक्षुरिन्द्रिय काभग श्रीन्द्रिय जावा में ऊपर केके भग जोवा में मकान, कर्णेन्द्रिर : |ग में कॉन्दिय प्रामा १ पटाकर : मोर झुरिन्द्रिय ये ३ प्राग' का भंग जानना घटाकर का भंग | ५ का भग वीन्द्रिय जारी का भग द्विन्द्रिय में ऊपर के : भग में स जीवों में मनोबल, कान्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय प्राग १ घटाघर वक्षु, वाणेन्द्रिय प्रागा । ५ का भग छट.कर का भग जानना का भग हिन्द्रिय जीवां का भंग :न्द्रिय म अपर के ५के भग म ग जीवों में पायू प्रामा, काय प्रारम्ट्रिय प्राम्ग १ घटाकर बल, श्वासोच्छवास, स्पर्श का भंग इन्द्रिय प्रागण 2४ प्राण ३ का भंग एकन्द्रिय आवा (२) योग भूमि में में ऊपर के ४ क भंग गम र म गण मे म मुग्ग में हरेक रसनन्द्रिय पान १ घटाकर १० का भंग गंज्ञा पंचेन्द्रिय में१० का भंग । हग्न में १० शेष ३ अथांत आयु प्राण. . वोचों में मामान्वबन जानना जानना का भग जानना कार्यबल प्राग, स्पगंन्द्रिय । य३ प्राग जानना 'सूचना-लदम्य पर्याय निवन अमंत्रीपचेन्द्रिव अपर्यात के सब! अवस्था हो है, परन्तु तीराजा स्थान में मंशी अर्मनी दोनों अवस्थाएं जानना Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोम स्थान दर्शन कोष्टक नं. १७ तिथंच गति भाग भूमि . गुग में हरेक गुण में १.४ ग्प भ का भंगका भगका भंग जानना ऊपानी पचन्दिर जीवा हरक में जानना , व अजिब ज मना ५ मा १ भंग भंग १ मंग को नं. १ देखी १) कर्म भूमि में 1-1 के भंग १ म ५ गुण में १ म.. गुगाम का मग का भंग सामान्यच बार भंग जानमा न रे गुग में ले रे गा में | ४ का भंग (२) भोग भूमि में ४ का भंग पांमधद का भंग । जानना १ ४ गगा में में ४ गुण में ! ८ का रंग (२) योग भूमि में का भंग पर्याप्तवत् का भा। जानना १-२-४ ये गृगा में १-२-४ ये गुगण में । ४ा मंग ! ४ काभंग पांमधन का भम । जानना १ तिर्यच गति जानना । १ तिच गति जानना __इन्द्रिय जानि . १जाति जानि जानि १ जाति पोनं०१ देखो . -१-१ के मंग ५-३ के भग (१) कम भूमि में . (१) कर्म भूमि में ने गुगा में ले गुण में में से कोई ५-६ भंग |१-२ मृगण में पांचों में से कोई । ५ जाति एकेन्द्रिय में ५ जातियों में से १ जानि जानना १ले २रे गुग में ही जाति में से कोई जाति !न्द्रिम नक के पांचों ही। कोई १ जाति १५० जाति । ५ पांचों ही जानि जानना १जाति जाति जानना जानना । सेम ५ गगा में में ५ गुग में ! पंचेन्द्रिय जानि जानना पंन्द्रिय जानि। (२) भाग भूमि में । (२) भोग भूमि में १-२-४ नण में १५० जाति १ग ४ गुण में से गूगण में | पंन्द्रिय १.२-४ ये गुण में १५० जानि | जानना पन्निव जानि जानना | १५० जाति | जानि जानना। १ पंचेन्द्रिय जानि जानना जानना काय १काय काय को नं.१ देतो ६-१-१ के भंग ___E-४-१ के भंग (१) कर्म भूमि में (१) कर्म भूमि में ले गूमा में काय में ले गुरण में काय में से . . काय १ते गुरण में Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.१७ तिथंच गति में ६ का भंग के भंग में से । ६ काय म से! काय जानना काय में से कोई : काय में से मानपदबाना | काई १ काय , कोई १ काय रे गुगण में : १काय जानना कोई१काय २२ मे ५ गुगा में रे मे ५ मुरण में | जानना ४ काय पृथ्वी, जल, वनस्पति रे गुण में 1 काम में से १ सकाय जानना १ असकायमकाय अमकाय ये जानना काय में से कोई | कोई १ काय [२) नाम भूमि में काय जानना । (२) भोग भूमि में काय जानना | जानना १ मे गुरण में १मे ४ गुगा में १ सफाय | 2-2.6 गुगण में म १ बसकाय चमकाय जानना | सकाय जानना जानना १ त्रसकाय जानना १ त्रसकाय जानना जानना योग११ भंग १योग १ भंग योग प्रा. मिथकाय योग प्रो. मिथ काय योग । और मिथकाय योग १ | कामांग का योग कारण नाय योग ग्रा० काय योग में घटाकर () ये२ योग जानना बै० मिश्वकाय मांग | १-२-१-६ के मन १-२-१-२ के मंग १ (१) कर्म भूमि में ११) कर्म भूमि में 4. काय योग १ १ मे ५ गूग में १ मे ५ नुसा में के भंगों में में ले रे गा में -२ के भंगा में मे १-२ के भंगों में के ४ घटाकर (११) का भंग मंजी का भंग कोई १ योग का भंग विरह गति में कोई भंग जानना , में कोई१ मंग पंचेन्द्रिय के मनोयोग ४, जानना कार्माग काय योग जानना ! जानना वचन योग, औ० काय ' २ का भंग माहार गर्याति योग काभंगों के ममय कार्मारण काय योग । जानना मौ० मित्रकाय योग ले नगा में गुण में-१२- के भंगों . मंग जानना i- के अंगों में से का नंग दीन्द्रिय के भंगी में से कोई में में कोई ! (२) भाग भूमि में कोई मंग जानना १-२ के भगों में अमजी पन्द्रिय . के ? योग जानना योग जानना १-२-६ ये गुगण में में कोई भंग जीव के मो. काय मोटर १-२ केभंग ऊपर के कम । मानना अनुभव वचन योग । । । भूमि के मुजिब जानना का मग जानना १का भंग केन्द्रिय जीव में एक प्रौदारियक काय वोग जानना (२) भोग भूमि में Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १७ तिथंच गति -- मे गग्ग में का भंग ऊपर के गजी । पंचेन्द्रिय जीवों के मूजिक जानना ६ मंग , बंद १ मंय १ बंद को नं १ दखौ -३-१-३-२ के भंग ३-१-३-१-३-२-१ के मंग : (१) कर्म भूमि में (१) कर्म भूमि में १५ गुरण में से ५ गुग में। भंगो म ले गुगा में व नगग में ३-१ अंगों में में ३ का भंग मंत्री पं० ३ का भंग में कोई बंद ३-, के भंग पर्याप्तवन जानना' -१ के भंगों में में कोई १ वेद निर्वच के वेद जानना । जानना रेगुण में कोई १ भंग जानना जानना श्ले गुण में रेल गुरण में ३ का भंग संजो पं० तिर्यच के , २रे मुरण में ३-१-३ के अंगों १ का नंग एकेन्द्रिय स | १-३ के अंगों में '१-: के भंगों :नों वेद वानना ३-१-३ के मं में में से कोई चतुरिन्द्रिय नक के नियंच से कोई १ भग में गे कोई का भंग एकेन्द्रिय में चतु- से कोई १ भंग वेद जानना के नपुसक वेद १ जानना जानना। वेद जानना रिन्द्रिय तक के जीवों में जन्म , जानना ३ का मंग मसजी पं० ___ का लने अपेक्षा जीवों में ३ बंद जानना | का सग अमजी पं० जीवों में : (२) भोग भूमि में जन्म लेने की अपेक्षा तीनों वेद में गुण म : १४ गुण में! कभंग में से जानना २ का भंग संज्ञो पं० । २ का भंग | कोई १ वेद ४था गुरग यहां नहीं होता। तिर्यंच के स्त्री. पुरुष (२) योग भूमि में ये २ वेद जानना १ले रे गुगा स्थान में -२ गुण में२ का | २ के भंग में से ।२का भंग म्त्री, पुन्य व र बेद भंग | कोई वेद जानना ४ये गुग में १का एक पुरुष पद जानना ११ कदाय ५ सार भन . १ भंग भंग नु रुष वेद -- को.नं. १ देखो | २५-२३-२५-२५-२१ २५-२३-२५-२५-२३-२५- | १७-२४-२० के भंग २४-१६ के भंग (१) कर्म भूमि में (१) कर्म भूमि में . जानना | जानना Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०१७ तियंच कति में दो गुगाम १ले गुगा में ले गुण में | --- के र ले गुगण में १२ गगा में । - के २५ का मनी पंचेत्रिय तिपंची | -- के मंग भंगा में में कोई २५-२३-२५ के भंग --- के भंग. मंगों में मे । में मामान्यवत जानना को० न०१० देखो मंग। को नं०१५देखो कोई १ र | ३ का भंग गन्द्रिय में वक्ष. , रे गुन्ग में रे गुण में रिन्द्रिय नक के नियंत्रों में ऊपर २५ का भंग गर्यामवन --- के मंग । के १५ के मंग में गे स्त्री-पुरुष जानना । को नं०१८ देखो | २ वेद घटाकर ३ का भंग ! २३ का भगले गुण के जानना केन्द्रि में चरिन्द्रिय । ५ का मंग अमंजी पंचेन्द्रिय नक जन्म लेने की अपेक्षा जीव में ऊपर के के भंग में . पानना स्त्री-पुष्य येवंद जोड़कर २५ २५ का भंग ले गुण का भंग जामन्दा के प्रमंजी पंचेन्द्रिय में जन्म लेने की अपेक्षा २५ का भग मी पंन्द्रिय जानना • तिरंगों में सामानगबन जानना। ४या गुगा यहां नहीं होना गगा में रे ४थे गुगा में 5-3-5 भ योग भूमि में ! १ का भंग ऊपर के भंगा में में -- के जग में से कोई ले - गृगा के में ब रे गुग्ग में ऋनलानुकत्री काय? पाकर को नं.१ टेस्नो भग " का भंग गर्याप्तवन -८-६ भंग का भग जानना जानना | को नं0 देखो व मुग्म में व गृण मे ५-- के भंगोंय नगा में थे गूग में ६-७-८के . १७ का भंग ऊपर के २१ क ५-- भंग में में कोई ! १६ का भंग पर्यास के २-|-3-5 भंग | भंगों में म । मन में अनन्याम्यान कषाय ४ को नं.१ देसो भंग के भंग में में स्वी वेद | को नं.१६ देखो घटाकर का भंग जानना घटाकर का भंग योग में (नरेगा में लज गण में -:- के भंगो का भंग ऊपर के कम भूमि -- मंग में में कोई के -५ के भाग में से एक नए मक वो ना ? देखो भग वह बटाकर ४ का मग जाना मुग में थे गुगग में -- के भग Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोम स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १७ तिर्यच गति १२ जान कूज्ञान ३, नान ३ ये ६ जान जानना २० का मंग में से एक नायक को नं.१ देशों में से कोई १ भंग ना वेद पटाकर, २० का भंग भंग यबधि ज्ञान घटाकस) जानना २-२-केभग १ भंग ११) कर्म भूमि में --:-- के भंग रले २रे गृगग में नरेगुगा में १ के भग में से (१) कर्म भूमि में का भंग कुमति कृति. २ का मंग कोई१ ज्ञान लेना में ले गग्गल में के भंग में ये ये कुजान जानन जानना २ का भंग एमन्द्रिय में अनजी का भंग कोई१ जान चा मृगग यहां न होना पंचेन्द्रिय नक के जीवों में जानना (1) भोग भूमि में कुमनि, कुश्रुनि २ जान . ले गृगग में जानना २ का भंग कुमनि, कुधन ल नु ग्म में १-.-३ मुगग. में ६ केभंग में में ये कुजान जानना का भंग मनी पंचेन्द्रिय में ३ का भंग कोई १ जान .. गुग्ग में भ गृग म ३ के मंग में मे कुमनि, कुश्चति कमवधि ३ जानना ३ का भंग मनिधन ३ का भंग कोई ज्ञान कुजान जानना अवधिनान व ३ नान जानना व ५ गुग में उंच गगा में ३ केभंग में ने जामना ६ का भंग मति, अति अवधि : का भग कोई जान जान इन तीनों का भंग जानना जानना बोग भूमि में " १-:-: गुगए में -:-नगर में कभंग म में ३ का भंग तीन गृजान ३ का भंग कोई१ जान जानना जानना ४य गुगा. में है गुगाल में के भंग में में का भंग मनि कुल-अवधि का भंग कोई एक जान. जान ये : मान जा ना जानना सबम १-१-१-* भंग १ संयम (१) कर्म भूमि में (1) कर्म भूमि में म ४ गुग में १ म मा में समयम पल रे गुग में | १ले रे गुग्ग में १ असंयम असंयम, मयमासंयम ये मयम जानना Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १८ दर्शन अवर १ दर्शन १. नारा १ अनगम जानना 2 गा मे 1 १ मानना भोग भूमि म गुण में १ अगंयम जानना १ ६ १-२-२-३-१-२-३ के भंग ३) कर्म भूमि में ५.१ गुगा में १ का भाग एकेन्द्रिय द्विन्द्रिय श्री जीवों में १ घर दर्शन ही जानना • का भंग चक्षुरिन्द्रिय श्रीर अगं पंचेन्द्रिय जीवों में चक्षु दर्शन वर्शन २ | दर्शन जानना रं गुगा में का मंत्रिय के यचक्षु | दर्शन २ का भंग जनना भूगा० मे कानपंचेद्रिय के हो 1 | अ० चक्षु द० अवधि दर्शन यदर्शन जानना ५ गुगा मं गंग के जानना (२) भांग भूमि में ( £= ) कोष्टक नं० १७ १ ग्रनयम ५ मे १ सयमानयन १ मे गुगा म १ श्रनयम १ भंग १ले गूगल में १२ केभी में में कोई एक भंग जानना गुगा मे २ का भंग गुमे कभंग व गुरुण २ कामग I ? नयमनियम १ प्रमचम १ दर्शन १-१ के भी में से कोई १ दर्शन जानना २ का भंग में मे कोई १ दर्शन जानना ३के भाग में से को ? दर्शन जानना १ धनयम जानना (२) भोग भूमि में १४ गुण म १ न जानना 2 १-९-२-२-३ के भंग (१) कर्म भूमि में १] [२] मृत्य० में १-२-२ के भंग पर्याप्त व जानना ४था गुण० वहां नहीं होता 2 (२) भोग भूमि में १ २२ गुरग० में २ का भंग अक्षु दर्शन चक्षु वर्शन का मंग जानना ४ मुख० मैं ३ का मंग चक्षु ददर्शन, चक्षु दर्शन, अवधि दर्शन ये का भंग जानना 1 तियंच गति - २ प्रणयम १४ गुगा मे १ ग्रग यम १ भंग १२ गुण० मे १२२ के मंगों में मे कोई भंग जानना १-२ गुण० में २ का मंग ४० में ३ का मंग 1 T १ प्रमंयम कोई १ दर्शन १-२-२ के भग में से कोई दर्शन जानना २ के मंग में मे कोई १ दर्शन जानना के मं में से कोर्ड १ दर्शन जानना Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबोस स्थान दर्शन कोष्टक २०१७ नियंच गति । २ १५ नंदा को. नं. , देखो १रगगग में १-२ गुण १.२ के भंग में। का भग पचभु दर्शन. का भंग में कोई १ चच न य दर्जन दर्शन जानना । जानना या थे रागण में गुगण में ३ केभंग में ३ का मंन नोनों दर्शन ३ का भंग । से कोई जानना दर्शन जानना १ भग १ नेण्या १ भंगलेल्या ३.६-३-: के भंग ३-१ भग (E) कर्म भूमि में ii) कर्म भूमि में इन गुना में ने मग में के भंग में गे ले गगा। में लेने गया में के मंग में का भग-एकन्द्रिब ये ३वा भंग कई अश्या का भग-एकन्द्रिय मे मंजी | ३ का भंग से कोई १ असंजो पवेन्द्रिय तक तीन जानना पनेन्द्रिय सक जीवों में अशुभ लट्या जानना अशुभ लेश्या जानना। न्या जानना १ मे ४ गुगा में ये ४ नग में भंन में में I का भंग मंत्री पनेन्द्रिय का भंग 'कोई नया! थाहगाल यहां नहीं होता i तियनों में है ही लया । जानना |(| भोग भूमि में जानना १२. नन्ग में ---४ गुगण में लेष्मा ५३ गुगल में में गम में कभन में न का भंग कापोन : का भंग ३ शुभ का भंग -कोनेटया मेरा जानना लढ्या जानना जानना (२) भोग भूमि में मृगना-लम्च्य पर्याप्तक मे । गण में १ मे ४ गग्गमे क भंग में में गंग दिय तियंच के मध्यान का भंग : शुभ न्नेष्या का भंग काई। नश्या गग स्थान और पशुभ जानना : जानना लेण्या जानना (म्रो गो का मुचना-पर्यास चवस्था में मियाटिया । मा०२६- ओर ५४६) । मध्यष्टि जीबों को पीन लया के प्रचम अंश ही होते हैं दिखो गो० क. मा. ) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ती स्थान दर्शन सूचना २ (म) भवनको १६ भव्यत्व भव्य, प्रभव्य १७ सम्यवत्व ईशान्य स्वर्ग के देव अवस्था में असंगत नियंत्रों में जन्य कार्यात एल गुन्ग में मरकर नियंत्र गति में जन्म लेने सूचना नरक मौर देवगति में देदक सम्यक्त्व उत्पन्न होने से पहले अगर भांग भूमि में जन्म ने भकते है (देख० ० ५४६) सुचना ४ मानुषानर पर्वत के आगे कर स्वयं प्रभावन के पहले जो असख्यात द्वीप है वे भी सब तिन जघन्य भांग भूमियां कहलाते है । को० नं० १६ देखी ३ I २ २-१-२-१ के भंग (१) कर्म भूमि में गुगा में २ का भंग भव्य प्रभव्य २ का भंग भव्य, अभव्य से जानना २-३-८ गुग्ग एक भव्य ही जानना में S ( १०० ) कोष्टक नंबर १७ ! गुग्ण मैं मरकर याने १-१-१-२-१-१-१-१ के भंग जानना (१) कर्म भूमि में श् गुरष में १ मिथ्यात्व 6 चे १ भंग शले गुरु में २ का मंग घ्या ही रहती है (ब) वाले जीवों के १ ले गु० में २ का भंग ሃ - २ ान २-३-४-५ गुण ० [0 में एक भव्य | २-३-४-५ गुर० मे १ भव्य जानना हो जानना (२) भोग भूमि में ९ भव्य जानना १ सम्म मे २.३.४ सुरण १ भव्य जानना १ भंग १ मिथ्यात्व वाने जीव भांग भूमि में अपर्याप्त (निवृत्य पर्याप्तक) समरकुमार स्वर्ग मे १२ स्वर्ग तक के मिथ्या दृष्टि देव पर्याप्त अवस्था में मध्यम यांनाही ही है। नियंच प्रायु वब चुकी हो तो ४ गुणा में मरकर आने वाले जीव १ अवस्था २ में से कोई १ अवस्था २ में से कोई १ अवस्था में ? भव्य जानना ! १ सम्यवाच | १ मिध्यात्व तियंच गति , २-१-२-१ के भंग (१) कर्म भूमि में भूल गुगा में २ का भंग पर्याप्तत्रत २२ गुण में १ भव्य जानना (२) भोग भूमि में १ ले गुण ० मं का भंग पर्यासवन २४ गुगा में १. भव्य जानना मिश्र १, उपशम म० १ घटाकर (४) १-१-१-१-२ के भंग (१) कर्म भूमि में १ भंग १ गु० में २ का भग २ गुण में १ भव्य जानना १. गुग्छ मे २ का मंग २४थे गुरण में १ भव्य जानना E १ भग १ अवस्था २. में से कोई १ अवस्था १ भव्य जानना में से कोई १ अवस्था १ भव्य जानना १ सम्यवत्व Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन सूचना –निर्यच गति में बंध हो चुकी हो। बताया गया है २ १८ मंत्री मज्ञी समंशा 4 एल गुण० मे ४थे श्वगुगा० म २ का भंग उपशम और | क्षयोपशम सम्यक्त्व २ 40 नासादन मे १ मिश्र जानना (२) भोग भूमि मे मे १ मिथ्यात्व ० मे १ मासादन मिथ To में गु गुगा दरे गुरण ० गु० में ३ का भंग उपक्रम, भाविक क्षयोपगम सम्पनत्व ये ३ का भंग जानना २ (१) कर्म भूमि में १ गुण में १ का मंग एकेन्द्रिय से प्रसंज्ञी पचेन्द्रिय तक के सब जीव प्रजी जानना १ का भंग संजी पंचेन्द्रिय I के सब जीव संत्री ही रहते हैं २ से पूर्व गुरण में D ( १०१ } कोष्टक नं० १७ ? मागदन १ मिश्र ये ५० गुगा म २ का मय १ मिध्यान्न १ सासादन १ मिश्र मं ३ भंग 糖 मुरम ० १ भंग नया क्षायिक सम्यक्च नहीं हो सकता है। परन्तु मनुष्य गति में तो क्षायिक सम्यक्त्वमसिर करके भोगभूमि में निर्यच बन (देखो गो० क० गर० ५५० ) । i | १ले गुगा में १-१ के भंग से पूर्व गुण १ मासादन १ मिश्र २ के रंग में में कोई १ सम्ययन्व ㄨ १ मिथ्यात्व १ सासादन १ मि ३ के भंग में १ सम्यक्त्व जानना १ अवस्था १-१ के भंगों में से कोई १ मंग जानना १ गुगा में १ मिध्यात्व गुग्ग० में १ सामादन - यहा नहीं होता (२) भांग भूमि में रेले गुण मे १ मिथ्यात्व २० में सासादन | ४ गुग्म में 1 २ का भंग भायिक और योपदमिक सम्यस्वये २ का भंग जानना 1 १-१-१-१-१-१ के भंग (१) कर्म भूमि में १ल गुसा० में १-१ के भंग पर्याप्तवन् २. गुगा 10 में १ का भंग पर्याव | १-१ के भंग पहले गुगा के एकेन्द्रिय मे संजी पंचेन्द्रिय तक के | : तिर्वच गति | 3 १ मिध्यात्व १ मासादन १ मिथ्यात्व १ मासाइन उ ● में २ का भंग गु जिस जी के क्षायिक सम्यक्त्व सकता है । इस अपेक्षा से नियंत्र गति में भी क्षायिक सम्यक्त् T १ भंग १ ले गुण में १-१ के अंगों में से कोई १ भंग १ मिथ्याव १ सामावन २रे गुगा में १-१-१ गंगी में से कोर्ट १ भंग जानना १ मिथ्यात्व १ सासादन २ में में कोई १ सम्यक्त्व जानना उत्पन्न होने के पहले तियं चायु १ अवस्था १-१ के भंगों में से कोई १ अवस्था जानना में से कोई १ १-१-१ के गंगों अवस्था जानन Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ k चौंतीम स्थान दर्श १ १६ आहारक आहारक, अनारक १० उपाग ज्ञानोपयोग दर्शनोपयो ये जानना S ३ ३ | १ का भंग मुंशी यहां सत्र तिर्यच मंत्री ही जानना (२) भांग भूमि में १ से ८ गुप० १ का भंग यहाँ सत्र निच राजा ही जानना 9 १-१ के भंग (१) कर्म भूमि में १ से ५ ० में १ आहारक जानना (२) भांग भूमि म १ ८ ० में १ आधारक जानना C. ६-४-५-६-६-५-६६ के भंग (१) कर्मभूमि में १ले जुगा० मे 2 का भंग एकेन्द्रिय नीत्रिय ( १०२ ) कोष्टक नं० १७ ४ १ का भंग १ से ४ गुगा मं १ का भंग १ से ४ गुण में १ श्राहारक J १ मे ४ नुर में १ आहारक १ भंग ले नुगा० में ३. के मंत्रों में से कोई १ भंग 1 ५ १ मंत्री १ मंत्री 5 आहारक १ उपयोग ३-४ के भंगों में कोई १ उपयोग जानना जीवों में जन्म लेने की प्रपेक्षा जानना ४या गुण यहा नहीं होना (१) भोग भूमि मे ये गुण में D १. का भंग नियंत्र मंत्री हो जानता | १-१-१-१ के भंग (2) कर्म भूमि श्ले रे गु १ अनाहारक विग्र गति में जानना १ आहारक मित्रकाय योग में आहार पर्या के समय जानना २) भोग भूमि १ २ ४ गुगा में ९ विग्रह गति में अनाहाक जानना १ मिका योग में आहार पर्याप्त के समय आहारक जानना अवधिज्ञान घटाकर | 2-8-6-३-३-२-४-६ के भंग (१) कर्म भूमि में १ गुगा मे = तिच गति 3 १-२-४ ० मे १ मंत्री जानना १ मंजी जानना १ भंग | १ अवस्था i श्ले गुण में दोनों में से कोई दोनों में से कोई १/१ अवस्था जानना अवस्था जानना १-२-४ मे गुण० में दोनों में से कोई १ अवस्था जानना १ भंग С दोनों में से कोई १ प्रवस्था जानता १ उपयोग १० में-४ के मंग C Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीम स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १७ तिर्यंच गति जानना जानमा -के भंग पर्याप्न :-४-८ के भंनी म म म कोई ? अनमानानयोग : अजन बन जानना ग काई ।भग उपयोग जानना !नि १३ वा भर जानना का भंग पान के जानना । का भंग चन्द्रिय.. • के भंगा में में प्रवधि , अनजी पन्द्रिय जीव के ऊपर जान पटाकर का भग । के भंग में चक्ष दर्शन ? जानना जाकर का भग 7 मृग्ग में रे गुण में ३-1-1 के मंगों ने र गम में लगे गगग में ५ के भंगों में में ३-४ के भंग एकेन्दिर -८-४ के भगों में कोई उपयोग ५ का भंग ममी पन्द्रिय का भग कोई १ उपयांग से अमजी पंचन्दिय नक | ये कोई भंग जानना के जान , अचन दर्भन,' जानना जीवों में जन्म बने । जानना चक्षु दर्शन के २५ का भंग की अपेक्षा पयम क - मग जानना ' ' मग में | रे गुण में कभंगों में से बा गुगग. यहा नहीं। ई का भंग मंजी पंरेन्द्रिय का भंग काई उपयोग होना के कुज्ञान ३. गन ३ थे ६ का जानना (B) भोग भूमि में भंग जानना नं २ गुण में तेरे गुमा में : ४ के मंग में से ४चे ५वे मुरण में ये गण में के भंग में से' वा भंग कुजान २,' कि भंग 'कोई १ उपयोग ६ का भंग मानिधुत | का भंग काई १ उपयोग : दर्शन २ ये ४ का भंग : | जानना अवधि ज्ञान , दर्शन के जानना जानना ___ का भंग जानना थे गूगण में । इथे गुण में ६ के भंग में से (3) भोग भूमि में . का भंग मनि- का भंग कोई१ उपयोग ने मुन्ग में ले रे ग में ।५ के भंग में में , भूत प्रबधि ज्ञान और जानना २ का भंग मी पंचेन्द्रिय | ५का भंग कोई? उपयोग दर्शन .. ये ६ का भंग के कुज्ञान ३, अचच दर्शन ?, जानना जानना चक्ष दर्शन १ ये ५ का मग जानना ३रे मन में । नप में के भंग में में ६का भंग कूज्ञान ३, दर्शन का भंग । | काई उपयोग ३६का भंग जानना जानना Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १७ तिर्यंच गति पातंप्यान ४. गैर ध्यान ३, (भाजा विचय, अपाय विचय, विपाक विक) ये ११ जानना ये गुगण में : गग. में ६ का भंग | का भंग ज्ञान ३ का भंग दर्गा ये का भंन जानना १ च्यान भं ? त्यान । E-E- ..." अपाय विचय, दिगाकः निचय । । ---- वेभंग । यभं ध्यान घटाकर (१) कर्म भूमि में . जानना श्लेरा में भुग में। + के नंग ---- के भंग का मन गर्नच्यान ४, ८ काभंग में में को (१) म भूमि में गैर ध्यान ।, ये ८ का ध्यान निना ने 7 गुगा० म ने रे ग म के भंग में भंग जानना का मग-पयामवद जानना का भंग | में कोई १ 7 गगाग हरे गुगा में । के भंग में ४था गुगः यहां नहीं होता ज्यान का भंग-कार के का भंग । कोई? (२) भोग भूमि में प्राना बिनय धर्भध्यान' ध्यान जानना । ले गुगा • में सेरे गगार में : के भंग जोरकर का भंग ८ का भंग पर्याप्तवन ८बा भंग ।म में कोई जानना जानना ४थ गुगग स्थान में गम्प मे १० के भंव में ८य ग ग में गगग में है के भंग में १. भंग ऊपर के .१० व भंग | कोई १ का भंग का भंग में कोई नंग में अपाय ध्यान जानदा प्राध्यान ४. ध्यान विना धर्म ध्यान गैरभ्यान ४, जोकर का छाना विनय धर्म प्यान, भंग मानना कामंग जानना : मा. में एवं गुगात में ११ केभंग में ११ भंग कर ले ११ का भंग में काई १३ भंग म विपाक ध्यान जानना : विनय धर्म ध्यान जी कर का भग जानना (2) भोर भूमि में Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौबीस स्थान दर्शन १ से ४ गुण में -६० के भंग ऊपर के कर्मभूमि के समान जानना २२ श्राव ५१ आ०मिश्रकाय योग १० मिश्रकाम योग १, आहारककाय योग काम काय योग १. मिश्रा यांग २ ये २ घटाकर (५१) ० काय योग ११ ३६-२८-३९-४०-४३-११कर (५३) ४६४६०४५ के भंग जानना ३८ का भंग डीन्द्रिय जीव से ऊपर के ३६ के मंग में अविरत जगह गिनकर き (हिंसक का रमनेन्द्रिय fare ( १०५ ) कोष्टक नं० १७ भूल गुगा मे ८ का भंग ३४ गुग्ण मे रु. का भंग ४५ (१) क्रम भूमि में १न्द्र गृरण में १३ गुगा ० में ११ मे १८ तक के ३६ का भंग एकेन्द्रिय जीव में मंग को नं १० मिध्यात्व ४, अविरत (हिंसक के ममान जानना केन्द्रिय जाति का स्पर्शनेन्द्रिय विरय१हित्य य अग्नि) कथाथ २३ (स्त्रीपृश्य बंद ये २ ढाकर २३) | यौ काय योग ये ३३ फाग 1 ध्यान गुगा मं १० के भंग में मे १० का भंग कोई १ ध्यान न रे मंग १ भंग अपने घने स्थान | सारे भंगों में से के मारे भंग कोई १ भंग जानना जानना ८ के भंग मं में कोई १ प्यान । के भंग में से कोई · ११ मे १८ तक के भंगों में से . का १ भंग ! जानना ८९ T १ मंग मनोयोग वचन योग अपने अपने स्थात ४, औ० काय योग १ ये के मारे भंग चानना २. घटाकर शेष । (४८) जानना 1-1--1--4४४-३२-३३-३-३५ PRE-BE-VE भंग (१) कर्म भूमि में १ गुण मे ३७ का मंग एकेन्द्र जीन में मिथ्यात्व प्रविरन उ कथाय २३ मिश्रका योन कार्माण काय योग १ ३० का भंन जाननर का संग दीन्द्रिय • तिर्सन गति जीन में ऊपर के के अंग में अविरत की जगह गिनकर ३ का । | भेग जानना २ का भंग त्रीन्द्रिय जीव में ऊपर के के गुण में | २१ से १ तक के भंग की० नं० १ । के समान जानना " भंग सारे गंगों में से कोई १ भंग जानना ११ से १ = क के मंगों में से कोई ? भंग जानना Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१७ तियन गति १ काटक। और अनुभव वचन वोग ये: जारकर : का भग जानना का भंग वीनिय जीद . जपर के मग में . पबिग्न की जगह गिनकर हिमक का धारणेन्द्रिय विषय : जोरकर) ३६ का मंग भंग में अग्नि ८ को जगह है गिनकर ३६ का भग जानना ० का भग रिन्द्रिय ' जोव में ऊपर + + के भग म अविग्न को जगह १. गिनकर ४० का भंग जानना ४३ का भग अगंजी पत्रन्द्रिय जीव में ऊपर के ४० के भंग में । अविरत १० की जगह ११ गिनकर और स्त्री पुरुष वैदये जोड़कर . का भंग ४४ का भंग संधी पंचेन्द्रिय जीव में : जपर के . के मंग में। अचिरत ११ की जगह १२ ' ! मिनकर ४४ का ग जानना ४० का अंग चरिन्द्रिय जीव में ऊपर कई के भंग में । यविरत है की जगह १० गिन कर (दिसक का चक्षुरिन्द्रिय । विषय जोड़कर) 10 का। भंग जनना ४३ का भंग प्रसंगी पंचे। जीवम ऊपर के . के भंग में अविरत १० के जगह ११ । मिन पर (हिसक का कर्णन्द्रिय : विषम १ जोड़कर और स्त्री पुरुष बंद : जोड़कर ४३ फा भंग जानना ५१ का भंग गंजी पंच जीव मिथ्यात्व ५ प्रविग्न १० (हिमक के विषय हिस्य ६) रूपाय २५, बनियांग ४, मनोयंांग४, मौ. काययांग १ ये २१ का भंग जानना -- Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १७ तिर्यच गति -- - -- - ---- गम में * गुमा मे रे मृगग में भीग में १० मेनक. १ का भंगार के म नक के भंग १. मे १७नक ::::-11-3५.३% के १० मे १७ तक के के भंगों में से ५१ के भंग में ने मिथ्यात्व ५ : को नं. के भंगों में भंग ऊपर के ले मिध्या- भंग की. नं०१८ । कोई भंग पटाकर ५ का भेग जानना के समान जानना , कोई ? भंग न गूग. १७-24-38 के ममान जानना जानना रे ४थे गंगा में अरे ये गुगा. में १ मे १६ नक ८०-४: के होक भंग में ! ४२ का भंग ऊरने ४६ के मे १६ नक के के भंगों में में से मिपान ५ घटाकर भर में अनन्नानबंधी कपाय |भग को नं. १८ कोई ? भंग १०.३.२४-31-2के. ४ पाकर ४२ का भर जानना के समान जानना जानना भंग जनना ने गाल में । ५वे गुग्ग में ये नक ३६ का भंग- पब ३७ का भंग ऊपर के ४२ के १४ नक के के भंगों के मन में में वरन भंग में से यप्रत्यग्न्यान कषाय भंग को० नं०१८ को भंग ग ४ गर्गपोग 6, । वहिगाये पाकर। के गमान जानना जाननाची कारणेग ? ये । ना भंग पनाम मे श्री 10) भोग भूमि में मिश्रकाय योग । काममा १२ गुमा में ' ले गुगाम "म नर काय योग १ प नोट | ५.७ का भंग कार के नक के के भंगों में ग वर का और जानना ! कर्म भूमि ५१ के भंग में में : भंग की नं.१ को भग . गण. गरी नी होना नमक वेद पटाकर ५० के ममान जानना नना भोग में बाभग जानना ले गम में ले गुगण में । ११ मे १८नक रे गुण, म १० में ग अंग सपा के ११ से ना के. के भंग में में ४५ का भंग ऊपर के मे नक के के रंगों में गड़ की भूमि के भंग भंग को.नं कोर्ट मंग * भूमि में ८ के मंग में म भंग को नं.८ कोई भग में नाम के ममान जानना जानना नामक वे पटाफर ४५ + मान जानना जन्मनः पटाकर का भर का भंग जानना । म म मुग्ण में । १. मं तक नरेगा में रे गुग में मेक 1 काम 2 0१७ तक के के भंगों में ये न क के के मनीमम भमिक भभ भंग को 10- कोई भंग में भूमि के के भग में गे भंग नं.१ कोई भंग में गं न वद म मान जानन | जानना । गमक वेद १ कर देखो अानना पटाकर का मंच का भंग जानना जाना 1म Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोषक नम्बर तियच मति ले गगा में गुगण में में तक २३ का भग कम भूमि के नक के के भगों में में पर्याप्ति के के भंगो में भंग का नं०१८ कोई १ भंग म बननांग ४. गनायोग ममान जानना जामना ४. या काययोग १, श्री नगुगक २.ग ११ घटाकर शेप ३१ में कार्माग्ग कायर्यांग १ मो. मिश्र कायागर गजोड़कर ३३ का २३ भाषद भग जानना उपशम-साधिक 8 सारे भंग १ भंग १ भंगभग सम्यक्त्व २,फूनान ३, ४-२५-२७-३१-२६-३० अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से उपक्षम क्षायिकस. २, अपने अपने स्थान के सारे भंगों में में जान ३. दर्शन३, अयो-१२-२१-२५-२५-२६-२९ के सारे भंग जानना कोई १ भंग कृपवधि ज्ञान १, शुभ । सारे भाग जानना कोई भंगजानना पशमस. १, लश्चि. भंग जानना लश्या, ६ घटाकर मयमा-संयम १. नियंत्र (१) कर्म भूमि में ले गुग में २७ के अंगों में से (३३) गति १, कपाय ४, १ले गण में १७का भग कोई१भंग का २४-२५-२७-२५-२२निग ३, नभ्या : २४ का भंग को० नं०१८ के नं०१८ देखो २३-२५-०५-२४-०२मिथ्यादान १. समयम निय, द्वान्द्रिम. वीन्द्रिय समःन जानना । २५ के भंग १, बजान१. प्रसिद्धरव? जीवों में कुपति-कृति जान २, (३) कर्म भूमि में । ने गुग में ।१७ के भंगों में परिणामिक भाव ३. मंचन दर्जन १. अवीपशम *ले गुग्ग में १ का भंग में कोई १ भंग ये ३९ जानना नब्धि, नियंन ग.१. कवाय २४ का भंग ' को नं. १- देखो ४, नमक लिग १, अशुभ पयांतवा जानना लेन्या :, मिथ्या दर्श। १. २५ का भंग पर्याप्तवन अमयम १, अज्ञान .. अमि जानन इत्व .. पारिगामिक भाव ३ २७ का ग पयःप्लवन् का भंग जानना जानना ०५का भंग २७ का भंग पर्याप्त के . पमंजी पंचेन्द्रिय जीवों में ३१ के भंग में से कुअवधि ऊपर के २४ के मंग में चक्षु Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तास स्थान दर्शन दर्शन १ जोड़कर २५ का भंन जानना २७ का भग मी पद्रियजीवी म ऊपर के २५ के मन से स्त्री देद जोड़कर २७ का भंग जानना ३१ का मंग पुरुष संजी पंचेन्द्रिय जीवों में ऊपर के २५ के भग में कुप्रवत्रिज्ञान १. स्त्री पुरुष वेद २ शुभ श्या ३, ६ जोड़कर ३१ का भंग जानना २२ गुण मैं २६ का भंग ऊपर के ३१ के भंग में से मिथ्या दर्शन १. श्रमव्य १, ये २ घटाकर २६ का भंग जानना ३२ गुग्गल में ३० का मंग ऊपर के २६ के भंग में अवधि दर्शन १ जोड़कर ३० का भंग जानना ४ये गुण में " ६२ को भाग उपशम ज्ञयोपशम सम्यक्त्व २, ज्ञान ३ दर्शन व लब्धि ५ तिर्यचगति १. कषाय ४, लिंग ३, लेश्या ६ अभ्यम १ अज्ञान १, असिद्धत्व १. भव्यत्व १, जीव१ये ३२ का मंग जानना ( १०८ १ कोष्टक नं० १७ 34 tr २ गुणा में १६ का मंग को० नं० १५ देखो ३ गुण में १६ का मंग को नं० १५ देखो ४ये गुगा में १७ का भंग को० नं०१८ के समान जानना ५ में १६ के अंगों से कोई १ भंग को० नं० १८ देखो | १६ के भंगों में से कोई १ भंग को० नं० १८ देखो १७ के गंगों में मे कोई १ मंग बा ना ज्ञान १ शुभ केला. 5 घटाकर २७ का मंग मेरे मे २०२३२२ के भंग एकेन्द्र पं० तक के जीवों से जन्म लेने को अपना ऊपर के १ गुण व २४-२४२७ भंग में से मिथ्यादर्शन प्रभव्य र २२-२० १२ २५-२४ के भंग जानना आ नृप यहा नहीं होता (२) भांग भूमि में १ ले गुण में २४ का भंग पर्याप्त के २७ के मंग में से कुछवविज्ञान १. शुभा ३ ४ घटाकर शेष २३ | में कापोन या १ जोड़ कर २४ का भंग जानना २२ गुण में २२ का भंग पर्यात के २५. के भंग में से कुछ विज्ञान शुभा ३, ये ४ घटाकर २१ में कापोत लेश्या १ जोड़कर २२ का भंग जानना तियंच गति गु० में १६ के भंगों में १६ का भंग को काई ? २०१० दे जनना १ गुगा में १७ का भंग को० नं० १८ देखी २२ गुण० में १६ का मंग को० नं० १६ के समान जानना i १७ के अंगों में मं कोई १ मंग जानना १६ के मंगों में से कोई १ भंग जानना Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नंबर १ तिर्यच गति चोतीम स्थान दर्शन । २ । ३ : ५वे गगा में ५वे गुण में | १७ के अंगों में ४थे मृण में । गुग में । १. के अंगों का भग उपर के ३० के १७का भंग में काई ':५का मंग पयांना को भंग कोई : मंग गग में में प्राम नश्या:, कोर नं.१% के भा जानना | २६ के मंग में मे उपपाम को० नं०१८के | जानना अनयम? ये 6 घटाकर चौर ममान जानना मम्यवन्य १. स्त्री वेद १. समान जानना ययम। मया ? जोड़कर २६ शुभ लेण्या ३ ये ५ पटा का भंग जानना कर शेष ०४ में कागीन | (१) भोग भूमि में- । दश्या जोरकः २४ का गुग में ने गगा में १७के भंगों में गजानता । २७ का भंग ऊपर के कर्म भूमि १३ का भंग गव ।। । के १ के भग में मे नगक वा नं.१% के | भंग जानना | मूचन-जिन जीवों के वेद १. गृभ ले गया .. ४ समान जानना । | मम्मच उरक होने से घटाकर 5 स जानना . पहन निर्यचा बंध चुदी । गगा. म । २रे गुण में १६ मंगो में मे होहोर सभ्यरष्ट २५ का भंग पर कर्म भूमिका भंग भंग श्रीव मका भोग भूमिया के के मग में में नप यत्र को नं०१८ के जानना निवंच बनना है । उसकी दद १, रशुभ लेख्या : य? . गमान जानना अपेक्षा यह भंग जानना । टाकर २५ का भंग जानना । होन में रे गगण में १८ के भंगा में में + का नंग 30 के कर्मभूमि का भंग कोई भग के भंग में म नपान की न०१८ के जानन। बद. अभया : 6 ममान जानना वाकरकामा जानना गगग स्थान में बागामें के भगीर में -१ का भग नपा के म मि -का भंग | काई ग भंग में ना नफवेदक को 0% के जानना म बना ? कार गमान जानना । प में न्य ग। उकरका नर जान्ना Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २५ रागाहना जपन्य प्रचाहना धनागम के पगम्यानने भाग, पोर र समाना... गम हजार) को जानना विग ग्याम्या की.न.१ मे 18 को दिलो) र प्रकृतिका–११७ बघ पाग्य १२० प्रतियो में 4 माहारक हिकनाकर पाये ३ पटाकर 3 १११ निवन्य पयाप्नक जिन ग्रीनार करके ?" : प्रा . नरक द्विक २ ये घटाकर । आनन।। १० नम्ध्य पर्याप्तक पचेन्द्रिय तिर्यत्र में नरकातिक २. नरकायु १, दव द्विक २. वायु १. वक्रियक द्विक २, ये ८ ऊपर के १३ प्रनियों में से घटाकर १०६ जानना मा प्रकृया -103 उदय योग्य १२२ प्रकृनियों में में भरकदिक २, नरकायु, देवाद्विक २, देवायु १. मनुष्यढिक २, मनुष्यायु १,उच्च मात्र १. बाहारकटिक २.तीयकर प्र० ११५ घटाकर १०७ प्रकृतियां जानना। र पंचेन्द्रिय निर्यचों में ऊपर के १०७ प्रतियों में से एकेन्द्रियादि जाति , पानप, माधारमा १, सुक्ष्म १. स्थावर . ये ८ घटाकर ६१ जानना। १७ पंचेन्द्रिय पयन पुरुष वेदियों में ऊपर के प्रकुतियों में से स्त्रीवद १ अपर्याप्न ये घटाकर १७ जानना १६ स्ववेदो तियचों में ऊपर के प्रऋतियों में म पृरुप वेद १ नपुसंक बंदर घटाकर शेष५ में स्त्रीवेद । जोरकर E६ जानना। लन्ध्य पर्याप्त नियंचों में-ज्ञानाबरणीय ५. दर्शनानरगोय ६, {महानिद्रा ३ पटाकर) वेदनीय २, मोहनीय २३, (स्त्री-पुरुष ये वेद घटाकर) तियचायु १, नाच गोत्र १. अंतराय ५, नामकर्म २८ (नियंच गति, एकेन्द्रिय जाति १, निर्माण १. मौदारिक द्विक २, त जस कारण शरीर २, हंडक संस्थान १, प्रमप्राप्तास्पादिका संहनन १, स्पादि । तिर्वच पन्यानपूर्वी. भगुरुलभु १, उपधात प्रातप १. माघारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १, अपर्याप्त १, दुभंग १, स्थिर १, पस्थिर ,शुन १, शुभ १, अनादय १, अयशः कीर्ति १,ये २८) ये मत्र ७१ जानना। भोगभूमि तियचों में-ज्ञानादरणीय ५, दर्शनावरणीय ६ (महानिद्रा ३ वटाकर) वेदनीय २. मोहनीय २७ (नपुसक वेद को घटाकर) नियं चायु १. उच्च गोत्र १. अंतराय ५, नामकर्म ३२ (तिथंच गति १, पंचेन्द्रिय जाति १, निर्माण १, प्रौदारिवद्विक २, तेजस कारण शरीर २, वन वृषभ नाराच संहनन १, समचतुरस्रसंस्थान १, स्पर्शादि ४, निच गत्वानुपूर्वी, मगुरुलधु १, उपपात १, परघात १, उक्ट्रवास १. प्रवास्त बिहामा गनि १, प्रत्येक १, बादर १, त्रम १, पर्याप्ति १, मुभग !, म्बिर १, अस्थिर १, शुभ १, प्रशुभ १, मुस्वर १, पादेव १. याः कीति १, उपोत १, य ) ने यब ७ जानना । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २. सत्य प्रकृतियों-१४७ तीर्थंकर प्रकृति १ घटाकर १४७ जानना । १४५ लम्घ्यपर्याप्नक नियंत्रों में लब्ध्यपर्याप्तक जीव मरकर देव और नार को नहीं बनता इसलिए देवायु पोर नरकायु मै २ ऊपर के १४७- प्रकृतियों में से घटाकर १४५ जानना । २८ संख्या-अनन्नानन्न तियंच जानना। २१. क्षेत्र-सवलोक जानना । ३० स्पान –यर्वनौक जानना । ३१ काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वचाल यादि तिघेच (इनरनिगोद) एक जीव को अपेक्षा श्रद्र भव में असंख्यात पुनल परावर्तन काल सक नियंच ही चनना रहे। ३२ अन्तर–नाना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा तिर्यंच गति को बोड़कर झुद्र भवन नवतो (100) सागर कान तक तिर्मच नही बने । यदि मान नहीं जाय नो पिरतिबंधों में (१०० सागर के दाद) पानाही परे। ३३ बाति (योनि)-६२ लाख (पृथ्वी काय ७ नाव, जल क्य नाख, अग्नि काय ७ लाख, वायुवाम ७ लाम्ब नित्यानिगोद लाख, इनरनिनोद ७ लाद, मनस्पति १० नास्त्र, द्विन्द्रिय लाख, जान्द्रिव २ लाख, चतुरिन्दिय २ लाख, पंचान्द्रय ४ लाख, ये ६२ क्षाम्ब) जानना। २४ कुल-१३॥ नव कोटिकूल जानना नोकाय-२२ लाख कोटि कुल,जनकाय । लाम्ब होटि कुत्र, अग्निकाय ३ लाव कोटि कन. वासुकायलाच कोटि मूल, वनस्पनिकाय २८ लाख कोटिकुल. द्विन्द्रिय नाब कोटि कल, नोन्द्रिय ८ लाख कोटि कुष, चतुरिन्द्रिम हलाख कोटि कृल. पंचेन्द्रिय ४३ लाख कोटि कुन वे सत्र १३ लात कोटि कुल जानना । Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. १८ मनुष्य गति क्रमांक नं० नाम स्थान मान्य लाप पर्याप्त अपर्यात ।एक जान कनाना एक जीव कएका १जीब कनाना एक जोब के समय में । नाना जीवों की पेक्षा समय में । एक समय में नाना जीव को अपेक्षा । ममय में जानना १ गुण स्थान १४ सारे गुण स्थान | गुगल | सारे गुण स्थान है एक (१) मिथ्यात्व (१) कर्म भूमि में में १४ सारे गम्ग०११८ गगा (१) कर्म भूमि में 1-1-1-६-१३ | पांच मुरग में (२) सासादन १ मे १४ मारे गुगा जानना ! कोई? गगग : -:-:-:-: म . गुग स्थान में कोई १ गुण. (३) मिथ (E) भोग भूमि में |१से ४ तक के । ४ कोई गम स्थान जामना । जानना जामना (४) समयम(यविरत) १ मे ४ नक के गुगा | स्थान जानना १ गुना ब) मरग को अपमा -- ये तीनों नीनों में से कोई (५) श मंयन ले रे ४ मुगा म्यान गगग. जानना १ गुण (संयमामंयम) जाना (६) प्रमत्त (७) मप्रमन (ब) माहारक शरीर को वा मुगावा गुग्ग(4) अपूर्वकराम प्रपेक्षा वा गुगा. जानना। जानना 18) अ वृत्तिकरण (4.) केवल ममदधात की १ः गुगार व गुगाः (१०) सूक्ष्म मापाय अपेक्षा वेग जानना (११) उपगन कषाय जानना मा). ( भाग भूमि में -- नोन नानां गुगाल में (११क्षीगा कपाय (मोह। ने नग : दुग जानना में कोई गुगग (१३) सयोग केवली जानना जानना (१४) रोग केवली २ जीवसमाम ममाम माग नमःम मज्ञा परेन्द्रिय पर्याप्त (५) कर्म भूमि (१) कर्म भूमि में मोर मयांतरे से १४ जुग में मनी पंचभिय, मंजी पं. १-२-४-:-: मःमः: मी अपर्याप्त मनी पं. १ नंनी पंचन्द्रिय पयांम अचम्ना गर्यन नोव समास पर्याप्त जानना मंत्री पंचेदिय गति जानना अपात जानना जानना अवस्था जानना | माग Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११४ ) कोटक नं०१८ चौंतीस स्थान दर्शन मनुष्य गति गंांग भूमि में में 6 गुग में मंजीय. यामजनना ३ पर्याप्ति का० नं १ देखा - के भंग (१) नार्म भूमि में गगन हरेक में का भंग नामान्यवन् जानना भोग भूमि में १ मे ४ मुगा में हरंक में का भंग 'मामान्यवन् जानना (१) भार भूमि में | ल य गण. म. गंजो अपमांत १ मंझी ५० १ यज्ञी पं० अपर्याप्त | जानना अपर्याप्त आमना प्रया जानना १ भन भंग । ३-६ में भंग ६ के भंग मन-भाग-स्वागावाम' यघटाकर + का भम ! ६ भंग नप () उपयोग की अपेक्षा जानना लब्धि प जानना ६.३ के भंग का भंग का भंग (१) कर्म भूमि में १-२-४-६-१३ गुरंग में मंग का अंग ३ का भंग याहार, शरीरन्द्रिय पर्याप्ति ये ३ वा भंग जानना (सभोग भूमि में १ ४वे गुगा. में ६ का भंग ३ का मंग ' का भंग पर के कर्म भूमि के समान जानना १ भंग १भग अपने अपने स्थान के मनौदल, वचन चन, अपने अपने स्थान के स्वासोच्छवाय ये ३ १० का भंग १० का भंग · घटाकर शेष 10) ७-२- के भंग ४ प्राण १० का० नं.१ इम्रो १० १-४-१-20 के भंग (१) कर्म भूमि में १२ १२ गुगार में हरक में १० का भंग सामान्यवन जानना ये नुरण में ४ का भंग केवली समुद्धान की दण्ड अवस्थायें प्रायु, ४ का मंग ' ४ का भंग ७ का भंग का भंग १-२-४-वे गगण में ७ का भंग प्रायु बल १, कायबल १, इन्द्रिय प्रारम ५ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १८ मनुष्य गति २ का भंग | २ का भग ' कायबल, बासोच्छवास, दबन दल व प्रांगा जानना दिग्यो गी11024६-५.८5] १चे गृगाल में मायुदल प्राग जानना (२) भोग भूमि में १ गुग म १० का भंग मामाग्यवत् जानना ये का भंग जानना १३वे गुगत में का भंग करनी समुद्-. धान की कपाट, प्रनर १ मायुबन प्रमाग ? प्रायुबल प्रमागा नाकपूर्ण इन प्रवृस्थाये । पायु और कायल थे। १. का भंग १० का भंग जानना (2) भोग भूमि में -:- गम्ग में का भंग ऊपर के कर्म शुमि मामान जानना का भंग ७ का भंग १ भंग मारे भंग अपने अपने स्थान के १ भंग ४ का मंग मंग ४ का नंग ३ का मंग ५ मंजा १ भंग की नं.१ बेखा -:-.-1-2-4-1 के भंग प्रपन याने स्थान के जानना (१) कर्म भूमि में १गु गूगा. म ४ का भंग का नंग चाहार, मय, मैजुन, बड़ का मंग जानना वे वे गुरण में ३ का भंग 1 का भंगाहार संज्ञा घटाकर दोष का भंग जानना वे गूगार के मवेद भाग में वा भंग का भंग मैन, पग्निह ये भग जानना ६वे गुगण के प्रवेद भाग में १ का भग ग्रह मंत्रा जानना १०व गगण में का भंग पन्ग्रिह नंगा जानना ४-०-४ के भंग १) सममि में :-:--वे गुग में ४ा भंग पर्यापवन व मृग में (1) का भंग कंचनमनधान र्ग अवर में मजा नही होदी इपिं गन्ध का मन कानना 10 भोग गमिम १-:-गगा मे का भग पयायन जानना का मंग रा का भग । ४ का भंग १ का रंग - - - - १ का मंग -- Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतोस स्थान दर्श ६ गति मनुष्य पनि ७ इद्रिय जाति पंजी पंचेन्द्रिय जाति = काय ९ योग १ त्रम काय १३ सं० मित्रकाय योग ब० का योग, २ घटाकर (१३) ११-१३-१४ वे गुगा में to का भग यहा कोई मंशा नही है २) भांग भूमि मे १ से ४ गुग्ग का भग ऊपर के कर्म भूमि के समान जानना 2 मं १ १ से १८० में १ मध्नुय गति जानना 9 १ मे १४ मुग्ण ० मंत्री पं. जाति जानना 计 १ १. से १४ गुरप० में सकाय जानना १० प्रो० मित्रकाय योग १, आहारक मिश्र काय योग १ कार्मारण काय योग १. ये घटाकर (१०) २२-६-५-०६ के भग जानना (१) कर्म भूमि में ? से गुग में ह का भंग औदारिक काय योग १, वचन योग ४. मनां योग ४ ये का भंग जानना ( ११ ) कोष्टक नं० १० o ४ का भग ? 6 मारे ग अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना ६ का भंग ५. ४ का भंग १ योग सारे गंगों में से कोई १ योग जानना ६ के भंग में में कोई योग जानना १-२-४-६-१३६ गुरण में c १ मनुष्य गति जानना ? १-२-४-६-१३६ गुरु ० १० में | १ मंजी पं० जाति जानना १ १-२-४-६-१३वे गुर० में १ जसकाय जानना ३ औ० मिश्रकाय योग १. आ० मिश्रकाय योग १. काम काय मांग 2. योग जानना ९-२-१-२-१-१-२ के भंग जानना (१) कर्म भूमि में १-२-४ गुगर० में १ का भंग विग्रह गनि | मे ? कारण बांग जान २ का भंग आहार मनुष्य गति 6. सारं भंग अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना १-२ के मंग जानना : i 前 १ योग सारे गंगों में से कोई १ यांग जानना १-२ के मंग में से कोई १ योग जानना Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक ०१५ मनुष्य गति ६वे गण में का भग के भंग में मे | पर्याप्ति के समय कारण । । माहारक काययोग की अपेक्षा कोई १ योग | काययोग १.मौ. मिश्र का भग ऊपर केक। जानना काययोग का भंग मग में में श्री. काययोग घटाकर जानना माहारक काययोग जोड़कर ६ | वे गुरष में माहारिक मिश्र, प्रा. मिष का भंग जानना का भंग पाहारक | काययोग जानना काययोग जानना ७ से १२ तक के गुरण में ६ का भंग के भंग में से | शरीर की अपेक्षा पाहाET पर के | | रक मिथकाय योग ६ गुमरा के सामान जानना जानना जानना १३३ गुरा० में १३वे गुण में २-१ के भंग जानना २-१ के भंगों में ५ का भग दुधमन की , ५-३ के मंग जानना ५-३ के भंग में मे २ का भंग केवल समुद- । से कोई योग अपेक्षा प्रो. काययोग १, सत्य | कोई योग धान की कपाट अवस्था में जानना बचन योग १, अनुभव वचन | जानना | कामणि काययोग १, योग १, मन्य मनोयोग १, । प्रो. मित्र काययोग है मनुभय मनायोग १, ५ का । येरका भंग जानना । भंग जानना १ का भंग केवलो समु३ का भंग भावमन को दवात की प्रतर पोर ।। अपेक्षा ऊपर के ५ के भंग में लोक पूर्ण अवस्था में में सत्य मनोयोग १, अनुभय एक कागि काययोग मनोयोग १,ये २ घटाकर शेष । जानना ३ का भंग जानना (२) भांग भूमि में १४वे मुगण में १-२-४ मुरण में १-२ के भंग जानना १-२ के भंगों में (0) का भंग वहां कोई १-२ के भग ऊपर के | से कोई १ योग योग नहीं होना इसलिए शून्य कर्म भूमि के गमान जानना जानना जानना (२) भोग भूगि ग १ से ४ गुण में । का मंग के मंग में से का मंग जमर के कर्म । कोई १ योग भूमि के समान जानना जानना Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य पति १० बंद ३ कोनं.१ देखो मारे अंग बंद :-३-:--2-2-2-२-१-०-२ अपने अपने स्थान के ३-१-१-०-२-१ सपने अपने स्थान के के भंग के भंग जानना (१) कर्म भूमि में ३ के मंग में में कर्म भूमि में १ ४ मुगा० में ३ का भंग में कोई १ वेद -: गूगा में ३ का भंग भगों में मे ३ का भय न सक, स्त्री. जानना ३ का भंग पर्याप्तवन तीनों। कोई बंद पुन्य वेद ये : का भंग जानना । वेद जामना जानना वे गुग में .: का मंग चे गूगा में गुरुप वेद जानना पुरुष वेद ३ का भग पर के तीनों वेद १ पृष वेद जानना जानना जानना ६ गुण में । ने राग में 2-१ व भंग जानना ३-१ क भंगों में प्राहारक मित्र काययोग १ पुरूप बंद ३ का भग भी काय यान की में काई बंद को अपना १ पुरुप वेद जानना अपना जगर तीन बंद जानना जानना जानना १. गुग में १ का भंग आहात काययोग (0) बा भंग केवल समृद्को अपेक्षा एक कर वंद भान को अवस्था में प्रगजानना गत वंद जानना अब वे नगा। म ३ का भंग के भंग में मनना-नय पनिक का भग का कमान वेद काई १ वेद मनुष्य नामक वेद वेदी जानना डानना हा होना है और नग्ग- म --१-. -2-1-3 अंगों भिग्यान ही रहता है ना भंग के अंगों में से भन जानना में मे कोई । वेद (दरा गो. क. गा० कोई वेद का ग ? भाग में जानना FE: मोर !.। जानना नग्नों वेद निप .श्री-गुरुप) 17 भोग भूमि में १ गुरप वेद जनना। १ पुरुष देव बननः ने नगण में जानना का भरे भान में दी. पु। ये व मानना - जनना का भग भ: म १ पुरुष वेद जानना १ पृरए देव जानना Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य गति ११ कषाय २५ (को० न०१ देखो) 14 भग पान सूचना साहारव काव , इवेद भाग में कार्ड बंद हैही हाते पानी का बंदीही होना । इसन्निर मृत्य का भंग जानना है और गुरग३ ग्धान १२ रा १४व गुण म । ! मिथ्यात्र ही रहता है । (-) मा भर पहा कोविंद दिखा गा० का गा. नहीं होने इसलिय यहां भी । न्य जानना (२)भग भूमि में १४ गृणा में का भंग श्री-पुरुष काई बंद । यंदा बंद जानना . जानना सारे मंग , १ मंग सारे भन .भंग २५-२९-१७-१३-११-१३ । अपने अपने स्थान । सारे भंगों में से २५-१९-११-१-२४-१४ अपने अपने स्थान | सारे अंगों में ७-६-५-४-३-२-१-१-०-२४.२० के सारे भंग नोई १ भंग | के मंग' जानना ! के सारे संग म कोई १ भंग के भंग जानना जानना । जानना (8) कर्म भूमि में जानना जानना (२) कर्म भूमि में | (१) कर्म भूमि में (१) कर्म भूमि में ब्ले रे गुगण में । (१) कम मूमि में (१) कर्म भूमिमें ने रे मुगाल में | ले गुरण में । १ले गुण में २५ का भंग ले रे गुण- में 5-1 के मंगों २५ का भंग i६-७-८-₹ के भंग | ६-७-८-६ के | पर्याप्तवत् जानना . ७-८-6 के अंग । में से कोई सामान्यवन् जानना जानना | भंगा में से चे गुगल में पर्याप्तवत् जानना | भंग जानना ३रे ४धे गुण में का भंग कोई १ भंग १६ का अंग २१ वा भंग ऊपर के २५ | उपशम श्रेणी । जानना पर्याप्त के २१ के भंग पे गुण में |६-१-८ के भंगों के भंग में में अनत्तानुबंधी चढ़ते समय उवे में से स्त्री-नपुसक वेद । ६-७-८ के भंग । में से कोई १ पाय ४. घटाकर २१ भंग | गुरण स्थान के प्रत ये २ घटाकर १६ का पर्याप्तक जानना | भंग जानना जानना में जिस जोव ने भंग जानना ५वे गुना में अनंतानुबंधी कषाय, वे गुण में १७ का भंग ऊपर के २१ | का विसंयोजन ११ का मंग वे गुण में । ४-५-६ ..गों के भंग में में अप्रत्याख्यान किया हो योर ११ पर्याववत् जानना ४-५-६ के भंग | में से कोई 1 कषाय ४, घटाकर १ का ये गुणस्थान से १३वे गुस्स में पर्यावत् जानना | मंग जानना मंग जानना उतर कर ले Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबीस स्थान दर्शन { १२० ) कोष्टक नं. १८ मनुष्य गति -- -- -- - +. वे गुण में गण. में ग्राः1 हो ना वहां , (०) का भंग केवली १३वे गुम्म में . १३ का अंग ऊपर के १७ के 'मिथ्यात्व की पर्याप्त अवस्था में ममदधात की वस्या में 110) का भग कोई भंग में से प्रत्याभ्यान गय ४, अनन्नानव को कषाय का नया बंध कोई कषाय नही होती। कषाय नहीं होती पटाकर १७ का भंग जानना करता है। उस नये बंध के ग्रा- इसनि ग्य का भंग ११ का भंग पाहा के कार्य बाधा काल नक अनन्तानबन्धी के. जानना। रोय की मांना ऊपर के १३ ' उदय का अभाव होने मे अनन्तान-. ) भोग भूमि में |(२) भोम भूमि में 3.4- मंगों मंग में में स्त्री वेद १, नपु- .बन्धी कषाय का उदय नहीं हो ने २रे मुरण में ले रे गुरण में में में कोई मंग कि वेद १ ये वेद घटाकर मक्रता है। उस जीव की अपेक्षा २४ का भंग पर्याप्तयत् । -- के भंग | जानना ११ का भंग जानना में जो कषाय ६ होते हैं उसका जानना पर्याप्तवत जानना जना-यहां वे गुना में , खुलामा निम्न प्रकार जानना। ये गृण. में रम गुगण में ६-७-5 के अंगों गनिहार विशुद्धि संयमी के. कोष, गाल एयर, र १" का भंग पर्यात के 5-3-5 के मंग में से कोई भंग इन-ययनानी के और बाहर. इनमें से किसी एक कषाय की २० के भंग में से स्त्री पर्याप्तवत् जानना जानना काय योगी एक पुरुष वेद ही अप्रत्यागवान, प्रत्याख्यान, मज्वलन ' वेद. घटाकर ११ का । रूप अवस्थायें हास्य-रति या भंग जाना वे वे गुण में परति-गोक इन दोनों जोड़े में न १३ का भंग संज्वलन काई एक जोडा, तीन वेदों म पार नबनोकाय में कोई एक वेद म प्रकार : का । का मंग उनना । मंग जानना। का भंग ऊपर के के भंग .:ले भाग में ७ का भंग ऊपर 2. में प्राव धा काल के बाद अनन्नान ? का भंग में मे हम्या :श्री कषाय को एक पत्रम्था जोड़ : नोकगाय घटाकर ७क, कर का भंग जानना ।। मंगमानना का भग-ऊपर भंग २ भाग में-१ का भंग संग्वन में नय या जगप्मा इन दोनों में में नायर नी पुन बेद कोई एक जोरकर = का भंग का भंग जनना जानना । * भाग में-५ का नम अश्वन ना भंग ऊपर के के भंन । कषाय ४, पुरुष वेद १५ में भय और जुगुप्या ये दोनों। का भंग जानना जोरकर का भंग जानना। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " ३ स्थान दर्शन 1 भाग- कासग में मंज्वनन । कोष मान-माय लोभ ये ९ का भंग | ५ त्रे भाग में ३ का भंग मानमाया-लोभ का भंग जानता २ का भग गायाका भंग लोभ जान ७ भाग में ? का भंग बादर लोभ-कृपाय जानना १०वे गुण० में १ नुम लोभ कलाय जानना ११ मे १४ तक के गुगा में (c) का भंग इन नारों गुण स्थान में कपाय नहीं है गन्य का भंग दिख गया गया है (२) भोग भूमि में श्ले गुण० मैं २४ का भंग ऊपर के कर्म भूमि के २५ के मंग में से एक नपुंसक वेद घटाकर २४ का भंग जानना ३२ ४ २० का मंग भूमि के २१ नपुंसक वेद १ का भंग जानना गुण 新 ऊपर के कर्म के भंग में में घटाकर २० ( १९१ ) कोष्टक नबर १८ Y 1 २५ गु० में ७६ के भग ऊपर के ले गुग्ग० में लिग अनुमार जाननां X के अंगों में से कोई भंग जानना ४०६७-६८ के भर्ती ६-७ के भंग में से कोई १ भंग ऊपर के ७-८ के जानना हरेक अंग में से अनन्तानुबंध कषाय की एक एक प्रस्था घटाकर ६-७ के मंग जानना प्रर्थात् ७-६ के हरेक भंग मेमे धी कपास की एग एक पवस्था १-१-१ घटाए कर शेष ६-७-८ के | भंग जानना I 1 मनुष्य गति ७ Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चटोरा स्थान दर्शन 1 ऊपर के के हरेक मंग की एक एका घटाकर की समस्या में से कोई १ मंत्र का भंग जानना T ५-६-७ के भगो मे सेकोई में प्रत्याख्यान माय १ मंत्र जानना ५०६-७ के भंग जानन २-४-६ के भंग। ध्येयं वे गुणस्थानों में में से कोई ४-३-६ क भंग ऊपर के ५६-७ हरेक मंग में मे प्रत्याख्यान कथाब की एक एक यवस्था घटावर ४-५-६ का भंग जानना जानना २ का भाग जानना | ऊपर के कर्म भूमि के समान स्त्री-पुरुष इन वेदों में से कोई ( १२२ ) कोष्टक नं. १० ४ ऊपर के कर्मभूमि के समान इन दो वेदों में से कोई वेद ६-७-६ ५. वे गुण ५.६-७ के भग में गुगा में सवेद भाग में १ ● का भंग संज्वलन कपाथ मंज्वलन पाथ और कोई १ का भंग कोई १ मंज्वलन काय जानना ४-५-६-७ अवेद भाग में १०वे गु० में १ का गलन गुम नोभ कषाय जानना ११ से १४ गुगा में ५ (०) का भग " (२) भांग भूमि में १२. गुरम मे ७-58 के अंग जानना परन्तु यहां वेद जानना ३ ४ये गु० में ६-७-८ के मंग जानैना परन्तु यहां स्त्रीपुरुष जानना १ का मंग जमिना ७-८ के भंगों में से कोई १ मंग जानना ६८के भंगों में से कोई १ | मंग जानना मनुष्य गति ७ C Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य गति १२ जान सारे भगजान । सार गंग के मंग मस कोई कृशान , जान५ वे (0), ६-2-४-३--१-१-के अंग अपने अपने स्थान के सारे भंगों में । पवधि जान 1. अपने अपने स्थान के शान जानना (१) कर्म भूमि में मारे भंग जानना से कोई मनः पर्वयं जान १, मारे मंग जानना मे कोई जान मेरे गुगा में ३ का भंग जानना ज्ञान जानना । २ पटाकर (६) । जानना का मंग कुमति कुभुत. ३ केभंग में । २.३.३-१.२.३ के कुअवधि मान व कुजान। भंग जानना जानना जान जानना (१३ कर्म भूमि में व देवे गुगामे का भरा गंग- मेरा का मंग २ के भंग का भग मनि धुनि से कोई१२ का भंग कुमति, कुश्रुति | में से कोई १ अवधिजाये नोन ज्ञान जानना ! ये जान जानना । ज्ञान जानना जान,जानना ये गा में का मंग के भंग वेगा- म 1-3 के भंग ४-६ के भगों का भंग मनि, में कोई ४ का भंग प्रौ. काययोग | जानना में ने की: १ धनि, अवधि ज्ञान ये . जान जानना की अपंक्षा मति, अति अवधि ! जान जानना का भंग जानया • मनः गर्गय जान का वे गुण में ' का भंग भंराटना ३ का भंग का मर ग्राहारक पाय पतिवन् जानना । योग का अपना मान, थति। १६वे गन्ग में १ वेबन जान : केवल ज्ञान वधिमान 4: का भंग जानना . केवनान जानना जानना गुचना-ग्राहक काय । 'बल समुपान की वांग में नया स्त्री और भपुमका : • घनश में जानना वेद के उदय मे मनः पर्यय मान (२) भोग भूमि में नही हानादिवोगा कर में गुग में २ का भंग २के भंग । मा० ४ का मग कृमनि. में में कोई मे १ तक के गुण में भंग जानना ४ के भंग में कथति ये कमान जान जानना का मंग मनि, अति, से कोई जानना | प्रवधि, मनः पय दान थे। : ज.मना गुगल में का भंग के अंग में का भम जानना २ का भंग मति, । से कोई १६वे १४वे गुण म केवल जान । १ केवल ज्ञान | धुति, अवधि जान बान जानना केवल जान जानना जानना । जानना का भंग जानना २) भीम भूमि में Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ t १३ मंयम तीस स्थान दर्शन T २ अभयम १, संयमासंगम १, सामायिक i संयम ! छेदापस्थापना है। परिहारविशुद्धि १. मूल्म मां १. में 3 श्रे गुग्ग म व का भगतो कुज्ञान जानना गुरुप में ३ का भगमति, श्रृत अर्था | ज्ञान ज्ञान जानना ?-? 3 -३-०-१-१-१ केभंग (१) कर्म भूमि में १ से ४ गुबह मे १ का भंग १ असंयम जानना गुण ० श्त्र गुण ० में १ यथास्यात १ का मंग १ संयमासंयम जानना । जानना के ६ का भंग काययोग की अपेक्षा सामायिक, दोपस्थापना, परिहारविशुद्धि ३ का भंग जानना २ का अंग श्राहारक काययोग को अपेक्षा सामायिक और छेदोप। स्थापना से २ का मंग जानना 19वे गुना में ३ का भय सामायिक, वेदोन| स्थापन, परिहारविशुद्धिये • का भंग जानना ८६१० में २ का मंग सामायिक. छेदोपस्थापना ये २ का मंग जानना १०० ↓ १ सूक्ष्म सांपराय संयम जानना ( १२० ) कोष्टक नं० १८ 1 ३ का भग ३. भग मारे भंग १ असंयम जलना १ सयमासंगम जानना २-३ के भंग जानना ३ का मंग २ का मंग गंग में कोई १ ज्ञान जानना के भंग में कोई ? ज्ञान जानना १ मंथन १ असंयम जान १ ममासंयमा जानना ३-० के भंगों में कोई १ व जानन S १ सूक्ष्म सांपराय १ सूक्ष्म पराय संयम जानना संयम aire सामायिक. स्थापना और यथाध्यान (४) १-२-१-१ के मंग (१) कर्म भूमि में १. २४० ? का मंग: एक संयम जानना ६ वे गुण में २ का भंग मा० मिश्रकाययोग की अपेक्षा सामायिक, छेदोपस्थापना २. का संग जानना सूचना प्राहारक मिश्रकाय योग में परिहारविशुद्धि संयम नहीं होता है। ३क मंग मेसे कोई १३ ये गुण● में १ संयम जानना १ का भंग एक यथाख्यात २के मंग मेसे कोई मंयम जानना संयम जानना (२) भोग भूमि में १ २२ ४ गुण ० ० मं १ यसंयम जानना मनुष्य गति मारे रंग २ का भंग ८ १ श्रनयम जानता ? प्रसंयम जानना १ मध्यम असंयम के मंग में से कोई १ संयम जानना १ यथास्यात् संयम | १ यथाख्यात जानना संयम १ श्रधम Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ·│ १ १४ दर्शन अचक्षु दर्शन चक्षु दर्शन अवधि दर्शन २ १. १. १. ४. केवल दर्शन ये ४ दर्शन जानना ! ११ मे १४० म १ यथाख्यान संयम जानना (4) भांग भूमि में २ नं ४ गुरण ० मं १ असंयम जानना ८ २-३-३-१-२-३ के भंग जानना (१) कर्मभूमि में १ २रे गुगा० में T २ का भंग प्रचक्षु दर्शन १, चक्षु दर्शन १, ये २ का भंग जानना मेरे ४५वे गुला० में ३ का भंग अक्ष दर्शन १, चक्षु वर्णन १ धिदर्शन १, ये ३ का भंग जानना ६ वें गुर० में ३ का संग औ० काययोग मौर आहार काययोग की अपेक्षा ऊपर के तीन ही दर्शन जानना ७ मे १२वे गुरुगु में ३ का भंग ऊपर के तीनों ही दर्शन जानना ! १३ १४वे गुरण० में १ केवल दर्शन जानना (२) भोग भूमि में १ रे गुग मैं २ का भंग प्रचक्षु दर्जन १. ( १२५ ) कोष्टक नम्बर १८ १ यथाख्यत यम जानना १ असयम जानना सारं भंग २ का मंग ३ का मंग ३ का मंग ३ का मंग १ केवल दर्शन जानना २ का मंग ! यथाख्यात नयम १ असयम १ दर्शन २ के भंग में से कोई १ दर्शन जानना ३ के भंग में से कोई १ दर्शन जानना १ केवल दर्शन जानगा २ के भंग में से कोई १ वन जानना 5 २-३-३-१-२-३ के भंग जानना (१) कर्म भूमि में १-२ गुरुप में २ का मंग पर्याव जानना ४ये गुल० मे ३ का भंग पर्याव जानना वे पु० में : i मनुष्य गति . मारे भंग २ का मंग ६ का भंग ३ का भंग प्राहारक मिश्रकाय योग की अपेक्षा. तीनों दर्शन जानना जनना १३ ये चरण० ० में १ केवल दर्शन १ का भंग केवल समृद घात की अवस्था में एक केवल दर्शन जानना (२) मोग में १ २रे गुण में 。 २ का भंग पर्याश्वत् जानना ४ये गुरण० में ३ का मंग पर्यासवत् २ का मंग ३ का भंग १ दर्शन २ के भगों में से कोई १ दर्शन जानना ३ के मंगों में से कोई १ दर्शन जानना 28 ६ केवल दर्शन जानना २ के मंद में से कोई १ बर्तन ३ के मंग में से कोई १ दर्शन जानना Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १५ लेव्या E को० नं० १ देखी ' चक्षु दर्शन १. ये २ का भंग जाता ३५ ४ गुगा में ३ का भंगदर्शन १. चक्षु दर्शन, अवधि दर्शन है ! ये ३ का अंग जनता 1 E ६-३-१-० ३ के भंग (१) कर्म भूमि में १ से ४ गुगा में ६ का भंग मामाम्प्रवन् जनना ५. वे वे गुण में कानी भ वेश्या जानना ८ मे १३ में गुरग १ शुक्ल लेश्या जानना १४वं गुप में ( 4 ) का नच यहां लेश्या FRI (२) भोग नृमि में १० मे काभंग कोन भ नव्या जालना ( १२६ } कोष्टक नं० १८ ४ ३ का भंग सारे भंग अपने अपने स्थान के ६ का भंग ३ का मंग १ शुक्ल लेक्या ● । ३ का भंग ५ 1 ३ के भंग में मे कोई १ दर्शन | जानना १ लेश्या के गंग में से कोई १ व्या जानना ३ के भंग में से कोई १ लेडया जानना १ शुक्ल लेग्या ૬ जानना ६-०-१० के मंग (१) कर्म भूमि में १२० में ६ का भंग पर्यावन जानना ६ गुण भ 5 का मंग माहारक मिश्रकाययोग की अपेक्षा ३ शुभदा जानना १३ वे गुण म १ का मंग केवल समुदात की अवस्था में एक शुक्न लेप्या जानना के भंग में से (२) भोग भूमि में कोई १ १-२-४ये गुरण० में २ का भंग एक कापोत लेश्या जानना जानना मारे भंग अपने अपने स्थान में ६ का भंग i मनुष्य यति } न -४ मिति में जन्म सेने वाले शुभया कर्मभूमि की ३ का भंग १ शुक्ल व्या जानना ३ का भंग ५ तर्ती कल्पवासी देव के अपर्याप्त अवस्था अपेक्षा जानना । १ ध्या ६ के भंग में में कोई १ या जानना तीन में से मे कोई ? लेश्या जानना १ बलमा जानना ३ के भंग में से को १ मा जानना मरके मनुष्य में भी तीन Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन ( १२७ ) कोष्टक नं०१८ मनुष्यति मुचना वाय पर्यातक मनुष्य के गुण म्थाम! मिथ्यान्व, जीव मम.स मनी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त और मीन पशुभ लम्या हो आनना (दो गोल ना .१-३२५-२६-५४६) १६ भव्यत्व भव्य, मभव्य २-१-२.१ भंग (१) कर्म भूमि में रेले गुग में २ का भंग भव्य, अमब्प ये२ जानना रे से १४ गुणाल के भव्य ही जानना (२) भोग भूमि में १ले गुमा० में २ का भंग भव्य, अभव्य २ जानना २रे ३रे गुरण में १ भव्य ही जानना १७ नम्यक्त्व | मिथ्यात्व, सासादन] १-१-१-३-३-२-३-२ मित्र, उपशम, १-१-१-१-३ के नंग सायिक, लायोप जानना अमिक य (६) (१) कर्म भूमि में गुरण में १मिथ्याल जानन २रे गुरण में १सासादन जानना ३रे गुरण में १ मिष जानना । सारे भंग १अवस्था मारे भंग १ अवस्था अपने अपने स्थान के २-१-२-१ के भंग अपने अपने स्थान के | (१) कर्म भूमि में . २ का भंग .दो मे से कोई १ले गुरग में २ का मंग दो में से कोई १ अबस्था का मंग भव्य, । १ अवस्था जानना प्रभव्य २जनना जानना १ भव्य जानना १ भए । २रे ४ वे १३व गुण । १ भव्य ही जानना १ भव्य ही में १ भव्य ही जानना जानना (२) भोग भूमि में २का भंग । दो में से कोई ले गुग में २ का भंग | दो में से कोई १ अवस्था ०का भंग भव्य, १अवस्था अभव्य ये २ जानना १ भष्य जानना १ भव्य । २रे ४थे गुण में १ भव्य हीजानना | १ भव्य हो । १ भब्य ही जानना जानना सारे भंग सारे अंगों में ।' सारे भंग !१ सम्यक्त्व अपने अपने स्थान से कोई१ . मिथ्यात्व, सासादन अपने अपने स्थान | सारे अंगों में के सारे भंग । सम्यक्त्व | सायिक क्षायोफाम ये ४ के सारे भंग जानना से कोई १ जानना सम्यक्त्व जानना । सम्यक्त्व जानना १ मिथ्यात्र १ मिथ्यात्व । २ सासादन १सासादन के भंग जानना | (१) कर्म भूमि में ले गण में १ मिथ्यात्व जानना २रे गुरग में १ सासादन जानना | मिथ्यात्व १ मिथ्यात्व १मिथ १ मिश्र १ सासादन १ सासादन Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं.१८ मनुष्य गति चौबीस स्थान दर्शन ___ १२ दो में से कोई १ सम्यवरव ज.नना क्षायिक सम्यक्त्व | जानना ४थे वे गुण में का मंग । ३ का भंग उपशम, आयिक, | क्षायीपमिक में जानना ६वे मुगामें | ३-२ के भंग ३ का भंग गौरिककाय । योग को अपेक्षा उपचम, भाषिक क्षयोपशम सम्यक ये ३ का, भद जानना २का मम पाहा क काय : | मोग की अगेक्षारिक, । क्षयोपशम (वेदक) समाकद ये काम जा..ना 1 ने गुशा में का भंग मग उपगन, नादिक भयापान का भंग जानन.. - नेवे गा में २ का भंग : का मंग अधन और स.बिक व्यक्त्व जानना १ौं : देगा में १ क्षायिक म. |१कायत जानदा जान .( भा भूमि में मिथ्या- १ मिनारद जानता गा. . १ मासादन १ गायादन जानना ... ग.प १ मिश्र तीन ममें कोईधे गुण में २का भंग १सम्यकन्न । २का भंग नायिक.! | क्षयोपशम ये का भंग जानना में से कोई १ | वे गुण में । २का भंग सभ्यवरव २ का भंग माहारक | मिश्रकाय योग की अपना क्षायिक, अयोपशम ये २। का भंग जानना १३वे गुरण में क्षायिक मम्म ,का भंग केवन समुपाद की प्रवम्मान ! 'तीनों में से कोई एकदायिक सभ्य ।१ सम्यक्त्व जानना (२) भोग भूमि में । दो में में कोई मिध्याव १ सम्यक्त्व १ मिथ्यान्न जानना २रे गुण न १ मासादत क्षायिक १सासादन जानना । मम्पक्व ४घे गंगा में का भंग जानना २ का भंग क्षायिक, मिथ्यात्व क्षयोपशम ये जानना। मूचना-यहां प्रथमीपशम १ मामादन सम्नमच में मरना नहीं होना है। द्वितीयोम मः ! मित्र में हो भरा होता है मी जानना (दया या. क. का भग | गा० ५.५०-१६०-५६१) १मिल १ सामादन दो में से कोई |सम्यक्त्व का भंग ४६ गुराण में । भग उपद.म. सा..क Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ कोष्टक नम्बर १८ चौतीम स्थान दर्शन मनूष्य गति क्षयोपचाप ये ३ का भंग जानना १८ संज्ञी () कर्म भूमि में मज्ञी . ११वे नम में मनो जानना मश्री (0) का भंग अनुभष । प्रमदिन संनी न अवजो अबस्था जानना (२॥ भोग भूमि में से गुण में ज्ञी जानया संधी जानना १ मंजी जानना (१)कर्म भूमि मे। | १ले २ ४ ६वे नुगण में १मजी जानना | १संगी मानना सूचना -लप्य पर्याप्तक सही जाना मनी जानना | मनुष्य के मध्यति, मनुष्य त्यानुपूर्वी, मनुव्यायु कानो उदय होता ! है, असंजी जीव के मनुष्य गति का नदय न होना है, (देखो गो. फट गा. इसलिय लम्ब्य प्लिक मनुष्य को संजी पंचेन्दिव ही समझना चाहिर परन्तु इन हीबों का अपर्याप्त अवस्था में ही मरमा होता है दुर्भाग्य मनोबल प्राग, प्रगट होन नहीं पानी १.वे गुण में | (6) का भंग प नत् बामना (२) योग भूमि नं ने २ वे मुग में | मनी बानना . संजी जानना । संजी जानना । मारे भंग' अवस्था १-१-१-१-१-१-१ के | पने सपने स्शन के मदारक मजारक, अनाहार सारे भंग अपने अपने स्थान के १ अवस्था 1-1-1-2 भंग Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य गति १ . २ । - - - - ये जानना कर्म भूमि में ११. गुगण में १ याहारक १ बालारा जानना व गुरंग. में १ आहारक २ का भंग दरममधात यवस्था में एक प्राधरक. चस्या जानना १४ गुना में १ अनाहारक १ अनाहारक अवस्था जानना अवस्था जानना (२) भाग भूमि में १ मे । गुनगम १ याहारक १माहारकनस्था जानना अवस्था भंग जानना १ माहारक (१) कम भूमि में १२ ४धे गण. मं. १-१ के भंग दोनों में से कोई १ माहारक १मनाहारक अवस्था जानना १ अवस्था विग्रह गनि में जानना जानना १अवहारक अवस्था माहार पांति के समय अनाहारक. जानना अवस्था जाननाचे गुरण में १बाहारक १प्राहारक १पाहारक अदम्या अवस्था अवस्था आहारक मिथकाय योग अवस्था में याहार पर्याप्ति के ममय १३वे गुएमें माहारक अवस्थाः १ आहारक १ आहारक अवस्था अवस्था केवलो समुद्घात की ! कपाट अवस्था में जानना. । १ अनाहारक अवस्था १ अनाहारक अनाहारक कवली समुद्रात की अवम्या । अवस्था प्रतर लोकपूर्ण अवस्था : में जानना (२)भोग ममि में १ले रे ४थे गुण में १-१ केभंग जाननादौनों में से कोई | १ अनाहारक अबस्ता १अवस्था विग्रह गनि में जानना जानना | १ पाहारक अवस्था • अाहार पयांमि के समय जानना Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बावीस स्थान दर्शन דבר כ नी P २२ जानना केजनः (१) म זק हसपुरा में भग ३. मग में ६ भगान दर्शनका भय जानन ॐ मे भग ३ भग जतन ने भगो करव परा का भजनन भग HTT १२ भ ज्ञान ? ज्ञान दर्शन भगना ६४ कन : मन भाग :. नन योग ? ४. अपने के मंग भंग डान्स ५ नंग भंग ७-३ केभ जानता का भंग ( १२१ } कोष्टक नं० १८ स्थान भग गजानना | ६ उपयोग ! मारेभंग मे कोई उपयोग मंग . 1 1 भगम को उपयोग ६. भंग ग में कोई उपयोग ६ के गी कोई यं जानता के कोई योग २ का सम जानन युगपत् १. मनःपरंग ज्ञान ? यावर 1-1-2-24 B भगवान्नः |१| भूि पुति मु का भंग की १४ जान जानना ६ भद लाजारक केप वन प जाऊ। (२) नी मे कार कम तुमि के समान जानना में मनुष्य गति मारं भंग अपने अपने के भंग जालना ४ का मंग काग कानग का भग घाम आनन भंग ६ मं न १ योग रेनों मे में को 1 जानत भंग में न कोई १ उपयोग जानना के भंग में १ नको उपयोग जानना भंग मे में कोई १ उपयोग जान्न का भंग बुगपत् जानता ४ के भग में से कोई २ उपयोग ६ के भंग में गंगोई १ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतीम स्थान दर्शन २१ २ १६ । (१) साध्यान ४, (sre वियोग, अनिष्ट संयोग. वेदना जनित, निदावज) (२) रोड म्यान ४ हिसानंदानंद चौर्यानंद, परिषहानंद) (३) धर्म ध्यान ४, (शाविषय पायविचय, दिपा रुविचय, संस्थानविचय) (४) शुक्ल ध्यान ४, ( पृथक्त्व दितकं विचार एक वितर्फ अविचार, सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति, नितिन ये १६ जानना . B युगात जालना (२) भांग भूमि मे १२ ५. का मंग ॐ० मे ६ का भंग बंध गुगा म ७ ६ का भग मं ऊपर के कर्म भूमि के समान जानना १६ (१) कर्म भूमि में १२ गुह में = का भग प्रातध्यान ४. गैद्रयान ४, थे का भंग ज्ञानना ३५ गु० में का रंग ऊपर के के मंग में आज्ञा बि० धर्म ध्यान जोड़कर है का भंग जानना ४ये गुण में १० का अग ऊपर के २. के संग में अपायविचय धर्म ध्यान १ जोड़कर १. का भंग जानना ( १३२ ) कोष्टक नं० १८ 1 C मारे भंग ६-२-१०-११-७४-१-१-१अपने अपन स्थान | के मारे मंग १-०६-१० के भंग ५ का भन 5. का भग ६ का भंग जानना भंग ६ का भंग १८ का भंग 1 ५ के भंग में से कोर्ट १ उपयाग • के भग मे से का उपयोग • के मंग म से. कोई ? उपयोग १ ध्यान मारे भंगो में से कोई १ ध्यान जानना - के मंग मे से कोई १ व्यान जानना के भंग फोर्ट १ ध्यान जनना १० के मंग मे में कोई ध्यान जानना ! ६ का भंग ऊपर के कर्म भूमि के समान जानना १२ प्रातं ध्यान ४, रौद्रध्यान ४, धर्मध्यान ३ (श्राज्ञावि० मपायवि ० विपाक विजय ये ३) शुक्ल ध्यान १ [सूक्ष्म किया प्रतिपति] १२ यान जानনা रु ६-७ १६ के भंग जानना (१) कर्म भूमि मे १ल मेरे मुसा में ८ का मंग विजानना ४भे में गुण ६ का भंग ऊपर के = के भग में प्राज्ञा वि० धर्म ध्यान जोड़कर का भंग जानना 1 मनुष्य गति | मारे भग अपने अपने स्थान के मारे भग जानना ८ का मंग का भंग उपयंग जाममा १ मान अपने अपने स्थान के बारे मंगों में से कोई १ ध्यान जानना गंगों में मे कोई १ ज्यान जानना ६ के गंग में से कोई ! ध्यान जा Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 चौतीस स्थान द गुगा मे १४ का भय ऊपर के १० के भग में विपाक विषय धर्म १८ का भंग जानना ध्व गुग में ७ का भंग मोदारिक पौर आहारक काययोग की अपेक्षा ऊपर के ११ के भंग में से इष्ट नियंग आतंत्र्यान १ रौद्रध्यान ४५ घटाकर शेष में संस्थानविचम धर्मध्यान १ जोड़ कर ७ का भंग ७वे गु० में ४ का भंग ऊपर के ७ के भंग में से अनिष्ट योग ?. astrafia १, निदानज १ ये ३ मर्तध्यान घटाकर ४ का भंन जानता ८ से ११वे गुगा० में वितर्क विचार १ शुक्ल ध्यान जानना १२वे गुरुग में १ एकत्व वितर्क विचरर शुक्ल ध्यान जानना १३वे गुण में १ मुक्ष्म क्रिया प्रतिपाती शुक्ल ध्यान जानना १४वे गुरग० में 1 · ( ११३ ) कोष्टक नबर १८ १२ का भग ७ का मंग ४ का भंग १ पृथवत्व वितर्क वि० शुक्ल ध्यान १ एकर विनर्क afro शुक्ल व्यानां १ सूक्ष्म किया प्र० शुक्ल ध्यान 1 १ के भंग में गे कोई ध्यान जानना ७ के भंग में मे कोई १ ध्यान जानना '४ के भंग में से कोई १ ध्यान जानना १ पृथक्त्व वि विचार शुक्ल ध्यान १ एकत्व दिल श्रविचार शुक्ल : ध्यान १ सूक्ष्म त्रिया प्र० शु० ध्यांन ६ ६ गुगा में १७ का भंग आहारक मिय काय योग की अपेक्षा पर्याप्तवत् ज्ञानना १३ वे गुरप मं १ सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति शुक्ल ध्यान गुण स्थान के अन्त में जानन (२) भोग भूमि में १ले २ रे गुण में = का मग आनं ध्यान ४. रौद्रध्यान ४. ये ८ का भंग जानना ये गु० में ६ का मंग ऊपर के = के भंग में प्रशा विषय धर्म ध्यान जोड़कर का मंग जानना 1 • नुष्य गति ७ का भंग १ सूक्ष्म त्रिया प्र० शुक्ल ध्यान ८ का मंग ६ का भंग 1 ७ के मंग में से कोई १ ध्यान जानना १ सूक्ष्म किया प्र शुक्ल ध्यान के मंच में से कोई १ ध्यान जानना ६ के संग में से कोई १ व्यान जानना Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन २ २२ श्राव リ ०मिश्रानयोग १. ० का १ २ (५२) ! व्युपरत क्रिया नियनिती शुक्ल ध्यान जानना (२) भोग भूमि म 과 २ चुना० = का भंग, मुगा का भंग ܐܐ में मुगल १० का भाग ऊपर के कर्म । भूमि के समान जानना ( १३४ ) कोटक नं० १० ! i १ व्युपरत क्रिया | व्यु किया नितिन शुक्ल शुवन ध्यान ! - श्री० मिश्रका योग १. अ०] मिश्रकाययोग ९. कामकाज ये घटाकर (५२) V.१-४६-४२-३७-२२.२० २२-१६-१५-१४-१२-१२११-१०-१०-६-१-३-०-५० | उप्र के मंग (१) कर्म भूमि से व में २.४ का निय्यर, रविरत कपाय २५. दोन योग योग १. ये ५१ जन गुमे ४६ का भंग के 1 ५१ के मंग में न मि५ 4 ध्यान भंग ३. का भंग १० का भंग या भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १९ से १= के भंगों में ११) कर्मभूमि मे १ ले मुग में १० मे १८ तक के भंग जानना अंगों की विवरगा निम्न प्रकार जानना १० का भंग संजय मिथ्यात्व T ५. मेरा कोई ७ या मे से कोई ? 146 १० मे से कोई ध्यान जानना १ भंग अपने अपने महान केसर भंग न कोई १ भंग जाननः ११ मे के भंगों में से १० से १५ नव के अंगों में से को? मंग जानन ६ घटाकर (४६) ४४-३६-३१-१२-२ १-४३-३०-३३ के भंग जानना १) फर्म भूमि मे १न गुप में ४३ का भंग मामा के के भंग में से मनोयोग न 1 योग ४ औ काययोग १. प्रा० निकाय योग १. आ० काययोग १. ये ११४४ का विनय मिध्यात्व 65 मनोयोग ४ वचन योग ४० का योग ● भग जानना २५ गुण में ३६ का भंग ऊपर ० के ४४ के। मनुष्य गति नारेग १ भंग अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान जाननः के सारे भंगों में से कोई ११ ते १८ के रूमों में से C 1 भग जानना ११ से २ के भंगों में गे ११। कर्म भूमि में इन्द्र युग में १९ मे १८ नक के मंस भवत जानना सूचना - १० का मंग इसलिये नहीं हो कि मियान्य कोयना वाले जीव को ११ सुन्वान से उतर कर १ स्थग्न में प्राकर न काय का नया बंद होकर उस नया बंध के आवाश काल न ११ मे १ त के भंगों में से कोई १ मंग जानना Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य गति घटाकर ८ ता भंर जानना विपरीत मिथ्यान्व, एकात मि.. | भग म ने मिथ्यान्व५ । अनन्वानुबंधी का उदय नहीं होता, राण में अहान मिध्वान्य. पूनम में कोई घटाक वा भग ननक मरण नहीं होता। मिथ्या १२ का भग ऊपर के मिथ्यात्न, अविरत हिमफ६. ये गुण : में दृष्टि का कषाय के के भंग में ४६ के भंगों में से प्रननानवधी | एकेन्द्रियादि जीबी में में कोई १ का भंग ऊपर हो मरण होता है। इसलिये यहां कमाय. घटाकर ४२ का . जीव का हिगफ का कोई इन्द्रिय के 18 के भंग में ० का भंग छोर दिया है। भंग जानना विषय १ और हिम्य ६ पृथ्वी अनन्नानुबंधी कपाय मूचना२.आपकी में कोई है जोव | श्री नमुमक वेद यहां ११ के भंग में जो एक का भंग ऊपर के हिम्य १. अविस्त) नगर के घटाकर ३३का ! योग गिना है वह ऊपर के योग १०कन ये अप्रन्यान्यान | कषाय मार्ग मान ने मंग कः । भग जानना स्थान की अपर्याम अवस्था के ३ कपाष ४, सहिया, ये ५ । कपाय ६ और ऊपर के संगमार्गरण।। ६दे गुग में योग में से कोई १ योग जानना घटाकर ३३ का भंग जानना । के १३ योगों में से कोई । योग ! १२ का भंग बेगर में इन प्रकार +२ +१-१० याहारक मिथकाय योग । २२ का भरपीदारिक का भंग जानना की अपक्षामध्यजन। कायबंांग की गक्षा ऊपर । उपाय ४, हास्यादिनी .७ भंग में ये प्रत्याख्यान पाय ६, पुल्प वन १ कषाय ४, अविरत ११ (स्थावर पाहारक मिश्रकाय योग | जीव हिंस्य ५और हिमा का १ १२ का भग रे गुगण में १० मे १७ तक सन्द्रिय विषय में ११) ये ! जानना ० से १७ तक के मंनों में से धमाकर १-६वा भंग जानना । ११ का भंग पर क१० के के भंग कोई १ भंग २० का भंग पाहारकवाय भंग में में करायका ६ का मंच पर्याप्तवन् जानना । जानना | योग का प्रांक्षा पर के २२ के घटाकर पौर कषाय का ७ का भंग में से स्त्री नपुमर पद के । भंग जोकर ११ मा भंग जानना घटाकर का मंग वे प्वं गुगा में २२ का भंग ऊपर के १२का भंग ऊपर के ११ के । ६ मा के २२ के भंग के भंग म से ७ का भंग घटाकर समान जानया कपाय का ८ का भंग जोड़कर वे गुग में १२ का भंन जानना १ले भाग में १६ का भंग Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ८ मनुष्य गति व गुरण में पर के २२ के भंग में में १३ का भंग ऊपर के १२के | २ का भंग कैबली समहास्यामि नोकवाय घटाकर मंग में से = का भंग घटाकर | दधात की कपाट यव१६ का भंग जानना कपःय काका भंग जोरकर १३ 'स्था ने मोनिकाययोग र भाम मे-१५ का भय ऊपर का भंग जानना १. क म गा काययोग । वे गुग में रस १६ तक के के १६ के भंग में मेगसक १८ काभंग ऊपर के १२ के । ये २ का भंग जानना १६नक के मंगभगों में से कोई वेद १, घटाकर १६ का ' भंग में से अविरत कार का १ला । १का भंग कबला | पर्याप्तवन जानना भंग जानना भंग जानना भंग (नीचे सूचना नम्बर ३ देन्बो) 'ममधात की प्रतर, सोक रे भाग में-१४ का भंग पर , घटाकर और अविरत का ३ का । पूर्ग अवस्या में १ कामगि के १५ के भंग में में स्त्री २रा भंग जोड़बार १४ का भंग जानना काययोच जानना । १. घटा र १४ का १५ का भंग पर के १४ के | (२) भोग भूमि में दे रग में ५-६-७ के भंगों मा बागना भंग में से अविरत का ३ का। ले गुण. म ५ -६- भग में में कोई १ नंग माग में -2 का भंग ऊपर भंग घटाकर अविरत का ४ का भंग ४३ का भंग ऊपर के ! पर जानना ' जानना १. भग में में पुरुष घटाकर अविरत का ४ का भंग । कर्मभूमि के ४४ के भंग वेद र १२ का किर: पामबान से नपसक वेद । १५ का भंग ऊपर के १५ के | घटाकर का भंग व भाग में-: का भंग ऊपर मंग में से अधिरन का ४ का मंग । जानना के के भंग में से कोष | घटाकर, अविरत का ५ का भंग । २रे गुरण में .१६ गुग्ग- मे २-१ के भंगो में सय १ टावर १२ का जोड़कर १६ का भंग का भंग ऊपर : २का भगसे कोई १ भंग भंग जानदा १० का भंग ऊपर के १६ के 'के दर्मभूमि के के ।ौ. नियकाय योग जानना माय न-११ का भंग पर भंग में ये अविरत का ५ का भंग | भंग में से एक नपुंसक !! शार्मागा काययोग के१२ के भंग में ये मान घटाकर अविरत ६ का भंग जोड़ | वेद घटाकर ?: का भंग , ये का भंग । पाय'घटाकर १का कर १७का भंग जानना का भंग । ना जानना १८ का भंग .पर के १७ के गुगा- मे र्यातवा जानना । बेभ' में-10 का भंग पर भंग में से अविरत का ६का भग २३ का भगग भूमि में . " ग में ने गा पटाकर अधिरत का ७ का भंग ऊपर के कमान के गा में .११ मे १८ तक कपाय १ घटाकर . का । जांडकर १८ का भंग जानना । ३: का हो भंग रहां है? मे तक के | के मंगों में से भंग जानना जानना भंग पावत। कोई भंव वे गुग में गानना परन् यहां जानना १० का भंग ऊपर के १६ 'हरेक भंग में Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतास स्थान दर्शन कोष्टक नं०१८ मनुष्य गति के भाग में में बदः , कानमान-माया काय ३ ग घटाकर 20 भग टानना गुग में का भा कार के १०के भंग में में लोभ कपाप घटाकर वा भंग जानना व गुण मा में १म१७ तक ५ का भर उन्यमम का "से १७ तक के के मंगों में मे । अपना सत्यमनोनोग १ अनूभय | भंग ऊपर के ले कोई १ मग मनायोग १, मत्यवचनयोग १, मिथ्यात्व गुगण स्थान जानना अनुभय वचनमोग १, औदारिक के ११ मे १८ तक के काययोग १ये ५ का भग हल भंग में में जानना मिथ्या दर्शन १. घटाकर १० मे१७ नक के भग जाननार मे १६ के ३ का भंग भावमन की रे ये गा में भंगों में से कोई अपेक्षा ऊपर के ५ के भंग में मे ग१६नक के भंग १ भंग जानना मन्यमनायोन , अनुभ्यमनी- | 74. के. मृग. यांग १ . घाबर : का | के १० से १७ नक भंग जानना मत भंग में से १वे मृग में अनन्तानबंधी कगाय (0) का भंग यहां कोरवस्था घटायोग नहीं है करनक के भग जानना (२१ भोग भूमि में ने गुगा० १४ नमें १ म । गुग: म - में नव भंग में में से कोई ५०-४०-४१ भंग पर केमे १५ ? मंग जानना ऊपर के कर्मभूमि के 2.?-४- नक के हरेक भग , नपुंसक वेद छोड़कर स्त्री-यूरुपये २ वेदों | म में कोई । वेद! जानना | रे गुरण में १० मे १७ तक १० से १७ तक केके भंगों में से भंग पर्याप्तबन्। कोई १ भंग | जानना परन्तु कोई जानना यहां हरफ मंग : में स्त्री-पुरुष ये २ वनों में से कोई जानना थे गुगा ये ये १६ तक के से१नक के अंगों में से कोई भंग पर्याप्तवन जानना १ भंग जानना परन्नु यहाँ हरेक मंग परन्तु यहां हरेक | में एक प्रस्य वेद मम में एक पुरुष जानना वेद जानना Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.१८ मनुष्य गति ४के हक भग में पाक में म अप्रत्याभ्यान कषाय को नगक वेद घटाकर १०-४५- पदस्था १ घटाकर ८ से १४ ४१ क भंग जाना तक के भंग जानना मूचना -यहा हिंसा न होने में ऊपर के 6 में १६ । नक के अंगों में से १६ का भंग नहीं होता इसलिये १६ का मंग धड़ दिया है। ६ ७वे वे गुग में ५-६-3 के भंग ५-६-3 के अंगों भंगों का विवरण में से कोई काई ५ का भंग किसी एक संज्वलन भंग जानना । कषाय की अवस्था, हाम्य- । रति या अरति शांक इन दोनों । | जाटों में से किसी एक जोड़े की २ नांकषाय, तीनों वेदों में से कोई १ वेद, ऊपर के हरेक शेग स्थान में में कोई १ यांग, २५ का भंग जानना का भंग ऊपर के ५ के भंग में भय । या जगप्या उन दोनों में से कोई । १ जोड़कर ६ का भंग जानना ३ का भंग कार के ५ के भंग में भय और वगामा के दोनों जोहकर ' का भंग जानना। सूचना .-६वे गुगा स्थान के जहां , प्राडार योग गिनेंगे यहाँ प्रो. Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ ) कोष्टक नमार १९ मनुष्य गति चौनस स्थान दर्शन |_२... । ५ । योग गिननी में नहीं पायगा स्वे गुगण में सवेद भाग में ३ का भंग कोई १ योग, काई ३का भंग जानना १ वेद और संज्वलन कवाय में मे कोई, कषाय, ये३ का भंग जानना प्रवेद भाम मे . २ का भंग • का भंग जानना बादरलोभ कषाय १, कोर्ट। योग ये २ का भंग जानना १०वे गूगा में उका भंग २ का भंग जानना तृष्म नोभरुषाय १ और कोई योग, ये का भंग जानना ११-१२-१३वे गुण में १ का भंग जानना १का भंग काई १ बांग जानना १४ गुग में (०)का रंग या कोई योग नहीं होता भोग भूमि में ये गुगा. में ? ये १- क के अंगों " म १८ नक के भंग में में कोई १ भंग जानना ऊपर के कर्म भूमि के मामान पन्त यहां हरेक भंग में जानना परन्तु यहा हरेक भंग स्त्री गुरुप इन दोनों वेदी । म नपुसक बद छोड़कर स्वी- : में में कोई वेद जानना । पण इन दोनों में में बोर्ड र वंद जान्ना Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०१८ मनुष्य गति गुगल मे मनक के १० मे १७नक भंगा में में कोई भंग ऊपर के कर्म भूमि भंग जानना परन्तु के ममान जानना परन्तु यहा हरेक भंग में यहा हरक अंग में स्त्री. स्त्री-पुरुष इन दो पम्प इन दो बंदों में मे वदों में में कोई कोई बंद जानना वेद जानना र ये गुगा. मे १ १ नक के १ मे १६ तक के मनों में में कोई भंग पर-क कर्म भूमि के अंग मानना परभू समान जानना परन्तु यहाँ हरेक भंग में यहां हरेक भंग में स्त्री- स्त्री-पुरुष पन दो पुरुष इन दा वेदों में से देदों में से कॉई। काई १ वन जानना वेद जानना - मुचना-यहां हिंसक के विषय को हरेक भंग में एक ही गिना है अर्थात् हिस्यक के एक समय के भिन्न भिन्न विषयों में में किसी एक विषय पर कषाय रूप उपयोग को ही हिसक गिना है । परन्तु१-केन्द्रिय जाति का स्पर्शन्द्रिय विषय २-ज्ञान्द्रिय जाति के पर्गन-ननेन्द्रिय विषय वे २, -जीन्द्रिय जाति कलगन-ग्मन-यापन्द्रिय विषय ये ३, ४-चरिन्द्रिय जानि के स्पर्शन-रसन-नाग-वरिन्द्रिय विषय ये ४, ५-प्रसंजी परन्द्रिय जाति के स्पर्शन-रसन-नारा-चक्षु-कणेन्द्रिय विषय ये ५ -मंजो पन्द्रिय जाति के स्पर्शन-रसन-प्राग-चन-कर-मनइन्द्रिय विषय ये ६, पुन है अवस्थामों के विषयों में से एक समय कोई ही विषय हिंसक गिना जाता है अर्थात् किसी एक समय में किसी एक विषय पर ही कषाय F' उपयोग होता है, वह उपयांग ही हिसक गिना जाता है जिम हिमक की अपेक्षा में विचार करना हो तो उस भवस्या को हिंसक की जगह Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (6) मूचना-हिस्य के : भंग निम्न प्रकार जाना । ला भंग-पृथ्वी व १ का भग जानना । रा भंग-वो-जल या भंग जानना। रा भंग-वा-जल-अग्नि ये : का भग जानना । ४था भग-गृथ्वी-जल-अग्नि-पायुयं ४ का भंग जानना । ५वा भंग-पृथ्वी-जल-अग्नि-वायु-वनस्पति ये ५ का भंग बानना । या भग-गृथ्वी-जल-पग्नि-वायु-वनस्पति-पस मे ६ का भंग जानना । इसके शिवाय और भी पृथ्वी-अनि य २ का भंग, पृथ्वी-प्राय दे २ का भंग, पृथ्वी-वनस्पति ये २ का भंग और पृथ्वी-बस ये २ का मंग, इस प्रकार अनक भंग बन सकते हैं। (३) सुचना-प्रविरत के ६ भंगों की विवरण निम्न प्रकार जाननाना दी का भंग-हिमक का कोई १ विषय घोर हिस्य के कोई १ जोब ये का भंग जानना । रा तीन का भंग-हिंसक का कोई १ विषय और हिस्य के कोई जीव ये ३ का भंग जानना। ३रा चार का भंग-हिंसक का कोई विषय और हिंस्य के कोई ३ जीव ये ४ का भंग जानना । vथा पांच का भंग- हिमक का कोई १ विषय और हिस्य के कोई ४ जीव ५ का भंग जानना। ५वा छः का भंग-हिसक का कोई १ विषय और हिस्य के कोई ५ जीव ये ६ का भंग जानना। बा मान का भंग-हिमक का कोई १ विषय और हिस्य के कोई ६ जीव ये ७ का मंग जानना । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबीस स्थान दर्शन ( १४२ ) कोष्टक नं. १८ मनुष्य गति नरकगति , लियंचमति १. देवगनि १ ये! घटाकर (१०) सारे भंग मारे मंग | मंग ३१-२६-३०-३३-०-३१- अपने अपन स्थान सारे भंगों में से उपशम मम्यक्त्व १ । अपने अपने स्थान सारे अंगों में -१-6-56-२८-२३-[ के सारे मंग कोई भंग | उपमचावि १. के मारे मंग से कोई १ २६-२५-२६-२-२२-२१- जानना जानना अवपिज्ञान १ जानना मं ग जानना २०-१४-१३-२७-२५-२६-१७ का कोई भंग १७ का मंग कोई मनः पर्य यज्ञान १, १७ का कोई १ भंग १७ का कोइ १ २६ के मंग । मंग ये ४ पटाकर (४६) मंग (१) कर्म भूमि में | (१) कर्म भमि में ० -२५-१०-२७-४- | न गुगा १० गुरण में १७ के अंगों में २-२५के भंग जानना १ का भंग | १७ का मंग में कोई १ मंग। (१) कर्म भूमि में नान ३ दर्शन २, लब्धि, कुमति, कुध ति, | जानना ने गुरण में ले गगन में • मनुष्यगति १, कप य ४, लिग अवधिशानोममेकोई ३० का भंग पर्याप्त क १७ का भंग १७ के मंगों में ३. लश्या , मिथ्या दर्शन १,१ज्ञान, प्रचक्षुदर्शन २१ के भंग में से कृषि पर्वाप्तवन जानना | में कोई समयम १, अजान १. प्रसिद्धत्व चक्ष दर्शन इन दोनों जान १, घटाकर ३ का भगजानना .१, पारिगामिाभाव ३, ३१में में कोई १ दर्शन ! भंग जानना । का भंग जानना दान-लाम-भोग रे गुरग० में रे गा में । रेनुण में उपभोग-वीर्य में २८ का भंग पर्यात के | १५ का भंग १६ के मंगों में २६ का भंग ऊपर के १ क्षयोपशम लब्चि ५ के भंग में मे कुमवधि, पर्वाप्तवत् जानना । से कोई १ के भंग में से मिथ्या दर्शन १, चारों गतियों में में ज्ञान १, घटाकर २८ का' भंग जानना अभव्य १, ये घटाकर २६ कोई १ गति, क्रोध | भंग जानना का भंग गानना मान-माया-लोभ इन व गुण में ४ गूगा में गूगण में चारों कषायों में से ! १० का भंग पर्याप्त के १७ का भंग १७के भंगों में का भंग कार के कोई ? कषाय, नौन ३ के भंग में में उपदाम पर्या बन जानना । मे कोई १ के भंग में प्रधि दर्शन १ वेदों में से कोई सम्यक्त्व १, स्त्री वेद, भंग जानना जारकर १० का मग जानना वेद, छः लेश्यायों में नपुंसक बंद १,से घटाकर थे गुना में मे कोई १ लेण्या, । ३३ का भग जानना : का भंग : मिथ्या दन ।, मुचना -यह का ' म भाविक मम्बवन्द २, अमंवम १. अज्ञान ? भंग कल्पनामी देव और मान ३, दर्शन ३, क्षयोपगम प्रसिद्धत्व १, भव्यत्व १ले नरक में पाने वाले सम्यक्त्व, अयोपशम लब्धि या अभव्यत्व में में जीवों की अपेक्षा जानना (देखो मो००मा० ३२७) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य गति -- - - । ५. मनुष्यमति १. कषाय ४, कोई १, जीवाव १ ६वे गुग में वे मुरग म १७ के भंगा में लिंग लम्या ६, असंयम १. ये १७ का भंग ७ का भंग । १७ का भंग से काई १ भंग प्रज्ञान, प्रसिद्धत्व १, भव्यन्व! जानना पयांमवन जानना पर्यापद जानना जानना ज, बत्व१, य का भंग जानना । सूचना-स१७ बेगुग्ग में १. गुग्म में । १४ के भंगों वे गुग में के भग के भी अनेक १6 का भग १। का भंग में से कोई १ भंग ३० का भंग ऊपर के ३६ प्रकार के भंग होने पामबन जानना पर्याप्तवन जानना । जानना के भंग में से अशुभ नश्या३, हैं इसका बुनासा । १२) भोग भूमि में (२) मांग भूमि में अनंयम से घटाकर ष स नी : 0030 | १२ मुरग में ले गृगा० मे १७के अंगों में में सयमामयम जोड़कर ३० में देखो '२४ का अंग पनि के १७ का भंग ये कोई१ अंग वा भंग जानना रे गुग्ग में ।१६ के अंगों में भंग में से कृयर्वाध पर के कर्म भूमि | जानना ६वे मुगलों में । १६ का भंग से कोई १ मंग । जान १, शुभ लभ्या ३ | के समान जानना . ३१ का भंग प्रोक काययोग कार के १७ के मंग जानना थे जान १, घटाकर परन्तु यहां स्त्री. | की अपेक्षा ऊपर के ३०के में मे मिथ्या दर्शन ? .शष २७ में कापांन लेण्या पुरुष इन दोनों वेदों. • भंग में से संयमासयम पटाकर घटाकर १६ का भंग। ।१ जोड़कर २८ का मम | में में काई १ बंद | ष २९ में मरागमयम जानना । जानना जानना | १, मनः पर्यय ज्ञान ! य२ सूचना-इस १६ के रे गुगा में र गुगण में १८ के भंगों में से जोड़कर ३१ का भंग जानना भंग में भी ऊपर के । ' २२ का भंग पर्यात के | १६ का भंग | कोई १ भंग २७ का भंग प्राहारक १७के समान अनेक . २५ के भंग में से कुअवधि ऊपर के कर्म भूमि जानना काययोग की अपेक्षा ऊपर के प्रकार के मंग जान १, शुभ लश्या ३] के समान जानना 12 के भंग में से उपशम | जानना ये ४ घटाकर शेष २१ परन्तु यहां स्त्री, सम्यक्त्व १, स्वी-नपुंसक वेद | रे गा में ।१६के अंगों में कापोत लेश्या १ पुरुष इन दोनों में | २. मनः पर्षय ज्ञान १ ४ १६ का भंग | से कोई १ भंग जोड़कर २२ का भंग से कोई १ वेद । घटाकर २७ का भंग ऊपर । २रे गुरण ! जानना जानना गुरण में के १६ के भंग के उध गुण में थे गुरा० में १७ के भंगों में से ३१ का अंग ऊपर के भंग | समान जानना २५ का मग पर्याप्त १७ का भंग कोई १ मंग में से मंयमासंयम १ घटाकर मुचना-१६ के मंग : के २१ के भंग में से ऊपर के भंग कर्म | जानना परन्तु शेष २६ में सरागमयम १, मन में भी ऊपर के समान उपशम सम्यक्त्व १. भूमि के समान यहां एक पुल्ल पर्यय ज्ञान १ ये २ जोड़कर ३१ अनेक प्रकार के भंग स्त्री वेद १, शुभ लेण्या ३| जानना परन्तु यहाँ वेद ही जानना का भंग जानना । ये ५५ टाकर शेष २४ एक पुरुष वेद जानता Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१८ मनुष्ध गति व गूगा में ४ गगम में १७ के मंगों में से कापोत लेश्या का भंग उपगम क्षायिक का मंग से कोई११ जोड़कर २५ का मभ्यवच, उपचम क्षायिक उपगम क्षायिक अयोपदाम भंग जानना । भारत नारित्र २. जान, दर्षन , म. इन नीनों में से कोई मूचना-भोग भूमि अपांपमम नधि ५, मनुष्य १मम्यक्त्र, मनि श्रुति में जन्म लेने वाले गति , कपाय , लिंग ३, : अवधि ज्ञान इन तीनों में के अपर्याप्त अवस्था शुक्न लश्या १, अहान १. से कोई 1 ज्ञान, अचक्षु । मिले रे ४थे गुगण * अमिव १, भब्यत्व १., दर्शन, चक्षु दर्शन अवधि में एक कापीत लेश्या जोवन्त ६, ये २६ का मंग दर्शन तीनों में से कोई । ही होती है जानना १ दर्शन, क्षयोपशय (देसी गो का ने नग्ग में लब्धि ५, चारों गतियों गा०५४६) १ च भाग म-२६ का भंग ऊपर ' में से कोई 1 गति, चारों. के ने माग में के कपायों में से कोई १ . ममान यहां भी जानना | काय, तीनों लिगों में ने भाग में-२८ का भंग कर | मे कोई १ जिग, छ: के २६ के भंग में में 'लव्यामों में में कोई ? । नपुसक बंद १, घटाकर । लेश्या, असंयम का अंग जानना | अज्ञान १, प्रसिद्धत्व १, ।रे भाग में- का भंग ऊपर भव्यत्व १, जीवन के २८ के भंग में से स्त्री ये १७ का भंग जानना । बेन १ घटाकर २७ का । सूचना-इस १६ वे मंग। भंग जानना में भी ऊपर के समान : भाग में-६ का भंग ऊपर | अनेक प्रकार के भंग . के २७ भंग में में पुरुष जानना वेद १ घटाकर २६ का भंग का भग जानना भाग म-२५ को मंग ऊपर वे मुरगी के अंगों में के के भंग में में कोच १७ का मन में कोई वंद १ घट कर २५ का उपशमक्षायिक भयोपगम | जानना भंग जानना Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुय गति । ६वे भाग में-२४ का भंग ऊपर इन सौनों में से कोई २५ के भंग में से मान सम्यक्त्व तीना ज्ञानों में कषाय १, घटाकर, २४ का से कोई जान, तीनों भंग जानना दर्शनों में से कोई 1 दर्शन ७वभाग मे-२३ काभंग ऊपर क्षयोपशम लब्धि ५, के २४ के मंग में से माया | तिर्यच या मनुष्य गतियों कपाय, घटाकर २३ का। में से कोई गति, | भग जानना कोषादि चारों कषायो । १.व गुण में में से कोई १ कयाय, २३ का भंग ऊपर के तीनों लिंगों में से कोई | | २६ के भंग में मे शोष-मान-१ निग, तीन शुभ वध्यावों | माया फवार ३, लिंग ३ मे | में मे कोई १ गुम लेण्या, घटाकर २३ का भंग जानना | संयमानंयम १, प्रज्ञान । ११वे मुगा० में मसिद्धत्व १, भमत्व १. का मंग 'ऊपर के २३ | जीवत्व १ये १३ का - ! के भग में में सूक्ष्म लोभ १, भंग जानना यिक चारित्र १,ये २ घटाकर सूचना-इस १७ के मंग १का भंग जानना मे भी ऊपर के समान ! १२वे गुगण मे अनेक प्रकार के भंग । का अंग ऊपर के २१ जानना भग में मे उपदाम मम्यकत्व व गूगण में के भंगों में मे उपनम् नारिव१येर घटाकर शेष कामंग | कोई १ भंग १६ सायिक चारिप १ जोड़कर उपशमादि तानों सम्पस्यों जानमय • वा भंग जानना में से कोई १ मम्यक्त्वों : वे गुण में मति मादि चामें जानों । १४का भग क्षायिक में से कोई जान, तोनों मम्यक्त्व १, क्षायिक पारित दर्शनों में से कोई दान वन-जान १.केवम दर्शन १, क्षयोपशम लब्धि ५, ] दान-लाम-मोग-उपयोग-वीर्य ये | मनुष्यगति १. संज्वलन माविकाध ५, मनुवाति Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नबर १८ चौतीस स्थान दर्शन मनुष्य गति श्व नद्या, प्रमिव । कषायों में से कोई कषाय, । भव्यवजीवत्त्व , ये तीन लिगों में से कोई निा, ' भाव जानना सीनों शुभ लेश्यावों में से कोई १४वे गुण में १शुभ लेश्या, सराग संयम १३ का मंग ऊपर कर प्रजान १, प्रसिद्धत्व १. 'के भग में में शुक्ल लेश्या भव्यत्व १. जीवरब १,ये १७ | घटाकर १३ का भंग जानना का भंग जानना (२) नीमभूमि में ।भूभना-स १७ के भंग में भी ने गुरण में ऊपर के समान अनेक प्रकार के. का भंग ऊपर के कर्म । मंग,जानना। | भूमि के ३१ के मंग में से | वे गुरण में १७के मंगों में। नपुंसक वेद १, प्रशुभ लेश्या १७ का भग। में के.ई १ मंग। ३,ये ४ पटाकर २७ का भंग | ऊपर के ६वे गुण स्थान के जानना २रे गुरण में । १७ के भंग के समान जानना २५ का भंग ऊपर के २७ । ८वे गुण. में १७के मनोमें | के भंग में से मिय्या दर्शन, १७ का भंग से कोई मंग। अभय, ये २ घटाकर २५ का | उपशम या क्षायिक सम्यक्त्व। जानना भंग जानना | में से कोई सम्यक्त्व उपपाम ३२ गुण. में ! या दायिक चारित्रों में से कोई २६ का भंग ऊपर के २५ ।।१ चारित्र, मति प्रादि चार । के मंग में भवधि वर्णन १, | शानों में से कोई ज्ञान, तीन जोड़कर २: का मंग जानना दर्शनों में से कोई १ दर्शन, ४थे गुरण में अयोपशम लविध ५, मनुष्यगति २९ का भंग कर्म भूमि १. संज्वलन कषायों में से कोई | के ३३ के मंग में से नपुंसक १ कपाय, तोर वेदों में से कोई वेद १, अशुभ लश्या ये ४१ वेद, शुक्न लेश्या १, प्रशान घटाकर २६ का भंग जानना | १, प्रसिद्धत्व १, भव्यत्व १, जीवव १ ये १७ का मंग जानना Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ पौतीस स्थान दर्शन २ सूचना - भोग भूमि में चारों गुणस्थानों में तीन शुभ दया ही होती है (देखो गो० क० ना० ४.४६) ( १४७ ) कोष्टक नं० १० ५७ के भं 1 ऊपर के समान अनेक प्रकार के भंग जानना ६० में सवेद भाग में १७ का मंग ऊपर के ये गुरण स्थान के समान जानना सवेद भाग में १६ का मंग ऊपर के सवेद भाग के १७ के भंग में से कोई लिंग घटकर १६ का भंग बानना सूचना-इम १६ के भंग मे भी ऊपर के समान अनेक प्रकार के भंग जनना १०वे गुरण 10 मे १६ का भंग उपटयम या क्षायिक सम्यक्त्व में से कोई १ सम्यक्व, उपशम या आर्थिक चारित्र में से कोई बारि मति आदि चार ज्ञानों में से कोई १ ज्ञान तीन दर्शनों में से कोई १ दर्शन, अयोपणम लब्धि ५. मनुष्यति १ सूक्ष्म लोभ १, शुकन लेख्या १, प्रज्ञान १. प्रसिद्धव १ भन्द १, जीवश्व १ ये १६ का भंग जानना सूचना-इस १६ के भंग में भी ऊपर के समान अनेक प्रकार के भंग जानना 보 मवेद भाग मे १७ । भंगों में से करें १ भंग जानना प्रवेद भाग में १६ के मंगों में से कोई १ मंग जानना १६ के अंगों में मे कोई १ नं जानना ६ मनुष्य गति ७ 5 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ ममुख्य बति ११ये गुरण में १५ के भंगों में से कोई १५ का भग मंगजानना उपगम या क्षायिक सम्पबत्व । में में कोई सम्यक्त्व, उपयाम चारित्र, मति दि चार नानों में में कोई १ज्ञान, तीन नों में से कोई दर्शन, क्षयोपशम लब्धि ५, मनुष्य गति है, सुबल लेश्या १. प्रज्ञान १, सिद्धत्व.. भव्यत्व जीवत्व १.१५ का भंग जानना मुचना-इस १५ के भंग में भी ऊपर के समान अनेक प्रकार के अम जानना १२खे गुण. १५ का भंग १५ के मगों में से कोई क्षायिक सम्यक्त्व है, क्षायिक भंग जानना चारित्र १, पति ग्रादि चारों। जानों में से कोई ज्ञान, तान . दर्शनों में से कोई १ दर्शन, भयोपटाम मटिप ५, मनुष्यगति' १, शुक्ल लेश्या १, प्रज्ञान १, . प्रसिदत्व १, भव्यत्व १,जीवत्व १,१५ का भंग जानना। सूचना-इस १५ मंग में भी ऊपर के ममान अनेक प्रकार । के भंग जानना Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं.१८ मनुष्य गति १५दे गुसा में १४ का मंग जानना १४ का संग सायिषः सम्यमान १. क्षायिक चारिष १, कंवल जान १. केवल दर्शन १. आयिक लचि ५. मनुष्यगति १. शुक्न लग्या .. अमिडाम, मध्यक'. जीवस्व १,ये १४ का भंग जानना मूचना- यहां इस १४ के मंग में अनेक मंग नहीं होते। १४वे गुण में । १३ का भंग जानना १३ का मंग ऊपर के १४ के भंग में से शुक्ल . लेण्या १ घटाकर दोष १३ का | भंग जानना सूचना यहां इस १३ के भंग अनेक भंग नहीं होने (२) भोग भूमि में १ले मुख में के भंग में से कोई १७का भंग ।मंग जानना परन्तु यहां ऊपर के फर्म भूमि के १७ के स्त्री-पुरुष इन दो में मंग के समान जानना परन्तु | मे कोई 1 बेद जानना यहां स्त्री-पुरुष इन दोनों वेदों में से कोई १ वेद जानना रे गुरए में '१६ के अंगों में से कोई १६ का भंग | अंग जानना परन्तु म्हां। ऊपर के कर्म भूमि के १६के स्त्री-पुरुष इन दो वेदों में मंग के समान जानना परनु से कोई १ वेद जानना Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन - वे ध्वं ३ १०३ J " P " १ १७ के भंग में १ कृष्ण लेण्या गिनकर १७ का मंग जानना カテ १ मील श्या #7 " 37 १ कापोत लेश्या , ar 1 कोष्टक नं० १८ ! I यहां स्त्री-पुरुष इन दो वेदों में में से कोई १ वेद जानना ३ गुरण० में १६ का मंग " ऊपर के कर्म भूमि के १६ के भंग समान परन्तु यहां स्त्री इन दो वेदों में से कोई १ वे जानना ये गुण० में १७ का भंग ऊपर के कर्म भूमि के १७ के भंग के समान जानना परन्तु यहां स्त्री-पुरुष इन दो वेदों में से कोई १ वेद जानना (१) सूचना--- १ ले गु० के १७ के भंग में अनेक प्रकार के भंग होत हैं इसका खुलासा निम्न प्रकार जानना १ पीन लेण्या १ पद्म श्या " शुक् श्या ? कुमनि ज्ञान १ कुम्भ विज्ञान १ कुप्रवधि ज्ञान १ नरकगति " ." " " १६ केभ में से कोई १ मं जना परन्तु यहां इन दो वेदों में १ वेद जानना ri से " १७ के मंगों में से कोई १ मंग जानना पर स्त्रीपुरुष इन दो वेदों में से कोई १ द " " 33 21 H "J 33 " " " ६ 38 E मनुष्य गति ७ Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११५ १२२ १३वे । तियंच गति ? मनुप्यति १ देवगति १ कोषकवाय १ मानकडाय १ माया कषाय १ लाभकषाय १ नपुसक वेद ? स्त्री वेद १ पुरुष वद १ प्रभव्य ये भंग चारों गति, पाचों इन्द्रिय, पर्याप्त, अपर्याप्त, नित्य पर्याप्त, लब्ध्य पयांप्स, इन सब अवस्थाओं में हो होने वाले सब मेदों की व्याख्या है सो जानना। (२) सूचना-लेश्या के ६ भगों का खुलासा निम्न प्रकार जानना-जिस जीव के जितनी नेश्याओं के भंग होते हैं उतनी ही लेश्यामों में समय-समय में एक एक लेश्या का परिणमन होता रहता है। दुसरे ढंग मे ६ मंग निम्न प्रकार जानना १ का भंग-कृष्णा लेश्या १ का भंग-शुक्ल लेश्या २ का मंग-कृष्ण, नोल लेश्या २ का भग-शुक्ल, पद्म लेश्या ३ का मंग-कृष्ण, नील, कापोत लेण्या ३ का भंग-शुक्ल, पत्र, पीत लक्ष्या ४ का भंग-कृष्ण, नौल, कापोत, पीत लेश्या ४ का मंग-शुक्ल, पप, पीत, कापोत लेश्या ५ का मंग-कृष्ण, नीत, कापोत, पोत, पन तेश्या ५ का भंग-शुक्ल, पच, पीत, कापोत, मील लेश्या ६ का भंग-कृष्ण, नील, कापोत,पीस, पथ, शुक्ल नेक्ष्या ६ का भंग-शुक्ल, पथ, पीस, कापोत, मील, कृष्ण लेल्या यह वर्णन गोमटसार जोनकाह के पेक्ष्या अधिकार में लिया गया है। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) २४ अवगाहना-माय पर्याप्तक मंत्री पचेन्द्रिय जीव की जपन्य पवगाहना पानागुल के प्रमस्यान भाग प्रमाण जानना पौर उत्तम मोगभूमिया मनुष्य की उत्कृष्ट प्रवगाहना (६०००) छः हजार धनुष (३ कोम) जानना । २५ बब प्रकृतियां-१२० सामान्य मनुप्य की प्रपंक्षा १२० प्रकृति जानना। मूपना-१४ गुण स्थान की अपेक्षा विशेष खुलामा गो० २० गा. ६४ मे १०४ देखो। ११२ निवृत्य पर्याप्तक मनुष्य में मामु , नरकटिक २. पाहाद्विप२ ये ८ प्रकृतियों का बंध नही होता इसलिये ये ८ घटाकर ११२ प्रकृति जानना। १०६ नम्व्य पर्याप्तक मनुष्य में देवधिक २, नीर्थकर, प्रकनि:, ये ३ और ऊपर के ८ प्रति ऐसे ११ प्रकृतियां ऊपर के १२० में में घटाकर १०६ जानना। २६ उदय प्रकृतियां १०२ मामान्य से मनुष्यों की अपेक्षा उदय पोग्य १२२ प्रकृतियों में से नरकटिक २, नरकायु १, तियंचद्विक २, तियंचायु १, देवद्धिक २, देवायु १, त्रियकठिक २, एकेन्द्रियादि जाति ४. पातप १, उद्योत १, साधारण . मूक्ष्म १, स्थावर १, ये २० प्रकृतियां घटाकर १०२ बानना। १०० पर्याप्तक पुरुष मेदि. नरक में ऊपर के ली पात १ ये २ घटाकर जानना। ६६ पर्याप्त स्त्री में (योनिगति मनुष्य) ऊपर के १०० प्रकृतियों में से तीर्थकर प्र.१, पाहारक द्विक २, पुरुष वेद १, नपुंसक वेद १ये ५ षटाकर और स्त्रीवेद १ जोरकर १६ जानना तम्म्य पर्याप्तक मनुष्य में जानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ६ (महानिद्रा ३ घटाकर) वेदनीय २, मोहनीय २४ (स्त्री-पुरुष ये स० मिथ्यात्व १, म. अमिः १,२ वेद घटकर), मनुष्यगनि, नीच गोष १, अन्तराय ५, नाम कर्म २८, (मनुष्यगति , पंचेन्द्रिय जानि १, निर्माण १, प्रौदारिकर्तिक २, नजर कार्माग्म शरीर २, हुन्डक संस्थान १, प्रसंप्राप्तामृपाटिका संहनन १, स्पादि ४, मनृत्यगत्यानुपूर्वी १. प्रगुरुलऽ १, उपधान १, मापारम्प १, सूक्ष्म १. स्यावर १, अपर्याप्त , दुभंग १, स्थिर, अस्थिर १. शुभ १, अशुभ !, मनादेय , अपनः कोति १. ये २७) ये सब ७१ जानना (देखो गो० क० गा० ३०१) ७८ भोग भूमियां मनुष्य में ऊपर के १०२ प्रकृतियों में में दुर्भग १, दुःस्वर १, अनादेव १, अयमः कीर्ति १ नीच गोत्र १, नपुंसक वेद १ म्यानगृष्मादि महानिदा ३, प्रप्रशस्त विहायोगति १. तीर्षकर प्र. १, अपर्याप्त है, वचधूपम नाराच संहनन छोड़कर दोष ५ संहनन, समचतुरस्र संस्थान छोड़कर शेष ५ संस्थान, प्राहारकहिक २ २४ घटाकर ७८ जानना (देखो गो० क. गा० ३०१.३०३) २३ स्व प्रकृतिया--१४८ ने मिथ्यात्व चरण में सामान्य मनुष्य की अपेक्षा से १४८ प्र जानना । १४५ रे गुण में तीर्थकर प्र. १, माहारकद्विक २ ये : घटाकर १४५ जानना । Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४७ रे गूगा में माहारकनिक २ अपर के १४५ से जोड़कर १४७ जानना । १४. गुगल मे १004 मकर ५०१ डकर १४८ जानना उपशम मम्पम्हष्टि को अपेक्षा १४८ और क्षायिक सम्पष्टि पो अपेक्षा ७ प्र. घटाकर १४१ जानना । १४६ ५वे गग में भरका १ घटाकर उपभम म०पला और भाषिक स० अपंक्षा १४० प्रकृतियां जानना। १४६ चे गुग्गल में तीर्यचायु १ ऊपर के १७ में घटाकर १४६ जानना धायिक सः अपेक्षा १२९ जानना। १४६ चे गुगा० में १४६ जानना । मुचना-६२ गुण के अन्त में अनन्तानवधी का विमंयोजन होकर सातिशय अप्रमत्त में जाकर उपभप श्रेणी नदने के सम्मुख होते हैं। ८वे गगग में : भंग होते हैं। मा भंग में पशम नम्याप्टि के उपमम अंगठी में १४. प्रत की मना जाना । सूचना--इन ५२ प्र. में मिथ्यात्व, सम्पग्मिच्याच. मम्यक प्रानि ? गना मौजूद हैं। मंग में शामिक मम्यग्दृष्टि के उपशम धेगी में १३६, प्र. की सत्ता जानना । मनना-इन १६ प्र. में ऊपर के : मिथ्याच प्र० को मना नहीं रहता है। प्रम में शायिन गम्याटिनाक अंगो में १३/प्र की मना गानन।। मुगण- इन ११ प्र. में देवाय की सना नहीं रहती है। मुग में भी भंग जानदा। मा भंग में उपगम भम्यवाव की जाम धंगी म१८ प्र. जानना। भं -भाविक गम्पकल्प की पाम अंगा में १३६ प्रजानना। +भंग में- हायिक गम्यमत्वो की शपक बेगी मे १ . कर मत्ता जानना । ३६ गुग में भी ३ मग जानना । न भंग में उपशम मम्यादी की उपटाम थेगी में भी मना जानना । भंग में झायिक मम्पवानी को राम धगी में प्र०का मन। जानना । भंग में शपिक मम्यान्वी नां सपक घेगी म प्र की ना जानना। मनना -६ने गगा० में के १३८ प्रकत्रियों में में नरकदिक तिनद्विक एन्द्रियादि जानि, प्रतिप, उद्योन १, महानिद्रा ३, मंचना मात्र माग-माया व ३, हास्यादिनांकाय, वेद ३, साधारण १, मूक्ष्म १, स्थावर १, अप्रत्यानकषाम ४, प्रत्यास्थान कम्य :: पटाकर ३.२० को मना जानना १२ नेतृग में भंग जानना । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने भंग में-उपशम सम्यक्त्वो उपशम धेशी में १२ प्र. की सत्ता आनना । -रे अंगों में-क्षायिक सम्यक्स्वी उपशम यणी में १३६० की सत्ता जानना। १२१ १२वे गुण में १०१ प्र. की मत्ता जानना। १ब गुण में ऊपर के १०१ प्रकृतियों में से (१२वे गुरए के अन्त में) जानावरणीय ५, वर्णनावरणीय (महानिद्रा । घटाकर), अन्तराय:, १६ घटाकर .प्र. की सत्ता जानना । ८५ १४वे गुग के द्विचरम समय में ५ प्र० की सप्ता जानना और चरम समय में १३ प्र० को सत्ता बानना । मनुष्यायु १, वंदनीय २.उच्च गोत्र १, मनुष्यगति १, पचेन्द्रिय जाति, तीर्थकर, प्र०१सकाय, बादर १. पर्यात, सुभग १, मादेय १, पशः कति १,इन १३ प्रकृत्तियों का भी मोक्ष जाते समय नाश हो जाता है। संख्या असण्यात जानना इस राशि में लब्ध्य पर्याप्तक मनुष्य भी सम्मिलित है। २६ क्षेत्र-लोक का असंख्यातयां भाग प्रमाण अढ़ाई द्वीर को अपेक्षा जानना प्रतर समुद्घात की अपेक्षा लोक का असंख्यात माग प्रमाण जानना लोकपूर्ण समृदयात की अपेक्षा गर्वलोक जानना। ३० स्पर्शन-ऊपर के क्षेत्र के समान जानना। ३१ काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्व काल जानना एक जीव की अपेक्षा क्षुदभव से या अन्त हुतं स ४७ काटि पूर्व तीन पल्य तक निन्तर मनुष्य पर्याय ही धारण करता रहे इस अवस्था में यदि मोक्ष नहीं हो तो दूसरी पर्याय धारण करे। ३३ अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव को अपेक्षा क्षुदमव तक मनृश्य न बने या असंख्यात पुद्गल परावर्तन काम तक मनुष्य न बने। ३३ जाति (योनि)-१४ नान मनुष्य योनि जानना । ३४ कुत्त-१४ लाख कोटि शुल मनुष्य को जानना । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. १६ देव गति स्थान सामान्य पर्याप्त भपर्यात नाना जीव की अपेक्षा एकावर नाना एक जी क एक । समय में समय म १जीब क नाना एक जीव के नाना जीवों की अपेक्षा समय में एक समय में १ गुण स्मान ४ मारे गुगः स्थान गारे गुग्ण स्थान | गुरमः १सेर गुग में से ४ मुगा. जानना मनब के गुग्गः चारों में में काः। १ले ४३ गुग १-२- ३ गुरगोनों में से जाना जानना | कोई १ गुल २ जीबममाम २ संज्ञा पचेन्द्रिय पर्यातये ४ गुगा में ! मी पंचेन्द्रिय मंत्री पंचेमियोथे गुगा में ने मंत्री ए. अपयांप्त मंत्री पं. और अपर्याप्त ये (२) । १ मंत्री पं० पर्याप जानना पर्याप्त जानना | पर्याप्त समी पं. अपर्याप्त अपर्याप्त जानना २ पर्याप्ति ६ १भंग १ मंग १ भंग भंग को न १ देखा १ से ४ गुण का भंग जानना ।। का भग जानना ने रे ४थे ये : गूगा. ३ का मंग ३ का भंग ६ का भंग सामान्यवत् ३ का भंग माहार, गरीर, जानना जानना | इन्द्रिव पयोति ये का _ भा जाममा ४ प्राग . भंग , मन लब्धि पपीप्ति जानना को न०१ देखो मे ४ जुग्ग के १० का भंग जानना| १० का भंग , मंगभग १० का भंग सामान्यत्रत जानना जानना ने रे ये गुगा में का भंग ७ का अंग का भंग प्राय: काय ' . वन, इन्द्रिय प्राग ५ य. .७ का भंग जानना १ भंग १ भंग ४ को नं. १ देखों में गुगण में ४ वा भंग ४ का भंग .तेरे गा में ४ का भंग | ४का मंग ४ का नंग मामान्यत् ४ का भंग पतिवन् २० Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौनांग न दर्शन कोप्टक नं०१६ देव गति मनि देवर्गात . वन में देवगनि जानना देवगन । देवननि दवणात देवगान १ले गगा म लेने मना में मरने बाला जीव भवनविर में जन्म ले सकता है जरे ४य गुग में मरने वाला जीव १ मे. १६वे स्वर्ग मोर - वैयव में जन्म ले सकता है ४ये गुण स्थान में मरने वाला जीव नब मनुदिन । | और पंचानूनर विमान में जन्म ले सकता है। पंचन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जानि पंचन्द्रिय जाति ने रे ये गुग में पंचेन्द्रिय जाति जानना ७ इन्द्रिय जाति १ परेन्द्रिय जानि १रो ४ गुण में पंचेन्द्रिय जाति १ पचेन्द्रिय जाति जानना काय वसकाय. १ से ४ गुग में उसकाय १ असकाय जानना ६ योग और मित्रकाग्रयोग १ दं. मिथकाय योग १. औदारिकाययोग १ कारिग काययोग १ प्रा. मिश्रकाययोग. ये २ चटाकर (६) माहारक कारयोग १ १ मे ४ गुण में का भंग जानना ये ४ घटाकर (११) १का भंग वचन बोग ४,: मनोयग ४, 4. कापयोग १ का भंन जानना । १ योग वसकाय । १ले २रे ये गुण मे यसकाय उसकाय १वसकाय जानना : . १ योग कार्माग काययोग १, 4. मिश्यकाय योग । ये योग २ जानना के भग में में १-२ के भंग : कोई १ योग ले रे ४थे गुण में - के मंगों में से १-२ के अंगों में जानना का भंग कारण कोई १ मग जानना से कोई १ बोम काययोग विग्रह गति में । ললনা जानना .. २ का भंम कार्मागण Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१६ देव गति काययांना निध । कारयोग का भंग १० वेद ___ सारे भंग | बंद सारे भगवेद स्त्री-पुरुप ये २ देद । २-१-१ के भंग प्र पन प्रपन स्यान के २-१-१ केभंग अपने अपने स्थान के जानना (१) भवनयिक देव में (१) मनन वसा न ब १६ स्वर्ग तक के देवा में स्वर्ग तक के इबी में १स ४ गुण में का भंग जानना | २के भंग में | र गुग में ।२का गंग जानना १-२ के अंगों में २ का भंग स्त्री-पुरुष वेद ये २ | । से कोई १ वेद | २ का मंग स्त्री-पुरुष २ जानना जानना बंद जानना इन दोने जानना (२) नवर्य वेयक में । गुग में मरकर यहां १ मे ४ गुगा में १ पुल्प बंद जानना १ पुरुष बंद | स्त्रीपुरुष निग हो गकता ! १पुरुष बेद जानना जानना (३) नवप्रनुदिश और (2) नवगै ययक में गंचातुत्तर विमान में ले रे ४थे गुण में ! पुरुष वेद जानना | १ पुरुष वेद ४ो गूगल में १ पुरुष वेद जानना १ पुरुष वेद १ पुष वेद ही जानना : जानना १ पुरुष वेद जानना । जानना (३)२५ रवगं मे सर्वार्थ सिद्धि तक के दवा में ४५ गुगण में पुरुष बंद जानना १ पुरुष लिंग १ पुरुष लिंग जानना जानना ११ कषाय २४ | सारे भंग ! १ भंग २४ सारे भंग । नपूसक बंद । २४-२०-२३-१२-१६ भंग अपने अपने स्थान के १४-२४-१६-२३-११- अपने अपने स्थान के घटाकर (२४) १६ भंग (१) भवनत्रिक देव से १६ ले गुण म ७-८-६ केभंगों (१) भवनजिक देवों में । स्वर्ग तक देवों में ७-८-के भंग | कोई भंग | ले रे गुरंग में -- के भंग -4-6 के अंगों १ल रे गुरा: में कोनं० १८ के | जानना | २४ का मंग को नं०१८के में से कोई १ मंग २४ का भंग समान जानना पर्याप्तवत् जानना समान वानना | जानना - सामान्यवत् जानना सूचना--पर्याप्तवत् পালা २४ Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन २ ३ T ३२ गुण में २० की भंग ऊपर के २४ के भंग में से अनन्तानुबंधो कपाय ४, घटाकर २० का भंग जानना (२) नव देयक के देवों में १] २ गुण० में के भंग में से स्त्री वेद ? घटा कर २२ का भंग जानना ३रे ४वे गुण० में । १६ का भंग ऊपर के २३ के भंग में से अनन्ता बंधी कृपाय ४ पटाकर १६ का ग जानना (३) नव अनुदिश और पंचा तर विमान में ४ये गु० में १६ का भंग ऊपर के २३ के भंग में ने अनन्तानुबंधी कपाय कर १६ का भंग जानना ( १५८ ) कोष्टक नम्बर १६ सूचना-परन्तु हरेक मंग में नपुमक वेद छोड़कर २ वेदों में से कोई १ वेद जानना ३२ ४थे गु० में ६-७-८ के भंग को० नं० १८ देखो परन्तु सूचना ऊपर के नमान जानना १ र गुण मे _७-=-६ के भंग २३ का भंग ऊपर के २४० न० १० देखो ६-७-८ के मंग (२) १ मे १६ स्वयं में में से कोई १ १ले २२ गुण ० मे भंग जानना | ४ का भंग एक * परन्तु सूचना ऊपर के समान जानना ३९ ४६ गुण० मे ६०७-८ के मंग को० नं० १० देखो परन्तु सूचना ऊपर के समान जानना ७८-६ के भंगों में से कोई ? भंग जानना | ४वे गुण० में ६-७-६ के मंग हो० नं० १० देखो परन्तु सूचना ऊपर के समान जानमा ६-७ के मंग में से कोई १ भंग जानना ६ : १६ का मंग पर्यात के २० के मंग में में स्त्री वेद घटाकर १६ को नपुंसक वेद घटाकर २४ | परन्तु सूचना ऊपर का भंग जानना ४ गुर० में जाता (३) नवरों वेयक में १ले २३ गुगा में २३ का मंथ पर्यासवतु जानना ॐयं नूगा में १६ का भंग पर्यावतु जानना (४) शिर पंचान्तर] देवों में 3 जिथे गु० में १६ का मंग पर्याप्तवत् जानना देव गति १ले २ रे गुरा में ७-८-९ के भंग को० नं० १८ देखो | ७ भंग जानना सुचना सम्प्रहृष्टि मर कर स्त्री पय में नहीं | के समान जानना ४ ० ६-७ मंग को० नं० १ देको परन्तु सूचना ऊपर के समान जानदा ८ ७ ८-६ के गंगों में से कोई १ | भंग जानना १ले मरे र गु० में ७-०६ के भंग को० नं० १८ देखी परन्तु गुचना ऊपर के गरन जानना गुगा में के मंग ६ को० ० १ ख परन्तु सूचना ऊपर के समान जानना ४ गुर० में ६-७-८ के भंग को० नं० १८ देखो' ६-७-८ के मंर्मों में से कोई १ भंग जानना ७ ८-६ के मंग में से कोई १ भंग जानना -७-८ के अंगों में से कोई १ भंग जानना ६-७-८ के भंग पें से कोई मंग जानना Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०१६ देव गति मुजान ३, ज्ञान, ये ६ जान जानना 'परन्नु मूचना ऊपर के समान जानना सारे भंग १कुज्ञान मार भंग | १कुञान ३-३ के भंग अपने अपने स्थान के 'कुप्रवधि ज्ञान घटाकर (1) अपने अपने स्थान के भवनाविक गे नयन बेयक तक | | २-२-३-1 के भंग लि रे रे गण में | ३ का भंग जान .|३ केभंग में में ) भवनत्रिक देवों में ३६ भंग वुमनि, वुथु ति, कुज्ञान जा ना कोई १ कुजान। ले २रे गुण में २ का भंग जानना २ के भंग में से बुधवधि ज्ञान व ३का भंग जानना | २ का भंग कुमति कुश्रुति कोई १ कुशान जानना ये २ कुज्ञान का भंग जानना भवनधिक से सधि सिद्धि तक थे गुण में ३ज्ञान के मंग में से । (२) ले स्वर्ग से नव- : . का मंग मति, अति, अवधि | कोई १बान | चंचेयक तक के देवों में | ज्ञान ये का भंग जानना जानमा १ले २रे गुण. में २का भंग २के मंग में से २ का भंग कुमति कुन ति. कोई १ कुशान ये २ कुजान जानना । बानना ४थे गुग में का मंग | ३ के भंग में से ३ का भंग मति अति कोई मान अवधि ज्ञान ये ३ जान : जानना जानना (३) नव अनुर्दिश और पंचानुत्तर के देवों में वे गण में . ३ का भंग ३ का भंग मति इति । अवधि शान थे। शाम: जानना १३ संयम असंयज्ञ भसंयम १ से ४ गुप में १असंयम जानना असंयम | ले २रे ४थे गुण में १ असंयम जानना प्रसंयम Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन देव मति कोष्टक नं. ६ ४ । । ! । १ भंग १ दर्शन २ का मंग १४ दर्शन अचन दर्शन, ! २-३ के भंग पक्षु दर्शन, अधि, । १ले २रे गुग्गल में दर्शन ये (३) | २ का भंग अचन दर्शन, । दर्शन ये दर्शन जानना ३२ ये गुण में ३ का भंग मचल द०, चनु दर अवधि दर्शन ये ३ ददान । जानना | २के संग में मे कोई १ दर्शन जानना ३ का भंग । के मंग में में कोई १ दर्शन जानना १दन । १ भंग २-२-३-4 के मंग के भंग में में (१) भवनत्रिक में । कोई १ दर्शन | लेने गुरण में २ का भंग : जानना २का भंग के भंग में मे' पकः बन जानना । कोई १ दर्शन | (२) स्वर्ग में नव- . । जानना बेयक तक के दंवों में । २रे गुग में २का मंग २का मंग अचल द.. चाद, ये २ का भंग ये गुग में ३ का भग '३ का भंग मामान्यवत् । नीनां ददान जानना ३)नव अदिन और पंचामृत्त तक के देवों में , गुगल में -2 का भंग सामान्यत्रत । तीनों दर्जन जानना नया ३-३-१-के भंग ११) भवनजिक देशों में १ क भंग में में.गोगमा में का भंग । कोई लत्या का भंग कृष्पगन्नीलजानना ' कापात य ३ अशुभ लेश्या | जानना के भय में से. (२) कासवासी देवा में कोई १ व्या | श्ले २रे ४ गुणा में | का भंग जानना । का भंग नीन शुभ का मंग १५ लश्या को० .१ देखो १ का भा ३-१-१ के मंग (१) भवनाविक देवों में १गे ४ गुग्म में १का मंग एक पीत नेच्या का भंग जानना (2) कल्प बासी देबों में १से ४ गुरण में ३ का मंग पीत-पय-शुक्त ये : मुभ लेश्या जानना ।३ केभंग में से ! कोई ? श्या जानना ३ का भंग Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व I चौतीस स्थान दर्शन ३ २ अव्य, प्रभव्य को० न० १ देखो (3) १ मे ४ गुण० में ? शुकन लेख्या जानना (2) नत्र अनुदिन और पंचानुतः विमान के देवों में ४] गु० में १ शुक्ल लेन्या जानना मे २ २-१ के भंग १ गुण० में २ का मंग भव्य प्रभव्य मे २ जानगा ३४ गुगा ० 0 में १-१-१-२-३-२ के भंग (१) भवनत्रिक देयों में नवयक तक के देवों में १ले गर० में १ मिथ्यात्व जानना => गुणा ० मैं १ 'मामादन जानना गुरण० में १ मिश्र जानना (२) भवनत्रिक देवों में ये गु० में २ का भंग उपशम. क्षयोपलम t १६१ 1 कोष्टक नं० १६ १ बल नेपा १ शुक्ल १ मंग २ का भंग १ भव्य जानना सारे नंग १ मिथ्यास्त्र १ सामान ? मित्र २ का मंग नया जानना जानना १ शुक्ल लेग्या । ( ३ ) नव वेयक देवों में १४ गु० में १ शुक्ल लेप्या जानना (२) नवमनुदिश और पंचानुत्तर विज्ञान के देवों में ४६ गुण में १ शुक्ल लिया जानना २ १ शुक्रवा जानना १ अवस्था दो में से कोई अवस्था १ भव्य जानना १ सम्यवत्त्र i १ मिध्यात्व १ सासादन १ मिश्र 1 ६ में से कोई १, मंग जानना २-१ के मंग एले गुगा में २ का मंग पर्याव जानना ०४ मु में १ भब्य जानना ५. मिश्र घटाक (५) १३ मंग (१) भवनत्रिदेवों नवकनकः के देवों में १० मे १ मिध्यान्य २६ गुरख० मे ? स भादन (२) १ ले स्वर्ग मे सर्वार्थ निद्धि तक के देवों में ४ये गुरप० मैं ३ का अंग उपगम (द्वितीयोपशम) İ देव गति १ शुक्ल लेपपा ? गुवल लेक्यन १ मंग २ का मंग १ भव्य जानना नारे गंग १ मिध्यान्न १ समदन का मंग १ ला १ शुक्ल लेण्या जानना | १ अवस्था दो में से कोई ? अवस्था १ भव्य जानना १ सम्यकन्य १ मिथ्यात्व समान 7 !के में से कोई १ रूम्यक्त्व जनना Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन १० संज्ञी १६] आहारक ? संजी प्राहारक अनाहारक (वेदक सभ्यत्व ये का भंग ज नना (६) १ले स्वयं ने नवग्रं वैसक गक के दबो में ४चे गुगा० मे ३ का भग उपशम क्षायिक अयोपशम सम्यगत्व ये जनना (४) नव अनुदिश और पंचानुत्तर विमान के देवों में गुरण में २. क्षयोपशम सम्यक्त्व ये २ भंग जीवना सूचना--- भवनत्रिक देवों में पर्याप्त अवस्था में भी क्षायिक सम्यक्त्व नहीं हो सकता है | १ से ४ गुरप 2 १ मंत्रो जानना में ? १ से ४ गु० में १ आहारक जानता ३ का भंग २ का भंग मंत्री १ आहारक ( १६२ ) कोष्टक नं० १९ ५ के भंग में से कोई 5 सम्यनत्व जानना १२ के भगों में से कोर्ट १ सम्पत्व जानना संजी आहारक सामिक योषयाम सम्यक्त्व ये३ का मंग सूचना - यह ३ का मंग भवनत्रिक देवों में नहीं होना (देखो गो० । क० गा० ३०५ ) ? १२३४ गुम्प० १ संज्ञी जानना में १ २२ ४ये में गुण ० १ अनाहारक विग्रह गति में जानना १ आहारक आहारक पर्याप्त के मिश्र अवस्था में जानना संज्ञा देवगति दोनों अवस्था १ अनाहारक १ श्राहारक ८ संजी अवस्था १ अनाहारक १ आहारक Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० १९ देवगति १ उपयोग २० उपयोग ज्ञानोपयोग दशंतोपयोग पहजानना ४ के भंग में से कोई १ उपयोग जानना १ भंग ५-६-६के रंग (१) भवनत्रिक देवों से नवनव-' यक नक के देवों में १ले रे गुगा० के । ५का भंग ५ का भंग कुमति कुथ नि.. कुपववि ज्ञान और प्रचत्र दर्शन. का भंग जानना रेख में का भंग का भग ऊपर के ५ के मंग में अवधि न जोडकर ६. का भंग जानना 1) भवनत्रिक देव में सर्वार्थ । मिद्धि तक के देवों में का मंग ४ सग. में फा भंग मति, श्रुति, : अवधि ज्ञान और प्रभु दर्शन, . चन्न दर्शन, गवधि दर्शन, ये ६ का भी जनना ४ के भंग में से कोई 1 उपयोग जानना १ उपयोग १ भंग म . पाक ४-४-६-६ के भंग (१) भवनत्रिक देवों में के मंग में मे लग गम में ४ का भंग कोई १ उपयोग ४ का भंग पर्याप्ति के ५ । जानना के मंग में में कृअवधि मान पक्षकर ४ का अंग के भंग में ये जानना - कोई १ उपयोग! (0) १ले स्वर्ग में नवजानना बेयक तक ऊं देवों में १नो गुग में का भंग ४पा भंग चुमति, के भंग में ने कुच ति, प्रचक्ष दर्शन. चक्षु . कोई १:पयोग ! दर्मन यं का भंग जानना | जाना। गगा में ... का भंग का भग पय सवन् जानना (1) मत्र अदिश और पचादतर विमान के देवों में । ४य गुगा में ' या मंग का भग पर्याः वद जानना . १ प्यान ५. पाय विचय धर्मध्यान - के भंग में मे टाकर (६) कोई ध्यान --के भंग जानना के भंग में से कोई १ उपयोग के भंग में से कोई१ उपयोग १ ध्यान २१ ध्यान १० । १० पार्नध्यान ४ --६-१० के भंग रौद्रम्यान ४ १ले रे गुण में धर्मध्यान, = का मंग भानच्यात (माज वि० प्रा०पायदि रोद्रध्यान ये 5 का भंग ..जानना _ ! जानना बारे मंग | ८ का भंग Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१६ देव गति - गीतील स्थान दर्शन ३२ गुण में का भंग है के भंग में से रेल रे गुगा में का भंग के संग में से है का भग कार के के काई १ ध्यान का भंग कोई१त्यान भंग में माना बिचय धर्म । जानना | पर्याप्तवन् जानना जानना ध्यान १, जोहबर ६ का भंग परामा में क. भंग है के भंग में से जानना का भंग प्रार्तध्यान ४, कोई ध्यान ४ये गुण में १. का भंग १० के भंग में में ध्यान ४, माज्ञा जानना १० का भंग ऊपर के । कोई १ ध्यान | विचय धर्म ध्यान है ये ।के भंग में अपाय पचय घरं | जनम का भंग जानना ध्यान ?, जारकर १० का भंग जानना २२ माधव सारे भंग १ भंग मारे भंग , मंग मौ. मिथकाययोग १.. कामांगा काययोग १, अपने अपने स्थान के सारे मंगों में में मनोयोग ४, वधनयोग ४ अपने अपने स्थान सारे भंगों में से पौदारिक काययोग १, वैमिध काययोग १, सारे मंग जानना कोई १ भंग !4. काययोग १ये के मारे मंग बानना कोई १ भंग पा० मिब का , ये २ घटाकर (५०) जानना घटाकर (४३) मा. कापयोग १.! ५०-४५-४१-४६ ११ से १. ४३-८-३३-४२-३ - मंगों में से नपुंसक वेद ४४-४०-४० के भंग के भंगों में मे ३३-३: के भंग ये ५ घटाकर (५२) (१) भक्तविक देयों से १५वे (१) भबनषिक देवों से स्वर्ग तक के देवों में १६थे स्वर्ग तक के ले गुण. में ले गुण में ११ से १८ नक देवों में ५० का अंग | ११ से १८ तक के के भंगों में से १ले मुरण में १ले गण में |११ में 15 तक मामान्य के ५२ के भंग में से | भंग को.नं०१८ कोई १ भंग ४: का भंग १ से १८ तक के के अंगों में से कोई काम गा काययोग १६.मिश्र देखो जानना | सामान्य के ५२ के मंग | मंग को.नं. १-१ भंग जानना काययोग १२ घटाकर ५०! मे से मनोयोग ४, देखो का भग जानना वचनयोग ४, 4. काय २रे गए. में रे गुग में १० से १७ तक | योग १ ये घटाकर ४५ का भंग कार के |१० से १७ तक के | के मंगों में से ४३ का भंग जानना 10 के भंग में में मिथ्यात्व भंग को. नं०१८ कोई १ भंग | रेगरण में । २रे गण में १० से १७ तक ५ पटाकर ४२ तक के भंग जानना ३८ का भंग ऊपर के १० से १७ तक केके भंगों में से कोई जानना ४३ के भंग में से ५ भंग का००१८१मंग जानना Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नम्बर १६ देव गति 2 ४ गुगण में ३रे ४५ मुगार में में १६ नक के मिथ्यात्व घटाकर ३ का ४१ का भंग ऊपर के 42म १६ तक के भग मंगों में से कोई भंग जानना के भंग में मे अनन्ता बंधी को० न०१८ देखी १ भंग जानना व गुरप० में ४ये मुरण में से १६ तक के कपाग ४ घटाकर ४१ का । २३ का भंग ऊपर के स १६ तक के भंग भंगों में से कोई भंग जानना ३८ के भंग में में अनन्ता-को.नं०१८ देखो १ भंग जानना (२) नवग्न वेयक के देवों में । नुबंधी कवाय ४, पत्री ले गुण में ले गृण में ११ में १८ क वेद १, ये ५ घटाकर ४९ का भग ऊपर के ५० ११ मे १८ तक के के नंगों में मे ३३ का भंग जानना "के भंग में में स्त्री बेद १ घटा | भंग को नं०१८ कोई १ भंग मूवमा-यह ३३ का कर ४६ का भंग जानना देखो भंग भवनत्रिक देवों में | रे गृगा. में | रे गुएरा में १० मे १७ तक नहीं होता ४४ का भंग ऊपर के ४५ १० से १७ तक के के अंगों में से (२) नवर्य येयक के देवा । के भंग में से स्त्री देद १ पटा- भंग को नं०१८ कोई भंग । में । कर ४४ का भंग जानना ! देखो ने गुण में । १ले गुण में ११ से १८ तक रे ४थे गुण में रे ये रण मे १ से १६ तक के ४२ का भंग ऊपर के ११ से १८ तक के | के अंगों में से ४. का भंग ऊपर के ४१ ६ से १६.क के भंगों में से कोई । ४३ के भंगों में से स्त्री भंग को नं०१८ कोई १ मंग .के भंग में से स्त्री बेद १ घटाकर' भंग को. नं०१८ १ भग जानना | वेद १ घटाकर ४२ का: देखो जानना . ४० का मंग जानना देखो भंग जानना (2) नव अनुदिश और पंचा- | रेगुण में रे गुण में १० से १७ तक नुत्तर विमान के देवों में | ३७ का मंग ऊपर के १० से १७ तक के के मंगों में से ४थे सुगम में ४ये गुण में ३८ के भंग में से स्त्री ! भंग को नं०१५ कोई १ भंग ४० का भग ऊपर के नव | ६ से १६ तक के वेद १ घटाकर ३७ का देखो ! जानना ग्रं देयक के ४० का भंग ही यहां- मंग को० नं. १% भंग जानना जानना थे गुण में ये मुरण में ' से १६ तक के ३३ का भंग ऊपर के ।। से १६ तक के भंग भंगों में से कोई ३३ का भंग ही (१६वे को न०१८ देखो' १ भंग जानना स्वर्ग तक के ४ये गुण स्थान के ३३ का भंग) यहाँ । जानना देशो । Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २३ भाव ३७ 1 उपशम क्षायिक क्षयोपशम सु०३, कुजान २, ज्ञान है, दर्शन लब्धि ५ देवगति १, कषाय ४, स्त्री-पुरुष वेद २ मा दर्शन १, लेग्या ६ असंयम १, अज्ञान १, अलि १. परिणामिक भाव ३ ये ३७ भाव जानना ३७ २५. २३-२४-२६-२७२५-०६-२६-२४-२२२६-२७-२५ के भंग जानना (१) भवनविक देवों में १ ले गुण ० मं २५ का भंग कुशान, दर्शन २. नधि ५. देवगति १. कषाय ४. स्त्री-पुरुष वेद २, पौन नया है, मिश्रा दर्शन १, समयम अज्ञान असिद्धत्व १ परिणामिक भाव २५ का भंग जानना २५ भं २३ का भग ऊपर के २५ मंग १, भव्य १. वे शंकर २३ का भंग जानना ( १९६) कोष्टक नं० १६ | ४ | सारे भंग अपने अपने स्थान के मारे संग जानन १ भंग सारे भंगों में ने कोर्ड १ मंग जानना १ गुण में १७ का मंग को० नं० १८ देख परन्तु यहां नपुंसक लिंग छोड़कर स्त्री पुरुष उन दो वेदों में से कोई १ वेद जानना रु गुण ० में १६ को भग [को० नं० १८ देखी परन्तु यहां भी स्त्रापुरुष इन दोनों में से कोई १ वेद जानना | ! १७ के मंगों में कोई १ मंग जानना १६ के भंगों में में कोई मंग जानना ६ (३) नव अनूदि और पंचानन्तर विमान के देवों में ४थ गुप में ३३ का भंग ऊपर के नव वैयक के ३३ का भंग हो यहां जानना ३६ कुअवधि ज्ञान घटाकर ॐध गुग मं ६ मे १६ तक के भंग को० नं० १८ देखो सारे भंग अपने अपने स्थान के (३६) सारे भंग जानना २६-२४-०-२६-२४२८-२३-२१-०६-२६ के भं (१) भवनत्रिक देवों में १ले गुड़ में २६ का मंग पर्यास के 19 ¦ देव गति १मे To में गुण ० १७ का भग २५ के मंग में से कुअवधि पर्याप्तवत् जानना शान पीन लेखा टा बार और अशुभ दया ३ जोड़कर २६ का भंग जाननः २. गुगा में ४ का भंग के २३ के भंग में से कुल ज्ञान १, पीत मश्या १ व २ घटा कर और अशुभ लेश्या जोड़कर २० का भग ४ये गुगास्थान में यहाँ गुगा में १६ का भंग पर्याप्तवतु जानना ८ ६ मे १६ तक के भंगों में से कोई १ मंग १ रंग सारे अंगों में से कोई १ मंग जानना १७ के भंगों में से कोई १ मंग जानना A १६ के मंत्रों में से कोई १ मंग जानना ! Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i_ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०१६ देव गति _ . 7 - " रे गुमा० में | रे मुरण. मे १५ का भंग में था गुगा नहीं होना । २५ का भग ऊपर के २३ ! १६ के भंग १६ के भंग से कोई से कोई १ भग | कारगा ४थे गुगाम मर' भग | के भंग में मोघ दान जारकर को नं० १० देखो जानना कर पान वाला जीव २४ का भंग जानना परन्तु यहां भी की। भवनविक देव नहीं करता. ४ये गुण म | पुरुष इन दो वेदो | (२) कल्पवासी देवा में २६ का भंग उपशम-क्षयो- में से कोई १ बंद । १ले गुरस में ले गुण में | १७ के अंगों में पशम सम्यवल २ जान ३, । डानना २६ का भंग पर्याप्त के १७ का मंग को० से कोई १ भंग दर्शन ३ लब्धि ५, देवगति १ ४थे गुग में ।१७के भंगों | २७ के भंग में मे न १८ दवा | मानना कषाय ४, स्त्री-पुरुष लिंग २, १७ का भंग से कोई १ भंग कुप्रयधि ज्ञान घटाकर परन्तु यहां मी लेश्या पीत १, असंयम १, को००१८ देता । जानना २६ का भंग जानना स्त्री पुरुष वेदों में अज्ञान १, प्रसिद्धत्व १, भव्यत्व परन्तु यहां ही स्त्री २रे गुण में से कोई १ वेद १,जावत्व १, ये २६ के पुरुष इन दोनों वडों; २४ का भंग जानना भंग जानना में से कोई देद | गर्यात के २५. के भंग में ! रे गुरण में १६ के मंगों में । (२) कल्पवासी देवों में जानना से कुयधिशान घटाकर १६ का भंग कोई १ मंग १ले गुण में १ने गुण में ७ के भंगों में २४ का भंग जानना । पर्याप्तव जानना | जानना २७ का भंग ज्ञान ३, १७ का भंग से कोई १ मग ४ गुण में ये गुण में १७ के भंगों में दर्शन २. लब्धि ५, देवति | ऊपर के भवननिक ! जानना २८ का भंग १७ का भंग से कोई १ भंव कषाय ४, स्त्री पुरुष लिंग २, दबों के १ले गुण पर्याप्ति के २६ के भंग में पर्याप्तवत् जानना | जानना शुभ लेश्या ३, मिथ्यादर्शन १, के १७ के भग के से स्त्री-वेद १ घटाकर | मसंयम १, प्रजान १, प्रसिद्धत्व समान जानना २८ का भंग जानना १,पारगामिक भाव ३, ये ।। (३) नवग्रं बेयक देवों में २७ का भंग जानना १ले गुरण में ले गुग में २२ गुण में रे गुण में के भगों में २३ का भग १७का भंग । २५ का भंग ऊपर के २७ । १६ का मंग में काई १ भग | पर्याप्तके २४ के भंग में| पतिवत जानना के भंग में से मिध्वादन १, को न०१८ देखो जानना से कुभवधि शान घटाकर प्रमन्य १ ये २ घटाकर २५ | परन्तु यहां भी स्त्री। २३ का भंग जानना का भंग जानना पुरुष वेदों में से २रे गुरा में २रे मुरण में १६ के अंगों में दरे गुण में कोई१वेद जानना २१मा भंग १६ का मंग से कोई 1 मंग २६ का भंग ऊपर के ३२ गुरा० म पर्याप्त के २२ के भंग में पर्याक्षवत् जानना जानना Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक न०१६ देव गति ..... २५ के नंग में प्रवषि दर्शन का भंग म कुभवधि ज्ञान १ घटाकर ये गुण में १७ के रंग में से जाड़कर २६ का भंग जानना । ऊपर के रं गुण २१ का मंग जानना १७ का मंग कोई १ भंग ४थ गुगा में के ममान जानना | ये गुण में पर्याप्तवत् जानना | जानना २९ का भंग ये गुरण में १७ के मंग में में २६ का भग उपशम-धायिक-क्षयोपशम । १७ का भंग | कोई १ भंग । पर्याा यत् जानना । सम्बर ३, ज्ञान, दर्गन ३, कोल्नं० १८ देवो | जानना (४) नवअनुदिन कौर | क्षयोपजाम लब्धि, देवगनि १, परन्तु यहां भी स्त्री पंचानुनर विमान के कैपाय ८. स्त्री पुरुष बेद २ पुरुष इन दो वेदों देवों में शुभ लेन्या ३, असंयम म के कोई १ वेद ४ये गुण में यज्ञान १, अनिद्धल १, भब्यत्व | २६ का मंग १.जीचव १, ये का भंग। पर्यास के २५ के भंग में । जानना उपगम (द्वितीयांपयम) (3) नव वेयक देव म सम्यकम जोड़कर २६ का १ने दरे ४थे गुण में यक्रम से अनुक्रम ये भंग जानना पक्रम में १७-१३-१६-१५ १७-१-६- चना-१व बर्ग में । २५-२२-२३-२६ केभंग के भंग को.न. १८१७ के हरेक मंगों मर्वार्थ मिमि नक के देव | । ऊपर के कल्पवानी देवों के देखो परन्तु हरेक में से कोई भंग मनुष्यगनि में ही पाकर | २०-२५-२६-२६ हरेक भंग म भंग में यहां पुरुष । जानना | जन्म लेते हैं और यहां । से कत्रो वेद १. पीन-पद्य बंद ही जानना । 'गरकर मनुष्य गति में ! नग्या घटाकर २४-२२-६-२० ही बात है (दखो गो. के. नग जानना | क.ना.५४२-५४३) 114) नथ अदिग और पना। ननर जिनान के देवों में घरम्प के थेगा. में ' भगों में । ५ का मंग कार नब | १ का भग को । मे कोई भी । अबेदक के कग मे नं०१८ ला परत जानना | साशा (तागोपाम) गन्दकत्व वहन पूरुप तद। घटाकर २३ का भंग जानना हो.जाना गचना मागे देखो Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ सूचना- यहाँ ४था गुण स्थान हो होता है, न २२ दरे गुण स्थान नहीं होते। अवगाहना-प्रागभी भवनत्रिक प्रादि देवों के उत्कृष्ट अवगाहना २५ धनुष को जानना, इसके पागे सार्य सिद्धि तक के देदों में घरति-षटति भर्वार्थ सिद्धि के देवों में एक हाथ की अवगाहना जानना, मध्य के अनेक भेद होने हैं। बम प्रहतियां -१०४ (१) सामान्यतया देवगति में पर्याप्त अवस्था में १०४ प्रकृतियों का बंध जानना, बंष योग्य १२. प्रकृतियों में से नरकटिक २ नरकायु १. देवदिक २, देवासु १, क्रिएकद्धिक २, दोन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय जाति ३, साधारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १ पाहारहिक २.१६ प्रकृतियां घटाकर १०४ जानना । १०३, (२) अपर्याप्त अवस्था में ऊपर के १०४ में में मनुष्यगति १, तियंचायु १ ये २ घटाकर और तीर्थकर प्र०१ बढ़ाकर १०३ प्रकृतियों का बंध जानना। सूचना--अजीबी मनुष्यति मन्यादान पूर्वक केवली पायन केयलों के चरण मल में तीर्थंकर प्रकृति बंधने के योग्य परिणामों के विशुद्धता का प्रारम्भ कर दिया हो परन्तु विशुद्धता को अन्तिम क्षगण में वर्तमान प्रायु पूरी हो जाय तो देवगति म निवपर्याप्तक मथवा पर्याप्त अवस्था में तीर्घकर प्रकृति का बंध पर जाना है। ०२. (३) मामान्यतया अपर्याप्त अवस्था में ऊपर के १०४ में ने तिबंचामु १, मनुष्यायुये २ घटाकर १०१ प्र. जानना । १०३, (८) भवनत्रिक देव पीर सब प्रकार की देवियां के पर्याप्त अवस्था में ऊपर के १०४ में मे मीर्थकर प्र.१ घटाकर १०३ प्रका बंध जानना। १०१, (५) भवत्रिक देव और सब प्रकार को देविया के अपयाप्त अवस्था में ऊपर के १७३ में में तिर्यंचायु १, मन्तृप्यायु १ मे २ घटाकर १०१ प्र० का बंध जानना । १०४(5) सौधर्म ईदान्य वर्ग के देवों के पर्याप्त अवस्था में-१०४ प्रकृनियों का बंध होता है। १.२(७) सौधर्म ईशभ्य स्वर्ग के ददों के अपर्याप्त अवस्था में सामान्य शालाप के तरह १०२ १० जानना । १०१ (क) रे १२ स्वर्ग नक के देवों में पर्याप्त अवस्था में-उपर के १०४ में में केन्द्रिय जाति १, कारुप १ साधारण १मे ३ घटाकर १०१ प्र. का बंध जानना । १६, (6) ३२ से १२वे स्वर्ग तक के देवों के अपर्याप्त यवस्था में-जबर के १०१ प्र. में मे निर्यचायु १, मनुष्यायु १ये २ पटाकर १९ प्र० का बंध जानना । १०, (१०) १३वे स्वर्ग से १६वे स्वर्ग नक के देवों में और नव वेयक तक के पत्रों के पर्याप्त अवस्था में-ऊपर के १०१ मे से तिरंच हिक २, तिचायु १, चौत १८ पाकर प्र. का बन्द जानना । ६६, (११)१३वे स्वर्ग से १६ स्वर्ग तक के दबा में और नवग्न वेधक तक के बों के अपर्याप्त अवस्था में ऊपर के ६७ में में मनुष्पायु पटाकर प्रकार जानना । Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ७२, (१२) ननादित मोर पंगाट विमान प्रथा में-ज्ञानावरणीय , दर्शनावरणीय ६ (३ महानिद्रा घटाकर) वेदनीय १, पप्रत्याख्यान-प्रत्याग्यान-मज्वलन कपाय १ः, हाम्यादिक नोकषाय ६, पुरुष बंद १, मनुष्य द्विक २, मनुष्यायु १, वा, अन्तराय ५, नामकर्म प्र० ११ (पंचन्द्रिय जाति १, निर्माण : प्रो० शिक२. संजस कामगि गरीर २: समचतुरसमस्थान १, दनपभनागमहनन १. म्पर्शादि ८, अगर न १, उद्यात. परपात १. वाम १. प्रगम्नचिहावांगति १, प्रत्यक १. बादर १, श्रम, मि, मुभग १, स्विर १, अस्थिर १. शुभ ?. अशुभ १. नुम्बर १ मादय १, यमः कीति !, अयश: कानि , नांधकर प्रकृति से ३१) ये ७० प्र० का बंध/जानना । (१३) नन पदिश और पंचानुत्तर विमान के देवों में-ऊपर के प्रतनिषों में से मनुष्याग् घटाकर पायांन अवस्था में प्र० का बंध जानना। बय प्रकृतियां-७७, (१) सामान्य याला पर्याप्त अवस्था के देवों में-जानावरणीय ५, ददानावरपाय ६(३ महानिद्रा घटाकर वदनीय २, मिथ्यात्व, मम्पग्मिभ्याल-नम्यक प्रति ३. कपाय १६, हाम दि नोकपाय ६, स्त्री-पुरुष वेद २, देवढुिक २, देवासु १, उच्चदंत, अंतराय ५, नामनाम प्र०२८ (पंचेन्द्रिय जाति, निर्माण ६. यक्रिकद्रिक २, जस-काारण शरीर २, समचतुरमसंस्थान १, स्पादि ४, हानुरु लघु १. उपघात १, परघात १. वामांच्द्रवाम १, प्रशस्तविहायों मति १, प्रत्वक १, बादर १, स १, पर्यात १, सुभग १, स्थिर । अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, सुस्बर १, ग्रादय १, यश: कोलीये २८, ये ७५ प्र० का उदय जानना । ५६ १२) मामाग्य मालाप प्रपयां: अवस्था के देवा म-ऊपर के 93 में से उच्छवास १, वैक्रियक काययोग १ ये घटाकर पौर मिश्र काययोग,जोवर '5६ प्र० का उदय जानना। ७ ) भवनत्रिक देव और वे स्वर्ग नक के देव के स्त्री वदो वे पर्याप्त अवस्था में कार के सामान्य के ७० में से स्त्री वेद १ पटाकर ७.प्र. का उदय जानना। ७६ (6) मवत्रिक देव पौर १६वे स्वर्ग नक के देव के पुरुप वेदो में पर्या अवस्था में ऊपर के सामान्य के ७७ में से पुरुष वेद घटाकर ७६ प्र० का उदय जानना ! ७५ () भवनत्रिक देव और १६व स्वर्ग तक के पुमा वही देव के प्रपयांत अवस्था में सामान्य 35 में से उच्छवास १, वै० काययोग १ : घटाकर मोर 20 मिथकाय यंग जोरकर '३५ प्र. का उदय जानना । ७५ () भवनपिक देव पौर. १५वे म्बर्ग तक के स्त्री बेदी दंव के अपर्याप्त अवस्था में-पुरुष बेदी के ७५ में से पुरुष वेद घटाकर शेष ७४ में स्त्री वेद जोड़कर ७५ प्र० का उदय जानना। ७६ (७) नवग्रं वेयक के देवों में पर्याप्त अवस्था में पुरुष वेदो में सामान्य से ७७ में में स्त्री वेद १ घटाकर ७६ का प्र. का उपय नानना। ७५ () नव वेयक के देशों में अपर्याप्त अवस्था में पुरुष ने दो ही होते है इसलिये ऊपर के पर्याप्त के ७६ में से 20 काययोग १, वासोच्छवास १ये २ पटाकर प ३४ में 40 मिश्र काययोग जोरकर ७५ प्र.का उदय जानना । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ २६ ३० ३१ ३२ ३३ १४ ( १७१ ) (६) नव अनुदिश और पंचानुत्तर विमान के देवों पर्याप्त अवस्था में नव वेयक के ७६ प्र० में से मिथ्यात्व १, सम्पमिथ्यात्व १, धानुका ४, ये ६ घटाकर ७० प्र० उदय जानना । ६९ (१०) नव अनुदिया और पंचामुत्तर विमान के देवों में अपयांत अवस्था में पर्याप्त के ७० प्र० में से उच्छवास १० काययोग २ घटाकर और मिथकाययोग १ जोड़कर ६६ ० का उदय जानना । सूचना- नवदिश और पंचानुत्तर विमान में ये सब जीच सम्यग्ट्रॉट ही होते हैं। ด सत्य प्रकृतियां– १४७ (१) भवनकि देव मे १९ वर्ग तक के देवों में र्विचायु १ घटाकर १४७ प्र का सत्व जानना । १४६ (२) १३६ स्वर्ग में सभं सिद्धि तक के देवों में गरका १ तियं वायु १ ये २ घट कर १४६ प्र० का सत्ता जानना । १४६ (६) भवनत्रिक देवी और कलवानी देवियों में तीर्थंकर प्र० १, नरकायु १ ये २ घटाकर १४६ प्र० का सत्ता जानना । संख्या असंख्यात क्षेत्र जलना क्षेत्र- लोक का अयातयभाग प्रमाण जानना । स्पर्शन (१) सातराजु लोक का पता मांग प्रमाण जानना । (२) अठाराज - १६ वे स्वर्ग का देव हरे नरक तक उपदेश देने के लिये माते है अपेक्षा | (३) माग सर्वार्थ सिद्धि के प्रमीन्द देव मारणांतिक समुद्घात में मध्य लोक तक अपने प्रदेश को फैल सकते हैं, इस अज्ञानता। काल- नाना जीवों को प्रांपेक्षा सर्वकाल एक जीव की अपेक्षा दस हजार वर्ष से लेकर ३३ सागर का काल प्रमाण जानना । अन्तर—ताना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुह तक नियंच या मन पर्यान में रहकर दुबारा देव बन सकता है अथवा संख्या पुद्गल परावर्तन काल तक भ्रमण करके यदि मोक्ष न गया हो तो इतना भ्रमा करने के बाद फिर जरूर देव बनता है। जाति (योनि) - ४ लाख योनि जानना । कुल – २६ लाख कोटिकुन जानना । Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० स्थान नाम सामान श्रालाप १ गुण स्थान २ जीव नमास २ ४ प्राप ५. मंजा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति काय योग १० वेद ११ कषाय १२ जान १३ संगम १४ दर्शन १५ लक्ष्या १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व १५ संज्ञी १६ आहारक २० उपयोग चौतीस स्थान दर्शन २१ व्यान A ० っ O ० ० अतीत " पर्याप्त माना जीवों की अपेक्षा स्थान गु जोब समाम पर्याप्ति प्राण Ir पंज्ञा गति रहिन इन्द्रिय रहित काय रहित 'जानना " 38 " जानना 1 ध्यानातीत जानना FI " J th IP 17 योगरहिन अयोग श्रपगत वेद अरूपाय १ केवल जान असंयम संयमासंयम, संयम ये के रहित जानना १ केवल दर्शन जानना 20 "> अलग्या जानना अनुभव जानना १ क्षायिक सम्यक्त्व जानना " " ( १७२ ) कोष्टक नं० २० ग्रनुभय अनुभय २ केवल नानोपयोग केवल दर्शनोपयोग दोनों युगपद एक जोब के नाना समय में * १ केवल ज्ञान १ केवल दर्शन १ ज्ञायिक सम्यक्त्व २ युगपत न D गति रहित में या सिद्ध भगवान् | एक जीव के एक समय में १ केवल जान o १ केवल दर्शन ० d १ क्षायिक सम्यक्त्व युगपत् जानना ० ६-७-८ सूचना—यहां भी प्रपर्यात अवस्था नहीं है । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २० गति रहित में या भगवान में २२ प्रालय २३ भाद ५ भाद बानना मानव रहित जानना अधिक जान, सादिक दर्शन, दायिक वीर्य, | ५ भाव जानना क्षायिक सम्यक्त्व, जीवत्व ये ५ भाव जानता सूचना-कोई पाचार्य क्षायिक भाव और जीवत्व १ये १. भाव मानते हैं। अवगाहना-३॥ हाथ से ५२५ धनुष तक जानना । बंध प्रकृति-प्रबंध जाननः । उक्ष्य प्रकृतियां-अनुष्य जानना । साव प्रकृतियां-असत्ता जानना । संख्या प्रतन्तसिद्ध जानना । क्षेत्र-१५ लास योजन सिद्ध शिला (सिद्धों का प्रावास) जानना । स्पर्शन-सिद्ध भगवान् स्थित है।। काल सर्वकाल (अनन्तानन्त काल) जानना । अन्तर-अन्तर नहीं। जाति (योनि) यहां जाति नहीं। कुल-यहां कुल नहीं। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतोस स्थान दर्शन सामान्य मालाप क स्थान कोष्टक नं० २१ एकेन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नामा एक जीव के एक। १जीव नाना एक जीव के | ममय में | नाना जीवों को अपेक्षा समय में । एक समय में नाना जोब को प्रपेशा १-समास बग्दर " | १ गुण स्थान र . मिथ्यात्व, सास दन 'मिथ्यात्व गृण. डानना मिथ्यात्व, सासादन | दोनों जानना कोई १ गुण. २ जीवसमास ४ ।। १समास ममास । १ममास एकेन्द्रिय नृश्ग पर्याप्त १ये गुण में २ में से कोई '३ मे कोई।। -:मागों में से | २-१ के भंगों " बादर ' | २ का मंग :न्दिय मम . . ' समान जानना ! समास जाननाले मुग में कोई १ समास में से कोई " सूक्ष्म अपर्याप्त और दादर राप्त २ जना | २ का भंग एकेन्द्रिय समास सूक्ष्म पोर बादर अपर्याप्त ये ४ जानना में मों जानना २रे गुगा स्थान में [१ का भंग एकेन्द्रिय बादर | अपर्याप्त हो जानना । ३ पर्याप्ति १ भंग १ भंग १ भंग याहार, मगर, इन्द्रिय, ले नूगा. में ४ का भंग जानना ४ का भंग जानना श्वासोवास घटकर (2) पासापास पटाकर दि) ३ का भंग ३ का भंग श्वासोच्छवाम ये ४ का भंग को० नं. १७ ले २रे भुगा में | जानना के समान जानना ३का भंग को० नं. १७ समान जानना सञ्चि रूप पर्याति ४ागा घाय, कापचन, स्पर्धले गुण में ४का भंग जानना ४का भग जाननाम्यामोच्छणस घटाकर ३ का भंग | ३ का मंच नेन्द्रिय, वामो ये ४ ४ का भंग को न०१७ ले रे मुरग में प्रग मानना के मनान जानना का अंगकोर नं.१० समान जानना । ३ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं० २१ एकेन्द्रिय १ भंग ५ संज्ञा १ भंग १ मंग १ मंग को० नं. १ देना १ने चुग में ४ का भग । ४ का मंग २रे गूगल में ४ का मंग । ४का रंग ४ का भंग को नं०१७ के । ४ का भग पर्याप्तवत समान जानना ६ गति १ले गुग में ले २रे गुगण में १ नियव गति १तियंच गति ७ इन्द्रिय जाति १ १ले गुगण में १ले २रे गुण में । १ एकेन्द्रिय जाति | १ एकेन्द्रिय जाति । काय १काय काय । काय . । १ काय पृथ्वी, जल, अमि, ले गुण. । पांचों में गे कोई पांचों में से कोई ले २२ नुस्य. में ५-३ के हरेक मंग | ५-३ में से कोई वायु, वनस्पति ये | ५ का भंच को० नं० १७ के | १ काय जानना | १ काय |५का भंग को० नं०१७ में से कोई १ काय काय स्थावर काय जानना | ६ के भंग में से त्रसकाय १ | | के ६ के भंग में से बम- जानना घटाकर ५ का भंग जानना काय १ घटाकर २ का । भंग जानना रे गुण में ३ का अंग को० नं०१७ | के ४ के भंग में में सकायः १ घटाकर 5 का भंग : जानना सूचना-मिध्याव और मासादन गुरण स्थान में मरने वाला जीम जिस गति, जिस इन्द्रिय, जिस | काय, जिस पायु में जाकर जन्म लेने वाला है उसी गति, इन्द्रिय काय, पायु का उदय अपर्याप्त अवस्था में प्रारम्भ हो जाता है ऐसा जानना। Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ t १० वेद ६योग ३ १. श्री० मिश्रकाययोग १, भी० काययोग काकाययोग १. ये ३ योग जानना ११ कृपाय चौंतीस स्थान दर्शन २३ स्त्री-पुरुष वेद घटाकर (२३) १२ ज्ञान २ १३ संयम १४ दर्शन २ कुमति श्रुतये (२) ३ १ ले गुग० में १ श्रदारिक काययोग जानना को० नं० १७ देखो १ नपुंसक वेद जानना १ ले गुण ० ० में १ नपुंसक वेद जानना २३ १ले गु० में २ का मंग को० नं० १७ के नपुंसक वेद सारे भंग ७-८-६ के मंग २३ का मंग को० नं० १७ के को० नं० १८ देखो समान जानना १ले गुण ० के समान जानना १] गुगा में १ समयम १ गुण में १ प्रचक्षु दर्शन ( १७६ १ कोष्टक नं० २१ श्री. काययोग जानना १ मंग २ का भंग १ ५ १ ओ० काययोग जानना . नपुंसक वेद १ मंग ७-८-8 के मंगों में से कोई १ भंग १ जान . २ के मंग में से कोई १ ज्ञान ६ + का काययोग १, औ० मित्र काययोग १, ये २ योग जानना १-२ के भंग १ले २३ गुरा में १ का भंग विग्रह गति में कार्मास काययोग जानना का भंग भाहार पर्याप्त की अवस्था में काम काययोग और प्रो० मिश्रकामयोग मे २ का भंग जानना १ १ले २ रे गुला० में नपुंसक वेद जानना २३ १ले २२ गुण० में २३ का पंग पर्यातत्रत् १ जानना २ १ले २३ २ का मंग पर्याप्तत् Te में १ २२ में ९ असक्षम १ २२ गुरण० १ अचक्षु दर्शन में एकेन्द्रिय १ भंग १ योग १-२ के भंग में से १-२ के मंगों में कोई १ भंग से कोई १ योग जानना : जानना नपुंसक वेद नपुंसक वेद सारे भंग १ मंग ७-८-६ के मंग ७-८-६ के भंग में को० नं० १८ देखो से कोई १ भंग १ मंग २ का मंग १ ज्ञान २ के मंग में से कोई १ ज्ञान Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान प्रशंग साधक नं० २१ एकेन्द्रिय १५ तेरा १ मंगलेल्या । ३ १ भंग लेण्य अशुभ लक्ष्या १ने गगग में ३का भंग ३के भंग में से तेरे गुण? में ३ का मंग ३ के मंगों में से | ३ बा भंग को नं० १७ फे। पोई १ लेश्या ३ का भंग को नं०१७ | कोई १ लेश्या समाजानना के समान जानना २६ मन्यत्व २ १ अवस्था । १अवस्था २ १ भंग १अषस्था भव्य, प्रभव्य ने गुण. पं । भव्य-प्रभव्य में से दोनों में से कोई २-१ के भंग २-१ के भंग में मे २-१ के अंगों में | २ का भंग को नं०१७ के कोई१ जानना । १अवस्या ल गुग में कोई १ मंग से कोई 1 ममान जानना | २ का भंग पर्याप्तवत् प्रवस्था जानना रे गुग में १ का भंग एक भव्य जानना। १७ सम्पन्न १भंग ! १सम्यक्त्व मिथ्यात्व, मासादन ' ले गुगण में १-१के भंग 12-2 के अंगों में से १-१ के अंगों में मिध्य.त्व जानना १ले गुसा में कोई भंग कोई १ सम्यक्त्व १ मिथ्यात्व जानना जानना से गुण में १ सोसादन जानना १८ संजी १ अमंजी मंत्री संजो अयंजी जानना ! १६ पाहारक २ दोनों अवस्था १ अवस्या पाहारक, मनाहारक १ने गुगार में ले रे गा में प्राझारक, अनाहारफ दोनों में से कोई १माहारक जानना (१) विग्रह गनि में अना-1 १ अवस्था हारक जानना (२) याहार पामिक समय। | माहारक अवस्था जानना २० उपयोग ३ । पयोग ३ मंग १उपयोग सुमति, वनि और ले गुगा० में ३ का भंग ३ के मंग में से . ले रे गुरण में ३ का भंग ३ के मंग में से भचक्षुदर्शन ये () !: का मंग 700 के कोई उपयोग का मंग को नं. १७ कोई १ उपयोग समान जानना जानना वे समान जानना जानना ---- Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं० २१ एकेन्द्रिय १ पान १ भंग । १ घ्य न । ? अंग प्यान मातं यान न गुग में - कामग .: कभम में म न र गुगाम = का मंग .८के मंग में से गैन्यान ४ य (5) | - काग को न०१७ के कोई ध्यान ! ८ का भग पर्याप्तवत् कोई १ च्यान समान जानना २२ भासवर । सारे भंग . मंग ३७ सारे भग मिया, अविरत । कामांन्ग काययं ग १, ११ से १८ तक के ११८ तक को कायाम १ घटाकर मचना-अपने अपने सारे भाग में से अ (दिमक एकेन्द्रिय नों निकाययोग १, भंग को००१८ के भंगों में में कोई (4) स्थान के सारे मंग. कोई १ मंग जाति का स्पर्शनन्द्रिय ये २ घटाकर (३६) समान १भंग जानना ७-३२ के भंग जानना जानना विषय १ . हिस्य १ले गुग में श्ले नरम में ११ न क के ११ से १८ तक के 4 ) स्त्री-पुरुष बंद ३६ का अंग को नं. १७ ३७ का भग को न भंग जानना भंगों में से कोई घटाकर कपाय २३, के समान भंग जानना योग ३ये ३८ जानना रे नृगण में १० से १२नक के १० से १७ तक २ का अंग ऊपर के मंग कोन के के मंगों में से २३ भाव २४ ३७ के भंग में से मिथ्यात्व: समान कोई ? भंग कुज्ञान २, प्रचक्ष दर्शन L, घटाकर.३२ का भंग जानना १, लब्धि, तिर्यच । २४ १ मंग २४ । भंग । भंग गति , कषाय ४, | ले गुग में १७ का भंग १७ के अंगों में से २४-२२ के मंग अपने अपने स्थान के १७ के भंगों में से नपुंसक लिंग १, अशुभ २४ का भंग | को० नं १८ के | कोई १ भंग | ने गुण में १ मंग | कोई १ भम तेश्या ३, मिच्या दर्शन कोनं १७ के समान जानना समान जानना २४ का भंग को० न० | १७ का मंग जानना १, असंयम १, अज्ञान १३ के समान जानना | पर्याप्तवत् जानना १, प्रसिद्धत्व१,पाणा रे गुण में । मिक भाव ३ ये २४ २२ का भंग ऊपर के | १६ का भंग १६ के भंगों में से जानना २४ के भंग में में मिथ्या-| को० नं०१८के । कोई मंग दर्शन १, अभव्य १ ये | समान समान जानना २ घटाकर २२ का भंग का० नं १७ देखा Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ २६ प्रवगाहना -लख्य पातक स्थावर काय के जीवों की बधन्य अवगाहना वनांगुल के मसंख्यातवे भाग विग्रह गति में जानना और उस्कृष्ट अवगाहना एक हजार (१०००) योजन की स्वयं भूरमण द्वीप के वनस्पतिकाय कमल को जानना। र प्रकृतिया-०६ (१) पर्याप्त अवस्था में १२० प्रकृतियों में मे नरकटिक २, मरकायु १, देवद्धिक २, देवायु १, आहारद्विक २,०दिक २, तीर्थकर प्र०१,ये ११ घटाकर १०६ प्र० बंध योग्य जानना। लब्ध्य पर्यातक मीव के भौ १०६.प्र. बध योग्य जानना कारण इनके तिर्यंचायु और मनुष्यायु का बंध अपर्याप्त अवस्था में ही होता है। १०७ (२) अपर्याप्त अवस्था में नित्य पर्याप्तक अवस्था में तिथंचायु और मनुष्यायु का पंप नहीं होता है इसलिये ऊपर के १०६ में मे ये र अाय पटाकर १०७ प्र० का बंध जानना (देखो गो. क. गा० ११३-११४) जयप्रकृतियां- उदययोग्य १२२ प्रकृत्तियों में से सम्पग्मिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति १, स्त्री वेद १, पुरुष वेद १, नरकद्विक २, नरकायु १, देवद्धिक २, देवायू १, मनुष्यहिक २, मनुष्या७१, द्वीन्द्रिय-त्रोन्द्रिय-मन्दिष-पंचेत्रिय जाति ४, माहारकनिक २, क्रियकद्विक २, प्रौदारिक अंगयांग है, एक छोड़कर नेशर मंस्थान, मंहनन ६, विहायोगनि २, स्वरहिक २, स १, सुभग १, भादेय १. उक्चगोत्र १, तोयंकर प्र.१ मे ४० घटाकर प्र० का उदय जानना। सत्य प्रकृतियां-१४५ मिथ्याम्ब मृगण स्थान में नरकायु १, देवायु १, नीर्थकर प्र० १ व ३ पटाकर १५ जानना । १४. मामादन गूगा में ऊपर के १४५ में से माहारकादिक २ घटाकर १४. की मन्ना जानना । संख्या-अनन्नान्न जानता । क्षेत्र मवनोक जानना। पान-सर्वलोक जानना । काल-नाना जीदों की अपेक्षा मर्वकाल, एक जीत्र की प्रोबा रकेन्द्रि के अद्रभव से असं त्यात गुदनलपरावर्तन काल प्रमाग जानना । प्रन्तर नाना जीवों की प्रामा अन्तर की एक जीव की अपेक्षा बदभव में दो हजार सागर और एक को पूर्व प्रभागा जानना । जाति (योनि)-५२ लाख योनि चानना । पृथ्वी जल, अग्नि, वाय, नित्यनिगोद, इनरनिनाद य हरान की लाम्म और प्रत्येक धनस्पति की, लारु मिन्नका ५२ लाख यानि जानना । मुल-६७ लाग्य कोटिनल (पृतीकाय २८, जल काय, अग्निकाय , वायुकाय, बनस्पतिचाय २२ नागप कॉम्कुिल) जानना । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० २२ चौतास स्थान दर्शन . साता नामान्य द्वीन्द्रिय क० स्थान हाताप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नाना एक जोर के एक ! ममय में | समय में | नाना जीवों की अपेक्षा नाना जीव की अपेक्षा १जीव के नाना एक जीव के समय में एक समय में १ गृगा म्यान मिथ्यात्व, मान दन | मिथ्यात्व गुण. - दोनों गुण मिध्यान्व, मासादन . मिथ्यात्व, सासादन १ गुण . दो में से । कोई एक मुरण . २ जीवममारा डोन्द्रिय पर्याप्त प्रप० ले गुगा में हीन्द्रिय पर्याप्त १ले रे गुण में तीद्रिय अपर्याप्त ३ गर्याप्ति ५ मनपर्याप्ति घटाकर (५) १ भंग ५का भंग का भंग १ भंग ३ का भंग १ मंग का भंग ले गुण में ५ का भंग को० नं०१७ के समान मन-भाषा-श्वासो. म ३ घटाकर (३) १ले २२ गुण में ३ का मंग आहार, पारीर, इन्द्रिय पर्याप्ति ये तीन भंग जानना लब्धि रूप ५ पर्याप्ति १ मंगभंग ६ का भंग का भंग १ भंग ४ का भंग | १ भंग ४ का भंग ४प्राण प्राय, कायबल, सार्शनन्द्रिय, रमनेन्द्रिय श्वासोच्छवास, वचन, बलप्राण, ये ६ जानना १ले गुग में । ६ का भंग को० नं०१७ । के समान वचनबल, श्वासोच्छवास ये २ घटाकर (४) १ले २रे गुग में ४ का भंग कोने १७ के समान ५ संत्री । १ भंग । १ अंग Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीस स्थान दर्शन [को० नं० १ देखी ६ गति ७ इन्द्रिय जाति १ यकाय ६ योग औ० मिश्रका योग १ औदारिककाय योग १ कामरणकाय योग १ अनुभय वचन योग ? ये ४ योग जानना १० बंद २३ ११ कपाय स्त्री-पुरुषवेद घटा र (२) १ से गुग्गु० में ४ का मंग को० नं० १७ के समान 2 १ ले गुर में १ निर्यव गति १ ले गु० में १ वान्द्रिय जाति श्ले पें गुगा 9 २ औ० काय योग अनुमय वचन योग ये २ जानना १ ले गुण० में २ का भंग को० नं० १७ के समान १ १ { ?=? ) कोष्टक नं० २२ ४ का भय १ १ भंग २ का मंग १ ले पुरष० में १ नपुंसक वेद २३ सारे भंग ७-८-६ के गंग श्के गुण में レ २३ का भंग को० नं० १७ को० नं० १८ देखो के समान '४ का मंग १ यांग २ के बंग में से कोई १ योग जानना १ मंग ७ ८-६ के भंगों में से कोई १ मंग जानना १ले २२ मुख० में ४ का भग क नं. ० १७ के समान १ सिर्वच गति १ वान्द्रिय जानि १ चसकाय २ १ चौ० मित्रकाय योग १ कामरणकाय योग ये २ जानना १-२ के मंग १ले २रे गुण ० में १ का भंग-विग्रहगति में कामकाय योग जानना २ का मंग-प्रहार पर्या प्ति के समय कार्माणकाय योग श्र० ! मिश्र योग जानना १ले २ रे गु० में १ नपुंसक वेद जानना २३ १ले १४ गुणा में P २३ का भंग गर्यासवत जानना द्वीन्द्रिय ४ का भंग १ १ भंग १-२ के मंगों में से कोई १ अंग सारे भंग ७-६-६ के भंग | को० नं० १८ देखो ४ का रंग १ १ योग १-२ के मंगों में से कोई १ योग जानना १ घ ७-८० के मंगों में से कोई १ भंग जानना Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २२ द्वीन्द्रिय १२ ज्ञान कुमति, कुश्रुत १३ म * বাল २ ले गुग में २ का भंग को न. १७ के। समान ले गुण में १ असंबम १ले मुग्नु० में १ प्रचक्षु दर्शन १५ लश्या प्रशुमलेश्या १ले गुण में ३ का भंग को० नं०१७ के समान जानना १६ भवत्व भव्य, सभब्य १ले मुराक में दोनों जानना भंगशान का भंग ! के भंग १ने २रे गुगा. में २का भंग , २ केभंग में से में में कोई २ का मंग को.नं. कोई १ज्ञान ज्ञान जानना १७ के नमान जान जानना १ले २रे मुरण में १ असयम १ले रे गुण में १प्रचक्षुदान १ भंग १ लेश्या ३ का भंग १ लेश्या ३ के अंग । २रे रण में | ३ के मंग में में से कोई ६ ३ का भंग को०० । से कोई एक लश्या जानना । १७ के समान लेश्या १अवस्या । १अबस्था दोनों जानना । १भत्र या दोनों में से दोनों में से ले गण में अपनी अपनी दोनों में से कोई १ कोई, २ जानना अवस्थान की कोई १ अवस्था रेगण में समान जानना | जानना १ एक भव्य हो जानना १ भंग १ सम्यक्त्व १ले गुरम में २ का मंग जानना | २ के भंग में १ मिथ्यात्व जनिता अपनी अपनी | कोई १ से गुगा ० मैं स्थान के समान । सम्पनरव सामादन जानना | जानना जानना स्ने रे गुण में १ अनंजो जानना । १ अवस्था १- के भंग । दोनों जानना दोनों में मे ले २रे गुग में कोई विग्रहगति में मनाहारक जानना १७ सम्यक्त्व मध्यात्व, सासा १ले गुण में १ मिध्यात्व जानना १ने गुरण में १ संजो जानना १- संत्री यमंत्री १६ अाहारक २ आहारक, अनाहारक १ले नग में याहारक जानना Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २२ द्वी द्रय १ मंग १ याहार पति के । समय माहारक जानना २० उपयोग १ उपयोग | १ उपयोग कुमति, कुथ ति ल गुण. में | ३ का बम ३ के मंग में से ले रे गुग में ३का भंग ३ के भग में से प्रया दर्शन ये (2) का भंग को० नं०१७ के | कोई १ उपयोग ३ का अंग पर्मस्वत् काई ? उपयोग समान २१ ध्यान १ भंग १ ध्यान अातंत्र्यान ४, १ले गण में ले रेगुण में | ८ का भग के भंग में से रौद्रश्यान ४ ये (0) |८ का भंग को० नं. १७ के 1- का भंग को.नं. १७ कोई ध्यान समान के समान जानना २२ पाश्रब ४० । सारे भंग १ भंग सारे भंग १ मंग मिथ्यात्व ५, अविरत कार्माण कारयोग १ सौदारिक काययोग १ (हिमक का द्वीन्द्रिय | और मिथ काययोग ? अनुभप वपनयोग १ जाति के स्पर्शन रस- २ पटाकर (३८) ले गुग में ११ से १८ तक | ये २ पटाकर (३८) नेन्द्रिय विषय २+हित्य ले गुण. में | ११ से १८ तक के के भंग में से कोई ले गुग में ६ ये ) कषाय २३ । ३७ का मग को नं०१७ के | भंग को नं०१८ | १ मंग जानना | ३५का भंग ११ से १८सक के ११ से १८ तक योग ये (४०) समान जानना देखो को ना १७ के समान | अंग पर्याप्तवत् । के मंगों में से रे युग में कोई१भंग ३३ का भंग ऊपर के ३८१०ये १७ तक के १० से १७ तक के भंग में से मिथ्यात्व : भंग जानना के भंगों में से घटाकर ३३ का मंग | कोई १ भंग जानना २३ भाव २४ २४ १मंग १ भंग २४ को नं०२१ देखो ५ले गुण. में १७ का भंग १७ के भंग में से ले गुणन में से गुरण में १७ के मंग में से २४ का मंग को नं०१७के कोनं०१ देखो | कोई १ भंग | २४ का भंग को० नं०१७ का भंग को. | कोई अंग समान जानना जानना |१७ के समान जानना नं.१८ देखो | जानना रे गुण में २रे गुरण में |१६ के मंगों में २२ का भग को० नं. १६ का मंग की. से कोई १ भंग १८ देखो नं०१८ देखो । जानना Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मरगाहना-लब्धय पांक्षक जीवों को जघन्य अवगाहना पनांगुत के असंख्यातवा भाग और उत्कृष्ट अवगाहना १२ योजन तक शंख को पालना । बंध प्रतिपां-१०६ पर्याप्त अवस्था में जानना, को० नं. २१ देखो, १०७ अपर्याप्त अवस्था में जानना को न०२१ देखो। वरय प्रकृतियां-१ को २०२१ के ६० प्रकृतियों में में साधारण १, सूक्ष्म १, स्थावर १, एकेन्द्रिय १, पातप १, ये ५ घटाकर शेष ७५ औदारिक अंगोपांग १, पनंप्राप्ता मृपाटिका संहनन १, अप्रशस्त विहायोगति १, त्रस १, दुःस्वर १, हौन्दिय जाति १६ जोड़कर १ प्र० का उदय जानना । साय प्रकृतियां.-१४५-१४, को में० २१ के ममान जानना । संख्या-अगख्यान जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्वानवा भाग प्रमाण जानना। म्पर्शन–नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक एक जीद की अपेक्षा सोक का असंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । काल-नाना जोगों की अपेक्षा सर्वकाल, एक जीव की अपेक्षा भव से संस्थान हजार वर्ष पर्वत निरन्तर द्वीन्द्रिय हो बना रह सकता है। अन्तर-नाना जीवों को बोक्षा अन्नर नहीं एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक या मोन नहीं हो तो इसके बाद दोन्द्रिय बनना है। पड़े। जाति (योनि)-२ लाख योनि जानना : कुल–७ लाख कोटिकुन जानना । ३४ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २३ क० स्थान सामान्य पालापः पर्याप्त एक जीव के नाना गक जीव के नाना ममय में । ममय में अपर्याप्त १जीव के नाना १ जीव के एक नाना जीवों की अपेक्षा समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा १गुण स्थान मिथ्यात्व, सामादन मिथ्यान्व गुण स्थान मिध्वात्व, मासादन । दोनों जानना १ गुरण दो में से कोई गुरण २जीव समास जान्दिव पर्याप्त प्रप ले मुरग० में त्रीन्द्रिय पर्याप्त जानना । । ३ पर्यानि मन पर्याप्ति षटाकर (५) ले गुरण में । ५ का भंग को० नं. १७के । समान जानना १ भंग का भंग ५ का भंग १२ रे गुण में त्रीन्द्रिय प्राप्त जाना । १ मंग ५ का भंग | ले रे गुण में ३ का भय ३ का मंग को नं. २१ ! ममान जानना लब्धि रूप ५ पर्याति मंग का भंग वचमबल, श्वासोच्छवाम ! ५ का भंग ये घटाकर ५) ले २रे मुगण में २क. भंग का नं. १ समान जानना ४प्राण मन कल-चप इन्द्रिय प्रागा पटाकर शेष (७) १ भंग का भंग १ मंग ५ का भंग . मुग में का भंग का नं०१७ के समान जानना . १ भंग मंग ४का भंग ५ संश को.नं. १ देयो ने गुम्ग में |Y का भंग को न.१७के । ममान जान। गति गगा में .पि. गनि | इले रे नगर में | ४ का भंग पर्यातबन् १ले 7 गुण में १ तिर्यव नि Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर २३ त्रीन्द्रिय १० बंद ७ इन्द्रिय जाति • गुग में १ले रे गुरण में मीनिय जान श्रीन्द्रिय जाति ८ काय १ १से गुग में इले २रे गुगण में १ चमकाय पसकाय मंग के अंगों में से १मंग योग को न०५२ देसी ल मुरा० में २ का भंग कोई १ योग प्रो० मिय कापयोग १ १-२ भंगों में से १२ के अंगों में मो० काययोग जानना कारण काययोन १ से कोई १ भंग में कोई १ योग अनुभव वचन यांग ? से२जानना जानना ये जानना को नं.१७ के मंग के ममान जानना १ने रे गा में को०२० २१ देखो १ले गुण. में १ १ले २रे गुरम में नायक वेद १ नमक वेद ११कषाव २६ सारे मंगभंग २३ सारे भंग १ मंग को नं. २१देखो १ले गुग्ण में ७-८-के मंग -4-6 के भंगों ले रे गुण. में ७-८-६ के भंग ७-८-६ के मंगों २३ का भंग को नं०१७ के को.नं. १८देखो में से कोई १ भंग २३ का भंग पर्याप्तवत् । पर्याप्तवत् में से कोई १ समान जानना । मंग जानना १२ ज्ञान १ भम १ज्ञान १ मंग१ज्ञान कुमनि, कुथुत २२ का भंग कॉ०नं०१७ के २ का भंग २ के मंगों में से १ले रे गुण २ का भंग के अंगों में से ! कोई १ ज्ञान । का मंग पर्याश्वत् __ कोई १ जान जानना ' जानना १३ संयम ले गुग में १२ रे सुगार में १सयम असंयम १४ दर्शन ले गुण में १ । ते रे मुरण में १ चा दर्शन १प्रचक्षु दर्शन १५ सेक्या १ भंग १ भंग लेश्या मशुभ लेश्या ले गुरण में ३ के भंग में से' ने रे गुना में का अंग |३के अंगों में से ३ का भंग कॉ० नं.? के कोई १ लेश्या . ३ का भंग कोक नं. १७ ।। [को तेश्या ममान जानना নান আনন।। २ ' का मंग Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतोस स्थान दर्शन कोटक नं.२३ त्रीन्द्रिय १६ भब्यत्व मव्य, ममध्य १ मंग दो में से कोई प्रवस्था जाना के भंगों में । से कोई १ । ले मुगा. में २ का भंग को.१५ के समान जानना १ भंग १ अवस्था २-7 के अंगों में में २-१ के भंगों में कोई १ भंगकोई ? अवस्था १- के भंग १ने रण में २ का भग पवन २. गुगण में १ भश्ची जानना १७ मम्यक्त्व मिथ्यात्र, सामादर ले गुगण में मिथ्म व जानना भंग सम्यक्त्व |"-, के भगों में में १-१ के भंगों में ! कोई भंग ' । सम्यक्त्व १- के भंग ले गुण. में १ मिथ्यान्व जानना रे गा में १ मासादन जान । ने गाव १ असंजो १-मंजी १ने गूग. में १ असं जी जानना रमजी १६ प्रहारक पाहारक, अनाहार ले गुण में दयाहारक जानना १अवस्था | दोनों में से कोई १अवस्था - के भंग । दोनों जानना ने २रे गगग में १ विग्रह गति में मना. हारक जानना २पाहार पर्याप्ति के समय प्रादारत जानना भंग ३ का भंग । ३ के भग लेर गुण में का भंग पर्य भवन २० उपयोग को नं. २२ देखा। ने गुगण में | ? का भंग 2 का भंग को. नं०१७के ! समान जानना । उपयोग के भंग गे मे कोई उपमं ग । उपोग ३के भंगों में से कोई उपयोग २१ ध्यान को. नं. ७ देखो १ भंग का भंग | १न गुरग में का भंग को० नं.१० के ममान जानना के भंगों में ले रे गुगा में में को.१ ध्यान। - का भंग पर्ववत् जानना | = का भंग । १ ध्यान के अंगों में से कोई ध्यान Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २२ अधिव को० ० के मं मे २ २३ भाव ४१ २५ के ४० अविरत की जगह जोड़कर (हिर का आरन्द्रिय जोड़कर) ४१ जानना ど को० नं० २१ देखो १६ ना काययोग १ औ० मिश्र काययोग १ ये २ घटाकर (३६) नगुमा में ३ का भंग को० नं० १७ के समान . ( १८५ ) कोष्टक नं० २३ सारे मंग में १ ले गुण ० ११ से १८ तक के भंग जानना [को० नं० १८ देखो ૪ १ भंग १ ले गुण ० में १७ का मंग २४ का भंग को० नं० १७ को० नं० १८ के समान जानना समान जानना ५ १ भंग ११ मे १८ तक सारे भंगों में मे कोई १ मंग १ भंग १७ के गंगों में से कोई १ भंग जानना ३८ प्रो० काययोग १ अनुभव वचनयोग १ ये २ घटाकर (३६) १ ले गुण ० में ३६ का मंग पर्यावद जानना 注 में गुण० ३४ का मंग को० नं० १७ के समान जानना ૪ १ गुण० में २४ का मंग को० नं० १७ के समान जानना २३. गुण० में २२ का मंग को० नं० १७ के सुजिब जानना सारे भंग ० में १ले मुल० ११ से १८ तक के भंग जानना २५ गु० में १० से १७ तक के भंग जानना श्रीन्द्रिय १ भंग १७ का भंग १६ का भंग को० नं० १८ देखी १ मंग ११ से १८ तक | के मंगों में से कोई १ भंग १० से १७ तक के गंगों में से कोई १ भंग जानना १ मंग | १७ के संग में कोई १ मंग " जानना १६ के मंग में से कोई १ मंग | जानना Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अवगाहना-लाध्य पर्याप्तक जीव की उपन्य अवगाहना मागुरु के असंख्यातदे भाग पोर उत्कृष्ट अवगाहना पिपोलिका (चींटी) ३ कोस तक जानना बध प्रकृतियां १०-१००, को नं०२१ के समान जानना। उदय प्रकृतियां-१ को.न. २२ के समान जानना, परन्तु १ प्रतियों में मे ढोन्दिप जाति घटाकर त्रीन्द्रिय जाति १ जोड़कर -१ की उदय जानना । सत्व प्रकृतियां-१९५-१४३ को नं. २२ में समान हाना । संस्था-प्रसंख्यान लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र-लोक का असंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । स्पर्शन--नाना जीवों को अपेक्षा मारणांतिक समुद्घात और विग्रह गति में सर्व लोक जानना, एक जीव को अपेक्षा लोक का मसंख्यावा भाम प्रमाण जानना। काप-बाना जीवो की अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से संस्पात हजार वर्ष तक मरकर निरन्तर पीन्द्रिय बन सकता है। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से मसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष नहीं हो तो इसके बाद त्रीन्द्रियों में ही जन्म लेना पड़ता है। नाति (योनि)-२ लाख योनि जानना। फुल-८ लाख कोटि कुल जानना । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (११० ) कोष्टक नं०२४ स्थान सामान्य प्रालाप । पर्याप्त एक जीव के नाना एफ जीत्र के का समय में 1 समय में चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त ।१ जीव क नाना नाना जीवों की अपेक्षा समय में नाना जीव की अपेक्षा एक जीज के एक समय में १गुण. १ गुण स्थान २ मिथ्यात्व, सासादन मिथ्यात्व गुरण मिथ्यात्व, सासादन निना | कोई एक गुण २जीवसमास २ चतुरिन्द्रिय प. अप० । १ले गुण में १ चतुरिन्द्रिय पर्याप्त १ले २रे गूण में १ चतुरिन्दिय अपर्याप्त मनपर्याप्ति घटाकर (५) भंग ३का मंग ५ का भंग का भंग । कोम ०२देम्बो १ भंग का भंग को देखो १ले नरग में । ५ का भंग को. नं१७ | के समान जानना ४प्रामा कर मन घटाकर (८) भंग ६का मंग का भंग का भंग रैले मुगाल में ८ का भंग को० नं०१७ | के समान जानना १ भंग E का भंग | वचनबल, स्वासोच्छवाम । ये २ घटाकर (६) ले रे गुग्गल में का भंग को नं. ५सजा को. नं। देखो । १गभंग ४ का भंग का भंग । १मंगभग ४ का भंग | ४ का भंग १ने गुरण में ५ का भग कोई नं. १७ . के ममान जानना ने गुगण में १ले २रे गुग में ४ का भंग पर्याप्नवत ले २रे गुरण में । १ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. २४ चतुरिन्द्रिय इन्द्रिय जाति १ : योग को० न० २२ देखा योग २के भंग में से कोई याय १० बंद को.नं० २२ देखो । १निर्यच गति तियच गति रेल गुग्ग में १२ रे गुगल में १ चरिदिय जाति १ चतुरिन्द्रिय जाति ।। न मुग. में स २रे गुरण में १ चमकाय १ नमकाय १ भंग योग । १ मंग को न०२२ देखो २ का भंग के भंग में में | को० नं० २२ देबो ! २ का भंग | कोई १ योग । १वे मुगमें ले गुग्ण : में १ नपुंसक बंद १ नपुंसक वेद सारे भंग | १ मंग। | सारे मंग ले गण में ७--६ के भंग । ७-८-8 के १०.२ मुम ..- के भंग २३ का भंग को.नं०१७ को.नं.१६ देखो। भंगों में से २३ का भंग के समान जाननना कोई १ भंग पर्याप्तयत् | १ भंग १जान २ १ भंग १ले जुमाल में २का भंग | २ के भंग में | ले २र गुण ये २ का भंग २ का भंग को० नं०१७ से कोई १ २का भंग पर्याप्तवत् । के समान जानना जान श्ले गुरण में ले २रे गुण में १ असंयम १ असंयम १दर्शन १ मंग १ले गुण में २ का भंग | २ के मंग में ले २रे गुण में २ का मंग २ का भग को. नं०१७ से कोई१ का मंग प-प्निवत के समान जानना दर्शन १ भंग लेण्या । १ भंग १ने गुण में २का भंग के भंग । १ले २रे गुन्ग में का भंग ३ का भंग को० नं. १ 1 में से कोई १ । ३ का भग को के ममान जानना नेश्या । नं. १७ के समान जानना १ मंग -7-0 के मंगों में से कोई भग गान २ के भंग में से कोई १शान १२ ज्ञान कुमति कुश्रुत १३ संयम १४ दर्शन अचक्षुदर्शन, चक्षुदर्शन | दर्शन २ के भंग में कोई १ दर्शन १५ नेच्या अमलेश्या । १ लेण्या के भंग में से कोई एक लेल्या Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ १६ भवरद भव्य श्रभम्य १७ सम्यक्त्व मिथ्यात्व सासादन | १८ संज्ञी १६ भाद्दारक २ २० उपयोग १ २ आहारक, अनाहारह २ कुमति, कुत पयोग अपक्ष-दर्शन २ ये ४ उपमण जानना ३ १ ले गुण ० में २ का मंग को० नं० १७ के समान १ ले गु० में १ मिध्यात्व जानना १ले गुण ० में १ संजी १ D १ गुण में आहारक जानना १ ले गुराह में ४ का भंग को० नं० १७ के समान जानना I ( १९२ ) कोष्टक नं० २४ Y १ भंग को० न० २१ देखा १ भंग ४ का भंग ! १ अवस्था २ में से कोई १ अवस्था | I १ उपयोग ४ वे भंग में से कोई १ 1 उपयोग ¦ इ २-१ के नंग में १ ले गुग्ण० में २ का रंग पर्याप्तवत् ने गुगः ० के १ भव्य जानना २ १-१ के भंग १ले गुण में १ मानना २० में १ सासादन जानना १२ गुण में १ प्रती S २ में १-१ के भंग १ले २ रे गुण० * विग्रह गति में अनाहारक जानना २ प्रहार पर्याप्त के समय ब्राहारक जानना ४ D ४-३-४ के वंग १ ले गुण ० में ४ का भंग को० नं० १७ के समान जानना २२ गु० में ३-४ के भंग को० नं० १७ के समान जानना i . चतुरिन्द्रिय १ भंग २-१ केभंगों में से कोई ? मंग १ मान १-१ के भंगों में से कोई १ मंग दनों जानना १ मंग ४-३-४ के भंग में से कोई १ भंग जानवा . 5 १ अब पा २-१ के भंगों में से कोई अवस्था १ सम्यक्स्व १-१ के गंगों में से कोई १ सम्पवत्व १ अवस्था दोनों में से कोई १ उपयोग ४-३-४ के भंगों में से कोई १ उपयोग Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ध्यान C को० नं० २१ देखो २२ प्राम्रव चौंतीस स्थान दर्शन २ को० नं० २३ के ४१ के भंग में श्रविरत ६ की जगह १० जाडकर (हिंस का चतुरिन्द्रियविषय जोड़कर) ४२ जानना २३ भाव २५ को० नं० २१ के २४ के भंगों में चलूदर्शन जोड़कर २५ भाव जानना ३ ८ १ ले गुण में ८ का भंग को० नं० १७ के समान जानना ४० कालकाय योग १ प्रो० मिश्र काय योग १ ये २ घटाकर (४०१ श्ले कु० मैं | ४० का भग को० नं० १७ के समान जानना * ले नुग्ग में २५ मंग को० नं०१७ के समान मानना ( १६५ ) कोष्टक नं० २४ १ मंग ८ का भग सारे भंग १ ले गुण में ११ से १८ तक के भंग जानना ? भंग १७ का मंग फो० नं० १८ देतो १ ध्यान ८ के अंग में से कोई १ ध्यान १ भंग १ से १८ तक भंग में ने कोई १ भंग जानना के १ भंग १७ के भंग में से कोई १ भंग जागना J १ले २ रे गुण ० में ८ का भंग को० नं० १७ के समान ४० धोदारिककाय योग १ धनुभय वचन योग १ ये २ घटाकर (४०) १ ले गुण ० में ४० का भंग को नं०१७ के समान जानना २२ गुण ० में ३५ का भंग की० नं १७ के समान जानना २५ कुअवधि ज्ञान घटाकर (२५) १ ले गु० में २५ का भग को १७ के समान जानना २३ गुरण० में २३ का भंग को० नं० १७ के समान जानना १ मंग ८ का मंग सारे भंग चतुर्थिय १ ले गुर० में ११ से १५ तक के भंग जानना १ मंग १० ये १७ तक के १० से १७ तक भंग जानना के मंगों में से कोई १ मंग १७ का भंग को नं० १८ देखो १ ध्यान ८ के संग में से कोई १ ध्यान १ मंग १६ का भंग की० नं. १८ देवी ११ से १५ तक के भंगों में से कोई १ भंग जानना जानना १ भंग १७ के भंग में से कोई १ भंग जानना १६ के भंगों में से कोई १ भंग जानना Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २० २६ ३० ३१ ३२ ३३ २४ ( ter ) अवगाहना - लक्ष्य पर्यासक जीवों की जधन्य अवगाहना धनांगुल के प्रसंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट प्रवगाहना भ्रमर की एक योजन तक जानना । बंध प्रकृतियां - १०६ और १०० को० नं० २१ के समान जानना । प्रकृतियां - ८१ को० नं० २२ के ८१ में से श्रीन्द्रिय जाति १ चतुरिन्द्रियाति ११ की जानता। सत्य प्रकृतियां - १४५ - १४३० नं० २१ के समान जानना । संख्या- प्रख्यात लोक प्रमास जानना क्षेत्र लोक का प्रसंख्यातवां भाग प्रमामु जानना । स्पर्शनको० नं० २३ के नमान जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जानना एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से संस्यात हजार वर्ष तक जानना । अन्तर— नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यः मोक्ष नहीं हो तो - इसके बाद चतुरिन्द्रिय में ही जन्म लेना पड़ता है। जाति (योनि)–२ लाख योनि जानना । - कुल – ७ लाख कोटिकुल जानना । Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २५ अमंशी पंचेन्द्रिय क्र० स्थान सामान्य प्रालाप पर्याप्त घायर्याप्त एक जीव के नाना एक जीव के नाना | । १ जीव के नाना १ जीव के एक समय में | समय में नाना जीवों की अपेक्षा | समय में | समय में नाना जीवों की अपेक्षा १ गुण स्थान मिय्यान्व, सासादन, मिथ्यात्व गुगा स्थान दोनों जानना ।१ गुग्म दो में में कोई १ गुण. २जीव समास २! प्रगंजी पर्याप्ट अप० । १ गुगण में अमंत्री पर्याम जानना पर्याप्ति मन पर्याप्ति घटाकर (५) १ भंग ५ का भंग ले रे गुग में । अमजी पं० अप्ति जाना ३ को० नं०२२ देखी १ भंग ५ का भंग १भंग ३ का भंग ! । १भंग ३ का भंग १ले गुगण में ५ का भंग का० नं. १ समान जानना १ भम ४प्राम मन-प्रारम पटाकर दोष (६) है का मंग १ भंग का भंग भन ७ का भंग का मंग मिनाबन. बचमबल ले गगन में ६ का भग को० नं०१७ के ' समान जानना च्छवाम ये ३ घटाकर ७) ले २ गुरण में का भंग को० नं०१७ समान जानना १ भंच ४का भंग १ भंग ४का भंग ! १ मंग १ भंग ४ का भंग का भंग ५ संज्ञा को नं. १ पेस्रो १ने गण मैं . ४ का मंग को० नं. १के । समान जान । ६ गति ने गुण में १ त्रिय गति ले रे नगग ४ का भंग पर्याप्तचन् १ले २रे गुरण में १ तिर्यच गति Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतास स्थान दर्शन कोप्टक नम्बर २५ असंज्ञी पंचेन्द्रिय न्द्रिय जात ने गुरगम १ भान्धवानि न गुगण में पत्रमा गगामें १५.न्द्रिय जानि ने गुग में १ प्रमकाय ८.1य का भंग ? यांग के भंगों में ये कोई ? योग का नं० २२ देखो , मंगयोग १-२ क भंगों में मे १-२ के भंगों में से कोई भय में कोई १ योग तीनों बद जानना तीनों वेदों में से ले रे गुण में कोई । वेद तीनो वेद जानना जानना कानं०१७ के समान सारे भंग १मंग २५ ७-६-8 के भन ७-८-के अंगों ले रे गुगार में का० न०१-देखो में से कोई १ भंग २५ का मग पर्याप्तवत् ३ का भंग तीनों वेदों में से कोई १ देद । जानना सारे भंग भंग . १ ३२ गुग में 8-4-1 के मंगों ७-८-1 के मंग में से कोई १ | भंग को न०२२ देखा २का भग कार नं.१३ .केमभान जानना १. बंद को० नंदी से नग० मे : का भंग कार नं० के सुमाम जानना ११ कपाय ". कांनं.१ दख एन गुग में ५ का भग का नं०१७ के समान जानना १२ ज्ञान कुमनि, कुयुत न गुण में २ का भंग को नं. १७ के नमान ने गुरग. में གཞཀཱ་ १. संयम १४ दर्शन चक्षु-चन दर्शन १ले गुण में २दा भग कोल्न०१७ के समान जानना १५ वेश्या अशुभ लेश्या ले गुण में ३ का भंग को० नं०१७ के रामान जानना १ मंग २ का मंग २ का मंग २ केभंगों में से कोई ज्ञान | जानना १ भंग २ का भंग के अंगों में से ले रे गुगा मैं कोई१ शान २ का भंग को० नं०१७ के समान जानना २२रे गुग्गल में १ असंयम १दर्कग २ २ के भंग में से १ले २रे गुण में कोई १ दान | २ का भग पर्यावत् जानना १ लेश्या ३ के भंग में से ले रे गुण में । कोई १ लेश्या ३ का मंग को.नं. १७ | समान जानना २का मंग १ दर्शन के भंगों में से | कोई १ मंग जानना लेश्या ३के मंगों में से कोई १ लेश्या १ भंग ३का मंग ३ का मंग Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व २ मिथ्यात्व, सामादन १० संगी १६ आहारक आहार महार २० उपयोग भव्य, अभव्य २१ ध्यान को० नं० २४ देखो १ असंजी २ २२ आसव 5 को० नं० २१ देखो Y मिथ्यात्व ५, मन इन्द्रिय विषय १ घटा १ले चुनाव में २ का भग क० न० १७ के नमान जनना १ १ गुर० में १ मिथ्यात्व जलनः १ले गुग्ण १ संत्री जानना 3 में १ १ले गुगा में १ माहारक हो जानना १ ले शु० में ४ का मंग को नं० १७ के समान जानना 5 को० नं० २४ देखो ૪ प्रो मिश्रकाय योग १ कार्मारण काययोग १ ये २ १ भंग [को० नं० २१ देखी १ ( १६७ ) कोष्टक नं० २५ १ मंग ४ का मंग १ भंग को० नं० २४ देखो सारे भंग १ अवस्था २ में से कोई १ अवस्था १ १ उपयोग ८ के भंग में से कोई १ उपयोग १ ध्यान को० नं० २४ देखो १ मंग २ २-१ के भंग गुर २ का भंग के समान मं नं० १७ मे १ भव्य ही जानना २ १३ गु० में १ मिथ्यात्व जानना २० में १ मासदिन जानना १ले मेरे गुर १ में १ असजी जानना २ १-१ के भंग १ले २रे गुगा० में को० नं० २२ देखी 5 को० नं० २४ देसो असंज्ञी पंचेन्द्रिय とき म० काययोग १. अनुभय वचनयोग १ १ भग १ अवस्था २-१ के मंग में से २-१ के मंत्रों में कोई १ भंग जानना से कोई अवस्था जानना १ भंग १-१ के भंगों में से कोई १ भंग १ १ मंग को० नं० २४ देखो ४-३-४ के भंगों में से कोई १ भंग दोनों जानना १ संग को० नं० २४ देखो सारे भंग ' १ सम्यक्त्व दोनों में से कोई १ सम्यवर जानना १ १ यवस्था दो में से कोई १ अवस्था १ उपयोग ४-३-४ केमंगों में से कोई १, उपयोग जानना १ ध्यान को० नं० २४ देखो १ मंग Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०२५ असंशी पंचेन्द्रिय .असंभी पंचेन्द्रिय घटाकर (४३) |११ से १८ तक के ११ मे १% तक १ले गुग में | भंग जानना सरभंगों में में ४३ का भंग को० नं०१७ को००१८ देखो | कोई १ भंग । के समान जानना कर अविरत ११. कषाय २५, प्रोमिय काययोग १, मो० काय योग , कार्मारण काय योग १, पनुभय वचन योग १ ये ४५ प्रानय बानना सूचना -यहाँ तीनों वेद जन्थ्य पर्यासक जीवों की अपेशा से माने हैं दिखो मो.का गा. ३३० ये घटाकर (४३) ले गुम्म में ११ रो १८ तक ले गुण में ११ से १% तक के भंगों में से के भंग जानना कोई १ मंग पयाप्तव जानना २रे गुग में रे गुण में १० से १७ तक ३८ का भंग को०० | १० मे १७ तक के भंगों में से १७ के समान जानना । के भंग जानना ! कोई १ मंग को.नं. १८ देखो जानना २३ भाव कुमति, कुच त जान २, दर्शन २, लब्धि ५, तिथंच गति १, कषाय ४, स्त्री नपुंसक लिंग ३, अशुभ लेश्या ३ मिथ्या दर्शन १, असंयम १, मज्ञान , मसिद्धत्व १, पारिवामिक भाव ये २६ भाव जानना सू०-लब्धि पर्याप्त जीवमनुष्य गति में भी होता है इस लिग मनुष्य गति भी जोड़नी चाहिये मरा गोमट सार कर्मकांट पन्ना ३०१ देखो। १ मंग१ मंग १ भंग १ले गुण में १७ का भंग १७ के भंगों में से .ग. में । १७ के भंग में २७ का मग को.नं. १७ को० नं० १८ दखो कोई १ भंग ! २७ का भग कोनं. १७ का भंग को कोई १ भंग समान जानना जानना | १७ के समान जानना - २०१% देखो । जानना रे गुगा में १६ के मंग में से २५ का भंग को नं. १६ का भंग को । कोई भंग नान जना नं. १८ देखो जानना चना-लब्धि अपर्याप्त मनुष्य जोड़कर यहाँ २८२६ के भंग बन जाते है। Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवगाहना-लय पर्वतक जोबों की जघन्य अवचाहना धनांगुत के असंख्यातवे भाग और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन कत जानना । प्रकृति-१७ बन्धणण १२. में से साद्विक २ य ३ घटाकर ११७ जानना 1 उदयप्रकृतियां-६० उदयोग्य १२२ में में सम्यग्मिथ्यात्व १, सम्यक् प्रकृति १, प्राहारकद्विक २, सोभंकर प्रकृति १, उच्चगोत्र १, नामकर्म २६ [(वेक्रियक अष्ठक ८, अर्थात् नरकटिक २, नरकायु १, देवतिक २, देवामु १, वैक्रियकद्विक २ ये ८ जानना) असंप्राप्तामृपाटिक संहनन छोड़कर शेष प्रथम के संहनन ५, हुडक संस्थान, छोड़कर प्रथम के संस्थान ५, प्रशस्त विहायोगति , मुभग १ प्रादेय १, यशः कीति १, एकेन्द्रिय जाति ४ ये २६ जानना) ये सब ३२ प्र. घटाकर ७ जानना, मराठी गोमट सार कर्म कांड गाथा २६६-२६७-३०१ में तिबंच गत्ति मनुष्यगति दोनों लब्धि पर्याप्तक जीव के बताई गई। सत्य पर्याप्तक पंचेन्द्रिय तिथंच में-उपयोग्य १२२ प्र. में से देवद्रिक २, देवायु १, नरकविक २, नरकायु १. बैंक्रियकाद्विक २, मनुष्यदिक २, मनुष्यायु १, उच्चगोत्र १, नामकर्म प्र. ३२ (आहारकद्धिक २, तीर्थकर प्र. १, सूक्ष्म १, साधारण १, स्थावर १, प्रातप १, एकेन्द्रिय जाति २, परधात १, उच्छवास १, पर्याप्त १, उद्योत १, स्वरद्विक २, विहायोगति २, यश कौति १, प्रादेय १, पहले के मंहनन ५, पहले के संस्थान ५, सुभग १,ये ३२) पुरुष वेद, स्त्री वेद १, सत्यानमृघ्यादि महानिद्रा ३, सम्पग्मिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति,ये ५१ पटाकर ७१ प्र०का उदय जानना। सत्त्व प्रकृतियो-१४७ असजी पंचेन्द्रिय तिथंच पोर लव्य पर्याप्तक तिर्यंच में तीर्थकर प्र०१ घटाकर १४७ प्र० का सत्व जानना। संख्या--प्रसंध्यान लोक प्रमाग जानना । क्षेत्र-सवलोक जानना। स्पर्शन--सर्वलोक जानना । करत-कोष्टक नम्बर १७ के समाच जानना । अन्तर--नाना जीवों को अपेक्षा अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा शुदभव ग्रहण काल से नो सौ (Eoo) सागर काल तक यदि मोक्ष नहीं हो तो इसके बाद दुबारा अशी पंचेन्द्रिय बन सकता है। जाति (योनि)-पंचेन्द्रिय तिर्यच गति में ४ लाख योनि जानना । दुल-पंचेन्द्रिय तिर्यच मे ४३ लाख कोरिकुल जानना । ३२ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन सामान्य ० स्थल | पालाप . प्राला कोष्टक नं० २६ संजीपंचेन्द्रिय जीव में पांत पपर्याप्त एक जाव के नाना नरक जीव के एक! ।१जोव के माना एक जीव के । समय में मम्य में | नाना जीवों की अपेक्षा समय में एक समय में नाना जीव की अपेक्षा - - १ गुग स्थान १४ को नं. १८ देखो सारे गुण १ गुण मूचना-मपरे । अपने अग्ने मपने स्थान के स्थान के गुण सारे भंग जानना | में से कोई १-२-४-६-१३ | मुरग स्थान के गुण गाना | जानना ! मारे गुण स्थान १ १४ तक के गुग्ग. मूचना-अपने (१) नरकगति में अपने स्थान के १४ गा० जानना मारे भंग जानना लियंच गनि में | १ से ४ गुणा १ से ५. गुगा० कर्मभूगी में से १ ने गुगल भांगभूमी में । १४ . (3) मनुष्य मनि १ मे १८ गण फनभुनो में ' मे. १ म ४ गुगप भोगभूमी में , (1) गति में १४ गगा जानना का नं. १ मां १.२-४-६-१३ गुण. । अपन अपने (1) नरक गति में | स्थान के १-२-४ गुरण जानना | गुग्ण० में में | (निर्थच गति में कोई एक १-२ मुगा. कर्मभूमी में गुग्ग-स्थान १-२-४ गुग्गः भोममो में जानना । (३) मन प्य गति में १-5-6-:-१३ गुगा । वर्मभुमी में जानना १.२-४ सुराग भांगभूमी में (४) देव मनि में १.२-४ मा जानना को मे १९ । २ जीवनमाम संजीपं चन्द्रिय व्याज ये समास १समास | हरेक गति में हरेक गति में १ संज्ञोपचन्द्रिय : १ मंही पं. अपयांत समास | समास जानना जानना चागं गलियों में नक गनिम कौर नियंच चौर मनाय गति के मांगनी में १ सपरिका पर्शन प्रदम्थः जनता की १ स १६ देखो जा ननागनमास हक गति में ! हरेक ननि चारों गतियों में का सही में! नंजी पर हरेक गति में चौर पं० प न ममास | पांग्न समाम | निरंच मनुष्य गनि में जानना जानना भोग भूमं से १ममी पं० अपर्याप्त अवस्था जानना Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २६ संझी पंचेन्द्रिय जीवों में | | ३ पर्याप्ति को नं. १ देखो ४ प्राण को. नं. १ खो मंग १ भंग १ भंग चारों गतियों में हरेक में । ६ का मंग | ६ का भंग | चारों गतियों में हरेक में | ३ का भंग । ३ का भंग ६ का भंग को० नं०१६ में ! ३ को भंग नो० १६ से ! १६ के समान जानना १६ क समान जानना (२) भोग भूमी में तिर्यच (२) मोग भूमि में गनुष्य गति में निर्वच और मनुष्य का भंग को 'न०१७-१८ गामि में ३ का भंग की के समान जानना नं.१७-१८ के समान जानना माधि माप ६ पर्याप्त १० होगा। (2) नरक, तिर्यच, देव गति सारे मंग . १ भंग मारे मंग १ भंग में हरेक में सूचना-अपने अपने अपने । (2) नरका, नियंच | मुखना-अपने । अपने अपने १० का अंग को० नं०१६- अपने स्थान के स्थान के एक .. देव गति में हरेक में । अपने स्थान के | स्थान के १७-१६ के समान जानना सारे मंग। भंन जानना का अंग को नं०मारे भंग जानना | भंग जानना (२) मनुष्य गति में जानना १६-१७-१८ के समान १०-४-, के भंग को जानना १% के मान (२) मनुष्य गनि में (3) भंग भूमि में ७.२ के भंग को० नं. नियंच मनुष्य गति में १८ के मयान जानना १० वा भंग का नं०१७-१८ (३) भंग भूमि में के समान जानना सिबंध मनुाण गनि में 3 का भंग को २०१७-: |१८ के मभान जानना । सारे मंगभंग मारे भंग १भंग (1) नरक, निरंच, देव गति | भूचना-अपने अपने अपने | (१) नाक, निर्यच देव सूचना-प्रान अपने अपने अपने में हक में अपने स्थान के ' स्वन के १ - गति में हरेक में स्थान के १ भंग । स्थान के ' ४ का भंग को.नं. १६-१७- सारे भंग जानना । भंग जानना ४ का भंग को.नं. भंग जानना १६ के समान जानना १६-१०-१९ के समान को नं० देखो जानना Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ८काय २ ६ गति को० नं० १ ७ इन्द्रिय जनि १ पंचेन्द्रिय जाति जानना ४ ३ में (२) मन ४.३.२.१-१० के भंग को० नं० १ के समान (३) भांग भूमि में निर्यच मनुष्य गति में ४ का भंग को० न० १७-१८ समाम जानना चारों गतियां जानना १ चारों गतियों में हरेक में पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १६ से १३ देख १ चारों गनियों में हरेक में १ सकाय जानना ११ १ श्रमत्राय ६यांग १५ कामरिण काययोग १, औ० मिश्रकाययोग १, श्र काययोग १, बं० मिश्र काययोग १. ० काययोग १. प्रा० मिश्र काययोग १, काययोग १. वचनयोग ४, मनोयोग ४, यं १५ यांग 3 (१) नरक गति-तियंच गतिदेवगति में हरेक में ६ का भंग को० नं० १६-१७ कारण काययोग १, और मिश्रकामयोग १. वं. मिश्र काययोग १, आ. मिश्र काययोग १, से ४ घटकर (११) १६ के समान जान (२) मनुष्य गति में ६-६-६-५-३०० के मंग को० नं०: १० के समान जानना ( २०२ ) कोष्टक नं० २६ ४ " कोई १ गति १ अपने अपने स्थान के भंगों में से । कोई १ भंग १ भंग १ योग सुचना-अपने अपने सू० अपने अपने स्थान के भंगों में से स्थान के गंगों में कोई १ भंग जानना से कोई १ योग जानना कोई १ गति १ 1 (२) मनुष्य गति में ४-० भंग को० न० १ के समान i (३) भोग भूमि में तिच मनुष्य गति में ४ का भग को० नं० १७-१८ के ममान जानना ४ चारों गतियां जानना १ पर्याप्तवत् जानना पर्यावत् जानना ४ कार्मारण काययोग १, प्रो०मिश्र काययोग १. वै० मिश्र काययोग १ आहारक मिथकाययोग १ ये ४ योग जानना (१) नरक-तियंच देवगति में हरेक में . १-२ के अंग को० न०१६१७ [E के समान जानना (२) मनुष्य पति में १-२-१-२-१ के भंग को० नं० १८ के समान जानना संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में 1 · ! ७ " कोई १ गति १ १ मंग सूचना-पर्यात पर्यासक्त् १ कोई १ गति १ १ योग पर्याप्तवत जानना Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २६. संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में को.नं. १ देखो (३) भोग भूमि में-नियंचमनुष्य गति में का मंग को.नं. १५-१८ के समान जानना | (१) नरक गनिमें १का भंग को नं०१६ देखा । (२) तिर्यन मति में ३ का भंग को० न०१७ देखो (2) मनुष्य गति में ३-६-३-१-३-३-०-१-० के भंग हो० नं. १८ देखो (४) देव पति पे २-१-१ के भंग। कोर नं०११ के ममान जानना (५) भोनभूमि में नियंच मनप्य गति में २ का भग को० नं०१७-१८ के नमान जानना (i) भोगभूमि से तियंच | मनुष्य मा में १-२ के अंग को न० । १७-१८ के समान जानना मंग १ मंग १ वेद सूचना-अपने । अपने अपने | (१) वरक गति में सूचना- | पर्यास्वत् अपने स्थान के | स्थान के भंगों। १ का भंग को० न० पर्याप्तकत जानना | जानना भंगों में से कोई में से कोई | १६ देखो वेद जानना । (२) नियंच गति में ३-३ के भंग को न० १०देवो । (3) मनुष्य गनि में २-१-१-0 के अंग को नं. १८ देखी (४) देव गति में २-१-१ के भंग को० नं. को००१ देखो मारे मंग मुचना-अपने अपने स्थान के मारे मंम जानना (१) नरक गति में २३-१६ के भंग का० नं. १६ । कमभान १२) तिर्यच गति में २५-२५-२२-१७के भंग की. न०१७ के समान जानना (4) मनुष्य यति में (2) भोगभूमि में निर्यच. मनुष्य गति में १ के भंग को १७-१८ के समान जानना । सारे मंग १मंग २५ . मूचना- पर्याप्तवत अपने अपने । (१) नरक गति में पर्याप्तवन जानना । जानना स्यान के भंगा २३-१६ के भंग को नम में से कोई । १६ के समान जानना १ भंग ! (२) तिसंच गति में | । २५ का भंग कोन १७ के समान जानना (६) मनुष्य पनि में ! Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ज्ञाग फोटोस स्थान दर्शन कुशान ३, ज्ञान ये ज्ञान जानना **. ८ २५. २१-१७-१३-११-१३-७-६ ५-४-३-२१-१-० के भंग को० नं० १८ के समान जान (४) देवगति में २४-२०-२३-१६-१६ के भंग को० नं० १६ के समान जानना (५) मोग भूमि में तियं च मनुष्य गति में २४-२० के मंग को० नं० १७ १८ के समान जानना (२) तिर्यच गति में ३-३ के भग को० नं० १७ के समान जानना ८ (१) नरक गति में सारे भंग १ ज्ञान सूचना - अपने अपने भू-वन अपने ३-३ के नंग को० नं० १६ स्थान के सारे मंग स्थान के गंगों में जानना कोई १ ज्ञान जानना के समान जानना (३) मनुष्य गति में ३-४-३-४-१ के भग को० नं० १८ के समान जानना (४) देव गति में ३-३ के मंग को नं० १९ के समान जानना (५) भोग भूमि में ( २०४ ) कोष्टक नं० २६ तिर्यच. गति में मनुष्य ३-३ के भंग को० नं० १७१८ के समान २५- १६-११-० के भंग को० नं० १ के समान | जानना (४) व गति में २४-४४-१६-२३-१२-१६ के भंग को० नं० १२ I समान जानना ((2) भाग भूमि मे नियंच गति मनुष्यगतिमें २४-१६ के भग को० नं० १७-१८ के समान जानना अवधि ज्ञान १, मनः पर्व ज्ञान ये घटाकर (६) १) नरक गति में संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में २-३ के मंग को० नं० १६ के ममान जानना (२) तियंच गति में २ का भंग को० नं० १ के समान जानना (३) मनुष्यगति के २-३-३-१ के भंग कां० नं० १८ के समान जानना (४) देवगति में ८ १ ज्ञान सारे भंग सूचवा -- पर्या पर्याप्तवत् जानना जानना २-२-३-३ के भग को ० नं० १३ के समान जानना (५) भोग भूमि में "तियंचगति मनुष्यगति में Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ संयम 1 चौंतीस स्थान दर्शन ! असंयम, संयमासंयम सामायिक, छेदोपस्थापना परिहारविशुकि मूक्ष्मसपाय, यथास्यात ये ७ संयम जानना १४ दर्शन दर्शन वर्ध अवधिदर्शन, केवलदर्शन ये ४ दर्शन जानना ३ ७ (१) नरक देव गति ये १ का भंग के समान (२) तिबंध गति में १-१ के भंग को० नं० १३ देखो (२) मनुष्य गति में १-१-१-२-१२-१-१ के मंग को० नं० १ देलो में नं० १६-१६ (४) मनुष्य गति में १ का भंग को० नं० १७-१८ समान जानना ४ (१) नरक गति में २-३ के भंग को० नं० १६ के समान (२) तिर्यच गति में २-२-३-३ के मंग को० नं० १७ के समान जानना (३) मनुष्य गति में २- ३-३-३-१ के मंग को० नं० १८ के समान जानना ४ ( २०२ ) कोष्टक नं० २६ सारे मंग सूचना-अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना सारे भंग सूचना-अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना 9. संयम अपने अपने स्थान के मंत्रों में से कोई १ संयम जानना १ दर्शन अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ दर्शन जानना २-३ के मंग की मं | १७-१८ के समान जानना ४ संयम, सामायिक ना और यथाख्यात मे ४ जनता (१) नरक देव गति में १ का मंग को० नं० १६ १६ के समान जानना (२) नियंच गति में १ का भंग को० नं० १७ के समान जानना (३) मनुश्य गति में १-२-१ के भग को० नं० I १६ के सपान जानना (४) भोगभूमी में नियंच ममत '? का भंग को० नं० १७१= के समान जानना ४ (१) नरक गति में २-३ के भंग को० नं० १६ के समग्न जानना (२) तियंच गति में २-२ के भंग को० न० १७ के समान जानना (३) मनुष्य गति में २-२-३ १ के मंग को० । नं० १८ के समान जानना सी पंचेन्द्रिय जीवों में ५७ सारे भंग सूचत्रा पर्याप्तवत् जानনা सारे भंग सूचना --- पर्याप्तवत् जानना ८ १ संयम पत् जानना १ दर्शन पत् जानना Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०६ ) कोष्टक नं० २६ चौंतीस स्थान दर्शन संज्ञो पंचेन्द्रिय जीवों में देखो (४) देव गति में (४) देवगति में २-३ के भंग को.नं.१६ ! २-२-३-३ के मंग में को। के समान जानना 'न०१६ के समान जानना (2) भोग भूमि में (५) मोग भूमि में तियं मनुष्य गहमें ! च-मनुष्य गति में २-३ के भंग को.नं. १७ | २-३ का भंग को.नं. १८ के समान जानना । १७.१८ के समान जानना १५ लेश्या १ मंगलेश्या | १ भंग १ तेश्या कृष्ण-नाल-कापोत- (१) नरक गति में चना-अपने अपना अपन अपन१) नरक गति में पर्याप्तवत जानना पयतिवत जानना पीत-पद्य-शुक्ल ३ का भंग को. नं. १६ स्थान के भंगों में में स्थान के भंगों में ३ का भंग को नं. १६ ये ६ जानना | कोई भंग से कोई लेश्वा देखो | (२) तिरंच गति में जानना १२) तिथंच गति में ६-३ के भंग को० नं०१७। ३ का भंग को०म०१७ : के समान जानना देखो ! (३) मनुष्य गति में (3) मनुष्य गति में ६-२-१-० के भंग को नं. ६-३-१ के भंग को. नं. १५ के समान जानना . १८ के समान जानना (४) देवगनि में (४, देव गति में १-2-1-1 के भंग को नं. ३-३-१-१ के भंग को. १६ के समान जानता नं०१६ के समान जानना (1) भोग भूमि में (५) भोग भूमि में तिर्यचनियंच-मनुष्य गनि में मनुष्य मन में हक में का भग को नं०१६ १ का भंग को नं० १३. के समान जानना १८ के ममान जानना १६ मब्बत्व १ भंग : अवस्था । १ भंग १अवस्था भव. अभव्य । चारों गनियों में हरेक में अपने अपने म्यान के अपने अपने स्थान चा मनियों में हरेक म । पर्याप्तवन जानना पापबत जानना | २.१ के भग कार १६ मे १९ भंगों में न कोई १ के भगों में में | २-१ के भय को. नंः । भंग कोई १ अबस्था १६ से १६ के समान Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २६ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में १७ सम्बक्त्व सारे भंग १ सम्यक्त्व : सार मंग । सम्यक्त्व मिथ्यात्व, सासादन, (१) नरक गति में सूचना-अपने । अपने अपने | मिश्र घटाकर (५) सूचना-पर्याप्तवत्।। पर्याप्तवत मिथ, उपशमसम्यक्त्व, १-१-१३-२ के भंग को० । अपने स्थान के | स्थान के मंगों जानना । जानना भाविक, नागोमाम मकान में जानना में में कोई १ (१) नरस गमि में । ये ६ सम्यक्त्व जागना (२) नियंच गति में । सम्यक्त्व १-२-२ भंग को.नं. । १-१-१-२ के भंग को नं. जानना समान जानना १७ के समान (२) तियं च गति में (1) मनप्य गति में १-१-० के भय को० १-१-१-३-३-२-३-२-१ के नं०१७ समान जानना भंग को० नं०१८ के समान (३) मनुध्य गति में जानना १-१-२-.-2 के भंग (४) देव गति में को० नं०१८ मे समान १-१-१-२-३-२ के मंग को (४) देव नति में । नं. १६ के समान १-१-३ के भग को.नं.: (५) भोगभूमि में तिर्यच १६ के समान मनुष्य गनि में (2) भोगभूमि में तियंच १-१-१-३ के भंग को.नं. मनुष्य गति में १७-१८के समान १-१-२ के भंग को | २०१७-१% के समान | १८ संजी १ मंग १अवस्था १ भंग २ अवस्था संजी, (१) नरक-देव गति में । सूचना-अपने अपने अपने । (१) नरकदेव गति में सुचना–पर्याप्तवत का रंग को. नं०१६-२६ अपने 'यान के स्थान के का भंग को नं०१६-| जानना जानना के समान जानना भंगों में से कोई भंगां में से १६ के समान वानना (१) तिर्यच गति में १ भंग जानना कोई१ (२) तिर्यच गति में । १-१ के मंग को.नं० १७.. अवस्था १-१.१ के मंग को के समान जाननानं०१७ के समान जानना। (३) मनुष्य गति में । (३) मनुष्य गति में । १-० के भंग को नं. १८ के | 2-0 के भंग को नं समान जानना १८ के समान जानना Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन १६ आहारक आहारक, अनाहारक २० उपयोग ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग ४ ये १२ जानना १२ (४) भोग भूमि में तियंच- मनुष्य गति में १ का मंग को० नं १७-१८ के समान जानना १ (१) नरक - देव गति में १ का मंग को० नं० १६. १६ के समान जानना (२) तिर्वच गति में १ का मंग को नं० १७ के समान जानता (३) मनुष्य गति में १-१-१ के मंग को० नं० १८ के सम्मान जानना (४) भूमि में नियंत्र - मनुष्य गति में हरेक में १ का भंग की० नं० १७१८ के समान जानना ؟؟ (१) नरक गति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ के गमान (२) निर्दन गति में ५-६-६ के मंग को० न० १७ के समान (३) मनुष्यगति में ५६ ६७ ६-७ के भंग को० नं०१८ के समान जानना ( २०८ ) कोष्टक नम्बर २६ ४ 6) में तिर्यच मनुष्य गति में १ का भंग को० नं० १७. १८ के समान जानना १ अवस्था २ १ मंग ग्राहारक अवस्था आहारक अवस्था (१) नरक-देव गति में १-१ के मंग को० मं० १६-१६ के समान (२) निर्बंच गति में १-१ के भंगको नं० १= के समान जानना (३) मनुष्य गति में १-१-१-१-१ के मंग को नं० १८ के समान जानना (४) भोग भूमि में तिथंच मनुष्य गति में हरेक में I १-१ के भंग को नं० १७ १५ समान जानना - सारे मंग । सूचना अपने अपने स्थान के गारे भंग । 1 | ܐ . १ उपयोग अपने अपने कुमविज्ञान १, स्थान के गंगों में मनः पर्ययज्ञान कोई १ ये २ घटाकर (१०) उपजानना (१)गरक गति में ! ४-६ केभंग को नं० १६ के समान जानना - (१) नियंच गति में । ४-६ के भंग को० नं० १० के समान जानना संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में १ मंग दोनों में से कोई १ अवस्था ८ १ अवस्था कोई १ अवस्था i सारे मंग १ उपयोग 'सूचना-पर्याप्तवतु पर्यावत् जानना जानना T Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २ १६ को० नं० १८ देख २१ ध्यान (१) देव गति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ | के समान जानना (५) भोगभूमी में निच मनुष्य गति में ५-६-६ के भंग को० नं० १७-१८ के समान १६ (१) नरक गति में ६-१० के मंग को० नं० १६ के समान (२) निर्यच गति में ०९-१०-११ के मंग को० नं० १७ के समान जानना (३) मनुष्य गति में ८-१-१०-११-७-४-१-१-१-१ के मंग को० नं० १० के समान जानना (४) देव गति में ८-१-१० के मंग को० नं० १६ के समान जानना (५) भोग भूमि में तिच मनुष्य मति में ८-१-१० के भंग को० नं० १७-१८ के समान मानना ( २०६ ) कोष्टक नं० २६ सारे भंग सूचना – अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना ५ १ ध्यान अपने अपने स्थान के सारे अंगों में से कोई १ ध्यान जानना (४) व गति में ४-४-६-६ के मंग को० नं० १६ के समान 1 (५) मोगभूमि में तिर्मच मनुष्य में ४-६ के भंग को० नं० १७-१८ के समान ܕܕ त्रिपाकवि वय १. संस्थनविय १ | पृथक्त्वविन विचार १, | एकस्ववितर्क विचार संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में १. | व्युपरत क्रिमनिवनि १ ये ५ घटाकर (१९) (१) नरक गति में - के संग को० नं० १६ के समान जानना (२) सिच गति में का मंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य नति में 19-९-७-१ के मंग को० |नं० १= के समान जानना | (४) देव गति में ८२ के अंग को० नं० १६ के समान जानना (५) मोगभूमी में तिर्यंच मनुष्य गति में ७ सारे मंग सूचना पर्वात् ८ १ ध्यान पर्यावत जानना Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( २१. ) कोष्टक नं। २६ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में | ८-tक भंग को न ! १७-१८ के मान जानना २२ माखद ५3 सारे भंग १ भंग सारे मंग १ भंग (१) मिध्यात्त , . . चौ. मिभकाययोग १ सूचना-अपने अपने अपन | मनोयोग ४, सूचना-पर्याप्तवत पर्याप्तवन (संशय, बिनय, विपरीत, वै: मिश्र काययोग | अपने स्थान के थान के भगा| वचनयोग जानना जानना एकांद, प्रज्ञाम य५) मा मिथ काययोग १ | सारे भंग जानना : में से कोई१ | मो. काययोग, ( पविरम १., कार्माण कामयोग की न०१८ देखो । संयम जाननः । द० काययोग १, हिसक ६, हिस्य | ये ४ घटाकर (५३) प्राहारक काययोग१. को नं. १८ में देखो । (१) नरक गति में | ११ से १८ तक के ये ११ पटाकर (४) ४६-४४४० के मंगोल १.१७ तक के (1) मरक गति में १९१८ तक के कोई १ भंग (कोनं १ मे देखो) न०१६ के समान १६ तक के | ४२-३३ भंग की नं १६ " (1) योग १५ । अंगमा १६ मान जानना चंग जानना (ऊपर के योग स्थान ! () तिवच गति में -११ से १८ तक के k२) तिर्यच गनि में ११स १८ तक के नं. देखो। ५१-४६-४२-३७ के भंग | १० से १५ ४४-३६ के भंग को० न०१० से १७ " | ये मान्न बानमा को 10१७के समान | १७ के समान जानना | भंग जानना जानना (3) मनुग्ध गति में ११ से १ क के! भंग जानना (3) मनुष्य यति में १० से १८ तक के २-१ के भंग को नं. १६ तक के भंग ५१-४६-४२-३७-२२-२०-२२-१-१० से १७ " १८क सभाग जानना । ५-६-७ भंग । । १ का अंग . E-५-६-० के भंग (४) देव गति में ११ से १८ तकके भंग को० न०१८ समात्र ५-६- के मंग ३-२ के धंग | ३३-३३ के मंग को से१६ २ का भंग १ १६ के समान जानमा (0) का मंग । (५) मोगभूमी में तिरंच ११ से १८ तक मंग (७) देवगति में ११ से १८ तक के कोई पोर मनुर गति में १० से १७ " ५०-६५-४१-४६-४४-४०- १० मे १५ तक के ४३-३८-के अंग को से१६ " ४- के भंग ६ से १६ तक के नं०१७-१८ के समान को नं० १६ समान मंग जानना जानना Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक न० २६ संजी पंचेन्द्रिय जीवों में ५३ । (४) भोग भूमि म-निम चगति में ११ से १८ नत्र के और मनुष्य गनि में . १० मे १७ । ५०-४५-४१ के नंग को० । १ मे १६ " . न०१७-१८ के ममान भंग जानना जानना २३ भाव सारे मंगभंग | सारे भंग १ भंग (१) मौदामिक भाव ' (१) र गति में सूचना-पन । अपने अपने | भवपि जान १, मनः । मुचना- । पर्याप्तवत् २ उपशम मम्कन २६-२४-२५-२८-२७. अपने स्थान के स्थान के १५- पर्यय जात, उपशम | पर्याप्तवत जानना ' जानना और डागम बाग्त्रि ये || के भंग को नं०१५ । सारे भग :-१६-१३ के चारित १. संयम:-नवम ! ये३ जागा के गमान जानना हरेक भंगों में में चषि ये ४ घटाकर । (२)मायिक भाव ६. 29-१-१६-७ पोई भंग । वाधिक ज्ञान, प्राधिक के भंग जानना का जानना नरक गति में नारे मंग भंग दचन, साबिक मग्य | नं १८ नोभ ग ५.. भंग को १७-१७ के भंग ५-20 के हरेक व, क्षायिक पारित, निर्यच गति में सारे भंग -१६-१६-१८के समान | जानना 'भंग में से कोई धायिक दान, शाबिक ३१-२६-३०-३२-२६ के भंग १७-१६-१६-१-१७.१७के हरक । १ भंग जान, स.विक भोग, कोन १७के समान १ भंग जान्नः । भग में गे कोई (२) निर्यच रति में सारे भग १ भंग सायिक उपभोग, आदिक को नं०१८ देखो, १ भग |२४-०५ के भंग को ०१५-१६ के भंग १७.१६ के हरेक बीये ये जानना (3) मनुष्य गति में | मरे मंग । १ भंग | १७ में न जानना ! जानना ,नंग में से कोई (8) सोपशम (मिथ 17-08-३०-३३-३० १७-१-१६-27-12-१६-१६ | १-१ भंग भाव ८. कृमनि-नि- १-७-२१-२६-२६-१७-२७-१७-23-१-१:-१:- (2) मनुष्व गनि में गारे मंच | १ मं कुधवधि (विभंग) गे २८-::-०६-२५-11-23-१५-१६- १-2013-20-12-20-02-१४ १७-१६-१७-13-28-१६-१७कमान, .. -२१-२०-१४- '१५-५-११-१३ -१६-११- के भग को० नं. १६ के १४ के भंग जानन १७-१४ के हरेक मानि-चन--धि-मन: . १३ फे भन को नं. १८ । भंग जानना ५-१४-११ के गमान जानना भंग में में कोई पर्यय ज्ञान यजाम के ममान जानना को नं. १ चोक मंगमें गकाई 12.१ भंग जानना भावनि- न -१ भंग जानना (1) देव गनिम सारे भन१ मंग अवधि शंन ३ दर्शन, देव गनि , मारे भग भ ग २६-२४-०६-२५---१७-१६-१७के भंग १५-१६-१७ के दान-नाम-मोग-उपमान .:-२३-01-1-22- १७-१५-१६-१ 15-2:-१६.१०२३-२१-२६-२६ के जानना हरेक भंग में से वीर्य 12 जयोपचम 37-२६-२६-४-२- : के भंग जानना कहरेक भंग में गे भंग को०१६ समान कोई भंग सब्धि. क्षयोपशम वेदत्रः) 2-0६-२५ के ग को की नं०१८ देखो कोई १ भंग | जानना नं.३६ के समान ज नना । जानना Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २१२ ) कोष्टक नं० २६ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २६. संजी पंचेन्द्रिय जीवों में संजी पंचेन्द्रिय जीवों में मायक्त्व, सराप पारित्र (५) भोग भूमि में सारे भंग १मंग (५) मोग भूमि में | सारे मंग । (मराग संयम), देश । -७-२५-२६-२६ के भंग १७-१६-१६-१७१७-१६-१६ १७-१६-१६-१७१७-१६-१६- २४-२२-२५- के भंग को०१७-१६-१७ के १७-१६-१७ के सयम (मंघमासंयम) ये को०१७-१८ के समान । के भंग जानना १७ के हरेक मंग नं०१७-१८ के समान | भंग जानना हरेक मंच में से १८ जानना । हरेक में जानना को. नं०१८ देखो | में से कोई १-१ हरक में जानना कोई 1- भंग (४) प्रौदारिक भावर भंग जानना । भानना नरक-नियंच-मनुष्य-देव । मनि-ये पनि, नपूमक-स्त्री-पुरुष लिंग पोष-मान-माया-नोभ व ४ कषाय, मिथ्या दर्शन (मिथ्यात्व), कृष्णा-नील-कापोत-मीनपघ-शुक्न ये ६ घ्या, अनयम, प्रज्ञान, प्रमिदत्व, २१ मोदयिनः भाव जानना (५) बीवत्व, मव्यत्व, प्रभव्यत्व ये३ पारिशामिक भाव जानना इन प्रकार १३ भाव जानना Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ २५ (२१५ ) प्रवगाहना-लम्य पर्याप्तक संजी पंचेन्द्रिय जीव की जघन्य अवगाहना धनागुल के प्रसंस्पात भाग जानना और उत्कृष्ट अवगाहना एक बार (१०००) योजन की स्ववभूरमण समुद्र के महामत्स्म की जानना ! बंध प्रहतियां-१२० बघयाम्प प्रकृतियां-१२ जानना इनमें से - १०१ प्र. नरकगति में कोन. १ देखो। ११ प्रतियं च गति में को.नं०१७ दखो। १२० प्र० मनुष्य मति में कोर १८ देखो। १०४ प्र. देवनि म कान १६ दवा । बंधयोग्य १२० प्रकृतियों का विवरण निम्न प्रकार जाननाज्ञानावरणीय ५, मति-सुन-अवधि-मनः पर्यय केवल ज्ञानावरणीय ये ५ जानना । (२१ दर्शनावरणीय , अचक्षुदर्शन ?, पशवमन १, अवधिदर्शन १, कवलदर्शन १, निद्रा १, प्रचना १, निहानिद्रा, प्रचनाप्रचना १, स्यानदि १८ जानना। (1) बंदनीय २, मानावेदनीय १, प्रमानावंदनीय १ ये जानना । (४) मोहनीय २६, दर्शन मोहनीय १, मिय्यादर्शन जानना । चरित्रमोहनीय के २५ इनमें कषाय १ -(१) अनानुबंधी-क्रोध-मान-याया-लोभ, (२) अप्रत्याख्यान-कोष-मान-मामा-लोभ, 1) प्रत्याख्यान-क्रोध-मान-माया-लाभ, (४) संज्वलन-कोष-मान-माया-लोभ, ये १६ कषाय जानना और नबनोकषापहास्य-रति-परतिा-थोक-भय-जगुप्सा ये ६ जानना । और नपुसक वेद १. रवी बंद १, पुरुषवेदये ३ वेद जानना 1 इस प्रकार चरित्र माहनीय के +6=२५ जानना। (2) प्रायुकम ४, नरकायु १, निर्यचायु १, मनुष्वायु १, देवामु १ ये ४ जानना। (2) नामकम । (म) गति नामफर्म ४ - नरकगति, नियंचगनि, मनुष्यगति, देवगति ये ४ वानना । (मा) जाति नामकर्म ५-एकेन्द्रिय, हीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचोन्द्रिय ये ५ जानना । (६) शरीर नामकर्म ५-यौदारिक, वैऋियिक, माहारक, नेजस, कार्माण, ये जानना । (3) मंगोपांग ३–प्रौदारिक, वक्रियिक, पाहारक, ये ३ जानना।। (ड) निर्माण नामक्रम १ (3) संस्थान -समचतुरलसंस्थान, न्यग्रोधपरिमंडल सं., स्वात्तिसंस्थान, कुम्जकसंस्थान बामनसंस्थान, हुंडकस्यान. संस्थान जानना । (e) संहनन ६--वजवृषभारान संहनन, वचनाराच संहनन, नाराव सहनन, मषनाराच संहनन, कीलक संहनन, पाला मृपाटिका संहनन ये मंहनन जानना । (प.) स्पचं. रस, गंध, वर्ण, ये ४ जानना। (जी) प्रानपूर्वी ४--नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यचगत्यानुपूर्वी, मनुप्यगत्यापुपूर्वा, देवगत्यानी ये ४ जानना । Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ (ो) अगुगलवु, उपधान, परपात, उच्छवास ये चार जानना । (क) प्रातप १, उद्योन १. प्रप्रशस्तविहायोगनि १, प्रशस्तविहायोगति , प्रत्येक १, साधारण १, बादर १, सूक्ष्म १, स., स्थावर १, सुभग १, दर्भग १, अस्थिर १, शुभ १, प्रभ १, सुस्वर १. दुःस्वर १, पादेय ?, अनादेव १, यशःकीर्ति १ अरश कौति १, पर्याप्त १, अपर्याप्न १, तीकर प्र०१ये २५ जानना। इस प्रकार ये सब मिलकर ४+५+५+३+१ +६+६+४+४-|-४ + २४ =७ जानना। (७) गोत्रकर्म-उच्चगात्र १ नीचगोत्र १२ गौत्र जनना। () अंतरायकर्म ५-दानांतराय, लाभांतराय, भोगांवराय, उपभोगनराय, धीतिराय, ये ५ जानना । इस प्रकार ५+++२६+४३७२-१२ बंध प्रतियां जानना । उदय प्रकृतियां-१६ प्र. नरकगति में जानना को न १६ देहो। १०७ प्रतिर्मन गति में जानना को० न०१७ देखा। १०२ प्र० मनृत्य गति में जानना को० न०१८ देखो। ७७ प्रदेव नि में जानना को० नं०१९ देखो। सत्व प्रकृतियां-१४८ में से १४७ नरकगति में जानना को००१ देखो । १४५ तिर्य व गति में जानना को० नं० १७ देखो। १४८ मतपय गति में जानना नो.नं - देखो। १४०वगति में जानना बो० नं० ११ देखो। संख्या-असंख्यात लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र-विग्रह गति मनोर. मारणाधिक समृदयात की अपेमा और कवतीनोका' ममूदान में मर्व लोक जानना । असनाडी की अपेक्षा लोक का असंख्यातवा भाग जानना । १३ वे मुगम स्थान में प्रदर केवलसमुदवात अवस्था में असंख्यात लोक प्रमाग क्षेत्र जानना। स्पर्श न केवल समुदधान की अपेक्षा सर्वलोक और मारगाांतिक समुधात को अपना सर्वलोक धानना । लोक का प्रसंन्यातवां भाग अर्थात् ८ राजु । जब १६व स्वर्ग का देव फिसी मित्र जीव की नंबोवन के लिये नीमर नरक तक जाता है उस समय १६ वे स्वर्ग से मध्यलोक रजु चोर मध्यनोकराज तकदो राजु इस प्रकार र जानना । R-नाना जीवों की अपेका सर्वकाल जानना । एक जोब वा बरक्षा मदनबसौ(200) नागर नक काल प्रमाण जानना।। अन्तर- ना जीदों की अपना कोई असर नहीं । एक जीत्र की अपना अदभव में अमष्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष नहीं हो नो तो इसके बाद मनी पवेन्द्रिय में दद्वारा बन सकता है। ज नियोनि) लान जानना (नय गति ४ लाख, ६वति 4 ला. पंचन्त्रिय निर्यच ४ लाख, मनुष्य १५ लाख, ये २६ लाख जानना) कुल- १॥10 लाच कोटिकूल जानना. (नारक २५, देव २६, नियंत्र ४३।। मनुष्य १४ लाख कोटिजुल ये सब १०८।। लाख कोरिक्त जानना) चना -तिचंच के ४६।। लाख कादिकुल के विशेष अन्तर भेद निम्न प्रकार जनना। १२॥ नाबादिकुल जपचा जीव के मानना । मथनचर मीमादिनार न मानन।। १० । " "पंट मचलन पानायके जानना। १२ " " नचर जीव के जानना ४३॥ लाख कोटिकुन जानना । ३. ३४ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नम्बर २७ इन्द्रिय रहित (सिद्ध भगवान्) में चौंतीस स्थान दर्शन क स्थान नाम नामान्य प्रालाप पर्याप्त अपयन नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा एक मात्र की अपेक्षा नाना समय में एक मय में । अतीत गुण स्थान जानना बोव समास , , पयांप्ति . . मुचना-यहां भी अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है . १ मा स्थान जीच समास ३ पर्याप्ति ४ प्राण ५. संत्रा गति ७ इन्द्रिय जाति काप हयोग . . . . . . ११ कपाय १२ ज्ञान १३ यय १४ दर्शन १५ नया १६ भव्यत्व १७ सम्पत्य १८ संगी १६ प्राहारक २० उपयोग २१ व्यान २२ मानव २६ भाव अपपन संश गनि रहिन अवस्था इन्द्रिब। कार्य । योग ॥ ॥ अपगतवेंद्र प्रकषाय १ केवल ज्ञान १ केवल ज्ञान १वेदनशान असयम-संयमासंयम-संयम ये ३ से रहित १ केवल दर्शन जानना १ केवल दर्शन १केवल दर्शन अलेवा जानना पनुभय ॥ सायिक सम्यवस्व जानना १क्षायिक सम्यक्त्व | १ क्षायिक सम्पनत्व मनुभय जानना अनुभम जानना २ केवल शाम केवल दर्शनोपयोग दोनों युगपत र दोनों युगपत जानना' २ मुगपत् जानना ध्यान रहित अवस्था जानना मानव .. ". सायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, धायिक सम्यक्त्व । ५ भाव जानना ५भाव जानना सायिक बीर्य, जीवत्व ये जानना सूचना-कोई प्राचार्य शापिकभाव, जीबल, ये १० भाव मानते हैं Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २० २६ ३० २१ ३२ ३३ ३४ गाना ३ || हाथ से ५.२५ धनुष तक जानना बंध प्रकृतियां प्रबंध जानना । उदय प्रकृतियां – पंनुदय जानना । सश्व प्रकृतियां प्रसत्ता जानना । - संख्या- अनन्त जानना । क्षेत्र – ४५ लाख योजन सिद्ध शिला जानना | स्पर्शन — सिद्ध भगवान् स्थित रहते हैं। - काल सर्वकाल जानना । (२१६ ) तर प्रन्कर नहीं (सिद्ध अवस्था छूटती नहीं इसलिये अन्तर नहीं है) जाति (योनि) – जानि नहीं । कुल कुल नहीं। Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्र० स्थान सामान्य झाला २ १ गुप स्थान मिध्यात्व सामान २ जीव समान एकेन्द्रिय सूक्ष्म पर्याप्त 35 Fr बादर 31 ४ चीटीस स्थान दर्शन सूक्ष्म अपयश बादर ये ४ जानना " पर्या ५. को० नं० २१ देखो को० नं० २१ देखी ५ संजा गि को० नं० १ देखो । पर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा ܐ मिथ्यात्व जानना २ १ गुग्गु में एकेन्द्रिय सूक्ष्मपर्या " चादर ये २ जानना " १ले रु० में ४ का भंग को० नं० १७ देखो Y १ ले गुग्गु० में ४ का भग को० नं० १७ देखो १ ले मुख० में ४ का भंगनं १७ देख 4 · १] युग्म में १ निर्वच गति जानना ( २१ ) कोष्टक नं० २० एक जीव के नाना एक जीव के नाना | समय में समय में १ समा दो में से कोई १ समास जानना १ भंग ४ का मंग १ भंग ४ का भंग १ मंग ४ का भंग १ १ मंग ४ का भंग ४ का भग १ मंग ४ का मंग १ नाना जीवों को अपेक्षा २ १ समास २ दो में से कोई १ २-१ के भंग को० नं० २१ के समान जानन समस अपर्या मिथ्यात्व मासादन ३ काम को० नं० देखो रूप ४ पर्याप्त 2 मैं का भंग क० नं. २१ देखो १ २५ गुगा में ४का संग को नं० १७ देखो १२ गुण मे १ तिथेच गति पृथ्वीकायिक जीव में १ जीव के नाना १ जीव के एक समय में समय में ७ दोनों जानना १ समास २-१ के भंगों में से कोई एक समास १ भंग ३ का मंग 2. भग ३ का भंग ? रंग ४ का भंग कोई १ गुणा • १ ममास २-१ भंनों में से कोई १ समस जानना १ मंग ३ का भंग १ मंग ३ का मंग ९ भंग ४ का भंग Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०२८ पृथ्वीकायिक जीवों में ५ इन्द्रिय नातिले मुगण में एकेन्द्रिय जाति जानना ६ काय १ ले गुण. में १पृथ्वीकाप जामना । ले रे गुण में १ एकेन्द्रिय जाति १ले २रे गुण में : १पृथ्वीकाय जानन. vie. १मंग योग १-२ के भंग १-२ के भंगों में से १-२के भंगों में को० नं० २१ के समान कोई १ भंग में काई योग का० नं. २, देखो। १ने गुग में मौ० काययोग जानना का नं०१७ देखो १० बंद २३ ११ कवाय स्त्री-पुरुष वेद घटाकर लंगण में ले रे गुरण में १नपुंसक वेद जानना १ नपुंसक वेद जानना सारे भग भंग २३ सारं भंग रले गुण. में ७-८-९ के भंग ७-८-६ के भंगों ले रे गुरण में ७-८-८ के भंग २३ का भंग को.नं०१७ को नं०१८ देखो में से कोई भंग २३ का भंग पर्याप्तवत् | जानना को० नं. के समान जानना जानना | जानना १८ दंगो भंग - के भंगों में से कोई 1 मंग जानना १जान कुपति-नुश्रुनि । रेले गुण में दोनों कुज्ञान दोनों में से ई को० न० २१ के समान | दोनों दोनों में से कोई २ का भग को.नं०१७ देलो। १ज्ञान १३ नयम ले मुरण में ले २रे गुण में १सयम जानना १ असयम जानना १४ दर्शन ने गुरंग. में १ले रे गुण में १अचल दर्शन १मचम दर्शन १५ संश्या तेश्या । १ भंग लेश्या को००२१ दलो को नं०१ने समान | ३ का भंग ३ में से कोई१ को नं. १ के समान | ३ का भंग में से कोई । लेश्या जानना | लेदया जानना १६ भव्यत्व १अवस्था अवस्था १अवस्था भव्य, अभव्य १ले गुगण में दोनों में से कोई 1 | दोनों में से कोई १-२ के भंग २-१ के अंगों में से २-1 के मंगों में २ का भंग को.नं.१७, अवस्था भवस्था । को.नं. २१ के समान | कोई भंग से कोई भय देखो १ मंग Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ सम्यक्त्व मिथ्यात्व मासादन चौतीस स्थान दर्शन 1 १८ मं १६ प्राहारक २ आहारक अनाहारक २० उपयोग ३ को० नं० २१ देखी २१ ध्यान C को० नं० २१ देखो ! २२ मा ३५ को० नं० २१ देखी २३ व २४ को० नं० २१ देखो ! १ में १ मिध्यात्व जानना १ ले गुगल में १ प्रमंजी मानता १ ले गुगा में आहारक जानना ३ को० नं० २१ दे C को० नं० २१ देखो ३६ को० मं० २१ के ममान २४ को० नं० २१ के समान ( २१९ ) कोष्टक नं० २० ४ १ मंग ६ का भंग १ भंग मका भंग 보 । सारे भंग ११ मे १८ तक के सारे भंगों में से | सारे भंग कोई १ भंग १ मंग १ भंग को० नं० २१ देखो को० नं० २१ देखी ६ १ दोनों सम्यक्त्व १ सम्यवश्व को० नं० २१ के समान दोनों में से कोई १ दोनों में कोई १ सम्यक्त्व जानना १ ले २ रे सुग्ग० में १ संजी जानना २ को० नं० २१ के समान पृथ्वीकायिक जीवों में 3 1 १ उपयोग १ भंग के भंग मे ने को० नं० २१ के समान ! पर्यावन जानना कोई १ उपयोग १ प्यान के भंग में ये कोई ? ध्यान १ मंग दोनों पदस्था ३७ ३७-३२ के भंग को नं० २९ के समान २४ २४-०२ के मंच को नं००१ के ममान ८ १ ध्यान १ भंग की० ० ० के समान | पर्याशवत् जानना पर्याय जानना १ अवस्था दोनों में से कोई १ अवस्था १ उपयोग पिवत् जानना सारे भंग को० नं० २१ देखो १ भंग को० नं० २१ देखो १ मंग को० नं० २१ देखो १ मंग को० नं० २१ देतो Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २९० ) प्रवमाहना - लडन्य पर्याप्तक जीन की जघन्य अवगाहना घनांगुल के प्रसंख्यातचे भाग प्रमाण जानना मौर उस्कृष्ट अवगाहना (उपबन्ध महीं हो सकी। मंत्र प्रकृतिश-१०-१०७ को० नं. २१ के समान जानना। अय प्रकृतियां को.न. १. में गे सागर भटाकर १० का उदय जानना। सत्य प्रकृति- ४५--१४३ कोर नं. २१ के समान जानना । संस्पा-घसंख्यात लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र-सर्वलोक जानना स्पर्शन-सर्वलोक मानना । कल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल बानना, एक जीव की मोक्षा शुद्रभय से असंख्यात लोक प्रमाण जानना। अन्तर--नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से पसंख्य पुद्गल (परावर्तनकान में यदि मीम नहीं जा हो तो दुबारा पृथ्वी काय जीव बनना पड़ता है)। जाति योनि)-७ लाख पृथ्वीकाय योनि जानना। फुल-२२ लाख कोटिफुल जानना। -----. . . mamt - ------ -------- - - neemmam Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं. २९ जल कायिक जीव में चौतीस स्थान दर्शन • स्थान | शानाम । पर्याप्त अपर्याप्त नाना बीद की अपेक्षा एक जाव कनाना एक जाब एक . समय में नाना जीवों की अपेक्षा १जायक नाना एक जीव क समय में एक समय में 1 गुग स्थान २ मिथ्यात्व, सासादन १ मिथ्यात्व जानता १जीवसमास को० नं. २१ देखो को० नं.१ के समान | १ समास को.नं. २१ को० नं. २१ के समान | ४ का मंग पर्याप्ति को नः २१ देखो ४ प्राण कोनं० २१ देखी । ५ सज्ञा को.नं.२१ देवा । ६ गति कोनं० २१ के समान मियान्व, सःसादन दोनों गुण दो में से कोई १ गुण्ड । १क समास १ समास १समास को न० २१ | २-१ के मंग को० नं. को० नं० २१ को नं. २१ - देखो । २१ के समान देखो देखो १ मंग १ मंग ४ का मंग को० नं० २१ के समान | ३ का भंग ३ का भंग १ भंग भंग । १भंग ४ का मंग नं. २१ के समान ३ का भंग ३ का भंग १ भंग १ भंग १ भंग को नं०२१ के समान | ४ का मंग४ का अंग १ले रे गुण में १ नियंच गति ने रेगुग में १ एकेन्द्रिय जाति १ले रे गुन्ग १ १जलकाम जानना , १ भंग १योग को नं० २१ के समान को नं. २१ को.नं. २१ ७ इन्द्रिय जाति को नं० २१ के समान १ले गृगा. में १निर्यच गति ले गगण में १ कन्द्रिय जाति रले गुण में जनकाय काय । योग को.नं० २१ देखो ले गुमा में मौका योग को.नं. १७को देसो Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० वेद १ कक्षाय १२ ज्ञान २३ को० नं० २१ देवो १३ संयम १४ दर्शन १५ लेश्य २ को० नं० २१ देखी शुभ १६ भव्यन्त्र चौंतीस स्थान दर्शन २ १७ सम्यक्व को० नं० २१ देखो १८ संजी १६ आहारक मिध्यान्य मासादन आहार अनाहार १ ३ २० उपयोग को० नं० २१ देखो १ ले गु० में १ नपुंसक वेद जानना २३ को० न० २१ के समान २ को० नं० १ के समान १ ले मुग्य= में १ असंयम १ले गुना में चीन ३ को० नं० २१ के समान 3 को० नं० २१ के समान हमें गुगा में 2. मिध्यात्व जानना मे १ श्री जा ना शुरू में १ जन बीन २१ के समान १ ( २२२ ) कोष्टक नं० २३ मारे मंग को० नं० २१ ₹ मंग को० नं० २१ देखो १ १ भंग [को० नं० २१ देखो १ले २२ गुण ० में १ नपुंसक वेद १ भंग को० नं० २९को० नं० २१ के समान देखो २३ " संग को० नं० २१ देखो १ ज्ञान को० नं० २१ को० नं० २१ के समान देखो १ १ २२ गुरण ० १ प्रसयम में १ले २रे गु० में z wycin १ लेण्या को० नं० २१| को० नं० २१ देखी देखो की 1 जसकायिक जीव में १२ गु० में १ यमंत्री जानना सारे मंग को० नं० २१ देखो १ भंग को० नं० २१ देखो १ २ १ भंग १ अवस्था 1 [को० नं० २१ देखो | को० नं० २१| को० नं० २१ के समान को० नं० १ देखो १ भंग देखो १ ܐ १ ग को० नं० २१ देखो १ भंग को० नं० २१ के समान को० नं० २१ देखो २ २१ के समान दोनों अवस्था १ उपयोग 3 १ भग को० नं०२१ को नं० २१ के समान नं. २१ त्री देखो १ भंग को नं. २१ दे १ ज्ञान को० नं० २१ देखो १ १ १ सेप्या को० नं० २ देखो १ अवस्था को० नं० २१ देखो १ सम्यक्त्व फो० नं० २१ देखो ₹ ? प्रस्था दं में कोई १ अवस्था १ उपयोग को० नं० २१ | देख Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ध्यान 5 को० नं० २१ देख २२ सय २३ भाव ३८ को० नं० २१ देखो २४ २५ २६ चौंतीस स्थान दर्शन २४ को० नं० २१ देखो २७ 15 * ३७ ३१ ३२ २ ३३ r ३ ८ को० नं० २१ के समान को० नं० २१ के समान - ૨૪ को० नं० २१ के समान ( २२३ ) कोष्टक नं० २६ स्पर्शन सर्वलोक जानना । काल माना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं दुबारा जलकाय जीव बनना ही पड़े । जाति (पोनि) – ७ लाख योनि जानना । कुल ७ लाख कोटिकुल जानना । १ भंग को० नं० २१ देखो सारे मंग को० नं० १ देख १ मंग को० नं० २१ देखो सत्य प्रकृतियां - १४५-१४३ को० नं० २१ के समान जानना । सख्या मसख्यान लोक प्रमास जानना । - क्षेत्र - सर्वलोक जानना ५ १ ध्यान को ० २१ देखी १ भंग को० नं० २१ देखो १ मंग को० नं० २१ देखा = को० नं० २१ के समान 20 को० नं० २१ के समान २४-२२ २४-२२ के भंग को० नं० १ के समान जसकायिक जीव में ६ मंग [० न० २१ देखो सारे भग को० नं० २१ देख सारे मंग को ० को० नं० २१ देखो माता लक्ष्य पर्यातक जीव की जघन्य अवगाहना घांगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण जन्नना और उत्कृष्ट अवगाहना (उपलब्ध न हो सकी। बंच प्रकृतियां - १०६-१०७ को० नं० २१ के समान जानना । उदय प्रकृतियां -७८ को० न० २८ के ७६ प्र० में से मातम १ घटाकर ७८ प्र०का उदय जानना । G १ ध्यान को० नं० २१ देखो १ मंग को० नं० २१ देखो, १ मंग को० न० २१ देखो एक जीव की अपेक्षा शुद्रभव से संख्यात लोक प्रमाण (काल तक जलकाय जीव ही बनता रहे) । एक जीब की अपेक्षा क्षुद्रभव से प्रसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न हो तो Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नम्बर ३० अग्निकायिक जीव में नामान्य माल. पर्याप्त प्रपन नाना जी : - पं. एक जीव के नाना एक जोत्र के नाना तमय में __समय में नाना जीवों अपेक्षा जीब के नाना समय में जीव के एक समय में १ १]ग थान जसमास 17. न २ में से कोई कोई १ समास राम १ मिध्यान्य मृगाः मियात्व गुरण स्थान समास । १ समास १ समास को नं.१ के रामान - दो में से कोई १ दो में म चोई१ ले गूगण में ।२ में से कोई समास २मंग एकेन्द्रिय मुदः समास जानना र बादर अपर्याप्त भंग को. नं० २१ के समान | ४ का भंग | ४ मंगवासोच्छवान घटाकर ( ३का भंग १ले गुरग. में ३का मंग को. नं०१७ देखो मा० न०२१ दक्षो १ मंग ३ का भंग १ मंग नं.२ देसो को. नं.:१के मान | ४ का भंग ! ३ का भंग | ४ का भंग श्वासोच्छवास घटाकर () ३ का भंग १ने गुगा० में का भंग को.नं. १७ १ मंग १ भंग १ भग ४ का भंग १ भंग ४मा मंग ४ का भंग ले सुरंग में ४ चा भंग को.नं. | के समान जानना ले गगा. में १निर्यच गति मांत ! निर्यच गति Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घातास स्थान दर्शन ( २२५ । कोष्टक नं०३० अग्निकायिक जीवों में . इन्द्रिय जाति ले गुण में रले गुगण में एकेन्द्रिय जाति १ एकेन्द्रिय जाति १ले गुग में ले गुग्ग. मे १ १ मम्निकाय जानना प्रग्निक य । योग १ मंग १योग __ का नं० २१ दवा १ले गुण- में मौत कायपोग १ और १-२ के भंगों में से | १२के भंगों में १० काययोग जानना कार्माण काययोग ये(२) कोई मंग से कोई योग को० नं. १७ में देखो १-२ के मंग जानना जानना को नं०१ देखो १० वेद १ले गूगा में १ने रण में १ नपुंसक वेद १ नमक वे ११ कयाय ३ सारे भंग भंग ।। सारेभंग भंग को० नं. २१ देखो ले गुग में 3-८-के भंग |--के अंगों न गरम में पर्याप्तबन जानता पतिवत् मानना २३ का भंगो .नं. १७ के को.नं.१ देखो में से कोई भंग २३ का भंग पावत् समान जानना १२ ज्ञान १ भंग १ले गुग में २ का भंग २ केभंग में से ले रण में २ का भंग पर्याप्नवत जानना २का भंग को नं. १७ के कोई जान का भंग पर्याभवन् । समान जानना १३ संगम ले गुग में ले गण - में १सयम १४ दर्शन ले गुग में नि गुगण में १ मचा दान १ वचन दर्शन १५ लण्या | सच्या १ भंग १लेल्या अशुभ लेश्या | ३ वा भंग को नं०१७के का भग के भंग में मे ले में का भंग | कोई एक लेश्या समान बानना | कोई लक्ष्या३ का भी गयान जानना' जानना १मवस्या अवस्था २ १अवस्या प्रवस्था भव्य, भष्य ने गुगा में भव्य, प्रभा में से दो में से कोई ले गुण में दो में से कोई दोनों में से कोई २का भंग गो.नं.७के ! कोई, अयस्था | २ का मग पवित् १ अवस्था मान जानना कुमति, कृति Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२६ ) कोष्टक नं. ३० चौतीस स्थान दर्शन अग्निकायिक जीवों में भग १७ सम्यक्त्व ने गुगाल में हैले मुग में १ मिथ्यात्व जानना १ मिथ्याल जानना १५ संजी पल गृगा. में ले गुण. में १प्रमंत्री प्रसंगी जानना १६ आहारक दोनों अबस्था पाहारक, मनाहारक १ले नुग में १ले गुग में दो में से कोई १पाहारक को.नं.२३ के समान । .वस्था २० उपयोग १ भंग 1 उपयोग | ले गुण. में १ उपयोग बोलन०२१ देखो। ले गूगण में ३ का रंग |३ के भंग में से। ३ का भंग पर्याप्तबन्३ का भंग ३ के मंगों में से ३ का भंग को०० १७ देखो कोई १ उपयोग, कोई १ उपयोग २१ ध्यान १ भंग १ध्यान मान को. नं० २१ देखो को नं० २१ के समान का भंग 5 में से कोई | ले गुगण में । एका मंग ८ में से कोई | १ ध्यान । का भंग पर्याप्तवत् । । ध्यान २२ मानव १ भंग ३७ । सारे अंग १ भंग को.नं.२१ देखो | नं०२१ के समान ११ से १५ तक के सारे भंगों में से| ले गए. में ११ से १८ तक के सारे भंगों में से , सारे भग कोई १ भंग ३७ का मंग को.नं-१० सारे मंग १भंग ! के समान जानना । २३ भाव २४ १ भंग १ भंग । २४ । १ भंग को.नं. २१ देखा ले गुणा में | १७ का मंग १७के भंग में से ले गुण में पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् बानमा २४ का भंग को नं०१७के | को.नं०१८ देखो| कोई १ मंग ! २४ का भंग पर्याप्तवत समान जानना जानना । जानना सारे भंग । २४ Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ । २२७ ) प्रवगाहना --लम्य पर्याप्तक जीव की अघन्य अवगाहना घनांगुल के असंख्यात. भाग प्रमाण जानना और उत्कृष्ट अवगाहना (उपनम्म न हो मकी)। अध प्रकृतिपा-१०५ बवयोग्य १२०० में से नरकढिक २, नरकायु १, देवद्विक २, देवायु १, मनुष्यधिक २, मनुष्यासु १, वैकिपिकनिक २, माहाद्विक २ तीर्थकर प्र०१, उच्चगोत्र १ से १५ घटाकर १.५ प्र. का बंध जानना । उदय प्रकृतियां-७७ को.न. २६ के ७८ में से उद्यो। १ घटाकर ७७प्र०का उदय जानना । सत्व प्रकृतियां-१४४ को० नं० २८ के १०५ में से नरकायु १ पटाकर १४४ का सत्व जानना । संख्या-पसंख्याल लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र सर्वनोक जानना। स्पर्शन–सर्व लोक जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव को अपेक्षा क्षुद्रभव से असंख्यात लोक प्रमारण काल तक अग्निफाय जीव ही बनता रहे। अन्तर--नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा शुदभव से असंख्यात पुदगल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न जा सके तो दुबारा अग्निकाय जीव बनना ही पड़ता है। जाति (योनि)-नाख योनि जानना । कुल-३ लाम्ब कोटिफुल जानना । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन लामा न्य झालाप स्थान १ मुग स्थान E २ जीवसमास को० नं० २१ देखो ३ पर्याप्ति को० नं० २१ देखो ४ प्रा #D को० नं० २१ देखो ५ सजा को० नं० २१ देखो ६ गत ७ इन्द्रिय जाति काय १ ३ ६ यांग को० नं० ११ देखो I ! की १ मिथ्यात्व जानना २ को० नं० ५१ के समान Y को० नं० २१ के समान पयांम ४ को० नं० २१ के समान ४ को० नं० २१ के समान १ ले # गुण १ तियं गति गुगा मे १ केन्द्रिय जाति १ले गुगा० वायुकाय १ १ ले गुण में १ प्र० का सांग ० म • एक जीव के नाना एक जीव के एक समय भ I समय में 1 ( २२८ ) कोष्टक नं० ३१ १ समास २ में से कोई १ समास जानना १ नग ४ का भग १ भंग ४ का भंग १ ग ४ का भंग १ ५. ? १ समास २ में से कोई १ समास जानना | १ भंग ४ का भंग १ मंग ४ का भंग १ भंग ४ का भंग १ १ अपर्याप्त | नाना जी की अपेक्षा वायुकायिक जीव में मिथ्यात्व गुण स्थान मूल गुण में को० नं० २० के समान ३ को० नं० ३० के समान ३ को० नं० ३० के समान " को० नं० ३० के समान शनि कृप में १ निच गति १ गुगा में १ एकेन्द्रिय जानि 5 १ल गुग्गा म १ वायुकाय जानना गाय के नाना गमय में 2 १ समास पर्याप्तवत् १ मंग ३ का भंग १ भंग ३ का भंग १ मंग ४ का मंग ६ एक जीव के एक समय में १ समास पर्या १ भंग ३ का भंग १ भंग ३ का मंग १ भंग ४ का भंग १ भग १ योग को नं० ३० के समान को० नं० ३० दलों को० नं० ३० देखो Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( २२६ । कोष्टक ०३१ वायुकायिक जीव में १. वेद १ले गुरष में १ नमक केद ११ कवाय २३ को० नं०२१ देखो सारे भंग '७-८-६ के भंग ले गुग में १ नसब वेद जानना | २३ । सारे भंग को नं. ६० के समान | पर्याप्तवत् जानना ' को न३. देखो १ मंग पर्याप्तवत् जानना १भंग ७-८-६ के भंगों में से कोई १ भंग ! जानना । १ जान दो में से कोई १ज्ञान १२ ज्ञान को नं०७ देखो १ मंग १ भंग २ का भंग को० नं० ३० देखो को.नं. ३. देखो २ का मंग पर्मासवत् जानना १३ संबम १४ दर्शन our १ले गुणों में १ भर्नयम १ले गुण में १प्रचक्षुदर्शन १ १ले गुरण में १ असंयम ले गुमा में १ यचक्षुदर्शन m १५ लेश्या अशुभलेश्या को न० ३० देखो को.नं. ३० देखो | ३ का मंग १ लण्या ३ का भंग ३ में से कोई, | लेश्या जानना। १ अवस्था १अवस्था । दोनों में से कोई १ दो में से कोई १ १ लेश्या ३ के अंग में से कोई १ लेश्या अवस्था पर्याभवत १६ भव्यत्व को० नं०३० देखो को.नं३० देखो को.नं. ३० देखो १अवस्था दो में से कोई १७ सम्यक्त्व १८ संजी ने मुरण में १ मिथ्याव जानना १ले गुग में १प्रसंजी जानना १ले गुण में १ मिथ्यात्व जानना १२ गुण में १ असंही M १६ पाहारक पाहारक, अनाहारक १ले गुरण में १ माहारक जानना - को० नं० ३० के समान दोनों पदस्था । १ अवस्था दो में से कोई २० उपयोग को.नं०२१ देखो। को.नं. ३० देखो ३ का भग १उपयोग ३ में से कोई | कोनं० ३० देखो १ उपयोग । १ भंग ३ का भंग १ उपयोग पर्यासवत् Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { २३० ) कोष्टक नं० ३१ 1 चौंतीस स्थान दर्शन वायुकायिक जीबी . ६ २१ ध्यान । ध्यान .१ याभवत् जाननामों में से [ १ गंग १ भंग को० नं० २१ देखो कोनं. ३० के समान ! की मंग मैं से कोई१को २१ देखो का भंग सारे मंग । २२ प्रास्रव ३८ सारे मंग । १ मंग । १११ से १८ तक के को नं. २१ देखो को. नं०२१ के समान |११ से १८ तक के सारे मंगों में से | कोन के समान भंग जानना सारे भंग | कोई भंग | २३ भाव २४ . भंग १भंग । २४ को. नं. २१ देखो को० नं० २० देखो १७ का भंग १७ के भंगों में से को.नं.३० देखो पर्याभवत् जानना। को नं०१८ देखो' १ भंग । " कोई : मंग २४ प्रवाहना- लण्य पर्याप्तक जीव की जपन्य पबगाहना धनांगुल के असंख्यातवा भाग प्रमाण जा ना मोर उत्कृष्ट मनगाहना (उच " हो सकी)1 बंध प्रतियां--१७५को.नं. ३० के समान जानना । २६ वय प्रकृतियां -७७ । सत्य प्रकृतियां-१४४ संख्या-असंख्यात लोक प्रमाण जानना 1. क्षेत्र-मर्दनाक जानना स्पशन -सर्वनोक दानना। कल - नाना जीवों की अपेक्षा मचाल जानना, एक जीव की अपेक्षा भद्रभव से समम्यात लोक प्रमाण कार तक वासुकाय जीव ही बनता रह। अन्तर नाना जीवों की अपेक्षा कोई पन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुदभव से असंस्थात पुदगल परावर्तन कान तक यदि मोमन ह' मोहीम तो दुवारा वायुकाय जीव बनना ही पड़ता है। जाति (योनि)-७ लाख योनि बानना। ३४ कुल- लास कोटिफुन जानना । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ३२ वनस्पतिकायिक जीव में 4.स्थान सामान्य पालाप पर्याप्त मपर्याप्त जीव के नाना १जीन के एक समय में | समय में | एक जीव के नाना एक जोर के एक समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा नाना जीवों की अपेक्षा | मिथ्यात्व गुण मिथ्यात्व सासादन - दोनों जानता २ में से कोई है ३ १ समास १मुरण स्थान २ मिथ्यात्व, सामादन] २जीव समास ४ को.नं.२१ देखो ३ पर्याप्ति ____ को० नं. २१ देखो ४ प्राण को० नं. ५संजा को ६ गति अंग नं० २१ १ समास १ समास १समास को.नं. २१ के समान दो में से कोई १ लादो में से कोई १ को. के समान को० नं। २१ देखो कोन २१ देखो | १ भंग भंग को० नं० २१ के समान । ४ का भंग कोः नं० २१ के समान | ३ का मंग का भंग मंग १ भंग । १ मंग को नं० २१ के समान ४ का भंग ४ का भंग को० नं० २१ के समान : ३ का भंग ३ का मंग भग १भंग को० नं.२१के समान ४ का मंग ४ का भंग को नं०२१ के समान | ४ का भंग ले गुगण. में ले रे गा में । १ तिथंच गति जानना १तिर्वच गति जानना : १ले गृण में १ले रे गुप में एकन्द्रिय जानि १एकेन्द्रिय जाति १ले गुरण में ले रे गुरण में । १ वनस्पति काय १ वनस्पति काय भंग , मंग १ने गुग में को.नं.१के समान प्रो० काययोग जानना को नं०१ देखो नो.नं.२१ देखो १ते गुण. में १ले २रे गुण में १ नपुसक वेद जानना नपुंसक वेद जानना । ७ इन्द्रिय जाति . ८ काव ६ योग ___को० नं० २१ देखो १. वेद Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ३२ वनस्पतिकायिक जीवों में ११पाय : को० नं० २१ देखो का० नं० २१ ममान सारे मंग ७.६-६ के भंग भं ग २३ मारे भंगों में में को० न०२१ के समान सारे मंग पर्याप्तवत् ज मंग । पर्याप्तवत् । कोई १ भंग १२ जान को० नं. २१ देखो , २ का मंत्र २ में से कोई १ मंग१जान २ का भंग २ में में कोई को० नं.१ के समान १३ संयम को नं. २. देवो इले नु० में १ अनयम जानना तिं गुग्ग० म १ भचक्षु दर्शन करे गुगा० मे. र प्रसयम जानना। लरे गुगा में - १६ दर्शन १५ वेश्या मशुभ लेश्या को नं० २१ के समान ३का मंग १लेश्या ३ में से कौर नं. १ के समान का मंग में न कोई १६ भव्यत्व को. नं०२१ देखो । १७ मम्मस्व कोन०२१ देखी 1सनी २ १ मवस्था । १ मवस्या २ १अवस्था १प्रवस्था को.नं. २१ के यमान ! भव्य प्रभव्य में | दो में से कोई 1 का नं० २१ के समान पाग्नवत् | पर्याववत ने कोई न जानना मम्यक्त्व पन्न गगण. मे को नं०१ के समान को न०२१ देखो | का नं० २१ याच जानना १२ मुग्भ में १से करे गुण- में १ अन मानना १ अपनी जानना दोनों अवस्या , अवन्या ले गृप में को नं० २१ के समान कोन०१दव. को० न० २१ १ भादार जानना | देखो १ भंग | {उपयोग १ भंग उपयोग को न.१ के समान ३ का भंग ३ में से कोई 1 | को० न० २१ के समान ३ का मंग में में कोई १ भंग १ ध्यान द १ भंग १ ध्यान को० नं० २१ के समान + का अंग = में से कोई का० नं० २१ के समान का मंग में में कोई १६ माहारक को.न. २१ देवा । २० उपयोग को० न० २१ देखा । २१ म्यान को न०२१ देखो Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०३२ वनस्पतिकायिक जीव में जनापतिकारिक जीवन में २२ प्रायव३८ को० नं०२१ देखो ३६ को० नं० २१ के समान को नं० २१ के समान १ सारे भंग को नं. १ देखो १भग को २०२१ देखो १मंग को नं. २१ । देखो १ मंग को न२१ २३ भाव को नं० २१ देखो सारे भंग १अंग | कोनं० २१ को नं. देखो १ मंगभंग को २०२१ को.नं. देखो को नं० २१ के समान को.नं.१ के समान १ | २४ " ur . अवगाहना-लब्ध्य पर्यातक जोव की जघन्य अत्रमाहना धनांगल के असंख्यातवें भाग से लेकर उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार (१०००) योजन तक (कमल की) जानना बंध प्रकृतिया-१०१-१०७ को नं० २१ के समान जानना । रय प्रकृत्तियां-७१ को न के समान जानना। सत्य प्रकृतियों -१४५-१४३ को नं. १ के समान जानना। सन्या-अनन्नानन्त जानना। क्षेत्र--सर्वोक जानना स्पर्शन - मनोर जानना ! काल-नाना जीवों की अपेक्षा मकान जानना । एक जीव मादिमिच्या दृष्टि की अपेक्षा क्षुद्रभव मे प्रख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न जाय तो निरन्तर बनस्पतिवाय ही बनता रहे)। अन्तर--नाना जीवों की अपेक्षा अन्नर नहीं । एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव मे प्रख्यात लोक प्रमाण काल तक मदि मोक्ष न जाय तो दुबाग ननस्पति होना ही परे। जाति (योनि)-१० लाद जानना । कुल-२५ लाख कोटिबुल जानना । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०३३ त्रसकायिक जीव में १० स्थान सामान्य मानाप पर्याप्त अपर्याप्त ।१जीब के नाना १ जीव के एक नाना जीवों की अपेक्षा समय में समय में ! एक जीव के नाना एक जीव के एक । समय में । समय में नाना जीवों की अपेक्षा १ गुण स्थान को.नं. १८ खो । १४ चारों गति में से १४नक के गुण का नं०२६ ममान अपने अपने स्थान को १ गुण अपन अपन स्थार के पूरण | मारे पुरण स्थान | को० न०२६। चारों गति में सारे गुण स्थान को नं० २६ को नं० २६ देखो' के समान । को न० २६ के समान ! को ०२६ । देखो । जाना देखो २और समाम १० । एकेन्द्रिय मूक्ष्म पर्याप्त ! मूक्ष्म अपर्याप्त " बादर पर्याप्त . . अपर्याप्त ये ४ वटाकर शेष (70) को.नं.१देखो । १ समास ३-४ में से कोई : जीवसमास जानमा १समास १ समास १ मास पर्या अवस्था १-४ में से कोई । १-४ में से । अपर्याप्त अवस्था -४ में से कोई १ मंजी पंचेन्द्रिय पयांत १ जीव समास | कोई १ जीव-! चारों गतियों में हरेक में | १ जीव समास अवस्था जानना | समास जानना। संडी पंचेन्द्रिय जानना चारों गनियों में होफ में अपर्याप्त अवस्था जानना को.नं. २६ देखो को० नं० २६ देखो ४ोष जीव ममास । नियंच गति में तिर्यच गति में जानना ४ शेष जीव-समास जानना को० नं०१७ देखो ! को.नं.१७ देखा १ भंग चा गनियों में हरेक में । ६-५ के अंगों में |६-५ के भगों चारों गतियों में हरेक में | ३ का भंग ६ का भंग को० नं०२६ से कोई १ भंग में से कोई १ का मंग को नं० २६ समान जानना भंग के समान जानना ५का भंग तिर्यच गति में लब्धि रूप ६ मोर द्वीन्द्रिय से प्रसंगी पंचेन्द्रिय तक मन पर्याप्त घटाकर ५ का भंग जानना को.२०१७ देखो पर्याप्ति को.नं. १ देखो | ३का भंग Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) कोष्टक न० ३३ चौतीस स्थान दर्शन त्रसकायिक जीवों में १०। ४ प्रारण सारं भंग १ भंग | सारे भंग १ भंग को.नं.१ देखो चारों गतियों में हरेक में चारों गलियों में- अपने अपने स्थान चारों गतियों में हरेक में पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् जानना १. का भंग को० नं. २६ के हरेक में के भंगों में से का भंग को० नं० २६ के के समान जाना ७ का भंग कोनं कोई १ भंग | समान जानना मप्य गति में । २६देखो | जानना मनुष्य गति में पर्याप्तवत् 1-1 के मंग को० नं. १८ ने अपने स्थान के | २ का भंग की नं. १ , सारे भंग टेस्रो निर्वच गति में तिर्थव गति में 1-८-७- के भंग ७-६-५-४के भंग को नं०१७ के समान । को० नं० १० देन्डो ५नेजा । सारे मंग ! ,मंग । ! मारे मंगभंग को००१ देशो। चारों गनियों में हरेक में चारों गतियोम-हरेक में सपने दापन स्थान कारों गतियो म हरेक में पर्याप्तवत् जानना र्याप्तवत् जानना का भंग को० नं० १६ से १९४ का भग को के भंवों में मे | ४ का भंग को० नं २९ के समान जानना नं० २६ देखो | काई भग | के समान जानना मनुष्य गति में अपने अपने स्थान के मनुष्य गनि में ३-२-१-१-० के भंग . सारे भंग जानना । (0) का भंग को नं.१८ को नं.१% के समान नियंच गति में निर्यच गति में ४ का मंगजीनिय मे ४का भन्न यमंत्री पंचेन्द्रिय कके जीवों पर्याप्तवत् भागना म४ का अंग जानना को.नं. १७के समान जानना ६ गनि १ गति पनि १ गति फोन: । देही चारों गति जानना म में कोई १ गति! काई गति चारों गतियां जानना में से कोई १ गति। कोई १ गति ७ इन्द्रिय मानि४ | १ जानिनानि जाति । अति कलिय जाति । च.में गनियों में हरेक में ४ पे में कोई में से कोई चागे रनियों में हरेक में पर्यावत जानता सब जानना घटाकर दोष () । मंत्री पंचेन्दिव जाति , जानि जानना | जाति जानना ।यंजी पंचेन्दिय शानि। को नं. ६ के समान पर्यापवत दानना तिन गति | निच गति में न जानि पयांमवत् जानना Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०३३ त्रसकायिक जीवों में १" ४वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रिय । प्रमंशी पचेन्द्रिय ये ४ जातियां जानना ८ काय चारों गतियों में हाक में ! पयांप्तवन् जानना १समाय जानना योग १५ योग १ भंग योग की नं० २६ दखो चारों गतियों में-हरेक में |-९-६-५-३०-२६-६-६-५-1--२.चारों गतियों में हरेक में १-२-१-२-१के भंगों १-२-१-२-1 के ६ का भंग को० नं० २६ | के अंगों में से कोई के मंगों में से १-२ के भंग को.नं.: में से कोई१ भंग भंगों में से कोई के समान जानना १भंग जानना | कोई १ योग २६ के समान जानना१योग जानना मनुष्य गति में जानना ! मनुष्य गति में। १-१-५-३-० के भंग ६-२.. भा को नं० को न०१८ के समान १८ के समान तिर्यग गति में तिथंच गति में २ का भंग को० नं०१७ १-२ के भंग १०वेद के समान जानना को.नं०१ देखो। १ भंग १वेद (1) नरक गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (नरक गति में पर्याप्तयत् जानना तिवत् जानना १ नपुंसक देद | मंगों में से कोई १ मंगों में से कोई 1 नपुसक वेद को न को.नं.१६ के समान | अंग जानना १ वेद जानना १६ के समान जानना | (२) तिर्यच गति में (२) लिपच गति में ३-१-३-१-३ के मंग को. ३-१-३ के भंग । नं. १७ के समान जानना को.नं. १७ के समान (३) मनुष्य गति में (३) मनुष्य गति में ३-१-१-० के भंग कोन ३-३-३-१-३-३-२-१-०के १८के समान जानना मंग कोनं०१८के समान (v) देवगति में जानना 1-1-1 के भंग को० नं. (४) टेवणति । १६ के समान जानना Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (२३७ ) कोष्टक नं० ३३ त्रसकायिक जीवों में १ मंग पर्याप्तवतू जानना २-१-१ के अंग को न०१८ (५) मोगभूमि में कसमान जानना '२-१ के भंग को० नं. (५) भोग भूमि में १७-१८ के समान २ का भंग को.नं. १७-१८ । के समान जानना ११ कषाय २५ । सारे मंग १ भंग २५ सारे भंग । को० नं०१ देखो (१) नरक गति में अपने अपने स्थान | अपने अपने । (३) नरक गति में । पर्याप्तवत् जाननाः | २३-१६ का भंग को० ० के सारे भंग जानना! स्थान के सारे २३-१६ के भंग को १६ के समान को नं०१८ | भंगों में से नं०१६ के समान (-) तिर्यच गति में कोई १ भंग | (२) निर्यच गति में । २५-२३-२५-२५-२१-१७ के को.नं.१८/२५-२३-२५-२५-२३-२५ भंग को० नं०१७ के समान देखो | के भंग को० नं०१. के जानना समान जानना (४) मनुष्य गति में (३) मनुष्य गति में २५-२१-१७-१३-११-१३-७-६ २५-१६-११-० के भंगको । ५.४-३-२-१-१-० के भंग को | नं०१८ के समान जानना | नं. १८ के समान जानना (४) देवगति में (२) देव गति में | २४-२४-१६-२३-१६-१६ २४.२०-२३-२९-१६ के अंग को के मंग को० नं०१६ के 'नं०१६ के समान जानना समान जानना ! (५) भोग भूमि में (५) भोगभूमी में | २४-२० के भंग को० नं०१७ २४.१६ के भंग को.न. १८ के समान जानना । १७-१८ के समान जानना | १२ज्ञान सारे भंग १ज्ञान । सारे मंग को००२६ देखो (१) नरक गति में | अपने अपने स्थान अपने अपने | कुमवधि जान, मनः पयंम पतिवव जानना ३-३ के भंग को नं. १६ के के सारे भंग | स्थान के सारे जान ये २ घटाकर (६)! समान जानना जानना भंगों में से । (१) नरकगति में (२) तिर्यंच गति में कोई जान | २-३ के भंग को.नं. २-३-३ के भंग को नं. १७ जानना १६ के समान के समान जानना १जान पर्याप्तवत पानना Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०३३ त्रसकायिक जीव में ३ F. (३) मनुष्य गति में (२) निर्यच गति में । ३-३-४-३-४१ के भंग को २ का भंग को० . १७ नं. १८ के समान जानना के समान जानना (४) देवगनि में (३) मनुष्य गति में । ३-३ के भंग को० नं०१६ २-३-३-१ के मंग को० . के समान जनना नं०१८ के समान जानना (५) भोग भूमि में (४) देवगति में ३-३ केभंग को नं०१७ २-२-३-३ के अंग को १८ के समान जानना नं०१६ के भगान जानना| (५) भोग भूमि में २-३ के भंग कोनं०१७ १८ के समान जानना १३ संयम सारे भंग । १ संयम | सारे भंग १ संयम को००२६ देखो । (१) नरक गति में-देव गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान प्रसंगम, सामाबिक, छेदो- पर्याप्तवत् जानना यांसवत् जानना १असंयम जानना | सारे मंग जानना के सार भंगों में | पस्थापना, यगाण्यात ये | को० न० 1-18 देसो से कोई ४ संयम जानना (२) नियंच गनिमें (१) नरक व देव गति के १-१ के भंग मो० नं . १वा भंग को नं0-1 देखो के समान जानना (३) मनुष्य मनि में (२) तिर्यच गनि में १-१-३-२-३-२-१-१ के मंग १ का भंग को.नं.१७ को नं०१६ यो के समान मानना (४) भोग भूमि में ३) मनुष्य गनि में १ का भग को नं. १७ १-२-१ के भंग को० नं. १८ के सपान जानना १८ के ममान जानना (४) भोर भूमि में १ का भग का नं०.. १% के समास जानना | . . Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३६ ) कोष्टक नं० ३३ चौतीस स्थान दर्शन त्रसकायिक जीवों में १४ दर्शन सारे भंग ।१ दर्शन सारे मंग । १दर्शन को० नं. २६ देखो ! नग्क मनि में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) नरक गति में पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् जानना २- के मंग कोनं १६ । धारे ए जाननः गे सभषों में ' के ग ०१६ के समान जानता ! मे कोई १ दर्शन के समान (२) तिर्यच गति में जानना () निर्यन गनि में । १-२- -३-३ के भंग को १-१-२ के भंग को नं. नं०१७ के समान जानना १७ के समान जानना । (३) मनुष्य गति में 1) मनुष्य मनि २-३-३-२-१के भंग को २-१-३-१ के मंग कोनं० नं०१८ के समान जानना १८ के समान जानना (४) देव गति में (४) देवगति में २-३ के भंग को नं. १ २-२-३-३ के भंग को समान जानना नं०१६ के समान जानना (५) भोग भूमि में । (५) भोग भूमि में २-३ के भंग को नं०१७ | २-३ के भंग कोनं०१७१८ के समान जानना १८ के समान जानना १ भंग १लेश्या १५ लेश्या १ मंग १लेश्या । पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तपत् जानना का २६ देखो नरक गति में अपने अपने स्थान के पपने अपने स्थान (0) नरफ गति में ३ का भंग को नं. १६ | भंगों में से कोई के अंगों में से कोई| ३ का मंग को नं०१६ के समान जानना १ भंग जानना !१ लेश्या जानना । के समान जानना (२) तिबंध गति में (२) तिर्यंच गति में ३-६-३-३ के भंग को० नं० ३-१ के भंग को. नं. १७ के समान जानना १७ वे समान जानना (३) भनुध्य पनि में (३) मनुष्य गति में ६-३-१- के भंग को. नं. ६-३-1 के अंग को० नं १८ के समान जानना । १. के समान जानना (४) देव गदि में (४) दंद गति में १-३-१-१ के भंग को.नं. ३-३-१-१ के भंग को १६के समान जानना नं० ११ के समान जानना Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( २४० ) कोष्टक नं. ३३ सकायिक जीवों में १५) भोगभूमि में (५) भोग भूमि में ३ का मंग को० नं०१७-१८ के का मंग को० नं०१७समान जानना १८ के समान जानना १६ भव्यत्व १ मंग १अवस्था भव्य, प्रभव्य चारों गतियों में हरेक में | अपने अपने स्थान| अपने अपने चारों गतियों में हरेक में | भंग १अवस्था २-१ के भय को न०१६ । के मंगों में से स्थान के मंगों। २-१ के भंग की० ० | पतिवत् जानना | पर्याशवत् ११ मा जानभा कोई १ भंग में से कोई 1 १६ से १६ के समान । जानना जानना अवस्था जानना जानना १७ सर करव मारे भंग १सम्यक्त्व J सारे मंग सम्यवस्व को० नं. २६ देहो। (1) नरक गति में अपने अपने स्थान अपने अपने | मिथ घटाकर (५) पर्याप्तवत् जानना | पर्याप्तवत् १-१-१-३.२ के भंग को.नं.। के सारे भंग स्थान के सारे | (१) नरक गति में जानना १६के ममान जानना भागों में से १-२ के भंग को.नं. (२) तिथंच गति में ! १६के समान जानना । १-१-१-२के भंग हो. नं० । सम्यक्त्व (२) नियंच गति में १७ के समान जानना १-१ के भंग को.नं. (३) मनुष्य गति में । १७के समान जानना १-१-१-६-३-२-३-२-१ के भंग । (३) मनुष्य गति में को० नं १८ के समान जानना १-१-२.५-2 के भंग (6) देवगति में को.नं.१८ के ममान | १-१-१-२-३-२ के भंग को. जानना मं० १९ के ममान जानना (४) देवगति में (५) भोगभूमि में १-१-३ के भंग को १-१-१-३ के भंग को० नं. नं०१६ के समान जानना १७-१८ के समान जाना (५) भोगभूमि में -१-२ के भंग की नं. १७-१% के ममन जानना १ भंग १ अवस्या । १ अवस्था संज्ञो, असंज्ञी (१) नरक न देव गति में । अपने अपने स्थान | अपने अपने । (१) नरक व देवगति में | पर्याप्तव जानना पर्याप्तवत् जनना Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं० ३३ त्रसकायिक जीवों में का भंग को.नं. १६- के भंगों में से कोई स्थान के भगों में|का भंग को १६१६ के समान जानना १ भंग जानना से कोई १ अवस्था १६ के ममान (२) नियंच गति में जानना (२) नियंर गनि १-१ के भग को० नं०१७ १.१-१-१-१के भंग को के समान जानना २०१७ के ममान जानना (३) मनुष्य पनि (३) मनुष्य गति मे १-० के भंग को मं०१८ १-० के भंग को नं. के समान जानना १- के समान जानना (४) भोग मि में (१मोग भूमि में का भंग को० न०१५ ' का ग को. . १८ के समान जानना १ के समान जानना १६ पाहारक १ मंग १प्रवःथा • माहारक, मनाहारक (१) नव व देवगति में दोनों का भंग | दो में ग काई (१) नरक व देवगति में दोनों का भंग दोनों में से कोई १ का भंग कीनं०१५-१६ अवस्था जान्ना १- भंग कोनं. १ जानना । १ प्रवन्या के ममान जानना १६ के ममान । (२) तिर्यच गति में (निर्दय गति में १ का भंग को नं०१७ के १.१ के भंग का नं०१५ ममान जानना के समान जानना (1) मनुष्य पनि में (3) मनप्य पनि में १-१-१ के भंग को नं. १.१.१-१-१ के भंग को के समन जानन. नं.- के मभान जानना (४) भाग भू म ४ भोग भूमि में-नियंच । २ का भंग का नं० १७. मोर मनु य गति में हरेक में, १८ के सभान जानना | १-१ के. भंग कोन०१७ १८ के समन जानना २. उपयोग १२ गारे भंग 1 उपयोग । १० सारे भंग १ उपयोग को० नं. २६ देखो | (१. नरक गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान कुपवधि ज्ञान, मनः पर्यय पर्याप्तवन जानना पर्याप्तवत् जानना ५-६-६ के मंग कोनं० १६. सारे भंग जानना के भगों में से कोई शान ये २ पटाकर (१०) के ममान १ उपयोग जामना (1) नरक गति में १२ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ३३ सकायिक जीवों में ६ ४६ का भंग को० नं. १. के समान जानना | (२)तियंच गति में | ३-४-४-३-४-४ के मंग को नं.१७ के समान : (२) तिर्यच गति में :-८-५-६-१ के ग को नंग १७के समान जानना (३) मनुष्य गति में ५-६-६-७-६-३-२ के भंन को० न०१८ के समान जानना (देवगन में ५-६-६ के भंग कोनं०१६ के ममान बामना (५) भोग भूमि में 1-६- के भंग को नं०१७१८ में समान जानना । (२) मनुष्य पनि में ' ४-:-६-२ केभंग को । नं.१८ के समान जानना 116) देवगति में । ४-४-६-६ के भंग कोः । नं०१६ के समान जानना (1) भोग भूमि में ४-६ के भंग कोनं०१७.' १८ के समान जानना २१ ध्यान सारे भंग १ ध्यान । सारे भंग १ ध्यान नोनं०१८ देखो (1) नरक गनि में अपने अपने स्थान के अपने प्रश्न स्थान १०नं० २६ देखो पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् जानना 1-8-10 के भंग को नं० | सारे मंग जानना | के सारे भंगों में (१)नरक गति १६ समान जानना | में कोई १ - के भंग को.नं. १६ | (२) निर्यच गति में ध्यान जानना | के ममान जानना -६-१०-११ के भंग को. (२) नियंच गति में । नं०१७ के समान जानना का भंग.को. नं०१७। । (३) मनुष्य गति में के समान जानना । Ex -६-१-११-3-४.१-१-१-१ (३) मनुष्य गति में । के मंग को०१८ के समान ८-६--१ के मंग को००। जानना १% के समान जानना (४) देवगति में (४) देव पति ५-१-१८ के भग को० नं. ८-८ के भंग को. नं. Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०३३ सकायिक जीवों में १६ के समान जानना १६ के भमान जानना । (५) भोगभूमि में (५) भोग भूमि में --१-१० के मंग को० नं० ८-1 के अंग को० नं० । १७-१८ के समान जानना १७-१८ के गमान जानना २२ प्रास्रव ५. ' ! सारे भंग : मन सारे भंग भंग को. नं. २६ देखो का० न० २६ ६सो अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान को.नं.२६ देखा पर्याप्तबत् जानना पर्याप्तवत् जनना (१) नरक गति में मार भंग जानना | के मारे भगा में (१) नरक गति में ४६-४४.४० भंग कोन कोनं०१८ दलो में काई भंग ४-2 के भंग को नं. १५ समान : जानना १६ के समान (२) तिर्वच गति में को 7- (दिप मलि में ३८-३९.४०-४३-५१-४६-४२ ३८-३६-४०-४३.४४.३३ ३७ के भंग को नं. १७ के ३४-३५-३८-३६ में मंग के समान जाननना को नं०१५ के समान (३) मनुष्य गनि में जानना ५१-४६-४.-३७-२२-२०-२२| । (३) मनुष्य पनि में १६-१५-१-१-१२-१.... ९-५-३-० हे मंग को० न०। भग का न. १: देखो १. के समान (४) देवाति में (४) दर गति में ५०-४-८५-४९-५४.४:४६ -३३ के भंग को नं के भंग का नं० १६ १६ के समान जागना गमान जानना (५. भोग भूमि में (५) भोग भूमि में 62-12-2 के भंग की। .....५ ८१ के भंग करे । - नं. १3-1 नमान । १७-१८ के नमान सारे भंग मंग सारे भंग । १ भंग __ को.नं० २६ देखो (१)गरक गति में अपने अपने स्थान के अपने मनात कोनं. २६ देवो प र्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत जानना २६-२४-२५-२८-५७ के भंग | सारे मंग जानना के अंगों मे गे कोई। (1) नरक गति में ! । को० नं. १६ के समान जानना का नं०१- देखो १ ग जानना | २५-२३ के मंग को० नं |१६के समान Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २४ ) कोष्टक नं०३३ चौंतीस स्थान दर्शन त्रसकायिक जीवों में । । । (२) निर्यच ननि में २४-२५-२७-११-२६-३०३२-२४ के भंग को 10. १७ के समान जानना (३) मनुष्य यति में २१-२६-३०-३३-३०-३१२७-३१-२६-२६-२८-२७. २६-२५-२४-२३-२-२१२०-१४-१३ के मग को.नं. १% के समान । जानना | (४) देव गति में २५-२३-२४-२६-२७-२५ 81-72-02-२६०५के भंग को.नं.१६ के समान जानना (५) भोग भूमि २७-२५-२६-२६ के भंग को० न०१७-१८ के। समान हरेक में जानना (२) निर्यव गति में २४-२५-२७-२७-२२-२३२५-२५- का भंग को नं. ।१" के समान जानना (३) मनुष्य गति में २०-२८-३०-२१-१४ के भंग की. नं०१८ के समान जानना (स) देव गति २६-२४-२६-२४-२८-२३२१-२६-२६ के अंग को १६ के समान बानना (५) भोग भूमि में २४ २२-२५ के भंग को० नं०१७-१८ के समान हरेक में जानता Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २८ RE ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ( २४५ ) गाना — लब्ध्य पर्यामिक जीव को जघन्य भवगाहना धनांगुल के असंख्यातवें भाग से लेकर उत्कृष्ट प्रवगाहना एक हजार (१०००) योजन तक महामत्स्य जानना । यं प्रकृतियां - १२० भंगों का विवरण को० नं० २२ से २६ में देखो । उदय प्रकृतियां - ११७ उदययोग १२२ प्र० में से एकेन्द्रिय जाति १ त १ साधारण १ सूक्ष्म १ स्थावर १, ५ घटाकर ११७ प्र० का स्वयं जानना । तर प्रकुमियां- १४८ को० नं० २६ समान जानना । संख्या - प्रसंस्थान लोक प्रमाण जानना । क्षेत्र – सनात्री की अपेक्षा लोक के प्रसंख्यातवें भाग प्रमाण जानना । केवलसमुदयात प्रतर श्रवस्था की अपेक्षा असंख्यात लोक प्रमाण जानना । 1 केवलसमुद्घात लोकपूर्ण अवस्था की अपेक्षा सर्वलोक जानना । स्पर्शन- सर्वलोक को० नं० २६ के समान जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से लेकर दो हजार सागर और पृथक्त्व पूर्व कोटि काल तक जानता । अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से लेकर श्रसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोश नहीं हो तो दुबारा स्थावरकाय से त्रसकाय में जन्म लेना पड़े । जाति (योनि) -- ३२ लाख जानना । (द्वीन्द्रिय २ लाख, त्रीन्द्रिय २ लाख, चारइन्द्रिय २ लाख, पंचेन्द्रिय तिर्यच ४ लाख, नारको ४ लाख, देव ४ लाख मनुष्य १४ लाख, ये ३२ लाख जानना ) | कुल -- १३२|| लाख कोटिकुल जानना, (होन्द्रिय ७, श्रीन्द्रिय ८, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय तियंच ४२ ।। नारकी २५, देव २६, मनुष्य १४ लाख कोटिकुल ये सब १३२|| लाख कोटिकुल जानना) Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन सामान्य आलाप थान १ १ गुण स्थान २ जीवसमास ३ पर्याप्त ४ प्राण ५ संज्ञा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति ८ काय २ योग १० वेद १२ कवाय १२ ज्ञान १३ संयम १४ दर्शन १५ श्वा १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व १= संजी १६ आहारक २० उपयोग २१ ध्यान २२ मात्रव २३ भाव २ 。 ० ० 0 D 0 O ه ܕ ० ! 4 प्रतीत गुण स्थान जीव समास पर्याप्त נן " ● प्रारण संज्ञा नाना जीवों की अपेक्षा PI अगति प्रतीत इन्द्रिय प्रकाय प्रयोग प्रगत वेद ० अपाय १ | केवल ज्ञान जाननर o | असंयम, संयम मंत्रम, नंयम ये तीनों से रहिन केवल दर्शन जानना नव्या 0 अनुभय १ क्षायिक सम्यक्त्व जानना O पर्याप्त ( २४६ ) कोष्टक नं० ३४ श्रनुभय | अनुम २ दर्शनोपयोग गानोपयोग दोनों युगपत् ज्ञानना | अतीत ध्यान अनास्रव साविक ज्ञान, शायिक दर्शन, क्षायिक यीयं जीवत्व ! | ये ५ जानना P एक जीव की अपेक्षा नाना समय में ४ २ युगपन् こ 2 ५. भाव जानना अकाय (सिद्ध जीव) में पर्या एक जीव की अपेक्षा एक समय में ० O २ युगपत ५. भाव I ६-७-८ Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४७ ) मूचना-कोई माचार्य क्षायिक भाव , जीवस्व १,ये १. मानते हैं। प्रवमाहना-सिद्धों की अपेक्षा ३॥ हाथ से ५२५ घनुष तक जानना 1 बंध प्रतियां - प्रबंध जानना उदय प्रकृतियो-अनुदय जानना। सत्व प्रकृतिया-प्रमत्त जानना । संख्या-मनन्त जानना। क्षेत्र-४५ लाच मोजर (अडिच द्वीप प्रमारण) सिद्ध शिला जानना । स्पर्शन--सिद्ध भगवान स्थित रहते हैं। काल-सर्वकाल जानना। अन्तर - अन्तर नहीं। जाति (योनि)-जाति नहीं। कुल-कुल नहीं। Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोटक नम्बर ३५ _ । २४८ ) कोष्टक नम्बर ३५ सत्यमनोयोग या अनुमय मनोयोग में सत्यमनोयोग या अनुभय मनोयोग में | स्थान | सामान्य पालाप पर्याप्त अपर्याप्त माना जोबों की अपेक्षा एक जीव के माना समय में । एक जीव के एक समय में १गुण स्थान १३ १ से १३ तक के मुभा० सूचना। यहां पर अपयत भवस्था नहीं होती है। २ जीव समास ३ पर्याप्ति कोनं.१ देखो माप्ति ४ प्रारा १० को० नं. १ देखो । सारे गुमा स्थान १गरण चारों गतियों में अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के एक से १३ तक के गुण स्थान अपन अपने स्थान सारे गुण गुग में से कोई के समान जानना को नं.२६ देखो गुण. १ संजीपंचन्द्रिय पर्याप्त चारों गतियों में हरेक में - जानना को न००६ देवो १ भंग १ मंग चारों गनियों में हरेक में ६ का मंग जानना का मंग जानता ६ का मंग को न० २६ के ममान जानना १ मंग भंग चारों गतियों में, हरेक में ' अपने अपने स्थान के प्रान अपने स्थान के १० का मंग की.नं.१६ से १६ देखो एक एक भंग जानना।एक एक अंग जानना सारे भंग अंग (2) नरक-निवंच-देवगति में हरेक में अपने अपने धान के | अपने अपने स्थान के ४ का मंग को० नं.१५-19-१६ दंग्यो । नारे भंग जानना | एक एक भंग जानना (२) मनुष्य गति में ४-३-२-१-१-- मंग को. नं.१के अग्न प्रारम्थान के समान जानना । गारे भंगों में से कोई (२) भोगभुमि में १ भंग जाना | ४ का भंग की नं०१७-केमभान जानना पनि चारों गनियां जानना चागे में कोई। चारों में से कोई : गनि ४ ५ संजा को० नं०१ देखो ६गति १गति को० नं. १ देखा गति Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१५ सत्यमनोयोग या अनुभ यमनोयोग में ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति ८ काय चारों मनियों में हरंक में १ पंचेन्द्रिय जाति 40 नं. १२६ दलो चारों गतियों में हरेक में १ सकाय जानना को० नं० १६ से १९ देखो त्रसकाय है योग सत्यमनोयोग या अनुभव मनोयोग जानना ! दो में से कोई योग !दो में से होई१ योग चारों गतियों में हरेक में दोनों भामों में मे कोई १ योन जिसका विचार करना हो वह एक यांच जानना . नपुसक-स्त्री-पुरुष बेद चागें गलियों में हरेक में फो.नं. २६ के समान भंग जानना १ मंग | अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के | भंगों में मे कोई भंग | भंगों में से कोई १ वेद २५ ११ कषाय को नं०१ देखो चारों गतियों में हरेक में को० नं.६ के रामान भंग जानना नरेभंग अपने अपने स्थान के मारे भंग जानना कॉ० नं. १८ देखो १ भंग अपने अपने स्थान के | मारे भंगों में से कोई भंग जानना को.नं. १- देखो । । १२ज्ञान का नं०२६ देखा । चारों गनियों में रंक में कान०२६क समान भंग जानना १३ संयम को० २६ देखो मारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना मारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना चागतियों में हरेक में कोन २६ के समान भंग जानना अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई जान संयम । अपने अपने स्थान के | भंगों में से कोई ! संयम १दर्शन अपने भपने स्थान के मंगों में से कोई १ दर्शन १६ दर्शन को.नं. २६ देखो चारों गतिबों में हरेक में को० नं०.२६ के समान भंग जानना मारे भंग अपने अपने स्थान के सारे मंग जानता Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५० ) कोष्टक नं०३५ चौतीस स्थान दर्शन सत्य मनोयोग या अनुभय मनोयोग में ६-७-६ १५ लेश्या को० नं० २६ देखो चार्ग गनियों में हरे में का० न०२६ के समान भंग जानना १ भंग मांग RT भगों में से कोई एक भंग १६ भव्यत्व भव्य, प्रभव्य चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानता भंग अपने अपन स्थान के मगों में से कोई १ भंग | जानना १७ सम्वत्व का० नं०२६ देखो। चागें गतिवों में हरेक में कोल नं.२६ के नमान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के |सार भंग जानना १८ संगी चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के ममान भग जानना १ मंग अपने अपन स्थान के भंगों में से कोई भंग १,लेश्या अपने अपने स्थान के मगों में ग काई १: लल्या जादना १अवस्था अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई अवस्था जानना सम्यक्त्व अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई सम्यक्त्व जानना प्रवस्था अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई अवस्था जानना १अवस्था अपने अग्ने स्थान के १ अबस्था जानन १ उपयोग अपने अपने स्थान के सारे भंगों में गे कोई उपयोग जानना १ध्यान अपने अपने स्थान के मंगों में से कोई ध्यान जानना १ भंग अपने अपने स्दान के २९ पाहारक माहारक १ भंग अपने अपने स्थान के १ अयस्था जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना चारों पतियों में हरेक में को० नं.२६ के समान भंग जानना १२ चारों गतियों में हरेक में को० न०२६ के समान भंग जानना २० उपयोग की नं० २६ देखो १५ १५ चारों गतियों में हरेक में को० नं. २६ के समान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना २१ ध्यान को २०१८के १६ में से घ्युपरत क्रियानिनि नी १ घराकर (१५.) २२ पासव मिथ्यात्व ५ अविरत १२ सारे भंग अपने अपने मान के (१) नरक गति में Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २ (हिंसक ६ + हिंस ६) कषाय २५, सतगमनोयोग का अनुभवमनोयोग में से कोई एक योग जिसका विचार करना हो जो एक योग जानना ये सब ४३ जानना ( २५१ ) कोष्टक नं० ३५ ४१-३६-३२ के मंग १ मिथ्यात्व गुण० में ४१ का भंग - सामान्य के ४३ के भंग में से स्त्रीपुरुष वेद से २ घटाकर ४१ का अंग जानना २२ सासादन] गुरण में ३६ का भंग - ऊपर के ४१ के मंग में ने मिथ्यात्व ५ घटाकर ३६ का भंग जानना ३ ४ थे गुण स्थान में ३२ का मंग पर के ३६ के भंग में से अनंनानुबंधी काय ४ घटाकर का भगजानना (२) नियंच गति में – ४३३ १८ २८ ४२ ३७-३३ के भंग १ ले गुगा स्थान में ४३ का भग- सामान्य के ४३ के भंग हो जानना मेरे गुगा में | ३८ का भग-ऊपर के ४३ के अंगों में से मिथ्यात्व ५. घटाकर ३ का भंग जानना इरे ४थे गुण स्थान में ३४ का भंग - कार के मंगों में मेघना बंधी काय ४ पटाकर ३४ का भंग जानना पूर्व गुम्प स्थान के २६ का भंग ऊपर के ३८ के मंग में से अप्रत्या हिंसा ? ये ५ घटाकर २६ स्थान कपाय ४ भंग का जानना (२) भोगभूमि में ४२ का भंग — ऊपर के ४३ वेद १ घटाकर ४२ का भंग जानना २ गुगा स्थान में गुण स्थान में भंगों में से नपुंसक सारे मंग जानना को० नं० १५ दे सत्य मनोयोग या अनुभव मनोयोग में ६-७-६ 보 सारे अंगों में से कोई १ भंग जानना को० नं० १८ देखो Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन २ ३ ( २५२ ) कोष्टक नम्बर ३५ ३७ का भंग-उपर के के भंग में से नपुंसक वेद १ घटाकर ३७ का भंग जानना ३४ गुण स्थान में ३३ का भंग-ऊपर के ३४ भंग में से नपुंसक वेद २ घटाकर ३३ का भंग जानना (३) मनुष्य--२४-१४ १२-१४-८-७-६-५-४-३-२-२-१-४२-३० ३३ के मंग १ ले गुण स्थान में | ४३ का मंग सामान्य १४३ के मंग ही जानना में मिथ्यात्व २ गु ३ का भग-ऊपर के ४३ के भंग में ५ घटाकर ३० का भंग जानना ४ये बुरग स्थान में ३४ का भंग-ऊपर के ३० के भंग में अनंता | बंधी कषाय ४ घटाकर ३४ का भंग जानना ५ गुरण मं ६ का मंग ऊपर के ३४ के भंग में से अप्रत्या ख्वान कषाय ४ और असहिसा प्रविरत १ ये घटाकर २६ का भंग जानता ६ वे मुग्म स्थान में - सौदारिककाय की अपेक्षा १४ का मंग-ऊपर के २६ के भंग में मे प्रत्यास्यान कषाय ४, अविरत ११, (हिसक का इन्द्रिय | विषय ६--स्थावर्हिस्य ५ ये ११) ये १५ घटाकर | T १४ का मंग जानना ६ वे योग की अपेक्षा 10 में माहारककाय गुण० १२ का भंग-ऊपर के १४ के अंगों में से नपुंसक वेद १ स्त्रीवेद १ मे २ घटाकर १२ का भंग जानना सत्यमनोयोग या अनुभव मनोयोग में ६-७-८ ५ Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ३५ सत्य मनोयोग या अनुभय मनोयोग में ७ वे मुरण स्थान में १४ का मंग-ऊपर के ६वे गुरा० के १४ के भंग हो जानना ले गुण स्थान में ८ का भंग-ऊपर के १४ के भंग में से हास्यादि ६ नोकषाय घटाकर - का भंग जानना बे मुग० के २रे भाग में ६ का मंग कार के. के भंग में से नपुसक वेद घटाकर ७ का भंग जानना हवे गुरण के रे भाग में ७ का भंग-ऊपर के - के भंगों में से स्त्रीवेद घटाकर ७ का मंग। जानना वे मुग के ४थे भाग में ५ काभंग-ऊपर के ६ के भंग में से पुरुषवेद घटाकर ५ का भंग जानना हवे गुग के ५वे भाग में ४ का भंग-ऊपर के ५ के मंग में से कोषकषाय घटाकर ४ का भंग । जानना •वे मुरण के दे भाग में ३ का मंग-कसर के ४ के भंग में से मानकषाय घटाकर ३ का मंग जानना धे गुरण के वे भाग में २ का भंग-ऊपर के ३ के मंग में से मायाकषाय घटाकर २का भंग । जानना १. मुशा में २ का मंग-परकेके भंग में से वेद ३, क्रोष-मान-मायाकषाय ३ ये ६ घटाकर २का ) भंग जानना ११-११-१३वे गुरण स्थान में १का मंग ऊपर के दो के भंग में से लोमकपाय १ घटाकर १ का भंग अर्थात् सत्य मनोयोग या अनुमय मनोयोग इन दोनों में से कोई योग Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २१ भाव २ ५३ को० नं० १८ देखी ( २५४ ) कोष्टक नं० ३५ ३ जिसका विचार करना हा वो एक योग जानना | २ भोभूमि में १ से ४ गुण स्थानों में ४२-३७-३३ के भंग-ऊपर के कर्मभूमि में ४३-३० -२४ के हरेक भंग में से एक नपुंसक वेद घटाकर ४२-३७ ३३ के मंत्र जानना । (४) देवगति में-४२-६७-३३-४१-३६-३२ के भंग श्रवनत्रिक देवों से १६वे स्वर्ग तक देवों में १ल गुग स्थान में ४२ का भग-मान्य के ४२ के भंग में से नपुंसक वेद १ घटाकर शेष ४२ का मंत्र जानना २ रे साम्रादन गुण • में ३७ का भंग-ऊपर के ४२ के मंग में से मिध्यात्व ५ घटाकर ३७ का भंग जानना ये गुगा स्थान में १३ का भंग-ऊपर के ३० के भंग में से अनंतानुबंधी काय ४ घटाकर ३० का भंग जानना २. नवरों वेयक के देवों में १ से ४ गुरम स्थान में ४१-१६-३२ के मंग- ऊपर के ४२-३७-३३ के हरेक भाग में से एक एक स्त्री वेद घटाकर प ४१-३६-३२ के भंग जानना ६. नव अनुदिस और पंचानुनर के देवों में(यहां एक ४ या गुगा ही होता है) ४ गुगा स्थान में ३२ का भंगार के ३२ के भंग में से एक स्त्री वेद घटाकर ३२ का भंग जानना ५.३ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सार मंग जानना को० नं० १८ देखो सत्य मनोयोग या अनुभव मनोयोग में ५ १ भंग अपने अपने स्थान के सारे अंगों में कोई एक भंग जानना 9-19-5 Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५५ ) अवगाहना-संख्यान धनांगुल प्रथवा स्वयं मूरमण के महामच्छ की अपेक्षा धनामुल के असंख्यातवें भाग से लेकर एक हजार (१०००) योजन तक जानना। बघ प्रकृतियां-को० नं० २६ के समान जानना । उदय प्रकृतियां-१०९ उदययोग्य १२२ में से एकेन्द्रियादि जाति ४ गत्वानुपूर्वी ४, पातप १, साधारर्स १, मूक्ष्म १, स्थावर १, अपर्याय १,ये १३ घटाकर १०६ प्र का उदय जानना । साद प्रकृति को नं०२६ समान जानना । संख्या- अगंख्यान जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवा भाग प्रमारण जानना। स्पर्शन -लोक का राज्यातवां भाग, दाज गाया, लोग गो . २६ के समान जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जोच की अपेक्षा एक समय में अंतर्मुहूर्त तक क्षपक श्रेणी की अपेक्षा जानना। पान्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा अंतर्मुहूनं असंख्यात गुद्गल परावर्तन कात तक प्रसंज्ञो पर्यायों में हो जन्म लेते रहें बाद में जरूर संज्ञी हो। जाति (योनि)-२६ लाख भानना (नरक के ४ लान, देवों के ४ लाड, पंचेन्द्रिव तियंच के ४ लाम्ब, मनुष्य के १४ लाख ये २६ लाख जानना। कुल- १०८॥ लाख कोटिकुल जानना (नरक के २५, देवों के २६, पंचेन्दिय तिर्यंच के ४३॥ मनुष्य के १४ लाख कोटिकुल ये १८ लाख कोटिकुल जानना। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थान सामान्य मालाप १ १ गुग्गु स्थान १२ १ से १२ तक के गुर स्थान २ जीव समा चौंतीस स्थान दर्शन एकेन्द्र सूक्ष्मपर्याप्त ३ पर्या ४ प्राण ५. संजा ६ को० नं० १ देखो १० को० नं० १ देखो ४ को० नं० १ देखो ६ गति ७ इन्द्रिय जाति को० नं० १ देखो १ पंचेन्द्रिय जाति | पर्यास नाना जीवों की अपेक्षा ३ १२ चारों गति में १ से १२ तक के अपने अपने स्थान के समान गु० जानता को० नं० २६ देखो ( २५६ } कोष्टक नं० ३६ १ चारों गतियों में हरेक में १ मुंजीचे पर्याप्त अवस्था जानना चारों गतियों में हरेक में ६ का मंग को० नं० २६ देख と चारों गनियां जानना L १ चारों गतियों में हरेक में १ मंत्री पंचेन्द्रिय जाति १० चारों गतियों में हरेक में १० का भंग को० नं० २६ देखो Y चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना एक जीव के नाना समय में i असत्य मनोयोग या उभय मनोयोग में अपर्याप्त सारे गुण स्थान प मारे गुण जानना १ मंग ६ का भंग जानना १ भंग अपने अपने स्थान के एक एक भंग जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे नंग जानना एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान १२ में से अपने अपने स्थानों में से कोई १ गु० जानना १ १ भंग ६ का भंग १ भंग अपने अपने स्थान के एक एक भंग जानना १ मंग अपने अपने स्थान के सारे मंगों में से कोई १ भंग जानना १ गति चारों में से कोई १ गनि चारों में से कोई १ गनि १ गति I १ ६-७-८ सूचना – यहां पर अपर्याप्त नहीं होता है । Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०३६ असत्य मनोयोग या उभय मनोयोग 40 ६-७-८ काय त्रसकाय चारों गतियों में हरेक में १ त्रसकाय जानना योग असत्य मनोयोग या उभय मनोयांग जानना चारों गतियों में हरेक में दोनों योगों में से कोई १ योग जिसका विचार करना हो दो योग जानना दोनों में मे कोई १ वांग ; दोनों में से कोई १ योग जानना १० बंद को० नं. १ देखो चारों गत्तियों में हरेक में को००२६ के समान भंग जानना । ११ वपाय को००१ देखो २१ चागेंगतियों में हरेक में कोनं० २६ के ममान जानना १ भंग अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई भंग मारे भंग प्रगनं अपने स्थान के सारे भंग जानना कोर नं०१८ देखो सारे भंग अपने अपने स्थान के मारे भंग जानना अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ वेद जानना १ मंग अपने अपने स्थान के सारे भगों में से कोई १ भंग जानना १२ज्ञान केवल ज्ञान घटाकर शेष ७ ज्ञान जानना अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई.१ जा (१) नरक, नियंत्र, देवगति में ३३ के भंग का नं. १६-१७-१६ के समान जानना (२) मनुप्च गति में 3-3-1-1-४ के भंग को० नं० १% के समान जानना (३) भोगभूमि में ३-२ केभंग का नं.१७-१८ देखो १३ संयम को० नं० २६ देखो सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना चारों मतियों में हरेक में को.नं० २६ के समान भंग जानना । १ संयम अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई संयम जानना Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १४ त विल दर्शन घटाकर ३ दर्शन जानना १५ म्या कौ० नं० २६ देखो १६ भव्यव १५ संज्ञी १७ सम्यक्त्व भव्य, अभव्य को० नं० २६ देखो । १६ श्राहारक संजी आहारक (२) कोष्टक नं० ३६ (१) नरक, देवगति में २-३ के भंग को० न० १६-१६ देखी (२) तियंच गति में २-२-३-३ के भंग की० नं० १० देखो (३) मनुष्य गति मे २३-३-३ के भंग को० नं० १८ देखी (४) भांग मुनि में २-३ के मंग को० नं० १७-१८ देखी चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना २ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना ६ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना १ चारों गतियों में हरेक में १ शाहारक अवस्था जानना को० न० २६ के समान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १ भंग अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ भंग जानনा १ मंग अपने अपने स्वान के भंगों में से कोई १ भंग जानना मारे भंग अपने अपने स्थान के गारे भंग जानना १ भंग को० नं० २६ देवो १ भंग आहारक अवस्था 1 असत्य मनोयोग या उभय मनोयोग १ दर्शन अपने अपने स्थान के रंगों में से कोई १ दर्शन | जानना १ लेश्या अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ लेश्या जानना १ स्वा अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई १ अवस्था जानना १ सम्यक्त्व अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ सम्यक्त्व जानना १ अवस्था को० नं० २० देखी १ अवस्था आहारक अवस्था ६-७-८ Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५६ ) कोप्टक नं०३६ चौतीस स्थान दर्शन असत्य मनोयोग गा उभय मनोयोग ६-9-5 १ उपयोग २० उपयोग कंवल दर्वान, केवल दर्शन। ये २ उपयोग घटाकर २१ सूक्ष्म पिया प्रनि पानि, | व्युपरत पिया निवनिनि । ये ३ वटाकर शेर (१४). सारे भंग (१) नरकपति, तिर्यच गति, देवति में। अपने अपने स्थान के ' अपने अपने स्थान के । 1-5- के भंग को नं०१६-१७-१६ देखो । सारे भंग जानना । सारेभंगों में से कोई। (२) मनुष्य गति में उपयोग जानना । ५-६-६-७-६-७ के मंग को.नं०१८ देखो। (३) भोग भूमि में ५-६-६ के मंग को नं. १७-१८ देखो भार भंग पान (१) नरकगनि, देव गति में अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के भंगों c-i-10 के भंग कोन -१६ देखो | सारे भंग जानना । में से कोई १ ध्यान जानना (२) तियच नात म ८-१-१०-११ के भंग को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गनि में ८-६-१०-११-७-४-१-१ भंग को.नं. १८ के समान जानना (४) मोग भूमि -है-१० के भंग कोने०१७-१८ देखो ३ सारे भंग १ मंग चारों मनियों में भंगों का विवरण को न. । अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के । ३५ के भंगों के समान यहां भी सब मंग. ग. भंग जानना सारे अंगों में से कोई १ भंग जानना परन्तु यहां सत्य मनोयोग पा । को. २०१८देखो जानना चनृभय मनोयोग के जगह असत्य मनोमांग या उभय मनयोग जानना २२ ग्रामप ४३ मिष्पाद ५, अविरत १२, (हिमक +हिस्थ । ६) कवाय २५, असत्य : मनोयोग, या उभय मनो-: योग इन दो में से कोई योग जिमका विचार करना ही नो १ योग जानना पं सब ४३ मानव जानना २३ भाव केवल जान, केवम दर्शन (१) नरक गति सारे भंग १ भंग एपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २६० ) कोष्टक नं०३६ चौंतीस स्थान दर्शन असत्य मनोयोग या उभय मनोयोग - - - -- को नं०२६ देखो हरेक भंग में से कोई १भंग जानना । को० नं०२६ देखो - - - २६-२४-२५-२६-२७ के भंन को० न०१६ के समान जानना। (२) तिर्यंच गति में ३१-२६-३०-३२-२६ के मंग बो० नं. देखो !................ (३) मनुष्य गति में ३१-२६-३०-३३-३०-३१-२७-३१२९-२६-२८-19-२६-२५-२४-२३२३-२१-२० के मंग को० नं०१८ के समान जानना (४) देव गति में २५-२३-२४-२६-२७-२५-२६-२९+४-२२-२३-२६-२५-के भंग को०० १६ के समान जानमा (१) भोगभूमि में २७-२५-२६-२१ के भंग को.नं. १७-१८ के समान हरेक में जानना - Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-संख्यात धनागुल या पनागुल के असंख्यातवें भाग से लेकर एक हजार (१०००) योजन तक जानना । बंध प्रकृतियां-को नं. १६ के समान जानना। दय प्रकृतियां-१०१ को न ३५ के समान जानना । सब प्रकृतियां-१४८ को० नं० २६ के समान जानना । सम्दा- असंख्यान जानना। क्षेत्र-लोक के प्रसंख्यातयां भाग जानना। स्पर्शन- लोक का असंख्यातमा भाग, ८ राजु जानना, सर्वलोक को नं० २६ के समान मानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव को अपेक्षा एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक जानना । मन्तर नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव को अपेक्षा १ अन्तमुहर्त से मसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक जानना । जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । (को० नं० २६ देखो) कुल-१०॥ लाख कोटिकुल जानना । (को नं. २६ देखो) Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( २६२ ) कोष्टक नं. ३७ सत्य वचन योगमें क० स्थान पालाप सामान्य पर्याप्त । अपर्याप्त नाना जाबों की अपेक्षा एक जीन की अपेक्षा । एक जीन की अपेक्षा नाना समय में ' एक समय में १ गुगा स्थान १ से १३ तक के गुगण । चारी गतियों में १ मे १३ तक के गान अपने अपने स्थान के समान जाना को० नं. २६ देखो। चारों गतियों में हरे में १ संनी पंचेन्द्रिय पर्याम जानना को नं० २६ देखो सारं मुगु म्यान १ सम्म स्थान मूचना अपने अपने स्थान के । वहां पर प्रपति सारे गृगण स्थान जाननः गुण स्थानों में से कोई अवस्था नहीं होती १ गुण न्धान २ जोवसमास संजो पंचेत्रिय पाप्त ३ पर्याप्ति कौल नं०१६वो १भंग ६ का मंन जानना १ भंग का भग जानना ४प्राण को० नं० १ देखो वारों गतियों में हरेक में ६ का भंग को नं०१६ के समान जनना । १० चारों गतियों में हरेक में । १० भन को.नं. १६ से १६ देखो () मनुष्य गनि में ४ का भंग को २०१८ देखो (३) भांग भूमि में १० का भंग को०१७-१८ देखो १ भंग अपने अपने स्थान के एक एक भंग जानना १ मंग अपने अपने स्थान के एक एक भग जमना Y ५ मंज्ञा .. को० न० १ देखो चागें गलियों में की.नं० २६ फ. ममान जानना ६ गति मारे भंग १ मंग अपने अपने मान के अपने सपने स्थान के मंगो सारे भंग जानना में से को मंग जानमा ४ में से कोई पनि ' कोई कति जानना जानना को.नं. १ देना बाने गनिया जानना Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६३ ) कोष्टक नं०३७ चौंतीस स्थान दर्शन सत्य वचन योग में ६.७.८ ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जामि । चारों मतियों में को.नं०२६ के समान मंग जानना ८ काय जगकाय । नामें भरिपो0१६ मकान भंग | जानना योग सत्य बनन योग। चारों मतियों में हरेक में १ सत्य वचन पोग जानना १० वेद नं० १ देखो चारों पतियों में हरेक में को०२०२६ के समान भंग जानना को० नं०१ देखो। • २५ चारों गतियों में हरेक में को.नं. २६ के समान जानना १२ ज्ञान को.नं० २६ देखा चारों गतियों में हरेक में को नं० २६ के समान भंग जानना अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई भंग । मंगों में से कोई १ वेद जानना जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के अपने अपन स्थान के सारे भंग जानना भंगों में से कोई भंग का० न०१८ देवो । जानना सारं भंग १भान अपने अपने स्थान के | भगने अपने स्थान के सारे भंग जानना भगों में से कोई १ जान जानना सारे भंग | संयम अपने अपनं म्यान.के | सपने अपने स्थान के सारे अंग जानना | भंगों में से कोई संयम जानना सारे भंग दर्शन अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना भंगों में से कोई १ दर्शन १३ संयम को० नं० २६ देखो चारों गनियों में हरेक में को० नं. २६ के समान भंग जानना १४ दर्शन को० नं० २६ देखो चारों गतियों में हरेक में कोनं० २६ के समान जानना ानना Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० ३७ सत्य वचनयोग में ६-3-5 चौंतीस स्थान दर्शन ___ १५ लेश्या को० नं० २६ देखो चारों गतियों में हरेक में को.नं० २६ के समान भंग जानना १६ भव्यत्व मव्य, अभव्य चारों गनियों में हरेक में को. नं० २५ के समान भंग जानना १ भंग लेश्या अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ भंग | मंगों में से कोई लेश्या | जानना १ भंग १अवस्था अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ भंग | अंगों में से कोई १ अबस्था जानना ! सारे मंग १ सम्यक्त्व । अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना | भंगों मै में कोई १ १७ सम्यक्त्व को.नं० २६ देखो चारों गतियों में हरेक में कोल नं०२६ के समान भंग जानना १० संजी ____ संजी चारों गलियों में हरेक में को.नं० २६ के रामान भंग जानना भंग १ अवस्था | अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के : भंगों में से कोई १ मंगभंगों में से कोई भवस्था जानना १ भंग १अवस्था याहारक अवस्था | माहारक अवस्था जानना १९ माहारक __ पाहारक २० उपयोग को० नं० २६ देखो चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना १२ चारों गतियों में हरेक में कांनं. २६ के ममान भंग जानना यारे भंग | अपने अपने स्थान के मारे भंग जानना २१ ध्यान को००६५ देखो । १५ चारों गतियों में हरेक में को नं.२६ के समान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सार मम जानना १ उपयोग घग्ने अपने स्थान के : भंगों में से कोई १ । उपयोग जानना १ध्यान अपने अपने स्थान के मंगों में में कोई १ | ध्यान जानना १ भंग अपने अपने स्थान के २२ मानव मिथ्यात्व ५, अविरत १२. चारों गतियों में हरेक में मारं भंग - अपन अपने स्थान के Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० (हिमक+हस्य) कषाय २५, सत्य वचनयोग १ ये ४३ जानना २३ भाव ३१ ३२ ३३ चौतीस स्थान दर्शन ३४ २ 73 को० नं० २६ देखो को० नं० ३५ के समान भंग जानना परन्तु यहां सत्य मनोयोग या अनुभव मनोयोग के जगह सत्यवचन योग जानना ५३ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना वाहना की० नं० ३६ के समान जानना । बंध प्रकृतियाँ को० नं० २६ के समान जानना । नय प्रकृतियां - १०६ को नं० 2 के ममान जानना । सत्य प्रकृतियां - १४० २६ के समान जानना । संख्या असंख्यात जानना । क्षेत्र - नाना जीवों की अपेक्षा लोक का संस्थानां भान स्पर्शन-नाना जीवों की अपेक्षा सर्व नोक जानना (को० नं० २६ देवो) ( २९५ ) कोष्टक नं० ३७ ४ " सारे भंग जानना को० नं० १८ देख सारे मंग आपने अपने स्थान के सारे संग जानना को० नं० १८ दे सत्य वचन योग में सारे भंगों में से कोई १ भंग जानना १ मंग अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से हरेक भंग में से कोई १ भंग जानना 1 मनुष्य लोक (पढ़ाई द्वीप) जानना | एक जीव की प्रक्षा लोक वा श्रसंख्यातवां भाग राजु जानना । ६-७-८ काल नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना एक जीव को अपेक्षा एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक जानना । अन्तर—नामा जीवों को पेक्षा अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से अनख्यात पुद्गल परावर्तन काल के बाद सत्य वचनयोग जरूर धारण करना पड़े । जाति (योनि) - २६ लाख योनि जानना १ (को नं० २६ देखो ) कुल – १०८ ।। लाख कोटिकुन जानना । ( } Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) कोष्टक नम्बर ३८ असत्य वचनयोग या उभय वचनयोग में चौंतीस स्थान दर्शन ० स्थान | सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त नाना जीवों की संपरा एक दीव के नाना समय में एन जीव के एका समय में सार गुण स्थान सपने अपने स्थान सारे गुरु- जानना मुरग स्थान सूचनान(२ में में अपने यहां पर अपर्याप्त अपने स्थान में से कोई' अवस्था नहीं होती १ गुण जानना है। १ भंग १ गुण स्थान १ से १२ क के गुगा | चारों गलियों में-१ से १२ तक के गुण अपने अपने स्थान के समान गुण जानना को० नं० २६ दलो २जीब समास संज्ञी पंचेग्न्यि पर्याम चारों गतियों में हरेक में १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था जानना ३ पर्याप्ति कोन-१ देखा चारों गलियों में हरेक में ६ का मग को न०२६ के समान जानना ४ प्राण को००१ देखो चारों गतियों में हरेक में १० का भंग का० न० २६ देखो ५ संज्ञा को.नं.१ देखो चारों गनिय में हरे में को नं० २६ के समान मंग जानना १ भंग का भग ६ का भग १ मंग १० का भंग १ भंग १० का भंग सारे भग १ मंग अपने प्रपन यान के अपने अपने स्थान के । मारे भंग जानना सार भंगों में से कोई । १ मंग जानना १ गति १ गति : चारों के से कोई १ गति चारों में से कोई १ गति चारों गनियां जानना को.नं.१ देखो । ७ इन्द्रिय जाति १ पचन्द्रिय जानि चारों गतियां में हक में १ सभी पंचेन्द्रिय जाति जानना उसकाय । चारों गतियों में हरेक में १ प्रसकाय जानना Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन १० वेद ६ योग असत्यमनोयोग पा उभय वचनयोग जानना को० नं० १ देखो ११ कषाय १२ जान २५ को० नं० १ देखो २ ७ केवल ज्ञान १ घटाकर शेष ७ ज्ञान जागना १३ संयम ७ को० नं० २६ देखो १४ दर्शन केवल दर्शन १ घटाकर १५ देश्या १६ व को० नं० २६ देखी (३) ३ भव्य, अभव्य ६ ( २६७ ) je चारों गतियों में हरेक में दोनों योगों में से कोई १ योग जिसका विचार करना हो वो एक योग जानना 글 चारों गतियों में हरेक में फो० नं० २६ के समान भंग जानना २५ चारों गतियों में हरेक में को० नं० -६ के समान मग जानना ७ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान रंग जानना ३ चारोगनियों में हरेक में को० नं २६ के समान भंग जानना ३ चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना चारों गतियों में हरेक में को० नं० २६ के समान भंग जानना चारों गतिमा में हरेक में . ४ १ भंग अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई भंन दोनों में से कोई १ योग दो में से कोई १ योग सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना को० नं० १८ देखी सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे अंग जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना रेमंग सपने अपने स्थान सारे भंग जानना १ भंग अपने अपने स्थान के भगों में से कोई १ भंग योग या उभय वचनयोग में ६-६-८ १ मंग अपने अपने स्थान के ५ १ वेद अपने अपने स्वान के भंगों में ये कोई १ वेद जानना १ भंग अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई १ भंग जानना १ जान T अपने अपने स्थान के | मंगों में से कोई १ ज्ञान जानना १ संयम अपने अपने स्थान के ! मंगों में से कोई १ संयम जानना १दर्शन रूपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ दर्शन जानना १ लेश्या | अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ दर्शन जानना १ अवस्था अपने अपने स्थान के Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( २६८ ) कोष्टक नं०३८ असत्य वचनयोग या उभय वचनयोग में ६-७-८ को० नं० २६ के समान भंग जानना भगों में से कोई एक भंग १७ सा व को नं. २६ देखो । चारों गतियों में हरेक में को. २०२६ के तमान भंग जानना सारे भंग जपने अपने स्थान के सारे भंग जानना मंनों में से कोई प्रवस्था जानना १ सम्यक्त्व अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई१ सम्यक्त्व जानना प्रदस्था को० नं० २६ देखो । । । १८ संकी ' को० नं. २६ देखो धागे मतियों में हरेक में को० नं. २६ के समान भंग जानना । । १६ प्रासारक याहारक १यवस्था ग्राहारक प्रवस्था २. उपयोग को नं० २२, देखा चामें मतियों में हरेक में १ माहारक जानना | पाहारक अवस्ता को० नं २६ के समान भंग जानना मारे भंग चारों मनियों में हरेक में अपने प्राने स्थान के को० नं२६ के समान मंग जानना सारे भन जानना २१ ध्यान को नं. १६ नमो चारों गतियों में हरेक में को नः ३६ के समान मंग जानना नारे भंग अपने अपने स्थान के सरि भग जानना १ उपयोग अपने अपने स्थाय के मार मंगों में से कोई उपग जानना १ ध्यान अपने अपने स्थान . भंगों मे में कोई ध्यान जानना १ भंग , अपने अपने स्थान के हरेक भंग में कोई भंग जानना २२ पानव मिथ्यात्व ५ मदिरत १२, . (हिंसक हिस्य ६) । कपाय २५, प्रमत्य वचन- योग या उभय वचायोग । इन दोनों में से कोई प्रांग जिसका विचार करना हो दो मोग जानना ये सब ४३ मानद जानना मारे भंग अपने अपने स्थान के मारे भंग जानना को २०१८ देखी चारों पतियों में हरेक में मंगों का विववरण को. नं०१५ के समान भंग यहां भी जानना, परन्तु यहां सत्यमनोयोग या अनुभय मनोयोग की जगह प्रसत्य वचनयोग या उभय वपनयोग जानना Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६६ ) कोष्टक नं०३५ चौंतीस स्थान दर्शन असत्य वचनयोग या उभय वचनयोग में १ भंग २३ भाव को००२६ देखो ४६ चारों गतियों में हरेक में को.नं.३६ के समान भंग जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना को न० २६ देखो अपने अपने स्थान के (हरेक भंग में में कोई १ भन जानना कानंदेखो अवगाहना को नं. ३५. समान जानना । चंब प्रकृतियां-को न० २६ के ममान जानना। उदय प्रकृतियां-१०१ को नं. ३५ के समान जानना। सत्त्व प्रकृतियां-१४८ को नं० २६ समान जानना । सख्या-असंख्यात जाननः ।। क्षेत्र-लोक का असंस्थातवां भाग जानना । स्पर्शन-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जानना । एक जीव की प्रोक्षा लोक का असंख्यानयां भाग पर्याच - राजु जानना (को०० २६ देखो) कान-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से अत्तएतं तक जानना । अन्तर-मना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव को अपेक्षा अंतमुंहतं प्रसंख्याप्त पुद्गल परावर्तन काल तक यदि मोक्ष न हो सके तो अमत्य वचन योग या उभय वचन बोग इनमें से कोई भी एक योग अवश्य धारण करना पड़े। जाति (योनि)-६ लाग्न योनि जानना । (को० नं० ३५ देखो) कुल--१०८॥ लाख कोटिकुल जानना । (को० नं० ३५ देखो) Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० ३६ अनुभय वचनयोग में चौतीस स्थान दर्शन | स्थान सामान्य ग्रालाप पर्याप्त अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में गुण स्थान १ से १३ तक के गुण सूचनायहा पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है। २ जीव समास वीन्द्रिय, जान्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंन्नीपंचेन्द्रिय, मंजीपंचेन्द्रियपर्याप्त ये ५ जानना ३ पयाप्ति को नं०१ देखो १ मंग सारे गुण स्थान १ गुण स्थान चारों गतियों में अपने अपने स्थान के समान अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के १ से १३ तक के गुण में जानना सारे गुण स्थान जानना गुरण में से कोई १ . को० नं०२६ देखो। गुण जानना १ समास समान चारों गनियों में हरेक में ५ मे से कोई १ समास | ५ में मे कोई १ समास १ संज्ञापंचन्द्रिय पर्याप्त जीव समास जानना | जानना जानना को० नं०१६ सं १९ देखो, शेष ४ ममाम निर्वत्र गनि में जानना, को.नं. १७ देखो ६-५ १ भंग ६-५के मंग ६-५के मंगों में से कोई ६-५.के भंगों में गे कोई चारों पतियों में हरेक में १ भंग जानना १ भंग जानना का मंगको० नं. १६ मे १६ देखो (२)तिपंच गति में ५ का भंग को.नं. १७ के समान सारे भंग १ मंग 10-1- ७-६-४-१० के भंग : अपने अपने स्थान के | अपने अपने स्थान के चारों गति में हरेक में सारे मंग जानना सारे भंगो में से कोई? १० का भंग-को० नं०१६ से १६ देखो भंग जानना (-) तिर्यच गति में E---, के भंग को मं० १.देखो (३ मनुष्य गनि में ४ . मंग-को००१८ देखो ४प्राण को० नं०१ देखो Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ५ नंशा ८ काय चौंतीस स्थान दर्शन ६. योग २ ६ गति को० नं० १ देखो ७ इन्द्रिय जानि एकेन्द्रिय जाति १ घटाकर ४ जानना को० नं० १ देखो १ १ च ( २७१ ) कोष्टक नं० ३९ (४) भोग भूमि में १० का भंग को० नं० १७-१८ देखी ४ ४-४-३-२-१-१-०-४ के मंग चारों गतियों में हरेक में ४ का भंग को० नं० १६ से १६ देखो (२) तियंच गति में ४ का मंग द्वीन्द्रिय से प्रसंज्ञी तक के जीवों को० १७ देतो (3) मनुष्य गति में ३-२-१-१-० के भंग को० नं० १८ के समान जानना (४) भोग भूमि ४ का मंग को० नं० १७-१८ देखी ४ चारों गतियां जानना ४ चारों गतियों में हरेक में १ संजो पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १६ मे १६ देखी ( - ) तिर्यक गति में वीद्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, भ्रमंजीपंचेन्द्रिय जाति ये ४ जाति जानना को० नं० १७ देखी १ चारों गतियों में हरेक में १ यसकाय जानना १ अनुभय वचनयोग जानना चारों गतियों में हरेक में १ अनुभव वचन योग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १ गति चारों में से कोई १ मति १ जाति चारों के से कोई १ जाति x 1 अनुभय वचन योग में T १ भंग अपने अपने स्थान के सारे मंत्रों में से कोई १ मंग जानना १ चारों में से कोई १ गति १ जाति चारों में से कोई १ जाति ६-७-८ Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक मं० ३६ अनुभय वचन योग में १० वेद को नं० १ देखो चारों गलियों में हरेक में को० न०३३ के समान भंग जानना २५ ११ कषाय को० नं० १ देखो चारों गतियों में हरेक में को नं.३३ के समान मंग जानना १ भंग अपने आपने स्थान के भंगों अपने अपने स्थान के में से कोई१ भंग मंगों में में कोई १ वेद जानना सारे भंग भंग अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना सारे मंगों में से कोई 1 को नं. १८ देखो भंग जानना सारे मंग १ज्ञान उपम अनसाग अपने अपने नारे सारे भंग जानना भंगों में से कोई १ शान जानना सारे भंग संयम अपने अपने स्थान के ! अपने प्रान स्थान के सारे भंग जानना सारं अंगों में से कोई मंयम जानना को नं० २६ देखो चारों गतियों में परेड में को नं. ३३ के समान भंग जानना १३ संयम को० नं० २६ दम्यो। चारों गतियों में हरेक में को० नं० ३३ के समान भंग जानना ४ . ४ १४ दर्शन फो.नं. २६ देखो | चारों गतियों में हरेक में को. नं। ३३ के समान भंग जानना १५ लेश्या को० नं. २ सारे भंग १ दर्शन अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना रंगों में से कोई १ दर्शन जानना श्या अपने अपने स्थान के अंगों अपने अपन म्यान के में में कोई ? मंग जानना नंगों में से कोई लेदश जानना १ मंग मा चारों गतियों में हरेक में को० नं०३३ के समान मंग जानना १६ सम्पन्न भन्य, अभव्य चारों गनियों में हरेक में को नं. ३३ के समान भंग जानना अपने अपने स्थान के | अपने कपन स्थान के मंगा में कोई १ भंग मंगों में से कोई १ चवस्था जॉनना Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ २७३ । कोष्टक नं. ३६ अनुभय वचनयोग में ६-७-5 १७ सम्यक्त्व को.नं० २६ देखो १८ संजी संज्ञी, अनंजी १ सम्यक्त्व चारों गतियों में हरेक में अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के को० नं० ३३ के समान भंग जानना सार भन जानना भंगों में में कोई सम्यक्त्व जानना अवस्था १ अवस्था चारों गतियों में हरेक में । अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्यान के १ संबी जानमा-को नं०१६ से १६ देखो मंगों में से कोई भंग । मंगों में से कोई (२) तिबंच गान में अवस्था जानना अवस्था जानना १ मयंजी-दोन्द्रिय में अमंडी पंचेन्द्रिय नक के जीव असंजी जानना को - नं०१७ देखो (5) मनुष्प गति (०) सनभय अर्थात न संजी न बमजी अवस्था जानना, देखो को. नं.१८ . ४) भागभूमि में-१ मनी जानना, का० न० १६ पाझारक आहा-क | चारों नतियों में हरेक म को नं०३६ के ममान १ प्रहारक अवस्था जानना २. उपयोग को नं० २६ देखो । चारों गतियों में हरेक में को.नं. १३ के समान भंग जानना १ पाहारक अपना माना यारे भंग पनं अपने मान के नारे भंग जानना । प्राहारक अवस्था जानना १ उपयोग । अग्ने अपने स्थान के ।कार भंगों में से कोई १ उपयोग जानना १ च्यान प्रगने अपने स्वाग के मारे भंगों में से कोई १ | ध्यान जानना २१ ध्यान म्युचरत किया निनिः १ पटाकर १५ जानना चारों गलियों में हरेक में कोन, ३३ के समान भंग जानना मारे भंग पाने अपने स्थान के गारे भंग जानना २२ भासद मिथ्यात्व ५, अविरत १२॥ (हिंसक ६ . हिंस्य ६) ४३ चारों गतियों में हरेक में को नं. ३: के समान भंग जानना सारे मंग अपने अपने स्थान के मारे भेग जानना अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २७४ ) कोष्टक नं० ३६ चौंतीस स्थान दर्शन अनुभय वचनयोग में परन्तु यहाँ एक अनुभय वचनयोग हो जानना । को० नं.१८ देखो ! १भंग जानना कषाय २५, अनुभव वचन योग १ : नना २३ भाव की नं०२६ देखी ' । ५३ चागें गलियों में हरक में को० नं. के समान भंग जानना सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना को नं०१८ देखो भंग । अपने अपने स्थान के हरेक भंग में से कोई भंग जानना २४ २६ अवगाहना-को० नं. ३५ के समान जानना । बम प्रकृतियां-की० नं०२६ समान जानना। उदय प्रकृतियां-११२ उदययोग्य १२२ प्र० में से एकेन्द्रिम जाति १, प्रानुपूर्वी ४, भातप १, साधारण १. मूक्ष्म १, स्थावर १, अपर्याप्त १, ये १० घटाकर ११२ प्र. का उदय जानना । सत्व प्रकृतियां-को० नं० २६ के समान जानना । संख्या असंख्यात जानना । क्षेत्र-लोक का असंख्यातवा भाम प्रमाण जानना । स्पर्शन-लोक का संस्थातवां भाग, अर्थात् ८ राजु जानना, सर्व लोक को० नं. २६ के समान जानना। काल--- नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव की अपेक्षा एक समय से अंतमुहर्त तक जानना । अन्तर-माना जीमों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की अपेक्षा एक अंतहत से असंख्यात पुदमन परावर्तन काल तक मनुभय वचन प्राप्त नहीं होता। जाति (योनि)-३२ लास योनि जानना, (दौन्द्रिय २ लास. श्रीन्द्रिय २ लाख, चतुरिन्द्रिय २ लाख, पन्द्रिय पशु नियंच ४ लाख, नारकी ४ लास, देव ४ लाता, मनुष्य १४ लाख ये ३२ लाख योनि जानना । कुल -१३२॥ लाख कोटिफुल बागला, (दीन्द्रिय ७ श्रीन्द्रिय ८, पतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय पशु तिर्थप ४३॥ नारकी २५, स्वर्ग के देव २६, मनुष्य १४ लाख कोटिकुल से १३२॥ लाख कोटिकुल जानना। Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन सामान्य आलाप स्थान १ गुण स्थान १३ १ से १३ तक के गुण० २ जीवसमात एकेन्द्रिय सूक्ष्मपर्याप्त 17 बादर " दीन्द्रिय श्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय असंज्ञी पंचेन्द्रिय संजी Fi ये ७ जीव समाय जानना ३ पर्याप्त को० नं० १ देखी ४ प्राण SF 21 37 को० नं० [ देखो पर्या नाना जावों की अपेक्षा ३ १३ (१) तिर्बंध गति में १ से ५ गुण स्थान (२) भोग भूमि में १ से ४ (३) मनुष्य गति में १ से १३ गु० जानना (४) भोग भूमि में १ से ४ गुग ७ (१) तियंच गति में ७-१-१ के भग को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य यति में १-१ के भंग को० न० १८ देखी ( २७५ ) कोष्टक नं० ४० (१) निमंच गति में ६-५-४-६ के भंग को० नं० १० देखो (२) मनुष्य गति में ६-६ के भंग को० नं० १८ देखो १० (१) निर्यच को० में १०-६-८-१-६-४-१० के मंग को० नं० १७ के समान जानना एक जीव की अपेक्षा नाना समय में Y १ सभाम । अपने अपने स्थान के समासों में से कोई १ समास १ मंग अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई भंग " सारे गुण स्थान १ गुणा स्थान अपने के सारे हुए स्थान जानना ० में से कोई ? गु० जानना १ मंग को० नं० १७ देख श्रदारिक काय योग में पर्यात एक जीव की अपेक्षा एक समय में ५ १ समाम अपने अपने स्थान के समासों में से कोई १ जीव समास जानना " १ भंग अपने अपने स्थान के मंगों में से कोई १ मंग जानना १ भंग को० नं० १७ देखो ६-३-८ सूचनायहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती 1 Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २७६ ) कोष्टक नं० ४० चौतीस स्थान दर्शन औदारिक काय योग में (२) मनुष्य गति में १०-४-१० के भंग को० नं०१८ देखा १ भंग को० न०१८ देखो ५ मंज्ञा ४ को नं. १ देखो __ को नं. १८ देखो १ नंग को० नं० १७ देखो ४-४ के भंग को नं. १७ देखो 1) मनुष्य गति में ४-१-२-१-१-०-४के भंग को में १८ के समान जानना मा भंग को० नं०१८ देहो। को० न०१८ देतो । ६ गति २ १ गति तिर्यच गति, मनुष्य गति ७ इन्द्रिय जाति ५ को० नं. १ देखो १तियंच गति को नं०१७ देखो १ मनुष्य गनि को० नं०१८ देवी 13) तियं च गति में ५-१-१ जाति को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति मे १ जाति को नं०१८ देखो १ जाति १पनि का न.१७ देखो १जाति को नं०१८ देखो काय को न०१७ देखो १ काय को न १८ देखो १जाति १ जानि को. नं० १७ देखो जानि को नं १८ देखो काय को.नं. १७ देरहो काय को नं०१८ देशे (१) तिर्थप गति में ६-१-१ के भंग की. नं०१७ देखो (२) मनुप्य जाति में १ त्रसकार को न. १८ देखो को० न०१ - देखो हयोग प्रौदारिक काय योग । तिर्वच गान में । यौ० कावयोग को नं०१७ देखो (3) मनुष्य गति में : मौ० काययोग को० नं. १८ देखो १० बेद १ मंग को न देसी को० नं०१७देनों को नं. १७ देखो (१) तिच गति में ३-१-३-२ के भंग को० नं०१७ देखो Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २७७ ) कोष्टक नं०४० चौंतीस स्थान दर्शन औदारिक काय योग में (२) मनुष्य मति में ३-३-६-३-३-२-१-०-२ के भंग बो० नं०१८ के समान भंग जानना सारे भग को० नं०१८ देखो , बो० नं. १८ देखो । ११ कप य को न०१ देखो सारे भंग को० न० १७ देखो भंग को २० १७ देखो , (१)तियंच गति में २५-२६-२५-२५-२१-१७-२४-५० के अंग की नं०१७ के समान जानना (२) मनुश्य गति में २५-२१-१७-१३-१३-७-६-५-४२-२-१-१-०-२४-२० के मंग को० न०१८ के समान जानना सारे भंग को.नं०१८ देखो को० नं. १८ देखो . १२ ज्ञान को नं० १८ देखो। (१) तिर्यंच गति में २-३-३-३-३ के भंग को नं० १७ देखो | (२) मनुष्य गति में ३-३-४-४-१-३-३ के मंच को नं० १८ के समान जानना १ भंग १ज्ञान को न०१७ देखो । को० २०१७ देखो सारे भंग को० नं०१८ देखो . को० न०१८ देखो १ भंग ? संयम को० नं०१७ देखो को० नं०१७ देखो १३ संयम को २०१८ देखो (१) तिर्थच गति में १-१-2 के भंग को० नं०१७ देखो (२) मनुष्य गति में १-१-३-३-२-१-१-१ के मंग को० नं १८ के समान जानना सारे को.नं०१८ देखो को २०१८ देखो १४ दर्शन को० नं०१८ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो दर्शन को.नं. १७ देखो (१) तियं गति में १-२-२-३-३-२-३ के भंग को० नं०१७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में २-३-३-३-.-२-३ के भंग को.नं. १५ समान जानना सारे मंग को.नं.१८ देखो । १दर्शन को न० 1 देखो Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १५ लक्ष्या १६ मध्य को० नं० १ देखो १७ सम्यक्त्व १८ संजी भव्य, अभव्य को० नं० १८ देखो २० उपयोग २ | संजो अनंजी २ १६ आहारक आहारक, अनाहारक १२ को० नं० १८ देखो ३ ( २७८ ) कोष्टक नं० ४० (१) तिर्वच गति में २-६-३-३ के भंग को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गत्ति में ६-३-१-३ के भंग को० नं० १८ देखो २ (१) तियंच गति में २ : २-१ के मंग को न० १७ देखो (२) मनुष्य गति में २-१-२-१ के भंग को० नं० १८ देखो ६ (१) तियंच गति में १-१-१-२-१-१-१-३ के भंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य यति में १-१-१-३-३-३-२-१-१-१-१-३ के मंग को० नं० १६ के समान जानता २ (१) नियंच गति में १-१-१-१ के भंग को० ० १७ देख (२) मनुष्य गति में १-०-१ के भंग को० नं० १८ देखो २ (१) तियंच गति में १-१ के मग को० नं० २७ देख (२) मनुष्य गति में १-१-१ के मंग को० नं० १८ देवो १२ (१) तिर्यच गति में १ मंग को० नं० १७ देखी सारे मंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १७ देख सारे भंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १० देवो सारे संग को० नं०१८ १ मंग को० नं० १७ देखी ५ दारिक काय योग में १ लेश्या को० नं० १७ देखी १ लेश्या को० नं० १८ देखो १ अवस्था को० नं० १७ देखो १ अवस्था को० नं० १८ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १७ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १८ देखी १ अवस्था को० नं० १७ देखी १ अवस्था [को० नं० १८ देखो अवस्था को० नं० १७ देखी ९ अवस्था को० नं० १८ देवो १ उपयोग को० नं० १७ देखी 8-19-57 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन २१ ध्यान २ १५ व्युपरत क्रिया निवर्तिनी शुक्ल ध्यान १ घटाकर (१५) २२ ग्रामव ૪૩ मिथ्यात्व ५ अविरत १२, (हिंसक ६+हित्य ६ ) कषाय २५, औदारिकाय योग १ ये ४३ जाननना ३ ( २७६ ) कोष्टक नं० ४० ३-४-५-६-६-५६-६ के भंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ५-६-६-७-७-२-५-६-६ के भंग को० नं० १८ के समान जानना १५ (१) तिर्यंच गति में ६-६-१०-११-०६-१० के भंग को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ८-६-१०-११-७-४-१-१-१-००९-१० के भंग को० नं० १८ के समान जानना ४३ (१) तियंच गति में १ ले गुण स्थान में ३६ का भंग- एकेन्द्रिय जीव में को० नं० १७ के समान जानना ३७-३८-३९-४२ के मंग- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और प्रसंजी पंचेन्द्रिय जीव मेंको० नं० १७ के २५-३६-४०-४२ के हरेक मंग में से अनुभय वचनयोग १ घटाकर ३७-३५-३६-४२ के मंग जानना ४३ का मंग-संत्री पंचेन्द्रिय जीव में को० नं० १७ के५१ के भंग में से मनोयोग ४ वचनयोग ४८ योग घटाकर ४३ का भंग जानना २४५वे गुण स्थानों में ३८-३४-२६ के मंग-को० नं० १७ के ४६-४२ -३७ के हरेक भंग में से ऊपर के योग घटाकर ३८-३४-२६ के मंग जानना ४ सारे भंग को० नं० १८ देख १ मंग को० नं० १० देखी सारे भंग को० नं० १८ देखो सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे मे जानना ५. श्रीदारिकाय योग में १ उपयोग को० नं० १० नेखो १ ध्यान को० नं० १७ देखी १ ध्यान को० नं० १८ देखो १ मंग अपने अपने स्थान के सारे मंगों में से कोई १ भंग जानना 2-19-5 Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( २० ) कोष्टक नं०४० मौदारिक काय योग में (५) भोगभूमि में १ से गुण स्थान में ४१-२३-६ के भग को नं. १७ के १०-४५४. के हरेत भंग में से ऊपर के योग = घटाकर ४२-३७-३३ के भंग जानना (२) मनुष्य गति में १ से ६ मुख में ४३-३८-३४-१९-१४ के मंग को नं०१८ के ५१-४६-४२-३७-२२ के हरेक भंग में मे मनोयोग ४, वचन योग ४ ये योग घटाकर ४३-२८-३४-२६-१४ के भंग जानना ७ से १. गुगण में १४-२-७-६-५-४-३-२-२-1 के मंच कोन १८ के २२-१६-१५-१४-१३-१२-११-१०-१०-६ के हरेक भंग में में ऊपर के - योग घटाकर १४-:-७-६-५-४-2-२-२-१ के ग जानना १३च गुगा में १मौवारिक परपयोग जानना कोनर १देखो भोर भूमि में दिन में ४२-३७-३६ के भंग को नं १८ के ५०-०१४१ के हरेत भंग में से ऊपर के योग एटार ४२.३७-३ के नंग जागना २५ भाद नरकगनि, देवनि ये२ पटाकर ५१ भाव जानना । सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना को० नं०१८ देखो सारे भंग अपने अपने ग्यान के मारे भंग जानना को००१८ देखी १ भंग अपने अपने स्थान के हरेक मंगों में में कोई मंग जानना (१) तिर्यच गतिक २४.२५-२७-३१-२६-३०.३२-२१-२२-- के भग की नं०१७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ११-२६-३०-१३-१०-३१-३१-२६-२६-२८-२९. २६-२५-२४.३.२२-२१-०-१४-२७.५-२- २६ के भंग को. नं०१८ के ममान जानना । | अपने अपने स्थान के हरेक मंगों में से कोई भंग जानना Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८१ ) अवगाहना-घनांगुल के पसंख्यात्तवे भाग से एक हजार (१०००) योजन त जानगा। बंध प्रकृतिया-कोनं० २६ के समान बानना। उदय प्रकृतियां-१०१ उदययोम्म १२२ प्र. में ने नरकटिक २, नरकायु, देवनिक २, देवायु, वैफियिक टिक २, मौ० मिचकाययोग, प्राहारकद्विक २, कामांण काययोग १, अपर्याप्त १.१३ घटाकर १०६ प्र. का उदय जानना । सस्व प्रकृतियां-को न०१६ के समान जानना। संख्या-मनन्नानन्त जानना । वोत्र--मलोक जानना। स्पर्शन -सर्वलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय में अन्तमहतं काल कम २२ हजार वर्षे सक जानना। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्नर नहीं। एकजीव की अपेक्षा एक समय से २३ सागर नव मन्तम त २ समय तक मोबारिक काययाण नहीं धारण करता। जाति (योनि)-७६ लाख योनि जानना (नरवा ४ लास, देव ४ लास, ये र लास्व घटाकर ७६ लाख मानना) को नं. २६ देखो। कूल-१४८11 लाख कोटिन जानना । (नारकी २५, द व २६, लास कोटिङ्गम ये५. लग्य कोटिकूल घटाकर १४11 लाच काटा जानना को नं. १६ देवो)। ३४ माना तर जात मा कानुन वावर वा कुना कर १.२५ देवको मन्दुिल Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य झालाप १ गुरण स्थान १-२-४-१३ मे गुण स्थान जागना २ २ जीव समास एकेन्द्रिय सूक्ष्मवत " बादर डीन्द्रिय वान्द्रिय ४ प्राण " 17 चतुरिन्द्रिय प्रपंचेन्द्रिय संज्ञीपंचेन्द्रिय ये ७ जीव समास जानना ३ पर्याप्त ३ को० नं० १ देखो " 27 फो० नं० १ देखो पर्याप्त ३-४-५ सूचनायहाँ पर पर्याप्त अस्था नहीं होती है। ! ( २८२ ) कोष्टक नं० ४१ प्रपर्यात नाना जोवों की प्रपेक्षा ४ स्थान जानना १--२-४-१३ मे ९ (१) तियंच गति में १-२ गुण स्थान जानना को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में १२-४-१३ मुख स्थान को० नं० १८ देखो (३) भोग भूमि में तिर्यच मनुष्य गति में १- २-४ गुण स्थान में को० नं० १७-१८ देखी ७ (१) नियंच गति में ७-६-१ के गंग को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में १-१ के भंग को० नं० १८ देखो ३ (१) तिर्यच गति में ३-३ के भंग - को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में ३-३ के भग-को० नं० १८ देखो ७ (१) तियंच गति में चौदारिक मिश्रकाय योग में एक जीव के नाना समय में सारे गुण स्थान अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १ समस को० नं० १७ देखी १ समास को० नं० १० देख १ भंग को० न० १७ देखी १ भग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो I एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान अपने अपने स्थान के गुण० में से कोई १ गुण० १ समास को० नं० १७ देखो १ समास को० नं० १८ देखो १ मंग [को० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १० देखो १ मंग को० नं० १७ देखो Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( २८३ ) कोष्टक नम्बर ४१ श्रोदारिक मिथकाय योग में ७.७-६-५-४-३-७ के मंग-कोनं०१७ के समान जानना म२) मनुष्य गति में ७-२-० के भंग-कोनं०१८ देखो सारे भंग को. नं. १८ देखो ५ संज्ञा . को००१ देखो को २०१८ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो को० न०१७ देखो (१) तिथंच गति में ४.४ मंग-फो.नं. १७ देखो (२) मनुष्य गति में ४-७-४ के भंग-को. नं.१८ देखो सारे भंग को० नं०१८ देखो १ भंग | कोनं १ देखो (१) तिर्यच गति (२) मनुष्य मति ६ गति त्तियंच मति, मनुष्य गति ७ इन्द्रिम जाति ५ को० नं. १ देखो। ५ दोनों में से कोई १ गसि, दो में से कोई १ गति १जाति १ जाति को० नं० १७ देखो को. नं०१७ देखो (निर्यच गति में ५-१ के भंग को नं.१७ देखो (२) मनुष्य गति में १ संनी पंचेन्द्रिय जाति-को० नं० १८ देखो (१) तिथंच गति में ६-४-१ के मंग- को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में १ त्रसकाय-को.नं० १% देखो। सारी जाति को.नं. १८ देखो काय को नं०१७ देखो १ जाति को.नं०१८ देखो १काय | को० नं०१७ देखो काय __ को० नं. १ देखो सारे मंग को००१८ देखो काम | को.नं०१८ देखो योग मिश्रकाय योग (१) तिर्यच गति में-पौ० भित्रकाय योग जानना को न०१७ देखो (२) मनुष्य गनि में-प्रो. मिश्रकाय योग जानना को० नं०१- देखो १० बेद को.नं.१देखो। | को० नं.१७ देखो (१) तियन गति में | को०० १७ देखो 1-1-1-1-३-२-१ के भंगको नं. १७ के | समान जानना Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन २५. "को० नं० १ देवा | ११ कषाय १२ ज्ञान कुवमधि ज्ञान, मनः पर्ययज्ञान ये २ टाकर (1) २ Y को० नं० १८ देखो १३ संयम १४ दर्शन को० नं० १८ देखो १५ लेश्या को० नं० १ देखो ३-४.५ ( २८४ } कोष्टक १० ११ (२) मनुष्य गति में -१०-२-१ के मंग-को० नं० १० देखो २५ १) निर्यच गति में २४-०-२५-०५-२३-२५-२४-१६ के भंगको० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में २५-१६-०-२०१६ के भग-को० नं० १= के समान जानना (१) दिर्यच गति में २-२-२ के मंग-को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य गति में २-३-१-२-३ के भंग-को० नं० १= देखो Y (१) तिर्यंच गति में १-१ के भग-को० नं० १० देखो (२) मनुष्य गति में १-१-१ के मंग-को० नं० १८ देखी ४ (१) तिच गति में १-२-२-२-३ के भंग को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य गति में २-३-१-२-३ के भग-को० नं० १८ देतो (१) नि गति में ३-१ के मंग-कां० न० १७ देखो (२) मनुष्य मति में ६-१-१ के मंग-को० न० १८ देखो श्रदारिक मिथकाय योग में وا मारे मंग को० नं० १८ देखी मार भंग को० न० १७ देखी सारे भंग को० नं० १= देखो १ भग को० नं० १७ देखी गारे भंग को० नं० १० देखी १ मंग को० नं०१७ देखो सारे भंग को० नं० १८ १ मग को० नं०१७ सारे भंग को० नं० १८ देखी १ भंग को० नं० १७ देख सारे भंग क० मं० १८ देखो १ बेद को० नं०] १८ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो 1 १ भंग क० न० : देखो ? ज्ञान को मं० १७ देखो १ ज्ञान को० नं०] १८ देख ९ संयम को० नं० १७ देवी १ संयम को० नं० १० देखो १दर्शन को० नं० १७ दलो १ दर्शन को० ५० १८ देखी १ लेस्या को० नं०] १७ देखी १ लेश्या को० नं० १८ देखो Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ मन्यत्व १८ संजी चौंतीस स्थान दर्शन १६ आहारक भव्य, १७ सम्यचत्व 'मिथ्यात्व सासादन, शाविक, क्षयोपशम ये ४ सम्यक्त्व जानना २ अ भन्य मंजी, घसंज्ञो आहारक, अनाहारक २० उपयोग १० कुमवधि, मनः पर्यय ज्ञान वे २ बटाकर (१०) ३-४-५ ( २८५ ) कोट० ४१ २ (१) तिर्यच गति में ८१--१ के मंग की० नं० १७ देख (२) मनुष्यगति में २-१-२-१ के भंग को० नं० १८ देखी ४ (१) नियंत्र गति में १-१-१-१-२ के भंग को० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में १-१-२-१-१-१-२ के भंग को० नं० १८ देखो २ (१) तिथेच गति में १-१-१-१-१-१ के को० नं० १७ देखा (२) मनुष्य गति में १-०-१ के भंग फो० नं० १८ देखो (१) तिच गति में -१--१ के मंग को० नं० १० देखो (२) मनुष्य गति में १-१-१-१-१-१ के भंग को० नं० १८ देख १० (१) नियंत्र गति में ४४-३-४-४-४-६ के गं को० नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ४-६-२४-६ के मंग को० नं० १८ देखो श्रदारिक मिश्रकाय योग में १ भंग को० नं० १७ देखी मारे भंग को० नं० १ देवां १ भग को० नं० १७ देखी सारे भंग को० नं० १८ देखी १ भंग को० नं० १७ देवो सारे भंग को० नं० १८ देखो ? भंग को० नं० १७ देखी सारे भंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १= देखो १ अवस्था बो० नं० १७ देखी १ अवस्था को० नं० १ देखो १. सभ्य रत्व को० नं० १० देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १८ देखी १ अवस्था को० नं० १७ देखी १ यवस्था को० नं० १८ देखो १ अवस्था को० नं० १७ देखो १ अवस्था को० नं० देखो १ उपयोग को० नं० १७ देखी १ उपयोग को० नं० १८ देखो Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन । २८६ ) कोष्टक नं०४१ औदारिक मिश्रकाय योग में १व्यान को न०१७ देखो २१ ध्यान मार्तध्यान ४, रोदध्यान ४, प्राज्ञा दि.१, . भपायवि०१, मुक्ष्मकिपा प्रतिपाती १, ११ । ध्यान जानना (१) नियंच गति में ८-८-२ के भंग-को० नं०१७ देखो (२) मनुष्य गति में 6-6-१-६-६ के मंग-कोनं. १८ देसो को० नं०१७ देखो सारे अंग को.न. १८ देखो । ध्यान को नं० १८ देखो २२ मालव ४३ मिश्वात्व ५, अविरत १२॥ (हिसक ६ हिंस्य ६) कयाय २५, पौदारिक मिथकाय योग है सारे मंग १मंग (१) तिबंच गति में अपने अपने स्थान के ! अपने अपने स्थान के १ले गुण स्थान में सारे भंग जानना सारे मंगों में से कोई ३६ का भंग-एकेन्द्रिय जीव में- को० नं० मंग जानमा १७ के ३७ के मंग में से कार्मारणकाय योग घटाकर २६ का भंग जानना ७ का भंग-द्वीन्द्रिय जीव में-ऊपर के ६६ | के भंगों में से अविरत ७ (हिंसक का बिषय + ६ हिस्य ये ७) पटाकर, अविरत ८ (हिसक के विपय २+ हिस्य ये८) जोड़कर ३७ का भंग जानना - का भंन-श्रीन्द्रिय जीव में-ऊपर के ३७ | के भंग में से अविरत घटाकर विरत(हिमक के विषय + : हिस्य थे) जोड़कर १८ का। भंग जानना ३९ का मंग- चतुरिन्दिय जीव में कार के ३८ मंग में में अविरत घटाकर, अविरत १० (हिंसक, के विषय ४+६ हिम्य ये१०) जोड़कर ३६ का | जंग जानना ४२ का मंग-भमंजी पंचेन्द्रिय जीव में-ऊपर : के ३१ के भंग में से प्रविग्त १० घटाकर, अविरत ११. हिराक के विषय ५६ हिस्य ये ११) जोड़कर और स्त्री-पुरुष वेद ये २ जोडकर ४२ का | भंग जानना Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं.४१ प्रौदारिक मिथकााय योग में चौतीस स्थान दर्शन २ । ३४-५ ।। ४०का भग-सज्ञी पचन्द्रिय जीव में की 'नं.१ ४४ के भग में में कार्मारकाय योग १ घटाकर ४३ का भंग जानना -रे गुरण स्थान में ३१-३२-२६-३४-३७ का भंग-ऊपर के ले गुगण के ३६-३७-३८-३६-४२ के हरेक मंग में से मिथ्यात्व ५ घटाकर ३१-३२-३३-३४-३७ के भंग जानना ३८ का भंग - ऊपर के संजी पंचेन्द्रिय जीव के। ४३ मंग में से मिथ्यात्व ५ घटाकर ३ का भंग जानना vथा मुरण स्थान यहां नहीं होता २. भोगभूमि में-ल रे ४थे गुण में ४२-३७-३२ के भंग-को.नं.१० के ४३. ३८-३३ के हरेक भंग में से कर्माणकाय योग १ घटाकर ४२-३७-३२ केभंग जानना (२) मनुष्य गति में १३-३८-३२-२ के मंग-कोनं०१८ के ४४-1 ३६-३६-२ के हरेक भर में से कार्माणकाय योग १ घटाकर ४३-३८-३२-१ के भंग जानना २. भोगभूमि में-ल २रे ४थे गुरण में ४२-३७-३२ के मंग–को० नं०१८ के ४३--३३ के हरेक अंग में से कार्माणकाय योग ! घटाकर ४२-३७-३२ के भंप जानना ४५ (१ तिथंच गति में २४.५-२७-२७-२२-२३-२५-२५-२४-२२-२५ के भंग को.नं० १७ के समान जानना (२) मनुष्य गति में ३०.२८-३०-१४-२४-२२-२५ के भंग-को नं०१८ के समान जामना २३ भाव ४५ प्रदभि ज्ञान १, मनः पर्वमजान, उपञ्चमसम्यक्त्व १ उपसमचरित्र १ नरक गति १, देवगनि, संयमासंयम १, सरागसंयम १.ये ८ भाव घटाकर ४५ जानना सारे भंग को २०१५ देखो | को० नं.१७ देखो सारे मंग को० न०१८ देखो । को० न०१८ देखो Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 २८८ ) अवगाहना-बनांगुल के असंख्यात भाग में कुछ कम एक हजार योजन तक जानना। बंध प्रकृतियां-११४ दंधयोग्य १२० प्र. में से नरकद्विक २, नरकाबु १, देवायु १, याहारद्विक २, ये ६ घटाकर ११४ प्र०का बंध जानना । उदय प्रकृतियां-६८ उदययोग १२२ प्र. में से महानिद्रा ३, मिथ सम्यक्त्व १, नरादकर , नरकायु १, देवद्विक २, देवायु, वैक्रियिकहिक २, माहारकलिक २, तिथंच गत्यानुपूर्वी १, मनुष्य मत्यानुपूर्वी १, परमात १, उच्छवास १, प्रातप १, उद्योत १, विहायोगति २, स्वहिन, ये २४ घटाकर प्र. का उदय जानना ।। सत्त्व प्रकृतियां-१४६-नरकायु, देवायु १२ पटाकर १४६ प्र० का सत्य जानना । संख्या-अनन्तामन्त जानना। क्षेत्र-मवलोक जानना। स्पर्शन-मर्थलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की प्रवेक्षा एक समय से अंतमुंहून तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जोर की अपेक्षा एक समय से ३३ सागर तक और एक समय से अंत हतं तक एक कोटिपूर्व तक औदारिक मिश्रकाय योग की प्राप्ति न हो। जाति (पोनि)-७६ लाख योनि जानना (नरकगति ४ लाख, देवगति ४ लाख ये ८ लाख घटाकर दोष ७६ लाख योनि जानना) कुल-१४ लाख कोटिकुल जानना । (को० नं. ४० देखो) Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४२ बैत्रियिक काय योग में स्थान मामाग्य पानाप पर्याप्त प्रपयांश नाना जायों को अपना एक जीव की अपेक्षा । नाना.समय में एक जीव की अपेक्षा एक समय में ६-७-८ 'गुरण स्यान ४ १-२-३-४ ४ गुना ___को नं.१६ देखो २जीवसमास मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त सारे गुगा स्थान . (0) नरक गति में और देवगति में रेक में | को.नं.१६-१९ देखी। को १ मे ४ तक के गुण जानना १ गुगा स्थान । मूवनानं. १६-१६ देखो । यहां पर अपर्याप्त । अवस्था नहीं होती (१) नरक और देब गति में हरेन में १ संजी पंचन्द्रिय पर्याप्त जानना को नं. १६-१६ देवो पमाप्ति को नं० १ देखो (1) नरक और देव गनि में हरेक में ६ का भंग को नं०१५-१६ देखो भंग को नं०१८-१९ देबो | को० नं०१५-१६ देखो ४प्राना को० नं. १ देखो , (१) नरक और देवगनि में हरेक पं १. का भंग को ना १६-१६ देखो १ अंग को न० १६-१६ दस्खो को नं. १६-१६ देखो भंग भंग को नं. १-१ देखो को नं० १६-१६ देखो भग ५ मंज्ञा कोल नं०१ देवी ( नरन पर दब गति म हरेक में ४ का भंग को० नं० १६-१६ दरो ६ गति नरक मनि, देव पनि । (2) नरक मोर नंद गति में जानना को.नं.१६-१६ दबो गति दो में में कोई . गति गति: दो में में कोई १ गति ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति । जाति को० नं०१६-१६ देखो को नं. १६-१६ देखो (१) नरक चोर दर मनि में हरेक में १पंचेन्द्रिय जानि जानना को नं. १५-१६ देखो Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२० ) कोष्टक नं०४२ चौंतीस स्थान दर्शन वैक्रियिक काय योग में काय १सकाय को.नं. १६-१६ देखा का नं०१६-१६ देखी सकाय (१) नरक और देव गति में हरेक में १ वसकाय को० नं०१६-१६ देखो र योग वैक्रियिक काययोग ___ को नं १६-१६ देखा मो नं.१६-१६ दसो (१) नरक और देवमति में हरेक में १ बैंक्रिरिक काम योग जानना कोः नं. १६-१६ देखो १० वेद . को.नं०१ देखो। (१) नरक गति में है का भंग को.नं०१६ देखो (२) दवगति में २-१- के भंग को० नं०१६ देखो सारे भंग १बंद : नपुंसक वेद को न या । को. नं०१६ देखी। सारे मंग को २०१६ देखो का नं.१ देखो सारे भंग कॉ० न०१६-१९ देखो का नं.१६-१६ देखो ११ कषाय को० म०१ देखो (१) नरक गति में २-३-१- के भंग करे नं०१६ देखी (२) देव गति में २१-१४-११-२३-१२-१६ के भंग को० नं० १६ देखा १२ ज्ञान को० नं १ देखो (१) नरक गनि में ३-2 के भंग को नं. १६देखो (२) देव गति में ३-३ के भग को० न० १६ देखो सारे भंग जान को.नं. १६ देलो को० नं०१६ देखो सारे भंग को न०१६ देखो । कोनं० १६ देखो १३ संयम प्रसंयम (१) नरक और देवगति में हरेक में १ अमंयम जानना को नं. १६-१६ देखो ०१६-१६ देखो, को.नं-१६-१६ दस्तो १४ दर्शन १दर्शन को. नं०१५देखो .नं०१६ देखो ( नरक गति में २-३ के भंन को० १६ देखो को० नं०१६ देखो Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( २९१ ) कोष्टक नं. ४२ वक्रियिक काय योग में (२) देत गति में २-३के भंग को.नं.१६ देखो १ मंग १ दर्शन को नं०१६ देसो को नं० १६ देखो १लेश्या को नं० १६ देखो . को० नं०१६ देखो को० नं० १ देखो | (१) नरक गति में : का भंग को० न०१६ देखो (२) देव गति में १-३-१-१ के मंग को नं. १६ देखो १ भंग को नं०१६ देखो १ भंग को० नंक १८ देखो १लेश्या को० नं १६ देखो १ अस्था को नं. १६ देखो १६ व्यत्व भब्ध, अभव्य (1) रक गति में २-१ के भंग को० नं०१६ देखो (२) देव ति में -१ के मंग को० नं०१६ देखो १ भंग कोन०१६ देवो मार भंग को नं०१६ देबो १अवस्था कोन०१६देको १ सम्यक्त्व को.नं०१५ देखो १७ सम्यक्त्व को.नं. १६ देखो (१) नरक गति में १-१-१-३-- के भय को न०१६ देखो (२) देव मनि में १-१-१-२-३-२ के भंग को नं० १९ देखो ___ यारे भंग को नं०१६ देखो सम्यक्त्व को नं.१६ देखो १- संजी मंजी नं०१६-१९ देखो को नं०१६-१६ देखो (१) नरक और देवनि में हरेक में १ मंजी जानना को० नं. १६-१६ देखो १६ पाहारक माहारक । को० नं १६-१६ देवो को.नं.१६-१६ देखो (१) नरक और देव गति में हक में १पाहारक जानना को० नं. १५-१६ देखो २. उपयोग को० नं.१६ देखो (१) नरक और देव गति में हरेक में ५-६-६ के भंग को० न०१६-१७ देखा | को० नं० मंग १ उपयोग -११ देखो 'को० नं०१६-१६ देखो २१ ध्यान को.नं.१६ देखा (१) नरक और देव गति में हरेक में । E-६-१०के भंग को नं०१६-१९ देखो सारे भंग । ध्यान को० ने०१६-१८ देखी। को० ०१५-१६ देखो Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४२ वैयिक काय योग में २२ मानव मिप्यारव ५. अविरत १२ (हिंसक के विषय ६+ । ६ हिस्य ये १२) कथाय२५॥ ये ४३ धासप जानना सारे भंग (१) नरक गति में ले गई० में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के ४९ का मंग को० नं०१६ के ४६ के भंग में | सारे अंग जानना सारे भंगों में से कोई मे मनोयोग ४, वचनयोग ये योग घटाकर को न १६ देखा भंग जानना ४१ का भंग जानना 1 को नं० १६ देखा २रे मुरग. में ३६ का भंग को नं०१६ के ४४ के अंगों में से ऊपर के ८ योग घटाकर ३६ का भंग जानना ३रे ४थे गुग में ३२ का भंग कोनं०१६ के ४० के मंगों में से ऊपर के ८ योग घटाकर ३२ का भम जानना (२) देवगति गति में से ४ गुण में । सारे मंग ४२-३७-३३-४-३६-३२-३२ के मंग कोनं १६ अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के के ५०-४५-४१-४६-४४-४८-४० के हरेक मंग | सारे भंग जानना सारे मंगों में से कोई में से ऊपर के योग बटाकर ४२-३३-३३- को० नं. १६ देखो । मंग जानना ४१-३६-३२-३२ के भंग जानना को० नं०१६ देखो सारे भंग १ भंग (१) नरक गति में १ से ४ गुण में अपने अपग स्थान के । अपने अपने स्थान के २६-२४-२५-९६-९७ के भंग को० भ०१६ के सारे मंग जानना ।सारे भगों में से कोई, समान जानना कानं. १६ देखो मंग जानना को नं. १६ देखो (२) देव गति में ले ४ गुगा. में सारे भंग १ भंग २५-२३-२४-२६-१७-२५-२६-२६-२४-२२-२३-/ अपने अपने स्थान के । अपने अपने स्थान के २६-२५ के भंग कोनं०१९के समान जानना सारे मंग जानता सारे मंगों में से कोई को० नं०१६ देखो भंग जानना को नं०१६ सो , मग २३ भाव उपशम-सायिक म०२ फुजान ३, जान :, दर्शन ३, लब्धि ५, क्षयोपशम सम्पवत्व ! नरक गति १, देवति १, कषाय४, लिग : ३, लेण्या ६, मिथ्या दर्शन १, प्रसंयम १ अज्ञान १. प्रसिद्धत्व १, परिणामिका भाव ३ ये ३६ जानना | - - --- Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ पक्माहना-एक हाय से ५०० धनुष तक जानना । सर्वार्थसिद्धि में एक हाय और वे नरक में ५०० धनुष अवगाहना जानना। नंच प्रकृति-१०४ बंध योग्य १२. प्र. में से नरकटिक २, नरकायु १, देवदिवा २ दवायु १, वैक्रियिक कि , साधारण १, यूक्ष्म १, स्थाबर १, बिकलत्रक ३, प्राहारकद्धिक २ ये १६ घटाकर १०४ बंध प्रकृतियों जानना। बम प्रकृतिपा-६ ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ६ (३ महानिद्रा घटाकर), वेदनीय २, मोहनीव २८, नरकायु, देवायु १, नरक गति ।। देवगति १, पंचेन्द्रिय जाति १, व क्रियिकद्धिक २, तेजस १, कार्माण १. हुंडक संस्थान १, समचतुश्नवसंस्थान, स्पादि ४, प्रगुरुलघु १. उपधात १, परवात १, श्वासोच्छवास १, विहायोपत्ति २, शुभ प्रकृति १०. (प्रत्येक बादर श्रम, पयांत, सुभग, स्थिर, शुभ, मुस्वर, पाय, पशः कोर्ति ये १० जादना) अशुभ प्रकृति ६ (दुभंग, अस्थिर, अशुभ, दुःस्वर, अनादय, अयक्षः कौति ६जानना) निर्माण १, गोव २, अन्तराय ५, ये ८६ प्र० का उदय जानना। सूचना-१० शुभ प्रकृतियों का उदय देवगति में ही होता है और ६ अशुभ प्रकृत्तियों का उदर नरक गति में ही होता है । शेष अशुभ प्रकृतियों (साधारण, सूक्ष्म, स्थायर, का उदय एकेन्द्रिय तिर्वच गति में ही होता है मौर ४था अपर्याप्त प्रशुभ प्रकृति का उदय लब्ध्य पर्याप्तक (तिर्यच) जीवो में ही होता है और ये जीव मनुष्य पोर तिथंचों में पाये जाते है। सत्व प्रकृतियां-को० नं० २६ के समान जानना। संख्या असंख्यात जानना। क्षेत्रलोक का मसंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । स्पर्शन-लोक का प्रसंख्यातवां भाग अर्थात् १६ स्वर्ग का देव किसी मित्र को संबोधन के लिये ३रे नरक तक जाता है इस अपेक्षा से १६वें स्वर्ग से मध्य लोक ६ राजु नीचा है मौर मध्य लोक से तौमरा नरक २ राज नीचा है ये राज लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना और सर्वार्थ सिद्धि के महमीन्द्र देवों में ७ नरक तक जाने की शक्ति है, परन्तु वे जाते नहीं इसलिये यहां शक्ति को अपेक्षा से १३ राजु स्पर्शन बतलाया गया है। (जसे सर्वासिद्धि से मध्य लोक ७ राजु नीचा है और मध्यलोक से ७वां नरक ६ राजु नीचा है, ये १३ राजु जानना) कास-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से अन्तर्मुहुर्त काल तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर कोई नहीं, एक जीन की अपेक्षा एक समय ने असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक वक्रियिक काययोग न धारण कर सके। माति (योनि)-लाख योनि जानना । (नरक गति ४ सास, दच गति ४ नाव ये ८ लाख जानना)। फुल-५१ लाख कोटिकुल पानना । (नरक गति २५, देवगनि २६ मे ५१ नास कोटिकत जानना)। ३४ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६४ ) कोष्टक नं०४३ वैक्रियिक मिश्रकाय योग में । चौतीस स्थान दर्शन * स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्यात नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान ३ ।। मूचना१-२-४ ये ३ गुण. । यहां पर पर्यास अवस्था नहीं होती है। २ जीव समास संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्ति । सारे गुण स्थान १ गुण स्थान (१) नरक गति में-१ले ४थे मुरण जानना । अपने अपने स्थान के । को.नं.१६-१६ देखो (२) देवगति में | सारे गुण. जानना १-२-४ ये ३गरण स्थान जानना 'को० न०१६-१७ देखो की.नं०१६-१६ देखो समास १ समास (१) नरक और देवगति में हरेक में बोलन०१६-१६ देखो | को.नं. १६-१६ देखो १ संगी पंचेन्द्रिय अपयन जीव समास जानना । को० नं०१६-१६ देखो भंग १ मंग (१) नरक और देवगति में हरेक में | को० नं०१५-१६ देखो | कोनं०१६-१६ देखो का भंग को० नं० १६-१६ देखो लब्धि मा ६ पयोति ३ पारिन को नं. १ देखी १ मंग ४ प्राण को.नं. १ देखो ११) नरक ग्रोर देवगति में हरेक में ७ का भंग को० नं. १६-१६ देखो को० नं०१६-१९ देखो को० नं०१६-१६ देखो ५ संजा को नं१ देखो (१) नरक और देवमति में हरेक में ४ का भंग को० नं. १६-१६ देखो मंग को० न०१६-१६ देबो : को नं० १६-१६ देखो नरकगति, देवगति (१) नरक मोर देवमनि जानना को. नं०१६-१६ देखो गनि को न०१६-१६ देखो, कोनं १६-१६ देखो जाति जानि कोनं १६-१६ देखो। को.नं.१६-१६ देखो ७ इन्द्रिय जानि पंचेन्द्रिय जाति जानना । (१) नरक और देवगति में हरेक में Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । २९५ ) कोष्टक नम्बर ४३ चौतीस स्थान दर्शन वैक्रियिक मिश्रकाय योग में पंचोन्द्रय जाति जाना को न०१६-११ देखो काय प्रसकाय को० नं० १५-१६ देखो को० न०१६-१६ देखो (2) नरक और देवगति में हरेक में १सकाय जानना, को० नं० १६-१६ देखो योग बैंक्रियिक मिश्रकाय योग । १. बेद को.नं.१ देखा कोनं.१ देखो (१) नरक और देवगति में हरेक में को. २०१५-१६ देखो को नं० १६-१६ देखो १ वै. मिश्रकाय योग जानना को० नं०१५-१६ देखो १ वेद १ बेद (१) नरक गति में-१ नपुसक वेद जानना • नं०१६ देखो को.नं. १६ देखो को नं. १६ देखो (२) देवगति में सारे भंग २-१-१ के भंग-का० नं.१६ देखो को.नं. १६ देखो ! को० नं०१६ सारे भंग भंग (१) नरक गति में अपने अपने स्थान के सारे को० न०१६ देखो २३-१६ के भंग-को नं० १६ देखो भंग को० नं० १६ देखो (२) देवगति में सारे मंग २४-२४-११-२३-१६-१६ के मंग-को० नं० । को० नं० १९ देखो ! को० न०११ देना १६ के समान जानना | सारे मंग (१) नरक गति में को.नं.१६ देखो | कोनं.१६ देखो २-३ के मंग-को.नं. १६देखो (२) देवगति में सारे भंग १ज्ञान २-२-३-३ के भंग-को० नं०१६ देखो को.नं. १६ देखो । को.नं. १६ देखो सारे मंग संयम (१) नरक पौर देवगति में हरेक में को न०१६-१६ देसो को नं०१६-१९ देखो १ भसयम जानना को०नं० १६-१६ देखो ३ १मंग १दर्शन (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो | को.नं. देखो १२ जान कुमति १. कुथत १, जान ३ से ५ जानना १३ संयम असंयम १४ दर्शन कोः०१६ देसो Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०४३ वैक्रियिक मिश्रकाय योग में चौतीस स्थान दर्शन २ । ३.४५ १ । २-३ के अंग-कोनं १६ देखो (२) देवगति में २-२-३-३ के भंग-को.नं. १६ देखो । १५ लेश्या को नं०१ देखो १दर्शन फो० नं०१६ हेलो | को नं. १६ देखो | को० नं१६- देखो । को नं. १६ देखो (१) नरक गति में ३ का मंग-को.नं. १६ दसो (२) देवमति में ३-३-१-१ के भंग-को न०१६ देखो १६ भव्यत्व १लेल्या को नं. १६ देखो | कोनं० १९ देखो १ भंग १ अवस्था को.नं.१६-१६ देखो . को० नं. १६-१६ देखो २ भव्य, अभव्य १७ सम्यक्रव मिव घटाकर (५) सारेभंग को नं० १६ देखो सम्यवस्व ! को नं०१६ देखो (१) नरक और देवमति में हरेक में २-१ के भंग-को० नं०१६-१६ देखो (१) नरक गति में १-२ के भंग को नं०१६ देखो (२) देवमति में १-१-३ के मंग-को० नं० १६ देखो (१) नरक और देवगति में हरेक में १ संज्ञी जानना बो० न०१६-१६ दखो १८ संजी सारे भंग १ सम्यक्त्व को नं०१६ देखो ! को नं. १६ देखो १ प्रथस्था को० नं०१६-१६ देखो । को नं. १६-१६ देखो १ मंग संजी २ ११ पाहारक पाहारक, पनाहारक (१) नरक और देवमति में हरेक में १.१के मंग-को० नं०१६-१६ देखो मारेभंग प्रवम्या को० नं०१६-१६ देखो' को०० १५-१६ देखो द २० उपयोग को० नं०१६ देखो १ भंग को न १६ देखो उपयोग . को न.१६ देखो (३) नरक गति में ४-६ के भग-को० नं०१६ देम्बो () देवगति में ४-४-६-८ के भंग-को नं०११ देखो २१ च्यान को० नं. १६ देखो १ उपयोग को नं० १६ देखो | कोन. दबो सारे भंग । ध्यान नं. १६-१६ देखो | को० नं. १६-१६ देखो (१) नरक और देवगति में हरेक में E-1 के मंग-को.नं. १६-१६ देखो Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( २९७ ) अलका ३ वैक्रियिक मिश्रकाय योग में २२ प्रायव मिथ्यात्व ५, अविरत १२, (हिसकविषय के+हिस्य) कंधाय २५.46 मिश्रकाय योग' ये ४३ जानना सारे मंग (१) नरक गति में । को० नं. १६ दैलो | को० नं०१६ देखो ४१-३२ के भंग-को०१६ के ४२-३३ के। हरेक भंग में से कार्माणकाय योग १ घटाकर ४१-30 के मंग जानना (२) देवगति में - सारे भंग १ मंग ४२-२७-३२-४१-३६-३-३२ के भंग-को० । कान०१९ देखो | को.नं. १९ देखी नं०१६ के ४३-३५-३३-४२-३७-३२-३३ के । हरेक भंग में से कार्मारणकाय योग १ घटाकर ४२-३३-३२-४१-३६-३२-३२ के भंग दानना । सारे भंग को० नं०१६ देखो १ भंग कोनं०१६ देखो २३ भाव को० न० ४२ के ३६ के भावों में से कुप्रथपि ज्ञान घटाकर ३८ भाव जानना (१) नरक गति में २५-२७ के भंग-को००१६ देखो (२) देवगति में २६-२४.०-२६-२४.२८-२३-२१-२६-२६ के मंग-को० नं०१६ के समान जानना सारे भंग को.नं. १६ देसो १ भंग । फो.नं.१६ देखो Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६८ ) अवगाहना को नं० ४२ के वै. काय योगियों की अवगाहना से कुछ कम अवगाहना जानना । बंध प्रकृतिपा-१०२ को० नं ४२ के १०४ प्र० में से तिकडे, मनुष्याच, १२ घटाकर १०२ जानना । उदय प्रकृतियां-७६ को.नं. ४२ के ८६ प्र. में से मित्र सम्यक्त्व १, नरकगति १, देवगति १. परमात १, उच्छवाम १, बिहायोगति २, स्वरद्विक २, १ घटसकर दोष ७७ प्र० में नरकगत्यानुपूर्वी १, देवमरमानुपूर्वी १ ये जोड़कर ७० प्र० का उदय जानना। सत्य प्रकृतियाँ-१४ भुज्यमान देव या नरकायु में से कोई १ मोर मध्यमान तियं च या मनुष्य प्रायु में से कोई १२ पटाकर १४६ प्र. का सत्व जानना । संख्या-प्रसंख्यात जानना। क्षेत्र-लोक का पसंख्यातवां भाग प्रमाण जानना। स्पर्शन-लोक का संख्यातवां भाग प्रमाण जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा अंतर्मुहर्त से पल्प के असंख्यातवें भाग तक यह योग निरन्तर चलता रहता है । एक जीव की अपेक्षा अंतमुहर्न से अंतर्मुहूर्त तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से १२ मुहूर्त तक संसार में किसी भी जीव के वैक्रियिक मिश्रकाय योग न होता हो यह संभव है। एक जीव की अपेक्षा साधिक दस हजार वर्ष से असंख्यात पुद्गल परायतन काल तक.मिश्रकाय योग प्राप्त न हो सके अन्य पतियों में ही जन्म लेता रहे । जाति (योनि)--- लाख योनि जानना, (नरकगनि ४ लाख, देवगति ४ लाख, ये ८ लाक्ष जानना) कुल- ५१ लाख कोटिकुल जानना, (नरकमति के २५, देवगति के २६ ये ५१ लाख कोटिकुल आनना) १२ Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन क० स्थान |मामान्य पालाप: पर्याप्त ( २ ) कोष्टक नं. ४४ आहारक काययोग या आहारक मिश्रकाययोग में अपर्याप्त | एक जोन के नाना एक जीव के एक । ।१जीव के नाना । एक जीव के समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा एक समय में नाना जीद की अपेक्षा समय में | २ समास । १ भंग १ पुरण स्थान १ बां प्रमत गणना । १ ६वां प्रमत्त गुण. ६वां प्रमत्त गुण स्थान जानना २ जीव समास १मभास १समास । समास १ समास संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त । संज्ञो पं० पर्याप्त संज्ञी पं० पर्याप्त | संजी प० पर्याप्त संत्री पं० अपर्याप्त संज्ञी पं० अपर्याप्त संज्ञी पं० अपर्याप्त और अपर्याप्त ये (२) ३ पर्याप्ति १ भंग १ भन १ मंग को नं० १ देखो | ६ का भंग को नं. १८ देखो, ६ का भंग 4 का भंग ३ का भंग कोनं०१८ देखो ३ का भंग ३ का भंग । लब्धि रूप ६ पर्याप्ति । . मंग । ७ १ भंग १ भंग को० नं. १ देखो १० का मंग को. २०१८ देखो | १० का भग १० का मंग का भंग को १८ देखो ७ का भंग ७ का मंग ५.संज्ञा ४ ४ । १ भंग १ भग को० नं. १ देखो ४ का भंग को००१८ देखो । का मंग का भंग कोनं०१८ देखो ४ का भंग ४ का भग मनय गति । मनुम्ब बति मनुष्य पति ७ इन्द्रिय जाति १ पंचेन्द्रिय जाति | परिक्ष्य दाति जानना |पं दिय जाति जागना ७ काय ? १ । निकाय: सकाय जानना अमकाय जानना हयोग माहारक काययोग या | माहारक काययोग जानना माहारक काययोग माहारकः काषयोग, पाहारक मिश्रकाययोग साहारक मित्रकाययोग ! जानना । जान्ना | जानना जिसका विचार करना हो वो योग जानना " Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४४ आहारक काययोग या आहारक मिथकाय योग में - पुरुषवेद १० वेद पुरुष वेद जानना ११ कषाय सारे भंग १ भंग संज्वलन कापाय ४, ११ का भंग को नं' के | ४-५-६ के मंग - कोल नं.१८ हास्यादि नोकवाय ६ । ममान जानना को.नं०१८ देखो देखो पुरुषदेव१ये (११) पुरुष वेद जानना सारे भंग १ भंग १ का भंग पर्याप्तत को नं०१८ देखो | को० नं. १ देखो ३ सारे भंग ३ का भंग ! १ भंग | ३ का भंग समान सारे भंग २ का भंग संयम | २ का भंग मति-श्रुत-पवधि शान | ३ का भंग को० नं०१८ के मे ३ जानना १३ संयम २ सामायिक, वेदोपस्था- २ का भंग को० नं०१८ के पना ये २ जानना समान जानना १४ दान प्रचक्षु दर्शन, चक्षु दर्शन ३ का भंग को.नं.१८ के अवधि दर्शन समान जानना १५ लेश्या शुभ लेश्या ३ का भंग को नं०१८ के समान जानना १६ भव्यत्व भव्य १ भव्य जानना को० नं०१८ देखो १७ सम्यक्त्व सायिक, क्षयोपशम स० २ का मंग को० नं०१८ | देखो |३ का भंग जानना। ३ का भंग ३ का भग | को० नं०१८ के समान । सारे भंग १संयम २ का भंग २ का भंग | २ का भंग को.नं.१८ के समान जानना सारे भंग दर्शन ३ का भंग ३ के भंगों में से ३ का भंम को० नं०१८ | कोई १ दान | के समान जानना। सारे भंग | लेश्या | ३ का मंग के भंगों में से ३ का भंग कोई १ लेश्या को नं. १६ देखो सारे भंग पर्याश्वत १ दर्शन पर्याप्तवत् १ लेश्या पर्याप्तवत मारे भंग पर्याप्तवत् १ १भव्य-जानना सारे मंग २ का भंग । १सम्यक्त्व के भंग में से कोई १ सम्यक्त्व सारे भंग २ का मंग २ का भंग को.नं०१८ देखो । सम्यक्त्व २ में से कोई सम्यक्त्व १८ संशी का अंग को.नं.१८ संत्री संशो संजी संजी देखो का अंग को० नं. १८ देखो १६भाहारक माहारक | काम को.नं.१- देखो। माहारक पाहारक १ का मंग को० नं०१८ देखो पाहारक पाहारक Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन २ - २३ मार्च २० उपयोग € | सानोपयोग ३ दर्शनाप ६ का भंग को नं० १८ के I समान जानना 19 बोग ३ मे ६ जानना ७ का मंग को० नं० १८ के समान जानना २१ ध्यान हट वियोग घटाकर पान, धर्मध्यान ४ ये ७ जानना २२ प्रासव २१ उपरोक्त कषाय ११. शाहारक काययोग १. श्रा० मिथकाययोग १, मनोयोग ४, वचनयोग ४ ७ २७ शायिक सयोगशम स० २, ज्ञान ३, दर्शन ३, लब्धि ५, मनुष्यगति १. कषाय ४, शुभ लेश्या ३, पुरुषसँग १, सरागसंयम २, अज्ञान १, असिद्धत्व १, जीवस्व १, भव्य १, ये (२७) ३ २० आहारक मिश्रकाय योग घटाकर (२०) २० का भंग को० नं० १८ के समान जानना ( ३०१ ) कोष्टक नं० ४४ सारे गंग ६ का मंग सारे भंग ७ का भंग सारे भंग २० का मंग जानना 보 १ मंग २० का भंग जानना आहारक काययोग या आहारक मिश्रकाय योग में १ उपयोग ६ के भंगों में से ६ का भंग को० नं० १८ कोई उपयोग १ प्यान ७ में में कोई १ देखो 1 ७ ७ का मंग को० नं० १८ के समान जानना ध्यान २७ १ मंग सारे मंग २७ का मंग को० नं० १८ के को० नं० १८ देखो | को० नं० १५ समान जानना देखो ६ १२ आहारक काययोग १ मनोयोग ४ वचनयोग ४ ये घटाकर (१२) १२ का मंग को० नं० १ के समान जानना २७ २७ का मंग को० नं० १५ के समान सारे मंग पर्याव सारे मंग ७ का मंग सारे नंग १२ का मंग जानना सारे भंग को० नं० १८ देखो १ उपयोग प १ ध्यान ७ में से कोई १ भ्यान जानना १ मंग १२ का मंग जानना १ मंग को० नं० १८ देखो Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ २६ अवगाहना-एक हाथ ऊंचा शरीर जानना । बंध प्रकृतियां-६३ को० नं०६ के समान जानना। ६२ माहारक मिथकाय योग की अवस्थायें में देवायु १ घटाकर ६२ जानना बय प्रकृतियां-६१ को० नं. ६ के ८१ उदय प्रकृतियों में से स्थानगृध्यादि महानिद्रा ३, स्त्री वेद १, नपुंसक वेद, अप्रशस्त बिहायोगति १, दुःस्वर १, संहनन ६, औदारिकद्विक २, पहले समचतुरस्रसंस्थान छोड़कर शेष ५ संस्थान ये २० घटाकर बाहारककाययोग की अपेक्षा ६१ प्र० का उदय जानना । ५७ माहाकाय काययोग की अपेक्षा ऊपर के २१, प्र. में से परवात १, उच्छवास . प्रास्तविहायोगति , सुस्वर १ ये ४ घटाकर ५७ जानना सत्य प्रकृतिया-१४६ नरकायु १, तिचायु ! ये २ घटाकर ४६ प्र. का सत्ता जानना । सक्या-माहारक काययोग में ५४ जीव एक समय में हो सकते हैं और माहारक मिचकावयोग में २७ जीव एक समय में हो सकते हैं। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवा भाग प्रमाण जानना । स्पर्शन-- लोक का असंख्यातवां भाग प्रमाण जानना । काल-पाहारक काययोग में एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक जानना और ग्राहारकमित्रकाय योग में अन्तर्मुहुर्त से अन्तर्मुहूतं तक जानना। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से वर्ष पृथक्त्व तक कोई भी माहारक काययोगी नहीं हो सकते । एक जीव की अपेक्षा अन्तमुहूते से या ७ अन्तर्मुहुर्त कम अर्घ पुद्गल परावर्तन काल तक माहारक काययोग धारण न कर सके। जाति (योनि)--१४ लाख योनि मनुष्य जानना । कुल-१४ लाक्ष कोटिफुल मनुष्य जानना । २८ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ४५ कार्मारणकाय योग में न सामान्य प्राप्ताप | पर्याप्त अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना समय में एर जीव के एक समय में १ गुरण स्थान १-२-४-१३ ये मुख्य स्थान जानना सूचनायहा पर पर्याप्त अवस्था नहीं होती है। देखो देखो २ जीव समास अपर्याप्त अवस्था जानना को.नं.१ में देखो सारे गुण स्थान १ गुण स्थान (१) नरक गति में ले ये गुण स्थान | अपने अपने स्थान के / अपने अपने स्थान के (२) नियंच गति में-कर्मभूमि में १-२ गुम्म०, सारे गुण स्थान जानना सारे मुरा० में से कोई भोगभूमि में -१-२-४ गुण जानना को० न १६ से १६ ! १ गुण (३) मनुप्य गति में-१-२-४-१३ गुरण को० नं.१६ से १९ (४) देवगति में-१-२-४ बुरण जानना को०० १६ से १६ देखो १ सगस १ समास (१) नरक गति में * अपने अपने स्थान के . अपने अपने स्थान के ३ का भंग-को० नं. १६ देखो कोई 1 समास जानना | समासों में से कोई एक (२) तिर्यंच गति में व नं०१६ से १६ समास जानना ७-६-१के अंग को नं. १५ देखो देखो को० नं०१६ से १६ (३) मनुष्य गति में देखो १-१ के मंग–को० नं०१८ देखो (१) देवगति में १ का भंग-को.नं. १६ देखो १ भंग (१) नरकादि चारों गतियों में हरेक में ! अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान के ३ का संग-को० नं०१६ से १६ देवो ३ का मंग जानना । ३ का भंग जानना (२) मोगभूमि में को० नं.१६ से १९ मो.नं.१६ से १६ ३ का भंग-कोनं-१७-१८ देखो देखो नधि रूप ६ पर्याप्ति होती है १ मंग ३ पर्याप्ति को.नं.१ देखो १मंग ४प्राण को००१ देखो Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.४५ कार्माणकाय योग में ३-४-२ १ भंग १७ देखो ५ संज्ञा को० नं.१ देखो ६ गति को० नं.१ देखो ७ इन्द्रिय जाति को नं०१ देखो (१)नरक पौर देवगति में हरेक में। ७ का भंग-को० नं. । ७का भंग-को-नं. ७ का मंग-को० नं०१६-१६ देखो १६-१६ देखो १६-१६ देखो (२) तिर्यच गति में १ भंग ७-७-६-५-४-३-३ के भंग-कोनं०१७ | कोई १ भग को.नं. कोई १ भंग को.नं. के समान जानमा १७ देखो ३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग ७-२-७ के भंग-को नं. १८ देखो को० नं०१८ देखो । को० ने०.१८ देखो भंग १ मंग (१) नरक-तिर्य च-देवगति में हरेक में |४ का भंग जानना को. | ४ का भंग-जानना को. ४ का भंग-कोनं०१६-१७-१६ देखो नं.१६-१७-१६ देखो । नं.१६-१७-१६ देखो (२) मनुष्व गति में सारे भंग १ भंग ४.०-४ के भंग-को० नं. १८ देखो। को.नं. १५ देखो - को.नं. १८ देखो १गति चारों गति जानना, को० नं०१६ से १६ देखो, ४ में से कोई १ पत्ति । ४ में से कोई १ गति जाति १जाति (१) भरक-मनुष्य-देवगति में हरेक में को. नं०१६-१५-१६ । को० नं०१६-१८-१९ १ पंचेन्द्रिय जाति जानना-को.नं. १६- देखो १८-१९के समान आनना (२)तियंच गति में जाति जाति ५-१-१ के भंग-को० नं०१७ दलो को देखो को.नं. १७ देखो काय (१) नरक-मनुष्य-दवगति में हरेक में । को० नं. १६-१८-१८ को० नं०१६-१८-१६ १३मकाय जानना-मो.नं. १६-१८-१९ देखो देखो (२) तिर्वच गति में १-४-१ के मंगको न०१७ देखो कनं.१७ देखी को० नं १७ देखो कार्मागाकाय योग जानना - देखो - - - ८काय -- को० नं० १ देखो हयोग कार्माणकाय योग १०वेद को० नं. १ देखो ३ (१) नरक गति में- नपुसक वेद-को को० न० १६ देखो को नं०१६ देखो Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ३०५ ) कोप्टक नं०४५ चौतीस स्थान दर्शन कर्माण काय योग १ वेद को-401 १२ कपाम पोर नं. १ देखो । (२) तिर्यंच गति में भंग ३-१-३-१-३-२-१के अंग कोनं०१७ देखो को देखो को० नं०१७ देखो (8) मनुष्य गति में सारे भग ३-१-०-२-१ के भंग नं.१- देखो | को- यो । को न देखो (४) देव मति में न मार भग सारे भग २-१-१ के मन को न०१६ देखो का न: १६ देखो को.नं.१६ देखो २५ सारे भंग (१) नरक गति में अपने अपने स्थान केमारे भय अपने अपने स्थान के सारे २३-१६ के भंग को नं. ११. देखो | वो० नं० १६ देवो भंगों में से कोई भंग (6) निर्वच गति में सारे भंग भंग २५-२३-२५-५-२३-५-२४-१६ कोनं १२ देखो ! को नं०१७ देखो के. भ. को नं०१६ के समान जानना (३) मनुष्य गनि में मारे भंग २५-११-०-२४-१६ के भंग नं१८ देखो | फोनं १- दवो को० न०१८ के ममान जानना १४) देव गति में मारे मंग २४-२८-१९-३-18-६ मंग मो.न. १६ देखो को० नं०१६ दन्त्री का० नं. १६ के ममान जनना सारभंग १जान 18) नमः गति में को न.१८ देवो . को नं १६ देखो १-2 के भंग को०१६ देखो (२) तिर्यंच गति में १ज्ञान २-:-: के भंग को० नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो का० नं. १७ देखो (3) मय गति में मारे भंग १ज्ञान २-4-7-2-1 के भंग को देखो को.नं. १८ दंघी को नं०१८ देखो (४)देव गति में मार भंग जान २-२-:-३ के भंग को० नं०१६ देखो को० नं. १९ देखो को नं. १६ ददो १प्रसयम १पसंयम । (१) नरक, तिर्थच. देवगति में हरेक में को नं० १६-१०-१६ देखो कोन १६-१७ १६ देखो १२ जान कुमाथि जान १. मनः पर नान ये घटाकर दोष जनन्दा १३मयम प्रसंगम, यथास्थान Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० ४५ कारण काय योग में चौंतीस स्थान दर्शन र । २ । ४-५ - - - १ असंयम जानना कोन. १७-१८-१६ देखा 3) मनुष्य गति में १-१के भंग- कोन०१८ देखा १४ न को० नं०१ देखो सारे मंग का० नं १देखो १भग को० नं० १६ देखो संयम को० म० १८ देखो १दर्शन को० नं. १६ देखो (१) नरमति में २-३ के भंग-कॉ० नं. १६ देखो (२)तिर्यत्र यति में १-२-२-२-३ के मंग को नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में २-३-१-२-३ के भंग-को० नं०१८ देखो (४) देवगति में २-२-३-३ के मंग-को० नं० १९ देखो १ भग को.नं. १७ देखो सारे भंग को नं. १८ देखो १ बंग को० नं०१६ दखो मंग को० नं० १६ देखो १दर्शन वा० नं०१७ देखो १दर्शन कोलन १८ देखो १५ लश्या का० नं.१ देखो को० नं०१६ देखो १ लेन्या को० नं. १६ देखो (१) नरक गति में ३ का भंग को.न. १६ देखो (२) निर्यच मति में। ३-१ के भंग-को नं.१७ देतो (३) मनुष्य गति में ६-१-१ के भंग--को० नं०१८ देखो (४) दंवगति में २-३-१-१ के भंग को० नं.१६ देखो १ मंग को० न०१७ देखो सारे मंग कारनं.१० देखो भंग को.नं.१६ देखो मंग को न० १६.२६ देखो लेदया को.नं . देखो १ लाया मो० नं० १८ देतो इलेश्या को० नं. १६ देखो अवस्था को.नं. १६-१६ देखो १६ भव्यत्व भव्य, प्रभव्य (१) नरक पौर देवगति में हरेक में २-१ के भंग-कोर २०१५-१६ देखो (२) तिथंच गति में २-१-२-१के भंग को. नं० १७ दंबो (३) मनुष्य गति में २-१-२-१ के मंग,को नं०१८ देखो १ भंग को० नं०१७ देखो सारे मंग को नं०१८ देखो १ प्रबस्था को.नं०१७देसो १अवस्था को० नं०१८ देखो Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १७ सम्यक्त्व मिश्र घटाकर शेष (2) १८ संजी १६ आहारक १० उपयोग २ मंजी, प्रसजी अनाहारक को० नं० १ देखी २ १० ३-४-५ ( ३०७ ) कोष्टक नं० ४५ (१) नरक गति में १-२ के मंग को० नं० १६ देखो (२) तियंच गति में १-१-१-१-२ के मंग को० नं० १७ देवो (३) मनुष्य गति में १-१-२-१-१-१-२ के मंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में १-१-३ के भंग को नं० १६ देखो २ (१) नरक और देवगति में हरेक में १ मंत्री जानना को० नं० १६-१६ देखो (२) नियंत्र गति में १-१-१-१-१-१ के भंग को० नं० १० देखो (२) मनुष्य गति में १-०-१ के भंग को० नं० १८ देखो १ (१ चारों गतियों में हरेक में ' अनाहारक अवस्था जानना को० नं० १६ से १६ देखो १० (१ नरक गति में ४-६ के मंग को० नं० १६ देखो (२) तियंच गति में ३-४-४-३-४-४-४-६ के मंग को० नं० १७ के समान जानना (३) मनुष्य गति में ४-६-१-४-६ के मंग को० १५ देखो ७ सारे भंग को० नं० १६ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १८ देखो सारे रंग को० नं० १६ देखो १ को० नं० १६-१६ देखी १ भग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १० देखो अनाहारक अवस्था १ मंग [को० नं० १६ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखो कर्मारण काय योग ८ १ सम्यक्त्य को० नं० १६ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० • १७ देवो १ सम्यक्त्व को० नं० १८ देवो १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो १ अवस्था को० नं० १६-१६ देखी १ अवस्था को० नं १७ देखो १ अवस्था को० नं० १८ देखो ܕ अनाहारक अवस्था १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग को० नं० १८ देखो Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ t चौतीस स्थान दर्शन २ १ ध्यान १० ध्यान ४ रौद्रध्यान ४, आज्ञाविचय १, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति १ ये १० जानना २ मानव ४३ मिथ्यात्व ४, अविरत १२, कषाय २५, कार्पारण काययोग १ ये ४३ जानना ३-४-५ ( ३०८ ) कोटक नं० ४५ (४) देव्यनि में ४-०-६-६ के भंग कां० नं० १६ देखो (१) नरक गति में ८- के भंग का० नं० १६ देखी (२) तिर्यच गति में ८-८-६ के भंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में ८-६९८-९ के भंग को० नं० १० देखो (४) देवगति में के मंग को० नं० १६ देखी ४३ (१) नरक गति में १ले ४ये गुण० में ४१-३२ के भंग को० नं० १६ के ४२-३३ के हरेक भंग में से वं० मिथकाययोग १ घटाकर ४१-३२ के भंग (२) तिच गति में । १ ले गुण स्थान में ३६-३०-३८-३९-४२-४३ के मंग को० नं० १७ के ३७-३८-३९-४०-४३-४४ के हरेक मंग में से औ० मिश्रकामयोग १ घटाकर ३६-३७-३८३६-४२-४३ के मंग जानना २ रे गु० में ३१-३२-३३-३४-३७-२० के मंग को० नं० १७. के ३२-३६-३४-३५-३८-३६ के हरेक मंग में से भौ० मिश्रकाययोग १ घटाकर ३१-३२-३३ ३४-३७-३८ के भंग जानना ४था गुण स्थान यहां नहीं होता भोगभूमि में १ले २२ से ४ o में गुम्पु० कार्मारण काय योग में १ भंग को० नं० १६ देखो सारं भंग को० नं० १६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १० देसो सारे मंग को० नं०] १६ देखो सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १७ देखो १ ध्यान को० नं० १८ देखो १ ध्यान को० नं० १६ देखो १ मंच अपने अपने स्थान के सारे भंगों में से कोई १ भंग जानना Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ४५ कारण काय योग में ४२-३७-२२ का भंग को नं०१७ के ४३-३८३३ के हरेक भंग में से औ० मित्रकाय योग घटाकर ४२-1-३२ के मंग नानना (1) मनुष्य गति में १-२ -१६षं गुरण में ४३-३८-३२-१ के भंग कोल नं० के ४४. ३६-३३-२ के हरेक भंग में से मौ० मित्र काययोग १ पटाकर ४६-३८-३२-१ के मंग जानना १ का भंग को.नं.१८ के समान जानता भोग भूमि में ले ४थे गुरग में ४३-३०-३२ के भंग को. नं०१८के ४४४६-३३ के हरेक मंगों में से मौ० मिथकाययोग १ पटाकर ४३-३८-३२ के भंग मानना (४) दंव गति में १-२-४ये मुख० में ४२-३७-३२-४१-३६-३२-३२ केभंग को नं०१६ के ४३-३८-३३-४२-३७-१३३३ के हरेक अंग में से वै० मिथ कायाम १ घटाकर २-३७-३२-४१-२६-३२-३२ के भंग जानना ४६ ३माव उसम-चारित्र, मनः पर्यय कान १, कुपवधि कान १. संयमा-संयम १, सरागसंयम१ये ५ घटाकर ४५भाव जानना ४८ (१) नरक गति में १ले विमुग्म २५-२७ के मग को० नं. १६ देखो (२) तिर्वच गति में ले रे गुण. में २४-२५-७-२७-२२-२३-२५-२५ के भंग को. नं०१७ देखो सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे मंग जानना कोनं०१६ देखो सारे मंग को.नं. १७ देखो १ मंग अपने अपने स्थान के | सारे हरेक मंग में से कोई १भंग जानना १ मंग कोनं०१७ रखो Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नम्बर ४५ कारण काय योग में चौंतीस स्थान दर्शन १ । २ । ३.४-५ सारे भंग को० नं० १८ देखो १ मंग को. नं०१८ देखो भोग मूमि में १ले रे ये गुण में २४-२२-२५ के भंग को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में १ले २रे ४थे १३वे एरण में ३०-२८-३०-१४ के भंग को.नं. १८ के समान जानना भोग भूमि में १-२-४ये गुण में २४-२२-२५ के भंग को० नं०१८ देखो ४) देव गति में १-२-४थे गुण में २६-२४-१-२६-२४-२५-२३-२१-२६-२६ के मंग को.न. १ के समान जानना सारे भंग को० नं.१६ देखो को नं. १६ देख Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ NMarr ३८.um प्रवाहना-निगोदिया जीव के त्यक्त शरीर को जघन्य अवगाहना धनांगुल के अनस्यातवें भाग जानना और उत्कृष्ट अवगाहना एक हजार योजन तक जानना। सूचना:-(१) विग्रह मति में छोड़े हुए शरीर को अवगाहना रूप आत्म प्रवेश की अवगाहना बना रहता है। (२) केवल समुपात में प्रतर और लोकपूर्ण अवस्था में वर्तमान गरीर के आकार ही है। बंध प्रकृतियां-११२ बंधयोग्य १२० प्र० में से प्रायु ४, नरकगति १, नरकगत्यानुपूर्वी १, प्राहारकद्विक २ वे ८ घटाकर शेष ११२ बंध प्र. जानना उदय प्रकृतियां-६९ उदययोग १२२ प्र. में से महानिदा ३, मिश्र (सम्यक्त्व) १, औदारिकद्विक २, वैक्रियिकद्धिक २, माहारकद्विक २, संस्थान ६. संहनन ६, उपचात १, परपात १. उच्छवास १, पातप १, उद्योत १, विहायोगति २, प्रत्येक १, साधारण १ स्वरद्विक २, ये ३३ घटाकर मप्र०का उदय जानना। सत्य प्रकृतियां-१४८ को नं० २६ के समान जानना । संख्या-अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र सर्वलोक जानना। स्पर्शन--सर्वलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से तीन समय तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा जघन्य अन्तर क्षुद्रभव में ३ समय कम शुदभव में रहकर मरण करके दुबारा विकह गति में कार्माणकाय योग धारण कर सकता है। उत्कृष्ट अन्तर ३ समय कम ३३ सागर के बाद विग्रह गति में प्राकर कारिणयोग धारण करना ही पड़े। जाति (योनि)-- लाख योनि जानना । कुल- १६६0 लाख कोटिकुल जानना । ३३ ६४ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१२) कोष्टक नं०४६ प्रयोग में चौतीस स्थान दर्शन क० स्थान सामान्य श्रालाप पर्याप्त | अपर्याप्त माना जीवों की अपेक्षा एक जीव के माना समय में । । एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान १ गुण स्थान १ बोदव गुण स्थान जानना १ संज्ञी पंजेन्द्रिय पर्याप्त उपचार से जानना सूचनायहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं १ १ समास १ समास होती है। ६ का भंग को.नं. १८ देखो १ मंग ६ का मंग १ भंग ६ का मंग १नायु प्राण- को. नं. १८ देखो ० अतीन मंज्ञा १ गति मनुष्य १ मनुष्य गति-को नं. १८ देखो १ मुरम स्थान चौदहवां गुण २जीव समास संज्ञी पंचन्द्रिय पर्याप्ति । ३ पर्याप्ति ____ को नं०१ देली । ४ प्रारण ग्रायु प्राग्ग । ५ मंडा ६ गति मनुष्यगति ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति ८ काय घसकाय हयोग १० वेद ११ कषाय १२ जान १३ संयम १४ दर्शन १५ लेश्या १६ भव्यत्व १ गनि मनुष्य १ कानि १जाति १पंचेन्द्रिय जानि-को २०१८ देखो १त्रमकाय मो० नं०१८ देखो (0) प्रयोग जानना (0) अपगन वेद जानना (0) प्रकपाय जानना १ केवल मान जानना १. वयाख्यान संवम जानना १ केवन दर्शन जानना (०) पलश्या जानना १मच्यत्व जानना ...000०.०७ Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ सम्यगस्व १८ मी १६ श्राहारक २० उपयोग चौतीस स्थान दर्शन ज्ञानोपयोग, दर्शनोपयोग १ २१ २२ प्रात्रय २३ माद २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ४ ११ (०) अनुभव (न संज्ञी न प्रसंज्ञी) १ अनाहारक जानना २ ज्ञानोपयोग १, दर्शनोपयोग १ मे (२) १ व्युपरत क्रिया निर्वानी शुषस प्यान (०) अनासब जानना १३ १३ का अंग-को० नं० १८ देखो ( ३१३ ) कोष्टक नं० ४६ 0 हत्या - ५६८ क्षेत्र- लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना । o २ युगपत् जानना गाना जघन्य अवगाहना ॥ हाथ और उत्कृष्ट भवगाहना ५२५ धनुष तक जानना । बंध प्रकृतियां - (०) यहां बंध नहीं है । दय प्रकृतियां - १२ तीर्थंकर केवलियों की अपेक्षा- साता वेदनीय १, मनुष्यायु १, उच्च गोत्र १, १ मंग १३ का भंग जानना जाति (योनि) - १४ लाख मनुष्य योनि जानना । कुल - १४ लाख कोटिकुल मनुष्य की जानना । स्पर्शन- ७ राजु । काल-प्र-इ उ ऋ लू ये पांच ह्रस्व स्वरों का उच्चारण करने तक का काल जानता । अन्तर—कोई अन्तर नहीं, कारण मोक्ष जाने के बाद फिर संसार में नहीं पाता। ५ २ युगपत् जानना १ १ मंग १३ का भंग जानना मनुष्य गति १, पंचेद्रिय जाति १, तीर्थंकर . प्र० १, बादर १, त्रस पर्याप्त १, सुभग १, प्रादेय १, यशः कीर्ति १ मे १२ जानना। सामान्य केवली की अपेक्षा तीर्थंकर ०१ घटाकर १ प्र० का उदय जानना । प्रयोग में | सस्य प्रकृतियां - (१) द्विचरम समय में ८५ वेदनीय २, मनुष्यायु, गोत्र २, मनुष्यद्विक २, देवद्विक २, पंचेन्द्रिय जाति १, शरीर ५, बंधन ५, उपघात १, परशात १, उच्छवास १, पर्याप्त १, अपयप्त १ स्थिर १, अस्थिर १. शुभ १ अशुभ १ यशः कीति १, भयशः कीर्ति १, प्रत्येक १, बादर १, जस १, सुभग १, दुभंग संघात ५, अंगोपांग ३, संस्थान ६, संहनन स्पर्शादि २०, मगुरुलघु १, १ सुस्वर १, दु:स्वर १ श्रदेय १ मनादेव १ निर्माण १, विहायोगति २ तीर्थकर १ ये ८५ जानना । (२) चरम समय में १३ ऊपर के उदय प्रकृति १२ और असाता वेदनीय १ जोड़कर १३ जानना । सामान्य केवली की अपेक्षा तीर्थकर प्र० १ घटाकर १२ जानना । ६-७-८ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक तं० ४७ पुरुष वेद में का स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नाना एक जाचक एक समय मे समय में । नाना जीवों की प्रपना । नाना जीवों की प्रगेझा जोच के नाना १जीन के एक समय में | समय में देखो १ गुग स्थान | सारे गुण स्थान गण सारे गुण १ अगा। १ मे ६ नु० जानना (१) नियंन गति में अपन अपन धान ' फागुगा। (१निगम में अपने मन रवान को गूग, कर्म भूमि में के ५मार मुगा । गुगगन | कभनि में अगर | केनार मा को० न.१७ १ मे ५ गुण - मानना स्थान को ०१ भोगभूमि में मुगा .: 10? देखो मोनभूमि में १ से ४ गुग का न०१७ देखो' दसो । (२) मान्य गति म | सारंग पु र (२) मनुष्य गति में सारमा ! १० फर्ममाम म कान नं १मी को न १८ कर्मभूमि मे १ते गुगर को ना १५ देखो सोनं०११.४. जागना भोनि में - ४शन भोगभूमि में १४ मुसा ( दयगति मे । न गुण गु ण | (३) बनान में | मारे गगा । १गण १-२-४ गुण जानना बोन. देवीकोन.१९देखो | १ मे ४ मुग्गा जानना 'कोन. १९ देशों को नरदेवों १ नमाम १ समास २जीव समास | समास १ समास (१) तिर्वच गनिमें प्रसं-1 पं० पर्याप्त पर्याप्त ११) नियंच गति में १ मममी प पर्याप्त पतिन् पाचन सजीपचेन्द्रय । १ असंनी पं० पर्याप्त को० । मममी पं० ११ यज पं. (२) निर्धन-मनप्यये ४ जानना नं०१७ दवा को न० १५ दंगो १. देवईन म हरक में मुचना-प्रमजी पंगल | यिन-मनुष्य-देवगनि में | १ सनीपंचेन्द्रिय पर्याप्त पवन पतिवन अपर्याप्त अवस्था यहाँ । हरेक में प्रवस्था जानना गोक गा०३०-२६११ नगी पंचेन्द्रिय पयप्ति | १ संजी०प | १ मंशी ५०प०| के समान लिया है अवस्था जानना का नं० १७-१८-१९ देखो १ मंग ३ पर्याप्ति (१) तिर्यन-मनुष्य- ३ का मंग ३का मंग को० नं०१ देखी । (१) नियंच गति में ५ का भंग ५ का भंग देवनि में हरेक में "५ का भंग-प्रसंज्ञी पं. के ३ का भंग जानना कोनं०१७ देखो १ मंग Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( ३१५ । कोष्टक नं०४७ पुरुष वेद में ६ का भंग (२) तिपत्र–मनुष्य-देवगति में हरेक में ६ का भंग-गो.नं. १७-१८- | ६ का मंग | को० नं०१७-१८-१९ देखो, लब्धि पE-५ । का भंग भी होता है २० -१ भंग र का भंग | १ मंग ७ का भंग । १ भंग । ७ का मंग १ भंग ६ का भंग (१) तिर्यच गति में। ७ का मंच-प्रसंी के (२) तिर्यच गति में १० का मंग | ममृत्य-देवमति में हरेक का मंग का मंग १० का भंग ४प्राण १० को नं०१ देखो । (१) तिर्यच गति में ६ का भंग-असंजी के को० नं०१७ के समान (२) तिपंच-मनुख-देवमति में हरेक में १० का भंग- को नं. १७-१८-१६ देखा -५ नंजा का० नं. १ को । (१) नियंच-देवनि में हरेव में ४ का भंग-कोन०१५ ७ का भंग को न १७१८-१६ देखो १ भंग ४ का मंग १ भंग ४ा मंग (१) निर्व. देवति में | (१) या वनात म । ४ का भंग १ भंग ४ का मंग (२) मनग्य गनि में ४.३-२ के भंग कानं ? के नमान ६ गति नियंच-मनुष्य-देवगति निव-मनुप्य-देवगति में | | ४ का भंग को नं सारे भंग १ भंग ११-28 देखो ४-३-२ के भंग | ४-३-२ के (0) मनुष्य गति में सारं भंग | भंग भों में से कोई ४ का भंग का. नं. ४ मा भंग का भंग १ भंग देखो गनि १मति ! १गति में कोई १ | में से कोई१ तिरंच-मनुष्य-वननि । ३ में से कोई १ | में कोई। गति १ जादि १ जाति जाति १ जाति नीनों गलियों में । हरेक में १ पंचन्द्रिय जानि । जानना को० नं. १३-१-१६ ७ टन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जानि नीनो गनियों में हरेक में १पनेन्द्रिय जाति जामनः वो नं. १७-१८-१९ देखो Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४७ पुरुष वेद में । काय त्रसकाय सकाय | १त्रमकाय तीनों गतियों में हरेक में | १बसकाय जानना १सकाय सकाय | | तीनों गतियों में हरेक में १ सकाय जानना को० नं०१७-१८-१६ देखो योगानं० २६ देखो। १ भंग | १ योग १ मंग १ योग पौ. मित्रकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान प्रौ० मिथ काययोग १, । पर्यापवत जानमा पर्याप्तवत् जानमा 2. मिश्रकाययोग १, मंग जानना के भंगों में से | 0 मित्रकाययोग १, मा०मिश्रकाययोग १, कोई १ योग | प्रा. मिश्रकाययोग १, कार्माण काययोग, कामाण कापयोग १, ये ४ घटाकर (१) ये ४ योग जानना (१) तिपंच गति में मंग १ योग !(१)तियंच गति में। १मंग । १योग ९-२-१ के अंग को.नं. १७ देखो को०नं०१७ देखो १-२-२ के भंग को नं० १७ देखो | कोन०१७ को. नं०१७ देखो को.नं. १७ देली | देखो (२) मनुष्य गति में सारे भंग योग (२) मनुष्य गति में सारे भग १ योग --- के भंगको .नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो १-२-१-१-२के भंग को.नं.१८ देखो को नं०१८ देखो को.नं.१८ देखो | कोनं०१५ देखो (३) देवमति में १ भंग १ योग (३) देव गति में १अंग योग ६ का भंग को.नं०१६ देखो को नं. १६ देखो १-२ के मंग को.नं. १६ देखो कोनं० १६ देखो को.नं. १६ देखो को.नं०११ देखो १०वेद पुरुष वेद ११ कवाय स्त्रीनपुसक वेद ये २ षटाकर (२३) । बन तीनों गतियों में हरेक में तीनों गतियों में हरेक में १ पुरुष वेद जानना १ पुरुष वेद जानना २३ सारे मंगअपने अपने स्थान २३ । - सारे भंग १ मंग (१) तिर्यंच गति में घपने अपने स्थान के के भंगों में से | (१) तिथंच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान २३-२३-२३-१९-१५ के सारे मंग जानना कोई मंग | २३-२३-२३-२३ के सारे मंग जानना के अंगों में से भंग कोनं०१७ के २५-को० नं०१७ देखो जानना हरेक भंग में से स्त्री वेद को.नं.१७ देखो | कोई १मंग २५-२५-२१-१७ के हरेक को० नं.१७ नपुसक वेद ये २ घटाकर जानना को नं. १७ देखो Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४७ पुरुष बेद में मंग में से स्त्रीवेद १ नपुंसक २३-२३-२३-२३ के वेद १५२ घटाकर २३-२३ भग जानना २३-१४-१५ के भंग जानना भोग भूमि में भोग भूमि में का मंग को २३-१६ के भंग को०० १७के २४ के भंग में मे १७ के २४-२० के हरेक माद भटरा भंग में से स्त्री वेद का मंग जानना घटाकर २३-१६ के भंग । १६ का मंग को.नं०१७ जानना के समान मानना (२) मनुष्य गति में सारे मंग १मंग | । (२) मनुष्य गति में । सारे भंग १मंग २३-१६-१५-११ के मंग को.नं. १८ देखो | कोनं०१५ २३ का मंग को००१८ देखो कोनं०१५देखो को००१८के २५-२१ देखो को.नं०१८के २५ के १५-१३ के हरेक भंग में भंग में से स्त्री-नपुंसक | से स्त्री नपुसक वेद ये २ वेद ये २ षटाकर २३ का: घटाकर २३-११-११-१२ मंग जानना के भंग जानना १६-११ के मंग कोनं। ११ का मंग कोनं०१५ १८ के समान के समान जानना भोग भूमि में , ११ का मंग को.नं. १८ २३ का भंग को.नं. के १३ के मंग में से स्त्री १८ के २४ से भंग में से पौर नपुंभक वेष ये २ एक स्त्री वेद घटाकर घटाकर ११ का भंग जानना २३ का भंग ५का अंग को नं०१८ १६ का भंग को केके अंग में से स्त्री नं०१८ के समान सारे मंग | १ मंग नपुंसक वेद ये २ घटाकर ५ जानना को० नं. १६ देखो कोनं-१६ देखो को भंग बानना (३) देब गति में मोग भूमि में २३-२३ के भंग २३-१६ के भंग को.नं. को.नं.१६ के २४१८के २४-२.के हरेक २४ के हरेक भंग में से ' Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४७ पुरुष वेद में मंग में से एक स्त्री वेद: स्त्री वेद १ घटाकर २३. पटाकर २:-१६ के भंग २३ के मंग जानना जानना १६ का भंग-को० नं० (३) देवनि में : सारे भंग १ मंग ११ के समान जानना २३-16 के भग को० नं० १९.की.नं.१ देखो कोन १६ देखो २३-१६-१६ के भग को के २४-२० के हरेक भंग में नं०१६ के मुमान से एक स्त्री वेद घटाकर जानना ३-१६ के भंग जानना २३-१६-१६ के मंग को । नं०१६ के ममान जानना १२ज्ञान १ मंग१ज्ञान मंग१ज्ञान केवल जान पटाकर | (१) नियंच गति में का नं.१७ देखो को नं. १७ देखो प्रवधि ज्ञान, मनको . नं०१७ देखो कोनं०१७ देश्द्रो मोष ७डान जानना २-३-३-३-३ के भंग पर्यय ज्ञान ये २ घटाकर को० नं. १७ देखो (२) मनुष्य गति में मारे मंग १ ज्ञान | (१) नियंप गति में ३-४-३-४-३-4 के अंग को न०१८ देखो कोनं०१८ देखो -२-८ के भंग को० नं० को नं०१दखो १७देखो (३) देव गति में सारे मंग १ जान |100 मनुप्य गति में मारे भंग १ ज्ञान ३-३ के भंग-को नं. को नं.१६ देखो को नं०१६ देखो -३-३-८-३ के भंग को० न०१८ देनो को नं. १८ देखो । को००१८ देखो (3) देवगति में मारे भंग जान २.-:-: के भंग का नं. १६ देवी कोनं०१६ देखो को नं०१६ देखी १३ मंगन १ मंग संयम मूक्ष्म सांवराय और (2) नियंच गनि में का० नं.१. देखो कोना देवो अगंयम, सामायिक । अपने अपने स्थान अपने सपने स्थान बथा-स्थान ये घटा १-१-१ के अंग को.नं. अपने का स्थान मपने अपने स्थान छत्रोपम्बानना ये (३) । के भंग जानना के मंगों में मे कर १७ देखो के भंग जानना । के भगों में ले | (१) निर्यच गति में कोर नं०१७ देखो। काई । मंयम कोई १ मयम । १-१ के भग को नं० । जानना (२) मनुष्य ग-िमें सारे भंग संयम । १७ देखी कोनं १७ देखो १-१-३-२१२-१ के अंग को न०१८ देखो को००१८ देतो Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १४ दर्शन २ १५ या को० नं० १८ देखो (२) देवगति में १ असयम जानना को० नं० १६ देखो ३ ६ को० न० १७ देखो | ( १ ) तियंव गति में २-२-३-३-२-३ के भंग फो० नं० १७ देखो (२) मनुष्य गति में २-३-३-३-२-३ के मंग को० नं० १८ देखी (३) देव गति में २-३ के मंग को० नं०] १६ देखो ६ को० नं० १ देखो (१) तियंच गति में ३-३-३-३ के मंग को० नं० १० देखो (२) मनुष्य गति में ६.३-१-३ के मंग को० नं० १० देखो (३) देव गति में १-३-१-१ के मंग को० नं० १६ देखो ( २१६ / कोष्टक नं० ४७ ४ | सारे भंग १ संयम ! [को० नं० १६ देखो फोल्नं० १६ देखी 1 भंग अपने अपने स्थान भंग जानना को० नं० १७ देखी के सारे भंग को० नं० १८ देखो मंग को० नं० १६ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखो ५. ६ न को० नं० १७ देखो अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ दर्शन १ दर्शन को० नं० १८ देखी १ मंग अपने अपने स्थान के भंग कां० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १६ देखो १ दर्शन नं० ११ देखी १ लेश्या प्रपने अपने स्थान के अंगों में से कोई १ लेश्या जानना १ लेश्या को० नं० १८ देखी १ लेश्या को० नं० १६ देखी (२) मनुष्य गति में १-२-१ के मंग को० नं० १८ देखो (1) देवगति में १ संयम जनता को २० १६ देखी ३ (१) त्रियंचगदि में २ २ २ २ के मंग को० नं० १७ दंसो (२) मनुष्य गति में २-३-३-२-३ के मंग को नं० १५ देखरे (३) देव गति में २-२-३-३ के भंग को० नं० १६ देखो ६ (१) तिर्यच गति में ३-१ के मंग को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य गति में ६-२-१ के मंग को० नं. १८ देखो (३) देवगति भ ३-३-१-१ के मंग को० नं० १९ देखो पुरुष वेद में सारे भंग १ संयम को० नं० १८ देवो कोनं० १८ देखो सारे भंग ५ संयम को० नं० १६ देखो को नं०] १६ देखो भंत अपने अपने स्थान के भंग जानना को० नं० १० देखो सारे भंग को० नं० १८ देखो 5 १ भंग को० नं० १६ देखो १ मंग अपने अपने स्थान के भंग जानना को० नं० १७ देनो i सारे रंग को० नं० १० देखो i १ दर्शन अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ दर्दान कोनं १७ देखी १ दर्शन कोनं० १८ देखो १ दर्शन को० नं० १६ देतो १ लेश्या अपने अपने स्थान के भंगों में से कोई १ लेभ्या को० नं० १७ देतो १ नेश्या को० नं० १८ देखो " १ भंग १ श्या को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ३२० । कोष्टक नं० ४७ पुरुष वेद में १६ भव्यत्व २ १ भंग २ १ भंग १ अवस्था मव्य, ममव्य (1) तिर्यच गति में अपने अपने स्थान | २ में से कोई १ (१) निर्यच गति में । पर्याप्तवत् । पर्याप्तवत् २-१-२-१ के मंग के गंग रानना ! प्रवलला २-१.२-१ के मंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो को० नं.१७ देखो को. नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो| का० नं०१७ देतो । (२) मनुष्य गति में । सारे भंग १ अवस्था - (२) मनुष्य गति में सारे भंग । १ अवस्था २-१-२-१ के मंग को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो २-१-२-१ के भयकोनं.१८ देखो कोनं०१८ देखो को नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (6) देवगति में १ भंग १अवस्था (३) देवगति में १ भंग १ अवस्था २-१ के मंग को० नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो - के भंग को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो को० नं० १९ देखो | कोल नं०१६ देखो १ भंग १ सम्यक्त्व । !मंग १ सम्यक्त्व को नं०१६ देश (1) निर्यच गति में अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान मित्र घटाकर (५) अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान १.१-१-२-१-१-१-३ के भंग के अंग जामना । के भंगों में से । (१) तिथंच गति में । के मंग जानना | के मंगों में से को न०१७ देखो को नं०१७ देखो कोई १ सम्यक्त्व, १-१-१-१-२ के मंगको .नं०१७ सो कोई १ सम्यक्त्व कोन०१७ देखो को नं०१७ देखो । कोन०१७ देखो (२) मनुष्य गति में १ सम्यक्त्व । (२) मनुष्य गति में सारे मंग१ सम्यक्त्व १-१-१-३-१.२-३-२.१-१- ] को०१८ प्रमाग कोष्टक १८१-१-२-२-१-१-२ केभंग को.नं. १५ देसो कोने०१८ देखो १-३ के मंग को नं० प्रमाण को न०१८ देखो। १८ देखो (२) देवगति में सारे भंग १ सम्यक्त्व । (३) देवगति में सारे भंग १ सम्यक्त्व १-१-१-२-३-२ के भंग । १-१-३ के भंग को.नं. १६ देखो को० नं०१६ को.नं.१६ देखो को० नं० १९ देखो । देखो १८ मंज्ञो १ भंग | अवस्था । अंग . १ अवस्था संशी, प्रमही ।(१) नियंत गति में अपने अपने स्थान | २ में से कोई । (१) तिर्यंच गति में । पर्याप्तवन् । पर्याप्तवत् १-१-१-१ के भंग के भंग जानना ] १अवस्था 1-1-1-1-1-1 के भंग को० नं. १७ देखो | को० नं. १७ को० नं०१७ देखो को नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो, कोनं १७ देवी देखो (२) मनुष्य गति में | १ भंग । १ अवस्था । (२) मनुष्य गति में १अवस्था १-१ के भंग कोनं०१८ देखो को.०१८ देखो १-१ के भंग कोन०१५ देखो को नं.१५ को। नं. १८ देखो | फो० नं०१८ देखो २ देखो Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२१ ) कोष्टक नं. ४७ !तीस स्थान दर्शन पुरुष वेद में १६ याहारका माहारक, अनाहारक (३) देव पति में १ भंग १भवस्या (३) देव गति में अंग १ अवस्था । १ संजी जानना को.नं. १६ देखो को नं०१६ देखो १ संजी जानना वो० नं०१६ देखो को नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो : को.नं० १६ देखो १मंग पवस्था । १मंग । १ अवस्था () तिर्यंच गति में को.नं. १७ देखो कोज्नं०१७ देखो (२) तिन गति में कोन०१७ देखो कोनं. १७दखी १-१ केभंग | १-१-१-१के भंग को नं०१७ देखो ' कोनं १७ देखो ग्राहारक ही । (२) मनुष्य गति में मारे मंग । १ सवस्या (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ अवस्था | १-१-१-१-१ के मंगकोर नं०१८ देखो कोनं०१ देखो को. नं०१८ देखो कोनं० १८ देखों को.नं. १८ देखो को नं०१८ देखो | (३) देव गति में १ मग १ अवस्था पाहारक ही १-१के भंगकोन०१६ देखो कोनं. १९ देखो (३) देव गति में १भग १अवस्था [को० नं.११ देखो १ याहारक जानना को० नं. १६ देखो कोन० १६ देखो को० नं० १९ देखो | भंग उपयोग १ भंग १ उपयोग (१) तिर्यंच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान कुमवधि ज्ञान. मनः अपने अपने स्थान के पर्याप्तवत जानना ४-५-६-६-५-६-६ के भंग जानना के मंग में से पर्यय ज्ञान २ घटाकर भंग जानना कोनं०१७ देखो भंग को नं. १७ देखो। कोई:१ उपयोग | () को नं. १७ देखो। को नं. १७ देखो को.नं.१७ देखो (१) तिर्वच गति में (1) मनुष्य गति में , सारे मंग १ उपयोग |४-१-४-४-४-६ भंग ५-६-६-७-६-3-५- को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो को० नं० १७ देखो ६-६ मंग | (२) मनुष्य पनि म । सार भर उपयोग को००१८ देखो ४-१-६-४-६ के मंग को.नं.१८ बखो को नं०१५ देखो (३) देव गति में १ भंग १ उपयोग को नं०१८ देखो । ५-६-६ के मंग । सारे भंगको नं०१९ देखो () देव गति में भंग उपयोग को नं०१६ देखो ४-४-६- के भंग को नं.१६ देखो को नं०१६ देखो को न०१६ देखों २० उपयोग केवल ज्ञान, केवल दर्शनोपयोग २ घटाकर (१०) Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२२ ) कोष्टक नं.४७ चौतीस स्थान दर्शन पुरुष वेद में सध्यान १ मंग । १ ध्यान १ ध्यान मात ध्यान ४, तियंच गति में आपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान पृथक्त्व वितर्क विचार अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान रौद्र ध्यान ४, -६-१०-११-- | भंग जानना के भंगों में से | शुक्ल ध्यान १ घटाकर | सारे मंग जानना के मंगों में से धर्म ध्यान ४, पृथक्त्व ह-१० के अंग को० नं. १७ देखो कोई ध्यान (१२) को नं०१७ देखो कोई ध्यान वितक विचार१ये १३ को मं०१७ देखो कोनं०१७ देखो (तियंच गति में कोल्नं० १७ देखो ध्यान जानना (२) मनुष्य गति में सारे मंग१ घ्यान ८-८-९ के मंग ५-६-१०-११-७-४- को० नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो को० नं०१७ देखो १-६-१-१० के भंग (२) मनुष्य गति में । सारे मंग १ व्यान को नं०१८ देखो ८-६-७-7-6 के भंगको० नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो ।।३) देवमां ने सारे १ म्यान को न०१८ देखो । ८-९-१० के मंग को० न० १६ देखो कोनं० १९ देखो (३) देव गति में। १मंग १ ध्यान को. नं० १९ देखो ५-६ के भंग को० नं. १६ देसो कोनं० १९ देखो २२ प्रासव सारे मंग १मंग को० नं० १९ देखो स्त्री वेद, नपुरक वेद मौ० मिथकाययोप १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान १ मंगभंग ये २ घटाकर शेष वै० मिश्रकाययोग १, सारे भंग जानना के अंगों में से | मिथ्यात्व ५, अविरत अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मा. मित्रकामयोग से, कोई १ भंग | १२, कषाय २३, (स्त्री | सारे भंग जानना । के मंगों में से कामगि काययोष, जानना वेद नपुंसक वेद ये २ कोई १ मंग मे ४ पटाकर शेष (५१) | घटाकर) जानना (२) तिथंच गति में सारे मंग १मंग मौ० मिथकाययोग १, ४१का भंग को.नं०१७को० म०१७ देखो कोनं०१७ देखो पं० मिनमाययोग. के ४३ के मंग में से स्त्री पाहारक मिथकाययोग १, वेद, नपुंसक वेद में २ कामार काययोग १ घटाकर ४१ का मंग ये ४ भाषव जामना जानमा (१) तिथंच गति में सारे भंग । १ मंग ४६-४४-४०-३५ के अंग। ४१-४२-३६-३७ के भंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो को० नं०१७ के १- । को नं०१७के ४३-४४४६-४२-३७ के हरेक मंग, ३८-३६ के हरेक भंग में भंग में से स्त्री-नपुंसक वेद | से स्त्री वैद नपुसक वेद ये २ घटाकर ४९-४४ ये २ घटाकर ४१-४२४०-३५ के भंग जानना । ३६-३७ के मंग जानना Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४७ पुरुष वेद में ।। । । । भोगभूमि में मोगभूमि में ४१-४-४०के मा को.! ४२-३७-३२ के अंग को नं०१७ के ५०-४५-४६ नं०१७ के ४३-१८-३३ के हरेक भंग में से स्त्री के हरेक भंग में से स्वी वेद १ घटाकर ४९-४४. वेद १ घटाकर ४२-३७ - ४० के भंग जानना -३२ के भंग षानना (२) मनुष्य गति में सारे मंग १ भंग । (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ मंग ४६-०४-४०-३५-२० के को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो ४२-३७. मंग फो० को० नं०१८ देखो को.नं. १८ देखो भंग को० नं०१८ के नं०१७के ४४-18 के ५१-४६-४२-३७-२२ के हरेक भंग में से स्त्री हरेक भंग मै से स्त्री वेद! नपुसक वेद ये २ घटा नपुंसक बेद ये २ घटाकर कर ४२-३७ के भंग ४६-४४-४०-३५-२० के। जानना भंग जानना ३३-१२ के भंग-को. २० का मंग-को० नं०१८ नं. १८ के समान के समान जानना जानना २०-१४ मंग-कोनं० भोगभूमि में १८ के २२-१६ के हरेक । ४२-३७ के भंग-को मंग में से स्त्री नपुंसक नं०१८के ४३-३८ के वे ये २ पटाकर २०-१४ हरेक मंग में से स्त्री वेद के मंग मानना घटाकर ४२-३७के भंग २. भोगभूमि में जानना ४६-४-४.के भंग को ३३ का भंग-को. नं . नं.१८के ५०-१५-४१ १८ जानना हरेक मंग में से स्त्री (३) देवगति में मारे मंग । १ मंग वेदबहाकर ४६-४ ४२-३७ के भंग- कोकोनं० १९देखो को नं.१६ देखो ४.के अंग जानना नं०१६ के ४३-३८ के (३) देव गति में सारे मंग १मंग हरेक मंग में से स्त्री वेद ४१-४४.४.के मंग को० को.नं.१६ देखो कोनं०१९ देखो घटाकर ४२-३७ के नं.१६ के ५०-४५-४१ । भंग जानना Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन । ३२४ ) कोष्टक नं. ४७ ४ । ५ पुरुष वेद में ४३ के हरेक अंग में से स्त्री ३३-४२-३७-३३.३३ के ! बेद घटाकर ४१-४४- - अंग का नं १६ के ४० के भंग जानना समान जानना ४६-४४-४०.४० के भग मूचना-भक्नविरुदयों में . को०१७के समान से २३ का भंग नहीं जानना होता। २३ भाव सारे भंग १ भंग मारे अंग उपशम सम्यक्त्व १, । (१) तियं च गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान उपशम चारित्र १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान उपशम चारित्र १, । २५-२६-२७-२८-३०-२० । सारे मंग जानना | के भंगों में से | क्षायिक चारित्र १, सारे भंग जानना । के मंगों में से क्षायिक सम्यक्त्व : के भंग को० नं. १७ के कोन०१७ देखो | कोई १ मंग | मयमासंयम, कोई मंग सायिक चारित्र १, । २७-३१-२६-३०-१२-२६ कोनं०१७ देखो| मनः पर्यय ज्ञान , क्षयोपशम भाव १८, के हरेक मंग में से स्त्री कुभवधि जान? तियं चन्देव-मनुष्य गति । नपुंसक वेद ये २ घटाकर य ५ घटाकर (३८) ६, कयाय ४ पुरुष लिंग २५-२६-२७-२८-३०-२७ (१) तिर्यच गति में सारे भंग १ भंग १. लेझ्या ६, मिथ्या- । के भंग जामना २५-२५-२३-२३ के भंग को००१७ देखो को नं०१७ देखो दर्शन १, असंयम १, । भोग भूमि में को न०१७ के २७ मशान १, प्रसिद्धत्व १. २५-२५-२५-२८ के भंग २७-२५-२५ के हरेक पारिवारिक भाव ३, को० नं०१७ के २७-२५ भग मे से स्त्री नपुसक ये ४३ भाव जानना २६-२४ के हरेक मंग में देद ये २ घटाकर २५- । से स्त्री वेद घटाकर - २५-२७-२३ के भग २४-२५-२८ के भंग जानना जानना भाम भूमि में (२) मनुष्य गति में । सारे भंग १ भंग २३.२१ के मंग २६-२७-२८-३१-२८-२९ को.नं. १५ देखो कोनं०१५ देखो को न०१७ के २४के भंग को० नं० १८ के २२ के हरेक के भंग में ३१-२६-३०-३३-३०-३१ से स्त्री वेद घटाकर के हरेक भंग में से स्त्री २३-२१ के भंग जानना वेद, नपुंसक वेद ये २५ का भंग को० नं. घटाकर २६-२७-२८-३१-1 १७ के समान जानना २८-२९ के मंग जानना । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( ३२५ ) कोष्टक नं. ४७ पुरुष वेद में २३ का भंग को०नं१ के समान जानना २६-२७ के भंग को.नं० १८ के ३१-२६ के भंग में | से स्त्री वेद, नपुसक वेद ये २ घटाकर २६-२७ के भंग जानना २७ का मंग ऊपर के बै गुरण स्थान के २७ के भंग । ही यहां जानना भोगभूमि में ..२६-२४-२५-२८ के भंग 'को० नं. १० के २७-२५ -२६-२६ के हरेक भंग में रो स्त्रो वेद घटाकर २६ २४-२५-२८ के मंग जानना (३) देवगति में स.रे भंग १ भंग २४-२२-२३-२५-२६-२४ को० नं०११ देखो तो० नं.११ २५-२८के मंग को .देखो नं०१६ के २५-२३-२४ २६-२७-२५-२६-२६ के हरेक भंग में से स्त्री वेद १ घटाकर २४-२२-२३२५-२६-२-२५-२८ के भंग जानना २४-२२-२३-२६.२५ के . , भंग को० नं०१६ के समान जानना ! (२) मनुष्य मति में सारे भंग भंग २८-२६ के भंग को० नं. को नं०१८ देखो को० नं०१५ । १० के ३०-२८ के हरेक | खो भंग में से स्त्री वेद, नपुगक वेद मे २ बटाकर २८.२६ के भंग जानना ३० का भम-को.नं.। १८ के समान जानना २७ का भंग-को० न० १८ के समान जानना भोगभूमि में २३-२१ के मंग को.नं. १० के २४-२२ के हरेक मंग में से स्थी बेद बटाकर २३-२१ के मंग जानना २५ का भंग-को. नं. । १८ के समान जानना । (6) देवगति में । सारे भग १ मंग २५-२३-२४-२३ के भंग | को नं०१६ देखो को.नं०१८ की नं०१६ के २६-२४. देखो २६-२४ के हरेक भंग में से स्त्री वेद १ पटाकर २५-२३-२५-२३ का भंग जानना २८-२३-२२-०६-२६ के भंग को० न०१६ के समान जानना Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २८ RE ३० ३१ ३२ ३४ ( ३६ ) प्र -को० नं० १७-१८-१६ देखो । बंध प्रकृतियां १२० सामान्य मालाप से जानना । ११२ मित्य पर्याप्त अवस्था में आयु ४ चबप प्रकृतियां – १०७ उदययोग्य १२२ में से स्त्रो वेद १, सूक्ष्म १, स्थावर १, भपर्यात १, आतप १, सत्य प्रकृतियां - १४८ जानना । नरकवि २, माहारकद्विक २, ये नपुंसक वेद १, नरकविक २, तीयंवर प्र० १, ये १५ घटाकर प्रकृति घटाकर १९२ जानना । नरकायु १, एकेन्द्रियादि जाति ४, साधारण १० १०७ प्र० का उदय जानना । संख्या - प्रसंख्यात जानना । क्षेत्र- लोक का धसंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-सनाडी को घपेक्षा लोक का संख्यातवां भाग जानना । १६वे स्वर्ग से ३रे नरक तक आने की अपेक्षा रानु जानना, नव वेयक से नरक में जाने की अपेक्षा मारणान्तिक समुद्घाट में पुरुष ३ नरक तक पाने के शक्ति की अपेक्षा है राजु जानना । मध्यलोक से ७ वेद का उदय होने की अनेक्षा ६ राजु जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । रहे । एक जीव की अपेक्षा अंतर्मुहूर्तसे नवसी (१००) सागर तक निरन्तर पुरुष वेदी ही बनता प्रस्तर -- जाना जोवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की प्रपेक्षा एक समय से श्रसंस्पात पुद्गल परावर्तन काल तक पुरुष वेद को धारण न कर सके । जाति (योनि) – २२ लाख योनि जानना, (नियंच ४ लाख, देव ४ शख, मनुष्य १४ साख ये २२ लाख जानना) कुल ६३॥ लाख कोटिकुल जानना, (नियंत्र ४३॥, देव २६, मनुष्य गति १४ लाख कोटिकुल ये ८३।। लाख कोटिफुल जानना) Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३२७ ) कोष्टक ०४. चौतीस स्थान दर्शन स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त नाना जोब की अपेक्षा एक जीव के नाना एक जीव के एक। समय में | समय में अपर्याप्त १जीब के नाना एक जीव के समय में समय में । एक समय में नाना जीवों की अपेक्षा १गुरण स्थान से गुण० जानना सारे गुरण स्थान १ गुरण दोनों गुण स्थान कोई १ गुण १से है तक के गुण. । को० नं० ४७ के कोन०४७ के | मिथ्यात्व, सासादन मुग अपने अपने कोनं०१७-१८विशेष विवरण को० नं० समान जानना : समान जानना तिच, मनुष्य, देव इन | स्थान के सारे । १९ देखो ४७ में दखो तीनों गति में हरेक में | गुग जानना जानना कोनं०१७-१८ १६ देखो १ समास १ समास १ समास, १समस को. नं. ४७ के समान को० नं. ४७ के समान को० नं०१७ से समान ४७के समान को.नं.७ के समान ४७ के समान २ जीव समास ४ को न.७ देखो ३ पर्याप्ति को.नं०१देखो। ४ प्राण १० को.नं.१देखो। ५ संजी को० नं०१ देखो ६ मति टियंच, मनुष्य, देव ये ३ गति जानना ७ इन्द्रिय जाति १॥ पंचेन्द्रिब जाति १ मंग को.नं.७ के समान को० नं०४७के समान १ गति गति तीनों गति जानना पर्याप्तवत् जानना १जाति १ जाति तीनों गतियी में १ पंचेन्द्रिय जाति जानना | को.नं०१७-१८-१९ देखो तीनों गतियों में १ पंचेन्द्रिय जाति जानमा को.नं. १७-१८-१९ देखो Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ३२८ ) कोष्टक नं. ४८ चौतीस स्थान दर्शन स्त्री वेद में काय प्रसकाय योग १३ प्रा० मिथकाययोग १ आहारक काययोग १ ये २ घटाकर (१३) १० वेद स्त्री वेद तीनों मतियों नीमें गतियों में १सकाय जानना १ त्रसकाय जानना को न०१७-१८-१९ देखो कोनं०१७-१८-१९ देखो १ मंग १ योग १ भंग योग प्रो० मिधकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मो. मिथकाफ्योग | पर्याप्तवत जानना पर्याप्तवत् जागना २० मिथकाययोग 1 मंग जानना के भंगों में से 40 मिनवाययोग १, कार्मारण काययोग १, कोनं०१७-१-१२ कोई १ योन | कारण काययोग १ ये ३ पटाकर (१०) देखो ये ३ योग जानना को नं०४७ देखो (१) तियन, मनुष्य, देव गति में १-२ के मंग कोनं०१७-१५-१६ देखो १ तीनों गतियों में हरेक में | तीनों गतियों में हरेक में | १ स्त्री वेद जानना १स्त्री देद जानना सारे मंग १ भंग २३ सारे भंग भंग तीनों गलियों में हरेक में को०२०४७ देसो कोनं०१७ देसो नीनों गनियों में हरेक में को० नं०४७ देखो कोनं०४७ देखो दोलनं. ४७ के समान ! को.नं.' के समान ] जानना परन्तु यहां जानना परन्तु यहां स्त्री वेद के जगह पुरुष वेद स्त्रीचंद के जगह पुरुष । वटाना चाहिये। वेद घटाना चाहिये । १ भंग | १ मंग१ज्ञान (१) तियंच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान प्रवधि ज्ञान पोर ३ जान पाने अपने स्थान के अपने अपने स्थान २-३-३-३-३ के भंग । भग जानना । के भंगी में से | घटाकर (3) सारे भंग जानना । के भंवों में से को० नं०१७ देखो को.नं. १७ देखो | कोई ज्ञान | (१) तिर्यंच गति को० नं. १७-१८- कोई जान कोनं०१७ देखो। मनुष्य गति में १६ देखो कोनं०१७-14(२) मनुष्म गति में सारे भंग १ज्ञान । देव गति में हटेन में १ से ४ गुमा० में को० न० १८ देखो को०नं० १८ देखो २-२ के भंग ११ कषाय २३ पुरुप बेद, नपुंसक वेद ये २ वेद घटाकर (२३) १०ज्ञान मनः पर्ययः ज्ञान १ केवल जान १ये २ घटाकर (६) १६ देखो Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ( ३२६ ) कोष्टक नं०४८ स्त्री वेद में कोनं०१७-१८-१९ देखो को नं० १५देखो (३) देव गति में सारे भंग शान ३-३ के मंग को नं० १६ देखो कोनं०१६ देखो को० नं. १६ देखो १३ संयम १ मंग १संयम भसंयम, संयमामयन, (१) तिर्यच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान तीनों गतियों में हरेक में। सामायिक, छेदोपस्था- १-१-१ के भंग भंग जानना के भंगों में मे | १ असंयम जानना पना, ये ४ संयम जानना को० नं० १७ देखो को नं०१७ देखो कोई संयम | कोन०१७-१८- देखो को०नं०१७ देखो (२) मनुष्य गति में सारे भंग १संयम १.१-३-३-२-१ के मंग को नं०१८ देखो को नं.१८ देखो को.नं. १८ देखो (३) देव गति में सारे भंग १संयम १ पसंयम मानना को नं० १६ देखो कोल्नं०१६ देखो को० नं १६ दलो १५ दर्शन १मंग १दर्शन । को० नं०१ देखो (१) निवन गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान २-३-३-२-३ के मंग | भंग जानना के भंगों में से को० नं०१८ देखो को.नं. १७ देखो कोई १ वर्षान कोनं०१६देखो (२) मनुष्य गनियों | मार भंग १ दर्शन २- के भंग को.नं.१८ देखो कोनं.१६ देवो को २०१८ देवो (३) देवगति में सारे भंग । १ दर्शन । २-३ के भंग को.नं.१६ देखो कोनं०१६ देखो को० नं०१९ देखो १ मंगलेश्या । १ भंग १ लेश्या को.नं. १ देखो कोल नं. ४७ के समान को० नं. ४७ देखो को नं०४७ देखो (1) नियंच गति में को. नं. ४७ देखो कोनं.४७ देखो जानना मलेश्या Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३३. ) कोष्टक नं. ४८ चौंतीस स्थान दर्शन स्त्री वेद में ..२ के भंग को० नं. १- देखो (२) मतृप्य गति में इ-१ के भंग का नं०१८ देखी (३) देव गनि में ३-३ के भंग को नं०१६ दवा १६ भव्यत्व १ भंग अवस्था | २ १ भंग १ अवस्था भव्य, अभव्य, को. नं. ४७ देखो कोनं.४५ देखो को. नं. ४७ दंखोको० नं०४७ देखो योनं. ४७ देखो १. सम्यक्त्व ६: भंग सम्परत्व | २ १ भंग १सम्यक्त्व को० नं०१८ देखो का नं०४३ के ममान को.नं. ४७ देन्बो कोज्नं.४७ दरो मिथ्यात्व, मासादन जानना को नं. ४७ देखो कोनं दखो सूचना-यहां भाव वंद परन्तु यहा स्त्रीवेद की तीनों गलियों में हरेक में की अपेक्षा जानना । जगह पुसा वेद घटाना ! १-१ के भंग चाहिये कोन नं०१७-१-१६ के समान मिथ्यात्व, मासादन जानना १८ संज्ञी ..भंग | प्रवम्या १ मंगअवस्था सी, अपंजी। क नं.७ के समान को नं. ४७ देखो कोनं०४७ देखो को नं.४७ के समान को० नं. ४७ देखो को नं०४७ देखो १६ आहारक | भंग १ अदस्था । २ । १ भमभवस्था अाहारतः, अनाहारका को नं. ४७ के समान को नं. ४७ देखा कोनं०४७ देखों को० नं. ४७ के समान का नं० ४७ देखो कोनं. ४७ देखो २० उपयोच १ मंग । १ उपयोग १ भंग १ उपयोग ज्ञानोपयोग ६ (१) तियंच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान कुमति, श्रुत, प्रचक्षु द. पाप्तवत पर्याप्तवत् जानना दर्शनोपयोग ४-५-६-६-५-६-६ के भंग जानना। के भंगों में से | चनु दर्शन ये (४) । ये जानना भंग को० नं०१७ देखो : कोई ! उपयोण | तीनों गलियों में हरक में । (२) मनुष्य नति में जानना | ४ का भंग ५-६-६-५-६-६ के मंग को० नं०१७-१८-१६ को० न०१८ देखो (1) दंवगति में ५-६-६ के भंग | Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४८ स्त्री वेद में २१ यान को नं. ४७ देखो २२ शव पाहारक भिखकाय योग पाहारकाय योग पुरुष बेद १, नपुसक वेद ये ४ घटाकर (५३) कानं०१६ देखो भंग १ध्यान को० नं.४ के समान को.नं.४७ देखो को नं. ४ | धर्म ध्यान नार और 140४५ देखो कोनं०४७ देखो जानना देखो गृथक्त्व वितर्क विचार शुक्ल ध्यान १, ५ घटाकर (1) को नं०४७ के समान | सारे भंग १ भंग मारे भंग ! १ भंग प्रो० मिनकाय योग १, को० नं. ४७ देखो को.नं. ४७ | वचनयोग 1, मनोयोग गर्ने अपने म्यान अपने अपने 4. मिथकाय योग १, देखो | गो. काय योर के सारे भंग कार्माणकाय योग १. | वै० काययोग १ ये १. जानना ये ३ घटाकर (५०) घटाकर ) को. नं. ४ के समान । (१) बिच गति में जानना परन्तु यहां स्त्री-वेदः ४१-४२-३६-३७ के भंग की जगह पुरुष वेद पटाना को० नं०४७ देखो चाहिये और मनुष्य गति परन्तु वहां स्त्री वेद की। में माहारककाप योगी का जगह पुरुप वैद रटाना २० का भंग भी नहीं चाहिये (२) मनुष्य गति में । ४२-३३ रे अंग को न ! ४७ देखो परन्तु यहा भी वेद की जगह पुरुष वेद घटाना चाहिये (३) देवगति में ४२-३७ के भंग-को। • नं. ४७ देखा परन्तु यहां ; | स्त्री वेद की जगह पुरुष 'चंद घटाना चाहिये। सारे भंग १ भंग । ३० सारे मंग . १भन तिथंच गनि में कर्मभूमि में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान कुजान २. दर्शन २, तिर्यच अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान । गति १. मनुष्यति । २३ भाष ४३ सारे मंग को. नं०४७ के "| (१) नियंच Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ४८ .. स्त्री वेद में.. ... ४३ के भावों में से मनः पर्यय ज्ञान १, घटाकर ४२ जानना जानना देवति, कपाध,। २५-२६-२७-२८-३०-३३ के सारे भंग जानना । के भंगों में से । स्त्रीलिंग १, लेश्या ६, सारे भंग जानना । के भंगों में से भंग और भोग भूमि में की न०१७ देखो | कोई १ मंग मिथ्या दर्शन १, अनंयमर/ कोई १ भंग २६.२४-२५-२६ भंग को | जानना अज्ञात १, प्रसिद्धत्व १,! नं. ४७ के समान जानना। कोनं०१७ देखो पारिणामिक भाव । । परन्तु यहां स्त्रीवेद की जगह ! सारे भंग १ भंग लब्धि ,ये (३०) पुरुषवैर घटाना चाहिये को.नं. १८ देखो को नं०१८ देखो (१) तिथंच गति में सारे भंग । १ भंग (२) मनुष्य गति में कर्म भूमि में २५-२५-२३-२३ के भंग को नं०१७ देखो को०नं०१७ देखो को.नं.१७के तमान २७-२७ के मंग को० नं०४७. | परन्तु यहां पी वैद की। समान जोनना परन्तु यहां । जगह पुरुषवेद घरानाचाहिये स्त्रीवेद की जगह पुरुषवेद । | भोग भूमि में घटाना चाहिए | २३-२१ के भंग कोन भोग भूमि में ४७के समान परन्तु यहाँ २६-२४-२५-२८ के भंग को स्त्रीवेद की जगह पुरुषवेद नं. ४७ के समान जानना घटाना चाहिये परन्तु यहां स्त्री वेद की जगह। सारे भंग १अंग (२) मनुष्य गति में सारे भंग । । मंग पुरुष वेद घटाना चाहिये को.नं.१६ देखो कोने-१६ देखो २५-२३ के भंग कोनं को नं०१५ देखो कोन०१५ देखो (३। देद गति में ४७ के समान परन्तु यहाँ । २४-२२-१३-२५-२६-२५-। स्त्रीवेद की जगह पुरुषवेद २५-२८ के भंग कोन०४७ घटाना चाहिये के समान जानना परन्तु यहां भोग भूमि में स्त्रीवेद को जमह पुरुषवेद २३-२१ के भंग को नं घटाना चाहिये ४७ के समान परन्नु यहां स्त्रीचंद की जगह पुष्पवेद घटाना चाहिये (३) देव गति में । २५-२३-२५-२३ के भंग ] कोनं. ४७ के समान | परन्तु यहां स्त्रीवेद की जगह । पुरुषवेद चटाना चाहिये । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ अवमाहना- को० नं०१७-१८-१९ देखा। बंध प्रकृतियां - १२० पर्याप्त अवस्था में जानना और नित्यपर्याप्तक अवस्था में १०७ जानना, बन्ध योग्य १२० प्रकृतियों में से मायु ४, नरकटिक २, देवद्विक २, क्रियिकदिक २, माहारकटिक २, तीर्थकर प्र०ये १३ पटाकर १०७ जानना । सवय प्रकृतियां-१०५ को न०४७ के १०७ प्र. में से माहारकदिक २, पुरुष वेद १ ये ३ घटाकर और स्त्री वेद १ जोड़कर १०५ प्रका उदय जानना, सत्य प्रकृतियां-१४८ को० नं. २६ के समान जानना। संख्या-असंख्यात जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवां माग जानना । स्पर्शन-लोक का प्रसंख्यातमा भाग जानना, विशेष भंग को. नं. ४७ में देखो। काल नाना जीवों को अपेक्षा सर्वकाल जानना, एक जीव की अपेक्षा एक समय से शतपृथकाव पत्य तक स्त्री वेद ही बनता रहे। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा क्षत्रभव से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक स्त्री पर्याय न धारण जाति (योनि)-२२ लाख योनि जानना (को० नं० ४७ देखो) गुल-१३॥ लाख कोटिकुल जानना (को० नं. ४७ देखो) ३४ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६४ ) कोष्टक नं० ४६ चौतीस स्थान दर्शन नपुंसक वेद में ० स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त यपर्याप्त | एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में । नाना जीवों की अपेक्षा १जीब के नाना १ जीव के एक समय में । समय में नाना जीवों की अपेक्षा जानना १ गुरण स्थान | सारे गुण स्थान गुण । सारे भंग १ गुणात १से ६ गुग नक (१) नरक गति में 'अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान (१)रक गति में अपने अपने स्थानपने अपने स्थान से ४ गुणा स्थान | के सारे नुग के सारे भंगों में, १ले ४थे गुरण जानना के सारे भंग के सारे अंगों में ! (8) निर्यच गति में स्थान जानना गे कोई १ गुग | सूचना-पहले नरक | जानना से कोई मुरण कर्मभूमि में | को० नं.१६-१७ स्पान जानना | की अपेक्षा या गुए | कोनं-१६-१७-! स्थान जानना १२ ५ गुग जानना । १८ देखो को नं०१६-1 जानना १८ देखो को० नं०१६(३) मनुष्य गति में १७-१८ दशो | (२) तिर्यच गनि में ।१७-१८ देखो कमभूमि में कर्मभूमि में १-२ गुगल १स गुगा, जागना (३) मनुष्य गति में | १-२ गुरग० जानना २ जीव ममास १४ १मगस १ ममाम : १ ममाय १ समास को० नं. १ देलो (१) नरक-मनुष्य गति में सभी पं० गीत | कारनं०-, (१) मरक-मनुष्य मनि पापयाम कोन१६ मजी पननिय पाप्त को ने०१६-१८ | १८ देखो में-१ संडी पंचेन्द्रिय को० नं १-१ । १८ देखा को.नं. १६-८ देखो देखो | अपर्याप्त प्रवस्था दी । (२) निर्वच गति में मनान गास | जानना माग - १ समास 13--1 के भंग चो० नं. ७.१ के भंग में फा००१३ | को न०१६-१८ देखो को न.१७ देसो जो० नं.१७देखो १७ के गमान जाना | कोई समान देसो (२) निर्गच गदि में । का००१० देग्नी! ७- के भग-को० नं. पर्याकि को. नं०१ देखो भंग १ भंग (१) नरक-मनष्य गति में हरेक में का भंग | को० नं०१६-। तीनों गनियों में हरेक में ' का भंग ३ का भंग ६ का भंग-को नं० १६.को० नं०१५-१८१८ देखो ३ का भंग को.नं. १६. को० नं०१६-१७ को० नं०१६१८ देखो | १७-१८ देखो देखो . १४-१८ देखो Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४६ नपुसक वेद में (२) तिर्यच मृत्ति में १ भंग भंग रूचि कप ६-५-४ :-५-४ के भंग को२०१७ देखो को० नं०१७ पर्वति भी फो.नं. १७ देखो | देखो ४ प्रसन्ग भंग १ भंग ! १ भंग को० नं०१ देखो न रक-मनुष्य गति में हरेक अपने अपने स्थान अपने अपन स्थान' (११ गरन-मनुष्य गति अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान में-१० का भंग का० नं. के भंग को० न० के अंगों में कोई में हरेक में भंग के अंगों में से १६-१८ देखो १६-१-देखो १भंग मानना, का भन को० नं. को नं०१६-१८ कोई भंग (२) तिबंच गति में १ भंग को नं०१६-1 १६-१८ देखो देखो जानना १०-६-८.७-६-४ के भंग को.नं. १७ देखो! १८-१७ देतो. (२) तिबंन गति में । १ भंग को० नं०१६को० नं। १७ देखो |७-७-६-५-४-३ केभंग । को०१७ १५-१७ देखो को० नं०१७देखो देखो ५. मना १ भंग १ मंग १ मंग को० नं०१ देखो 11) नरक-तिर्पच गति में अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान (१) नरक-तिर्यच गति । गर्यासवत जानना पर्याप्तपत हरेक में ४ का भंग को के भंग के ४ के मंगों में में हरेक में जानना न०१६-१७ देखो । ४ का भंग-को ये कोई १ भंग ' ४ का भंग को न ।नं०१६-१७ देशो कां.नं.१६-१७१६-१७ देगा। (.) मनुष्य गति में सारे भंग देखो ) मनुण्य मति म ४ का भंग ४का भय ४-३-२ के भंग को.नं०१८ देखो . भंग ४ का भंग कोन कोनं०१८ देखो कान १८ देखो १८ देखी . इगनि | १ गति । १ गति । ३ गति | १ गत्ति नरक, निपंच, मनुष्य हीनों गति जानना तीनों गति जानना ये ३ मति जानना ७ इन्द्रिय जाति ५ १ जाति । १जाति १जाति को.नं.१ देखौं तिथंच गति में अपने अपने स्थान के पने अपने स्थानः १) तिर्यच गति में को० म०१७देखो। को ५-१ के भंग कोई जाति जानना के काई १ जानि ५ का भंग कोनं०१७ को न० १७ देखो को० नं. १७ देखो नं०१७ देखो देखो। नरक-मनुष्य गति में जाति १जानि । (२) नरक-मनुष्य गति म जानि जाति पंचेन्द्रिय जाति जानना [को० न०१६-१८ को.२०१६-१पनेन्द्रिय जाति जानना | को 10१६-१८ को . को.नं०१६-१८ देखो देखो को० नं०१६-१८ देखो १५देखो देखो देखा Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४९ नपुसक वेद में काय को.नं. १ देखो (१) नरक-मनुष्य गति में १सकाय जानना को० नं०१६-१८ देसो १काय १ काय अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (1) नरक-मनुष्य गति में को.नं.१६-१८ को० नं. १६'काय जानना । के १ काय | सकाय जानना देखो १८ देखो को.नं.१६-१८ को.नं.१६- | को० नं०१६-१८ देखो १ योग १३ प्रा०मित्रकाय योग है, प्राहारककाय योग, ये २ घटाकर (१३) (२) तिर्यंच गति में 1. १ काय | १ काय |(२) तियंच गति में ६-१के भंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देसो-४का भग | को० नं० १७ देखो को नं०१७ देखो को. नं०१७ देखो को. नं०१७देखो १ मंग । १ योग मंग ।योम प्रो० मिस्रकाय योग १, | अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान पौ० मित्रकाय योग १, पर्याप्तवत् । पर्याप्तवत् वै. मिश्रकाय योग १, । के कोई १ भंग के भंगों में से 20 मिप्रकाय योग १, मंग जानना योगदानना कार्मासाकाय योग १ जानना ! कोई १ योग कारिणकाय योग १ ये ३ घटाकर (१०) ये ३ जानना (१) नरकगति में १ भंग | १योग (१) नरक गति में १ भंग योग ९ का मंग को० नं०१६ का भंग में से कोई १-२ के भंग १-२ के मंगों में ] १-२ के अंगों के समान १ योग को.नं० १६ देखो | कोई १ मंगसे से कोई १ योग को नं०१६ को.नं. १६ (२) नियंच गति में १ भंग योग (२) तिर्यच गति में | १ मंग योग ९-२-१ के भंग को.नं. ६-२-१ के भंगों में -२-१ के .-२ के मंग | को नं०१७ देवीको नं. १७ देखो १७ देखो मे कोई 1 भंग भंगों में से कोई को.नं. १७ देखो जानना १योग (३) मनुष्य गति में सारे पंग योग (३) मनुष्य गति में सारे मंग १ योग ह-६ के भंग को० नं. अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान १-२ के मंग अपने अपने स्थान अपने अपने १८ देखो के सारे मंग के सारे मंगो को.नं.१% देखो के सारे भंग स्थान के सारे जानना में से कोई १ जानना भंपों में से कोई पोग को.नं.१८ १ योग जाना नपूसक वेद जानना | तीनों गतियों में हरेक में नपुंसक वेद जानना तीनों गतिययों में हरेक में 1१भसक वंद जानना । Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४६ नपुंसक वेद में को नं. १६-१७-१८ को० नं०१६-१७-१८ देखो ११ कषाय २३ "सारे मंग । १ भंग २३ सारे मंग १ भंग स्त्री-पुरुष वेद ये २ १) नरक गति में अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान (१) नरक गति में पर्याप्तवत् जानना । पर्याप्तवत् घटाकर २३ जानना २३-१६ के अंग के सारे भंग के सारे मंगों में | २३.१६ के भंग को.नं०१६ । जानना कोनं.१६ देखो जानना से कोई १ भंग | को.नं. १६ देखो कोनं. को० नं०१६ को नं० १६ (२) तिर्यच गति में सारे मंग १ भंग । (२) तिवंच गति में सारे मग १ मंग १ले २२ गुख सम में मी०-०१७ देखो बो० नं०१७ | २३-२३-२३-२३-२३-२३ | को० नं०१७ देखने को.नं.१७ २३-२३-२३-२३ के भंग देखो के भंग को० नं. १७ | देखो को.नं. १७ के २५-२५ | के २५-२५-२५-२५ के -२५-२५ के हरेक भंगों में ; हरेक मंगों में से स्त्रीमें स्त्री-पुरुष वेद ये २ वेद ये २ पटाकर २३ घटाकर २३ का मंग का अंग जानना जानना (३) मनुष्य गति में सारे मंग | १ भंग ३रे ४थे ५वे गुणा में २५ का मंग-को० नं. को नं०१८ देखो को.नं. १५ १९-१५ के भंग को० नं० १८ के २५ के भंय में देखो १० के २१-१७ के हरेक से स्त्री-पुरुष ये २ वेद भंगों में से स्त्री-पुरुष वेद भटाकर २३ का भंग ये २ घटाकर १-१५ के जानना भग जानना १६ का भंग-को० नं० (३) मनुष्य गान में सारे भंग १ भंग १८ के समान जानना २३.१६-१५-११-११-५ के को.नं.१६ देखो मो० नं०१८ भंग को.नं.१८ के २५-| २१-१५-१२-१३-७के हरेक भंग में से स्त्री-पुरुष वेद ये २ घटाकर २३-२६१५-११-११-५के भंग जानना देखो Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४६ नपुसक वेद में १२ जान मनः पर्ययः शान १ केवल ज्ञान १२ घटाकर ६जानना (0) नरक गति में ३- के भंग को नं०१ देखो (२) लियंच गति में २-4-३ के भंग को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में ३-३-४-४ के मंग को० नं० १८ देखो १३ संयम को० नं. ४- देखो (१) नरक गति में १मसंयम जानना को० नं. १६ देखो (२) तियंच गति में १-१ के भंग को० नं०१७ देखो (३) ममुख्य गति में १-१-३-३-२ के भंग को० नं०१५ देखो सारे भंग । १ज्ञान | सारे भंग ३-३ के भंग ३-३ के भंगों में कुभवधि जान घटाकर (1) २-३ के मंगों में जानना कोई के लान (३ में के भंग जानना से कोई जान | जानना ३-४ के भंग को.नं०१६ देखो १ भंग १ ज्ञान .(२) तिथंच गति में १ भंग ।२-६-३ के भंगों २-३-३ के मंगों २का भंग का अंगर के मंगों में से में मे कोई १ भंग में से कोई मान को.नं. १७ देखो। कोई १ शान | सारे मंग १ ज्ञान (३) मनुष्प गति में मारे मंग १ज्ञान को० नं० १८ देखो कोनं० १८ देखो २ का भग को.नं.१८ देखो कोनं०१८ देखो को० नं०१८ देखो १ भंग १संयम १ भंग संयम । (१) नरक गति में । १ असंयम जानना को.नं०१६ देखी १मंग १संयम (२) तिर्यंच गति में २ में से कोई १ भंग दो में से कोई १ असंयम जानना । । १संयम को.नं. १७ देखो सारे भंग संयम (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १संयम अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान १ का भंग का भंग १ संयम J सारे मंग जानना | के मंगों में से को. नं. १८ देखो को नं० १८ देखो कोन०१८ देखो को न०१८ देखो | कोई संयम जानना १भग । १ दर्शन १ भंग १ दर्शन २-३ के मंगों में से २-३ के भंगों में (1) नरक गनि में पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत जानना | कोई १ भंग से कोई 1 दर्शन। २-३ के भंग को० न०१६ देखो को नं. १६ देखो। जानना | कोनं०१६ देखो | १ भंग । १ दर्शन (R) नियंच मति में मंग १ दर्शन को नं०१७ देखो कोनं०१७ देशो १-२-२ के मंग को०१७ देखो कोन०१७ देखो १४ दर्शन को० नं०१७ दखो (१) नरक गति में २-३ के मंग को० नं. १६ देखो (२) तिर्यच गति में १-२-२-३-३ भंग Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ४६ नपुंसक वेद में १ नंग १लेश्या को नं १७ देखो को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग १दर्शन (३) मनुष्य गति में - सारे अंग १र्वान २-३-३-३ के मंग | २-३-३-३ के मंग कोनं०१५ देखी २ का मंग को० नं०१५ देखो को००१ देखो को० नं०१८ देखो को० नं०१५ देखो। को० नं०१८ देखो १५ लेक्या १ भंग १लेश्या । को० नं. १ देखो (1) नरक गति में J ३ का भंग के भंगों में से (१) नरक गति में ३ का भंग पर्याप्तवत जानना ३ का भग कोई १ लेक्ष्या | 2 का भंग को.नं.१६ देखो कोनं०१६ देखो कोनं०१६ के समान को० नं०१६ देखो (२) तिर्यव गति में १ भंग १लेश्या (२) तियंच गति में १ भंग १ सेक्ष्या ३-६-३ के भंग को० नं. १७ देसो कोनं०१७ देखो ३ का में | ३ का मंग३ में से कोई को.नं. १७ देखो | को.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो | तेश्या को नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १ लेश्या (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १लेश्या ६-३-१ के भंग को.नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो ६ का भंग को० नं०१८ देखो को.नं.१८ देखो को नं० १८ देखो को नं. १८ देखो १६ भव्यत्व २ १भंग १यवस्था १ भंग १ अवस्था मव्य, प्रमट्य । तीनो गतियों में रैक में को० नं०१६-१७- कोने०१६-१७-बीनों गलियों में हरेक में को० नं०१६-१७. कोनं०१६-१७. २-१ के मंग १८ देखो १८ देतो २-१ के अंग को.नं. १५ दखो १० देखो को० नं०१६-१७-१८ देखो १६-१७-१८ के समान | सारे भग १सम्यस्त्व | सारे भंग १सम्यक्त्व को० नं०१६ देखो (१) नरक गति में को.नं०१६ देखो कोनं० १६ वेखो मिश्र और उपशम मा १-१-१३-२ के भंग 1 २ घटाकर (४) को० न०१६ देखो (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो (२) तिर्मन गति में गंग १सम्यक्त्व | १-२ के मंग १-१-१-२ के मंग कोनं १७ देखो कोन-१७ देखो को नं०१६देखो को००१७ देखो (२) तिर्यंच गति में | १मंग १ सम्यक्त्व (३) मनुष्य गति में । सारे भंग । सम्यक्त्व के अंग को० नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो १-१-१-३-३-३-२के भंग को.नं०१८ देखो कोनं०१८देखो को. नं. ७देखो को० नं०१८ देखो (३) मनुष्य गति में - सारे भंग १ सम्यक्त्व ।१-१ के भंग कोन०१८ देखो को००१ देको Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४० ) कोष्टक नं० ४६ चौतीस स्थान दर्शन नपुसक वेद में | , । को० न०१ देखो देखो १८ संजी ३ संजी, श्रमजी (१) नरक-मनुष्य गति में को० नं०१६-१- को० नं. १- (१) नरक-मनुष्य गति में को० नं०१६-१८ को.नं. १६हरेक में १८ देखो ! हरेक में देखो १८ देखो १ सजी जानना १ संजी जानना को.नं०१६-१८ दलो को० नं०१६-१८ देखा। (२) तियंच गति में १ भंग । १ अवस्था । (२) तिथंच गति में १ भंग १अवस्था १-१-१ के मंग को नं०१७ दरो को.नं. १७१-१-१-१-१ का भंग | को० नं०१७ देखो को० नं०१७ को.नं. १७ देखो देखो को नं०१७ देखो। १६पाहारक सारे भंग । १ अवस्था याहारक, अनाहारक (१) नरक गति में को.नं.१६ देशो को०० १६(१) नरक गतियों में को.नं०१६ देखो को नं.१६ १प्राहारक जानना १-१ के भंग को न को० न०१६ देखो १६ देखो (२) तिर्यच गति में (२) तियर मति में १ भंग १अवस्था १-१ के भंग को० न० को नं. १७ देखो को० नं०१७ | १-१-१-१ के भंग की। नं०१७ देखो को० नं०१७ १७ देखो को नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे अंग १ अवस्था (३) मनुष्य गति में सारे भंग १अवस्था १-१ के मंग को. नं. को नं. १८ देखो को० नं०१८ | १-१-१-१ के भंग को० नं०१५ देखो को० नं. १ | देखो को.नं. १८ देखो २० उपयोग १ मंग १ उपयोग १ भंग १ उपयोग को नं०१६ देखो (१) नरकगति में | को० नं. १६ देखो को नं. १६ देखो कुमति, कुश्रुत थे (२) ५-६-६ का भंग (३) मरक गति में को० न० १६ देता को नं०१६ को० नं०१६ देखो ४-६ के भंग देखो (२)तिर्यच गति में १ भंग १ उपयोग को० नं०१६ देखो ३-४-५-६-६ के भंग | को० नं०१७ देखो को नं०१७ (२) तियन गति में भंग १ उपयोग को००१७ देखो | देखो |३-४-४-४-४-४ के मंग को नं.१७देखो को० नं०१७ (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १ उपयोग । को.नं. १७ देखो 4-६-६-७-७ के भंग को०नं०१५ देलो को नं०१८ (3) मनुष्य गनि में सारे भंग १ उपयोग को.नं. १८ देखो ४ का मंग को.नं.१८ को.न०१८ देवो को० नं०१८ देखो देशो देखो देखो देखो Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ४६ नपुसक वेद में का भंग २१ ध्यान १३ सारे भंग १ ध्यान अपाय विचय १. सारे भंग १ध्यान को० नं०४७ देखो (१) नरक गति में को० नं० १६ देखो कोनं०६६ देखो विपाक विचय १ और अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान ८.६-१० के मंग मम्मान विषय १३ । सारे भंग जानता सारे के अंगों में को नं. १६ देखो और गृथक्क बितर्क को नं०१८ देखो से कोई १ ध्यान • विचार शुक्ल ध्यान ? कोन०१५ देखो (२) तिर्यच गति में । १भंग १ ध्यान ये ४ पटाकर (६) '८-६-१०-११ के भंगको नं०१७ देखो कोनं. १७ देखो (१) नरक गति में कोनं० १६ देखो कोनं०१६ देलो को० नं. १७ देखो | ८-६ के भंग । (३) मनुष्व गति में | सारे भंग १ ध्यान को० न०१६ देखो ८-१०-११-७-४-१के भंग को० नं०१ देखो को.नं०१८ देतो (२) तिथंच गति में १ मंग १ ध्यान वो नं०१८ देखो ८ . गंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे मंग १ प्यान का भंग को००१८ देवो को नं० १८ देखो कोई ध्यान २२ भासद सारे भंग १ भंग सारे मंग १भंग ग्राहारक मिश्रकाययोग : यो मिथकाययोग १, वचन योग ४, मनोयोग कोनं०१८ देखो १. मा. काययोग १,। वै० मित्रकाययोग १, प्रो. काययोग १. । स्त्री पुरुष वेद २, ये कार्मारा काययोग , 40 काययोग११० घटाकर ५३ जानना ये ३ घटाकर (५०) घटाकर (४३) (१) नरक गति में कोनं०१६ देखो को नं. १६ देखो (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो कोन०१६ देखो ४६-४४-४० के मंग ४२-३३ के मंग को.नं. १६ देखो को० नं. १६ देखो (२) तिर्वच गति में सारे भंग १ भंग (२) नियंच गति में । सारे मंग भंग ३६-३०-३६-४० के मंगको० नं०१७ देखी की नं०१७ देखो ३७-३८-३९-४० के भंग को० नं. १७ देखो को न०१७ देखो कानं.१७देखो | कोल नं.१७ के समान ४१-४६-४४-४०-५के मंग जानना कोनं०१७के ४३-५१ ४१-४२के भंग ४६-४२-३७ के हरेक को० नं०१७ के ४३-४४ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ३४२ । कोष्टक नं. ४६ चौतीस स्थान दर्शन नपुंसक वेद में मंग में से स्त्री-पुरुष वेद के हरेक मंग में से स्त्रीये २ घटाकर ३-४६ पुरुष वेद २ घटाकर ४१४.४०-३५ के मंग जानना ४. के मंग जानना (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ भंग । ३६ का मंग-को० नं. ४-४-४०-३५-२० केको .नं.१८ देखो को नं० १८१७ के ३८ के भंग में भंग-को० नं. १८ के देखो से स्त्री-पुरुष वेद घटाकर ५१-४६-४२-३७-२२ के ३६ का मंग जानना हरेक भंग में से स्त्री-पुरुष ३७ का भंग-को० नं० वेद २ घटाकर ४९-४४ १७ के ३९ के भंग में ४०-३५-२० के मंग से स्त्री-पुरुष वेद २ । जानना घटाकर ३७ का भंग २०-१४ के भंग को०१५ के चानना २२-१६ के हरेक भंग में (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग से स्त्री-पुरुष वेद ये २ ४२-३७ के भंग-को० को नं०१८ देखो, को० नं.१% घटाकर २०-१४ के भंग नं०१५ के १४-३६ के देखो जानना भगों में से स्त्री-पुरुष वेद ये २ घटाकर ४२-३७ के। भंग जानना २३ भाव ४३ सारे भंग १ मंग सारे भंग १ मंग को० नं.४८ के ४२ के । (१) नरक गति में को मं०१६ देखो 1 को.नं. १६ कायिक सम्यक्त्व १, अपने अपने स्थान | अपने अपने भावों में से स्त्री वेद । २६२४-२५-२८-२७ के देखो कुजान २, दर्शन ३, सारे भंग स्थान के सारे घटाकर नपुंसक बेर मंग को.नं.१६ के शान ३, वैदकस. १, | जानना मंगों में से जोड़कर ४२ जानना समान जन्धि ५, नरक गति कोई भंग (२) तिर्यच गति में सारे मंग । १ भंग तिथंच गति-मनुष्य गति जानना २४-२५ के भंग को नं. को.नं.१० देखो को० नं०१७ | ये ३, कपाय ४, नए सक १७के समान आनना । देखो | लिग १. पशुभ लेश्या ३, २५-२६-२७-२८-३०-२७ | मिथ्यादर्शन १, पसंयम के भंग को नं०१७ के १, प्रशान १, अमिद्धत्व २७-३१-२६-३०-३२-२६ ,पारियाभिक माद३, ये ३ जानना Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०४६ नपुंसक वेद में के हरेक मंग में से स्त्री (१) नरक गति में सारे भंग सारं अंग भंग पुरुष वेद ये २ घटाकर २५-२७ के भंग को. को० नं. १६ देखो| को. नं. १६ २५-२६-२७-२८-३०-२७ नं०१६ देखो के भंग जानना (२) नियंच गति में सारे भंग १ भंग (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग २४-२५ के भंग-को० को० नं० १७ देखो को नं०१७ २६-२७-२८-३१-२८-२९ | को० नं०१८ देखो को० नं०१८ न०१७ के समान जानना दसो -२६-२७-२७ के भंग को. देखो २५-२५ के मंग को० नं. नं०१८के ३१-२६-३० १७ के २७-२३ के मंगों ३३-३१-३१-२६-२९ के में से स्त्री-पुरुष थे २ वेद हरेक भम में से स्त्री-पुरुष घटाकर २५-२५ के मंग बैद ये २ घटाकर २६-२७ जानना -२८-३१-२८-२९-२६-२७ २२-२३ के भंग-को २७ के भंग जानना नं०१७ के समान २३-२३ के भंग-को नं १७ के २२-२५ के | हरेक भंग में स्त्री-देव पुरुष-देद थे २ घटाकर २३-२३ के भंग जानना (३) मनुष्य गति में २८-२६ के मंग-फो० | सारे भग १ मंग नं०१८के ३०-२८ के कोन०१८ देलो को.नं.१८ हरेक मंग में से स्त्रीपुरुष वेद ये२ घटाकर २५-२६ के भंग जानना Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २५ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ अवगाहनाको० नं० १६-१७-१८ देखो । बंध प्रकृतियां - १२० सामान्य मालाप की अपेक्षा जानना । उदय प्रकृतियां तत्व प्रकृतियां - १४८ जानना । ( ३४४ ) १०८ नित्य पर्याप्त अवस्था में आयु ४, नरद्विक २, देवद्विक २, वैक्रियिकद्विक २, ग्राहारकद्विक २, ये १२ घटाकर १०८ जानना । -११४ उदययोग्य १२२ में से देवत्रिक २ देवायु १, आहारकविक २, स्त्री वेद १, पुरुष वेद १, तीर्थंकर है, ये घटाकर ११४ प्र का उदय जानना । सच्या अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र- लोक का प्रसंख्यातवां भाग १४ राजु ६ राजु । स्पर्शन - सर्वलोक १४ राजु जानना । ७वे नरक का नारकी मध्य लोक में जन्म लेने की अपेक्षा ६ राजु आनना । - - काल-नाना जीवों की प्रपेक्षा सर्वकाल जानना नपुंसक वेदी ही बनता रहे । अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं जाति (योनि) – ८० लाख जानना (देवगति के ४ कुल १७३।। लाख कोटिकुल जानना (देवगति के २६ लाख कोटिकुल घटाकर जानना ) एक जीव की अपेक्षा खादि नपुंसक बैदी एक समय से श्रसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक एक जीव की अपेक्षा अन्त हूर्त से नवस (१००) सागर काल तक नपुंसक वेदी नहीं बने। लाख घटाकर शेष ८० लाख जानना) Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०५० अपगत वेद में चौतीस स्थान दर्शन स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त एक जीव के नाना एक जीव के एका समय में समय में । पपर्यात १जीव के नाना एक जीव समय में । एक समय में नाना जीद की अपेक्षा नाना जीवों की अपेक्षा मारे गुण स्थान | १ गुण से १४सारे गुण से १४ में से. १३ गूण जानना जानना | कोई १ गुरण कोई, को० नं. १८ देखो सारे गुण स्थान | १ गा. |१३वें गुग जानना १३२ गुरग. १ गुण स्थान ६ १ से १४ तक के (६) वे गुण के प्रवेद भाग मे१वें गुस्प० तक के ६ गूरा स्थान जानना २जीव समास ४ . संजी पं० पर्याप्त अफर (१) मनुष्य गति में १ मंजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कोनं. १८ देखो ३ पर्याप्ति को नं. १ देखो (१) मनुष्य गति में को० नं. १८ देखो (१) मनुप्य गति में १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कोनं०१५ देखो १ भंग मंग मंग का भंग ६ का भंग (1) मनुष्य गति में । ३ का भंग ३ का भंग |३का भंग को.न १-देखो लब्धिरूप का भंग होता है 2 मारे मंग भं ग सारेग ___ सारे मंग को० नं. १८ देखो कोनं. १८ देखो (१) मनुष्य गति में कोनं १८ देखो को नं०१८ देखो २ का भंग | कोनं०१८ । सारे मंग भं ग | सारे भंग । सारे भंग को० नं०१८ देवो कोनं०१८ देखो ( मनूष्य मति में को.नं. १८ देखो कोन०१८ देखो (0) का मंग की.नं. १८ देखो ४ प्राण १० को नं०१देखो (1) मनुष्य गति में १०-४-१ के भंग को००१८ दसो ५ मंजा १. .. परिग्रह मंज्ञा । (१) मनुष्य गति में १-१-० मंग को.नं. १८ देखो ६ गति मनुष्य गति मनुष्यगति जानना | मनुष्य गनि जानना Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५० अपगत वेद में ७इन्द्रिय जाति संज्ञी पंचेन्दिय जाति मंत्री पंचेन्द्रिय जाति मंजी पंचेन्दिय जाति . काय सफार प्रसकाय जानना प्रमकाय जानना सारे भंग योग सारे अंग । १योग मनोयोग ४, बचन- . मो० मिश्रकाययोग १, अपने अपने स्थान के प्रपने अपने स्थान चौ. मित्रकावयोग १ २ का भंग २ में से कोई योग ४, प्रो० मिध- | मियकायमांग सारे भग जानना ' के मंगों में से । कारिग काययोग को नं०१८ देखो । १ योग जानना काययोग पौ० काय- ये २ घटाकर (६) को० न०१८ देवो कोई १ योग २ जानना को.नं०१८ देखो योग, कार्मारा काय- (1) मनुष्य गति में ! जानना (१) मनुष्य गति में योग १ये ११ जानना --३-० के भंग कोल्न १८ देसो २ का भग को नं०१- देखो को० नं०१८ देखो १० वेद सूचना-नवें गुरण स्थान के मवेद भाग मे १४वें गुगण स्थान तक अपगत वेद जानना। को. नं०१८ देखो ११कषाय सारे भंग भंग | सारे भंग । भंग संज्वलन क्रोध-न-|(1) मनुष्य गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) मनुष्य गति में .. माया-लोभ कषाय ४-३-२-१-१-०के भंग | सारे भंग जानना के अंगों में से । (0) का भंग को नं०१५ देखो कोनं०१८ देखो ये ४ जानना कोल नं०१८ के समान को० नं० १८ देखो| कोई १ कयाय को न १८ देखो जानना जानना कोनं०१८ देखो १२ जान सारे मंगजान १जान जान माति-पत-भवधि- १)मनूष्प गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) मनुष्य गति में कोनं०१८ देसो कोन०१५ देखो मनः पर्यय केवल ज्ञान ४-1 के भंग | गारे भंग जानना । के मंमा में से का भग ये ५ जान जानना को० न०१८ देखो को न दखो कोई १ज्ञान को नं. १८ देखो १३ संयम सारे भंग १संयम सारे मंग १संयम सामायिक, छेदोप- (१) मनुष्य गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) मनुष्य गति में को १८ देखो को नं०१८ देखो २-१-! के भंग १का मंय Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३४७ ) कोष्टक नं०५० !तीस स्थान दर्शन अपंगत वेद में १दर्शन को.नं. १५ देखो कोनं.१ देखो लेण्या को नं०१८ देखो कोन०१८ देखो भब्बा २ स्थापना, सूक्ष्म सांपराय कोनं १८ देखो सारे भंग जानना के सारे भंगों में | को० नं. १८ देखो। यथास्यात ये ४ संयम को वं०१८ देखो से कोई १ संयम, जानना १४ दर्शन ४ ४ | सारे भय १दर्शन को नं०१८ दलो ) 'गति में को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (१) मनुष्य गति में -के भंग का भय को नं०१५ देखो को.नं. १८ देखो १५ लेल्या शुक्ल लेश्या जानना (१) मध्य गति में को नं०१८ देखो को.नं.१८ देखो (१) मनुष्य गति में १-० के मंग १ का भंग को० न०१८ देखो को न० १८ देखो १६ भब्यत्व भव्य जानना 1 भब्य जानना १७ सम्पक्व | सारे मंग१ सम्यक्त्व - १ उपशम-शायिक स० (१) ममुख्य गति में को न १८ देखो कोनं १- देखो (१) मनुष्य गति में २-१ के भंग १-१ के भंग को नं. १- देखो | को० नं. १८ देखो १८ संशी (१) मनुष्य गति में को० नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो (१) मनुष्य गति में १-०के भंग !(0) का भंग को नं० १८ देखो को.नं.१% देसो १६ माहारक २ सारे भंग १ अवस्था माहारका, पनाहारक(१) मनुष्य गति में अपने अपने स्थान में कोनं०१८ देखो (२) मनुष्य मांत में १-१-१ के भंग सारे मंग जानना १-१ के भंग को० नं० १८ देखो 11वें गुरण जानना सूचना-पहला १ का RTE में की.नं०१८ देखो गुण के प्रवेद भाग 1 से १२व गुण तक जानना | सम्यक्त्व : को न० १- देखो कोनारदेखो . को० नं० १८ देखो कोन १८ देखो सारे भंग १अवस्या कोल नं०१५ देखो फोनं.१६ देखो Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ *चौंतीस स्थान दर्शन । ३४ ) कोष्टक नं० ५० अपगत वेद में २० उपयोग | सारे भंग १ उपयोग सारे मंग१ उपयोग शानोपयो ग ५, शनी- (१) मनुष्य गत्ति में को० नं. १८ देखो को नं०१८ देखो (१) मनुष्य ग में को.नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो पयोग ४ जानना । ७-२ के भंग २ का भंग को० नं १८ देखो को न०१८ देखो २१ ध्यान सारे भंग १ ध्यान १ ! सारं भंग १ ध्यान शुक्ल च्यान ४ जानना । (१) मनुष्य गति में ____ को. नं. १६ देशो कोनं.१८ देखो (१मनुष्य गति में का नं० १८ देखो को नं०१८ देखो १-१-१-१ के मंग का मंग को० नं.१८ देखा को० नं०१८ देखो २२ आम्रव सारे भंग १ मंग । सारे भंग १ मंग योग ११, कषाय ४, प्रो. मित्र काययोग अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान प्रौ० मिश्रकाययोग १, पने अपने स्थान के अपने अपने स्थान ये १५ जानना कारिण काययोग १ सारे भंग जानना | सारे के अंगों में कार्माण काययोग १, सरे भंग जानना सारे के अंगों में २ घटाकर (१३) को० नं०१५ देखो से कोई।भग ये २ जानना को नं०१८ देखो | से कोई१ मंय (१) मनुष्य गति में जानना (१) मनुष्य गति में | जानना १३-१२-११-१०-११-६- । कोनं०१८ देखो २-१ केभंग कोनं०१८ देखो ५-० के मंग को० न०१५ देखड़े को० नं०१८ देखो । मारे भंग १ भंग १४ सारे मंगभंग २३ भाव ६३ (१) मनुष्य गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) मनुष्य गति में को००१८ देखो कोनं०१८ देखो उपशम सम्यक्त्व १, २६२५-२४-२३-२३-२१- सारे मंग जानना के मारे भंगों में , १४ का मंग उपगम चारित्र १, २०-१४-12 के भग को००१८ देसो | से काई १ मंग ' को.नं. १८ देखो सायिक माव , को० नं०१८ के समान जानना क्षयोपशम ज्ञान , । जानना दर्शन ३, सन्धि ५, । भनुन्यगति १, काय ४ शुक्ल लेश्या १, अजान १ प्रसिद्धल १, जोवत्व भध्यत्व'१ य (३३) Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ २५ २६ गाहना- को० नं० १८ देखो। बंध प्रतियां-१२० वे गुण के भवेद भाग में कषाय , जानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अन्तरराय ५, साता वेदनीय १, उच्चगोत्र १, यशः कौति १. ये २१ प्रबन्ध जानना । २१ १० गुगा में ऊपर के २१ में में कषाय ४ घटाकर १७ प्र. का बन्ध जानना । १११-१२-१३ गुण में शुक्न लेन्या का बन्य बानना । • १४व गुण में बन्ध नहीं है। वय प्रकृतियां-१३ नव गण के प्रवेद भाग में ६३ प्र. का उदय जानना की०म०१ देखा। ६० १०वं गुण. मे संग्वलन कोष-कषाय-मान-माया ये ३ घटाकर ६० प्र० का उदय जानना । ५६ ११वं गृण में सूक्ष्म लोभ घटाकर ५६ प्र० का उन्य जानना । ५७ १व गुण में नाराच पौर. वजनाराच संहनन ये रे घटाकर ५७ प्र.का उदय जानना । ४२ १३ गूरण में झानावरणीय ५, दर्शनावरणीय , मन्तराय ५ये १६ ऊपर के ५७ में से घटाकर तीर्थकर प्र.१ ओरकर ५७-१६%3D४१+१-४२ प्र०का उदब जानना । १२ १४वे गुरण में को० नं०१८ के समान १२ प्र० का उदय जानना । सत्य कृतियां-१०५ नवें गुण के मवेद भाग में !.५ प्र. का सत्ता जानना को नं. ६ देखो। १०२१०वें गण. में क्रोष-घन-माया ये ३ घटाकर १०२ प्र०का सत्ता जानना। १०११२वं गुण० में सूस्म तोभ घटाकर १०१ प्र०का सत्ता जानना । ८५ १३वे गुण में जानावरसीय १, दर्शनावरणीय इ. अन्तराय ५, ये १६ घटाकर ८५ की सत्ता जानना । ८५ १४वें गुण में विचरम समय में ८५ प्र० का पोर चरम समय में ऊपर को ८५ में से ७२ प्रकृति घटाकर १३ प्र. का सत्ता जानना को नं०१४ देखो। सच्या उपषम थेरणी को अपेक्षा-९००८६४ जागना का नं० से १५ देखो। क्षपक श्रेणी की अपेक्षा-२०१७६१ जानना को.नं.१ से १५ देखो। क्षेत्र--सनाड़ी को अपेक्षा-लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना । प्रत्तर समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यात माग जानना । लोकपूर्ण समुदलात की अपेक्षा सर्वलोक वानना । २७ २१ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१ ( १५० ) स्पर्शन-मार के क्षेत्र के समान वानमा । फार--नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा उपशम श्रेणी की अपेक्षा एक समय में अन्तर्मुहूर्त तक और क्षपक श्रेणी की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से देशोन पूर्व कोटि वर्ष तक १३वें मुण. में केवली की अवस्था में रह सकता है। अन्तर-नाना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा उपशम थेणी वाला अन्तर्मुहूत देशोन मर्षपुद्गल परावर्तन काल तक उपशम येणी प्राप्त न कर सके । जाति (योनि)-१४ लाख योनि मनुष्य गति के जानना । कुल-१४ लाख कोटिकुल मनुष्य के जानना। ३२ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान! नामन्य ग्रालाप १ गुण स्थान मि २ जीव रामाम १४ को० नं० १ देखी पर्यात को० नं० १ देखो 1 i पर्याप्त . नाना जीवों को अपेक्षा (१) चारों 3 में हरेक में २ मिथ्यात्व सासादन ये २ गुण० जनना को० नं० १६ से १६ देखो ७ पर्याप्त अवस्था (१) नरक-देवगति में हरेक में १ संज्ञी पं० पर्याप्त जानमा को० नं० १६-१६ के जानना (२) तियंच गति में ७-१-१ के मंग को० नं० १७ देख (३) मनुष्य गति में १-१ के मंग को० नं० १५ देखो ६ (१) नरक - देवगति में एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में ( ३५१ ) कोष्टक नं० ५.१ हरेक में ६ का भंग-को० नं० १६-१६ देखो ४ सारे गुण स्थान १ २५ गुण जानना १ समास to tt 17 1 | १ मंग अपने अपने स्वान मंगों में स १ मंग जानना 노 १ गुर १ ले रे मं से कोई १ गुण० १ समास " IP ! नाना जीवों की अपेक्षा अपर्याप्त 1 १ मंग अपने अपने स्थान के गंगों में से कोई १ मंग जानना (१) नरक में १ ले गुण ० ही होता है । (२) शेष तीन गतियों में हरेक में २ मिध्यात्व सासादन ये २ गुण-स्थान जानना ० ० १६ से १६ देखो ७ अपर्याप्त अवस्था (१) नरक - देवगति में हरेक में १ संज्ञी पं० अति जीव-समास जानना को० नं० १६-१६ देखो (२) निर्यच गति में ० ६ १ के मंग को० नं० १७ के समान जानना (३) मनुष्य नति में १-१ के मंग-को० नं० १० देखो श्रनन्तानुबंधी ४ कषायों में ३ (१) नरक-देवगति में हरेक में ३ का भंग को नं० १६-१९ देखी लब्धि रूप अपने अपने स्थान की ६-६.४ पर्या १ जीव के नाना समय में सारे गुण ० (१) नरक गति में पु० १ (२) शेष गति में १ परे गुण जानन १ समास " נו 23 १ जीव के एक समय में १ मंग पर्याप्तवन को नं० १६-१९ देखो ८ १ गुण १ ले गुण ० १ले २२ में से कोई १ गुण ० १ सनास " १ मंग पर्याप्ततत् को० नं० १६१६ देखो Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५१ अनन्तानुबंधी ४ कषायों में १ मंग भी पर्याप्तवत (२) तिर्यच गति में (२) तिर्यच गति में १ भंग १ भंग ६-५-४.६के भंग को० नं०१७ देखो को० नं० १७ । ३-३ के भंग को००१७ देखो को नं०१७ को० नं०१७देखो को.नं. १७ देखो देखो (३) मनुष्य गति में १ भंग (३) मनुष्य गति में १ भंग [ १ मंग ६-६ के भंग को.नं. १८ देखो को००१८ ३-1 के भंग को नं.१५ देखो को० नं१ को नं०१५.देखो को.नं. १८ देखो ४प्राण १ भंग भंग भंग १ मंग को० नं. १ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में को.नं.१६-१६ को नं०१६-1) नरक देयगति में को०० १६-१६ को० नं०१६१० का अंग हरेक में ७ का भंग | देखो। को० नं० १६-१६ देखो को० नं०१६-१९ देखो। । (२) तिर्यंच गति में १मंग १मंग (२) तिर्वच गति में १ भंग । १ मंग १०-६-८-७-६-४-१० को नं० १७ दंखो को नं० १७ J७-७-६-५-४-३-७ को० नं १७ देखो| कोनं०१७ के भग को० नं०१७ | के भंव को नं० १७, देखो देखो (३) मनुष्य गति में १ भंग १ भंग (३) मनुष्य गति में भंग ! १ मंग १०-१० के भंग को नं० कोनं०१८ देखो को नं.१८७- के भंग को .नं.१८ देखो' को० नं०१८ १८ देखा देखो को.नं०१८ देखो । देखो ६ संजा १ भंग १ मंग १ भंग १ भंग को० नं.१ देखो । चारों गतियों में हरेक में को.नं.१६ से १६ को नं०१६ | पारों गतियों में हरेक में! पर्याप्तयत् । पर्याप्तवत् ४ का भग-को. २०१६-देखो से १६ देखो ४ का मंग को००१६ ! १७-१८-१९ देखो से १६ देखो । ६ गति गति गति को० नं. १ देखो। चारों गति जानना चारों गति जानना । को न०१८ से १९ देखो को० नं०१६ मे १६ देखो। ७ इन्द्रिय जति ५ (१) नरक-मनुष्य-देवगति में जाति जाति । १जानि । आति को० नं. १देखो । हरेक में को न०१६-१८-[को० नं। १६ । ( क-मनुष्य-देवति! पर्याप्तवन । पर्याप्तवत् १ सजी पंचेन्द्रिय जाति । १६ देखो १८-१६ देबो | में हरेक में जानना J१ पचन्द्रिय जाति जानना को नं० १६-१८-१६ देखो को० नं. १६-१८-१९ । १गति गति Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( ३५३ । कोष्टक नं०५१ अनन्तानुबन्धी ४ कषायों में (२ तिथंच गति में १ जाति , जाति (3) तिच गति में १जाति जाति ५-१-१ के भंग को नं०१७ देखो कोनं० १७ देखो| ५-१ के भंग फो० नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो को.नं. १७ देखो को म०१७ देखो ८ काद १काय को० नं.१देशो |१) भरक-मनुष्य-देवगति में को.नं १६-१८-कोन १६-१८- (१) नरक--मनुष्य-देन पर्याप्तवत पर्याप्तवन हरेक में १६ देखो गति में हरेक में १ यकाय जानना पसकाय जानना को नं०१७-१८-१६ देखो को०१६-१८१६ देखो (२) तिर्यच गति में (२) तिथंच गति में . १काय काय २१-१के मंग को २०१७ देखो कोनं०१७ देखो -४-१ के भंग को नं १७ देखो कोनं०१७ देखो को० नं०१७ देखो १ योग है योग १३ १मंग १ योग १ मंग प्रा० मिथ काययोग मो० मिथकाययोग, मपने अपने स्थान के प्रपने अपने स्थान गत मिश्वकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान १, याहारक काययोग चै० मिश्र काययोग , | सारे अंग जानना | के भंगों में से 4 नियकाययोग १, भग जानना के अंगों में से कोई १, २ घटाकर (१३) कोर्माण कारयोग कोई योग काग कापयोग । | १ योग ये ३ टाकर (१०) ये ३ भंग जानना (१) नाक-मनुष्य-देवर्गात में को.नं. १६-१ (१) नरक-तियंच-मनाया-कोनं०१६ से १६ कोलम.१६ से | ११ देखो | देवगति में देखो १६ देखो का भंग १-२के मंग जानना का नं.१६-१-१६ । कोनं. १६ मे १६ देखो, (२) तिपंच गति में को० नं०१७ देखो ९-२-१- के भंग कॉ० नं०१७ देखी मंग पेद । भंग १ वेद को० नं. १ देखो | (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो कोनं० १६ देखो (१) नरक पनि को० न०१६ देखो को नं. १६ देखो १नपूसक वेद १ नपुंसक वेद कोनं०११ देखो को० नं। १६ देवो Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं.? अनन्तांनुबंधी '४ कषायों में २ . दखी (२) नियंच गति मे को नं. १७ देयो । काम०१७ ) नियंत्र गनि में कोन०१७ देखा | कोन०१७ -१३.के भंग देखो को न०१७ देखो को० नं. :देवी । (३) मनुष्य पति में | मारे भंग मारे भंग (३) मनुष्य गति में सारे मग "वेद १.२ के भंग को नं०१८ कोलन.१ देतो की न०१- ३-२ व मंग को नं. को.नं. १- देखो | को.नं.१५ ! देखा ।१८ देखो देखा (४) देवगनि में | सार मंग मारे भग ८) देवगति में सारे भग १वेद १ के भंग को न०१६ को नं. १६ देखो | को० नं१६ । २-१ के भंग को नं० को नं. १६ ददा | को० न०१६ दिनी १६ देखो देखो ११ कषाय २२ । सारे भंग . सारं भंग २ सारे मंग १ भंग अनन्तानुबंधी कषाय (१) नरक गति में को ०१६ देखो | को नं. १६ । (१) नरक गति में को नं १६ देखी | को.नं.१६ जिम कपाय का विवार ०० का भंग-को० . २०का भग-की नं० । देखो करो मौ०१ कषाय, १६ के २३ के भंग में से १. के २३ के रंग में मे अप्रत्याख्यान कषाय ४ अनन्तानुबंधो कषाय जिस । पर्याप्तवत अनन्तानृबंधी प्रत्याख्यान कपाय का विचार करो उसको कगाय ३ घटाकर २० का संज्वलन कषाय, छोड़कर शेष तीन कपाय | भंग जानना हास्यादि नव नो कषाय घटाकर २० का मंग ये (२२) जानना (२) तियंच गति में सारे भंग सारे भग । (२) नियंन गनि में सारे मंग १ मग २२.२०-२२-२६.२.क कोल नं.१७ देखा ' को० नं. १७ २२-२०.-२२-२०.१२ को.नं.१७ देतो | को० नं०१७ मंग-को० नं०१३ के २५ .२१ के भंग-कोनर २३२५-२५-२४ के हरेक १७ के २५-२३-२५.२५भंग में ऊपर के समान २३-२५-२४ के हरेक भंग अनन्नानुबंधो कपाय ३ । में में पर्याप्तवन अन्तानुघटाकर २२-२०-२२-२२ । बंधी कषाय घटाकर २१ के अंग मानना २२-२०-२२-२२-२०-२२ | २१ के मंग जानना । (३) मनुष्य गति में सारे मंग | सारे भंग । (३) मनुष्य गति में सारे मंग १ भंग २२-२१ के भंग-को.नं.को०१७ देसो । को.नं.१८२२-१के अंग-को को० नं.१८ देखो को.नं०१८ के २५-२४ के हरेक नं०१८के २५-२४ के। देना " । देखो [ देखो Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ५१ अनन्तानुबन्धी ४ कषायों में १२ जान कुमति-कुवत. कुअवधि ज्ञान (३) मंगों में से ऊपर के समान हरेक अंग में से पतिअनन्तानबन्धी कवाय ३ । वत् अनन्तानुबन्धी कषाय घटाकर २२-२१ के भंग . ३ पटाकर २२-२१ जानना के भंग जानना (१) देव गति में मारे मंग १ भंग २१-२० के मंग कोनं. देखो कोनं-१६ देखो (४) देवगति में सारे भंग १ मंग को.नं.१६ के २४३ २१-२१-२. के भंगको नं. १९ देखो 'कोन १६ देखो के हरेक भंग में में को.नं.१ के २४- । ऊपर के समान अनन्तान २४-२३ के हरेक मंग में उन्धी कषाय ३ घटाकर से पर्याप्त्या प्रनन्ना२१-२० मंग जानना नुबन्दी कषाय ३ घटाकर २१-२१.२० के मंग जानना सारे मंग१ज्ञान सारे मंग । १द्वान (१) नरक गति में मो०नं १६ देखो को नं०१६ देखो कुत्ति-कुधन ये (२) को० नं० १६ देखो कोनं०१६ देखो ३ का भंग (१) नरक गत्ति में को नं. १ देखो २का मंग (२) नियंच गति में १म १ जानको००६देखो २-३-३ के भंग नं०१७ दखो को.नं.१७ देखो (२)तियं च गति में को नं०१७ देखो -३ के भंग में नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो (३) माय गति में | सारे भंग १जान को नं०१७ देखो ३३के भंग मो.नं.१ देतो कोन.१८ देखो (1) मनुषण पनि में । सारे मंग ..। शान का. नं १० देखो | २.२ के भंग ० नं. १८ देखो कोनं० १८ देखो , (४) देवगति में मारे भंग १ज्ञान को २०१८ देखो ३ का भंग नं. १६ देखो को२०१६ देखो (४) देवगति में सारे भंग । १जान को न०१६ देवा 2-२ के भंग को० नं० १६ देखो | कोल्नं० १६ देखो | को० नं० १६ देखो १३ संयम पसंयम | चारों गतियों में हरेक में को.नं.१६ से कोनं०१६ से चारों गलियों में हरेक में कोनं-१६ से १६ को ०१६ से | १६ देखो । १६ देखो । गोदेखो Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५१ अनन्तानुबन्धी ४ कषायों में १४ दर्शन प्रचक्षु-चन दनंभ १प्रयंयम जानना १ असंयम जानना । को नं० १६ मे १६ देखो कोनं०१६ से १६ दंखों १ भंगदर्शन १ भंग १ वर्णन (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो कोन०१६ देखो (१नरक गति में को० नं०१६ देखो को नं०.१६ देखो २का अंग २.का भंग । को... देखो को.नं.१६ देखो ( तिर्यच गति में १ मंग १ दर्शन (२) तिर्यच गनि में भंग । दर्शन १-२-२-२ के भंग को० नं०१७ देखो कोनं० १७ देखो १-२-२-२ के भंगकी नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो को.नं०१७ देखो । को नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति । मारे मंग १ दर्शन (३) मनुष्य गति में J सारे भंग १दन २.२ के भंग को नं० १८ देखो को नं०१८ देसों, २-२ क भंग को० नं. १८ दलो कोल्नं०१८ देखो को नं०१८ देखो | कोन०१८ देखा (४) देवगति में भंग १ दर्शत (४) देवगति में | भंग । १ दर्शन २ का भंग को० नं०१६ देखो कोनं० १९ देखो २.२ के भंग कोल नं. १६ देखो | कोल्नं .१६ देख को० नं० १६. देखो ' को नं०१८ देखो भंग । १ लश्या १ भंग | लेश्या (१) नरक गनि में को० नं० १६ देखो कोनं० १६ देखो (१) नरक गति में को नं १६ देखो को२०१६ देख ३ का मंग ३ का भंग को.नं. १६ देखो | को.नं. १६ देखो (२) तिर्यत्र गति में मंग ले श्या (२) नियंच गति में | मारे भंग । १लेश्या ३-६-३ के भंग को नं०१३ देखो कोनं०१७ देवी, ३० मंग कानं०१७ देखो कोनं० १७ देखो को.नं. १७ देखो को० न०१७ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग ले ल्या () मनुष्य गति में १ भंग १ लेश्या ६-३ के भंग को.नं. १ देखो कोनं० १८ देखो ६-२ के भंग को न०१८ देखो | कोन०१८ देखो को.नं. १८ देखो को००१८ देखो -(४)दंवगति में मंग १नेश्या 1४) देव गति में नेश्या १-३-१ केभंग को १९ देखो कोनं०१९ देखो ३-३-१ के मंगको मं० १६ देतो कोनं० १९ देखो को नं० १६ देखो को नं० २४देख १५ लेश्या को न १ देखो Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ १७ सम्यक्त्व मिध्यात्व, सासादन १५ संजी संशी, असशी २ १६ माहारक प्राहारक, अनाहारक (१) नरकगति में १-१ के भंग को० नं० १६ देखी | (२) तिच गति में १-१-१-१ के भंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में १-१-१-१ के को० नं० 2 देखो (४) देवगति में १-१ के भंग को० नं० १६ देखो २ (१) नरक - देवर्गात में हरेक में १ संशी जानना बो० नं० १६-१६ देखो (२) तिच गति में १-१-१-१ के मंग को० नं० १७ दंखो (2) मनुष्य गति में १-१ के मंग को० नं० १८ देखो १ (१) नरका-देवगति में हरेक में १ श्राहारक जानता की. नं० १६-१६ देखो ( ३५७ ) कोष्टक नं० ५१ ✓ १ सम्यक्त्व २ J सम्यन्त्र सारे भंग को० नं० १६ देशको नं १६ देखो (१) नरक गति में १ मंग को० नं० १६ देखा १ भंग (२) तिथेच गति में को० नं० १० देखो को० नं० १७ देखी १-१-१-१ के मंग को० नं० १० देख (३) मनुष्य गति में १-१-१-१ के मंग को० नं० १८ देखो (४) दंवगति में १-१ के मंग को० नं० १६ देखो सारे भंग को० नं०१८ सी i सारे मंग को० नं० १६ देखी १ मंग को० नं० १६-१६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखां १ मुख्य चत्त्र कोनं० १८ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखी १ श्रवस्या नं० १६-१६ देखो १ अवस्था को० नं० १७ देखी १ अवस्था १ मंग को० नं० १८ देखी को० नं० १८ देखी १ को० नं० २६-१६ को० नं० १६-१६ देखो देखो श्रनन्तानुबन्धी ४ कषायों में २ (२) नरक-देव गति में हरेक मे १-१ के मंग को० नं० २६-१३ देखो सारे मंग १ सम्यचत्व को० नं० १६ देखी का०नं० १६ देखी १ भंग ६ सम्यकव को० नं० १७ के कोनं १७ देखी सारे मंग !को० नं० १८ देखो ५ २ १ भंग (१) नरक देव गति में १ मंत्री जानना को० नं० १६-१६ लो (२) निर्मच गति में १-१-१-१-१-१ के मंग को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखो १ प्रवस्था को० नं० १७ देखा (३) मनुष्य गति में १-१ के भंग को० नं० १८ देखी सारे भग १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो को०० १६ देखो को० नं० १६-१६ को ००१६-१६ १ नंग १ अवस्था देखो देखी १ मंग ६० नं० १८ देखी को १ मम्यवरव को नं० १८ देखो मारे मंग को० नं० १६-१६ देखो १ अवस्था को० नं० १८ देखो १ को० नं० १६-१६ देखो Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५१ अन्तानुबंधो ४ कषायों में देखो देखो (२)तिपंच-मनुष्य गति में | कोनं०१७-१८ [को० नं०१७-1(२) तिर्यच-मनुष्य गति [ को नं०१७-कोनं १७. हरेक में देखो | १५ देखो | में हरेक में |१८ देखो १८ देखो १-१के मंग को नं० १-१-१-१ के भंग को १७-१८ देखो नं०१७-१८ देखो २० उपयोग .१ भंग १ उपयोग १ भंग १उपयोग शानोपयोग ३, (१) नरक गति में कोल नं०१६ देखो को नं.१६(१) नरक गति में को.नं.१६ देखो | को. नं०१६ दर्शनोपयोग २ '५ का भंग-को नं०१६ ४का भंग को० नं.१६ ये ५ जानना देखो को० १ प्रमाण (२) तिथंच गति में १ भंग १ उपयोग (२)नियंच गति में भंग १ उपयोग ३-४-५-५ के भंग को नं०१७ देखो को.नं. १७२४-४-३-४-४-४ के मंग को नं. १७ देखो को.नं. १७ को नं. १३ देखो देखो को.नं. १७ देखो देखो | (३) मनुश्य गति में - यारे मंग १ उपयोग (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ उपयोग ५-५ के भंग को नं०१८ को नं. १८ देखी | को० नं०१८ | ४.४ के भंग को० नं. को.नं. १८ देखो को० नं०१८ देखो १८ देखो देखो (४) देवगति में मंग १ उपयोग (३) देवगति में १मंग १ उपयोग | ५ का भंग को० नं०१६ को नं०१६ देखो' को.नं. १६४-४ के भंग को० नं. को नं०१६ देखो को० नं०१६ । देखो १६ देखो देखो २१ ध्यान सारे भंग | १ ध्यान । । सारे मंग । १ ध्यान की नं.१ देसी (१) चारों गातयों में हरेक में को० नं०१६ से कोनं १६ से | (१) चारों गतियों में को०१६ से १६) को० नं. १६ ८ का भंग-कोनं १६ देखो १६ देखो । हरेक में देखो देखो से १६ देखो का अंग-कोर नं०१६ । मे १९ देखो २२ घायव ५२ । सारे भंग ।१ मंग ४२ ! मारे भंग १ मंग मिष्णाव ५ प्रविश्न १२ पौ० मिनकाय योग १, अपने अपने स्थान अपने अपने स्वान मनोयोग ४, बचनयोग ४ अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान योग १३, कषाय २२ ।। 4. मिश्रकाय योग २. के सारे मंग। | के सार भंगों में औ० काय योग के सारे भंग के सारे भंगों में ऊपर के स्थान के) ये काम्पिकाय योग १, जानना से कोई १ भग | 4. काय योग १,ये १० जानना | से कोई १ भंग ५२ पासव जानना ये ३ वटाकर (४६) जानना घटाकर (४२) जानना ११) नरक में सारे मंग १ भंग (1) नरक गति में सारे भंग को० नं. ६६ ४६-४१के भंग-को नं० को० नं०१६ दंलो को० नं०१६ | ३६ का भंग-को० नं. को० न० १६ देखो देखो १६ के ४६-४४ के हरेक । १६के ४२ भंग में से खो Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतास स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५. अनन्तानुबंधी ४ कषायों में देखा भंग में मे प्रनन्दानुबंधी कपाव जिसका विचार पशवन् अनम्नानुबनी करी उमको छोड़कर शेष वसाय ३ घटाकर ३६ ३ क्रमाय घटाकर ४६-४१। भंग जानना केभंग जानना (२) निगन गन में मारे भंग १ मंग (२) निर्यच गनि में सारे मंग भं ग ३४-३५-२६-७-४०.४? को००१७ देखा | को. नं०१७ ३३.२५-२६-23-10-४८ को नं०१७ देखो को० न०१७ -२६-३०-३१-१२-१५ देखो ३-४७-४० के भग-को। '३६-४०-५ के भंगनं.१० के ३६-३८-३६ को नं०१७ के ३५४०-४१-५.१-४६-५०-४५ २८-२९-३०-४३.४६-१२के हरेक भंग में से ऊपर के समान अनन्तानुबंधी ३% के हरेक भंग में गे ! वापाय ३ पाकर ३-५ पर्याप्तवत् अनन्नानुबंधी -३६-३.४७-४६-४३-४७ कषाय : पाकर ३४१२ के भंग जानना ३५-३६-३७-४०-४१-8(3) मनुष्य गति में मारे भंग १ भग ३०-३१-३२-३५-३५-४०४८-४३-४७-४२ के भंग- कोल नं०१८ देखो को० नं० १८ ३५के मंग जानना को नं०१८के -४६. दबी (३ मध्य गति में सारे भंग १ मंग ५०-४५ के हरेक मंग ४१-२६-४०-२५ के भंग को० नं. १८ देखो को.नं०१८ में डे ऊपर के ममान को नं. १० के ४४ देखो अनन्तानुबंधी कयाय । -४३-३८ के हरेक घटाकर ४६-४३-४७-४२ मंग में मे पर्याप्सवत् के भग जानना अनंतानुबंधी कपाय ३ (४) देवगनि में सारे मंग . मंग | पटाकर ४१-३६-४०४७-४२-४६-४१ के मंग को नं० १९ देखो' को.नं.१६ ३५ के भंग जानना को.नं. १६ के ५०-४५ । (४) देव गति में मंग ४६-४४ के हरेक मंग में ४०-३५-३६-३४ के मंगको .नं. १६ देखो | को.नं. १६ से ऊपर के समान अनन्ता को० नं०१६ के ४३ देसी बंधी कषाय ३ घटाकर ३८-४२-३७ के हरेक ४७-४२-२६-४१ के भंग भंग में से पर्याप्तवत् ब्बानना अनन्तानुबंधी कषाय ३ । मारे भंग Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܐ चौतीस स्थान दर्शन २ २३ भाष ३४ कुज्ञान ३ दर्शन २, लयि ५ गति ४ कपास ४, लिंग ३. लेश्या ६, मिथ्यावदर्शन १, असंयम १ अज्ञान १, असिद्धत्व १, पारिणामिकभाव ३ मे १४ जानना ૪ (१) नरक गति में २६-२४ के भंग-को० नं० १६ देखो (२) तिच गति में मारे भंग २४-२५-२७-३१-२६-२७-को० नं० १७ देखी २५ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ३१.६६-२७-२५ के मंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में २५-२३-२७-२५-२४-२० के भग-को० नं० १६ देखो | i (१६०) कोष्टक नं० ५१ i सार मंग को० नं० १: देखो सारे भग को० नं० १५ देखो सारे भंग को० नं० १६ देखो, ሂ ३३ १ भंग को० नं० १६ श्रवधि ज्ञान घटाकर देखो (12) १ मंग को नं० १७ दखो १ मंग को० नं० १६ देखो घटाकर ४०-३५-३६-३४ के भंग जानना १ मंग को० नं० १६ देखो अनन्तानुबंधी ४ रुपयों में सारे मंग को० नं० १६ देखो (१) नरकगति में २५ का मंग को० नं० १६ देखो (२) नियंच गति में २४-२५-२७-२७-२२-२३ को० २५-२५-२४२ के भंग को० नं० १७ देखो (३ मनुष्य गति में सारे भंग ३०-२६-२४-२२ के मंग को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो (४) देवगति में सारे भंग नं० १७ देखो सारे मंग २६-२४-२६-२४२६-२१ को० नं० १६ देखो के भंग को० नं० १९ देखो ५ १ मंग को० नं० १६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो १ मंग को नं० १८ देखो १ मंग को नं० १९ देखो Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५१ अनन्तानुबंधी ४ कषयों में १६ मध्यव १भंग १ स्था २ १ भंग १अवस्था भव्य, अभय । (१) नरक गति में को २०१६ देखो कोनं० १६ देखा (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो को नं०१६ २-१ केभंग २ का मंग को.नं. १६ सूबना यह विषय पृष्ठ । को० नं०१६ देखो देखो ५६ का टूटा हुमा । (२) तिर्यच-मनुष्य-देवपति में को.नं.१७-१८- | को.नं०१७-(२) नियंच-मनुष्य-देवगनि को.नं. १७-१-कोनं०१७ हरेक में | १६ देखो १८-१९ देखो । हरेक में १६ देखो १८-१९ देखो २-1 के मंग को० नं. | २-१ के मंग' को. नं. १७-१८-१६ देखो । १७-१८-१६ देखो २४ अवगाहना-की- १६३४ देखी। बंध प्रकृतियो-(१) मिश्यात्व गुण में ११७ माहारकद्विक २ तीर्थकर प्र०१ ये घटाकर ११७ जानना । (२) सागाइन गुना में १०१ को प्रमाण को नं०२ देखो। उदय प्रकृतियां-(१) मिप्यात्व गुण में ११७ सम्यमिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति, पाहारकाद्रिक २, तीर्थकर प्र. १ मे ५ पटाकर ११७ को०१प्रमाण जानना । (२) सामादन गुग में११, को नं. २ देखो। सस्त्र प्रतियां-१४८ को नं० २६ दंनो । (२) सासादन गुण। में १४५ को. नं० २ देखो। संल्पा-अनन्तानन्त जाननः । क्षेत्र–सर्वलोक जामना । स्पर्शम-सर्वत्तोक जानना । नाम-नाना जीवों की अपेक्षा मर्वकाल । एक जीव की अपेक्षा एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक एक कपास की अपेदा जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई मन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा एक समय या अन्तमुहर्ता में देशोन १३२ सागर काल तक कोई भी अनन्नानुबधी काय उत्पन्न न हो सके। आति (गेनि)-८४ लाख योनि जानना । कुल-१६६ लाख कोटिकुल जानना । . Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोलीस स्थान दर्शन क्र० स्थान ० स्थान सामान्य श्रालाप १ I १ से ४ जानना २ जोवसमास १४ को० नं० १ देखो पर्याप्त नाना जीव की प्रपेक्षा चारों गतियों में हरेक में १ से ४ गुरम० जानना ७ पर्याप्त अवस्था (१) नरक-देवगति में हरे में १ मंत्री पं० पर्याप्त अवस्था जानना को० मं० १९-१६ देखो (२) तियंच गति मे ७-१-१ के मंग को० नं० १७ देशो (३) मनुष्य गति में १-१ के भंग की० न० १८ देखो ( ३६२ ) कोष्टक ०५२ एक जीव के नाना एक जीव के एक । समय मे समय में I ४ सारे गुण स्थान १ समास को० नं० १६-१९ देखो १ गुण ० १ समास को० नं० १८ देखो १ समास को० नं० १६-१६ कोनं देखो १ समास १ समास को० नं० १७ देखो को०नं० १७ देखी १ समास कोनं ० १८ देखों नाना जीवों की अपेक्षा 3 (१) नरकगति में १-४ गुण ० (२) तिर्यच गति में अप्रत्याख्यान ४ कषायों में १-२ शु० (३) भांगभूमि में १-२-४ गुण० (४) मनुष्य गति में ९-२-४ गुण० (५) देवगति में १-२-४ गुण० ७ अपर्याप्त अवस्था (१) नरक -देव गति में हरेक मे १ संजी पं० पर्यास अवस्था जानना को० नं० १५-१६ देखो (२) तियंच गति में ७-६-१ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में १-१ के भंग को० नं० १८ देखी अपत १ जीव के नाना समय में כי सारे गुण ० १ समास को० न० १७ देखो एक जीव के एक समय में १ समास को० नं० १८ देखो ८ १ समास १ समास को० नं० १६-१६ को० नं० १६-१६ देखो देखो १ गुसा० १ समास को० नं० १७ देखो १ समास को० नं० १८ देखो Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५२ अप्रत्याख्यान ४ कषायों में १ .ग ३ प प्ति १ मंग १भंग १ भंग को० नं. १ देखो । (१) नरक-देवचति में हरेक में | को० नं० १६-१६ कोन०१६-१७ (१) नरक-देवगति में को मं०१६-१६ को०नं० १६-१६ ६का मंग देसो देखो हरेक में ३ का भंग | देखो को० २०१६-१६ देसो को.नं. १६-१९ देखो। (२) तिर्यच गति में | १ मंग १मंग (२) निर्यच पति में १ भंग । १ मंग ६-५-८-६ के भंग को० नं. १७ देखो को नं०१७ देसो ३-३ के भंग कोनं. १७ देखो कोनं०१७ देशो को.नं०१७ देखो को.नं. १७ देखो मनुष्य गति में मंग भं ग । (३) मनुष्य गति में १ भंग ! १ मंग। (३) ६-६ के मंग को नं. १८ देखो कोनं.१८ देखो| ३-३ के भंग को० नं० १८ देखो कोन. १८ देसो को मं०१८ देखो | को. नं० १८ देखो ४प्राण १ भंग भंग । १ भंग १ भंग को.नं. १ देखो I Oनरह-देव गति में हरेक में को.नं. १६-१६ कोनं.१६-१६ (8) नरक-देवगति में |को.नं. १६-१६ को.नं. १६-१६ १० का मंग देगो देखो हरेक ७ का भंग । देखो देखो को नं०१६-१९ देखो । को नं०१५-१६ देखो | (२) तिर्यच गति में | १ भंग १ मंग (२) निर्यन गति में १ भंग १ मंग १०-8-4-७-६-४-१. की.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो ७-७-६-५-४-३- के भंग को००१७ देखो कोन०१७ देखो के मंग को नं. १७ देखो को. नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में ! १ भंग ! भंग (३) मनुष्य गति में . मंग १ भंग ७.७के भंग को .नं. १८ देखो को नं.१८देखो १०-१० के भंग को नं०१८ देखो को.नं०१८ देखो को नं०१- देखो। को नं १८ देखो १० संज्ञा को.नं०१ देखो । भंग १ भंग . १ भंग । १ भंग पारों गतियों में हरेक में कोनं०१६ से १६ को० न०१६ से चारों गनिणे में हरेक में को२०१६ से १९ कोल्नं. १६ से ४ का भंग I देलो १९देखो ४का भंग । देखो १६ देखो को.नं.१६ से १६ देखो। को नं०१६से १६ देखो Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ६ गति चौतीस स्थान दर्शन ४ को० नं० १ देखी ८ काय २ ५ ७ इन्द्रियजति को० नं० १ देखी 8 योग को० नं० १ देखो १३ को० नं० ५१ देखो 4 चारों गति जानना को० नं० १६ से १६ देखो ५ (१) नरक- मनुष्य – देवगति में हरेक में १ पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १६-१५-१६ देखी (२) तिर्वच गति में (१) ६ (१) नरक-मनुष्य-देवगति में हरेक में १ सकाय जानना को० नं० १६-१५-१६ देखो (२) नियंच गति में ६-१-१ के मंग को० नं० १७ देखो १० भ० मिथकाय योग १, वे मिश्रकाय योग १, J कार्माणका योग १, ये घटाकर (१ मनुष्य ( ३६४ ) कोष्टक नं० ५२ १ जाति १ जाति ५-१-१ के को० नं० १७ को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखो देखो हरेक में १ का मंग को० नं० १६१५-१६ देखो ४ १ गनि १ जाति १ जाति [को० नं० १६-१८ | को० न० १६ १६ देखी १८- १६ देखो १ गति १ काय "१ काय को० नं० १६-१८को० नं० १६ १२ देखी १५ १६ देखो १ काय को० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १६-१८ १६ देखो १ काय को० नं० १७ देखो १ योग को० नं० १६ १५-१६ देखो ४ चारों गति जानना को० नं० १६ से १६ देखी (२) निर्यच गति में ५-१ के भंग को० नं० १७ देखो ६ ५ १ जाति (१) नरक- मनुष्य- देवगति | को० नं० १६-१८ में हरेक में १६ देखो १ पंचेन्द्रिय जाति जानता ! को० नं० १६-१८-१९ देखो (१) नरक मनुष्य-देवगति में हरेक में १] यसकार्य जानना को० नं० १६-१८-१६ देखो (२) तिथेच गति में ६-४-१ के मंग को० नं० १७ देखो श्रप्रत्याख्यान ४ कषायों में ३ प्रो० मिथकाय योग १, ० मिश्रकाय योग १. काकाय यंग १. ये ३ योग जानना (१) नरक-मनुष्य- देवगति में हरेक में १-२ के भंग को० नं० १६-१८-११ देखो १ गति १ जाति को० नं० १७ देखो १ काय को० नं १६-१८ १६ देखी ८ १ गति १. जाति को० नं० १६१५-१६ देखो १ जाति को० नं० १७ देखो : १ काय को० नं००१६! १८-१६ देखी १ काय १ काय को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखो १ भंग १ योग को० नं० १६ १८० को० नं० १६| १६ देखो १५-१६ देखो Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५२ अश्रत्याख्यान ४ कषायों में (२) तिर्थन मनि में मंग १ योग (२) निर्वत्र गति में भंग मंग है-२१-१के भंग को० नं १७ देखो कोन०१७ देखो - के मंग को० नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो को नं०१७ देखो को न०१७ देखो १० वेद १मंग ! बंद । ३ भंग १देद को० नं. १ देखो । (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो को नं. १६ देखों (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो १ का मंग १का भंग को नं-१६ देखो को. नं०१६ देखो (२)तियच गति में १ मंग । १वेद (२ निर्वच गति में | भंग १ देद ३-१-३-२ के भंग कोनं देखो कोनं०१७ देखों-१-३-१-३-२.५ के मंग को० नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो को.नं. १७ देखो को० नं. १० देखो (३) गुग में शो | १वेद (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ वेद ३-२ के भंग कोनं०१८ देखो को नं०१८ देखो ३-१-२-१ के भंगको नं. १८ देखो कोनं-१८ देखो को.नं०१८ देखो को नं. १८ देखो (१) देव पति में | सारे भंग १ वेद (४) देवगति में । सारे भंग १ वेद २-1-1 के भंग को नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो २-२-१ के भंग को नं. १६ देखो कोन०१९ देखो को००१ देखा दो नं. १६ देखो ११कवाय २२ | २२ | सारे भंग । १ मंग । सारे अंग भंग अनन्तानुबन्धी कषाय || (1) नरकगति में को० नं०१६दखा कोनं. १६ देखा (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो को२०१६ देखो ४, अप्रत्यास्यान कपाय २०-१६ के मंग २०.१६ केभंग जिसका विचारकरोमो को० नं. १६ के २३-१९ | कोनं। ६ के २३-१४ १ कषाय, प्रत्याख्यान के हरेक मंगों में से अप्र के अंगों में से पर्याप्तवन कषाय,मज्लन कपाय त्याख्यान कषाय जिसका अप्रत्याख्यान कषाय ३ हास्यादिक नवनोकपाय विचार करो भो हरेच में घटाकर २०-१६ ये २२ कषाय जानना छोडकर शेष ३ कवाय के मंगजानना घटाकर २०-१६ के भंग (a) निर्यच गति में सारे भंग मंग जानना २२-२०-२२-१२-२०. को नं०१७ देखो को नं०१७ देखो (२) तिर्यच गति में । सारे भंग १ मंग । २२-२१-१६ केभंग २२-२०-२२-२२-१५-२१-को० नं०१७ देखो को.नं.१७ देखो, को नं. १७ के २५१७के मंग २३-२५-२५-२३-२५-२४ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन याँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५२ अप्रत्याख्यान ४ कषायों में को.नं. १७के २५-२३ १२ के हरेक मंग में से पर्याप्तवतु अप्रत्याख्यान भंग में उसर के समान कषाय ३ घटाकर २२. अप्रत्याख्यान कषाय ३ २०.२२-२२-२०-२२पटाकर २२-२५-२२-२२ २१-१६ के भग १८-२१-१७ के मंग । जानना जानना (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ मंग (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १ मंग | २२-१६-२१-१६ के भंग को.नं. १५ देखो को नं०१८ देखो २६-१८-२१-१७ के भंग को० न०१५ देखो कोने१८ देसो को० नं.१८ के २५. को.नं १८ क २५-२१ १६-२४-१६ के हरेक २४-२० के हरेक भंग में भंग में से पर्याप्तवत से ऊपर के समान प्रम अप्रत्याख्यान कषाय ३ त्याख्यान कपाय: घटा घटाकर २२-११-२१-१८ कर २२-१८-२१-१७ के भंग जानना भंग जानना (४) देवति में सारे भंग १ भंग (४) देव गति में | सारे भंग । १ भंग । २१-२१-२६-३०-१६- कोनं०१६ देखो को नं०१६देखो २१-१७-२०-१६-१६ के मंग को नं. १६ देखो को नं०१९ देखो १६ के मंग को० नं०१६ २४-२५ को.न. १९ के २४. । २३.१६-१६ क हरेक भंग | ०४-१३-२३-११-१६ के में से ऊपर के समान हरेक मंग में में पर्याप्तप्रत्यारुपान कषाय घटा बत अप्रत्याख्यान कपाय | कर २१-१७-२३-१६-१६ ३घटाकर २१.२१-१६-। के भंग जानना २०-१६-१६ के भंग जानना | मारे भंग १ज्ञान सारे मंग ।।मंग (१) मरक गति में को नं.१६ देखो कोन०१६ देखोकुपवधि शान घटाकर (५.) को० नं। १६ देखो कोन०१६ देखो -के भंग (१) नरक गति में | कोस. १६ देखो २-३ के घर को नं. १६ देखो १२ शान कुजान ३, गान३ येशान जानन Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ५२ अप्रत्याख्यान ४ कषायों में १ (२) तियंत्र गति में १भंग ज्ञान (२) तिथंच गति में १ भंग | ज्ञान २-२-६-३-३ के मंग को.नं०१७ देखो कोनं०१७ दंसो २-२-३ के भंग को नं०१७ देखो को२०१७ देखो को नं.१७ देखो को० नं. १७देखो (३) मनुष्य यति में | सारे भंग | शान (३) मनुष्य गति में | सारे मंग १ ज्ञान ३.३३-३के मंग को००१८ देखो को नं०१८ देखो २-३-२-६ के मंगको . नं १५ देखो कोन. १५ देखो को न १८ देखो को० नं. १८ देखो (४) देवगति में सारे मंग । १ज्ञान (४) देवगति में सारे भंग । १ज्ञान ३-३ के भंग को नं १६ देखो को नं.१६ देखो २-२-३-३ के भंग को० नं. १६ देखो कोने-१६ देखो को न०१६ देखो को० नं० १९ देखो | १३ संयम ६सयम चारों गतियों में हरेक में को.नं.१६ से १६ कोनं०१६ से चारों गतियों में हरेक में को० २०१६ से १६ को नं०१से १ संयम जानना | देतो १६ देखो १५संयम जानना दखा । १६ देखो कोल्न०१६ से १६ देखो कॉ.नं.१६ से १९ देखो १४ दर्शन . १ भंग १ दर्शन १ मंग । १दर्शन को.नं.१६ देखो। () नरकगति में को० न०१६ देखो कोनं०१६ देखो (१) नरक गति में कोनं १६ देसो कोनं०१६ देखो २-३ के मंग २-३ के मंग कोनं०१६ देखो को० नं०१६देखो (२) तिर्वच गति में १ मंग १ दर्शन (२) तिर्यच गति में १ भंग १दर्शन १-२-२-३-३-२-३ के भंग को नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो १-२-२-२-३ के भंगको०नं०१७ दसो कोनं०१७ देखो को. नं०१७ देखो को० नं०१७ देखा (३) मनुष्य गति में सारे अंग १ दर्शन (३) मनुष्य गति में | सारे मंग १ वर्शन २-३-२-३ के मंग देखो कोनं०१५ देखो २.३-२-३के भंग को००१८ देखो कोनं०१५ देखो को० नं०१८ देखो को० नं० १५देखो (४) दंवगति में ! १ अंग दान (४) देवगति में १ भंग १ दर्शन २का मंग को० नं०१६ देखी का नं०१६ देखा २-२-३.३ के भंग को मं० १६ देखो को०० १६ देखो को.नं. १६ देखो को.नं. १६ देखो १५ सेश्या १ मंगलेश्वा : | १ मंगलेश्या कोनं०१ देखो (१) नरफ गति में को० नं. १६ देखो को० नं० १६ देखो (१) नरक गति में कोनं देशो कोनं०१६ देलो Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५२ मप्रत्याख्यान ४ कषायों में । देयो १ भंग देखो १६ भव्यत्व भव्य, अभव्य देखो ३ का भंग-को. नं०१६ |. | ३ का भंग को नं०१६ देखो देखो (2) तिर्थन मम लख्या (२) तियन गति में , मंगलेश्या ३-६-३ के मंगको०० को० नं०१७ देखो | को नं. १७३-१ के भंग को० नं. को० नं०१७ देखो को नं. १७ । देखो १७ देखो देखो (३) मनुष्य नति में सारे भंग १ लेण्या (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ लेश्या ६-३ के भंग-को० नं. को नं०१८ देखो को नं.१८६-के भंग को नको .नं.१८ देखो को० नं१८ १८देखो देखो १८ देखो। (४) देवमति में १ मंग ले श्या । ४ देवमति में १मंग १ लेश्या १-३-१-१ के भंग-को को० नं० १२. देखो | को० नं०१९ | -३-१-के भंग को नं. १६ देखो। को० नं० १९ नं.१६ देखो देखो ! को.नं. ११ देखो १ भंग १ अवस्था १मंग १ अबस्था चारों मतियों में हरेक में को नं.१६ से को.नं.१६ से! चारों गतियों में हरेक में को. १६ से १६ को ०११ २-१ के भंग को.नं. १ १६ देखो १६ देखो |२-के भंग को०० देखो। ११ से १६ देखो । सारे भंग १ सम्यन सारे मंग १सम्यस्त्व ) नरक नति में 'को नं०१६देखो | को० नं०१६ : मिथ घटाकर (५) को नं०१६ देखो | को० नं. १६ १-१-१-३-२ के मंग : देखो (१)नक गति में देखो को नं०१६ देखो १-२ के अंग को नं०। (२) नियंच गति में १भंग सम्पन्न | १६ देवो १-१-१-३-१-१-१-३ को० न० १७ देखो को नं. १ (२) तिर्यच गति में भंग १ सम्यक्त्व के भग को० नं. ९७ देखो १-१-१-१-२ के भंग को. न. १७ दो को नं. १७ देखो को० नं. १७ देखो दखो (३) मनुष्य मनि में | यारे भंग १ मम्यक (4) मनुष्व गति में नारे भंग . १ सम्यक्त्व १-१-१-1-1-१-१-३ को नं०१५ देखो को.नं. १ १-१--१-१-०केको० नं. १- देखो | को. नं०१८ के मंग की. नं०१८ । दंती - मंग को.नं. १८ देखो | देखो देखो (४) देवर्गान में सारे भंग १ सम्यक्त्व (४) देवगति में सारे मंग | १ सम्यक्त्व १-१-१-२-३-२के मंग को न०१६ देखो को.नं. १६१-१-३के भंग को को० नं-१९ देतो को००१६ को.नं. १६ देशो नं.१६ देखो १७ सम्यक्त्व को० नं०१६ देख Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६६ । कोष्टक नं०५२ चौतीस स्थान दर्शन अप्रत्याख्यान ४ कषायों में १ भंग १८ संशी १ अवस्था | भंग १अवस्था संजी, मसंजी] (1) नरक, मनुण्य, देव गति में को० नं०१६-१०-कोनं. १६-१८ (१) नरक-मनुष्य-देव को० नं०१६-१८-कोनं०१६-१८हरेक में - १६ देखो' १९ देखो गति हरेक में । १३ देखी १९ देखो १ संज्ञी आनना | ।१ संझी जानना को. नं०१६-१८-१९ देखो मंग । १अवस्या को०नं०१६-१८-१९ देखो (२) तिथंच गति में को० नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो (२) तियंच गति में १मंग । १ अवस्था १-१-१-१ के मंग १-१-१-१-१-१ के भंग को नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो को. नं० १७ देखो ' को नं. १७ देखो १६ माहारक ' २ पाहारक, अनाहारक नरत-देवगति में हरेक में को० नं०१६ प्रौर को नं०१६और नरक-देव गतियों में को० नं०१६और कोनं०१६पौर १ प्राहारक जानना १६ देखो । १६ देखा । हरेक में १६ देखो १६ देखो कोनं० १६ और १९ देखो ।१-१ के भंग तिर्यच पोर मनूष्य गति में को.नं. १५-12 कोल्नं.१३.१८ को नं. १६और १९ हरेक में देखो देखो देखो १-के मंग (निर्यच पोर मनुष्य गतियो, १ भंग १ अवस्था को नं. ७-१८ देखो में हरेक में को.नं. १७-१८ कोन१७-१८ [१-१-.-१ के भंग देखो । देखो । को० नं० १७-१८ देखो २० उपयोग भंग १ उपयोग १मंग १ उपयोग को नं०१६ देखो नरक गनि में को० नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो प्रवधि ज्ञान घटाकर को नं०१६ सो कोनं०१६ देखो ५-६- के भंग को.नं. ९ देखो 1 ) नरक गति में (२) नियंच पति में मंगा उपयोग |४-६ के मा ३-४-५-६-६-५-६-६ के मंगको.नं. १७देखो कोनं-१७ देखो को० नं.१६ देखो १ मंग १ उपयोग । को.नं. १७ देखो । (२) तियर गति में को.नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ उपयोग | ३-४-४-३-४-४-४-६ १-६-६-५-६-६ भंग की.नं. १८ देखोकोनं०१८ दलो के मंग को० नं. १८ देखो को.नं.१ देखो Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७० । कोष्टक नं० ५२ चौंतीस स्थान दर्शन अप्रत्याख्यान ४ कषायों में | (४) देवति में १ भंग १ उपयोग (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १ उपयोग ५-६-६ के भंग को० नं. १६ देखो को नं०१६ देखो ४-६-४-६ के भंगको० नं०१८ देखा कोन०१८ देखो को० नं. १६ देखा मो० नं०१८ देखो (४) दंवगति में १ भंग ५ उपयोग | ४-४-८-६ के भंग को० नं०१२ देखा कोनं-१६ देखो को न०१६ देखो । २१ ध्यान सारे भंग १ ध्यान . सारे भंग । ध्यान भातं ध्यान ४, (१) नरक-निर्यच-मनुष्य- को० नं०१६ से को० नं०१६ से अपाय विषय मर्म घ्यान को० नं०१६ देखो को नं०१६ देखो रोद्र ध्यान ४, देवगति में हरेक गति में । १९ देखो १६ देखो । घटाकर (९) प्राज्ञा विचय , . । ८-६-१० के.भंग . (३) नक गति में माय विच्य१ये को न०१६ म १६ के 4- के मंग (१०) समान जानना को न १६ देखो (२) तिच गति में १ भंग १ ध्यान -- के भंग कोनं० १३ देखो कोनं० १७ देखो क.नं.१७ देखो (३) मनुष्य नति में नारे भग १ ध्यान ८-६-८- के मंग को नं०१८ देखो कोनं-१८ देखो को० नं.१% देखो (४) देवनि में सारे अंग ! १ ध्यान - के भंग कोज्नं० १६ देसो कोन०१६ देतो ! को नं०१९ देखो २२ प्रारद ५२ सारे भंग १ भंग ४२ | सारे भंग १ भंग मिथ्यात्व, अविरत पी० मिथकामयोग १, मनोयोग , वचनयोग १२. पौष १३, वै० मिथ काययोग १, मो० काययोग १, . । कपाय २०, ये ५२ | कामरिण काययांग १ बै० काययोग १, मात्र जानना ये ३ सटाकर (४६) ये १० घटाकर (४२) (१) भरक गति में सारे भंग १ भंग | (१) नरक गति में | सारे भंन १ मंग ४६-४१-३७ के मंगको० नं०१६ देखो कोन०१६ देखो, ३६-३० के मंगको ने०१६ देखो कोनं०१७ देखो को००१६के ४६ को० नं. १६ के ४२ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५२ अप्रत्याख्यान ४ कषायों में ४४-४० के हरेक भंग में | '३३ के हरेक भंग में में । से अप्रत्याख्यान कषाय | पर्याप्तवत् अप्रत्याख्यान । जिसका विचार करो। कषाय ३ घटाकर ३६-३, उसको छोड़कर शेष ३ के मंग जानना । वाम घटाकर ४-४१ .(२) नियंच गति में । सारे भंग १ भंग ३७ के मंग जानना ' ३४-३५-३६-७-४०.४१-को० न०१७ देखो को नं. १७ देखो (२) तिर्यंच गति में | सारे भंग भ ग २६-३०-३१-३०-३५-३६३३-३५-३६-३७-४०-४- को० नं० १७ देखो को नं०१७ देखो।०-३५-३० के भंग को०नं० ४३-18-४७-४२-३८ के भंग १ ३७-३८-३६-४०-४३को० नं०१७ के ३६-२८ ४४-३२-३३-३४-२५३८३९-४०-४३-११-४६-४२-| ५०-४५-४१ के हरेक भंग म : भंग में से पर्याप्तवतु अप्रसे ऊपर के समान अप्रत्या | त्यारुवान कपाय ३ घटा-! स्थान कषाय ३ चटाकर कर५४-३५-३६-३७-४०३३-३५-३६-३७-४०-४-- ४१-२९-०-३१-३२-३५४३-२६-७.४२-३८ के भंग । २६-४०-३५-३०के भन जानना जानना (३) मनाम मनि - सारे भंग भंग । (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग 12-28-0.. कान १८ देखो को.नं.१८ देखो ४१-३६०-४-३५-३० को.नं. १८ देखो को.नं०१८ देखो के मंग को० नं. १ के ! के मंग को० नं०१८ के । ५१-४६-४२-५०-१५-११ . ४४.३१-३-४३-36-0I के हरेक भंग में से ऊपर के के हरेक पंग में में पर्याप्टनमान अप्रत्याख्यान पाय : । बतु अप्रत्याभ्यान कवाय । ३ वाकर ४०-१३-३६-! । ३ घटाकर ४१-३६-३०४७-४२-३८ के भंग जानना ४०-३५-३० केभंग (४) देवगति में - मारे भंग १ भंग जानना ४७-४२-३८-४६-४१-३७-को. नं. १६ देखो कोनं० १६ देखो ।४देव गति में । मा भंग भंग ३.के भंग को नं. १६ ४.-३५३५-३६-३४-३०-को.नं. १६ देखो कोनं १६ देखो के ५७.४५-४१-४६-४४. ३.के मंग को नं. १३|| ४०-४० के मंग में से ऊपर । Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५२ अश्रत्याख्यान ४ कषायों में के समान प्रपत्यास्याम के ४३-३५-३३-४२कषाय ३ पटाकर ४७ ३७-३३-३ के हरेक ४२-३८-४६-४१-१७ मंग में से पर्या वत मप्र३७ भग जानना त्याख्यान कषाय: बटाकर ४०-३-३०-18 ४-१०-३. के भंग जानना २३भाव सारे भंग १ मंग सारे भंग १ मंग उपशम-सायिक ६० (१): त को खो कोनं०१६ देलो कुअवधि शान घटाकरको न०१६ देखो कोनं०१६ देखो कुज्ञान ३, जान ३, ।' २६-२४-२५-२८-२७ । दर्शन ३. लन्धि ५, के भंग | (१) नरक गति में वेद सम्यक्त्व, को.नं. १६ देखो | २५-२७ के भंग गति ४, कषाय, (२)तियच गति में सारे भंग भंग ! कोनं०१६ देखो लिंग ३, लेश्या ६, २४-२५-२७-३१-२६-कोनं०१७ देखो को.नं.१७ देखो: (२) तिर्वच गति में | सारे भंग १ मंग मिथ्या दर्शन १, असंयम ३०-३२-२७-२५-२६ २४-२५-२७-२७-२२-को.नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो १, प्रज्ञान १, पसिद्धत्व । २६ के भंग २३-२५-२५-२४-२२१. पारिणामिक भाव ३/ को० नं. १७ देखो | २५ के भंग ये (४१) ३) मनुष्य गति में | मारे भग १ मंग को.नं. १७ देखो । ३१-२६-३०-३३-२७- को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १ भंग २५-२६-२६ के भग ३०-२८-३०-२४-२२-कोनं० १८ देखो को.नं. १८ देखो को० नं०१८ देको २५ के भंग (४) देवगनि में | सारे भंग १ भंग को.नं.१८ देखो २५-२३-२४-२६-२७- कोन १६ देतो को०० १६ देखो (४) देवगति में सारे भंग १ मंग २५-२६-२६-२४-२२ २६-२४-२६-२४-२८--कोनं. १६ देखो कोनं०१६ देखो २३-२६-२ केभंग २३-२१-२६-२६ के भंग मो० नं०१६देखो को.नं०१६ देखो Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૪ २५ २६ २७ २६ २६ ३. ३ ३२ ३३ ३४ (३७३) अवमाना- को० नं० १६ से ३४ देखो । कृतियां ११७, १ ले गु० में ११७ ० गु० में १०१, ३ मुख० में ७४ ४थे गु० में ७७ जानना । उदय प्रकृतियां - १ ले गुण में ११७, २रे गुण में १६१ ३० में १०४ जानता । सत्य प्रकृतियां - १४६-१४५-१४७- १४८-१४१ प्र० का सत्ता क्रम से को० नं १ से ४ समान जानना । संख्या संख्यात जानना । क्षेत्र— लोक का प्रसंख्यातवां भाग, असनाड़ी प्रमाण जानना । - स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां भाग ८ राजु को० नं० २६ के समान जानना काल. नाना जीवों को अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक ( एक कषाय की अपेक्षा) जानना । अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा मन्तमुहूर्त से देशोन अर्धपुद्गल परावर्तन काल तक अप्रत्याख्यान कवाय प्राप्त न हो सके । जाति (योनि) - २६ लाख योनि जानना । बिगत को० नं० ६६ देखो । फुल - १०८॥ लाख कोटिकुल जानना । विगत को० नं० २६ देखो । Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७४ ) कोष्टक नं० ५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में चौंतीस स्थान दर्शन ..| स्थान सामान्य छालास पर्याप्त अपर्याप्त नाना जीवों को अपेक्षा एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में नाना जीवों को अपेक्षा जीव के नाना ।१जीव के एक समय में समय में १ गुण स्थान ५ y मारे गुगा स्मान | १ गुण मारे गुण १ गुराक १ से १ नुस्ग स्थान १ मे ५. नक के गुरण पपने अपने स्थान। सारे गुण में | (१) नरक गति में अपने अपने स्थान अपने अपने जानना के मारे गुणा० । से कोई ले ४वे गुगाः के सारे गुण स्थान के बारे (१) नरक-देवगति में जानना () तिर्यच गति में जानना मुरण से कोई १ से ४ गुण १गुण (२) तिथंच-मनुष्य मति में भोगभूमि में १५ गुण. १-२-४ गुरण भोय भुमि में से ४ गुरण ! (३) मनुष्य मति में ६-२-गुग्ग. (४) देवगति में १-२-४ गुरण. २ नोव समास १४ । ७पर्याप्त अवस्था १ समास | १ समास |७ अपर्याप्त भवस्था | समास १ समाम को.नं.१देखो | (१) नरक-मनुष्य-देवमति में को००१६-१८-को० नं. १६-1(१) नरक-मनुष्य-देवगति को ०१६-१८-कोनं०१६ १६ देखो १८-१९ देखो। में हरेक में | १६ देखो १०-११ देखो १ मंशो५० पर्याप्त जानना १ संजी पं० प्रर्याप्त जानमा को० नं०१६-१-१६ को० नं. १६-१८-१९ देखो देखो 11) तिर्वच गति में । समास १समाम (२) लियंच गति में समास समास 5-1-1 के अंग को नं. १७ देखो को.नं. १७७ -६-१ के भंग गो. नं. को नं०१७ देखो को.नं. १७ को००१७देखो देखो | १७ देखो देखो ३पर्याप्ति गंग । १ भंग को नं०१ दरो नरक-मनुष्य-दंदगति में दो नं. १६-१3- कोन१५.(१) नरक-मनुष्य-देवनि को नं०१६-१८ को० नं०१६ १८-१९ देखो में हरेक 1 १८-१९ देखो Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ३७५ ) कोष्टक २०५३ चोतीस स्थान दर्शन प्रत्याख्यान ४ कषायों में ४ प्रास. को०० ६ का मंग-कादं०१६ ३ का भंग को० नं०१६ १-१ देखो '१८-१६ देखो (तियच गति में भंग १ भंग () नियंचति में भंग १ भंग ६-५-४-६ केभंग को००१७ देना। कोर न.१७ । ३-३ के भंग का० नं०१७ देसो को० नं०१७ को.नं० १७ देखो देखो को नं०१७ देखो देखो १भंग १ भूग १ भंग । १ भंग (2) नरक-मनुष्य-देवगति में [को०१६-१-को० नं०१६- (१) नरक-मनुष्य-देवगति को नं० १६-१८- | कोनं०१६. हरेक में १८-१६ देखो । म हरेक में १८-१९ देखो का भंग को. नं. ७ का भंग को नं०१६१६-१८-१३ देखो १८-१६ दलो (२) तिथंच गति में १भंग १ मंग (२)तियंच गति में १ मंग १०-६-८-७-६-४-१० के को नं. १७ देखो | को० नं०१७ | ७-७-६-५-४-३-७के को० नं. १७ देखो | कोनं०१७ मंग को नं०१७ देखी। देखो | भंग को० नं०१७ देखो १९ देखा १मंग भंग १ भंग । १ भंग को० नं०१देखो | (१) चारों गतियों में हरेक में 1 को नं०१६ से । बोनं १६ | चारों गलियों में हरेक में को० नं०१६ मे १६ को० न०१६ से ४ का भंग-को.नं.१६ १६ देखो में १९ देखो ४ का भंगका० नं. १६: देतो १६ देखो से १९ देखो । मे १६ देखो ६ ___ को नं. १ देखो । चार्ने गनि जानना को नं.१६ से 'को० नं०१६ | चारों गति जानना को नं०१६ से कोल्नं०१६ से कोलनं. १६ से १६ देखो|१६ देखो में १६ देखो को० नं १६ मे १६ देखो १६ देखी | १६ देखो ७ इन्द्रिय जाति जाति । जाति ५ । १ जाति । १ जाति कोन०१दखा ।(१) नरक-मनुष्य-देवगति में कोन०१६-१८- [को० न०१६- ९) नरक-मनुष्य-दबगानाका०म०१६-१८- ] को नं०१६ 1१६ देखो १८-१६ देखो | में हरेक में १६ देखो १५-१६ देखो १पंचेन्द्रिय जाति जानना १पंचेन्द्रिय जाति जाननको० न०१६-१८-१६देखो को नं०१६-१८-१६ देखो (२) तिरंच गति में । १ जाति । १जाति (२) तिर्यंच गति में जाति १ भंग ५-१-१ के अंग को० नं. को नं०१७ देखो | को० नं १७ | ५-१ के अंग को० नं. को नं०१७ देखो | कोनं. १७ देखो १७ देखो Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३७६ ) कोष्टक नं०५३ चौतीस स्थान दर्शन प्रत्याख्यान ४ कषायों में १ मंग ८ काय १ काय को० नं० १ देखो । (१) नरक-मनुष्य-देवगनि म (१) नरक-मनुष्य-देवगति में को० नं०१६-१८- को० नं. १६- (१) नरक मनुष्य-देवगति क को० नं०१६-१८- को० न०१६हरेक में १६ देखो १८-१९ देखो में हरेक में १६ देखो १७-१८ देसो १ सकाय जानना |१सकाय जानना को० नं०१६-१८-१९ देखो कोल नं. १६-१६. देखो (२) तियर गति में काय | १ काय (२) तियंच गति में १काय काय ६-१-१के भंग को० नं १७ देखो | कोनं १७६-४-१ के भग को० नं०१७ देखो | को० नं.१७ को नं०१७ देखो | कोनं०१७ देखो देखो योग - ३ १ योग । १ भंग | १ योग को.नं.५१ देखो ओ० मिथकाय योग १, । प्रो. मिथकाय योग १, वे. मिश्रकाय योग १, वै. मिश्रकाय योग १ कार्यारणकाय योग १, कार्माणकाय योग ये घटाकर (१०) ये जानना (१) नरक-मनुष्य-देवमति में को.नं. १६-१८-1 को नं०१६- (0 नरक-मनुष्य-देवगति को. नं०१६-१-को.नं.१६ १६ देखो १८-१६ देखो में हरेक में १६ देखो १८-१६ देखो है का भंग को नं०१६ १-२ के भग को १८-१९ देखो | १६-१८-१३ देखो (२) तिर्यच मति में १ योन (२) तियंच गति में १ भंग । १ योग ९-२-1-6 के अंग को० नंको १७ देखो | को नं०१७ | 1-२ के मंग को. नं. कोनं १७ देखो। को.नं.१७ १७ देखो देखो । १७ देखो १० देद १ भंग १वेर । ३ १ भंग १ वेद कोलनं०१ देखो (1) नरक गति में को० नं०१६ देखो को.नं. १६ । (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो को० नं०१६ १ का भंग को.नं.१६ १ का भंग को. नं० । देखो देखो १६ देखो (२) तियंच गति में । मारे भंग १ वेद (२) निवंच गति में | १ भंग ' वेद १-१-३-२ के भंग कोकोन०१७ देखो | को ना १७ । ३-१-३-१-३-२-१ के भय को नं. १७ देखो को.नं०१७ नं०१७ देतो देवी को नं-१७देखो । देतो (३) मनुष्य गति में ! सारे भंग १ वेद (३) मनुष्य गति में | सारे मग । १ वेद ३-३-३ के भंग को० नं. को००१८ देखो , को० नं. १८ | 1-1-२-१ के मंग को.नं. १८ देखो | को.नं.१८ ' को००१८ देखो देखो | भंग पार देखो | देखो Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में । देखो (४) देवनि में सारे भंग । | (४) देवगति में मारे मंग. १ वेदन २-१-१ के भंग २-१-१ के भंग को नं. १६ देखो! कोन०१६ को नं०११ देखो को० नं०१देखो देखो ११ कषाव २२ सारे मंग १ भंग | | मारे भंग १ मंग अनन्तानुबंषी कषाय ४ (१) नरक हो' को (१) नरक गनि में को.नं. १६ देखो कोन०१६ अप्रत्याख्यान कषाय ४ | २०-१६ के मंग कोः । २०.१६ के भंग देखो प्रत्याख्यान पाय जिस नं०१६ के २३-१६ के को. नं०१६ के ३का विचार करो ओ१ हरेक भंग में से अप्रत्या के हरेक भंग में से कपाय, संज्वलन कपाय स्थान कषाय जिसका पर्याप्तवत् प्रत्यास्थान ४, हास्यादि नव नो विवार करो प्रो एक होड़ फषाय ३ घकिर २०. कषाय ६, ये २२ कषाय | कर शेष कषाय घटाकर 1 के मंग जानना जानना २.-१६ के भंग जानना . (२) निर्यच गति में सारे भंग | भंग (२)तियच गति में मारे भंग भंग २०-७-२२-२२-२२-२२ को नं.१७ देखो | कोनं०१७ २२-२०-२२.२२-१-१४-२९- को० नं०१७ देसो को नं. १७ । ०१-१: के भंग को देखो १७ के भंग को १७ के । दलो नं०१७ के २५-२३-२५२५-२३-२५-२५-२१-१७-: | २५-२३-५-२४-१६ के २४-२० के हरेक भंग में हरेक मंग में में पर्यामवत् मे ऊपर के स्थान प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान कषाय ३ । कपाय ३ पटाका २२-२०. घटाकर २२-२०-२२-२२-1 २२-२२-१०-१४.२:-१५ २०-२२-२१-१६ के भंग के मंग जानना जामना ३) मनुष्य गति मे मार भग . १ भंग (३) मनाप गति में । सारे भंग १ भंग २२-15-1४.१.१७ के | को. २०१८ दखो को नं.१% २२-१६.२१-१६ के भंग को न०१८ देखो। को नं. १५ भंग को० नं०१५ २५देखो को० नं०१८ के २५- । देखो २१-१७-२४-२०के हरेक भंग में से ऊपर के समान भंग में में पर्याप्तवन प्रत्यारूपान कपाय ३ घटा प्रत्याख्यान कपाय ३ कर २२-१-१४-२१-१७ घटाकर २०-१६.२१-१६ के भंग जानना के मग जानना Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ जान चौतीस स्थान दर्शन ६ कौ० मं० ५२ देखो १३ संयम २ असंयम, संयमः संयम मे (२) ३ (४) देव गति में २१- १७-२०-१६-१६ के मंग को० नं० १६ के २४२०-२३-१६-१६ के हरफ गंगों में से ऊपर के समान प्रत्याख्यान कषाय ३ घटा१९७२-११-१६ के भय जानना (१) नरक गति में ३. के भंग को० नं० १६ देखो (२) तिर्वच गति में २-३-३-३-३ के भंग को० नं०] १७ देख (२) मनुष्य गति में ३-३-३-३ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देव गति में ३-३ के भग को० नं० १६ देखी १ रुप $ T सारे मंग (४) देवगति में को० नं० १६ देखो कोनं १६ देखो २१-२१-२६-२०० १६ के मंग को० न० १० के २४। २४-१६-२३-१६६६ के हरेक भंग में से पर्याप्त। वन प्रत्याख्यान कपाय घटाकर २१-२१-१३१६-१६ के भंग जानना ( ३७८ ) कोष्टक नं० ५३ ४ ! सारे मंग | १ शान ५ को० नं०] १६ देवी को० नं० १६ देखो! अवधि ज्ञान घटाकर १ मंग को० नं० १७ देखो 1 नारे भंन को० नं० १८ देखो सारे मंग को० नं० १६ देखो २ (१) नरक - देवगति में हरेक में 1 १ अमयम जानना को० नं० १६-१६ देखो 2 (१) नरक गति मे २-३ के भंग को० नं० १६ देखो (२) तिच गति में २-२-३ के भंग | को० नं० १३ देखो (३) मनुष्य गति में १ ज्ञान का०नं ७ १७ देना I १ ज्ञान को० नं० १० देखो I १ जान का०नं २ | १ संयम १ भंग कोनं० १६-१६ को ० नं०१६देखो १६ देखो (x) २- ३-२-३ के भंग को० नं० १८ देखी (४) देवगति में देखा' । । २-२-३-३ के मंग | को० नं० १६ देखी प्रत्याख्यान ४ कषायों में मारे मंग भंग को० नं० १६ देखो को०० १६ देखो : सारे भंग | को० नं० १६ देखी को० नं० १६ देखो I १ मंग [को० नं० १७ देखो ज्ञान ? चारों गतियों में हरेक में १ प्रसयम जानना 1 को० नं० ६ से १६ देखी १ ज्ञान को० नं० १७ देखो १ ज्ञान तारे मंग को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो I सारे भंग १ ज्ञान को० न० १६ देखो को० नं० १६ देखो १ १. को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से देखो १६ देखो Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में देखो दर्शन (२) तिन-मनुष्य पति में को० नं०१७-१८ को० नं०१७-१८ हरेक में देखो १-१ के भंग को.नं. १७-१८ देखा १४ दर्शन १ भंग १ दर्शन १ भंग १ दर्शन ___ को नं. १ देखो | (१) नरकगति में को नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो बोनं. १६ देखो २-३ के भंग 5-3 के भंग को० नं०१६ देखो को नं०१६ देखो (२) निर्यच मति में 1( तिय च गान में १ भंग १ दर्शन १-२-२-३-३-२-३ के भंग को नं०१ देखो कोनं०१७ देखो, १-२-२-२-३ के भंग कोर नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो की नं०७देखो कोनं १७ देखो (३) मनुष्य गति में मारे भंग दर्शन (३) मनुष्य मति में सारे भंग २-३२-३ के भंग को० नं. १८ देखो कोल्नं १ देखो २.३-२-३ के मंगवा नं. १८ देखो कोनं-१८ देखो को० नं०१८ देखो को.नं. १८ देखी [४) दंबगति में | १ भंग १दर्शन ४) देवगन में। १ भंग १दर्शन २-३ केभंग को नं० १६ देखो कोनं १६ देखो -३-३ के भंग की. नं. ११ दलो कोनं०१६ देखो को नं० १६ देखो को नं. १८ देवा १५ लेश्या १ भंग संख्या १ भंग १ लेश्या को.नं.१देगे (१) नरम गति में को म०१६ देतो को नं०१६ देखो (१) नरक मन में को. नं.१६ सो कोनं. १६ देखो का भग ३ का भंग को० नं. को न देखो १६ देखो (B) नियंच गनिमें | मंग नच्या (नियन गनि में १ भंग । १नेश्या ३-१३-: के भंग का० नं०१७ देखो कोनं०१०देखो 1-2 के भग को। नं.को मं०७ देखो कोन०१७ देखो को० न०१ देखी १देखो (1) मनुगति में । सारे भग ले या (३) मनुष्य गति में सारे मंग लेश्या ६-३-३ के भंग को नं.१ देबो कोनं०१८ देखी ६.१ के भंग कोनं० १८ देनो को नं०१८ देखो को० न०१५ देखो को००१८ देखो । (४) देवगति में | मंग १लेल्या (४) देवग में १ भंग ने या १-३-१-१ के भंगको १९ देखो कोनं० १९ देखो ३-३-१-कभंगको नं० १८ देलो को.नं. १६ देखो को.न. १६ देन्दो 'को.नं. १५ देखो Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३० ). कोष्टक नं०५३ चौतीस स्थान दर्शन प्रत्याख्यान ४ कपायों में १६ भव्यत्व १ भंग १ प्रबस्था । भा. .. प्रवम्या चारों गतियों में हरेन में कोनं०१६ मे १६' कोजागरी हरेन में कोनं०१६ में १६ को न १६ में चारों गनियों में हमें को० नं १६ने १६ कोम० १६ २-१ के भंग । देखो १६ देको २-१ के 'ग । देखो १६ देखो को नं.१६ से १६. देखो की न०१६ में १२ । १७ सम्यक्त्व मारे भंग १ मम्यन्य | | गांग भंग १ राम्यक्त्व को० न०१६ देल्लो (१) नरक गति में को.नं.१६ दखो को नं. १६ देखो मिट घटाकर (1) (१)गरक गति में कान १८ को कोन - १६ देखो को० नं०१६ देखो ।१-२ के भंग (२) नियंच गति में सम्पद | काग १६ दलों २-१-१-२-१-१-१-३ केभंग को० न०१७ देखो कोनं०१७ देखो, (२) निर्यच गति में भंग सम्पर को नं०१७ देखो १-१-१-१-२ के मंग कोनं. १७ देखो कोन०१७ दंशो (B) मनुष्य गनि में मारे भंग | मम्बवत्त । को १७देखो १-१-१-३-१-1-1-३ के भंगकोर नं० १देखो की१८ देखो, (३) मनुष्य गति में सारे भंग , सम्यकल्ल को० नं १८ देखो १-१-२१-१-२.के भंग को नं.१५ देखो को नं.१८ देखो (४) देवगति में । सारे भंग | १ गभ्यवरव कोन.१५ देखो १-१ -२-२-२ के भंग को० न०१६ देसो कोनं १६ देखो, (४) देवगति में । मारे भंग १ सम्यक्त्व को.नं. ११ देखो । को मं० १६ देखो को.नं. १६ देखो | को. नं-१६ देखो । १५ संजो १ मंग पवम्पा । २ १ भंग । १परस्था संजी, असंही रामरक-मनथ्य-देव गनि में को.नं. १५-१८- कान १-१-(१) नरक-मनुष्य देवगति में कोनं १६-१८. कोन-१६-१८हरेक में | १६ देखो । १६ देखो हरेक पं । १६ देखो । १२ देखो १ मंत्री जानना १ मंजी जानना कोल०१६-१८-१९ । को नं. १६-१-१६ । देखा देखो १ भंग । १अवस्था । (२) निर्यन गति में । १ भंग व स्था १-१-१-१के भंग को० नं १७ देखो कोन०१७ देवो 1-1-1-1-1-1 के भंग न ११ दमो को०नं०१७ देखो को.नं.१७ देखो | का.नं.१३ देखो । । (२) निवंच गनिम है Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १६ श्राहारक चौंतोस स्थान दर्शन 국 ३ चारों गतियों में हरेक में मर्यो का विवरण कोमल जानना € को० न० १६ देखी | (१) नरकगति में २० उपयोग माह एक, मनाहारक २१ ध्यान पातं व्यान ४ ११ ५-६-६ के भंग को० नं० १६ देखो (२) तियंच गति में को नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में रौद्र ध्यान ४, धर्म ध्यान में ( प्राज्ञा विचय, अनाय विचय, मिवाक विषय) । ये ११ ध्यान जानना ! | को० नं० १८ देखो (४) देवगति में १ भंग १ उपयोग ३-४-५-६ ६-५-६६ को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखो के भंग ५-६-६ के मंग को० नं० १३ देखी ( ३८१ 1 कोष्टक नं० ५३ सारे भंग ५-६-६-५-६-६ के संगको० नं० १८ देखो ११ (१) नरकगति - देवगति में हरेक में १ १ को० नं० १९ से को० नं० १६ मे १२ देखो १६ देखी -६-१० के भंग को० नं० १६-१६ देखो (३) निर्यच गति में ८ ६ १०-११ ८ ९ १० को० नं० १७ देखो १ भंग ८ १ उपयोग को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो अवधि ज्ञान पढ़ाकर १ मंग को० नं० १६ देखो सारे भंग को० नं० १६-१२ देखो १ उपयोग फो० नं० १० देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ यान को० नं० १६१६ देखो ९ भंग १ मस्था चारों गतियों में हरेक में को० नं० १६ से १६ को ० ० १६ मे भंगों का विवरण को० नं०५० के समान जानना देखो १६ देखो प्रत्याख्यान ४ कपायों में के भांग को० नं० १७ देखो (3) मनुष्य गति म ४-६-४-६ के मंग को० नं० १८ खो (.) देवगति में ४४-६६ के भंग को नं० १६ देखो € ७ (5) (१) नरकगति में ४-६ के मंग को० नं० १६ देखी (२) तिचि गति में १ मंग ३-४-४-३-४-१-४-६ को नं० १७ देखो १ मंग १ ध्यान १ मंग को० नं० १७ देखो को नं० १७ देखो को०० १६-१६ देखो को० नं० १६ देखी कोनं १६ देखो S सारे मंग को० नं० १६ देखो १ उ योग १ मंग को नं० १६ देखो सारे भंग १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग को० नं० १० देखो | उपोष को० नं० १६ देखो १ ध्यान प्रणाय विनय विपाक विषय ये २ घटाकर (६) (१) नरक गति देवगति | को० नं० १५-१६ को ०नं० १६-१९ सो में हरेक में देखो ५-६ के भंग Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग घ्यान : (२) नियंच गति में मंग 11-2-११-३५---१०को नं. १५ देसो | को.नं. १५ | ८-८-६ के अंग को.नं.को.नं. १७ देखो| को.नं० १७ के मंग को० न०१८ देखो १७ देखो देखो (1) मनुष्य गति में सारे भंग १ ध्यान ---के भंग को० को० नं. १८ देखो को.नं.१८ | नं.१८ देखो देखो २२पासद ५२ सारे भंग । १ भंग सारे मंग १ मंग यिथ्यारव ५, अविरत चौ. मिथकाय योग १, मनोयोग ४, वचनयोग ४ व. मिश्रकाय योग, मो० काय योग १, मोग १३, कपाय २२। कारणकाय योग १ वं० कांच योग, ये ५२ जानना ये ३ घटाकर (४.) ये १० घटाकर (४२) (१) नरक गति में को नं०१६ देखो | कोल नं० १६ (१)नक गति में कोनं.१६ देखो | को० नं०१६ ४६-४१-३७ के भंग को देखो ३-३० के भग को० नं० नं०१६ के ४६-81-४के हरेक मंग में से प्रत्या हरेक भंग में से पर्याप्तख्यान कपाय जिसका बत प्रत्याख्यान कपाय विचार करो उमकोड़ । ३ पटाकर ३६-३७ के कर शेष : कपाय घटाकर মণ লাল। ४६४१-३३ के मग जानना २) नियंच गति में मारे भंग भंग (२) निर्यन गति में सरि भंग भंग ३३-१५-२६-३७-४०-४- | को. नं.१८ देखो| को० नं०१७ | ३४-३५-३६-३७-४०-४१-को नं०१७ देखो | दो० . १७ ४३-२६-३४.८७-12-13 दम्बी देखो के भंग-को० नं० १७ के ४०-2५-६० के भंग ३६-21-28-30-12-28 को० नं. ११ के 3४६-४२-१७-५०-४५.४१ ३८-३६-४०-४३-४-३२.! के इरेक रंग में मे ऊपर ३३-56-३५३८-३६.४३के समान प्रत्याख्यान ३८-३३ के हरेक भंग में कषाय ३ घटाकर ३३-३५ मे पर्याप्तवत् प्रत्याख्यान ।। Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में -३६-३७-४०-४८-४३-३६ | कपाय ३ घटाकर ३४२४-४७-४२-३८ के भंन । ३५-३६.७-४०-४१-हैजानना ३०.३१-३२-३५-६-८०(३) मनुष्य गति | सारे भंग १ भंग। ३५-३० के मंग जानना । ४८-४३-३६-४-४१-४२-को न० १८ देखो कोनं०१८ देखो (क) मनुष्य गति में सारे भंग १ भग ३८ के भंग को नं०१८ ४१-३६-३०-४३-३५-३० को० नं०१८ देखो कोन०१८ देखो के ५१-४६-४२-३७-10 के भंग को नं०१८ के । ४५.४१ के हरेक मंग में से ऊपर के समान प्रत्यास्यान । के हरेक मंग में में पर्याकगाय घटाकर ४८-४३ वत् प्रत्यास्यान कषाय । ३९-६४-४७-४२-३८ के मन ३ घटाकर ४१-३६-३०- , जानना ४०-३५-० के मंग जानना (४) देवगति में सार भग. .. भग ४) दवं गनि में सारे भंग १ मंग ४५-६२-६८-४६-४१-३७- को. नं. १६ देतो को नं० ११ देखो १०. ५-३ -२६-३४-३०-को० नं० १६ देखो कोल्नं।१६ देखो ३७ के भंग को नं० १९ २. के मंग को ०१६ के ५०-४५-४१-४६-४४ ४३-३८-३३-४-३७-३४०-४० के हरेक मंग में से ३३ के हरेक मंग में मे ऊपर के समान प्रत्याख्यान पर्याप्तवत् प्रत्याख्यान काय कपाप घटाकर ४७-४२ वे घटाकर ४०-३५-20. ३८-४६-११-३७-३७ के मंग २६-३४-३०-३० के मंग जानना जानना २३ भान ४२ सारे भंग १ भंग t? । सारे भंग । १ मंग उपशम-सायिक स०२. (१) नरखा गति में को० नं. १६ दखो को.नं. १६देखो कुअवधि जान घटाचार । कृज्ञान ३, मान ३, २६-२४-२५-२६-२७ के भंग दर्शन ३, लब्धि ५, को० नं०१६ देशो | (१) नरकगति में कोनं.१ देखो कोन०१६ देखो वेदक सम्बनत्व १, गति (२) निर्यच गति में सारे भंग १ मंग , २५-७ के भग ४, कषाय ४, लिग ३.२४-२५.२७-३१-२६-३०-३२-२६- को० नं०१७ देखो कोम १७ देखी को नं.१६ देखा लेण्या ६, मिध्या Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५३ प्रत्याख्यान ४ कषायों में देखो देखो दर्शन १, असंयम १. २७-२५-२६-२६ (२) तिथंच गति में | सारे भंग १ भंग संयमासंगम १. अजान , के भंग-को.नं. १७ । २४-२५-२७-२७-२२-को. नं०१७ देखो को २०१७ प्रसिद्धत्व १, पारिणा- | देखो २३-२५-२५-२४. देखो मिक भाव ३ ये ४. ३) मनुष्य गति में . सारे भंग १ भंग २२-२५ के भंग को भाष जानना ३१-२६-३०-३३-३० को नं०१५ देखो | को.नं.१८ | नं०१७ देखो २०-२५-२६-२४ के मंग (३) मनुष्य गति में | सारे मग १ मंग को००१८ देखो। ३०-२८-३०-२४-२२-को.नं. १८ देखो को. नं०१८ 6) देव गति में । सारे भंग १ भंग २५ के भंग को २५-२३-१४-२६-२७- बोन.१६ देखों को नं० ११ १६ देखो २५-२६-२९-२४-२२ देखो (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग २३-२६-२५ के भंग २६-२४-२६-२४-२८ को० नं. १६ देखो| को० नं०१६ को नं०१६ देखो | भंग को नं १९ देखो अवगाहना को न० १६ से ३४ देखो। बंध प्रतियो-से ४ गुगा मैं को.नं-१ से के समान जानना । ५वे गुण में १७ प. बंध जानना । उदय कृतियां-१ से ४ गुगा में को.नं.१ मे के समान जानना । ५वे गुण में १७ प्र. का उदय जानना । मत्स्व प्रकृतियां-१ से ४ गुण में को.नं.१ ४ के समान जानना, ५वे मुसा में १४० प्र० का सत्त्व उपनाम सम्भव की अपेक्षा जानना । १४० का सत्त्व क्षायिक मम्यक्त्व की अपेक्षा जानना। संख्या-अनल्यात जाननः । क्षेत्र-वान का प्रमुख्यानवा भाग प्रमाग जानना । स्पन-नोर का पसंख्यानां भाग ६ राजु जानना । मध्य लोक का पांचवे गुण स्थान वाला जीव मर कर १६वे स्वर्ग में जा सकता है। इस अपंक्षा से ६ गजुबानना । कास- नाना जीयों की अपेक्षा मर्वकाल । एक जीन की अपेक्षा एक समय से यन्तमहनं न किसी एक कपाय की अपेक्षा जानना । भन्तर-ना नीबों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा अन्तम इन में देशोन अर्ध पुदगल परारनेन कार तक संयमासंयम गुण स्थान धारण न कर सके । जाति (योनि)-८४ लाख योनि जानना । कुल-१६६ लात कोटिकुल जानना । Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ) ( ३८५ कोष्टक ने०५४ चौतीस स्थान दर्शन संज्वलन क्रोष, मान, माया, कषायों में स्यान सामान्य मालाप, पति पपर्यात १ जौब के नाना एक बीब के समय में एक समय में |एक जीव के माना एक जीर के एक | | समय में | समप में नाना जीव को अपेक्षा माना जीवों को मपेक्षा पुण स्थान सारे गुण स्थान १ गुण सारे गुण स्था | पुरण. १सेवं गुणके १ले गुरण से वे गुरण के अपने अपने स्थान केबपने अपने स्थान १-२-४- ये ४ जानना अपने अपने स्थान के पपने अपने स्थान ६ भान तक जानना एवं भाग तक जानला । सारे गुरण जानना के कोई 1 गुण (1) नरक गति में सारे गुण स्थान के सारे गुण स्थान (१) नरक गति मे १ले ४थे गुण स्थान जानना में से कोई १से ४ गुण (२) तियंच गति में गुण- जानना (२) तिर्यच गति में ले रै मौर १से ५ गुण भोग मूभि की अपेक्षा (३) मोग भूमि में ।१-२-४ गुण से ४ गुण (३) मनुष्य गति में (४) गनुष्य गति में । १-२-४-६ गुण. १से में 1 (४) भोष भूमि में (५) भोप भूमि में १-२-४ गुण से ४ मुरम (५) देवमति में (१)रेखगति में : १-२-४ गुण १से ४ गुगा. १ समास २जीव ममास ४ ७पर्वात अवस्था १ ममास । समाग ७प्रयाप्त बमस्या को.नं. १६-१८- १ समास को.नं.१ रेखो (1) नर-पनुष्य-देवगति में को० ज०१६-कोनं०१८-14- (१) नरक-मनुष्य देव | १६ देखो नं० -१८. हरेक में १९ऐसो १९ देखो गति में हरेक में १ संजो पंचेन्द्रिय पर्यात १ सभी पंचेन्दिप अपर्याप्त अवस्या जानना भवस्था जानना को.नं. १६-१८-१६देखो को०० १६-१८-१९देखो समास (२) तिर्थप गति में १समास १समाम (२) नियंचति में कोन. १७ देखो। १ समास ७-१-१के अंगको ..१७देखो कोनं०१७ देखो ७-६-१ केय को.नं०१७देखो को नं. १७देखो । को. नं०१७ देखो , Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन । कोष्टक नं०५४ संज्वलन क्रोध मान, माया, कषायों में ३ पर्याहि । को देसो । (१)नरक, मनग्य, देव गति में को.नं. १६-१८-कोनं०१६-१८- (१) नरक-मनुष्य-देव को नं० १६-१८-कोन०१६-१८० देखो । १६ देखो गति हरेक में १६ देखो । १६ देखो का भंग ! ३ का भंग को० नं. १६-१८-१९ देखो, . | को० न० १६-१८-१६ देखो (२) निर्यच गति में १ भंग १ भंग २) तिर्यच गति में १ मंग ५.४.६ के भंग को ना १७ देतो कोनं० २७ देखो, ३-३ के भंग " को० नं. १७ देखो कोनं १७ देखो ! को० नं. १७ देखो । को नं०१७ देखो | ४ प्राण . को नं. १देखो। (एनरक-मनुष्य-देवगति में को .१६-१८-कोनं०१६-१५- (१) नरक-मनुष्य-देष को नं०१६-१८-का. नं०१६-१८ हरेक में । १६ देखो १६ देखो , यति में हरेक में १. देखो । १९ देखो १० का भम ७ का भंग । को नं० १६-१८-१६ देखो। कोने०१६-१५-१६देखो (२) नियंत्र गति में | १भग १ मंग । (२) तिर्यंच गति में १ भंग १ भंग 10-1-1-5-६-४-१.को.नं. १७ देखो कोन०१७ देखो ७-७-६-३-४-३- कोन०१७ देखो को न १७ देखो । के भंग के भंग | को नं. ७ देखो को.नं.१० देखो ५संजा १ भंग भंग ४ भंग १ मंग बो०१ देखो नरक-निर्वच-देवगति में कोनं-1६-१७-कोनं०१६-१- नरक-तिर्यच-देवगतिको २०१६-१७-कोनं०१६-१७१६ देखो १६ देखो में हरेक में १६ देखो १६ देखो ४ का भंग | ४ का अंग को.नं.१६-१७-१६ देखो को० नं०१६-१७-१६ देखो (२) मनुष्य गति में सारे मंग १ भंग । (२) मनुष्य गति में | सारे मंग । १ भग ४-६२-१-४के भंग को० नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो ४-४ के भंग को००१८ देखो को०नं०१८ देखो को.नं. १८ देखो को० नं. १८ देखो ६ गति को.नं०१ देखो चारों गति जानना को.नं. १६ से १६ को नं०१६ से | चारों गति जानना को० न०१६ से को.नं.१६ ते को.नं. १६ से १६ दतो देखो । खो को० नं.१६ से १ १६ देखो १६ देखो हरेक में देखो Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चो स्थान दर्शन ↑ ७ इन्द्रिय जाति २ को० नं० १ देखी काय को० नं० १ देखों ६ योग १५. को० नं० ५१ देखो ५ (१) नरक-मनुष्य-देवगति में हरेक में १ पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १९-१०-११ देखो (२) नियच गति में ५-१-१ के भंग को० नं० १७ देखो (१) नाक-ननुष्यदेवयति में हरेक में १ त्रगकाय जानना को० नं० १६ १६ १६ देखो (२) नियंच गति में ६-११ के भंग को० नं० १० देखो ११ आहारक मिथकाय योग १. औ० मिश्रकाय योग १, वं मिश्रकार्य योग १. कामकाय मांग १, ये ४ घटकर (११) (१) नरकगति-देवगति में हरेक में ६ का मंग को नं १६१६ देखो (२) नियंच गति में ( ३८७ ) कोष्टक नं० ५.४ १ जानि [को० नं० १६-१८० १६ देखो १ जाति को० नं० १७ देखो १ काय को० नं० १६.१८ १६ देखी सारे भंग अपने अपने स्थान के सारे भंग | जानना १ मंग को० नं १६-१३ देखो 1 १ जाति १ जाति को० नं० १७ देखो १ मंग ६-२-१-१ के मंग को० नं० [को० नं १७ देखो १७ देख " काय को० नं० १६ १८-१९ देखी 1. १ काय १ काय | को० नं० १७ देतो को० नं० १७ देखो १ योग अपने अपने स्थान के सारे भयो कोई १ योग जानना (१) नरक मनुष्य- देवगति में हरेक में १६सकाय जानना को० नं० १६-१०-१२ देखी (-) नियंत्र गति में ६-४-१ के को० नं० ७ देखी Y १ न को न० १६ देखो ५ १ जाति (१) नरक मनुष्य- देवगति को० नं० १६-१८० में हरेक मं १६ देखो १ पंचेन्द्रिय जाति जानना को नं० १६-१०-१ देखो (२) तियंच गति में ५-१ के भंग को० नं० १० देखो १. योग को नं० १७ देखो संज्वलन क्रोध - मान-माया कषायों में . ! प्रा मित्रकाय योग १. | यो मिथकाय योग १. वं. मिश्रका योग १. १ जाति [को० नं० १७ देखी | कारणका योग ये ४ योग जानना (1) नरक तियंच देवगतिः में हरेक में १-२ के भग को० नं० १६-१७-१६ देखी (२) मनुष्य गति में १-२-१-१-२ के मंग १० नं०] १८ देखी १ काय को० नं० १६-१८ १६ देखो ७ [को०] | १ कार्य १० नं० १७ देखी पारे भंग पर्यावत जानना 1 जाति को० नं० १६१५-१६ देखो १ भग को० नं० १६-१७ १८ देखो ८ १ जाति को० नं० १७ देखो १ कार्य को० नं० १६१६०४६ देखो सारे भेंग को० नं. १५ देखो १ काय को० नं० १७ देखो १ योन पर्यावत जानना १ योग को० नं० १६१७-१६ देवो १ योग को नं० १८ देखों Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक ०५४ संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में 7 (३) मनुष्य मति में सारे भंग १ योग । -1-1-६.के भंग कोनं०१८ देखो कोन.१८ देखो को.नं.८देखा १ भंग १ वेद । ३ १ भंग १वेद को० नं. १ देखो (१) नरक गति में को नं० १६ देखो कोनं० १६ देखो (१) नरक गति में कोन.६ देखो कोन०१९ देखो १ का मंग १ का अंग को० ने०१६ देखो कोनं.१६ देखो (२) तियंच गति में १भंग १वेद (२) तिर्वच मति में १ भंग । १ वेद २-१-३-२ के भंग को००१७ देखो को२०१७ देखो -१-३-३-३-२-१ को० नं. १७ देलो कोनं०१७ देखो को.नं०१७ देखो | के मंग (३) मनुष्य यति में । सारे भंग १ वेब को.नं. १७ देखो . ५-३-३-१-३-२-२-१ को० नं०१८ देखो को०नं०१८ देखो (३) मनुष्य गति में सारे अंग । १ वेद ३-1-1-२-१केको नं. १८ देखो को०नं०१८ वेलो को.नं. १५ देखो को० नं.१८ देखो (४) देवगति में सारे भंग १वेद (४) देवति में - सारे मंग वेद २-१-१के भंग को नं०१६ देखो को.नं. १६ देखो २-१-१ के मंग को.नं. १६ देखो कोनं-१६ देखो को० नं०१६ देसो को० नं०१९ देखो २२ सारे भंग १भंग २२ ! सारे भंग ।। भंग मनन्नानुबन्धी क.४,(१) नरकति में ! को.नं. १६ देखो बो.नं.१६ देखो (१) नरक गति में को.नं०१६ देखो को२०१६ देखो अप्रत्यास्यानक०४, २०-१६ के भंग २०-१९के मंग प्रत्याख्यान क०४, को नं०१६ के २३-१६ को० नं १६ के २३संज्वलन कषाय जिसका हरेक मंग में से संज्वलन १६ के हरेक भंग में । विचार करो पो कषाय जिसका विचार से पर्याप्तवत् संज्वलन१ कवाय, हास्यादि करो भो छोड़कर क्षेष । कषाय . घटाकर २०नोकधाम ये २२ जानना ३ कषाय घटाकर २०-१६ १६ के अंग जानना । के भंग जानना | (२) तिर्यच गति में । सारे भंग १मंग (२) तिवंच गति में | सारे भंग १ भंग | २२-२८-२२-२२- कोन.१७ देखो को नं.१७ देखो २२-२०-२२-२२-१५-कोनं०१७ देखो फोनं० १७ देखो २०-२२-२१-१६ के। ૨૨. Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५४ . संज्वलन कोष, मान, माया कषायों में ६ १४-२१-१७ के मंग भंग को० मं० १७ के को० नं. १७ के २५ २५-२३-२५-२५२३-२५-२५-२१-१७ २३-२५-२४-१६ के २४-२० के हरेक भंग में! हरेक भंग में से पर्याप्त में से ऊपर के समान | बत संज्यमन कषाय | संज्वलन कषाय ३ पटाकर घटाकर २२-२०-२२-। २२-२०-२२-२२-१ २२-२०-२२-२१-१६ १४-२१-१७ के भंग के भग जानना । मारे मंग १ मंग (३) मनुष्य गति में सारे अंग १ भंग (३) मनुष्य गति में को० नं०१५ देखो को२०१५ देखी २२-१८-१४-१०-८-- को.नं. १५ देखो कोन०१८ देखो| २२-१६-८-२१-१६१०-४-२१-१७ के मंग के मंग को० नं०१८ के २५ को मं०१८के २. २१-१७-१३-११-१३ १५-११-२४-१९ के ७-२४-२० के हरेक मंग हरेक भंग में से पर्याप्तमें से ऊपर के समान | वत संज्वलन कषाय संज्वलन कषाय ३ घटाकर व घटाकर २२-१६२२-१८-१४-१०-८ ८..२१-१६ के मंग १०-४-२१-१७: के भंग मानना बानमा (४) देवगति में . सारे अंग भंग (७) देवगति में बारे बंग १ मंग २१-२१-१६-२०-१६- को.नं. १६ देखो की.नं०१६ देखो २१-१७-२०-११-१९केको ..१९देखो को.नं.१५देखो १६ के भंग अंग को.नं. १६ को० नं० १९ के २४२४-२०-२३-१३-१६ के २४-११-२३-१६-१९ के हरेक मंग में से ऊपर के हरेक भंग में से पर्याप्तसमान संज्वलन कषाय ३ वत् संज्वलन कषाय घटाकर २१-१७-२०-१६ ३ घटाकर २३-२१-१६१६ के मंग जानना २०-१६-१६ के भंग जानना Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३९० ) कोष्टक नं. ५४ चौतीस स्थान दर्शन संज्वलन क्रोध-मान-माया कषायों में १२ ज्ञान ___ सारे भंग सान कुजान ३, गतिन- | (१) नरक गति में को नं०१६ देखो। कोनं.१६ ग्रवपि ज्ञान १ अवधि शान मनः ३-३ के भंग को.नं. १६ देखो मनः पर्यय ज्ञान १ पर्यय भान ये ७ ज्ञान घटाकर (५) बानना (२) नियंच गति में (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो को.नं. १६ +-३-३-३-३ के मंगको .नं. १७ देखो| कोन०१७ | २-३ के मंग देखो को.नं. १७ देसो. को नं०१६ देखो (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ज्ञान । (२) तिथंच गति में । १ भंग । १ज्ञान ३-३-४-३-४-३-३ के मंग को० नं० १८ देखो | को.नं. १५२-२-३ के भंग को नं १७ देखो | कोनं०१७ को.नं. १५ देखो । देखो | को० नं.१७ देखो | देखो (४) देवगति में | सारे भंग | १ज्ञान (३) मनुष्य गति में सारे मंग । १ज्ञान ३-३ के भंग-को० नं. १ को० नं०१६ देखो को० नं० ११ | २-३-३-२-३ के भंग कोनं. १८ देखो को.नं. १५ देखो देखो को० नं०१८ देखो (M) देवगति में । सारे मंग१ज्ञान २-२-३-1 के भगको नं०१६ देखो को.नं.१६ को.नं.१६ देखो देसो १३ संयम १ भंग १संयम भंग १संयम पसंयम १, संयमासंयम १ (१) नरक गति-देवगति हरेक में को.नं.१६-१६ को० नं०१६-| कोनं-१६- संयमासंयम, परिहारसमायिक संयम १ , असंयम जामना [१९ देखो विशुद्धिये २ घटाकर (%) छेदोपधारना , को००१६-१६ देखो । (नरक-देवगति में | को० नं०१६-१६ को न०१६परिहारविशुद्धि (२) तिथंच गति में १ मंग. १ मंयम । हरेक में देखो १६ देखो ये ५ जानना १-१-१के भंग को नं. को नं. १७ देलो को नं०१७ १ असंवम जानना । १७ देखो देखो को० नं. १६-१६ देखो ३१ मनप्य गनि में १मंग १मयम । (२) नियंप पनि में अंत र ११-३-२.६.२- के मग कोल नं०१- देखो को न०१८ १-१ के भंग को० नं. को० न०१७ देखो को नं०१७ को० नं १८ देखो देखो | १७ देखो देतो (३) मनुष्य गति में १मंग १ संयम १-२-1 के भंग को० नं. को.२०१५ देखो। को नं०१५ १८ देखो देखो Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५४ संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में १दर्शन १४ दर्शन १ मंग १ दर्शन को.नं. १५ देखो। (१) नरक गति में को० नं.१६ देखो कोनं.१६ देखो (१) नरक गति में को० न० १६ देखो कोन०१६ देखो २-३ के भंग । २-३ के मंग की.नं. १६ देखो कोर नं.१६देखो (२) तिबंच गति में १ भंग । १ दर्शन .(२)तियंच गति में १-२-२-३-३-२-1 के भंग को.नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो १-२-२.२-३ के मंग | को० नं०१७ देखो को नं०१७ देखो को० नं०१७ देखो | को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में - सारे भंग १ दर्शन (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ दर्शन २-३-३-३-२-३ के भंगको .नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो २-३-1-२-३ के मंगको नं० १५ देखो कोन०१५ देखो को० नं. १८ देखो को० नं० १८ देखो (४) देवगति में भंग दर्शन (४) देवमति में १ भग १ दर्शन २-३ के मंग कोनं. १६ देखो कोनं. १६ देखो २-२-३-३ के भंग को० नं० १६ देखो को न० १६ देखो को० नं. १६ देखो को० नं. १६ देखो १५ नेत्या ६ १ भंग १लेश्या । १ मंगलेश्या को० नं. १ देखो |(१)नरक गति में को.नं १६ देखो कोनं.१६ देखो (१)नरक गति में को० न०१६ देखो को.नं०१६ देखो ३ का भंग ३का मंग को० नं०१६ देखो को. नं०१६ देखो (२) निर्यच गति में | लेश्या (२)तियंच गति में १ भंग १ लेश्या ३.६-३-३के भंग को.नं. १७ देखो 'कोनं०१७ देखो ६-१ के भंग को नं. १७ देसोकोनं-१७ देखो को००१७ देखो कोन०१७ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १लेश्या (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ लेश्या ६-१-२ केभंग को नं. १ देखो कोनं. १८ देखो ६-३-१ के मंग को० नं. १८ देखो 'को०१८ देखो को००१८ देखो । को.नं. १८ देखो (४) देवगति में १ भंग १ लेश्या । | (४) देवगति में १ भंग १ लेण्या १-३-१-१ के भंग को.नं. १६ देखो कोनं १६ देखो ३-३-१-१ के भंग को० नं १६देखो को.नं. १६ देखो १६ मत्रत्व को ०१६ देतो को०० १९ देखो मन्य, मभव्य १ भंग । १ अवस्था १ भंग १ अवस्था चारों गतियों में हरेक में | कोनं०१६ से कोन०१६ से चारों गति में हरेक में | को.नं.१६ से को.नं.१६ से २-१ के मंग ११ देसो १६ देखो। २-१ के मंग । १६ देखो १६ देखो को० नं०१६ से १९ देखो | कोन.१६ से १९ देखो। Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन ( ३९२ ) कोष्टक नं०५४ संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में १७ सम्यक्स्व सारे मंग । १ सम्यक्त्व सारे अंग १ सम्यक्त्व को.नं. १६ देशो]() नरक गति में को० नं०१६ देखो कोन०१६ देखो, मिट घटाकर (५) को.नं. १६ देखो को०१६ देखो १-१-१-३-२के भंग (२) मरक गति में को नं०१६ देखो। १-२के मंग (२) तिर्यच गति में १मंग सम्यक्त्व को.नं. १६ देखो को.नं. १७ देखो को०नं०१७ देखो, (२) तिथंच गति में १ मंग १ सम्यक्त्व १-१-३ के मंग 1 १-१-१-१-२ के भंग को.नं०१७ देखो को नं०१७ देखो को० न०१७ देखो को००१७ देखो .. (३) मनुष्य गति में - सारे भंग १ सम्यक्त्व (३) मनुष्य पति में सारे भंग १ सम्यक्त्व १-१-१-३-३-२-३-२-१. को.नं. १५देखो को००१८ दंलो १-१-२-२-१-१-२ के भंग को मं०१८सो कोनं०१८ देखो १-२-३ के भंग [को००१८ देखो को० नं०१८ देखो (४) देवगति में । सारे मंगसम्यक्त्व (४) देव गति में सारे भंग १ सम्यक्त्व १-१-३ के भंग को० नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो 1-1-1-२-३-२ भंप को० नं०१६ देखो कोनं०१६ देखों को नं. १६ देखो को.नं. १६ देखो १८ संजी...२ २ १ भंग १ अवस्था १ भंग १भवस्था संझी पसंझी। (१)नरक-मनुष्य-देवगति में कोनं०१६-१-१६।कोम०१६-१८- (१) नरक-मनुष्य--देव को० नं०१६-१८-कोनं०१६-१८. १६ देखो | पति में हरेक में १९ देखो १ संशी जानना १मंडी जानना को० नं० १६-१५-१६ को.नं. १६-१८-१६ देखो 1(२) तिर्वच गति में | १ भंग १ अवस्था । (२) निर्यप गति में भंग । भवस्था १-१-१-१के भंग को० नं. १७ देखो कोनं०१७ देतो .-१-१-१-१-१के मंग को.नं. १७ देखो कोन १७ देतो को.नं. १७ देखो को.नं. १७देखो १९ माहारक १ मंग१अवस्था पाहारक, अनाहारक (१) नरक-देव गतियों में को.२०१६ और कोनं०१६पौर नरक-देव गति में को०१६ मौरो०१९पौर . गति में । १६ देखो १६ देखो हरेक में १६देखो १महारक जानना १-१के भंग कोनं. ११और १६ देखो। कोन०१६ पौर १९ देखो । देखो देखो Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २० उपयोग चौतीस स्थान दर्शन 1 ज्ञानोपयोग ७ दर्शनोपयोग ३, १० जानना २१ ध्यान २ भातं व्यान ४, रौद्र ध्यान ४, धर्मध्यान ४, पृथक्त्ववितर्क विचार १ १३ ध्यान जानना (२) तिराँच गति में १-१ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में १-१ के मंग को० नं० १८ देखी १० (१) नरक गति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ देखो (२) नियंच गति में 1 को० नं० १८ देखरे (४) देवगति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ देखो ( ३३ ) कोष्टक नं० ५४ १ भंग ३-.-५ ६-६-७-५-६-६ के गंग को० नं० १७ देवो को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में 12 (१) तरक- देव गति में हरेक में ४ सारे भंग ५-६-६-७-६-७-९-६ के मंग को० नं० १० देखो ८६-१० के मंग को० नं० १६-११ देखो' १ (२) निरंच गति में को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखी १-१-१-१ के भंग फो० नं० १७ देख (३) मनुष्य गति में १-१-११-१ के मंग को० नं० १८ देखी मारे मंग अपने अपने स्थान के १-१ के मंग को० नं० १० देखो १ भंग को० नं० १६ देखो १ मंग [को० नं० १६ देखो सारे भंग को० नं० १६१६ देखो १ अवस्था दोनों में से कोई १ अवस्था को० नं० १८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग की नं० १८ देखो १ उपयोग को नं १६ देखो 1 संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में T १ ध्यान को० नं० १९१६ देखो = अवधि मनः पर्वय ज्ञान ये २ घटाकर (८) (१) नरक गति में ४-६ के भंग को० नं० १६ देखो (२) नियंत्र गति में ३-४-४-३-४-४-४-६ के भंग को० नं १७ देखो (३) मनुष्य गति में ४-६-६-४-६ के भंग को० नं० १८ देव (४) देवगति में ४-४-६-६ के मंग को नं० १६ देखो & अपाय विषय १ विपाक विषय १, संस्थान विचय १, पृथक्त्व बिचार ९ ये ४ घटाकर (६) १ भग को० नं० १७ देखो 5 १ अवस्था को० नं० १७ देख सारे ग १ स्था अपने अपने स्थान के कोई १ अवस्था सारे मंग को० नं० १८ देखो [को० नं० १८ देखो १ भंग १ उपयोग १ भंग को० नं १७ मेलो को० नं० १६ देखी को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १७ देख सारे भंग १ उपयोग को० नं० १८ देखो को नं० १८ दे १ मंग 'को० नं० १६ देखो सारे मंग १ उपयोग को० नं १६ देख १ ध्यान Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५४ संज्वलन क्रोध, मान, माया, कषायों में '(२) नियंत्र गन में .:.११.5-८-१० के भंग को नही (3) ग य गति में -1-26-११-3-6-1-5. 1-70ई भंग कोल नं.१८६वा १ मंग ध्यान (नरतगति-देवगति में को न १६-१६ को नं . सौ नं०१७ देखो को१७देखो हरेक में ५-६ के भंग द खी । १६हो कोनं. १६-१६ देखो । (२) तिर्यंच गति में । गरे भंग । १ यान । ६८-६के भंग । ध्यान १ च्यान न.. देखो को.नं.१५ देषो को००१७ देखो को नं १ देरहो कान० बचा (३) मनुष्य गान में । ८-६-E-5 के मन नारे ध्यान न्यान को.नं.१ दरो कारला दान १८ दला पिया कर २६ . ना यौ० भिधकाथांग भागनोयोग १, दचनयोग र मारे भाग १ भस वे. मिश्रकायोग १ --- - पान के पपने अपने बान, पो० काययोग ?. पतितः जाननः पयाग जानना i० मिथकामबाग भारमा जानना । के नारे भंगों में । 4. कायपोग, . कामगि चांग, |ग काई १ भंग | बाहारक कायपान १ ये ४ पटानर ५०1 . य ११ घटाकर (४३) | नरक यति में (१) नरकगति में १६-४१-२ ने भंग । म ग भंग ३६-३0 के मंग : मा भंग ! भग ना नं.१६ के ४३-१४-कोर - देखो जो कोनं. १ ४२- कोयत्रो पो.न.१६ ४० के हक भंग में ये ३३ के हरेक भंग में में सम्न्नन कपाय जिसका पर्यावत संज्वलन कापाय जिसका विचार करी । | टाकर ३६-३० उमका सवार र ३ । भग जानना पाय घटाकर ६-४१. (8) तिच गति में के भंग जानना ४-३५-३६-३36. गार भंग ग ifनयच गम में ३1-24-11-2960-६८. | मारे भंग | १ भग 34-25-23-५-३० ४:-:.-३1.13.20 को. न. १७ इन्दो को.नं.:: भंग पान १ के भग को नं. १ के | 5-3-8-20...-११४६-6-20-2-5.४१ Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (३९५ ) कोष्टक नं० ५४ संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में के हरेक अंगम से कर के समान मंज्जनन कपाय ४३-३८-३३ के हरेक भंग ३ घटाकर ३३-३५-२६. में से पर्याप्तवतु संज्वलन ३७-४०-४८-४३.१६.३८.. कपाप ३ घटाकर ३४28-12-304 मंगजानन (B) मनुष्य गति मारे भंग १ भंग २९-३०-३१-३२-३५Y८-४३-३९-४-१६-१७- को.नं.१-देखो को नं०१८ देखो ६-४०-३५-३० के भंग । जानना भंग कोल नं०१५५१ (३) मनुष्प गति में सारे भंग १ भंग ४६-४२-३७- २-२३-२२- । ४६-३६-३०-६-४०-३५- कोर नं. १५ देतो कोनं०१८ ऐरो १६-१५-१४-१३ को हरेक | ३.के भंग को.नं. १० भंग में से ऊपर के समान के ४-३६-३३-१२४३संज्वलन कपाच ३ घटाकर ३८-३- के हरेक मंग में ने ४.४३-36-२४-१६-१७-१६. पर्याप्तबद मंचलन काय १३-१२-११-१०के मंग जानना ३ पटाकर ४१-०६-01 १० का भंग १-४०-३५-३० के भंग की नं०१५ के १२के जानना भंग में से ऊपर के समान ४) देव गति में माग-पाषा-लोभ कार्यों ४०-३५-३५-३६-३४-३०- मारे भंग १ भंग में से कोई २ कपाय घटा ३० के भंग को नं०१६को . १६ देखी को नं०१६ देखो कर १० का भंग जानना के ४३-1८-३५-४२-३७१० का भंग ३३-३३ हरेक भंग में को.नं. १५ के ११ के से पर्याप्तवत् संचलन कगाय भंग में से ऊपर के समान ३ घटाकर ४-६५-20.| माया, लोभ कंपार्यो | ३६-३४-३०-10 के भंग | में मे कोई 1 कपाम बटा কালনা कर १० का भंग जानना । १०-१० का भंग खानी । एक दोन कपाय के निवार, में कोने के समान मानना ४७-१२-३८ के मंग मोग - - -- -- Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५४ संज्वलन क्रोध, मान, माया कषायों में मंग . . . .. .. . भूमि की अपेक्षा को नं० १८ के ५:४५-४, के हरेक भंग में से ऊपर के समान विचार करो उसको छोड़कर शेष ३ कषाय घटाकर ४७ ४२-३८ के भंग जानना (४) देवगति में मारे भंग ४७-४२-३८.४६.४१-३- को० नं० १९ देखो कोनं०१६ देखो ३० केभंग को नं०१६ के ५०-४५-४१-४४-४४-४३४० के हरेक भंग में से ऊपर के समान संज्वलन कषाय३ घटाकर ४७-४२-३५-४६. ४१-३७-३७ के भंग जानना सारे भंग १ भंग २३ भाव सारे भंग १ भंग उपशम-चारित्र १. दायिक को न०५३ के ४२१) नरक गति में कोनं०१६ देखो कोन्नं। १६ देखो चारित्र, अवधि ज्ञान | में सराग संयम १. मनः २६-२४-२१-२८.२७ के मन- पर्ययज्ञान मयमा- | पर्यय नान १, उपश:- भंग को० नं०१६ देखो ! संबम १६५ घटाकर (४१) चारित्र १, धाधिक (2) निर्यच मति में सारे भंग १ भग (१) नरक मति में २२-२७ को० नं०१६देखो को मं०१६ देखो चारित ये ४ बोड़कर २४-२५-२७-३१-२६-20- को नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो में मंग कोन १६ देखो ३२.२६-२७-२ -२६-२६ (निर्वच गति में सारे भंग । १ मंग के भंग को.नं. १७ देखो |२४-.२७-०७-२८.२३-कान०१७दखा कोनं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में ' सारे भंग १ मंग २ ५-२५-२४-२२-२५ के भंग ३१-२६-३०-३३-३०-३१. को० नं०१६ देखो कोनं०१८ देखो को नं०१७ देखो २७-३१-२६-२६-२८-२७-२६ (३) मनुष्य मति में मारे भंग १ भंग २५-२४-२७२५.१६-के ३०.-2७-८-३२को नं० १८ देखो को न०१८ देखो भंग को.नं.१८ देखो कभंग बोलन०१:पी (४) देवगति में सारे भंग भंग (४) व नि म सारे भंग १ भंग २५-२३-२४-२६-२७-२५. को० नं १६ देखो को२०१६ देखो २६.२ ६.२४-२ को नं १६ देखो कोनं १६ देखो २१-२५-२६ के भंग २५के भंग कोनं.१६देखो को० नं १ दखी Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्रमाहमा-को० नं०१६ से १४ देखो। पंच प्रकृतियां-१ मे गुण में कोनसे के समान जानना । वें गुण के वं भाग में १८ प्रकृति का बन्ध जाना। उबप प्रकृतिपो- " १वं गुणः के उन भाग में प्रकृति का उदय भानना । सत्य प्रकृतियां- " ६ गुण के इवें भाग में १०२ सपक श्रेणी की पक्षा। संख्या-मुनियों की अपेक्षा (८६.९६१०३) नक जानना । क्षेत्र-जोक का प्रसंख्यात्तवा भाग जानना। स्पन-लोक का असंख्याता भाग जामना । काल नाना जीवों की अपेक्षा सर्बकात जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय में प्रनतं तव एक पाय को अपेक्षा मानना । अन्तर-नाना जीबों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा अन्सनुं हतं से शोन अनुदगल परावर्तन काल तक कार लिक्षि हुई गुण स्थान प्राम हो सके यह उपशम वेगगी की अपेक्षा जानना । भपक यंगी की रपेक्षा अन्तर नहीं है । जाति (योनि) ..८४ लाख योनि जानना । कुल-१६६ लास्त्र काटिकुल जानना । ३४ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौनांग स्थान दर्शर्शन स्थान नागान्यादान १० १ १० गुण स्थान १ गंगा स्थान 구 916 २ जीव समास को० नं० १ देखी पर्या को० नं० १ दे I पर्या नाना जीवों को अपेक्षा (१) १० में १४ जानना (२) विमान में १ भोभूमि ४ (३ । मनुष्यगति में १ १० गुण जानना भोगनुनि १ से ४ गुगा ० जानना को० नं० १६-१०-१ देखी ७ पर्याप्त अवस्था (१) रकम में हरेक में १ तपस्या (१) निर्वचन में भग ३-१-१ फो० नं० २७ द एक द ३६८ 1 कोष्टक नं० ५५ मारे गुगा स्थान अपने अपने स्थान के गारे गुण जानना जी के नाना एक जीव के एक नमय में समय में १ समारा को० नं० १६-१ १६ देवी (१) नरक में हरे नं ६ नमाग नं. १३ १२-९३ ल १० ४ के अपने स्थान (१) नरकगनि में सारे गा में १ ४ गुना० जानना (२) गति में १ गुग १२ और मोभूमि में १-२-४ गुगा (2) मनुष्य गति में १-२-६ ० जानना | भोगभूमि में १-२-४ गुप ७ अपर्याप्त श्रवम्या ! १ समान १ नाम को० नं० १०० नं० १७ उन १ भंग १ मंग ० नं० २६-१-१६ १६ देतो १५-१६ देखो नाना जीवीं की | चपय ६ | | (१) तरफ मनुष्य-देवगति म हरेक में १ मंत्री पं० आर्याप्त अवरथा जानना को० नं० १६-१८-१६ देवो संग्लन लोभ कषायों में B जीव के माना समय में (5) निर्वत्र गति में 1 ७-९-१ के भंग को० नं० १७ देखी | St. सारे गुगा स्थान पर्यात जानना १. जीव के एक समय में १ मनाम नं १ १ समान 1 १ मुमाग को० नं०१३-१८०००१६ १६ देवो १६८९ F I १ गुर पर्यावत् १ समास को० नं० १७ द १ १ नंग (१) नर-मनुष्य-१६१०००१६में हरेक में १९ देवो १८-१६ देवो Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नम्बर ५५ संज्वलन लोभ कषाय में प्राण को न०१ दे १. ६ का भंग- कां०१६ ३ का भंग को० नं० । १८-१९ देखो 1(निर्वच गति में . १ भंग १ भंग (२) निचंग गति में | १ भंग भंग ६-५-४-६ के भंग को को न०१७ देखा को नं०१७ देखो २-३ के भग को. नं. को.नं. १७ देखो लोन०१७ देखो नं०१७ देखो ।१७ देखो १ भंग । १ मंग भंग भंग १) नरक-मनुष्य-येवमति में को० नं०१६-१/- कोनं०१५-१-(१) नरक-मनुष्य-देवगति को न०१६-१८- को.नं.१६. १६ देखो में हरेक मे १६ देखो १-१६ देखो . १० का मंच-को० नं० ७ का मंग को० नं०१६-: १६-१८-१६ देखो १८-१९ देखो । (तिर्वच गति में मंग भं ग (२) तियेंच गति में भंग १ मंग १०-६-८-०-६-४-१७ के को नं०१७ देखो कोनं०१० देखो ७-७-६-५.४-३-७ के मंगनं ०१७ देखो कोन०१७ देखो भग को० नं.१७ देखो । | को० नं०१७ देखो ५ सजा को नं०१को पक-निर्मच-देवगति में हक में ४ का भंग को० नं०१६ १३.१६ देखा (3) मगुन्य गति में 1-:-..१-१-४ के भंग को० । १- देखो १ अंग भंग भंग वो नं. १६-१७-कोनं०१६-१७- (१) नरकाननियंच-देवनि को नं०१६-१७ | को० नं०१६११ देखो | १६ देशो में हरेक में !१६ खो१ ७-१६ देलो ४ का भंग को० नं. १६.१७-१६ देखो सारे भय मंग का नं०१८ देशो कोनं०१८ देखो ४-४ के भंग की.नं. १८ देतो को.२०१८ देखो को.नं. १८ देबो : गति इन्द्रिय जान को. नं. १ देखो ३ चारों गति मागमा को० नं. १६ से १६ को २०१६ ये । चारों गनि जानना ' को नं १६ म को.नं०१६ में को नं. १६ मे १६ देखो देखो १६ देतो की नं० १६१६ देगो देशो १६ देखो १ जानि जाति को नं.१४ के समान को न०५४ के को० नं०५४ । को० न० ५४ के समान को.नं. १४ देखो कोल. ५४ देखो समान देखो Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ५५ संज्वलन लोभ कशयों में ।। ८ काय __ को नं. १ देखो । १ काय को० २०५४ देखो काय काय | कोनं०५४ देशो' को० नं०५४ : को न. ५४ देखो को २०१४ देखो को नं०५४ १५ योग । सारे मंग । १ भंग । । मार भंग । मंग को नं० २६ देखो । को ०५४ के समान को नं. ५४ देखो को.नं०५४ को मं०५४ देखो को नं०५४ देखो | को० नं. ५४ देखो । १०द३ ३ भंग १वेर १ भंग १ वेद को नं०१ देखो । । को० नं. ५४ के समान को.२०५४ देखो' को नं०५४ को० न०५४ वेत्रोको नं १४ देखो को० नं. ५४ ११ कषाय २२ । सारे भंग | भंग २ । सारे भंग १ भंग अनन्तानुबंधी कराव: । (१) नरक मति में को न०१६ देखो| को नं. १६ । (१) नरक गति में को मं०१६ देखो | को० नं० १६ मप्रत्यायन कपाय ४. । २०-१६ के भंग को. |00-१६ के मंग प्रत्याख्यान कपाय ४ । न०१६ के २३-१६ के. | को० नं०१५के :संचलन लोभ कपाय १. । हरेक भंग में से संज्वलन ! । १६ के हरेक मंग में से | नव नो कपाय, बोष-मान-माया ये कयाय मंज्वलन कोष-मान-माया। ये २२ जानना घटाकर २.-१६ के भंग! |ये ३ कपाय घ किर0जानना | १६ के भंग जानना । (२) तिर्यच गति में | सारे भंग १ भंग (२) नियंप गति में सारे मंग भं ग २२-२०-२२-२२-१०-१४-| को० नं० १७ देखो को नं. १७ ।२२-२०-२२-२२-२०-२२ को नं०१७ देखो | कोन०१७ २१.१७ के भंग को १७ के | -२१-१: भंग को | देखो २५-२३-२५-२५-२१-१.5 | नं०१७ के २५-२३-२५-1 २४-२० के हरेक "मंग में २५-२३-५-२४-१८के। से संज्वलन कोष-मान-माया हरेक भंग में से मंज्वलन ये ३ कषाय घटाफर २२- | कोष-मान-माया ये ३. २०-२२-२२-१०-१४-२-1 कषाय घटाकर २२-२०.: १७ के मंग जानना । २२-२२०२३-२९-१६' (३) मनुष्य गति में | सारं भंग १ मंग के भंग जानना -12-४-१०-६-१०- को. नं-१८ देखो की न०१८ । (३) ममुष्य गा में सारे भंग । १ भंग देखो २२-६-८-२१-१६ के भंग को० नं०१८ देखो। को नं०१८ । को० न०१८के २५ देखो । दखो Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ संज्वलन लोभ कषायों में सो १६-११-२४-१६ के हरेक २१-१७-१३-११-१३-७-४२४-२० के हरेक भंग औष-मान-माया पे ३ में से सज्वलन क्रोध-मान कपाय घटाकर २२-१६माया ये ३ कषाय घटाकर ८-२१-१६ के भंग २२-१०-१४-१०-८-१०-४. जानना १-२११७ के मंग जानना (४) देवगति में सारे भंग १ भंग (४) देवगति में सारे मंग २१-२१-१६-२०-१६-१६-कोन१६ देखो | को.नं. १ २११७-२०-१६-१६ के को० नं० १९ देखो को० नं० १९ के मंग को नं०१६ के देखो भंग को० न. १६ के २४-२८-१-१३-१६-१६ २४-२०-२३-१४-16 के के हरेक भग में से हरेक भंग में से संज्वलन संग्वलन क्रोध-मान-माया क्रोध-मान-माया ये३ कषाय पे ३ कपाय घटाकर घटाकर २१-१७-२०-२६१६ के मंग जानना भंग जानना । १२ जान सारे मंग | १ज्ञान सारे मंग । १जान को नं. ५४ वेडो को. नं. ५४ के समान को वं०५० देखो | को नं.४ | कोनं ५४ देखो को नं. ५४ देखो । कोने०५४ | देखो देतो १३ संयम १ मंग १मयम १ भंग १संयम मसंयम, संयमासंयम, (१) नरक-देवति में हरेक में को.नं.१६-16 को.न.९६-प्रस बम, सामायिक, सामायिक, छेदोप- १मसंयम जानना देखो १६ देखो खेदोपस्थापना (३) स्थापना, परिहार वि० को नं०१६-११ देतो (१) नरक-दंवगति में को.नं.१६-१९ को.नं.१६५ सूक्ष्म सांपराय ये (६)(२) तिर्वच गति में १मंग । १ संयम । हरेक में १६ देखो १-१-१ के मंग को. नं०१७ देखो को० नं.१७१ असंथम जानना को १७ देखो की २०१६-१६ (३) मनुष्य गति में - सारे मंग 'संयम देखो १-१-३-२-३-२-१-१ के भंग को.नं. १५ देखो को००१८ (२ तिर्यच गति में | भंग संयम को००१८ देतो ।१-१के मंग को० नं. को.नं.१७ देतो की.नं०१७ १७ देसो | देखो देखो देखो Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ संज्वलन लोभ कषाय में दर्शन को.नं. १६ देखा १सयम (३) मनुष्य गति में सारे भंग को००१८ १-२-१ के मंग को० नं० १८ देखो । देखो को० नं १८ देखो .१ भंग ध र्मन १ भंग | दर्शन कोनं० ५४ के समान को नं. ५४ देखो. कोने ५४ | को. नं.५४ देखो .को नं ५४ देखो | को नं०५४ देखो देखो १ भंग १ लेश्या १ भंग १लेश्या को० न०५४ के समान को. नं.५४ देखो को.नं. ५४ ' को.नं.५४ देखीको । ५४ देवी को००५४ १५. लेश्या को.नं. १ देतो. १६ भव्यत्व भव्य, अभव्य १७ सम्यवत्व को नं०१६ देखो १८ मंत्री । संजी अयनी देखो १६ प्राहारक २' आहारक, अमाहारक | १अवस्था १ अवस्था कोनं० ५४ के समान को० नं०५४ देखो| को नं. ५४ को० नं०५४ देखो ! कोन०५ देखो! को० न०५४ देखो देखो । सारेर । । सारे भंग मम्यत्व को नं. ५४ के समान की नं०५४ देखो' को नं.५४; को० नं०५४ देवी को मं. ५४ देखो को नं. ५४ देखो देखो १ अवस्था को० नं०५४ के समान की नं०५४ देखो' को० नं०५४ को० न०४ देवो को नं०१४ देतो को० नं०५४ । देखो १ भंग १अवस्था को नं.४ के समान को नं०५४ देखो को नं०५४ | कोन. ५४ दंवो कोन. १४ दही को न०५४ भग उपयोग फो.नं.५४ के समान को0नं0५४ देखा को न० ५८ । को० नं दलो कोर नं०५४ देखा । नान ५४ देखो को सारे भंग १ प्यान | सारे भग . ध्यान को० नं. के समान को.नं. ५४ देखो को नं०५४ । का० न०१४ोको० नं । दया : को.नं.५४ देखो सारे भंग १ भंग मार भंग १ भंग .प्रौ. मिश्रकाय योग अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान मनोयोग ४. वचनवीग ४, पातान् जानना पर्शतवत जानना २०ध्यान ' को न५४ देखो . | उपयोग २१ ध्यान ३ - की नं०५६ देहो २२-प्राव ५४ | को.नं. ५४ देखो. Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोस्टक २०५५ संज्वलन लोभ कषायों में व०मिश्रकाय योग १ के सारे भंग जानन। के भंगों में। श्री. काययोग १, वैः कारिण काययोग . 'कोई । भंग काययोग १, माहारक ये ३ घटाकर (५१) . काययोग १ ये ११ घटा(१) नरक गति में सारे भंग ' १ भंग । कर (४३) ४६-४१-३७ के भंग को० नं. १६ देतो कोल्नं. १६ देखो (१) नरक गति में नरक गति में । सारे भंग १ भंग को० नं०१६ के YE ३६-३० के भंग वो.नं. १६ देखो कोनं.१६ देखो ४४-४० के हरेक भंग में को नं १६ के ४२-३३. से संज्वलन क्रोध-मान हरेक मंग में से संज्वलन माया ये ३ कषाय घटाकर। कोर-मान-माया ये ३ कपाय घटाकर ३६-३० जानना के भंग जानना (२) तियं च गति में सारै भंग | भंग (२) तिर्यच गति में | सारे भंग १ भंग ३३-३५-३६-३७-४३- को. २०१६ दस्रो कोनं १७ देखो, ३४-३५-३६-३७-४०-को० नं. १७ देखो को नं०१७ देखो ४८-४३-३६-३४-६७ ४१-२६-३०-३१-३२ ४२-३८ के मंग ३५-३६-४०-३५-१० को० नं १७ के ३६ के भंग को नं० १७ ३८-२९-४०-४३-११ के ३७-३८--३६-४०४१-४२-11-५०-४५ ४३-४४-३२-३३४१ के हरेक मंग में मे ३४-३५-३८-हैसंज्वलन क्रोध-मान-माया ४३ -३८-३. के हरेक ये ३ घटाकर ३३-३५ मंग में में संज्वलन क्रोध३१-३-४०-४०-४: मान-माया ये ३ कषाय ३६-३४-४७-४२.-२५ के घटाकर३४-.५-३६भंग जानना ३०-४०-४१-२६-३०(२) मनुष्य गत्ति में सारे भंग १ मंग १-५२-३५-३६-४०४८-४५-३६-३४-१६-को. नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो। ३५-३० के भंग जानना १५-१२-१३-१२-११-1 (२) मनुष्य गति में सारे मंग भं ग १. भंन को.नं. १ ४१-15-10-6-0 को.नं.१% देखो कोन०१८ देखो के ५१-४६-४२-३७२२-२०-२२-१६-१५-| Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ संज्वलन लोभ कषाय में १४-१३ के हरेक भंग में से संज्वलन काघ-मानमाया ये कषाय घटाकर ४६-४३-३६-३४.१६-१७ १६-१३-१.-११-१० के भंग जानना १० का मंग-को नं. १८ के १२ के मंग में से मान-माया ये २ कषाय घटाकर १० का भंग जानना १० का भंग-को० नं. न. १८ के ११ के भंग में से माया कवाय १ घटाकर १० का भंग जानना १०-१० के मंग-को० नं० १८ के समान जानना ४७-४२-३८ के भंग भोगभूमि की अपेक्षा को० नं. को.न. १० के ४४२६-३-१२-४३-३८-३३ के हरेक मंग में से संचलन कोव-मान-माया ये ३ कषाय पाकर ४१-३६-३०-8-30-३५३० के भंग जानमा (४) देवगति में सारे मंग । १ मंग ४०-३५-३०-३६-३४-३०-| को० नं०१६देखो को० न०१९ ३० के अंग को नं. ! देखो १० के ३-२८-३३-१२३७३३ ३३ के हरेक भंग | मे से मज्वलन कोध-मान! माया ये कपाय पटा कर ८०-३५-३०-३१ २४-10-३0 के भंग 1 जानना - - - - हरेक मंग में से कोष-मान माया ३ कषाय घटाकर ४७-४२-३८ के मंग जानना (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग ४७-४२-०८-४६-४१-३७-को०११ देदो | कोनं०१६ ३७ के मंग-को.नं.१६ के ५०-४५-४१-४६-४४. ४०-४० के हरेक भंग में से Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ संज्वलन लोभ कषावों में ४१ २३भाव को.नं.५४ संज्यलन कोष-मान-माया ये३कधाय घटाकर ४७ ४२-३८-४६-४१-३७-३७ के मम जानना ४६ । सारे मंग । १ मंग सारे भंग १ भंग सो (E)सरक भति में को० न०१६देखो। को.नं. १ उपमनवाधिप्रयिक। ___ को० न०१६ के समान चारिव १. कुअवधि जान (२) तिर्यच नति में । स.रे भंग भंग १, मनः पर्यय ज्ञान १, को न०१७ देखो | कोनं०१७ देखो को नं. १० । मयमाययम १. ये ५ दखो घटाकर (१) (३) देव गति में सारे मंगर मंग (१) मरक गति में सारे मंग को न०१५ के समान को० नं०१६ देखो। को नं०१६ कोनं १६ के समान की नं0 देखो | को० नं.१६ देखो | (४) मनुष्य गति में | सारे भग । १ भंग २) तिर्यंच पनि में सारे भंग | भंग ३१-२६-३०३३-३०-११-को० नं०१८ देखो को नं०१८ । को० नं०१७ के समान को नं०१७ देखो को नं०१७ २७-३१-२६-२६-२८-२७देखो । देखो २६-२५-२४-०३-२३-२७ (2) देवनि में | मारे भंग , भंग २५ २६-२६ के भंग-को० की नं०१६ के समान को.नं. १६ देखो को न १६ नं०१८ देनो देखो (.) मनुज गनि में सारे भग भ ग 10-04-३०.२७.२.-कोन सो को नं०१५ २०.५ के अंग कोन | देखो देवी Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ अवगाहना को० नं० १६ से ३४ देखो । बं प्रकृतियां १ मे उय प्रकृतिया सत्य प्रकृति सु० में को० नं० १ मे ६ के समान जानना । १०वे गु० में (०) बंध नहीं है। से गुमेका से ६ गुगु० में को० नं० १६ के मनान जानना संख्या- (८६१०००० करोड एक्यनित्रे नात्र यह मख्या मुनियों की प्रवेशा जानना ! क्षेत्र लोक के असंख्यातवां भाग जानना | स्पर्शन-लोक का प्रस्थातवां भाग जानना । काल-नामा जीवों की अपेक्षा पर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा एक समय मे श्रमुहूर्त तक एक लोक याय को अपेक्षा जानना । नाना जोवों की अपेक्षा अन्तर नहीं। एक जीव की पेक्षा अन्नंमुहूर्त से देशोन अषं पुद्गल परावर्तन काल तक संज्वलन लोभ को धारण न कर सके | अतु १०वां गुण स्थान धारण न कर सके । - - ( ४०६ } जाति (योनि) - ६४ लाख योनि जानना है कुल - १६२ । लाख कोटिकुल जानना । १० वे गुण० में ६० प्र० का उदये जानना । १० गुग्गु० में १०२ क्षपक श्री की अपेक्षा जानना । Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०७ कोष्टक नं० ५६ हास्यादि छह नोक्यायों में चौतीस स्थान दर्शन स्थान मामाम्प ग्रालाप, पर्याय अपर्याप्त १जीव के नाना एक जीव के समय में एक समय में एक नीव के नाना एक जीव के एक। | समय में । समय में नाना बीच की अपेक्षा माना जीवों की अपेक्षा सारे गुण स्थान १ गुण। पर्याप्तवत् जानना पर्याप्तवत् जानना 1 स्थान | सारे गुण स्थान । ५ गुण - १ ८ गुरण | (१) नरक गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) नरकगति में १ से मुख सारे गुण जानना के सारे भंगों में से ले ४ गुण (२) नियंच गति में | काई । गुण | (२) तिर्यच गति में १-२ गुण.. भांग भूमि में भोगभूमि में । समस १-२-४ गुणा (3) मनुष्य गति में (३) मनुष्य गति में १से 5 गुरग १-२-४-६ गुण भाग भूमि में (४) भोग भूमि में १रो ४ गुण. १-२-४ मुग (४) देव गति में (५) देवयति में . १ से ४ मुरण | १-२-४ गुण. २जीवसमास १४ ७ पनि अवस्था १ समास: । ममास । ७ अपर्याप्त पवस्था को नं. १ देखो को नं०५४ के समान को २०५४ देखो को००५४ देखो को नं०५४ देखो ३ पर्याप्त | मंग'. १ भंग ३ कोल नं.१दंबा को नं. ५४ के समान को नं. ५४.देखो कोनं०५४ देखो को. नं. ५४ देखो ४ प्राप१० भंग । १ मंग : को न०१ देखी को. नं. ५४ के समान को नं. ५४ देखो कोन० ५४ देखो को० नं०५४ देखो देखो ५सं. ४ | १ भंग १ भंग । को नं०१ देखो को० न० ५४ के समान को नं. ५४ देखो कोनं. ५४ देखी को० नं. ५४ ६ गति ४ - कोल नं.१ देखो को० नं० ५४ के समान को० न०३४ देखो कोना समास १ समास को नं०५४.देखो को नं. ५४ देखो | .१ भंग । अंग को नं. ५४ देखो को०नं०५४ देखो ..१ मंग - १ भंग ! को० नं. ५४ देवो कीनं०५४ देखो १ भंग । मंग को० नं०५४ देखी का नं.४ देखो कोनं ५४ देमको 'कोन.५४देखों Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५६ हास्थादि छह नोकषायों में ७ इन्द्रिय जाति ५ १ जाति जाति १जाति जाति को.नं०१ देखो को० न०५४ के समान को नं ५४ देवो कोन, ५४ देखो को नं० ५४ के समान को० नं०१४ देखो कोनं०५४ देखो १ काय काय । को नं. १ देखो को० नं. ५४ के समान कोनं०५४ देशो को.नं.५४ देखो को.२०५१ देखो को.नं. ४४ देखो को.नं. ५४ रेखो योग १० । । सारे भंग योग । सारे भंग योग को००२६ देखो। कोन ५४ के समान को नं०५४ देखो कोनं.५५ दंखों को नं. ५४ देखो कोनं ५४ देखो कोनं०५४ देखो | भंग १ वेद १मंग वेद को. नं. १ देखो (१) नरक गतिमें –निर्यच गति को० न० ५४ देखो कोन० ४ देखो (१) चा गतियों में को००५ देखो कोनं ५४ देखो में-देवगति में हरेक में को० नं.५ के समान को० नं. ५४ के समान | जानना. भंग जानना (३) मनुष्य गति में सारे भंग वेद । ३-३-३-१-३-२ के अंग को नं०१५ देखो को००१- देखो को नं०१८ देखो २० सारे भंग १ भंग । २० । सारे मंग भं ग हास्यादि ६ नोकषायों (१) नरक गति में को नं० १६ देखो को नं० १६ देखो (२) नरक. मति में को.नं.१६सो कोनं०१६ देखो में से जिसका विचार १८-१४ के मंग १८-१ के भंग करो भो । छोड़कर । को००१६ के २३-१६ को नं. १६ के २३घोष ५ कयाय घटाकर हरेक भंग में से हास्यादि ११ के हरेक मंग में| २.जानना ६ नोकवायों में से जिसका से पर्याप्तवन शेष ५ नोकपाय विचार करो पो छोड़कर | घटाकर १५-१ के भय घोष ५ कषाय घटाकर १. १४ के मंग जानना १२) तिर्यक पति में सारे भंग १ मंग (२) तिथंच गति में सारे भंग १ भंग २०-१८-२०-..-१८-को.२०१५देखो कोन०१७ देखो २०-१५-२०-२०-१६-कोनं०१७ देखो कोनं०१० देशों २०१६-१के भग १५-११-१५ मंग को० नं. १७ के २५को.न.१७के २५ २३-२५-२५-२३-२५२३-२५-२५-२१-१७ ४-१६ हरेक मंग २४-२०के हरेक भंग में । में से पर्यावत शेष Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ !तीस स्थान दर्शन . ... कोष्टक २०५६ हास्यादि छह नोकषायों में से ऊपर के समान शेष ५ नो कपाय घटाकर २. नोकषाय घटाना - १८-२०-२०-१८-२०१८-२०-२०-१६-१२ १२-१४ के भग जानना । १६-१५ के भंग जानना (३) मनुष्य गति में गारे भंग १ मंग ३) मनुष्य गति में । सारे भंग । १ भंग २०-११-६-१३-१४ को नं. १८ देखो को००१८ देखो २०-१६-१२-६-६-६-को.नं. १५ देखो को.नं०१८ देखो| के अंग को न०१८ के १९-१५ के मम | २५-१९-११-२४-१६ । को००१८ के २५-- के हरेक भंग में में पर्याप्तवन २१-१७-१३-११-१३ नोकपाय शे ष५ घटाकर ! २४-२० के हरेक भंग ००-१४-१-१६-१४ । में में ऊपर के समान के भंग शेष ५ नोकवाय घटाकर (४) देवगति में सारे मंग १ भंग २०-११-१२-८-६-६ १३-११-१४-१८-१४.. को नं. १६ देशो कोनं० १९ देखो १९-१५ के भंग जानना १४ के भंग का नं०१६ (४) देवगति में सारे भंग १ भंग के २४-१९-०३-१६१४-१५-१०-१४-१४ को नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो १६ के हरेक मंग में में के भंग को.नं. १६ पर्याप्तवन शेष ५ नोकपाय २४-२०-२३-१६-१६ घटाकर ११-११-१४के हरेक भंग में से ऊपर के १८..१४-१४ के भंग ममान ५ पेष नोकपाय । जानना घटाकर १६-१५-१-१४. १४ के भंग जानना १२शान । सारे भंग १जान १ मंग ज्ञान कोनं. ५४ देखो। कोन० ५४ के समान को नं० ५४ देखो कोल्नं. ५४ देखो कुप्रवषि ज्ञान, मनः को० न०५४ देखो कोनं १६ देखो जानना पर्यय ज्ञान ये घटाकर(२) | को.नं०1४ के ममान १३ संयम १ भंग संबम । ३ १ भंग संयम को००५४ देखो को.नं.५ के समान को००५४ देखो को नं०५४ देखो को० नं. ५४ देखो को० नं. ५४ देतो कोनं०५४ देखो Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोस स्थान दर्शन १४ दर्शन को० नं० ५४ देखो २५ व्या को० नं० १ देखो १६ भव्यत्व को० नं० ५४ देखो १७ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो १८ संजी २ | S 1 संजी, मसी १६ आहारक २ । आहारक, अन हारक २० उपयोग o को० नं० ५४ देखो २१ ध्यान | ५२ १३ को० नं० ५४ देखो २२ प्राव मिथ्यात्व ५ प्रविरत | १२, योग १५, कमाय २० ( हास्यादि ६ I नोकषाय में से जिसका विचार करो प्रो छोटकर शेष ५ घटाकर २० जनना) ये ५२ मास्रव जानना ३ १ भंग को० नं० ५४ के समान को० नं० ५४ देखो ) भंग को० नं० ५४ देखो १ भंग को० नं० ५४ देखो १ मंग ५४ देखो को० नं ६ को० नं० ५४ के समान २ को० नं० ५४ के समान ६ को० नं० ५४ के समान जानना २ को० नं० ५४ के समान १ को० नं० ५४ के समान to को० नं० ५४ के समान को० नं० ५४ के समान YE . १, १. श्री मिथकाययोग १, ३० आहारक कामस्य काययोग १ ये ४ घटाकर (४८) (१) नरक गति में " " " ( ४१० ) कोष्टक नं० ५६ १ मंग को० नं० ५४ देखो १६ के ४६-४४-४० के हरेक मंग में से हास्यादि ६ नो कषाय में से जिसका विचार करे मी १ छोड़कर शेष १ दर्शन ६ को० नं० ५४ देखो को० नं० ४ देखो १ लेश्या I को० नं० ५४ देखो | को० नं० ४ देखी १ अवस्था को० नं० ५४ देखी I १ को० नं० २४ देखो सारे भंग ४४-२६-३५ के मंगको० नं० [को० नं० १६ देखी १ सम्यक्त्व को० नं० ५४ देखो 1 १ भंग को० नं० ५४ देखो सारे भंग को० नं० ५८ देखो सारे मंग अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना १ अवस्थः को० नं० ५४ देखो | १ को० नं० ४ देखो १ उपयोग को० नं० १४ देखो · १ ध्यान को०नं ५४ देखो १ भंग अपने अपने स्थान के सारे मंत्रों में | से कोई १ मंग ! १ मंग फो० नं० १६ देखो को० नं० १४ देख ५. मिश्र घटाकर (५) को० नं० ५४ देखो | २ को० नं० ४ देखी २ नं० ५४ देखो हास्यादि छह नोकषायों में को | १ अवस्था १ भंग को० नं० ४४ देखो को० नं० ५४ देखो १ भग १ अवस्था को मं० ५४ देखो को० नं० ५४ देखो १ भग १ उपयोग को० नं ५४ देखी फोन० ४४ देखो सारे भग १ ध्यान को० नं० ५८ देखी का०नं० ५४ देखो सारे भंग १ भंग मनोयोग ४. वचनयोग ४ सिवत् जानना गर्याशत्रत जानना I श्री० काययोग १, १४ | वं० काययोग १, आहारक काययोग १. मे ११ घटाकर ६४१) | (१) नरक गति में | ३७-२५ के भंग को० नं० १६ के ४२-४३ के हरेक भंग में से पर्यावत् प ५ कपाय घर ३७२८ के भंग जानना ८ को० नं० ५४ देखी 19 ११ को० नं० ५४ देखी १ दर्शन को० नं० ५४ देखो १ लेश्या को० नं० ५४ देखो १ अवस्था | को नं० ५४ देखो १ सम्ययस्व १ भंग को० नं० ५२ देखो १ भंग को० नं० ५४ देखो १ मंग को० नं० ४ देखो सारे भंग को० नं० ५४ देखी को देखो I सारे भंग १ भंग [को० नं० १६ देखी [को०० १६ देखो Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५६ हास्यादि छह नोकषायों में ५ घटाकर ४४-३६-३५ के । (२) तिथंच गति में सारे भंग १ भंग भंग जानना । २.३३-३४-३५-३८. को. नं०१७ देखो को नं०१७ देखो (२) निर्यच गति में । सारे भंग । १भग । ३६-२७-२८-२९-३०. ३१-३३-४-३५-३५-४६-कोनं० १७ देखो को.नं. १७ देखा ३३-३४-३८-३३-२८ के ४१-३७-३२--५-४०-३६ भंग को.नं०१७ के. के भंग को. नं०१७ के | ३७-३८-३६-४०-४३३६-३८-३६-४०-४३-५१. ४६.४२-३७-५०-४५-४१ । ३८-३६-४३-३५-३के के हरेक मंग में से ऊपर । हरेक भंग में से पर्यावत् के समान शेष ५ कयाय शेष ५ कषाय घटाकर ३२० घटाकर ३१-३३-३४-३५ | ३३-४-३५-८-२६-२७३८.४६-४१-३७-३२-४५ २८-२९-३०-३५-४-६४ -३५ के भंग जानना |३८-३३.२८ के भंग मनुष्य गति में सारे भंग । १ भंग · । जानना ४६-४१-३७-३२-१७-१५- को. नं०१८ देखो कोन०१८ देखो १७-४५-४०-३६ के भंग (३) मनुष्य गति में सारे भंग १मंग कोनं०१८के ५१-४६. ३६-३४-२८-७-१-३३- को.नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो ४२-३७-२२-२०-२२-५० । २८ के भंग कोनं०१८ ४५-४! के हरेक अंग में । के ४४.३९-३३-१२-४३से ऊपर के समान शेष ५ ३८-३३ के हरेक भंग कवाय घटाकर ४६-४१ में से पयांतवत शेष ५ २७-१२-१७-१५-१७.४५- | । कषाय घटाकर ३६-३४४०-३६- के मंग २८-७-३८-३३-२८ के मंग जानना (४) देवनि में सारे भंग मंग : ४५-४-३६-४४-18- को.नं. १६ देशो कोन०१६ देखो २५-३५ के मंग को०० १६ ५०.४५ भंग में से ऊपर के समान | Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५६ हास्यादि छह नोकषायों में शेष ५ कषाय घंटाकर ४५४०-२६-४४-३६-३५-६५ के भंग जानना २३ भाव सारे भंग १ भंग सारे भंग १ भंग अपशक्षायिक स०२ (१) नरक गति-तियंच गति-कोनं. ५४ के | कोनं०५८ के उपचम-चरित्र १, उपशम चारित्र १, देव गति में हरेक में समान हरेक में | समान हरंक में क्षायिक चारिष क्षायिक चारित्र १, को० नं०.४के समान जानना जानना कुपवधिज्ञान, क्षायोपामिक भाव १८ भंग जानना मन- पर्यवज्ञान, मोदईक भाव २१, (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंगमयमासंयम १५ पारिशामिक भ-व३ ३१-२६-३०-३३-३ -12-कोरनं. १५ देखो कोनं०१८ देखा घटाकर (६१) ये ४६ भाव जानना २७.३१-२६-२७-२५-२६- | (१) नरक-तिर्यच देवगति मारे भंग १ भंग २६ के भंग को० नं०५४ के कोनं०५४ के को० नं०१८ देखो को. नं.५४ के समान ! समान हरेक में समान जानना भंग जानना : जानना (२) मनुष्य गति में | सारे भंग । १ भंग २०-२८-10-२७२४-को० नं.१५ देखो कोनं० १८ देखो २२-२५ के भग को.नं०१८ देखा Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wali-को १६३छो बंध प्रकृतियाँ-१ से गुण में की न.१ मे ७ के समान जानना। वंगुण के ६व भाग में २२ प्रकृति का बन्ध जानना। उक्ष्य प्रकृतियां- " द गुण के अन्तिम भाग में ६६ प्रकृति का जदय जानना । सत्त्व प्रकृतियां १३ प्रकृति भपक थे की अपेक्षा । संख्या-अनन्तानन्त जानना। क्षेत्र-सर्वनोक जानना। स्पर्शन--सर्वलोक जानना । कास नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव को अपेक्षा एक ममय में अन्तम तक [मी एक नोचषाय की अपेक्षा बाननः । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक जीव की प्रेक्षा अन्त मह जानना । जाति (योनि)- लाख योनि जानना। कुल-१६६ लाख कोटिकुन बानना । Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५७ अकषायों में ऋ० स्थान सामान्य माला पर्याप्त एक जोव के नाना एक जीव के एक। समय में समय में अपर्याप्त ।१जीब के नाना । एक और के नाना जीवों की अपेक्षा समय में एक समय में नाना जीव की अपेक्षा १ गुण स्थान ११-१२-१३-१५ गुण . ११ मे १४ वे ४ गुगा. को दं. १८ देखो सारे मुग्ण स्थान १ गुण ४में मे कोई । १३२ गुण स्थान 'मुग्प० । १ पर्याप्त अवस्था २ जीव ममास २. संजी पं०-पर्या-अपर्याप्त ३ पर्याति ___ को० नं. १ रखो। | १ अपर्याप्त अवस्था १ मंग 1 भंग ३का भंग ३ का भंग ४ प्राण को० नं० १ देखो १ भंग १ मंग। को० न०१८ रखो कोन०१८ देखो ५ सजा ६ गनि ७ इन्द्रिय जाति ६ का भंग ६का भंग का मंग को० नं० १८ देखो को नं०१८ देखो १ भंग १ अंग १०-४-१ के भंगको .नं-१८ देखो कोनं.१८ देखो का भंग कोनं०१८ देखो | को० नं०१८ देखो प्रतीत संजा १ मनुष्य गति जानना कोन०१८ देखो १पंचेन्द्रिय जाति को०म०१८ देखो १जयकाय को००१८ देखो सारे भंग । १ योग प्रो० मिघकागयोग १, कामरिण काययोग कार्माण काययोग ये २ पटाकर (९) ये २ पोग जानना (१) मनुष्य गति में . (३) मनुष्य गति में + काय योग सार भन प्रा०मिश्रकायो मिश्रकाययोग ६ योग मनोयोग , वचनयोग ४, पौ. काययोग, श्री० मिथकाययोग १, कार्मारण काययोग १ ये ११ योग जानना Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १० वेद ११ रुपाय १२ ज्ञान मति श्रुत प्रवधि ज्ञानमनः पर्यय-केवल-ज्ञान | ये ५ ज्ञान जानना १३ संयम १ १४ दर्शन १५ प्रचक्षु दर्शन - पशु दर्शन अवधि र्शन केवल दर्शन १६ भव्यस्व १७ सम्यक्त्व I १८ संजी उपशम स० ये २ जानना १९ प्राहारक १ शुक्ल लेश्या (१) मनुष्य गति में -५-३-० के बंग को० नं० १८ देखो अपगत वेद मकवाय ५ (१) मनुष्य गति में ४-१ के मंग को० नं० १६ देखो १ यथास्यात संयम को० नं० १८ देखो श्राहारक, अनाहारक १ (१) मनुष्य गति में ३-१ के मंग को० नं० १८ देखी १ २ , क्षायिक स० (१) मनुष्य गति में २-१ के मंग को० नं० १८ देखो 1 ५० के भंग को० नं० १८ देख १ भव्य जानना ? (१) मतृष्य गति में १-० के भंग को० न० देखो , (१) मनुष्य गति में १-१-१ के भंग को० नं०] १८ देखो 1 ४१५ } कोष्टक नं० ५७ 닛 सारं भंग १ योग को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो . D सारे भंग को० नं० १८ देखो o · १ ज्ञान को० नं०] १८ देखो! सारे मंग १ दर्शन को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखी २-१ के भग की० नं० १८ देखी O १ का भंग को० नं. १० देखो १ १ १ का भंग को न० १० देखो १ १ को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो (१) मनुष्य गति में १ का भग को० नं० १८ देखो १ १ को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखी १ १ सम्यक्त्व सारे मंग को० नं० १= देखो को० नं० १८ देखी (१) मनुष्य गति मे १ का भंन को० नं० १८ देखी १ ل १ अवस्था 1 २ सारे मंग को० नं० १५ देखो कोज्नं० १८ देवी (१) मनुष्य गति में १-१ के भंग को० नं १६ देखी T ७ अकषायों में S सारे भंग २ योग को० नं० १० देखो कां०म० १० देखो सारं भंग को० नं०] १० देखो पं कां०नं० १८ देख Ø T G | १ ज्ञान | को०न० १८ देखी I १ को० नं० १८ देखो | को० नं० १८ देखी १ कॉनं १८ दे १ सारे भंग १ सम्बम्व कौन १८ देखी को नं० १६ देखो १ अवस्था मारे भग को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देख Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं० ५७ अकषायों में २० उपयोग ज्ञानोपयोग ५. दर्शनोपयोग ४ ये जानना (१) मनुष्य गति में ७.२ केभंग कानं०१८ देखो सारे भंग १ उपयोग सारे भंन । १ उपयोग कोनं०१८ देखो कोनं०१५ देखो कुअवधि जान, मनः पर्ययको० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो नान ये २ घटाकर (2) (१) मनुप्य गनि में २ का भंग को० नं० १८ देखो सारे भंग १प्यान | नारे भंग । १व्यान को न १८ देखो कोन १८ देतो मुम्म विया प्रनि पाति को नं. १: देखो कोनं०१८ देखो १का भंग कोनं०१५ देखो | मारे. मंग । १ भंग २१ ध्यान पृथक्त्व वितर्क विचार१ (१) मनुष्मति में एकत्ल वितर्क विचार, १-१-१-१ के भंग १. सूक्ष्म क्रिया प्रति- | कोनं०१८ देखो पाति १, प्यूपरन क्रिया भिवनिनी १ ये सुपर ध्यान जानना २२ प्रायव ११ ऊपर के योग स्थान के ग्रौ० मिन काययोग : योग (११) जानना कार्माण काययोग १ ये २ घटाकर (8) (१) मनाय गति में १-५-३-० के मंग को० नं.१% देखो २३ भाव उपशम मम्पकम, (२) मनुष्य पनि में । उपशमचारित्र, क्षायिक २०-२०-१४-१५ के भंग भाव, जान ४, दर्शन को नं०१८ देखो ३, क्षयोपशम लब्धि ५, शुक्ल लेश्या १, मनुष्प गति !, अजान १, मसिद्धत्व १, जीवत्व' भव्यत्व १ ये (२६) | मारे मंग | १ भंग को नं. १८ देखो कोन०१८ देखो सारे मंग १ मंग चौर मिश्रकाययोग १ कार्माग काययोप ये २ प्रोग जानना सारे भंग भंग | (१) मनुष्य गति में को.नं. १५ देखो कोनं०१८ देखो २-1 के भंग कोलनं० १८ देखो सारे भंग भंग को. २०१८ देसो कोनं-१५ देखो उपगम सम्यक्त्व १ उपशम चारित्र १, मनः पर्यय ज्ञान .. ये घटाकर (२) (1) मनुप्य गति में १४ का भंग कोः नं.१८६सो सारे मंग . मारे भंग १ भंग को न०१८ देखो को १८ देखो Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-३॥ हाय से लेकर ५२५ धनुप तक जानना । बंष प्रकूलियां-११-१२-१३वें गुण में एक साता वेदनी का वन्ध जानना, १४ मुरण में प्रबन्ध जानना । आय प्रकृतियां--११-१२-१३-१४३ गुण में कम से ५६, ५७, ४२, १२ प्र० का उदय जानना को नं० ११ से १४ देखो। सस्व प्रकृतियां-११-१२-१३वे गुण में क्रम से १३६. १०२, १७१, ०५ और १४२ गुण में ८५-१६ प्र. का सना जानना । क्रम में #vivi ।। सक्या-को० न० ११ मे १४ के समान जानना । क्षेत्र-लोक का असंख्यातो भाग कपाट समुपात की अपेक्षा जानना । प्रत्तर समुद्यात में असंख्यात लोकप्रमाण जानना और लोवपूर्ण समुपात में सर्वलोक जानना । को० नं०१३ देखो। स्पर्शन-ऊपर के क्षेत्र के समान जानना । काल-माना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा माठ वर्ष अन्तम इतं कम कोटि पूर्ववर्ष तक जानना, उपशम श्रेणी को प्रपेक्षा एक समय से मन्तमुंहतं तक जानना, मोरक्षपक थेगी को अपेक्षा मन्तमु हनं देशोन' कोटि पूर्व वर्ष तक जानना । अन्तर--नाना जीदों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव को अपेक्षा अन्तमुहूर्त मधपुद्गल परावर्तन काल तक ११वां गुण स्थान प्राप्त न कर सके। जाति (योनि)- १४ लाख मनुष्य योनि जानना । कुल–१४ लाख कोटिकुल मनुष्य के जानना । Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५८ कुमत्ति-कुश्रु त ज्ञान में स्थान सामान्य प्रालाप पर्याप्त अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना एक जोब के एक समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा जीप कं नाना । जीव के एक समय में | समय में १ गुण स्थान ३ १--३ गुण जानना मारे गुण स्थान | १ गुण । नारे नूगा १ गुण. चारों गलियों में हरेक में को० न०१६ से कोलन०१६ मे (१) नरक गान में ले | को० नं१६ से को० नं.१६ से १.७-६ गुग. गागर | १६ देखो । १६ देखो | गुरण | १६ देखो १८ देखो | (२)तिपंच-मनुष्य-देवगति में हरेक में सूचना-:) मंज नं०७१, १-२ गुण० स्थानजानना । २ जीय समाम १४ । पर्याप्त अवस्था १ समास । १ समास ! ७ अपर्याप्त अवस्था समास १समाम बो नं. १ देखो (१) नरक-मनुव्य-देवगति में को० नं १६-१८- कोन०१६. (१) नरक-मनुष्य-देवमति ! को० नं०१६-१२- को० नं. १६हरेवा में १९ देखो १०-१६ देखी में हरेक में १३ देखो १८-१९ देखो १ संजी पं० पर्याप्त जानना। | १ मंकी पं. अपर्याप्त को० नं. १६-१८-१६ अवस्य जानना को.नं.१६-१-१९ देखा! (२) नियंच गति में १ समास १ समान (२)निन पति में १ ममास । समास --१के भंग को नं०१७ देखो। को० नं०१७ । ७-६-१ के भंग को० नं. को नं०१७ देखो । को.नं०१७ को नं०१७ देखो देखो १७ देखो पर्याप्त १ मंच भंग १ भंग १ भंग को देखो (१) नर-मनुष्य-देवगनि में नं०१६-१८ को न०१- (१) नरक-ष्य देवगन को नं०१६-१८. को नं०१६. हरेक में ११६ देखी १५-१६ देवो में होने १६देवो१८-१६ देखो ६ का भंग-कानं०१६ | ३ का भंग-०२.१६१५-१६ देतो १८१६ देखी (२) तिचंच गति में भंग १ भंग (0) नियंच गनिमें ! १ भंग भं ग ६-१-४-६ के भंग को० नं०१७ देखा । को.नं. १31३-३ के भग को० नं कोनं. १३ दलो को० नं०१७ को.नं.१७ देखो Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५८ कुमति-कुश्रुत ज्ञान में ४ प्रारण १ मंगभंग को नं. १ देखो (१) नरक-मनुष्य-देवमति में सोनं.१६-१८-कोनं०१६ ! (३)मरक-मनग्य-देवमति को नं० १६-१८ को.नं१६ ।१६ देखो १८-१६ देखो । हरेक में १५-१६ देखो .0 का भंग-पो नं. । ७ का भंग को.नं. १५./ १६-१८-१६ देखो ! । १८-११ देखो 1) नियंच मनि में । १ भंग १ मंग (२) तिर्यंच गति में भंग १भंग १०-८-८-१-६-४-१० को नं. १७ देखो | को. नं०१७ ७-१-६-५...४-३-७ को० नं०१७ दखो | को० न०१७ के भंग-को० नं. १७ देखो के भंग को नं०१७ | देखो ५ मंजा १ भंग १ भंग भंग १ भंग __ को नं. १ देखो । चारों गलियों में हरेक मैं | को० नं. १६ से | कोन चारों गनियों में हरेक में पर्याप्तवन जानना । पर्याप्तवत ४ का भंग-कोनं १६१६ देखो से १६ देखो | पर्याप्नवत् जानना जानना में ११ देखो । कोई गति कोई १ गति ' कोई १ गति कोई १ गति कोन १ देखो । चारों गति जानना । चारों गति जानना । । को० नं० १६ से १६ देखो' को नं.१६ से देखो ७ इन्द्रिय जाति १ जाति जानि १ जाति १ जाति को००१ देखा (१) नरक-मनग्य-देवगति में बोलनं०१६-१८- को नं०१६- नरक-मनुष्य-देवगनि को० नं० १६-१८- को० नं०१६हरेक में १८-१६ देखों में हरेक में १६ देखो १८-१६ देखो पंचेन्द्रिय जानि जानना । पंचेन्द्रिय जाति जानना को.नं. १६-१८-१६देखो। । को नं०१६-१८-१२ देखो नियंच गति में | जाति १ जाति ) तिच गति में । १जाति १ जाति '५-१-१ के भंग वाको १७ देखो | कोन. १७५-१के भंग को० . को नं०१७ देखो, को नं०१७ १३ देखो देखो काय काय काय । | १ काय काय को० नं० देखो (१) नाक-मनुष्य-देवगति में | को.नं.१६-१८-कोन: १- (1) नरक मनुष्य-देवगनि कोन०१६-१-कोन०१६हरेक में | १५-१६ में हरेक में । १६ देखो १५-१६ देखो १ चमकाय जानना १.मक य जानना । को नं०१६-१८-१६ देखो को.न. १६-१८-१६ देखो Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२० । कोष्टक नम्बर ५८ चौतीस स्थान दर्शन कुमति-कुश्रुत ज्ञान में १ काय (२) तिर्यंच गति में (२) तिर्यच गति में । काय ६-१-१ के भंग को० नं. १७ देतो को० नं. १७६-१-१ के भग को नं०१७ देखो | को.नं.१७ को: नं. १७ देखो को० नं०१० देखो देखो योग १ भंग १ योग ! 'याहारक मिश्रकाय प्रो० मिथकाय योग १ ग्रा०मिश्रकाय योग १, योग, मा० काय 4. मिथकाय योग १, बै० मित्रकाय योग । योग १, ये २ वटाकर कार्माणकाय योग १, कार्मासाकाय योग : । ये ३ घटाकर (१०) ये योग जानना ११. नरक-मनुष्य देवगति में १ भंग १ योग । (१)नरक-मनुष्य देवगति १ भंग | १योग हरेक में को न०१६-१८- को००१६-१८- मैं हरेक में को० नं०१६-१८- | को००१६का मंग | १६ देखो । १६ देखो १-२ के मंग । १६ दखा १५-१६ देखो को० नं०१६-१८-१९ कोल नं. १६-१८-१६ देखो (२) तिर्यंच गति में | १ मंग १ योग (२) तिर्यंच गति में . १. भंग १ योग ६-२-१-६ के मंग को.नं०१७ देखो को नं०१७ देखो १-२-१-२ के भंग को० को० न०१७ देखो को०१७ देखो को नं०१७ देखो नं. १७ देखो १. वेद १ भंग ! १ वेद ३ .. . १ भंग वेद को.नं.१ देखो । १) नरक गति में को० नं०१६ देखो को नं०१६ देतो (१) नरक गति में...को० नं०१६दसो कोनं०१६ देखो १ का भंग-को मं०१६ । १ का अंग को. नं. . देखो १६ देखो | (२) निर्यच गति में | १ भंग १वेद ।(२)तिवेंच गति में मंग वेट ३-१-३-२ के भंग । को० नं.१७ देखो को०नं०१७ देखो| ३-१-३-१-३-२ के अंग को०१७ देखो कोनं०१७देखो को० न०१७ देखो | कोनं०१७ देखो (३) मनुप्य गति में सारे भंग १ वेद (३) मनुष्य गति में ' मारे भंग १ वेद ३-२के मंग को.नं.१५ देखो कोनं०१८ देखो -२ के भंग को० नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो को.नं. १८ देखो को नं. १८ देवी (४) देवपति में । सारे मंग १ वेद ४) देवगति में सारे भंग वेद २-१ के मंग को० नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो २-१ के भंग का० नं. को.नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो को० नं. १६ देखो रस देखा Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५८ कुति-कुनु त ज्ञान में १ ११ कयाय २५ सारे भंग ! :५ को नं०१ देखी । (१) नरक गति में को.नं.१६ देखो कोनं०१६ देखो (१) नरक गति में को० नं. १६ देनी पो००१६ देखो २३-१६ के भंग २३ का भंव को नं. १६ देखो | को.नं. १६ दंत्रो (२)तियच गति में | सारे मंग , मंग (२) तिर्थर गनि में मारे भंग १ भंग २५-२३-५-२५-२१- कोनं० १७ देखो कोनं०१७ देखो २५-१३-२५-२५-२३. कोनं १७ देसो कोनं. १७ देतो २४-२० के भंग २५-२४ के भंग को न. १७ देखो i को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में : सारे भंग १ मंग । (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ भंग २५-२१-२४-२० के भंग को नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो २५-२४ के भंग की.नं. १ देखो कोनं०१८ देखो को ना १८ देखो को मं० १८ देखो (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग ! (४) देवमति में । सारे भंग १ मंग २४-२०-२३-१६ के भंग को० नं०१६ देखो कोनं०१८ देखो २४-२.-२३ के मंगको न०१६ देखो को.नं.१६ देखो को न १६ देखो को.नं. १६ देनो १२ ज्ञान कुमति-कुथ त इन दोनों चारों गतियों में हरेक में चारों गलियों में हरेक में में गे जिसका विचार । दोनों में से कोई १ जिसका | प्यास् बत जानना करना हो वह ! कुजान] विचार करना हो वह १ बानमा कुज्ञान जानना मूचना २-पेज ४२७ पर १३ सयम प्रसयम चारों गतियों में हरे में । चारों पतियों में हरेक में : १ प्रपंयम जानना प्रसंयम जानना को० न०१६ मे १६ देखी को नं०१६ से ' देखो .१४ दर्शन १ भंग १ दर्शन मंग न प्रचक्षु द०, चक्षु दर्शन | (१) नरक गति में । (१)नक गति में को० नं०१६ देखी को.नं.१६ देखो | २ का भंग को० नं०१६ देखो (२) तिर्यच पनि में १ भंग १ दर्शन (२) नियंच गनि में १ मंग । १दर्शन को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखा १-२-२-२ के भंग कोनं०१८ देखो कोनं-१७ देखो २ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ४२२ ) कोष्टक नं०५८ कुमति-कुश्रु त ज्ञान में को नं०१४ देखो (३) मनुरब गति में सारे मंग १ दर्शन । (३) मनुस्य गनि में | १ भंग १दर्शन को.नं.१० देखो कोल्नं०१८देखो २-२ के मग को नं० १८ देखो कोन०१८ देखो को.नं-१५ देखो 1 (6) देवगति में | १ दर्शन (४) देवगति में। | भंग । दर्शन को० नं०१६ देखो कोनं १६ देखो २-२ के भंग कोन १६ देखो कोनं. १६ देखो को नं १६ देखो १५ लेल्या १ भंग १लेल्या मंगलच्या को.नं.१ देखो (१) नरक गति में को नं०१६ देखो कोन १६ देखो (१) नरक गति में कोई न.१६ देस्रो बोनं० १६देखो ३ का भंग ३ का मंग को नं. १६ देखो को.नं.१६ टेखो (२) तिर्यव गति में १ भंग ले ल्या तिर्वच गति में १भंगलेश्या ३-६-३ के भंग को० नं०१७ देखो कोनं. १७ देखी ३-१ के भंग को० नं १७ देखो कोनं० १७ देखो चो. नं० १७ देखो | को नं०१७ देखो (३) मनुष्ष गति में । सारे भंग १ लेश्या (2) मनूग गनि में 1. सारे भंग १ लम्या । -2 के अंग को नं०१८ देखो कोन०१५ देखो ६-१ केभंग को.नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो । को नं. १८ देवो | को.नं. १८ देखो (४) देवगनि में .भं। १लेध्या (४) देवगति में । १ भंग ? लेश्या १-३- के भग कोनं०१६ देखो कोनं १६ देखो ३-३-१ के भंग को.नं. १६ देखो कोल्न० १६ देखो को० नं०१६ न्यो | को. नं० १६ देखो १६ भव्यत्व | १ भंग प्रवम्बा १ मंग १मवस्था भव्य, प्रभव्य (१) नक गति में को.नं. १६ देखो को०१५ देखो (2) नरक चति में को. नं०१६ देखो कोनं १६ देखी २- भंग २ केभंग को.न १६ देणे कोनं-देखो (२) तिर-मण्य-दवनि में। भंग १ अवस्था । (निर्मच-मनप्य-देव । १ भंग अवस्था | कोनं १७-१८-को न१७-। गति में हरेक गं को नं. ७-१८- कोनं १७.१८२.-१के मंग । १६ देखो १८-११ देखो - के भग १६ देतो । १६ देखा को. न.१७-१८-१९ दंगों, | कोन.-१८-१६ देखो Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५८ कुमति-कुथु त ज्ञान में १७ सम्यवत्व | मार भंग १सम्यक्त्व । २ मा भंग । १ सम्यक्त्व मिध्यास्व, मासादन, नरक गति में को० नं. १६ देखो कोन०१६ देखा मिश्र घटाकर (२) . मित्र व ३ जानना १-१-१ के भंग !(१) नरक गति में कोल नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो का नं.१ देखो १का भग | ( निये -मनाथ-देव मति में भंग । १ सम्यक्त्व | को नं. १६ देखो हरेक में क०५०१७-१८- कोनं०१७-१८-(२)तिच-मनुष्य-देवगति भंग सम्यश्व १-१-१ के भग । १९ देखो १९ देखो महरेक में को० न०१७-१८- कोनं०१७-१८ को० नं०१७-१८-१६ देखो १-१ के भंग १६ देसो . १६ देखो कानं०१७-१८-१६दे १८ संज्ञी १ भंग १ अवस्था १ मंग अवस्था संशो. असंज्ञी | नरक-मनुष्य-देवगति में को० नं. १६-१८-कोनं०१६-१८(१) नरक-मनुष्य-देवगति को० नं. १६-१८-कोनं १६-१८हरेक में ! १६ देखो १६ देखी | में हरेक में । १९ देखो । १७ देखो १ संजी जानना १ संज्ञी जानना कोनं०१६-१८-१९ देखो। को००१६-१८-१३ देखो (२) निर्यन गति में १ भंग १ अवस्था (३) तिर्यच गति में १ भंग १अवस्था १-१-१-१ के भंग कोन. १७ देखो को नं०१७ देखो १-१-१-१-१-१ केभंग कोन०१७ देखो को नं०१७ देखो को। नं०१७ देखो को० नं. १७ देखो । १६ माहारक प्राहारक, अनाहारक नरक-देव गनियों में को.नं० १६और कोनं०१६और नरक-देव गति में को० नं० १६ पौरको नं०१६ मौर हरेक में १६ देखो १९ देखो , हरेक में । १६ देखो । १६ देखो १ पाहारक जानना । कोन१६ यौर पर देखो कोनं. १६और एह देखो निर्यन-मनप्य गतियों में । १ । तिर्यच-मनुष्य गाया में | १ हरंक में का० नं.१७-१८ को नं. १७-१८ । हरेक में कोल नं०१७-१८ को १३-१५ १-१ के भंग देखो । देखो १-१-१-१ के मंग दवा देखो को न०१७-१८ देखो , को नं० १-१८ देखा। २० उपयोग | भंग १ उपयोग । १ भंग १ उपयोग जानापयोग ३, (१) नई गति में |-४ के अंगों में सं २-४ के मंगों में। (१) नरक गति मे का भग जानना.३ के भंगों में से दर्शनोपयोग, ३-४ के भग । कोई १ भंग जानना में कोई १ उपयोग का भग कोई उपगोग कोर नं. १६ के ४-५ के. | जानना बोनस १४ के भंग में जानना १३.१५ दवा 110 नं० १. ३ Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ५८ कुमति-कुश्रुत ज्ञान में हरेक भंग में से कुजानों। से पर्याप्तवत् शेष! में गे जिसका विचार करो। कुज्ञान (दोनों में में कोई ओ। घोकर शेष १) घटाकर ३ का भग कुजान पटाकर ३-४ के. जानना भम जानना (२) तिर्यच गति में । १ भंग १ उपयोग (२) तिवंच गति में १मंग १ उपयोग । २-३- -३-३-३-३ के भंग २-३-३-२-३-३-३ के '२-३-३-२-३-३०३ २-३ के भंग को० नं० | २-३ के भंगों में |२-३ के भयों को नं०१७के ३-४-१-मंगों में से कोई 1 के अंगों में से १७ के ३-४ के हरेक भंग | मे कोई भंग में से कोई १ | ३-४-४-४ के हरेक मंग | भंग' जानना कोई१ उपयोग में से कपर के समान कोई जानना उपयोग जानना में से पर्याप्तवतु दोनों जानना १ कुज्ञान (दोनों में से) कुशानों में से कोई १ घटाकर २-३ के भंग कुज्ञान घटाकर २-३-३जानना २-३-३-३ के मंग ३-४ के भंग-ऊपर के | ३-४ के भंगों में | ३-४ के अंगों में जानना नरक गति के समान यहाँ । से कोई १ भंग में कोई १ (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ उपयोग भी जानना उपयोग ३-३ के भंग-ऊपर के पर्याप्तजत् भोगभूमि में तिथंच गति के समान : E.४ के भंग-ऊपर के जानना उपयोग जानना समान जानना (४) देवगति में १भंग १उपयोग (2) मनुष्य गति में सारे भंग ३-३ के मंग-ऊपर के । ३-३ के भंगों में ३-४-3-1 के भंग-ऊपर | अपने अपने स्थान नरक गति के समान में कोई १ मंग में से कोई के निर्यच गति के समान | के मारे भंग जानना जानना उपयोग जानना जानना जानना (४) देवगति में १ भंग १ उपयोग ३-४ के मंग नरक गति ३-४ के भंगों में ३-४ के अंगों में के ममान जानना से कोई १ भंग से कोई १ उपयोगी जानना | जानना २१ ध्यान सारे जंग | १ व्यान । सारेभंग । १प्यान मार्तध्यान ४, रौद्र- (1) चारों मतियों में हरेक में को० नं०१६ मे को.नं.१६ से | प्राशा बि० घटाकर ()को० . १६ मे । को० न." घ्यान ४, प्राजाविषय के भंग-को० नं०] देखो १६ देवो . चारों गतियों में हरेक में १६ देखो से १६ देखो धर्मध्यान १ (६) १६ मे १६ देखो का भंग-को न.१६/ | ३-३ के भंगों ३-३ के भंगों से ११ देखो Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५८ कुमति-कुश्रुत ज्ञान में देखो २२ पासव ५५ . सारं भग १ भग सारे मंग१ मंग मा० मिधकाय योग १ । मौ० मिथकाय योग १, । . मनोयोग ४, वचनयोम ४, प्राहारककाय योग ? बै० मिश्रकार योग १. पौर काय योग १, ये २५टाकर-(५५) कार्मागाकाय योग वै काय योग १.ये ये ३ घटाकर (५२) १० घटाकर (४१) ' (१) नरकानि में मारे मंग । १ भंग (१) नरक गति में सारे भंग १ भंग ४६-४४-४० के कीलक्षणो १८ मंग-को. नंको नं०१६ देखो को न०१६ देखा २) नियंच गति में मारे भंग १ नंग ) नियंच गनि में सारे भंग १ भंग ३६-३६-३२-४०-४३-११ को नं०१७ देखो' को नं०१७७35-38-6-४३-४४- को० नं०१७ देखो । को.नं.१७ |2-३३-३-३५-३-281 भंग को० नं १० देखो। ४३.८ के भंग कोज| (2) मनुष्य गति में ' सारे भंग १ भंग १७ देखो। ५१-४ ४२-५,०-४५-११ को नं०१५ देखो को नं. १८ (३) मनुष्य गति में के मंग बोनं०१४ । देखो ४४-३६-४३- के भंग (को० नं०१५ देखो को नं.१८ देस्रो को.नं. १५ देखो । (.) देवनि में | मारे भंग ! १ भंग दे वर्गात में सारे भंग भंग ५.८-४५-११-४६-४:- कोन. १६ देखो । को.२०१९४३-३८-४०-३७ के भंग को. नं० १९ देखो | को० नं० १२ के भंग को नं०११ । को.नं.१६ देखो देखो २३ भाव सारे भंग , भंग सारे भंग १ भंग कुजान में मे जिमका (१) नरक गति में। को नं. १६ देखो को० नं०१६ (१) नरक गति में को.नं. १६ देशो को२०१६ विचार करो यो । २४.२२-२३ के भंग वा. का भंग कुज्ञान, दर्शन २, नं०१६ के २६.२४-२५ । को.नं.१६ के २५ के। लब्धि ५, गति ४, i के हरेक भंग में से जिसका , भंग में से पर्याप्तवन मेष कवाय ४, लिंग ३, ' विचार करो यो, कुजान २ कुज्ञान घटाकर २३ लेश्या ६, मिथ्यादर्शन १.. रहोड़कर गंष २ जान . का भंग जानना प्रमंथम, गजान १. घटाकर २४-२२-२३ के | (3) तिवंच गनि में - सारे मंग १भंग भंग जानना २३-२४-२६-२६-२१-२२ को नं०१७देखो को.२०१७ देखो देखो देखो देखो Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं० ५८ कुमति-कुश्रुत शान में होतीस स्थान दर्शन ।। २ । देखो प्रसिदत्व १. पारिवामिक (२) तिर्यच गति में सारे मंग १ २४-२४-२३-२१ केमंग को भाव ३ ये (३२) जानना २३-२४-२६-२६-२७-२८-को० नं०१७ देखो को० नं०१७ । नं०१७के २४-२५-२७२५-२३-२४ के भंग को ! देतो २७-२२-२३-२५-२५-२४नं०१७के २४-२५-२७ । २२ के हरेक भंग में में । के हरेक भंग में से ऊपर | पर्याप्तवत् शेष १ कुज्ञान के समान १ कुशान और । घटाकर २३-२४-२६-२६-। ३१-२६-३०-२७-२५-२६ । |२१-२२-२४-२४-२३-२१ । के हरेक भंग से ऊपर के | के भंग जानना सारे भंग १ भंग समान शेष २ कुशान घटा (३) मनुष्य गति में को० नं. १८ देखो को.नं. १५ कर २३-२४-२६ और २२० २६-२७-२३-२१ के भंग । २७-२८-२५-२३-२४ के । को.नं०१८ के ३०भंग जानना २८-२४-२२ के हरेक भंग (३) मनुध्य गति में सारे भंग १ भंग में मे पर्याप्तत शेष १ २६-२७-२८-२५-३-२४ को००१८ देखो। को० नं०१८ | कूज्ञान पटाकर २६-२७- | के मंग को० नं०१८ के! २३-२१ के भंग जानना ३१-२६-३०.२७-२५.२६ । (४) देवगनि में । सारे भंग १मंग के हरेक भंग में से ऊपर के | २५-२३-२-२३.२२-२० को नं०१९ देखो| को.नं.१६ समान शेष २ कुमान पटा के भग कोन १ के । कर २६-२७-२८-२५-२३ ६-२४-२६-२४-२३-२१ २४ के भंग जानना के हरेक भंग में से । (४) देवत्ति में । सारे भंग । १ भंग । पर्याप्तवत् शेष १ कुज्ञान । -३-२१-२२-२५-२३ २४.को.नं. १६ देखो को. नं०१६ घटाकर २५-२२-२५-२३-. २२-२०-२१ के मंग का० । | २२.२० के भंग जानना नं०१६ के २५-२३-२४- | २७-२५-२६-२४-२२-२३ के हरेक भंग में मे ऊपर | के समान शेष २ कुजान। घटाकर २३-२१-२२-२५- ! २३-२४-२२-२०-२१ के । भग जानना देखो Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० " ३२ ३३ ३४ ( ४२७ ) सूचना:- (१) कुमति - कुश्रुत इन दोनों ज्ञानों को मिश्र गुण स्थान में मिश्र संज्ञा हो जाती है । सूचना:- ( २ ) इन दोनों ज्ञानों को मिश्र गुण स्थान में मिश्र संज्ञा हो जाती है। धयाना- को० नं० १६ से ३४ देखो । बघ प्रकृतियाँ- १ले २रे ३रे गु० में क्रम से ११७-१०१-७४ प्र० का बंध जानना | को० नं० २६ देखो | उदम प्रकृतियां," -- - " 1 " सत्व प्रकृतिष - 17 " संस्था धनन्दानन्त जानना । क्षेत्र - सर्वलोक जानना स्पर्शन– सर्वलोक । काल- नाना बीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा सारे कुज्ञानी तंमुहूर्त से देशोन् अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक जाति (योनि) कुल 21 ११७-१११-१०० प्र० का उदय जानना | को० नं० २६ देखो । १४०-१४५ १४५ प्र० का सत्य जानना | को० नं० २६ देखी । जानना। अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं। एक जीव की पेक्षा मादि कुज्ञामी अतंमुहूर्त से देशोन १३२ सागर काल तक उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि ज्ञानी बनता रहे। १-८४ लाख योनि जानना । ११६|| लाख कोटिकुल जानना । Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक २०५६ कुअवधि ज्ञान विभंग ज्ञान) में चौतीस स्थान दर्शन of स्थान | सामान्य । पर्याप्त अपर्याश मालाप नाना जावों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा नाना समय में एक जीव की अपेक्षा एक समय में - ! सारे गुण स्थान १ गुरण स्थान १-२-३ मुग० जानना । मिथ्यात्व, सासादन, मिथ ये ३ मुग. चारों मनियों में जानना सभी पंचेन्द्रिय पर्याप्त "चारों गतियों में जानना २ जोवसमास १ संजी पंचम्तिय गर्याप्त ३ पर्याप्ति , १ गुण जानना सुचना-यहां पर | अपर्याप्त अवस्था नहीं होना है चिभंग ज्ञान में करण नहीं होता 2 भंग देखो का न.१ मे १६ देतो १ भंग दो-नं. १६ मे नं.१ला चारों गलियों में हरेव में ६का भग को नं. १६ मे १६ देखो कान०१ देखा भंग को न.१ मे १६ देशो के नं.१६ से देखा वारों वर्गों में हरेक में १० का भंग को भ०१६ मे १ देखो को नं १ देखा। चारों गलियों में हरेक में ४ का भग कोनं. १६ मे १६ देखो भंग को० नं. १६ से १६ देखा को नं० १६ मे १६ देखा| ६ गनि को नं १ देखी बागं गति जानना को. नं०१६ मे १६ तखा गनि १ गान | कोल न. १ १६ देयो की नं. १६१६ देना जानि जानि को० न०१६म १६ देखा' को नं. १ मे १६सा. ७न्द्रिय जाति १ पंचेन्द्रिय जाति जानना रागें गतियों म हरेक में १ मंजी पंचेन्द्रिय जानना को 10:६ मे १९ देखो Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२६ ) कोष्टक नं०५६ चौतीस स्थान दर्शन कुअवधि ज्ञान (विभंग ज्ञान) में - - - - -.-- काय घराकाय, चार्ग मनियों में हरेक में १ सय जानना की.नं.१६ से देखो . १ भग नं. १६ दखी को १योग न देखो । योग मनोयोग ४, बचनयोग, प्रो० काययोग, व० कायबाम १, ये (१०) जानना १० वेद को न०१ देखो चारों नियों में हरेक में का भंग वोनं १६ से १६ देखो | को० नं०१५ देखो को न १६ देखो को० नं. १७-१८ देखो को नं०१७-१८ देखो (2) नरक गान में १नमक वेद जानना को० नं० १६ देखो (१) लियंच-मनुष्यगति में-हरेक में ३-२ के भंग को० नं० १३-१५ दन्तो (1) देवगति में २-१ के भंग कोन. १६ देखो २५ (१) नरक-अनुष्य-देवगति में हरेक में कोनं० ५८ के समान जानना (२) सियंच गति में २५-२५-२१-२४-०२० के भंग को नं. १५ देखो | सारे भंग | को० न०१६ देखो को नं० १६ देखो । ११पाय २५ को.नं.१ देखी । सारे अंग १ भंग को० नं. ५ के समान । कोनं.५८ दंलो | मारे भंग । को० नं. १७ देखो कोनं-१७ देखो ! कुअवधि शान (विभग) जान १३ संयम चारों गतियों में १ कुअवधि (विभंग) जान जानना चारों गनियों में हरेक में । १ अगंयम Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५६ कुअवधि ज्ञान (विभंग जान में) %3 १४ दर्शन को० नं०१५ देखो । १५ लेश्या को० नं०१ देखो । १ असंयम जानना को० नं. १६ मे १६ देखो १ भंग १दन चारों गनियों में हरेक में २-३ के भंग को नं० १६ मे १६ देखो को नं० १६ गे ११ देखी । को.नं. १६ मे १६ देखो (१) नरक गति में को० नं०१५ देबो को नं १६ देखो को०० १६ देखो (२) तिर्यंच गति में | को० नं. १७ देखो को० नं०१७ देखी सारे भंग | का००१८ देखो लेचा को००१८ देखो को नं०१७ देखो (३) मतृप्य गति में 5- के भंग को नं०१८ देखो (४) देवत्ति में १-३-१ के भंग को० नं०११ देखो लख्या को नं. ११ देखो । को० नं. १६ देवो १६ भव्यत्व १ भंग कान १६ मे १६ देखो को १भवम्बा १ मे १६ देखो भव्य, मभव्य चारों गलियों में हरेक में २-१ के भंग को० नं०१६ में १६ देखो १७ सम्यक्त्व मिथ्यात्व, मासादन, मिथ । सारे भंग सम्यक्त्य को नं. १६ १६ देखो को ०१६ से १६ देखो १८ संजी चारों गतियों में हरेक में १-१-१ के भंग कोल नं०१६ मे १६ देखो चारों गनियों में हरेक में १ मंज्ञो जानना को नं. १६ मे १६ देखो मंजी । को० न० १६ १६ देखा को नं० १६ मे १६ देखो Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतोस स्थान दर्शन १२ श्राहारक २० उपयोग जानोपयोग १, दर्शनोपयोग ३ २१ व्यान १ आहारक आर्त ध्यान ४, रौद्र ध्यान ४, आशा विचय धर्म ध्यान थे (६) २२ मात्रव ५.२ प्रा० मिश्रकाययोग १. आहारक काययोग १. यो मिश्रकामयोग १. दे० मिश्रकाययोग १. कार्मारण काययोग १ ये घटाकर (५२) चारों गतियों में हरेक में १ आहारक जानना को० नं० १६ से १९ देख Y चारों गतियों में हरेक में ३-४ के मंग को० नं० १६ से १६ के हरेक हरेक भंग में में कुमति कुभूत बटारेकम ३ ६ चारों गतियों में हरेक में ८- के मंग को० नं० १६ से १६ देखो ५२ ( ४३१ ) कोष्टक न० ५६ (१) नरक गति में ४६०४४० के संग [को० नं० १६ देखी (२) तियेच गति में मंग में से ५-६ २ कुजान जानना ५१-४६-४२-५०-४५-४१ के मंग कोल्नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में ५१-४६-४२-५०-४५-४१ के मंग को० न० १८ देखो (४) देवगति में ५०-४५-४१-४६-४४-४० के मंग को० नं०] १६ देखा १ भंग को० नं० १६ से १६ देखी | कानं सारे भंग को० नं०] १६ देखो सारे भंग को० नं० १७ देखो कुधि ज्ञान (विभंग) ज्ञान में ६-७-६ सारे भंग को० नं० १८ देखो सारे भंग को० नं० १६ देखो • उपयोग सारे मंग १ प्यान को० नं० १६ से १६ देखी को० नं० १६ से १२ देख ५. J १३ मे १६ देखो १ मंग को० नं०] १६ देखी मंग को० नं० १७ देखो ९ भग को० नं०] १८ देखो १ भंग को० नं० २६ देखो Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४२ ) कोष्टक नं०५६ चौंतीस स्थान दर्शन कुअवधि ज्ञान (विभंग ज्ञान) में २३ भाद कोनं०५८ देखो कोर नं. १६ देखो मारे भंग १ मंग कोनं०१७ देखो मारे भंग () नरक गति में | को० नं०१६ देखो २४-२२-२३ के मंग को० नं. १६ के २६. २४.२५ के हरेक मंग में मे कुमति-श्रत ये २ कुजान घटाकर २४-२२-२३ के भंग जानना । (२) नियंच गति में २६-२७-२८-२५-२३-२४ के भंग को नं.१७ । को गं०१३ देखी के ३१-२६-३०-२७-२५-२६ के हरेक भंग में । से ऊपर के समान २ कृज्ञान घटाकर २६-२७ २८-२५-२३-२४ के भंग जानना (२) मनुष्य गति में सारे मंग २६-२७-२८-२५-२३-२४ के मंग को० न०१८ कोनं०१-देनी के ३१-२६-३..२७-२५-२६ के हरेक भंग में में ऊपर के ममान : कुज्ञान घटाकर २६-२७- | २८.२.२.२४ के भंग जानना (1) देव गति में 212107-२५-२३-२४-२२-२०-२१ के भंग को न०१६ दना को० नं. १६ के २५-२३२४.२३-२५-२६- । २-२२-२३ के हरेज भंग में में ऊपर के। ममान : जान पटाकर २५-२१-२६.२५-२३२४-२२-१०-२१ के भंग जानना %3 १ भन को नं०१८ देखो । सारे भंग ! भंग को नं०१६ रखो Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-को० नं १६ मे ३४ देखी। अंघ प्रकृतिया-१ले २२ ३रे गुण में कम से ११-१०१-१४ प्रकृति का बन्ध जानना, को० नं० २६ देखो। सक्ष्य प्रकृतियो-" " " " ११७-१११-१०० प्रकृति का उदय जानना, " " " प नि " "" " E-H-४० एकति का सखजानना. " " " संस्था-असंख्यात जानना । क्षेत्र- लोक का प्रसंख्यात जानना। ___ स्पर्शन–नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जानना । एक जीव की प्रपेशा लोक का प्रसंख्यातवां माग मारणांतिक समुदधात की अपेक्षा त्रसनामी की अपेक्षा जानना और 'राजु १६वें स्वर्ग का देव ३रे नरक तफ जाने की अपेक्षा जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव का अपेक्षा एक समय से ३३ सागर तक ७वें नरक की अपेक्षा आनना। प्रतर-नाना बीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुस संस्था पुगत परान कामक कुपवधि शान प्राप्त न कर सके। बालि (पोनि-२६ लाख योनि जानना । (विगत को नं० २६ देखो) कुल-१६॥ लाल कोटिकुल जानना । Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३४ ) कोष्टक नं.१० मति-श्रत ज्ञान में चौतीस स्थान दर्शन wo | स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त । र जीव के नाना १जीब के एक नाना जीवों की अपेक्षा । समय में समय में | एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में नाना जीवों की अपेक्षा समय में १ गुरण स्थान सारे मुरण सारे गुण १गुरण ४ से१२ गुणाः । ४ ने १२नक के मुगण अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान, (१) नरक-तियंच-देवगति पर्याप्तवन जानना पवित् । (१) नरक गनि में के सारे गुण के मुग में रो में ४था गुगा जामना ४था गुण जानना कोई १ गुण नियंच गनि म भोग। (२) निर्वच गति में भूमि में ४घा गुणा ४था श्वां गुण २) मनुष्य गति में भोगभूमि में ४या एका गत ४ या पुरण. भोगभूमि में ३) मनुन्य गति में ४था गुगा - जानना ४से १२ गुण भोगभूमि में ४था मुग्प देवगति गति में ४था गुग्ग. 1 १ समास | गमाग नपाम २ जोव समास २ १ समास को० नं०१५ (१) नरक-मनृश्य-देवगति! को.नं. १६-१८- की नं०१६. संज्ञी पं० पर्याप्त अप. चारों गलियों में हरेक में कोनं १६ मे १ से १६ देशो में दरक में १ संज्ञो पं० पर्याप्त जानना १६ देखा । १ मंत्री गनेन्द्रिय ! को. नं.१६ से १६ प्राति (२) निन गान में मनाम १ समास मांगभुमि को प्रपत्रा को नं.१७ दग्दो को.नं. १७ १ मंजी पं. अपर्याप्न मो जानना । को००७ दवा दखा Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६० मति धुत ज्ञान में ३ पम प्ति को न०१ देखो। । १ भंग देखो को० नं. १ देखो १ भंग भंग | चारों गतियों में हरक में । को नं.१६ से | कोन०१६ . (१) नरक-मनुष्य-देवगतिको नं०१५-१८. | को.नं. १६. ६ का भंग-को० नं. १६ देखो में १६ देखो । म हरेक में । १६ देखो १८-१६ देखो १६ से १९ देतो । ३ का भंग-को.नं ! १६-१८-१९ देखो (२) नियंच गति में १ भंग भौगभूमि की मरेना को नं. १७ देखो | को नं०१७ : ३ का भंग जानना को नं. १७ देखो सन्धि रूप ६ का भंग | भी होता है । १ भंग भंग चारों गनियों में हरेक में कोलन०१६ से ! नो० नं. १६ (१) नरक-मनुप्य-देवगति को० नं०१६-१८- | को० नं०१६. १० का भंग-को० नं० | १६ देखो मे १६ देस्रो । म हरेक में १६ देखो १८-१९ देखो १६ से १६ देखो ७का मंग जानना ! को नं०१६-१०-१६ देखो (0) निगंच गति में १ भंग । १भंग भोगभूमि की अपेक्षा को नं०१७ देखो | कोनं० १७ का भंग जानना । कोन०१७ दलो । १ भंग भंग ४ १ भंग 111) नरक-देवमति में हरेक में | को० नं०१५-१६ । को न०१६- (१) नरक-देवनि में | कोन०१६-१६ को.नं.१६४ का भंग-कीनं०१६- देखो । ११ देवो हरेक में ४ का भंग । देखो । १९ देखो १६ देखो को० नं०१५-१६ देखो । (२) तिर्यच गति में १ मंग । १ भंग (२) तिर्यच गति में । १ भंग भंग ४-४ के मंग को नं०१७ देखो' को.नं.१७ केंदल भोगभूमि की अपेक्षा को.न. १७ देखो को.२०१७ को.नं. १७ देखी | देखो | का भंग जानना । देखो । को.न. १७ देतो ५ नमा Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ६ गति चौतीस स्थान दर्शन को० नं० १ देखो काय २‍ १ ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति १ योग त्रसकाय १५ को० नं० २६ देखो 무 (३) मनुष्य गति में ४-३-२-१-१-०-४ के भंग को० नं० १८ देखो ४ चारों गति आनना को० नं० १६ से १९ देखो १ चारों गतियों में हरेक में १ पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १६ से १६ देखो ( ४१६ ) कोष्टक नं० ६० ११ श्री मिश्रकामयोग १, ६० मिकासगोग १. प्रा० मिश्रकाययोग १, कार्मारण काययोग १ ये ४ घटाकर (११) ४ सारे भंग को० नं० १८ देखो १ गति ५ १ मंग को० नं० १८ देखो १ गति १ १ को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से देखो १६ देखी चारों गतियों में हरेक में को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से देखो १ जसकाय जानना १६ देखो को० नं० १६ से १९ देखो १ भंग १ योग (३) मनुष्य गति में ४ ० ४ के भंग को० नं० १६ देखो ४ चारों गति जानना को० नं० १६ से १६ देखो १ ० मति श्रुत ज्ञान में ८ श्री काययोग है। ० काययोग १, ०मिकाय कार्मारण काययोग १ ये 6 योग जानना ६ ?, सारे संग नं. १८ देखो १ गति (१) नरक मनुष्य- देवगति को० नं०१६-१८ में हरेक मे १६ देखो १ (१) नरक- मनुष्य-देवगति को० नं० १६-१८ [को०नं० १६-१०० में हरेक में १६ देखी १६ देखो १ पंचेन्द्रिय जाति जानना (२) तिर्बच गति में केवल को० नं० १७ दलों को नं० १७ देखी भोगको अपेक्षा | १ पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १६ से १२ देखी ₹ C १ रंग को० नं० १५ देखो १ गति १ सकाय जानना (२) निर्मत्र गति से केवल को० नं १७ देखी को० नं० १७ देखो भोग भूमि की अपेक्षा १ सकाय जानना को० नं० १६ से १६ देखो १ भग [को० नं० १६-१८१६ देखो १ योग Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५८ मति-श्रुत ज्ञान में (शनरकदेव गति में देखो " का मंग को० नं०१६-१६ देखो (२) लियंच गति में १-६ के भंग को० न०१७ देखो (३) मनुष्य गति में । E-E-९-९ के भंग को० नं. १८ देखो - को.नं. १ देखो (2) नरक गति में १ का भंग को नं० १६ देखो (२) तिर्यंच गति में ३.२ के भंग का० नं. १७ देखो (1) मनुष्य गति में ३-३-३-१-३-३.२-१-३-२ के भन को.नं.१८ देखी (४) देवमति में २-१-१ के भंग को० न०१९ देखो भंग योग नरक-देव गति में | भंग योग को० नं. १६-१६ को नं०१६-१९ हरेक में को.नं. १६-१६ कोन०१६-१६ देखो - के भंग देखो देखो | कोर नं०१६-१ देखो । १भंग योग (२ तिथंच गति में १ भंग । १योग को० नं. १७ देखो कोनं. १७ देखो केवल भोग भूमि की अपेक्षा को नं.१७ देखो को२०१७ देखो १-२ केभंग जानना । सारे भंग १ योग कोनं १७ देखो ! कोनं०१६ देखो कोम०१५देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग . १ योग १-२-१-१-२ के भंगको नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो कोनं०१६ देखो मंग वेद को.नं.१६ देखो को नं. १६ देखो पुरुष-नमक वेद जानन को नं० १६ दंसो कोन०१६ देखो (१) नरक गति में १का मंग भंग १वेद को नं. ६ देखो को.नं. १७ देखो कोन०१७ देखो (२) तिर्यंच गति में केवल १ भंग । वेद भोग भूमि की अपेक्षा को० नं०१७ देखो को०नं.१७ देखो । सारे भंग १ वेद १ पुरुष वेद जानना को नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो को.नं. १७ देखो । | (३) मनुष्य गति में बारे ग १.बेद | १-१-1 के भंग को.नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो सारे भंग वे द को.नं.१८ देखो कोनं १६ देखो कोनं. १६ देखो (४) देवगति में - . सारे भंग १वेद -१ के मंग को० न०१६ देसो कोनं.१५ देखो को.नं. ११ देखो सरे भंग १ भंग | २१ | सारे भंगभग .२०१६ रेसो कोनं०१६लो (१) नरक गति में कोनं. ६ देसो कोन०१६ देखो १६का भंग | को.नं.१६ देखा । ११ कवाय अनन्तानुबन्धी क. ४ । (१) नरक गति में पटाकर (२१) १६ का मंग कान देखा Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (Y?-) कोष्टक नम्बर ६० मति-कुश्रुत ज्ञान में देखो । (२) तिथंच गनि में मारे भंग भंग (२) तिर्यच गनि में तयचगान मारे भंग १ भंग २१-१७२० के भंग को० नं०१७ देखो वो नं.1 मोगभूमि की सजा को नं १७ देखो | को नं.१७ को नं०१७ देखो देखो ११ का अंग को. नं. (३ मनुष्य गति में सारे भंग । १ भंग १७ देखो २६.७-१३-११-१३-७- ० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (1) मनुष्य गति में सारे मंग । १ भंग ६-५-४-३-२-१-१-०-२० १६-११-१८ के भंग कोनं०१८ देखो को.नं०१८ देखो के अंग को मं० १% के को नं. १८ देखो . रामान जानना (४) दवगति में सारे भंग १ मंग (४ देवगति में सारे भंग १ भंग | | १६-१६.१६ के मंग को.नं. १६ देखो को०नं०१६ देखो २०-१४-१६ के मंग को० नं १६ देखो को नं. १६ देवा को नं. १६ देखो को.नं. १६ देखो १२ जान मनि-यत ज्ञानों में से 'चारों गलियों में हरेक में चारों मालियों में हरेक में जिसका विचार करना दोनों में मे कोई एक शान पर्याप्तरत जानना हो वह एक गान विसका विचार करना हो जानना वह १ ज्ञान जानना १५ सयम १ मंग । १ सयम १ भंन । १ मंयम को० नं० २६ देखो | मरा-देवगनि में हरेक में | को.न. १६. . कोनं०१६- पसंयम, सामायिक १सयम जानना १६ देखो १९ देखो | छेदोपस्थापना ये (:) को० न०१६-१३ देखो | (१) नरक-देवगति में को० नं. १६ | को.नं०१६(२) नियंच गति में मंग सं यम । हरेक में १६ दखो १६ देखो को० नं०१७ देखो कोनं. १७ देखो १ अमयम जानना को.नं.१७ देखो को० न०१५-१देखो। (३) मनग्य गति में । सारे भंग १मयम (२) तिर्यंच गति में मंग १संयम .२.२-१-१-१ के को० नं.१८ देखो को१५ देखो भोपभूमि की अपेक्षा को.नं.१७ देखो कोन०१७ पक्षा मंग को १८ देखो। धगबग जानना । को नं0 13 देशो (३ मनुष्यगति में मारे भंग १ सयम १-२-१ के भगको १८ देखो कोनं०१८ देखो कोनं०१८ देग्यो १-१-१ केभंग Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६० मति-थत ज्ञान में भंग १ दर्शन को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देखा (१) नरक गति में : भंग १ भग १दर्शन को मं० १६ देखो को नं १६ देखो १४ दर्शन को० नं०१६ देखो। (१) नरक गति में ३का भंग कोनदेखो (२) नियं च गति में ३-३ केभंग को नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में -३ -३ के भंग को.नं०१८ देखो (४) देवगति में ३ का मग को० नं० १६ देखो १५ लेश्या वा ना देखो ६ । (१) नग्क गनि में का भंग को न १६ देखो (२) निर्वच गति में ६-३.-३ के भम को. नं. १७ देखो (3) मनुष्य गति में ६-३-१-३ के भंग न०१८ देखो () देवगति में २-६-१-१ के भंग कोनं १ देखो १ भंग १ दर्शन !(२) तिर्पच गति में १ मंग १ दान को नं०१७ देखो को२०१७ देखो भोग भूमि की अपेक्षा की नं०१७ देखो फोनदेवो ३ का भंग | सारे भंग दर्शन । कोनं.१७ देखो को. नं०१८ देसो कोनं०१८ देखो (३) मनुष्य गति में सारे मंग दर्शन 2-2-के भंग को नं०१-देखो नं.१ देखो १मंग । १ दर्शन को नं० १८ देखो को० नं०१६ देखो को नं०१६ देखो (४) देवगति में १ भंग दर्शन २-३ केभंग कोन०१६ देखो को.नं.१६ देखो ' को नं. १६ देखो भंग १लेश्या १ मंग लेश्या ६ दलों (१) नरक गति में को० २०१६ देखो कोल्नं०१६ देखो ३वा भंग को० नं १६ देखो १ भंग १ लेश्या ।।२) तिर्यच गति में १ भंग १लेल्या को नं०१७ देखो कोन०१७ देवो भव भूमि की अपेक्षा को नं. १७ देखो को नं०१७ देखो १का मंग सारे भंग लेश्या को नं०१७ देखो को.नं. १८ देखो कोल्नं०१८ देखो (1) मनुष्य गति में मारे भंगलेल्या |६-३-१ के भंग को. न०१८ देखो बोन.१८ देखो भी लेश्या । को.नं. १ देखो को० नं०१६ देखो कोनं १६देखो (४) देवगति में । १ भंग १ नश्या ३-१-१के भंग को० नं० १६ देवी को.नं०१ देखो का० नं०१६ देखो ! Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६० मति-श्रुत ज्ञान में १६मध्यत्व १७ सम्यक्त्व उपणम, क्षामिक, क्षयोपशम ये (३) १ का नंग १भव्य १ भव्य १ भव्य ! १ भव्य चारों गतियों में हरेक में चार्गे चतियों में हरेक में १ भ.नही जानना १ भय्य ही जानना को.नं.१६ से १६ देखो कोनं.१६ से १६ देखो सारे मंग म म्यवाव | २ | मारे भंग १ सम्यक्त्व (1) नरक मति में को.नं. १६ देखो कीनं०३६ देखो उपशाम घटाकर (२) . ३२ केभंग (१) नरक गति में को० नं. १६ देसो कोनं०१६ देखो को० नं०१६ देखो (२) तिर्येच गति में १भंग १ सम्यक्त्व | को० नं०१६ देखो २-३ के भंग कोन. १७ देखो को न०१७ देखो (२) तिथंच गलि में मंग सिम्यक्त्व को नं०१७ देखो भोग भूमि की अपेक्षा को नं०१७ देखो को न०१७ देखो (2) मनुष्य गति में | सारे मंग , १ सम्यक्त्व | २का भंग ३-३-२-२-२-१-३ के भंग को नं. १८ देखो कोन०१८ देखो को० नं०१७ देखो सारे भंग । १ सम्यक्त्व को० नं०१८ देखो १३) मनुष्य गति में कोनं०१५ देखो को नं। १५ देखो (४) देवगति में सारे मंग सिम्यक्त्व | २-२-२ के भंग २-३-२ के भंग कोनं०१६ देखो को नं०१६ देखो को० नं०१८ देखो को.नं. १९ देखो (४) देवगति में । सारे भंग १सम्यक्त्व ३का मंग को.नं.१६ देखो कोनं० १९ देखो कोल्नं०१६ देखो १८ संजी चारों गनियों में हरेक में एक नजी जानना कोनं० १६ से १६ देखो | को. नं० १६ से को.नं.१६ से १६ देखो | १६ देखो (१) नरक-मनुष्य-देव गति में हरेक में । संजी जानना (२) तियंच गदियों में भोग भूमि की अपेक्षा १मजी जानना १९ माहारक (१) नरक-देव गतियों में हरेक में को० नं०१६ मोर कोन०१६ मौर (१) नरफ-देव गति में । १६ देखो देखो -के भंग १भंग १ अवस्था को. नं. १६-१६ को नं० १६-१६ देखो Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६० मति-श्रु त ज्ञान में २० उपयोग ज्ञानोपयोग १ दर्शनोपयोग ३ १ माहारक जानना । को नं०१६-१६ देखो की.नं. १ और १३ (२) निर्यच गति में । १ पबस्था देखो भोगभूमि की अपेक्षा को नं०१७ देखो | को.नं.१३ तियंव मौर भनुम्य गतियों में हरेक में को० नं०१७-१८ को नं. १७- (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ अवस्था ११ के भंग-का० नं. देखो १८ देखो । १-१-१-१-१ के भंग | कोन०१८ देखो को नं १५ १५-१८ देतो 'को० नं०१८ देखो ४! (1) नरक गनि में १ उपयोग (1) नरकगति में १ भंग १ उपयोग । ४ का भंग- कोनं १६ ४ का भंग जानता ४ के भंगों में ' ४ का मंग-गोर नं.१६ पर्याप्तवत् जानना | पर्याप्तवत् के के भग में से मति-श्रुत से कोई१ के ६ के भंगों में से | जानना जानों में मे जिसका विचार उपयोग जानना पर्याप्तवत् शेष २ जान करो यो १ छोड़कर शेष घटाकर ४ का भंग जान घटाकर ४ के भय | । जानना जानना (२)नियंच गनि में । १ भंग १ उपयोग (२) नियंच गति में १मंग १ उपयोग । भोगभूमि की अपेक्षा | ४ का भंग जानना। ४ के भंग 1-४ के भंग ऊपर के । ४-४ के भंगों में ४-४ के अंगों में | ४ का भंग-ऊपर के में में कोई नरकगति के समान में कोई १ भंग से कोई १ उपयोग नरक गनि के समान उपयोग जानना जानना | जानना । जानना (३) मनृत्य गति में सारं भंग १ उपयोग !() मनग्य गति में सारे भंग | १उपयोग ४- -४.५-४ के भंग-को ४-५-४-५-1 के ४-५-४-५-४ के ४-४-५ के भंग- कोनं 1-1-4 के मंग '४-४-४के भंगों नं०१८ के ६-६-७-६ । सारे भंग जानना भगों मेंसे कोई 1 के ६-६-६-६ के | जानमा में में कोई १ के हरेक भंग में से ऊपर १ उपयोग । हरेक भंग में से पर्याप्तवन उपयोम जानना के समान क्षेत्र २ ज्ञान অনন্য । शेष २वान घटाकर घटाकर ४-५-४.५.-४ के के भंग जानना भंग जानना (४) देवगति में १ भंग १ उपयोग (४) देवगति में १ उपयोग |४-१के भंग-ऊपर के ४-४ में में कोई ४-४ के भंग ४ का भंग ऊपर के नरक का भंग जानना | ४के भंग में से नरक गत के समान |१ भंग जानना गनि के समान जानना कोई १ उपयोग जानना उपयोग जानना । जानना Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६० मति-श्रु त ज्ञान में देखो २१ ध्यान १४ सारं भंग । १ ध्यान सारे भंग सूक्ष्म किया प्रति पानि. (१) नरक-देव गति में कोल नं०१५-१६को नं। १६-१६ (१) नरक-देवगनि में कोन १५-१६ को नं०१६-१६ न्युपरत क्रिया दि. 1 हाक में हरेक में देखो ये २ पटाकर (१४) । ६का भंग ६ का भग को० नं १६-१६ देखा को नं.१६-१६ देखो। (२) तिरंच मति में (२) तियंच गति में १ भग १ध्यान १०-११-१० के भग को० न०१७ देखो कोलखोग गुम ना१ को फोनं १७ देखो को० नं०१७ देखो का मंग (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ ध्यान को न १७ देसी कोनं० १८ देवो कोन०१८ देखो (मनप्य गति में सारे भंग १ म्यान के मंग 1-80 के भगवान १५ देखो कोन १८ देखो कोनं १८ देखो कोल नं। १८ देखो २२ मानव सारे भंग मारे भंग अनन्तानुनन्धी कषाय श्रो० मिथकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मनोयोग ४, वचन योग ४ पर्याहवत जानना पर्याप्तवत् जानना मिथ्यात्व ५, ये बैल मिश्रकाययोग १, | अंगों में में कोई के नारे भंगों में काययोग १. घटाकर (४८) जानना प्रा. मिथकाययोग १. सारे भग जानना से काई १ मग वं. काययोग, कारिण काययोग १ जानना प्रा० काययोग ? ये ४ घटाकर (54) । ये ११ पाकर ।३७) (१) नरक गति में सारे भंग १ भग (१) नरक गति मे सार भगभग ४० का भंग को.नं. १६ देखी को नं०१६ देखी ३ का भंग कोन. १६ देशों को नं०१६ देखो को नं. १: देखो को ना देखी (२) तिर्यच गति में मारे मंग १ भंग (२) तिथंच गति में | मारे भंग १ मंग ४२-३५-४१ के मंग को दग्ना कोनं०१ देखी भो। भूमि की अपेक्षा कोनं १७ देशों कोनं १७ देखो कान०१७दंगो ..का भंग (3) मनुस्य मनि मे सारे भग १ भंगची ४२-३४-२२-२०-२२-१६ को नं०१५दनो कान दगी । मनुष्य गति में । सारे भंग । मंग २३-१२-३: भगकोन१%देशे कोनं०१८ देखो १०-६-११ के मंग कन.१ दखी को० नं.१८के समान जानना Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ६० मति-श्रुत ज्ञान में . () देवगति में मारे मंग १ मंग (४) देव यत्ति में सारे भंग मंग ४१-४०-४० के भंग को० नं.१६ देखो | कोन०१४ | ३३.३३-३३ के मंगको . नं०१६ देखो , कोन०१६ को० नं.१६ देखो देखो को० नं०१६देयो देखो सारे मंगभंग ३ सारे भंग उपगम सम्यक्त्व १, (१) नरक गति में को नं. १६ देखो | को नं. १६ उपशम चरित्र १, उपशम चारित्र २६-२५ के भंग को. नं. देखो । शायिक चरित्र मायिक सम्यक्त्व १, | १६ के २८-२७ के हरेक मयमासयम १, स्त्रीलिंग क्षायिक चारित्र, । अंग में नासिर १. ये ४ घटाकर ३३ मनि-श्रत ज्ञान में से में से जिसका विचार करो भाव जनना जिसका विचार करो, प्रो १ज्ञान छोड़कर (१) मरक गति में सारे मंग मन । १ मंग भो १ ज्ञान, दर्शन २, । दोष २ ज्ञान घटाकर २६ | २५ का भंग कोन कोन १६ देखो ! को.नं०१६ लब्धि ५ वेदक स०१, २५ के भंग जानना १६ के २७ के मंग में ये देखो संयमासंयम १, सराग- (२) तिर्यच गति में सारे भंग १ भंग पर्याप्तबन शेष २ ज्ञान संयम १, गति ४, ३७-२७-२७ के भंग को० को० नं. १७ देखो को नं०१७ घटाकर २५ का भंग कपाय ४, लिंग, । नं० १७ के २-२६-२६ दलो जानना लेश्या ६, प्रमंयम १, के हरेक मंग में से पर (२) तिर्यंच गति में सारे मंग भं ग अज्ञान १, प्रमिजन्व १, के समान शेष ३ जान भोगभूमि की अपेक्षा को० नं.१७ देखो | कोनं०१७ जीवन्त १, भव्यत्व १, घटाकर ३०-२७-२७ के २३ का भंग को० नं०१७ के ये ३७ भाव जानना मंग जानना २५ के मंग में से पर्याप्न(३) माय गति में सारे भंग १ मंग । चत दोष २ ज्ञान घटाकर ३१-२८ के भंग-को नं० को नं०१८ दलो को० नं०१८ २३ का भंग जानना १८ के ३३-३० के हरेक देखो (३) मनुष्य गति में सारे मंग भं ग भंग मेसेपर के समान २८.२५-२३ के मंग-को को नं०१८ देखो | को नं. १८ शेष २ जान घटाचार ३१ नं०१८के ३०-३७-२५ । २८ के मंग जानना के हरेक भंग में से २८ का मंग-को० नं. पर्यासका शेप २ शान १८ के ३१ के मंग में से पटाकर 2-२५-२३ के ऊपर के समान शेख ३ भंग जानना जान घटाकर २८ का भंग जानना | देखो । देखो Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन २ २५ का भंग-को० नं० १५ के २७ के मंग में स ऊपर के समान शेष २ जान घटाकर २५ का भग जानना २८-२६-२६-२५-२४-२३२२-२१ २० २०१६-१७ के भंग को० नं० १५ के ३१-२६-२६-२६-२७-२६२५-२४-२३-२६-२१-२० के हरेक भंग में से ऊपर के समान शेष ३ ज्ञान घटाकर २८-२६-२६-२५२४-२३-२२-२१-२०-२० १६-१७ के भंग जानना २७ का मंग-को० नं० १८ | के २५ के मंग में से ऊपर के समान शेष २ जान घटाकर २७ का मंग जानना (४) देवमति में २४-२७-२४-०३ के भंगको० नं० १६ के २६-२६२६-२५ हरेक भंग में से ऊपर के समान शेप २ ज्ञान घटाकर २४-२७-२४२३ के भग जानना ( ४४४ ) कोष्टक नं० ६० सारे भंग ० ० १६ देखी | १ भंग को० नं० १९ देखो ६ (४) देवर्गात में २६-२४-२४ के मगको० नं० १६ के २८२६-२६ के हरेक भंग में पर्याश्वत शेष २ ज्ञान घटाकर २६-२४-२४ के भग जानना मतिश्रुत ज्ञान में सारे भंम को० नं० १६ देखो ८ १ मंग को० नं० १६ देखा : Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३२ 3: ३८ ( ४४५ ) वाहनाको० नं० १६ से १६ देखी बंध प्रकृतियां – ७७ ६७-६३-५६-५८-२२-१७-१-१ प्रकृतियों का बंध क्रम से ४ से १२ गुण स्थानों में जानना | को० नं० २६ देखो । उदय प्रकृतियां १०४-६७ ६१-७६-७२ - ६६-६०-५६-५७ प्र० का उदय क्रम से ४ से १२ गुण स्थानों में जानना | को० नं० २६ देखो। सदर प्रकृतियां - १४६ - १४७० क्रम से ४ ५वे गुण० में, १४६ - १३६ ० ६वे गुर० में १४६ - १३६ प्र० ७वे गुरा में १४२-१३६ - १३८ до वे गुण ० में, १४२-१३१-१३८ ० ६ गुण० में १४२-१३९-१०२ प्र० १० गु० में १४०-१३ ० ११वे गुण • में. १९०१ प्र० का सत्ता १२वे गु० में जानना | को० नं० २६ देखो । संख्या-प्रपात जानना । क्षेत्र लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन – लोक का प्रसंख्यातवां भाग ८ राजु जानना | को० नं० २६ देवो । काल --- नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । अन्तर—माना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं जाति (योनि) - २६ लाख जानना। इसका विगत को० नं० २६ में देखो । कुल - २०६।। लाख कोटिकुल जानना, इसका विगत को० नं० २६ में देखो । एक जीव की अपेक्षा श्रन्तं मुहर्त ने ६६ सागर और ४ कोटिपूर्व तक जानना एक जीव की पेक्षा अन्र्तमुहूर्त से देशान श्र पुद्गल परावर्तन काल तक सम्यक्त्वी नहीं बने Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६१ अवधि ज्ञान में क्र० स्थान | मागम पालाप पर्या अपर्याप्त | एक जीव के नाना एक जीन के एक। ।१जीव के नाना एक जीव के नानाजी प्रसासमा में | समय में । नाना जोवों को प्रोत्रा समय में एक समय में १ गृगा म्यान । १२ क के गुमा ___मारे गुगा स्थान | गुगा० | मार नगग गु गा० को नं। ६. के समान को नं०१० देग्दो कोन ६ देखो -7% गति पटाकर कोलन १० देखो [को०२०५० देखो जानना कान: 5 देखी जर में २जीव गणग गंजी पं.-पर्या -प्रपयांमः बा-दं देखो को नं. १० देखो कोल्न०६. देखो को नं०० देखो वो देखो कोनं०६० देखो 2 पनि । नं. १ देखा का० नं००देखो को नं. १ देखा ५ मंज्ञा ४ को.नं १ देखो | ६ गनि कोनं १ देखो कोन. ६० देतो को नं०६, देखो कोनं ६० देनो । १ भंग भंग भंग मंग को ०६० देखो कोनं०६७ देशो को. नं. देखा को नं०६० देखी कोनं ६० देखो | भंग भं ग भंग भंग कोन०६० देखो को०६० देखो का नं०६. देखोको नं. १० देखो कोल्नं०० देखो भंग १ भंग ४ भंग १ भंग को. नं. ६० देखो को०२६ देखो कोन-देनीकोन देखो कोनं०६० देखो | १ गति १गनि । मति गति को नं० ६० देखो कोनं० ६० देशों नरस गनि घटाकर ( तीनों में में कोई तीनों में में कोई सूचना- ४थे गुगग १ गति १ गति वर्ती प्रधिज्ञान मरकर नरक में नहीं जाना । । को.नं०१० देखो ७ इन्द्रिय जाति पंचन्द्रिय जानि काय धमकाय का नं०६०देखाको०नं०१०देखों को. २० दन्त्रीको ६० दंपो को नं०६.जो १ को नं०६० देयो को.नं.६.देखो. कान देखो को ना ६० देखो कोन.६.देखो को० नं. ६०दखा Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योग १० वेद को० नं० १ देखो ११ कषाय चौतीस स्थान दर्शन को० नं० १ देखो १२ ज्ञान २ २१ को० नं० ६० देखो १५ ९ अवधि ज्ञान जानना ३ । १६ भव्यत्व १३ संयम को० नं० २ देखो १४ दर्शन १७ सम्पवस्त्र ३ को० नं० १६ देखो १५ लेश्या को० नं० १ देखो १ भव्य १८ संज्ञी को० नं० ६० देखो १ संजी ३ ११ को० नं० ६० देखो ३ ०१० ६० देख २१ को० नं० ६० देखी १ चारों गतियों में हरेक में १ श्रभि जानना ७ को० नं० ६० देखो ३ को० नं० ६० देखो ६ को० नं० ६० देखो १ को० नं० [० देखो ३ को० नं० ६० देखो १ को० नं० ६० देखो 1 ४४७ कोष्टक नं० ६१ ६० देखो १ भग १ योग को० नं० ६० देखो को० नं० ६० देखां को० नं० ६० देखो १ मंग १ वेद २ ६०० ६० देखो | को० नं सारे मंग को० नं० ६० देखो को नं० ६० देखो स्त्री वेद घटाकर (२०) को० नं० ६० देवो ? ९ मंग १ ५ १ मंग को० नं० ६० देखो १ मग को० नं ६० देखो १ मंग को० नं० ६० देखो १ १ संयम को० नं० ६० दे १ दर्शन को० नं० ६० देखो १ लेश्या को० नं० ६० देखो 1 सारे भंग १ सम्यक्त्व को० नं० ६० देखो को०० ६० देखो १ २० नरक गति घटाकर शेष तीनों गतियों में हरेक मे १ज्ञान जानना सूचना पहले दरक की अपेक्षा अवधि ज्ञान होना चाहिये । ३ को० नं० ६० देखो ३ को० नं० ६० देखो को० नं० ६० देखो १ को० नं० ६० देखो १. को० नं० ६० देखो अवधि ज्ञान में 19 १ भंग को० नं० ६० देखो १ भंग को० नं० ६० देखी सारे भंग २० नं० ६ देखो १ मंग को० नं० ६० देखो १ मंग को० नं ६० देखी १ मंग को० नं० ६० देखो १ १ ५ १ योग को नं० ६० देवो १ वेद को० नं० ६० देखो १ भंग को० नं० ६० देखो २ १ सम्यतरव सारे मंग उपशम स० वटाकर (२) को० नं० ६० देखो को०नं० ६० देखो को० नं० ६० देखो १ संयम को० नं० ६० देखो १ दर्शन को० नं० ६ देखो १ लेक्ष्या को० नं० ६० देखो १ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं० ६. अवधि ज्ञान में कोन. ६० देखो को न देग्यो । ० रूपयोग नोपयोग , दर्शनोपयोग३, १ भंग १ अवस्था कोल्न ६. देखो . | भंग उपयोग १ उपयोग (१) नरक गति में 'Y का भंग जानना के भगों में ! (नरक गनि में वसपन जानना पर्यामवन जानना ४ का भंग भंग मे कोई १ उपयोग ४ का भग वो नं. १६ के ६ के : | जानना नो नं.१६ के के भंग में मे मति-धूत ये २ भंग में ने पर्याप्तवन २ जान घटाकर ४ का भंग | जान घराकर ! का भंग जानना जानन .(२) नियंच गति में । १भंग १ उपयोग नियंच गनिमें १ भंग १पयोग ४-४ के मंग ऊपर । ४-४ के भगों में गे ४.४ के मंगों भोग भूमि की अपेक्षा ४ का नंग जानना ४ के भंग में से के नरक गति के समान कोई १ भंग जानना में से कोई | ४ भंग ऊपर, के कोई १ उपयोग को नं. १७ के ६ के १ उपयोग नरक गति के समान | जानना भंग में से २ जाने जानना जानना घर कर ४-४ के मंग (२) मनुष्य गति में मारे भंग . उपयोग जानना १-४- के भंग -४-४के भंगों में ४-४४ के भंगों (२) मनुष्य गति में मारे भंग उपयोग को नं. १० के ६-६- से कोई १ भंग में से कोई ४.-५-४-५-४ के भंग ५-४-५-४ के मान! ४-५-४-५-४ के के हरेक भंग में में जानना १ उपयोग को० नं०१८ के 4-9- भंग जानना । सारे भंगों में मे पर्याप्तवत २ जान घटाकर जानना ६-७-६ के हरेक भंग में कोई १ उपयोग ४-४-के भंग जानना । से ऊपर के समान जान जानना (४) देवप्न में भंग १उपयोग घटाकर ४-५-४-२-४ के ४-४ भंग ऊपर के ४-४ चे भंगों में से ४-४ के मंगों में भंग जानना नाक गति के ममान कोई भंग जानना से कोई (४) देव गति में १ भंग । १ उपयोग | जानना १ उपयोग ४का भंग ४ का अंग जानना ४ के भंग में मे | जानना ऊपर के नरक गति के | कोई १ उपयोग। ममान जानना जानना Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - --- चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६१ अवधि ज्ञान में २१ ध्यान को नं. ६० दखो २२ मारब ४८ कोनं०६० देखो को० नं.६. देखो ४४ को नं०६. देखो मारे मंग ! ध्यान । को०० ६. देखो कोनं०६० देखो को.नं.६. देखो सारे भंग १ भंग ३७ को नं०६० देखो कोल्नं०६० देखो कोनं०६० देखो सा भंग ध्यान को. नं. ६. देखो को२०६० देखो सारे भंग । मंग को० नं०६.देखो को.नं०६० देखो । सारे भंग १ भंग ३३ सारे भंग को ५० ६० देखा (१) नरक गति में | १७का भंग १७ में से कोई | उपशम बारित्र १, पर्यावद पर्याप्तवत २६-२५ के भंग कोनं०१६ देखो' ? भंग मायिक चारित्र १, को० नं० १६ के - मंयमासंयम १, २७ के हरेक भंग में में |त्री निग १. महिनाममाम । ! ये ४ घटाकर (३३) घटाकर २६-२५ के भंग । (१) नरक गति में सारे भंग जानना २५ का मंग पर्याप्तवन पर्याप्तवत् | (तियंच गति में सारे भंग १ भंग को न०१६के २७ के । ३०-२७-२७ के भंग । १७-१७ के भंग १५-१७ के हरेक भंग में में पर्याप्तवत २ | को नं.१७ के १0- कोल्न १७ देखो में से कोई १ भंग ज्ञान घटावर २५ का २९..२९ के हरेक भंग में । मंग जानना गे ऊपर के समान मनि (२) तिर्वच गति में सारे भंग १ भंग मन मे ३ ज्ञान घटाकर । भोग भूमि को अपेक्षा १० का भंग १७ के भंग में से २०-२-२७ के मंग | २३ का भंग । पर्याप्तवन | कोई १ भंग जानना को० न०१७ के २५ के || पर्याप्तवत (३) मनुष्य गति में सारे भंग १मंग । मंग में में पर्याप्तवन २ ३१-२६ के मंग १७-१७-१७-१०-हरेक भंग में मे भन घटाकर २३ का को.नं. १० के ३३-१७-१-१६-१५- कोई अंग भंग जानना ३. के हरेक भंग में से १५-१७ के मंग : (३) मनुष्य भनि में । सारे भंग १ नंग मति-१त ये : ज्ञान को.नं. १८ देखो | ८-०५-२३ के भंग १-१६-१७ के भंग | हरेक भंग में से घटाकर ३१-२८ के भंग को २०१८के ३०- पर्याप्तवत् । कोई मंग जानना २७-०५ के हरेक मंग ' में से मनि-धन ये संज्ञान Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६१ अवधि ज्ञान में २८ का भग को० नं०१८ के ३१ में भंग में से मति घटाकर २८-२५-२३ श्रुत-मनः पर्यय जानने ३ के भंग जानना घटाकर २८ का भंग जानना (४) देवगति में सारे भंग भंग २५ का भंग को नं०१८ २६-२४-२४ के भंग १७-१५-१७ के भंग हरेक भंग में से के २७ भंग में ये मति को नं०१६ के २८- पर्याप्तवत कोई भंग थत ये २ जाम घटाकर २६-२६ के हरे भंग में २५ का भंग जामा रो पर्याप्तवन २ ज्ञान २५-२६-२६-२५-२४ घटाकर २६-२४.२० २३-०२०-२१.२०-२०-, फभंग जानना १६-१७ के भंग कोनं-१८के ३१-२६-. २६-२८-२७-२६-२५२४-२३-२३.२१-२० के हक भंग में में मतिथुन-मन: पर्यय ज्ञान ये ३ ज्ञान घटाकर २५-२६२६-२५-२४-२३-२२२१-२०-२०-१-१७ के भंग जानना २७ का भग कोनं १८ के २६. के भंग में से मात-श्रुत येनान घटाकर २७ का मंग जानना (.)दंघरति में सारे भंग २४-२७-२४-३ के भंग १-१-११-१३ हरेक मग में में। का नर के २६-२६- के मंगकोई भंग । २६-२५ के हरेक भंग में से को० नं. १६ देखो । कार के समान २ ज्ञान : घटाकर २४-२७-२४-३ के भंग जानना Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवदाना-को० नं०१६ से ११ देखो बंध प्रकृतियां-५०-६७-६३-५६-५८-२२-१७-१-१ को. नं. ४ मे १२ देखो। उदय प्रकृति-१०४-०७-१-७१-१२-६६-६०-५६-५७ को नं. ४ से १२ देखो। सत्व प्रतियो-१४८-१४७-१४६-१६-१४६-१३६-१४१-१४२-१३६-१४१-१४०-१३६-१३-१०२-१०१. को नं०४ से १२ देखो।। संख्या-असंख्याव जानना । क्षेत्र-लोन का पसंख्यातबा भाग जानना । स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां भाग ८ राज, ६ राजु इसका खुलासा को नं०२६ देखो। काल-नोना जीदों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से ६६ सागर और ४ कोरि पूर्व तक जानना । अन्तर-नाना जोत्रों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा मन्तमुहुर्त से मर्षपुद्गल परावर्तन काल तक अवधि ज्ञान न हो सके। जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । (को० नं०२६ देखो) कुल-20 लाख कोटिकुल जानना । को नं. २६ देखो ३३ ३४ Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४५२ । कोष्टक नं०६२ मनः पर्ययः ज्ञान में चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य पालाप पर्याप्त ' अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा _. -- - एक जीव के माना समय में एक जीव के एक समय में - मनुप्य गति में ये १२ गुरण जानना सारे गुण ज्यान ६ से १. गुण. १ गुण स्थान ६से १२ मे से कोई १ गुण सूचना- यहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है। १मुग स्थान ६ से १२ तक के मुहार २जीव समास मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त ३ पर्याप्ति को. नं०१ देख १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अबस्था जानना भंग का भन जानना मनुष्य गति में-६ का भंग को००१८ देखो १ भंग ६ का भंग जानना . ४प्राण कोनं १ देखो .भंग १० का भंग मनूष्ट गति में-१० का भग को नं०१८ देखो १भंग १० का मंग ५ मना को००१ देखो मारे भंग '४-३-२-१-१-० के भग १ भंग मारे भंगों में से कोई १ भंग ६ गति ७ इन्द्रिय जाति मनुप्य गति में ४-३-२-१-१-१ के भंग-को००१ देला १ मनुष्य गनि जानना मतृप्य गति में १ मंत्री पंचेन्द्रिय जाति जानना मनुष्य गति में.-१ त्रसकाय जानना १ योग मनोयोग ४, रचनयोग औ. काय योग ने (६) मनुष्य गतिम 16 के भग-कोल नं०१८ देखी सारे भंग योग E- भंग जानना E-के भंगों में कोई १ योग मारे भंग १-३-.-२-० के मंग, सारे मंगों में से कोई । १ वेद मानना को० न०१ देखो । ममृप्य गति में ३-१-३-३-२-२-० के भंग को०-०१८ दयों Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६२ मनः पयंय ज्ञान में सारे भंग । को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो ११ कषाय संज्वलन कषाय ४, हास्या दिनोकषाय ६, पुरुषवेद १ (११) १२ज्ञान मनुष्य गति में ११-११-११-७-६-५-४-३-२-१-१.. के को नं. १८ देखो ₹ मनः पर्यय ज्ञान जानना भंग १३संयम ४ सारे भंग १ संयम को २०१८ देखो | को० न०१८ देखो मनुष्य यत्ति में ३-२-३-२-१-१ के भंग को० नं० १८ देखो सामायिक १, छेदोपस्थापना १. यूक्ष्मसाप राय , यथास्यात १ ये() १४ दर्शन चक्षुदर्शन, चक्षुदर्शन, अवचि दर्शन में (३) १५ लेश्या मनुष्य गति में-३-३ के मंग को. नं०१८ देखो सारे भंग को न०१८ देखो सारे भंग को० नं. १८ देखो १दर्शन को० न०१८ देतो १लेन्या को न:१५ देखो शुभ वेश्या मनुष्य गति में-३-१ के भंग को नं०१८ देखो । १६ भव्यत्व मनुष्य गति में-१ भव्य जानना को० नं०१८ देखो सारे मंग १मभ्यरत्य को० न०१८ देखो | कोन.१- देखो मनुष्य गति में-३-२:३-२-१ के मंग को नं. १८ देखो मनुष्य गति में-१ मंजी जानना १७ सम्यक्त्व द्वितीयोमम सम्यस्व १, क्षामिक १, क्षयोपशम स. १. ३ जानना १३ मंत्री मकी १६ पाहारः ग्राहारक २. उपयोग ज्ञानोपयोग १. दर्शनोपयोग : ये (1) मनुष्य गति में-१ माहारक जान। मारे भय ४-४ के मंग जानना | मनुष्य गति में ४-४ के भंग- कोन०१० के ५-७ के भंगी में से मति-श्रत अवधि ये शान घटाकर उपयोग ४-४ के अंगों में से कोई । १ उपयोग जानना Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ६२ मनः पर्यय ज्ञान में । मनुरा गरि में । 9.... के भग-को. नं. सारे भग 5-1-2-१ केभंग जानना । ।४.. अंत में । । नेमाई १ व्यान १ भंग | कोर नं.१- देवो । । २१ ध्यान अनिष्ट संयोग, वेदनाबनिन निदानव मानध्यान ३, धर्मव्यान ४, । पृथक्त्ववित विचार | एकत्ववितके विचार ये ध्यान जानना २२ पासव ऊपर के योग कषाय १६ २३ भाव उपशम सम्यक्त्व | पगम चारित्र. आयिका सम्बक्त, दायिकचारित्र, मनः पर्यय । जान १, दर्गन , । नन्धि , मरागसंयम १,। क्षयोपशम गम्यकच । मप्य गति ?, गंज्वलन । कपाय ४. पुष्पग, शुभ लेश्या प्रजान ? | अमिहत्त्व ? नीवत्र १, भव्यद में जानना ना देखी । मनुष्य गति में सारे भंग २०-२-२ -१६.१५.४-:-:.११.१०- | कोन.१देखो १. के भंग-को- देखो | सार भग मनुण्य गति में | को: नं०१८ देखो २८-२८-२६-२९-२६-०४-२३-२२-... २०.२०-:-23 के भंग-को० नं. १८ । के 2.21-२९- ८-२५-२६-२५२४.२३.२३-२९- हरेन भंग में में मति-थत-मधि प्रान चे ३ ज्ञान घटाकर २८-२८-२९-०६-२५-०४.५३२०-२१-02-०-१-१७ के भग जानना Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ मुचना:-उपशम सभ्यक्त्व द्वितियोपशम अवस्था ही होती है। प्रथमोवाम अवस्था में मनः पर्षय ज्ञान नहीं होता। अवगाहना--३॥ हाथ से ५२५ धनुष तक जानना। बंध प्रतियो-६६-५६-५-२२-१३-५-१ को नं०६ से १२ देखो । उन्य प्रकृतियां-१ के उदय प्रकृनियों में मे मनः पय ज्ञान के उदय में स्त्री-वेद ननु सक वेदनाहाराविक २, इन उदय नहीं होना इनिये ये ४ घटाकर ७७ का अश्य जानना । ७५-६४-६०-५६-५७ को नं. ६ से १२ देखो। सत्त्व प्रकृतियां --१-१३६-१४.-१३१-१३८-१०२-१-१ को नं.६ से १२ देखो संख्या-नाना जीवों की अपेक्षा असंख्यात जानना । मधेणी वालों की संख्या ६ से १२ गुगा स्थान की संख्या के समान जानना। क्षेत्र-लोक का अमख्यातवां भाग जानना । मन-लोक का असंख्यातवा भाग जानना। ८ इन–नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा मन्तमुहूर्त से देशोन् पूर्वकोटि वर्ष तक क्षयोपशम सम्यक्त्व की अपेक्षा जानना। प्रतर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा अन्त मुंहतं स देशोन् अर्ध पुद्गल पराक्तन काल तक मनः पर्यय ज्ञान न हो सके। जाति (पान)-१४ लाख मनुष्य योनि जानना । इ-१८ नाम्न कोटिकुल मनुष्य की जानना Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०६३ केवल ज्ञान में चौतीस स्थान दशन १० स्थान | गामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त : एक जीव के नाना एक जीव के एक। । १ जीव के नाना एक जीव के समव में समय में | नाना जीबों की अपेक्षा / ममय में एक समय में नाना जोव की अपेक्षा १३और ११ नुसार १ सा स्थान .. १३-१ य २ मुगग २ जीव समास २ संजी पं०-पयांप-अपर्याप्त पर्यानि को.नं.१ देखो पर्याप्त अवस्था ६ का भंग का दं १८ देखो मारे गुण स्थान | १ गुगा १वें चरण जानना नामा ममाग १ मंशी पंचन्द्रिय अपर्या अवस्था १ भंग ६का भग ६ का भंग ३ का मन ३ का भंग को० नं.१देखो १ भंग । १ भंग १ मंग ४-१ के भनों में से 6-१ के भंगों में | घायु-काय बत ये (२). २ का भग 'कोई भग जानना में कोई १ भंग का मंग | जानना को नं. १८ देखो । १भंग ' ३का भंग १ भंग का भंग मनुप्य गति में ४-१ के भंग कोल्नं १- देखो (0) अपगत संज्ञा १मध्य गनि १ पन्द्रिय जानि १त्रमकाय ४प्राग्ग पायु, कायबल, श्वासोश्वाम, वचन बल ४) संजा ० । गनि ७ इन्द्रिय ज.नि काय है योन मत्य वचन योग . अनुभय बचन योग , सत्य मनोयोग , अनभय मनोयोग, मौ० विधाययोग १ ।। पौरारिक कादयोग १. कार्माण काययोग १, । मे योग जानना श्री. मिथकाययोग ? फार्माग काययांग १ ये २ घटाकर () मनुष्य गनि मे ५-३-० के मंग कॉ०१५ देखा सारे भंग । १ योग पौ. मिश्र कापयोग १ । काणि कायरोग मे २ योच जानना मनुष्य गति में 1-1-० के भंग ५-६- के मंगों २-१ के भंग जानना में से कोई १ योग को० नं०१८ देखो जानना मारे भंग -१ के मंग जानना । । १योग २-१ के मंगमें से कोई १ योग जानना Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( ४५७ कोष्टक नं०६३ केवल ज्ञान में सारे (०) अपगार ११ कवाय ३२ ज्ञान केवल ज्ञान जानना १. संयम १ यथाख्यान जानना १४ दर्शन १ केबल दर्शन जानना १५ लेश्या १-० के भंग १लेश्या शुक्ल मेश्या जानना । को.नं.१- देखो १-१ भंग १ लेश्या को० नं. १८ देखा १ भव्य जानना १७ सम्यास्त क्षायिक सम्यक्त्व जानना १८मजी (०) भनुभय पर्थात, म संझी न असंत्री जानना । १६ माहारक सारे नंग अवस्था सारे भंग १ अवस्था माहारक. अनाहारक मनुष्य गति में १-१ भंग १-१ में से कोई मनृण्य गति में 1१-१के भग जानना १-१ में से कोई जानना १ अबस्था 1.1 के भंग १ मवस्था कोर नं०१८ देखो | को.नं.१८ देखो २० उपयोग सारे अंग उपयोग मारे भग १ उपयोग जानोपयोग १. दर्शनोप- का भंग दोनों युगपत जानना दोनों उपयोग का मंग दोनों उपयोग 'दोनों युगपत् योग, ये उपयोग को.नं.१% देखो युगपत जानना को नं०१५ देखो युगपत जानना जानना सारे भंग ध्यान १ सारे भंग १ ध्यान सुक्ष्म क्रिया प्रति पाति' -के भर 1-1 मंग दोनों में से कोई १ का मंग १ ध्यान व्युपरत त्रिया निवासिनी को नं. १८ देखो जानना १ ध्यान जानना को०नं० १% देखो ये २ घान जानना सूचना पेज ५८ पर देखो सारे अंग १ मंग । सारे भंग १ भंग परोष मानना ५-३-० के भंग को.नं. १८ देसो कोन.१८ देखी २-१ के भग को.नं.१ देखो को१८ देखो को.नं. १८ देखो को. नं०१८ देखो २१ भाव १४ सारे श्रम बंग आयिक भाव है. मनुष्य मनुष्य गति में को.नं. १८ देखो कोनंग देखो मनुष्य गति में को. नं० १८ देखो को नं. १६ देखो गनि.शुक्ल लेश्या । १८१७ के भय १४ का भंग मसिद्धत्व १. जोवस्त्र १, को नं. १८ देखो को. नं.१८खो भव्यस्व ११४ भाव जानना Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचना-यहां मनोयोग नहीं होता है उपचार से कहा गया है। परमाहना- हाथ में ५२५ धनुष तक जानना । बंध प्रकृतियाँ-११३ गुराण में । माता वेदनीय का बन्ध जानना, १४वे गुग्ग में पबन्ध जामना । उदय प्रकृतियां-१२, १२, को० न०१३ और १४ देको। सश्व प्रतियां-५-५-१९ संख्या- (६८५०२), ५६८ को.नं.१६१४ को। क्षेत्रलोक का प्रस्थानी भाग स्पर्शन-" ." काल मचाफ जानना। अन्तर-कोई अन्तर नहीं। झाति (योनि। १ लाम्म योनि मनुष्य की जानना । कुल-१४ लाम्य कोटिकुल मनुष्य की जानना । Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीम स्थान दर्शन कोष्टक नं. ६४ असंयम में स्थान सामान्य पदाप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नाना एक जीव के पाक । समय में नाना जीवों की अपेक्षा १जीब के नाना समय में जीव के एक ममय में नाना जीवों की अपेक्षा १ मुरण स्थान । मारे गुम्ग स्थान । गुगा. | सारे गुरण स्थान । मुरण. १ मे नक के मुग० । (१) नरव मनि में १ मे ४ अग्ने अपने स्थान | सारे गुण में | () नरक गति में | पर्याप्तवत् जानना । पर्याप्तवत (२) तिर्यच गति में १ मे ४ के मारे नूगा. से कोई १ गुण ले ४थे . भोगभूमि में से ४ स्थान गानना जानता २) नियंच गति में १-२ (२) मनुष्य पनि में १ मे ४ भोगभूमि में १-२-४ भौगभूमि में १४ (३) मनुष्य गति में (४) देवगति गति में १ ४ । भोगभूमि में १-२ (४) देवगति में १-२.४ २ जीव समाम १४ । ७ पर्याप्त अवस्वा समास १ ममास अपर्याप्त अवस्था | समास । १ समास को० न०१ देखो नरक-मनुष्य देवगति में हरेक गति में । हरेक गति में | (१) नरक-मनुष्य-देवगति हरेक गति में हरेक गति में हरेक में !" मंजी पं.१ एमजी पं. | में हरेक में पर्यावद जानना पर्याप्तवत् मानना १संजी पंपेन्द्रिय पर्याप्त । जीव ममास जानना पर्याप्त जानना 1१ संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जानना को० नं०१६-१७. . | अवस्था जानना ११ देवी को०म० १६-१८-१९ देखो ! (२) नियंच गति में ममास १ ममास (२) निर्यच गति में समास १ समास ७-१-१ के मंग को० नं०१७ देखो| को.नं.१७ -६-१ के अंग कोनं०१७ देसो को.नं. को. २०१७ देखो को न०१७ देलो | | १ भंग भंग ३ की.नं. १ देखो नरक-मनुष्य-देवगति में को०० १६-१८- को. २०१५-1 (1) नरक मनुष्य देवगति | को. नं० १६-१८. को नं. १६हरेक में १६ देखो १८-११ देखो। में हरेक में १९ देखो . १८-१९ देखो ६ का भंग को न: १६. का भंग-को.नं० १६१८-१६ देखो १५-१६ देखो Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ४ प्राण को० नं० १ देशो ५ सजा २ क्रो० नं० १ देखा ६ गति को० नं०१ देखो ७ इन्द्रिय जाति को० नं० १ देखो ३ (२) तिर्यंच गति में (१) ६-५-४-६ के भंग को० नं. १७ देखी १० हरेक में १० का भंग-को० नं० १६-१५-१६ देखो (२) निर्यच गति में १०-६-६-७-६-४-१० के भंग-को० नं० १७ देखो चारों गतियों में हरेक में ४ का भंग-को० नं० १६ से १६ देखो चारों गति जानना को० नं० १६ से १६ देखो ५ - देवगति में (१) तरक-मनुष्यहरेक मे १ संज्ञी पंचेन्द्रिय जानि को० नं० १६-१८-१६ देखो (२) तिर्येच गति में ( ४९० ) कोष्टक नं०६४ Y १ मंग १. मंग १० नं० १७ देखो | को० नं० १७ | देखो १ भंग १३-१६ देख १ भंग को १६ देखो १ भंग को० नं० १७ देखी १ भंग को० नं० १६ से १६ देखी १ गति १ भंग को० नं० १७ देशां १ जाति ५-१-१ के भंग-को नं० [को० नं० १० देखो १७ देखो १ मंग को० नं० १६ मे १६ देखो १ गति १ जाति १ जाति को० नं० १६-१८ | को० नं०१६ १६ के १५-१६ देखो (२. निच गति में ३-३ के भग को० नं० 23 देखो 3 १ जाति को० नं० १७ देखो चारों गतियों में हरेक में ४ का भंग की० न० १६ मे १६ देखी 6 चारों गति जानना को न० १६ मे १६ देखो में हरेक में ७ का मंग को० नं० | १६-१०-१२ देखी ( - ) निच गति में १ भंग ७-६ ५-४-२७ के भंग को० नं० १७ देखी कॉ० न १७ देख · ५. (१) नरक- मनुष्य-देवगति में हरेक म १ संज्ञी पंचेन्द्रिय जानि को० नं० १३-१०-१६ देखो श्रसंयम में (२) नियंत्र गति में ५-१ के भग-० नं० १७ देख १ भंग को० नं० १७ देखी १ भंग १ मंग को० नं० १६.१०००१६१६ देख १५-१६ देखो १ भंग को० नं० १६. स १६ देखो १ गति १ जारि को० नं० १६-१८ १६ देवी १ भंग को० नं० १७ देखो १ जाति को नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो १ मंग को० नं० १६ से १२ देखो १ गति ? त को० न० १६१०-११ देखी १ जाति को० न० १७ देखो Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६४ असंयम में काय काय को.नं.१ देखो (१) नरक-मनुध्य-देव गति में कोन०१-१८- कोनं०१६-१८-(१) नरक-मनुप्य-देव गति को० नं०१६-१-कोनं०१६-१हरेक में देखो देखो । में हरक में । १६ देखा १६ देखो १ त्रसकाय जानना १ सकाय जानना कोनं० १६-१८-१६ देखो | कान १६-१... (२) तिर्यंच गति में १काय काय दलो ६-१-१ के भंग को .नं. १७ देखा कोनं०१७ देखो । तिर्यच गति में । को.नं. १७ देवो ... के मंग कोन १७ देखा कान०१७ देखो १ योग १ भंग १ योग प्रा. मिषकाययोग, यो मिश्रकामयोग १, ग्रौल कायबांग, माहारक काययोग : 4. मिश्रकाययोग १, वै. काययोग १, ये २ पटाकर (१३) कारिण काययोग १ काणि कायवोम १ ये ३ घटाकर (१०) ३ योग जानना १) नरक-मनुष्य-देवगति में कोनं०१६-१- कोनं०१६-१८. (१) नरक-निर्यच-मनुष्य वीमा १६ से १६ को० नं०१६ से १६ खो देखो देवगनि गति में दखो । १६ देखो ६ का भंग हरेक में कोन०१६-१-१६ देखो (२) तिर्वच गति में ग यांग काळनं. १६१९ देखों, ह-२-१-६ के भंग का नं. १७ दवा काल्ना देखा को० न०१७ देखो १० वेर को.नं.! देला (१) नरक गति में १२सक वेद जानना को० नं०१६ देखो (२) नियंच गति में ३-१-३-२ के भंग को० नं०१७ देखो १ भगवंद को न देत्री को १६ देखो (१) नरक गति में को.नं.१६ देखो कोनं १६ देखो १ नएम रद जानना को-२०१६ दखो १ भंग वेद निर्वच गति मे १ भंग १ वेद को न०१७ देखो कोनं. १७ देखो १-३-...-२-१ के भंगको न०१७ देखो कोनं०१७ देखो कोनं १७ देखो Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६४ असंयम में को० नं. १ देखो (३) मनुष्य गनि में i सारे भंग । एवंद (३) मनुष्य गति में | मानेभंग वेद 1-२ के भंग कोत०१८ देखो कोनं०१८ देखो। ३-१-२-१ के भंगको .नं.१८ देखो कोनं-१८ देखो को० नं.१ दमो | कोल्नं०१८ देखो (४) देवमति में - सारे भंग वेट दे वगति में मारे भंग वेद २-१-१ के भंग कोन०१६ देम्बो को.नं.१६ देखो २-१-१ के भंग को नं०१६ देखो को२०१६ देखो को० नं०१६ दंगो कौर नं.१६ देखो मारे भंग | भग मारे भंग १ भंग । (१) नरक गति में कोनं. ६ देश्वो कोन १ देवी (१) नरवा गनि में सोनं०१६ देखो कोनं०१६ देखो २३-१६ के भंग को०० देखो ! को नं०१६ देखो (B) निर्यच पनि में मारे मंग ।१अंग ।(२) तियंच गति में | मारे भंग भंग २५-२३-२५-२५-२१-२४- वो नं० १७ देखो कोनं १७ देखो २५-२३-२५-०५-२३-२५.को.नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो २० केभंग २४-११ के भंग को नं०१७ देखो को० नं०१७दसो (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग । (३) मनुष्य गति में । मारे भंग १ भंग २५-२१-२४-२. के भंन को नं. १८ देखो कोनं०१६ देखो. २५-१६-२४-१६ के भंग कोन०१८ देखो कोनं०१८ देखो को० न०१८ दग्बो । को० न०१८ देखो। (४) दवगति में | नारे भंग १ भंग (४) देवगति में | सारे भंग १ मंग २४-२०.२३-११-१९कोनं १६ देषों को नं०१६ देखो २४-२४-१६-२३-१६-१को नं०११ देखो को०नं०१९ देशो के भंग के भंग का० न० ११ देखी को० नं. १६ देखो सारे भंग १ ज्ञान | सारे भंग यान (१) नरक गति में को नं० १६ देखो कोन १६ देखो कुप्रधि ज्ञान घटाकर को० नं० १६ देखो कोन० १६ देखो ३-३ के भंग को०० १६ देखो (१) नरक गति में (२) निर्वच गति में । सारे भंग । १ज्ञान २-३ के भग २-३-३-३-३ के भंग की.नं.१७ देखो को नं०१७ देखो को.नं. १६ देखो को.नं.१७देखो (२) नियंत्र गनि में ! १ भंग । १जान २-२-३ के भंग को नं. २७ देखो कोनं०१७ देखो को. २०१० देखो । १२शान को.नं. १६ देखा Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६४ असंयम में १ -17 (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ज्ञान (1) मनुष्य गत्ति में | सारे भंग ज्ञान ३-३-३-३ के भंग को० न०१८ देखो | को० नं०१८२-३-२-३ के भंग को.नं.१५ देखो को.०१८ को नं०१८ देखो देखो को नं०१% देखो । देखो (४) देवगति में । सारे भंग १शन (४) देवगति में । सारे भंग ३-३ के मंग को नं०१६ देखो! को नं०१६ | २-२-३-5 के अंग को.नं०१६ देखो को० न०१३ को० नं० १९ देखो देखो को० नं. १६ देखो देखो १३मयम असंयम वारों गतियों में चारों गतियों में १ असंयम जानना १ असंयम जानना को० नं०१६ से १६ देखो | को.नं. १६ मे १९ देखा १४ दर्शन भंग । १ दर्शन १ भंग १ दर्शन का० नं.१ देखो। (१) नरक गलि में को नं. १६ देखगे| को० नं०१६ | (११ नरक गति में को.नं. १६ देसो को.नं.१६ २-३ के भंग-को० नं. १ | देखो २-३ के मंग देखो देखो को० नं. १६ देखो (२) तियय गति में भंग १ दर्शन (6) तिर्वच गति में भग द र्शन १-२-२-३-३-२-३ केभंग को नं०१७ देखो को. नं.१५ १-२-२-२-३ के भंग को.२०१७ देखो को००१७ को० नं०१७ देखो | को००१७ देखो | (1) मनुष्य गत्ति में सारे भंग १ दर्शन (३) मनुष्य गति में । सारे भंग । १ दर्शन २-३-२.३ केभंग-को० नंको नं०१५ देखो को नं०१८ | २-३-२-३ के भंग को० नं०१८ देखो को नं०१५ १८ देखो देखो को००१८ देखो देखो (1) देवति में १दर्शन (४) देवगति में भंग १ दर्शन हदनो को० नं १९ २-२-३-३ के अंग को० नं०१६ देखो | को० न०१६ को० नं.१६ देखी देखो को.नं. १६ देखो देखो १५ मेश्या १ भंग १लेश्या लेश्या को.न.१देखो (१) नरक गनि में १६ देखो कोनं०१६ (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो | को.नं.१६ 2 का भंग-की -१६। देखो ३ का मंग-को. नं. देखो १६ देखो (२) लियंच गति में १ लेश्या (२ तिथंच गति में भंग १ लश्या २-६-३ के भंग को नं. को नं.१७ देसो को नं. १७३-१ का भंग-को० नं. को० न०१७ देखो की.नं.१७ १७ देखो देखो १७ देखो देखो | देखो मया |को.न Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक न०६४ असं प्रम में (३) मनुष्य गति में सारे भंग । नदया (2) मनुष्य गति में सारे भंग । १ लक्ष्या 6-1 के भंग की.नं०१८ देवो कोनं०१८ देखो ६-१के मंग कोन०१८ देवो को.नं० १८ देतो कोल्नं०१८ देखो | कानं०१८ देखो (४) देव गति में मारे भन नेण्या () देवगति में। भंग ।। लेश्या १-३-१-१ के मंग को नं. १६ देखो को नं. १६ देखो --- के भंग को० न०१६ देखो कोनं १६ देखो को० नं०१६ देखो को० नं० १६ देखो १६ भव्यत्व १ भंग १ अवस्था २ • भंग १ अवस्था भक्ष्य, प्रभन्य चारों गनियों में हरेक में को००१९ मे १६ कोनं.१ मे चारों गतियों में हरेक में को० नं०१८ से १६ कोनं-१६ से २-१ केभंग । १६ देखो २-१ के भंग | देखो १६ देखो को० नं०१६ मे १९ देखी । | को.२०१५ मे १९ देखी १७ सम्यक्ष - मारे भंग १ सम्यक्त्व | सारे मंग १ सम्यक्त्व को नं०१ देखो । (१) नरक गति में को० नं. १६ देखी को.नं. १६ देखो मिश्र १ घटाकर 12) १-१-१-३-२ के भंग | (१) नरब गति में कोल्नं० १६देखो को०२.१६ देखो को० नं०१६ देखो १-२ के भंग (२) निर्यच गनि म भंग |.मम्यान | कोनं १५देखो १-१-१-२.1.2.12 के गंगो . नं देखो कोल्न०१७ देखो (२) तिर्यच गान में मग सम्यक्त्व कोनं०१७ देखो १-१-१-१-- के भंग पोनं०१३ देखो को२०१७ देखो (३) मनुष्य गति में मारे भंग १मम्यक्त्व | कोनं०१७ देखो १.१-१-३-१-१-१-३ केभंग को न०१५ दम्बो को नं०१८ देखो, (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ सम्यवत्व कोल नं0 दबो |१-१-३-१-१-२ वे भंग को नं. १८ देखो को २०१८ देखो | (४) देवगति में | सारे भंग १ सम्यक्त्व | को.नं. देखो १-१-१-२-३-२ के मंगको० नं०१६ देवो कोनं०१६ देखो (४) देवगति में मारे भग १ सम्यवस्व को न० १६दग्दो | १-१-भंग को०० १६ देखो को.नं.१६ देखो को० नं. १६ देबी १. संजी १ अवस्था १ मंग १भवस्या संशी, संत्री (1) नरक-मनुस्य देवगति में कोन १६.१८-१६ को नं.१-१८- नरक-मनुष्य-देवगति को नं. १६-१८-१९ कोन .१८. हेरंक में १५देखो में हरेक में देखो १९ देखो १ संज्ञी जानना संजा जानना कोनं० ६१८-१६ देखो की.नं.१६-१५-१६ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीताम स्थान दर्शन र २० उपयोग १६ श्राहारक बारव, अनाहारक 7 ००१६ दे ३ (२) निर्मन गति में १-१-१-१ के भग को० नं० १० देखी १ मरक देव गतियों में हरेक में १ आहारक जानना को० नं० १६ १६ देवो निर्दच मनुष्यगति में हरेक में E (१) नरक गति में ५-६-६ के भग को० नं० १६ देखो (=) निर्यच निमे १-१ के मंग को० नं० १७-१८ देखी | ४-६-६-५-६-६ के मंग को० नं० १८ देखी (४) देव गति में १ मंग को० नं०७ 1 ५-६-६ के मंग को० नं० १६ देखो ( ४६. ५. ' कोष्टक नं० ६४ जटेक में (२) तिच गति में १७१-१-१-१-१-१को भंग को० नं० १० दे १ अवस्था कोनं १ ० १६ और को १६ और १६ देखो देखो मारे भंग क० नं०१८ २ नरक-देवगतियों में हरेक में 1 १-१ के अंग जानता को० नं० १६ और १६ देखो I गति में नियंत्र६-मनुष्य हरेक में १-१-१-१ के भंग को० नं० १७-१८ देखो १ हरेक में I १ 5 उपयोग १ भंग को० नं० १६ देखी को० नं० १६ देखो कुपधि ज्ञान चटाकर (5) 1 १ भंग १ उपयोग ३-४-३-६-७-३-६-६ के भंग क० नं० १७ देखी कोन० १० देखो| कोनं. १७ देखी (३) मनुष्य गति में 1 १ उपयोग १ भंग को०० १६ देखो को०मं० १६ देखो अमय में १ मंग को० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १६ और १६ स हरेक में दोनों में से कोई १ अवस्था १ भंग १ अवस्था की०नं० १७ देखी १ भवस्था नं० १६ और १६ देखो हरेक भंग में से कोई १ अवस्था (१) नरक गति में ४-६ के भंग को० नं० १६ देख (२) तिर्यच गति में १ भंग १ उपयोग १ उपयोन ३-४-४-३-४-४-४-६ के मंग को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देख को०० १८ देखी को० नं० १७ देखी | (३) मनुष्य गति में ४-६-४-६ के भंग को० नं० १८ देखी (४) देवमति में ४-४-६-६ के मंग को० नं० १६ देखो १ मंग १० नं० १८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो को०नं १६ देखो १ उपयोग को ० नं० १५ देखो १ मंग १ उपयोग को० न० १६ देखो को० नं० १६ देखो Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन २१ ध्यान ५० मार्त ध्यान ४, ध्यान ४, याजात्रिचय १. अपायविचय १ ये १० ध्यान जानना ५४. २२ श्राव आ० मिश्रका योग १ अहार योग १ ये २ घटाकर (५५) १० (१) चारों गतियों में हरेक मे -६-१० के भंग-को० नं० १६ मे १२ देखी ५९ श्री मिश्रका योग १ वं० मिथकाय याग ४ कामरणका योग १ ये ३ घटाकर (५२) (१) नरक गति में ४६-४४-४० के भंग को० नं० १६ देखी | (२) तिर्यच गति में क ३६-३०-३६-४०-४३-५१४६४२-५०-०५-४१ भंग- को० नं० १७ के समाग जानना ( 3 ) मनुष्य गति मे ४१-४६ ४२-५०-४५-४१ के भंग-को० नं० १८ देखी (४) देवगति में ४६६ ) कोष्टक नं० ६४ ४ सारे भंग १ ध्यान को० नं० १६ मे | ० नं० १६ १२ देखी से १६ देखी सारे भंग अपने अपने स्थान के नारे मंग जानना १ भंग सारे भंगों में से कोई ? भंग जनना ० नं०१६ को० नं० १३ देखो ! भारे भंग को० नं० १० देखो १ भंग को नं० १७ देखो गारे भंग १ भंग को० नं० १८ देखी को नं० १० देखो १ भंग को० नं० १६ देखो मारे भंग ५०-४५-४१-४६-४४-४०४००० १६ देखी 1 के भंग को न० १६ देख अपाय विजय धर्मध्यान टाकर (2) जानना (१) नरक मनुष्य देवगन में हरेक में ८-६ के भंग-को० नं० १६-१०-११ देखो (२) नियंत्र गति में =-=-E के मंग को० नं० १७ देखो シリ सारं भंग असंयम में i १. भंग को० नं० १७ दे को० नं० १६ से को० नं० १६१६ देखो १८- १२ देख सारे भंग वचनयोग मनोयोग ४ प्रपन अपने स्थान काययोग १ के सारे भंग ० कव्ययोग १ व १० जानना 1 टाकर (४५) (१) नरकगति में ४२.३० के भंग को० नं० १६ देखी (२) नियंत्र गति में सारे भंग ३७-३८-३६-४०-४३-४४ को० नं० १७ रेखा ३२-३३-३४-१५-३०-३६४३-१०-३३ के मंग | को० नं० १७ देवी (3) मनुष्य यति से ४४-३६-३२-४३-३८-३३ के भग को० नं० १= देखी (४) देवगति में ४३-३८-३१-४२-३७-३३ सारे भंग को० नं० २६ 5 सारे भंग ० ० १८ देखी १ ध्यान को० न० १६ देखा की नं १६ देखी १ ध्यान कां० नं० १७ देखो १ भंग सारे भागों में में कोई १ भंग जानना * भंग को० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १२ देवी Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोलोस स्थान दर्शन कोप्टक नं०६४ असयम में यो 33 के भंग को० नं. १३ २३ भाव मारे मंगभंग सारे भंग १ भंग उपगम-क्षायिक (१) नरक गति में का नं.१३ देखो ' को न कुअवधि जान घटाकर सम्पकावर, कृजान ३. (४०) जान, दर्शन ५, भंग-को० नं १५ (१) नरक गति में सारे भंग । १ भंग नच्चि , नेदक दलो २५.२७ के भंग को० नं. १: देखो को.नं.१६ सम्यक्त्व १, गनि ४, (२) निर्यच गति में मारंभंग भ ग को.नं.१ देखो देखो कपाय ४, लिंग, २४-२५-२७-३१-२६-३०- कोन०१७ देखो , कोन.१४ (२) तिर्यच गति में | सारे भंग १ भंग लश्या ६, मिय्या- ३२-२४-२५.२६-२६ केभंग देखो २४-२५-२७-२५-२२- को० नं० १७ देखो को० नं०१७ दर्शन १, असंयम १. कां. नं.१७ देखो २३-२५-२५-२४-२३. । देखो महान ६, असिद्धाव १ २५ के भंग-को.नं. : पारिणामिक भाव ३,(३) मनुष्य गति में मारे भंग भंग : १७ दखा ये ४१ जानना १२९-३०-३३-२७-२५- को० नं. १८ देपा को नं. १८ (३) मनूष्य गति में सारे भंग । १ मंग २६- के भंग का । देगा ३०.२८-३०-२४-२२-२५ के को० नं. १६ देखो | कोनं०१८ १५ देखो भंग को. नं: १८ देखो देखो (८) देवनि में मारे भंग १भंग (४) देवर्गात में सारे भंग १ मंग २५-३.२५-२६-२७-२५-को- नं. १६ देखा को.नं. १६२६-२८-२६.२४-२८-२१- को० नं०१६ देखो| को० नं०१६ २६-२६.२४.०२-२६-२ २१-२६.२६ केभंग २५ के अंग को० नं० १९ पो.नं. १६ देखो देखो Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना--कोनं०१६ से ३४ देखा। बंब प्रकृतियां-2 से ४ मुरण में क्रम से ११७-१०१-०४-७७ प्र० का बंध जानना । को००१ में ४ देखो। उदय प्रकृतियां- ११७-१११-१३०-१०४ प्र० का उदय जानना । को.नं. १ ४ देखो। सत्व प्रकृतियां-- , १४-१४५-१४७-१४० और १४१० सत्ता जानना । को० नं. १ से ४ देखो। संख्या--अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र -सर्व लोक जानना। मन-मर्वलोक जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव को अपेक्षा मादि असंचमी अन्त मुहूर्त से देशोन अचं पुद्गल परावर्तन काल तक जानना 1 प्रकर-नाना जोवों को अपना कोई अन्तर नहीं। एक जी। की पंग अन्तमुहर्त से अन्तर्मुहूतं कम एक कोटिपूर्व तक गंयमी बना है। असंयम प्रप्न न सके। जति (योनि)-८४ लाख योनि जानना। कुन- १९६ लाख कोटिकूल जानना। १४ Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोप्टक नं०६५. संयमासंयम में चौतीस स्थान दर्शन / स्थान सामान्य स्थान गामान्य | पालाप पर्यात अपर्याप्त नाना जावों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा । एक जीव की अपेक्षा माना समय में एक समय में - . ६-७-६ - - - - १ गुण स्थान ५वा गुग्ण स्थान जानना (१) तिर्यन-मन प्य गति में दोक में संयमासंयम ५वा गुना जानना सूचना-यहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं हता है। २ जीवसमास १ । मंजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त (१) तिर्य च-मनस्य मनि में हरेक में १ मंगो पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना ३ पर्याप्ति १ भंग . मंग का मंग | को० नं०१७-१८ देखो , कान०१७-१८ देखो (१) निर्वच -मनुष्य गान में हरेक में ६ का भग .को न- १७-१८ देखो (१) नियंत्र-मनुष्य मति में हरेक में १३ का भंग को न०१७-१८ देखो को० न०१ देवा १ भंग | १०का भंग को० नं.१७-१८ देखो | १०का भंग को नं०१७-१८ देना को नं. १ देखो (१) नियंच-मनुप्य गति हरक में ४ का भंग को न०१७-१८ टेखो १ भंग १ भंग का भंग ४ा भंग कोनं १७-13 देखो । को० नं०१७-१८ देखो ? गनि गति तिर्यच गति, मनुष्य गति जानना ६ मति तिच गरि, मनुष्य पनि ७ इन्द्रिय जानि १ पंचेन्द्रिय जानि | (१) नियंच-मनुष्य गति में हरेक में Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ !तोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६५ संयमासंयम में ६-७-८ मजीन्द्रिय बागना को० नं.१-१८ देखा काय ऋगकाय | (-) निर्वय-मनुप्य गनिमें हरेफ में १ चमकाय जानना कोन. 23-१८ देखा । योग वचनयोग ४, मनोयोग है। ग्रो. काययोग १. निच गति में ६ का भग (२) मनुष्य गनि में एका भंग १ भंग योग का भग कोरनं० १७ देखो को०१७ देखो । का भंग । को० न०१८ देवों को०१८ देखो (१) निर्येच गनि में १ भंग १ वेद (२) मनुष्य गनि में नारे भंग वेद को नं०१७-१८ देखो को नं.१७-१८ देखो १० बेद को नं १ देखो 73 (१) लिर्यच -मनुण ननि में हरेक ३ का भंग को० नं. १७-१८ देतो (१) तिर्यंच-गनुष्य गति में हरेक में १७ का भंग बा० नं०१७-१८सो ११ कषाय प्रत्याख्यान पाय ४, संचलन कषाय, नोकपाय र य (२) १२ जान मनिश्रत अवधि | मारे भंग भंग को.नं. १४-१८ देखो | कोनं०१७-१८ देखो (२) निर्यच-मनुष्य गति में हरेक में ३ का भंग को मं०१७-१८ देखो (१) नियंच गति में १ भंग १ जन मनुष्य गनि में मारे भंग १जान को नं०१७-१८ देखो । को नं०१३-१- देखो १३ मंयम १ संगम को.नं १७-१८ देखो | को नं०१७-१८ देखो मयमागंयम (१) निर्यच मनुष्य गति में हरेक में १संयमामयम जानना कोनं-१- दत्रा १४ दर्शन अन दर्शन. चक्षु दर्शन | अवधि दर्शन में (३) १ मंग १ दर्शन को० नं०१७-१८ देखो को नं०१७-१८ देखो । (१) नियंत्र-मनुस्य गति में हरेक में ३ का भंग का० न०१७-१८ मा Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६५ संयमासंयम में १ भंग १५ लेया शुभ लेश्या जानना । कोन. १७-१८ दशी को नं. १७-१८ देखो। (१) निर्मच-मनुष्य गति में हरेक में का भंग को नं-१७-१ देखो १६ हत्यत्व को नं. १७-१८ देवी का नं०१७-१- दन्ना (२) तिर्य च-मनुप्य गनि में हरंक में १भव्य जानना को० नं०१७-१८ देखो १७ सम्यक्त उपशम-क्षायिक-क्षयोपशाम १ भंग की नं० १७ देता सम्यक्त्व का नं०१७ दम्खा (१) तियं च गनि में २का भंग को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य ननि में ? का भंग को नं०१८ देखो सारे भंग कांनं. १८ देखो १मध्यवत्व .मो.नं. १८ देखो १८ संजी संजो । को नं०१७-१८ देखा को नं.१७-१८ देखो (१) तिबंच-मनुष्य गति में हरेक में मी जानना कोनं०१३-१८ देवी १६ पाहात ग्राहाक को नं०१३-१- देखो । को न०१७-१८ देखा (१) नियंच-मनाय गगि में हंग्क में १ ग्राहारक जानना । को नं. १५-१६ देसको २० उपयोग जानोपान ३ दशंगयोग, में (E) कोन०१३-१८खा की नं.१७-१८ दवा (१) नियंच-मनुप्य पनि में हरेक में वा भग की नं०१७-१:देखा Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (.-४७२ ) कोप्टक नं. ६५ संयमासंयम में १ध्यान को नं०१७-१८ देखो ' को २०१७-१८ देखो (2)नि -मनप्य मति में हरेक में .१ का भंग को० नं. १७-१८ देखो मारे भंग मंग को नं. १३-१८ देवो को न०१७-१८ देखो (१) निर्यच मन्य गनि में हरेक में ३७ का भंग को.नं०१७-१८ के समान जानना आर्त व्यान ४, रौद्र व्यान ४. प्राज्ञा चि०, प्राय वि०, दिशाक विचा३, ये (११॥ २२ यात्रव हिमा घटाकर अदिस्त ११, (हिमक स्पर्गादि इन्द्रिय विषय ५. हिस्य ६ मे ११) योग १, कषाय १७ से (२७) जानना २३ भाव ३१ । उपसम-क्षाधिक म०२, कान ६, दर्शन , नविषय | बेदक मुम्यक्त्व, मंयमामंयम १, तिर्यच गति १. मनुष्य गति, कषाय ४, लिंग ३, शुभ लेश्या ३, अजान १, प्रसिद्धत्व १, जीवत्त , भञ्चल ये ( 0 मारे भंग कोल्ने०१७ देखो को० नं० १७ देखो (१) यिं च गति में २६ का भंग मामाभ्य के ३१ में मे क्षायिक म... मनुष्य गति १ ये २ घटाकर २६ का भंग जानना (8) मनुप्य गति में ३० का भंग नामाग्य ३१ के भंग में मतिर्वच गति घटाकर ३० का भंग जानना सारे भंग मंग को नं०१८ दसोका नं. १: देखो Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ -नम्यात धनांगन जर योजन T जानना । बंप प्रकृतिया--16 क नं. ३ दवा उवय प्रकृतियां- . सरव प्रकृतियां .१४-१४० संख्या गल्प के असंख्दात - भाग प्रमाग जानना। क्षेत्र-नोक का प्रपंख्याला भाग जानना। स्पर्शन-संक का असल्यानवां भाग ६ रागुजानगा। कीनं. २६ देखो काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा अन्नमुंहत से अन्ततं और पृथक्त्व वर्ष कम कोटिपूर्व वर्ष तुक जानना । अन्तर-न.ना जीवों की अपेक्षा कोई असर नहीं। एक जीव को अपेक्षा अन्तर्मुहुर्न मे देशोन अर्ध पुयन परावर्तन काल तक देश. संममी नहीं बन सके। जलि (योनि)-१८ लास मनुष्य योनि जानना । (निर्यच ४ लाख, मनुष्य १४ नास ये १८ लाख मानना) स-५७॥ माख कोटिकूल जानना (निर्वच ४३॥ पोर मनुष्य १४ये ५७॥ लामा कोटिकूल जानता) ६४ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६६ सामायिक-छेदोपस्थापना संयम में सामान्य लापः पर्याप्त अपर्याप्त | नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा १जीब के नाना ।१जीन के एक समय म समय में १. १ गुगा स्थान १ मुसा ६से ब के मुख्य मनुष्य गति में-६-५-८-६ वा गुण स्थान जानना प४ मुरण जानना २जीव समाम . सजी पचन्द्रिय पर्याय संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त नभी पंचेन्द्रिय उपांत । अर० 210 नं.१५ देखी को न देखो पोधिन १ भंग १भंग भंग को० नं. १ देखी ६ का भग-कोनं०१८ कोनं० १८ देखो' को नं। १८ : का भंग-कॉ० नं०१८ को नः १८ देखी , को नं०१५ देखो देखा देवी दखो। १ भंग १ भंग को नं. १ देखो । १० का भंग-को-नं. १ को मं०१६ देखो फो० नं. १ 12 का भंव-की नं0 को न०१८ देखी : को०० १६ देखा देखा । १८ देखो ५ माघ । मारे भंगभंग ४ । सारे भन । मंग को० न० १ देखो मनुष्य जानि में को नं०१५ देलो को ना १८ ४का भग-कान को न देसो को नं० १० ४-६-3-2 के भंग देखो देखो को नं. १दलो गनि , मनुष्य पनि वामना । इन्दिय जागि १ पचन्द्रिय जानि दानना वर्मकाय जानना ६ योग मारे भंग मांग सारे भंग योग मनोयोग , वचन प्रा. मिश्रकाय योग घटा का नं. १-दखां को न.१%ाहारक मिथकाय न.१५दंनी को न०१८ योगपी काय । नोग टेवा ११। मत गनि में 1) मनुष्य गान में १० Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन योग १ श्र मिश्रकार योग १, आ० क.म योग १ मे ११ यांग जानना १० वेद ३ को० नं. १ देखो ११ कषाय १३ मुज्वलन कषाय ४. हास्या दिनोकषाय है ये १३ कथाय जानना १२ ज्ञान 7 केवल जान घटाकर (४) १३ संयम सामायिक दोस्थापना संयम में से जिसका विचार करना हो वह १ संयम जानना १४ दर्शन ३ ५-६ के भंग- को० नं० १० देख १ मनुष्य गति में ३-१-३-३-२-१-० के भंग को० नं० देखो ११ (१) मनुष्य गति में १३-११-१३७६४ ३-२-१ के मंग-को० नं० १८ देखी १) मनुष्य गति में ४-३-४ के भंग को० नं. १८ देखो १ (१) मनुष्य गति में जिसका विचार करना हो यह १ संयम जानना ३ ३ को० नं० १६ देखी ६ (१) मनुष्य गति में ३-३ के भंग-को० नं० १५ देखो ( ४०५ ) कोष्टक नम्बर ६६ イ मारे भंग को० नं० १८ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखो मारे मंग को० न० १८ देखो सारे मंग को० नं० १८ देखो १ वेद को० नं० १८ देखी ९ मंग को० नं० १० देखो १ ज्ञान को० नं० १० देखो 1 १ दर्शन को० नं० १५ देखो सामायिक वेदोपस्थापना, संयम में १ का भंग-को० नं० १- देखो १ पुरुष-वेद (१) मनुष्य गति में १ का भंग- को० नं० १८ देखो ११ स्त्री-पुरुष वेद ये २ घटा कर (११) (१) मनुष्य गति में ११ का भंग-को० नं० १- देखो (१) मनुष्य गति में ३ का भंग-फो० नं० १८ देखो १ पर्यावत् जानना ی ३ सारे भंग मनः परंथ ज्ञान चटाकर को० नं० १८ देखो 1) (१) मनुष्य गति में ३ का मंग को० नं० १८ देशो सारे भंग को० नं० १ देखो सारे भंग फो० नं० १८ देखो सारे मंग [को० नं० १८ देखो C १ वेद को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १८ देखो १ ज्ञान फो० नं० १८ देखो १ फो० नं० १८ देहो Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६६ सामायिक-छेदोपस्थापना संयम में की.नं.१-देन १ देखो १५ लेल्या सारे भंग १ लश्या । सारे भंग । १ लेश्या शुभ लेश्या जानना । () मनुष्य गति में । १८ देखो। को नं. १: (१) मनुष्य गति में कोनं १८ देखा को० न०१८ २-३ के भंग-कांनं देखो ३ का भंग-को० नं १८ | देखो १६ भव्यत्व १भव्य-कोन०१८ १ भव्य-कां० २०१८ देखी देखो १० सम्यक्त्व मारे भंग गम्यस्व सारे मंग १ सम्यक्त्व उपगम क्षायिक- मनुष्य नि में का नं०१८ देखा | को नं.१८ | उपनम म० घटाार (२).को. नं.१८देखो का नं०१८ दयापम माय (३) ३-३-२ के भंग दिनां ११) मनुष्य मति में कोनं १८ देखा २का भंग को नं १% देखो १८ संजी १ संजी जानना १मजी जानना संज्ञो १६ ग्राहारक १ अवस्था याहारक मनाहारक १पाहारक १पाहारक कानं०१८ देखो को० नं०१५ कोल्नं०१८ देखो कोनं०१८ देखा । देखो सूचना-पंज ७४ पर देखा २. उपयोग ! सारे भंग १ उपयोग सारे भंग १ उपयोग ज्ञानोपयोग ४, (१) मनुष्य गति में 'को नं. १ देखी को० न०१८ । मनः पर्यय ज्ञान घटाकर दर्शनोपयोग ये (0 5 -४-१ के भंग | देखा की नं०१८ दखा (१) मनुष्य गति में कोनं-१ दखो । को० नं०१८ ६ का भंग कोन.१८ देखो सारे भंग १ घ्यान । सारं भंग १ ध्यान प्टवियांग ब्दोरकर | (१) मनुष्य पनि में का नं.१८ देखो को० नं.१८ पृषकच विवो घटा-को० नं०१८ देखो, को नं. १ अप मानध्यान 3-1-2क भग-० नं. ' देखो कर (७) देखी वनध्यान ४. गृयमन१८दयो का भंग-कोन विन रिचार शुल १८ दमी ध्यान १.ये - ध्यान जानना tej Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६६ सामायिक-छेदोपस्थापना संयम में २२ अाम्रव | सारै भंग ! १ मंग | सारे भग १ भंग योग ११, कपास १३ | (१) मनुष्य मति में मो००१८ देखो। को नं०१८ | कपाय, हास्वादिनी : य २४ जाना २२.२०-२२१६-१५-१४. देखो कपा ६, पुरुष-बेद . १३.१२.११-१० भंग माहारक मिथकाय यांग : को० नं०१८ देखो १ ये जानना (१) मनुप्य गति मे ० ०१ देशो को न १ का भग-को० नं पंखो १८ देखो २२ भाब | सारे भंग १ भंग सार, भंग १ मंग उपशम-शयिक स. १) मनुप्य गति में को न०१५ देखो | को० नं०१८ | स्त्री-मंद १. नपुसक. चारित्र 2-७-३१-२६-२६-६-| चंद मनः पर्ययशान १ ज्ञान ४, दर्शन । २५-२६-५-४-२३ के| घोर पाम सम्पनत्व १ | लब्धिा , बंदक सः भंग-को००१८ देखो। य ४ पर्याप्त के वे गुगा मुरागसंयम, १के भंग में में मनुष्य गति १, कपाय घटाकर (२७) जानना ४, f ग ३, शुभ (१। मनु'य गनि में की: नं. १८ देखो , कोल नं१८ सेट्या ३. प्रज्ञान , २७ का मंग-को० नं० दशा अमिनत्व १ जीरद १० देखा १. भव्यत्व १ ये जानना गुचना-य भंग पावरच मिश्रकार योग की अपेक्षा! बनता है। ना Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचना-१६ नं. पाहारक के छठे स्यन में याहारक मि काय योग में अनाहारक अवस्था भी होती है। अवगाहना-३॥ हाथ से ५२५ घनुप ना जानना । बंध प्रतियां-६-७-८-६ के गुगल में कम मे ८ ३-५.६-2.८.२०प्र० का बंध जामना । को ०६म देखो। अदय प्रकृतियों ८१-७-१२-६६ प्र. का बंध जानना । सस्व प्रकृतियां-वे गुग में १४६, ७वे मुग में १४६ या १३६, वे गुगण. में १४२-१३९-१३८, ९ वे गुगण में १४२-१३१.१३८ प्र.का सत्य जानना । को नं०६ मे है देखो। सख्या-(८६२६६१०३) जानना । विशेष कुलासा को नं. १ मे है देखो। क्षेत्र-लोक का असंख्यातवां भाम जानना । म्पर्शन-लोक का प्रस्थान या भाग जाननना। काल--नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा ८ वर्ष अन्नमुहर्त कम एक कोटिपूर्व वर्ष तक जानना । अन्तर–नाना जीबों को अपेक्षा काई अन्तर नहीं। एक जीच की अपेक्षा अन्तमुहूर्त में देशोन् अर्व पुदगल परावर्तन काल तक सामायिक दोपस्थापना संयम न हो सके। जाति (योनि)-१४ लाय मनुष्य योनि जानना। कुल -४ लाम्य काटिबुल मनुष्य को जानना । Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६७ परिहार विशुद्धिसंयम में स्थान सामान्य मालाप पर्यात ! अपर्याप्त नाना जावों की प्रपंभा एक जीव की अपेक्षा । एक जीच की अपेक्षा नाना ममय में एक समय में __ १ । ३ । ६-3-5 सारे मुख स्थान दोनों गुण १गुला स्थान दो मे में कोई १ मुनग० गूचना- यहां पर अवस्था नहीं होती १ भंग काल तं० १८ देखा . कोनं० १८ देखो ४प्राण कोन०१८ देखो १ भंग को.नं. १- देखो १ गुण स्थान र पीर ७ये २ गुरण ! ६ प्रमत, ७ अप्रमत २ गुण स्थान २ जीव समास १ सजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना ३ पर्याति को नं. १ देखी : (१) मनुष्य यति ६ का भंग का १८ देखा नं० १ देखो (१) मनुष्य गति में १० का भंग को० न०१८ देखो संज्ञा को० नं. १ देखो | (१) मनुष्य गति में ४-६ के मंग को० नं०१८ देतो ६ गति १ मनुष्य गति जानना ७ इन्द्रिय जानि १ पंचेन्द्रिय जानि जानना - काय १ चमकाय जानना है योग मनोयोग ४, वचनयोग ४, (१) मनुष्य गति में। मौकाययोग ? ये (E) Eके अंग को० नं.१८ देखी १० बेद १ (१) मनुष्य गति में १ पुष वेद जानना १भंग का० नं.१८ देखो १ मंग कोनं-१८ देखो सारे भंग को ०१ देखो योग को नं०१५ देखो सारे मंग को००१८ देखो को नं०१८ देन्यो Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोलीस स्थान दर्शन १ ११ गाय राज्याम हारादिनोदय ६ १, (११) १२ जान मनि श्रुत- अविज्ञात ये जानना १३ संयम १४ दर्शन चक्षु-चक्षु अवधिदर्शन १५ व्या ११ शुभ दिया जागना १६ भव्यश्व १७ सम्यक्स्व क्षायिक, क्षयोपशम ये २ सम्यक् जालना १८ संजी (१) T ३ को० नं०१८ के ३ के मंग में से स्त्री-नपुंसक वेद से २ घटाकर १ जना | ११ पति में ११ का भंग को० नं० १८ के १३ में भंग में से श्री-नए सक वे ये २ घटाकर ११ का भंग जानदा ( x => } कोष्टक २०६७ (१) मनुष्य गति में का भंग कोरनं०] १८ के ४ के भंग में मे मनः पर्यय ज्ञान बटाकर ३ का भंग जानना १ परिहार विशुद्धि संयम जानना (१) मनुष्य गति में ३ का भग कोनं १८ देखी (1) मनुष्य गति में ३ का भंग को० नं० १८ देखो १ भव्य जानना (?) मनुष्य गति में २ का भग को० नं० १० के ३ के भंग में सम्यक्त्व घटाकर २ का मंग जानना १ राजी जानना उपशम ४ सारे भंग को० नं० १० देख सारे भंग को० नं० १८ देखी १ मारे भंग को० नं० १८ देखी मारे मंग [को० नं० १८ देखो सारे मंग को० नं० १८ देखो परिहार विद्धि संयम में ९ भं : | को० नं० १८ देख १ जान कोनं. १८ दे १ दर्शन को० नं० १८ देख १ या कोनं १८ देख , १ १ सम्यक्त्व को० नं० १८ देखो १ 5-5-3 Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ | १६ प्रहारक २० उपयोग ज्ञानोपयोग ३ ददनीप योग ये जानना २१ ध्यान इष्ट वियोग घटाकर प्रातं ध्यान ३, धर्म ध्यान ४ ये ७ जानना २२ ब्राम्रव योग ९. कचाय ११ ये २ बानना २३ भाव २७ शायिक सम्यक्त्व १, जान ३, दर्शन, लब्धि ४, बेदक स० १, सरागसंयम १, मनुष्य गति १, रुषाय ४, पुरुषवेद १, शुभ लेखा है, मजान १, प्रसिद्धत्व १ जीवत्व १. भव्यत्व १, ये २७ भाव जानना ३ १ माहारक जानना S ६ का भंग को० नं०१६ के ७ के भंग में से मनः परं ज्ञान १ घटाकर ६ का भंग जानना (१) मनुष्य गति में ७ ४ के भंग को ० ० १८ देखो (१) मनुष्य गति में २०-२० के मंग ( ४८१ I कोप्टक नं० ६७ को० नं० १० के २२-२२ भंगों में से स्त्री नपुंसक वेद येर हरेक में घटाकर २०.२० के मंग जानना २७ सामान्य के समान जानना २७ का भंग को नं० १० के ३१ के भंग में मे उपशम सम्यक्त्व १ स्त्री नपुंसक वेद मनः पर्यय ज्ञान १ ये ४ घटाकर २७ का मंग जानना सारे भंग को० नं० १० देखो भंग को० नं० १० देखी मारे भंग | कोन० १= देखो परिहार विवृद्धि संयम में ६-उन्न ५. १ ध्यान को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १८ देखी I १ भंग ! [को० नं०] १८ देम्ब Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ ८ २६ प्रवगाहना- हाथ से ५२५ धनुप न जानना । बंध पकृतियाँ -23 को नं. ६ देखो उदय प्रकृतिमा-३ को ०६ की ८१ प्रऋतियों में मेन'नक वेद, मत्री वेद १, उपशम गम्पनत्व ६ मनः पर्यम ज्ञान १, ये ४ प्र: घटाकर ७७० का उदव जानना वो. नं०७ की ५६ प्र में से ऊपर की ४ प्रा घटाकर ५.५ प्र० का उदय जानना । सत्व प्रकृतियां-१४६-१३६ को.नं. ६ चौर के समान जानना। संख्या ६९-२०६, २६६६६१.५ को० नं. ६ र ७ दला। क्षेत्र-लांक का अलव्यानचा भाग जानना । स्पर्शन -जोक का प्रयानवां भाग जानना । काल नाना जीवों की अपेक्षा गर्ब काल जानना । एक जीव की अपेक्षा अन्नम हर्न मे ८ वर्ष कम एक कोटिपूर्व वर्ष तक जानना । गुचना -* बर्षवं उम्र में सम्म धाराम कर की योग्यता होती है परन्तु हम्बावम्मा में ही ३० वर्ष तक संघमामयम अवस्था निर्दोष व प्रभाव शाली रहने पर जो मुनिवन वारण करता है उसके ही अन्तमुंहत का परिहारविद्धि नावि उत्पन्न हो सकता है जो एक कोटि पूर्व की शेष बाबु नक परिहार विशुद्धि संयम रह सकता है। अन्तर-नाना जोबों की अपेक्षा कोई चन्तर नहीं । एक जीच की अपेक्षा अन्त में देशांन अर्थपुदगल परावर्तन काल नक परिहारविशुद्धि नयम पा न हो सके। मालि (घोनि)- १८ लाख मनुष्य योनि जानना । कम्म–१४ लाख कोष्टिकुन मनुष्य को जानना । Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . चीतीम स्थान दर्शन कोष्टक नं. ६८ मूटम मापगय संयम में क०/ स्थान | सामान्य पर्यास पान्नाप | अपर्याप्त नाना जानों की अपेक्षा एकजीव को अपना । एक जीव की अपेक्षा . नात नमय पाकममय में 2-9-८ मुमना- यहां पर या अवस्था नहीं | होती है। , मंग कोनं.१दम्बा मंग को.नं.१दरों १ गुग स्थान १ मुझम सापराय जानना २जीव ममास १ मही पंचेन्द्रिय पर्याप्त (१) मनुन्य गति में मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना कोः न०१८ देखा ३ पर्याप्ति ६ को नं. १ देखो (१) ममृय गनि में का भंग मो. नं. १ देखी कानं. देखा ४ प्राण भग _ को नं. १ देखो । (१) मनुष्य मनि में १० का भंग व.न. पी कोन०१८ देखो ५ संज्ञा परिग्रह मंझा जानना १परिग्रह मंजा जानना को नं. १८ देखी को न.१ या ६ गनि १ मनुष्य गति जानना ७ इन्द्रिय जानि पंचेन्द्रिय जाति जानना . काय १ पसकाय जानना हयोग मारे भंग कांना देखो । (१)मनुष्य गति में ६ का भंग | को.नं. १ दवा कोनं०१८ देखा १० वेद | (0) अपगत वेद कोन.. एका १ योग का नं.१ देखो ११ कपाय मुम्म लाभ नानना (१) मनुष्य गति में मुम लोभ जानना को नं. १ देखो Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६८ मूक्ष्मसांपराय संयम में १ज्ञान toनं०१८ देखो १ दर्शन को नं. १५ देखो को०० देता १यम्यवत्व की नं - देखो १२ज्ञान सारे भंग केवल जान घराकर () (8) मनुष्य गति में ४ का भंग को० नं०१८देखोकी .नं.१५ देखो १३ संयम १। ।सूक्ष्म सांपराय संयम जानना १४ दर्शन सारे भंग कोन० ६७ देखा (१) मनुष्य गति में ३ का भंग को नं. १८ देखो। को नं. १८ देखो १५ लेश्या शुक्स लाया । (१) मनुष्य गति में १ शुक्ल लेश्या जानना। को नं० १८ देखा कोनं० १८ देखो. १६ भव्यत्व १ भव्य जानना १७ सम्यवाद सारे भग औपशमिक, मायिक य० (१) मनुष्य मान में २ का भंग __को नं. १८ देखा कोनं. १८ देखो १८ सजी १जी जानना। १६ याहारक माहारक जानना २० उपयोग सर भंग मानोपयोग ४, दर्शनोपयोगः (१) मनुष्य गति में ७ का भंग 'को.नं. १८ इत्री ये ७ जानना को० नं. १देखो २१ च्यान पृथक्ष निः विचार (8) मनुष्य गति में १ पृथान वितकं विचार शुक्ल ध्यान जानना का० नं०१८ देखो २२ मामब मारे रंग योग मूक्ष्म योग १ (१) मनुष्य गति में १० का भंग को.नं. १ दवा दे१० जानना कोनं०१८ देखा २३ भाष सारे भग उपशम-सायिक म०२, (१) मनुष्य गनि म २३ का भंग ' कोनं.१% देह उपशम-क्षायिक चरित्र को ना १५ देखो ज्ञान ४, दर्शन ,नधि ५. मनुष्य गनि मूक्ष्म सोभ १. शुक्न लश्या १, प्रज्ञान १.पसिद्धत्व १, जोधत्व भव्यत्य १ उपयोग कोन०१८ देखो भंग का० न०१ दलों १ भंग को म.१०दखा Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४. २५ २६ २७ २८ २६ 20 ३१ ३२ ३३ ३४ अवगाहना ३ हाथ से ५२५ धनुष तक जानना । - बंध प्रकृतियां - १७ उदय प्रकृतियां - ६० को० नं० १० देख י " सत्य प्रकृतियां - १४२-१३६-१३० - १०२ को० नं० १० संख्या - २६६ र ५६८ को० मं० १० देख क्षेत्र- लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन- लोक का प्रसंख्यातवां भाग जानना ( ४८५ ) काल- नाना जीवीं की अपेक्षा एक समय से प्रन्तर्मुहूर्त तक जानना एक जीव की रक्षा की वाले अन्तर्मुहूर्त से प्रन्तर्मुहूर्त जानना और उपशम श्रेणी वाले एक समय से अन्तर्मुहूर्त तक जानना । अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा क्षपक थेली में एक समय से ६ महीने तक जानता और नाना जीवों को अपेक्षा उपास शो में एक समय से व पृथक्त्व जानना और एक जीव की अपेक्षा उपशम श्रेणी में अन्त हुनं दोन अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक सूक्ष्म सांपराय संयम धारण न कर सके छाति (योनि) १४ लाख मनुष्य योनि जानना । कुल - १४ लाख कोटिकुल मनुष्य गति के जालना । Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६६ याख्यात संयम में क्र० स्थान | मामान्य पानाप पर्याप्त अपर्याप्त | एक जीव के नाना एक डोब के एक १ जीव के नाना । एक जीव के | ममय में भमय में । नाना जीवों की अपेक्षा । समय में एक समय में नाना गीत्र की अपेक्षा गुम्ग स्थान ' गारे गुग्ण स्थान । गगन ११ से १ ४ गुणा ११ मे १४नक के गृगाः । व गूगा जानना २ जीबसमान १ मंज्ञी प. प. अपर्याप्त (१) मनुष्य गति में 12) मनग्य गति में मंत्री पं० पर्याप्त जानना! : मझीप. यायांस मानना कान दम्पा को० नं. १८ सो ३ पदमि १ मंग १ भंग ? भंग भंग को ना१दत्रा (१) मनुष्य गति में को००१८ देहो कोनदा ) मनुष्य गति में कोल नं०१५ देखो कोनं०१५ दग्दो ६का भग का भग ___ का न १८ देखो वो नं. १५ दम्रो भंग नं १ दवा ) मनग्य गति में २का भन कोलनं देखा भंग ! भंग को नं. १ देखी कोल्न. १८देखो ४ प्रारण ! अंग को नं०१ देखो | (1) मनुष्य गान में को नं. १८ देखो १०.४१ केभंग वोल नं. १८ देखो ५संज्ञा 10) अपगत संज्ञा ६गति १ मनुष्य पनि जानना ७ इन्द्रिय जानि । १पंचन्द्रिय जाति जानना काय १ श्रमकाय जानना हयोग ! . सारे मंग मनोयोग४, बचनयोग: प्रो. मिश्र काययोग, ४, मौ० मिथ काय- कार्मागा काययोग योग १, प्रो० काय- । ये घटाकर (1) . 04.... .. मारे मंग १ योग प्रो. मिनफाययोग १ कार्मागा फाययोग । . - . . - - -. . -- - - - - - - Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६६ यथाख्यात संयम में . ००४ १ यांग १, कार्माण काय| (2) मनुष्य गति में कोनं०१८ देखो को नं. १ - देखो (१) मनग्य गति में देखो को नं०१८ देखो योग १, ११ यांग | १-५-३-० के भंग |२-१ के मन जानना कानं०१ देखो का नं.१- देखी १. वेद (0) अपगत बंद ११ कषाय (७) पाप १२ जान सारे भंग १ज्ञान मनियत-अवधि (१) मनुष्य गति में को नं० १८ देखो कोग्नं०१८ दवा (?) मनुष्य गति में की नं.१देखो कोन०१५ देखो मनः पयेय-केवल ज्ञान । ४-१ के भग .के.जनभान जानना कोक नं०१८ देखो का. न. १ को १३ संपम १ १ ययाल्यात नंयम जानना १४ दर्जन ४ सार भंग । दर्जन अचक्षु-यक्ष दर्शन-प्रवि- (१) मनुष्य गति में कोन०१८ दलो को न०१८ देखो (1) मनु'य गति में कोनं०१६ दमों का नं.१- देखो कंवल दर्शन ये ४ ३.१ केभंग कवन दर्गन जानना को न०१८ देखा की.नं.१ दशा १५ लेश्या १ शुक्ल लेश्या जानना १६ भव्यत्व १ भव्य जानना १७ सम्यकन्द मारे भंग १ सभ्यरसायिक मम्यवाद उपशम-भाविक स० ) मनप्य गति में को० नं० १८ देखो कोन०१ देखी को: नं१ दबा १-१ के भंग बा० नं०१८ देना । १८ गंजी नजी | (2) मनध्य गनि में को नं० १८ दवा कोनं दग्बो का... १८ देना 1.0 के मंग को नं०१८ देखो १६ पाहारक सारे मंग । १मस्या न भंग भवस्था माहारक, अनाहारक (1) मनुष्य नि म कोनं. १८ दखो कोनं। १:दगी (2) गनर व मामानंदगी को०१६ देखो १-१-१क भग 1- भंग कानं०१८ देखा को नाची Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ६६ यथाख्यात संयम में को न०१८ देखो .. ध्यान १. उपयोग सारे भंग । पयोग ! २ . सारे भंग १ उपयोग जानोपयंग ५. (१) मनुष्य गनि में को००१८ देखो को ग १८ देखो, (१) मनुष्य गति में को.न. १८ देखो कोन १८ देखो वर्णनांग योग ४ (६), ७-२ केभंग २का भंग का० नं.१ देखो २१ ध्यान शुक्ल प्यान जानना ((१) मनुष्य गति में को १८ देखो कोन १८ देखो (1) मनुष्य गति में को.नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो १-१-१-१के भंग १ मूश्म क्रिया प्रतिपाति को.नं१८ देस्रो को नं०१८ देखो २२ अाम्रब ११। | मारे भग । १ भंग . मारे भंग । मंग ऊपर के योग (११) प्रो. मिश्रकाययोग, । (१) मनुष्य गनि में को नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो कामरिण काययोग, २-१ के भंग ये २ घटाकर (६) को ना १८ देखो (१) मनुष्य गति में को० नं० १८ देखो कोन०१८ देखो | १-.-३-० के मंग को. नं.१८ देसो २३ माब २६ | सारे भंग १ भंग | मारे मंग मंग उपशम भम्यक्त्व१, (३) मनुष्य गति में को० नं. १८ देखो कोनं १ देखो (१) मनुष्य गति में को.नं. १५ देखो कोनं०१५ देखो उपशम चारित्र, ।। २१-२०-१४-१३ के भंग १५ का मंग क्षायिक भाव , को० नं०१५ देखो को००१८ देखो शान ४, दर्शन ३ । सन्धि, मनुष्य गति । मुक्ल लेया १, प्रज्ञान, प्रमिदव, जीवत्व १, भब्यत्व, पे २६ जानना २९ । Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २= २६ ३. ३१ ३२ ३१ ३४ ( ४१ ) - हाथ में ५२५ धनुष तक जानना । बंध प्रकृतियां - ११-१२० सातावेदनीय का बन्ध जानता को नं० ११-१२-१३ देखी १४ ० में अबन्ध जानना है उदय प्रकृति-११-१२-१६ गुगा० में क्रम मे ५६-५७-४२१२० का उदय जानना | को० नं० ११ से १४ देखो । सस्य प्रकृतियाँ-११-१२-१३-१४वें गुरु० में क्रम मे १४२-१३६-१०१-८५ (६१ र १३ ) का सत्व जानना को० नं० ११ मे १४ देखो संख्या-कफो० नं० ११ से १४ के समान जानना J क्षेत्र- लोक का असंख्यातवां भाग जानना । प्रसंख्यातवां भाग सर्वलोक, इसका विशेष खुलासा को० नं० १३ में देखो । स्पर्शन- ऊपर के क्षेत्रत्र जानना | बदामा जोवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना एक जीव की अपेक्षा उपगम सी वाला एक समय से अन्तर्मुहूर्त काल तक जानना । और क्षपक श्रेणी वालों की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से देश एक कोटिपूर्व वर्ष तक जानना । अन्तरमना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं, एक एक जीव की अपेक्षा उपणम श्रेणी में अन्तर्मुहूर्त से देशोन अर्थ पुद्गल परावर्तन काल तक यथाख्यात संयम धारण न कर सके । जाति (पनि) १४ लाख मनुष्य योनि जानना | वृ-१४ ला कोटिकुल में प्य को जानना । Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७० असम-संयमासंयम संयम-रहित (सिद्ध गति) में स्थान सामान्य मालाप पर्यात अपर्यात नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में ६-७-८ - --- प्रतीत ममा स्थान जानना जीव ममाम ॥ यहां अपर्याप्त पवम्था नहीं होती। - , पारिन - १ गुगा स्थान २ जोव ममाम : पयांति ४प्रागा ५सना ६ गति ७ इन्द्रिय जाति काय योग - - - - ११ कपाय १२ ज्ञान १२ संयम १४ दर्शन १५ लण्या १६ भव्यत्त १७ सम्यवाद १०मजो १६अहारक . २ उपयोग " सजा गति टिमिद्ध गति) जानना इन्द्रिय रहित प्रकाय प्रयोग अपगन वेद अकषाय १ केवल ज्ञान संयम संयमासयम-मयम से रहिन जानना १ बल दर्शन जानना अलश्या जानना अनुभम (न भव्य न प्रभव्य जानना १दायिक सम्यक्त्त जानना अनुभव (न संत्री न प्रसंगी) जानना पनुभय (न आहारक, न अनाहारका जानना केवन ज्ञान केवल दर्शनोपयोग दोनों युगपत् जानना मतीत ध्यान जानना ग्रमानव जानना क्षायिक ज्ञान-दर्शन पौर्य-सम्मकाय ये ४, प्रौर । जीवन्न ? ये ५ जानना २२ प्रारब भाव Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANANAMAN मूचना: -कोई मानार्य बाधिक भाव और जीवस्व १ मे १० भाव मानते हैं। अवगाहना - का हाथ मे ४२५ धनुष नक जानना । पंप प्रतियोउच्य प्रकृतिया-- सत्त्वसंस्था अनन्न जानना । क्षेत्र १५ लाख पोजन मिड शिना जानना । स्पर्शन मिद्ध भगवान् स्थिर रहते हैं। काल सर्वलोक जानना । अन्तरजाति (पोनि) Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०७१ अचक्षु दर्शन में चौंतीस स्थान दर्शन ऋ० स्थान सामान्य बालाग पर्याप्त अपर्याप्त जीव के नाना समय में 'एक जोध के नाना एक जीव के एकः | समय में समय में | नाना जीवों को अपेक्षा नाना जीव की अपेक्षा एक जीव के एक समय में NC १४ । गुग पान १२ | सारे गुमा. गुग्म. सारे गुगा स्वान | १ गुगा. १ म १० तक के गुण. (१) नरक गति में अपन अपने स्थान के अपने प्रपन्न स्थान। (१) नरक गति में अपने अपने स्थान वपन अपने स्थान मे ४ गुगा । सारे गुगा म्बान के सारे गुण में न ४थे । सारे गुण म्बान के सारे गुग में १) निवन गति म जानना से कोई १ गुरण ! (२) तियं च गति में जानना में कोई १ मुण १ गनुग १-२ मुरा० जानना भोग भूमि में भोग भूमि में १-२-४ 11) मनुष्य गति में (३) मनुष्य गति में ! भीम भूमि में | मांग भूमि में १ से. (४) देव शनि में (४) देवनि में १ से १४/ ७पर्याप्त अवस्था । १ समास १ समास । ७ अपर्याप्त अवस्था । १ ममाम १ समास को ना१दंता । (१) नरक-मनुष्यन्दवर्गान में कोनं०१६-१८- कोन०१६-१०- (:) नरक-मनुथ्य-देवगति को०म०१६-.-१९ कोन०१६-२८हरेक में । १६ खो देखो । म हरेक में दंगा १६ देवी १ सजी पवेन्द्रिय पर्याप्त । १मजी पं. अपर्याप्त जानना जानना को० न०१६.१८-१६ कोन. १६-१८-१६ दंगा टेखो (२) निपन गति में ..मभाग मनाम तिर्यच मनि में १ममाम १समाग 5.१ के नम को न०१७ देखी कोल्नं०१७ देखी ७-६.१ के भम कान १७ देखा कीलन१७ दमा को ०१ देखा को. नं. दवा Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ चौंतीस स्थान दर्शन २ को० नं० १ देखो ५ गुंजा को० नं० १ देखी 1 १ मंग 1 १ मंग (१) नरक मनुष्य गति में को० नं० १६-१६ को ० २६-१०१६ देखी १६ देखी हरेक में ६ का मंग 1 को० नं० १६-१०-१२ देखो (२) नियंति में ६-१-४-६ के भंग को० नं०] १७ देखी ܕ ४प्राण १ मंग [को०नं० १ देखा (१) नरक मनुष्य देवर्गात में को० नं० १६-१८ १६ देख हरेक में १० का भंग १० नं०] १६ १६ १६ देखो (२) निर्यच गति में ( YER } कोष्टक नं० ७१ ९ भंग १०-६---७-६-४-१० के भंग को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखी 6 (२) मनुष्य गति में ? भंग १ भंग को० नं० १७ देखो [को० नं० १० देखो १ भग (१) नरक-निर्यच देव मति मे को० नं०१६-१७ १६ देखी हरेक में ४ का भंग को० नं० १९-१०-१३ વો ४३-२१ ० ४ के मंग को०म० १८ देखो ३ १ भंग १ भंग २६ देखी (१) नरक मनुष्य- देवगति को० नं०१६-१००१६-१८में हरेक म का भंग को० नं० १६० १६० १६ देखो । १२ देख (२) नियंच गति में ३३ के भंग को नं० १० देखी अपने अपने स्थान को ६-२-४ पर्याप्त भी होती है। 1 ७ I 1 १ मंग कोनं १६-१०१६ देखी १ भंग कामं० १० देखी १ भग को० नं० १६-१७ १६ देखी १ भंग १६ देखी ( १ ) नरक मनुष्य-देवगति को० न० १६-१८० हरेक में | का भंग को० नं० १६.१० १३ देखो (२) तिचंच पति में ५-७-६-५-४-३ के मंग को० नं० १७ देखी १ भंग [को० नं०] १० देखो अचक्षु दर्शन में I मारे भंग १ भंग को० नं० १८ देखो की०न० १८ देखी T १ भंग को० नं० १७ देखी 1 3 १ भंग १६ दंत्रो (१) निच-मनुष्य- देवगतिको० नं० १६-१७ में हरेक में ४ वा भंग को० नं० १६ १७ १६ देख (३) मनुष्य गति में ४- के मंग को० नं० १८ देख १ मंग कीन० १७ देखी ] १ भंग को० नं० १६-१८ १६ देखी १ भंग को० नं० १७ देख १ योग १६ केन्द्रो को०नं १६-१७ सारे मंग १ मंग को० नं० १ देखो को० नं० १० देखो Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस म्थान दर्शन कोप्टक नं०७१ अचक्षु दर्शन में ६ गति ४ को ना१देश्यी ७ इन्द्रिय जाति ५ को.नं.१ देखो जानि गनि गति १ गति गति चारों गति जानना | चारों पगि जानना १ ज निजाति जाति (१) नरक-मध्य-देवगति में को.नं.१६-१८-कोनं-१६-१- (१) नरक-मनप्य-देव | को०० १६-१८- को.नं.१६-११६ देखो . १६ देखो गति में हरेक में १६ देसो १९ देखो १ पंचेन्द्रिय जाति जानना | पंचेन्द्रिय जाति जानना को नं0-१८-१६ देखो कोनं०१६-१८-१९ देखो (२) तिर्यच गति में १जाति जाति (२) नियंच गति में जाति । १जाति ५-१-2 के भंग को नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो। ५-३ के मंग को नं. १७ देखो कोनं.१७ देखो को० नं० १७ देखी को.नं. १७ देखो को००१ देखो । (१) नरक-मनुप्य-देवगति में को नं०१६-१-कोनं०१६-१८ (१) नरक-मनुष्य-देव गति को० नं० १६-१८-कोनं १६-१८हरेक में १६ देखो १९ देखो में हरेक में | १९ देखो १६ देखो १ प्रसकाय जानना | सकाय जानना को० नं०१६-१८-१९ देखो को नं०.१६-१८- देखो (२) निर्यच गति में काय काय (२तिर्यन गति में काय काय ६-१-१-के भंग को.नं. १७ देलो को००१७ देखो:-1-1 के भंग को नं०१७ देखो को नं. १७ देखो को० नं०१७ देखो की.नं. १७ देखो १ भंग १योग ! भंग १ योग को.नं. २६ देखो प्रो० मिथकाययोग १, प्रो० मिश्रकाययोग १, वै. मिश्रकाययोग १, 4. मिश्रकाययोग १, पा० मिश्रकाययोग. प्रा. मिश्रकाययोग १. काम्गि कायपोग। कार्माण काययोग। मे ४ चटाकर (११) । ये ४ योग जानना (१) नरक-देवर्गात में अंग १ योग ।( नरक-देवगति में १ मोग को० नं. १६-१६ को नं. १६-१६॥ हरेक में को.नं०१६-१६ कोनं०१६-१७ का मंग देखो १-२ के भंग - देखो को० नं०१५-१६ देखो कोनं. १६-१६ देखो Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चर्चातीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७१ प्रचक्षु दर्शन में T भंग योग को० नं १७ देखो कोनं०१७ देखो (3) तिर्थन गति में । ---1-6 के भंग को नं. १३ देखो (३) मनुस्य गति में --- के भग बोल नं.१८देखो १ भंग १ योग (२) निर्यच गति में को.नं. १७ देखो कोन०१७ देखो | १-२-१-२ के मंग | कोन०१७ देखो सार भंग यांग (३) मनुष्य गति म को.न.१८ देखाको .नं०१८ देखा। १-१-१-२ के भग कोनं १८ देखो सारं भंग योग को.नं.१६ देखी कोन०१८ देखो ३ के मंग को० नं.१ देखो (१) नरक गति में कोन ६ देताकोनं.१६ देखी नरक गति में को० नं०१६ देखी कोखो १नपुसक वेद जानना १ नमक वेद जानना को० न० ६ देखो कोन :६ देखो (२) निर्यच गति में () तियंच गति में ३-१-१-२ के भंग को मं०१७ देखो कोनं० १७ देखी १.१-६-३-१-३-२-१ को नं०१७ देखो कोनं०७देसो को नं. १७ देखो (२) मनुष्य गति में | सारे भंग १ वेद को न०१५ देखी । ३-३-३-१-३-३-२-१-०. को नं०१८ देखो कोल्नं०१५ देखो। (३) मनुष्य गति में । सारे भंग | वंद २के भंग | :-१-१-२-१ के भग को० नं०१८ देखो शेनं०१८ देखो को न.१ देखी को० नं. १८ देखी (४) देवनि में सारे मंग 11वेद (४) देवगति म सार भंग वेद २-१-१के भंग को०१६ देखो को.नं.१६ देखो| २-१-१ के भंग को० न०१६ देखो को नं०१६देखो कोन १६ देखो कोनं०१६ देखो ११कषाय २५ सार भंग भग ५ i सारे भा १ भंग को० नं०१देखो। (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो कोनं १६ देखो | (१) नरक गति में का नं १६ देखो को नं०१६ देखो २३-१६ के भंग २३-१६ के मन ० नं. १६ देखो कोनं १६ देखो । (नियंच गति में | मारे भंग भंग (२) तिर्यच गति में सारे मंग भं ग २५३-२५.२५.११.१७- ०नं०१७ दलो कोन०१७ देखो २५-१३-२५२५-२३.२५ को नं. १७ देशो कोन०१७देखो २.२० के भंग -८-१६ के भग कानं०१७ देखो का नं०१७ देखी Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७१ अचक्षुदर्शन में ! देखो देखो भंग --- -- - - -- - -- - ----- - -- : (३) मनुष्य गनि में । सारे भंग , भंग (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ मंग २५.२१-१७.१३.११-१३. कां. ०१ देखो। को.नं. १८, २५-११-११-२१-१६ के मो. नं०१ देखो | को नं०१८ । देखो | भंग-को नं. १० २८-२०के भंग-को० नं० (४) देवगति में गारे भंग १ मंग (४) देवनि में सारे भंग १ भंग २४.२४-02-१६-१६ को ०१६ देखो | कोन. १९ २४-००-२६-११-१६ के को मं०१६ देखो को नं०१६ के भंग को नं०१८ देखो भंग को नं०१९ देखा .. मारेभंग । १जान १२ जाम शारे मंग ? ज्ञान । कुपवधि जान १, केवल जान १ घटाकर | (१) नरक गति में को नं. १६ देणे को नं. १६ मनः पर्वय ज्ञान, मेष (5) जानना ३-2 के मंग । २ घटाकर (५) को नं०१३ देखो जान (1) नरतः पति में को० नं. १६ देखो, को० मं०१६ । (२) नियंच गनि में 'कॉ० नं.१. २-३ के मंग -:-:-:-३ केभंग बोर न०१७ देखो | देखो का नं० १६ देखा | कोनं देवो 1) लिव गतिम भंग १ज्ञान 11३; गभृष्य गति में सारे भंग नान २-२-३ चे भंग को० ०१७ देखो । को न०१. -३-४-३-४-2-३ के भंग को० न०१८ देखो को० नं. १ को० नं०१७ देखो को नं०८ देखो । देखो (1) मनुष्य गति में सारे भंग 116) देवगति में मारे मंग जान ६-३-३-5.के मंग को .१% देखों को ०१५ ३.१के भग कोल नं0 १६ देवी को नं. को.नं. : देखो । कॉ० सम्वों i ) देवगन में | मारे भंग १जान । २-२-३३ के भंग कोर नं०१६ देखो। को० नं.१६ | को.नं. १६ देखो १३ संयम कारनं.२६ देखो ) नरक-देवगनि में हक में को. १६. कोनं-१६ मंयमासयम, परिहार | १ अनंयम जानना १६ देवा । देखो | वि०, गुणमापनय, ने ३ ___ को० नं०१६-१६ देगा । घटाकर (४) जानना (२) तिर्यच गति में भंग १ संयम !(१) नरक -देवमति में को० नं. १६-१६ | को० नं. १६. १-2-2 के भग को नं १३ देवी को न०१७ | हाक में देखो १६ देखो । देखो ___ १ असंयम जानना / देनी सारे मंग १ज्ञान . देखो Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७१ अचक्षु दर्शन में 71 ॥ कोल नं.१७ देखो (३) मनुष्य गनि में १-१-३-२-३-२-१-१-१ के मंग ! को न० १६-१६ देखो । (१) नियंच गति में १भंग १संयम को० नं.१८ देग्दो कोनं०१ देखो १-१ के भंग को.नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो को०१७ देखो (१) मनुष्य गति में । सारे भंग १संयम 1-3.1 के भंग कोग्नं०१८ देवो कोनं०१६देखो को.नं. १८ देखो १४ दर्षन चारों गनियों में १ अचन दर्शन जानना १५ लच्या , मंग नेण्या १ भंग १ लश्या की.नं. १ देखो (१) नरक गति में को.नं.१६ देखो कोन-१६ देस्रो (१) नरक गति में सोनं०१६ देखो कोनं० १९ देखो ३ का भंग ३ का मंग कानं०.६ देखो को.नं. १६ देखो (१) नियंच गति में १ मंग लेश्या (१) निर्यच गति में १भनलेल्या 2-5--22 भंग को.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो 1-1 के मंग कोनं ०१७ देखो कोन. १७ देखो को नं०१७ देखो कोनं १७ देखो (३) मनग्य मति में सारे भंग १ लेण्या () मभूम गति में मारे भंग १ लेश्या ६-३-१-३ के भंग को.नं. १८ देखो कोनं१ देखो ६-६-१ के भंग को.नं०१८ दंखो को नं. १५दे। को० नं०१६ देखो कोनं-१८ देखो (४) देवगति में १ मंग ले ल्या () देवगन में १ भंग १लेल्या १-३-१. के भंग | कोनं०१९ देखो कोनं०१६ देखो ३-३-१-१के मंग ___ को.नं.१६ देखो कोनं-१६ देखो को नं०१६ देखो .को नं० १६ देखो १६ भव्यस्थ १अवस्था भव्य, प्रभव्य । चारों मनियों में फो.नं०१६ मे १६ को नं० १६ से चागें गलियों में तको १६ से १६ को नं. १६ से हरेक में देखो १६ देखो हरेब में १६ देखो २.1 के भंग २-1 के भंग को० नं०१६ से १६ देखो | कोनं-१८ से १६ देखो। १भग Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( Yes ) कोष्टक नं०७१ चौतीस स्थान दर्शन अचक्ष दर्शन में १ राम्रक्व मारे भंग १सम्यवाद मारे भन । १ सम्यक्त्व कोल्नं १ दखो |(१) नरक गति में की नं०१६ देखो कोनं०१६ देखा भित्र घटाकर (2) १-१-१-२-२के भंग । (१) नरक गति में को० नं० १६ देखा कोन० १६ देखो को न देखा १-२के भग नियंच गति में मंग मम्यक्त्व कोन १६ देखा |१-१-१-३-१-१-१-३ के भगको० नं. १७ दखो कोन०१७ देखो (२) निर्यच गति में १ मंग म म्यवस्व की० न०१३ देता। १-१-.--: के मंग कोर नं. १८ देखो को नं०१७ देवो 1(8) मनुष्य गनि में सारे भंग सम्बवत्व का नं०१७ देखो । १-१-१-३-३-२-३-२-को० न०१५देखा कोर्न १८ देखा (३) मनुथ्य गति में | सारे भंग १ सम्यक्त्व १-१-१-१-३ के भंग । १- -२-२.१-१-२ को नं.१८ देखा कोल्नं०१८ दलो को० न० दख के भंग १४) दवर्गान में सार मंग १ मम्यवत्व को नं. १८ देखो ! १-१-१-२-१-२के भंग को० नं. १६ देखो कोन.१६ देखो (४) देवगनि में मारे भंग सभ्यरष क्रा० नं. १६ देखो -१-३ के भंग कोन०१६ देखो कोनं०१६ देखो का० नं०१६ देखो १८ यज्ञी २ । १ प्रवस्था १ भंग १अवस्था । संजी, संजी ) नरक-मनुष्य-देवनि में कोम १६-4-कानं.१.१(१) नरक-मनुष्य-देवगति को.नं. १६-१८- कोन०१६-१८. में हरेक में १६ देखो १६ देखो मशी जानना १मजी जानना चीन?:-14-2 । का नं. ८-१८-१९ । दखा ।(B) मिच गति में । भंम १ प्रवस्था (नियंच गति में १ भंग १ अवस्था 1-1-1-7 के भगवां नं १७ देखा कोनं०१७ देखो -१-१-१-१-१ को भंग झा००१७ देसो कोनं०१७ देखों कारन०१३ देखा कोनं०१७देखो । १६ माहारक १भग १ अवस्था माहाक, प्रनाहारक (१) नाक-देवमनियों में की.नं०१६-१६ को० नं०१६-१६ (१) नरक-देवनि को न.१-१६ कोन०६१-१९हरकम देखो हरेक १ साहारक जानना १-१ व भंग को नं०१-१२ दवा को० न०१-१६ देखो Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७१ अचक्षु दर्शन में V _ -- (२) नियंच-मनुष्य गति में मारे भंग । अवस्था । (२) तिथंच गति में हरेक में वो.नं.१७-१८ को० न०१७-१-१-१.१ के भंग १-१ के भंग-कोर नं. देखो | १८ देखो 'को० नं.१७ देखो १७-१८ देवो (३) मनुष्य गनि में १-2-1-1-१ के भंग को० नं. देखो १ भंग १प्रवस्था को.नं.१७ देखो को ने०१७ । देखो सारे मंग | अवस्था फो.नं.१ देखो फो.नं.१५ देखो २० उपयोग १भंग १उपयोग भंग १ उपयोग जानो यांग ७. दर्शनो-(.) मरका कति में के.नं.१६ देखो | को० न०१६ अप्रवधि जान १, मनः | पयोग १ वे (! का भंग को.नं.१६ । पर्यय जान १ये २ पटाके ५ के मंग में से जिसका विचार करो प्रदर्शन | (१) नरकगनि में कोन०१६ देखो को नं १६ छोड़कर अप दर्शन है ३ का भंग-को० . १ देखो टाकर का भय के ४ के मंग में से जानना पर्याप्तवत शेष १ दर्णन ४ का भंग-कोनं०१: घटाकर ३ का भंग के भंगों में गे जार जानना के समान शेष: दर्शन ४ का भंग-को नं.१६ घटाकर ४ का भंग । के के मंग में मे जानना पर्याप्तवन २ दर्शन घटा४ का मंग-कोन कर ४ का मंग जानना +६ के भंग में में कार के (२) चि गति में । १ भम । १ उपयोग ममममेष दर्शन घटा ३ का मंग-कोन.१७ को० नं. १५ देखो० नं०१७ कर४ का मंग जानना के ममान जानना (B) निर्वन गति में अंग १ उपयोग। ३-३ के मग-को० नं. का भंग-को० नं. १ को.नं.१७ देखो, को नं. १० [१७के ४-४ के अंगों में | के ममान जानना में में पर्याप्तवत् शेष का मंग-कोर नं.१३ | दर्शन घटाकर ३-३ के के के भंग में में ऊपर भंय जानना देखो Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७१ अचक्षु दर्शन में ------ समान शेष १ दर्णन घटा ३ का भंग-कोन ३ का भंग जानना १७ के समान जानना ४ का मंग-कोनं०१७ | ३-३-३ के मंग-को के ५ के भंग में से ऊपर - १० के ४-४-४ के भंगों । के समान शेष दर्शन १ घटा में से पर्याप्तवत् शेष १ ४ का भंग जानना दमन घटाकर ३-३.३ ४-४ के भंग-कोनं० के भंग जानना १७:के -के मंग में से ४ का भंग-कोनं-१७ ऊपर के समान शेष २ के के भंग में से दर्शन घटाकर४-के भंग | पर्याप्नवत् शेष २ दर्शन . जानना घटाकर ४ का भंग . ४ का भंग-को० न०१७ जानना के ५के भंग में से ऊपर (३) मनुष्य गति में मार मंग १ उपयोग के समान शेष एक दर्शन का भग-को० नं०१८ को ना १८ देखा: को० नं०१६ पटाकर ४ का भंग के ४ के भंगा में से । देखो जानना पर्याप्तवत संप १ दर्शन ४.४ के भंग-की नं. पटाकर २ का भग १७के ६-६ के मंग में से जानना ऊपर के प्रमान शेष २ ४-४ का मंग- कोना दर्शन घटाकर,४-के भंग १८ के ६.६ के भगों में जानना सं पर्याप्नवत पर ३) मनुष्य गति में सारे भंग ।उपयोग | घटाकर ४-४ के भंग . ४ क भंग-को० नं० १को० नं०१८ देखो को नं० १८ जानना के ५ के मंग में से ऊपर ३ का भंग-को- नं0 के समान बशेष दर्शन १८ के ४ के भंग म में , घटाकर का मंग पर्याप्नवत शेष दर्शन जानना घटाकर ६ का भंग ४-1-1-५ के मंग-को०० जानना १८ के ६-६.७-७ के हरेक ४ का भंग-को. नं.१८ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७१ प्रचक्ष दर्शन में मंग में से ऊपर के समान के ६ के भंग में से गए २ दर्शन घटाकर ४-४ पर्याप्तवत मोष २ दर्शन ५-५ के भंग जानना घटाकर ४ का भंग ४ का भंग-को० न०१८ जानना के भोगभूमि के ५ के भग (1) देवगति में १ भग १ उपयोग में स ऊपर के समान शेष ३-३ के मंग-को० नं. को० नं.१६ देखी | को० नं०१६ १ दर्शन घटाकर ४ का १६ के ४.४ के हरेक देखो भंग जानना भंग में से पर्याप्तवत् शेष ४-४ के मंग-को० नं १ दर्शन घटाकर ३-३ १८ के भोगभूमि के ६-६ के भग जानना के हरेक मंग मस ऊपर ४.४ के भंग-को.नं. के समान शेष २ दर्शन १६ के ६-६ के हरेक भग घटाकर ४-४ के भंग | में मे पर्याप्तवत् शेष २ जानना दर्शन घटाकर ४-४ के (४) देवगति में भंग १ उपयोग | भंग जानना ४-५ + मंग-को० नंको0नं0१८ देवा को नं० १९ १६५-६ के हरेक भंग । में में ऊपर के समान शेष १ दर्शन घटाकर ४.५ के भंग जानना ४ का मंग-को० नं०१६ के के हरेक भंग में से ऊपर के समान शेष २ दर्शन घटाकर ४ का भग जानना २१ प्यान सारे अंग सारे भंग १ध्यान पुश्मक्रिया प्रति- (१) नरक-देवगति में हरेक में | का नं०१६-१ का नं.१६- मार्तघ्यान 'रोदध्यान पानी १, ब्युपरन ८-1-10 के भंग-को० नं० देखो क्रिया निवतिनी १ | १६-१६ देखो। धर्मध्यान ४ ये (१२) देखा Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७१ अचक्षु दर्शन में ये मुक्न ध्यान (B) नियंच गनिमें १ भंग । १ व्या१ -कनिमें को.नं.-१ को नं०१६-१६ पटाकर १८ जानना ८-९-१५-21---1-१० केभंग को नं० १७ देखो कोनं १७ देवो हरेक में को न०१७ देखा। E-6 के अंग (३) मनु य गति में सार, भंग , पान को न.१-१६खा ८-८-१०-११-४-१-१ को नं. १८ देखो कोनं०१८ देवो ( ) निर्यच गनिमें १ भंग ध्यान -६-१० के भंग ८-८-5 के अंग कोनं १७ देखो को न देखो को ०१- देखो कोनं १७ देखो 1) मनुष्य गति में मारे भंग १ ध्यान ८---- के भंग को० नं० १५ देबो को नं. १७देखो २२ प्राव को.नं.१८ देखो मिथ्यात्व , मारे भंग ! १ मंय 4 सारे भंग १ मंग अविरत १२, और मिश्वक पयोग , मनोयोग ४, बचनयोग योग५ कषाय २५ । 4 मिश्रकाययोग १, पी. काययोग, य ५७ जानना मा० मिश्रकायोग , दै० काययोग । कार्माग काययोब १ पाहारक काययोग १, । ये ४ घटाकर (५३) ११ घटाकर (४६) ! (१) नरक गति में मा भंग । १ भंग (.) नरक गति में सारे मंग मं ४६-४४-४० के मंग को० नं०१६ देखो कोनं १६ देखी २-३३ के भंग को नं०१६ देखो कोनं.१६ देखो कोनं १६ देवो को.नं. १६ देखो ! (२) तिर्यच गति में (२) नियंच पनि में । मारे भंग १ नंग ३६-३८-३६-४.-४३-५१.को.नं.१७ देखो कोनं०१७ देखो ३७-१८-३६--10-४३-को० 10१७ देखो कोन०१७ देखो ४६-४२-३७-५.७.४५-४१- । ४५-३२-३३-३४-३५के मंग ३५-३६-४३-२६-३। को.नं. १७ देखो के भंग (३) मनुप्प गति में सारे भंग १ को नं.१७देची ५१-४६-४२-३७-२२-१०- कोन-१८ देखो कोन०१८ देखो (३) मनुष्य गान में । गारे भंग १ भंग २२-१५.१५.१४-१३-१०. ४४-९-३३-१०-४३-कोनं १८ देवो कोनं १८ देखो ११-१०-०-६-2०-४५ ३८-३३के भंग ४. के भग को नं०१० देखो को नं. १८ दन्नी मप Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ७१ अचक्षु दर्शन में । १ भंग Theन देखो। (४) देवगति में सारे भंग १ भंग (४) देवति में सारे मंग ५.०-४५-४१-४६-४४.४०-को. नं० १९ देखो को० नं०१९४३-३८-३३-४२-३७-३३- को० नं.११ देखो| कोन ४० के भंग को.नं. १६ ३३ के भंग- कोन देखो १६ देखो २३ माव सारे मंग १ ६ . सारे भंग १ भंग उपशम सम्यकद १, (१) नरक गति में को. नं०१६ देखो | को० न० १६ उपशम चारित्र, उपशम चारित्र, २५-२३ के भंग-को० नं. क्षायिक चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व १, १६ के २६-२४ के हरेक यवधिशान १ क्षायिक चारित्र १, भंग में से जिसका विचार मनः पर्यय ज्ञान १ । कुज्ञान ३. अन ४, । करो यो १ दर्शन छोड़कर संयमासंयम १, ५..., अचक्षुदान १. लब्धि ५. मेष १ दर्शन घटाकर २५ घटाकर (३६) वेदक स. १, सराग- २३ के मंग जाना (१) नरक गति में सारे भंग १ भंग संगम १, संयमासंयम १, -६-२६-२५ के मंग-को २४ का मंग-को.नं. को.नं० १६ देखो | को० न०१६ गति ४, कषाय ४, । नं०१६ के २५-२८-२७ १६ के २५ के भंग में देखो लिंग ३, लश्या ६, । के हरेक मंग में में ऊपर से पर्याप्तवत् शेष १ दर्शन | मिथ्यादर्शन १, असंयम १, के समान शेष २ दर्शन घटाकर २४ का मंग अज्ञान, प्रसिद्धत्व है। बटाकर २३-२६-२५ के । जानना पारिगामिक भाव ३, मंगजानना २५ का भंग-को०० ४. जानना । (२) तिर्यच मति में सारे भंग , भग १६ २० क भंग में से का भंग-का० नं. को.नं.१३ देना का नं०१७ पर्याजवत ग्रेग २ वर्णन । १७ के समान जानना दम्बो घटाकर २५ का भग २४-२६-३०-२८ के मंग जानना को नं. १० के २५-२७- | 1) तिच गनि में मार भंग १ अंग ३१-२६ के हरेक भंग में २४ का भंग-का० नं. कोन. १७ देवा । को.नं. १५ में कार के समान थप १ । १३ के समान जानना दर्शन घटाकर २४-०६- | २४-६-२६ के संग३०.०८ के भंग जानना को० नं०७ के २५. २८-30--- के भंग को २७-03-के हक भग नं०१७ के 10 में मे पयांतदत गर Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन 1 !! २ ३ के हरेक भंग में ऊपर के समान २ दर्शन घटावर २८-३०-२७ I भंग जानना २६-२ के मंग को० नं० १७ के २७-२५ के हरेक भंग में से ऊपर के समान शेष घटाकर २६-२४ के भंग जानना दर्शन | २४-२७ में मंग को० नं० १७ के २६-२९ के हरेक में में ऊपर के समान शेष २ दर्शन घटाकर २४-२७ के भंग जानना (३) मनुष्य गति में I ३०-२८ के मंग को० नं० १५ के ३१-२६ के हरेक मंग में से ऊपर के समान शेष दर्शन | घटाकर ३०-२८ के भंग जानना २८-३१-२६-२१-२५२६-२७-२७-२६-२४२४-२३-२२-२१-२११६-१८ के भंग को० नं० १० के ०-३३३०-३१-२७-३१-१६२१-२६-२७-२६-२५ ( ५०४ } कोष्टक नं० ७१ ४ नारे मग १ मंग को० नं० १= देखो को० नं० १८ देखी Į ६ १ दर्शन घटाकर २४ २६० के २५ का भंग को० नं०१७ के समान जानना २२-२४-२४ के भंग को० नं० १० के २३२५-२५ के हरेक मंग में पर्यावन व १ दर्शन घटाकर २२-२२० के भंग जानना २३-२१ के भंग को० नं० १० के २४-२२ के हरेक भंग मे मे पर्याहवशेष दर्शन घटाकर २३-२१ के भंग जानना २३ का भंग कां० नं० १७ के २५ के भंग में से पर्याप्तत्रत शेष २ दर्जन ढाकर २३ का भंग जानना (३) मनुष्य गति में २६-२० के मंग को नं०१८ के ३०-२८ के हरेक भाग में से पर्याप्तवत् १ दर्शन घटाकर । २६-२७ के भंग जानना । २८-२५ के मंग को० नं०१८ के १० ७ " " मारे मंग को० नं० १८ देखो दर्शन में " १ भंग को० नं० १८ देखो " Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७१ प्रचक्षु दर्शन में २४-२२-२२-२१-२.के २" के हरेक भंग में में हरेक भंग में में ऊपर के पर्याभवन शेप वर्णन समान शेग २ दर्शन घटा घटाकर २८.२५ के भंग कर २८-३१-२८-२९ जानना २५-२६-२७-२७-२६ ३२१ के भंग : २५-२४-१-२२-२१ को० नं . के २४-. २१-१६-१८ के भंग के हरेक भंग में में जानना ! पर्याप्नयन भेष दर्शन २६-२४ के भंग घटाकर २३२१ के भंग | को नं०१८ ोग भूमि जानना भूमि के २७-२५ के हरेक | २३ भा भंग को मंग में मे ऊपर के समान १८के २५ के भंग में मे दोष दर्शन घटाकर २६ पर्याप्तवन शेष २ दर्शन २४ के मंग जानना घटाकर ३ चा भंग २४-२७ के मंग को० नं० जानना ५८ के २६-२६ के हरेक | 16) देवगनि मैं । सारे मंग । मंग भंग में से ऊपर के समान २५ २३-२५-२ के भंग को० नं.१६ देलो कोनं०१६ देखो मेष २ दर्शन घटाकर २४- ' कोन०१६ के २६ २४के भंग जानना २६.२४ के हरेक भंग | 11) देवगति में में से पर्याप्नवत् ष । २८-२२ के मंग कोनं०१ देखो कोनं १६ देखो दर्शन घटाकर ५-०३को.नं.१६ के २५-२३ २५-२३ के मंग जानना के हरेक भंग में से ऊपर २६ के अंग को० नं०। के ममान शेष १ दर्शन | १६ के २८के अंग में मे घटाकर २४-२२ के मंग। 44जिवत शेष दर्शन जानना घटाकर २६ का भंग २२-२४ के मंग जानना को.नं०१६ के २४-२६ २२-२० के अंग के हरेक अंग में मे ऊपर को.नं.१६ के २३ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७१ अचक्षु दर्शन में २१के मंग में से पर्याप्तवत । शेष १ दर्शन घटाकर . २२-२० केभंग जानमा २४-२४ के भंग | को.नं. १६ के २६-२ के हरेक मंग में में पर्याप्तवत् शेप २ दर्शन घटाकर २४-२४ के भंग : जानना के समान शेष २ दर्शन घटाकर २२-२४ के भंग जानना २६-२४ को.नं. १६ के २७-२५ के | हरेक भंग में से अपर के समान शेष १.दर्शन घटाकर २६-२४ के भंग जानना २४-२७ के भंग को० नं०१६ के २६.२६ हरेक मंग में से ऊपर के समान शेष २ दर्शन घटाकर २४.२७ के भंग जानना २३-२१ के भंग को.नं. १६ के २४-२२ के हरेक मंग में में ऊपर के समान शेष । दर्शन | घटाकर २३-२१ के भंग । जानना २२-२४-३ के भंग ना० नं. १६ के २३. २६.०५ के हरेक भंग में । में ऊपर के समान मेष वर्णन घटाकर २१.२४-०। के मंग जानना Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-कोन० १६ से २४ देखो। बंब प्रकृतियां-- को० न०१ से १२ के ममान जानना । उदय प्रकृतिया- " सत्व लिया- " . संख्या-अनन्तानन्त जानना। मेष-सर्वलोक जानना। स्पर्शन-मलोक जानमा । बाल--नाना जीवों को अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा सिद्ध होने वाले बीयों को अपेक्षा अनादिमात जानना और नित्य निगोद जीवों को अपेक्षा अनादि मनन्त जानना । Wail -डाई मन मालि (योनि)-८४ लाख योनि जानना। दुल-१६६ लाख कोटिकुल जानना । ३४ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन स्थान सामान्य मालाप २ १ गुण स्थान १२ १ से १२ तक जानना २ जीव समास चक्षुरिद्रय प० अप प्रसज्ञी पं० प० प संजीप० प० मर्याति ये जानना ३ पर्याप्त को० नं० १ देखो पर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा 17 [को० नं० ७१ देखी परन्तु यहां दर्शन के जगह चक्षुदर्शन जाना पर्याप्त अवस्था (१) नरक मनुष्य- देवगति में हरेक में १ संत्री पंचेद्रिय पर्याप्त जानना को० नं० ६ १६ १६ देखी (२) वियंच गति में एकेन्द्रिय सूक्ष्म बादर १० जीव समास २ हीन्द्रिय १ १४ घटाजीव-समास कर जानना १-१ के भंग-को० नं० १७ देखी ( ५०८ ) कोष्टक नं० ७२ ܪ एक जीव के नाना एक जोब के एक समय में समय में १ समास १ जीव समास - को० नं० [को० नं० १० देखो १७ के ७ के भंग में से सारे गुण स्थान को० नं० ७१ देखो १ समास को० नं० १६-१८ १६ देखो " १ मंग ६१) नरक-मनुष्य-देवगति में को० नं० १६-१८० हरेक में १६ देखो " १ गुग्ग० को० नं० ७१ देखो १ समास की० नं० १६१५-१६ देखो १ समास को न० १७ देखा . प्रपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा '' को० नं० ७१ देखो चक्षु दर्शन में १ जीव के नाना समय में ७ सारे गुण स्थान [को० नं० ७१ देखी १ समास ३ अपयश स्था I (१) नरक- मनुष्य-देवगन को न० १६-१८में : टेक म १६ देखो १ मनी पंचेन्द्रिय प जानना को०० १६ १६ १६ देख (२) नियंच गति मं : जीव-समास प्रपय [अवस्था पर्याप्तवत् जाना १ का भंग-भोगभूमि प्रपेक्षा को० नं० १७ देवां १ जीव के एक समय में 1 १ मंग 2 १ भंग को १६ ११ नरक मनुष्य देवति न १६-१८ " देखें। मे हरेक म १६ ६ १ गुण ० को० नं० ७१ देखा १ समास को० नं० १६१०-१६ देखी १ समास १ समास को०१७ देवको० न० १७ दखां 13 १ मग को० नं० १६१५-१६ देखी Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ४ प्राण २ १० को० नं० १ देखो ५ संज्ञा को० नं० १ देखो ६ गनि को० न० १ देखो ७ इद्रय जानि २ और पंचेन्द्रिय जाति (२) ३ ६ का भंग-को० नं० १६१५-१६ देखो (२) तियंच गति में ६-५-६ के मंग को० नं० १७ देखो १० (१) नरक- मनुष्य- देवगति में हरेक में १० का भंग-को० नं० १६-१८-१६ देखो (२) तियंच गति में १०- ६ ८-१० के भंग को० नं० १७ देखो ४ (१) नरक - तियेच देवपति में हरेक में ४ का भंग-को० नं० १६. १७-१६ देखी (२) मनुष्य गति में ४-३-२-१-१-०-४ के मंग को० नं १८ देखी ४ चारों गति जानना ? (१) नरक मनुष्य- देवगति में हरेक में पंचेन्द्रिय जाति जानना को० नं० १६-१८-१६ देखो ४ ( 40ċ ) कोष्टक नं० ७२ १ भंग को० नं० १७ देखो १ भंग [को० नं० १६-१८ १६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो १ मंग को० नं० १६-१७ १६ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखी ९ गति १ मंग को० नं० १७ देखो १ भग को० नं० १६१५-१६ देखी १ भंग को० न० १७ देखो १ भंग को० न० १६ १७-१६ देखी १ भग को० न० १८ देखो १ मनि को० नं० १६-१८ को ११ देखो १ जनि १६ १५-१६ देखी 1 का भंगको नं. १६-१८ १६ देखो (२) नियच गति में ३-३ के भंग-को० नं० [को० नं० १० देखो १७ देखी १ भग 19 १ भंग 1१] नरक मनुष्य-देवगति को० नं० १६-१८ में हरेक में १६ देखी ॐ का भंग-को० नं० १६ १५-१६ देखी २) विच गति ७-२-६३ के. मंत को० नं० १७ देखी ४ (१) नरक नियंत्र देवगति में हरेक मे ४ का भंगक० नं १६१७-१२ देशो चक्षु दर्शन में (२) मनुष्य गति मे ४-४ . भग को न० १- देखो चारों गति जानना २ १ भंग को० नं० १७ देखी १ भंन को० नं० १६.१७० १६ दे सारे भंग को० नं० १८ देखी १ मत १ जाति (१) नरक मनुष्य-देवनति को० नं० १६.१६ में हरेक म १६ देखी १ पंचेन्द्रिय जाति जानना कां० न० १६-१०-१६ देखी ८ १ भंग को० नं० १७ देखो ० नं०१६१ भंग १५-१६ देखी १ भंग को० नं०] १० देवी को० नं० १६१ भंग १७-१६ देखी १ २ग कोन १८ देखो १ गति को० नं० १६१ जानि १५-१६ देखो Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ काय २ १० वेद श्रमकाय १ ६ योग १५. को० नं० २६ देखी को० नं० १ देखी (२) नियंच गति में २ का भंग-को० नं० १७ को० के ५ के भंग में से एकेन्द्रिय, डीन्द्रिय, चोन्द्रिय जाति ये ३ घटाकर शेष २ जानि जानना १-१ के भंग-को० नं० १७ देखी (१०) कोष्टक नं० ७२ Y ३ को० नं० ७१ के समान जानना परन्तु यहां प्रचक्षु दर्शन के जगह दर्शन जानना १ जाति नं० १७ देखी ? चारों गतियों में हरेक में १ संकाय जानना ११ श्री मिश्रकाम योग १, बं० मित्रकाय योग १, प्रा० मिश्रकाय योग १, कामरणकाम योग १, ये ४ घटाकर (११) (१) नरक- मनुष्य- देवगति में को० नं० ७१ देखो को नं० ७१ हरेक में देखो को० नं० ७१ के समान १ १ भंग जानना (२) तिर्यच गति में १ मंग ६-२-६ के मंग-को० नं०को० नं० १७ देखो १७ देख १ ऋति को० नं० १७ १ मंग [को० नं० ७१ देखो I १ योग (-) तिर्वच गति में जानि ' २ का भग को० नं० क े० नं० १७ देखो १० के के भंग में मे एवेपि वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय जाति में घटा र मेष जाति जानना १ म को अगंक्षा जानना को० नं० १७ देखी १ योग को० नं० १७ देखो १ वेद को न ०७१ देखो 1 जानना 1 । } - 1 6. 14 (२) नियंचगति में १२-९-२ के मंग को० नं० १७ देख चक्षु दर्शन में १ चारों गतियों में हरेक में १ सकाय जानना ४ औ० मिथकाय योग १, वै० मिश्राव योग १, आज मिश्रकाय योग १, कामकाय योग १ ४ योग जानना (१) नरक- मनुष्य-देवगति को नं ७१ देखी को० नं० ७१ में हरेक में देखो को० नं० ७१ के समान १ अंग १ मंग को० नं० १७ देखो ३ १ भंग को नं० ७१ के समान को० न० ७१ देखो | जानना ८ • जाति फो० नं० १७ देखों t १ योग १ योग को० नं० १७ देखो १ बेद को० १०७१ देखो Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७२ चक्षु दर्शन में ५ ११ कषाय २५ को० नं. १ देखो १२ ज्ञान केवल ज्ञान घटाकर()। २५ सारे भंग १ भंग २५ : सारे मंग ! १ मंग को. नं. १ के समान को नं. ७१ देखा को नं०७१ देखो को.नं.७१ के समान कोनं०७१ देखो कोनं०७१ देखो जानना जानना सारे भंग | ज्ञान | मारे भंग १ जान का नं०७१ के समान को नं०७१ देखो कोनं.७१ देखो कुमवधि ज्ञान, मन: पर्यय जानना जान ये घटाकर (५) को० नं. ५१ के समान व नं० १ दक्षो को न देखो जानना को० नं० २६ देखो १४ दर्शन पक्षु दर्शन १५. सश्या को न०१ देखो १६ भव्यत्व भव्य, मभन्य का० २०७१ के समान कोनं०७१ देखो कोनं०७१ देखो का००१ के समान की नं. १ देको कोल्नं. १ देखो जानना जादता चारों गतियों में हरेक में चक्ष दर्शन | म टर्मन दागगनियों में हरेक में राशन | चक्षु दर्शन १ चक्षु दर्शन जानना ! " च वर्मन जानना । १ मंगजच्या । १ भंग १नेश्या को नं. ७ के समान को 4०७१ दवा को००१खा की नं००१ के ममान को. नं. ७२ दवा को.नं०७१ देखो जानना | जानना भंग १ अवस्था को.नं.१ के समान काल नं. १ देखो कोनं दवा को न के समान को २०१दखा को नं०७१ देखो जानना जान्ना | सार भंग ! १सम्यक्त्व स.. ग १ सम्यक्त्व की नं० ७१ के ममान की नं०७१ देखो को न देखो नं. १ के समान को नं०७१ देखी कोन ७१ देखो সালনা जानना १ भंग १ अवस्था नो० नं के समान कान ७१ देखो को खो को ७१क समान का नं १ देखा कोनं०७१ देखो जानना । जानना १७ सम्यवन्द को० नं१८ देखा। १८ मंजी जी, गंजी १६ माहार २ माहारक, अनाहारक । दन्त्रीको न००१ देखो को नं०७१ के समान को.नं. १ देखो कोन.१ देखो, कोन, के गगान मान जानना जानना Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७२ चक्षु दर्शन में | देखो १४. जानना १ भंग २. उपयोग १ भंग १ उपयोग । 1 उपयोग को. नं. ७१ देखो को.नं007 के ममान को.नं. १ देखो | का नं." | कोर नं. १ ममान को.नं. टेमो । को० नं०७१ परन्तु यहां चारों गलियों देखो जानना के हरेक मंग में प्रचक्षुदर्शन के जगह चक्षुदर्शन जानना २१ ध्यान मारे भंग १व्यान मारे भंग । १ ध्यान को. नं०७१ देखा। कोर नं.७१ के समान को नं०७१ देखो ! मो.नं.१ । को नं०७१ के समान को न.७१ देखो । को.नं १ जानना २२ पात्रव ५७ : ___सारे भंग । १ भंग । सारे भंग । को देखो. मो. मिथकाय योग, मनोयोग, वचटयोग १.. दै० स्विकाय योग यौ. काय योग प्रा. मिथकाय १, । बैं• काय योग, या० । कार्माणकाय योग काय योग १११ घटाये ४ घटाकर (५३) । (१) नरक-मनुष्य-रेवति में | सारे भंग भंग (१) नरक-मनुष्य-देवगति सारे भंग १ भंग हरेक में को० नं०७१ देखो | कोल नं० मे हरेक में को.नं.१ देखो ! को० नं.७१ को नं. ७१के समान को००७ के समान | जानना जानना । (२) तियेच गति में सारे भंग भंग (२) निर्गच गति में मारे भंग १ भंग ४०-४३-५१-४६-४२-13- को० नं०१७ देखने को नं. १७४०-४३-४-३५-८-३१- को० नं०७१ देखो| को००१ ५०.४५४१ के मंग-को देखो ४३-३८-३३ के भंग- । । देखो नं. ७ के ममान को.नं.१३ देखो जनाना २३ भाव ४४ सारे भंग १ भंग मारे भंग १ भंग को० नं०७१ देखो १) नरक-मनुप्य-देवगति में को० नं.७१ देखो को० नं०११) नरक-मनप्य-वाति को.नं.१ देखो को.नं. १ हरेक म देषा । देखो को० नं. १ के ममान को नं. १ के ममान ! परन्तु यहां प्रभू दर्शन के जानना जगह बभू दयन जानना Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ 전화 * चौतीस स्थान दर्शन २ - (4) Priw niew - १ गुग० के २४ के मंग घटाकर सारे मंगबो० नं०] 5? के समान जानना तुहा अ दर्शन के जगह जानना I 1 [ ५.१३ ) कोष्टक नम्बर ७२ 21 ४ को० नं० २४ २५ २६ के समान जाननः । मारे भंग नं ७१ ५ ६ भंग ०७१ देखो अवाना कां० नं० १६ १४ । - बंध, प्रकृतियां - उदय प्रकृतियां सत्य प्रकृतियां - सहया प्रख्यात जानना । क्षेत्र लोक कामातवां भाग जानना । स्पर्शन – नाना जीवों की अपेक्षा सर्वलोक जाननना एक जीव की अपेक्षा लोक का प्रयास ६ । काल – नाना जीवों की पेक्षा नकाल जानना | एक जीव की अपेक्षा अन्त मे दो हजार (२००७ नागर तक जानता । अन्तर– नाना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा कर मके । 1 चक्षु दर्शन में २ (२) नियंत्र गति में गुगवान के कोनं के भग १ घटाकर भंग को नं. ३१ के समान जाननः परन्तु यहा के जगह चलन जानना जाति (योनि) - २= नाम योनि जानना । (चतुविन्द्रिय २ लाख, पंचेन्द्रिय २६ लाव. मे २८ नाम जानना । कुल ११०० लाख कोटिकुन जानना । चरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय १०८ ॥ ये ११७६ लाख कोटिकुल जानना । मा मंग ८ १ भंग को० नं० २१ देस्रो भोगल परावर्तन काल को सुदर्शन प्राप्त Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य बालाप १ गुण स्थान ३ से १२ तक के गुगा० सूचना-गुणस्थान में भी अवधि दर्शन बताया है (देखा मो० ०गा० ८२०२१-२३) २ जीवसमास मंत्री पंचेन्द्रियपयांत अपर्या ३ पर्याप्त २ को० नं० १ देखी पर्याप्त नाना जीव की अपेक्षा £ 5 (१) तरक गति में ३-४ गुण० (२) नियंच गति में ६-४-५ गुरण मांग भूमि में ३-४६ सुरा० (३) मनुष्य गति में ७ मे १२ गुण ० भोग भूमि में ३-४ये गुण (४) देव गति में ३-४५ गुग्ण० १ चारों गनियों में हरेक में १ मंत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था जानना को० न० १६ मे १६ देखो ( ५१४ ) कोष्टक ०७३ एक जोव के नाना एक जीव के एक समय में समय में सारे गुण अपने अपने स्थान के सारे गुण म्यान जानना को० नं० १६ में १६ देखी १ ० सारे गुण में से कोई गुसा जानना को० नं० १६ मे १६ दे ૬ १ भंग १ भंग चारों गनियों में हरेक में को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से ६ का भंग देखो १३ देखी को० नं० १६ मे १६ देख 0 T नाना जीवों की अपेक्षा (१) नरक गति में ४थ गुरा० (२) निर्यच गति में S भोगभूमि में 농 गुण (३) मनुष्य गति में ४-६ गुण ० भोग भूमि में ध गुण(४) देवगति में ४ गुण ० १ लब्धि रूप होना है। T चारों गतियों में हरेक मे की० १ मंत्री प० अपत जानना कोल०१६ मे १६ दे अवधि दर्शन में २६ देवी का भंग भी 1 १ जीव के नाना समय में पर्यात 连 सारे गुण स्थान अपने अपने स्थान के सारे भंग जानना 1 ! एक जीव के एक समय में 5 १. गुरण सारे भंगी में में कोई १ गुण 1 जानना 3 १ भंग १ भंग चारों गनियों में हरेक में को०० १६ मे १२ को० नं० १६ से १ का भंग देखा १६ देखी को 1 ? ० १६ से १२ कोन० १६ से देखा १६ देख Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ३ अवधि दर्शन में ४ प्रांगा मंगभंग १ भंग १ भंग कोन. १ देवो । चार्ग मतियों में हरेक में ! को न०१६ कोन.१५. गे वागेंगनिया में हरेक में को.नं-१६ में को.नं. १६ में १० बा भंग १६ देखा १ देखो का भंग १६ देखा ! १६ देखो को० नं. १६ म १३ देखो को नं०१६ मे १६ देखो ५ संजा १ भंग १ भंग ४ १ भंग । भंग को न देवो १) नरक-नियंच-देव गनिमें को० नं०१६-१७-मग्न -११- (१) नरव नियंव-देवरनि' कोन०१६ मे कोन०१६ में हरेक में १६ देखो देगा मनुष्य गति में हरेक में ' १६ देखो । १६ देखो ४ का मंग ४ का भग को० नं०१६-१७-१६ को नं.१६ से १६ देखी देखो [( मनुष्य मनि में मारे भंग भंग ४-६-२-१-१-०- को नं० १८ देखो कोन-१- देखो ४ के मंग को० नं. देखो ६ गनि १ गति गनि को नए देखो । चारों गति जानना चागें गति जानना ७ इन्द्रिय जानि पंचन्द्रिय जाति चारों मतियों में हरेक में । चारों गनियों में हरेक में १ पंचन्द्रिय जाति जानना १पंचन्द्रिय जाति जानना कोल्नं. १६ मे १६ देखो कोनं १६ मे १६ देना काय जमनाय चारों गतियों में हरेक में चागें गनियों में होक में | १ श्रमकाय जानना १ अमवाय जानना को० नं० १६ मे १६ देखो कोर नं०१६ से १६ देखो र योग । १ भंग योप मंग । र योग को मं०२६ देखो मो० मिथकापयोग १, ग्री मिश्रकायोग, वर मिथकाययोग: वै मिश्रकाययोग, प्रा० मिथकाययोग १ प्रा. मिथकाययोग १, कार्मागा काययोग कार्मागा काययोग १ ये ४ घटाकर (११) । ये ४ोग जानना --- - - - ___ -- १५ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७३ अवधि दर्शन में (१) नत्र तिबंच-देवगति में हरेक में का मंग को नं० १६-१३-१९ देखो (३) मनुष्य गांत १-१-१-९क भंग को० नं०१८ देखा १ भंग १ योग (१) नरक-तियं च-देवगति भंग १ योग को० नं०१६-१७. 'कोनं. १६-१-म हरेक में का नं०१६-१३-कोनं-१६-१७. १६ देखो १९ देखो | १-२ के भंग १६ दसो १६ देखो को० नं०१६-१७-१६ देखो मारे भंग । १ योग (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ यांग कानं०१८ देखो कोन १८ देखी १-२-१-१-२ के भंग की नं०१५ देखो 'कोनं०१८ देखो कोनं०१८ देखा | कानं० १ देवा (१) नरक गति में । नपुसक बंद ! नगुसक वेद | (१) नरक मति नामक बंद | नमक वेद १ नसक वेद ही जानना । | १ नमक बदही जानना कोनं १६ देखो | कोर नं १६ देखो (२) निर्वच गति में १ भग वे द ) तिवंच गति में भंग १वेद ३-२के मंग को नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो भोग भूमि में १ पुरुषवेद को०१७ देतो कोनं०१७ देखो को० नं १७ देखो जानना (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ वेद को नं०१७ देखो। '३-३-३-1-2-३-- को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (1) मनुप्य गत्ति में मार भंग १वेद १-०-२ के भंग ।-१-१ के भंग कारनं०१८ देखो को२०१८ देखो का० नं. १८ देखो | को० नं०१८देखो (४, देवगति में । सारे भंग १बंद (१) देवगति में | मार भंग १ वेद २-१-१ के भंग को० नं०१६ देखो कोनं. १६ दखो १-१ के भंग को०:०१६ देखो कोनं १६ देखो को.नं. १६ देखो | को० नं० १६ देखा ११ कषाव २१ | मार भंग १ भंग | मारे भंग १ मंग अनन्तानुबन्धी कधाम । (१) नग्न मनि में कोल नं. १६ दलो कोनं । १५ देखो स्त्रीचंद्र घटकर (6) को.नं. १६दखा कोनं०१६ देखो ४ घटाकर (२१) का भंग (१) नरक गनि म को० नं. १६ दमा १६ का भग । (२) नियंच गान में । सारे भंग १ भंग | | का० नं १६देखो २११५-२० के भंग कोन०१७ दरो कोन०१७ देखा नियंच गति में सारे भंग भंग कोन.१७ दग्बो | भोग भूमि में कोग्नं १७ देखा कोनं० १७ देखो Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७३ अवधि दर्शन में (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ भंग १६ का भंग २१-१७-१३-११-१३-कोनं. १८ देखो कोनं०१८ देखी को०नं०१७ देखो ७-६-५-४-३-१-१---- (३) मनुष्य गति में सारे भंग भंग २० केभंग १-११-१६ के भंग को० नं०१८ देखा को नं०१८ देखो को नं०१८ देखा को० नं०१८ देखो सारेग म (४। देवमति में तारे भंगभंग २०-१४-१६ के मंग कानं० १९ दखा को०॥ देखो १६-१६-१८ के भंग कोन०१६ दरो कोनं १६ देखो को० नं०१६ देखो . को० नं०१९ देखा। १२ ज्ञान | सारे भंग । १ज्ञान सारे भंग ज्ञान कंवल ज्ञान घटाकर. (१) नरक गति में को १६ देखो कोन०१६ देखो मनः पर्यय ज्ञान घटाकर(३) को० नं० १६ देखो को नं०१६ देखो ३-३ के भंग (१) नरक गति में कोनं १६ देखो ३ का भंग (२) निर्यच गति में १ भंग १ ज्ञान को नं०१६ देखो ३-३ के भंग को.नं. १७ देखो को.नं०१७ देखो (२) तिर्यच गति में १ भंग १ज्ञान को० . १७ देखो भोग भूमि की अपेक्षा का नं० १७ देखो का नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ज्ञान ३ का भंग जानना । ३-१-४-३-४-३-६ कोनं०१८ देखो कोनं १६ देखो का १७ देखो । के भंग (3) मनुष्य मतिम । सारे भंग १जान को० नं १ देखो 3-३-1 के भंग को० नं० १८ देशो 'कोनं०१८ देखो (४) देवगति में सारे मंग१ जान को० नं० १८ देखो ३-३ के भब को० नं.१६ देखो को देखा (४) देवनि में मारे भंग ज्ञान कानं०१६ देखा ३-३ के भंग 'कानं०१६ देखो कोल्नं०१६ देखो | को.नं. १६ देखो १३ संयम ७ (१) रक-देवगन में को० न०१६-१६ को० नं०१५-१६ ३ कोनं०२६ देखा हरेक में देखो देखो () नरक-देवगन में को० नं० १-१६ को नं. १६-१६ १धमयम जानना ! हरेक में देखो देखो कान०१६-१६ देखो (को० नं० -१६ देखो। ! (२) निर्यच गनि म | मंग सं घम तिर्यच गनि में १ भंग १संयम १-१-१के मंगको .नं. १७ देखो कोनं०१७ देवो १ असंयम जाननामान०१७ देसो कोनं०१७ देखो Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७३ अवधि दर्शन में --- को० नं०१७ देखो कोन. १७ देग्दो (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ नंयम (३) मनुष्य गति में 1-1-1-1-३-२-१-१-१ के | को० न०१८ देषों को२०१८ १-२-१ के मंग भंग-को००१८ देखो। । को.न. १ देखा भंग भंग १मयम को नं. १८ देवो कोन.१५ देखो १४ दर्शन १५ लेश्या को० नं. १ देखी चारों गतियों में हरेक में चागें गलियों में-हरेक में १ बांध वर्ग जानना १ अवधि दर्जन जानना मंगलया । १भग १लेश्या (१) नरक गति में को० नं०१६ देयो को नं.१ (१) नरक गति में को०० १६ देखो को.नं. १५ ३ का भंग-को नं०१६ | देखो ३ का भंग-को नंग देखो देखो (२) तिथंच गनि में मंग ले श्या (२) निर्यच गति में १ भंग १ लेश्या ६-३-३ के मंन-को० नं. को न०१७ देखो । को० नं०१७ | भोगनुमि की अपेक्षाको नं०१३ देखो | को.नं.१७ १७ देखा | का भग-को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग । लेश्या देखो। ६-३-३-३ के भंग-को को.नं. १८ देवी का नं.१% (३) मनुष्य पनि म | सारे भंग १ लेश्या नं.१८ देखो ६-१-१ के भंग-को नं० को० म०१देखो को नं. १ | (४) देवगति मे १ भंग । १लेल्या १८ देखो। १-22, - मंग-का० को न देखो' को न० १६ १४) देवनि में । नं. १६देवो दखा ३-१-२ के भग-को० नं. को नं०१३ देखो को ना १६ १६ देखो देखो देखो देखो १६ भव्यत्य भव्य १७ सम्यक्व उपगम सायिक- क्षयोगम। ये ( २ नागें गनियों में हरेक में १ भव्य जानना को नं. १६ मे १६ देखो ३ १) नरक गति में १ -३-२ के भंग-को नं. चार्ग मतियों में हरेक में | १ भव्य जानना को० नं०१६ मे १६ देख ३ मारे भंग | १ सम्यक्त्व (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो | को० नं० १६ २ का भंग-को० नं0 | मारेभंग १ सम्यक्त्व को.नं. १६ देखा कोन०१५ देखो Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७३ अवधि दर्शन में (१) निर्यच गति में १ मंग१ सम्बकत्वं । (२तिर्यच गति में १ भंग सम्यक्त्व १-२-१-2 के भंग को १३ देखो को नं०१३ देखो भोग भूमि में को० नं. १७ देखो कोन०१७ देखो को नं०१७ देखो २ का भंग (1) मनुष्य गति में | सारे मंग | १ सम्यक्त्व । को.नं.१७ देखो १-३-३-१-३-२-१-१-३ को मं०१८ देखो कोनं-१८ देखो ) मनुष्य ननि में सारे मंग १ सम्यक्स्व के भंग | २-२-२ के भंग कान०१८ देवो कोन १८ देखो कानं०१८ देखो ' को नं०१८ देखो (४) दवति में सारे मंग १ मायवत्व । (४) देवमति में मारे भंग । सम्यक्त्व १-२.३-२ के भंग को नं०१६ देखो कोन०१६ देखो का भंग को० नं. १६ देखो कान १६ देखो को. नं०१६ देखो को नं०१६ देखो १५ संत्री चारों गतियों में हरेक में चागें गलियों में हरेक में १ संज्ञी जानना ? संज्ञी जानना को० नं. १६ से १६ देखो कोनं १ मे १६ देखो १६प्रहारक सारे भंग १ अवस्था शहारक, अनाहारक | ( नरक-देवगति में कोनं०१६-११ को नं०१६- (१) नरक-देवगति में का० नं. १६ ११ को नं. १६-१६ हरेक में देखो १६ देखा । हरेक में देखो देखो १ माहारक जानना । १-१ के भंग कानं.-१६ देलो को०१६-१६ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १अवम्या ) मनुष्य गति में सारे भंन १अवस्था कोन०१८ देखो कोन देखो -१-१-१-१ के भंग १८ दन्त्री की नं.१५ देखो को. नं० १८ देखो पी. नं.: देखो |() निर्यच गति में (निर्यच गति में १ भग १मत्रस्था १., के भंग १-1-1-1 के भग कोई १ अवस्था काई १ अवस्था को० नं. १७ देखो . का०१७ देखो २. उपयोग १ भंग योन । ५ १ भंग १ उपयोग ज्ञानोपयोग.४, (१) नरक गति में कोनं०१६ देख। कोनं०१६दनी (१) नरक गति म को० नं०१६ दलो कोनं०१६ देखो दर्शनोपयोग १ ४.४ के भंग ४ का भग ये ५ जानना को००१८के ६.६के। पर्याप्तवान् ४ गुण Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०७३ अवधि दर्शन में हरेक मंग में में प्रचक्ष का भंग जानना दर्शन, चक्षु दर्शन में २ ' (२) नियंन गति में भंग १ उपयोग घटाकर ४.४ के भंग । भोगभूमि की अपेक्षा को देखो , को.नं. १७ जानना ' का भंग पर्याप्तताद। देखो (२)तियंच गति में १ मंग १ उपयोग जानना ४.४ के भंग-को० नं. को० नं.१७ देतो को० नं.१७ । (३) मगप्प गति में मारे भंग १ उपयोग १७ के ६-६ केभंगों में में देखा १-४-५ के भंग-कोने कोनं १- देखो को० नं. १८ प्रचक्षु-दर्शन, चन-दर्शन ये १८ के E-:-के हरेक । अग में में पर्याप्तवन २. जानना दर्शन परार ४-४.४ | ४-४ के भंग-भोगभूमि में के भंग जानना ऊपर के कर्मभूमि के समान | (6) देवनि में | भंग १ उपयोग जानना । ४.४ के भंग-बो० नं को नं. १६ देखो । को.नं. १३ ३) मनुप्य गति में मारे भंग १ उपयोग ११कं ६-६ के मंगों में ४-४-५-४-५-४-४ के भंग को० न०१८ देखा| को० ने १८ पर्याप्तवन २ दर्शन को.नं. १ के ६-६-७ 'देखो घटाकर ४-६ के भंग । ६-७-६-६केहरेक अंग में | जानना मे प्रचक्षु दर्शन, चनु दर्शन ये २ चटाकर ४-४-५-४ ५-४.४ के भंग जानना (४) देवगति में १ भंग | उपयोग ४.४ के भंग-को न. ११ को नं०१९ देखो' कोलन०६९ के ६-६ के भंगों में में देखो प्रचन दर्शन, चक्ष दर्शन ये २ चटाकर-के भंग २१ घ्यान १४ मारे मंग । १ प्यान सारे भंग ध्यान को नं०७१ देखो।(१)मरक गति में कोन०१६ देखो । को १६ । (१) मरक गति में को नं०१६ देखो कोनं०१६ देखो १-१० का भंग-को. नं दम्रो |६ का अंग-को० नं. । १६ देखो | 2: देखो Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन | २ २२ अम्रव मिथ्यारण ५. अनन्तानुबन्धी क० ४ ये घटाकर (४८) * I ) तिच गति में ६-१ -११-१-१० के भंग १७ देशा (3) मनुष्य मति में ९-१० का भंग को० नं० १६ देखो ४४ औ० मिश्रकाययोग १, • मिश्रकाययोग १. आ० मिश्रकाययोग १. कामा काययोग १ ये ४ घटाकर (४४) (१) नरक गति में सारे भग ६-१०-११-७-४-१-१- फो० नं० १० देखो ६-१० के भंग को० नं० १ देखो (४) गति में ४० का मंग को० नं० १६ देखो (२) नियंच गति में ४२-७-४१ के भंग कोनं ० ० १७ देखी (३) मनुष्य शनि में 1 ७.२१ 1 कोष्टक नं० ७३ ४ के मंग को० नं० १८ दे 4. १ ध्यान कोन ८ देखी १ प्यान (२) तिर्वच गति में १ भग़ १ प्यान १ मंग [को० नं०१७ को १७ देखो भोग भूमि की अपेक्षा को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देख 1 ! का भग को० नं० १७ देखी (६) मनुष्य गति में १-७-८ के भंग १ ध्यान मारे मंग को० नं० १६ देखी कोन० १२देखो 9. भंग सारे भंग अपने अपने स्थान के मारे भगा में से मारे भंग कोई १ मंग जानना जानना . ● की नं० १० देखी ६ ७ भंग सारे भंग [को० नं० १६ देवों को० नं० १६ देखी (४) देवगति में का भंग को० नं० १६ देखी बारे मंग १ भंग ४२-३०-२२-२०-२२ [को० नं० १८ देखी कोनं० १८ देखी १६-१५-१४-१३-१२११-१०-१०-१-१ ० काययोग १, पाहारक काययोग १, स्त्री बंद १ ये १२ बटाकर (३६) (१) नरक गति मे ३३ का भंग को० नं० १६ देखो (२) तियंचगति मे भोग भूमि में ०३ का भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में । ३३-१२-३३ के मंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में ३३-३३-३३ के भंग I सारे भंग १ मंग [को० नं० १७ देखो 'को० नं० १७ देलो । सारे भंग २६ मनोयोग ४ वचनयोग ४, अपने अपने स्थान के ! औ० काययोग १, नारे मंग जानना | و अवधि दर्शन में. नारे भंग को० नं० १० देखो 1 मारे भग को० नं० १२ देखी ! 1 सारे मंग को० नं० १६ देखो || को० मारे भंग को० नं० १७ देखो 4 सारे भंग नं०] १५ देखो १ ध्यान को० नं० १५ देखो १ ध्यान को० नं० २६ देखी १ मंग सारे भंगों में मे कोई १ मंग जानना १ मंग को० नं० १६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो १ मंग को० नं० १८ देखो सारं भंग १ भंग को० नं० १६ देखो [को० नं० १६ देखो Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७३ अवधि दर्शन में (४) देवगति में ' ... सारे भंग भंग | को.नं. १९ देतो ४१-४०-४० के मंगको .नं०१६ देखो कोनं०१६ देखो कारून- १६ देखो २३ भाव सारे भंग . सारे भंग १ भंग उपशम मारणत्व, रक गति में को.नं.१६ देसो कोनं०१६ देखो उपशम चारित्र १, उपशम चारित्र १, २३-२६--२५ के भंग । क्षायिक चारित्र १. सायिक मम्यक्त्व १, | को० नं०१६ के २५ मनः पर्यय जान १, शायिक चारित्र १. २-२७ के हरेक भग स्त्री वेद १ ये४ जान 1, अवधि दर्शन १ में से प्रचक्षु दर्शन, चक्षु घटाकर (३५) नधि ५, वेद सम्यक्त्व | दर्शन ये घटाकर (१) नरक गति में सारे भंग १ भंग १, संयमा मवम, २३-२६-२५ के भंग २५ का भंग को.नं. १६ देखो की.नं.१६ देखो सराग संयम १, जानना को० नं०१६ के २७ के । गति ४, कषाय ४, (२) तिर्वच गति में। सारे भंग १ भंग अंगों में से प्रचक्षु दर्शन सिंग ३, लेश्या ६. ३०-७-२७ के भंग को नं० १७ देखों को नं०१७ देखी, चक्षु दर्शन, ये २ घटाअसंयम १, प्रज्ञान को.नं. १ के ३२ क्र. २५ का भंग जानना प्रसिद्धत्व १, २१-२६ के हरेक अंग (२)तियंच गति में सारे भंग १ भंग जीवत्व १. मत्र्यत्व १, । में से अचा-चक्ष दर्शन | भोग भूमि की अपेक्षा को नं०१७ देखो कोन०१७ देखो ए ३६ जानना ये २ घटाकर ३०-२७- | | २३ का भंग २७ के भंग जानना को नं०१. के २५ (३) मनुष्य गति में सारे भंग भंग भंग में में प्रवक्ष दर्शन, २८-३१-२८-२९-२५- को नं.१८ देखो को.नं. १८ देखा चक्षु ददान ये२ घटाकर २६-२७-२७-६-२५- | | २३ का मंग जानना २४-२६-३२-२१-२१ | (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ भंग 18-१-२४-२७ ----०६-२३ के भंग को० नं० १८ देवा मो.नं०१८ देखो के भंग को नं०१.के .को नं०१८के - २७-५के हरेक भंग मे मे पातवम् प्रचक्षु । Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७३ अवधि दशन मे 78-1-२८-२७-२६ : दर्शन, ऋच दर्शन येर २५-२४-२ -२३-०१ बटाकर २५-२५-२२०-२६-२६ के हरेक भंग के भंग जानना में में अनक्षु दर्शन, च (४) देवगति में सारे भंग भंग दर्शन ये २ घटाकर २८ २६-२४-२४ के मंग को० नं. १६ देखो कोनं.११ देखो २१-०८-२६-२५-२६ को० नं०१६ के २८ । २७-२७-२६-२५-२४ २५ २६ के हक भंग | २३-२२ २१-२१-१६ में मे पर्याप्नवत् २ १८-२४-२७ के भंग | दर्शन घटाकर २६-२४जानना २४ के भंग जानना (४) देवगति में सारे भंग भंग | २२-२४-२४-२७-२१- को० नं.१६ देखो को नं.१६ देखो २८-२३ के मंग कोनं. १६ के २४ २६ २६-२६-२३-२६-२५ के हरेक नंग में से ऊपर के समान २ दर्शन घटाकर २२-२४-२४-२७-२१२४-२३ के भंग जानना Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ५२४ ) परगाहना-संख्यात धनांगुल से (१०००) एक हजार वोजन तक जानना । संघ प्रतिपां-को० नं०२६ के समान जानना। उदय प्रकृतियां- " सत्व प्रकृतियां- " संख्या-प्रसंख्या आनमः । क्षेत्र-लोक का प्रसंख्यातवा भाग जानना । पर्शन-लोक का असंस्थातवां भाग ८ राजु, ६ राजु को नं० २६ देखो। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की मपेक्षा को नं० ६३ देखो। अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहुर्त से देशोन अर्ध पुद्गल परावर्तन कान तक पधि दर्शन न हो सके। जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । को० नं. २६ देखो कुल-१०८ लाख कोटिकुल जानना । को नं० २६ देलो ३० Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०७४ केवल दर्शन में चौतीस स्थान दर्शन स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त অবস্থান नाना जीवों को अपेक्षा एक जीव के नाना एक जोब के एक समय में । समय में नामा जीवों की अपेक्षा १जीब के नाना ! जीव के एक समय में | समय में १ गुगा स्थान २जीव-समास संशी पं०प०अप ३पर्याप्ति को.नं. १ देखो सारे मु. १ गुरगः । १३ १४वे ३२ गुण० । दोनों गुग्ण स्थान | कोई १ मुगणवे नुग० जानना १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त १ सभी पं. अपर्यास का भंग-कोनं०१६ का भंग जानना ६ का भंग | ३ का मंग-को. नं. ३ १भग ३ का भंग जानना मंग ३ का भंग . का भंग जानना देखो १८ देखा। सारे भंग पायु, काय बल, वासोच्छवास, बचन बल ये (४) । (१) मनुष्य मति में ४-१ के अंग-को. नं० १८ देखो मारे अंग १ भम को० नं०१८ देखो को नं० १८ आयु कामच-नये २) देखो (१) मनुष्य गति में २ कर भंग-को.नं. १८ को० न० १८ देखो | को० न०१८ देखो (0)पगत संज्ञा १ मनुष्य गति १पंचेन्द्रिय जाति १त्रमकाय ५ संज्ञा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति ८ काय योग सत्यमनोयोग १. मनुभय मनोयोग १. सत्य वचन योग १ अनुपय वचन योग १ प्रो. काय योग १, पौ. मिश्रकाय योग १ मौर मिथकाय योग कामिण काय योग, ये २ घटाकर (५) (1) मनुष्य मति में ५-३-के मंग-को १८ देखो सारे भय योग १ योग प्रो० मिषकाय योग १ ।। कारि काय योग १. ये २ योग जाना को० नं. १८ देखो को० नं०१८(१) मनुष्य गति में को० न०१८ देखो को २-१के भंग-को.नं. [सं०१५ देखो | देता Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोषक ७४ केवल दर्शन में - - ..Morn. - ३ कगिकाय यांग १. ये योग जामना (0) अपगत वेद ११ कषाय (0) अकगाय १केवल ज्ञान जानना १३ संयम १ यथास्यात जानना १४ दर्शन १ केवन दर्शन जानना १५ लेश्या १ शुक्ल लेश्या जानना १६ भव्यत्व भव्यत्व जानना १७ सम्यक्त्व १ क्षायिक सम्परत्व जाननाः १८ मंजी (0) अनुभम जानना १९ पाह सारे भंग १ अवस्था : सारे भंग १ अवस्था माहारक अनाहारक (१) मनुष्य गति में कारनं. १८ देखा को. नं.१% (१) मनुष्य गति में को.नं.१८ देखो | कोन०१८ १-१ के भंग-को० नं. देखो |... के भंग-को नंक | देखो १८ देखो । १८ देखो २. उपयोग ! चुगपत २ युगपत् युगपन | युगपन् ज्ञानोपयोग १, १। मनुष्य गनि में जानना जानना (१) मनुष्य गति में जानना जानना दर्शनोपयोग १. (२) २का मंग-को० नं.१८ २का भंग-को. नं. [१८ दवा मारे भंग | १ न्यान मुमक्रिया प्रनिपानी, । (३) मनु य गति में कोल नं०१८ देयो | को नं०१ व्युपरत मिया निव निनी १-१ के भंग-को० नं. ये २ जानना १८ दलो २२ प्रामा १ भंग मारे भंग १ भंग ऊपर के योग म्थान के औ० मिश्रकाय योग १, । प्रो. मिथकाय योग योग जानना कार्माकाय योग । ___ कार्मागकाय योग ये २ पटाकर ५) 'ये २ माम्मद जानना ।। १। मनुष्य गनि में को.नं-१८ देखो। को नं.१ . (१) मनुष्य गति में कान-१८ देखो | कोनं.१% ५-६-के मंग-नानः ।। देखो २-१ के मंग-को० नं. देखा १६देखो २ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ७४ केवल दर्शन में १४ २३ भान कोन.१३ देखो (१) मनुष्च गति में १८-१३ के भंग-को नं. १८ देखो | सारे भग १ भंग काम. १८ देखी, को० नं. १८ (21 मनग्य गनि में । देखो |१४ा मंग-को नं. सारे भंग मंग को नं०१८ दखो कोनं०१८ देखो मवगाहना--1| हाय ५२५ धनुष नक जानना । बष प्रतियां-१ गुणा में १ मादा वदीप का बंध जानना और १४वे गुरण में प्रबंध जानना । को. नं. १३.१६ नम्बी। त्य प्रकृतिघां-१ वे गुरण में ४- ४ मुगप० १२ प्र. का उदय जानना । को.न. १३ और १४ देतो । सत्त्व प्रकृतियां-१३वे गुग में १४२ गुण १६, १३ जानना । को. २०१३ और १४ देखो । संख्या-८९८५०२ और ५६८ का नं० १३ और १४ दयो। चैत्र-लांच का प्रमख्यानवां भाग, लोक के असमपात भाग, सदनांक.कोनं०१२ देखा। मन-ऊपर के क्षेत्र के समान जानना। काल-सर्वकाल जानना । अन्तर- कोई गन्तर नहीं। आलि (योनि)-१५ लाम्ब बानि मनुष्य के जानना । कुत्त-१४ काख कोरियल मनुप्यों की जानना । Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य प्रालाप २ १ गुरण स्थान १ से ४ तक के गुगा १४ २ जोवनमास को० नं० १ देखो पर्याप्त नाना जीव की अपेक्षा ३ (१) नरक गति में १ से ४ (२) विर्यच गति में १ से ४ (३) मनुष्य गति में १ से ४ भोग भूमि में कोई गुगा | नहीं होते । ( ५२० ) कोष्टक नं० ७३ १ के भंग को० नं० १७ देख एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में ममय में मारे गुना १. गुरा अपने अपने स्थान के सारे गुण में सारे गुण स्थान से कोई १ गुण ० | जानना जानন ७ पर्याप्त अवस्था १ गमाम (१) नरक और मनुष्य गतियों को० नं० १६-१० में हरेक में देखी १ मंत्री पंचेन्द्रिय पर्या जानना को० २०१६-१= देवी (२) नियंत्र गति मे د i १ समान को० नं० १६१८ देव १ ममाम १ समाय को० नं० १७ देखी कोन० ९७ देखो नाना जीवों की अपेक्षा | ६ 3 (१) नरक मति में १ ले ४थे गुगा जानना (२) नियंचनति में १-२ नुम्ग ० (3) मनुष्य गति में १-२-४ गुण भोग भूमि मे कोई गुम होने (४) देवमति में १-२ गुग्ग० में भंग भवन्त्रक देवों को अपेक्षा होना है। कृष्ण या नील लेश्या में गति में - के य को० नं० १७ दो अपर्याप्त | १ जीव के नाना समय में ७ १ समास प्रति अवस्था १ समाय (१) नरक मनुष्य- देवगति को० नं० १६-१८- कोन० १६.१०में हरेक में १९ देवी १९ देना I । मंत्री अपर्यास अवस्था जानना ० नं० १६-१०-१२ देखी (२) नि एक जीव के एक समय में C 1 सारे गुण स्थान १ गुगा अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान सारे गुण जानना के सारे भंगों में में कोई १ मुगा जानना १ समास को नं० १० दे १ ममाग को० नं० १० देखो Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७५ 'करण या नीन नभ्या में - कारण या नील लेण्या में -- - - - ३ पर्याप्ति ? मंगभंग १ भंग १ मंग कोनं०१ देखो !(१) नरक मनुष्य गति में को २०१६-१८ को १६-१८/2 नरक-मनग्य-देवगति कोन. १६-१८- कोल्नं० १.१८ब में देखा । दम्रो में हरेक में १६ या : का भंग 13 का भंग । वो न०१७-१- देवा । को. नं. ६-१-१ (तिर्यच गति में ६-५-४ के भी कोनं०१५देखो वो नं०१७ देखो (B) नियंच गति में भंग १ मंग को न देखो ___ को नं १३ देग्दो | कोनं १७ देखो | को-०१३ देन्यो लब्धि हा अपने प्रगने 'स्थान की ६.५-४ पर्याग्नि | भी होती है। ४प्राग १ भंग भंग । कोनं १ देखो नरक-मनुष्य पनि में को.नं.१६-१८ का १६.१(1) नरक-मनूप्य-वनि को नं०१-१०-कोन०१६-१०हरेक में देखो देशों में हरेक में १६ देखो | १६ देखो १० का भंग ७ का भंग को० नं० १६-१- देखो । का नं १६-१८-1 (२) नियंन गनि में १ भंग १ भग देखो १०.१-८.७.६.४ के भंग को ना १७ देखो कोनं १३ देखो (1) नियंच गनि में | वो नं०१३ देखो ७-१-६-५४-३ के भंग का नं०१३ देखो को न०१७ देखो ५ मंजा कौर नं०१७ देखा । को नं. १ देखा । | भंगभग (१) नाक-मनुग्य-नियंच गति में कोन०१६-१८-१७ कोन१६-१७- चारों गनियों में हरेक में। कान०१६ से कोनं०१६ मे हरेक में देखो । १७ देखो । कर्म भूमि की अपेक्षा । ११ देखो १६ देखो का भग कोग्नं १६-१८-१ देखो कोनं. १६१६ देतो! । ६ गति गति गति ४ । १ पनि १ मति कोनं १ देखो । नरक, तिर्गच और मनुष्य कोनं०१६-१७-१८कोन.१६-१७. चारों गनि जानना को नं. १६ से १६ को.नं.१६ से ये ३ पनि जानना देखो । १८ देखो देखो १९ येसो Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७५ कृष्ण या नील लेश्या में । देखो देखो काय ७ इन्द्रिय जाति ... १ जाति १ जाति १ जाति १जाति को० नं०१ देखो । कर्मभूमि की अपेक्षा को० नं०१६- को० नं१६. कर्मभूमि की अपेक्षा को नं०१६-१०- | को.नं०१६(2) नरक मनुष्य १५ देखो १८ देखो ) नरक मनुष्य-देवगति' १६ देखा १५-१६ वेलो हरेक में में हरेक में । पचन्द्रिय जाति जानना। !१ पचन्द्रिय जानि जानना को नं. १६-१८ | की. नं०१३-१८-१६ देखो (२)तियंच गति में १ जाति १ जाति (तिर्यच गति में शनि जाति ५-१के भंग-को०२०१७को नं १७ देखो : को० नं.१७ । ५ का भग- को. नं. को० नं०१७ देखो । को००१७ देखो १७ देखो । देखो १काय काय ६ कार्य १काय को नं० पदेखो। कर्मभूमि की अपेक्षा को० नं०१६ । को. नं०१६. कमभूमि की अपेक्षा को० नं०१६-१८- | कानं०१६. . (२) नरक-मनुष्य १८ देखो १८ देखो (१) नरक-मनन्य-देबगनि १६ देखो १८-१६ देखी में हरेक में १ जयकाय जानना १ सकाय जानना को नं० १६-१ को० नं. १६-१८-१६ दखी देखो २) निर्यच गनि में (२) तिथंच गति में काय काय ६-१के भर-कोर नं. को नं.१७ देखो को न.१७ | ६-४ के भंग । की न०१७ देखो | को० न०१७ १३ देखो देखा | को० न०१७ देखो देखो योग १ भंग यांग ? भंग ।योग मा. मिश्रमाय योग, प्रो. मिथकाय योग, यौ० मिश्रकाय मांग १, पा काय योग १, | . २० मिथकाय यांग, बै० मिथकाय यांग १. ये २ घटाकर १३). कार्मागकाय बोग, कार्माणकाय योग १ व पदाका (१०) म ३ योग जानना कर्मभूमि की अपेक्षा कर्मभूमि की अपक्षा (१) नरक मनुष्य गनि मे को० नं. १६. । को० नं. १६-: (१) नरक-मनुष्य-देवगतिको०० १६.१५. को००१६ १८सो १८ देखा : महंग्कम १६ देखो १८-१९ देखो का भंग-को० न०१६. १-२ के भग-कालन १६-१५-१६ देखो Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन १० वेद कोनं १ देखी २५ [को० नं० १ देखो ११ कषाय (२) तिर्यच गति में २-२-१ के मंग कीनं०] १७ देखो ३ कर्मभूमि की अपेक्षा (१) नरक गति में १ नपुंसक वेद जानना कोनं १६ देखो (२) तिर्वच गति में ३-१-३ के मंग को० नं० १० देखो (३) मनुष्य गति में ३ का मंग को० नं० १० देखो २५ कर्म भूमि की अपेक्षा (१) नरक गति में २३.१६ के मंग को० नं० १६ देखो (२) तिर्यच गति में २५- २३-२५-२५-२१ के मंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में २५-२१ के भंग को० नं० १८ देखो 1 ५.३१) कोष्टक नं० ७५. १ भंग jोन० १७ देखो १ योग को० नं० १७ देखी १ भंग १ वेद को० नं० १६ देवो को नं० १६ देखो । १ भंग १. वेद को० नं० १७ देखी को० नं० १० देखो (२) निर्यच गति में १-२ के भंग नं०१७ देख ३ (१) नरकगति में क्रो० नं. १६ दग्बो 1) नियंत्र गति में सारे भंग को० नं० १७ देखी ३-१-३-१-: के भंग को० नं० १७ देखी ( 3 ) मनुष्य गति में ३-१ के भंग सारे मंग १ वेद को० नं० १८ देखी | को० नं० १८ देखो को नं० १८ देख : | (४) देवगति में | उन २ का भग [को० नं० १६ देखो १ मंग २५ मारे मंग [को० नं० १६ देखो कोनं १६ देखो! (१) नरक गति में 1 | २३-१२ के भंग ! | १ मंग को०- १७ देखी कृष्ण या नील लेण्या में को० नं०] १० देखा (३) मनुष्य गति में २५-१६ के भंग सारे भंग १ भंग को० नं० १८ देखो [को० नं० १० देवो को० नं० १८ दे C १ भंग I १ योग कोनं०] १७ देखी को० नं० १७ देखो १ वेद १ मंग को० नं० १९ देखो को० नं० १६ देखो १ मंग १ वेद फोनं०] १७ देखो को नं० १७ देखो मारे भंग १. वेद को० नं० १० देखो को० नं० १८ देखो मारे मंग १ वेद नं०] १६ देखी | को० नं० १६ देवो को० नं १६ देखो (२) नियंच गति में मारे मंग | १ मंग २५- २३-२५-२५-२१-को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देशो २५ के संग सारे भंग ९ मंग को० न० १६ देखो को० नं० १६ देखी सारे मंग १ मंग को० नं० १८ देखी को० नं० १८ देखो Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७५ कृष्ण या नील लेश्या में (४) देवनि में सारे भंग १ भंग २४ का भंग ___ कान०१६ देखा कोनं० १६ देखो का० नं०१६ देखो १२ जान सारे भंग १जान ५ । सारे भग१ जान कुज्ञान जान३, मान ३ कर्म भूमि की अपेआ वधि ज्ञान घटाकर (५) (१) नरक गमि में (१) नरक गति में को २० १५ देखो कोनं० १६ देखो - के भंग का नं. १६ दस्रो कोनं०१५ देखो (२) तिर्यच गति में १ भंग ! १ जान (२) निर्यच गति में १ भंग | शान ०-३-३ के मंग को १७ देखो 'कोनं०१३ देखो २ का भग को.नं. १५ दशा कोन० १७ देखो कोन. १७ देखा को मं. १७ देखो (2) मनुष्य गति में सारे भंग १ ज्ञान (2) मनुष्य गनि में सारं भंग शान :-३ केभंग कोनं०१५ देखो कोनं १- देखो - के भंग का न.१- देखो का नं०१८ देखो को नं०१८ देखो । को० नं.१८खा । (४) देवमनि सारं भग १जान २ का भंग कानं० १६ देखो का नं.१६ देखो को००१६ देखा १३ संयम १ . प्रम.म | तीनों गतियों में हरेक में | को० नं०१६-१७-कोनं०१६-१७- चागें गलियों मे हरक में कार नं०१. मे १६ को.नं.१६गे १ पमपम जानना १८ देखो । १८ इन्च १मयम जानना देखो १६ देखो कोल नं०१६-१-१ - देखो को नं. १ म १६ दवा १४ न - भग द र्शन । १ भंग । १दर्शन कंवल दर्शन घटाकर (8) कर्म भूमि को अपना का० नं १६ देखो कोनं०१६ देवी (१) नरक मति में को० नं. १६ दलो कोन०१६देखा (१) नरक गति में २-३ भग - को नः १: देखो । का नं० १६ देखो (२) तिर्यच गति में . भगदान | () नियंच मनि म . भंग १ दर्शन .२.२ के भंग कोनं०१७ देवो कोनं०१७ देखो १-२-२-२-३ के भंगकी० नं०.१७ देखा कोनं०१५ देना पानं. ७ देखो का० नं. १७ नया (1) मतृप्य गतिम मारे भंग १ दर्शन - भंग कांनं.१- देवो कोनं.१८ दबो Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७५ कृष्ण या नील लेश्या में (१) मनुष्प गति में । सारे भंग दर्शन को नं. १८ टना २-३ में भग को.न.१८ दखा को०१८ (४) बनि म । १ मम १ दर्शन को० नं. १८ देखो देखो '• का भंग-को० न० हो० नं. १ देखी । को० नं.१६ | देखो १५ लझ्या १ । करमा या नीन जिरावा कृषण वा मील नश्य। मे विकार किया जाय में जिसका विचार किया वह १ लेन्या ज्ञाय कह १ नभ्या १६ मत्यत्व १ भंग १चवस्था भव्य अभकर कर्म भूमि की अपेक्षा को०१६-२- कोनं०१६. कमान को अपना को नं०१६गे कानं नीनी गतियों में हरेक में ।१८ देखो १३१% देयो । चारों नियों में हरे में : १६ देबो म देखो २-१ के मंग-को. नं. : २-१ भग-को नं० ।१६ १६ देखो [७ राम्ध्वस्त्र पार भंग १गभ्यस्व ४ च भंग १सम्यक्त्व को नं० १६ देखा । (१) नरक गनि में को० न०१६ दखो का नं०१६ मिथ उपनाम घटा- । १-१-१३-२ ने मंग-को. देखो | कर (४) जानना (१) नरक गति में का न० १६ देखो । को नं०१६ (२) नियंत्र गति में ६मंग १ सम्यक्त्व १-२ के मंग-को २० देखो १-१.१.२ के भंग- कोको में०१७ देनो को० नं०१७ | १६ देखो नं. १७ देखो देखो (२) निर्थच गति में १ भंग । १ सम्यवत्व । (२) मनुष्य मति म सारे भंग १ सम्यक्त्व । १-१ के भग-कोन की नं०१७ देखो को० नं०१७ १-१.१.३ के भंग-को को नं०१८ देखो' को० न०१८ १७ देखो न १८ देखो देखा (३) मनुष्य गति में । मार भंग १ सम्यस्त्व १-१-० के मंगकाम को नं०१८ दत्रो को न०१८ १८ देखो देखो (6) देवगनिःमें सारे भंग १ सम्पचव भवत्रिक देवों की अपेक्षाको० म०१६ देखो | को. न. १९ १-१ के मंग-को० नं. देखो १६ देखो Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतोस स्थान दर्शन २ C १५ सन्नी मंजी, असंतो १६ प्राहरिक २ आहारक, अनाहारक २० उपयोग जानोपयोग दर्शनोपयोग ३ ये जानना ३ २ कर्म भूमि को अपेक्षा (१) नरक - मनुष्य गति में हरेक में १ संज्ञी जानना को० नं० १६-१६ देखो १ कर्मभूमि को अपेक्षा दोनों गतियों में हाल में १ अ हार जानना को० नं. १६-१७-१८ देखो € (१) नरक गति मे (२) तियंच गति में 1 १ भंग १-१-१ के भंग को० नं० [को० नं० १७ देखी १७ देखो ५-६-६ के भंग-को० नं० १६ देखो (२) निर्यच गति में ३-४-५-६-६ के भंग को० नं० १७ देबो (३) मनुष्य में ५-६-६ के भंग को० नं० १८ देखो 1 { ५३४ } कोष्टक नं० ७५ १. को० नं० १६० १८ देखो " ४ 1 को० नं०१६-१७ १० देखी को० नं० १६१- देखो १ मंग को नं० १६ देखो १ भंग [को०]०१७ १ अवस्था को० नं० १७ देखो २ कर्मभूमि की अपेक्षा (१) नरक-मनुष्यमें हरेक में | १ मंत्री जानना को० नं० १६ १८-१६ देखो १ को नं० १६१७-१८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ उपयोग | को० नं० १७ देखो (२) नियंच गति में १-१-१-१-१ के भंगको० नं० १७ देखो २ कर्मभूमि की अपेक्ष चारों गनियों में हरेक में १-१ के भंग को नं १६ से १६ देवो 1 5 1 अवधिज्ञान घटकर (८) (१) नरक गति में ४-६ के भंग-को० नं० १६ देखो (२) विगति में ३-४-४-१-४-४ के भंगको० नं०] १७ देख (३) मनुष्य गति में ४-६ के भंग-को० नं० १० देखी (१) देव में ४ का मंगको नं १२ देख 1 कृष्ण या नील लेच्या में देवगति सारे भंग १ उपयोग को० नं० १० देखो को० नं० १० । देखो 1 १ को० नं० १६-१०१६ दे 1. १ मंग को० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १६ मे १६ देखी फो० नं० १६१५-१० देवो ९ अवस्था | को० नं० १६ मे १६ देखो I मारं भग को० नं० १० देशो ८ १ अवस्था मो० नं० १७ देखो १ मंग १ उपयोग । को० नं० १६ देखो को नं १६ देखो T १ भंग १ उपयोग [को० नं० १७ देखो | को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १० देखो | १ भंग [को० नं० ११ देखो | | १ उपयोग को० नं० १३ देखो Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतास स्थान दर्शन कोष्टक नं०७५ कृष्ण या नील लेश्या में । २१ च्यान । सारे भंग १ ध्यान । । मा भंग १ ध्यान ' कोम० १६ देखो कर्म भूमि की अपेक्षाको न०१६-१७. कोनं०१६-१३-अपाय विरय घटाकर (8) (१)तीनों गतियों में हरेक में | १८ देखो १८ देखो (१) नत्र गति में कोन.१६ देखो कान०१८ देखा F-8-१० के भंग ८-६7 भग को नं०१६-१७-१८ को नं०१६ देखो देखो (२) निर्यच गति मे और, भंग १ ध्यान देवगत में : का. नं. - कोनं०१६का भंग १९ सो १६ देखो को नं-१७-१६ देखी (1) मनग्य गति में मारे भंग १ ध्यान - के मंग inोनं०१८दखा को००१८ देखो २२ पात्र कोनं १८ देखा । प्रा. मिथकाययोग । मारे भंग १ भंग ५ . सारे भंग १ भग प्रा. कापयोग १, मो० मिथकापयोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मनोयोग ४, वचनयोग ४ अपने अपने स्थान के सारे भंगों में में ये २ घटाकर (५५) वै. मिश्रकाययोग १, सारे भंग जानता के सारे भंगों में प्रौ० मिश्रकायमोग १, । मारे मंग जानना | कोई १ भंग कार्मारा काययोग १ 1 कोई भंग व. मिथकाययोग १, जानना से ३ घटाकर (१२) ये १० घटाकर (४५) (१) नरक गति में | सारे भंग । १ भंग (१) नरक - ति में मारे मंग भं ग YE-४४-४० के भंगको .नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो ४२-३३ के भंगको नं. १६ देखो कोनं १६ देखो को० न०१६ देखो को.नं. १६ देखो (२) नियंच गति में सारे मंग १ मंग () तिर्यच गति में सारे भंग भंग २६-२८-६९-४०-४३-५१- कोनं०१७ देखो कोनं०१७ देखो ३७-३८-६-१०-१३. को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देलो ४६.६२ के भंग ४-३०३३-३४-२१-६८ को नं०१७ दवा ३३ केभंग (२) मनुष्य - नि में | सारे भंग । १ भंग को० नं०१३ दबा ५१-४६-२ के भंग का००१-खो कोन०१८ देक्षो (३) मनु म गति में सारे भंग १ भंग को० नं.१- देखो ४४-48.-३ के भंगको न० १० देखो को००१८ देखो कोनं०१८ देखो Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७५ कृपण या नील सोश्या में (४) देवगति में ४.-2 के भंग : को० नं. १६ देन्यो । सार भंग १ भंग को नं. १६ देखो का नं०१९ देखो ६ | नारे भंग । १ भग . सारे भंग १ मम उपशम-मायिक म. (नरक गनिमें को . १६ देखो को१६ देख उपगम-सायिक२, कुजान । मान, २४-१२-२२-२६ सयोपशम सम्परत्व ३, : दर्शन ३, लब्धि ५. . २५ के भंग ४ वेदक सम्यक्त्व ११ । कोल्नं० १६ के २६ घटाकर (३२) मनि ४, का४. २४-2--05-२५ के: (१) नरक गति में को० नं०१६ दंसो कोनं०१६ देखो लिग ३, कुष्गा नीच में हरेक भंग में में कृरगा- । २२-1 के मंग मे जिमका विचार कियाः नील लेण्याबों में में । | कोके - . जाय वह १ लावा, जिमका विचार कगे के हरेक मग में मिध्या दर्शन ओ १ छोडकर नेष२ में पत्रिवत् ग २ प्रसंगममियग, अजान लेण्या घटाकर -! लेज्या बटाका. २३१. ग्रसिद्धत्व ।। २२-२३-०६-२५ के भंग । २५ भंग जानना परिमिक भाव ६, जानना (E) निर्वत्र भति में | सारे भंग भंग थे भाव जानना () नियंच गनिमें ।२२-२२-२५-२५-20- मो. नं०१३ देखो कोन०१३ देखो २२-२३.२५ केभंगको० नं १ देखो कोनं.१० देखो २१-२२-२३ केभंग बालन: १७ के २४ को न.१५ के २४२५-२३ के हरेक मंग २५-२५-२५-२२-२३-| में में ऊपर के ममान |५-१के हरेक भंग शेष २ लन्या घटाकर ' मग पर्यामवत् शेष २२-२३-५ के भंग लेण्या घटाकर :जानना २८-२५-२५.२ के अंग '२३.३ के भंग जानना को नं. १७ के ११-, भंग भूमि में ' पहां कोई भंग नहीं होने। Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौंतीस स्थान दर्शन २ 1 ३ ६-३०-३२ के हरेक भंग में से ऊपर के समान शेष ५ लेग्या घटाकर २६-२४-२५-२७ के मंग जान्ना भोग भूमि में यहां कोई भंग नहीं होते । कर्म भूमि की अपेक्षा (२) मनुष्य गति में २६-२४-२५-२८ के भंग को० नं० १५ के ३१-२६-३०-३३ के हरेक भंग में से ऊपर के समान श्रेष५ लेश्या घटाकर २६-२४-२५ २५ के भंग जानना भोग भूमि में यहां कोई भंग नहीं होते। ५.३० कोष्टक नं० ७५ सारे मंग को० नं० १० देखो १ भंग को० नं० १८ देखो ! (३) मनुष्य गति में २५-२६ के भंग को० नं० १० के ३०० २८ के हरेक भंग में मे पर्यावद शेष २ या पटाकर २८-२६ के मंग जानना २५ का मंग को० नं० १० के ३० के भग में से पर्याप्तवत् शेष ४ लेoया घटाकर २५ का भंग जानना मोग भूमि में यहां कोई भंग नहीं होते । (४) देवगति में २४-२२ के मंग को० नं० १६ के २६२४ के हरेक मंग में मे पर्याप्तवत् शेष र लेग्या घटाकर २४-२२ के भं जानना कृष्ण या नील लेश्या मॅ ७ G सारे भंग १ भंग [को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो मारे मंग को० नं० १६ देतो १ मंग को० नं० १६ देखो Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अवगाहना-कोर नं. १६ में देखो। बंप प्रकृतियां-कोर न०१४ के समान जानना । उदय प्रकृतियां- " " " सत्व कृतियो- , , संख्या-मनन्सानात जानना । क्षेत्र-सबलोक जानना । स्पर्शन-सर्वलोक जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीच की अपेक्षा एक जीव की प्रपेक्षा अन्तर्मुहूर्त में वे नरक की रक्षा ३३ सागर प्रम. काल जानना . अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव को अपेक्षा अन्तम न ग साधिक ३ सागर प्रमाण काल तक कृष्ण या नोन लक्या न हो सके। यह सर्वार्थ सिद्धि की अपेक्षा जानना। जाति (योनि)--४ लाख योनि जानना । कुल-१६६ लाख कोटिफुल जानना । Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ० स्थान गामान्य बाजार १ १ गुग्ग स्थान २ जीव गमान ܫܪܙ नई पर्याप्त नाना जीवों को प्रक्षा 6 कर्मभूमि की अपेक्षा (१) नरक गति मे १ से नियंत्र गनि में १ मे ४ () मनुष्य गति में १ से ८ की० नं० १६-१०-१२ देखी ७पर्याप्त भूमि की पेक्षा (2) क- मनुष्य गति में हरेक में को० नं० ७५ देखी (२) गति में को० नं० ७५ देखी 1 422 ) कोष्टक नं० ७६ एक जीव के नाना एक जीव के एक गमय में समय में मारे गुमा स्थान अपने अपने स्थान के सारे गुण जानना १ गुगा० अपने अपने स्थान के कोई १ गुण ० १ समाम १ समास को० नं० ७५, देखो | को० नं० ३५, देखा अपर्याप्त नाना जीयों की पेक्षा ६ (१) नरक यति में १४ (२) तिच गति में १ २२ भोगभूमि में १-२-४ (३) मनुष्य रति में १-२-४ भोगभूमि में १-२-४ (१) देवर्गान में १-२-० ७ प्रपर्याप्त (१) नक्क गति में १ संज्ञी पं० अपर्याप्त को० नं०] १६ देख (२) तिर्यच गति में ७-६-१ के भंगको ० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में १-१ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देवमति में १ संज्ञ पं० त [को० नं०] १६ देखो कापोल लेश्या में १ जीब के नाना समय में 19 सारे गुण ० अपने अपने स्थान के सारे गुण ० जानना १ समास को० न० १६ देखो को० नं० १७ देखी 1 को० नं० १६ देखो | १ जीव के एक समय में ६ १ मुरा० अपने अपने स्थान के कोई १ गुण ० १ समास को० नं० १६ देखो को० नं० १७ देखो को० नं० १८ देखो | को० नं० १८ देनो को० नं० १६ देखो Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७६ कापोत लेश्या में ३ पर्याप्ति को००१ देखो । १ भग १ भंग । कर्म भूमि की अपेक्षा को २०७५ देखो १० कोनं०१ देखी कर्मभूमि की अपेक्षा को २०७५ देखो १ मंग १ भंग (१) नरक-देवर्गात में को० नं.१६.१६ को नं०१६हरंक में देखी १६ देखो का भंग-का० नं. १६.१६ देखो (B) तिर्यच-मनुष्य गति ? भंग , भंग में हरेक म का० नं०१२-१८ : को. नं०१७३.३ के भंग-फो० नं. देखो १८ देखो १७-१- देखो नन्धि रूप के भंग भी होते है १ भंग १ भंग (१) नरक-देवमति में को० न०१६-१६ को १६ हरेक में देखो ७ का भंग-को. न. | १६-१६ देखो 12) तियच गनि में कोः न १७ देखो को.नं०१७ ७-७-६-५-6-६-७ के मंग देखा को० नं०१७ देखो (1) मनुष्य गनि में कौन-१८ देखो की० न०१८ '७-3 के भंग-को. नं० . देखो १८ देखो १ भग भंग (१)नरक-देवगति में को० नं.१२.१६ को न०१६. हरेक में देखो ।१६ देखो • का भंग-को नं. १६.१६ देखो (२) तियंच-मनुष्य यति मंग १ मंग में हरेक में कोनं०१७-१८ | कॉ० नं०१७. ४.४ के भंय- । देखो ।१ देखो। मंग ५ संज्ञा को.नं. १ देखा । कर्मभूमि की भषेक्षा को नं.७५ देखो Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ७६ कापोत लेश्या में १ गति । १गति ६ गति पो.नं.१ देलो कर्मभूमि की अपेक्षा को २०७५ देखो ७ इन्द्रिय जाति ५ को.नं.१देखो १ जाति १जाति कर्मभूमि की अपेक्षा को.नं.७५ देखो ८काय काय को० नं०१ देखो कर्मभूमि को अपेक्षा कोल नं०७५ देखो को.नं०१७-१८ देखो १गति चारों गतियों में-हरेक में एक एक जानना । को.नं. १६ मे १२ देतो ५. जानि । जाति (१) नरक-मनुष्य-देवतिको० नं. १६-१८- ] को० नं. १६. में हरेक में १६ देखा १८-२९ देखो १ पंचेन्द्रिय जाति को० नं. १६-१८-१६, देखो (२) तिर्यच गति में जाति जाति ५-१ के भंग-को० नं को० नं। १७ देखो को.नं.१७ १० देखो देखो १काय काय (१) नरक-मनुष्य-देवगति को नं०१६-१८- को.नं.१६ में हरेक में १६ देखो १८-१९ देखो १ जसकाय-को० नं. । १६-१५-१६ देखो (१) निर्वच गति में | १काय काय ६.४.३ के मंग-को० नं ! को० न० १५ देखो को० न०१७ १७ देखो देखो | १ भंग | । योग | प्रो. मिश्रकाय योग !, 4. मिश्रकाय योग १, । कार्माणकाय बोग १ ये। योग रानना (१) नरक-देवगति में | १ योग हरेक में को नं.१६-१६ को.नं०१५१. के भंग-को० न० | देखो १६ देखो १५-१६ देखो १० १ भंग योग योग मा० मिश्रकाय योग १, । आहारक काय योग १.. दे २ घटाकर (१३) कर्मभूमि की अपेक्षा को० नं.७५ देखो Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७६ कापोत लेश्या में १० वेद १ भंग । १ वेद कर्म भूमि को अपेक्षा कोन 52. देखो (२) तिर्यच गनिम मंग ।१योग को० नं. १७ देखो कान०१५ देखो १३) मनुप्य गदि में हरेत्र में मार भंग | योग १.... के भंग को न०१८ देखो कोनं०१८ देखो . को न०१७-१८ देनां । १ भंग १बंद (१) नरक गति में को न०१६ देवा को नं. १६ देखो १ नपुंसक वेद बा० न०१६ देखो (E) निर्यच गति में मंग १बेद ३-१-३-१-३-२-१ के भंगको० नं०१०देवी कोनं०१७ देखो को नं०१७ देना । (३) माय गनिम सारे भंग वेद ३-१-१-१ के मा को नं. १८ दलो को नं०१६ देखो को नं.१ देखो (6) देवगति में मारंभंग १ वेद २ का भंग कोन०१६ देखो कौन०१६ देखो को. नं०१६ देखो | मारे भंग भंग (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो को.नं. १६ देखो २३-१६ के भंग को नं. १६ देखो (B) नियंच गति में को.नं.१७ देखो कोउन०१७ देखो ५.२३-२५-२५-२३-२५-: २४-१९ के भंग को० नं०१७ सी (३) मनुष्य गति में को० नं. १८ देखी कोनं०१८ देम्बो २१-१६-२४-११ के नंग ! कारनं.१८ देशों ११ कपाय २५ कोर नं.१ देखो । मारे मंग , १ मंग २५ कर्म भुमि की प्रभा जोन ५ देखो Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन काप्टक नं. ७६ कापोत लेश्या में ( देवगति में को० नं०१६ देखो को नं०१६ २४ के भंग-का० नंक | देखा २६ देखो | गारे भंग गारे भंग कुपवधि ज्ञान घटाकर १२ काम कुज्ञान ३, शान ३ सार भंग १जान कर्मभूमि की अपेक्षा को. नं.७५ देखो । देखो (१) नरक गति में को० नं० १६ देखा की नं०१६ २-३ के भंग-को० नं0 १६ देखो (२) तिर्यंच गति में १ भंग १ज्ञान २-२-३ के भंग-को० नं.को.नं. १७ देखो को नं०१७ १५ देखो देखो (३) मनुप्य गति में जान २-३-२-३ के भंगका नं. १८ दखा! को.नं०१८ कोनं०१८ देखो । देखो (४) देवगति में की नं०१६ देखो ! को न०१६ २ का मंग-को० न० १६ देखो देखो - देखो १३ संयम असंयम मभूमि की अपेक्षा को. नं०७५ देखा । १ भंग १ दर्शन १४ दर्शन केवल दर्शन घटाकर (३) कर्म भूमि की अपेक्षा कोनं०७५ देखो चारों गतियों में हरेक में | कोनं०१६ मे | को०२०१६से १ असंयम जानना देखो १६ देखो को० नं० १६ से १९ देखो १ भंग १दर्शन (१) नरकगनि में को० नं०१६ देखी को नं०१६ २-३ के भंग-को० नं. १६ देखो (२) तिर्यंच गति में को नं०१७ देखो को.नं.१५ १-२-२-२-३ के मंग देखो को० नं०१७ देखो | देखो Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७६ कापोत लेश्या में मारे भंग १ दर्शन। मोल नं.१- देखो कोन०१८ देखो ! (2) मनुष्य मनि में '२-३-2.2 के अन कोन नं.१ देतो (1) देवगांत में का मंग कोर न देखो को.नं. १६ दग्डो कोन १६ देखो १५ लेपया तीनों गतियों में हरेक में १ कापाल लेश्या जानना २ कम भूमि की अपेक्षा कोल नं. ३५ देखो १६ भव्यत्व मध, अमब्द १ मंग १ अवस्था १ भंग १ अवस्था को.१६-१६ को नं. १६ देखो १६ देखो नरक-देवगति में हरेक में 1-के भंग कोनं-१-१६ देम्बो तिथंच-मना गनि में होक में २-१-०-1 के भंग को न०१७-१८ देम्बो को.नं. १ १ देखी को नं.१७-१८ देखो। सारे भंग सम्यक्त्व १७ मम्यक्त्य कोल्नं १६ देखो कर्म भूमि की अपेक्षा कोनं. ५ देखो मारे भंग | १ सम्यकत्व मिथ और उपशम ये घटाकर (४) (१) नरक गनि में कोने १६ देखो itoन १६ देखो १. मग को० नं.१६ देग्दो (२ नियं च गनि में मंग ।मम्वस्व १-१-१-१-के भंग को.नं.१६ देखो कोनं.१७ दंलो को.नं. देखो (3) मनुष्य गति में सारे भंग सम्यक्त्व १-१-२-१-१-२के अंग को० नं०१८ देखो कोन.१५ देखो को० नं०१८ देखो Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७६ कापोत लेश्या में E (४) देवगति में १-१ के भंग कोलन०१६ देखो - -- सारे भग १सम्यनस्य को० नं०१६दलो कोनं०१६ देनो १८ संजी ममी, अमंजी वर्म भूमि की अपेक्षा की नं. ३५ देखा १९ माहार महारु, सनाहारख । (१) नरक-देवगति में को० नं०१६-१६ कोनं०-१६ हरेक में . देखो देखो १ मंज्ञी जानना को० नं० १६-१६ देखो (२) नियंत्र गति में | १भग १ अवस्था १-१-१-१-१-१ के भंग को नं०१७ देखो को नं०१७ देखो को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में । १-१ के भंग को.नं. १५ देखी को००१८ देखो को नं०१-देखो १अवस्था (१) नरक-नैवगति में को० नं०१६-१६ को ०१६-१६ इंग्क में देखो देखो 12-1 के मंग को० नं०१६-१६ देखो (२) तिर्वच-मनुष्य गनि में को० नं०१७-१८ कोन १७-१८ देखो देखो १-२-१-१ के भंग को० न०१७-१८ देखो। १ भंग १ उपयोग दुअवधि ज्ञान घटाफर ! कर्म भूमि की अपेक्षा को नं. ७५. देवो ० उपयोग का न. ६५ देव। | १ गयोग कर्म भूमि की अपेक्षा को नं. ७५ देखी को. नं०१६ देखो को नं० १६ देखो | (१) नरक गति में 16-६ के मंग । को.नं. १६ देखो Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं० ७६ कापोत लेश्या में ५. _. - - - में भंग उपयोग 1-1-1-1-1-1-1-६ के 10 नं० १३ देखी को १७ भग-कोः नं. १५ देखा देखो (३) मनुष्य यान में मारे भंग १ उपयोग ४-६-४-६ के भगक० न०१८वा : को ना १८ को.नं. १८ दवा | ४) देवगन में १ भंग १ उपयोग ४ का मंग-को. न. काकनं० १९खो को नं. १ देखो गा। भंग १ ध्यान प्रायविचय घटाकर सारे भर १ ध्यान २१ ज्यान . .. की न.१६ देखा कर्मभूमि को अपेक्षा को नं. ३५ देखी देवा (१) नरक गति में को० नं०१३ देखी को न०१६ :- भगवान १३ दन्दी (निर्वच गति म १भंग १ ध्यान ८-६-६ के भंग-कान का नं०१७दखा को न०१० १७ देखो (B) मनुष्य गनिमे सारं भंग १ध्यान ' E-6-4-6 के भग-कोर को नं. १८ दखा को नं. १८ न०१८दमो देखा 1)देवनि में सारभंग १ ध्यान | E-के भग-की. न. का.न. १७ दखी को० न०१६ | १६ देखा सारे भंग १मंग २२ पासव ५५ को. नं० ६५ लं! ४५ ११) नरक गनि में सारे भंग को.नं. १६ दखा भं ग को.न. १६ कर्मभूमि की अपेक्षा को० नं. ७५ देखो का० न०१६ देतो Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४७ ) कोष्टक नं० ७६ चातीस स्थान दर्शन कापोत लेश्या में मार भंग १ मंग २३ भाव कोमा ७५ दंलो कर्म भूमि की अपेक्षा को नं.७५ देखा (२) तिर्यच गति में सारे भंग ! भंग २७-३-६-४०-४:- को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो ४४-१२-१३-१४-३५1८-३९-४३-३८-३३ ! के भंग कोनं०१७ देखो १३) मनुष्य गति में सारे भंग । १भंग ४४-३६-३६-४३-८-- को.नं. १८ देखो को.नं.१८ देखो ३३ के भंग कोल्नं १५ दे। (४) देवगनि में सारे भंग | 1३-' के भंग को. नं. १६ देखो कोनं १६ देखो को.नं. १६ देतो | सारे भंग १ भंग (को० नं. देवों) । (१) नरक गति में | कोन०१६ देल्लो को नं. १६ देखो २.-३५ के भंग को० नं०१६ के २५ के हरेक भंग में मे कृष्ण-नीन ये२लन्या घटाकर २३-२५ के मंग जानना (२) नियंच गति में मारे भंग भंग २२-२३-२५-२५-२०-को.नं. १७ देखो । को.नं. १७ देखो २१-२३-२३ के मंग । को० नं. १० के २6 ५-२७-७-२०-२३२५-२५ के हरेक मंग | में से कपण-नील लेश्या । Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७६ कापोत लेश्या में | 1------ - |- -- । १३.:: के भगवानमा । । नाम - --- - -.-. | को० नं. १७ के गुमान । । जानना मार भंग • भंग '(२) मनुष्य गति में नं. दंषो को न १८ ' ८-२६ . भंग-वी ' देतो | 40१ के ..२ के ! । पारेक भग' में गे कृग नील ये २ जदया हटाकर २८-२६ के जंग | जानना २५ का भंग-को- नं.। १८ के 10हे. भंग में। " कापीत वेश्या श्रोत-: कर दोष ५ नेण्या घटाकर २५ का भंग जानना । २४-२२-२५ के भंग- | . को० नं०१८ के ममाम । जानना (४) देवति में सारे भंग , भंग '२४-२२ के भंग-को० को नं. १६दयों न0 १६ . नं० १६ के २६-२४ के । देवा - हरेक भंग में से कृष्णा-। नील ये २ लेश्या घटा-। 'कर २४-२२ के मंग जानना Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAN WOMAGEK 1 ५४६ ) प्रवगाहना---को० . ११ म २४ देखो। वर प्रकृतिया-११ वदय प्रकृति-११ सत्व प्रतियां-१४ संख्या-अनन्तानन्त जानना। क्षेत्र - सर्व लोक जानना । स्पन -सर्वतो जानना। काल-नाना जीचों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की ३रे नरक को अपेक्षा अन्तम हूतं स सागर बाल प्रमाण जानना। मातर-जाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से ७वे नरक की अपेक्षा ३३ मागर तक कापात बेश्या न हो सके। जाति (योनि)-४ लाख योनि जानना । कुल-१६६। लाम्न कोटिकुल जानना। Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं. ७७ चौतीस स्थान दर्शन का स्थान सामान्य बालाप पयाँ: पोत लेल्या में पर्या एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में | ममय में जांब के नाना एक जीव के समय में गम्य में नागा जीने की अपेक्षा नाना जीवों की प्रगंमा ! १ गुग्ण स्थान १ से ७नक के मुगपः (१) तिर्थन गति में१५ भोग भूमि में १ से (२) मनुष्य गनि में १ ७ भोग भूमि में । (2। देवगति में 44 मारे गुगा० । १ गुण : मारे गुगा धन मुल. अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (१) मनुष्य गति में अपन अपन स्थान के अपन अपने स्थान सारे नगा स्थान के सारे गुरण मे कर्म भूमि की अपेक्षा सारे गुण जानना के मारे गुण में जानना से कोई १ गुण १-२-४ मे कोई 1 गुगा. जानना (२. देवगति में जानना कल्पवासियों की अपेक्षा ! । सूचना-यहाँ तिर्पच गति : | नहीं होती (देब्दो गो० का। । गा० १२५) २जीवसमास २. संगी पं० पर्याप्त । संशी १. अपर्याप्त १ ये जानना को० नं.१५- १६ देखो कान०१५१६ देखो निर्यच, मनुष्य, दंवगति में : को० नं०१७-१८. कोनं०१७-१-- दोनों गनियों में हरेक में । १६ देखो १६ देखो 'हरेक में मनी पं० पर्याप्त जानना । १ मंजी पं. यपर्याप्त कान० १७.१-18 देवी । जानना कोल्न०१८-१९ देखो मनुष्य-देवगति ३ पर्याप्ति मंग १ भंग को-०१५-१६ को ०.१८-१६ देखो देखो नीना गनियों में हमें को० नं. १:-14- कोनं० :७-१८- दोनों नतियों में ६का भंग १६ देखो ११ देखो हरेक में का० नं०११-१८-१६ देखो ३ का मंग को०० -११ देखो लन्धि रूप ६ का भंग Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ७७ पीत लेश्या में अंग । १ मंग। ___ को नं.१ देखो । १०१ भंग १ भंग नीनों गनियाँ में हरेक में कोन०१७-१८-१६को नं. १७-१८- दोनों मतियों में हरक में को० न०१८-१९-कोनं०१५-१६ १० का भंग देखो १६ देखा का भंग देखो कोरनं. १७-१८-१६ देखो . को००१-१६ देखो देतो १ भंग १ भंग को० न०१ देखो (E) नियंन गति में कोन. १७ दखो कोनं०१७ देखो (१) मनुष्य गति में काम देखो 'कोल्नं०१८ देखो ४.४ के भंग ४ का मन को नंक १७ देखा | कोनं०१८ देखो | (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भग (२) देवगति में १ भंग १ भंग ४-३-४ के भंग को नः १८ देखो को नं०१८ देखो ४ का भंग का नं.१६ देखो को.नं.१६ देखो को न.१८ देखी की.नं.१६ देखा। (३) देवगति में १ भंग १ भंग । ४ का मंग वो नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो को नं०१६ देखो ६गति १गति १ गति १ गति तिर्यंच, मनुष्य, देव ! तीनों गति जानना मनुप्य, देव ये २ गति ये ३ गनि जानना कोनं०१७-१८-१६ देखो जानना को० नं. १५-१६ देखो । इन्द्रिय जानि पंचन्द्रिय जति तीनों गतियों में हरेक में दोनों गतियों में हरेक में १पनेन्दिय जाति जानना १ पंचेन्द्रिय आति जानना को० नं०१७-१८-१६ देखो. को० नं. १८-१ देखी काय अमकाय निर्यच-मनुष्य-देव ये मनुष्य-देवगनि में गतियों में हरेक में १ उसकाय जानना १ पसकाय जानना को० नं०१५-१६ देखो की.नं. १७-१८-१६ देखो १ Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (५५२ ) कोप्टक नं०७७ पीत लोश्या. में १ योग ५ १ भंग योग ? भंग १ योग ___ को नं०२६ दंघो । प्रो. मिथकाययोग १, | | यौ० मिधकाययोग १, । 4. मिधकामयोग १, । 4. मिथकाययोग ? ग्रा० मिथकाययोग १, । P मिश्रका योग १, वामांगा कावयोग | क मांगा का-योग ये ४ घटाकर (११) । ये ४ योग जानना। (१) नियंच गति में १ भंग १ योग । (२) मनुप्य गति में मारे ग १ मांग -- के मंग कोन०१५ देखो कोनं०१७ देखो १-२-१ के मंग कोनं०१८ देखो नं०१८ देखो को नं. १७ देखो कोर१देखो (२) मनुष्य ति में | मारे मंग १ योम (२)देवगति में भंग योग 8-6-8-8 के भंग ___ को नं. १- देखो को नं०१८ देखो १-२ के मंग को में देखो को नं. १६ देखो को० नं०१६ देखो को नं०१६ देखो (1) देवति में १ भंग है का भंग ___ को नं०१६ देखो कोनं-१६ देखो। को.नं.१६ देनो १. वेद मारे भंग १ वेद कोनं० १ देखो (१) तिर्यंच गति में को० नं०१७ देखो कोन०१७ देनों स्त्री-पुष्य वेद (२) ३.२ के भंग | (१) मन्घ्य गति में को नं० १ देनो कोनं० १८ देखो को० नं०१७ देखो २-1-1 के मंग (२) मनुष्य गति में - सारे भंग १ बेद को मं०१८ देखो ३-३-३-2-३-२ के अंग को० नं०१८ देखो को नं१८ देखो (२) देवनि में सारे मंग । १ वेद को नं०१८ बैवी । । २.०-१ के भंग को.नं. १६ देखो सोनं०११ देखो (२) देवगति में : मारे भंग १वेदको .नं. १६ देखो ३ का मंग को नं० १६ देखो कोल्नं० १६ देखो को नं०१६ नों १ रुषाय २५ मारे भंग १मंग । सारे भंग । १ भंग को० नं०१देखो (1) निच गति में कोनं०१७ देयो को नं. १७ देखोनपु'सक वेद घटाकर (२)को० नं० १५ देखो कोनं. १८ देखो २५-२५-२१-१७.२४-२० । (१) मनुप्प गति में के मग | २४ का भंग को० नं० देखो Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १२ जन ܕ १३ नंयम ני वेद ज्ञान घटाकर ( 16 ) भूम गय या से २ घटा (४) (9) मनुष्य सारे अंग २५-०१-१७-१३-११-१३ को मं० १८ देखो २४.२० के भंग-को० नं १८ दे (2) देवगति में २४-२० के भंग-को० नं० १६ देशे 15 (3) दि गति में :-1-2-3 के भंग-को नं. १७ देखी | (२) मनुष्यति में ३.३.०३.०३ के भंग क० मं० १० दे (३) देवगति में T १-१-१ के भंग-कोन १७ दे (२) मनुष्य गति में ( ५५३ ) कोष्टक नं० ७७ नारेभंग ३-३ के संग फी नं को नं १६ १६ देवाँ ५. (१) नियंति सारे भंग को० मं० १६ देखो १ मंयंग जानना को० नं०] १६ दे १-१-१-२-३-१ के भंगको० नं० १८ देखी ३ देवगति में १ भंग को० नं० १० देखो १ भंग | को० न० १६ देखो सारे भंग को न० १८ देशों १ मंग को० नं० १८ देखो मारे भंग को० नं० १८ देखो १ ज्ञान को० नं० १३ देखो १ जान को० नं० १८ मे १२ देख १ ज्ञान को ० १२ देवो १ भग १ संयम [को० नं० १७ देखो | की० मं० १७ देखो १ नंगम ००१८ देवो १ मंयम क० नं०६६ देखी को० २०१६ १ भग देखो को० नं० १५ के २५ के. भंग में गं १ नपुंसक वेद घटाकर २४ का मंग जानना १२-११ के भंग - को० २०१५ देखो (५) देवगति में २४-१२ के भंग-को० [को० नं० १६ देखो ५. कुपवधि ज्ञान मनः पर्यय ज्ञान से २ पटा ७ ४ संयम, सामाविक स्थापना, परिहार वि ये (४) जानना (२) मनुष्य गति में १-२ के भंग-को० नं० १८ देखी (३) देवगति में * प्रसंयम जाना ० नं० १६ देखो पीत लेश्या में सारे मंग कौ० ० १० देखो कर (2) मंग (२) मनुष्य गति में २-३-३ के को० नं० १८ देखी सारे मंग (६) देवगति में २-३ के भंग-को० नं० क० नं० १६ देवो १६ देखो १ भंग सारे भंग को० नं० १८ देखो सारे मंग [को० नं० १८ देखी १ मंग [को० नं० १६ देखो " १ भंग को० नं० १९ देखो १ ज्ञान को० नं० १८ देखो १ ज्ञान को० नं० १६ देखो १ संयम १ संयम को० नं० १० देखो संयम को० नं० १६ देखो Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं. ७७ पोत क्या में १४ दर्शन १ भंग १ दर्जन सार भंग १ दर्शन अचक्षु८०, चक्षु द० (१) निर्यच गनि में कोन. १७ देखो कोनं १० देखो (१) मनुप्य गति म को नं०१८ देखो कान०१८ देखो अवधि दर्शन २-२-३-३-२-३ के भंग २-३-३ के भंग वे (६) जानना कानं०१७ देखो को नं०१८ देखो (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ दर्शन (3) देवगति में १ भग १ दर्शन २-1-३-३-.-३ के भंन को नं१- देखो कान दखा २-३ के भंग ००१ देखो कोल्नं १६ देखो को० नं. १८ देखो को० नं०१६ मंसी (B) देवमसि में १भंगगन २-६ के भंग को नं०१६ देखो कोनं १६ देखो कॉ० नं. १६ देखो १५ लेल्या नीना मतियों में हरक में । दोनों गतियों में हरक में १ पीत लया जानना - पीन लेश्या जानना १६ भव्यत्व १भंग १ प्रवस्था । १ भंग अवस्था भव्य, प्रभव्य नीनों गलियों में हरेक में को० न०१७-१८- कोनं०१५-१०- दोनों गतियों में हरेक में को०-१०- कोन०१८२-१के भंग १६ देखो | २-१ के भंग - १६ देखो १९ देखो को० नं०१७-१५-१६ देखो • कोनं०१८-१९ देखो । १७ सम्यक्त्व १ भंग . १ सम्यस्त्व | ५ सारे भग१ सम्यक्त्व कानं०२६ देखो । (१) तिर्यच गति में को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो| मिथ घटाकर ५) को नं. १८ देखो को नं०१८ देखो १-१-१-२-१-१-१-३ । (१) मनुष्य गति में के भंग १-१-२-- के भन को नं १७ देखी को नं० १८ देखी (२) मनुष्य गति में न मार भंग सम्यक्त्व ' (२१दवगति में। | सार भंग सम्यत्व १-१-१-३-३-२-३- को.नं. १५ देखी कोनं १५ देती 1-1-३ के मंग को .न.१६ दलो को नं. १६ देखो १-१-१-३ के मंग कोनं०१६ देखा कोनं। १८ देखा (३) देवगति में । सारे भंग । १ सभ्यक्त्व १-१-१-२-३ के भंग को० नं०१९ दखो कोनं १६ देखो को० नं० १६ देखो Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चोतोस स्थान दर्शन १८ सज्ञी १६ श्राहारक २.उपयोग २ आहारक, अनाहारक गंभी २१ ध्यान ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग ये ११० ) जानना शुक्ल ध्यान ४ घटकर (१२) 君の i (१) नियंत्र गति में १-१-१ के मंग को० नं० १७ देख २) मनुष्य गति में १.२ के मंग-को० नं० १८ देखी (३) देवगति में देखो तीनों गतियों में हरेक में १ आहारक जानना को० नं० १७.५५ ११ पेखो कोट०१ (१) निगि ५-०६-२-६-६ के भंगको० नं० १० देखी (5) मनुष्य म में ५-६-६-७-६-७-५-६-६ के भंग को० नं०१८ (३) देवमति से ५-१७ के भंग-को० नं० १९ १२ (१ तियंचगति में ६ ६ १०११-६-१० 1 ( ५५५ ) कोष्टक नं० ७७ ४ 1 | १ मंग १ अवस्था १ को० नं० १७ देवो! को० नं० १७ (१) मनुष्य पति में देखो १ का मंग-को० नं० १८ देखो (२) देवगति में १ का मंग-को० नं० १६ देखो १ १ भंग को० नं० १३ देखी ! 갗 १ भंग को० नं० १६ देखी १ १ उपयोग को० नं० १७ देखो मारे मंग १ उपयोग को० नं० १८ देवी को नं० १८ देखो ६ १ उपयोग को० नं० १९ देखो २ (१) मनुष्य गति में १-१-१ के मंग-को० नं० १० देखो (२) देवगति में १-१ के भंग-को० नं० १६ देखो पीत लेश्या में | १ मंग १२ १. ध्यान को० नं० १९७५ देखो [को० नं० १७देखो (१) मनुष्य गति में । ६-७-६ के मंग सारे भंग को० नं० १८ देखी को० नं० १६ देखो C कुअवधि ज्ञान १, मनः गय ज्ञान ? २ घटाकर (८) (१) मनुष्य गति में ४-६-६ के भंग को० नं० १८ देख (२) देवयनि में १ भंग ४-६ के भंग-फो० नं० [को० नं० १६ देखो १६ देख सारे भंग को० नं० १० देखो 怎 सारे भंग को० नं० १८ देखो ८ १ मवस्था को० नं० १ देखो को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १८ देखो Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टके नं ७ पीत लेख्या में १२ ग्रान्त्र ४५. कां• नं७१ देखो के भंग-को० नं. १०खो । का० ना । (२) मनुप्यानति में । सारे भंग १ वान (३) दंबगनिमें । मारे भंग भंग ८१-१०-११-७-४-८-६- चोन्नं०१८ देखो कोनं०१६ देखो - के मन 'कानं०१६ इसी कोन: १६ देखो १०के भंग कांदनी । को नं १ देखी (2) देवनि में ' नारे भन । १ घ्यान E--१. के भंग को नं०१६ देखो कोदना डा० नं १६ देखो : सारे भंग १ भंग सारे भंग १ मंग ant० मिथकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने पपने स्थान मनोयोग, वनयोग 6, अपने अपा म्यान के अपने अपने स्थान 4. मिश्रकाययोग १, !मारे भंग जागना के सारं भंगों में कारयोग , मारे भंग जनना के मारे भंगों में मा० मिनकाययोग, कोई भंग । कावान । वाई १ भंग नामारण काययोग । जानना !चा काला योग । जानना ये ४ वटाकर (५३) गनक वेद, (१) नियंच गति में सारे भंग । १ भंग । घटाकर (४५ ५१-४२-४२-३७-५-४५- कार नं० १७ देखो कोनं०१७ देखा (१) मनप्य गति में मारे भंग १ भंग 6. भंग |४४-३६-३-१२ के भंम को न.१ दन्को होनं०१५ देखो को नं. १७ देखो को००।- देखो (२) मनुप्य गति में सारे भंग १भी । (४) देवर्गात गे भारे भन१ मंग ५-४६-४२-३७-२२-२०. को नं०१८ देशो कोनं. १८ दबा ४-३:- के भंगकीनं० १६ देखो कोनं०१९ देखो २३-५०-४५-४१ के मंग कोनं.१६ देखो को० नं०१८ देखो (२) देवगति में सार भंग भंग ! ५.३-४५-४१ केभंग को.नं. १८ देखो बोनं०१६ देखो को नं.१६ देखो । सारं भंग १ भंग २३ माव उपशम-क्षाविक सम्यक्त्व २. | (तियच गति में २६-२४-२५-२७ के भंग को० नं १७ देखो कोल०१७ देखो कुवधि जान . मनः पर्यय जान १. Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन २ केवल ज्ञान घटाकर शेष ज्ञान ७. केवल दर्शन विशेष दर्शन २. १. | नरकः गति बिना शेष बाय ४, ५. गणि लिन पीत लेश्या १ सयमा सम्म १ सराग संयमः १, मिघ्या दर्शन १. श्रसंयम १ प्रजान १ १, प्रसिद्धत्व १, परिणामिक भाव में, मे २८ भाव जानना 1 ३ क० नं० १७ के ३१२६-३०-३२ के हरेक मंग में ने पान म्या छोड़कर शेष ४ श्या घटाकर २६-२४-२५के नंग जानना २७-२५-२३-२४-२७ के मम को० नं०१७ के २९२७-२५-२६-२६ के हरेक मंग में से पद्मशुक्ल में २ लेश्या घटाकर २७-२५-२३-२४-२७ के भंग जानना (३) मनुष्य गति में ( ५५७ ) कोष्टक नं० ७७ सारे मंग २६-२४-२५-२६ के मंग को० नं० १८ देखो ००१० के ३१ २९-३०-३३ के हरेक भंग में से पीत लेन्या छोड़कर शेष लेश्या घटाकर २६-२४-२५- ६८ के भंग जानना २६-२६- २५-२६-२५२३-२४- २७ के मंग को० नं०१६ के २०३१-२७-३१-२७-२५२६-२६ के हरेक मंग ४ "1 १ मंग को० नं० १८ देखी ་ नियंत्र सनि नए सक बंद मयमागम १. ये ५ घटाकर (३३) (१) मनुष्य गति में २५- २०-२५ के को० नं० १० के ३०२०-३० के हरेक भंग में से पीत लेश्या छोट कर शेष ५ या पटा | कर २५-२३-२५ के भंग जानना भोग भूमि में यहां कोई भंग नहीं होते । कारण यहां पीत लेदया हो होती है 1 13 (२) देवगति में भवनषि देवों में यहां कोई भंग नहीं होते 1 पीत लेश्या में सारे मंग १० २५ का भंग सारे भंग १ भंग | को० नं० १० के २७ को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखी के हरेक भंग में से पद्म और शुक्ल लक्ष्या २ या बटाकर २५ | का भंग जानना ८ खारे भंग १ नंग क०० १८ देखी १ भंग Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७७ पीत लेश्या में में में पदम-शुक्न ये २ कल्पवामी देशों में सारे भंग भंग लेब्या घटाकर २८ २४-२२-२६ के भंग को नं०१६ देखो को नं०१६ देखो २९-२५-२६-२५-१३ को. नं० ११के २६२४-२७ के भग - हा अंग जानना | में से पद्म-शुक्ल ये २ ' (8) देवनि में | सारे मंग१ मंगलेल्या घटाकर २५-२२भवनरिक दवों में को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो २६ के मंग जानना २५-२३-२४-२७ के भंग | का० नं०१६ के समान । जानना कल्पवासी देवों में " । २५-२३-२४-२७ के भंग को नं० १० के २७२५-२६-२६ के हरेक भंग में में गद्मशुक्लरलेश्या घटाकर ! २५-२३-२४-२७ के भंग जानना Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ २६ अवगाहना-कोड नं०१७-१८-१६ देखा। बघ कृतियः १११ बन्धयोग्य १२. प्रकृनियों म स नरकदिक २, नरकायु १, बिकलवय ३, साधारण १, मूभम १, पर्याति? यह घटाकर १११ जानना । उदय प्रकृतिपां-१०८ उदय योग्य १२२ प्रकृतियों में से नरकट्रिक २, नरकासु, निर्वच गयानुपूर्वी १, एकेन्द्रियादि जाति र, प्रातप. तीर्थकर १, सरचारण १, सूक्ष्म १, स्थावर ।, अपर्याप्त १ ये १४ प्रकृत घटाकर १०६ जानना तत्व प्रकृति-१४८ को. नं० १से ७ गुण स्वान के समान जानना। संख्या असंख्यात जानना। क्षेत्र-लोक का असंख्यात्तवां भाग जानना। स्पर्शन-लोक का अभन्यानवां भान ८ राजु, ६ राजु जानना । को० नं० २६ देखो काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा अन्तमुहर्त से दो अन्तमुहत और २ नागर प्रमाण ररे स्वर्ग की अपेक्षा जानना । अन्तर.... माना जीनों sive: मा नहीं : एकनीक की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से असंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक पौत लेश्या न हो सके। जात्ति (योनि)-२२ लाख योनि जानना । (पंचेन्द्रिय तिर्यच ४ लाख, देव ४ लाख, मनुष्य १४ लाख ये सब २२ लाख जानना) । कुल-८३ लाख कोरिकुल जानना । (पंचेन्द्रिय तिथंच ४॥ देव २६, मनुष्य १४ ये सब ३॥ लाख कोटिकुन्द जानना) Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शा कोष्टक नं० ७८ पद्म लेया में रथान सामान्य याला पर्याय अपर्याप्त नाना जीवों क' अपेक्षा एक जीव पं. नाना एक जीव के एक समय में समय में । । जीव रे. नाना नाना जीवों की योक्षा । सम्व में ' जीव के एक समय में गतरे गुगा स्वान मार गुण १ गुना लब्धि रूप ६ भी । १गुग्ण-स्थान हो. नं. ७ देखो २ जीव समास २ को.नं.७७ देखो ३ पर्याप्ति को नं. देवा ४ प्राण को० नं०1७५ देखो ५ संज्ञा को० नं ७७ देखो ६ गति __को नं. ७७ देखो ७ इन्द्रिय जाति को नं.७७ देशी ८ काय , को००७७ देखो १ योग को० नं०१७ देनी १. वेद को० नं०५७ देमो ११ कषाव को.नं. ७ देखो १२ जान को.नं७ पेसो १ भंग १ भंग मारे भंग सारे मंग , १ मंग १ भंग शान १ भगवान Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७८ पद्म लेश्या में - -- । ----- १ संयम १ सयम १६ मयम ५ को नं. १७ देखो १४ दर्गत ३ को० नं. ७ देन्यो १५ लेश्या १ दर्शन १ दर्शन --- - - - - तीनों गलियों में हरेक में | पद्य नेत्या जानना १ अवस्था । २ ! १६ भव्यत्य को० नं. ७ देखो। १७ समाव : को देखो: अवस्था १ सम्यक्त्व | कोनं ७ के समान | जानना निर्वच व मनु य गति में । कोल मं. ७७ के ममान | जानना देवनति में 1.5-3-3 के भंग-कोर । #. १६ देवो १८ मंत्री को नं०७ देखो १ भंग १ अवस्था १ अवस्था १ अवस्था १ भंग १ उपयोग १ उपयोग का० नं.७७ देखो २० उपयोग को० नंदेखा १ घ्यान १० । को० नं. ७ देवो । २२ ग्रावय । कोल नं७७ देखो। १ भंग भयान १ ध्यान सारे भग १ भंग मारे भंग सारे भंग । १ भंग को 33 के समान जानना परन्त निर्यच पनि म व मनुस्य गति में को० नं.७३के ममान को० .५७ के समान जानना Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन काष्टक नं०७५ पद्म लेश्या में पहां पंत संध्या के जानना परन यहां हरेक । जगह पन लेश्या भंग में पीत लेश्या की जगह जानना पद्य नश्या जानना (४) दंवगति में भवननित्र देवों में कोई भंग नहीं होते कल्पवासी देवों में को ०७०के समान जानना परन्तु यहा हरेक ' भंग में से पीत-शुक्ल ये २ । लेण्या घटाकर मग जानना । २४ अवगाहना-को. नं०१७-१८-१६ देखो। पंप प्रकृतियो-१११-फो००७७ के समान जानना । उदय प्रकृतियां-१० ॥ सरव प्रकृतियाँ-१४८ संक्या--प्रसंख्यान जानना । क्षेत्रलोक का प्रमख्यातवा भाग जानना । स्पर्धन-लोक का प्रसंख्यातवां मा ८ राजु जानना। को० नं० २६ देखो। काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीच की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से दो अन्नपूर्ण पोर १८॥ मागर प्रमाण १२वे स्वयं की पपेक्षा जानना। अन्तर-नाना जीवों को अपक्षा कोई पन्तर नहीं। एक जीव की पोदा अन्तर्मुहुर्त से प्रख्यात पुद्गन परावर्तन काल तक पत्र लेश्या न हो सके। भाति (योनि)-२२ लाख जानना । को० नं. ७६ देखो। कुल-२३॥ लाख कोटिकृत जानना । को००७६ देखो . Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य प्रालाप १ गुण स्थान १ से १३ तक के गु २ जीव समास मंत्री गं पर्याप पर्याप्त भाग १३ . को० ० १ देखी पर्याप्त नाना जीव की अपेक्षा १३ (१) निर्यच गति में १ से ५ भोग भूमि में १ से ४ (२१ मनुष्य गति में १ म भोग भूमि में १ से ४ (2) देवगति में १ से ४ १ संशी १० पर्या मोनों गलियों में हरेक में 2 [नजी पंपयन जानना ० नं० ७१६:३देखो को [को० नं० १ देखो (१) तिर्यच देव गतियों मे हरेक में १० का मन जानना तीनों गतियों में हरेक में ६. का भंग फोन नं १७०१५-१६ देखो। ० ० ५६ देखी । ५६३ 1 कोष्टक नं० ७९ एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में सारे गु० अपने अपने स्थान सारे गुण स्थान जानना १ भंग वे १ भंग को० नं० १७१६ देखो १ मु० ሂ अपने अपने स्थान (१) मनुष्य गति में के सारे गुण में से कोई १ मुख० D जानना । 1 I ? १ मंग नाना जीवों को अपेक्षा १ भंग को० नं० १७ १६ देखो १-२-५-२-१३ (२) देवगति में १-२-४ १ संजी पं० प्रपर्याप्त दोनों गतियों में हरेक में १ संशी पं० अपर्याप्त जानना की००१८-१९ देखो ३ दोनों गतियों में हरेक में | ३ का भंग जानना को० नं० ८०१९ देख लब्धि रूप ६ का भंग भी होता है। ་ (१) देव गति में ७ का भग जानना [को० नं० ११ देखो शुक्ल लेश्या में पर्याप्त १ जीव के नाना समय में ט 7 सारे गुण स्थान १ गुग्ण अपने अपने स्थान वे प्रपने अपने स्थान सारे में ० बानना हे सारे गुरण ० गुण● वे कोई १ गुग्ण ० जानना एक जीव के एक समय में १ मंग ८ १ मंग १ मंग १ भंग को० नं० १६ देखो [को० नं० १६ देखो Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७६ शुक्ल लेण्या में । गारे भंग । मंग कारन १८ देखो कोन०१५ देखो । मारे भंग । १ भंग की नं० १८ देसी को००१८ देखो -- - - - - (२) मनुष्य गति में । मारे भंग । (२) मनुष्य नि म १०.४-१० के भंग को.नं.१ देखो कोनं १८ देखा-२ के भग बोनं०१८ देखा | की.न १६वी ५संज्ञा भंग । १ भंग। को००१ देखी । (१) तिर्यच गति मे कोनं० १७ देखा कोनं०१७ दंनी (१) मनुष्य गान में ४.४ के अंग ।४-० के भंग कोन०१७ देखो कोन नं.१% देखा । (२) मनुष्य गति में | सार भंग १ भग (२) देवपत्ति में। ४-३-२-१-१-..४ के भंग को नं. १८ देखो कोन०१८ देखो ४ का भंग को० नं०१८ देखो । को नं. ११ देखो (३) देवगति में ४ का भंग को० नं० १६ देखो कोनं० १६ देखा कोनं १६ देखो । को मं०१६ देखो कोन १६ देखो भग । १ भंग ४ का भंग --. * गनि • रख गति घटाकर (३)' तिबंच-मनुष्य-देव ये गति जानना कोनं०१७-१८-१९ देखो | मनुष्य, देवति ये रे गति जानना को० नं. १५-१६ देखो ..- .. .-.- ७ इन्द्रिय जाति है। गजी पं. जाति जानना, तीनों गतियों में हरेक में || १ संनी पंचेन्द्रिय जाति । जानना को नं १७-१८-१६ देखो - - दोनों गतियों में हरेक में , पर्याप्तवत जानना बोलनं १-१ देखा । - - - - मकाय - नीनों गतियों में १ पसकाय जानना को.नं. १०-१५-१६ देखो मनुष्य-देवगति में हरेक में १ चमकाय को० नं०१८-१६ देखो -- - Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतास स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७६ शुक्ल लेश्या में । १ बांग १५ १ भंग योग १ भंग १ योग को म०२६ देखा . और मिश्रकाबयोग १, : प्रो. मिश्रकाययोग १ । 4. मित्रकाययोग , । 'दै..मिश्रकाययोग १, । प्रा० मनकाययोः । प्रा मिधका योग १, कार्माण काययोग १ ' कार्मारण का योग ये ४ घटाकर (११] । योग जानना (१) निर्यच मति में १ भंग योग । (१) मनुष्य गति में माग योग ८.६ के भंग कोम०१७ देखो कोनं०१७ देखो १-२-5-2-१ के अंग को नं०१८ देखो कोम१५ देखो को० नं०१७ देखो | को.नं. १८ देखी । (२) मनुष्य नि में सारे मंग -१ योग ।( देवगति में १ भंग योग 1-1-6-५-३-६ के भंग को० नं0 देखो कोनं०१८ देखा-२ के मंग को० न० १६ देखो कोनं १६ देखो को० नं०१६ देखो को नं. १६ देखो (३) देवगति में भंग योग का भंग को.नं. १ देखो कोनं०१६ देखा का० नं. १६ देखो . १ वेद । ___ मा भंग १ देद स्त्री-पुरप-नपुंसक बंद ! (२निर्यच गति में बो० नं० १७ देखो कोनं०१३ देखो स्त्री-पुरुष ये २ वेद जानना ३-२ के भंग (१) मनुष्य गति में कोनं १८ देखो कौनः १८ देखो को० नं०१७ देखो ।२-१-१-० के भंग । (२) मनुष्य मत्ति में सारे मंग १ वेद कोनं-१८ देखी .3.3.3-३-३-२- . को. नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (२)दनगति में सारे मंग १ वेद २-२ के भंग | २-१-१ के भंग को नं १६ देखा वो नं. १९ देखो बोनं. १८ देखी का० नं. १६ देग्यो !) देवति में सारे भंग बंद २-१-१का भग कोनं० १६ देखो कोल्नं०१६ देखो को नं. १६ देखो १. कपाय सारे भा १ मंग २४ सारे भंग १ भंग को० नं १ देखो १)तिच गति में कोन०१७ देलो कोनं०१७ देखो नमक वेद घटाकर (२४)को नं-१८ देखो कोनं०१८ देख २५-२५-२१-१७-२४-२० | (१) मनुष्य गनि में के भंग २५-२६-११-० के भंग ! Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वातीस स्थान दशन कोष्टक ०७६ शुक्ल लेश्या में को न देखो कोल्नं०१५ देखो (२) मनुप्य गति में । मारे भंग भंग | (6) देवगति में सारे मंगभंग २५-२१-१७-१३-११-१३. को० न०१८ देखो कोनं १- देखो -१६-२१-28-१६ को.नं.१६ देखो कोनं. १:देखो | के भंग २... के भंग | कोलनं. १६ देवो को० नं0 देखो (3) देवति में मारं भंग भंग २१-२०-२६-११-282 भंग को न. १६ देवो कोनं १६ देखो को०० देतो १भंग १ज्ञान है भंग । १ज्ञान को नं० २६ दवा ।। निर्वच गति में को० नं. १० देखो मोनं १७ देखो। कृप्रवधि ज्ञान, मनः पर्यय ३-३-2 के भम ज्ञान ये२ घटाकर (१) | को०० देखो (१) मनुष्य गति में मारे भंग । १ ज्ञान (२) मनुष्य गनि में मारे भंग ज्ञान २-१-३-१ के भंगको .नं. १५ देखो कोनं. १८ देखो ३३-४-१-४- -३-३ के भगाना- नं. १८ देमो को न०१८ देखो को नं०१८ देवो । कोनं०१८ दवो (२)देवगति में | सारे भंग । १ज्ञान (1) देवगनि में जाम -३-३ के भंग को.न. १६ देखो को२०१६ देयो ३: के भंग को० नं० ११ देखो कोनं०१६ देखो कोन- १६ देखो को नं० १६ देखो १३ मंयम | भंग १ संयम १ भंग । १ संयम को नं० २६. दिमो (१) तिर्वच गति में को देखो कोनं. १७ देखो संघमामंयम, सूक्ष्म मापराय १-१-१ के भंग ये २ पटाकर (1) को०नं०१७ देखो (१) मनुष्य गति में सारे भंग गंयम (२) मनुष्य गति में | सारे भंग | १ संयम १.२.२ के मंग कोनं. १८ देखो कोल्नं १८ देव १.-३-२-३-२-१-१-१ को० नं०१५ देखो कोज्नं०१८ देखो को नं.१५ देम्बो । कोनं १८ देखो (२) देवगन में (8) देवगति में १ का भंग १ प्रमंयम जानना को.नं.१६ देखा को० नं. १६ देखो Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७९ शुक्ल लेश्या में के भंग २ १४ वर्षान , अंग दर्शन सार भंग १ दर्शन मचक्षु दर्शन, पनु दर्शन (७) तिथंच गति में । को न०१७ देखो कोनं०१७ देखो (१) मनुष्य गति में कोन १८ देखो कोनं.१ देखो अवधि दर्शन. केवलदर्शन २-२ ३-३-२-३ के मंग| ..--:-१ के मंग ये जानना को नं०१७ देखो को.नं. १५ देसो (२) मनुष्य गति में । सारे भग १ दर्सन !(२) देवगति में मंग | 1 दर्शन २-३-३-.-१-२-३ को० नं.१८ देखो कोनं०१८ दखो २-३-३ के भंग को २०१६ देखी 'कोनं०१६ देखो को नं. १६ देखो का नं.१- देखो (३) देवगति में १मंग । १ दर्शन । २-३ का भग को नं० १६ देखो को नं०१६ देखी को नं.१६ देखो १५ लश्या शुक्न नश्या तीनों गतियों में हरेक में पर्याप्तवत जानना १ शुक्ल लस्पा जानना १६ भव्यत्व मंग १ अवस्था १ भंग १ अवस्था भव्य, प्रभव्य नीनों गतियों में हरेक में 1 को० नं. १७-१.-कोनं०१७-१८- दोनों गतियों में हरेक में कोनं. १५-१६ को नं. १ १-१ के मंग । १६ देखो । १६ देखो । २-१ के अंग देखो १९ देखो को००१७-१८-१९ देखो | कोनं०१८-१६ देखी १७ सम्परत्व १ भंग १ सम्यक्त्व सारे भंग १ सम्यस्त्व कोन २६ देखो (तिर्वच गति में को.नं.१७ देखो कोनं. १७ देखो मिश्र घटाकर (५) (1) मनुष्य गति में को.नं०१५ देखो कोनं०१८ देखो १-१-२-२.१के भंग को.नं. १७ देखो को० न०१८ देखो (२) मनुष्य गति में सारे भंग | मम्पवस्व (१) देवर्गात में । सारे मंग सम्यक्त्व १-१-१-३-३-२-:--को००१८ देखो को००१८ देखो १-१-३ के भंग को .नं.१६देखो को नं०१६ देखो १-१-१-३-३ के अंग कोनं०१६ देखो को २०१८ देखो 113) देवगति में । सारे भंग । १ सम्यक्त्वं । १-१-१-०-३-२ के मंग को० नं० १६ देखो को नं० १६ देखो को देखो Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १५ मंजी 1 १६ आहारक १ मंजी शाहारक, अनाहारक ० उपयोग ज्ञानोपयोग दर्शनोपयोग ४ ये १ जानना १२ ! मीनों मनियों में हरेक में १ मंत्री जानना को० नं०१७-१८ १६ देखी | (१) नियंच गति में १-१ के मंग | को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य मति में १-१-१ के मंत्र की नं १ देखो ( ) देवगति में 1 १ ग्राहक जानना को० नं० १६ देखी (१) निर्वच गति में ५-६६ ६-६ के भंग १७ व (5) मनुष्य गति में के भंग को० नं० १८ दे (२) देवगति में ५-६-६ के भंग को० नं०] १६ देवी १. २१ ध्यान १५. व्युपरत किया नितिनी । (१) नियंव गति में घटाकर (१५) ८-६-१०-११-२-६-१० के. भंग 1 ( ५६८ ) कोष्टक नं० ७६ ४ कॉ० नं० १७ देवो कोल्नं० १७ देतो (१) मनुष्य गति में 1 १-१-१-१-१ के नंग की नं० १= देखों (२) देवमति में १-२ के म ००१६ 1 मारे भंग ५-६-६-३-१७-२-५-६६००१८ देखी सारे मंग १ अवस्था को० नं० १= देखो कोनं १८ देखी い | i प्रहार अवस्था अवस्था को० ०१३ सो सोनं० ११ देव १ दे तो . १ भंग नं १ देखो दोनों गर्मियों में हरेक में १ नंशी जानना को० नं० १८१६ देखो I 1 १ उपयोग नं० [१] कृवधि ज्ञानमतः | झन घटाकर (१०) 1 (१) मनुष्य गति में ४-६-६-२ के भग को० नं० १६ दे (४) देवगति में ४-६-६ के भंग को० नं० १६ देखी उपयोग ००१० देखो 4 १ भग १ उपयोग हो० नं० १६ देखी कोनं० १६ देखी 1 पर्याय धर्म ज्यान ४, ये (१२० (१) मनुष्य वनि में ८- २०७१ के भंग ७ | दोनों स्था को० नं० १८ देखो १ भंग | १ न १५ को० नं० १७ देखी कोन० १तंत्र्यान ४ शेध्यान ४. शुक्ल लेश्या में १ अवस्था 1 दो अवस्था को० नं० १० पोको० नं०१२ गारे भग ००१ १ भग को० १६ देखो १ अवस्था को० नं० १८ दे भंग ८ मारे ग को० नं० १८ देखो १ योग फो०२ १८ दे I १ उपयोग की००३ दे १ ध्यान १ ध्यान को० नं० १८ देख Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ७६ शुक्ल लेश्या में ५३ कोल नं. ७१ देखो को.नं. १७ देखो कोनं०१८ देखो (२) मनुष्य गति में मारे भंग ध्यान (२) देवगनि में सार मंग । १ ध्यान ८-8-20-1-5-1-1- फो०१८ देखो कोनं०१८ देखी ८-के भंग को० नं०१९ देखो कोनं०११ देखो 1-1--1-१० का भंग ! को० नं० १९ देखो को० नं. १५ देखो (1) दत्रगनि में मारे मंगवान को नं० १६ देखो कोनं १२ देखो वा नं ११ देखो मारे अंग भंग । सारे भंग १ भंग औ० मिथकाययोग १, अपने मान स्थान के अपने अपने स्यान मनोयोग ४, वचनयोग ४, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान वै. मिश्रकाययोग, नारे मंग जानना कि सारे भंगों में प्रो० काययोग १, सारे भंग जानना के सारे भंगों में प्रा०मिश्रकाय योग, | मे कोई १ भंग | वं. काययोग १, कोई मंग कारिग काययोग १ जानना मा० कायवोग ., जानना ये ४ घटाकर (५) नपुंसक वेद १, (१) नियंच गति में सारं भंग १ भंग १२ पटाकर (४५) सारं मंग १ मंग ५.१-.६.१२-३5-.. कोनं०१७ देखो कोनं०१७ देखों, (१) मनुष्यगति में को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो ४५-४१ भग ४६-३६-३३-१२-२-१। को . १७ देना के भंग (3। मनुष्य लिम मारे भंग १ भंग को० नं०१८ देखो । मारे मंग भंग ५१.४१-४६-७-२२-२४- को नं० देखो वो नं०१५ देखो (२) देवगति में को० न० १६ देखो कोउन १६ देखो २-१६-५-१४-१-१२. ४३-२८-३३-४२-१७.३३ ११-१०-१०.१-५-३-.. ३ के भंग ८५.८१ के भन को नं० १९ देखो का मं० १ दवा ( देवगनि म | मारे भंग भंग ५०-१५-११-36-38-30- को देखो कोनं १६ देखो ४० के मंग को० न०१६ देखो Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान ७, चौतीस स्थान दर्शन २३ भाव उपशमं सम्यक्त्व १. उपण चारित्र १ दर्शन २ ૪૩ ५ सेवक म १, संयमानयम १ सरागसंयम १ निच गति १, मनुष्य गति १ देवगति १. सायिक भाव ज्ञानगा काय ४, लिंग ३, शुक्ल लेच्या १, मिथ्यादर्शन १, असंयम १, अज्ञान १: . . 1 Yis (:) निर्यच गति में २६-२४-२५-२७ के भग। को० नं० १० के ३१२६-०-३२ के हरेक म मेसेचुन लेश्या छोड़कर शेष लेन्या घटकर | २६-२४-२५-२७ के भंग 1 जानना २७-२५-२३-२४-२७ के भंग क० नं०१७ के २६२७-२५-२६-२६ हरेक भग में से गीत- पद्म | के २ घटाकर २७२५-२३-२४-२७ के भंग i १ परिलामिक ४७ मात्र ! I जानना (२) मनुष्य ( ५.३० कोष्टक नं० ७६ ४ सारे भंग को० नं०१७ ૪ १ मंग को० नं० १७ देगो उपशम चारित्र १, | कुअवधि ज्ञान १. | मनः पर्यय ज्ञान है, समाजम T नियंच गति १, स्त्री वेद-नपुंसक वेद २ ये घटाकर ४० जानना न गति में खारे भंग १ नंग २६-२४-२५-२६ के मंगको० नं० १० देखो को० नं० १ को० नं० १० के ३१२६-३०-३३ के हरेक मंग में से १ शुक्ल नेम्वा छोड़कर शेष ५ श्या घटाकर २६-२४-२५-२८| के भंग २५-२६-२५-२६ के मंग को० नं० १० के ३३१-२७-३१ के हरेक भंग में से पीत-पम ये 1 (१) मनुष्य गति में २५-२३-२५ के भंग को० नं० १० के ३०२०-३० के हरेक भंग में से १ शुक्ल लेभ्या छोड़कर शेष ५ वया घटक २५-२३-२५ के भंग जानना देखो २५ का मंग को० नं० १८ के २७ के मंग में से ये २ लेश्या घटाकर २५ का भंग जानना १४ का भंन को न० १८ के गनान जानना (२) देवगति में पवासी देवों में २४-२२-२६ के भंग को० नं० १६ के २६२४-२८ के भग शुक्ल लेश्या में : 19 गारं भंग रेमंग को० नं० १८ देखी | . सारे मंग [को० नं० १६ देखो म १ भंग १. भंग नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १६ देख Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतीस त्यान दशन कोष्टक नं. ७६ शुक्ल लेश्या में । ।२ । लेश्या घटाकर २८ में से पोत-पद्म पे २. २१-२५-२६ के भंग लेश्या घटाकर २४-२२मानना २६ के भंग जानना २६-२६-२८-२७-२६-1 ।२३-२१-२६-२६ २५-२४-२३-२३-२१ के मंग २८-१४ के भंग को नं०१६ के समान को० नं०१८ के मसान जानना जानना २५-२३-२४-२७ के भंग को० नं० १८ के २७२५-२६-२६ के हरेक भंग में मे त-पम ये २ लक्ष्या घटाकर २५-२३-२४ २७ के भंग जानना । | (४) देवगनि में सारे भंगभंग कल्पवासी वंवों में को नं. १६ देखो को नं. ११ देखो २५-२३-२४-२७ के भंग को० नं. १० के २७२५-२६-२९ के हरेक भगम में गीन-पद्म ये २ | नेच्या पटाकर २५-०३२४-२७ के भंग जानना २ -२२-२३-२२-२५ के मन को० न०१२ के समान । जानना --- - - Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-कोर नं. १७-१८-१६ देखो। बंध प्रकृतियां-१४ को० नं.७ के १११ में से एकेन्द्रिय जाति १, तिर्यद्विक २, तिर्यंचायु, पानप १, उद्योल १, स्थावर १ मे ७ घटाकर १०४ जानना । उदय प्रकृतिस-१०६ को ० ७७ के १०८ में तीर्थकर प्रकृति १जोरकर १०९ जानना । सत्त्व प्रतियः-१४८ को नं०१ से १३ ये यथायोग्य गुण स्थान के भंग देखो। संख्या-असंख्यात जानना। क्षेत्र-मोक का असंख्यातवां भाग, लोक के असंख्मात भाग. सर्वलोक, को० न०२६ देखो। स्पर्शन-मोक का प्रसंख्यातवां भाग, लोक के पसंख्यात भाग, सर्वलोक, ६ राजु, को० नं. २६ देखो। काम-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से साधिक ३३ सागर प्रमाण माधमिद्धि विमान को अपेक्षा जानना अन्तर-नाना जीवों को अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा अन्तमु हतं से अमख्यात गुगल परावर्तन काल तक शुक्ल लश्या न हो सके। जाति (योनि)-२२ लाख योनि जानना । को न० ७६ देख कुल-11 लाख कोटिकुल जानना 1 को० नं. ७६ देखो २३ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८० अलेश्या में स्थान सामान्य प्रालाप पर्याप्त अपर्यात नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना समय में एक जीव के एक समय में - १ चौदबे गुगा स्थान जानना १ संत्री पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना अपर्याप्ति अवस्था नहीं होती। १ गुन्ग-स्थान २ जीव समास ३ पर्याप्ति को.नं.१ देखा ४ पाए ५ संज्ञा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति काय है योग १० बेद ११ कषाय १२ ज्ञान १३ संबम १४ दर्शन १५ लेश्या १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व १८ सजी १६ माहारक २० उपयोग २१ ध्यान २२ अानव ६ का भंग-कोर नं. १८ देखो १ ग्राम प्रारण जानना को देखो (0) अपगत संज्ञा जानना १ मनुष्य गति १ पन्द्रिय जाति १त्रमकाय (0) अयोग (0) अपगत बंद (0) अकवाय १ केवल जान १ पयाख्यात १ केवल दर्शन (0) अलेश्या १ भन्य १क्षायिक मभ्यवत्व .. (0) अनुभय (न संजीम अमजो १ अनाहारक (को० नं०१४ देखो) २ जानोपयोग-दर्शनोपयोग-युगपत् ॥ १ युपरन-क्रिया नितिनी जानना , (०) मानव CNNN.00.00000000001.mm Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोलोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८० अलेश्या में १३ का भंग-की नं०१८ देवा २३ गाव धयिक भाव, मनुष्य- गांन १, प्रसिद्धन्ध १, भयन्व १, जं मत्व १, ये १३ भाव जानना प्रवपाहता-२॥ हाथ में '५२५ धनुष तक जानना । बंध प्रकृतिया-ग्रबंध जानना । जमराकृतिया--02-मो . २६ नो। सत्त्व प्रकृतियां-८५-२३ को.नं.६ देखो। संस्था-५६ को नं. १४ देखो। क्षेत्र-लोकना अमख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-लोक का प्रमख्वानां भाग जानना । काल-सर्वकाल जानना । अन्तर- कोई अन्तर नहीं । जाति (योनि)-१४ लाख मनुष्य योनि जानना । कुर-१४ लाख कोटिल मनुष्य के जानना । Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भव्य में चौतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य ग्रालाप। पर्याप्त अपर्याप्त एक जोब के नाना एक जीव के एक १ जीव के नाना समय में | समय में | नाना जीवों की अपेक्षा । समय में नाना जीव की क्षा एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान . १४ से ४ तक के गूरण (१) नरक गति में १ से ४ (२) तिर्यच गति में १ से ५ भोग भूमि में १ मे ४ (6) मनुष्य गति में रो १४ भोग भूमि में १ से ४ (३) देवगति में से ४ - सारे गुण | १ गुग्गु० । सारे मुगए स्थान । १ गुग्ग। अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान, (१) नरक गति में अपने अपने स्थान के परने अपने स्थान सारे गुण स्थान के सारे गुण में ले ४ये गुण सारे गुण स्थान के सारे गण में . जानना से कोई १ गुण (२) तियंगति में १-२ जानना से कोई गुण । जानना भोग भूमि में जानना (३) मनुष्य गति में भोग भूमि में :-२- (१) देव गति में १-२-४ २जीव समास १४ अपर्याप्त अवस्था १ समास ७ अपयाप्त अवस्था १ समान १समास कोनं०१ देखो । (१) नरक गति से। को० नं०१६ देखो को.नं.१६ देखो (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो को नं.१६ देखो १ संजी पं० पर्याप्त जानना १ संज्ञी पं० अपर्याप्त जानना को नं०१६ देखो को० नं०१६ देखो (२) तिर्यच गनि में | १ समास १ समास (२) तिर्यन पनि में १ समास । १ समास ७-१-१ के भंग बो० न० १७ देखो कोनं०१७ देखो ७-६-१ कै मग कोनं०.७ देशो कोनं०१७ देखो बोन०१७ दस्तो 1 को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में । १ समास १ समास (३)मनुष्य गति में १ समास १ समास को००१८ देखो को००१८ देखो १-१ में मंग को.नं. १८ देसो कोन०१८ देखो कोनं०१८ देखो | को० नं. १८ देखो Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८१ भव्य में ६ ३ पति को नं०१ देखो (6) देबगति में । १समाय १ रामास (४) देव गति में । - १समाम १ समास संजीव पर्याप्त जानना को नं. १६ देखो कोनं १६ देखो। १ नंजी . अपर्याप्तको नं० १९ वो कोल्नः १६ देखो | कोनं०१६ देखो को० न०१३ देनी । १ भंग भंग भंग (१) नरक-मनुष्य-देवगति में को.नं.१६-१८-१६ को ०१-१५-(१) नरक-मनुष्य-देवगति को न०१६-१८- कोन १६-१८ हरेक में देखो | १६ देखो । में हरेक में १६ देखो १६ देखो ६का भंग | ३ का मंग को० नं० १६-१८-१९ देखो | कोनं०१६-१८-१६ देखो |42) निर्यच गति में १भग १ भंग । (२) तिर्यच गति में १ भगभग --- के. 'अंग कोनं०१७ देखो को नं. १७ देसो ६.३ के भंग बोनं०१७ देखो को००७ देखो को००७ देखो को नं. १७ देखो अपने अपने स्थान की ६-५-४ पर्याप्ति भी होनी 5 ४ प्रारम भंग १ भंग १ भंग १ भंग को० नं. १ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में ' को० ०१५. कोन०१६- (१ नरक-टेवमति में । को नं०१६-११को १६-१९ १० का भंग १६ देखो देखो हरेक में ७ का भंग | देखो देखो कोनं०१६-१६ देखी | को.नं. १६-१६ देखो (२) तिर्वच गति में मंग भं ग (२) तिर्यच गति में १०-६-८-७-६-४-१० को नं०१७ देखो को नं०१७ देखो| ७-७-६-५-४-३-७ के भंग को नं. १० दग्दो नं. १० देखो के भंग का० नं. १७ देखा। को.नं.१७ देखो | (३) मनुष्य गनि में १ भंग १ भंग (३) मनुष्य गनि में मंग १ भंग ७-२-केभंग .कोनं०१ देखो कीनं०१८ देखो १०-४-१-१० के मंग को नं. १- देखो कोनं०१८ देखो कोन १८ देखो कोन.१८ देखो ५ संज्ञा १ भग १ भंग की.नं. १ देखा (१) नरक-तिर्यंच-देवगति में । को० नं० १६-१: कोनं०१६-१७- (१) नरक-विवंच-देवगति | को.नं. १६-१७-कोनं०१.१७. हरेक में १९ देग्दो १६ देखो में हरेक में १६ देखो ! १६ देखो ४ का भंग 1४का भग Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १ भव्य में ६ गति - को० नं. १ देखो इन्द्रिय जाति , को ०१ देखो को नं. १-१७-१६ | को.नं. १६-१७-१६ देखी (२) मनुप गति में मारे मंग । १ भंग (२) मनुष्य गति में | मारे भंग १ भंग ४.:.:.१-१-०-४ के भंग को नं. १८ देखो| कोल नं. १ ४ -०.४ के भंग को नं. १८ देखो | को० नं. १८ को १८ देखो | को.नं. १८ देखो दयो १ मति १गनि । १गति बारों गनि जानना चारों गति जानना १जाति । १ जाति १जानि (१) नग्न-मानाब-देवमनि में को.नं०१६-१८- को. नं०१५- 12) नरक-मनुप्य-देवगन, मो० न० १६-१८- को० नं०१६. १६ देखो १८-१६ देखो में हरेक में देशो १२-१६ देखो १ वन्द्रिय जाति जानना। पंचेत्रिय जानि जाननः को० नं०१६-१-१६ । को नं. १६.१८-। देबी देखो (२.f गंव गान में १जाति १ जाति । (२) तिगंच गति में जाति ! जागि ५-१.१ के भंग को नं०१७ देखो को नं०१२ ५-१के भंग-की नं0 को० नं १ देखो | को० नं. १७ को० नं.दमा देखों १७ देखो १ काय (१)न-मन ग-देवगान में को.नं. १६-१८- को० नं०१६- । (१) नरक-मनुष्य-देवयनि को० नं. १६-१८- | को. नं०१६१६ देखो १८-१९ देखो १८-१९ देखो १ श्मकाय जानना १त्रमकाय जानना को० न०१६-१-१६ | को. नं० १६१८-१६ । देखो (नियंच गति में (चिंच गति में | काय काय ६-१-१ केभंग को न देखो को नं०१७ ६-४-१के भंग को न०१७ देखो कोड नं.१७ को.नं. 5 देगो । दो कोनं१७ देखो | १ भंग योग . भंग योग यो मिश्र यि योग, श्री मिश्रकाय योग १ । 4. मित्रराय योग 4.धिनाय योग १, । पा. मिश्रकाय योग १ आर मिश्रकाय योग १ काय कोनं देखा है योग को०० २६ देखो Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५१ भव्य में देखो दयो दखो कार्मागाकाय योग कामरंगण काय योग ये ४ घटाकर (१६) ये ४ योन जानना (१। नरकन्देवमनि म हरेक में | को० नं०१६-१६ का० न०१६-1(१। नव-देवत में कोर नं. १६-१६ ! नं०१६है का भंग-के० न०१६- देवा १६ देखी हरेक में-- १-२ के भंग- ग्दा देखो १६ देखो को न.१६-१६ देखो। (२) तिर्वच पत्ति में १ मंग योग (B) निर्वच गति में १ भन . योग १-२-१-६ के अंग-को का० नं १७ देखो को० नं०१७ १-२-१.२ के भंग कोर नं. १७ देखो ! को० नं.१७ नं०१७ देखो देखो | कोलन दखा । देना (1) मनुप्य गति में | सारे मंग : १योग १३) मनुष्य गति में । गर भंग योग E-6-६५-2-4-6 के भंग का नं०१८ देखो को नं०१८ ! १-२-१-२-१-१-२ के भंग को००१८ देखो | को, नं०१८ को नं०१८ देखो को००१८ देखो देखो का न०१ देखो ||१) नरक पति में का न. १६ (१) नाक गति में को० ०१६ देखो १ नसक वेद जानना । नपुसक वेद जानना को० न०१६ देखा | को न.१६ देखो (२) तिर्यच गतिम १वेद (२) तिर्वच गति में | १ भंग १ वेद ३-१-३-२ के मंग-को को नं० १७ देखो को० नं. १७ ३.१-३-१-३-२-१ के भंग कोन. १७ देखो ! कोनं०१७ नं. १७ देखो का० न०१७ देखा । (३) मनुष्य गति में सारेभंग वंद (३) मतृप्य बति में | सार भंग १वेद ३.६-३-१-३-३-२-१०-२ का० नं०१८ देखो को न०१८ । -- -०-२-१ क भंग को न०१८ देखो | को.नं.१८ के. मंग-मो० नं. १८ देखो | कोन १८ दस्खा | दबो देखो (४) देवगति में सारे भंग | १वेद ४, देवगति में । सारे भंग १ वेद । २.१- भंगा० न०१६ देखा | को.२०१६ २-१-१ के भंग-को० नंको . मं. १६ देखो को नं०१६ को नं. १६ देखो देखो । १६ देस्यो । सारे भंग २५ । सारे अंग भंग को.नं. १ देतो (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो | कोन०१६ : (१) नरकगत्ति में को० नं०१६ देखो: को० नं० १६ २३-१६ के मंग २३-१ के भंग की नं०१६ देखो को. नं. १६ देखा | देखो Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८१ भव्य में १२जान पोनं० २६६वो : (२) निर्यच गति में सारे भंग १ मंग (२ नियंव गनि में मारे मंग १ भंग २१-२६.२५-२५-२१-१७-कोनं १० देखो कोनं०१७ दयो ३-२३-२५-२५-२३- कोनं १७ देसो कोनं०१७ देखो २४.०० के भंग २५-२४-११ के भंग को. नं०१५ देखो को० १७ देखो (३) मनुष्य गति में मारे भंग भन (1) मनुष्य गति में गारं मंग . मंग २५-२१-१७-१३-११-१.को नं०१८ देवो कौन-१८ देखो २५-२६-११-०-२४-१६ को १८ दंपो को नं. १ देखो के भंग २८-30 के भंग | कोनं०१८ देग्मी को न.१८ देखो (1) देवगति में नारे भंग भंग (४) दंवगति में मा मंग भा । ०४-२४-१२३-१६-१६ को ०१६ सो कोनं०१६देखो २५.२०-२३-१६.१६ का० नं०१६ देतो कोल्नं.१६ देखो के भग केनग को० नं०१६ग्यो को नं. १६ दबा पारेन । न गारे मंगान (१) गनिने कौन दे को नं०१६ नेवो कृपानि जान मन: पर्यत जान ये कोनं १६ घा | (नियन मनि भंग ज्ञान (१) नरक गति में सारे मंग जान - - -३- के भंग को न०१६ सो गोनं. १७ दंनो २-३ के भंग को नं. १ दखो कोनं १६ देखो को. नं.१७ देगे को. नं. १५ देवो (3) मनग्य गनि में मारे भंग । मान नियंव गति में भंग । १ज्ञान ३- ..३.८.१-३-12 भगको ग १५ देगो कोन..१८ देखो --2-३ के भंग | कोनं १७ देखो कोमं०१७ देखो वो नं. १ देना को नं. १७ देखो (४) देवगति मारे भंग जान (8) मनुरुप गति में । मारमंग १ ज्ञान ३-२ भग को नं. १६ देखो को देखो..........! के भंग को नं. १८ देखो को १८ देतो कोर नं. १६ दग्नो को नं. १८ देवा । देयगति में मारे भंग ज्ञान -२ केभंगको० नं०१३ देखो को देखो को नं.१ दलो Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १३ संयम ७ को० नं० २६ देखो १४ दर्शन को० नं १८ देखी = १५ लेण्या ६ को० नं० १८ देखो 您 (१) नरक-देव गति में हरेक में १ श्रसंयम जानना को० नं० १६-१६ देख (२) तियंच गति में १-१-१ के मंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में १-१-३-२-३-२-१-१-१ के भंग-को० नं० १८ देखो ४ (१) नरक गति में २-३ के भंग-को० न० १६ देखो (३) मनुष्य गति में २-३-३-३-१-२-३ के भंग को० नं० १८ देख (४) देवगति में २-३ के मंग को० नं० १६ देखो (१) नरक गति में ( ५०० ) कोष्टक नं० ८१ ३ का भंग - को० नं० १६ देखो १ को० नं०१८ | को० नं० १६. १६ देखो देख १ भंन्य को० नं० १७ देखी (२) तियंच गति में १ भंग १ २ २ ३३ २०३ के मंग को० नं० १७ देखो को० नं० १० देखो गारे भंग को० नं० १० देखो १ मंग को० नं० १६ देखो मारे भंग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १६ देखो १ भंग को० नं० १६ देखो १ संयम ० ० १७ देखो १ संभ्रम की नं० १८ 국 १ दर्शन को० नं० १६ देखो १ दर्शन को० नं० १७ देखो १ दर्शन को० नं० १० देखो १ दर्शन फो० नं० १६ देखो १ लेश्या को० नं० १६ देखी राय य घटाकर (4) (१) नरक-देवगति में हरेक में ? प्रथम जानना को० नं० १६-१६ देखी . (१) नरकगति में २-३ के भंग-को० न० १६ देखो (२) निर्यच गति में १-२-२-२-३ के भंग को० नं० १७ देतो (3) मनुष्य गति में | २-३-३-१-२-३ के भंग | को० न० १८ देखी (४) देवगति में १२-२-३-३ के भंग को० नं. १६ देखो د १ मंग (२) तिर्यच मनि में १-१ के मंग-को० नं० को न० ७] देखो ३) मनुष्य गति में १-२-१-१ के भंग को० नं० १८ देखो ४ भन्छ में कीनं० ६-१६० नं०१६देव १६ दे ७ देखी सारे गंग को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं०] १६ देखी ६ (१) नरक गति में ३ का मंग-को० नं० १६ देखो १ भंग को० नं० १७ देखी सारे मंग को० नं० १८ देखो १ भंग [को० न० १६ देखी १ भंग को० नं० १६ देखो १ संचम की नं० १७ देखो १ संवम १० नं० १५ देवो १ दर्शन को० नं० १६ देखी १ दर्शन को न० १७ देतो 1 १ दर्शन नं० १८ देवी १ दर्जन को नं० १६ देखो T १ लेश्या को० नं०१६ देखो Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीतोस थान दर्शन १ १६ भव्यत्व १६ सम्मवत्त्र भव्य [को० नं०] १६ देखो ! (२) तिर्वच गति में ३६-१-३ के भंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में ६-२-१९-०-३ के भंग को नं १८ देखी (४) देवगति में १-३-१-१ के मंग को० नं० १३ देखी १ चारों गतियों में भव्य जनना ( ५८१ ) कोष्टक नं० १ (१) नरक बति में १-१-१-३-२ के भंग को० नं० १६ देखो (२) निर्यच गति में ४ १ मंग १ या को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखो गारे भंग १ लेण्या [को० न० १८ देखी को० नं० १८ देखी १ भंग को० नं० १६ देखी १ लेश्या को नं० १६ देखी सारे भंग १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखी को० नं० १६ देखी (२) निर्यच गति में ३-१ के भंग को० नं० ७ देखो (३) मनुष्य गति में ६.०३-१-१ के भंग को० नं० (२) देवगति में ३-३-१-१ के मंग को० नं० १६ दे १ ५ १ सम्यत्व मिश्र पटाकर (५) (१) नरक गति १-२ के भंग १ मंग को० नं० १६ देखो १-१-१-२-१-१-१-३ को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखो; (२) तिर्वच गति में के भंग १-१-१-१-२ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखी १-१-२-२-१-१-१-२ के गंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में को० नं० १७ देखी (.) मनुष्य गति में I सारे मंग १ सम्यक्त्व १-१-१-१-१-२-३२-१-१-१-१-३ के भंग को० नं० १० देखो (४) देवगन में सारे भंव १ सम्यक्त्व १-१-३ के मंग १-१-१-२-३-२ के भंग को० नं० १६ देखो फोग्नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो | को० नं० १६ देखो १ भंग को० नं० १७ देखी सारे भ ०१ भव्य में १ भंग को० नं० १७ देखो ८ | १ लेश्मा को० नं०] १७ देख १ दया कोहदे को देख १ लेश्या कोनं० १८ देखो T सारे मंग [को० नं० १६ देखो सारे भंग १ सम्यक्त्व कने० नं० १६ देखो को० नं० १६ देख १ १ सम्यक्त्व को०नं. १७ देखो १ सम्यक्त्व सारे भंग को० नं० १० देखो को० नं० १८ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन { ५८२ । कटक नं०८१ भव्य में त्रो १८ सभी संबी असंञी । (१) नरक-देवमति में की नं०१६-१६ को नं०१६- नरक-दंवगति में ' को ११ को नं०१६हरेक में १६ पो । हरेक में देखा १ संजी जानना | · मंत्री जानन। को.नं. १६-१६ देखो । का नं०१६-१६ देखो। । (२) तिर्यंच गति में १ भंग । १ अवस्था । (२) तिर्वच गनि में १ भंग १ अवस्था १-१-१... के भंग की नं. १७ देखी को नं०१०। १-१-१-११-१ मो भंग को० नं १३ देसी को नं०१७ को न: १७ देखो देखो | को-नं०१७ देनो । देखो (३) मनुप्य गति में . 13मगषा गति १-१ के भंग |1-0-2 के भंग को नं.१- देखो | कोलन १८ देखो १६ याहाक स्था ! १यवस्था आहारकः, अनाहारक (१) नरक-देवगति में कान -१.! कोनं. १६-(१) नर-दवनि में को नं. १६.११ . न०१६हरेक में | देवो १६ देतो १ याहारत जानमा १-१ के भग-कोर नं. को. नं०१६-११ देखा । १६.६ देखो | (२} निर्यच नान में (२) निर्वन गनि में अवस्था १-१ के भंग-को० नं० कि० नं १७६खो। को० नं०१७ | १-१-१-१ के अंगोn T बो | फो.नं०१७ दखो को.नं०१७देखो । (३) मनुष्य गति में | . प्रवस्या । (३१ मनुष्य गति में गर भंग १ अवस्था १-१-११ के भन को न. १. देखो को न०१८ | १-१-२-१-१-१-१ के भग की नं.- देखो | को० नं०१८ को० नं0 दरो देखो को १८ देखो । देखो २० उपयोग भंग १उपयोग १०१ भंग १ उपयोग ज्ञानोपयोग 5 (१। न के गति मे कोन१६ देखो | को० नं १६ कृअवधि शान, मन: दर्शनोपयोग ४ ५.६-६ के मंग देखो पर्यय जान ये २ घटाकर ये १२ जानना को. नं०१६ दग्यो (२) निरंच गति में १ उपयोग नरक पनि मे को००१८ देवा को नं. १६ ३-४-५-६-५-६-६ के भंग को.नं. १७ देखो | कोनं १७ ४-६ के भंग-को० नं. को न०१७ दबो १६ दंनो १ भंग दो Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बतास स्थान दर्शन २१ व्यान I १६ को० नं० १० देखी २ २२ ग्रामव ५.७ को० नं० ७१ देखी 1 1 | i ३ ( - ) मनुष्य गति में ५-६-६-७-६-७ २-५-६-६ के भग कोनं १ देख (४) देवत -६-5 के भंग को० नं० १६ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में २६९० के भग जानना को०० १६-६६ देखो (२) नियंत्र गति में ६-६-१०-११-=-ε-१० के भंग क० न० १७ देख | (३) मनुष्य गति में T =-६-१०-११-०-४-१-१-११३-१० के मंग का० न० १८ देखी ५.३ श्री मिथकाययोग १, वै० मिश्रकाययोग १, आ० मित्रकाययोग १, i ५८३ 1 i कोष्टक नं० ८१ ८ सारे भंग १ भग १ उपयोग • उपयोग (२) निर्यच गति में को० मं० १० देखो को० नं० १८६८४३-४-४४-६ के मंग फो० नं० १० देखी को० नं० १९७ देवो ! को० नं० १७ दे (३) मनुष्य यति में ६ मंग ४.६-६-२-४-६ के मंग को० न० २६ इको० नं० १६ देखी को० नं० १८ देखी १ 1 (1) नारे मंग को० नं० १६-२६ देखा १ ध्यान को ०० १६०१६ देखो भाग भंग १ प्यान गारे भंग को० नं० १८ देखो नं० १८ देखी ४-४-६-६ के भंग को० न० १६ देखो १२ प्रथकत्व विके विचार, एकत्व वितर्क विचार, गुम्म क्रिया प्रति पाति, परिशिष 1 १ भन १ ध्यान चं ४ घटकर (१२) को० नं० १७ देखो कॉ०नं० १७ देखी (१) नरक गति में देवगति म हरेक में के भंग | को० नं० १६-१६ दे (२) नियंत्र गति में ८-२-६ के मंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में २०१८ के भंग को० नं० १८ देखो ४६ मनोयोग ४ वचनयोग ४, ० काययोग १, ० काययोग १. १ मंग भव्य में मारे मंग १ उपयोग कोनो कोन० १८ देखी १ भग १ उपयोग को० नं० १६ देवो कोनं १६ देखो मा भंग १ ध्यान गार मंग कोनं ६-१६ देवी १ भंग को० नं० १७ देखो १ ध्यान को ०नं० १६-१६ देखो १ ध्यान को० नं० १७ देखी १ ध्यान नारे भग को० नं० १० देसी को० नं० १८ देखी सारे भंग १ भंग Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. १ भब्व में देखो कार्माणकाय योग माहारक काय योग१ . ये ४ घटाकर (५३) ये ११ घटाकर (४६) (1) नरक गति में को.नं०१६ देयो कोनं. १६ (१) नरक गति में को. १६ देखो को नं. १६ ४६-४४-४० के भंग ४२-३३ के भंग को नं. १६ देखो को. नं०१६ देखो | (२) तिर्यंच गति में सारे मंग , १ भंग (तिर्यच गति में | मारे मंग . १ मंग ६६-८-१९-४0-11-५१.कोनं.१० देना को० नं०१७ ३७-३८-३६-४०-४२.४४-कोर नं०१७ देखो | को० नं. १७ ४६-४२-३७-५,०-४५-४१ देखो ३२-३३-३५-३८-३६-४३. के भंग-को० नं. १७ ३८-३३ के भंग-को. देखो नं०१७ देखो (1) मनुष्य गनि में सारे भंग । १ भंग मनुध्यमांत में मारे भंग १ भंग ५१-४६-१२-३७ २२-२०. को० नं. १८ देखो को.नं १८ ४४-३६-३३-१२-२-२. को.नं. १५ देखो . को० नं०१८ २२-१६-१५-१४.१३-१२-। देखो ४३-३८-३३ के मंग- । ११.१०.१०.६५-१.०-१.... कोन०१- देखो ४५-४१ के भंग-को । (४) देवति में मारे भंग । १ भंग नं०१८ देखो ४३-३८-३३-४२-१७.३३कान ११ देखा ! को नं. १९ । (४) देवगति में । मारे अंग भ ग : के भंग-को० नं० वंती ५०-४५-८१-४६-४४०. को० न०१६ देत्री को नं० १९ देखो '१० के भंग-को० नं०१६ देखो देखो २३ भाव ५२ । मारे भग भंग नेर भंग भंग अभय चटाकर (२) (१ नरक गनि म को० नं १६ देतो को० न०१६ कुअवधि जान, मनः २५ का भंग-को. नं. पर्यय ज्ञान वे २ घटाकर १६ के २६ के भंग गे में (५०) जानना १ अनन्य घटाकर २५ का । (१) नरक गति में को। नं०१६ या नीनं०१६ भग जानना का मंग-को 10 •४-५-०८-२७ के मंग १६ के २५के भंग में से को.नं. १६ के समान ? प्रभव्य घटाकर २४ जानना का भंग जानना ५२ देखो Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८१ भव्य में !(२) नियंच गति में सारे मंय १ मंग २५ का भंग २१-२४-२६-१० के भंग कोनं.१७ देखो कोन०१७ देखो को नं.१६ के ममान । को.नं. १७के २४ (२) नियंच गनि में सारे भंग । १ भंग २३-२५-२६-२६ के भंग को० नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो भंग में मे १ प्रभव्य को० नं०१० के २१घटाकर २३-२४-२६ २५-२३-२७ के हरेक के भंग जानना मंग में से १ अभय घटा२९-३०-३२-२६ के भंग कर २३-२४-२९-२६ । को नं०१७के ममान , के भंग जानना जानना २२-२३-२५-२५ के भंग २६ का भंग को नं. १ को.नं.१७ के समान । के २७ के भंग में मे मभव्य भोग भूमि में घटाकर २ का भी जानन २३ का भंग को० नं. २५.२६-२६ के अंग १७ के २८ के भंग में में को० नं १७के समान प्रभव्य घटाकर २३ । (3) मनुष्य गनि में सारे भंग । १ भंग | का मंग जानना ३. का भम कोन. १८को० नं. १८ देखो कोनं १५ देखो २२-२५ के भंग के ३१ के भंग में से प्रभव्य ' को नं०१७के ममान । पटाकर ३० का भंग जानना! (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग २९-३०.३३-३०-३१ | २६ का भंग को नं. १८ देखो कोनं १८ देखो २७-१-२९-२९-२८ को 10 के ३० २७-२२-२५-२४-२३. के भंग में से १ भव्य •३-११-27-१४-१३ के घटाकर ६ का मंग भंग को० नं०१८ के मम न जानना जानना २८-३०-08-१४ के भंग . २ का भंग को नं. १ को नं०१८ के ममान के २,के भंग में मे१ जानना प्रभए घटाकर २६ का मोग भूमि में जानना ।२३ का मंग को.नं. Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवाहना-को. नं. १६ मे ३४ देखो। बष प्रकृति - १२० को नं०१ से १४ देखो। उदय प्रकृतियां-१२२ ॥ सरय प्रकृतिया-१४% । संख्या-अनन्नानन्त जानना। मेट-सर्वलोक जानता। स्पर्शन-सर्वलोक जानना । काल सर्वकाल जानना। अन्तर-कोई यन्तर नहीं। जाति (योनि)-८४ लाख योनि जानना । -१ कोशिका जानना ! ३ Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८१ भव्य में - २५-२६-२६ के भंग । १० के २४ के भंग में से को नं. १८ के समान । १ अभब्य घटाकर २३ । जानना | का भंग जानना (४) देवगति में सारे भंग भंग । २२-२५ के भंग २४ का भंग को० नं०१६ को.नं.१६ देखो को0नं0१६ देतो' को नं. १५ के समान के २५ के मंग में से १ (४) देवमति में सारे माग । १ भंग अभव्य घटाकर २४ का ! २५ का मंग को नं. को नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो मंग जानना १० के २६ के भंग में से २३-२४-२६ के भग |१मभव्य बटाकर २५ को.नं. १६ देखा । का भंग जानना २६ का भंग को० नं० १६ १४ का भंग को नं० । के २७ के भंग में से ' १६ के समान जानना अभव्य घटाकर २६ का । २५ का भंग को. नं. भंग जानना । १६ क २६ के भंग में से २५-२६-२६ के मंग १प्रभव्य घटाकर २५ । को० नं०१६ के समान का भंग जानना जामना २४-२८ के भंग २३ का भंग की.नं०१६ को. नं०१६ के समान के २४ के मंग में से १, जानना प्रभव्य घटाकर २३ का ! २२ को मंग को० न०१६ भग जानना के २३ के भंग में ! २२-२३-२६-२५ के मंग प्रभव्य घटाकर २२ का। को० नं. १६ के ममान मग जानना जानना २१-२६-२६ के भंग को० नं०१६ समान সানা -- ---- -- Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०८२ अभव्य में चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीव के नाना एक जीवन नाना जीवों को नाना जीदों को अपना । समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा जीब के नाना १जीव के एक समय में ममयम पर्याप्तवत् जानता १ गुण स्थान चारों गतियों में हरक में मिथ्यात्व गुए जानना २जीब-समास १४, ७ पर्याप्त अवस्था को० नं.१ देखो (१) नरक-मनुष्य देवगति में १६ देखो १ मंजी पत्रेन्द्रिय पर्याप्त जीव समास जानना को. नं० १६.८-१६ देखो (२) तिपंच गति में ७ जीव समास पर्याप्त प्रवस्था जानना को० नं. १७ देखो भौगभूमि में-मजी पं० पर्याप्त जानना को० २०१७-१८ देखो १ समास १ समास ७ अपर्याप्त अवस्था । १ समास १ समास को००१६-१८- को० नं०१६-(१) नरक-मनुष्य-देवगति को० न०१६-१८- | कोन०१६१८-१९ देखो ! में हरेक में १९-देखो ।१८-१९ देखो १ संजी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीव समास जानना को. नं. १६-१८-१६ समास १समास । देखो का १७ देखो को २०१७ (२) नियंच गति में | समास १ समाम ७जीच समास अपर्याप्त 'को० न०१७ देखी को न०१७ अवस्या जानना देखो कोः नं०१७ देखो भीगभूमि में १ मंत्री पं. अपर्याप्त जानना भंग १ भंग को.नं०१६-१८- को न १६. (१) नरक-मनुप-देवगति १ भंग १ भंग १८-१९ देखो में हरेक में को० नं०१-१०-। को० न०१६३ का भंग-को. नं. १६ देखो १०.१६ देखो १६-१८-१९ देखो ३ पर्याप्ति कोनं १ देखा (१)नरक-मनुष्य-देवगति में हरेक में ६ का भंग-को न० १६. १८-१६ देखो Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (५९ कोष्टक नं० ८२ अभव्य में (२) तिर्यच गति में ६.-४-६ के भंग कोनं० १७ देखी । सारे भंग १भंग (निर्यच गति में भंग । १ मंग। को० नं. १ देखो कोन.१३ देखो ३-६ के भंग कोनं-१७ देखो कोनं : १७ देखो को० नं०१७देखा । लब्धि रूप ६-५-४ भी होती, ४मारण म १ भंग १भंग १ भंग को २०१देखो (1) नरक-मनुष्य-देवगति में को० नं०१६-१८ को नं०१६-१--(१) नरक-मनुष्य-देवगति को नं०१६-१८- कोनं०१६-१८ हरेक में १६ देखो । १६ देखो । में हरेक में ! १६ देखो ! १६ देखो १० का मंग ।७ का भंग को० नं०१६-१८-६९ दस्रो | कोनं १६-१८-१९ देखो (२) नियंच गति में १ भंग | १ मंग (२) लियंच गति में १०-६-5--६-४-१. को. नं० १७ देखो कोनं०१७ देखी ७-७-६-५-४-३-७ के भंग | को०म०१७ देसो कोनं १७ देखो के मंग को नं० १७ देलो को० नं०१७ देखो ५ संज्ञा भंग १ भंग को००१ देखो (1) नरक-देवमति में को.नं०१६-११- कोनं०१६-११- ( नरक-देवगति में को.नं०१६-११ को नं०१६-१६ हरेक में | देखो देखो हरेक में देखो देखो ४ का मंग ४ का मंग को नं०१६-१६ देखो को० नं. ६-१६ देखो | (२) तिर्यच-मनुष्य गति में (२) तिर्यच-मनुष्य गति में १मंग १ भंग हरेक में कोन०१७-१८ कोनं०१७- हरेक में को.नं.१७-१८ को०२०१७-१८ ४-४ के भंग देखो १८ देखो ४-४ के भंग | देखो को नं०१७-१८ देखो कोन १७-१८ देखो । ६पति गति । १ मनि । १ गति १ गति को. नं०१देखो | चारों गति जानना पतिवत् जानना ७ इन्द्रिय जाति ५ नाति जाति । १जाति १जाति कोनं १ देखो | (1) नरक-मनुष्य-देवगति में को० नं० १६-१८- कोनं० १६-१८- (१) नरक-तियंच-देवगति को. नं० १६-१८- कोनं०१६-८. हरेक में १६ देखो देखो : में हरेक में १६ देखो १६ देखो पंचेन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति जानना Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८२ अभव्य में । देखो ८ वाय को० नं. १ नो है यांग डा. मिश्रकार योग ? प्रा. काय यंग १, ये २ वटाकर (३) वो. नं. १६-१-१६ : को. २०१६- देखो देशः (P) निर्यन गनिने १ञानि १जानि (२नित्र गदि में जाति जाति ५.१ के भंग- बी० की.नं.१ की को०० १३ ५.१ के भंग-कोर नं. कान.१७ देखो वा० नं०१७ १७ देवी देवो काय । १ काय ६ काम (नरक-मन्य वनि में होने ५-१०- 'को० . १६- (१) नरक-मनुप्य-देवतिको नं.१६-१८- का० नं०१६हरेक में ११देखो १-१६ देखी। में हंक मे १६ इंचा १-११ देखो १ चमकाय जानना १त्रमकाय जानना को० नं० १६.१८-१९ : को. नं० १.१-१२ देवा नत्रो (2) निर्गन गनि ने १काय (२) तिर्थच गति में काय १काय 5. के भंग-कोर नं पोनं.१५ देखा को नं. ६-१ . मंग-की नं० पी० नं १ देखो को नं. १७ अन्त्रा देखो १० । मंग योग । १ भंग १ योग पौर मिथवाय योग । घो- मिथराव चाग ।। 40 मिश्रकाय योग, बं० मियाय यांग : तामांगकाय योग पामगाकाय ग । ये टाकर (१०) । 'ये जानना १)नात्र-वनि में हक में भंग १)नक नगनि में भंग १ योग है का भग-को नं. १:- कोः नं. १६-१६ को० नं० १६. हरेक में को० न.१६-२६ को नं. १६१६ दग्दो ११ देखो का मग-की न दनी | १. देखो (२) निर्यच गति में भंग योग - टचो -०-१-४के भंग का० न०१७ देखो की न०१७ (२) निरंच गति में ? भंग | बोग कौर नं०१७ देणा १.२.१-२ के भग-को० को नं. १७ दमो का २०१७ (३) मनुष्य मनि में मारे भंग | १ योग नं.१७ दखो। ! देखो E- के भन को न०१८ देवा | को न०१ () मनप्य गनि में सारे भंग । योग को नं०१८ देवी देखो --१-२के भंग-को कोन.१% ईसी को नं०१८ नं.१% देवो योग Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८२ अभव्य में १० वेद १ १ वेद । कोनं. १ देखो । (१) नरकगति में को.नं. १६ देसो कोन०१६ देखो, (१) नरक गति में कोनं०१६ देखी को.नं. १६ देखो १ नमक केद जामना नपूसक वद जानना कोनं० १६ देतो को.नं. १६ देखो (1) तिर्पच गति में । १ भग १बंद (२) तिपंच गति में भंग । १वेद ६-१-३-२ के भंग को नं०१७ दवा कोनं०१७ देखो. ३-१-२ के भंग को० नं०१० देवो कोन १७ देखो को० नं०१७ देखो को० नं०१७ देखो । (२) मनुष्य गति में । सारं भंग १बंद (2) मनुष्य गति में ! सारे मंग व द :-२ के भंग को० नं. १- देखो कोनं-१८ देखो, ३-२ के भंग को० नं. १८ देखो को००१८ देतो को नं०१८ दम्दी | कोनं०१५ देखो |() देवगति में | सारे भंग १बेद (४) देवगति में | सारे भंग ! १ वेद २-१ के भग को०० १६ देखो कोन.१६ देखा। २-१ के मंग को० नं० १६ देखा कोनं १६ देखो को.नं.१६ देखो | कोने०१६ दसो । सारे भंग १ भंग ' सारे भग १ मंग को००१ देखो । (१) नरक गति में कोनं. १६ देखो कोल्नं. १६ देखा (१) नरक गति में को नं०१६ देखो को नं०१६ देखो २३ का भंग '२३ का भंग को० नं. १६ देखो । ! को नं०१६ देखो। (१) निर्यच गति में (२) तिर्यच गति में मारे भंग । १भंग २२-२३-२५-२४ के नंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो २५-२३-२५-२४ के भंग को० नं०१७ देखो को नं०१७ देखो को० नं०१७ देसो को० नं. १७ देखो | (4) मनुष्य गति में । मारे भंग १ मंग (३) मनुज्य गति में सारे भंग १ भंग को००१८ देखो को नं०१८ दखो २५-२४ के मंगको न०१८ देसो कोनं०१५ देखो Ri001 खो कोन०१८ देखो (४) दंदगति में मारे भंग १ मंग (४) दंबगति में सारे मंग भं ग २४-२१ के मंग का० न०१६ देखो कोन०१६ देखो ४.२४-२३ के भंगको नं. १६ देखो कोन०१६ देखो | कोन०१६ दखा को० नं०१६ देखो । १२ ज्ञान सारे मंग १ भग सारे मंग कुजान | (१) नरम गति में को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देशो कुअवधि ज्ञान घटाकर ३का मंग Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५९२ ) कोष्टक नं. ८२ चौतीस स्थान दशन अभव्य में मो०नं.१६ देखो (१) नरक गति में सारे मंग | १जान (२) नियंच गति में । १ भंग १मान २ का भंग को.नं.१६ देखो कोनं०१६देखो २-३- के भंग कोनं०१७ देखो को नं०१७ देखो को नं० १६ देखो । को० नं०१७ देखो | (२) तिर्यच गति में १ भंग ज्ञान (३) मनुष्य गति में मारे भंग | जान ! २-२ के भंग | कोनं०१७ देखो को मं० १७ देखो -३ के भंग को २०१८ देखो को.नं. १५ देखो| कोनं० १७ देखो को० नं०१% देखो (3) मनुष्य मति में सारे मंग१ज्ञान (४)देवगवि में | मारे भंग | १ज्ञान २-२ के भंग को००१८ देखो कोनं०१५ देखो ३ का मंग को न. १६ देखो कोनं०१९ देखो को. नं.१- देखो को नं० १६ देखो (४) देवमनि में सारे भंग १ज्ञान २-२ केभंग को.नं.१६ देखो को नं० १६ देखो को.नं.१६ देखो १३ संयम प्रमंयम चाग गलियों में हरेक में | को० नं०१६ से कोनं०१६ में | चारों गनियों में हरेक में कोनं०१६ से १९ को० नं. १६ से १ असंयम जानना १६ देखो १६ देखो | १अमबम जानना टेखो १६ देखो को० नं. १६ मे १६ देखो कोनं०१६ से १६ देखी। मी १ दर्शन १ भंगदर्शन प्रचच दर्शन, चक्षु दर्शन ११) नरक गति में | कोनं०१ देखो कोन०१६ देखो (१) नरक मनि में को न०१६ देखो कोनं-१६ देखो ये २ जानना २ का भंग २ का भग फो.नं.१६ देखो को० नं०१६ देखो (नियंच गति में मारे भंग १र्शन (२) निर्वन गति में | १भंग १ दर्शन । को००१७ देखो कोनं १ देखो १-२.२ के मंग को नं०१७देखो कोनं०१७ देखो कोनं०१७ देखो | को० नं१०देखो (3) मनुष्य गति में : सारे मंग १ दर्शन (8) मनुय्य गति में - यारे भंग १ दर्शन २-२ के भंग को० न०१८ देखो को२०१८ देखो २.२ के भग को न०१८ देवो कोन १८ देखो को० नं०१८ देखो को.नं. १ देखो १४) देवगनि में सारे भंग दर्शन (४) देवगति में १ भंग १दर्शन २का मंग को.नं. १६ देखो कोनं १६ देखो २.२ के भंग । को० ०१६ देखो कोनं. १६ देखो को० नं० १९ देखो को०नं. १६ देखो २ Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक : अभव्य में देखो । देखो १५ नेथ्या १ भंग १ लेन्या । १ लेण्या कको नं०१ देखो | (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो को० नं. १६ (३१ मनुष्य गति में को० नं० १६ देखो । को० नं०१६ ३ का मंग-को० नं०१६ ।३ का भंग-को० नं. दम्बा देखो (२) तिर्पच पनि में १लेदया | (२) चि गति में । १ लेण्या ३-६३ के भंग को० न०१७ देखो | को.नं.१७. ३-१ के मंग-को० न० को २०१७ देखो को न०१७ को.नं०१७ देखो । देखो । -७ देखो देखो (३) मनुष्य मति में मारे भंग १ लेश्या (३) मनुप्य गति में मारे भम १ लेश्या ६-३ के अंग-कोर नवोन०१५ देखो| कोन.१५। ६-१ के भंग-को नका . नं०१८ देखो को.न.१८ १८ देखो १८ देखो देखो (४) देवगति में भंग १ लेश्या (४) देवमति में १ भंग नश्या १-३-१ के भंग को नं. १६ खो| को० १९३-३-१ वे अंग नंदर देखो को नं. १६ को नं. १ देवी को नं १६ देखो १६ भव्यत्व चारों गनियों में हरेक में पर्याप्नवत् जानना १ अभव्य जानना १७मम्यन्व मिध्यान्द चारों गलियों में हरेक मे। १ मिथ्यात्व जानना को नं०१६ से १६ दबी १८ मंग : मज्ञी, प्रमंत्री (3) नरक-मनुष्य-देवर्मा में को. नं. १६. को० नं०१६- (१)मक मनुष्य-देवगनि नं :-14- कोल नं.१६ग्क में १८-१६ दखों - देखो। हरेक १६ देखो १:-१६ देग्यो १ मनी जानना |१मजी जानना को०१६-१-१६ को० नं-१-१८-१: । | देखो नियंर गति में भंग , अवस्था । (२) नियंच गति में भग व स्था १-१-१ के भंग-को.नं. को २०१७ देखो को.नं. १७१-१-१ केभंग को नं. ७ देखो | को.नं. १७ १७ देखो देखो को.नं. १७ देखो देखो १ । पर्याप्नवत जानना जिन Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीतास स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८२ अभव्य में - - - - - - - -- - - - - १६ पाहारक माहारक, अनाहाक चार्ग मतियों में हरेक में को.नं. १६ मे को.नं.१६ से चारों गतियों में हरेक में | को० नं.१६ से कोन.१६ पाहारक जानना १६ देवो । १६ देखो 2-1 के भंग जानना १९ देखो | १६ देखा को नै १६ १६ देजा, ' को न १६ से १६ देखी २० उपयोग भंग १ उपयोग | १ भंग ! उपयोग ज्ञानोपयोग, (१) नरक गति में कोन १६ देखा काग०१६ देहों कुपवधि ज्ञान घघटाकर ।। दर्शनोपयोग २ ५ का भंग ये ५ जानना को० नं. १६ देखो । (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो का नं १६ देखो (२) निर्यच गति में ३.४-५-५ के मंग को.नं. १७ दंखो कोनः १७ देखो को नं. १६ देखो को.नं. १३ देखो ' तिर्वच गति में १ भंग १ उपयोग (३) मनुष्य गति में | सारे मंग पयोग ।३.४.-.-४ के मंगको न०१७ देखो कौनं १७ देखो ५-५ के भंग को न०१८ देखो को.नं. १८ देखो को० न० १७ देखो . को नं. १८ देखो | (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ उपयोग । (४) देवगत्ति में १ भंग १ उपयोग । ४-४ के मंग को० नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो ५ का भंग को.नं०१६ देखो बो०० १६ देखो को नं०१८ देखो । को० नं० १६ देखो (४) देवगति में सारे भंग १ उपयोग ४-४ के मंग को नं. १६ देखो कोनं०१६ देखा ! को.नं. १६ देख। २१ ध्यान | सारे भंग १ ध्यान । सारे भंग १ ध्यान कोन १ देखो । चारों गतियों में हरेक में | को०० १६ से कोनं-१६ से। (१) चारों गतियों में कोनं.१६ से १६ कोनः ६ से का भंग जानना १४ देखो १६ देखा हरेक में । देखो १६ देखो को० नं १६ से १६ देखो | का मंग जानना को० नं०१६ मे १६ देखो। २२ मानव सारे भंग १ मंग ४५ । सार भंग १ मंग आ० मिथकाययोग १, औ मिश्रकाययोग १, मनोयोग ४, वचनयोग ४ पाहारफ कापयोग । 4. मिश्रकाययोग १, पौ. काययोग १, ये २ घटाकर (५५) काम्गि काययोग १ वै० कायमांग १, ये ३ घटाकर (५२) | ये १० घटाकर (४५) जानना Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १५९५ ) कोष्टक नं० ८२ अभव्य में () नरक बति में सारे भंग मंग (१) नरक गति में सारे भंग १भंग ४६ का भंग को० न० १६ देखो | कोनं०१६ ४२ का भंग-को० नं. कोल नं.१६ देखो 'को.नं. १६ को नं०१६ देसो ! १६ देखो देखो (२) तिथंच गति में । सारे अंग १ भंग (२) तिथंच गति में सारे भंग १ मंग ३६-३८-३९-४०-४३-५१- को.नं. १७ देखो ३७-३८-३६-४०-४३- को नं०१७ ५७ के भंग-कोन. १७ ४४.४३ के भंग-को देखो नं. १७ देखो (1) मनुष्य गति में सारे भंग १ (३) मनुष्य गति में सारे भन ५.-५० के भंग को००१८ देखो को- १८४४-६३ के मंग कोर नं. १- देखो | को० नं०१८ को० न०१८ देखो देखो को० नं०१८ देदो ! देखो (४) देवगति में । सारे भंग १ मंग (४) देवगति में मारे भंग १ भंग ५०-४६ केभंग को.नं. १६ देखो को नं. १६. ४३.४. के मंग को नं०१३ देखो। को० नं०१६ को० नं०१६देगी को० नं०१९ देखो देखी - सारे मंग " मंग । ३२ सारे मंग को.नं.१ के ३८ (१) नरक गति में को० नं० १६ देखो | को.नं. १६ कुअघि ज्ञान घटाकर को० न०.६ देखो [को० नं० १६ भावों में से १ भव्य । २५ का मंग-को. नं० | देखो देखो घटाकर 21 जानना १६ के २६ के भंग में में: (१) नरक गति में १ भव्य घटाकर २५ का ।२४ का भंग को० नं. भंग जनना १६ के २५ के भंग में से (E) निच गति में सारे भंग ! १ भंग १ भव्य घटाकर २४ । २३-२४-२६-३०-२: के को.नं. १७ देखो को.नं. १७ | का भग जानना मंग-को नं. १७ के देखो (२७ तिर्वच गति में मारे गंभ १ मंग २४-२५- ७-३१-२७ के. २३-२४ २६-२६-२३ के को० न०१६ देखो । को० हरेक मग में मे १ भव्य भंग-की नं. १७ के घटाकर २३-२४-२६-३७ २४-२५-२७-७-२४ के २६ के भंग जानना हरेक भंग में से १ मब्ब (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग घटाकर २३-२४-२६३३-२६ के भंग-को. नं. को० नं. १८ दको को.नं. १८ २६-२३ के भंग १८ के ३१-२७ के भंग जानना Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५६६ ) कोष्टक नम्बर २ चातीस स्थान दर्शन अभव्य में में म १ भव्य घटाकर | (३) मनुष्य गति में मारे भंग १ भंग ०-२६ के भंग जानना २६-२३- के भंग-को० को नं०१८ देगा को नं. १६ (४) देवगति में नं. १- के ३०.२४ के | देखा २४.२६-२३ के भन-काल । मारे भंग १ भंग भंग में से १ पत्र्य घटा-: नं०१६ के २५-२७-२४ को नं. १६ देखो . का० नं. १९ । कर २६-१३ के भंग । हरेक मंग में में भव्य देखो 1 जानना घटाकर २४-२६-३ के (४) देवर्गात में मारे भग । ! भग भंग जानना २५-२५-२२ + भंग- कान०१६ देखी को० नं.१३ को.नं. १० के २५२६-२३ के भंग में से १ भव्य घटाकर २५ | २५-२२ के मंग जानना प्रवगाहना-कोन.१६ से २४ देखो। बंध प्रतियो-११७ बंधवांग्य १२० में आहारकद्विक २. तीर्थकर प्र० १ से ३ पटाकर ११७ प्रकृति जानना । जदय प्रकृतिषां-११७ उदययोग्य १२२ में से पाहारकाहिक २, तीर्थकर प्र० १, सम्यम्मिय्यात्व है, सम्यक्त्व प्रकृति १५ पटाकर - १७ प्र. जानना। मत्व प्रकृतियां-१४१ याहा रहिक २, दीर्वकर प्र० १, पाहारक बंधन १, प्राहारक संघात १, सम्यग्मिध्यात्व १, सम्यवस्व प्रकृति १ ये ७ घटाकर १४८ प्रजानना। सख्या-अनन्त जानना। क्षेत्र-सर्वलोक जानना । स्पर्शन-सर्वलोक जानना । काल-सर्वकाल जानना। मन्तर-कोई अन्तर नहीं। जाति (योनि)-४ लास योनि जानना । कुम-१६ लान कोटिकुल जानना। Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन ( ५६७ ) कोष्टक नं० ८३ भव्य अभव्य रहित में (सिद्ध गति में) *०/ स्थान / सामान्य पर्याप्त । पालाप अपर्याप्त नाना जाबों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा । एक जीव की अपेक्षा नाना समय में एक समय में मूचनाअपर्याप्त नहीं होती। १गुण स्थान २ जीव समास ३ पर्याप्ति ४प्राण ५ संज्ञा ६ गति ७ इन्द्रिय जाति ८ काय योग ११ कवाय १२ ज्ञान १३ मंयम १४ दर्शन १५ लेवा १६ भव्यत्व १७सम्यक्रव १८ संजी १९ माहारक २० उपयोग २१ ध्यान २२पास्तव २३ भाव अतीत गुरण म्धान जीव समास , पर्याप्ति " प्राण । संज्ञा गनि रहिन (सिद्ध गति) अतीत इन्द्रिय प्रकाय प्रयोग अगगत वेद प्रकपाय १व-बल ज्ञान अमयम-संयमानंयम-संयम ३ से रहित १ केवल दर्शन अलश्या अनुभव (न भय्य न प्रभव्य) १ क्षायिक सम्यक्त्व अनभय (न मजी न मनाहा.) मनुभय (न आहार क न अभव्य) २ जानोपयोग-दर्शनोपयोग (दोनों युगपद) अतीन व्यान मानव रहित मायिक जान-दर्शन-वीर्य-सुख (सम्यक्त्व) जीवत्व ये ५ भाव Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुचना कोई प्राचार्य क्षायिक भाव , जीवस्व ? १० मानते हैं। अवगाहना-३॥ हाथ मे ५२१ धनुष नक जानना । बंध प्रकृतियां--प्रवन्ध जानना । उदय प्रकृतियां-अनुदय जानना । सत्त्व प्रकृतियां--सत्ता रहित अवस्था जानना । संख्या-अनन्त जानना । क्षेत्र-४५ लाख योजन सिद्ध शिला अपेक्षा जानना। स्पर्शन--निद्ध भगवान् स्थिर रहते हैं। काल-गर्वकाल जानना। अन्तर-कोई अन्तर नहीं। जाति (योनि)-जाति नहीं। कुसल नहीं। Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोप्टक नं०८४ मिथ्यात्व में (सम्यक्त्व मार्गणा का पहला भेद) चौंतीस स्थान दर्शन क० स्थान सामान्य प्रालाप पर्याप्त एक जीव के नाना एक जोब के एक। समय में | समय में । नाना जीवों की अपेक्षा अपर्याप्त १जीव के नाना एक जीव के समय में एक समय में नाना जीव की क्षा १ गुण स्थान पर्याप्तवत् जानना गारों गतियों में हरेक में । परिवाब गुण गाना ७पर्याप्त अवस्था १ समास । १ समास १ समास ७ अपर्याप्त अवस्था ३लन्धि स्प६ भी होता है। १ समास १ भंग १ भंग २जीव सभास १४ को नं० २ देखो ३ पर्याप्ति को. नं०८२ देसो ४प्राण ___ को नं० २ देखो ५संजा १० कोल नं. २ देखो ६ गति ४ को० नं २ देखो ७ इन्द्रिय जाति को नं. ८२ देखो १ भंग १ गति गति जाति १ जाति १ जाति १ जाति बकाय . १ काय १ भंग १ मंग १ योग ___ को नं. ८२ देखो। ह योग १३ को. नं०८२ देखो! १. वेद ३: को० नं. २ देखो ११ कपाय २५ कोनं०५२ देखो , १ वेद सारे भंग १ भंग सारे भंग Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८४ मिथ्यात्व में (सम्यक्त्व मार्गणा का पहला भेद) १२ ज्ञान १ शान सारे भंग ज्ञान १ दर्शन १ दर्शन को नं० २ देखो १३ संयम १ को नं०६२ देखो १४ दर्शन को० नं. २ देखो १५ लेश्या ६ को नं० २ देखो १६ भव्यत्व २ भव्य, प्रभव्य १ भंग ! १लेल्या १ लेश्या १ भंग १अवस्था १ भंग १ अवस्था चारों मनियों में हरेक में को० नं. १६ मे १६कोनं०१६ से । चारों गलियों में हरेक में | कोल्नं०१६ग ११ कोनं०१६ से २का भंग जानना । देखो ११ देसो २ का भंग जानना । देखो १६ देखो को० नं०१६ से १६ देखो। को.नं. १६ मे १९ देखो १७ सम्यक्त्व १ मिध्यात्व चागें गनियों में हरेक में | १मियान्य जानना पर्याप्नवा मानना को० न०५२ देखो १६ पाहारक २ फोनं०६२ देखो २० उपयोग कोनं०८२ देखो सारे भंग को० नं: १८ देखो २२ पाधव ५५ को० नं. २ देखो २३ भाव १४ कुज्ञान ३, दर्शन २, लम्धि ५, गनि ४, कमाय ४, निग ३, १ उपयोग भंग १ उपयोग १ च्यान मारे भंग । १ च्यान सारे मंग १ भंग मारे भंग १ भंग . सारे मंग१ मग बोलन. १६ देखो कोनं० १६ देखी कुप्रवधि नान घटाकर(३३)को न०१६ देसी कोनं०१६ देवा (१) भरक गति में । २५ का भंग - को० न०१६लो (१) नरक गति में २४ का मग कोनं १६ देखा Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ लेश्या ६, मिथ्यादर्शन १ (१) निवेच गति में असम, प्रज्ञान प्रसिद्धत्व १, परिणामिक भाव २३४ जानना २६ २७ २० re ३० ३१ बोतोस स्थान दर्शने १२ ご ६० २१-२७ के भंग को० नं० १० देखी (४) देवगति मे १ मंग सारे ग । (२) विशेष गति में २४-२५-२७-३१-२७ के भगनं०१७ को० नं० १७ देखी २४-२५-२२०२६० ० नं० १० देख (२) मनुष्य नति में को० नं०] १० दे (३) मनुष्य गति में ३०-२४ के भंग को० नं १८ देखी (४) देव में २५-२७-२४ के भंग को० नं० १६ देखो १६ से ३४ देखी को० नं० १ देखी । को० नं० १ देखो। अवगाहनाको० नं० बंघ प्रकृतियां - ११७ उदय - ११७ सब कृतियाँ १४८ को० नं० १ देखो। संख्या - चनन्नानन्त जानना । क्षेत्र सर्वलोक जानना | स्पर्शन - सर्वन्नोक जानना । नाना जीवों की अपेक्षा गर्वकाल जानना तक जानना । ( ६२५ । कोष्टक न० ८४ सारे ग को० नं० ६८ देखी सारे मंग को० नं० १२ देखी अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं न हो सके। जाति (योनि)२ लाख योनि जानना । कृष १६६१ लाख कोटिकूल जानना १. भंग को०० १८ देखी मिथ्यात्व में सम्यक्र मार्गरणा का पहला भेद) १ मग J १६ देखी २६-२६-२३ के भंग | को० नं० १६ देवी एक जीव की अपेक्षा नादिभिध्या हॉट एक बीस की अपेक्षा बहने १३२ ७ मुंह से १ भंग मारे भंग न० १७ देखी फो० नं० १७ देखी मारे भग १ भंग कन० १८ देखो को० नं० १८ देखो कार भन १ भंग को० न० ११ देखो को० नं० १६ देखो परावर्तन कोम मा कान तक मिध्यात्व का उद Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतारा स्थान दर्शन क्र० स्थान मागायल स्थान १ I १ गुण स्थान सासादन] गुर २ जीव समास मंत्री पं० पर्याप्त १. अपर्याप्त अवस्था ६ ये ७ जानना १ 6. नाना जीव को क्षा f चारों गनियों में हरेक में १ मासादन १० जानना को० नं० १६ से १६ देखो १ मंजी पं० पर्याप्त (१) चारों गतियों में हरेक में १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त अवस्था जानना को० नं० १६ से १६ देखो ( ६०२ ) कोटक नं० ८५ एक जीव के नाना एक जीव के एक । समय मे 1 समय में १ ५ १ समास १ समास को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ मे देखो १६ देखी ३ पर्याप्त ६ १ भंग १ मंग को० नं० १ देखो (') चारों गतियों में हरेक में [को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ मे ६ का भंग देखो १६ देखो को० नं० १६ से १९ दो । नाना जीवों की अपेक्षा 1 I सासादन में (सम्यक्त्व मागंरणा का दूसरा भेद) पर्यात 1 १ (१) नरक गति में २३ कुछ नहीं होगा (२) में हरेक में १ मासादन गुण जानता को० न० १७ १८ १९ | देहो : ६ पर्यास एकेन्द्रिय सूक्ष्म जीव समास घटाकर शेष (६) (१) तियंच गति में ६-१ के मग को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य गति में १--१ में नग को० नं० १= देखो (३) देव गति में १ जीव के नाम समय में १ का भंग को० नं० १६ देखी ३ ७ १ १ समास को० नं० एक जीव क एक समय में १ समास ० नं०१६ १ मंग (१) तियंत्र मनुष्य-क्षेत्र गति को० नं० १७-१८ में हरेक में १६ देखो ३ का भंग ८ ०१७ देखो को० नं० १७ देखो १ समास १ समाम १ समास को० नं० १८ देखी को० नं० १८ देखो १ समाउ को० नं० १६ देख ९ मंग को० नं० १७-१८१६ सो : Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दशन कोष्टक नं. ८५ सामादन में (सम्यक्त्व मार्गणा का दूसरा भेद) । । । । - -- को 21.१ -- लकि: F -.-४ के भग भीना। प्राण १ भंग को नं.? देखो । मारों गलियों में हरेक में काऊन१ ग १६ को.नं. १भ निन- जय-देवांन का ---- कोन०१७-१८१० का भंग १६ देखो में हमे । १६ दी .१६ देतो को० नं. १६ १६ देखों के भी ना निकन्ग | । करेन नं. -१८-१६ ! देखो ५मंत्रा भंग को.नं.१ मेलो ।(१) चारों मनियों में हरेक में का० नं०१६ कोनं। १६ मे नियंच या यदनगनि की नं०१७-१:- कोन. १७-१८. ४ का मंग देबो । में हरंब ! १८ देवो देखो का नं०१६ मे १६ देवो गति । गत पनि को००१ देखो चारों गनिदानना नमगान करना । सोनम जानि जाति नगीनंदग्दो बोन.१३ देखो ७ दिम जानि ५ पो न देखोराबान निको नहर में कोर ११६.न. १ पंचेन्दिय जानि जानना . देखा । १६ । को नंग देखो। 1 (5) मनमानि में जानि । जानि !झुक में काम०१८-१९ मा.नं.:-१६ १नजी पननिय जान देखो जानना कानं०१८-१६ वन्वा । Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तास स्थान दर्शन ४ काय निकाय, वायुकाय, ये २ बटाकर शेप ३ और काय ? ये (४) १० वेद योग १३ आ० मिथकाययोग १, आहारक काययोग १, ये २ घटाकर (१३) १ काय १ कार्य (१) चारों गतियों में हरेक में को० नं० १६ से १९ को० नं० १६-१६ १ अलकाय जानना दखो देखो सोनं १६ नं १६ देखी 3 ३ को० नं० १ देखो (१) नरक गति में १ नपुंसक वेद जानना क० नं० १६ देखो (२) तियेच गति में fac } कोष्टक नं० ३-२ के मंग को० नं० १७ देखी (3) मनुष्य गति मे ३-२ के मंग को० नं० १८ देखी ४ ' १० सो० मिश्रकाययोग १. ६० मिश्रकाययोग १. कार्मारण काययोग १ ये ३ घटाकर (१०) (२) चारों गतियों में हरेक में ६ का मंग को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से देखो को० नं० १६ से १६ देखो । १६ देखो १ भग १ योग १ मंग नं १७ देखी ? १ वेद को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो सारे भंग को० नं० १८ देखी 1 १ वेद को० नं० १७ देस्रो १ वेद को मं० १८ देखी सासादन में (सम्यक्त्व मार्गणा का दूसरा भेद ) ४ स्थावर काय है, सकाय १ से ४ काय जानना (२) नियंत्र सति में ४-१ के भग फो० मं०] १७ देखी (१) मनुष्य- देवगति में १ उसका जीना को० नं० १८-१६ देखी 1 19 (२) नियंच गति में ३१-२ वे भंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में ३-२ के मंग को० नं० १० देखी १ काय 글 (१) नरक गति में सायादन] गुग्गु नहीं होता को०० १६ देखी १ काय १ काय कोनं १० देखो को० नं० २० देखो को० नं० १० १६ देखें। १ भंग १ काय ३ ० भिकाययोग १, वै० मिश्रकामयोग १. कार्मारण काययोग १ ये ३ योग जानना (१) तिथंच मनुष्य- देवगति को० नं० १७ से १६ को० नं० १७ से ये तीन गतियों में हरेक में देखो १६ देखो १-२ के भंग को० नं० १७ से १३ देख १ काय कोनं १८१६ देखी १ योग को० नं० १६ देखी को० नं० १६ देखो १ भंग १ द को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखो सारे भंग १ वेद को० नं० १८ देशको० नं० १८ देखी Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८५ सासादन में (सम्यक्त्व मार्गणाका दूसग भेद) ! १४) देवमति में : सारे भंग । १ येद देवगति में सारेभंग १ वेद -कभंग को० नं. १६ देखो। को नं०१६ | २-१ के मंग को नं० १९ देखो का न.१६ देखो देखो को नं. १६ देखो | देखो ११ कवाय २३, २५ ! सारे भंग १भंग । सारे भंग भंग को. नं० १ देखो १ न क गनि में कान०१६ देखो को० नं०१६ | (१) तिच पनि में को.नं. १७ देवा | को० नं०१७ का भग-कांनं. १६ देखो | २५-२३-२५-२४ के भंग देखो देखो को० नं० १७ देतो (२) तिथंच गति में सारे भंग भंग । (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग २५-२४ के भंग को० नं०१७ २५-२४ के भंग को. नं०१८ रखो | को० नं०१५ कोर नं. १७ देखो देखो | कोनं० १५ देखो । देखा 11३) मनुष्य गति में | सारे मंग भंग (३) देवति में | सारे भंग १ मंग २१५-.४ के भंग को.नं. १५ देखो को. नं०१५ | २४-२४-०३ के भंग को० नं० १६ देखो को.नं०१६ को० न०१८ देखो देखो को.नं. १६ देखो देखो (४) देवगति में । सारे भंग । भंग २-१३ केभंग को.२०१६ देखो को० नं०१६ कोल नं०१६ देखो देखो १२ज्ञान सारे भंग । १ज्ञान सारे भंग | (१) चारों गतियों में हरेक में | को.नं.१६ से | को.नं.१६ | कुपवधि ज्ञान घटाकर | को नं० १७-१८. कोनं.१७३ का भंग-को २०१६ | १६ देखो से १६ देखो (२) | १६ देखो १०-१६ देखो से १२ देखो (१) तिर्वच-मनुष्य-देवगति कुज्ञान २-२ के भंग- कोनं १७-१८-१९ देखो १२ संयम प्रसंयम । (१) चारों गतियों में हरेक में | कोनं०१६ से को० नं०१६ (१) तिर्यच-मनुप्य-देवगति को 40१७-१८- को० नं०१७पसंयम जानना देखो से १६ देलो हरेक में १६ देखो १८- १देखो को.नं. १६ से १६ देखो १ असंयम जानना को. नं०१७-१८-१९ देखो Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८५ सासादन में (मिथ्यात्व मार्गणा का दूसरा भेद) १४ दर्शन १ भंग १ दर्शन । अचर दर्शन १, चक्षु- ' (१) चारों गलियों में हरेक में कोः नं०१६ से १६ को० नं. १६ । (१) निर्यच गई। में कोनं देखो कोनं१७ देखो दर्जुन १ ये (२) २ का मंग देखो । १६ देखो १-२-२-६ के भंग । को नं. १६ मे देखो। को नं.१०दयो १२) मनुष्य-देवगति में । नारे भंग १ दर्शन हरकम बोनं०१-कोनं०१८ । टेखो १२ देसो को. नं. -१६ दवा १५ लेश्या मंगलेश्या । मंगनेच्या को० नं० १ देखो । (१) नरक गति में को० न०१६ दंजो बोल्नं०१६ देण्यो () निर्यच गति में वो.नं७ देखो को०नं०१७ देखी ३ का भंग ३-१के मंग को० नं० १६ देखो को नं. १७ देखो (श नियंच गति में १ मनश्या | (२) मनुस्व गति में सारे मंग १ लेश्या ६-2 के भग को २०१७ देखो कोनं १७३खो ६- के भंगको नं०१८ देखो 'कोन०१८ देखो को नं०१७ देखो को नं. १ देखो |() मनुष्य गति में सारे भंग ले श्या () देवगति में १ भंग १नश्या ६- के भंग 'को० नं०१८ देखो फोनं० १५ देखो, ३-३-२ भंग को० नं०१६ देनो कोनं १६ देखो को० नं. १५ देखो को. नं० १९ देखो (४) देघगनि में १ भंग १ लेश्या । १-३२ केभंग कान १८ देखो को नं. १६ देखो का न. १६ दखा १६ भवत्व चार पतिथी में हरेक में (१। नियंव-मनुष्य-देवर्गात १ मा जानना को. नं. १ मे १९ देखो १ भन्ध जानना को० न० ११-८-१६ दन्चो Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन · १७ सध्यत्व सासादन जानना १८ सजी २ मंत्री यमंत्री १६ आहारक प्राहारक, अनाहारक २० उपयोग ज्ञानोपयोग ३ दर्शनोपयोग २ ये (५) जानना T चारों गनियों में हरेक में १ नासादन जानना (१) चारों गतियों में हरेक में १ संभी जानना को० नं० १६ मे १२ देखी (१) चारों गतियों में हरेक में | १ आहारक जानना को० नं० १६ से १६ दो (१) नरक गति में ५ का मंग को० नं० १६ देखी (२) तिर्यच गति में ५-५ के संग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में ५-५ के भंग ४ ( ६०७ ) कोष्टक नं० ८५ १ को० नं० १६ से को० नं० १६ १६ देखी से १२ देखी १ को० नं० १६ से १६ देखो १ मंग १ उपयोग को० नं० १६ देखो | को० न० १६ देखो १ भम को० नं० १७ देखी सारे मंग को० नं० १८ देखो सासादनमें (सम्यक्त्व मार्गणा का दूसरा भेद ) १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग को० नं० १८ देखो (१) तिर्यच-मनुष्य-देवगनि में हरेक में १ ग्रासादन] जानना २ (१) नियंच गति में १-१ १-१ क भंग को० न० १७ दे (२) मनुष्य गति में १ का भंग को नं० १ देखी (२) देवगति में * कुअवधि ज्ञान घटाकर १ २ १ भंग [को० नं०] १६ ( १ ) तिचंच मनुष्य-देवगति को० नं०१७-१८ से १६ देखो में हरेक में १६ देखो १-१ के भंग जानना को० नं० १७-१२-१६ देखी '४) ७ १ मंग को० नं० १७ देख 1 १ भंग १ का मंग-को० नं० को० नं० १६ देखी १६ देखी (१) तियंच गति में ३-४-४-४ के भंग को० नं० १७ देखी (२) मनुष्य पति में ४-४ के मंग को० नं० १८ देखा १ भंग [को० नं० १८ देखी १ मंग १ अवस्था को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १० देखो १ स्था ० ० १८ देखो १ प्रवस्था को० नं० १९ देखो अवस्था को० नं० १७१८-१९ देखी १ उपयोग को० नं० १७ देखो को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १७ देखो Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८५ सासादन में (सम्यक्त्व मार्गणा का दसरा भेद) को नं०१८ देखो | (2) देवगति में सारे भंग १ उपयोग देवमति में १भग १ उपयोग | ४-४ कं भग की नं०१६ नेवो कोनं ११ देखो ५ का में को०० १६ देखी कोल्नं०१९ दखो को० नंक १६ देखो को नं०१६ देखो सारे भंग | सरेभंग च्यान को नं० १ देखो (१) नरक गति में कोनं०१६ देखो फोन०१६ देखो (३) निर्यच गति में को० न०१७ देखो 'को.नं० १७ देखो बा भंग E-- के भंग को० नं. १६ देखो को.नं.१७ देखो | (नियंच-मनुष्य गति में १ भंग ध्यान (२) मनुष्य गति में सारे भंग १ व्यान | को० नं०१५- कोन०१७-१८८-८ के भन को . नं०१८ देखो को नं०१५ देखो F- के भंग १८ देखो | देखो को नं.१८ देवरे को.नं. १७-१८ दंबो । (३) दंबगनि में | सारे भंग । १ च्यान (३) देवगति में । सारे मंग ध्यान को देखो 'कोल्नं ११ देखो ८ का भंग को० नं० १६ देखो कोन १६ देखो को न० १६ देवी को० न.१६ देखा २ पाखव | पारे भंग १ भम | पारे भंग १ भंग मिथ्यात्व, पा. मिथकाययोग १, मनोयांग , वचनयोग,। मा० मिधवापयोग १ ।। 4. मिश्रकाययोग, धोक काययोन १, पाहारक काययोग? कामणुि कापयोग 4. काययोग १, ये ७ घटाकर (५०) वे घटाकर (४७) ये १० ष्टावर:४०) (१)मन्कगति में । सारे भग भ ग (2) तिर्वत्र गति में सारे भंग १ भंग ४४ का भंग को० न०१६ देखो को.नं.१६ देखी ३२-३३-३४-३५-३६-.को. नं०१७ देखा कोनं १० देखो कोनं.१६ देवो 1३६-३८ के भंग | (नियंत्र गति में मारे भंग । १ भंग को० नं० १५ देखो । सारे भंग १ भंग ४..४५ के भंग को० न०१३ देखो कोन देखो (२) मनप्य गति में को नं. १देखो कोलन०१८ देग्यो को नं०१७ देखो ३६-३ केभंग । (३) मनुष्य मन में | मारे भंग १ भंग नोन०१८दयो । सारे भग भंग ४६-४५ के भंग कोनं-१८ देखो कान०१८ देखो (क) देवगति में को.नं.१६ देखो की नं.१६ देखो को नं०१८ देखो कोन०१६ देनी Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५५ सासादन में (सम्यक्त्व मार्गणा का दूसरा भेद) 166) देवगति में मारे भग १ भंग को न०१६ देखा काम०१६ देखो की नं०१६ यंत्रो | सारं भंग २३ भाव ३० सारे भंग १ भंग । १ भंग वो० नं२ नो । (१) नरक गनि मे कोनं० १२ देखो को.नं.१६ देखा कुअवधि जान घटाकर . २४ का भंग (३१). कोनं१६ देखो (२) तिर्यच गनि में को० नं०१७ देखो को नं०१७ देखो (२) नियंच गति में सारं भंग भंग - २५२५-२५ ९-२५ के अंग कोनं० १७ दम्रो कोन० १७ देखी के मंग को००१७ देखो 'को नं०१७ देखो (३) मनुप्म गति में | सारे मंग भं ग (३) पन्द्रय गति में सारे भंग १ भंग २६-२५ के मंग को नं. १- देखो कोन०१८ देखो, २८-२२ के भंग कार नं०१८ देखा कोनं०१८ देखो को नं०१८ देखो बो० म०१८ देखो। (४) देवमति में सारे मंग र मंग (४) देवर नि में मारे भंग १ भंग २३-२५-२२ के मंगको० नं०१६ देखो को०२०१६ देश। २४-२४-२१ के भंग को००१८ देवो को२०१३ देखो कारनं. १६ देम्बा Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . अवमाहना-को० नं०१६ से १६ देखो। बष प्रकृतियाँ -१०१ को न०२ देखो। उस्य प्रतियां-१११ सदर प्रकृतिधा-१४५ माहारकटिक १, तीर्थककर प्र०१ये ३ घटाकर १४५ प्र० का सत्ता जानना । संस्था—पल्या प्रमस्वातवां झाग जानना। ... या संस्थाला जाग जानना। स्पर्शन--लोक का असंख्यातवा भाग ८ राजु, १२ गजु, को० नं. २ के समान जानना। कास नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से पस्य का प्रसंस्थातवां भाग जानना । एक जीव की अपेक्षा एक समय से ६ प्रावली तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से पल्य का मसंख्यातवां माग तक नोक में कोई भी सासादन मुख स्थान वाला नहीं बनता है। एक जीव की अपेक्षा पल्य का प्रसंस्थातवां भाग से देशोन मर्षपुद्गल परावर्तन काल तक सासादन गुण स्थान न हो सके। धाति (योनि)-५६ लाख योनि जानना। (मग्निकाय ७ लाभ, वायुकाय ७ लाख, नित्यानिगोद ७ लाख, इतर निगोद ७ लाख ये २८ लाख घटाकर घोष ५६ लाख जानना) -१८३ लाख कोटिकुल जानना । (अग्निकाय ३, वायुकाय ७ ये १० तास कोटिकुल घटाकर १८६ लाख कोटिकुल जानना) ० - A १४ Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य आलाप १ गुरण स्थान १ ३रा मिश्र गुण स्थान २ जीव-समास १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त ६ पर्याप्ति को० नं० १ देखो २ ४ प्रारण १० को० नं० १ देखो ५ संज्ञा को० नं० १ ६ गति ७ इन्द्रिय जाति पंन्द्रिय जाति ८ कार्य को० नं० १ देवी ४ १ १ त्रसंकाय पर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा ३ चारों गतियों में को० नं० १६ मे १ चारों गतियों में हरेक में ३रा मिश्र गुगा० जानना को० नं० १५४८ दे ( ६११ ) कोष्टक ०६ १ हरेक में १ संज्ञी पं० पर्यात १२ देखो १० चारों गतियों में हरेक में २ का भंग को ० न० १६ मे १६ देखो ४ चारों गतियों में हरेक में-४ का भग-को० नं० १६ मे १६ देखी ४ नागें गति जानना को न० ६ मे १६ देखी १ च से गतियों में हरेक में १ पंचेन्द्रिय जाति को० न० १६ से १६ देखी चारों गतियों में हररु म १ सकाय को० नं० १६ मे १६ देखो एक जीव के नाना समय में ४ मिश्र में (सम्यक्त्व मार्गाका ३रा भेद) अपर्याप्त १ गुण ६ १ मंग चारों गत्तियों में हरेक में ६ का मंग को० नं० | को० नं० १६ १६ से देखो' को० नं० १६ से १६ देखो १६ मे १६ देखो ? मंग एक जीव के एक समय में ५ १ गुण १ समास १ समास को० नं० १६ से १६ देखो को० नं० १६ से १६ देखी ९ मंग १ मंग को० नं० १६ मे १६ देवो को० नं० १६ से १६ देवो १ भंग १ मंग को० मं० १६ मे १९ देव को० नं० १६ मे १६ देख १ गति १ गनि १ जाति ० मं० १६ मे १६ देखो को० नं० १६ मे १६ खो १ जाति ६-७-६ सूचना: यहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं है Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८५ मिथ में (सम्यक्त्व मार्गणाका ३रा भेद) १ भंग १योग का० नं.१६ से १६ देखो को नं.१६ से १६ देखा (१) चारों गतियों में हरेक में ह का भंग को० नं.१६ से १६ देखो हयोग प्रा० मिथकाय यांग , प्रा. काय योग । प्रो. मिथकाय योग १ वै. मिश्रकाय योग, कारिणकाय योग ये ५ घटाकर (१०) १. वेद को० नं० १ देखी को नं.१६ देखो को नं. १६ देखो १ मंग मो. नं.१७ देखो ' को नं०१७ देखो सारे मंग को००१८ देखो को.नं. १५ देखी सारे भग वेद को नं. १६ देखो को० नं० १९ देखो मारे भंग १ भंग को नं०१६ देको को नं०१६ देखो ! (१) नरक गति में-१ नपुसक वेद जानना को० नं.१६ देखो (२) तिथंच गति में ३-२ के भंग-कोनं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ३-२ के भंग-कोर नं.१८ देखो (४) देवगति में २-१ के भंग-को० नं० १६ देखो २१ (१) नरक गति में १६ का भंग-फो० नं०१६ देखो (२) नियंच गति में २१-२० के मंग-को० न०१७ देखो (३) मनुष्य गति में २१.२० के भंग-कोर नं० १८ देखो (४) देवगति में २०-१९ के भंग-को० न० १६ देखा ११ कपाय अनन्तानुबंधी कषाय ४ घटाकर (२१) सारे भंग भग को.नं.१७ देखी को न:१५ देखो मंच की.नं०१५ देखो ___ सारे भंग । १ भंग को.नं. १६ देखो ! को नं० १६ देखो सारे भंग १ज्ञान को० नं०१६ से १६ देखो को नं.१६ से १६ देखो १२मान कुंजान चारों गतियों में हरेक में ३ का भंग-को० नं०१६ से १९ देखो Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोप्टक नं०८६ मिश्र में (सम्यक्त्व मार्गणाका ३रा भेद) ६-७-६ चारों गतियों में हरेक में-१ असंयम जानना को० नं०१६ से १२ देखो को० नं. १ से १६ देखो को नं०१६ से १६ देखो १३ संयम असंयम १४ दर्शन केवल दर्शन घटाकर १५ लेश्या को.नं.१ देखो बाने मातमा हल ३ का मंग-को० नं. १६ से १६ देवो १ भंग दर्शन को नं० १५ से १६ देखो को नं० १६ से १६ देखो १भंग १ लेश्या को. नं०१६ देखो | कोनं १६ देखो (2) नरक गति में को भंग-को.नं. १६ देखो (२)नियंच गति में ६-३ के भंग-को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में ६-३ के मंग-को००१८ देखो (४) देवर्गात में १-३-१ के भंग-को नं. १६ देखो चारों गतियों में हरेक में १ भव्य जानना-कोम. १६ मे १६ देखो १लेश्वा को.नं. १७ देखो को० नं०१७ देखो सारे भंग १लेल्या को. नं. १८ देखो । को न०१८ देखो १ भंग १ लेश्या | को० नं.१६ देखो - - - १६ भव्यत्व भब्ध . . १७ सम्यक्त्व चारों गतियों में होक में-१ मिश्र जानना १८ सही मनी ३६ ग्राहारक चारों गतियों में हरेक में-१ मझी जानना का० नं १६ से १६ देखो वारों गतियों में हरेक में १ याहारस जानना-को० नं. १६ से १६ पाहारक देखो २० उपयोग जानोपयोग ३, दर्शनोपयोग ३ ये ६ जानना चारों गतियों में हरेक में ६ का भग-को०१६ से १६ देखो १ मंग १ उपयोग को नं०१६ से १६ देखो को.नं. १६ से १६ देखो Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ८६ मिश्र में (सम्यक्त्व मार्गणाका ३रा भेद) ६-3-5 २१ व्यान को न देखो मारे भंग १ ध्यान को००१६म १६ देखो को२०१६ से १६ देखो ! २२ याखव ४३ नं. ३ देखो को० नं० १६ दलो । को नं १६ देखो ०१: देखो चारों गतियों में हरेक में एका भंग-को० नं०१६ मे १६ देखो (१) नरक गति में ४० का भंग-को. नं०१६ देखो (२) लियंच गति में ४२-४१ के भंग-को - देखो (३) मनुष्य गति में ४२-४१ के मंग-को.नं०१८ देखो (४) देवयति में ४१-४० के मंग-कोनं०१६ देखो नरक गति में २५ का मग-को० नं०१६ देखो (२) तिर्यंच गति में ३०.२६ के मंग-को. नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में ३०-२६ के भंगको० नं. १८ देखो (४) देवगति में २४-२६-२३ के भंग-को० न०१९ देखो सारे भंग को देखो __सारे भंग को० नं०१८ देखो सारे भंग को० नं. १६ देखो सारे मंग को.नं. १६ देखो नं. १८ देखो को.नं. ११ देखो ३३। २३ भाव को००१ देखो १ मंग को० नं०१६ देखो सारे भंग को० न०१७ देखो । सारे भंग को० नं०१८ देखो सारे मंग १ भंग को.नं१७ देखो १ भंग को २०१८ देखो १ भग को.नं. १६ देखो Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-को० नं। १६ से १६ देखो। बंध प्रकृतिया-७४-को.नं. ३ देख तबप प्रकृतियां-१०-कोन० ३ देखो। सत्त्व प्रतियां--१४७-तीर्थकर प्र.१ घटाकर १४७ प्र० का सत्ता जानना । संख्या--पल्य का असंख्यातवां भाग जानना। क्षेव-लोक का प्रसस्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां भाग राजु को० नं०३ देखो। काल-नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से पल्प का प्रसंख्यातवां भाग एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से अन्तमुंहतं तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से पल्य का असंख्यातवां भाग एक जीव की अपेक्षा मन्तमुहूर्त से देशोन् अचं पुद्गल परावर्तन काल तक मिश्र गुण स्थान न हो सके । घाति (योनि)-२६ लाख मनुष्य योनि जानना। कुल-१०८ मास कोटि कुल ना । ३४ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ io चौतीस स्थान दर्शन सामान्य आलाप स्थान १ गुण स्थान ४ से ७ तक के गुण O २ जीव समास १ संज्ञी पं० पर्याप्त जानना ३ पर्या ४ प्राण ५. मंज्ञा ६ को० नं० १ देखो को० नं० १ देखो को० नं० १ देखो पर्याव नाना जावों की अपेक्षा ( ६१६ ) कोष्टक नं० ८७ ३ (१) नरक गति में (२) तिर्यच गति में ४ था गुगा स्थान - गुण स्थान भोग भूमि में ४था गुण स्थान (१) मनुष्य गति में ४-५-६-७ ० भांग भूमि में ४था गुण (४) देवगति में या गुमा ० १ चारों गतियों में हरेक में १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना को० नं० १६ से १६ देखो ६ चारों गतियों में हरेक में ६ का मंग को० नं० १६ मे १६ देखी १. चारों गतियों में हरेक में १० का भंग को० नं० १६ मे १६ देखो Y (१) तरफ देवगति में हरेक में ४ का भंग को० नं० १६-१६ L एक जीव की अपेक्षा नाना समय में ४ सारे गुण ० अपने अपने स्थान के स. रेग्ष स्थान जानना प्रथमोपशम सम्पनत्य में अरर्यात एक जीव की अपेक्षा एक समय में १ पुग् अपने अपने स्थान के मारे में से कोई १ गुण जानना ? રૈ को० नं० १६ मे १६ देखी कोन० १६ से १९ देख १ भंग को० नं० १६-१६ देखी १ भंग १ मंग को० नं० १६ से १६ देखो को० नं० १६ से १६ देखो १. भंग १ भंग [को० नं० १६ से १६ देवी को० नं० १६ मे १६ देखो १ भंग को० नं० १६-१६ देवो ! नूचनायहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है । - Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ योतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६७ प्रथमोपशम सम्यत्रत्व में १ भंग को नं. १५ देग्बोको नं०१५ देखो (२) निर्यच गति में ४-४ के भंग को नं.१७ देखो (1) मनुष्य गति में ४-३-४ के भंग का नं. १५ देखो मूचना-यहां पर प्रपोज अवस्था नहीं होता है। को0नं0 देशो | कोनं-१ खो १ गनि १ गति चारों गति जानना कोनं १ को ७ इन्द्रिय जति १ पवेन्द्रिय जाति जानना चामें गलियों में हरेक में पंचन्द्रिय जाति-नना को.नं-१६ मे १६ देखी नमकाय चार्ग गतियों में हरे में १ काय जानना को.नं. १ मे १६देवो १७ पांच | को.नं०१५-१६ देवी को.नं.75-76 दखा , है योग मनायाम ४, बचनयोग ४, 1१० वापयोग, नं कायाप ये । ११) नरक-देवनि में हरेन में ८. का भग को. नं.१६-देखो (a) यिंच नि में 16 के भंग को नं०१७ देखो (8) मनाय गान में R-6-.-. .मंग को००१८ देखो सारे भंग को० न. १७ देवी योग कोनं०१७ देखो सारे भंग | को० नं० १८ देखो योप कोल्नं०१८ देखो १बेद को गं०१ देखो को.नं. १६ देखो (१) गरकति में नपुनक बंद जानना । कोनं०१६ देखो Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में को नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो को नं०१६ देशो (२) नियंच पति में -२ केभंग को.नं.७ देखो (३) मनुष्य गति में ३-३--१-३-२ के भंग को० नं०१८ देखो (४) देवति में २-१-१ के मंग को००१९ देखो मारे भंग को० नं०१८ देखो को.नं.१८ देखो कोल्नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो ११ कषाय २१। अनन्तानुशन्धी कषाय ४ घटाकर (२१) सारे भंग कोनं०१६ देखो को नं०१६ देखो सारे भंग को० नं. १७ देखो को नं०१७ देखो (१) नरक गति में १६ के भंग को नं०१६ देखो (२) तिर्यंच गति में २१-१५-२० के भंग को० नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में २-१७-१३-१३-२० के भंग कोनं १५देखो (४) देवगति में २०-.-१६ के मंग को नं. १६ इंग्लो सारे भंग को० नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो सारे मंग को.नं.१६ देखो कोनं-१६ देखो सारे मंग १ जान १२ जान मति-श्रुत-अवधि ज्ञान मौर मन: पर्यय ज्ञान को नं०१६-१६ देखो को नं०१६-१७दिखो (१) नरक-देवगति में हरेक में ३ का भंग को न०१६-१६ देखो (२) तिर्यच गति में ३-३ के मंग को.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में को नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में ३- के भंग को० नं०१८ देखो सारे भंग को नं. १८ देखो १जान कोन०१८ देखो | १३ संयम पसंयम, संयमासंयम, सामाविक, छेदोपस्थापना परिहार विशुद्धि य (५) १संयम परिहार विशुद्धि घटाफर ! को नं० १६-१६ देखो (१ नरक-देवगति में में हरेक में १ अर्मयम जानना को० नं० १६-१६ देखो (२) तिरंच गति में 1-1-1 के मंग को न देखो (1) मनुष्य गति में १-१-३-३-१के भंग को० नं. १८ देखो को० नं. १६-१६ देखो। भंग १ मंयम कोनं०१७ देखो | को० नं.१७ देखो सारे मंग को.नं. १५ देखो संयम ' को नं०१८ देखो १४ दर्शन केवन दर्शन घटाकर (३) १भंग १ज्ञान को.नं. १६-१६ देखो वोल्नः १६-१६ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में ३ का भंग कोनं ६-१९ देखो (२) तिर्मन गति में - के भंग कोन. १७ देखो () मनृप्य मति में 1-1-1-के भंग को.नं-१८ देखो १ भंग को.नं. १७ देखो • दर्शन कानं०१७ देखो यारे भंग को० नं०१८ देखो दर्शन फो.नं. १८ देखो १ दर्शन को १६ देखो कॉ० नं. १ देखो । कोनं० १६ देवी १)गरक गति में ३ का भंग कोनं०१६ देखो Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोरया: प्रथमोपशम सम्ययत्व में १ भंग ! को नं. १७ देखो लग्या ' को नं. १७ देखो । । (२) तिर्वच गति में t-३-३ के भंग को० नं०१७ देखो (3) मनुष्य गति में 6-3-3 के भंग को नं १८ देखो (४) देवगति में १-३-१-! के भंग को.नं. ११ देखो सारे भंग १ लेश्या को न०१५ देखो । का नं०१८ देखो । र भमलेल्या की नं०१६ देखा , को १६ देखा । १६ भव्यत्व को० नं०१६ मे ११ देखा को नं.१६ से १६ देखा: चारों गलियों में हरेक में १ भव्य जानना को० नं०१६ से १९ देखो १७ सम्यक्त्व प्रथमोपशम सम्यक्त्व चा, गतियों में हरेक में १ प्रथमोपशम सम्यकद जानना १८ संज्ञी मंजी १६ पाहारक चारों पतियों में हरेक में १ मंज्ञी जानना को० नं० १६ से १६ देखो १ चारों गलियों में हरेक में १ माराहक जानना को.नं. १६ मे १६ देखो माहाक | १ उपयोग २० उपयोग ज्ञानोपयोग ४, दर्शनोपयोग ३ ये ७ जानना | को नं०१६-११ देखो । को नं०१५-१६ देखो ! (१) नरक-देवगति में हरेक में ६का भंग को.नं.१६-१६ देखो (२) तिर्यंच गति में ६-६ के भंग को० नं. १७ देखो १ नंग को० नं. १७ देखो १ उपयोग कोनं १७ देखो Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं ८७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में २१ च्यान १२ । प्रातध्यान ४, गैद्रध्यान ४.' वर्म ध्यान ४ ये (१२) । जानना २० मानव अविरत १२, योग पर के स्थान के१० (पौ० मिथ,बै० मिधा, प्रा. मिश्र, काययोग, वार्मामा कायोग ५ घटाकर १०) काय १ (प्रान्ताबन्दी घटाकर २१७८३) (3) मनुय्य गति में सारे भम् १ उपयोग 4-, के भंग । कोनं०१८ देखा । कोनं०१८ देखो को..?: देखो सारे भंग १व्यान (१) नरक देवगति में हरेक में | कोनं०१६-१६ देखो | कोनं०१६-१६ देखो १० का भम को नं.१५-१६खो । (२) जिवंच गति में भंग १०-११-१. भंग कोनं०१७ देखो को.नं०१७ देखो को १७ नेम्बो (३) मनुष्य नति म सारे भंग १ ध्यान १०-११-3-४-१०के अंग कोग्न १८ देखो कोनं० १८ देखा कोः नं १० देखो . सारे भंग (१) नरक गति में कोनं०१६ देखो वोन १६ देखो ४० का भंग को० नं०१६ देखो (२) निर्वच मन में सारे भंग ४२-३७-४१ के भंग को.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो को०१७ देखो (8) मनुप्य गति में सारे भंग १ मंग ४२ ३७.२२-२३-४१ केभंग कोनं०१८ देखो को.नं०१६ देखो को नं १८ देखो (देवनि में सारे मंग 61-४ -४० केभंग का नं०१६देखो को नं०११ देखो सारे भंग १ भंग (१) नरक गति में को नं०१६ देखो कोनं १६ देखो २६ का भंग की.नं. १६ के २८ के भंग | में से अधिक और श्योपशम ये २ सम्यक्त्व घटाकर २६ का भंग जानना १ भंग | को० नं. १६ देखो २: भाव उप-म सम्यक्त्व १. ज्ञान , दर्शन ३, मन्धि । संपमामयम१, सरम संयम गति ४, कर्षाय ४, लिग ३, Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में ६-७-६ लेल्या ६, प्रसयम १, प्रज्ञान, प्रसिद्धत्व १ भव्यत्व १, जीवत्व १ । ६ भंग को.नं१७ देखो १ मंग | कोनं०१८ देखो । २६ का भंग को नं. १६ के २७ के मंग। में म १ भयोपशम सम्यक्त्व घटाकर २६ का भंग जानना (२) तिरंच गति में सारे भग ३१....के रंग को नं. १० के ३२-२६ | को० न०१७ दलो के हरेक भंग में में१ वेदक सम्यक्त्व । घटाकर ३१-२८ के मंग जाना २७ का भंग को० नं०१७ के २९ के । (भोग भूमि में) के भंग भे से बेदक सायिक ये २ सम्यक्त्व घटाकर २७ का भंग जानना (३) मनुष्य गति में सारे भंग ३१-२५-२७ के भंग को० नं०१८ के । को० नं.१८ देखो ३३-३०-२६ के हरेक मंग में से क्षायिकक्षयोपशम ये २ सम्यक्त्व पटाकर ३१-२८२७ के भंग जानना (४) देवगति में सारे भंग २५ का भंग को नं. १६ के (भवनत्रिक | को० नं०१६ देखो देव) २६ के भंग में से १ वेदक सम्यक्त्व । घटाकर २५ का भंग जानना कल्पवासो नव बेदक देवों में २७-२४ के भंग को.नं. ९ के २६-२६ के हरेक भंग में में क्षायिक और वेदक सम्यात्व ये २ घटाकर २७-२४ के भंग जानना नव अनुदिया पोर पंचानुत्तर विमान में यहाँ उपशम सम्यक्त्व नहीं होना । | कोनं० १६ देखो Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-को.नं.१६१६ देखो। बंध प्रकृतियां-७७-६७-६२-५७ प्रकृति को नं० ४-५-६-७के समान जानना परन्तु को००७ के १६ प्र० पाहारकद्विक २ ये दो घटाकर ५७ प्रा। जानना । उबय प्रकृतिया-६६ को नं.४ के १०४ में से गत्वानुपूर्वी ४, सम्यक्त्व प्र०१ये ५ पटाकर ६९ जानना। ८६ को नं.५ के ८७ में से सम्परत्व प्र.१ पटाफर ८६ जानना । ७६ को ३८१ से मार दिसम्यन्त्र गरिने ३ घटाकर ७ जानना । ७५ को नं.७ के ७६ में से सम्यक्त्व प्रकृति १ घटाकर ७५ जानना । सत्त्व प्रकृतिमां-१४-१४७-४६-१४६ को नं. ४से के समान जामना । संख्या-मसच्यात जानना। कोत्र-लोक का असंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां माग, ८ राजु को.नं. २६ के समान जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा अन्त मुहूर्त से पल्य का असंख्यातवां भाग जानना । एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से अन्तर्मुहुर्त तक जानना । अन्तर-नाना बोवों की अपेक्षा एक समय से ७ अहोरात्र (रातदिन) जानना । एक जीव की अपेक्षा प्रसंरूपात वर्ष से देशोन् अर्व पुद्गल परावर्तन काल तक प्रथमोपशम सम्यक्त्व नहीं हो सके। जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । को नं०२६ देखो कुल--१०८।। लाख कोटिकुल जानना। " Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टमः नं. ८ दिलीपशम सम्वत्व में ० स्थान मामान्य माना गयति आप - - नाना जीवों क सोपा | एक जीप के नाना एक बीच काव समय में समान माना जातानी मा नाना । जोव के एक य में | समय में ६ होता १ गुम स्थान ८ मारे गुरा स्थान • गुगा सारे गूगा० ४ मानक के मुमा वर्मभूमि की पना अपन वन स्थात अपने अपने न प ग में | प्र.अनि स्थान पर मानेन 1) मनुष्य रति म के मारे मुग्ग स्थान के गुगा में में दिनी विमान न कमामा के मारे गग. भोगभूमि म-निनीयोपशम | जानना गाना में न कोई सा नहीं होना भौग भूमि में-पर्याप्तवन १२) देवगति में द्वितीयोपशम सा नहीं होता १२) देवर्गान में ४ था | २जीब ममाम २ : १ संजी पं० पर्याप्न १ समाम । १ समास समीपं. अपर्याप्त १सगास ! समास मझी पं० पर्याप्त अप. (:) मनुप्य गति में कोल नं १८ देखो को. नं०१८ (२) देवगति म-१ संज्ञी को० नं १६ देखो । को०१६ १ का भग-को नं०१५ | देखो पं० अपय प्न । दयों देखो को. नं०१६ देखो ३ पर्याप्ति १ भंग भंग १ भंग १ भंग को० नं. १ देखो (११ मनुष्य गति में को नं०१८ देखो को० नं०१८ जगान में कोरन देवो । को नं: १६ कर्मभूमि वी भगक्षा देखो ! ३ का भंग-को० नं. ६ का भंग को नं०१८ देवो देखो ब्धि रूप का भंग भी ४प्राण . मारे मंग मारे भंग | को नं । देखो ।(१॥ मनुज गति में को नं०१८ देवी को.नं.१ (१) देवगनि में को.नं. १६ देश को नं. १६ १० का मंग-को न०१८ देतो 3 का भंग-को० नं । दवो ।१६ देखो ५ मजा का० नं. १ देखो गारे भंग अंग को१८ देखो को.नं.१८ (१ देवगनिम देखो १४ का भंग (1) मनाय गति में १४-३-२-१-१.. के भग को नं.१६ इन्त्रो को नं. १ देखो Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोती स्थान दर्शन ६ गति मनुष्य- देवगन ७ इन्द्रिय जाति पद्रिय जाति = काय बाकाय ६योग आ मिश्रकाय योग १ ० काय तो १ ० काय योग १ औ० मिश्रकाय योग ४ घटाकर (११) १० वेद क० न० ११ कपाय १ देखी २१ बंधी माम ४] घटकर (२१) को० नं०१८ देख १ मनुष्य गति जानना नंदे | मनुष्य गति में १ संजय जाति को० नं० १० देखी ६ मनुष्य गति में सवाय जानना को० नं० १ देखो ६ o ६० मिश्रकाय योग १, काम काय योग १ टाकर (2) ( ६२५ ) कोष्टक नं०८८ (१) मनुष्य गति में £ के मंग को० नं० १५ देखो 3 (१) मनुष्य गति में ३-३-३-६-३-२-१- के भंग को० नं० १८ देखो २१ (१) मनुष्य गति में २१- ७-१३-१३-०-६.५. ४.३२-१-१० के भग को० नं० [१] देखो १ गति सारे भंग मारे भंग [को० नं० १८ देखो सारे भग को० नं० १० देखी सारे मंग बजे० नं० १८ देखो गवि ? १ १ योग १ योग को० नं० १८ देखो १ वेद को० नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १८ देखो को० नं १९ देखी १ देवगति जानना कोर०१० १ देवनति में १ मंजी पंचेन्द्रिय जाति फो० नं० १६ देखो १ देवग में १ त्रसकाय जानना को० नं० १६ देखो ! पुरुष वेद (१) देवगति में १-१ के भंग को० न० १६ देखो द्वितीयोपशम सम्यक्त्व में 1 स्त्री नपुंसक वेद ये २ घटाकर (१६) (१) देवगति में 1 १६ १६ १६ के भंगको० नं० १६ देखो १ गन ? २ वै० मिश्र काय योग १ कामकाय योग १ ये २ योग जानना देवगति में १ मंग १-२ के भंग-को० नं० [को० नं० १६ देखो १९ देो सारे भंग १ गति सारे मंग को० नं० १६ देखो १ योग ९ योग को १ देखो मारे मंग १ वेद को० नं० १६ देखो | को० नं० १६ देखो १ मंग सारे मंग १ मंग को० नं० १८ दंडो Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८८ द्वितीयोपशम सम्यक्त्व में | १९ देखो १२शान सारे भंग ज्ञान सारे भंग १ज्ञान केवल जान पटाकर (१) मनुष्य गति में 'को० नं१५ देखो' को नं १ | मनः पर्यय ज्ञान घटाकर ३.४.४ के मंग देखो को. २०१८ देखो (१) देवत्ति में सारे भंग १ज्ञान ३-३ के मंग-को नं० को० नं०१६ देखो को नं०१६ १६ देखो देखो १३ संयम । सारे मंग । संयम १ असंयम १ असंयम१मसंयम परिहार विशुद्धि स० (१) मनुष्य गनि में मो. नं०१५ देखो क माशि रें। घटाकर (६) १-१-२-१-१ फेमंग । देखो १ असंयम जानना को नं. १८ देखो को नं. १६ देखो १४ दर्शन सारे भंग ! १ दर्शन १दर्शन केवल दान घटाकर । ११) मनुष्य गति में को० न०१८ देखो को नं०१८ (१) देवगति में कोल नं. १६ दखो को.नं. १३ ३) ३-६-३ के भंग ३-३ के भंग-को नः | को.नं. १८ देखो १५ लेल्या सारे भंग १लेश्या शुभ लेश्या १ लेश्या को० नं० १ देखो । (१) मनुष्य गति में को नं. १८ देखो को नं०१८ । (१) देवमति में को नं० १६ देखो को० नं. १३ ६-३-१ के भंग |३-१-१ के भंग को नं. १८ देखो चो.नं. १६ देखो १६ भव्यत्व भव्य मनुष्य गनि में देवगति में १ भव्य जानना १ भव्य जानना १७ सम्यक्रव द्वितीयोशम सम्यक्त्व मनुष्य मति में देवचति में १ द्वितयोपशम सम्यक्त्व १द्वितीयोपशम सम्यवत्व जानना जानना १८ संजी मनुष्य गति में देवगति में १ संजी जानना १ मंशी जानना को. नं. १ देखो को.नं. ११ दखो देखो संझी Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ आहारक आहारक अनाहक २० उपयोग ज्ञानोपयोग ४, दर्शन|पयोग ३ ये ७ जानना २१ व्यान चौतीस स्थान दशन २२ श्राव १३ | एकत्व वितर्क अविचार, (१) सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति व्युपरत किवा निः ये ३ घटाकर (१३) २३ भाव 65 अविरत १२. योग ११ कषाय ५१ 4 (26 १ मनुष्य गति में १ ग्राहारक जानना फो० नं० १५-१६ देख ७ (१) मनुष्य गति में ६-७७ के भंग [को० नं०] १० देखो १३ मनुष्य गति में १०-११-७-४-१ के मंग को० नं० १० देखो ४४ (१) मनुष्यगति में 1 सारे मंग १ उपयोग | को० नं० १८ देखो को नं०] १८ देखो ४२-३ ७-२२-१६-१५१४-१५-१२-११-१०-१०६ के भंग को० नं० १० देखो ( ६२० ) कोष्टक नं०८८ मारे भंग १ मंग को नं० १८ देखो को नं० १८ देखो ३६ १ को० नं० ८७ देखी (२) मनुष्य गति में ११-२५-२६-२६ के भंग को० नं० १० के २३-१०३१-३१ के हरेक मंग में ! सारे भंग १ मंग को० नं० १८ देखी को० नं० १८ देखो 7 देवगति में १-१ के भंग जानना को० नं०] १३ देख ९ मनः पर्यय ज्ञान घटाकर (4) १ भग १ ध्यान को० न० १८ देखो को०० १८ देख मार्तध्यान ४ रौद्रध्यान ४ आशा विषय घर्मध्यान ९, ये ध्यान जानना (१) देवगति में ६ का भंग को० नं० १६ देखो (१) ६-६ के भंग को० नं० १६ देखो ! | ३५. मनोयोग ४. वचनयोग ४, ओकाययोग १, घटाकर | ३५ ) (१) देवगति में ३३ ३३ ३३ के मंग को० नं० १६ देखी ये २६ क्षायिक सम्यक्त्व १, सम्यक्त्व १, मनः पर्यय ज्ञान १, स्त्री-पुरुष वेद २ द्वितीयोपशम सम्यक्त्व में १ श्रवस्था सारे भंग को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो ७ | १ उपयोग I को० नं० १६ देखो को० नं०] १६ देखी १ भंग मारे मंग सारे भंग को० नं० १६ देखी सारे मंग सारे मंग को० नं० १६ देखो सारे मंग १ ध्यान १ ध्यान कोनं १६ देख १ मंग १ मंग 'को० नं० १६ देखो १ मंग Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन से क्षायिक क्षयोपशमिक ये २ सम्यक्त्व घटाकर ३१-२६-२१-२६ के मंग जानना २८-२५-२७-२६-२५-२४२३-२२-२२-२० के मंगको० नं० १५ के २१-२६२८-२७-२६-२५-२४-२३२३-२२ के हरेक भंग में से क्षायिक सम्यक्त्व घटा कर २८-२८-२७-२६-२५२४-२३-२२-२२-२० के मंग जानना I ( ६२८ ) कोष्टक नं० ८८ द्वितीयोपशम सम्यस्त्व में | संयमासंयम १, | सरागसंयम १, अशुभ लेश्या ३ ये १० बटाकर (२६) (२) देवगति में २६-२४ के भंग - को० नं० १६ के ( कल्पवासीनव०) २६ के हरेक | भंग में से क्षायिकक्षायोपशमिक ये २ सम्यक्त्व पटाकर २६२४ के भंग जानना २४ का भंग-को० नंः । ६ के तव अनुदिन पंचानुत्तर के) २६ के | भंग में से क्षायिक 1 | क्षयोपशमिक वे २ घटा कर २४ का मंग जानना ७ 1 सारे भंग को० नं० १६ देखो 1 को० १० १६ १ भंग | देखो ! Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६. २७ २५ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ૪ ( ६२६ ) पत्र हुन् को० नं० १८१६ देखो। बंध प्रकृतियां-४ से ११ गु० में क्रम से ७७-६७-६३-५९-५६-२२-१७-१ प्र० का बंध जानना | को० नं० ४ से ११ के समान जानना । प्रकृतियां ६४४ कु० के १०४ में से नरक-तिर्यच मनुष्य गत्यानुपूर्वी ३, नरक गति १, तिच गति १, नरकायु १, तिचा १. ०मिश्रकार्य योग १. स्त्री वेद १, नपुंसक वेद १, ये १० घटाकर ६४ प्र० का उदय जानना । ५ मे ११वे गुण० में क्रम मे ८७-९१-७६-७२ - ६६-६०-५६ प्र० का उदय जानना । प्रकुतिया से १२ वे गुगा० में क्रम से १४६-४७-१४६-१४६ - १४२ - १४२-१४२-१४२ ० का सत्व जानना । संख्यात जानना सख्या क्षेत्र- लोक का असंख्यातवां भाग जानना | स्पर्शन लोक का पसंख्यातवां भाग जानना काल-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से वर्ष पृथक्त्व जानना । घसरताना जीवों की अपेक्षा एक समय से वर्ष पृथक्त्व जानना द्वितीयोपशम सम्यक्त्व न हो स - एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त मे एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से जाति (योनि) - ८ लाख योनि जानना । (१४ लाख मनुष्य की ४ सास देवों की ये १० लाख जानना कुल ४० लाख कोटिकुल जानना । (मनुष्य के १४, देवगति के २६ ये ४० लाख कोटिकुल जानना । - मुंह जानना । देशोत् श्रनुद्गल परावर्तन काल तक Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं. ८४ क्षयोपशम सम्यक्त्व में चौतीस स्थान दर्शन *० स्थान सामान्य बालाप पर्याप्त अपर्याप्त एक जीब के नाना एक जीब के एक । १जीब के नाना एक जीव के समय में ! गभय में | नाना जीनों की अपेक्षा । समय में एक समय में नाना जीव की ना १गुरण स्थान । मारे गुगा स्थान ! १ गृगाः सारे गुगा १ गुणक ४ से ७ तक के नुगः (१) नरक गति में ४था प्रपने अपने स्यान के अपने अपने स्थान (१) नरक गति में ४था अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (२) नियंच गति में ४-५ भार गुरग स्थान के सारे अंगों में (२) नियंज गति में - मारे भी जानना के सारे भंगों में भोग भूमि में था जानना से कोई मुगा. मोग भूमि में या 'गे कोई १ नरम । (३) मनुग्य गति में ४ से ७ जानना (३) मनुष्य गति में ४-६ । बानना भोग भूचि में ज्या भोग भूमि में ४या (५) देवगति में स्वा (१) देवगति में में ज्या २जीव समास १ मंशी पर्याप्त १समाग १ समास । १ संज्ञा पं० अपर्याप्त समान १ समास संगो पं० पर्याप्ति चारों गतियों में हरेक में को० नं०१६ से १६ को नं०१६ से. (१) नरक मनुष्य-देवालि को०१-१- कोनं०१६-१.८अपर्याप्त १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त । देखो १९ देखो १६ देखो ! १६देखो जानना १मजी पं० अपर्याप्त को नं०१६ से १९ देखो ! जाना ' को नं. १६-१८-१९ : देखो (तिर्वच गति में १ समास . १ समास भोस भूमि में नजी ५० कोन०१७ देखो कोनं०१७ देखो अपर्याप्त जानना : को०० १७ देखो ३ पर्याप्त १ भंग भंग को०५०१ देखो (1) चारों गनिगों में हरेक में को० नं. १६ में १२ को०नं०१६से : (१) नरक-मनुष्य-देवगति को० न०१६-१८- कोनं १६-१८ ६ का भंग - देखो १९ देखो : म हरेक में १६ देखो कोन०१६ मे १६ देखो | 2 का भंन ' को० नं०१६-१८-१६ | देखो Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८६ क्षयोपशम सम्यक्त्व में १० : (२) तिर्यच गति में १ भंग । १ भंग । भोग भूमि में कानं०१७ देखी जोनं १७ देखो ३ का भंग को० नं. ७ देला नन्धि १६ का भंग भी। ४प्रारा १ मंग १ भंग को० नं०१ देखो । चारों गतियों में हरेक में कौर नं. १६ से १९कोल्नं०१६ से ११) नरक-मनुष्य-देवगति को नं. -१८. को००१६-१८ १०का भंग । देखो १६ देखो | में हरेक में १६ देखो | १६ देखो को न- १६ मे १६ देखा । ७ का मंग को० नं० १६-१८-१६ देखो (२) तिर्यच गति में ! भोग भुमि में का नं०१७ देखो को२०१७ देखो ७ का भंग को.नं. १७ देखा । ५गना १ मंग । १ भंग ४ | १ भंग १ भंग को नं. १ देवी (१) नरक देव-गति में हरेक म को नं०१६-१९ कोनं०१६- । (१) नरक-दंवगति में कोनं०१६-१६ को ०१६४ का भंग | १६ देखो हरेक में देखो । १६ देखो को०म०१६-१७ देखो ४ का भंग : (२) तिर्यच गति में को० नं०१६-१६ देखो ४.४ के मंग को० नं०१७ देखो को२०१७ देखो (२) निर्यच गति में १ भंग १ भंग को नं०१७ देना भोग भूमि में को० न० १७ देखो कोनं० १७ देखो । (३) मतृप्य मनि में 1 १ भंग १ भंग ४ का भंग 3-2-४के भंग को नं०१८ देखो कोन०१८ देखो को नं. १७६सो मो. नं०६८ देखो (३) मनुष्य गनि ने भंग । मंग वो० न०१८ देखो सोनं०१८ देखो को० नं०१८ देखो ६ गति १ गति ! यति कोनं०१ देखो चारों गति जानना चारों गति जानना गति गति Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८६ क्षयोपशम सम्यक्त्व में --- ---- -- ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति | चारों गतियों में हरेक में ! (१) नरक-मनुष्य-देवयति चो० न०१६-१८- कोनं०१६-१८१पंचन्द्रिय जाति जानना । में हरेक में १९ देखो | १६ देखो को० नं. १६ से १६ देवो। १ पंचेन्द्रिय जानि जानना को० न०१६-१५-१६ देतो (२) तियेच गनिमें भोग भू. में को०१७दमी कोनं०१७ देवो ! १ पंचेन्द्रिय जाति | को.न. १७ देखा ८ काय उसकाय | (१) चारों गतियों में हरेक में पर्याप्तत जानना १ त्रसकाय जानना को १६ से १६ देखी योग १ भंग योग १ मंगयोम को००२६ देखो। यौमिथकाययोग है। पौल मिश्रकाययोग १, | २० मिनकाययोग १, चं. मिश्रकाययोग १. । बा. मिथकापयोग १, प्राक मिश्रकाययोग, कारिण काययोग ? कामणि का-योग ये ४ पटाकर (११) [ ये ४ योग जानना .. (१) नरक दव-गति में को० नं०१६-१६ कोनं० १६-१६ (१) नरक-देवगत्ति में को० नं०१५-१६ को००१६-16 हरेक में | देखो ९ का भंग ।१-२ के भंग को० नं०१६-१६ देखो को० नं०१६-१६ देखो (२) तिर्यच गति में १ मंग योग (भतिच मति में भंग १ योग E-6 के मंग को नं १७ देखो को२०१७ देखो भोग भूमि में कोन १७ देखो को नं०१५ को को.नं.१७ देखो (३) मनुष्य गति में । मारे मंग१ योग को नं. १७ देखो १-६-६-६ मंग को नं० १८ देखो कोनं०१८ देखो। को० नं. १८ देखो । देवो Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दौनीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० क्षयोपशम सम्यक्त्व में (२) मनुष्य गति में सारे मंग - १ भंग ! १-२-१-१-२ के मंगको००१८ देखो' कोन०१८ | कोन०१८ देखो। १० वेद को. नं०१ देखो कोनं०१६ देखो को २०१६ 18) नरक गति में १ नसक देद जानना ___ को.नं.१६ देखो (१)तियंच पनि में ३-२ के भग को नं०१७ देखो | (6) मनुष्य गति में ३-३-३-१-३-२ के भंग को० नं०१८ देखो (४) देवगति में २-३-1 के भंग को० नं० देखो को० नं. १६ देखो को नं०१६ | स्त्री-वेद घटाकर (२) देखो (१) नरक गति में नपुंसक वेद जानना १वेद : को० न०१६ देखो | को.नं. १७ देखो कोन.१७ (२) तिर्यंच गति में देखो पुरुष वेद जानना । सारे भंग १ वेद को०० १७ देखो कोनं. १५ देखो को.नं. १८ । (३) मनुष्य गति में देखो १.११ के भंग सारे भंग १वेद कोने०१८ देखो को नं०१६ देखो को नं. १९ ।४। देवगति में देखी 1.1 के भंग को. नं.१६ देखो को० न०१७ देखो को.नं. १७ देखो मारे भंग को न १ देखो' को न०१८ | सारं भंग कोः नं. १६ देखी ! देखो सूचना:-पेच ६४० नं० पर अनन्तानुबंधी कपाय ४ घटाकर (२१) सारे भंग i मारे भंग १ भंग (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो को.नं.१६ ! स्त्री वेद पटाका (0) १६ का भंग । देखो १) नरक गति में को० नं०१६ देखो को.नं.१६ को० नं०१६ देखो ११ का भंग-को० नं. दमो (२) तिर्यच गति में सारे भंग १ मग १५ देखो २१-१७-२० के भंग को.नं. १७ देखो को नं०१७ (२) तिर्यच गति में सारे भंग । १ भंग को० नं०१७ देखो देखो | भोगभूमि में १६ का भंग- को० नं० १७ देखो| को० नं०१७ (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ मंग | को.नं. १७ देखो २१-१७-१३-११-१३-२० को नं.१५देखो को.नं. १८ ) मनुष्य गति में | सारे मंग । १ मंग के मंग--को० २०:५ देखो । १३-११-१६ के मंग को० नं.१५ देतो को० नं. १८ देखो को० नं. १८ देखो NE Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पताल स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८६ क्षयोपशम सम्यक्त्व में बज जान पटाकर (३) | (.) देवगति में ! सारे भंग १ भंग (1) देवगति में सारे ग १ भंग २३-१६-१६ के भंग को नं०१६ देखो कोन. १६ देखो १६-१९-११ केभंगको० नं०६ दत्रा कोनं.१६ देखो को.नं०१६ देखो को नं० १६ देखो सारे भंग १शान । सई भंग । १शान (१) नरक पनि में को नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो मनः पय ज्ञान पटाकर ३ का मंग । को० नं०१६ देखो (१) नरक गति में को ना देखो कोनं १६ देखो (B) नियंच गति में भंग १ज्ञान का भंग । २-३ के भंग को० नं०१७ देखो कोनं० १७ देखों को नं. १६ देशो को ०७ देतो . (२) निर्यच गति में । १ भंग १ ज्ञान 18) मनुष्य गति में : मारे भंग | १ज्ञान ! भोग भूमि में कारनं. १७ दग्दो कोनं० १७ देवो को० नं। १८ देखो कोन०१८ देखो का भंग को.नं. १५ देखो को० न०१७ देखो (४) देवगति में . सारे भंग जान (३) मनुष्य मनि में ' मारे भंग १जान ३ के भंग को नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो - के मंग नांनं. १८ येवो कोनं १८ देखो की.नं० १६ दला | को. नं. १८ देखो। (४) देवगति में मारे भंग | ज्ञान '-३ के भंग नं. १६ देखो को नं. १६ देखो को० . १६ देखो १ संयम (१) नरक-देवगति में को० नं. १६- कोनं०१६-18 संयमानंयम घटाकर () । हरेक में | १६ देखो देखो नाक-देवगति में कोन १६-१ को नं०१६१ प्रमयम जानना हरेक में देखो १६ देखो को.नं.१६-१६ देखो १ असंयम जानना (२) तिर्वच गति में १ भन १मयम की नं०१६-१६ देखो। १-१-१ के भंग को०१७ देतो कोनं०१७ देखो (२)निर्वच गति में १ मंग १ भंग कोनं०१७ देखो | भोग भूमि में को.नं. १७ देखो कोन०१७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग १गंयम १ असंयम जानना १-१-३-२-३-1 के भंग । कोनं० १८ देखो कोने १८ देखो, को.नं. १७ देखो को.नं. १८ देखो १३ संयम सूक्ष्म सांपराय', यथास्यात १ये २ घटाकर (५) Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ६ क्षयोपशम सम्यक्त्व में U १४ दर्शन केवल दर्शन पार (३) मान्य गति में राउरे भंग संयम १... के भंग को नं. १८ देखो । को० नं०१८ को० नं०१८ देखो | भंग १दर्शन । १ दर्शन रक पनि मो .नं. १६ देखो को० नं०१६ (१) नरक गति में को० न०१६ देखो | को नं०१६ ६ का मंग-की नं०१६ । देखो का मंग-को० नं १६. | देखो देखो 12 यिन गति में भंग १ दर्शन (२fवत्र गति में १ भग १ दर्शन ६-३ के भंग-को नं० को० नं. १७ देखो को० नं. ७ भागभूमि में-१ का मंग- 'को.नं. १७ देखो ' को० नं०१७ देखो को० नं०१७ देखो देत्रो (३। मनुष्य गति में गारे भंग १ दर्जन ३) मनुष्य गति में | सारे भंग | १ दर्शन ३-३--2 के भंग को नं०१८ देखो कोन.१८ | ३-६-३ के मंग को नं - देखो | को नं.१% को नं. १ देखो देखो को० नं-१८ देवो (४) देवगति में १वन (४) देवानि में १ दर्शन ३ का मंग-को० नं १९ को नं०१६ देखो को नं.१९३-३ के भंग को नं. १६ देखो ! को नं०१६ देनो को नं० १६ देखो १ भंग श्या नरक मति में को० नं०१६ (१) नरक गति में कौन लां नो० नं०१६ का ममको १६ ३ का भग-को नं०१६दी १५ लेश्या को.नं.१देखो देखो (२ निर्यच गम ६-३- भंग एन. देखो (३) मनग्य गति में ६-..के भंग फो.नं.१- देशी (6) देवमति में १-2-१-१ के भग को न०१६ देखो भं ग १ लेश्या नियंच गनि में भंग १लेश्या को० नं. १७ भोग भूमि में-३ का भंग गोल नं. १७ देशो को००१७ | कोः नं०१७ देखो सारे भंग १ लेश्या । (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ लेश्या को० नं०१८ देखो को नं०१८ ३-३-3 के भंग को न०१८ देखो | को० नं०१८ को० नं०१८देखो लेण्या । (४) देवगति में भंग १लेश्या को नं०१६ देखो को. नं.१६ -१-१-मंग को नं. १६ देखो को न १६ देखो की.नं. १६ देखो Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ८९ क्षयोपशम सम्यत्रत्व में १६ भव्यत्व चारों गतियों में हरेक में पर्याप्तवत् जानना । १ मत्य जानना को.नं-१६ मे १६ देखो १७ सम्यक्त्व छयोपशम सम्व रद । चारों गतियों में हरेक में । पर्याप्तवत् जानना १क्षयोपशम जानना १८ संशी चारों गतियों में हरेक में पर्याप्नवत जानना १ संशी जानना को० न०१६ से १६ देखो १६ आहारक आहारक, प्रनाहारक । (१) नरक-देवगति में कोनं. १६१६ | कोनं०१६-(१) नरक-देवगति में को० नं०१६- को००१६हरेक में है देखो । हरेक में १६ देखो १८ देखो १ प्रहारक जानना -1 के भंग को.नं०१६-१६ देखो कोनं०१६-१६ देखो (२) तिर्यच मति में (२) तिर्यच गति में । १-१- के भंग कोल्नं०१७ देखो कोन्नं०१७ देखो मोग भूमि में को नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो को० नं०१७ देखो १-१के भंग (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ अवस्था । को नं० १७ देखो । १-१ के भंग को नं.१८ देखो कोन०१६ देखो (३) मनुष्य गनि में । मारे भंग । १ अवस्था कोनं १८ देखो १-१-१-१-१ के भंग को० नं. १८ देखो कोनं०१५ देखो को० नं. १८ देखो २. उपयोग १ मंग ! १ उपयोग १ उपयोग ज्ञानोपयोग ४, रक गति में को० नं० १६ देखो कीनं। १६ खो| मनः पर्षय ज्ञान घटाकर दर्शनोपयोग ३, का भंग ये ७ जानना कोनं०१६ देखो | (१) नरक गति में कोनं० १६ देखो कोन०१६ देने | (२) नियंच मति में १ भंग । १ उपयोग का भंग ६-६ के मंग को० नं० १७ देखी कोनं० १७ देखो को नं० १६ देखो Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० ८६ क्षयोपशम सम्यक्त्व में देखो को न० देखो (२)तिर्यच गति में १ भंग १उपयोग (३) मनुप्य गति में मारे अंग उपयोग भोगभूमि में-६ का भंग को० नं०१७ देखो | को० नं०१७ भोगभूमि में --६-५-६ के भंग की नं०१८ देखो को० न०१८ | को.नं० १७ देखो देखो को० न०१८ देखो देखो (३) मनग्य गति में ! सारे भंग १ उपयोग (४) देवगति में १ भंग १उपयोग ६-६-६ के भंग को नं.१८ देखो को नं०१८ ६ का भंग--कोनं०१६ को० नं०१९ देखो को. नं०१६ | कोन०१८ देखो देखो दसो (४) देवगति में भंग १ उपयोग ६-६ के भंग-कोने० को० नं०१६ देखो को न.१९ १४ देखो देखो २१ ध्यान १२ सारे मंगध्यान १२ सारे मंग ध्यान पार्तध्यान ४, रौद्र- (१) नरक-देवगति में को० नं. १६-१६ को नं०१६-११ (1) नरक देवमति में कोन १६-१६ को००१६-१६ ध्यान ४, धर्मध्यान ४] हरेक में : देखो देखो ह का भंग-को० नं. देखो देखो ये (२) ध्यान १० का भंग-को० नं० १६-१६ देखो जानना १६.१६ देखो (२) तिर्यच गति में १ भग १ ध्यान (२) नियंत्र पति में मोगभूमि में-१ का मंग को नं०१७ देखो को २०१७ १०-११-१० के भंग को नं.१७ देखो को.नं. १७ को० नं १७ देखो देखो को नं०१७ देखो । देखो (३) मनुष्य गति में सारे मंग ध्यान (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ध्यान 8-9.६ भंग को न०१८ देखा को.नं.१८ १०-११-१-४-१० के भंग को. नं०१८ देखो को नं०१३ को नं० १८ दशो देखो का नं. १८ देखो देखो २२ मानव सारे भंग । सारे भंग मिथ्यात्व ५, ग्रो. मिश्रकाय मोम १, । | मनोयोग ४, वचनयम ४ मनन्तानुबंधी कपाव है. मिथनाय योग, औ० काय योग ४, ये घटाकर प्रा. मिथकाय योग १ काय योग, कार्माणकाय योग गात काययोम १ । य४ घटाकर (४४) स्त्री वेद १, ये १२ (१) नरक गति में सारे अंग भंग । घटाकर :३६) ४. का मंग-को० नं. को नं०१६ देखो की नं०१६ (१) नरक गति में सारे भंग सारे भंग । १ भंग १३ वेखो देखो ३३ का भंग-को० नं को० न०१६ देखो : को० नं०१६ १६ देखो _ देखो ४ ३ Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चीतोस स्थान दर्शन २३ भाव २ 29 वेदक सभ्यत्व १, ज्ञान ४, दर्शन ३, लब्धि ५ संयमासंयम १. सराम संयम १, गति ४, कम ४, लिंग 9, वेश्या ६, संयम १, अज्ञान १, प्रसिद्धत्व १, जीवत्व १. भव्वर १, ये ३७ भ व जानना ३ (२) तिर्यच गति में ४२-३७-४१ के भंग [को० नं० १७ देखो (:) मनुष्य गति में ४२-०७-२२-१०-२२-४१ के भंग नं० १-देखो (४) देवगति में ४१-४:४० के भंग को० नं० १६ देखो ية (१) नरक गति में २६ का भंग को नं० के २८ के भंग में मे उपनाम धाविक ये२ व घटाकर २६ भंग जानना २६ वा भंग को० नं० १६ के २७ के भंग में से ? उपशम सम्यक्त्व घटाकर २० का भंग जानना (२) तिच गति से ( ६३८ ) कोष्टक नं०८६ सारे भंग को० नं० १७ देवा सारे भंग को० नं० १८ देखी (३) मनुष्य गति में सारे भग 'को० नं० १६ देखो 1 सारं भंग को० नं० १६ देखी ३१-२८-२० के भंग को० नं०१७ के ३२-२६ - २२ हरेक भंग में में उप सम्यक्त्व घटाकर ३१-२०२८ के भंग जानना सारे मंग कीनं० १७ देख (२) निर्यच गति में भोग भूमि में ३३ का भंग को०१७ देख (३) मनुष्य गति में ३३-३२-३३ के भंग को. नं० १८ देखो १ मं (४) देवगति में कोनं० १६ देखो ३३३३३३ भंग को नं. १६ देखी | ३४ १ भंग को० नं० १७ देखो १ मंग को० नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १६ देखो सारे मंग ३१-२६-२६ के भंग को० को० नं० १८ देखो को नं० १० के ३३-३०-३१ (१) तरक गति में २६ का भंग की नं० १६ के २१ के भंग में से आर्थिक सम्यक्त्व पटाकर २६ का भंग जानना (२) तिच गति में १ भंग भोग निको पा कोनं १७देखो २४ का मंग को० नं० Ficas १७ के २५ के रंग मे शायिक सम्यक्त्व १ ! टावर २४ का भंग कान (३) गति मे देखो २६-२६-२४ के मंग | को० नं० १५ के २० मनः पर्यय ज्ञान २, संयम संयम १, स्त्रीनंद ये ३ घटकर (३४) १ मंग प्रथमोशन सम्यवत्त्र में I सारे भंग ० नं० १७ देवों मारे भंग १० नं० १८ देखो सारे मंग को० न० १९ देखी 1 गारे भंन मारे मंग ०१६ P मंग को० नं० १७ देखो १ मंग को०न० १८ देखी १ मंग को० नं० १६ देखो १ मंग १ मंग को ०नं १६ देखो ना भंग १ भंग [को० नं० १७ देखो कां०मं० १७ देख मारे ग १ भंग ०१ देवी को०१८ Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६९ क्षयोपशम सम्यक्त्व में ।। २ । के हरेक भंग में में उपशम-' . २७-२५ के हरेक मंग धायिक २ सम्यक्त्व घटा-' | में से १ क्षायिक सम्यक्त्व कर ३२-२८-२९. भग पटाकर -२६-२४ के जानना भन जानता २६ का भंग कोन०१८ (४) देवगन में सारे भंग | १ भंग के २७ के भय में में १ । २६-२४-२४ के भंगको० नं० १६ देखो कोनं०१९ देखो भाबिक सम्यक्त्व घटाकर । को० नं० १९ के२६ वा भंग जानना २६.-२६ के हरेक २६-२७ के मंग को नं० । मंन में से उपशम और १८ के ३१(७वें गूण के)। क्षायिक ये २ सम्यक्त्व और भीग भूमि के २६ के पटाकर २६-२४-२४ के भंग में से उपचम-क्षायिक भंग जानना ये२ सम्यक्त्व घटाकर २६-२७ के भग जानना (४) देवयति में सारे भंग भंग २५ का भंग को० नं. १ का - नं. १६ देखो कोनं. १६ देतो, के २६ के भंग में में १ उपनाम-सम्यक्त्व घटाकर २५ का भग जानना २७-२४ के भंग को० नं. के २६-२६ के हरेक ! भंग मे म पवम-क्षायिक दे २ नम्यक्त्व घटाकर २७-२४ के मंग जानना २४ का भंग को० नं० १६ के २५ कं भंग में से १ | सायिक सम्पद घटाकर २१ का भंग जानना Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूचना-अपर्याप्त अवस्था में वेदक सम्यक्त्व सहिन मरने वाला जीव निपम से कल्पवासो देन ही बनता है। पान्नु अपति अवस्था में मनुष्य और निर्षच गति का उदय उन्हीं जीवों में हो सकता कि जिन्होंने देदक सभ्यक्त्व प्राप्त करने से पहले मनुष्य पा! गा तिर्यच पाबु बन्ध रखी हो, मो नियम में भोप भूमे के मनुष्य या तिन ही बनते है (दको गोकप) मममाहना-कोन.१६ से १६ देखो। चष प्रकृतिया-७७-६७-६-५६ को ० ४ मे के गगान जानना । वय प्रकृतियां-१०४-०७-१-७६ । स्य प्रकृतियां- १४०-१४७-१४६-१४६ ॥ सख्या-अमख्यात जामना । मैत्र--सोक का असंख्यातवां भाग जानना। स्पशन-लोक का अमस्यातवां भाग ८ राजु, को० नं. २६ के समान जाना । काल-मामा जीवीं की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा मन्तमहन से ६९ सागर बाल ना निरागार मेदक मम्यक्त्व ६ फलाई: अन्तर-नाना जीवों को पोक्षा कोई अन्तर नहीं एक श्रीव की अपेक्षा अन्तम हुनं में देशोन् यदान परावर्तन काल त। योशम सम्पवरव म हो सके। भाति (योनि)-२६ लाख मौनि जानना । (को० न० २६ देखो) कुल-१०८।। लाम्ब कोटिकल जानना । Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धोतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य लाप १ गुप स्थान ११ ४ से १४ तक के गु० २ जीव समास संक्षी ५० वर्षात अप० ३ पर्याप्त को० नं० १ देवो पर्याप्त नाना जीवों के घपेक्षा सुफला देश नं ६२ देखो ११. था 8 ४या (१) नरक गति में (२) गति में भोगभूमि में (३) मनुष्य गति में ४ भांगभूमि में ४चा (४) देवगति में ४था १४ १ पर्याप्त अवस्था चारों ग ब में हरेक में १ ती पंचेन्द्रिय पर्याप्त ' ६४१ । कोष्टक नं० ६० एक जीव के नाना एक जीव के एक । समय में समय में + मारे गुग्गा स्थान ● गुरा० अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान के सारे गुण स्थान सारे के गुला | में से कोई गुरंग स्थान जानना जान १ समास १ समास ! को० नं. १६ से १६ को० नं० १६ ईश्री १९ देखी | जानना को० नं० ६ १ देखी १ मंग चारों गतियों में हरेक में की नं० १६ से ६ का मंग-को० नं० १६ | देखो से १६ देखी | २६ १ भंग को० नं० १६ मे १६ देखो अपर्याप्त नाना जीवों की प्रपेक्षा ६ F क्षायिक सम्यक्त्व में १ जीव के नाना | १ जीव के एक समय में समय में भीम की प्रपेक्षा ३ का मंग-को० नं० | १६-१०-१६-१७ देखो 9 ३ था ( २ ) नरक गति में (२) तिच गति में मोभूमि में ४या (३) मनुष्य गति में ४-६-१३ ४था भोगभूमि में (४) देवगति में ४ था १ समास १ अपर्याप्त अवस्था (१) नरक- मनुष्य- देवगति को० नं० १६-१८ में और तिथेच गति में १६ र १७ देखो भोभूमि की अपेक्षा १ मंजी पं जानना को नं १६-१८-१३ और १७ देखो अपर्याप्त ३ सारे गुना अपने अपने स्थान के सारे पु स्थान जानता १ मंग (१) नरक मनुष्य-देवगति को० नं० १६-१६ में और नियंच गति में १६-१७ देखो ८ १ गु० अपने अपने स्थान के सारे मुख० में से कोई १ १० जानना गुण ० १ समास को० नं० २६१५-१६ और १७ देवो १ भंग को० नं० १६१५-१६-१७ देखी Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६० क्षायिक सम्यक्त्व में - - - - - - -- -.-.- - - --- --- - ननिच रूप ६का भग . को नः । देखा (1) नरक-देवगति में हरेक में ' को नं. १६-१६ । को नं १६- (१) नरक-दे गति में को०1०१३-११ को. मं०१६ १० का भग-को० नंक देखो देवी हरेक में देखा. .१६ देखो १५-१६ देखो ७ का भंग का नं. (0) तियं च मति में भंग १ भंग १८-१९ देखो १० का भंग को० नं०१७ देखो | को. २०१७ (२) पिच गति में भंग भंग को.नं. १७ देखो भोगभूमि में-७ का भंग | को० नं.१७ देखो को नं.१७ । (३) मनुष्य गति में i सारे मंग १ मंग न. १७ देखो . १०.४-१-१० के भंग को न०१८ देखो को नं०१५ (३) गनुष्य गति में । सारं भंग । १ मंग | को० नं. १८ देसो ७-२-३ के के भंग को० नं०१८ देखो' को न०१८ कोनं १८ दया ५ संज्ञा १ भग १ भंग भंग को० नं १ देखो . (१) नरकन्देवगति में हरेक में को० नं० १६-१३ । को० नं. १६. (१) नरक-देवमति में . को नं. १६-१६ 'को० नं. १६ ४ का मंग- जोन०१६- देखो । हरेक में-४ का भंग देखो १६ दखो १६ देखो । को० नं. १६-१६ देखो। () निबंच गति में १. मंग १ भंग (२) तिर्यच गति में । १ भंग । १ भंग ४ के भंग- कोन. को. नं०१७ देखो | को० नं. १७ भोगभूमि में-४ का मंत्र को नं०१७ देखो को० नं. १७ १७ देतो देखो | को० न०१७ देखो | (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ भंग (३) मनुष्य मनि में १ भंग १ भग ४-३-२-१-१-०-के भंग को० नं०१५ दखो | को० नं०१८ | ४-०-४ के भंग को० नं.१ देखो को० न०१८ को० न०१८ देखो देना को० नं०१५ देखो गति १गति । १गति गति १मति को देखो । दारों मति जानना । चारों गति जानना ७ इन्द्रिय जाति । संनी पं. जाति चारों गतियों में हरेक में | पर्याप्तवत् बानना १ संज्ञो पंचेन्द्रिय जाति । को० नं० १६ से १६ देखो! १ Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन काय ९ योग -२ १० वेद ननकाय १५. को० नं०६ देखो को० नं० १ देखो चारों गतियों में १ सकाय जानना को० नं० २६ से १९ देखी ११ श्री० मिश्रकाययोग १, मिश्रकायांग १, प्रा०] मिश्रकायांग १, कार्माण काययोग १ ये ४ घटाकर (११३ | (१) नरक - देवगति में हरेक में ६ का भंग को० नं० १६-१६ देखो | (२) तियंच गति में ६ के मंग को० नं० १७ देखी ! (३) मनुष्य गति में ६-६-६-६ के भंग को० नं० १८ देखो ३ (१) नरक गति मे " नपुंसक वेद जानना को० नं १६ देखी (२) तिर्यच गति में २ के भंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में 2--2---2 7२ के भंग 1 ( ६४३ ) कोष्टक नं० ६० १ मंग १ भंग १० नं० १६-१० देखो को० 1 १ भंग [को० नं० १७ देखो । मारे भंग को० नं० १८ देखो १ योग ! श्री० मिथकाययोग १, ० मिश्रकाययोग १, मिथकाययोग १, कार्मारण काययोग १ मे ४ योग जानना (१) नरक- देवगति में हरेक में १-२ के मंग को० नं २६-१६ देखो (२) तिच गति में भोग भूमि में १-२ के संग को० नं० १७ देखो (2) मनुष्य गति में १-२-१-२-१-१-२ के मंग को० नं० १८ देखो २ पुरुष नपुंसक वेद १ योप को नं० १६-१६ देखो १ योग को० नं० १७ देखो : १ योग को०न० १८ देखो १ पर्याप्तवन जानना १ को० नं० १६ देखों को० नं० १६ देखो (१) नरक मत्ति में १ नपुंसक वेद जानना को० नं० १६ देखो १ वेद १ मंग नो० नं०] १७ देखी को० नं० १७ देखो 1 1 सारे भंग १ वेद [को० नं० १८ देखी को० नं० १८ (२) तिर्यंच गति में भोग भूमि में १ पुन्य वेद जानना को० नं० १७ देखी क्षायिक सम्यक्त्व में ७ १ मंग १ मंग १ योग को० नं० १६-१९ को० नं० १६-१९ देखो देखो १ मंग १ योग ! D नं० १७ देखो 'को०नं १७ देखो 1 सारे मंग को० नं० १८ देखो १ योग 1 १ भंग [को० नं० १७ देखो ! १ योग को० नं० १८ देखो १ | को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो १ वेद को० नं० १७ देखी Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६० धायिक सम्यक्त्व में ११पाय ननन्तानवी कप ४ घटाकर। ) - - -- हो. नं.: देखो १६। पप गनिमें यह भद बंद ( गति में म. भंग .....१२ भंग कार नः १८ दजो को न०१८ २-१.१ भंग को न ली : को नं १६ कर० नं को रंगो को.न. ११ दना ४: देवन में सार भग १ बंद ११ केभाको नः कार: खो का न. १९ देखा मःो भंग भंग नाभग १भंग (1) नरज गनि में को । १६ देवा को न श्रीवंद पामर (0) १६ का मंग-मो० नं. (2) नरक गाँन में को न १६ दग्गों का १६ १६ दखो १६ का भंग-की (२) नियंत्र गति में मारे भंग ? अंग १६ दवा २. के भंग-को० नं. को० नं०१७ देखो | का० न०१७ ( तिच गति में मारे भंग भंग देखो भगभूम में- का भग को न १६ दाखो ना नं. १३ (३) मनुष्य गति में मारे भंग । | भंग का नदी ! 31-१३-१२-११-१२-5-६. को न०१ दलो को न. 1 मनाप्य गति में गाभग १ भंग दमों १६. १.०-के भग 40१८ दमों को नं. १८ भग-का० न०१८ देना को नं १८ श्रा (४) देवाति में सारे भग . भंग 14) देवगनि में मारे भग म न २०.१६-१२ केभंग को नं०११ देखो वो नं०१६ १३-१४-१५ के भंग को दो को नं०१३ को.नं१६ देखो कोल न.१६ खी मारे भगान मारे भाट (१) नरक गनि में को नं. १६ देखो को० नंक १६ पनः पर्यव जान घटाकर ३ का भंग-कोः २०१६ दसा नरक गनिमकीन ना ना न.१५ (२) वियच गति में १ भंग ज्ञान ३ का अंग-को० न०! ३ का भंग-कोन.१७ को.नं.१७ देखो को नं० १०.१६ दंलो। देखो दवा (२) नियंच गति में १ भंग ज्ञान 11) मनुष्य गति में सारे भंग १ज्ञानांगभूमि में कानदेवो को० नं०१७ 1-6-1.४-१ के भंग को० म०१८ देखो' को नं०1८ ३ का भंग देखो देखो १२ जान ज्ञान ३ टाका देखो . . Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोप्टक न०६० भाषिक सम्यक्त्व में को मं०१८ देखो | (४) देवमति में ३ का भंग को० नं०१९ देखो सारे भंग १ज्ञान को० नं० १८ देखो को-नं.१८ देखो । कोल नं १० देखो सारे भंग १ज्ञान (३) मनुप्य गति में। को. नं.१६ देखो कोनं०१९ देखो ३-३-१-३ के भं । को नं०१८ देखो | (४) देवगति में | ३-३ के मंग को० नं० १६ देखो । मारे भंग१ज्ञान को.नं. १६ देखो को.नं.१३ देसो G १३ संयम को० नं० २६ देखा । (१ नरक-देवगति में में हरेक में १ प्रसंयम जानना की नं०१६-१६ देखो (२) तिर्यच गति में १ का मंग को० नं. १७ देखो (3) मनुष्य गति में १-१-३-२-३-२-१-१-१ के भग को नं। १५ देखो को नं०१६-१६ को नं. १६-१६ संयमासंयम, सूक्ष्म सापदेखो देखो राय ये २ घटाकर (६) ( नरक-देवगति में 'को नं. १६-१६ कोनं०१६-१७ हरेक में देखो । देखो १ भंग १संयम १ असंयम जानना को नं०१७ देखो 'कोनं०१७ देखो | कोनं०१६-१६ देखो । (२) तिर्यंच गति में १ भंग । १ संयम । सारे मंग संयम भोग भूमि में को.नं. १७ देखो 'को.नं. १७ देखो को० नं०१५ देखो कोनं०१८ देसो १ असंयम जानना को.नं. १७ देखो (1) मनुष्य गति में सारे मंग । संयम । १-२-१-१के मंग को नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो | को० नं. १८ देस्रो १ भंग १ दर्शन १ मंन १ दर्शन को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देसो (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो को१६ देखो ३ का भंग को.नं.१६ देखो । | भंग १दन (२, तिथंच गति में भंग १ दर्शन को०१७ देखो कोनं०१७ देसो भोग भूमि में को.नं. १७ देखो को नं.१७देखो ३ का भग को० नं०१७ देखो १४ दर्शन को० न०१८ देखो। (१) नरक गति में ३ का भंग को.नं.१६देसी (२) तिर्यच गति में का भंग को० नं०१७ देखो Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीम स्थान दशन कोष्टक नं०१० सायिक सम्यक्त्व में (३) मनुष्य गति में :-३-३-१-३ के भंग को० नं०१८ देखो (४) देवगति में ३ का भंग को० नं. १६ देखो १५ लेच्या का० न० १दन । (१) नरक मति में ३ का भंग को नं०१६ देखो (२) नियंच गति में भोग भूमि की अपेक्षा ३ क भंग को नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में ६-३-१-०-३ के भंग को० नं०१८ देखा (४) देवगति में ३-१-१ के भंग को० नं०१६ देखो । सारे भंग १ दर्शन (३) मनुप्य गति में | सारे मंग सदनि की नं०१५ देखो कोनं१८ देखो, ३-1-1-३ के भंग पो.न.१८ देलो कोनं०१८ देखो । को नं०१८ देखो । १ भंग १ दर्शन । (४) देवति में १ भंग १ दर्शन 'को न०१५ देखो को नं. १६ देखो ३-३ के भंग कोल्न १६ देखो कोनं० १६ देखो को० नं १६ देखो १ मंगलेश्या । { भंग १ लेश्या का० नं. १६ देखो को.नं. १६ देखो' कृष्णा-नील ये २ लेक्ष्या | घटाकर (४) जानना (१) नरक गति में। कोनं. १६ देखो कोनं १६ दखो १ भंग १ लेश्या ।। का भंग को नं०१७ देखो को नं० १७ देखो कोर नं. १५ देखो (२ नियंच गति में १ मंगलेश्या | भोग अनि में को न १७ देखो को.नं. १७ देखो | सारे भंग १ नेक्ष्या १ का भंग को नं० १८ देवो कोनं १८ देखो को नं. १० देखो (३) मनप्य गति में सारे भंग १ लेश्या १भंग लेश्या ।६-६-१-१ के भंग को नं. १८ देखो को२०१८ देखो को.नं. १६ देखो कोग्न १६ देखो को नं. १ देखो (४) देवगति में १ भंग । १ लेया ३-१-१ के मंग को नं०१६ देखो को०नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो १६ भव्यत्व भव्यत्व चारों गलियों में हरेक में बीनं०१६ से १६ को.नं.१६ से। चारों गतियों में हरेक में कोन०१६ से १६ कोनं १६ मे १ भव्यत्व जानना । देखो देखो १ व्यत्व जानना देखो - १९ देखो को० नं १६ से १६ देखो। को० नं. १ मे १६ देखो १७ सम्यक्त्व क्षायिक सम्यक्त्र । चारों गनियों में हरेक में । १क्षाषिक सम्यक्त्व जानना पर्याप्तवत् जानना Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ६४७) कोष्टक २०१० चौंतीम शान दर्शन क्षायिक सम्यक्त्व में -- - - - तिर्यच गति भोगभूमि की अपेक्षा जानना १. संझी संज्ञी (१) नरक-तिर्वच देवगति में १ मंझी जानना को० न० १६-१७-१६ वो नं०१६-१७- को० नं०१६-(१) नरक-निर्यच-देवगनि; को नं०१६-१७-को० नं०१६१६ देखो ७-१६ देखो । म हरेक में १६ देखी १७.१६ देखो | १ संजी जानना । को नं १६-७-१६ । । (२) मनुष्य गति में | को० नं०१८ देखो को नं.१८ 1.0- के भंग-कोर को नं०१८ देखो , को. १५ देखो नं०१८ देखो (२) मनुष्य गति में १-०-१ के भग को००१८ देखो १६ पाहारक म.ह. रक, मनाहारक - । सारे भंग (१) नरक-देवगति में | कोल नं०१५-१६ को नं०१६-(१)नरक-देवत में फोत.१६-१६ को० न०१६हरेक में RE देखो | देखो १६ देखो १ माहारक जानना 1१-१ अवस्था को.नं.१६-१६ देखो को० नं0 -६-१९ देखो (२) तिर्यंच गति में (२) तिर्यच गति में १ अवस्था जानना भोगभूमि में को० नं० १७ देखो | को नं.१७ को.नं० १७ देखो १-१ अवस्था जानना । (३) मनुष्य पनि में | सारे भंग १अबस्था को० नं०१७ देखो । १-१-१-१ के भंग को.नं. १८ देखो कोन०१५ (३) मनुष्य गति में सारे भंग | अवस्था को न १८ देवो १-१-१-१-१-१-१ के भंग को. नं०१५ देखो' को नं०१८ को० न०१८ देखो | देखो १ भंग । १उपयोग । उपयोग (१) मरक गति में को० नं. १६ देखो | को० न०१६ । | मानः पर्यय ज्ञान पटाकर - ६ का भंग-को० नं०१६ । देखो ११) नरक गति में को० नं १६ देखो ! को नं. १६ ६ का भंग देखो - - २० उपयोग झानोपयोग ५ दर्शनोपयोग ये (8) जानना देखो Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ चौतीस स्थान दर्शन 1 २ २१ प्यान ३ (२) नियंच गति में ६ के मंग को० नं० १० देखो (३) मनुष्य गति में ९-७-६-७-२-६ के भंग को० नं० १८ देखो (२) देवगति मे ६ का मंग को० नं० १३ देषो १६ १६ को० नं० १८ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में I १० का भंग को० नं० १६-१६ देखो (२) नियंच गति में ( ६४६ ) कोष्टक नं ० ० १ भग को० नं० १० देखो सारे भंग कोनं० १८ देखो १ मंग [को० नं० १६ देखो सारे मंग को० नं० १६-१६ देखो १ उपयोग फो० नं० १७ देखो! १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ उपयोग को नं० १८ देखी | को० नं० १७ देख (३) मनुष्य गति में ६-६-२-६ के मंग को० नं० १० देखो (४) देवगति में ६-६ के भंग को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १६१६ देखो को० नं० १६ देखो (२) तियंच गति में भोग भूमि में ६ का भंग . ६ 1 ܕܙ १. ध्यान भंग को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखी हरेक में १० का भंग ६ का भंग को० नं० १७ देखी (३) मनुष्य गति में ! ध्यान सारे भंग को० नं० १६-१६ देखो १०-११-३-४-१--१--१० को० नं० १८ देखो को नं० १= देखो (२) निर्बंध गति में १-१० के मंग को० नं० १८ देखो भोग भूमि में 6 का भंग को० नं०] १७ देखो (३) मनुष्य गति में ६-७-६ के मंग | को० नं० १८ देखो ! ! क्षारिक सम्यक्त्व में प्रथक्त्व वितर्क विचार १, एकत्व वितर्क अविचार १, परिनिनिन१. ३ घटाकर (१३) (१) नरक-देवगति में 5 १ मंग को० नं० १७ देखी मारे भंग [को० नं० १५ देखो १ मंग को० नं० १६ देखो सारे मंग कोनं ० . ६-१२ देसो १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग ०नं० १८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १६१६ देखो १ भंग १ ज्यान को० न० १७ देवों को० नं० १७ देख सारे भंन १ ध्यान ० नं० १८ देवी | को० नं० १८ दे Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०१० क्षायिक सम्यक्त्व में २२ पासव ४८ ४४ सारे मंग । ! भंग सारे भग१ मंग मिरयात्व ५, और मिथकाययोग है, मनोयो। ४. दचनयोग ४, . मनन्नानूभन्धी कपाय ४ व०मिथकाययोग १, और काययोन १, ये टाकर (4) बा०मिकामयोग १, वै० कारयोग कामांसा काययोग १ मा० काययोग , ये घटाकर (४८) स्त्री बे 11१) नरक गति में मारे अंग भंग 'ये १२ घटाकर २६) ४० का भग को० नं० १६ दखो कोनं १६ देखो (१) नरक गति में मारे भंग १ मंग को नं०१६ देखो | ३३ का भंग कान १६ देखो को२०१६ देखो () तिर्यच गति में | सारं भंग १ भंन को० नं०१ देखो ४१ के भंग को नं १७ देखो को नं. १७ देखो (२) गियर ननि में गार भंग १ भन दोन. १७ देखो भोग । में कोन १७ देखो कोनं०१३ देखो (1) मनुज्य गति में | सारे भंग भंग | ३३ का मंन १२-३५-२२-२०-२-कोन. १८ देखो कोनं०१५ देखो को.२०१७ देखो । सारे मंग भं ग १६-१५-१४-१३-१२- . (३) मनुष्म गति में को नं. १८ देखो को नं०१८ देखो १६-१०-१०-९-५-६ ६३-१२-२-१-३३ के मंग ०-४१ के भंग को० नं०१८ देखो को मं० १८ देखो . (४) देवगति में मारे मंगमंग (४) देवगति में सारे भंग भी ३३-६३-३३ के भंगको००१८ देखो कोनं०१६ देखो ४१-४०-६० के मंग को० नं. १६ देखो को नं. १६ देखो को नं. १६ देखो को गं०१६ देखो | सारे मंगभंग . सारे भंग १ भंग ४५ (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो| मनः पर्मय ज्ञान १, शायिक भाव ६, २६ का भंग मयमासंयम १, स्त्रीवेद जान ४, दर्शन ६. को० १६ के के कृष्णा-नील ये २ लेश्या | नधि ५, संबमाभंग में में उपचम भयोप ये ५ घटाकर (४०) संयम १. गरागशम २ मम्यक्त्व पटाकर (१) नरक गति में सारे भंग १ भंग संयम १, गति, २ का भंग जानना २६ का भंग कोनं.१६ देखो को नं०१६ देखो कषाय ४ लिंग ३, (२) नियंच गनि में | सारे मंग भंग को० नं. १६.के २७ के। लेश्या ६, अमयम १, भोर भूमि में २७ का भंग को.नं. १७ देखो कोनं०१७ देखो मंच में से १ क्षयोपशम । कोनं०१७ के २६ के मंग। । सम्यक्त्व पटाकर २६ Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ६५. ) कोष्टक नं०६० चौद्रोस स्थान दर्शन क्षतिक सम्यक्त्व में , | देसो अज्ञान १, प्रसिद्धत्व १,. में से उपशम-दामोपदाम का भंग जानना भव्यत्व १, जीवत्व'. ये २ सम्यक्त्व घटाकर २७ (२) तिथंच गनि में सारे भंग १ भम ये ४५ जानना का भंग जानना २४ का भग-को न०००१७ देखा को नं०१७ (३) मनुष्य गति में 1. सारे भंग १ भग १ ७ के २५ के भंग में ३१-२८.२६ के भंग- कोको नं. १८ देखो' को.नं.१६ मे १क्षयोपाम सम्बत देखो घटाकर २४ का भंग के हरेक भमें मे उपशम जानना क्षयोपशम ये २ सम्यक्त्व 1३) मनुष्य गति में मारे भंग घटाकर ३१.२८.२६ के २६.२६ के भंग-को को० नं. १८ देवो को० नं०१५ भंग जानना नं. १० के ३०-२७ के देखो २६ का भंग-को, नं. हरेक अंग में से १ १८ के .७ के भग में रो क्षयोपशम सम्यक्त्व पटा१ क्षयोपशम सम्परत्व कर २६-२६ के मंग घटाकर २६ का मंग जानना बानना १४ का अंग-को. नं. २६ के भंग-को० न०१८ १६ के समान जानना के ३१ के मन में से । २४ का भंग-को० नंक, उपशम-क्षयोपवाम २ १८ के २५ के मग में सम्यक्त्व घटाकर २६ का । से १क्षयोपशम सम्यक्त्व मम जानना घटाकर २४ का मंग। २८-२८-२७-२६-२५-२४ जानना २३-२२-२२-२. के भंग को. नं० २६-२६-२८ (४) देवगति में सारे भग १ भंग २७.२६-२५-२४-२३-२३ २६-२४ के मंग-कोनको० नं-१९ देखो को२०११ २१के हरेक भंग में से १६ के २८-२६ के हरेक देखा १ उपवास सम्यक्त्व घटी भंग में से उपशम-क्षयोकर २८-२८-२७-२६-२५ पशम ये २ सम्यमत्व २४-२३-२२-२२-२० के घटाकर २६-२४ के भंग भंग जानना चानना Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०६० क्षायिक सम्यक्त्व में । चौतीस स्थान दर्शन । २ २०.१४-१३ के मंग | २४ का भम-को.नं. को. नं.१% के समान | १६ के २६ के भंग (नद जानना अनुदिश और पंचानुत्तर) २७ का भंग-कोर नं. में में उपगम-क्षयोपशम १८ के २६ के भंग में से ये २ सम्यक्रव पद उपशम-क्षयोपशम ये २ २४ का भंग जानना सम्यक्त्व घटाकर २७ का । जानना देवति में । सारे भंग १ भंग २७-२४ के भंग-को० नं. को न०१६ देखो| को.नं.१६ १६ के २६ २६ के हरेक देखो भंग में से उपशम-क्षयोपशम ये २ सम्यक्त्व पटाकर २७-२४ के मंग जानना २४ का भंग-को० नं० १० के २५ के भंग में से ! १ क्षयोपशम सम्यक्त्व घटाकर २४ का मंग Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ ५६ * ܺ ० #8 ५४ ( ६५२ ) सूचना - आयक संख्य दर्शन में नियच गभग नहीं बन मराठी गोमट नारकर्मका २७ अवगाहना की नं १६ से १६ देखी । प्रकृतियां की। नव प्रकृतियां सदर प्रकृतियां - या यातना । - - rr " --- " क्षेत्र लोक का अगस्यानयां भाग जानना । स्पर्शनीक का प्रख्यातवां भाग जानना । मानव जीनों की अपेक्षा सर्वाल जानना एक जीन की अपेक्षा नागर का नाम जानना । अन्तर नहीं । if (f)-- T 5- ६६ लाख कोटिकूल जानन! (नारको २५ व २६ गनुष्य १८, नियंत्र में नभचर स्वर १० ३१ न कोटि जानन Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य आलाप पर्याप्त ? २ जीव समारा संशी पं० पर्याप्त अपर्याप्त ३ २ सुर स्थान १२ ४ से १२ तक के गुण (१) नरक गति में १४ से (२) नियंत्र वृत्ति में भोग भूमि में (६) मनुष्य गत्ति में भांग भूमि में १ (४) देवगति में कोन १ इ नागा जीव की क्षा İ १ से ४ १ से १२ से ४ १ से ४ १ संत्री पं० पर्याप्त अवस्था चारों गतियों में हरेक में १ संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना को० नं० १६ से १६ देखी ६ चारों गतियों में हरेक में ९ का भग को० नं० १६ से १० देखी ६५३ 2 कोष्टक नं० ११ एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में ५ सारे गुण स्थान १ मुख० अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान खारे गुण स्थान के सारे मंगों में ते कोई १ गुण जानना जानना १ समास १ समास को० नं० १६ से १६ को० नं० १६ से देखो १३ देखी १ मंग ९ मंग क०मं०१६ से १६ को० नं० १६ मे देखो १९ देख नाना जीवों की अपेक्षा ४ (१) नरक गति में १ ले ४ये (२) नियंच गति में १-२ भोग भूमि में $-3-6 (२) मनुष्य गति में १-२-४-६ भोग भूमि में (४) देवगति में १-२-४ । १-२-४ १ संजो पं० पर्या अवस्था चारों दतियों में हरेक में १ संज्ञी पं० अपर्याप्त जानना ! को०नं १६ से १६ देखी १ जीव के नाना रामय में ७ अपर्याप्त ३ चारों गतियों में हरेक में को० ३ का भंग को० नं० १६ से १६ देखो लब्धि रूप ६ का भंग भी होता है। संज्ञी में तारे दु ३ १ गुण० अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान सारे गुग्गु आनना के सारे गुग्० में मे कोई १ गुण० I जानना १ समास को० नं० १६ से १६ देखो एक जीव के एक समय में ! ― १ समास को० नं० १६ से १६ देखो १ मंग ५ भंग नं० १६ मे १६ को० नं० १६ से देखा १६ देखो Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चोतोस स्थान दशन । ६५४ । कोष्टक नं . संज्ञी में ४ प्राण १ मंग . १ भंग १ मंग' । १ भम कोनं०१ देखो चारों गनियों में हरेक में कोनं १६ से १६:कोल्नं०१६ से | चारों गतियों में हरेक में को० नं. १६ में को००१६ मे १० का मंग देखो १९ देखो ।७का मंग १६ देखो | १६ देखो को० नं.१६ से १६ देखो - को नं.१६ से १६ देखो ५ संज्ञा १ घंग १ भंग । १ भंग १ मंग को देखा (१) नरक-तिर्थचन्दवानको नं० १६-१३- कोनं०१६-१७ (नरक-नियंच-देवमति को० न०१६-१७- कोनं०१६-१७. में हरेक में १६ देखो ! १६ देखो में हरक में देखो देखो ४का भंग ४का भंग को० न०१६-१७-१६ | को.नं. १६-१७-१६ देखो (२) मनुष्य गदि में सारे भंग १ भंग (२) मनुष्य गति में . सारे मंग । १ भम ४-३-२-१-१-०-४ के अंग कोनं०१८ देखो कोन०१८ देखो ४-४ के भंग को नं १८ देखो को.नं.१८ देखो कोनं०१८ दसो | को० नं०१८ देखो ६ गति १ गति गति १ गति । १ गति कोः नं १ देखो चारों गति जानना चारों गति जानना ७न्द्रिय जाति । संजी पंचेन्द्रिय जाति । चारों गनियों में हरेक में पर्याप्तवत् जानना १ संजी पचन्द्रिय जाति जानना को.नं. १६ मे १६ देखो ८ काय उसकाय चारों गतियों में हरेक में । पप्निवत् जानना १ प्रसकाय जानना को न०१६ से १६ देखो, ६ योग १ भंग । १ योग को नं०२६ देसो प्रो. मिश्रकाययोघ १, और मिश्रकाययोग १, | 4. मिश्नकाययोग १, 40 मिषकाययोग १, प्रा० मिटवायांग, मा० मिथकाययोग १, कामांरण का योग कार्मारग काययोग १. मे ४ योग घटाकर (११) ये ४ योम जानना -- - १ भंग । योन Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक नं०६१ संज्ञो में चर्चातास स्थान दर्शन १ । २ (2) नरक-देवगति में को. २०१६- कोन०१६-१६ (१) नरक-देवनि में कोन- १६-१६ को नं०१६१६ देखो देखो। हरेक में | देखो । १६ देखो ६ का भग १.२ के मंग को० नं०१६-१९ देखो । को नं०१६-१६ देखा (२) विर्यच गनि मे १ भग १ योग । (२)तिर्यच गति में १ भंग १ योग - के भंग को.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो १-२-१.२ के मंग को० नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो कोनं. १७ देखो को.नं. १७ देखो (३) ममृष्य गति में साना (४) गनुप गति में । सारे भंग योग ह-8--६ मंग को.नं०१८ देखो कोनं-१८ देखो १-३-१-१-२ के भंग को००१८ देखो को०१५ देखो को० नं०१८ देखो को० नं. १८ देखो १०वेद ३ कोनं. १ देखो । (१) नरक गति में | (१) नरक गति में १ नमक वेद जानना १ नपुसक वेद जानना को० न०१६ दलो को० नं०१६ देतो (२) तिर्षच गति में १ भंग १ वेद (२) तिर्वच गति में । भंग वेट ३.२ के भंग को० नं१७देखो को००१७देखो ३-६-२-१ के भंग का० नं. १७देखो कोनंटेलो को० नं०१७ देखो | को.नं. १७ देखो । | (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ वेद । (३) मनुष्य गति में । सारे भंग वेद 1-1-३-१-१-३-२-१-०-को० नं०१८ देखो कोन०१८ देखो ३-१.१.२.१ मंग को० नं० १- देखो कोनो २के मंग | कोनं १५ देखी को नं०१८ देखो (४) देवगति में 5.रे भंग १ वेद i) देवगति में सारे भंग द २१.१के अंग को० न०१६ देखो कोनं१६ देखो । २-१-१ के मंग को० नं०१६ देखो कोन०१६ देखो| कोनं० १८ देखो कोनं.१६ देवो । मारे भंग । मंग : मारे भंग १भन का न.१देखो (१) नरक नति में १६ देसो कोनं०१६देखो (१) नरक गति में को.नं.१६देखो कोनं-१६देखो १६ भंग २-१६ भंग को.नं. १६ देखो कोन०१६ देवी Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ६१ संजी में देषों - --- | (निपन गन में सारे भंग । १ मंन (२)निच गनिमे गार भंग १ मग । २५-२५-२१-१७-२५.२० को० नं०१० दन्यो । कीन०६७ २५-१ -२५-२६ के भंग कोम०१७दयो । मा० न०.७ के भंग-को नं० १७ । देखो | को: नं.१५ देखो देखो । (३) मनुष्य गति में मान भंग १ भंग (३) मनुप्य गनि में । मारे भग । १ भंग । २५-११-११-२४-१ को न दो की नं.१८ २५-६१-१७-१३-११-१३- की नं०१८ देखो। को० नं.१८ भंग-मो. नं.१ षो। दलो । देखो (४) देवादि मारे भंग २४.२० मंग-को ना 26-२४-१९-३-१-१३ , न १६दलो कार नं. १६ १- देखो के भंग-को० नं0 वर्गाम सारे भंग १ मंगदमो २४-२०-२१.११-१६ के को००१९ देखो' को०० | भंग-कोन, १६ देखो १२ जान । सारे भंग केवल ज्ञान परकर (१)नरम गान में को नं.१६ देखो' को न: १६ बधि जान मन: पब ( ३-३ के भंग-को. नं. । । देखो जान २ वटाकर (2)। १) नरक गति में को नं: १६ देयो को नं . | (२ तिर्यच गति य १ मंग । १ जान २-4 के मंग-को. नं० । दलो ३-३-३-३ के भंगको० नं. १७ देखो ' को नं०१७ | १६ देदो मंच मान को १७ देखो देखो ।(२)नि गनि में यो को (३) मनुष्य इति में सारे भग वान । -- के भंग ३-३.४.1-1-३-३के भंग को न०१- देखो, कौर नं०१८ | कोन-१७ इन्वा । कोल०१० देगे . देखा ।.३) मनुष्य जात में न मार भगवान देवगति में सारे मंग ज्ञान । २-३-३२-३ . भंग को न तो को.नं. १ ३-३ के भंग-को नं. को १६ देखो को० नं०१६ कोरन १८ देवा स पो देवो ।१४ दबति में मां भंगना ..-२-३-६-भंग को नं १९ देना को न ? ना. १६देखो सारे . . को नं० २६ दंलो . (१) नरक-वचन में हक में ' यगयम जानना न १६-१८को० नं०१६-मंयम, सागायिक देशो देवो । छेदोषम्मापना परिहार । Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ' चौंतीस स्थान दर्शन २ ३ को० नं० १६ देखो १५ नेया को० नं० १ देखो I ३ को० नं० १६-१६ देखी (२) नियंत्र गति में १-१-१ के भग को० नं० १७ देखी (:) मनुष्य गति में १-१-३-२-३०३-१-१-१ के मंग [को० नं० १. देखो (१) नरक नति में २-३ के भंग को नं० १६ देखो (२) निच मति में २३-३-३-२-३ के मंग को० नं०] १० देखो (३) मनुष्य गति मे २ ३.३ ३० [को० नं० १ (४) में २-३ के मंग के भंग देखी ० नं० १६ देखी € (१) नरक गति के का भंग को० नं० १६ देखो ( ६५७ ) कोष्टक नं० ६१ * १ भंग को० नं०] १७ देखी १ भंग [को० नं० १६ देखो ९ भंग को० नं० १७ देखी सारे भंग १ संयम [को० नं० १८ देखो को० नं० १८ देखो सारे भंग ०२१८ देखी ५ विशुद्धिये ४ जानना (१) नरक-देवनति में हरेक में १ असंयम जानना कोनं १६-१९ देवो (२) तिर्यच गति में | १-१ के भंग को० नं० १७ देखो . (३) मनुष्य गति में १-२-१ के भंग को० नं० १८ देखो ३ | (१) नरक गति में २-३ के मंग को० नं० १६ देखी (२) तियंच गति में २-२-२-३ के भंग को० नं० १० देखो (३) मनुष्य गति में २-३-३-२-३ के मंग ! को० नं० १६ देखो (४) १ मंग ' को० नं० १६ देखो १ संयम को० नं०] १७ देखो १ दर्शन को० नं० १९ देखो १ दर्शन को० नं० १७ देखो । १ दर्शन कोनं० १८ देवो १ भंग ! १ दान को० नं० १६ देखी को नं० १२ देखी १ लेश्या कोनं०] १९ देखी 1 २-२-३-३ के भंग को नं १६ देखो ६ (१) नरक गति में ३ का भंग की COT १६ सो 9 को० नं० १६-१६ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो संज्ञी में I १ भंग को० नं० १० देखो ८ सारे भंग को० नं० १८ दो ००१६१६ देखो सारे भंग १ मंत्रम [को० नं० १० देखो कोन० १८ देवो १ संयम को नं० १७ देखो १ भंग १ दर्शन को० नं० १६ देखो कोनं० १६ देखी १ दर्शन नं० १७ देख १ दर्शन को नं० १ देशो १ भंग | १ दर्शन | को० नं० १९ देखो | को० नं० १२. देखो १ मं २ लेव्या को० नं० १९ देखी को नं० १६ देखो Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १ १६ भव्यत्य भव्य, १७ सम्यक्त्व २ f को० नं० २६ देखो १८ संज्ञी प्रभव्य संज्ञी १ (२) तियंच यति में ६-३-३ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ६-३-१-३ के भंग को० नं० १६ देखो (४) देवगति में १-३-१-१ के मंग को० नं० १६ देखो २ चारों गतियों में हरेक में २-१ के भग-को० नं० १६ से १६ देखी (१) नक गति में १-१-१-३-२ के मंग को० नं० १६ देखो (D) गति में को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में १-१-१-३-३२-३१-१-१-३ के मंग-को० नं० १८ देखो (४) देवगति में १-१-१-२-३-२ के मंग को० नं० १६ देखो ܕ ( ६५८ ) कोष्टक नं० चारों गतियों में हरेक में १ मंजी जानना ४ १ भंग को० नं० १७ देखो १ मंग १-१-१-२-१-१-१-३ के भंग को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १० देखो १ मंग को० नं० १६ देखो सारे मंग [को० नं० १६ देखी १ अवस्था १ मंग को० नं० १६ से को० नं० १६ देखो से १८ देखो सारे मंग को० नं० १० देखो १ लेश्या को० नं० १७ देखो सारे भंग को० नं० १६ देखो १ १ लेश्या को० नं० १८ देखो १ लेश्या को नं० १६ देखो 2 चारों गतियों में हरेक में २-१ के मंगको० न० १६ से १६ देखो | ५ १ सम्यक्त्व मिश्र घटाकर (५) (१) नरक गति में १-२ के मंग-को० नं० १६ देखो को० नं० १७ (२) तिर्यक गति में देखो १-१-१-१-२ के भंग १ सम्यक्त्व को० नं०] १७ देखो को० नं० १८ (३) मनुष्य गति में देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो (२) तिर्यंच गति में ३-१ के भंग-को० नं० १७ देखी | (३) मनुष्य गति में ६-३-१ के भंग [को० नं० १८ देखो (४) देवगति में ३-३-१-१ के भंग को० नं० १६ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो १ १ पर्यासवत जानना १ मंग १ वेश्या क० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखो १ लेश्या को० नं० १० देखो. १ लेश्या को० नं० १६ देलो सारे भंग को० नं० १६ देखो १ मंग [को० नं० ११ देखो संज्ञी में १ अवस्था १ भन को० नं० १६ से को० नं० १६ से १९ देख १६ देखो सारे भंग को० नं० १६ देखो १ भंग [को० नं० १७ देखो सारे भंग १-१-२-२-१-१-२ के मंग को० नं० १ देखी को० नं० १८ देखी (४) देवगति में सारे भंग १-१-३ के भंग-को० नं० को० नं० १६ देखो १६ देखो I १ मम्यवरव को नं. १६ देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १७ देखो सम्यक्त्व को० नं० १० देखो १ सम्यक्त्व को० नं० १६ देखो Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन १ १९ आहारक ग्राहारक, अनाहारक २० उपयोग २ नोपयोग ७, दर्शनोपयोग ३, ये १० जानना १५ । २१ ध्यान सूक्ष्म क्रिया प्र० १ व्युप-तक्रिया नि १ ये चटाक (१४) १ प्रहारक चारों गतियों में हरेक में १ आहारक जानना को० नं० १६ से १६ देखो ܕ ܕ | (१) नरक गति में ५-६-६ के मंग को० नं० ६ देख (२) निर्यच गति में ५-६-६-५-६-६ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ५-६-६-७-६-७-५.६ ६ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में ५-६-६ के भंग को० नं० १६ देखरे १४ (१) नरक-देवगति में हरेक में ८- ६-१० के भग को० नं० १६० १६ देखो (२) तियंच गति में ८-६-१० ११-८-१-१० के भग को० नं० १७ देखो ( ६५६ ) कोष्टक नं० ६१ १ १ [को० नं० १६ से १ को० नं० १६ से देखो १६ देख १ भंग | को०न० १६ देखी १ मंग को० नं० १७ देखो सारे मंग को० नं० १= देखो १ मंग को० नं० १६ देखो सारे भंग को० न० १६-१६ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो १ उपयोग को० नं० १७ देखो १ उपयोग को० नं० १८ देखो १ उपयोग को० नं० १६ देखो चारों गतियों में हरेक में १- की अवस्था को० नं० १६ से १६ देखो ८ कुअवधि ज्ञान, मनःपय ज्ञान घटाकर (=) (१) नरक गति में ५-६ के मंग को० नं० १६ देखो (२) तियंच गति में ४-४-६ के मंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में ४-६-६-४-६ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में ४-४-६-६ के मंग को० नं० १६ देखो १ ध्यान को० नं० १६-१६ देखो संज्ञी में दोनों अवस्था १ अवस्था को० नं० १६ से १६ को ०नं १६ मे देखो १६ देखो १ उपयोग १ भंग को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखो १ मंग को० नं० १७ देखो १२ पृथव जितकं विचार, एकत्व वितर्क प्रविचार, ये २ घटाकर (१२) (१) नरक - देवगति में १ भंग १ न | हरेक में को० नं० १७ देखी को० नं० १३ देखी ८ को० नं० १६-११ देखो (*) नियंन गति में ८०३ के मंग को० नं: १७ देखो सारे भंग ० नं० १८ देखो 5 १ मंग को० नं० १६ देखी सारे मंग १ उपयोग को० नं० १७ देखो • उपयोग को० नं० १८ देखो | १ उपयोग को नं० १९ देखी १ ध्यान १ मंग को० नं० १७ देखो को० नं० १६-१९ को०मं० १६-१६ देखो देखो | १ ध्यान को०नं. १७ देतो Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दशन कोप्टक नं०६१ संज्ञो में ता 151 मनुष्च गति में । गार भन १जान मनप गति न मार भग । ध्यान 1-1-20-10-७-४-१-को० नं०१८ देखो बोन०१८ मा -8-5--12 भंग कोल नं ५% देना कोनं देखो V-E-६-१०नन । कोनं । दलो को० नं०१८ देवी २२ प्राथद ! सारे भार ' १ भग। मारं भर भंग कानं० १ दया , मौ० मिथकाययोग : मनीयांग . वचन यांग , 40 मिश्रकाययोग १ प्रो० बाययोग. या. मिथकाययोग', 4. काग्रयोग १. फार्माण कायवान १ ।। . ग्रा० काययोग १. ४ घटाकर (५१) ये ११घटाकर (४६) ! (१) नरक गति में साभंग १ मंग नरक गति में सारे भंग भंग ४६-४४-४० के मंग की नं०१६ देखो कान०१६ देखो ४२-३. के भंग कोनं-१६ देखो कोनं०१६ दलो म.न.१६ देखो को० नं. १६देखो i(तियंव नि में - सारे भंग भंग २) नियंच गति में गरे भन१ भंग ५.५-४६-66.25-9.0-61-कोनं १ देखी कोन०४७ देखा ४--४-३-- न दी को नं०१७ देवो के भंग बी० १७ देखो । की नं.१७ देवो 1 ) मनुष्य गनि में ! मारे अंग भंग (1) मनुष्य गति में मारे भंग भंग ५६.६४२-३७-२२-२०- को नं. १८ देखो कोनं १ देखी ४6-58-३३-12-02-2:.को० नं०१८ दती का ०५०१८ देख २२-१६-१५-११-१३-१२ .३३ के मंग ११-१०-२०-६-La-४५-४१ को नं. १८ देखो के भंग को.नं. १५देखा, (४) देवति में ' नारे मंग१ मंग ) देवगति में । सारे मंग , भंग ४३.३८-३६-४२-३३-३३. कोनं०१६ देखो कोन०१९ देख ५ -४५-४१.४६-४४-१०- का नं०१६ देखो कोनं. १६ देबो ३३ के भंग ४० के भंग कोल्नं१६ दवा को० न०१६ देवी २३ भाद . माभंग १ भंग नारे भंग भंग केवल ज्ञान १. (१) नरक गनि में कोन०१६ दखो बोनं १६ दलो कुअवधि जान १, मनः केवल दर्शन १, २२-२४-२५-२-२७ के भंग ' पर्वय जान १, मित्रसायिक सन्धि ये घटाकर (४५) . ४? Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन t 3 की ० न० १६ देख (२) तिर्वच गति में २७-६५२६ २६ के मंग को० नं० १७ देवो (३) मनुष्य गति में ६६१ ) कोष्टक नं० ६ ? सारे भंग ३१-२६-३०-३३-३०- को० नं० १८ देखो ३१-२७- १-२६ २९२०-२५-२६-२५-२४-० २३-२३-२१-२०-२५२५-२६-२६ के भंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में सारे भंग १ भंग संयम ३१-२६-१०-१२-२६- को० नं० १७ देखो को०म० १७ देखो चारित्र ! ५ | (४११ सारे मंग २५- २३-२४-२६-२७ को नं० १६ देखो २५-२६-२६-२४-२२- | I २२-२६-२५ के भंग को० नं० १६ देखां ४ १ भंग को० नं० १८ देखो ५ ९ मंग को० नं० १६ देखो को० नं०१६ २ सम्वत्ल ? संयन्त्र आर्थिक (१) नरक गति में २५-२७ के भग को० नं० १६ देखो (२) निच गति में सारे भंग १ भंग २७-२६-२४-२२-२५० नं० १७ देखी को नं० १७ देखो सारे भग को० नं० १६ देखो संज्ञी मैं के भंग को० न० १६ देखो १ भंग को० नं०] १६ देखो के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे मंग १ भंग । ३०-२८-३०-२७-२४ को १८ देखो को० नं० १८ देखो २२-२५ के मंग को० नं० १८ देखो (४) देवगति में सारे मंग १ भंग २६-२४-०-२६-२४- को० नं० ११ देखो को जं० १६ देखो २८-०३-२१-२७-२६ Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ २७ ( ६६२ ) पगाहमा-को० न०१६ से १६ देखो। बध प्रतियो-१२० भंगों का विवरण को न०१ से १२ के ममान जानना । वय प्रकृतियाँ-११३ उदययोग्य १२२ में मे एकेन्द्रिगदि जाति ४, प्रातप १, माघारगा १, मूक्ष्म १, स्थावर १, अपर्याप्त १ ये घटाकर ११३ जानना 1 इसका विवरण १० गुण. मे १०८ को नं०११।७ में से ऊपर की प्रकृतियां घटाकर १०८ जानना, रे मुग में १०६ को.२०२ के १११ में मे एकेन्द्रियादिजाति ४,स्थाबर१ये ५ वटाकर १०६बानना.रे से १२ गुण में शेष भंगों का विवरण को नं. ३ से १२ के समान जमा । सत्य प्रकृतियाँ-१४८ मंगों का विवरण को००१ से १२ के समान जानना । संख्या असंख्यात जानना । क्षेत्र--लोक का असंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां भाग ८ राजु, सर्वलोक को नं० २६ के समान जानना। काल नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव से नवसौ (९००) सागर काल प्रमाण जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा क्षुद्रभव ग्रहण काल से प्रसंस्पान पुद्गल परावर्तन काल तक मंत्री न बन सके। जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । (को० २०२६ देखो) दुष्प-१० लाख कोटिकूल जानना 1 ३. Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ० स्थान सामान्य मालाप २ मिथ्यात्व सासादन १ गुण स्थान २ जीव समास संशी पंचेन्द्रिय के १२ 1 पर्याप्त अपर्याप्तत ये २ घटक (१२) | ३ पर्याप्त मन पर्यात घटाकर ५ संजा 1 ε ४ प्राण मनोबल प्रारण घटाकर () पर्याप्त को० नं० १ देतो नाना जीव की I । (१) (५) | 1 १ मिथ्यात्व (१) नियंच गति में (१) ३ क्षा १ मिध्यात्व जानना ६ पर्याप्त अवस्था तिर्यच गति मे ६ जीव समास पर्याप्त जानना को० नं० १७ देखो ५ तिर्यच गति में ५-४ के मंग जानना को० नं० १७ देख (१) नियंच गति में ६-८-७-६-४ के भंग को० नं० १७ दंखो (१) तियंचगति में ४ का मंग को० नं० १७ देखो 1 ६६३ कोष्टक नं० ९२ ४ एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में · १ भंग | को० नं० १७ देखो १ समास १ समास | को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखो. १ मंग ४ का मंग | । १ मंग ४ का मंग 1 ! १ भंग को०नं० १७ देखो ९ मंग १ भंग को० नं० १७, देखो 'को० नं० १७ देखो I नानजीना ६ (१) तिथंच गति में | ६ जीव समास पर्याप्त जानना की० नं० १७ देस्रो ३ (१) नियंत्र गति में १-२ गुण स्थान जानना * अपर्याप्त अवस्था (१) नियंत्र गति में ३ का भंग को० नं० १७ देखो रूप ६-५-४ के भंग भी होते हैं । ७ १ जीव के नाना समं S अनंशी में अपयत ཀྭ स्थान १ समास को० नं० १७ देखो 1 १ मंग को० नं० १७ देखो . १ मंग बचनवल, श्वासोच्छवास, को० नं० १७ देखो ये २ घटाकर (७) (१) तिर्यच गति में ७-६-५-४-३ के भंग को० नं० १७ देखो ४ पर्यासवत् जानना १ मंग ४ का भंग एक जीव क एक समय में १ गुण० i १ समास फो० नं० १७ देखो १ भंग को० नं० १७ देखो १ मंग को० नं० १७ देखी १ मंग ४ का भंग Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ गति ७ इन्द्रिय जानि १. ८. काय १० वेद चतीरा स्थान दर्शन योग श्री० मिश्रकाययोग श्री० काययोग १, कार्मारण काययोग १, अनुभव वचनयोग १ ये ४ योग जानना E को० नं० १ देखी ११ फाय १ तियंच गति मे ५ सं० पर्यात | (१) तियंच गति में को० नं० १ देखो १२ जान २५ को० नं. १ देवो कुमति-श्रुत 2 ५. एकेन्द्रिय से अजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जानना को० नं० १० देखो ६ (१) नियंत्र गति में ६ का मंग को० नं० १७ देख २ भी० काययोग १, अनुमय वचन योग १ ये जानना (१) नियंच पति में १ के भंग को० नं १३ देवो ३ (१) नियंच गति में १-३ के मंग को० नं० १७ देवी २५ (१) नियंचगति में २३-२५ के मंग को नं० १७ देखी → (१) निर्म गति में २ का भंग को० नं० १० देखो f ६६४ १ कोष्टक ०२ १ १ जाति १ काय १ भंग १ मंग ४ १ मंग सारे भंग १ भंग I १ जाति १ कास १ कोष १ बोन वेद १ भंग १ जन 1 १ ५. (१) नियंच गति में । ५ अमंत्री पं० नक पांचों ही जाति जानना को० नं० १० देखो ६ (१) नियंच गति में ६-४ के मंग को० नं० १७ देखो २ औ० मित्रकाययोग १, काम काययोग १. ये २ वो जानता (१) नियंच गति में १-२ के भंग [को० नं० १७ देखी ६ (१) तिच गति मे १- ३ के भंग को० नं० १७ देखी २५ (१) नियंत्र गति में २३-२५-२३-२५. के भंग क० नं० १७ देखो २ (१) नियंच गति में २ का मंग को० १० न० १७ सो १ जानि १ काम १ भंग १ मंग १ भंग मारे भंग १ मंग असंज्ञी में T १ १ जाति १ काय १ योग १ योग 5 १ वेद १ भंग १ ज्ञान Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३ संयम ती स्थान दर्शन १६ भव्यत्व १४ दर्शन अच दर्शन, दर्शन मे (२) १५ वेश्या २ १७ सम्यक्त्व असंयम २० उपयोग भव्य, श्रम य १८ संशी १९ आहारक आहारक, अनाहारक , 1 ज्ञानोपयोग २ दर्शनोपयोग २ ये ४ जानना ३ ३ अशुभ लेश्या (१) तियंच गति में २ मिध्यात्व, सासादन ! (१ | (१) तियंच गति में प्रसशी २ १ श्रसंयम जानना को० नं० १७ देखो २ (१) तिर्यंच गति में १-२ का भंग फो० नं० १७ देखो ६ का भंग को० नं० १७ देतो २ (३) तिथंच गति में २ मिष्यत्व जानना को० नं० १७ देतो १ तियंच गति में १ मिथ्य त्व जानना को० नं० १७ देखो ! १ श्रमंत्री जानना (१) तियंच गति में १ प्राहारक जानना को० नं० १७ देखो Y (१) तियंच गति में ३-४ के मंग को० नं० १७ देखो ६ ६६५ ) कोष्टक नं० ६२ १ भंग १ मंग १ मंग १ मंग १ भंग १ संयम १ दर्शन १ लेश्या १ अवस्था १ उपयोग पर्याप्तवत् जानना २ पर्याप्तवत् जानना ३ का भंग को० नं० १७ देखो ! २ (१) तियंच गति में २-१ के मंग | को० नं० १७ देखी २ (२) तिच गति में १-१ के भंग को० नं० १७ देखो १ 1 २ (१) तिर्यच गति में १-१ के भंग को० नं० १७ देखो '४' (१) निर्यच गति में ३-४-३-४ भंग को० नं० १७ देखो ७ १ भंग १ मंग १ मंग १ मंग १ रंग t असंज्ञी में | दोनों अवस्था १ भंग १ संयम १ दर्शन १ लेश्या १ अवस्था १ सम्यक्त्व १ १ अवस्था १ उपयोग Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ ध्यान चौतीस स्थान दर्शन २ २३ भाव ८ को० नं० १ देखो २२ आसव मिथ्यात्व ५, अविरत १२, योग ४, कषाय २५, ये ४६ जानना ४६ २८ कुज्ञान २, दर्शन २, नब्धि ५, तियंचगति १ कषाय ४, लिंग ३, कृष्ण-नील कापोत- पीवनेश्या ४, मिथ्या दर्शन १, असंयम १, ज्ञान १. प्रसिद्धत्व १, परिलामिक भाव ३ मे २८ भाव जानना ३ (१) तियंच गति में पका भंग को० नं० १७ देखो ४६ (१) सियंच गति में ३६-३८-३६-४०-४३ के भंग को० नं० १७ देखो २८ (१) तियंच गति में २४-२५-२७ के मंग को० नं० १७ देखी ( ६६६ ) कोष्टक नं० १२ १ मंग सारे भंग को० नं० १७ देखो सारे भग को० नं० १७ देखो ५ १ मान १ भंग को० नं० १७ देखी ६ (१) तियंच गति में ८ का मंग को० नं० १७ देखो We प्रो० कामयोग १, अनुभव वचन योग १ ये २ घटाकर (४४) (३) तिर्यच गति में ३७-३८-३९-४०-४३-३२३३-३४-३५-३० के भंग को० नं०] १७ देखी २७ १ भंग के मंग को० नं० १७ देखो सारे भंग १ भंग सारे मंग को० नं० १७ देखो, पीत लेश्या घटाकर (२७) को० नं० १७ देखो (१) तिच गति में २४-२४-२७-२२-२३-२५ संजो में १ ध्यान १ भंग को० नं० १७ देखो को० नं० १७ देखो १ मंग को० नं० १७ देतो Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पनगाहना-कोन. १७ और २१ से ३४ देखो। बंध प्रकृतिया-११७ माहारकतिक २, तीर्थकर प्र१ये ३ घटाकर ११७ प्र० का बन्ध जानना । उदय प्रकृतिया-६१ उदयोग्य १२२ प्र. में से सम्बग्मिथ्यात्व १, सम्यक प्रकृति, नरकायु १, मनुष्पायु १, देवायु १, उच्चगोत्र १, नरकद्विक २ मनुष्यद्विक २ देवद्विक २, से पाहारद्विक २, वैक्रियिकदिक २, असंप्राप्तामृपाटिका संहनन छोड़कर शेष ५ संहनन, हुंडक संस्थान छोड़कर शेष ५ संस्थान, सुभग १, प्रादेय १, यषाः कीर्ति १. प्रशस्त विहायोगति १. तीर्थंकर प्र० १, ये ११ घटाकर ६१ प्र० का उदय जानना। सत्व प्रकृतिपा–१४७ तीर्थकर प्र.१ पटाकर १४७ प्र० मा सत्व जानना । संख्यां-- अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र-सर्वलोक बानना। स्पर्शन सबलोक जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव को अपेक्षा सादि प्रसंझी खुदभव से मसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक जानना । अन्तर-नाना जोवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव की अपेक्षा सादि असंही क्षुद्रभव से नवसी (600) सागर काल प्रमाण तक प्रसंजीबन सके। नाति (योनि)-६२ लाख योनि जानना । (एकेन्द्रिय ५२ लाख, विकलेन्द्रिय ६ लाख, असंही पंचेन्द्रिय ४ लाख, ये सब ६२ लाख जानना) कुल-१३ लाख कोटिकुल जानना। (एकेन्द्रिय ६७, विकलेन्द्रिय २४, प्रसंशी पचेन्द्रिय ४३।। ये सब १३४॥ लाख कोटिफुल जानना । को० नं०१७और २६ देखो Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाँतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६३ अनुभय संज्ञी (न संजीन असंज्ञो) में 2. 'स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त अपर्याप्त माना जीवों की अपेक्षा एक जीव के नाना एक जाब के एक समय में | समय में नाना जीवों की अपेक्षा । जीव के नाना | १ जीव के एक समय में १ गुरण स्थान २ | सारे गुण स्थान | • गुणः । १३-१४ ये २ गुण १३-१४ ये २ गुरण जानना १३वे गुरण-स्थान जानना | २ जीव समास २ १पर्याप्त अवस्था |१ १ अपयःप्त अवस्था । १ संज्ञी पं० पर्याप्त अप०(१) मनुभ्य गति में १ संज्ञो पं. अपर्याप्त १ संनी पंचेन्द्रिय पर्याप्त | जानना जानना | कोनं १८ देखो को० नं.१५देखो ३ पर्याप्ति १ भंग । १ भंग १ भंग । १ भंग कोनं० १ देखो । (१) मनुष्ण गति में (१) मनुष्य गति में । ६ का भंग-को. नं०१८ ।३ का भंग-बो० न० देखो |१८ देखो लब्धि का ६ का भंग | भी होता है । ४प्राण । सारे भंग १ भंग ! । सारे भंग १ भंग को. नं० १५ देखो (१) मनुष्य गति में को. २०१८ देखो | को.नं. १५ वचनबल श्वासोच्छ्वास । ४-१ के भंग-को० नं. देखो ये २ घटाकर (२) १८ देशो (२) मनुष्य गति में को० नं०१८ देखो | को० न०१५ |२का भंग-को २० । देखो १५ देखो ५ संज्ञा (0) अपगत सज्ञा ६ गति १मनुष्य गति जानना ७ इन्द्रिय जाति १ संज्ञी पं० जाति . काय १ त्रसकाय Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन ६. योग को० नं० १ देखी १० वेद ११ कपाय १२ ज्ञान १३ संयम १४ दर्शन १५ लेश्या शुक्ल लेश्या १६ भव्यत्व १७ सम्यक्त्व १८ संजी १२ प्रहारक . ७ १ १ 6 5 ५. कौ० मिश्रका योग १, काय योग ये घटाकर (४) (१) मनुष्य गति में ५-२० के भग को० नं०] १८ देखो | (०) प्रपगत वेद (०) प्रकषाय "! १ | ६१. मनुष्य गति में आहारक, धनाहरक १ (१) मनुष्य गति में 1 ५ केवल ज्ञान जानना को० नं०] १५ देखो १ यथाख्यात संयम को० नं० १८ देखी १ केवल दर्शन ? (१) मनुष्य गति में १-० के भंग को० नं० १८ देखी १ भव्य १ क्षायिक सम्यक्त्व (०) अनुभय २ (:) मनुष्य गति में ११ अवस्था जानना को० नं० १८ देखो (६६६ 1 कोष्टक नं० ६३ सारे भंग सारे भंग को० न० १८ देखो १ १ योग मारे भंग दोन्ही अवस्था को० नं० १८ देखो १ योग को० नं० १८ | देखो १ e | ई अवस्था ● अवस्था को० नं० १८ देखो अभय संज्ञी (न संज्ञान असंज्ञी) में र सौ मिश्रकाय योग १ कारकाय योग १ ये २ योग जानना ( ) मनुष्य गति में २-१ के भंग को० न० १८ देखो (१) मनुष्य गति में १ केवल ज्ञान जानना को० नं० १८ देखो १ (१) मनुष्य गति में १ यथास्यात संयम को० नं० १८ देखो १ १ (१) मनुष्य गति में १ का भंग को० नं० १८ देखो १ भव्य १ क्षायिक सम्यक्त्व D २ (१) मनुष्य गति में ११ अवस्था जानन। को० नं० १० देखी सारे मंग | सारे भंग को० नं० १८ देखो सारे को० नं० १८ देखो ६ १ योग १ योग को० नं० १० देखी D ० १ १ १ १ अवस्था को० नं० १८ | देखो Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतांस स्थान दर्शन काष्टक नं०६३ अनुभय संजी (न संज्ञी न असंज्ञी) में २० रुपयोग । यारे भंग उपयोग। २ । सारे भंग । १ उपयोग केवल ज्ञान-कैवस (१) मनुष्य गति में को नं० १८ देखो को नं०१८ ! (2) मनुष्य गति में कोल नं० १८ देखो | कोः नं०१८ दर्शनोपयोग ये (२) २ का भंग-युगपत 'देवो २ का भंग-युगपत को न १८मो मो.नं. १८ देखो । २१ ध्यान २ मारे भंग । १ घ्यान १ . सारे भंग । १ ध्यान सूरम चिया प्रनिपाती १) मनुष्य मति में को० नं. १८ देखो ! को० नं. १८ (१) मनुष्य गति में को२०१८ देखो | को० नं०१५ त्युारत क्रिया नि. । १ का भंग-कोर नं. देखो ये २ ध्यान जानना को० नं०१० देखो |१८ देखी २२ प्रामव | मारे भंग । १ भंग । मारे.भंग को नं० १: देखो और मिश्रकाय योग १, । ग्रो० मिश्रकाय योग कार्मारणकाय योग १ कार्मामाकाय योग १ । ये २ पटाकर (५) 'ये२ योग जानना (१) मनृप्य गति में सारे भंग १ मंग । (१) मनुष्य गति में मारे भंय १ भंग ५-३-० के भंग को०१८ देखो। को न०१८ | २-१ के भंग को० नं० १८ देखो | कोन:१५ को. नं०१८ देखो देखो | को० न०१८ देखो । देखो २३ मानव | सारे भंग भंग । ४ सारे भंग १ मंग को० न०१३ देखो | (२। मनुष्य गति में को.नं. १८ देखो को० नं०१६ (१) मनुष्य गति में को० न०१८ देखो । को.नं.१८ १४-६ : के भंग १४ का भग-कोनं . को नं० १- देखो Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भवणाहना- ३॥ हाथ से ५२५ धनुष तक जानना । बंब प्रकृनियां -१३वे मुरण में ! साता वेदनीय जानना । १४वे गुण में बंध नहीं, प्रबंध जानना । ग्रुप प्रकृतियां- ४२ और १४वे गुण में १२ प्र० का उदय जानना । को० नं० १३-१४ देखो। सस्व प्रकृतिया- ६५ और ५-१३ प्र. का सत्ता जानना । को न०१३-१४ देखो। सम्या -को० नं०१३-१४ के समान जानना। क्षेत्र-लोक का असंस्थातवां भाग जानना। असंख्यात भाग लोक, सरलोक ये सब भेद केवल समृदयात के समय में जानना को० नं० २६ देखो। स्पर्शन-ऊपर के क्षेत्र के समान जानना । काल-सर्वकाल जानना । अन्तर-कोई अन्तर नहीं। गति (योनि)- लाख एनाय योनि लानना। कुल-१४ लाख कोटिकुल मनुष्य की जानना । Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोष्टक २०६४ आहारक में चौतीस स्थान दर्शन * स्थान मामान्य मानाप पर्याप्त जीव के नाना समय में । एक जीव के नाना एक जीव के एक | समय में समय में | नाना जोवों की अपेक्षा एक जीव के एक समय में नाना जीव की झा १ गुग्म स्थान १३ मारे मुगग स्थान. १ गुणः । सारे भंग १ गुण १ १३ तक के मुरग ।।१) नरक गति में १ से अपने अपने-के अपने गले का नामक गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान (२) तिर्यच गनि में में। . सारं गुण स्थान के सारे गुण में' मेघ सारे गुण जानना के सारे गुग्गल में भोग भूमि में १में जानना से कोई १ गंगा (२) निर्वच गति में मे कोई १ गुण (3) मनुष्य गन में १ मे १३ | जानना जानना भोग भूमि में १ मे ४ । भोग भूमि में (४) देवगति में में । (३) मनुष्य गनि में । भोग भूमि में |() देवगति में । १-२-४ २जीव समास १४ ० पर्याप्त अवस्था १ समास १ ममाम । अपर्याप्त अवस्था , सपास पसमाम को १ खो (१)मरक-मनुष्य-देवमति में कोनं०१६-१-- कोन०१६-१८-(१) नरक-मनुष्य-देवगति को.न. १६-१८-कोनं० १६-१८हरेक में .१६ देखो देखो ! में हरेक में १६ देखी १६ देखो १ यजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त | १संनी पं० अपर्याप्त जानना जाना कारन०१६-१८-१६ देखो कोनं० १६-१-१६ । (२) तिर्य गति में १ ममाम १ ममाग देगो 9..- के भंग को० म०१७ दरो कोन०१५ देसो (२.तिर्यच गान में समाय ? समास को नं देलो । ७-६-१ के भंग को नं दलो कोनं०१७ देख | को० न० १७ देखो Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक ने०६४ ' असंज्ञी में n. ३ पर्याप्ति १ भंग १ भंग १ मंग १ मंग को०० देखोनर मनुष्य- यदि कोनं० १६-१८- को०-०१६-१८-(नग्ग-मद्रप्व-देवगति को० न०१६-१-कोनं०१६-१८. में हरेक में '. १९दखा १२ देखो | मैं हरेक में १६देखो देखो ६वा भंग ३ का भंग को० न०१६-१५-१६ . को नं. १६-१८-१९ देखो (२)तियन गति में ६-५-४-६ के भंग कोन०१७ देखो ४प्राग कोनं १ देषो । (१) नरक-देवमति में हरेक में १० का मंग को० नं०१५-१६ देखो (२) तिर्यंच मनि में १---७-६-४.१० के भंग को मं०१७ देखो । (३) मनप्य गति में १०-९-१० के भंग को००१८ देखो १ भंग । १ भंग (२)निर्यच गति में मंग १ मंग कोनं०१७ देखो कोन०१७ देखो 4-1 के मंग को २०१७ देखो को नं०१७ देखो को नं०१७ देखो लम्बि रुप अपने अपने | स्थान की ६-५-४ पर्याप्ति भी होती है। १ भंग १ मंग १ भंग १ मंग को नं०१६- को नं०१६-१६ (१) नरक-नवगति में । को० २०१६- कोनं०१६१६ देखो । देखो । हरेक में | १६ देखो ११ देखो ७का मंग को० न०१६-१६ देखो । १ भंग | १ भंग ' (२) तिर्वच गति में १ मंग १ भंग को १७ देखो कोनं०१७ देखो, ७-६-५-४-३-७ के भंग को नं० १७ देखो को नं. १७ देखो ' को नं० १५ देखो । (1) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग सारे भंग १ भंग -२-७ मंग को नं०१८ देवो कोनं, देखो कोः नं०१८ देवो को०नं०१८ देखो, को० नं० १८ देखो । को० नं० । देखो (१) नरक-वगति में १ योग कोनं०१६-१६ । कोन१६- देखो देखो १ मंगयोग करे०.१६-१६ कोनं०१६-१९ देखो देखो १) नरक-देवगति में हरेक में का भंग को००१६-११ देखो ४ का मंग को नं०१५-१६ देखो Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चातास स्थान दर्शन कोष्टक नं०३४ आहारक में ----------- 1)निर्यन गति में १ धन न (२) तिर्यच गति में भंग भ ग ४-४ के भंग कोनं. १७ देखो कोल्नं०१७ दंलो. मंग वो नं०१७ देखो कोन-१७ देखो कोक १७ देखो ! को० नं० १७ देखो (३) माय गति में मार भंग । १ भंग (v) मनुष्य नति में मारे भंग १ भंग -:.-....- के अंग को देखो कोनं १५ देखो। ५-०४ के भंग को नं.१% जी कोल्न १८ दखो को नं.१० दखो । को० नं. १ देखो गति गति । र नं.१देवो । नागें न जानना चाग गति जानना । हिमाल । १ जाति । १ जाति । जाति । १जानि को न० देखो ! (३)बरक-मनुष्य-देवगति में को० नं. १६-१८-कोनं०१६-१८- (१) नरक-मनुष्य देवगन कोनं०५६-१८- कोनं. १६-१८. | १६ देखो १९ देखो ' में हरेक में १६देश १६ देखो मंत्री पं. जानि जानना १ यज्ञी १० जाति जानना को० नं०१६-१८-१९ देखो कोल्नं०१६-१-१८ देखो (२) लिच गति में जानि जानि (निर्वच गनि में जानि गानि --१ के भं को नं. १७ देलो कोन० १७ देखो ५-१ के मंगको नं१७ देखो कोन.७ देतो बोल नं. वो । __ को नं०१७ देखो । ८ काय १ काय काय वो.नं. १एन्ना नरक-मानुष्य-देवमति में को०म० १६-१८को० नं.-१४ (१) नरक-मनुष्यन्दंवगति कोन...१८- फो.नं.१३-१८. १६खो १९ देखो में हरेक में 'त्रमवाय जानना ! १ वमकाय जानना । को० म०१६-१८-१६ देखो। कोनं०१६-२८-२९ देना (2) तिर्यक गति में १काय काय । (३) तिच पनि में बाप ' काय को० ने १७ देखो कोनं०१७ देखी ६-४-1 के भंगको न०१० देखो कोन०१७ देखो कौन०१७ देनी को० नं०१३ देखो ६ योग १ भंग १ योग १ भय । १ योम कार्माण काययोग १ । मौ० मिश्रकाययोग, मौ० मिनामयोग १, । घटाकर (१४) 4. मिश्रकाययोग १, 4. मिथकाययोग १, । पा० मिथकाययोग १, । | प्रा. मिश्वकाययोग १, । ये ३ योन घटाकर (११)। ये ३ योग जानना Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शैनीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६४ आहारक में -- (E) नरक गति में १ भगत योग ।(३) नरक गनि में का भंग-की-ना १ को.. देखो को न..१६40 निनकाय चाग । १ मंग -- जोप १ भंग योग - - मा भन (दिनि भंग ग्रंग (अनिर्वच गति में है.. के भगकी नं१७ देन्यो । कोर न.२३ औ मिथकाय न को न १ दंगो देखो । जानना नय गति में : साग १ योग ।।३) मनुष्य गति में -----: मंग और न० दबों को न०१८.१ प्रो. मिश्रकाय दोग कोनं.१खा । 'देनी जानना (४, शनि म । मंग . १ योग र वर्गात म वा भंग-कोन.१९कारनं०१६ देखा। को नं १६१० मिथकाय योग देख । १ मग दोन - दया जानना कानंदेकी नाक गति में को नं. १६पो' को न रकभि मंका नं०१५ देखो कोनं०१६ जानन व जानना । १ नमक बंद जानना को.न. दो वंद कोन. १६ देखा निर्वाचननिमें | भंग नो न (२)नियंत्र में भंग वेद 301 ..मयो देवी -:-१-३-२-१ के. भंग का० २०१७ को को१७ बोनः दधी को न.१३ देखो में मनुष्य यदि सारे भग १ वेद मनुव्य मात में मारे भंग 1-1-1-1-1-1.2.1.0.7 को० नं.१देना को नं. १८:१-१-३.११ के भर को नं.१देवो की नं०१५ के भंग की न दीको००१- देवो नानंग । १२ । वननि में मारे भंग | वेद २-१-१ के भंग को. नं: १६ देखो कौर नं १६ को नं. १६ देखा, कोल नं १६ को न १६ देखो को नंची ८५ सारे भंग । मंग २५ मारे भंग १ भग । नरक गनि में को०० १६ देखो की नं.१६:14गति में को १६औ को नं०१६ २-१६ के भग : देखा ० -१६ भंग का नं०१ देखो Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ६४ आहारक में को. नं०१६ देखो को० नं०१६ देखा । (२) तिर्यंच गति में सारे भंग भंग (२) तिर्यच गति में मारे भंग १ भंग २५-२३-२५-२५-२१-१७-का० नं. १७ देखी | कोनं० १७ । २५-२२-२५-२५-२३.२५- कोलनं१७ देखो को० न०१७ २४-२. को नं० । २४.१४ के मंग-को. देखो १७ देखो | नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में । सारे भंग भंग । (३) मनुप्य गति में सारे भंग । भंव २५-२१-१७-१३-११-१३- को० नं. १८ देखो : को नं०१८ २५-२६-११-०.२८-११ को नं. १८ देखा | को० न०१८ ७-६-१-४-३-२-१-१-0 देखो के भंग-को. नं. १८ २४-२० के मंग-को० नं देखो १८ देखो १४) देवनति में सारे भंग । १ भंग (४) देवगति में सारे भंग भंग २४-२४-११-२३-18-१२ को नं०१६ देखो | का० नं. १६ २४-२०-२३-११-१६ के को नं०१६ देखो को नं०१६ के मंग-को नं. १६ । देखो | मंग-कां० नं०१९ देखो । देखो देखो १२ज्ञान | सारे भंग । १ज्ञान ६ को नं० २६ देखो । (३) नरक गति में को०० १६ देखो को न०१६ । कुमवधि ज्ञान मनः । ३-३ के मंग-को. नं. देखो पर्यय ज्ञान व २ घटाकर १६ देखो (२ तिथंच गति में १ज्ञान ( नरक गति में सारे भंग १ज्ञान २-३-३-३-३ के भंग का नं. १७ देखो | को० नं०१७ | २-३ के भंग को० नं० को.न. १६ देतो । को नं. १६ को० नं०१७ देखो देखो देखो !(३) मनुष्य गति में सारे भंग । १ ज्ञान (२)-र्यच गति में | १ भंग १मान ३-३-४-३-४-१-३-३ के को० नं. १८ देखो को० नं०१५।२-२-३ के भंग की नं०१७ देखो | कोनं०१७ भंग-को० नं. १८ देखो | कोनं०१७ देखो देखो (४) देवगति में । सारे भंग । १शान । 1) मनुष्य गांत में सारे भंग ३-३ के मंग-फो० नं. को० नं० १६ देखो को नं. १९ २-३-३-१-२-३ के मंग को० न०१८ देतो को नं०१८ १६ देखो देखो को.नं०१८ देखो (४, देवगति में सारे भंग ज्ञान २-२-३-३ के मंग को नं. १६ देखो | कोनं०१६ को० नं०१६ देखो देनी . Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दशन कोप्टक नं०६४ आहारक में देखो १३ संयम को नं० २६ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में ' को नं. १६-१६ का० नं.१६-१६ संयमासंयम, सूक्ष्म सांप१मसंयम बागना देखो राय ये २ पटाकर (५) को० नं०१६-१६ देखो |(१) नरक दवमति में को० नं. १६-१६ का नं०१६(२) नियंच गति में भन य म । हरेक में १६ देखा १-१-१ के भंग-को० नं.बो.नं. १७ देखो। कार नं. १७ : १ असंयम जानना । १७देखो देखो को० नं०१६-.६ देखा १३) मनुष्य गदि में सारे भंग १संबम (२) नियंच गति में । १ भंग । संयम 1-1-1--३-1-1-1.5 के को नं०१८ देखो! को० नं०१८ | १. के भंग-को न० को न १७ सो | को० न०१७ भंग-को० नं. १८ देखा देखो ।१७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग । १संबम १-२-१-१ के भंग को० नं०१८ देखो ' को न०१८ | को० नं. १देखो । 'दखो १४ दर्शन । १ भंग १दर्शन | ४ १ भंग १ दर्शन फो.नं०१८ देखो। (१) नरक गति में को.नं०१६ देखो | को० न०१६ (१) नरक मति में कोः नं १६ देखो , को नं. १६ २-३ के मंग-को. नं. | २-३ के अंग को. नं. १६ देखो १६ देखो (२) तियंच गति में १ भंग । १ दर्शन (२) तिर्यच गति १ भंग १ दर्शन १-३-२-३-६-२-२ के मंग को नं. १७ देशो | को० नं. १७१-२-२-२-३ के भंग को० नं० १० देखो | कोन०१७ को० नं. ७ देखी देखो को० नं १७ देखो । (8) मनुष्य गति में सारे भंग । १ दर्शन । (२) मनुष्य गति में । सारे भंय दर्शन २-३-३-३-१-२. के मंग को नं०१८ देखो को० नं१% | २-३-३-१-२-३ के मंग को नं०१८ देखो | को न०१८ को.नं. १८ देखो देखो को नं०१८ देखो देखो (४) देवगति में १ भंग । १ दर्शन । (४) देवगति में | १ भंग । १ दर्शन २.३ के भग-को नं. को० न०१६ देखों को० नं. १३२-२-३-३ के भने को० नं. १६ देखी । को. नं.११ १६ देतो | देखो को० न०१६ देखो ! '५ लेश्या गलेश्या भग १लेश्वश को० . १ देख । (१) नरक गनि में 1. नं०१६ देखो | कार नं। १६ । (१) नरक गति में को०१६ देवी को नं. १६ ३ का भंग-वो० नं. १६ ६ का भग-कोर नं.: १६ देखो देशो E देखो देखो Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दशन कोष्टक न. १४ - १६ भव्यत्व भव्य, प्रभत्र्य १७ सम्यक्त्व का० नं. १ देखा - -- -- - ------ (शनिय गति : ११ १-भग.. (२) निर्यच गति में --३-३ के भंग काम खो देतो ३.५ भंग कोन१७ देखो कोनं०१७ देखो को नं. १७ देवी | को००७ देखो (३) मनुष्य नति में ! मारे भंग नश्या (1) मनुप्च गनि में मारे भंगलेश्या ६.३-१-३ के भंग कोनं० देखो कोनं०१८ देखी 5-1-1-1 के भंन नो० नं०१५ देयो । न.१८ देखो कोन०१८ देखो को नं०१८ देखी (२) दंधति में १भंग १ लश्या 1४)देवगति में भग १सया । १-३-१-१ काभंग को० न०११ देखो को नं. १६ देखो ३-६-१-१ के भंग को नं. १६ देखो कोनं० १९ देखो कोनं०१६ देखो को० न०१९ देखो । भंग । अवस्था भंग ' पत्रस्था 'चारों गतियों में हरेक में को० नं०१६ में को.नं. १६ में चारों नियों में होक में कोन ना ११ कोन०१६ से २-१ के मंग १६ देखो । १२ देखो २-१ के भंग देखो देखो कोम १६ मे १६ दंडों को नं. १ मे १६देखो सारे मंगमम्यक्त्व सारं भंग । १ सम्यक्त्र (१) नरक गति में को०० १६ देखो 'कोनं०१६ देखो मिथ घटाकर (५) १-१-१-३-२ के अंग । (१) मरक गति में कोन.१५ देखो को २०१६ देखो कोल्नं०१५ देखो । १-२के भंग (२) निर्गच गति में मंग सम्यक्त्यको०१६देखो १-१-१-२-१-१-१-३ को० नं०१७ दंगो कोनं.१० देखी (8) निर्य गति में भंग सम्भवत्व के भंग १-१-१-१-२ के भंग को देखों को.नं. १७ देखो को नः १७ देखो को० नं० १७ देखा (३) मनुष्य गरिने । सारे भंग गम्यवाद (३) मनुप्य मनि में मार मंग । सम्यश्य १-१-२-२-१-१-१-२ को न १८ देवो न.१८ देवी १-१-१-१- के भंग । के मंग चो. नं१८ दम्बा की नं०१८ देखो ( गति मे मार भंग १ नम्बक.व (४) दंबगनि में मारे भंग गायव ६-१-१-२-... नो.नं. १६ वो कोनं० १६ देखो,-- क नंग कानंद नं. १६ देखो के भग को न देना कोनं १६ देतो Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ संज्ञी तीस स्थान दर्शन २ 1 जी (१) नरक-देवगति में हरेक मे मंत्री जानमा को० नं० १६-१६ देदो (२) तिच गति में १-१-१-१ के भंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में १-०-१ के भंग को० नं०] १८ देखी १ १६ श्राहारक प्राहारक २० उपयोग ज्ञानोपयोग दर्शनयोग ४ ये १२ जानना चारों गतियों में ह क में १ आहारक जानना १२ (१) नरक गति में ५-६-६ के मंग को नं० १६ देखो (२) तिर्येच गति में 1 ६७९) कोटक २०६४ Y १ १ अवस्था को० नं० १६-११ को० नं० १६-१६ देखो देखो १ मंग को० नं० १० देखो Du १ अवस्था को० नं० १७ देवो | १ १ अवस्था को० नं० १८ देखो को०नं० १८ देखो १ मंग को० नं० १६ देखो १ मंग १-५-५-६-६-५-६-६ को० नं० १७ देखो के मंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग ५-६-६-७-६-७-२५ को० नं० १८ देखो ६-६ के भंग को० नं० १० देखो (४) देव गति में २-६-६ के भंग को० नं० १६ देखो (१) नरकगति में हरेक में १ संज्ञी जानना | को० नं० १६-१६ देखो (२) तिच गति में १ भंग १-१-१-१-१-१ के भंग को० नं० १० देखो को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में १-०-१ के मंग को० नं० १८ देखी १ उपयोग को० नं० १६ देखो' १ उपयोग को० नं० ११७ देखी 3 १ उपयोग को० नं० १० देखो आहारक में १ मंग १ उपयोग को० नं० १९ देखी को० नं० ११ देखो 1 को० नं० १६-१६ देखो चारों गतियों में हरेक में १ आहारक जानना १० कुमदधि ज्ञान और | मनः पर्यय ज्ञान ये दो घटाकर (१०) जानना (१) नरक गति में को० नं० १६ देखो १ मंग ४-६ के मंग (२) तिर्यच गति में ३-४-४-३-४-४-४-६ के मंग को० नं० १७ देखो (३) मनुष्य गति में को० नं० १७ देखो ४-६-६-२-४-६ के भंग को० न० १० देखी (४) देवगति में । ४-४-६-६ के मंग को न० १६ सो कोल को ०० १६०१६ देखो 1 १ मंग १ अवस्था को० नं० १५ देखो को० नं० १० देखो १ अवस्था को०न० १० देखो १ मंग को० नं० १६ देखो सारे मंग को० नं० १८ देखी १ भंग को० नं० १६ देखो १ उपयोग १ उपयोग को० नं० १६ देखो । १ उपयोग को० नं० १७ देखी १ उपयोग को० नं० १८ देखी १ उपयोग को० नं० ११ द Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ----- ov । ६० । कोष्टक नं०६४ चौंतीस स्थान दर्शन आहारक में १२ । २१ ध्यान त्युपगत किया नि. मारे भंग ।। ध्यान मारे भंग १ध्यान नाक गति-देवगति में कोनं०१५-१९| कोन-१६-' पृथस्त्र वितक विचार, ! ! १६ देतो | एकत्त्व विनर्क अविचार, ! ८६-के भंग । गुधन सिा प्रतिपा- को देखो ये ३ वटाकर (१२) ! (२) निर्यच गति में १ भंग १ध्यान नरक गनि-देवमति मारे भंग १ ध्यान ८. -१०-११-८-९-१० के को नं०१३ देखो को नं. १७ में हरे में को नं०१६-१६ | को० नं० १६. भंग-को नः १७ देखा ८-९ के भंग-को० नं० । देखो ९ देवो (3) मनुष्य गति में सारे भंग - १ च्यान | १६-१९ देखो -९-१०-११-3-1-१-१- को० नं०१८ देखो : को० नं०१८ । (२) तिर्वच गति में | भंग ज्यान १-=-६-१० के भंग-को | E-E-6 के मंग को० नंक १ दयौ । को० नं. १७ नं १८ देखो को०-०१७ नेत्रो देखो । (३) मनुष्य गति में सारे मंन १ प्यान 6-8-5-१-८. के भंग करे नं० १% देतो | को० नं० १८ मो० नं१५ देखो देखो देखो देखो २२ ग्रासद कार्मागकाय मोग १ घटाकर (५६) मारे भंग १ मंग | नारे भंग १ अंग मो० मिश्रकाय योग १. मनोयोग ४ वचन योग | कमिश्नकाय योग, ४, मी काय रोग, प्रा मिथवाय योग १ | वै० काय योन १, या. ये ३ टावर (३) काय योग १ – ११ (१)नक गति में सारे भंग १ भंग घटा.र:४५) १६-१४० के भंगकाम, १६ देखो को न०१६ (१) नरक गति में मारे ग १ भंग को न०१६ देखो दन्वी १-३३ के भंग-नो० को० न० देना । को नं०१६ (२) निर्यन गनि में __मारे भंग १ भंग 'नं०१६ के ४.३ हे. २६-३०-१६-४०-४५-५१- ० नं.१"दंगी का० नं.?" भंग में में बाकाय ४६.४२-७-५०-४५.४१ देवो योग १ पटाकर१17 के नंग को. नं. १७ के मंग जानना Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीतीस स्थान दशन कोष्टक नं. ९४ आहारक में -- (२) तिथंच गति में मारे भंग १ मंग । (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग ३६-३७-१८-३६-४-३-को० नं०१७ देखो कोनं.१७ देखो ५.४६-१०-३०-२२-२०- को. नं०१५ देखी कोनं-१८ देखो | ३१-३२-३३-३४-३७-३८२२-१६-१५-१४-१३१२. ४२-३७-३२ के भंग : ११-१०-१०-१-५-३-५० नं०को १७के ३७-३८४५.४१ के भंग 38-4-४३-४४.३२-३३. कोन १० देखो ३४-३५-३८-३६-४-३(१) देवगति में | सारे भंग । मंग ३३ के हरेक भग में से ५ -४५-४१-४१-४४.४०-कोनं०१६देखो कोम्नं०१६ देखो कार्माण कापयोग १ षटा४० केभंग कर ३६-३७-३८-३६-४२को० नं० ११ देखो ४३-३१-३२-३३-३४-३७-/ ३५-४२-३७-३२२ भंग ! जानना (३) मनुष्य गति में सारे भंग १भंग ४.-८-३२ के भंगको .नं.१६ देखो कोनं०१८ देखो को०१० के ४४-३६ ३३ के हरेक भंग में से | कार्माण काययोग ' घटा कर ।३-२८-३२ के भंग | जानना १२ का भंग को० नं०१८ सारे भंग १ भंग के समान जाननाको००१८ देखो को नं०१८ देखो | १ भंग नं० को १८ सारे भंग । मंग के २ के भंग में में कार्माण कोनं०१८ देखो को नं०१८ दलो काययोग घटाकर का भंग औमिथकाययोग जानना, ४२-३७-५२ के भंग को सारे भंग १ भंग नं०१५ के ४०-३५-३३ | कोनं०१८ देखो कोनं०१८ देखो हरेक भंग में से कार्मारा काययोग १ घटाकर ४२1३७-१२ के भंग जानना Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६४ आहारक मैं २३ भाव (४) देवगति में सारे भंग १ मंग ३२-३६-३२-४१-३६-३२-कोनं १६ देखो को नं.१६ देखो ३२ के भंग को नं०१६ | के ४३-३८-३३.४२-३७। ३३-३३ हरेक भंग में से कारण काययोग १ घटाकर ४२-३७-३२-४१-३६ ३२ के भंग जानना सारे भंग भंग । सारे भग १ भग (१) नरक गत्ति में १७-१६-१६-१७ | हरेक अंग में से कुअवि जान १. मनः । २६-२४-२५-२८-२७ के भंग के अंग । कोई एक-एक , पर्यय जान १, उपशम ' को० नं०१६ देसो को.नं१६ देखो | भंग जानना चारित्र १. सरागसंयम १ 1) तिर्यच गति में १७-१६-१६-१७-१७. हरेक भंग में से | पे४ घटाकर (४६) २४-२५-२७-३१-२६. के रंग कोई न त में १७.१७ के भंग हरेक भंग में से ३०-१२-२६-२७-२५- को० नं० १७ देखो मंग जानना २५-२७ के भग को० नं०१६ देखो | कोई एक-एक २६-२१ के भग को नं०१६ देखो भंग जानना को००१७ देखो (२) तिर्यच गति में १७-१६-१०-६- हरेक मंग में से (३) मनुष्य गति में १७-१६-१६-१७. हरेक मंग में से २४-२५-२७-२७-२२-२३- १७ के मंग काई एक एक ३१-२६-३-३३-३०-१७-१७-१७-२७- | कोई एक-एक २५-२५ २४-०२-२५ के भंग को० नं. १-देखो भग जानना ३१-२७-१-२६-२६-१७-१६-१६-१५- मंग जानना को नं०१७ देखो २८-२७-२६-२५-२४- १५-१४ के भंग (३) मनुष्य गति में १+१६-१७-१७- हरेका भंग में से २३-२३-२१-२०-१४- को० नं०१८ देखो ३०-२८-३०-२७-१४-१०-१७-१६.७ कोई एक-एक २७-२५-२६-२९ के मंग २४-२२-२५ के भंग के भंग भंग जानना को० नं०१८ देखो को००१८ देखो को नं०१८ देखो (४) देवगति में |१७-१६-१६-१७. 'हरेक मंग में से | (४) देवगति में १७-१६-१७-१६- हरेक भंग में से २५-२३-२४-२६-२७-१७-१६-१-१७. । कोई एक-एक | २६-२४.२६-२१-२८- १७-१७-१६-१७. कोई एक-एक २५-२६-२६-२४-२२- १७-१६-१६-१७. भंग जानना |२३.२१-२५-२६ के भंग' १७ के भंग | भंग जानना २३-२६-२५ के भंग १७के भंग को न सो को नं. १६ देवो को.नं. १६ देखो को.नं. १६ देखो । Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अवगाहना-कोनं १६ से ३४ देखो धंध प्रकृतियां- १२० पर्याप्त अवस्था जानना, ११२ अपर्याप्त अवस्था में अन्धयोग्य 100 में से नरक-तियंच-मनुष्य-देवायु ४, माहारकढिक २, नस्कदिक ३ ये ८ घटाकर विग्रह गति में ११२ प्रकृतियों का बन्ध जानना को १ से १३ में देखो। जब प्रकृतिया-१२२ पर्याप्त अवस्था में जानना । ११८ अपर्याप्त अवस्था में उदययोग्य १२२ में मे नरकादि गत्यानुपूर्वी ४, घटाकर ११८ विग्रह गति में जानना, विपत्त को न०१ से १३ में देखो। सस्व प्रकृतियाँ-१४८ भंगों का विवरण को नं०१ से १३ में देखो। सल्या-मनन्तानन्त जानना । क्षेत्र--सबलोक जान्दना । स्पान-मलोक जानना। काल-जाना जीवों की अपेक्षा सरंकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा तीन समय कम क्षुद्रभव से ३३ सागर काल तक जानना । अन्तर--माना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं। एक जीव को अपेक्षा निग्रह गति में एक समय से तीन समय तक प्राहारक न बन सके । माति (पोनि)--४ लाख योनि जानमा । कुल--१६६ लाश कोटिफूल जानना । २९ Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन क्र० स्थान सामान्य शशलाप १ R K १ गुण स्थान १-२-४-१३-१४ से ५ गुण० जानना ८ २ नीव समास संज्ञी पं० पर्यात १, अपर्याप्त अवस्था ७. ये जानना ३ पर्याप्त को० नं० १ देखो ! पर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा * (१) मनुष्य गति में १४वे गुरंग स्थान जानना (१) मनुष्य गति में १ मंत्री पं० [पय अवस्था को० नं० १८ देखी ६ (१) मनुष्य गति में ६-६ के मंग-को० नं० १८ देखो ( ६८४ ) कोष्टक नं० ६५ एक जीव के नाना एक जीव के एक समय में समय में १ गुण० ११४वे गुण ० जानना १ समास १ भंग को० नं० १६ देखो १ गुण ० १४वे गुरण ० जानना १ समास १ भंग को० नं० १८ देखो अपर्याप्त नाना जीवों की अपेक्षा ६ (१) नरक गति में १ ले ४षे भोगभूमि में १-२-४ (३) मनुष्य गति में : सारे गुरग ० स्थान अपने अपने स्थान के सारे गुण ० (२) नियंच गति में १-२ स्थान जानता अनाहारक में जीव के नाना समय में ३ (१) नरक देवगति में हरेक में ३ का भंग-को० नं० १६-१६ देखो 1 १ समास १- ४-१३ मोसम में १२.४ (x) देव मे १ २.४ ७ अपर्याप्त अवस्थ (१) नरक मनुष्य- देवगति को० नं० १६-१८ में हरेक में १६ देखो १ सोपं जानना पर्याप्त १ जीव के एक समय में 5 १ गुरण० अपने अपने स्थन के सारे गुण ० में से कोई १ गुण० जानना १. समास | को० नं० १६१०- १६ देखो को० नं० १६-१०-१२ दमो १ समाम १ समाम (५) तियंच गति में ७-६-१ के भंग-को० न० क० नं १७ देखो | को० नं० १७ १७ देख देखो १ भंग को० नं० १६-१६ देखो १ मंग | को० नं०१६देखो Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , चौतीस स्थान दशन कोष्टक नं०६५ अनाहारक में । भाँतीस स्थान बशन मंग ४ प्राण को.नं.१५ देखो (1) मनुष्य गति में '१ घायु प्राय जानना को नं०१५ देखो । (२) तिर्वच-मनुष्य गति १ मंग में हरेक में को.नं. १७१८ को नं०१७३-३ के भंग-को० नं0 देखो १८ देसो १७-१८ देखो लब्धि रूप अपने अपने | स्थान के ६-५-4 के भंग | भी होते हैं १मंग १ भंग १ मंग को० नं०१५ देखो को नं०१८ (१) नरक-देवगति में को० नं. १६-१६ | को० नं०१६देखो हरेक में देखो १६ देखो ७ का भंग-को० नं. १६-१६ देखो (२) तिर्यच गति में भंग | ७-७-६-५-४-३-७ के भंग को नं०१७ देखो | कोन०१७ को.नं०१७ देखो देखो (1) मनुष्य गति में ७-२-७ के भंग को० नं. १५ देखो । को.नं०१८ को०२०१५ देखो १ भंग १ भंग (१) नरक-देवगति में को.नं०१६-१६ | कोनं०१५४ का भंग-को. नं. १६-१९ सो (२) निर्यच गति में भंग १ भंग ४-1 के भंग-को० नं. को० नं. १७ देखो ' को नं० १७ १७ देखो । देखो (३) मनुष्य गति में मंग . १ भंग ४-1-४ के भंग को००१८ देखो 1 को.नं.१८ को० नं. १८ देखो ५ संज्ञा को००१ देसो | (१) मनुष्य गति में (0) अपयत संज्ञा जानना को नं. १८ देखो 1 देतो Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन १ ६ गति को० न० १ देखो " इन्द्रिय जाति संज्ञी पं० जाति १ ८ काय २ को० नं० १८ देखो ६. योग कार्माणकाय य १० वेद १ को० नं० १ देखो मनुष्य गति जानना (१) मनुष्य गति में १ संज्ञी पंचेन्द्रिय जाति को० नं० १८ देखो (१) मनुष्य गति में १ असकाय जानना को० नं० १८ देखो अयोग जानना गत वेद जानना | ६८६ } कोष्टक नं० ९५ ! 1 चारों गति जानना (१) नरक- मनुष्य- देवमति में हरेक में १ संज्ञी पंचेन्द्रिय बालि को० नं० १६-१८-१६ देखो (२) तियंच गति में ३-१ के संग को० नं० १७] देखो अनाहारक में ३ (१) नरक गनि में १ नपुंसक वेद जानना १ जाति [को० नं० १७ देखो १ काय (१) नरव-ममुध्व-देवशांत को० नं० २६-८में हरेक में १९ देख १ सकाय जानना को० नं० १६-१८-१६ देखो | २) तियंच गति में ६-४-१ के भंग को० नं० १७ देषो १ | (१) चारों गतियों में हरेक में १ का भंग कार्मारणकाय योग विग्रह | गति में जानना को० नं० १६ मे १९ देखी | १. गति १ जाति १ जाति को० नं० १६-१०- को० नं० १६१६ देखो १८-१९ देखी ५ १ काय को० नं० १७ देखो १ गति १ जाति | को० नं० १७ देलो १ काय को० नं० १६१५-१६ देखो १ काय को० नं० १७ देखो १ १ को० मं० १६ मे को० नं० १६ से १६ देखो १६ देखो ↑ १ को० नं० १६ देखो को० नं० १६ देखी Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (६८७ । कोष्टक नं० ६५ अनाहारक मे को.नं. १ देखो मकषाय जानना को.नं. १६ देखो (२) तिर्यंच गति में ३-१-१-१-३-२-१ के मंगको० नं० १७ देखो को००१७ देखो को०० १७ देखो (३) मनुष्य गत्ति में मारे भंग । १ वेद ३-१-०.२-१ के भंगको० न०१८ देखो कोन०१-देखो को००१८ देखो (४) देवगति में | सारे भंग | १ वेद २-१-१ के भंगको .नं. १६ देखो कोनं०१६देखो को० नं०१६ देखो | सारे मंग१ मंग (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो कोनं०१६ देखो २३-१६ के भंग को नं०१६ देखो (२) तिथंच गति में ] सामंग १ भंग २५-२३-२५-२५-२३-२५. को०० १७ देखो कोन०१७ देखो २४-१६ के भंग कोनं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग २५-१६.०-२४-११ केभंग को.नं०१८ देखावोनं०१५ देखो कोनं० - देखो (४) देवनि में सारे भंग १ भंग २४-२८.२३-११-१६ को २०१६ देखो को०१९ देखो के मंग को नं०१६द . सारे मंग (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो कोन.१६ देखो २-३- के मंग कोल्नं०१६ देखो । १२ज्ञान ६ (१) मनुष्य गति में कुमवधि शान है, १ केवल ज्ञान जानना मनः पर्यय ज्ञान १, | कोनं०१८ देखो ये २ घटाकर () Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंतीस स्थान दर्शन कोष्टक न०६५ अनाहारक में ( नियंच गति में जान २-२-३ के भग को न०१७ देखो कोनं १७ देखो को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १ जान २-३-१-२-३ के भंग को नं. १- देखो कोनं०१८ देखो । को० नं. १८ देखो (१) देवगति में | मारे भंग १ज्ञान २-२-३.-३ के मंगवो० नं.१६ देखो कोज्नं०१६ देखो को० नं०१९ देखो १३ संयम ___ असंयम, यषाख्यात ये २ जानना (१) मनुष्य गति में यथास्था जाना को.नं०१८ देखो १४ दर्शन को० नं.१८ देखो । (१) मनुष्य गति में १ केवल दर्शन जानना को नं०१८ देखो (१) नरक-तिबंध-देवति को नं. १६-१७ कोनं०१६-१७में हरेक में १६ देखो । १६ देखो १ ममयम जानना कोन०१६-१७-१६ देखो। । (३) मनुष्य गति में सारे मंग । १संयम | १-१- के मंग को० नं०१८ देखो को नं०१८ देखो ' कोनं ८ देखो । सारे भंग १दर्शन (१) नरक गति में कोनं०१६ देखो कोनं०१६ देखो २-३ के भंग कोल नं० १६ देखो (२, नियंच गति में भंग दर्शन १-२-२-२ मंग कोनं०१७ देखो को नं०१७ देखो को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे भंग १दर्शन २-३-१-२-३ के मंगको नं.५८ देको फोनं-१८ देतो को नं०१८ देखो (४) देवगति में १ भंग .१ दर्शन २-२-३-३ मंगको -नं.१६ देखो को नं०१९ देखो Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन (६८६ ) कोष्टक नं. ६५ अनाहारक में १५ लेश्या को.नं.१ देखो प्रलेण्या जानना १६ भव्यत्वं मन्य, प्रभव्य (१) मनुष्य गति में १भव्य जानना । को० नं०१८ देसो १७ सम्यक्त्व मित्र घटाकर (५). (१) मनुष्य गति में १क्षायिक सम्यक्त्व कोनं०१८ देखो | को० नं. १६ देलो १ लेश्या (१) नरक गति में को नं० १६ देखो कोनं० १६ देखो | का भंग को.नं. ६ देसो (२) तिर्यच गति में मंग । १ लेश्या | ३-१ के मंग | कोनं० १७ देखो कोनं० १७ देखो को.२०१७ देखो (३) मनुष्य गति में | सारे मंग लेश्या |६-३-१-१ के भंग को० नं० १८ देखो कोनं० १८ देखो को. नं०१५ देखो (१) देवगति में १मंग १लेश्या ३-३-१-१ के मंगको नं. १६ देखो कोनं.१६ देखो को नं०१६ देखो १मंग १अवस्था (१) चारों गति में हरेक में कोनं १६ से १६ कोनं १६ से | २-१ के मंग देखो देखो को. नं. १६ से १६ देखो | सारे भंग १ सम्यक्त्व | (१) नरक गति में को.नं. १६ देखो कोनं०१६देखो । १-२ का भंग | को० नं. १६ देखो (२)तियंच गति में है भंग । १ सम्यक्त्व १-१-१-१-२ के मंग को.नं. १७ देलो सोनं०१७ देखो को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग १सम्यक्त्व १-१-२-१-१-१-२ को न.१८ देखो कोनं०१५ देखो के मंग कोन०१८ देखो Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर ६५ अनाहारक में (४) देवगति में १-१-३ के भंग को० नं०१४ देखो सारे भंग १ सम्यक्त्व को० नं०१६ देलो को२०१९ देखो १८ संजी संजी असशी भनुभम अर्थात न संज्ञी म प्रसंझी जानना | (१) नरक-देवगति में को० न०१६-१६कोन०१६। हरेक में संत्री जानना | देखी १६ देखो कोनं०१६-१६ देखो (२) तिर्यच गति में भंग । १ अवस्था | १-१-१-१-१-१ के भंग को० न०१७ देखो को.नं. १७ देखो को नं. १७ देखो 1(३) मनुष्य गति में । ।१-०-१के भंग को नं०१८ देखो कोन०१५ देखो | को.नं. १५ देखो १९ माहारक . .. ! अनाहारक : (१) मनुष्य गति में | १ मनाहारक जानना को००१८ दसो २० उपयोग १.! जानोपयोग ६, (१) मनुष्य गति में दर्शनोपयोग ४ २का भंग ये १० जानना को.नं. १५ देखो २ युगपत् २ युगपत् चारों गतियों में हरेक में 'अनाहारक विग्रह गति | में जानना १ भंग १ उपयोग (३) नरक गति में कोनं.१६ देखो कोनं०१६ देखो | ४-६ के भंग । को नं १६ देखो (२) नियंच गति में भंग । उपयोग ३.२-४-३-४-४-६-६ के मंग को.नं. १७ देखो को२०१७देखो । को.नं. १७ देखो । (३) मनुष्य मति में सारे भंग १ उपयोग ४-६-२४-६ के मंगोल नं.१८ देतो कोनं.१८ देखो को० नं. १८ देखो (४) देवगति में १ भंग १ उपयोग ४-४-६-६ के मंग | कोः नं. १६ देखो कोन०१६ देखो Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०६५ अनाहारक में २१ ध्यान को.नं. १६ देखो । । सारे भंग अपाय विचय घटाकर । १ ध्यान " को १६ देखो :१) मनुष्य गति में १ का मंग को.नं०१८ देखो - -- ( नरक-देवगति में को० नं. १६-१६ को.नं. १६-१६ हरेक में देखो - के भंग को०० १६-१६ देखो । (२१ तिर्यच गति में १ भंग १ध्यान ८-८-८ के भंग को० नं०१७ देखो को नं. १७ देखो को० नं.१७ देखो । (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ध्यान । ८-६-१-८-६ के भेगको० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो को। ने०१८ देखो । सारे भंग भंग (१) मरक गति में को०१६ देखो को.नं. १६ देखो ४२-३३ के भंग को नं. १६देखो (२) तियेच गति में सारे मंग भं ग ३७-३८-३६-४०-४३. को.नं. १७ देखो को००१७ देखो ४४-३२-३३-३४-३५ । अनानव जानना २२ पास्त्रद मिथ्यात्द अविरत १२, कार्माण काययोग १ कपाय २५, ये (३) जानना के मंग को.नं. १७ देखो (३) मनुष्य बत्ति में सारे अंग भंग ४४.३६-३३-२-१-१३-को.नं०१८ देखो को.नं. १५ देखो ३८-३३ के मंग । को० ने०१८ देखो Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०६५ अनाहारक में ' देतो २३ भाव उपशम सम्यक्त्व १, उपशम चारित्र , कुमवधि शान, मनः पर्यय शान १, सरागसयम, ये ५ घटाकर (१) मनुष्य गति में १३ का भंग-को. १८ देखो . सूचना:-पेज नं० १९३ पर देखो ! (४) देक्गति में सारे भंग १ भंग ४३-३८-३३-४२-३७-३३ को० नं. १६ देखो । को० नं०१९ ' -३३ के. मंग-को० नं० १६ देखो सारे मंग भंग ! सारे भंग । १ भंग को.नं. १८ देखो को नं०१८ (१) नरक गति में को.नं०१६ देखो । को००१६ | देखो २५-२७ का मंग को० नं. १६ देखो (२) तिर्यंच गति में सारे भंग : १ भंग २४-२५-२७-२७-२२-२३-को० नं०१७ देखो को० नं०१७ २५-२५-२४-२२-२५ के भंग-को.नं०१७ देखो |1) मनुष्य गति में सारे भंग । १ मंग २७-२५-३०-१४-२४-२२-कोनं. १८ देखो। को नं०१८ । २५ के भंग-को० नं. 1 १८ देसो (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग (२६-२४-२६-२४-२८-२६- को० नं०११ देखो । को.नं०१९ २१-२६-२६ के भंग देखो | को० नं०१६ देखो । देखो Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ २५ २६ २७ २५ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ( ६९३ ) सूचनाः कल्पवासी देवों में जाने वाले के विग्रह गति में द्वितीयोपशम सम्यक्त्व भी अनाहारक अवस्था में होता है इस प्रपेक्षा से उपसं सम्यत्व भी नहीं घट सकता केवल प्रथमोपसं सम्यत्व में मरा न होने की अपेक्षा ही उपसं सम्यक्त्व पट सकता है । वाहनाको० नं १६ से ३४ तक देखो । - प्रकृतियां - ११ बंध योग्य १२० प्र० में से बायु ४, माहारकद्विक र नरकविक २ ये घटाकर ११२ प्र० का बंध जानता| को० नं० १-२-४-६-१३ में देखो । उदय मागंणाका श्रा भेद), औदारिकद्विक २, वैक्रियिकद्विक २, आहारकद्विक २, संस्थान ६, संहनन ६, उपघात १, परघात १, उच्छ्वास १, प्रातप १ उद्योग १, विहायोगति २, प्रत्येक १, साधारण १ स्वरद्विक २, महानिद्रा ३ (निद्रानिद्रा, प्रचभाप्रचला, स्थानगृद्धि ये ६) ये ३३ घटाकर ८६ प्र० का उदय जानना को १२-४-६-१३ देखो । - सत्त्व प्रकृतियां – १४८ को० नं० १-२-४-६-१३ देखी । संख्या-अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र---लोक का असख्यातवां भाग, लोक के असंख्यात भाग, सर्वलोक, विशेष खुलासा को० नं० -२-४-६-१३ देखो । स्पर्शन ऊपर के क्षेत्र के समान जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा विग्रह गति में एक समय से तीन समय तक जानना प्रयोग केवली की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की धपेक्षा तीन समय कम क्षुद्रभव ग्रहण काल से ३१ सागर काल तक अनाहारक न बन सके। जाति (योनि) - ८४ लाख योनि जानना । फुल - १६६ । लाख कोटिकुल जानना । - Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ है, निश्चय करी अब इस ग्रंथ की समाप्ति करते हुये लिखिये है कि जितने जैन शास्त्र है तिन सबका सार इतना ही व्यवहारकरी पांच परमेष्ठी की भक्ति भीर श्रभेव रत्नत्रयपथी निजात्मा की भावना ये है, भव्यात्मा हो ! यह बात तब समझ सकेगा श्रापणान्त भाव से निरन्तर जैन शास्त्र का करें देखो प्रबोधसार ग्रंथ में लिखा है कि ही शरा जब कि स्वाध्य य भूत बोधप्रदीपेन शासन वर्ततेऽधुना । विना श्रुतदीपन सबै विश्वं तमोमयम् ॥ और भी तदुक्त गाथा - सरणगाण चरितं सरणं सेवेह परमसिद्धाणं । भणं किंपि न सरणं संसारसंसरणंताणं ॥ और भी सामायिक पाठ में कहा है कि एको में शाश्वतदचात्मा ज्ञानदर्शनलक्षणः शेष बहिर्भवा भावाः सर्वे संयोग लक्षणाः ॥ १३॥ इसका अर्थ विचार करके विषय कषाय से विमुख होकर शुद्ध चैतन्य स्वरूप की निरन्तर भावना करनी चाहिये । यही मोक्ष का मार्ग है, तदुक्त गाया जे खिरन्तर मारिय विसयकसामहं जतु । मोक्खह कारण पतज प्ररणरणतं तणं मंतु ॥ जंसक्कतं कीरह जंरग सके तं च सद्दह्णं । सदहमारा जीवो पावइ अजरामरं ठाणं ॥ तवयरणं वयधरणं संजम सरणं सम्ब जीव दयाकरणं । समाहिमरणं चउग दुक्खं निवारेई || सुइ कालो थोवो वयं च दुम्मेहा । तंवरि सिखियध्वं जं जरमरणं वलयं कुाई ॥ इसी तरह समाधिशतक में भी कहा है- तव मात्तसरान् पृच्छेत् तदिन्चेसमरो भवेत् । येनाविद्यामयं रूपं त्यक्त्वा विद्यामयं व्रजेत् ॥१५३॥ सारांश इस पंचमकाल में जैन शास्त्र बड़े उपकारी हैं, यावत् काल इनका अवगाहन रहे लावन काल ज्ञान का प्रकाण होय, इन्द्रियों का अवरोध होय, जैसे सूर्य के उदय उद्योत होय और घूषू (उल्लू) नाम जीव ग्रंथ हो जाय है, जिस शांत भाव से निरन्तर शास्त्राभ्यास करना सर्वथा योग्य है 1 अथ अन्तिम मङ्गल स्मरण येऽतीतापेक्षयानन्ताः, संख्येया वर्तमानतः । श्रनन्तानन्तमानास्तु भाविकालव्यपेक्षया ॥ तेऽन्तः सन्तु नः सिद्धाः, सूर्य माध्यायसाधवः । मङ्गलं गुरवः पंच, सर्वे सर्वत्र सर्वदा ||१|| अर्थात् जो प्रतीत काल की अपेक्षा अनन्त संख्या वाले हैं, वर्तमान काल की घपेक्षा जो संख्यात है तथा भविष्यत्काल की अपेक्षा जो श्रनन्तानन्त संख्यायुक्त हैं, ये समस्त अरिहन्त, सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय तथा साधुरूप पंचगुरु समुदाय सदाकाल सर्वत्र हमारे लिये मङ्गल स्वरूप होवें । 'जयतु सदा जिनधर्मः सूरिः श्रीशान्तिसागरो जयतु' यह जैन धर्म सदा जयदन्त हो तथा भाद्रपद शु० २ श्री वीरनिर्वाण सं० २४८२ विक्रम सं० २०१२ सन् १६५६ ६० को ८४ वर्ष की आयु में दिवङ्गत पाचार्य वयं श्री शान्तिसागर जी महाराज सवा जयवन्त रहें । * इति ग्रन्थ समाप्ति Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौंतीस स्थान दर्शन (दोहा) प्रसिद्ध भगवान को, वन्दो मन-वच-काय । चौतीस स्थान दर्शन, रचना कहों बनाय ॥१॥ (छन्द-सर्वया इकतीसा) जघाव नरक-देव दश हजार मानिये, तिर्यक् नर जघन्य काल अन्त महतं ध्याइये। मध्यम में अनेक भेद जिनवाणी गाइये, ३२ नारकी-मनुष-देव-तिथंच अन्तर जानिये ।। जघन्य कहो एक ही अन्तमहतं मानिने अन्तर उत्कृष्ट के अनन्त भेद जानिये । गुण चौदा, जीव चौदा, प्रजा षट, प्रारण दस, संज्ञा चार, गति चार, छटवा स्थान जानिये । जाति लाख चउरासी प्राधपाटि दो सौ लाख, इन्द्रिय पांच, कायषट, योग पन्द्रह, वेद तीन, चौपाय, ज्ञान पा, संयम सात मानिये ।।२।। हग चार, लेश्या षट, भव्य दोय, सग्य कछे, १८ १९ २० सनी दोम, आहार दो, उपयोप बारा, मानिये । कोटिकुल संसार त्याग सिद्ध पद पाइये ।।६।। (छन्द-सवैया तेईसा) पहले जोव समास सकल है, शेषन में बस एक ही जान । पर्याप्ति चौदम लग पट ही, प्राण बार में लग दस जान ॥७ तेरम बच-तन-श्वास-मायु चतु, चौदम एक प्रायु पहिचान । संशा कहिये षट लग चारो, सप्त अष्ट त्रय हार न स्थान | नव में मैथुन परिग्रह धोनों, दस में परिग्रह अगे हान । संज्ञा पर संसार खड़ा है, इनके गिरते ही पायत निर्वाण ॥ ध्यान सोला, प्रासय सत्तायन, भाव वेपन, अवगाहना योजन हजार, बताइये ।।३।। २६ बंध एक शत बीस, उदय एक शत बाईस, सख शत एक अड़तालीस प्रभु गुण गाइये । संख्या है अनन्त, क्षेत्र-फर्श भी है सर्वलोक, ३१ काल परिवर्तन प्रसंख्यास पूदगल जानिये ॥४॥ छन्द-चौपाई पहले ते चतुलग गति चार, पंचम में नर पशु विचार : Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्टे तें चोदम लग कही, मानुष गति क जानो सही ॥१०॥ इन्द्री पांचों मिध्यात, दुजे ते चौदम लग जात ६क पंचेन्द्री जिनवर कही, दम इद्रिय वर्णन वर ।।११।। पहले गुरण पट काय जु लसे, दुजे तें चोदम नस बसे । पहले दूजे तेरह योग, शरकदिक विन जान वियोग ||१२|| तीजे में दस इमि गिन लाय, मन वच अष्ट मोदारिक काय । वैीयक मिलन दस भये, चौथे प्रमोद पहिले कहे ॥ १३ ॥ पंचम में मन वर्ष बसु जान, और प्रौदारिक मिल नव स्थान । प्रस में एकादस योग, हारकडिक गुत जान नियोग ॥ १४॥ सनम तें बारम लग जान, नव पंचम जान सुजान । तेरम जोग सप्त निराधार, धनुभय-सत्य वचन मन चार ||१५|| श्रदारिक श्रदारिक मिश्र, कारण मिल सुप्त जो दिख चोदम गुण स्थान धयोग, काट संसार मोक्ष सुख भोग ||१६|| वेद प्रथम ते नव लग सोन. आगे वेद न जान प्रवीन । वेद रहित जो भये प्रवीन, ( ६८८ ) मोक्ष सुखों में ये हुये लीन ।। १७ ।। अब कषाय को वर्णन करो, गुण स्थान भिन्न मिश्र उभरो। यही संसार का विष महान्, इसको ही त्याग भये भगवान || १८ || छन्द-छप्पय पहले जे सर्व मिश्र, इकोस भनी । चौथे हू इकत्रीस चौकड़ी, प्रथम न लीजे ॥१२॥ प्रत्याख्यान बिना, देश संयम में सतरा । प्रत्याख्यान बिना तेरषद्, सन वसु इकरा ॥२०॥ नव में गुण सब सात हैं. संज्वलन श्रये वेद भन । दसमें सूम लोभ इक आगे हीन कषाय गन ।। २१ ।। प्रथम द्वितीय कुज्ञान, तीन वीज सुमते भन ये तीन सुजान, पंचम में भी इमिगन || २२ || ते द्वादवा स ज्ञान केवल बित चारो । तेरम-चौदन मुख स्थान, केवल इक बारो॥२३॥ इहि विधि मुख पर ज्ञान को, कथन कहो जगदीश ने । अब संयम रचना कहूं. जिमि सुतर भावी जिने ॥ २४ ॥ पहले तें चतु लगे, श्रसंयम ही इन जानो । पंचम-संयम देश छठें, सप्तम इम भानो ॥ २४५॥ सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धी अष्टम-नम गुरु दोय, 1 नाहि परिहारविशुद्धी ||२६|| Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांपराय, सूच्छम दसे, ग्यारमतें जु भयोग तक। इक यघाख्यात ही जानिये, ये संयम सुखकर अधिक ॥२७॥ पहले दूजे दोय, प्रचक्षु-चक्षु भनीजे। प्रयतें बारम तई, अधियुत तीन गनीजे ॥२॥ केवल सेरम-चौद, और षट लेश्वा चतु लग। पचम-पष्ठम-सप्त, तीन शुभ लेश्या हर अध ॥२६॥ फिर अष्टम ते सयोग तक, एक शुक्ल लेश्या ही कही। गुरण चोदहें सब नाश कर, जाय सिद्ध पदवी लही ॥३०॥ पहले भव्य-प्रभव्य, द्वितीयत भव्य चौदम तक। प्रयगुग्ण के जो नाम, तहां वोही सम्यक इक ॥३१॥ चतुपा षट सत माहि, क्षय-उपशम मम देदक । वसुते ग्यारम तई दोय, ___ उपशम और क्षायिक ॥३॥ शेषन क्षायिक ही कही, सनी-असनी मिथ्यात में। गुरुग दूजे तें बौदम तई, इक सैनी ही सुखपात में ॥३॥ ( छन्द-सर्वया तेईसा) पहले दूजे हार-अनहारक, तीजे हारक चौये दोय। पचमते बारम तक हारक, तेरम हार-प्रनहारक होय ।।३।। सौदम इक अनाहार गनोजे, गुरण-स्थान चौदह इमलीजे। काय रहित भये जो सिद्ध, चरनों में उनके शिरजेशा (छन्द-छप्पय ) पहले-तुजे दर्श दोय, कुमान तीन है। मिश्र माहि जय दर्श. ज्ञान पुनि मिश्र तीन है ॥३६ । चतु पन षट विज्ञान, तीन शुभ दशं बखानो। षटतें द्वादश तई, सप्त मनः पयय जानो॥३०॥ तेरम चौदम दोय है, केवल दर्शन-जान युत । फिर अघातिया हान के, पायो पद अति अदभुत ।३।। पहले दूजे प्रष्ट, मार्त-रौद्र के जोय। मिथ माहि नव जान. धर्म का एक मिलोय | | पुनि वृषके दोय भेद, मिले दस चतु गुण-स्थानो ! पंचम त्रय वृष मिले, एकादश सब पहिचानो।।४।। षट प्रारत त्रय धर्म चउ, सब चर ग्यारम लग शुक्ल । बारम तेरम पुनि चौदमें, क्रमतें शेष त्रिक शुक्ल ॥४॥ पहले पचपन कहे, पाहारकद्विक बिन जानो । पंच मिथ्यात्व जु बिना द्वितीय पच्चास बखानो ।।४।। तीजे मिश्र जु माहि, तीन चालिस ईखानो। प्रअत गुरण जिहिं नाम, चतुम चालिस छह जानो। ४३.! योग कषाय जु पूर्ववत् , अबत म्यारह पंच में। Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चौबीस योग कषाय के, प्रमत्त गिनिये संच में ॥४॥ सप्तम अष्टम गुण-स्थान। बाईस जु मानव। नव में सोलहू नये, दस दस म्यारम में नव ॥४५॥ बारम में नव जान. तेरमें सप्त गनीजे । मन-बचके द्वय दोय, औदारिक युगल सु लीजे ।।४६।। कारिण मिल सप्त ये, तेरम गुण में जानिये। पुनि चौदम में प्रास्रव नहीं, यह मन-वच उर प्रानिये ॥४७॥ पहले चौंतीस दूजे बत्तीस, तेतिस भाव मिश्र में जान । चोथ छत्तिस पचम षटम, सप्तम में एकतीस बखान ।।४८|| अष्टम नवमें उनतीस ही जानो, दसमें तेईस कह्यो भगवान। ग्यारम में एकईस कही है, बारम में बस बीस ही जान ॥४६| तेरमें चौदह चौदहमें सेरह, सिद्ध गति में पांच ही जान । भाव त्रेपन का यह वर्णन, जिन बाणी भाषा भगवान् ॥५०॥ सात धनुष पंचशतक, नारक की नवगाहन जान । एक हाथ से धनुष पंचनात, देवों की भाषा भगवान् ।।५।। एक हाथ से तीन कोस काया, मनुष्य गति किया बखान । धनांगुल का भाग असंख्य से, तीन कोस तिर्यक् जान ॥५२॥ एकसौ एक बंध नारकी, एकसौ सतरा तिर्यंच की जान । एकसौं बीस मनुष्य को जानो, एक सौ चार देवकी भान ॥५ मनुष्य तिथंच लब्ध्य की जानो, एकसो नव कहे भगवान | भोगभूमि को बंध प्रकृति, मिला नहीं प्रलय बखान ||५४|| उदय छ्यंत्तर नारक कहिये एक सौ सात तिर्यंच की जान। मोगभूमि तिमंच उन्नासी, सध्य तिर्यंच इकत्तर जान ||५|| एकसौ दोय मनुष्य बतायो, भोगभूमि में प्रयासर जान । मनुष्य गति लटध्य इकत्तर, जिन वाणी में किया बखान ॥५६॥ देवगति में उदय प्रकृति सतत्तर, बाणी में मिलता बखान । चारों गति उदय की हानि, करम काट पहुंचे निर्वाण ।।५७|| नरक-तियंच-देवगति की, सस्व सौ सेंतालीस जान । मनुष्य गति एक सौ भइतालीस, सब की सब भाषी भगवान् ॥५८|| नरक-मनुष्य-देव को पसंख्यात, अनन्त संख्या तिर्यंच की जान । अन्तर भेद बहुत से भाषित, इसी ग्रन्थ में किया बखान ।।५।। तरक-देव-मनुष्य जीवों का, सनाड़ी है क्षेत्र महान् । तिथंच जीव सर्वलोक में, जिन वाणी भाषा भगवान् । ६०॥ नरक स्पर्शन छ राजु, समुद्घात मारणान्तिक जान। देवगति का तेरह राजु, शक्ति के प्राधार बखान ॥२१॥ तियंच-मनुष्य सम्लोक स्पर्शन, समुदुघाल मारणांतिक जान । Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षटते चौदह तई, __ मनुष्य लक्ष चौदह स्थानो ॥६७।। कुलकोडि प्रथम में जान, सब वुजे ते चतु लग चऊ । पंचम नर पशू सकल गन, मागे मनुष्य जान सक ॥६८।। केवल समुद्घात मनुष्य सर्वलोक स्पशन जान ॥६२।। तेतीस सागर देव-नारकी, तियंच मनुष्य त्रिपल्य बखान । नरक-दव की जघन्यकाल, वर्ष हजार दस ही जान ॥६॥ तिर्यंच-मनुष्य की जघन्यकाल, ___ अन्तर्मुहूर्त हो जान। कर्मकार जो मोक्ष पधारे, काल अनन्तानन्त ही जान ॥६॥ नरक-देव-मनुष्य-तियंच की, अन्तर्मुहूर्त ही अन्तर जान । उत्तम अन्तर भेद बहुत है, चौतीस स्थामक दर्शन में जान ।।६।। चौरासी लक्ष योनि, प्रथम गुण स्थाने सारी । दूजे ते चौ तई, लाख छब्बीस बिधारी ।।६६।। पंचम में नर पशु, लाख अठ्ठारह जानो। ( छन्द-दोहा ) में सक, ( नी , यामें तू नहीं जीव । तेरा-दर्शन-ज्ञान गुरण, तामें रहो सदीव ॥६॥ दक्षिण महाराष्ट्र देश में, उत्तर-सतारा जिल्हा जान । फलटण नगर ग्रादि-जिन मन्दिर, यह रचना बनी विधान ॥७॥ श्री आदिनाथ जिन भगवान के, चरखारविन्द में शिर नमाय । श्री प्रादि सागर मुनि चरणपे, प्रणाम करे पंडित उलफतराय ।।०१।। Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७०२ ] चौबीस - दण्डक (दौलतराम कृत) दोहा वन्दों वीर सुधीरकों, महावीर गंभीर । वर्धमान सम्मति महा, देव देव श्रति वीर ॥१॥ गत्यागत्य प्रकाश के, गत्यागत्य व्यतीत । अदभुत प्रतिगति सुगति जो, जैनसूर जगदीश ||२| जाकी भक्ति बिना विफल, गये अनन्ते काल । गणित गत्यागति घरी, कटी न जग-जंजाल ||३|| चौबीसों दण्डक विषं धरी अनन्ती देह | नाही लखियो ज्ञान घन, शुद्ध स्वरूप विदेह ॥४॥ जिनवाणी परसदतें, नहिये श्रातमज्ञान । दहिये त्यागति सर्वे गहिये पद निर्वाणा ॥ ५ ॥ चौबीसों दण्डकतनी, गत्यागति सुन लेव । सुनकर विरक्त भाव धरि, चहुँ गति पानी देव ||६|| छन्द - चौपाई पहिलो दण्डक नारक लनों, भवनपती दस दण्डक भनी । ज्योतिष व्यन्तर सुरगति दास, धावर पंच महादुख रास ||७|| विकलत्रय प्ररु नर तिर्यंच, पंचेद्रिय धारक परपंच | चौबीसों दण्डक कहे, अब सुन इनमें भेद जु लहे ||८|| नारक की गति प्रागति वोय, नर तियंच पंचेन्द्रिय होय । जाय प्रसेनी पहिला लगे, मन बिन हिंसा करम न पर्गे ॥६॥ सर्प दूजे लग जाहि तीजे लग पक्षी शक नाहि । सर्प जाय चौध लग मही, नाहर पंचम आगे नहीं ||१०|| नारी लग ही जाय, नर अरु मच्छ सातवे थाय ये तो नरकतनी गति जान, अब प्रगति भाषी भगवान् ||११ ॥ नरक सातवें को जो जीव, पशुगति ही पावे दुख दीव | और नारकी षष्ठ सदीव, दो गति पावें नर पशु जीव ॥ २॥ पट्टे को निकसो जु कदाप सम्यक्त्वा होवे निष्पाप । पंवम को निकसो मुनि होय, चौथे को कवलिह जोय ॥१३॥ तृतीय नरक को निकलो जीव, तीर्थंकर है है जग पीत्र | ये नारक की गत्यागत्य, भाषी जिनवाणी में सत्य ॥ ११४ ॥ तेरह दण्ड देव निकाय, तिने भेद सुनो मन नाम । नर तिसच पंचेन्द्रिय बिना, औरन के सुरपद नहि गिना ||१५|| देव मरे गति पंच लहाय, भू, जल, तरुवर, नर, पशु थाय । दुजे सुरंग ऊपरले देव, थावर है न कहें जिन देव ॥ ६ ॥ बहस्रार तें ऊंचे सुरा, मरकर होवें निश्चय मरा । नर पशु भोगभूमि के दोय, दुजे सुरंग परे नहि होय ॥ १.७ ॥ जाय नहीं यह निश्चय कहो, देवनि भोगभूमि नहि नहीं । करम भूमिया नर अरु डोर, इन बिन भोगभूमि नहिं और Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाय ने तातें प्रागति दोय, गति इनको देवन की होय । कम भूमिया तिर्यच सत्त, श्रावक ब्रत धरि बारम गत्त ॥१६॥ सहलार ऊपर तिरं जायें नहीं ये सजि परपंच । अग्रत सम्यक्त्वी नरभाय, बारमते उपर नहि जात ॥२०॥ अन्यमती पंचारती साध, भवनत्रिकतें जाय न बाघ । परिव्राजक दण्डी है जेह, गनम परे नाहि उपजेह ॥२१॥ परमहंस नामा परमती, सहस्रार ऊपर नहिं गती। मोक्ष न पावे परमत माहि, जैन बिना नहि कर्म नशाहि ।।२२।। श्र बक प्रार्य अणुश्त घार, बहुरि श्राविकागरण अविकार । अच्युत स्वर्ग परे नहि जाय, ऐसो भेद कहो जिन राय ।।२३।। द्रव्य लिंग धारी जो जती, नव वेयक मागे नहिं गसी । बाह्याभ्यन्तर परिग्रह होय, परमत लिंग निद्य है सोय ॥२॥ पंचपंचोत्तर नव नवोत्तरा, महामुनो बिन और न धरा। कई बार देव जिय भयो, 4 केई पद नाही लयो ॥२५॥ इन्द्र हवो न शची हू भयो, लोकपाल कबहूं नहिं थयो। लोकास्तिक वो न कदापि, अनुत्तर यह पहुंचो न कदापि ॥२६॥ वे पद धरि बहु पद नहि धरे अल्पकाल में मुक्तिहि बरे। हे विमान सर्वारथ सिद्ध, सबसे ऊंचों अतुल जु रिद्ध ॥२७॥ ताके ऊपर है शिवलोक, परे अनन्तानन्त प्रलोक । गति-प्रगति देवन को भनी, अब सुनलो मानुष गति सनी ॥२८॥ चौबीसों दण्डक के माहि मनुष जाय यामें शक नाहि । मुक्ति हु पावे मनुष मुनीश, सकल धरा को है अवनीश ॥२६॥ मुनि बिन मोक्ष न पावे और, मनुष बिना नहि मुनि को ठौर । सम्यम्दृष्टी जे मुनिराम, भवधि उत्तरें शिवपुर जाय ॥३०॥ सहाँ जाय पविनश्वर होय, फिर जगमें प्रावे नहि कोय । रहे सासते आतम माहि, प्रातमराय भये शक नाहि ॥३॥ गति पच्चीस कही नरतनी, ग्रामति पुनि बाईस हि भनी। लेजकाय अरु बात जु काय, इन बिन और सर्व नरथाय ॥३२॥ गति पच्चीस प्रागति बाईस. मनुषतनी भाषी जगदीश । ता ईश्वरसम' पातमरूप, ध्याचे चिदानन्द चिद्रूप ॥३३॥ तो उतरे भवसागर भया, और न कोऊ शिवपुर लया । ये सामान्य मनुष की कही. अब सुनि पदवी घरको सही । ३४।। तीर्थकर की प्रागति दोय, . सुर नारकतें प्राचे सोय । फेर ने गति धारे जगईश. जाय विराजे जग के शीस ॥३५।। Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुलकर देवलोक ही जाय, मदन मदन हरि ऊरद याय ॥४४॥ चक्री प्रध-चक्री वा हली, स्वर्गलोक ते आवे बली। इनकी प्रागति एकही कही, अब सुनिये जागति जू सही ॥३६॥ च को की गति हीन बखान, स्वर्ग नरक अरु मोक्ष सुधान । तातो सुरक्षिय नाय, मरे राज में नरक लहाय ।।३७।। पाखिर पावे पद निर्वाण, पदवीधर में पुरुष प्रधान । बलभद्दर की दो जागती, सुरमें जाय के है शिवपती ॥३॥ तप धारे ये निश्चय भाय, मुक्तिपात्र सूत्र में गाय । अर्थचक्रि को एक हि भेद, जाय नरक में लहे जु खेद ॥३॥ राज माहि यह निश्चय मरे, तद्भव मुक्ति पंछ नहि धरे। पाखिर पावें पद निर्वाण, पदवीधारक बड़े सुजान ||४०।। इनकी प्रागति सुरगति जान, गति नरकन की कही बखान । आखिर पावें पद शिवलोक, पुरुष शलाका शिव के थोक ||४|| ये पद पाय सु जगके जीक. अल्पकालमें व जग पीव । और हू पद कोई नहिं गहे. कुलकर नारद हू नहिं लहे ।।४।। रुद्र भये न मदन हूँ भये, जिनवर तात मात नहिं थये। ये पद पाय रुल नहिं जीव, योरे दिनमें है शिव पीय ॥४३॥ इनकी प्रागति शृत तें जान, जागति रीती कहूं जु बखान , नारद रुद्र अधोगति जाय, कलह कलह महादुखदाप । जन्मान्तर पावे निर्वागा, बड़े पुरुष ये सूत्र प्रमाण ॥४॥ तीर्थकर के पिता प्रसिद्ध, स्वर्ग जायके होव सिद्ध माता स्वर्गलोक ही बाग, प्राखिर शिवसृख वेग लहाय ॥४६॥ ये सब रीति मनुष की कही, अब सुनि तिर्वग गति की सही। पचेन्द्रिय पशु मरण कराय, चौडीसों दण्डक में जाय ।। ७॥ चौबीसों दण्डकतें मरं, पशु होय तो नाहन परे । गति-भागति बरी चोवीस, पंचेन्द्रिय पशु की जगदीश ॥४८|| ता परमेश्वर को पथ गही, चौबीसों दण्डक को दहो। विकलत्रय की दस ही गति, दस भागति भाषी जिनपति ॥४६।। थावर पंच विकल तीन, नर तिर्यंच पंचेन्ट्री लीन । इन ही दस में उपजे पाय, इनही निकलत्रय याय ।।५०॥ नारक बिन दण्डक है जोय, पृथ्वी पानी वरवर होय । तेज वायु भरि नवमें जाय, मनुष होय नहिं सूत्र कहाय ।।५१॥ थावर पंच विकलत्रय होर, ये भवगति भाषी दमोर । दसते आय तेज अरु बाय, होय सही गावें जिनराय ॥५२॥ india Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ये चौबीसों दण्डक कहे, परमपद नहे । इन त्यान इनमें से सो जगको जीव इनसे तीरे सो त्रिभुवन-पोव । ५३॥ जीव इसमें और न भेद, ये कभी से कर्म-उच्छेद । कर्म बंध जों लों जगजंत, नायत कर्म होय भगवन्त ॥५.३. [ ७०५ ] (--eter) मिथ्या श्रव्रत जोग प्ररु, मद परमाद कषाय । इन्द्री विषय जुरागिये अप दूर हो जाय ॥५१॥ जिन बिन गति बढ़ते घरी, भवी नहीं मुलकार । जिन मारग उर परिके लहिये भवदधि पार ।। ५६ ।। जिन भज सब परपच जन बड़ी बात है येह । पंच महाव्रत धारिके भव जल को जल देह ॥ ५७॥ अंतः करण जु युद्ध है, जिनधरमी अभिराम । भाषा भविजन कार, भाषी दौलतराम ||१८|| -::-- सूचना-संशोधक का यह कहना है कि इस चौबीस दण्ड की दो-तीन प्रतियां दिखती है, उन तीनों की कवितायें कई जगह पाठान्तर जान पड़ती है, परन्तु मूल भाव में कुछ भी भेद नहीं है। Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मों के मूलोत्तर प्रकृतियों की अवस्था और संख्या आदि विवरण - उत्तर प्रकृतियों की संख्या कर्म प्रकृतियों की | संख्या | 7 | २ | ३ । ४ ५ ६ ७ ८ | जोर अवस्था और नाम ज्ञाना. |दर्श | वेद० मोह प्रायु नामा ! गोत्र अन्त २ । ३/४ / ५/६ । ७ | ८ | १० ११ १. मूल प्रकृतियाँ . .._ _ २. उत्तर प्रकृतियां | - *_ _ _ _ ३. बन्ध योग्य प्रकृतियां _ ४. प्रवन्ध योग्य प्र० _ _ ५. उदय योग्य प्रकृतियां _ ६. अनुदय योग्य प्र० _ _ _ _ ७. सत्व योग्य प्र० _ ८. बाति प्र० - है. सर्व घाति प्रा _ - १०. देव घाति प्र० - _ _ ११. प्रघाति प्र० - १२. प्रशस्त (पुण्य) प्र० - - _ _ ___ - १३. अप्रशस्त (पाप) प्रक १४. पुद्गल विपाकी प्र० - - __ - १५. भाव बिदाकी प्र० - १६. क्षेत्र विपाकी प्र० _ _ .. - १७ जीव विपाकी प्र. - Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७०७ ) . २६ ] . ७ । २ । ५ ११४ १८. सादि-अनादि ध्र व-अध्रुव | ११४ । ५ । रूप चारों प्रकार का बध होने वाली प्रकृतियां - १ | १ . !: १६. अनादि-धुव-मधदरूप सीनों प्रकार का बन्ध होने वाले | प्रकृतियां - २० सादि और अध्रुव रूप दो प्रकार का बन्ध होने वाले प्रकृतियां - २१. सावि संघ प्रकृतियां - . . २२. अनादि बंध प्रकृतियां २३. ध्रुव वध प्रकृतियां २४. ध्रुव बंध प्रकृतिग . - mmm.. - - *___- - २५. स्थिति बंध प्रकृतियां । २ ।५ __- । १२० . २६. उदय म्युच्छित्ति के पहले बन्ध्र व्युच्छित्ति जिनके हावे वे प्रकुतियां . . . . २७. उदय व्युरिष्टत्ति के बाद बघ व्युच्छित्ति जिनके होवे वे प्रकृतियां १ | १० | | २८. उदय व्युच्छित्ति और बन्ध ध्युच्छित्ति जिनके एक साथ प्रद एक ही मुरण स्थान मे होता है वे प्रकृतियां | | ० १२ . २९. जिस प्रकृति का उदय । २७ । ५ | ४ होता है उसका उस हो जन्य में बध होता है एक प्रकृतियां Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४.८ ) | २ ३०. एक प्रकृति का उदय होता ११ हया दूसरे प्रकृति का बंध। होता है ऐसे प्रकृतियां ३१. प्रापका या अन्य प्रकृति का उदय होता हुमा या नहीं भी हो तो भी जिस प्रकृति का बंध होता है ऐसे प्रकृतियां ३२. निरन्तर बंध होने वाले प्र० ५४ | ५ . १६ ४ १२० ५ | ५४ . २६ ३३. सांतर बंध प्रतियां अर्थात ३४ जिनका बन्ध कभी होता है और कभी नहीं होता है ऐसे प्रकृतिया ३४. सांतर और निरन्तर बंध ३२ .. होने वाले प्रकृतियां | ३ . ३५. उलमा प्रकृतियां ३६. विध्यात प्रकृतियां ३७ अधः प्रवृत्ति प्र. ३५. गुग संक्रमण प्र० ३६. सर्व संक्रमण प्र. ४०. तिर्यगे का रश प्र० Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्मों के मूलोत्तर प्रकृतिया की अवस्थाओं के मादिक कुछ विशेषा विवरण १. मूल प्रकृति : है- कर्म सामान्य से ८ प्रकार का चारित्रमोबनीय के -कषायवेदनीय और नोकषायया १४८ प्रकार के होते हैं और असख्यात लोकप्रमाण वेदनीय इस प्रकार दो भेद जानना । भेद भी होते हैं। घाति और अधाति ऐसी उनको अलग- कवायवेवनीय के-१६ भेद हैं-(अनंतानुबंधीअलग संज्ञा है. ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय मोर कोध-मान-माया-सोम ४, पप्रत्याख्यान-क्रोध-मानअन्तराय ये चार घातिया कम हैं, कारण ये जीव के माया-लोभ ४, प्रत्याख्यान-क्रोध-मान-माया-लोभ ४, गुणों का घात करते हैं और प्रायू, नाम, गोत्र और संज्वलन-मान-याया-लोभ । ये १६ वेदनीय ये चारों कर्म जीव के गुणों का घात नहीं करते, नोकषायवेवनीय के ६ प्रकार है-(हास्य, रति, इसलिये वे प्रघाति कर्म कहलाते हैं, इस प्रकार ये कर्मों की प्रारति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुषवेद, स्त्रीधेद, नपु सकवेद आठ मूल प्रकृतियां हैं। उनका क्रम । ज्ञानावरणीय, ये ६) । २ दर्शनावरणीय, ३ वेदनीय, ४ मोहनीय, ५ पायु, इस प्रकार मोहनीय कर्म के बंध की अपेक्षा, दर्शन ६ नाम, ७ गोत्र, ८ घन्तराय इस प्रकार-जानना (देखो मोहनीय के एक मिथ्यात्वं प्रकृति और चारित्र माहनीय गो० क० गा० ७---8) के २५ प्रकृति मिलकर २६ प्रकृति जानना । २. उत्तर प्रकृति १४८ है—शानावरणीय के ५, (५) प्राय कम के । भेव हैं- (नरकायु १, तिर्यंचायु दर्शनावरणीय के है, बेदनीय के २, मोहनीय के २८, १, मनुष्यायु १, देवायु · ये ४) आयु के , नाम कर्म के ३, गोव कर्म के २. अन्त (६) नाम कम के ५५ है-पिंह और प्रपिंड की अपेक्षा ५ ये सब मिलकर १४८ उत्तर प्रकृतियां जानना देखो ४२ प्रकार जानना, पिंड प्रकृति १४ हैं, इनके उत्तर भेद मो० के० गा. २२)। ६५ जानना, गति ४, जाति ५, शरीर ५, बंधन ५, सपात ५, संस्थान ६, अंगोपांग ३, संहनन ६, बादि ५, गंध .. बंध योग्य प्रकृतियां १२० है(१) मानायरणीय ५ (मति-श्रुत-अवधि-मनः २, रस ५, स्पशं ६, भानुपूषों ४, विहायोगति २ ये । पर्यय-केवल ज्ञानावरणीय ये पांच) अपि प्रकृति २८ होते है-(१) अगुरुलघु (२) उप(२) शनावरणीय । (अपक्षु दर्शन, चक्षुदर्शन, घात (३) परधात (४) उच्छ् वास (५) आतप अवधि दर्शन, केवल दर्शनावरणीय और स्थानगृद्धि, (६. उद्योत, (७) घस (८) स्थावर (8) दादर (0) निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रथला निद्रा, प्रचला १) सूक्ष्म (११) पर्याप्त (१२) अपर्याप्त (१३) प्रत्येक शरीर (३) वेदनीय के २ हैं [सातावेदनीय (पुण्य), प्रसाता. (१४) साधारण शरीर ... स्थिर (१६) अस्थिर वेदनीय (पाप) ये २] (१७) शुभ (१८) अशुभ (१६) सुभग (२०) दुर्भग (४) मोहनीय के-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोह- (२१) सुस्वर (२२) दुस्वर (२३) प्रादेय (२४) यनादेय नीय ऐसे दो प्रकार हैं. दर्शनमोहनीम का बंध की अपेक्षा (२५) यशः कीर्ति (२६) अयशः कीर्ति (२७) निर्माण से 'मिथ्यास्व' यह एक ही प्रकार जानना, उदय और .२८) तीर्थकर ये २८ जानना । सत्व की अपेक्षा से मिथ्यात्व, सम्यङ्ग मिथ्यात्व, सम्य- इस प्रकार ६५+२८ = ६३ नामकर्म के प्रकृतियों क्व प्रकृति ऐसे तीन प्रकार जानना। में निम्नलिखित २६ प्रकृतियों की बंध में गिनती नहीं Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१० ) की जाती है । इसलिये बंधन ५, सघात ५, स्पर्शादिक १६ १० मिलकर २६ प्रकृतियों का उदय गिनती में नहीं (स्पादि २० प्रकृतियों में में स्पर्श १, रस १, गंध १, माती इसलिये ६३ प्रकृतियों में से १६ प्र. घटाने से वर्ण १ ये बंध में मिने जाते हैं इसलिये ये ४ छोड़कर ९३-२६ । ६७ प्रतिमा उदय योग्य रहती है। गोत्रशेष १६ से २६ प्रतियां १५ प्रकृतियों में से घटाकर कर्म के २ अतरायाम के ५ इस प्रकार ५+६+२+ शेष ६७ प्रकृतियों का बंध माना जाता है, वास..न में २८+४+६ +२ . ५-१२२ होते हैं। अर्थात कर्म १३ प्रकृतियों का बंध होता है परन्तु बंध की हिसाब में प्रकृति १४८ में से ५६ प्रकृत्तियां घटाने से १२२ उदय२६ प्रकृनियों की गिनती नहीं है इसलिये ६७ प्रकृतियाँ योग्य प्रकृतियां रहती हैं। वास्तव में १४८ प्र. का उदय बंध योग्य माने जाते हैं। रहता है । २६ प्रकृतियां दूसरे प्रकृतियों में गभित होने ___७) गोत्र कर्म २ है --(१ उच्च गोत्र, १ नीच गोत्र, से वे गिनती में नहीं याती। इसलिये उदय योग्य १२२ ये २ जानना) प्र. मानते हैं। ६. अनुदय प्रकृतियां २६ है-नाम कर्म की २६ (0) अतराय ५ प्रकार का है-दामांतराय, लाभांत प्रकृति (बंधन और स्पर्शादिक २० प्र० में से स्पर्श-रसराय, भोगतिराय, उपभोगांलराय, वीर्या तराय ये ५ प्रकार गन्ध-वरणं ये ४ वटाकर शेष १६ मिलाकर २६) अनुपय के जानना) जानना (देखो गोक-गा० ३६-३७-३७) । सब १४ कर्म प्रकृतियों में से दर्शन मोहनीम की ७. सत्व प्रकृतियां १४ है - ज्ञानावरणीय के ४ २ प्रकृनियां-(सम्बइपिथ्यात्व १. सम्यक्त्व प्रकृति १ये २) दर्शनावरणीय के ६, बेदनीय के २, मोहनीय के २८, बंध योग्य नहीं हैं इसलिये ये २ घटाने से १४६ बंध योग्य पायुकर्म के ४, नामकम के ६३, (पिंड प्रकृति १४ के प्रकृतियां रहती हैं, परन्तु उनमें रो २६ प्रकृतियां बंध मैं उत्तर भेद ६५ गति ४ (नरकगति, तिथंचगति, मनग्यनहीं मानते हैं। इसलिये वह भी कम करके अर्थात १४८ गति.) जाति नामकर्म ५ (एकन्द्रिय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय, --२-१४६-२६-१२० प्रकृतियां बंध योग्य माने चतुरिन्द्रिम, पंचेन्द्रिय जाति ये ५), शरीर नामकर्म ५ गये हैं । (देखो गो. क. गा०२३ से ३५)। (प्रोदारिक, बेक्रिविक, पाहारक, तंजस माणि कामणि प्रबंध प्रतियां है दर्शनमोहनीय की २ ये ५) बंधन ५ (प्रौदारिक शरीर बंधन, बैकियिक शरीर (सम्यङमिथ्यात्व. सम्यक्त्त प्रकृति ये २), पौर नामकर्म बंधन ये संघात ५ (प्रौदारिक शरीर संघात, कार्माणकी २६ (बंधन ५, संघात ५, स्पादि २० में से स्पर्श-रस शरीर ara शरीर बंधन ये ५) सधात ५ (ग्रौदारिक दारीर संघात, गंध-ब ये ४ वटाकर शेष १६) चे २८ जानना (देखो क्रियिक शरीर संघात, आहारक शरीर संघात, तेजस गो० क. मा० ३४-३५) । शरीर संघात, कार्मारा शरीर संघात ये ५) सस्थान ५. उदय योग्य प्रकृलिया १२२ है-ज्ञानावरणीय के (समचतुरस्र संस्थान, न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान. कन्जक ५, दर्शनावरणीय के ६, वेदनीय के २ मोहनीय के २८ सस्थान, स्वाति संस्थान, बामन संस्थान, हुंडक सस्थान दिनमोहनीय ३ चारिखमोहनीय २५ ये २८), भायु- ये ६) अगोपांग ३ (प्रौदारिक शरीर अंगोपांग. क्रियिक कर्म के ४, नामकर्म के ६७ (शरीर ५, बंधन ५. संघात शरीर अगोपांग, प्राहरक शरीर अंगोपांग, ये ३ जानना। ५ इन १५ में से बंधन +संघात ये १०, पांच पारीर में तैजस और कार्मारा शरीर को अंगोपांग नहीं रहते हैं। गभित होने से ये १० प्रकृतियां घट गये और स्पर्थ , संहनन ६ (बचबूषभ नाराच संहनन, बज्रवाराच संहनन, रस ५ गंध २. वर्ग ५ इन २० में से फल स्पर्श १, रस नाराच संहनन, अर्ध नाराच महनन कीलित (कीलक) १. गन्ध १, वणं ये ४ प्रकृति गिनती में प्राते (संहनन, प्रसंप्राप्ता पाटिष सहनन ये ६) वणं ५। (श्वेत हैं। इसलिये इन ४ प्रकुतियों को २० में से घटाने से शेष पाटरा) पीत (पिबका), हरित या नील, रक्त (लाल), १६ रहते हैं । इन १६ और मंधन के ५, संघात के ५ इन कृष्ण (काला) ये ५) गंध २ । (सुगध और दुगंध ये )२ Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस ५ । (मीठा, कच्छवा, खट्टा, फपायला, तिक्त (चरपरा) १२. प्रशस्त (पुण्यरुप) प्रकृतियां ६ हैं - साताये ५) स्पर्श ८ । (कोमल, कठोर, हलका, भारी, शीत, वेदनीय १, लियंचायु १, मनुष्या १, देवायू १, उच्चगोत्र उष्णु, स्निग्ध (चिकमा), रुक्ष, मे ८) प्रानुपूर्वी ४. १, मनु यादव, देवडिक २. पन्द्रय जासि १, शरीर ५. (नरकगत्यानुपूर्वी, तियं चगत्यानुपूर्वी. मनुष्यगत्यानु:, बंधन ५, संधःत ५. अगोपाग ३, शुभ-स्पर्श-रस-गंध-वरणं देवगत्यानपूर्वी ये ४) विहायोमति २। (प्रशस्त विहायोगति, ऐ२०. समचतुरल संस्थान, बसवषभनाराच संहनन १. अप्रशस्त विहायोगति ये २) ये ६५ पिंड प्रकृति जानना। अगुरुलघु १, परषात १. उच्चपास १. प्रातफ १, उधोत १, प्रशस्तविहायोगति १, वस१, बाबर १, पर्याप्त १, अपिड प्रकृतियाँ ऊपर बंध प्रकृतियों में कहे हए प्रत्येक शरीर १, स्थिर १. शुभ १, सुभग १. सुस्वर १. अनुसार जानना। इस प्रकार नामकर्म के ६५+1 =६३ आदेय १, यशः कौति १, निर्माण १, तीर्थकर १ स . प्रकृति जानना । गोत्रकर्म के २, अन्तरायकर्म के ५ ये प्रकार ६८ प्रकृतियां भेद की अपेक्षा से प्रशस्त पृण्यरूप सब मिलकर सत्य प्रकृतियां १४८ जानना । हैं, अभेद विवक्षा से वंधन ५. संघात ५, स्वर्गादिक १६ ये २६ घटाने से ४२प्रकृति प्रशस्त-पूण्य रूप जानना । ८, पति या प्रकृति ४७ हैं . शामावरणीय के ५, दर्शननावरणीय केह, मोहनीय के २८, अन्तराय के ५ तत्वार्थ सुत्र प्र० ८ देखो। 'सधः शुभायुर्नामगोत्राहि. ये ४७ जानना। पुण्यम् ॥२५॥' (देखो गो० का गा० ४१ - ४२ और १६४) १. सबंघातिया प्रकृति २१ हैं—केवल ज्ञानावरणीय १, दर्शनावरणीय के ६ (केवल दर्शनावर मणीय १, निद्रा १३. अप्रशस्त (पापरूप प्रकृनिया १०० है ---वाति कर्म के सब ४७ प्रकृतियां प्रशस्त ही है। प्रसातावेदनीय के ५ वे ६) कषाय १२ (अनतानुबंधी कषाय ४ । १, नरकायु,नीचगोत्र १. नरकटिक २. तियंचद्विक २. अप्रत्याख्यान कषाय ४, प्रत्याख्यान कषाय ४ ये १२) एकेन्टियादि जाति ४, न्यग्रोधपरिमंडलादि संत्य के मिथ्याव१ये २० प्रकृतियां बंध को अपेक्षा जानना मोर संस्थान.नारानादित्य के संहनन ५ अशुभ स्पचामम्यमिथ्यात्व प्रकृति १ सना और उदय की अपेक्षा का रस-गंध-वर्ण ये २०, उपघात, अप्रशस्य विहायोगति १, से जानना । इस प्रकार सबंधातिया प्रकृति १ जानना। म निना। स्थावर १. सूक्ष्म १, अपर्याप्त १ साधारण शरीर १, सम्वमिथ्याय प्रकृति को जात्यंतर सर्वघाति कहते अस्थिर १, अशु. १. दुभंग १, दुःस्वर १. अनादेय १, हैं। कारण मिथ्यात्वादि प्रकृति के समान यह प्रकृति अयशः कीर्ति १ इस प्रकार से १०० प्रकृतियां उदयरूप पूर्ण रूप से घात नहीं करता है और यह प्रकृति बंधयोग्य प्रशस्त है। भेदविवक्षा से बंघरूप ६८ प्रकृतियां हैं। नहीं है (देखो गो० के गा० ३६ । कारण ४७ प्रातिया प्रकृतियों में सम्यमिथ्यात्व और १. देशघाति प्रकृतियां २६ है—ज्ञानामरणीय के सम्यक्त्व प्रवृति इन दो प्रकृत्तियों का बंध नहीं होता। मिति-श्रुत-अवधि मनः पर्यय ज्ञानावरणीय ये ४) दर्शना अभेदविवक्षा में स्पादि २० प्रकृतियों में से १६ प्रकृति वरपीय के ३। (प्रचक्षदर्शन, चक्षदर्शन, अवधि घटाने से ८२ प्र० बंधरूप रहते है और उदयरूप -४ ये ३) सम्यक्त्व प्रकृति, संज्वलन कषाय ४. नवनोकपाय प्रकृति और सत्तारूप १०० प्रकृति रहते हैं। इनमें ६५ ६, अन्तराय प्रकृति ५ ये २६ देशघाति प्रकृति जानना। पुण्यप्रकृति मिलाने से १०० +६८ -१६८ होते है। इनमें (देखो गो० क. गा० ४०)। से पुण्य और पापरूप २० प्रकृतिया कम करने से १६८-२-१४० + रहते हैं (देखो गो- क. गा. १. प्राघाति प्रकृतियां १ १ है--वेदनं अकर्म के २, ४३-४४ और १६४) आयुकर्म के ४, नामकर्म के ६३, गोत्रकर्म के २ ये सब मिलकर १०१ होते हैं। १४. पुड्यात शिपायो प्राति ६२ है - पुद्गल Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७१२ ) प्रकृति जानना । संस्थान के ६, रस, गंध २० बाकी अर्थात् पुगल में उदय होने ाले शरीर के ५, बंधन के ५ संघात के ५ अंगोपांग के ३, संहनन के ६, स्पर्श, वर्ण ५ निर्माण १, भातप १, उद्योत ९, स्थिर १, अस्थिर १ शुभ अशुभ १ प्रत्येक १ साधारण १. अगुरुलघु १, उपघात, परवात १ ये सब मिलकर ६२ प्रकृति जानना । १५. भाव विपाकी कृतियां ४ हैं - नरकायु १, तिर्यंच प्रायु १ मनुष्यायु १, देवायु १ मे ४ प्रकृति जानमा १६. क्षेत्र विपाकी प्रकृतियां ४ हैं - नरकगत्यानुपूर्वी t. तिर्यच गत्यानुपूर्वी मनुष्यत्यापूर्वी १ देवगत्यानुपूर्वी १ मे ४ थानुपूर्वी प्रकृति जानना | ७. जीव विपाकी प्रकृतियां ७८ हैं-वाति कर्म के प्रकृति ४७ वेदनीय के २, गोत्रकर्म के २, नामकर्म के २७ (तीर्थंकर प्र० १ उच्छवास १, बादर १, सूक्ष्म १, पर्याप्त १ अपर्याप्त १, सुस्वर १, दु:स्वर १, प्रादेय १, अनादेव १ यशः कीर्ति १, प्रयशः कीर्ति १, त्रस १, स्थावर १, प्रशस्त और अप्रशस्त विहायोगति २, सुभग १, दुभंग १, गति ४, एकेन्द्रियादि जाति नामकर्म, ये२७) ये सब मिलकर ७८ जानना । इस प्रकार सब मिलकर ६२+४+४+७८= १४८ प्रकृति होते हैं । (देखो मो० क० गा० ४७ से ५१ ) १८. सावि- श्रनाविध वन्यध्रुव रूप चारों प्रकार के iss होने वाली प्रकृतियां - ज्ञानावरणीय ४ दर्शनावरसीय है, मोहनीय २६, नामकर्म के ६७, गोत्रकर्म के २, अन्तराम के ५ ये ११४ प्रकृतियों का बंध चारों प्रकार का होता है। १६ मनाविध व मध व रूप होन प्रकार का मंत्र वेदनीय कर्म का होता है। उपशम श्रेणी चढ़ते समय श्रीर नीचे उतरते समय सातावेदनीय का सतत बंध होता रहता है इसलिये सादि बंध नहीं होता । २०. सावि और प्रभु वरूप दो प्रकार का संघ होने वाली एवं में एक समय, दो समय या उत्कृष्ट आठ समय में प्रयुकर्म का बंध होता है इसलिये सादि और हर समय (आयु कर्म के भाग में) अन्तर्मुहूर्त तक ही होता है इसलिये प्रभुष है । २१ सादि बब- ज्ञानावरण को पंच प्रकृतियों का बफ किसी जीव के १७ वे गुण स्थान तक अव्याहत होता था, जब वह जीव ११ये गुण स्थान में गया तब बंध का अभाव हुआ, पीछे ११वे गुह० से च्युत होकर (पढ़कर) फिर १० गु० में श्राया तब ज्ञानावरण की पांच कृतियों का पुनः बंध हुआ ऐसा बंध सादि बंध कमाता है । २२ दावि बंध- दसवें गुण स्थान वाला जीव जब तक ११ गुर० में प्राप्त नहीं हुआ तब तक ज्ञानावरण का श्रनादि काल से उसका बंध चला आता है इसलिये यह अनादि बंध है। (देखो गो० क० गा० १२ - १२३ ) १३. प्र. प्रकृतियां ४७ हैं— बंषव्युच्छित्ति होने तक जिसका बंध समय समय को होता है वह ध्रुव बंध कहलाता है। इसका ध्रुव प्रकृति ४७ है। ज्ञानारणीय के ५, दर्शनावरणीय के 2 मोहनीय के मिथ्यात्व १, नचनो कषायों में से भय और जुगुप्सा ये २ मिलकर १८ अंतराय के ५, और नामकर्म के कार्मार १, अगुरुलघु १, उपघात " (तेजस १, निर्माण १, Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्पश १, रस १, गंध १, वर्ग १ ये ) सब मिलकर ७३ प्रकृतियों का बंध सादि मौर अध्रुव इन दो प्रकार ४७ प्र. जानना । का ही होता है। इस ७३ प्रकृतियों में ६२ प्रकृतियां सप्रतिपक्ष और १, प्रकृतियां अप्रतिपक्ष होते हैं। २४. अध्रुव प्रकृतियाँ ७३ है-जिसका बंध हर सात समय को नहीं होता है कभी कभी होता है उसको अध्रुव प्रतिपक्ष प्रकृति ११६-तीर्थकर १, प्राहारकद्विक चंध कहते हैं। वे प्रघुव प्रकृति ७३ हैं । वेदनीय कर्म के २, २, परघात १, प्रातप, १, उच्छवास १, मायुकर्म के ४, मोहनीयों में से नोकषाय ७ (हास्य-रति, अरति शोक, ये संग ११ प्र. जानना । और वेद ३ ये ७) प्रायु कर्म के ४, गोत्रकर्म के २, नामकर्म के ५८ प्रकृति (गति ४, जाति नामकर्म ५, सप्रतिपक्ष प्रकृति ६२ है --उपर के ७३ प्रकृतियों में प्रौदारिकतिक , क्रियिकतिक २, प्राहारकदिक २, से अप्रतिपक्ष के ११ प्रकृति घटाकर शेष ६२ प्रकृति संस्थान ६, संहनन ६, प्रानुपूर्वी, ४, परपात १, पानप , जानना । जिसको प्रतिपक्षी है उसे सप्रतिपक्ष कहते हैं उद्योत १, उच्छवास १, बिहायोगति २, त्रस १, स्यावर असे साता-प्रसासा, शुभ अशुभ इत्यादि। १. स्थिर १, अस्थिर १, शुभ १, अशुभ १, सुभग १, दुर्भग १, सुस्वर १, दुःस्बर १, प्रादेय १, जनादेय १, अध्रुव ७३ प्रकृतियों में से ७ प्रकृति (तीर्थकर १, बादर १, सूक्ष्म १, पर्याप्त १, अपर्याप्त १, प्रत्येक शरीर पाहारकनिक २, प्रायु ४ ये ७) वे का निरन्तर बंध काल १, साधारण शरीर १, यशः कीजि १, प्रयशः कीति १, जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त है, और ६६ प्रकृति ों का निरंतर तीर्थकर १ ये ५०) सब मिलकर ७३ प्रकृति जानना।। बंध काल जघन्य एक समय मात्र है इसलिये हनको सादि प्रौर अध्रुव ऐसे दो प्रकार का हो बंध होता है। ऊपर के ४७ प्रकृतियों का बंध सादि, अनादि, ध्रुव, (देखो गो. क. गा० १२४-१२५-१२६) पघुव इस प्रकार चारो ही प्रकार का होता है। परन्तु Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्म प्रकृतियां १. ज्ञानवरण के मति ज्ञानावरण " अस अवधि मनः पर्यय केवल निद्रा प्रचला " २. दर्शनावरण के चक्षु दर्शन JP चक्षु अवधि केवल स्थान गृद्धि निद्रा निद्रा प्रचलाप्रचला ग ३. वेदनीय के सातावेदनीय असाता माया १ लोभ १ ४ मोहनीय के मिथ्यात्व १ धनतानुबंधी के कोष १ मान १ प्रत्याख्यान के क्रोध १ मान १ माया १ लोभ १ ( ७१४ ) २५- मूलोसर प्रकृतियों की स्थिति बंध को बतलाते हैं 'देखो गो० क० गा० १२७ से १३३ और १३६ से १४ को० नं० ४१ ) उत्कृष्टस्थिति बंध ३० कोडाफोडी १ पं सागर 32 " " 1 " ====== " 11 | १५ को० को० सा ३० को० को० सा ७० को० को० सा ४० को० को० सा० 3 " け 13 मवश्य स्थिति बंध +) 13 AHASR " " " ह " १२ मुहूर्त ४० को० को ० सा० दो महीने १ महीना " १५ दिन १ अंतर्मुहूर्त दो महिने एक महीना १५ दिन १ अंतर्मुहूर्त कर्म प्रकृतियां प्रत्याख्यान के । क्रोध १ मान १ माया १ लोभ १ संचलन के मान १ माया १ लोभ १. नोकषाय के हास्य १ रति १ अरति शौक १ भय १ १ अंतर्मुहूर्त पुरुष वेद १ जुगुप्सा १ नपुंसक वेद १ स्त्री वेद १ ५- प्रायुर्म के नरका १ तिचा १ ममुष्यायु १ देवा १ ६. नाम कर्म के नरकगति तियंचगति मनुष्यगति चकच्छ स्थिति बंध i४० को को० सा० २ महीने " १ महीना १५ दिन १ मुं #1 ४० को० को० सा०२ महीने 21 "I १० को० को० सा० 13 २० को० को सा० 11 11 37 |१४ को फो० सा० [१०] को० को ० खा० ३३ सागर | ३ पस्य ३ पल्य ३३ स गर जघन्य स्थिति बंध २० को० को० सा०| + | १२ को ० क० सा० | १ महीना १५ दिन १ अंतर्मुहूर्त ८ वर्ष १ पंतमुहूर्त १० हजार वर्ष १ 11 १० हजार वर्ष ८ मूहु कालान Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : : दीन्द्रिय । श्रीन्द्रिय , चतुरिन्द्रिय, : : वैक्तिपिक , ' को० | सूक्ष्म १५ को" तेजस " कार्माण ॥ सुभग देवगति १० को को सा० उपपात एकेन्द्रियजाति .को. को० सा परषात १५ को० को सा० उच्नवास प्रतिप उद्योत पंचेन्द्रिय त्रस औदारिक शरीर स्थावर बादर माहारक , अंत: को को. सा. अंत को को | २० को को सा० सागर पर्याप्त २.कोको सा अपर्याप्त १८ को को० साल समचतुरस्र सं. १० को को सा० प्रत्येक शरीर २. को को सा. न्यग्रोध प० सं० १२ को० को सास साधारण शरीर १८ को० को० सा० स्वाति संस्थान १४ को० को सा० स्थिर १. को.को. सा कुब्जक मस्थान १६ को० को सा० अस्थिर २० को को० सा. वामन सहान १८ को० को० सा० १० को. को० साल हुँडक संस्थान २. को० को० सा० प्रशुभ २० को० को सा० औ-मगोपांग १० को० को० सा दौक्रियिक ।। दुर्भग २० को० को साल पाहारक , अंत को० को० सा० अंत: को को. | सुस्वर १० को-को सान वजव. ना. संह०,१० को० को० सा० साधर को को सा! बचनाराच संह. १२ को पो. सा | प्रादेय १० को को मा० नाराच संहनन १४ को० को सा०| अनादेय २० को. को० सा० अर्धनाराच संह०१६ को को० सा० यशः कीति १० को को० सा० महतं कीलिनसंहनन १८ को को० सा० प्रयशः कीर्ति २० को० को सा. भसं० सृपा० संह०२० को० को सा निर्माण स्पर्श नामकर्म तीर्थकर प्रकृति अंतः को. . सा मंत: को को.. ७. गोत्रकर्म के | 1 सागर उच्चमोत्र को को. सा. ८ मूहर्त नीचगोत्र २० को० को० सा० नरक गत्यानुपूर्य ८-अंतराय के १ अंतर्मुहूर्त दानांतराय मनुष्य , १५ को को० सा० लाभांतराय देव , '१० को० को० सा० भोगांतराय प्रशस्त दिहाः ॥ उपभोगांतराय प्रशस्त विहा० २. को को. सा. वीर्या तराय अगुरु लघु ! गंध " वर्ण " तिर्यच " को साः ॥ सूचना-तीन शुभ प्रायु के सिवाय शेष क्रमों का उत्कृष्ट स्थितिबंध संजीपंचेन्त्रिय पर्याप्त के उसमें भी योग्य. (तीन कषायरूप उत्कृष्ट संक्लेश-परिणामों वाला ही जीव अधिक स्थिति के योग्य कहा गया है। जीव के हो होता है। हर एक के नहीं होता (देखो गो. क. मा० १३३) Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवयम्यु. गुण १२वां गुग में १२वा मुरण में ( ७१६ .) २६-उदय प्युपछत्ति के पहले उप मुश्यिति जिनके होवे वे प्रकृतिया-८१ है - प्रकृति खव्यषिकशि गुणस्थान ज्ञानावरणीय के ५ बां गुण. में दर्शनावरणीय के ६. में से प्रयक्ष, ।। १०वा गुण में चक्षु, अवधि, केवल व... स्त्यान, निद्रा निद्रा, प्रचला-प्रचला | २रे गुणांक में बे३ महानिद्रा। निद्रा, प्रचला ये । वां गुण के प्रथम भाग में असातावेदनीय १, ६वां गुग में साता वेदनीय १, १३ गुप में मोहनीय के संज्वलन लोभ १, स्वां गुण० के ५वा भाग में " स्त्रीवेद १, २रे गुण में " नपुतकवेद, १के गुराक में " अरतिशोक ये २. पायुकर्म के नरकायु १, ६वां गुरण में १२वा गुण में १३-१४ गुण. १०वा गुण में ६वें ले " रे । " तियंचायु १५ " मनुष्यामु', १ले गुणों में म ४थे गुरग में २२ ५वे १४वे मग में ४० गुग में ८वो गुण के ६वां भाग में से गुण में २रे गुरण में २रे गुण में है वे नामकर्म के नरकगप्ति १, " तिर्यंचगति १, " मनुष्यगति १, नामकर्म के नेटि जाति १, " औदारिक शरीर १, " तेजस-कार्मारण शरीर २, " प्रसंसा सुपाटिका संहनन १, वचनाराच संहनन । नाराच संहनन १, अर्धनाराच संहनन १, सीलक संहनन १, वजवृषभ नाराच सं०१, प्रौदारिक अंगोपांग १, हुंडक संस्थान १, न्यग्रोध, स्वाति०, रजक, बामन सं.४ समचतुरस्र सं० ., स्पर्श, रस, गन्ध वर्ग नरकगत्यानुपूर्वी १, तियंचगस्यानुपूर्वी १, अगुरुलधु, उपघात, परषात ये ३, उपोत प्रकृति १, उच्छवास १, प्रदास्तविहायोगति १, भप्रशरतविहायोगति १, प्रस, बादर, पर्याप्त ये ३, प्रत्येक पारीर, स्थिर ये २, गुण के ६वां भाग में इसे गुग में U ८वां गए० के ६वां भाग में रे गए में दवा गुण० के ६वा भाग में २रे गुण में वो गुणा के ६वां भाग में इवे Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ : : : १४ । १श्व १४ १४२ अस्थिर प्रकृति शुभ प्र०१ 'वी गरण के ६वां भाग में अशुभ प्र०१ ६ गुण सुभग प्र. १ 4वां गुण. के वां भाग दुर्भमप्र०१ रे गुण में सुस्वर | वां गुण.के वां भाग में 'दुःस्वर १ रे गुण में मादेय । वां गुरग के वा भाग में " अनादेय १ | रे गुरण में " यशः कीति । १०वां गुणां में " निर्माण १ ८वो गुण० के ६वा भाग में " तीर्थकर प्रकृति १ गोत्रकर्म उच्चगोत्र १ १० गुण. में " नीचगोत्र १ २रे मुरण में अन्तराय कर्म के प्रकृति ५, । १०वें गुरा इस प्रसकार ५+६+२+५+३+ १०+२+५=१ प्रकृति जानना २७. वय पशि के बाद अन्य ज्युजिशि बिनाको प्रकृतियां हैंप्रकृति नवय कयुक्चिशि गुण पायु कर्म के देवायु १ ४थे गुणः में नामकर्म के देवगति ? " देवगत्यानुपूर्वी १ " क्रिषिक शरीर " वै० अगोपांग १ पाहारकद्विक २ ६वें गुरम में नयशः कीर्ति १ ४थे गुग में इस प्रकार +७=८ प्रकृति जानना बंभ ० गुण ७वें गुरष में वा गुण के ६वां भाग में जानना ६६ गुग में २८. स्वय युध्छिसि और बम्म यित्ति जिनके एक साथ (एक ही गुण स्थान में) होता है वे प्रकृतियां ११हैमोहनीय कर्म के २१ प्रकृसिया-- गृरण का नाम मिथ्यात्व १. १ले गुण अनन्तानुबन्धी-क्रोध-मान-मापा-लोभ ४ रे गुण अप्रत्याख्यान " " ' " Y ये गुण प्रत्याख्यान ५ गुण संज्वसन कषाय-क्रोध-मान-माया मे ३ गुस्सा हास्य-रति, भय-जुगुप्साये ४ वे गुण. पुरुषवेद १ हमें गुरणः नाम कर्म के १६ प्रकृतियाँप्रासप १, स्थावर १, सूक्ष्म १, अपर्याप्तक १, साधारण १, एकेद्रियादि जाति ४,से प्रकृति १ले गुण मनुष्यगत्यानृपूर्वी १ ४५ गुण. इस प्रकार २१+१०-३१ प्रकृति जानना । (देखी गो० क० ग० ३६६-Ye-४०१) Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १. जिस प्रकृति का उदय होता है उसका उस हो ४, तीर्थकर १, पाहारकहिक २ ये १२) अंतराय कर्म के समय बध होता है ऐसी प्रकृतियाँ २७ है- ५, इस प्रकार ५+ +१६+४+१२+५=५४ ज्ञानाबरणीय के ५, दर्शनावरणीय के ४, मोहनीय जानना)। मिथ्यात्व प्र.१, नामकर्म के १२ (तेजस-कामणि २, इनमें १७ प्रकृति प्रयोदयी अर्थात उदय ज्युचिस्मृत्ति स्पादि ४, स्थिर-अस्थिर २, शुभ-अशुभ २, अगुरुलधु, तक सतत उदय होने वाली हैं। उनका नाम-जानावरण निर्माण में १२) अन्तराय के ५, इस प्रकाः ५४+ ५, दर्शनावरण , यंतराय ५, मिथ्यारत्र १, कषाय १६, १+१२+५=२७ जानना। भय-जुगुप्सा २, तंजस १, र्माण । प्रगुरुलषु १, जामात १, निर्माण, सगे ४७ सपनोदयी ३० एक प्रकृति का उचय होता हुमायूसरे प्रकृति का प्रकृति ७ है (तीर्थकर १, पाहारविक २, यापु४, ये ७) बंध होता है ऐसी प्रकुसियो ११ है इस प्रकार ४७+७= ५४ जानना । प्रायु कर्म के २ (देवाय, नरकायु ये २) नामकम तीर्थकर प्रकृति और प्राहारकतिक इनका बन्ध जिस के है, (तीर्थकर प्रकृति १, वैक्रियिक द्विक २, देवद्धिक २, गुण स्थान में प्रारम्भ होता है उस गुण स्थान में निरन्तर नरकद्विक २, माहारकर्तिक २, ये है) इस प्रकार २+१ (प्रत्येक समय में) बंध होता रहता है इसलिये इसको =११ जानना। निरन्तर नन्ध कहा है। ३१. प्रापका अथवा अन्य प्रकृति का उबम होता पायुबंध होने का कान एक अन्तर्मुहूर्त का है उस हमा अथवा नहीं हो तो भी जिस प्रति का बंध होता एक अन्तर्मुहूर्त में बंध हो तो वह अन्तर्मुहूतं पूर्ण होने है ऐसो प्रकृतियां ८२ हैं सक पायु का बंध सतत होता रहता है इसलिये उसको नाबराय के मत्थानपुद्धिमादि ५ प्रकृति, वेदनीय निरन्तर बंष कहा है पायू बध का काल १, अपकर्षण में के २. मोहनीय के २५ (कषाय १६ नोकषाय हये २५)पायु में कभी भी आसा है। कर्म के २ (मनुष्यायु, तिर्यंचायु ये २) नामकर्म ४६ (तिर्यच गति १, मनुष्यगति १, एकेन्द्रियादि जाति ५, औदारिक शरीर १३. सान्तर बंध प्रकृतिया मर्यात जिनका की १.प्रौ. अंगोपांग १,संहनन ६, संस्थान ६, तिर्यच मत्या- होता है और कभी नहीं भी होता है ऐसी प्रकृतिमा ३४ हैअपनी मनष्य गत्यानपूर्वी १, उपधात १, परधात १, अमाता वेदनीय १, मोहनीय के ४ नासक वेद १, प्रातप१. उद्योत १.उच्छवास १, विहायोगति २, अस १, स्त्रीवेद १, परति १, शोक १,ये ४१ नाम कर्म के ही स्थाबर १, बादर १, सूक्ष्म १, पर्याप्त १, अपर्याप्त १, (नरकद्विक २, एकेन्द्रियादि जाति ४, वन वृषभ नाराच प्रत्येक साधारण १, सुभग १, दुर्भग १, सुस्वर १, बिना शेष संहनन ५, समचतुरन बिना शेष संस्थान दस्बर १, प्रादेम १, अनादेय १, यश: कीति १, अयशः अप्रशस्त विहायोगति १, पातप १, उद्योत १, स्थावर कोति १, ये ४६) गोत्र कर्म के (उच्चगोत्र, नीचगोत्र) दशक १०, स्थावर १, मूक्ष्म १, अपर्याप्त १, साधारण इस प्रकार ५+२+२५+२+४६+२=८२ जानना, १, अस्थिर १, प्रशुभ १. दुभंग १, दु:स्वर १, प्रनादेय (देखो गो० २.० गा० ४०२-४०३) । १, अयशः कीति १. ये १०) इस प्रकार १+४+२६ =३४ जानना। ३२. निरातर बन्ध होने वाली प्रकृतियाँ ५४ है शानावरणीय के ५, दर्शनावरणीय के १, मोहनीय ३४ निरन्तर और सान्तर बंध होने वाली प्रकृतिया के १६ (भिध्यात्व प्रकृति १, कषाय १६, भय-जुगुप्सा २ में ये १६) आयु कर्म के ४, नामकर्म के १२ (तंजस १, साता बेदनीय १, हास्य-रति२, पुरुष वेदनाम कारण १, भगुरुलघु १, उपघ त १, निर्माण १, स्पादि कर्म के २६ (तियंचद्विक २, मनुष्यद्विक २, देवतिक २, Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रौदारिक शरीर १, प्रौधारिक अंगोपांग १, वैक्रियिक हुई कर्म प्रकृति को अन्य रूप से परिमन करके उसका द्विक २, प्रशस्त विहायोगति १, वय वृषभनाराच संहनन नाश करना उसको उद्वेलन कहते हैं। १, परघात ', उच्छवास १, समचतुरस्र-संस्थान १, पंवेन्द्रिय जाति १, सदशक १ (नस १, बादर १, मिच्यात संक्रमण की प्रतिमा ६७ हैंपर्याप्त १, प्रत्येक १, स्थिर १, शुभ १, सुभग १, स्थानगृद्धि प्रादि महानिद्रा ३, प्रसातावेदनीय १, सूस्वर १, प्रादेय १, यशः कीति १ये १०) गोत्रविक २ मोहनीय के १८ (अनन्तानुबंधी कषाय, अप्रत्याख्यान इस प्रकार १+३+६+२%D३२ जानना। कषाय ४, प्रत्यस्यान कषाय ४, परति-शोक २, नपुसक वेद १, स्त्रीवेद १, मिथ्यात्व प्रकृति १, सभ्यग्मिथ्यात्व ऊपर के ३२ प्रकृतियों में जिस प्रकृति के प्रतिपक्षी प्रकृति १ये १५) नाम कर्म ४३ (तियचद्विक २, एकेन्द्रिय आदि का बंध संभवनीय हो इस प्रकृति का बंध सान्तर होगा जाति ४, प्रा.प१, उद्योत , स्थावर १, सूक्ष्म १, और प्रतिपक्षो प्रकृति की बंध भ्युच्छित्ति जहां होगी या साधारण १, अप्रशस्त विहायोगति १, वजदृषभनाराच हो गई हो वहां उस प्रकृति का बंध निरन्तर प्रतिपक्षी संहनन यह छोड़कर शेष संहनन ५, समचतुरस्त्र संस्थान प्रकृति की बंछ व्युच्छित्ति होने के बाद उस सान्तर बंध छोड़कर शेष संस्थान ५, अपर्याप्त , अस्थिर , अशुभ होने वाली प्रकृतियों की बंध व्युच्छित्ति होने तक सान्तर . १, दुर्भग १, दुःस्बर १, मनादेय १, अयशः कीति १, पाहाके बदले निरन्तर बंध होता रहेगा। रकविक २, देवद्विक २, नरकद्विक २, वैक्रियिकद्विक २, स्वजातीय अन्य अन्य प्रकृतियों का जहां बंध हो मनुष्यद्विक २, पोदारिकतिक २, वयवृषभनाराच संहनन सकता है वहां उस प्रकृति को संप्रतिपक्षी प्रकृति कहना १, तीर्थकर प्र.१,८४३) नीचगोत्र १, उच्चगोत्र १ चाहिये मोग वहां तक ही वह प्रकृति सान्तर बंधी रहती ये २ सब मिलकर ६७ जानना 1 है और जहां केवल प्रापका ही बंध होता रहेगा वहां निष्पति पक्षी प्रकृति कहना चाहिये और उस समय वह ___३७. प्रषः प्रकृति संक्रमण की प्रकृतियां १२१ हैनिरन्तर बंधी रहती है। झानाबरा के ५, दर्शनावरण के ६, वेदनीय २) उदय बंधी ३२ प्रकृतियों के सातर निरन्तर बंध मोहनीय के २७ (मिथ्यात्व प्रकृति १ छोड़कर शेष २७) का विवरण गो. क० गा.४०४ से ४०७ और कोष्टक नाम कर्म के ७१ (पंचेन्द्रिय जाति १, तेजस शरीर १.कार्माण नं० १४१ देखो। शरीर १, समचतुरस्रसंस्थान १, शुभवर्णादि ४, भगुरुलधु १. परघात ', उच्छवास १, प्रशस्त विहायोगति १, बस १, ३५ देलन प्रकृतियां १३ हैं बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक शरीर १, स्थिर १, शुभ १, पाहारकद्विक २, सम्यकाव प्रकृति १, सम्यग्मिथ्यात्व सुभग १, सुस्वर १, प्रादेय १, प्रश: कीर्ति १, निर्माण १, प्रकृति १, देवद्रिक , नरक चतुष्क (नरक गति एकेन्द्रियादि जाति ४, पातप १, उद्योत , स्थावर १, नरक गत्यानुपूर्वी १, वैक्रियिक शरीर १, क्रियिक सूक्ष्म १, साधारण १, तिर्यंचद्विक २, अशुभवर्णादि ४, अंगोपांग १ ये ४) उच्चगोत्र १, मनुष्य गति १, मनुष्य उपघात १, अप्रशस्त विहायोगति १, वजवृषभनारान मत्यानुपूर्वीयेप्रकृतियां कप से जीवों के उतूलन सहनन छोड़कर शेष संहनन ५, समचतुरस्त्रसंस्थान की जाती है। (देखो गो का गा० ३५०-४१५) छोडकर शेष मंस्थान ५, अपर्याप्त १, अस्थिर १, अशुभ १, दुर्भग १, दुःस्बर १, प्रनादेय, अयशः कीति १, उलन का स्वरूप-पाठ देकर भांजी हई रस्सी आहारकद्विकर. देवहिक २, नरकद्विक २, वैकियिकका सार जिस प्रकार उकेल दिया जाय उसी प्रकार बंधी द्विक २, मनुष्यद्विक २, औदारिकातिक २, वनवृषभ Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ KA ( ७२० ) नाराच संहनन १. तीर्थंकर प्रकृति १ ये ७१) गोत्रकर्म के (संज्वलन लोभ १ छोड़कर शेष •७) नामकर्म के २१ २, अन्तराय ५, ये १२१ जानना। (तियंचतिक २, एकेन्द्रियादि जाति ४, पातप १, उद्योत ३८. गुण संक्रमण प्रकुतियां ७५ हैं १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण १, माहारकटिक २, देवविक २, नरकनिक २, वैक्रियिफ २ मनुष्यधिक २ ये स्थानप्रद्धि मादि महानिद्रा ३, प्रचला १, असाता ये २१) उच्चगोत्र १ ये ५२ जानना। वेदनीय १, मोहनीय २३, (अनन्तानुबन्धी , अप्रत्याख्यान ४, प्रत्यारुपान ४, प्ररति-शोक २, नपुसकवेत १, प्रषवा स्त्रीवेद १, मिथ्यात्व १, सम्यक्त्व प्रकृति , सम्यग्मिण्यारव १, हास्य रति २, भयन्जुगुप्सा. २, ये २३) तिर्यक् एकादश ११, उद्वेलन की १३, संकलन । नामकर्म के ४ (तिर्यचद्विक २, एकेन्द्रियादि जाति ४, लोभ , सम्यक्त्व मोहनीय १, मिश्र मोहनीय १ इन पातप १, उद्योत १, स्थावर १. सूक्ष्म, साधारण १, तीन के बिना मोहनीय की २५ और स्थानपति मादि अशुभवरणादि ४, उपधास१, बचषभ नाराच संहनन ३ इन सब ५२ प्रकृतियों में सर्वसंक्रमण होता है। छोड़कर शेष संहान ५, समचतुरन्नसंस्थान छोडकर (देखो गो० क-गा- ४१७) शेष संस्थान ५, अप्रशस्त विहायोगति १, अपर्याप्त १, अस्थिर १, अशुभ १. दुर्भग, दूःस्वर १. भनाय १. ४०.तिर्यगेकावश प्रकृतियां पर्थात् सर्व संक्रमण प्रकृतियों अयशः कीर्ति १ पाहारकद्विक २, देवतिक २. नरक में जिनका उदय तिर्यग गति में ही पाया जाता, जन द्विक २, वक्रियिक द्विक २, मनुष्यद्विक २, ये ४४) गोत्र १६ प्रकृतियों के नाम-तियंचद्विक २. एकेन्द्रियादि जाति कर्म के २, ये सब मिलकर ७५ जानना। (देखो गो० ४, पातप १, उद्योत १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण कर गा० ४१६. से ४२८) १ ये तिर्यक् ११ प्रकृतियां हैं अर्थात इनका उय तियनों ३६. सर्व संक्रमण प्रकृतियां ५२ हैं में ही होता है इसलिये इनका नाम 'तिर्यगेकादश' ऐसा स्थानद्धि प्रादि महानिद्रा, मोहनीय के ० है। (देखो गो० क. गा० ४१४) -: :-- Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कर्म कांड शक्ति की विशेषता की कुछ ज्ञातव्य बातें १.प्रतिसाव्य का प्रचं कारण के बिना वस्तु का से सावधान किया इम्रा भी प्रोखों को नहीं उधाह जो सहज स्वभाव होता है उप्स को प्रकृति कहने हैं, सकता है। उसको शील या स्वभाव भी कहते हैं। जैसे कि जल का (क) प्रचला-प्रचला-इस फर्म के उदय से मुख से स्वभाव नीचे को गमन करना है, प्रकृत में यह स्वभाव लार बहती है और हाथ पैर मगरह अंग चलते हैं, किन्तु सावधान नहीं रहता। जीव तथा कर्म का ही लेना चाहिये इन दोनों में से जीव का स्वभाच रागादिरूप परिमाने हो जाने) का है (४) निजा-इस कर्म के उदय से ममन करता हमा धौर कर्म का स्वभाव रागादिरूप परिणमानने का है भी खड़ा हो जाता है, बैठ जाता है, गिर पड़ता है तथा दोनो का सम्बन्ध कनक पाषाणवत स्वयं सिद्ध है इत्यादि क्रिया करता है (देनो गो० क० गा० २) (५) प्रवला-इस कर्म के उदय से यह जीय कुछ कुछ मौखों को उघारकर सोता है और सोता हया भी २. समय प्रबर-सि राशि के जो कि अनन्तानन्त थोड़ा-थोड़ा आनता है, पुन:-पुनः जागता है अर्थात बारप्रमाण कही है, उसके अनन्त में भाग और मभव्य राशि बार मन्द शयन करता है यह निद्रा श्वान के समान है, जो जघन्ययुक्तान्ति प्रमाण है उससे मनग्न मुरणं परमारण सब निद्रामों में से उसम है। समूह को यह ग्रात्मा एक एक समय में बांधता है, अपने इन पांच निद्राओं में से प्रथम की तीन निद्राओं को साथ संबद्ध करता है इसको समय प्रबद्ध कहते हैं, योगों _ 'महानिद्रा' कहते हैं। की विशे ता से विसदृश बंध भी होता है सारांश (देखो गो क० गा० २३-२४-२५) परिणामों में कषाय की तीव तथा मन्दता से कर्म ४, शरीर में अंगोपांग-कौन कौन से हैं? परमाणु भी ज्यादा या कम बंधते हैं, जैसे कम-अधिक नलको बाहु च तथा मितम्ब पृष्ठे खरच शीर्षे च । चिकनी दीवार पर धूलि कम-अधिक लगती है। प्रष्टव तु अगानि "देहे शेषारिण उपङ्गानि ॥२८॥ (देखो गो क. गा० ४) । अर्थ-दो पैर. दो हाथ, नितम्ब-कमर के पीछे का ३. वसंमोहनीय के भेदों से पांच मिजामों का कार्य भाग, पीठ, हृदय और मस्तक ये पाठ पारीर में अंग है स्वरूप - और दूसरे सब नेत्र, काम, वगैरह उपाङ्ग कहे जाते है [१ स्थानगृद्धि-इस कर्म के उदय से उठाया हुभा (देखो गो क गा० २८) भी सोता ही रहे, उस नींद में ही अनेक कार्य करे स्था । ५. संहनन ६ हैं- वयवृषभ नाराच, वच्चकुछ बोले भी परन्तु सावधानी न होय। नाराच, अर्धनाराच, कीलित (कीलफ), असंप्राप्तासृपाटि१निया मित्रा-इस कर्म के उदय से अनेक तरह का मेहनन ये हैं? प्रश्न किस किस संहनन वाले जीव कौन-कौन गति मैं उत्पन्न होते हैं ? ६वे अ० सुपाटिका संहनन वाले जीव १ले स्वर्ग से वे हम तक चार युगलों में उत्पन्न Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ T ५ कीलित संहनन वाले जीव ( २२ ) अर्धनाराच संहनन जाले जीव १२ नारा तक इन तीन संहनन वाले जीव १२ नाराच, वखपमनाराम इन दो मनाले जीव १ ले वामनाराच संहनन वाले जीव प्रश्न यह संज्ञी बीव वे म० पाहिला छोड़कर शेष पांच संहनन वाले I जीव १ से ४ अर्थात् य नाराच संहनन तक के चार संहनन वाले जीव १मे नच नाराच संहतन वाले जीव देशी गो० ८०६० २६-३०- १) ६, कर्म भूमि की स्त्रियों के अन्त के ती भाराचीवित, असं पाहि सहनों का ही उदय होता है आदि के तीन ववृषभ नाराचादि सहनव कर्म भूमि की स्थियों के नहीं होते । (देखो गो० क० गा० ३२) ७. बाप और उद्योत प्रकृति का नक्षलप्रातप प्रकृति का उपय मनिकाय में भी होना चाहिये, ऐसा कोई भ्रम कर सकता है। क्योंकि जो संताप करेत् उगाने से जलाये वह श्रातप कहा जाता है, अतः भ्रम के दूर करने के लिये चन्नी से भिन्न भाप का लक्षण कहते हैं। आग के मूल और प्रभा दोनों ही उष्ण रहते है. इस कारण उसके स्वर्ण नाम कर्म के मेद उष्ण स्वयं नाम कर्म का उदय जानना और जिसकी केवल प्रभा (किर. का फैलाव ) ही उष्ण हो उसको श्राप कहने हैं इस ग्रालय नाम कर्म का उदय सूर्य के बिम्ब (विमान में उत्पन्न हुये बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय के तिच जीवों के सममता तथा जिसकी प्रभा भी उष्णता रहित के तियंच हो उसको नियम से उद्योत जानना । ८. कर्म बंध था स्वरूप-रूपों का और आत्मा का दूध और पानी की तरह पापस में एक रूप हो जाना यही बंध है, जैसे योग्यपान में रखते हुये अनेक तरह के रस, बीज, २ से १२ होते हैं १३ से १९ उत्पन्न होते हैं यदि नरक में जन्म लेवें तो स्वर्ग तक में उत्पन्न स्वर्ग तक अर्थात् गल में यूगल नत्र ॐ वैयिक तक जाता न तक जातः ६ पांच अनुतर विमान तक जाता है। उत्तर तीसरे नरक तक जाते हैं पांचवीं नरक की पृथ्वी तक उपजते है छटी पृथ्वी तक उत्पन्न होते है पृथ्वी तक उत्पन्न होते हैं। कर्मा दि फूल तथा फल सब मिलकर मदिरा (सराव भार प्राप्त होते हैं उसी प्रकार कर्म रूप होने वर्गणा नाम के लोग और का निमित्त पाकर कर्म भाव को प्राप्त में रूपने की सामर्थ्य भी प्रनट होती है, समय में होने वाले अपने एक ही परिणाम ने ग्रहण एक भ भेदरूप होकर परते हैं, अंक एफबारी किये हुये कर्म योग्य पुदगल, ज्ञानावरणादि अनेक या ग्रास अन्न, रेम, रक्त, यांग यादि अनेक धातुउपधातु रूप परिणमना है । ६. कर्मों के निमित्त मे ही भी की अनेक दशायें होती है. इस कारण कमों के बाकी अपेक्षा से कार्य बताते हैं यह जानना प्रावरण वृगोति आव्रियते अनेन यावरणम् ऐसी लत है, जो करे जिससे अत्र आवरण किया जाय वह आवरण है । १. ज्ञानावरल के पांच भेदों (.) रग, रक्तादिस्तु परिणयन से होता है और ज्ञानावरणादि का परिमन युगपत् होता है, इतना अन्तर है । रूप (.) मतिज्ञानावरण कर्मनिज्ञान का जोर 44 Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ७२३ ) करे प्रयत्रा जिसके द्वारा मतिज्ञान प्रावृत किया जाय (१२) प्रचलाप्रचला वर्शनावरण कर्म--'यदुदयात् अति ढका जाय वह भतिज्ञानावरण कम है। त्रिवानात्मान पुनः पुनः प्रचलयति तत्प्रचला प्रसन्ना दर्श() श्रुतमानावरण कर्म-श्रुतज्ञान का जो प्रावरण नावरणम्' अर्थात जिस कर्म के उदय से किया प्रास्मा करे बह शुतज्ञानावरण कर्म है। को बार बार पलाव वष्ट प्रचलाप्रचलादर्शनावरण कर्म (३) अवधिनातावरण कर्म अबाधिज्ञान का जो है। क्योंकि शोक अवथा खेद या माद नशा मादि से प्रापरण करे वह अबाधिज्ञानावरण कम है। उत्पन्न हई निद्रा की अवस्था में बैठते हए भी शरीर के प्रग बहुत चलायमान होते हैं, कुछ सावधानी नहीं (४) मन:पयज्ञानावरण कम - मनःपर्य यज्ञान का रहती। जो पावरख करे वह मनःज्ञानावरण कर्म है। (१३) निवादशनावरण कर्म-जिसके उदय से मेट (१) केवलज्ञानावरण कर्म- केवलज्ञान को 'पावृणोति आदिक दूर करने के लिये केवल सोना हो वह निद्राढक वह केवल जानावरगा कर्म है। दर्शनावरण कर्म है। २ वर्शनावरण कर्म के मक भेदों का स्वरूप-- (१४) प्रचलावर्शनवरण कर्म-जिसके उदय से १६) जक्ष शंनावरण कर्म-जो चक्ष में दर्शन नहीं शरीर की किया पात्मा को चलाये और जिस निदा में होने देवे वह चादर्शनाबरण कर्म है। कुछ काम करे उसकी याद भी रहे, अति कृतं की () अन्नक्षुदर्शनावरण कम-चा (नेत्र) के सिवाय सरह अल्पनिद्रा हो वह प्रचला दर्शनावरण कर्म है। दमी चार इन्द्रियों से जो दर्शन (सामान्यावलोकन को) ३-बेनीय कर्म के दो भेदों का स्वरूपनहीं होने दे वह अचक्षदर्शनावरण कर्म है। (११) साताषेवनीय (पुण्य) कर्म-जो उदय में पाकर अधिवशनारण कर्म – जो अवधि द्वारा दर्शन देवादि गति में जीव को शारीरिक तथा मानसिक सुखों न होन द वह अभिदर्शनावरण कम है। की प्राप्तिरूप साता का 'वेदयति' भोग करावे, अथवा ६) केबलदशनाधरण फर्म केवलदर्शन अथित् 'वेद्यते अनेन' जिसके द्वारा जीव उन सुखों को भोगे वह त्रिकाल में रहने वाले सब पदार्थों के दर्शन का यावरण सातावेदनीय कर्म है। करे उसे केवलदर्शनान रग कर्म कहते हैं। (१६) सातादेवनीय कर्म-जिसके उदय का फल (१०) स्थानति दर्शनावरण कर्म - 'स्थाने रुवाये अनेक प्रकार के नरकादिक गति जन्य दुःखों का भोगगृध्यते दीप्यते मा स्थानगुद्धिः: (निद्राविशेषः) दशना- अनुभव कराना है वह सातावेदनीय कर्म है। वरगाः' धातु शब्दों के व्याकरण में अनेक अर्थ होते हैं, ४-मोहनीय कर्म के दर्शनमोहनीय और चारित्रतदनुसार इस निरक्ति में भी स्थ' धातु का अर्थ सोना मोहनीय ऐसे दो भेद हैं। दर्शन मोहनीय कर्म बंध की और 'मृध' धान का अर्थ दीप्ति गमझना, 'मतलब यह अपेक्षा से 'मिथ्यात्व' यह एक ही प्रकार का है। किन्तु उदय है, जो सोने में अपना प्रकाश करे अर्थात जिसका उदय और सत्ता की अपेक्षा मिध्वात्व, सम्य मिथ्यात्व, होने पर यह जीत्र नींद में ही उठकर बहत पराक्रम का . सम्यक्त्व प्रकृति ऐसे तीन तरह का कहा है। कार्य तो करे, परन्तु भान नहीं रहे कि क्या किया था? चारित्रमोहनीय के एक कषाय वेदतीय और दूसरा उसे स्थानगृद्धि दर्शनावरण कर्म कहा हैं। नोवाषाय बेदनीय ऐसे दो भेद कहे हैं। उनमें से कषाय(११) निद्रा निता दर्शनावरण कर्म -जिसके उदय बेदनीय १६ प्रकार का है, और नोपवाय वंदनीयह से निन्द्रा की ऊ'ची पुनः पुनः प्रवृत्ति हो, अर्थात जिससे प्रकार का है दोनों मिलकर २५ होते हैं। प्रांख के पलक भी नहीं उघाड सके उसे निद्रा- इस प्रकार मोहनीय कर्म के ३+:५-९८ प्रकृति निमा दर्शनावरणकर्म कहते हैं। जानना Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२४ ) (१७) मिष्यत्व नाम दर्शनमोहनीय कर्म-जिसके उदय से मिश्रया (खोटा ) श्रखान हो, अर्थात सर्वज्ञ-कथित वस्तु के यथार्थ स्वरूप में रुचि ही न हो. और न उस विषय में उद्यम करे तथा न हित अहिल का विचार ही करे वह मिथ्यात्व नाम दर्शन मोहनीय है । (१८) सम्यग्मिथ्यात्व दर्शनमोहनीय कर्म जिस कर्म के उषय से परिणामों में वस्तु का यथार्थ श्रद्धान और अयथार्थ श्रद्धान दोनों हो मिले हुए हों उसे (१) सम्यग्मिमत्व दर्शनमोहनीय कर्म कहते हैं। उन परिणामों को सम्यक्त्व या मिथ्यात्व दोनों में से किसी मैं भी कह पृष् माना है । (१६) सम्यमस्थ प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म-जिस कर्म के उदय से सम्यक्त्व गुण का मूल से घात तो न हो परन्तु परिणामों में कुछ चलायमानपना तथा मलिनपना और अपना हो जाय उसे सम्यक्त्व प्रकृति दर्शनमोहनीय कर्म कहते है। इस प्रकृति वाला सम्यत् दृष्टि कहलाता है. [ कषाय - 'कषन्ति हिसन्तीति कषायाः ' जो घात करे अर्थात् गुण को उके प्रकट नहीं होने दे उसको कषाय कहते हैं उस कषाय वेदनीय के श्रनन्तानुबंधी, मप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, संज्वलन, ऐसे चार अवस्था हैं । इन हरेक के क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार चार भेद हैं। इन अवस्थाओं का स्वरूप भी कम से कहते हैं - अनन्त नाम संसार का है, परन्तु जो उसका कारण हो वह भी अनन्त कहा जाता है । जैसे कि प्राण के कारण श्रश्न को प्राण कहते हैं। सो यहां पर मिध्यात्व परिणाम को श्रनन्त कहा गया है। क्योंकि वह अनंत-संसार का कारण है । जो इस अनंत- मिथ्यात्व के अनु- साथ साथ बधे उस कषाय को अनन्तानुबंधी कहते हैं। उसके बार भेद हैं - (२०) अनन्तानुबंधी कोध, (२१) मनन्तानुबंधी मान, (२२) अनन्तानुबंधी माया, (२३) प्रनन्तानुबंधी लोभ, जो 'य' अर्थात् ईषत् बोड़े से भी प्रत्याख्यान को न होने दे, अर्थात् जिसके उदय से जीव थावक के व्रत भी धारण न कर सके उस चारित्र मोहनीय कर्म को प्रत्याख्यानवरण कहते है। उसके चार भेद हैं: - (२४) श्रप्रत्याख्यान क्रोध (२५) अप्रत्याख्यान मान, (१६) प्रत्याख्यान माया (२७ प्रप्रत्याख्यान लोभ । जिसके उदय से प्रत्याख्यान अर्थात् सर्वश्रा त्याग कर आवरण हो । महाव्रत नहीं हो सके उसे प्रत्याख्यानावर कषाय वेदनीय कहते हैं । उसके चार भेद हैं: (२८) प्रत्याख्यानावरण क्रोध, (२६) प्रत्याख्यानावरण मान (०) प्रत्याख्यानावरण माया (३१) प्रत्माख्यानावरण लोभ । (१) इसमें कोदों चावल का दृष्टांत दिया हैजैसे कि कोदों चावल यद्यपि मादक (नशा करने वाले) हैं। फिर भी यदि वे पानी से धो डाले जाम तो उनकी कुछ मादक शक्ति रह जाति है, और कुछ चली जाती है। इसी प्रकार जब मिथ्यात्व प्रकृति की शक्ति भी उपशम सम्यक्त्व रूप जल से घुलकर कुछ कम हो जाती है तब उसको ही सभ्य मिध्यात्व या मिश्र प्रकृति कहते हैं । जिसके उदय से संयम 'सं' एक रूप होकर 'ज्वलति' प्रकाश करे, अर्थात् जिसके उदय से कषाय अंश से मिला हुआ सयम रहे, कषाय रहित निर्मल यथाख्यात संयम न हो सके। उसे संज्वलन कषाय वेदनीय कहते हैं । यह कर्म यमाख्यात चारित्र को घातता है उसके चार भेद हैं- (३२) संज्वलन कोष, ( ३३ ) संज्वलन म.न. (३४) संज्वलन माया, (३५) संज्वलन लोभ । बो तो अर्थात् ईषत् घोड़ा कषाय हो, प्रबल नहीं हो उसे नोकषाय कहते हैं। उसका जो अनुभव करावे वह नोकषाय वेदनीय कर्म कहा जाता है। उसके नव भेद हैं :— (३६) हारय-जिसके उदय से हास्य प्रकट हो वह हास्य कर्म है । (३७) रति--जिसके उदय से देश, धन, पुत्रादि में विशेष प्रोति हो उसे रति कर्म कहते हैं । Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) अरति - जिसके उदय से देश प्रादि में अप्रीति १. गति नाम कर्म-जिसके उदय से यह जीव एक हो उसको परति कर्म कहते हैं । पर्याय से दूसरी पाय को 'गच्छति' प्राप्त हो वह मति (३६) शोक-जिसके उदय से इष्ट के वियोग होने नाम कर्म है । उसके चार भेद हैं :पर क्लेश हो वह शोक कम है। (४९) नरक गति-जिस कम के उदय से यह जीव (४०) भय - जिसके उदय से उद्वेग (चित्त में घब- नारकी के भाकार हो उसको नरक गति नामक कर्म राहट) हो उसे भय कर्म कहते हैं। कहते हैं। (४१) जुगुप्सा-जिसके उदय से ग्लानि अर्थात् (५०) सियंच गति-जिस कर्म के उदय से यह जीव अपने दोष को ढकना और दूसरे के दोष को प्रगट करना तिर्यंच के साकार हो उसको तिर्यच गति नाम कर्म हो वह जुगुप्सा कर्म है। कहते हैं। (४२) स्त्री वेद-जिसके उदय से स्त्री सम्बन्धी भाव ५१) मनुष्य गति-जिस कर्म के उदय मे यह जीव (मृदु स्वभाव का होना, मायाचार की अधिकता, नेत्र मनुष्य के शरीर प्राकार हो उसको मनुष्य गति नाम कर्म विभ्रम मादि द्वारा पुरुष के साथ रमने की इच्छा प्रादि) कहते हैं। हो उसको स्त्री-वेद कर्म कहते हैं। (५२) वेबसि-जिस कर्म के उदय से यह जीव (४२) पुरुष-वेद- जिसके उदय में स्त्री में रमण शरीर के भाकार हो उसको देवगति नाम कर्म कहते हैं। करने की इच्छा मावि परिणाम हो उसे पुरुष-बेद कर्म कहते हैं। २.जाति नाम कर्म- जो उन गतियों में अव्यभिचारी साहय धर्म से जीवों को इकट्ठा करे बह जाति नाम कर्म (४४) नपुसक देव-जिस कर्म के उदय से स्त्री तथा है-एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय प्रादि जीब समान स्वरूप होकर पुरुष इन दोनों में रमण करने की इच्छा प्रादि मिश्रित मापस में एक दूसरे से मिलते नहीं यह तो अव्यभिचारी भाव हो उसको नपुसक वेद कर्म कहते हैं। पना, और एकेन्द्रियपना सब एकेन्द्रियों में सरीखा है मह ५ प्रायु कर्म के चार भेदों का स्वरूप : हृया सादृश्यपना, यह प्रव्यभिचारी धर्म एकेन्द्रियादि (४५) नरकायु-जो कर्म जीव को नारको शरीर में जीवों में रहता है, अतएव वे एकेन्द्रियादि जाति शब्द से रोक रक्खे उसे नरकायु कहते हैं । कहे जाते हैं। जाति नाम कर्म ५ प्रकार का है। जिसके (४६) तिर्यचायु-जो कर्म जोव को तिर्यच शरीर उदय से यह जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिम चतुरिन्द्रिय, में रोक रक्खे उसे तिर्यंचायु कहते हैं । पंचेन्द्रिय कहा जाय उसे क्रम से(४७) मनुष्यायु-जो कर्म जीव को मनुष्य शरीर (५३) एकेन्द्रिय जाति, (५४) बेइन्द्रिय जाति, में रोक रक्खे उसे मनुष्यायु कहते हैं। (५५) तेइन्द्रीय जाति, (५६) चौइन्द्रिय जाति, (५७) (४८) देवायु-जो कर्म जीत्र को देव की शरीर में पंचेन्द्रिय जाति नाम कर्म समझना रोक रवखे उसे देवायु कहते हैं । ३. शरीर नाम कम जिसके उदय से शरीर बने उसे ६. नाम कर्म के मेद हैं-इनमें पिंड पौर अपिंड शरीर नाम कर्म कहते हैं। वह पांच प्रकार का है, जिसके प्रकृति की अपेक्षा ४२ भेद हैं। पिड प्रकृति १४ और उदय से प्रौदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर, पाहारक अपिंड प्रकृति २८ हैं। पिड प्रकृति के उत्तर भेद६५ शरीर. तेजस शरीर और कागि शरीर (कर्म परमाणुगों होते हैं। इस प्रकार-६५+२ =६३ नाम कर्म के का समूहरूप) उत्पन्न हो उन्हें क्रम से-(५८) प्रौदारिक प्रकृति जानना। शरीर नाम कम, (५६) वंऋियिक शरीर नाम कर्म, Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२६ ) (०६) ग्राहाक सरीर नाम कर्म (६१) तेजस शरीर नाम ६. (६२: कारण शरीर नाम कर्म कहते हैं । ४ बंधन नामकर्म शरीर नामकम के उदय से जो वारूप पुद्गल के स्वन्ध इस जीव ने ग्रहण के किये थे उन पुगन्धों के प्रदेशों (हिस्सों का जिस कर्म के उदय से आपस में सम्बन्ध हो उसे बन्धन नामकर्म कहते है । उसके पांच भेद है । (६) औवारिक शरीर बन्धन (६४) क्रियिक हारक शरीर अम्मन (६६ नेकप वशरीर कघन शरीर बन्धन और (६५) कार्याल ५. संघात नाम मं- जिसके उदय से मदारिक श्रादि शरीरों के परमाणु आपस में मिलकर छिद्र रहित बन्धन को प्राप्त होकर एक रूप हो जाय उसे संघात नामकर्म करते हैं। यह (६८ भौवारिक संघात (६६) वैदिक संघात (७० धातार संघात (७१) तेजस संभत (७२) कार्माण शरीर संघात द्वरा तरह पांच प्रकार है। ६. सग्धान नामकर्म जिस कम के उदय ने शारीरिक आकार (दाल) बने उसे संस्थान नामकर्म कहते हैं । उसके ६ भेद हैं ( ७३ समय र संस्थान-जिसके उदय से शरीर का आसार ऊपर नीचे तथा बीच में समान हो अर्थात् जिसके अंगोपाङ्गों की लम्बाई, चौड़ाई सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ठीक-ठीक बनी हो वह समचतुरस्र संस्थान नामकर्म है। (७४) ग्रोषपरिमण्डल संस्थान -जिसके उदय से शरीर का श्राकर न्यग्रोध के ( बढ़ के ) वृक्ष सरीखा नाभि के ऊपर मोटा और नाभि के नीचे पतला हो वह न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थान नामकर्म है । शरीर कुबड़ा हो उसे कुब्जक संस्थान नामकर्म कहते हैं । (७७ बामन संस्थान - जिस कर्म के उदय से बौना शरीर हो वह यमन संस्थान नामकर्म है । (७८ डक संस्थान - जिन कर्म के उदय से शरीर के प्रयोग किसी खास शक्ल के न हों और भयानक बुरे प्रकार के बनें उसे झुंडक मुस्थान नामक कहते है । ७ श्रगोपान नामक - जिसके उदय से आंग का भेद हो वह सांगोपांग नामकर्म है। उसके तीन भेद (७९) धौवारिक प्रगोश ( ८० ) क्रियिक श्रीगोपा] (८१) ब्राहारक भोगोपाय | ८. संहनन न मरुमं जिसके उदय से हाड़ों के बन्धन में विशेषता हो उसे संहनन नामकर्म कहते हैं। वह छ प्रकार का है - (२) बच्चबुभनाराज संहनन जिस कर्म के उदय से वृषभ ( वेऊन ) नाराच कीला) सहजन (हाड़ों का समूह ) बज्र के समान हो, अर्थात् इन तीनों का किसी शस्त्र से छेदन भेदन न हो सके उसे बज्रनुभनाराच संहनन नामकर्म कहते हैं । ऐसा शरीर हो जिसके बच्च के हाड और बज्र की कोली (०३) बज्रनाराच संहनन जिस कर्म के उदय से हो परन्तु बेत बच्च के न हों वह यञ्चनाराच सहनन नामकर्म है । - (८४) नारश्च संहनन जिस कर्म के उदय से शरीर में बच्चरहित (साधारण) बैठन और कीलीसहित हाड हों उसे नाराच संहनन कहते हैं । (८५) नाराच संहनन जिस कर्म के उदय से हाड़ों को संधियां प्राधी कीलित हों वह अर्धनाराच संहनन है । (७५) स्वाति संस्थान -जिसके उदय से स्वाति नक्षत्र के अथवा सर्प की बांमी के समान शरीर का आकार हो, अर्थात् ऊपर से पतला और नाभि से नीचे मोटा हो उसे स्वर्गत संस्थान कहते हैं । (७६) व व्जक संस्थान - जिस कर्म के उदय से (१) श्रदारिक यदि शब्दों का अर्थ जीवकांड की योग मार्गणा में देखो । (८६) कीलित संहना किस कर्म के उदय से हाड परस्पर कोलित हो उसे कीलित संहनन नामकर्म कहते हैं ! (८७) प्रसंप्राप्ता सृप टिका संहनन- जिस कर्म के Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७२७] उदय से जुदे-जुदे हाड नसों से बंधे हों, परस्पर (आपस में) कीले हुए न हों यह असंप्राप्ता पाटिक संहनन है । क्योंकि अप्रामानि ( श्रापस में नहीं मिले हों) सृपाटिकावत् संहननानि यस्मिन् (सर्प की तरह हाड जिसमें ) तत् ( वह श्रसंप्राप्त सृपाटिका संहननम् (श्रसंप्राप्त सूपाटिका संहनन शरीर है)' ऐसा शब्दाथ है । ६. वर्ण नामकर्म-जिसके उदय से शरीर में रंग हो वह वर्णनामकर्म है | उसके पांच भेद हैं- (c) कूलवर्ण नामकर्म । (८६ नीलवरा नामक्रमं । (६०) रक्तवर ( लाल रंग ) नामकर्म । (६१) पीतवसा (पीला रंग ) नामकर्म । (२) श्वेत वर्ण ( सफेद रंग ) नामकर्म । १० गन्ध नामकर्म जिसके उदय से शरीर में गंध हो उसे गन्ध नामकर्म कहते हैं। वह दो तरह का है -- (१३) सुरभिगन्ध ( सुगन्ध) नामकर्म । (६४) असुरभिगन्ध (दुर्गंध) नामकर्म । ११. रस नामकर्म जिसके उदय से शरीर में रस हों उसे रस नामकम कहते हैं। वह पांच प्रकार का है - (६४) तिफरस ( तीखा चरपरा ) नामकमं (६६) कटुक (कडा) रसनामकमं । (१७) कवाय (कला) रस नामकर्म ६८ ) प्राम्ल ( खट्टा ) रस नामकर्म (९६) मधुर रस ( मीठा ) नामक । -- १२. स्पर्श नामकर्म-जिसके उदय से दारीर में स्पर्धा हो वह स्पर्श नामकर्म है उसके आठ भेद है (१००) कंदर स्पर्श (जो छूने में कठिन मालूम हो ) नामकर्म (१०१) मृदु (कोमल) नामकर्म (१०२) गुरु (भारी) नामकर्म (१०३) सघु (हलका ) नामकर्म (१०४) शीत (ठंडा) नामकर्म (१०५) उष्ण (गर्म ) नामकम (१०६) स्निग्ध ( चिकना ) ना.. कर्म (१०८) रुक्ष ( रूखा नामकर्म । श्रानुपुष्यं नामकर्म जिस कर्म के उदय से मरण के पीछे और जन्म से पहले अर्थात् विग्रहगति ( बीच की अवस्था) में मररण से पहले के के आकार श्रात्मा के प्रदेश रहें, अर्थात् पहले शरीर के आकार का नाश न हो उसे आनुपूयं नामकर्म कहते हैं। वह चार प्रकार का - (१०८) नरकगति प्रायोग्यानुपूष्यं नामकर्म जिम कर्म के उदय से नरकगति को प्राप्त होने के सन्मुख जीव के शरीर का प्रकार ितियों में पूर्व शरीराकार रहे उसे नरक प्रायोग्यानुपूव्यं नामकम कहते हैं । (१९) तियंचगति प्रायोग्यानुपुष्यं नामकर्म - ( ११०) मनुष्यगति प्रायोग्यानुपूर्थं नामकर्म (१११) वेवगति प्रायोग्यानुपूर्व नामकर्म मो ऊपर की तरह जानना । १४. विहापोगति नामकर्म जिस कर्म के उदय से ग्राकाश में गमन हो उसे विहायोगति नामकर्म कहते हैं। उसके दो भेद हैं- (११२) प्रदास्तविहायोगति (शुभगमन) नामकर्म ( ११३) अप्रशस्तविहायोगति ( शुभमन ) नामकर्म | (११४) अगुरु नामकर्म जिस कर्म के उदय से ऐसा शरीर मिले जो लोहे के गोले की तरह भारी और याक की रुई की तरह हलका न हो उसे अगुरुलघु नाम, कर्म कहते हैं । (११२) उपधात नामक्रम — जिसके उदय से बड़े सींग, लम्बे स्तन, मोटा पेट इत्यादि अपने ही घातक अग हों उसे उपघात नमक कहते हैं। (उपेत्यधातः उपघातः श्रात्मघात इत्यर्थः । (११६) परात नामकर्म जिसके उदय से लोग सींग, नख, सर्प आदि की दाउ, इत्यादि परके घात करने वाले शरीर के अवयव हों उसे परघात नमकुम कहते हैं । ( ११७) वास नामकर्म-जिस कर्म के उदय सेवासोच्छवास हो उसे उच्छ् वास नामकर्म कहते है । (११) तप नामकर्म -जिसके उदय से परको आतप करने वाला शरीर हो वह आत नाम में है। (११) उद्योतनामयमे जिस कम के उश्य से उद्यतरूप (मातापरहित प्रकाशरूप) शरीर हो उसे उत नामकर्म कहते हैं। इसका उदय चन्द्रमा के निम्न में और श्रभिया ! जुगुनू यादि जीवों के हैं। (१२०) श्रम नामकर्म -जिसके उदय से दो इन्द्रि १. इसका उदय सूर्य के बिम्ब में उत्पन्न हुए पृथ्वीकामिक जीवों के होता है । Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i यादि जीवों की जाति में जन्म हो उसे श्रस नामकर्म कहते है । (१२१) स्थावर नामकर्म जिसके उदय से एकेन्द्रिय में (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पतिकाय में) जन्म हो उसे स्थावर नामकर्म कहते हैं । ( ७२८ (२२) यावर नामकर्म जिसके उदय से ऐसा शरीर हो जोकि दूसरे को रोके और दूसरे से आप रुकूँ उसे बादर नामकर्म कहते हैं । (१२३) सूक्ष्म नामकर्म -जिसके उदय से ऐसा सूक्ष्म शरीर हो जो कि न तो किसी को रोके और न किसी से रुके उसे सूक्ष्म नामकर्म कहते हैं । ( १२४) पर्याप्त नामकर्म-जिसके उदय से जीव अपने-अपने योग्य ब्राहारादि ( बाहार शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा, मन ये ६) पर्याप्तियों को पूर्ण करे वह पर्याप्त नामकर्म है । (१२५) अपर्याप्त नामकर्म-जिसके उदय से कोई भी पर्याप्ति पूर्ण नहीं हो अर्थात् लब्ध्य पर्यातक अवस्था हो उसको पर्याति नामकर्म कहते हैं । (१२६) प्रत्येक शरीर नामकर्म-जिसके उदय से एक शरीर का एक ही जीव स्वामी हो उसे प्रत्येक शरीर नामकर्म कहते हैं । (२२७) साधारण शरीर नामकर्म जिस कर्म के उदम से एक शरीर के अनेक स्वामी हों उसको साधारण नामकर्म कहते हैं । (१) रसात ततो मांसं मांसम्भेदः प्रवर्तते । मेदोस्थि ततोस्थि ततो मज्जै मज्जा कस्ततः प्रजाः ॥ १ ॥ अर्थात् अन से रस, रस से लोही, लोही से मांस, मांस से मेद, मैद से हाड, हाड से मज्जा मज्जा से बीयं, वीर्य से संतान होती है इस तरह सात धातु हैं सात धातु ३० दिन में पूर्ण होती हैं । ) (१२८) स्थिर नामकर्म-जिसके उदय से शरीर के रसादिक' धातु और वातादि उपधातु घने अपने ठिकाने ( स्थिर) रहें उसकी स्थिर नामकर्म कहते हैं. इससे ही शरीर निरोगी रहता है। धातु (१२६ अस्थिर नामकर्म-जिसके उदय से और उपधातु अपने अपने ठिकाने न रहें अर्थात् चलायमान होकर शरीर को रोगी बनायें उसको प्रस्थिर नामकर्म कहते हैं | (१३०) शुभ नामकर्म-जिस कर्म के उदय से मस्तक वगैरह शरीर के अवयव और शरीर सुन्दर हो उसे शुभ नामकर्म कहते हैं । ( १३१) अशुभ नामकर्म जिस कर्म के उदय से शरीर के मस्तकादि अवयव सुन्दर न हों उसको भशुभ नामकर्म कहते हैं । ( १३२) सुभग नामकर्म - जिस कर्म के उदय में दूसरे जीवों को अच्छा लगने वाला शरीर हो उसको सुभग नामकर्म कहते हैं । (१३३) दुभंग नामकर्म जिस कर्म के उदय से रूपादिक गुण सहित होने पर भी दूसरे जीवों को अच्छा न लगे उसको दुभंग नामकर्म कहते हैं । (१३४) सुस्वर नामकर्म-जिसके उदय से स्वर (आवाज) अच्छा हो उसे सुस्वर नामकर्म कहते 1 (१३५) बु. स्वर नामकर्म-जिसके उदय मे प्रच्क्ष स्वर न हो उसको दुःस्वर नामकर्म कहते हैं । (२) बात: पित्तं तथा श्लेष्मा शिरास्नायुश्च चर्म च । जठराग्निरिति प्राज्ञ: प्रोक्ताः सप्तोपधातवः ||२|| श्रर्थात् वात, पित्त, कफ, सिरा, स्नायु, चाम, जठराग्नि (पेट की भाग) ये सात उपधातु हैं । Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७२६ ) (११६) प्रादेय नामकर्म - जिसके उदय से कान्ति पूजित (मान्य) कुल में जन्म हो उसे उच्च गोत्र कम सहित शरीर हो उसको प्रादेय नामकर्म कहते हैं। कहते हैं । ११३८) अनादेय नाम -जिसके उदय से प्रभा १३) नीच गोत्र कर्म-जिस कम इक्य में कान्ति रहित शरीर हो वह अनादेय नामकर्म है। लोक निदित कुल में जन्म हो उस नीच गं. धर्म ११३८) यशः काति नामकर्म-जिसके उदय से कहते हैं। अपना पुण्य गुण जगत में प्रगट हो अर्थात संसार में ६. अन्तरायकों के पांच मेवों का चरपजीव की तारीफ हो उसे यशः कीति नामकर्म कहते हैं। (१४४) नानान्तरराय फर्म - जिसके उदय में देना ११)भयशः कीति मामकर्म-जिस कर्म के उदय चाहे परन्तु दे नहीं सके वह दानान्तराय कम है। से संसार में जीव की तारीफन हो उसे अयशः कीति (१४५) लाभातराय कर्म-जिसके उदय में लान नामकर्म कहते हैं। (फायदा की इच्छा करे लेकिन लाभ नहीं हो सके उसे (१४०) निर्माण नामकर्म-जिसके उदय से पारीर लाभांतराय कर्म कहते हैं। के अगों-पांगों की ठीक ठीक रचना हो उसे निर्माण (१४६) भोगासराय कर्म-जिस कर्म के जदयो नामकर्म कहते हैं, यह दो प्रकार का है, जो जाति नामकर्म अन्न या पुष्पादिक भोगरूप वस्तु को भोगना चापरत की अपेक्षा से नेत्रादिक इन्द्रियें जिस जगह होनी चाहिए भोग न सके वह भोगान्त राय कर्म है। उसी जगह उन इन्द्रियों की रचना करें वह स्थान (१४७) उपभोगान्तराय कर्म-जिसके उदय से स्वी. निर्माण है और जितना नेत्राविक का प्रमाण (माप) वस्त्र, वगैरह उपभोग्य वस्तु का उपभोग न कर सके चाहिये नि है. प्राण ( राम) कमरे वह उसे उपभोगांतराय कर्म कहते हैं। प्रमारण निर्माण है। तीथकर नामकर्म-जी श्रीयुत् ताथकर (१४.) बीन्तरायःकर्म जिस कर्म के उदय में (पहत) पद का कारण हो वह तीर्थकर प्रकृति नाम- अपनी शक्ति (बल.) प्रकट करना चाहे परन्स शातिर कर्म है। न हो उसे वीर्यान्तराय कर्म कहते हैं७. गोत्र कर्म के दो मेवों का स्वरूप इस प्रकार १४८ उत्तर प्रकृतियों का शब्दार्थ जानना {१४२) उच्च गोत्र हर्म-जिसके उदय से लोक- (देखो गो० क. गा. ३३) १०, कषायों का नाम कषायों का कार्य(१) अनन्तानुबंधी कषाय सम्यक्त्व को पावती है (२) अप्रत्याख्यान , देश चारित्र को (३) प्रत्याख्यान । सकल चारित्र को , (४) संज्वलन यथाख्यात बारित्र को,, अर्थात सम्यक्त्व वगैरह को प्रकट नहीं होने देती किसी ने क्रोष किया, पीछे वह दूसरे काम में लगी (देखो गो० क० गा० ४५) वहां पर क्रोष का उदय तो नहीं है, परन्तु जिस पुरुष पर क्रोध किया था उस पर क्षमा भी नहीं है, इस प्रकार जो ११. कसायों को वासना का (संस्कार का) काल क्रोध का संस्कार चित्त में बैठा हमा है उसी की धासताः . 'उदयाभावेऽपि तत्संस्कार कालो वासना कालः, अर्थात् का काल यहां पर कहा गया है। Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३० ) (१) सज्वलन कषायों को बासना का काल अन्तर्मुहूतं तक जानना (२) प्रत्याख्यान , एक पक्ष (१५ दिन) (३) अपत्यास्थान छः महीना (४) अनन्तानुबंधी , संख्यात, असंख्यात तथा अनंतभव है, ऐसा निश्चय कर , समझना । (देखो गो० क. गा० ४६) १२.कालोधात मरए अयंता अकालमत्व का लक्षण वर्ष के भीतर जितने भेद है उतना प्रमाण समभना। विषभक्षरण में अपना विव वाले जीवों के काटने से रक्त-(देखो गो० क० मा० ५८-५९-६०) क्षय अथवा धातु क्षय से, भय से, शस्त्रों के (तलवार १५. ईगिनी मरण का लक्षण - अपने शरीर की आदि हथियारों घास से, संक्लेश परिणामों से अर्थात दहल ग्राप ही अपने अंगों से कर, किसी दूसरे से रोगादि का उपचार में करव, एसे विधान से जो सन्याप धारण मन-वचन-काय के द्वारा प्रात्मा को अधिक पीड़ा पहुंचाने कर गरे उस मरण को इगिनीगररग संयाम कहते है। वाली श्रिया होने से, श्वासोच्छ्वास के शक जाने से और १५) प्रायोपगमन मरण का लक्षणा- अपने शरीर आहार (खाना पीना) नहीं करने से, इस जीव की प्रायु की टहल न तो आप अपने अंगों से करें और न दूसरे से कम हो जाती है, इन कारणों से जो मरण हो अर्थात् ही करावें अर्थात जिसमें ग्राना तथा दूसरे का भी गरीर छूट उसे कदलीघात मरण अथवा अकाल मृत्यु उपचार (सेवा) न हो ऐसे सन्यासमरण को प्रायोपगमन कहते हैं । (देलो गो० क० गा० ५७) मरण कहते हैं। (देखो गो० क. गा. ६७) १३. भक्त प्रतिज्ञा मरण का लक्षण-जघन्य, मध्यम, (१६) तीर्थकर प्रकृति बंध का नियम-प्रमयत-चतुर्थ उत्कृष्ट के भेद से भक्त प्रतिज्ञा तीन प्रकार की है। मक्त गुहा स्थान से लेकर ८वे गुगा स्थान अपूर्वकरण के वे भाग तक के सम्यादष्टि के ही तीर्थंकर प्रकृति का बंध प्रतिज्ञा अर्थात् भोजन की प्रतिज्ञा कर जो सन्यास मरण होता है। प्रथमोपशम-सम्यक्त्व में अथवा बाकी के हो उसके काल का प्रमाण जघन्य (कम से कम) अन्त- द्वितीयोपशमसम्यक्त्व, क्षयोपशाम सम्यक्त्य और क्षायिकहत है और उत्कृष्ट (ज्यादा से ज्यादा) बारह वर्ष सम्यक्त्व की अवस्था में प्रसंयत से लेकर अप्रमत्त गुण रा है तथा मध्य के भेदों का काल एक एक समय स्थान तक चार गुण स्थानों वाले कर्म भूमिग मनुष्य बढ़ता हुया है, उसका अन्तर्मुहूर्त से ऊपर और बार ही, केवली तथा श्रुत केवली (दादशान के पारगामी) १. अधिक दौड़ने से जो अधिक स्वासें चलती हैं वहां काय की क्रिया तथा भन की क्रिया रूप संक्लेश परिणाम होते हैं, इस कारण अधिक श्वास का चलना भी अकाल मृत्यु का निमित्त कारण है, इस एक ही दृष्टांत को देखकर अज्ञानी लोक एकांत से श्वास के ऊपर हो आयु के कमती बढ़ती होने का अनुमान कर श्वास के कमती बढ़त! चलने से प्रायु घट बढ़ जाती है ऐसा श्रमदान कर लेते हैं। उनके भ्रम दूर करने के लिये पाठ कारण गिना , क्योंकि यदि एक ही के ऊपर विश्वास किया जाय तो शस्त्र के लगने से श्वास चलना तो अधिक नहीं मालुम पड़ता, यहां पर या तो अपमृत्यु न होनी चाहिये अथवा अधिक एवास चलने चाहिये, दूसरी बात यह है कि भुज्यमान प्रायु कभी भी बढ़ती नहीं है। समाधि में श्वास कम पलते हैं, इसलिये आयु बढ़ जाती है ऐसा मानना मिथ्या है। वहीं पर श्वास के निरोध से प्रायु कम नहीं होती। Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के निकट ही तीर्थकर प्रकृति के बंध का प्रतिष्ठापन त्यपर्याप्त अवस्था को प्राप्त मिश्र काय योग इन दोनों के (प्रारम्भ) करते हैं, परन्तु इस प्रकृति का निष्ठापन सिवाय मिथ्या दृष्टि से लेकर अप्रमत गुगा स्थान तक तिर्यंच गति छोड़कर शेष तीन गतियों में अर्थात नरक, ही होता है देखो गो. क. गा०६२) मय, देवगति में होता रहता है। सारांश अगर निष्ठा १९. तीर्थकर प्रकृति १, आहारकाद्विक ५, आयु कर्म पन काल के समय वर्तमान प्रायु का काल समाप्त होकर के प्रकृति , इनके सिबाय बाकी बची प्रकृतियों का बध अगली गति में जन्म होने पर बंध हो सकता है। मिथ्यात्व वगैरह अपने अपने बंघ की ब्युच्छित्ति' तक होता प्रथमोपशम सम्यक्त्व में तीर्थंकर प्रकृति का बध नहीं है ऐसा मानना (देखो गो क० गा. ६२) हो सकता ऐसे भी कोई प्राचार्यो का मत है। 30. किस गुरण स्थान में कितने प्रकृतियों के तर : कृश ना होने का सार काल- बंध की ध्यमित्ति होती है उनकी संखडा निम्न प्रकार २ कोटिपूर्व और पाठ वर्ष + एक अंत मुहूर्त कम ३६ जानना, व्युच्छित्ति का भर्थ बंध का प्रभाव यह पर सागर काल तक तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता रहता है बता चुकी है, किस गुण स्थान में जिस प्रकनियों की यह उत्कृस्ट काल है। (दो कोटि पूर्व व+३३ सागर ब्युच्छित्ति हो चुकी है उन प्रकृतियों का बंध प्रगान गण स्थानों में नहीं होता। -८ वर्ष और एक यतर्मुहूर्त) (देखो गो क. गा. १३-६२) २रे गुग्ण स्थानों में जो २५ प्रकृतियों को न्युयिन्ति १७. श्राहारक शरर और ग्राहारक अंगोपांग होती है उन • ५ प्र० का बंध केवल मिय्याल से ही प्रकृत्तियों का बंध अप्रमत्त ७वे गुण स्थान से लेकर से होता है और सासादन मुरग स्थान में केवल मनताअपूर्वकरण गुरण स्थान के छठे भाग तक ही होता है और नुबंधी से ही होता है (देखो गो० क० गा०६४ से १०. (देखो गो० क० गा६२) को ०१) यह कथन इस अध्याय में नाना जीवों की अपेक्षा से जानना। १८, मायु कर्म का बंध मिश्र गुण स्थान तथा निर्व (१) न्युच्छित्ति नाम बिछुड़ने का है । परन्तु जहां पर न्युच्छित्ति कही आती है वहां पर उनका संयोग रहता है। जैसे दो मनुष्य एक नगर में रहते थे। उनमें से एक पुरुष दूसरी जगह गया। वहां पर किसी ने पूछा कि तुम कहां बियेथे? तब उसने कहा कि, मैं प्रमुख नगर में बिसा था अर्थात उससे जुदा हुआ है तरह जहां जहां पर कर्मा के बन्ध, उदय, अथवा सत्त्व की व्युच्छित्ति बताई है वहां पर तो उन कर्मों का नाघ, उदय अथवा सत्व रहता है, उसके आगे नहीं रहसा, ऐसे सर्वत्र समभ लेना चाहिये । Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३२ ) गुण स्थान । व्युच्छित्ति प्राप्त प्र. .. की संख्या जिन प्रकृतियों की बंध पुच्छित्ति होती है उन प्रकृतियों के नाम 2 मिथ्यात मिथ्यात्व १, नपुसक वेद , नरकायु १, हुंडक संस्थान १, प्रसंप्राप्त माटिका , एशिदि ति ४, इसायर १, पासप १, सूक्ष्म १, पर्याप्त १, साधारण १, नरक गति १, नरक गत्यानपूयं १ थे १६ । नागन स्थानगृद्धि १, निद्रा-निद्रा १, प्रचना-प्रचला १, अनन्तानुबन्धी कषाय ४, स्त्रीवेद १, तियंचायु १, दुभंग १, दुःस्वर १, अनादेय १, न्यत्रोध परिमंडल संस्थान १, स्वाति सं० १, कुब्ज सं० १, वामन सं० १, बज्रनाराच संहनन १, नाराच सं० १, अर्धन,राच सं. १। कीलित सं० १, अप्रशस्त विहाचोमति १, तियंच गति १, तिर्मच गत्यानपूर्व्य १, उद्योत १,नीचीत्र १ये २५ । यहां किसी प्रकृति की व्युच्छित्ति नहीं होती। ३ मिश्र प्रप्रत्याख्यान कषाय ४, मनुष्यायु १, वचवृधमनाराच संहनन १, प्रौदारिक भारीर १, प्रौदारिक अंगोपांग १, मनुष्य गति ३. मनुष्य गस्पानुपूज्यं १, ये १० । ४ असंयत प्रश्पाख्यान कषाय ।। ५ देश संयत प्रसात्ता वेदनीय १, अरति-शोक २, अस्थिर १, अशुभ , अया: कीर्ति १६। ६ प्रमत्त ७ अप्रमत्त देवायु, प्रकृति ही ज्युछिनि होती है, जो अंगी चढ़ने के संमुख नहीं है ऐसे स्वस्थान अप्रमत्त के ही अन्त समय में प्युछित्ति होती है। दूसरे सातिशय अप्रमत्त के बन्ध नहीं होता, इसलिये न्युछित्ति भी नहीं होती। २ ८ भाग १ निद्रा १, प्रचला १ ये २ प्रकृतियों की व्युमिति होनी है। इस ग में श्रेणी चढ़ते समय मरण नहीं होता। Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ € भाग १ भाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ ६० सा ११ उपयांत मोह १२ क्षीण मोह १३ सयोग के० १४० . ३० १ १ 1 १ १ १६ १२० ( ७३३ ) इस भाग में नहीं होती। " " "P او او तीर्थंकर प्र० १, निर्माण १ प्रशस्त विहायोगति १ पंचेन्द्रिय जाति २ तैजस-कार्मारण शरीर २ बाहारकडिक २ समरसंस्थान है, देवगति १ देवगरमा १ त्रिविकडिक २ स्पर्शादि ४ गुरुलघु १, उपवात १, परघात १, उच्छवास १ स १, बादर १, पर्यास १, प्रत्येक १ स्थिर १, घुम, सुभग १, सुस्वर ११, २० हास्य रति भय-जुगुप्सा २ वे ४ । " पुरुषवेद १ की व्युत्ति जानना | संवलन कोष की माग १ की माया १ की " लोभ १ की ज्ञानावरण के दर्शनावरण के ४ (चक्षु ६० २. ६० १, ५, अचक्षु अवधि २०१, केवल दर्शनावर ४) यशः कीर्ति २ उच्च १. अंतराब कर्म के २. ये १६ । यहां कोई बुद्धिति नहीं होती। ן! " נן 23 rt 77 33 J " " सातावेदनीय १ की व्युच्छित्ति जानना । वहां बन्ध भी नहीं तथा युति भी नहीं होती। बन्धयोग्य प्रकृतियां, इनकी व्युच्छित्ति ऊपर लिखे अनुसार जानना Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१. गुण स्थानों को प्रपेक्षा से बंप प्युछित्ति, बंध, प्रधष, प्रकृतियों के कोष्टक बंध योग्य प्रति १०।। (देखो गो० का गा० १७३ और १०४ को० न० २) प्रबंध प्रकृति गुणास्थान बंध प्रकृति बध | न्युच्छित्ति संख्या प्र० संख्या विशेष विवरण १ मिथ्यात्व पाहारकद्विव , तीर्थकर प्र० १ ३ । २ सासादन ३ मिश्र १६+२५=१४+ =४६ मनुष्यायु १, देवायू १ये २ । ४ पसंयत ५७-३ ४३. नीर्थकर प्र. १, मनग्यायु १, देवायु १ ये ३ । ५ देश संयत प्रत्याख्यान कपाय४। ६ प्रमत्त को० नं०१ देखो। अप्रमत्त +६-६३-२ प्राहारकटिक = ६१ १ देवायु जानना। ८ अपूर्व क० को नं.१देखो। ६ अनिव को० नं०१ देखो। को. २०१देखो। १० मुक्ष्म सां ११ उपशांत मोह १२ सीप मोह १३ सयोग के १ सातावेदनीय जानना। भयोग के Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२. बंध योग्य प्रकृति १२० में से ऊपर लिखे हुये बन्ध प्रबन्ध प्रकृतियों की संख्या और नाम निम्न प्रकार जानना। देलो गो० के० मा १०३-१०४ और क्रो० नं २ । प्रदाध प्रवातियों को बन्न प्रकृतियों की गूगास्थन संध्या माम । संख्या नाम --- १ मिथ्याल आहारकटिक २, । मोकर प्र० १, ये जानना झानावरण ५ दांनावरम ६, वेदनीय २, मोहनीय २६, श्रायु ४, नाम ६७-३ =६४, गोत्र २, अन्तराय के ५ - मामादन 2-१६ को नं. १ १०१ के समान =१६ | जानना ऊपर के ५+ +२+२४ (मिथ्यात्व १, मपु सक वेद । ये २ घटाकर (२६-२-२४)+ +५१ (६४–१३ =५१ मामकर्म १३ को.नं. १ के समान) +२+५१०१. ३ मिश्र । ४. ! १६-२५ को० नं०७४। १के समान =४४ । +२ (मनुष्यायु १, देव-१, ये २) ४६ जानना ज्ञानावरण ५+६ दर्शनावरण (६-३ महानिद्रा घटाकर =६)+२ वेदनीय +१६ मोहनीय । अनन्तासुबन्धी ४, स्त्रीवेद १ ये ५ वटाकर २४ ५ - १६) नामकर्म के ६ ६.१–१५ को. नं०१ के समान घटाकर ६) उच्चगोत्र, अन्सराय के ५ये ७४ जानना। ४ असंयत ४६-३(मनध्यायु १, । मगर ,तीकर प्र० १५३ घटाकर)-(४३) जानना ऊपर के ५+ +२+१६-२ (मनुष्यायु १. देवायु १, ये २+३७ (३६ तीर्थंकर प्र०=१७) १+५ये ७७ जानना ५ देश सयत : ७ । ! ४+ (को० नं. :मान) ५३ । जानना - ऊपर के ५ . ६ +२+ १५ (१६४ अप्रत्याख्यान पाय घटाकर + +३२७ ५ को नं० के समान = ३.)+ +५ ये ६७ जानना | Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ प्रमस । ५७ ६३ ५३+४ प्रत्याख्यान । कषाय-५७ जानना ऊपर के ५ .२ ५ (१५-४ । प्रत्याख्यान कषाय घटाकर) +१ . ३२+१।" ये ६.. ७ अप्रमत्त । ६१ ५७+६को० नं० | ५६ के सन =६३-२ पाहारकर्तिक २ घटाकर -६१ जानना ऊपर के ५.६+१ मानावेदनी +६ (१ -२ परति-शोक ये २ घटाकर 1.१ . २६ ३३-३ अस्थिर, अशुभ, अयश: कीति ये घटाकर २६) +पाहारकदिक २ ++५ ५६ जानना ८ अपूर्वकरण | ६२ ६११ देवायु से ६२ जानना ऊपर के ५ . ६+१ । ये ५८ जानना +३१+१+2 १ अनिवृत्तिक २८ ६२+३६ को नं० | २२ १के समान जानना ऊपर के ५.४ (६-२ निद्राप्रथला घटाकर ..४) ५ (6-४ हास्य-रति, भप जुगुप्सा ये ४ घटाकर )+१ (३१-३० को नं ५ समान - १) +१+५ये २२ जानना १. मूक्ष्मसापराय : ८. संगला कषाय ४, पुरुषवेद १,ये ५=१०३ जानना र के ५+४+१+। यशः कीर्ति +१+५-१७ जानना (देखो गो. क. गा० १५१) ११ उपशांत मोह ११९ साता वेदनीय जानना १०३+१६ को नं. १ के समान ११६ जानना १२ क्षीण मोह 18 १३ सयोग के० ११६ १४ प्रयोग के ११४+१ सातावेदनीय ये १२० जानना Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३. मून प्रकृतियों के बंघ के पार भेद निम्न प्रकार से परिणमनता हुआ जो पुद्गलद्रव्य वह जब तक उदय जानना स्वरूप (फल देने स्वरूप) अथवा उदोरणा (बिना समय (१) सावि बंध - जिस कर्म के बंध का अभाव होकर के कर्म का पाक होना) स्वरूप न हो तब तक उस काल अथात् बध-व्युच्छात्त के बाद फिर वहा कम बष उस के माधा कॉल कहते हैं। (देखो मो. क. गा० १५५) सादि बंध कहते हैं। (१) ग्रावाषा को उवय को अपेक्षा मूल प्रकृतियों में (२) प्रनावि बंधजो गुण स्थानों की श्रेणी पर बलसाते हैं- यदि कोई एक कर्म की स्थिति एक कोड़ा ऊपर को नहीं चहा अर्थात बंध-त्यच्छिसि के पहले जो कोड़ी सागर प्रमाण हो तो उस स्थिति की भावाधा काल बंध अव्याहत चालू रहता है, जिसके बंध का प्र.वि नहीं(१००) सौ वर्ष प्रमाग जानना और बाकी स्थितियों को हुया बद अनादि बंध है। प्रामाषा काल इसी के अनुसार राशिक विधि से भाग (३) ध्रव बंध-जिस बंध का ग्रादि तथा अंत न देने पर जो जो प्रमाण मावे उतनी-उत्सनी जानना। यह हो अर्थात जिस बंध का सतत चासू रहता है वह धुन बंध है। क्रम प्राय कर्म के सिवाय सात कर्मों की प्राबधा के लिये (४) अनार .... जिस उदय की अपेक्षा से है। (देखो गो० का गा० १५६) से मध्रुव-बंध कहते हैं। २१ अन्तः कोड़ा कोड़ी सागर प्रमाण स्थिति की ज्ञानाबरण, दर्शनावरा, मोहनीय नाम गोत्र, मावाचा काल एक अन्तमु हतं जानना भोर सम जघन्य स्थितियों की उससे समातगुगी क्रम (संख्यातवें भाग) अंतराय ये छह कर्मों का प्रकृति बंध सादि, अनादि, ध्रुव पानाधा होती है। देखो गो० क० गा० १५७) प्रध्रुव रूप चारों प्रकार का होता है। (३) प्रायुकर्म की पाबाघा काल-कर्मभूमि के तीसरे वेदनोय कर्म का बंध सादि बिना तीन प्रकार का होता है। उपशम श्रेणी चड़ते समय और नीचे तिसंच और मनुष्यों की उस्कृष्ट प्रायु कर्म की भावाधा काल उतरते समय साता वेदनोय का सतत बंध होता रहता है कोहपूर्व के तीसरे भाग प्रमाण है और अपन्य मायु की इसलिये सादि बंध नहीं होता । पायाचा काल प्रसंक्षेपाता प्रमाण अर्थात जिससे थोड़ा प्रायु कर्म का सादि और मधव ये दो प्रकार काही काल कोई न हो ऐसे पावली के असंख्यातवें भाग प्रमाण बंध होता है। एक पर्याय में एक समय, दो समय या तक है। प्रायु कर्म की पाबाधा स्थिति के अनुसार भाग उत्कृष्ट माठ समय में प्राय कर्म का बंध होता है। की हुई नहीं है अर्थात् जसे अन्य कर्मों में स्थिति के इसलिये सादि है और पन्तमहतं सा ही बंध जोता अनुसार भाग करने से प्राबाधा का प्रमाण होता है. इस इसलिये प्रघुव है। तरह इस प्रायु कर्म में नहीं है। देव और नारकीयों को मरण के पहले छ: महीना भानावरण को पांच प्रकृतियों का बंध किसी जीव पौर भोगभूमियों के जीवों को नव महोना बाकी रहते के दसवें गुण स्थान तक अव्याहत होता था, जम वह हुए घायु का बंध होता है यह प्रायुबंध भी विभाग से जीन ग्यारहवें में गया तब बंध का प्रभाव पा, पीछे होता है। यायु का बंध होने पर अगले पर्याय से प्रारम्भ ग्यारहवें गुण स्थान से पड़कर (च्युत होकर) फिर दसवें में उसका उदय होता है । बंध से मेफर उदय तक का जो में प्राया तम ज्ञानावरण की पांच प्रकृतियों का पुन: बंध काल वही पायाषा काल है । (देखो गो। क० गा०१५८) हुमा, ऐसा बंध सादि कहलाता है। (४) उवीरणा की अपेक्षा प्रभाषा काल-पायु कर्म दसवें गुण स्थान वाला ग्यारहवें में जब तक प्राप्त को छोड़कर शेष सात कमों की उदीरगा की अपेक्षा से नहीं हुमा वहां तक ज्ञानावरण का प्रनादि बंध है, ग्राबाधा एक प्रावली मात्र है तब तक उदीरणा नहीं होती क्योंकि वहाँ तक अनादि काल से उसका बंध चला पाता है। और परभव की भायु (बध्यमान घायु) जो बांध लीमी है ध्रुव बंध प्रभव्य जीव के हो-है। अध्रुव बंध भव्य उसकी उदीरणा या उदय भुज्यमान प्रायु में निश्चयकर नहीं जीवों के होता है । (देखो गो० क० गा० १२२-१२३) होली । अर्थात वर्तमान प्रायु की (भज्यमान प्राय की) २४ पाबाबा काल का लक्षारण - कारिए शरीर नामा उदीरणा तो हो सकती है, परन्तु आगामी प्रायु की .. नामकर्म के उदय से योग द्वारा प्रात्मा में कम स्वरूप कर्म (बध्यमान प्रायु की) नहीं होती (देखो गो० के० गा०१५६) Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५. एक जीव को एक समय में कितने प्रकृतियों का बंध होता है रह बतलाते हैं। (देखो गो० क. गा० २१७ कोन०५५) नामक्रम "ज्ञाना० दर्शना० विदनीय | मोहनीय मायु गोत्र | जोड़ १. मिथ्यात्व ६७-६९-७०-७२-७३ २३-२५-२६-२८२६-३० ८.९६.३० २. सासादन ५ | ७१-७२-७३ ३. मिथ ८-२६ ४. असंयत ६४-६५-६६ ५. देशसंयत ६०-६१ २८-२६ २८-२६ ६. प्रमत्त ७. अप्रमत्त २८-२६-३३-३१ ५६-५७-५८-५६ ५८.९९-३०-३१.१ ५५-५६-५७-५८-२६ २२-२६-२०-१९.१८ ८, अपूर्व क. ६. अनिवृत्तिः १०. सूक्ष्म सा० ११. उपशांतमो० १२. श्रीण मोह १३. सयोग के० ० १४. प्रयोग के० . २३-२५-२६-२८२६-३०-३१-१ ७४-७३-७२-७१ १७-१३-६ ६५-६४-६३-६१६०५६-५८-५७ २-२ २१-२०-१६-१८ Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७३६ ) ऊपर के कोष्टक का विशेष स्पष्टीकरण : १.ज्ञानावरण के ५ प्रकृति :-मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधि ज्ञानावरण, मनः पर्यय ज्ञानावरण, केवल ज्ञानावरण ये ५। २. वर्शनावरण के प्रकृति-मुल प्रकृति जानना । ६ प्रकृति -मूल प्रकृतियों में से स्थानगृद्धि. निद्रानिद्रा, प्रचलनचलाये ३ महानिद्रा घटाकर जानना । ४ प्रकृति-ऊपर के ६ में से निद्रा मोर प्रचलाये २ घटाकर ४ जानना 1 ३.वेदनीय के ४. मोहनीय के २२ प्रकृति-मोहनीय के २८ प्रकृतियों में से सम्यग्मिथ्यास्त्र, सम्यक्त्व प्रकृति इन दोनों का बध नहीं होता । इसलिये ये २ घटाने से २६ रहे। इनमें तीन वेदों में से एक समय में एक ही वेद का बंध होता है इसलिये दो बेद कम करने से २४ रहे। इनमें हास्य-रति में से कोई १, और परति-शोक इन जोड़ों में से कोई काही वध होता है इसलिमे २४ में से २ घटाने से २२ प्रकृति जानना । २१ प्रकृति-ऊपर के २२ में से मिथ्यात्व प्रकृति १ घटाकर २१ जानना । १७ प्रकृति-ऊपर के १ में से अनन्तानुबंधी कषाय ४ घटाकर १७ जानना। १३ प्रकृति-ऊपर के १७ में से अप्रत्याख्यान कषाय ४ घशकार १६ आना। प्रकृति-ऊपर के १३ में से प्रत्याख्यान कषाय ४ घटाकर ह जानना। ५ प्रकृति - ऊपर के ६ में से हास्य-रति में से १, अति-शोक में से १, और भय-जुगुप्सा ये २ में से घटाकर 6-४-५ जानना । ४ प्रकृति-ऊपर के ५ में से पुरुषवेद १ घटाकर ४ जानना । ३ प्रकृति-ऊपर के ४ में से संज्वलन क्रोध १ घटाकर ३ जानना। २ प्रकृति-ऊपर के ३ में से संज्वलन मान १ घटाकर २ जानना । १ प्रकृति- ऊपर के २ में से संज्वलन माया १ घटाकर १ जानना । Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४० ) ५. आयु कर्म की पति af मनुष्य अपर्याप्तयुत-ऊपर के पंचेन्द्रिय जाति ६. नामकर्म की प्रकृति-गो क. गा० २१७-५२६. के २५ प्रकृतियों में से तिर्य वगति घटाकर मनुष्यगति से ५३१ देखो)। जोड़कर २५ जानना । (१) ३ प्रकृतियों का मन्ध स्थान एकेन्द्रिय अपर्याप्त- (३) २६ प्रकृतिमों का ३रा बन्धस्पान के दो प्रकार युत एक ही है-ध्रुव प्रकृति ६ (तंजस शरीर १. हैंकार्माण शरीर १, अगुरुलधु १, उपघात १, निमरिण १, ला एन्द्रिय र्याप्त प्रारुपयत- मतष्यति अपर्याप्त स्पर्शादि ६) बादर-सूक्ष्म में से १, प्रत्येक-साधारण । के २५ प्रकृतियों मे से त्रस १, अपर्याप्त १. मनुष्यगति १, में से १, स्थिर-अस्थिर में सं , शुभ-अशुन में से १, पचेन्द्रिय जाति १, प्र-सपाटिका सहनन १, मौदारिक सुभग दुर्भग में से १, मादेय-अनादेय में से १, मंगोपांग १ मे ६ घटाकर दोष १६ में स्थावर १, पर्याप्त पश-कीति-पयश कीति में से १, स्थावर १, अपर्याप्त १, १, तिर्यंचगति १. एकेन्द्रियजाति १, उच्छ् वाम १, परघात तिर्यंचद्विक २, एकेन्द्रिय जाति है, औदारिक शरीर १, १, भातप १ ये ७ जोड़कर २६ जानना । कः संस्थानों में से कोई संस्थान, ये सब २३ प्रवाति जानना और 'एकेन्द्रिय अपर्याप्तयत' का अर्थ--जो कोई राकार ए द्रिय पति उद्योसयुत - ऊपर के जीव इन २३ प्रकृतियों को बांधता है, वह जीव मरकर पातप प्रकृति के जगह उद्योत प्रकृति जोडकर २६ एकेन्द्रीय अपर्याप्त हो सकता है और एकेन्द्रिय अपर्याप्त जानना। हो तो वहां इन २३ प्रकृसिमों का उदय होगा। (४) २८ प्रकृतियों का ४था बन्धस्थान के दो प्रकार (२) २५ प्रकृतियों का दूसरा बन्धस्थान है। उसके । ६ प्रकार होते हैं। ला देवतियुत-ब प्रकृतियां ६, स १, बादर ला एकेन्द्रिय अपक्षियुत-ऊपर के २३ प्रकृतियों १, पर्याप्त १. प्रत्येक १, स्थिर-अस्थिर में से १, शुभमें में अपर्याप्त १, घटाकर शेष २२ में पर्याप्त प्रशुभ में से १, यश:कीति-प्रयक्षःक ति में मे १, सुभग १, उच्छु बास १, परवात १ये ३ प्रकृतियां जोड़कर २५ मादेय १. देवगति १, देवगत्यानपूर्ण १, वक्रियिकतिक जानना। २, पंचेन्द्रिव जाति १, समचतुरस्र संस्थान १, सुस्वर १, राद्विन्द्रिय अपर्याप्तयुस-ऊपर के २५ प्रकृतियों में प्रशस्तविहायोगवि १, उच्छ वास १, परघात १ ये २८ से स्थावर १, पर्याप्त १, एकेन्द्रिय १, उच्छ् बास १, जानना । परयात १ये ५ घटाकर शेष २० में प्रस १, अपर्याप्त १, २रा नरकगलियुत-ध्रुव प्रकृतियां ६, अस १, बादर द्विन्द्रियजाति १, असंप्राप्ता सूपाटिका संहनन १, १.पर्याप्त १, प्रत्येक ५, यस्थिर १,अशुभ १, अनादेय १, श्रीदारिक अंगोपांग १ ये ५ जोड़कर २५ जानना। उभंग १, मयश : कीति १, नरकद्विक २, बैकियिकद्विक ३रा क्रन्द्रिय पर्यायुत--वीन्द्रिय अपर्याप्तयुत में २, पंचेन्द्रियजाति १, हुंडक संस्थान १, दुःस्वर १, जो २ प्रकृतिया है। उनमें से द्वीन्द्रिय जाति घटाकर अप्रवास्तविहायोगति १. उच्छवास १, परवात १ ये २८ मीन्द्रिय जाति १ जोड़कर २५ जानना। जानना। ४मा चलरिन्द्रिय अपर्याप्तयुत-ऊपर के श्रीन्द्रिय के (५) २६ प्रकृतिमों का ५वा बन्धस्थान के ६ प्रकार जगह वन्दिय जाति जोड़कर २५ जानना। ५षां पंचेत्रिय अपर्याशयुत-ऊपर के चतुरिन्द्रिय माहीन्द्रिय पर्याप्तयुत--ध्रुव प्रकृनियां ६. स १, जाति के जगह पंचे िदयाति जोड़कर २५ जानना । बादर १. पर्याप्त , प्रत्येक १, स्थिर-अस्थिर में १. Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७१ ] शुभ-अशुभ में से १, दुभंग १. अनादेय १, यश:कीति- प्रकृतियों का द्वीन्द्रिय पर्याप्त स्थान में उद्योल प्रकृति ? अयशःकोति में से १, तिर्यचटिक २, द्वीन्द्रियजाति १, जोड़कर ३० जानना । मौदारिकटिक २, हुंडक संस्थान ', अ-सृपाटिकासंहनन १, २रा प्रन्द्रिय पर्याप्त उपोतयत- ऊपर के २६ दुःस्वर १ अप्रशस्तविहायोगति १, उच्छ्वास ५ परषात प्रकृतियों कात्रीन्द्रिय पर्याप्तयत स्थान में एक उद्योत १ मे २६ जानना। प्रकृति जोड़ कर ३० जानना 1 २रा वीन्द्रिय पर्याप्तयुक्त-ऊपर द्वीन्द्रिय पर्याप्तयुत समिन्द्रिय पर्याप्त योतयत-ऊपर के २६ के २६ में दीन्द्रिय जाति की जगह त्रीन्द्रिय जाति जोड़ प्रकृतियों का चतुरिन्द्रिय पर्याप्तयुत स्थान में एक उद्योत कर २६ जानमा। प्रकृति जोड़कर ३० जानना । ३रा चतुरिन्द्रिय पर्याप्तयुत ऊपर के श्रीन्द्रिय या पंचेन्द्रिय पर्याप्त उद्योतयुत-ऊपर के २६ पर्याप्तयुत के २६ में त्रीन्द्रिय जाति की जगह चतुरिन्द्रिय प्रकृतियों का पंचेन्द्रिय पर्याप्तम्त स्थान में एक उद्योत जाति जोएकर २६ जानना। पनि जोड़ कर ३० जानना । या पंचेन्द्रिय पर्याप्तयुत (तिच – ध्रुवप्रकृतियां ६, अस १, बादर १, प्रत्येक १, पर्याप्त १ स्थिर-पस्थिर म से , ५षा मनुष्य तीर्थकरयत कार के २९ प्रकृतियों का शुभ-अशुभ में से १, सुभग-दुभंग में में १, प्रादेम-यनादेय मनुष्य पर्याप्तश्रुत स्थान में एक तीथंकर प्रकृति जोड़कर में से १, यश-कीति-अयशःकीति में में ,छः संस्थानों मे ३० मानना । मे कोई १, छः संहननों में से कोई १, सुस्वर-दुस्वरों में वो देखगति प्राहारयुत-ऊपर के २६ प्रकृतियों से कोई १, दो विहायोगतिमों में कोई १, तिचद्विक का देवगति तीर्थकरयुत स्थान में से तीर्थकर प्रकुति १ २, मौदारिकद्विक २. पंजियाति १, उच्छवास १, घटाकर, आहारकावक र जोड़कर ३० प्रतियां परषात १, ये २६ जानना । जानना । ५वा मनुष्य पर्याप्तयुत--ऊपर के २६ में तियंचविक (७) ३१ प्रकृतियों का एक ही स्थान है२ के जगह मनुष्याद्विक २ जोड़कर २६ जानना । वो देवमति सोकरयुत-ध्रुव प्रकृतियां १देशाति प्राधारक-तीकरत-ऊपर २६ प्रकृतियों स १, बादर १ पर्याप्त १,प्रत्येक. १, स्थिर-अस्थिर मे स , शुभ- का देवगति तीर्थकरयुत इस स्थान में याहारकादिक २ अशुभ में से १. सुभग १, प्रादेय १ यशःकाति-अयश कीति जोड़कर ३. जानना ।। में सं १, देवद्विक २, बयिकातिक २, पद्रिय जाति (८) १प्रकृति का एक ही स्थान है-वह प्रकृति १, समवरन संस्थान १, सुपर १, प्रशस्तविहायोगति प्रति यशः कीति १ जानना। १. उच्छदास, परमात १, तीर्थकर ये २६ जानना । इस कार नामकर्म के प्राठ स्थानों के २५प्रकार सूचना -२८ प्रकृतियों का बन्घस्थान में देवगातचूत जानना । जो प्रमार बतलाया है, उससे एक तीर्थकर प्रकृति इसमें सूचना--नरकगतिपुल २८ प्रकृतियों का स्थान में बढ़ गया है। और कैन्द्रिय अपर्याप्तयुत २३ प्रकुतियों का स्थान में १६. ३० प्रतियों का ६वा अन्धस्थान के ६ और बस शापनियत २५ प्रकृतियों का स्थान में दुभंग, प्रकार.. सुभगादि शुभाशुभ प्रहानियों में में एक का ही बन्न होगा १ला द्वीन्जिय पर्याप्त उद्योग्यस--ऊपर के २६ ऐसा जो लिखा है वह अशुभप्रकृति का ही वध होगा। Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५ j . दिखो ग.. क० गा० ५३३) और ऊपर जो नामकर्म के भंग आदि विवरण गो० क० गा० २१७ को० नं. ५३ : ग्राउ स्थान बतलाया गया है उनके गुणस्थान बधस्थान, मे देखो। .. .. -. -. - --- - . . ....-.--. ------- . .....- - - .--- २६. कर्मों के उबम का कथन करते हैं - प्रकृतियों का नाम । माहारकद्रिक २ । तीर्थकर प्रकृति का उदय । उपय कौनला मृणास्थान में होता? ६४ प्रमत्त गुगास्थान में ही होता है। १३ सयोग तथा १४वे प्रयोग केबली के हो होता है। सम्पमिथ्यात्व सम्यक्त्व प्रकृति का उदय । ३रे मिश्रगुण स्यान मे ही होता है। क्षयोपशमससम्याट के से ये चार गुरम होता है। में गत्यानुपूर्वी का उदय । श्ले मिथ्यात्व २रे सासादन और थे प्रसयत गुण स्थान इन तीनों में ही होता है। परन्तु कुछ विशेषता यह है कि सासादन गुणास्थान में मरने वाला जीव नरकगति को नहीं जाता। ___ इस कारण उसके नरकगत्यानृपूर्वी कम का उदय नहीं होता है और बाकी बचीं सब प्रकृतियों का उदय - मिथ्यात्वादि गुण स्थानों में अपने-अपने उदयस्थान फे अन्त समय तक (उदयव्युच्छित्ति होने तक) जानना । देखो गो० का गा० २६१-२६२)। Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७४३ ) २७. गुण स्थानों में उन्य म्युमित्ति मादि कम से कहते हैं - (को० नं. ५६) (महापघल अथवा कषाय प्राभृत के कर्ता यति वृषभाचार्य के मतानुसार जानना ) गुण-स्थान अनदय उदय - बिशेष विवरण 'व्युन्छुि १. मिथ्यात्व | ५ | ११७ ! १० १० । ५-तीर्थकर प्र.१, पाहारवाद्विक २, सम्पमिथ्यात्व १, सम्यक्त्वं प्रकृति १ये ५ जानना । १० - मिथ्यात्व १, पातप १, सूटम १, साधारण १, अपर्याप्त १, स्थावर १. एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय जाति ४ ये १० जानना । २. सासादन १६४५+१०+१ नरकगत्यानुपूवी-१६ जानना। ४:- अनंतानुबंधी कषाय ४ जानना: ३ मिश्र २२=१६+४-२०+-३ ग्रानुपूर्वी-२३--१ सम्यमिथ्यात्व-२२ जानना । १=मिश्र ०१ जानना ४ असंमत १८-२३-४ भानुपूर्वी १ सम्यस्त्व प्र.ये ५=१८ जानना। १७ अप्रत्याख्यान ४, नरकदेवायु २ वैऋियिक पटक ६, मनुष्यतिर्यच गत्यानुपूर्वी २, दुभंग १, घनादेव १, अयश: कीतिः १ ये १७ जानना। ५. देशसंयत ३५=१८+१७ -३५ जानना । + - अप्रत्याख्यान कषाय ४, तिर्यंचायु १. तिथंच गति १, उद्योत १, नोच गोत्र १ये ८ जानना। ६. प्रमत्त ४१-३५+८-४३-२ आहारकद्विक = ४१ जानना। ५= स्थानगृद्धि १, निद्रानिद्रा १, प्रचलाप्रचला १, माहारकद्विक २ ये ५ जानना । ७. अप्रमत्त ४६ .. ४१+५:४६ जानना। ४-सम्यक्त्व प्र० १, अर्ध नाराच १. दलित : सपाटिका १मे ४ जानना । ८. अपूर्व क० | ५० ५० ". ४६ +४==५० जानना । ६-हास्य, रति, परति, शोक, भय, जुगुप्सा ये ६ जानना । ६. अनिव० ५६+ +६-५६ जानना । ६=संज्वसन क्रोध-मान-माया ३. बेद ३, ये ६ जानना। १०. सुक्ष्म सो ६२ ६२-५६+६-६२ जानना । १= लोभ कषाय (सूक्ष्म लोभ) जानना । ११. उपशांतमो०। ६३ ६३ = ६२+१ ६३ । २ वच्च नाराच १, नाराच १, ये २ जानना । १२. क्षीण मोह०१५ ६५-६३+२=६५ जानना । १६ - शानावरण ५, दर्शनावरण ४+निदा १, प्रचला १=६, अंतराय के ५ ये १६ जानना। १३. सयोग के० | ८० | ४२ | २६ । ८७ = ६५+१६=१-१ तीर्थंकर प्र०-८० जानना । २६. घनवृषभ नाराच संहनन " निर्माण, स्थिरहिक २. शुभविक २, स्वरदिक २, विहायोगति २, प्रोदारिद्विकर, तेजस १, कार्माण १, सस्थान १, स्पादि ४, अगुरुलघु १, उपघात १, परधात १, उच्छवास १, प्रत्यक शरीर १.ये २६ । १४. प्रयोग १०९ १०६ ८०+२६ - १०९ जानना। केवली .३ वेदनीव २, मनुष्यायु, मनुष्य गति १, पंचेन्द्रिय जाति १, मूभग १, अस १. बादर १, पर्याप्त १, यादेय १. यशः कीति १. तीर्थ र १, उच्च गोत्र १ये १३ जानना । ऊपर जो उदय का कोष्टक दिया है उसो तर छडे गुसरा स्थान तक दोरगा का कोष्टक जानना । साता, असाता और मनुष्यागु इन तीनों का उदीरा दे गुरु स्थान तक हो होतो है। परन्नु उदय मात्र १४वे मुरण-स्थान तक रहता है. इसलिये वें गण-स्थान से १४वे गृगण स्थान तक उदीरणा में प्रकृति कम होकर और अनुदीरगा में ३ प्रकृति बढ़ जायेंगे। (देयो गो० कल गा० २६३ को० नं. ५६) Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द १ २ ४ ( ७४४ ) २२. गुल स्थान उत्तिसादिकमसे कहते हैं। ( को० नं० ६० ) ( धवल शास्त्र कर्ता भूतबली प्राचार्य के मतानुसार जानना ) ६ मुगास्वान २ मिश्र १७ मिथ्य तथ सासदन ५. देश संयत असंयत प्रमत्त अप्रमत १४ प्रयोग के० अनुदय ११ २२ ን። 부싯 6? ८० ४६ ८ अपूर्व क० ६ श्रनिवृ | ५६ १० सूक्ष्म सां० ६२ ११ उपशांत मोह | ६३ १२ क्षी मोह ६५ १३ सयोग के० ५ ५० ११० १११ १०० १०४ 62 ८१ उदय ७६ ७२ ६६ ६० ५६ ५.७ X १२ उदय | व्युद्धित्ति ५ १७ २ १६ ३० १ १२ ५. विशेष विजरण ५ सम्ममा १, सम्यक प्रकृति आहार २ तर १२ जानना ५१. तप, सूक्ष्म साधारण १. १. ५ जानना १-१०+१ र ११ जान ६ श्रनन्तानुबन्धी कथाय ४, स्थावर १ एकेन्यादि जाति ४ ये जानना । २११९ २ १ मानुपूर्वी २३सम्प मिष्याव १२२ जना १ मिश्र प्र० जानना को० नं० ५६ के समान जानना " 27 " J 27 " " カ सूचना- इस कोष्टक के अनुसार मागे सब वर्णन किया है। GO=" " ३० २६ को० नं० ५६ के समान और सातासात में से कोई १ जोड़कर १० जानना १२०=०० + २०११० जानना १२०० ५९ में वेदनीय के दोनों प्रकृतियों का उदय नाना जीवों की अपेक्षा से १४वें गुरा स्थान में माना है और यहां दोनों में से कोई १ का उदय माना है इसलिये अनुदय और उदम में एक प्रकृति का अन्तर है। Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ऊपर जो प्रनिवृत्ति करण गूगण स्थान में प्रकृतियों वेदनीय कर्म केवलौ के इन्द्रिय जन्य सुख-दुःख का का ध्युच्छित्ति बताया है उनमें से ३ वेदों की ज्युपित्ति कारण नहीं है-जिस कारण केवली भगवान के एक सवेद भाग में और संग्वलन कषाय के क्रोध-मान-माग साता नाय का ही बन्ध सो) एक समय की स्थिति इन ३ का प्युच्छित्ति मधे भाग में जानना। वाला ही होता है, स कारण वह उदय स्वरूप ही है। क्षीणमोह गा० के विचरम समय में निद्रा और और इसी कारण प्रसाता का उदय भी साता रूप से ही प्रचला इन : प्रकृत्तियों का और अन्त समय में शेष १४ परिणमता है क्योंकि प्रसाता वेदनीय सहाय रहित प्र० का व्युच्छित्ति जानना । होने से तथा बहुत हीन होने से मिष्ट जल में सारे जल की एक बूद की तरह अपना कुछ कार्य नहीं कर सकता, सयोग केवली गुरण में ३० की और अयोग केवली इस कारण से केवली के हमेशा सातावेदनीय का ही गण में १२ प्रकृतियों की व्युच्छिति होती है यह नाना उदय रहता है। इसी कारण ससाता देव के निमित्त जीवों की अपेक्षा से और सबोगी में २६ की और प्रयोगी से होने वाली क्षुधा प्रादिक जो ११ परिषह है वे जिन में १३ की व्यच्छित्ति होती है, यह बेदनीय के दो प्रकुतियों पर देव के कार्य रूप नहीं हुग्रा करती हैं। (देखो गो० की अपेक्षा से जानना। का गा०२६४ से २७५ और को० नं.६०) २६. अवय मोर उबीरणा को प्रकृतियों में कुछ अन्य गुण स्थानों में जैसे साता लथा असाता के विशेषता बताते हैं - उदय से इन्द्रिय जन्य सुख तथा दुःख होता है वैसे केवली उदय और उदीरणा में स्वामीपने को अपेक्षा कुछ भगवान के भी होना चाहिये ? इसका समाधान केवली विशेषता नहीं है. परन्तु वें प्रमत्त गूगण स्थान पौर भगवान के घातिया कम का नाश हो जाने से मोहनीय १३वां सयोगी, तथा १४वां अयोगी इन तीनों गुण स्थानों के भेद जो राग तथा द्वेष वे मष्ट हो गये और ज्ञाना- छोड़ देना अर्थात इन तीनों गुण स्थानों में ही विशेषता है वरण का क्षय हो जाने से जानावरण के अयोपशम से और सब जगह समानता है । सयोगी और प्रयोगी केवली जन्य इद्रिय ज्ञान भी नष्ट हो गया। इसका कारण की ३० पोर १२ उदय क्युच्छित्ति प्रकृतियों को मिलाना केवली साता तथा प्रसाता जन्य इन्द्रिय विषयक सुख- और उन ४२ में से साता, असाता और मनुष्याय इन दुःख लेशमात्र भी नहीं होते क्योंकि साता आदि वेदनीय तीन प्रकृतियों को घटाना चाहिये और पटाई हो साता कर्म मोहनीय कर्म की सहायता से ही मुम्न-दुःख देता हुया प्रादि तीन प्रकृतियों की उदीरणा वें प्रमत्त जीव के गुण को घातता है। यह बात पहले भी कह गुण स्थान में ही होती है । बाकी ४२-३-३६ प्रकृतियों आये हैं। अत: उस सहायक का अभाव हो जाने से वह को उदीरणा सयोग केवली के होती है तथा वहां ही जली जेवड़ीवत् (रस्सी; अपना कुछ कार्य नहीं कर उदीरसाा की पुच्छित्ति भी होती है । और प्रयोग केवली सकता 1 के उदीरणा होती ही नहीं यही विशेषता है। (देखो गोल क० मा २७८-२७६-२८०)। (१) संवलेश परिणामों से ही इन तीनों की उदीरणा होती है। इस कारण अप्रमत्तादि के इन तीनों की उदीरा का होना असम्भव है। Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०. उदीरणा को व्युमिति गुण स्थानों में क्रम से कहते हैं (देखो मो० क० गा० २८१-२८२-२८३ और को० नं०६१) गुण स्थान भन् उदीरणा उदीरणा | वीरगा | फ्युच्छि विशेष विवरण १ मिथ्यात्व कोष्टक नंबर ६. के समान जानना सासादन ४ प्रसंयत ५ देश संयत - ६ प्रमत्त ८ = उदय के ५+ ३ साता-ग्रमाता-मनुष्यायु ये ३ जोड़कर ६ जानना --- ७ अप्रमत्त ४६-४६ अनुदीरगा में साता-असातामनुष्यायु ये३ प्रकृति बढ़ाकर ४६ जानना मौर उदीरणा के ७६ में से यही ३ घटाकर ५३ जानना ४- को० न ५६ के समान प्रकृतियों का नाम जानना ८ अपूर्वकरण को नं०६० के ममान जानना ६ मनिवृत्ति १. सूक्ष्म सापराय ११ उपशांत मोह १२ क्षीणमोह १३ सयोग के ३६ ८३=६८+१६:५४-१तीर्थकर घटाकरः३. ३६-४२ में से साता आदि ३ घटाकर ३६ जानना १४ प्रयोग के । १२२ । . . Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ I 1 I T ( ७४७ ३१. कर्मों का उदय का क्रम और स्थानोपना बताते हैं कर्म प्रकृति गति अनु वायु स्वामीपना (१) किसी भी विवक्षित भव के पहले समय में ही उस विवक्षित भव 'के योग्य गति, श्रानुपूर्वी तथा प्रायु का उदय होता है । (२) एक जीव के एक ही गति, मानुपूर्वी तथा ग्रायु का उदय युगपत् हुला करता पृथ्वीकायिक मनुष्य श्रीर आतप प्रकृति का उदय बादर पर्याप्त जीव के ही होता है । उच्चगोत्र का उदय देवों के ही होता है । स्थानमृद्धि, निद्रा निद्रा, प्रचलाप्रचला ये ३ महानिद्रा प्रकृतियों का उदय । (१) मनुष्य और तिचों के ही होता है । (२) और इन तीन महानिद्राओं का उदय संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्म भूमिया मनुष्य और तिर्यंचों के ही इन्द्रिय पर्याप्ति के पूर्ण होने के बाद हुआ करता है । ( ३ ) परन्तु माहारक ऋद्धि और वैश्विक ऋद्धि के धारक मनुष्यों के इनका उदय नहीं होता इसलिय ऋद्धि वाले मनुष्यों को योड़कर सब कर्म भूमिया मनुष्यों में इनके उदय की योग्यता समझना (देखो गो क० गा० २०५-२८६ ) स्त्री वेद का उदय निर्ऋत्य पर्याप्तक असंयत गुरण स्थान में नहीं है, क्योंकि असंयत सम्परदृष्टि मरण करके स्त्री नहीं होता इसलिये स्त्री वेद वाले श्रसंयत के चारों भानुपूर्वी प्रकृतियों का उदय नहीं होता । नपुंसक वेद का उदय पहले नरक के सिवाय अन्य तीन गतियों की चतुर्थं गुणस्थानवर्ती निर्ऋत्य यतिक अवस्था में नहीं होता इसलिये नपुंसक वेद वाले असंयत के नरक के बिना पंत की तीन धानुपूर्वी प्रकृतियों का उदय नहीं होता । (देखो गो० क० ६८७ ) एकेन्द्रिय द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जाति नामकर्म और सूक्ष्म व साधारण प्रकृतियों का उदय तिर्यंच गति में ही होने योग्य है । अपर्याप्त प्रकृति का उदय तिमंच और मनुष्य के गति में ही होने योग्य है । ववृषभनाराच भवि ६ संहनन और औदारिक शरीर श्रदारिक अंगोपांग का जोड़ा, मनुष्य तथा तिर्यंच के उदय होने योग्य है । वैऋियिकद्विकका उदम देव और नारकीयों के ही होने योग्य कही है । (देखो गो० क० गा० २८८) उद्योत प्रकृति का उदय तेजः कायिक, वायुकायिक और साधारण वनस्पति कायिक इन तीनों के छोड़ कर अन्य बादर पर्याप्त तियंचों के होता है । शेष प्रकृतियों का उदय गुण स्थान के क्रम से जानना (देखो गो० क० गा० २८६ ) ३२. कर्म प्रकृतियों के सत्व का पण करते हैंमिथ्या दृष्टि, सासादन मिश्र इन तीनों गुण स्थानों में से कम से पहले में तीर्थंकर १ श्री प्राहारकातिक २ एक काल में नहीं होते तथा दूसरे में तीनों हो प्रकृति किसी काल में नहीं होते और मिश्र गुण० में तीर्थंकर प्रकृति नहीं होती, भर्थात् १ ले गुर० में नाना जीवों की अपेक्षा उन तीनों (तीर्थकर १+ आहारकतिक २ - ३ प्रकृतियों की ( सब – १४८ ) सत्ता है परन्तु एक जीव की अपेक्षा १ले गुण में जिनके तीर्थकर प्रकृति की सत्ता हो उनके आहारकद्विक २ की सत्ता नहीं रहती और जिनके श्राहारकद्विक २ की सप्ता हो उनके तीर्थकर प्र० १ सत्ता की नहीं रहती । भावार्थ जिनके तीर्थंकर और आहारकद्विक की युगपत् सत्ता है वे मिध्यादृष्टि नहीं हो सकते । २२ सासादन गुण० में तीर्थंकर और माहारकविक इन तीनों हा प्रकृतियों का सत्य किसी काल में नहीं होते इसलिये १४५ प्र० का सत्ता जानना । Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावार्थ-तीनों में से किसी भी प्रकृति को सत्ता पोह का नाश करने के उद्यम करता है अर्थात् कम से रखने वाला सासादन गुरण स्थान वाला नहीं हो सकता मिथ्याल प्रकृति, तथा सम्यक्त्व मिथ्यात्व तथा सम्यक्त्व और ३रे मित्र गुण० में तीर्थकर प्रकृति की सत्ता नहीं प्रकृति का क्षय करते हैं। इस प्रकार सात प्रकृतियों के होती, इसलिये १४७ प्रकृतियों की सत्ता जानना । क्षय करके यायिक सम्यग्दृष्टि होता है। यहां पर तीन गरण स्थानों का प्रकृति सत्व पूर्वोक्त ही समझना, एक भावार्थ--तीर्घकर की सत्ता वाला पिश गुरण : ओव की अपेक्षा १ले मिथ्यात्व गुण स्थान में माहारक वर्ती नहीं हो सकता। (देखो गो क० गा० ३३३) द्विक . और तीर्थकर प्रकृति का सत्व अनुक्रम ले कैसा ३३. चारों ही गतियों में किसी भी प्रायु के बंध रहता है वह बताते हैं कोई जोव ऊपरले गुण स्थान में आहारकद्रिक का बंध करके मिथ्यात्व गुण स्थान में होने पर सम्यक्त्व होता है, परन्तु देवायु के बंध के पाया वहां याहारकदिक के उर्दूलन करने के बाद सिवाय अन्य तीन आयु के बंघ वाला अणुव्रत तथा महा नरकायु का बंध किया, उसके बाद प्रसंबल गुरण स्थान व्रत नहीं धारण कर सकता है, क्योंकि वहां व्रत के में पाकर वहां तीर्थकर प्रकृति का बंध किया, उसके कारणभूत विशुद्ध परिणाम नहीं है। बाद २रे अथवा ३रे नरक में जाते समय मिथ्याष्टि (देखो गो० क० मा० ३३४) हुमा, इस प्रकार मिथ्यादृष्टि जीव को बाहारकटिक २ नरकायु भोगते हुये या अागामी नरकाय का बंध और तीर्थकर प्रकृति का सत्य अनुक्रम से रह सकता है नाना जीवों की अपेक्षा से देखा जाय तो एक समय में हुना हो तो अर्थात् नरकायु के सल्म होने पर देश व्रत पाहारकद्विक २ और तीर्थकर प्रकृति का सत्व रह नहीं हो सकता है तथा तिपंच आयु के सत्त्व होने पर सकता है तथा प्रसंयत से लेकर ७वे गरण स्थान तक महायत नहीं होता और देवायु के सत्व होने पर भपक उपशमसम्यादृष्टि तथा क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि इन दोनों के श्रेणी नहीं होती। ४थे गुरण स्थान में अनंतानुबंधी प्रादि को उपशमरूप सत्ता होने से १४८ प्रकृतियों का सत्व है। ५वे गुण असंयतादि चार गुरण स्थान वाले अनंतानुबंधी के ४. दर्शन मोहनीय के ३ इन ७ प्रकृतियों का किस तरह स्थान में नरकायु न होने से १४७ का, ६वे प्रमत्त गुण नाश करके क्षायिक सम्पदृष्टि होते हैं यह बताते हैं स्थान में नरक तथा तिर्यचायु इन दोनों का सत्व न होने से १४६ का तथा ७वे अप्रमत्त में भी १४६ का ही सत्व प्रथम अधःकरण, प्रपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण है और क्षायिक सम्यग्दृष्टि के अनंतानबंधी कषाय ४ करता है । अनिवृत्तिकरण का काल अंतदूतं का रहता है। उन सातों में से पहले अनंतानुबंधी चतुष्क का तथा दर्शनमोहनीय के ३ इन ७ प्रकृतियों के क्षय होने से अनिवृत्तिकरण रूप परिणामों के अंतहत काल के अंत ... सात सात कम समझना और अपूर्वकरण गुण स्थान में समय में एक ही बार विसंयोजन करके प्रर्थात पर दो श्रेणी हैं, उनमें से क्षपक श्रेणी में तो १३८ प्रकृतियों नुवंधी को चौकड़ी को अप्रत्याख्यानादि बारह कषायरूप का सत्व है, क्योंकि अनंतानुबंधी प्रादि ७ प्रकृतियों का या तो कषायरूप परिग मन करा देता है, इस प्रकार तो पहले ही क्षय किया था और नरक, तिथंच तथा विसंयोजन करके अंतमुहूर्व काल तक विश्राम करता है। देवायु इन तीनों की सत्ता ही नहीं है, इस प्रकार + ३ इसके बाद प्रर्थात् मनिवृत्तिकरण काल के बहुभाग को छोड़ =१० प्रकृतियां कम हो जाती हैं । (देखो गो का गा. के शेष संख्यातवे एक भाग में पहले समय से लेकर दर्षन ३३५-३३६) Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { ७४६ ) ३४. कौन से गुण स्थान में कितने प्रकृतियों का सत्य रहता है। इसका विवरण श्वपक श्रेणी की अपेक्षा से जानना सब प्रकृतियां १४८ 1 (देखो गो का गा० ३३३ से ३४२ और को० नं० ११६) गुण स्थान सत्व असत्व स व विशेष विरण व्युञ्छि। १ मिथ्यात्व २ सासादन ३= प्राहारकनिक २, तीर्थकर प्र.१ये ३ जानना ३ मिश्र १ - तीर्थकर प्रकृति जानना ४ असंयत्त १-नरकायु १ जानना ५ देशसंयत ६ प्रमत्त १ - असत्व = नरकायु, १८च्युच्छित्ति-तिर्यंचायु २ =नरका १, तिपंचायु १, ये २ जानना २-नरक-तिर्यंचायू ये २,८-अनन्तानबन्धी ४, दर्शन मोहनीय के ३, देवायु १, ये ८ जानमा ७ अप्रमत ८ अपूर्वकरण क्षपक १०=२+५=१० जानना (क्षपक श्रेणी की अपेक्षा) अनिवृत्तिकरण क्षपक श्रेणी की अपेक्षा १ला भाग 1 १० ।१३८ । ८ १०- ८वो गुण स्थान के समान जानना। १६ = स्थानसि प्रादि महानिदा ३, नरक गति १, नरक गत्यानपूर्वी १, तिर्यचगति १, तिथंच गत्यानुपूर्वी १, एकेन्द्रियादि जाति ४, उद्योत १, प्रतिप, साधारण १, सूक्ष्म १, स्थावर१ये १६ २रा भाग २६-१०१६+२६, अप्रत्याख्यान ४, प्रत्याख्यान ४ ये-जानना। ३रा भाग ३४- .६+-३४,१-नपुसक वेद जानन, ४था भाग ३५ . ३४+१=३५, १ - स्वोवेद जानना Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ४५० ) ५वा मान ---- ___. ३६-३५ + =३६, ६-हास्य, रति, परति, शोक, भय, जुगुप्सा, ये : जानना ६यां भाग ४२ %D३६. ६-१२,१=पुरुषवेद मानना - _ ७वा भाग - ८यां भाग - - ४३ = ४२+१ ४३, १ संज्वलन क्रोध ४४.: ४३+१=४४, १= ॥ मान ४५ = ४४ । १-४५, १= , माया स्वा भाग सुरम स० क्षपक __-____ -- ६ - --- ४६-४५-१-४५,१% , लोभ - ११ उपशांत मोह - - १२ क्षीण मोह - _ -- ४७ ४+१-४० १६-शान के , । दर्शनावरण के ४, मोहनीय के २ (निद्रा, प्रचला) अन्तराय के ५११६ जानना - १३ सयोग के० । ६३ -- _____ ६३ =शावरण , दर्शनावरण के ., मोहनीय के २८, ग्रायुकर्म के ३, (नरकतिर्यच-देव, मु। नाम १३, नरकद्विक २, तियंप द्विक, एकेन्द्रियादि जाति ४, उद्योत । मातप १, साधारण १, मूक्ष्म , स्थावर १ ये १३) अन्तराय के ५ ये ६३ जानना । - । - ६: १४ प्रयोग के. द्विचरम समर । पर्वत - __. - _- ६३ - १३३ गुण के समान जानना ७२+साता या असाता में से-ई१ नाम कर्म के ७० (शरीर ५, बंधन ५, संघात ५, संस्थान ६, अंगोपांग ३, संहनन ६, स्पर्श, रस ५, गंध २, वर्ण ५, स्थिर-पस्थिर २,., शुभ-अशुभ २, सुस्वर-कु. वर २, देवढिक २, विहायोगति २, दुर्भग १, निर्माण, प्रयशः कीर्ति १, अनादेय १. प्रत्येक १, अपर्याप्त प्रगुरुलघु १, उद्योत १, परघात १, उच्छवास १, ये ७.) नीचगोत्र १, ये ७२ जानना प्रयोग केली । १३५ ग्रत समय में । । १३ । १३ १३५=६ +७२-१३५, १३-साता या असाता में से कोई १, मनुष्यायु १, नामकर्म के १. (मनुष्यद्विक २, पवेन्द्रिय जाति । सुभग १, अस १, बादर १, पर्याप्त पादेय १, यश: कीर्ति १, तीर्थकर १ ये १०) उच्चगोष,ये १३ मानना AARI Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५, उपशम श्रेणीवाले के चारित्र मोहनीय की शेष रूप परिण में उसको भागहार कहते हैं। उसके उलन, २८-७-२१ प्रकृतियों के उपशम करने का विधान विध्यात, प्रधःप्रवृत्तम गुणसंक्रमण और सर्वसंक्रमरम के बताते हैं .. पाम के विधान में भी क्षपणा विधान की भेद से पांच प्रकार हैं। (देखोगो कर गा०४०१)। तरह क्रम जानना । परन्तु विशेष बात यह ' कि, ८वीं {१) संक्रमण का स्वरूप कहते हैं—अन्य प्रकृति गुगास्थान से ११वा गुणस्थान सक उपशम-नगी च ने परिणमन को संक्रमगा कहते हैं । सो जिस प्रकृति का बंध वाले जीन को नरकायु और लियंचायु इन कति होता है उसी प्रकति का संक्रमण भी होता है। यह कम होकर १४६ प्रकृतियों का सत्ल रहता है; और जो सामान्य विधान है कि जिसका बन्ध नहीं होता उसका क्षायिक सम्पदृष्टि जीव उपशम-गी चढ़ता है उसे संक्रमण भी नहीं होता । इस कथन का ज्ञापनसिद्ध प्रयो८ से ११३ गुणस्थान तक १३८ प्रकृतियों का सरख रहता यह है कि दर्शनमोहनीय के बिना शेष सब प्रकृतिमा बन्न है । इसी तरह प्रायुबंध जिसको नहीं हुआ है ऐसा क्षायिक होने पर संक्रमण करती है, ऐसा नियम जानना । असाता सम्यग्दृष्टि को ४ये से ज्वें गुरणस्थान तक १८ प्रकृतियों का बन्ध ६ गुणस्थान तक होता है । इसलिये साता का का सत्व रहता है। नपुसकवेद, स्त्रीवेद, नोकषाय., सक्रमण ६वें गुरगस्थान तक असातारूप होयेगा। इसी पुरुषवेद इनका उपशम कम से होता है और क्रोध, मान, तरह साताका बन्ध १३२ गुणस्थान तक होता है इसलिये माया, लोभ, इनका उपशम निम्न प्रकार वे गुरास्थान असाता का संक्रमण १३वें गुणस्थान तक होता है । परन्तु में पुरुषवेद के उदशम होने के बाद नया बन्धा हुमा दर्शनमोहनीय के जहाँ बन्ध होना है तहां यह नियम नहीं पूरुषवेद कर्म का प्रपत्पस्यान क्रोधासह उपशम करता है। है। तथा मूलप्रकतियों का संक्रमण पर्थात् अन्य का अन्य नन्तर संज्वलन क्रोधका उपशम करता है। इसके बाद रूप परस्पर में परिणमन नहीं होता । ज्ञानावरण की नया बन्धा हुग्रा संज्वलन कोषका अप्रत्याख्यान और प्रकृति कभी दर्शनावरणरूप नहीं होती इससे सारोश यह प्रत्याख्यान मान कषायसह उपशम करता है । मन्तर निकला कि उत्तरप्रकतियों में ही संक्रमण होता है । परन्तु संज्यसन मान का उपशम करता है इसके बाद नया बंधा दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय का परस्पर में संक्रमगा हमा संज्वलन मान का अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान नहीं होता तथा चारों मायनों कानी परस्पर में मायाकषायसह उपवाम करता है । नन्तर संज्वलन माया संक्रमण नहीं होता । (देखो गो० के० गा० ४१०) । का उपशम करता है । इसके बात नया बन्धा हुअा माया ___सम्यवत्व मोहनीय (सम्यक्त्व प्रकृति) का मंक्रमण का अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यान लोभसह उपशम करता है । नन्तर बादर संज्वलन लोभ का उपशम करता है। ४थे गुणस्थान से वे गुणस्थान तक नहीं करती। कर्मबन्ध होने के बाद एक आवी तक जसमा उपशम, मिथ्यात्वमोहनीय (मिथ्यात्वप्रकृति) का संक्रमण मिथ्यात्व क्षय, उदय वगैरह नहीं होता , (देखो गो० क. गा० गुरणस्थान में नहीं करती। मित्र मोहनीय (सम्यमिध्यात्व) का संकमक ३२ मिश्रण में नहीं करती । सासादन और ३४३)। मिश्नगुगास्थान में निवम से दर्शनमोहनीय के त्रिक मा ३६. संक्रमण के पांच प्रकार हैं संक्रमण नहीं होता। सामान्य से दर्शनमोहनीय का पांच प्रकार के संक्रमण में पाँच प्रकार के भागहार होते संक्रमण से ७ इन चारों गणस्थानों में होता है। देखो हैं । संसारी जीवों के अपने जिन परिणामों के निमित्त से गो० क० मा ४११) । शुभकर्म और अशुभकर्म संक्रमण करे अर्थात अन्य प्रकृति- कोई -म्याठि जीव मिथ्यात्वगुणस्थान को प्राप्त Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७५२ ] होने पर सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय का अन्न- की, स्थिति मनुभाग के घटाने रूप, भूतकालीन स्थिति मुंह तक अध: प्रवृत्त संक्रमगा होता है और उढलन कांडक और अनुभाग कांडक तण गुण अंगी प्रादि भागहार सक्रमण उपांत्य कांडक तक ग्रन्त के समीप के परिणामों में प्रवृत्ति होना विध्य त संक्रमण है। भाग) नियम से प्रवता है। वहां पर अधःप्रवृत्त संक्रमण (३. प्रषःप्रवृत्त सक्रमण -बन्धरूप हुई प्रकृतियों का फालिरूप रहता है। एक समय में संक्रमण होने को। अपने बन्ध में सम्भवती प्रकृतियों में परमारपत्रों का जो 'फालि' कहते हैं। प्रदेश संक्रमण होना वह अधःप्रवृत्त संक्रमण है। अध:प्रवृत्त संक्रमरण में फालिरूप संक्रमण होता है (४) गुण सक्रमण- जहां पर प्रतिसमय असंख्यातऔर समय समूह में संक्रमण होना 'कांडक' कहा जाता। गुणवणी के क्रम से परमाणु प्रदेश अन्य प्रतिरूप परिण है। उद्लन संक्रमण कांडकल्प से होता है। देखो गो. म सा गुरगसक्रमण है। क० गा० ११२): (५)समसंक्रमण -जो अन्त के कांडक की अन्त की फालि के सर्यप्रदेशों में से जो अन्य प्रकृतिरूप नहीं हुए हैं उलन प्रकृतियों का विचरमकांड तक उचलना- उन परमानों का अन्य प्रकृतिरूप होना वह सबसंक्रमण सकमा होता है । और अन्त के कांडक में नियम से है। (देखो गोल क• गा० ४१३) । गुणसंक्रमण होता है और अन्तकांडक के अन्त की फालि प्रकृतियों के बन्ध होने पर अपनी अपनी-अपनी बन्ध मे सवंसंयम होता । ऐसा जानना। व्युच्छित्ति तक अन्य प्रकृतियों का प्रघ: प्रवृत्तमंक्रमण रूम्पतत्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय ये दो प्रकृतियां होता है । परन्तु मिथ्यात्य का संक्रमण पहले गुण स्थान उलन प्रकृनियों में समाविष्ट हैं । इसलिये उन प्रकृतियों में नहीं हाता क्योंकि 'सम्म मिच्छ मिस्सं' इत्यादि गाथा में उलन सक्मगा, गुमासंक्रमण और ससंक्रमण होता के द्वारा इसका निषेध पहले ही बता चुके हैं और बंध की पुच्छित्ति होने पर ये असंयत से लेकर ७ अप्रमदत्त गणहै। (देखो गाथा ६१२ से ६१७)। स्थान तक विध्यात नामा सक्रमण होता है तथा वे अपूर्वयहां पर प्रसंगवश पांचों संक्रमणों का स्वरूप कहते करण गुरण से पाये ११वें उपशांत कषाय गुरास्थान पर्यंत करण गुरण० स! बंध रहित अप्रशस्त प्रकृत्तियों का गुणसंक्रमण होता है। इसी तरह प्रथमोपशम सम्यवस्व ग्रहसा होने के समय प्रथम (2) उलन संक्रमरण-अध:प्रवृत्त, अपूर्व करण, समय से लेकर मन्त५हूर्त तक गुणसंक्रमण होता है और अनिवृत्तिकरण इन तीन करणरूप परिणामों के बिना ही क्षायिक सरपक्व प्राप्त करते समय मिथ्यात्व का क्षय कमप्रकृतियों के परमाणुयों का अन्य प्रकृतिरूप परिशमन करने के लिये मित्र और सम्यमत्व प्रकृति के पूर्ण काल में हाना वह उन लन सक्रमण है। (गाथा ३५०-४१५ अपूर्व-करणपरिणामों के द्वारा मिथ्यात्व के अन्तिम कांडक देखो)। की उपांत्य फालिपर्यंत गुणसंक्रमण पोर चरम (अन्तिम) (२) विध्यान्न संक्रमण--मन्द विशुद्धता वाले जीव फालि में सबसंक्रमण होता है। (देखो गो० क० गा० ४१६) । -. - --.- .-- -.. Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५३ ) (२) प्रकृतियों के संक्रमण का नियम पाव किस प्रकृति में कितने संक्रमण (पांच संक्रमणों में से) होते हैं इसका विघरण : प्रकृतियों की संख्या संक्रमणों की संख्या और नाम | जलन | विध्यात अधः । गुरण | सर्व० । विशेष विवरण | संक्रमण संक्रमण | प्रवृत्ति / संक्रमण संक्रमण १९ प्रकृतियों में यह १ जानना जोड़ १२२ प्रकृतियों में प्रायु के ४ प्रकृति नहीं है, परन्तु वर्णादिक के ४ प्रकृतियों के जगह शुभ यदि ४ भौर अशुभ वर्णादि ४ ये ८ प्रकृति इनमें लिया है इससे सब मिलकर १२२ प्रकृतियों होती हैं। (देखो गो० क. गा० ४१८) उन प्रकृतियों को तथा उनके संक्रमणों को कम से बताते हैं। अर्थात् किस प्रकृति में कौन सा संक्रमण होता है इसका खुलासा (कोष्टक नं० १४२ गो० म० गा.४१० से ४२८ में देखो। Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकुतियों के नाम कौन कौन से संक्रमण होते हैं. उतलन | विध्यात | विध्यात / अधः प्र. | गुण सं० | सर्व सं० | विशेष विवरण अघःप्र० । ३६ प्रकृतियों ११ध: प्रवृत्ति (१) ज्ञानावरण के ५ (२) दर्शनावरण के ४ (३) साता वेदनीय । (४) संज्वलन लोभ १ (५) नामकर्म-पंचेन्द्रिय जाति १ तंजस-कार्मारा शरीर २ | समचतुरस्र सस्थान १ । शुभ-बर्यादि अगुरुलघु परघात १ उच्छवास १ प्रशस्त विहायोगति १ अस १ बादर पर्याप्त प्रत्येक शरीर १ स्पिर शुभ ? सुभग १ सुस्वर १ पादेय १ यश: कीति १ निर्माण ये ३६ प्रकृति जानना ये ४ संक्रमण जानना (६) ग्रंतराम कर्म के ५ ३० प्रकृतियों में (१) स्थानमृद्धि प्रादि ३ (२) अनन्तानुबंधी कषाय ४ | . अप्रत्याख्यान कषाय ४ । महानिद्रा ३ Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्याख्यान कषाय ४ प्रति-शोक २ नपुंसक वेद १ स्त्री वेद १ (३) तिर्यचद्विक २ एकेन्द्रियादि जाति ४ प्रातप १ उद्योत १ स्थावर १ सूक्ष्म १ साधारण १ ७ प्रकृतियों में ये ० प्रकृतियां ये २ संक्रमण (१) निद्रा १ प्रचला १ (२) अशुभ वर्णादि ४ उपघात? २० प्रकृतियों में ये ७ प्रकृतियो ये ३ संक्रमण (१) साता वेदनीय १ (२) अप्रशस्त विहायोगति १ १ले छोड़कर वजनाराच प्रादि संहनन ५ १ले समचतुरस्र छोड़कर शेष संस्थान ५ प्रर्याप्त १ अस्थिर प्रशुभ १ दुभंग १ दुःस्वर १ अनादेय १ प्रायशः कीर्ति १ १३) नीच गोत्र १मिथ्यात्व प्रकृति १ सम्यक्ष मोहनीय १२ प्रकृतियों में ये २० प्रकृतियों ये ३ संक्रमण ४ संक्रमण ये ५ ही संक्रमण (१) मिश्र मोहनीय १ Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५६ ) (२)माहारकद्विक ३ देवत्तिक २ नरकटिक २ बैंक्रियिकद्विक २ मनुष्यदिक २ - - - (३) उच्चगोत्र १ ४ प्रकृतियों में - ये १२ प्रकृतियां ये २ संक्रमण - (१) संज्वलन कषाय के ३ (कोध-मान-माया) पुरुषवेद वेद १ ४ प्रकृतियों में -- ये ४ प्रकृतियां ये २ संक्रमण - -- - (१) प्रोवारिकटिक २ वष्यवृषभनाराच सं. १ , तीर्थकर प्र०१ ४ प्रकृतिमों में - - ये ४ प्रकृतियां ये ३ संक्रमण - - (१) हास्य-रति २ भय-जुगुप्सा २ ये ४ प्रकृतियां जोड ३६ प्रकृतियां rm 20.00 R सबका जाड़ ३७, स्थिति और अनुभाग बंध के, तथा प्रवेश ष के संक्रमण के गुण-स्थानों की संख्या कहते हैं-कषायों का उदय ६० वें गुरण-स्थान तक ही है इसलिये स्थिति और अनुभाग का बंध नियम से सूक्ष्म सांपराय गुण-स्थान तक हो है । क्योंकि उक्त बंध का कारण काय वहीं सक है और बंधरूप प्रदेशों (कर्म परमारणों का) का संक्रमण भी सूक्ष्म-सापराय गुण स्थान तक ही है । करोंकि 'बेथे भवापवतो' इस गाथा मुत्र के अभिप्राय से स्थिति बंधनक ही संक्रमण होना संभव है। साता वेदनीय का प्रकृति और प्रदेश बंध ११से १३वे गुण स्थान तक होता है । (देखो गो० क. गा० ४२६) Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५७ ) १८. पांच भागहारों का (देखो गाथा ४०६) ग्रल्प बहुत्व कहते हैं - (१) सर्व संक्रमण भागहार का प्रमाण सबसे थोड़ा । उसका प्रभारण एक रूप कल्पना किया गया है । (२) गुण संक्रमण भागहार का प्रमाण सर्व संक्रमण भागहार से असंख्यात गुणा है अर्थात् पत्य के अर्धच्छेदों के असंख्यातवें भाग ( इतना ) है । (२) अधः प्रवृत्त संक्रमण नामा मागहार का प्रमाण गुणसंक्रमण भागहार से असंख्यात गुणे अपकर्षण और उत्कर्ष भागहार है । तो भी ये दोनों जुदे जुड़े पत्य के अच्छेदों के प्रसंख्यातवे माग प्रमाण हो है । क्योंकि असंख्यात के छोटे बड़े की अपेक्षा बहुत भेद हैं इससे प्रध प्रवृत्त संक्रमण भागहार असंख्यात गुरार है । सूचना – जिसके भागहार का प्रमाण जादा होगा उसका भागाकार कम होगा अर्थात् कम परमाणु का संक्रमण होगा और जिसके भागहार का प्रमाण कम होगा उसका भागाकार जादा होगा अर्थात् जादा होगा परमाणु का संक्रमण होगा । ३६. वश करणों के नाम- बंध, उत्कर्षण, संक्रमण, अपकर्षण, उदीरणा सत्व, उदय, उपशम, निघत्ति, निकाचना ( freeाचना ), ये ददा करण ( अवस्था) हर एक कर्म प्रकृति के होते हैं । (४) विध्यात संक्रमण नामा भागहार का प्रभारण अधः प्रवृत्त संक्रमण भागहार से असंख्यात गुरणा है । अर्थात् सूच्यंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । दशकरण अवस्था चूलिका (१) बंध कमी का आत्मा से सम्बन्ध होना, अवात् मिथ्यात्वादि परिणामों से जो पुद्गल द्रव्य का ज्ञानावरणादिरूप होकर परिणमन करना जो कि ज्ञानादिका आवरण करता है, वह बंध है । (२) उत्कर्ष - जो कर्मों की स्थिति तथा अनुभाग का बढ़ना वह उत्कर्षरण है । (५) उद्वेलन संक्रमण भागहार का प्रमारा विष्यात संक्रमरण भाग हार से असंख्यात गुणा अर्थात् सूच्यंगुल के श्रसंख्यातयें भाग इतना है । इससे कर्मों के अनुभाग की नाना गुण हानि शलाका का प्रमाण अनंत गुणा है। इससे उस अनुभाग की एक गुणा हानि के आयाम का प्रमारण अनंत गुणा है। इससे उसी की डेढ़ गुण हानि का प्रमाण उसके श्रावे प्रमाण कर अधिक है इससे दो गुणा हानि का श्राधा गुण हानि के प्रसारण कर अधिक है इसी को 'निषेकहार' कहते हैं । इस से उस अनुभाग की अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण अनंतगुणा जानना । (देखो गो० क० गा० ४.० से ४३५ ) (३) संक्रमण जो वधरूप प्रकृति का दूसरी प्रकृति रूप परिणमन जाना वह संक्रमण है । (5) अपकर्ष - जो स्थिति तथा अनुभाग का कम हो जाना वह श्रपकर्षण है । (५) उबीरणा उदयकाल के बाहिर स्थित, धर्माद जिसके उदय का अभी समय नहीं आया है ऐसा जो कर्मद्रव्य (निषेक) उसको अपकर्षण के बल से उदयावली काल में प्राप्त करना (लाना) उसको उदीरणा कहते हैं । (६) सस्य जो पुद्गल का कर्मरूप रहना नह सत्य है । (७) उदय- जो कर्म का अपनी स्थिति को प्राप्त होना अर्थात् फल देने का समय प्राप्त हो जाना बह है। (८) उपशम- जो कर्म उदयावली में प्राप्त न किया जाय अर्थात् उदीरणा श्रवस्था को प्राप्त न हो सके वह उपशांत-उपशम करगा है। (E) निशि- जो कर्म उदीरणा अर्थात् उदयावल 7 Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७५८ ) में भी प्राप्त न हो सके और संक्रमण अवस्था को भो करण और उत्कर्षण करण होते हैं और प्रकृतियों को प्राप्त न हो सके उन्ने नित्तिकरण कहते हैं । अपनी अपनी जाति की जहां बंध से ज्यूच्छित्ति है वहीं । तक संक्रमण करण होता है, जैसे कि ज्ञानावरण की (१०) मिकामना-जिस कर्म की उदारणा, पांचों ही प्रकृतियां परस्पर में स्वजाति हैं उनकी बंध संक्रमण, उत्कर्षण, और अपकर्षण वे चारों ही अवस्थाय व्युच्छित्ति १०वे गुरा स्थान में होती है। इसलिये उनका न हो सके उसे निकापना करण कहते हैं । इसको निका संक्रमण करण भी १० गुरण स्थान तक होगा। चित, निष्काचना ऐसे भी कहते हैं। इस प्रकार दशकरणों का स्वरूप जानना (देखो गो० १७) १४वे प्रायोग केवली गुण स्थान में जो ८५ क. गा० ४३७ से ४४०, प्रकुतियों का सत्व रहता है उसका अपकर्षण करत ४०. गण स्थानों में कर्म प्रकृतियों के इनकरणों के सयोगा कयली गुण स्थान के अंत समय तक होता है। संभव दिखाते हैं (कोष्टक नं० ११६ और १२५ गाथा ३३३ से ३४१ १) पहले मिथ्यात्व गुण स्थान से लेकर वे देखो) अपूर्वकरण गुण स्थान पर्यत 'दस करण' होते हैं। (८) क्षीण कषाय जो १२वे गुण स्थान में सख ने नरकादि चारों प्रायु कर्म प्रकृतियों के संक्रमणकरण' व्यच्चिन हुई १६ प्रकृति तथा १०वा सूक्ष्म सांपराय गुण के बिना एकरण होते हैं और शेष सय प्रकृतियों के स्थान में सरव से व्यच्छित्तिरूप हा जो सक्षम लोभ इन 'दश करण' होते हैं। १७ प्रकृतियों का क्षयदेश पर्यंत क्षय होने का ठिकाना (२) हवे अनिवृत्तिकरण और १०वे सूक्ष्म सांपराये तक अपकर्षण करण जानना उस क्षय देश का काल यहां गण स्थान में अंत के उपशम-निपत्ति-निकाचना इन पर एक समय अधिक आदली माव है, क्योंकि ये 10 तीनों करणों को छोड़ कर शेष प्रादि के ७ ही करण प्रकृतियां स्वमुखोदयी है, सारांश यह है कि प्रकृतियां वो होते हैं। प्रकार की हैं। एक स्वमुखोदयी दूसरी परमुखोदयी। (३) ११३ उपशांत मोह, १२वे क्षीण मोह, १३वे सयोग केवली इन तीन गुण स्थानों में संक्रमणकरण' स्वमुखोदयी-जो भगने ही रूप उदयफल देकर नष्ट के बिना ६ ही करण बंध, उत्कर्षण, अपकर्षरण, हो जाय वे स्वमुखोदयी है, उनका काल एक समय अधिक उदारणा, सत्व, उदय ये ६) होते हैं । पावली प्रमाण है, वही क्षयदेश (क्षय होने का (1 ११३ उपशांत मोह गुण स्थान में कुछ विशेष ठिकाना है। बात यह है कि इस गुण स्थान में मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय (सम्पङ मिथ्यात्व) इन दोनों का संक्रमण परमुखोयी-जो प्रकृति पन्य प्रकृति रूप उदयफल करण' भी होता है, अर्थात् इन दोनों के कर्म परमाण देकर विनष्ट हो जाती है वे परमुखोदयी है. उनका सम्यक्त्व मोहनीय (सम्यक्त्व प्रकृति, रूप परिणाम जाते क्षयदेश अंत कांडक की अंतफालि है ऐसा जानना। हैं, किन्तु शेष प्रकृतियों का संक्रमण करण' नहीं होता, ६ ही करण होते हैं। ___१६) देवायु का अपकर्षण करण ११वे उपशांतमोह (५) १४वे प्रयोग फेवली गुण स्थान में सत्व और गुण स्थान पर्यंत है और मिथ्यात्व, सम्प, मिथ्या उदय ये दो ही करण पाये जाते है। सम्यक्त्व प्रकृति ये ३ प्रकृतियां और 'निरपति रिक्से, १६) जिस गुण स्थान में जिस प्रकृतियों की जहां सफ इत्यादि सूत्र से कथित इवे प्रनिवृत्ति करण गुण स्थान में बंध व्युछित्ति होती है वहाँ तक उन प्रकृतियों का बंध क्षय हुई १६ प्रकृतियां इन १६ प्रकृतियों का चयन -4AA Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७५६ ) पर्यंत अपकर्षण करण होता है, अर्थात् अंतकांडक के अंतफालिपर्यंत है और क्षपक अवस्थायें अनिवृत्तिकरण गुण स्थान के २ भाग से ध्वे भाग तक क्षय हुई जो आठ कषाय को लेकर २० प्रकृतियां हैं उनका भी अपनेअपने क्षयदेश पर्यंत अपकर्षण करण है, जिस स्थान में क्षय हुआ हो सको 'क्षयदेश' कहते हैं । (देखो गो क० में कोष्टक नं० ११६ ( १० उपशम श्रेणी में मिथ्यात्व सम्यङ् मिध्यात्व सम्यक्त्व प्रकृति इन तीन दर्शन मोहनीय प्रकृतियां श्रर हवे गुण स्थान के पहले भाग में क्षय हुई जो नरकद्विकादिक १६ प्रकृतियां इन १६ प्रकृतियों का प्रपकर्षण करण ११वे उपशांत मोह गुण स्थान पर्यंत होता है, परन्तु शेष आठ कषायादि वे गुण स्थान में नष्ट होने वाले २० प्रकृतियों का अपने अपने उपशम करने के ठिकाने तक अपकर्षण करण है । (देखो को० न० ११६ ) (११) श्रतानुबंधी चार कषाय का अपकर्षण करणं संयत गुण स्थान से लेकर ७वा अप्रमत्त गुण स्थान तक यथासंभव जहां विसंयोजनं (अन्यरूप परि मन ) हो वहां तक ही होता है तथा नरकायु के ४ असंमत गुण स्थान तक और तिर्यचायु के ५वे देश संयत गुण स्थान तक उदीरणा, सत्य, उदयकरण - ये तीन करण प्रसिद्ध ही हैं, क्योंकि पूर्व में इनका कथन चुका है। (१) उपशम सम्यक्त्व के सन्मुख हुए जीव के मिथ्यात्व गुण स्थान के अंत मे एक समय अधिक एक भावली पर्यंत मिध्यात्व प्रकृति का उदीरणकरण होता है, क्योंकि उसका उदय उतने ही काल तक है पीर सूक्ष्म लोभ का उदीरणाकरण १०वे सुक्ष्म सांपराय गुण स्थान में ही होता है, क्योंकि इससे आगे अथवा अन्यत्र उसका उदय ही नहीं है । (१३) जो कर्म उदावली में प्राप्त नहीं किया जा सके अर्थात् जिसकी उदीरा न हो सके ऐसा उपशांत (उपशम) करण, जो उदीरणारूप भी न हो सके और संक्रमण रूप भी न हो सके ऐसा निर्धात्तिकरण तथा जो उदावली में भी ना सके, जिसका संक्रमण भी न हो सके और जिसका उत्कर्षण और प्रपकर्षण भी न हो सके अर्थात् जिसकी ये चारों क्रिया नहीं हो सकती हों ऐसा निकाचितकरण, ये सीन करण वे अपूर्वकरण गुण स्थान तक ही होते हैं । भावार्थ इसके ऊपर यथासंभव उदयावली प्राषि में प्राप्त होने की सामर्थ्य वाले ही कर्म परमाणु पाये जाते हैं । (देखो गो० क० गा० ४४१ से ४५० ) Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६० ) ४१. मूल प्रकृतियों के अन्ध-उदयवीरस्य के भेदों के लिये हुये स्थानों के गुण स्थानों में कहते हैं ( देखो गो० क० ० ४५१ ) स्थान - एक जीव के एक काल में जितनी प्रकृतियों का सम्भव हो सके उन प्रकृतियों के समूह का नाम स्थान है । गुरण स्थान बन्ध स्थान १-२-४-४-६-७ गुण० में " ३-८-९ गुण० में १० वें गुरण स्थान में ११-१२-१३ गुण० में १४ गुण स्थान में मूल प्रकृतिय 'ज्ञाना० वर्श० वेद० मोह० प्रायु नाम गोत्र श्रंत ० ० १ १ ० विशेष विवरण ये ७ प्रकार के अथवा ये प्रकार के कर्म को जीव बांधते हैं । ये ७ प्रकार के ही कर्म संघ रूप होते हैं । ये ६ प्रकार के ही कर्मों का बंध होता है । १ वेदनीय कर्म का बंध है । किसी प्रकृति का भी बंध नहीं होता है । सूचना – इस प्रकार सर्व गुण स्थानों के मिलकर मूल प्रकृतियों के यन्ध स्थान चार हैं। (८-७-६-१ इन प्रकृतियों का बन्ध होना सम्भव है इसलिये ४ स्थान होते हैं, इन स्थानों के मुजाकार बन्ध, अल्पतर बन्ध और अस्थिर बन्ध ये ३ प्रकार के बन्ध होते हैं। चौथा भवक्तव्य बन्ध मूल प्रकृतियों में नहीं होता । (देखो गो० क० ग्रा० ४५१-४५२-४५३) · 1 ¡ Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूल प्रकृतियां मुरण स्थान विशेष विवरण ज्ञाना०दर्श० वेदमोह | प्रायु नाम गोत्र दय-स्थान (देखो गोल क० गा० ४५४) १ से १० गुण. में १ | १ १ | १ १ १ १ | १ । ये ८ मूल प्रकृतियों का उदय ११३ १२वें , ये ७ का उदय (मोहनीय के बिना) है। ये। अधातियों का उदय जानना। १३व १४वें उदौरणा-स्थान (देखो गो क० गा० ।५५-४२६) १ से १२ गुण में ये ४ की उदीरणा छद्यस्थ ज्ञानी करते हैं। ये १ की उदारणा सरागी करते हैं। ये २ की उदीरणा प्रमादि जीव करते हैं। ये ७ को उदीरगा ऊपर के सब जीव करते हैं। ये २ की उदीरणा घायु की स्थिति में प्रावलिमात्र काल शेष रहने पर होती है। ये ५ की ऊपर के समान । १०. सूक्ष्म सां. १वें क्षीण मोह, ये २ की भी ऊपर के समान जानना। सत्त्व-स्थान (देखो गो० क० गा० ४५७) । ये = ही प्रकृतियों की सत्ता है। १ से ११ गुण में १२वें क्षीण मोह , |१११ ये १३वें १४वें १ ० . Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २ ४ ( ७६२ ) ४२. जोवों का उपयोग गुरप स्थान में कहते हैं— उपयोग के मुख्य दो भेद हैं। एक दर्शनोपयोग दूसरा ज्ञानोपयोग, दर्शनोपयोग के प्रचक्षु दर्शन, चक्षु दर्शन, प्रवधि दर्शन केवल दर्शनोपयोग ऐसे मे ४ व होते हैं और ज्ञानोपयोग के कुमति, कुश्र ुत, कुअवधि, मति श्रुत, अदोष, मनः पर्येय, केवल ज्ञानोपयोग ऐसे भेद हैं। दोनों मिलकर १२ जानना । देखो गो० क० ग्रा० ४६१ और को० नं० १४६ ) * मुरवस्थान ३ मिश्र ८ मिध्यात्व प्रसंयत ५ देश संगत ६ प्रमत्त सासादन अप्रमत्त अपूर्व क० ६ अनियुक १० सूक्ष्म सां० ११ उपशांत मोह १२ क्षीरा मोह १२ सयोग के० १४ प्रयोग के० उपयोग संख्या ५ ५. ६ ६ ७ 19 ७ २ अक्ष दर्शन १, चक्षु दर्शन १, कुमति कु त कुप्रवधि दर्शन ये ३ । 21 36 क्षुद० १, क्षुद० १ अवधि दर्शन १ मति तयवधि ज्ञान ये सीनों ज्ञान मित्र होते हैं) ० १ ० १ अवधि ५० १ मति श्रुतवधि ज्ञान ये ३ । 17 , विशेष विवरण 37 31 ऊपर के ६ + १ मनः पर्यय ज्ञान = ७ जानना । 17 #2 #T " 71 י 21 " 12 " " " د. 12 IT 13 71 21 केवल दर्शन १, केवल शाम १ ( मे दोनों युगपद जानना ) ग ! Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुण स्थान । ५६३ ) ४.. पुरण स्थानों को अपेक्षा से संयम बताते हैं१ से ४ गुण स्थानों में -एक प्रसंगम जानना । ५ देशसंयत -एक संयमासंयम जानना । ६ प्रमत्त -सामायिक. छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धिये ३ संयम जाना। ७ अप्रमत्त , - " ये३ संयम जानना। अपूर्वकरण . - , ये २ संयम जानना । ६ अनिवृत्तिकरण, १० सूक्ष्म सांपराय, १ सूक्ष्म सांपराय सयम जानना 1 ११ से १४ तक , - १ पथाख्यात संयम जानना । (देखो गोल क. गा० ५..) ४४. सामान्य से गुरण स्थानों में सम्भवती लेश्यामों को कहते है लेश्यामों के नाम भी सख्या-- १-२-३-४ गुण. में कृष्ण , नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्स ये ६ हरेक में जानना ५-६-७ " -पीत, पदम, शुक्ल पे ३ लेश्या जानना। ८ से १३ तक " --एक शुक्ल लेश्या जानना । १४, " -(०) कोई लेश्या नहीं होते (देखो गो० क० गा ५०३) ११) तथ्य लेश्या-वर्णनामा नामकर्म के उदय से शरीर का जो वर्ण रहता है उसे इन्य लेश्या कहते हैं। इस या मार्गणा मे द्रव्य लेश्या का वर्णन नहीं है। (२) भाव लेश्या-मोहनीय कर्म के उदय से, उपशम से, क्षय से या क्षयोपशम से जीवों में जो चंचलता होता उसी को भाव लेश्या कहते हैं। (३) कोन सा नरक में कौन सा भाव लेश्या रहता है यह बताते हैं -- रले नरक के पहले इन्द्र कबील में कापोत लेश्या का जघन्य अंश रहता है३रे , विचरम , उत्कृष्ट अंश , ३रे , अंतिम , नील लेश्या का जघन्य अंश , ५वे , द्विचरम , उत्कृष्ट अंश : वें , अंतिम , कृष्ण , जघन्य अंश , ७३ , अवधिस्थान ,, , , उत्कृष्ट अंश , जघन्य और उत्कृष्ट इन दोनों के बीच में के लेश्या का ग्रंश मध्यम जानना । (देखो गो. क. गा० ५४६ ) Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRE [ ७६४ ] - - - . - . .. - ४५.. जब किसी एक पर्याप को छोड़कर (मरकर) वें नरक वाले जीव ३रे या थे गुणस्थानवर्ती दूसरं विसी पर्याय में उशन होना (जन्म लेन्स) यथा- अपने-अपने गणस्थानों में मनुष्यद्विक तथा उच्च सम्भव सिवाते हैं। गोत्र उनको नियम से बांग्रता है। परन्तु वहां पर (७वीं १. नरकगति नारकी जीव मरकर कहां-कहां सत्पन्न पृथ्वी में) उत्पन्न हुए सासादन मिथ-प्रसयत गुणस्थान होते हैं ? समाधान रत्नप्रभा, शकरप्रभा, बालकप्रभा इन वाले जीव जिस समय मरगा को प्राप्त होते हैं उस समय तीन पृथ्वी याले नारकी जीव मरकर गर्भज संज्ञी, मिथ्यात्न गुणस्थान को प्राप्त होकर ही मरण करते हैं। पंचेन्द्रिय, पर्याप्त, कर्म भूमिया मनुष्य अथव। तियंचपर्याय (देखो गो० के० गा० ५३६)। में उत्पन्न होते हैं । परन्तु वे चक्रवती, बलभद्र, म सम्मान, २.तियचयति । तियच जीव मरण करके कहाँ कहाँ प्रतिनारायण नहीं होते। उत्पन्न होते ? समाधान-तियं च गति में बादर या सूक्ष्म, विशेष-अढ़ाईीप में १५ कर्म भूमियां हैं उनमें पर्याप्त या अपर्याप्त, ऐसे अग्निकायिक अथवा वायुकायिक तिर्वच अथवा मनुष्य और लबणोदधि, कालोदधि समुद्रों ये दोनों मरण करके नियम से लियंच गति में ही उत्पन्न में और स्वयं प्रभाचल पर्वत के प्रागे अर्ध स्वयं भूरमण- होते हैं। परन्तु भोगभूमि में पंचे न्द्रय विर्यच नहीं होते । द्वीप में और सम्पूर्ण स्वयं भरमण समद्र में मोर उसके तथापि वे बादर, सुक्ष्म पर्याप्त, अपर्याप्त. प्रस्त्री, अग्नि, प्राग मध्यलोक के चारो कोनों में धर्मा प्रादि तीन पृथ्वी जल, वायु, साधारण वनस्पति, पर्याप्त, अपर्याप्त, वाले नारकी जीव जलचर, स्थलचर और नभचर तिर्यच प्रतिष्ठत, अप्रतिष्ठित, प्रत्येक बनस्पति, हीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, हो सकते हैं। प्रसंज्ञी, सजीपंचेन्द्रिय तिर्यच में उत्पन्न होते हैं। ___अढाई द्वीप में ३० भोगभूमिया और ६६ कुभोग- शेष एकेन्द्रिय अर्थात् पृथ्वीकायिक, जलकायिक और भूमि या के तिर्यत्र या मनुष्य में से कोई ऊपर के तीन वनस्पलिकायिक ये बादर, सुक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त इन पृथ्बो में मारकी होकर उत्पन्न नहीं होते। उसी तरह सब अवस्थामों वाले नित्यनिगोद, इतरनिगोद, वनस्पति मानपोत्तर पर्वत और स्वय प्रभाचल इन दोनों के और पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रतिद्वित, अप्रतिक्षित प्रत्येक असंख्यात द्वीप-समुद्र में भी उत्पन्न नहीं होते।। वनस्पति तथा इसी प्रकार पर्याप्त, अपर्याप्त द्वीन्द्रिय, थे पंकप्रभः. ५वें धूमप्रभा दें तमःप्रभा इन तीन श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ये सब जीव मरकर अग्नि और वायु प्रीष्टिय पृथ्वी वाले नारकी जीव मरकर तीर्थंकरादि के सिवाय कायिक छोड़कर शेष सत्र तियंचों में उत्पन्न होते हैं और पूर्वोक्त तिर्यंच अथवा मनुष्यपर्याय में उत्पन्न होते हैं। तीर्थकरादि त्रसठ शलाका (पदविश्वारक) पुरुषों के बिना हरे बालुका पृथ्वी सक के नारकी जीव तीर्थकर हो शेष मनुष्यपर्याय में भी उत्पन्न होते हैं । नित्य और सकते हैं। इनके धागे के अर्थात् '४थे पृथ्वी बारने से लेकर इतरनिगोद में के मूक्ष्म जीव रण मर। मनुष्य हो प्रागे के नारकी जीव तीर्थकर नहीं हो सकते। जाय तो वे सम्यक्त्व और देवासंयम ग्रहगा कर सकते ४थे श्त्री तक के नारकी जीव चरम शरीरी हो है। परन्तु सकल संवम नहीं ग्रहरा कर स ते हैं। सकते हैं। असंजीपचेन्द्रिय जोध मरण करके पुर्वोक्त नियंच अथवा में पृथ्वी तक के नारकी जीव सकलसंयमी हो सकते हैं। मनुष्वगति में उत्पन्न होता है । तथा घर्मा नाम वाले पहले वें पृथ्वी तक के नारकी जीव देशसंयत गुणास्थान नरक में और टेवयुगल में अर्थात् भवनवासी या यंतर तक शियंच अथवा मनुष्य हो सकते हैं। परन्तु इतनी देवों में उत्पन्न होता है। अन्य देव अथवा नारकी नहीं विशेषता है कि होता 1 क्योंकि असजी जीवों की बावु का उत्कष्ट स्थिति ७ नरक वाले जीव पूर्वोक्त तिर्यच (मिथ्याप्टि) बन्ध पत्य के पसख्यास्वा भाग से अधिक नहीं हो सकता पर्याय में ही उत्पन्न होते हैं। (देखो गो. कल गा. है। (दयो गो० क० -५४०)। संझी पंचेन्द्रिय तिथंच भी प्रसंशी पंधेन्द्रिय को तरह Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६५ ) पूर्वोक्त गतियों में, सब नारकी पर्यायों में सब भोगभूमिया पर्यायों में और अच्युत स्वर्गपर्यन्त सब देवों में उत्पन्न होता है । (देखो गो० क० गा० ५४१) । ३. मनुष्यगति- मनुष्य जीव मरकर कहा- २ उत्पन्न होते हैं ? समाधान - कर्मभूमि के पर्याप्त मनुष्य मरण करके चारों हो गतियों में संज्ञी पंचेन्द्रिय विशेष की तरह सब गतियों में उत्पन्न होता है । उसी तरह अहमिन्द्र भी हो सकता है । तथा विद्ध स्थान मोक्ष में प्राप्त होते हैं । अपर्याप्त मनुष्य कमभूमि के लियंचों में उसी तरह तीर्थकरादि पद छोड़ कर सामान्य मनुष्यों में जन्म लेता है शतार - सहस्रारपर्यंत स्वर्गो वाले देव भी मर कर पूर्वोक्तसज्ञी पंचेन्द्रिय मनुष्य तियंचों में उत्पन्न होते हैं । अर्थात् १५ कर्मभूमि में मनुष्य और लवणादधि, फालोदधि, स्वयथुरमण के अपराध द्वीप, स्वयंभूरमण समुद्र इनमें संज्ञी, पर्याप्त जलचर, स्थलचर, नभश्चर, तियं च भी होते हैं । ३० भोगभूमि के चि और मनुष्य और प्रसंख्यात द्वीप में के जधन्य भोगभूमि के तिर्यच यदि सभ्यसमुद्र दृष्टि हों तो सोधर्म और ईशान्यस्वर्ग में जन्म लेते हैं। और उनका गुणस्थान यदि पहले दूसरे ही भवन त्रिक देवों में जन्म होता है । कुभोग भूमि के मनुष्य भवनत्रिक देवों में जन्म लेते हैं । चरम शरीरी मनुष्य मोक्ष जाते हैं । आहारक शरीर सहित प्रमत्त गुरणस्थान वाले मरशा करके कल्पवासी देवों में उत्पन्न होते हैं । (देखी गो० क० गा० ५४१-५४२-५४३) । ४. देवगतिदेव मर कर कहां-कहां उत्पन्न होते हैं। समाधान सब देव मरण करके सामान्य से सजी पंचेन्द्रिय कर्मभूमिया तिच तथा मनुष्य पर्याय में और प्रत्येक वनस्पतिकाय, पृथ्वी काय, जलकाय बादर पर्याप्त जीवों में उत्पन्न होते हैं । विशेष भवनत्रिक देव मरकर सोधर्म-ईशाय स्वर्ग के देवों की तरह जन्म लेते हैं। वे तीर्थंकारादि त्रेसठ शलाका पुरुषों में जन्म नहीं लेते, अन्य मनुष्यों में ही जन्म लेते है । ईशान्य स्वर्ग पर्यन्त के देव मरकर पूर्वोक्त मनुष्य तियंचों में तथा बादर पर्याप्त, पृथ्वी, जल, प्रत्येक वनस्पति, एकेन्द्रिय पर्याय में उत्पन्न होते हैं । सर्वार्थ सिद्धि पयन्त के देव मरकर १५ कर्मभूमि में मनुष्य में ही जन्म लेते हैं। (देखो गो० क० गा० ५४५४३) । ४६. कौन और किस तरह का मिथ्यादृष्टि देवति में कौन सा देव उत्पन हो सकता है ? सभाधान (१) भोगभूमि में मिध्यादृष्टि और तापसी ज्यादा से ज्यादा भवनत्रिक देवों में उपन्न होते हैं । (२) भरत, ऐरावत, विदेह के मनुष्य और तिच और स्वयंभूरभरण अर्धद्वीप और स्वयंभूरमण समुद्र फालोदधि समुद्र के जलचर, स्थलचर नभश्रसंज्ञी तिथंच पर्याप्त भवमिध्यादृष्टि और उपशमि (शांत परिणामी ) ब्रह्मचयंधारक, वानप्रस्थाश्रमी और एक जटी, शतजटी, महस्रजटी नग्न, कांजीभक्षक, कन्दमूलपत्र पुष्पफल भक्षक, श्रकामनिर्जश करने वाले, एकदंडी, त्रिदंडी श्रौर बालतप करने वाले ये सब अपने अपने विशुद्धता के अनुसार भवतधिक से लेकर अच्युत स्वर्ग तक उत्पन्न होते हैं। (३) द्रव्वलिंगी जैनमुनि ( मिथ्यादृष्टि ) नवग्रं वैयक तक जन्म लेते हैं । (देखो मो० ० ० ५४८ ) ४७. कौन कौन से फोन कौन से नरक में जा सकते हैं? समाधान - १ले नरक में मिध्यादृष्टि, कर्मभूनिज, छः ही संहनत के धारक, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, सरीसृप (सर्प विशेष होना चाहिये) पक्ष, सप. सिंह, स्त्री माता, मनुष्य यह जीव जाते हैं २ नरक में संज्ञी पंचेन्द्रिय छोड़कर शेष ऊपर के सब जीव जाते हैं । पंचेन्द्रिय और सरी रुप छोड़कर रे नरक में शेष ऊपर के सब जोव जाते हैं। ४थे नरक में संप्राप्ता पाटिका संहनन छोड़क Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शेष पांच संहनन धारी सापासून मनुष्यापर्यंतचे, जीव मत्स्य और मनुष्य ये जीव जाते हैं। जाते हैं। ७ नरक में-बजषमनाराष संहनन धारी ५वे नरक में-सिंह से लेकर मनुष्म तक के जीव मत्स्य और मनुष्य ये जीव जाते हैं । देखो गो० क० गा. जाते हैं। ६वे नरक में-प्रथम के ४ सहनन के धारी स्त्री, ४८. कौन से गुणण-पान में कौन सा सम्यक्त्य रहता है यह बताते हैंरले गुरण-स्थान में १- मिथ्यान्व जानना । १. सासादन , १. मिश्र ३. उपशम, अयोपशम, क्षायिक ये ३ जानना । २. प्रौपशमिक, क्षायिक ये २ जानना । १. क्षायिक सम्यक्त्व जानना। (देखो गो० क. या ५०६) ४६. दायित सम्यक्त्व-दर्शन मोहनीय कर्म के द्वितीयोपशम सम्यक्त्व का काल पूर्ण होने के बाद वेदक क्षपण का प्रारम्भ कर्मभूमि के मनुष्य, तीर्थकर या सम्यक्त्व प्राप्त होता है। के ली था श्रुत केबलीयों के पादमूल में (सानिध्य) होता कर्म भूमि के प्रथमोपदाम सम्यक्त्वी मनुष्य उपशम है और निष्ठापन (पूर्णता) वही होगा अथवा यदि मरण सम्यक्त्व का काल पूर्ण होने के बाद सम्यक्रवा जाय तो चारों गति में प्रति वैमानिक देवों में, मोठनीय (सम्यक्त्व प्रकृति के उदय से वेदक सम्यक्त्व भोगभूमि के मनुष्य या तियच अवस्था में, अथवा प्रथम होता है। नरक में होगा । (देखो गो. क. गा०५५०) कर्मभुमि सादि मिभ्याइष्टि मनुष्य मिथ्यात्व के उदय ५०. वेदक सम्यमाव-४, ५, ६, ७ इन गुण- का भभाव करके सम्यक्त्व मोहनीय के उदय से प्रसंयतादि स्थानवर्ती द्वितीयोपशम सम्यक्त्व धारी मनुष्य मर कर चार गुण स्थानों में (४थे से ७वें गुण-स्थान में) वेदक वैमानिक देव में उत्पन्न होता है। और वहां उसको सम्यग्दृष्टि होती है। (देखो गो० क. गा० ५५०) ५१. गुण-स्थान में पढ़ने और उत्तरने का क्रम बताते है: (देखो गोक० मा० ५५१, ५५७, ५१८, ५५६ और को नं०१५६ कस गुण-स्थान से किस गुण-स्थान में जाता है? स्थान संख्या १. मिथ्यात्व २. सासादन ३. मिथ ४. असंयत ५. देशसंयत ६.प्रमत्त ७.अप्रमत्त १ मिथ्यात्व जानना पड़े तो १ले में, चड़े तो ४थे में जानना पड़े ३, २, १ चढ़े तो ५,७ पड़े तो ४, ३,२,१ पढ़े तो पड़े तो ५४, ३, २,१ चढ़े तो ७ तो ६ चढ़े तो ८ (मरण हो तो ये गुण) arrxxurm Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६७ ) पड़े तो ७ चढ़े तो ६ (मरण हो तो ४थे गुण) । १० (नहीं चढ़ता) , स्वे गुण . A ५. अपूर्वकरण ६. अनिवृत्तिकरण १०. सूक्ष्म सांपराय में ११. उपशांत मो० Ja ५. अपूर्वकरण ) ८. अनिवृत्तिकरण १०. सूक्ष्म सापराय १२. क्षीणमोह | १३. संयोग कवली १४. प्रयोग केवली उपशम श्रेतीक्षपकथगी अपेक्षा ० १० . . ० ० सिद्धावस्था (मोक्ष) में जाता है। ० ५२. जीव किस पुरण-स्थान में मरण करके किस गति में जाता है यह बताते हैं। (देखो गो० क. गा०५५६, को. नं. १६१) गुण-स्थान गति १. मिथ्यात्व में मर कर नरक, तिर्यच, मनुष्य, देव इन चारों गतियों में जाता है । २. सासादन में , नरक गति बिना शेष तीन गतियों में जाता है। मरण नहीं होता। ३. मिश्र गुण-स्थान में ४, मसंयत में मर कर नरकादि चारों गतियों में जाता है। ५. देशसंयत में देवगति में जाता है। ६. प्रमत्त गुण में मर कर {क्षपक श्रेणी में मरण नहीं होता) ७. अप्रमत्त , ८, प्रपूर्वकरण , ६. अनिवृत्तिः ॥ १०. सूक्ष्म सां० . , ११. उपशांतमोह ,, .. १२. क्षीण मोह गुण में सर्वार्थसिद्धि में अहमीन्द्र होता है । मरण नहीं होता १३. सयोग फेवली गुरण में १४, प्रयोग केबजी के जीव सिद्ध गति गति में (मोक्ष) जाता है। Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३. कि: प्रवाचा में जीव मरण करता नहीं सम्यग्दृष्टि होने तक मरण नहीं करता है। (देखो मो० यह बत ते हैं क० गा० ५५०, ५६०, ५६१) । १. मिश्र गुण स्थानवर्ती जीव, २-पाहारक मित्र ५४. बक्षायु कृतकृत्य घेदक सम्याद्धि मरकर चारों गतियों में किस तरह जाता है ? यह बताते हैंकाययोगी जीव, ३. नित्य पर्याप्त मिथकाययोगी जीव, दर्शनमोहनीय कर्म के क्षपण करने का प्रारम्भ करने ४. क्षपक श्रेणी धारक जीव, ५. उपशम श्रेणी नहाने वाला जावं को कृतकृत्य पदक सभ्य कहते हैं । वाला जीध (1वें अपूर्व करण गुण स्थान के प्रथम भाग कृतकृत्य वेदक का काल अन्तर्मुहुर्त है। उस अन्तम हुतं में) ६. प्रथमोपशम सम्यक्त्वी जीव, ७. सातवें नरक में के चार भाग करना चाहिये यदि प्रथम भाग में मरण २रे ३रे ४थे गुण स्थान धारी जीव, ८. अनन्तानुबन्धी होय तो देव अथवा मनुष्य गति में जायेगा । यद २रे के विसंयोजन किया हुमा जीव, यदि मिथ्यात्व गुण स्थान में लौटकर आया हो तो एक अन्तर्मुहतं तक नहीं यदि ३रे भाग में मरे तो देव, तियंच अथवा नारक होगा । भाग में मरे तो देव, मनुष्य, अथवा मनुष्यगति में जायेगा, मरण करता है, ६. दर्शनमोह पक कृतकृत्य वेदक देखो गो. कागा, ५६२) ५५. नाम कर्म के उस्य स्थानों के पांच नियत काल हैं। ( देखो गो० क० गा० ५८३-५८४-५८५ को० नं. १६७ ) नियत काल का वर्णन काल मर्यादा १, २, ३, समय एक अन्तर्मुहृतं जानना १-विग्रहगति या कार्माण शरीर में (केवली समुद्घात की अपेक्षा) २ --मिश्र शरीर में (शरीः पर्याप्ति पूर्ण न होने तक) ३--शरीर पर्याप्ति में (शरीर पर्याप्ति पूर्ण होने पर जब तक श्वासोच्छ वास पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती सब तक) ४--श्यासोच्छवास पर्याप्ति में (श्वासोच्छवास पर्याप्ति पूर्ण होने पर जब तक भाषा पर्याप्ति पूर्ण नहीं होती तब तक) ५–भाषा पर्याप्ति में भाषा पर्याप्ति पूर्ण होने पर अवशेष प्रायु पर्यंत भाषा पर्याप्ति काल है) भुज्यमान प्रायु मेंऊपर के चारों का काल कम करने से शेष काल जानना। Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६६ ) • ऊपर के पांच नियत कालों के स्वामी निम्न प्रकार (१) समुद्घात के करने (प्रसरण में) में अथवा जानना __ संकोचन (समेटने रूप) में अर्थात् दो समय में प्रौदारिक १. लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में अपर के पहले ही शरीर पर्याप्ति काल है । काल रहते हैं। १३) कपाट समुद्घात के करने और ममेटने रूप. .. एकेन्द्रिय जीवों में ऊपर के पहले के चार काल युगल में औदारिक मिथ शरीर काल है । रहते हैं। (.) प्रतर समुद्घात के करने और संकोचन में श्रीर ३, प्रस जीवों में ऊपर के पांचों ही काल रहते हैं। लोक पूर्ण समुदात में कार्माण काल है। ४. पाहारकशरीर में ऊपर के पहले के काल छौड़ इस प्रकार प्रदेशों के विस्तार करने पर पारीर कर शेष मागे के ४ काल जामना । पर्याप्ति काल, मिथ शरीर काल, कार्माण काल ये ही काल होते हैं ऐसा जानना चाहिये, किन्तु श्वासोच्छ्वास ५६. स दुधात फेवली के काल का प्रमाण- और भाषापर्याप्ति समेटते समय ही होती है, क्योंकि मूल समुद्घात केवली के कार्माण, औदारिक मिश्र शरीर में प्रवेश करते समय से ही संनी पंचेन्द्रिय की औदारिक शरीर पर्याप्ति, श्वासोच्छवास पर्याप्ति काल । तरह क्रम से पर्याप्ति पूर्ण करता है इसलिये वहाँ (ममुद् इस प्रकार पांघ काल क्रम से अपने प्रात्म प्रदेशों का · घास केवली के) पांचों काल सभव हैं। संकोच करने (समेटने) के समय ही होते हैं और प्रसरण समयास केवली के ८ समय और योग के कोष्ठक अर्थात् विस्तार (फैजाने के समय तीन ही काम्न है। नं. १६८ । प्रसरण विस्तार योग औदारिक काय योग (१) दंड समुद्घात (२) पाट , (३) प्रतर ॥ (४) लोक पूर्ण, औदारिक मिश्र काय योग कार्माण का योग कामरिण ऋाय योग संकोचन समेटने रुप योग कार्माण काय योग औदारिक मिश्रकाय योग मीदारिक. काय योग (५) प्रतर (६) कपाट (७) दंड (८) मूल शरीर प्रमाण (देखोगो का मा०५८६-५८७) श्रीपारिक काय योग Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७० ) ५७. उद्दलन! स्थानों में जो विशेषता है उसको तो वह 'उपशम योग्य काल' कहा जाता है । (देखो गो० कहते हैं क० गा० ६१५) मिथ्यात्व गुगा स्थान में जिन प्रकृत्तियों के बंध की प्रथवा जदय को वासना भी नहीं गेसी सम्यक्त्व प्रादि ४) तेजस्कायिक और वायु कायिक जीवों को गुग मे उत्पन्न हुई सभ्यवस्व मोहनीय (सम्यक्त्व प्रकृति) १, उलन प्रकृतियां--- मित्र मोहनीय (सम्याइ निध्यात्त्र; १, प्राहारकदिक २, नच.र प्रकुतियों की तथा शेष ८ जन प्रकृतियों की मनुष्यद्विक २ और उच्च गोत्र १, इन तीन उद लगा यह जाव यही मिथ्याल गुणा स्थान में करता प्रकृतियों को उलना तेजस्कायिक और वायुकायिक इन है, (देखो गो० के० गा० ४१३ से ४१५ और ६१२) जीवों में होती है और उस उद्वेलना के काल का प्रसारण (१)ो उदलन प्रकृति १३ हैं उन प्रकृतियों के जघन्य अथवा उत्कृष्ट पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण का क्रम है। है, अर्थात् इतने काल में उन सीन प्रकृतियों के निषेकांची आहारराविक २ प्रशस्त प्रकृति है इसलिये चारों गति उदलना हो जायेगी, पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण के मिथ्याटि जीव पहले इन दोनों की उद्वेलना करते जिसकी स्थिति है, उस सत्ता रूप स्थिति की उद्वेलना है। पीछे सम्यक्त्व प्रकृति की, उसके बाद सम्यग्मिथ्यात्व एक अंतमहतं काल में करता है. तो संख्यात सागर प्रकृति की उपना करते हैं, उसके बाद शेप देवाद्विक २, प्रमाण मनुष्यतिकादिको सत्ता रूप स्थिति की तुलना नरकद्विकर, पंक्तियिकद्विक २, उच्चगोग १, मनुष्य द्विक २, इन प्रकृतियों की उद्वेलना एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय कितने काल में करेगा? इस राशिक विधि से पस्य के योर सकतेन्द्रिय जीव करते हैं। (देखो गो० क. गा० प्रसंख्यातवें भाग प्रमाग काल में ही कर सकता है, ऐसा ६१३) सिद्ध होता है । (देस्रो गो० क० गा० ६१६-६१७) (२) उस उद्वेलना के अवसर का काल कहते हैं ५८. सम्यक सादिक को विराधना (छोड़ देना) वेदकसम्यक्त्व योग्य काल में प्राहारकद्विक २ की कितनी बार होती है यह कहते हैंउह लना करता है, उपशम काल में सम्यक्त्व प्रकृति चा सम्बग्मिध्यान्य प्रकृति को उद्धेलना करता है मौर (१) प्रथमोपशमसम्यक्त्व, वैदक (क्षयोपशमिक) एकेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय जीत्र वैक्रियिक पटक को सम्यक्त्व, देश संयम और अनंतानुबंधी कधाय के विसंयो(देवद्रिक २, नरकद्विक २, वैक्रियकाहिक २। उलना जन को विधि-इन चारों अवस्था को यह एक जीव करता है। (देखो मो० कगार ६१४) उत्कृष्टपने यर्थात् अधिक से अधिक पल्य के असंख्यातवें (३) इन दोनों कालों का लक्षण कहते हैं भाग समथों का जितना प्रमाण है उतनी बार छोड़-छोड़ सम्यक्त्व प्रकृति मौर सम्यरिमथ्यात्व प्रकृति इन दो के पुनः पुनः ग्रहण कर सकता है, पीछे नियम से सिद्ध प्रकृतियों की सत्ता रूप स्थिति पस के पृथक्त्व सागर पद को ही पाता है। (देखो मो० क० मा० ६१३) प्रमाण शेष रहे और एकेन्द्रिय के गल्य प्रसंख्याल 'माग का एक सागर प्रताप शंष रजावे बह 'वेदक योग्य काल' (२) उपशमणी पर एक जीव अधिक से अधिक है और उसगे भी जिती सत्ता हर स्थिति कम हो जय चार बार ही चढ़ सकता है, पीछे कर्मा के अंशों को पक्ष Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ७७१ ) -- - करता हुआ क्षपक श्रेणी चढ़कर वह मोक्ष को ही जाता मनुष्ययायु अथवा तिचायु इन दोगों में से किसी एक है और को बांधते हैं, परन्तु तेजस्कायिक और वायुकाायक जीव सकल संयम को उत्कृष्टपने से अर्थात् अधिक से तिर्यंचायु का ही बंध करते हैं । अधिक :२ बार ही धारण कर सकता है, पोछे मोक्ष को भोग भमिया चोव (मनष्य और तियच अपनी प्राय प्राप्त होता है । (देखो गो क० गा ६१६) के ६ महीने बाकी रहने पर देवायु का ही बंध करते हैं। विशेष---'मित्याहाराणुभय' यह गाथा सम्यक्त्व (देखो गो० क० मा० ६३६-६ ०) प्रकरण में प्रा गई है, मिथ्यात्व गुण स्थान में एक जीव २. सदय और सत्ता स्वरूप के काते हैं-नारकी, की अपेक्षा तीर्थकर प्रकृति १ और आहारकदिवा २ इन तिर्य च, ननुष्य देव इन जीवों के अपनी अपनी गति की दोनों सहित युगपत् सत्ता) स्थान नहीं है, तीर्थकर सहित या पाहारकद्विक सहित ही सत्ता होती है। परन्तु नाना एक गायु का तो उदय ही होता है । जीव की अपेक्षा दोनों का यहां सत्व पाया जाता है, परभव की प्रायु का भी बंध हो जाये तो उनके क्योंकि जिनके तीर्थकर और ग्राहारकाद्विक इन दोनों को। कताथकर भार ग्राहारकादिक इन दोनो क्रमो उदय रूप यायु राहिन दो पापु की एक बध्यमान और की सत्ता युगपयत् रहती है उसके ये मिथ्यात्व गुण स्थान एक भुज्यमान) सत्ता होती है और जो परभव को प्राय नहीं होता, सासादन गुण स्थान में नाना जीवों की अपेक्षा का गंध न हो तो एक ही उदयागत भुज्यमान गायु की से भी तीर्थंकर और पाहारकतिक सहित सस्व स्थान नहीं सत्ता रहती है, ऐसा नियम में जानना । देखो गो० क. नहीं है कारण जिस जीन में तीर्थकर या प्राहारकद्विक इनकी सत्ता हो तो उस जीब के मिथ्यात्व रहित अनंतानुबंधी का उदय नहीं होगा, मित्र गुण स्थान में तीर्थंकर ३.पायुबंध के पाठ प्रपत्रण विभाग प.ल-एक प्रकृति और आहारकाद्वक इन प्रकृलियों की सत्ता जीव के एक भव में चार प्रायु में से एक ही प्रायु बंध नहीं है। रूप होती है और सो भी वह योग्य काल में ग्राट बार ही बंधती है तथा वहां पर भी वह सब जगह पाय का ५६. आयुफर्म के संघ उचय सत्ता को कहते हैं ३रा भाग अवशिष्ठ रहने पर ही बंधती है, अर्थात भूजमान १. ग्रायु के बंध स्वरूप को कहते हैं-देव पोरनार- प्रायू' का तीसरा भाग अवशिष्ट रहने पर ही बंधती है को अपनी भुज्यमान श्रायु के अधिक से अधिक मदीने इसी तरह आगे भी तीसरा भाग शेष रहने पर पाठ बार मायुबंध हो सकता है । बोष रहने पर मनुष्यायु अथवा तिर्यंचायु का ही बंध करने हैं। सूचना-भुज्यमान प्रायु का तीसरा भाग बाका रहे तो बह काल पहली बार आयुर्वध के लिये योग्य होती है (अ) सातवी पृथ्वी के नार की तिर्यच आयु का ही ___ यदि उस समय आयुध न हो तो पागे के दूसरे विभाग बंघ करते हैं, कर्म भूमिया मनुष्य और तियंच अपनी में हो सकती है इसी तरह आयुर्वध के अपकर्षण काल भुज्यमाब प्रायु के तीसरे भाग के शेष रहने पर (अबसर) याला बार पा सकते हैं। (दखो गो० क० गाः चारों धायुप्रों में से योग्यतानुसार किसा भी एक को ६४२) बांधता है। ४. पूर्व कथित पाठ अपकर्षणों (विभागों में) पहली (प्रा एकेन्द्रिय और विकलत्रय जीव ऊपर के समान बार के बाद प्रागे के द्वितीयादि अपकर्षरण काल में जो Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहले बार में प्रायु अन्धी थी उस बध्यामान. प्रायु की दूसरा प्रबंध रूप भंग जानना। यहां उदय और सत्व स्थिति की वृद्धि वा. हानि अथवा अवस्थिति: (काम) केवल एक सु-मान प्रामु का ही रहता है। इस रह सकती है और गायु के बंध करने पर जीवों के प्रकार तीन भंग (बंघ उदय ., सत्व १) परिणामों के निमित्त से उदय प्राप्त (मुज्यमान) अस्यु जानना । का 'प्रवर्तन पात' (कली पात, घट जनाना ) भी होता है। उपरत बंत्र-प्रागा। आयु बंध जहाँ भूतकाल में इया हो और वर्नमा- काल में न हो रहा हो वहां भावार्थ. ग्राट पकर्षणों में सभी के अन्दर प्राय ... उपरतवन्ध तीसरा भंग होता है। यहां अपरतबन्ध , का बन्च हो ही। ऐसा नियम नहीं है। जहां पर अयु बन्ध के निमित्त मिलते हैं वहीं बन्ध होता है तथा जिस उदय भूज्यमान पायुः १ सत्व बध्यमान ग्रायु १ और अपकर्षण में जिस प्रायु का बन्ध हो जाता है उसके भुज्यमान प्रायु १ ये २ रहते हैं। इस प्रकार अनन्तर उसी भायु का बन्ध होता है, परन्तु परिणामों तीन भंग (उपरत बंध ०, उदय १, सत्व २) जानना । के अनुसार उसकी (बध्यमान घायु की स्थिति कम जादे (देखो गो० क० गा० ६.४) या अवस्थित हो सकती है तथा उसक, उदय प्राने पर अर्थात् भुज्यमान अवस्था में उसका कदली गत भी हो ६०. पात्रब के मूल मेद चार है मिथ्यात्व, अविरति, सकता है। (देखो गोल कर गा०६४३) कषाय, योग, इन चार के उत्तर भेद ऋम से ५, १२, सूचना-जसे १६वें स्वर्ग में किसी को २२ सागर २५ और १५ ये सब मिलकर ५ : होते हैं। स्थिति का प्रायुबंध हग्रा हो और उसके दूसरे अपकर्षण प्रास्त्रष-निसके द्वारा कामणि वर्गणारूप पुदगल एकंध काल में परिणामों की विशुद्धि कम होने से १. स्वर्ग की १८ सागर से कुछ अधिक स्थिति रह सकती है। कमपन को प्राप्त हो उसका नाम प्रास्रव है। वह मात्मा के मिथ्यात्व दि परिणाम रूप हैं, उनमें से५. प्रायु कर्म के भंग का स्वरूप-इस प्रकार बंध । होने पर घबना बंध नहीं होने पर घ उपरत बंध अवस्था (१) मिव्यास-एकांत, विनय, संशय, विपरीत, ने एक जीत्र के एक पर्याय में एक एक के प्रति तीन तीन प्रज्ञान ऐसे ५ प्रकार का है। भंग नियम से होते हैं। (२) प्रविरति-पांच इन्द्रिय तथा दृष्ट्वामन इनको बंध - वर्तमान कान में परभय की प्रायुबंध हो रहा । वशीभूत नहीं करने से छ: भेद रूप और पृथ्वीकायादि हो वहां पहला बंध रूप अंग जानना । वहां बंध आगामी पांच स्थावर काय तथा एक असकाय इनकी दया न करने न आयु का १, उदय भुज्यमान यायु का १, और से छः भेद रूप इस प्रकार १२ प्रकार का है। सत्त्व 'सुज्यमान आयु का १, व बध्यमान प्रायू का १ इस प्रकार तीन भंग ( बंध १, उदय १, सत्त्व २) (:)कषाय-अनन्तानुवन्धी कोष-मान-माया-लोभ ४ होते हैं। अप्रत्यास्य न कपाय ४, प्रत्याख्यान कषाय ४, मज्वलन कषाय ४ये १६ कषाय तथा हास्य-रति, प्रगति-शोक, प्रर्वषग मी आयु का बंध जहाँ भूतकाल में भी भय-जुगुप्मा, नमक, स्त्री, पुरुष वेद ये नव नोकषांप बंध दृया हो और वर्तमान काल में न हो रहा हो वहां इस तरह पल मिलकर २५ प्रकार का है। Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) योग-मनोयोग सत्य-असत्य-उभये अनुभम ये पाहारक मित्रकाययोग और कार्माण कापयोग ये ७) ४, इसी तरह वचनयोग ४ और काययोग ७ (चौदारिक इस तरह १५ प्रकार का है। .काययोग, मौदारिक. मिश्र काययोग, बैंक्रियिक फाय- इस प्रकार सब मिलकर मानव के ५+१२+२५ योग, वैक्रियिक मिश्रकाययोग, प्राहारक काययोग, +१५= ५७ भेद होते हैं। । देखो गो. क. गा. (१ मूल प्रास्त्रबों को गुण स्थानों में बताते हैं। .. . . . ( देखो गो० क. गा०३७-७-७८८ और को ने. २१७) मानव गुरणस्थान विशेष विवरण संख्या १ मिथ्यात्व मिथ्यात्व, अविरति, कषाय, योग ये ४ ग्राम्रब जानना । २ सासादन अविरति, कषाय, योग ये ३ जानना। ३ मिथ ४ असंयत.. ५ देश संमत । अविरति, कषाय, यो, 'यहां संयतासंयत मिश्रभाव रहता है । ६ प्रमत्त : . कषाय और योग ये २ जानना । ७ ..अप्रमत्त ८ अपूर्वकरण है अनिवृत्तिकरण १० मूक्ष्म सांप सय ११ उपशांत मोह ११ क्षीण मोह . १ योग जानना। १३ सयोग केबली १४ प्रयोग केवली Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७४ ) (२) गुल स्थानों में ५७ उत्तर भाव के अनुदय, उदर, व्युच्छित्ति दिलाते हैं। इसमें केदानवण कृत सात गाथा भी प्राये हैं (देखो गो० क० गा० ७८१-७६० और को० नं० २१८ ) गुण स्थान १ मिध्यात्व २ सासदान ३ मित्र श्रसंयत ५ देशसंयत ६ प्रमत्त ७ अप्रमत्त पूर्वकरण निवृतिकरण भाग १ धनुषध सख्या १४ २० ३३ २५ ३५ २ r ४१ उदयगत श्रनुदयगत प्रासवों का नाम श्रात्रव संख्या श्राहारक काययोग १, आहारक मिचकाययोग |ये २ २+५ मिथ्यात्व ने ७ जानना ११ + ३ ( श्रौ० मिश्रकाययोग १. ६०मिश्र० १ काम काययोग १) ये १४ जानना योग ) ११ के ७+४=११ जानना ११ २० जानना २०+ १५०३५-२ (प्राहारक) ३३ जानना ३३+२ (धाहारक) ३५ ३५ ऊपर के समान जानना १५+६-४१ जना 보복 ५० ४३ ३७ २२ १६ I आसव व्युच्छि० संख्या i १५ ܐ ५ 1 व्युच्हिति प्राप्त आसव का नाम मिथ्यात्व ५ जानना अनन्तानुवन्धी कषाय ४ अप्रत्यख्यान कषाय ४, वैदिक काययोग १. चं० मिश्र० १, योग १. पौ० मिश्र० १. १. ये ६ जानना प्रत्याख्यान कषाम ४, अविरति ११ मे १५ श्राहारक काययोग १, आहारक मिश्र० १. ये २ हास्यादि नोकषाय ६ नपुंसक वेद १ Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फाग २ भाग ३ भाग ४ भाग ५ भाग ६ भाग ७ १० सूक्ष्म स O ११ उपशांत मोह १२ क्षीण मोह १३ सयोग के० १४ प्रयोग के ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७ ४७ ४८ ४८ ५० ५७ ( ७७५) ४१+१-४२ ४२+१=४३ " ४१+१=४ ४४+१-४५ ४५+१-४६ ४६+१४७ यहां स्थूल लोभ जानना) ४७+१=४६ " ४७-१०४८ " ४६+१= ४७ ( यहां सूक्ष्म लो जानना) सर्व श्रात्रव जानन 11 ४६ ४५२-२ (प्रो० माग १, कार्माण काययोग २) --५० जानना १५ ×૪ १३ १२ ११ १० १० ६ פי १ १ १ १ १ स्त्रीवेद १ पुरुष वेद १ संज्वलन कोष १ संज्वलन मान १ संज्वलन माया १ संण्वलन लोभ १ (यहां सूक्ष्म को जानना) असत्य मनोयोग १, उभय मनोयोग १. सत्य वचनयोग १. उभय वचनयोग १, ये ४ जानना ऊपर के योग ४ + ३ (श्री० काययोग १, to मिश्र काययोग १. कामरण काययोग १ ये २७ Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३) प्रासव के उदय कार्यभूत जीय के परिणामों में ज्ञानावरणादि कर्मबंध का कारणपना प्रथांत पाठ कर्मों की मानवों के विशेष भाव बतलाते हैं । ( देखो गो० के० गा० १०० से १०) मूल कर्म प्रचलियां मानवों के विशेष भागव १ प्रत्यनको से पर्याद शास्त्र या शास्त्र के जानने वाले पुरुषों में । १ ज्ञानावरण २ दर्शनावरण अविनयं रूप प्रवृति करने से, २. अन्तराय -ज्ञान में विच्छेद करने से, ३ उपधात प्रशस्त ज्ञान में देष रखने रूप उपबात से,.४ प्रदोष = तत्वज्ञान में हर्ष नहीं मानने रुप प्रवष से, ५ निन्हव - जिनसे अपने को ज्ञान प्राप्त हुपा है उनको छिपाकर अन्य को गुरु कहना रूप निन्हब से, .६.प्रासादना=किसी के प्रशंसा योग्य उपदेश की तारीफ न करमे रूप प्रासादना से स्थिति और अनुभाग बंध की बहुलता के साथं ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण इन दो कमों को बांधता है ये ६ कारण ज्ञान के विषय में हो तो ज्ञानावरण के बंध के कारण और जी दर्शन के विषय में हो तो दर्शनावरण के बंध के कारण होते हैं, ऐसा जानना। ३ वेदनीय कर्म .. ( साता प्रसाता.) १ भूतानुकम्पा सब प्राणियों पर दया करना, २. व्रत-अहिंसादि वत पालन करने रूप, ३. योग=शुभ परिणाम में एकाग्रता रखने रूप, ४. क्षमाभाव=ोध के त्याग रूप क्षमा, ५. दान-माहारादि चार प्रकार का दान, ६.पंच परमेष्टि की भक्ति कर जो सहित हो ऐसा जीच बहुधा करके प्रचुर अनुभाग के साथ सातावेदनीय को बांधता है, इससे विपरीत अदया भाविकाधारक जीव तीव्र स्थिति अनुभाग सहित असाता वेदभीय कर्म का बंध करता है। ४ मोहनीय (१) बर्शन मोहनीय मरहत, सिद्ध चैत्य (प्रतिमा), तपश्चरण, निर्दोष शास्त्र, नियगुरु, वीतराग प्रणित धर्म और मुनि प्रादि का समूह रूप संघ-इनसे जो बीय प्रतिकूल हो अर्थाद इनके स्वरूप से विपरीतता का ग्रहण करे वह दर्शन मोह को बांधता है। . (२) चारित्र मोहनीय जो जीव तीन कषाय और हास्यादि नोकषाय सहित हो, बहुत मोह रूप परिणमता हो, राग पोर द्वेष में प्रत्यंतलीन हो तथा चारित्र गुण के नाम करने का जिसका स्वभाव हो ऐसा जीव कषाय और नोकषाय दो प्रकार के चारित्र मोहनीय कर्म को बांधता है। Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७७ ) ५ आयु-नरकायु जो जीव मिथ्यादृष्टि हो, बहुत प्रारम्भी हो, शील रहित भाव हो, तीन लोभी हो, रौद्र परिणामी हो, पाप कार्य करने की बुद्धि सहित हो, वह जीय नरकायु को बांधता है। (1) तियंचायु जीपिक उत्श करने वाला हो, भले मार्ग का नाशक हो, गुढ़ प्रर्थात दूसरे कोन मालूम होवे ऐसा जिनके हृदय का परिण म हो, मायाचारी हो, मूर्खता सहित जिसका स्वभाव हो, मिथ्यामापा-निदान सल्यों कर सहित हो, वह जीव तिर्यल प्रायु को बांधता (२) मनुष्यायु जो जीव स्वभाव से ही मंदक कषाय वाला हो, दान में प्रीतियुक्त हो, शील संयम कर रहित हो, मध्यम गुणों कर सहित हो अर्थात जिनमें न तो उत्कृष्ट गुण. हो न दोष हों, वह जीव मनुष्य आयु को बांचता है। (४) देवायु जो जीव सम्यग्दृष्टि है वह केवल सम्यक्त्व से वासाक्षात् अणुव्रत, महाव्रतों से देवायु को बांधता है तथा जो मिथ्या दृष्टि है वह बालतप पर्याव अज्ञान रूप वाले तपश्चरण से वा प्रकामनिजरा से (संतोषपूर्वक पीड़ा सहन करना) देवायु को बांधता है। ६ नामकर्म ( शुभाशुभ) जो जीव मन-वचन-काय से कुटिल हो प्रर्था सरल न हो, कपट करने वाला हो, अपनी प्रशंसा चाहने वाला नथा करने वाला हो अथवा ऋद्धि गारव प्रादि से युक्त हो, वह नरक प्रादि अशुभ नामकर्म को बांधता है और इससे विपरीत स्वभाव वाला हो अर्थात सरलयोग वाला निष्कपट प्रशंसा न चाहने वाला हो वह शुभ नामकर्म का बन्ध करता है। ७ गोत्रकर्म (उच्च-नीच) जो जीव प्रतादि पांच परमेष्टियों में भक्तिवंत हो, वीतराग कथित शास्त्र में प्रीति रखता हो, पढ़ना विचार करना इत्यादि गुणों का दर्शक हो, वह जीव उच्चगोत्र को बन्ध करता है और इनमे विपरीत चलने वाला नीचगोत्र को बांधता है। Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७७८ ) ८ अन्तराम कर्म जो जीव अपने वा परके प्राणों की हिंसा करने में लीन हो और जिनेश्वर की पूजा या लत्रय की प्राप्ति रूप मोक्ष मार्ग में विघ्न डाले वह अन्तराय कर्म का उपार्जन करता है जिसके कि उदय से बह वांछित वस्तु को नहीं पा सकता। ६१. भाव का लक्षण- (जीष के प्रसाधारण गुण का लक्षण) अपने प्रतिपक्षी फर्मों के उपशमादिक के होने हुए उत्पन्न हुये ऐसे जिन प्रौपशमिकादि भावों कर जीव पहचाने जावें भाव 'गुण' ऐसी संज्ञा रूप मवंदशियों ने कहे है। पंखो गो - II. १२) (१) भावों के नाम भेर सहित कहते है-वे मूलभाव भोपशामक, क्षायिक, मिथ, प्रोपिक. परिणामिक. इस तरह पांच ,प्रकार है और उनके उत्तर भाव क्रम' से २, ६, १८, २१, ३, इस तरह ५३ भाव जानने पाहिए । ( देखो गो० क. गा० ८१३) (२) इन भावों की उत्पत्ति का स्वरूप कहते हैं१. पीपमिक भाव-प्रतिपक्षी कौ के सपशन होने से होता है । २. भाषिक भाव-प्रतिपक्षी कर्म के पूर्णक्षय होने से होता है। ३. मिश्र भाष भोपशम माव)-उन प्रतिपक्षी कमों का उदय भी हो परन्तु जीव का गुण भी प्रगट रहे वहां मिश्र रूप क्षायोपथमिक भाव होता है। ४. प्रोवधिक भाव-कर्म के उदय से उत्पन्न दृपा संसारी जीव का गुण जहां हो वह मोदयिक भाव है। ५. पारिणामिक भाव-उपशम, क्षय, क्षयोपशम पोर उदय कारणों के बिना जीव का जो स्वाभाविक भाव है वह परिणामिक भाव है । (देखो गो० क० गा० ८१४-८१५) Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) इन भावों के सेवरूप उशर भावों को कहते हैं : : ( देखो गो० क० ना० १६ से ८६ और को० नं० २३२ ) मूलभा १. प्रोपशमिक २. क्षायिक ३. मिश्र या क्षयोपशमिक ४. प्रौदयिक ५. पारिणामिक उत्तर भेव संख्या २ ६ १५ ( 16192) २१ उत्तर भेदों के नाम उपवास सम्यक्त्व १, उपशम चारित्र १ ये २ जानना । कि ज्ञान १ क्षायिक दान १ क्षायिक वीर्य १, ये क्षायिक दर्शन १, क्षायिक सम्यस्य १, क्षायिक लाभ १, क्षायिक भोग १, जानना । क्षायिक चारित्र १, क्षायिक उपभोग १, कुमति ज्ञान, कुत ज्ञान, कुपवधि ज्ञान मे ३ कुज्ञान (ज्ञान) | मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, प्रवधि ज्ञान मनः पर्यय ज्ञान, ज्ञान प्रदर्शन, दर्शन, भवधि दर्शन, दर्शन, दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य मे ५ क्षयोपशम लब्धि, क्षत्रोपयाम (वेदक ) सम्यक्त्व १, सराग चारित्र १, संयम १, ये सब १८ भाव जानना | नरक, सिच, मनुष्य, देव ये ४ गति, नपुंसक, स्त्री पुरुष, ये द ( लिंग ), कोष, मान, माया, लोभ, ये ४ कषाय, मिथ्यास्य ९, कृष्ण, नील, कापोस पीत्र, पद्म, शुक्ल ये ६ लेश्या, भसंयम १ अज्ञान १, प्रसिद्धत्व १, ये २१ भाव जानना 1 भव्यत्व १, प्रभव्यत्व १ जीवस्व १ ये ३ जानना । इस प्रकार मूलभाव ५ और उत्तर भेदरूप भाव ५३ जानता । बताते हैं (४) रंगों की अपेक्षा से भावों के मे गुणस्थानों में और मागंणा स्थानों में स्थापना करके प्रभावों के अन संचार (भेदों के बोलने के विधान) के समान अर्थात् भावों की उलटापलट करने से यहाँ पर भी १ प्रत्येक मंग, १ विश्व परसंयोगी भंग प्रौर १ स्थसंयोगी भी भंग समझने चाहियें। संभवते मूलभाष मौर उत्तर भावों को १. प्रत्येक भंग – अलग एलग भावों को प्रत्येक भंग कहते हैं मौर जिनमें संयोग पाया जाय उनको संयोगी भंग कहते हैं। संयोगी भंग दो प्रकार के हैं- परसंयोगी और स्वसंयोगी । २. स्वसंयोगी भंग - जहां पपने ही एक उत्तर भेद का दूसरे उत्तर भेद के साथ संयोग दिलाया जाय उसको स्वसंयोगी भंग कहते हैं। जैसे एक श्रमिक के भेद का दूसरे श्रपशमिक के ही भेद के साथ. प्रथवा एक भोयिक भेद के साथ दूसरे मौदधिक भेद का ही संयोग कहना । ३. परसंयोगी भंग - जहां दूसरे उत्तर भेद के साथ संयोग दिखाया जाय उसको परसंयोगी मंग कहते हैं । जैसे प्रोपशमिक के एक भेद के साथ मौदयिक के एक भेद का संयोग दिखाना, मथवर एक प्रौदयिक भेद के साथ दूसरे क्षामिक भेद का संयोग दिखाना । इत्यादि (देखो गो० क० गा० ८२० ) Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) गुरग-स्थानों में मूलभावों की संख्या और स्वपर के संयोग रूप भावों की संख्या को विखलाते हैं। (देखो गो० क. गाः ५२१ को नं०२३३) गुस्स-स्थान ना ल पावों के नाम और संख्या मूल भावों। वो संख्या | प्रौपशमिक क्षायिक | मिश्र औदायिक पारिणामिक (क्षयोपश) १. मिथ्यात्व २. सासादन ३. मित्र ४. असंयत - ५. देवासंयत - ६. प्रमत्त - - ७. अप्रमत्त - ८. अपूर्व क. उप० । ६. अनिवृ० ॥ १०. सूक्ष्म सा० , ११. उपशात मो०, ८. अपूर्व क० क्ष श्रे ____६. अनिव १. सूक्ष्म सांs , १२. क्षीण मोह १३. सयोग केवलो १४. अयोग केवली सिद्ध गति मैं Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८१ ) (६) गुरण स्थानों में ५३ उत्तर भावों के मेव सामान्यपने से कहते हैं ( देखो गो० क. गा० ८२२ को० नं० २३४) गुण स्पान | औपशमिक क्षायिक भाव मिश्र भाव माव२ में से 6 में से । १८ में से प्रौदयिक भव २१ में से पारिवामिक | भाव ३ में से । भावों की संख्या १. मिथ्यात्व २१ =सब । ३= सब १०- कुशान ३, दर्शन २, लब्धि २. सासादन ३२ २०-मिथ्यात्व २= भव्यत्व, वरकर जीवस्व ये ३.मिथ २०- , ११-शानं ३, दर्शन ३, लब्धि २ ॥ ४. असंयत २०- , | २= , ३६ १ उपशम | १ क्षायिक १२= सम्यक्त्व सन्दक्व | ऊपर के ११ में वेदक सम्यक्त्व १ जोड़कर १२ ५. देशसंयत ।१- १= ३१ १३=ऊपर के | १४ - म० ति० | २- १२+१ देशसंयत गति २, कषाय जोड़कर १३ ४. जानमा वेद ३, शुभलेश्या, प्रज्ञान ११ प्रसिद्धत्व १ ये १४ जानना ६. प्रमत्त ॥ । १४-ज्ञान ३, १३= ऊपर के दर्शन ३, लन्धि १४-१ तियंच | गति घटाकर वेदक सं०१, जानना मनः ५० ज्ञान १, सराग चारि.१ . ७, अप्रमत्त १४= ॥ १३ , २= ३१ Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५८२ ८. अपूर्वकरण | २- सक २= 1 २-क्षा० । १२-ऊपर के । ११=ऊपर के स० १, १४-२ (बेदक १३.२(पीत. क्षा जानित : राग ११ १. चारि०१)-१२ । ६. अनिवृत्तिः | २- ,, | २- , | १०. सूक्ष्म सां० | २%3D , २= ॥ १२ ॥ २ . ५-०मति १, सूक्ष्म लोभ १, शुभ लेश्या १, प्रज्ञान १ प्रसिद्धत्व १ " ११ उपशांत मो० | २= ,, | १ क्षायिक | १२ सम्यक्त्व २- , २१ ४- ऊपर के ५-१ लोभ घटाकर-४ १२. क्षोण मो० २क्षा० स०, १२शा. चारि० १३ संयोग के० । ६-सब ३=मनुष्य गति १,२० शुक्ल लेश्या १ प्रसिद्धव १ १४. प्रयोग के. २=मनुष्य गति । २ १ प्रसिद्धत्व १ सिद्ध गति में रक्षा० ज्ञान, क्षा दर्शन, क्षा सम्यवरक क्षा०वीर्य, मूचना:-कोई प्राचार्य क्षामिक भाव + १ जीवत्व ऐसे १० भाव मानते हैं । Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२. सर्व एक ना हो प्रहख जिनमें पाया जाता है ऐसे जो एकांत मत है ३३ मेवों को कहते हैं(१) कियावादियों के १८० (२) मावियों के ४ (३ अज्ञानवादियों ६७ ( ४ ) बैन पिकवादियों के ३२ । इस प्रकार सब मिलकर २६३ जानना, (देखो भेद गो० क० गा० ८७६) | ( ७८३ { (१यों के मूल कहते हैं १ ले 'अस्ति' X ४ 'श्रापसे', 'परमं', नित्यपने से', अनित्यपने X- जीव, पीव, पुण्य, पाप, श्रासव संवर, निर्जरा, बन्ध मोक्ष ३६४५ काल, ईश्वर आत्मा नियति स्वभाव १०० (२) १ अस्ति, ४ आपसे, परसे, नित्यपनेकर, निरमपनेकर, इन पांचों का तथा मरपदार्थ इन कुल १४ का अर्थ -- . है | २. जीवादि नये पदार्थ नित्यनेकर 'अस्ति' है ४. जीवादि नव पदार्थ नित्यपनेकर 'पति' है। 1 १. जीवादि नव पदार्थ द्रव्य, क्षेत्र, काल, भवरूप स्थचतुष्टयसे 'पाप' (स्वतः) 'प्ररित' है। - है ऊपर जो (वाया ९७८ देखी ) एकांतमत के ३६ भेद दिखलाया है। उनको काल, ईश्वर, मात्मा नियति और २. जीवादि न पदार्थ परचतुष्टय से परत:' ( परसे) स्वभाव इन पांचों को लगाकर गणना करने से क्रियावाद के १६x४-१० वेद होते हैं। (देखो गो० क० ग्रा० ८७६ से ८६३) । (=) सक्रियावाद =& ક્ (३) कालवाद - काल ही सब को उत्पन्न करता है। और काल ही सबका नाश करता है, सोते हुए प्राणियों में काल ही जागता है. ऐसे काल के अंचना (उगने को) कने को कौन समर्थ हो सकता है ? अर्थात् कोई नहीं । इस प्रकार काल से ही सबको मानना यह कालवाद का धर्म है (४) वादात्म ज्ञानरहित है. प्रनाथ है प्रर्थात् कुछ भी नहीं कर सकता। उस मात्मा का सुखदु:ख, स्वयं तथा नरव में गमन वगैरह सब ईश्वरकर किया हुआ होता है ऐ ईश्वरका किया सब कार्य मानना ईश्वरवाद का अर्थ है । (५) श्रात्मवाद - ससार में एक ही महान् श्रात्मा है वही पुरुष है, यही देव है मोर वह सपने व्यापक है। सर्वा गमने से भगम्य (छुपा हुआ है, चेतना सहित है. निर्गुण है और उत्कृष्ट है । इा तरह आत्मस्वरूप से ही सबको मानना श्रात्मवाद का श्रयं है । (६)) नियतिवाद जो जिस समय जिससे जैसे जिसके नियम से होता है वह उस समय तसे तेसे उसके ही होता है। ऐसा नियम से ही सब वस्तु को मानना उसे । नितिवाद कहते है । (७, स्वभाववाद कांटे कं मादि लेकर जो ती (चुभने वाली वस्तु है उनके लोकापना कौन करता है। मौर मृग तथा पक्षी मादियों के बने तरह पता जो पाया जाता है उसे कौन करता है ? ऐसा प्रश्न करने पर यही उत्तर मिलता है कि सब में स्वभाव ही है। ऐसे सबको कारण के बिना स्वभाव से ही मानना स्वभाववाद का अर्थ है । ८४ मेव निम्न प्रकार जाननापरसे २४७ जीव, भजी, १ नास्ति x २ आापसे, आस्रव संवर, निर्जरा, बन्ध, मोक्ष = १४५ काल, ईश्वर, धारमा नियति ७० । मापसे (स्वत:) जीव काल से नहीं। परसे जीव काल से नहीं। इस प्रकार जीव-मजीव वादिक ७ पदार्थ मापसे, परले इसलिये नास्ति ४२ काल के अपेक्षा से नहीं है धापसे, परसे- २४७ पदार्थ - १ 23 " " १४ काल की अपेक्षा नहीं है १४से नहीं है = १४ श्रात्मा की " = १४ नियति को १४ ७० भेद जानना । " # Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १नास्ति४७ जीव, मानव, संवर, निर्जरा.बन्ध मोक्ष न जानना । जैसे कि 'जीव' अस्तिहप है ऐसा कौन । -७४२ मियति, काल-१४ ये भेद नास्तिकपने में जानता है। तथा नास्ति अथवा दोनों, वा बाकी तीन भंग जानना । पहले के ७० भौर मे १४ सब मिलकर अश्यिा - मिली हुई इस तरह ७ भंगों से कौन जीव को जानता है। वादियों के ८४ भेद होते हैं। (देखो गो० के० गा इस प्रकार नव पदार्थों का ७ भंग से (अस्ति. नास्ति. १८४-८८५) अस्ति-नास्ति, प्रवक्तव्य, अस्तिप्रवक्तव्य नास्ति प्रवक्तव्य अस्ति नास्ति श्रवक्तव्य, ये ७ गुण करने पर ७XE -६३ (६) प्रशानबाद के ६७ भेद बताते हैं जीवादि नव पदार्थों में से एक एक का सप्त भंग से भेद होते हैं(१) जीवादि नवपदार्थ अस्तिरूप है ऐसा कौन जानता है ? =& (२) , " नास्तिरूप है मस्ति नास्ति रूप है प्रवक्तव्य रूप है अम्ति प्रवक्तव्य है नास्ति प्रवक्तव्य है अस्ति नास्ति प्रवक्तव्य है (३) १. शुद्ध पदार्थ X४ अस्ति, नास्ति, मस्ति नास्ति, प्रवक्तव्य=४ {१) शुद्ध पदार्थ अस्ति रूप है ऐसे कौन जानता है ? (२) नास्ति रूप है अस्ति नास्ति रूप है अवक्तव्य रूप है इस प्रकार पूर्वाक्त ६३ और ये ४ सब मिलकर अन्य भी कुछ एकांसवाबों को कहते हैं। प्रज्ञानवाद के ६७ मेद जानता। (देखो गो० क. मा० पौषवाद-जो पालस्यकर सहित हो तथा उद्यम ८८६-८८७)। करने में उत्साह रहित हो। वह कुछ भी फल नहीं भोग सकता। जैसे स्तनों का दूध पीना बिना पुरुषार्थ के कभी (१०) वैयिवार के ३२ मे कहते है नहीं बन सकता। इसी प्रकार पुरुषार्थ से ही सब कार्य देव, राजा, ज्ञानी, यति, बृद्ध, बालक, माता, पिता । की सिद्धि होती है। ऐसा मानमा पौरुषवाद है। (देखो इन पाठों का मन, वचन, काय पोर दान इन चारों से , गोक० गा० ८६०)। विनय करना इस प्रकार वैनयिकवाद के 4X४-३२ (२) देवनार-मैं केवल देव (भाग्य को ही उत्तम भेद होते हैं। ये विनयवादी गण, अवगुण की परीक्षा मानता है। निरक पुरुषार्थ को धिक्कार हो। देखो कि किये बिना विनय से ही सिद्धि मानते हैं। (देखो गो. किले के समान ऊंचा जो वह करणं नामा राजा सो युद्ध क. गा० ८५८)। में मारा गया 1 ऐसा देववाद है। देव से ही सर्वसिद्धि इस प्रकार स्वच्छंद अर्थात अपने मनमाना है। मानी है। देखो गोः क. गा० ८६१)। श्रद्धान जिनका ऐसे पुरुषों के ये ३६३ भेद रूप पाखण्ड (३)संयोगवाद-यथार्थ ज्ञानी संयोग से ही कार्य कल्पना की है। सिद्धि मानते हैं। क्योंकि जैसे एक पहिये से रथ चल नहीं Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७१५ । सकता, तथा जैसे एक ग्रंधा दूसरा पागला ये दोनों बन में वरण का काल अंतर्मुहुर्त है, उस काल में संभवते प्रविष्ट हुए थे सो किसी समय प्राग लग जाने से दोनों विशुद्धता (मन्दता) रूप कषायों के परिणाम मसंख्यातमि कर प्रर्यात मंत्र के कन्धे पर पांगला बैठकर अपने लोक प्रमाण हैं और वे परिणाम पहले समय से लेकर नगर में पहुंच गये। इस प्रकार संयोगवाद है। (दे प्रागे-मागे के समयों में समान वृद्धि (चय) कर बढ़ते हये गो क० मा० ८१२) । दियो गो.न. --.गोर नीमकांड गा. ४-४६) वह सातिशय प्रमस संयमी समय समय (४) लोकवाक-एक ही बार उठी हुई लोक-प्रसिद्ध बात प्रति अनंत गुणी प्रमाणों की विशुद्धता से बढ़ता हुआ देवों से भी मिलकर दूर नहीं हो सकती तो भन्या की बात अंतमहतं काल तक प्रवृत्त करण को करता है, पुनः क्या है, जैसे कि द्रौपदी कर केवल अर्जुन पांडव के ही उसको समाप्त करके अपूर्वकरण को प्राप्त होता है। गले में डाली हुई माला की पांचों पांडवों को पहनाई है ऐसी प्रसिद्धि हो गई इस प्रकार लोकवादी, नोकप्रवृत्ति (३) अपूर्वकरग का स्वरूप कहते हैं - को हो सर्वस्व मानते हैं। (देखो गो. क. गा० ६६३) प्रपूर्वकरण का काल अंतर्मुहूर्त मात्र है उसमें ह . एक सारश-जो कुछ वचन बोला जाता है वह किसी समय में समानपय वृद्धि) से बढ़ते हुए प्रसख्यात लोक अपेक्षा को लिये हय ही होता है उस जगह जो अपेक्षा है प्रमाण परिगाम पाये जाते हैं, लेकिन यहां अनुकृष्टि वही 'जय' है और जिना अपेक्षा के बोलना अथवा एक नियम से नहीं होती, पयोंकि यहां प्रति समय में ही अपेक्षा से अनंत धर्म वाली वस्तु को सिद्ध करना यही परिणामों में अपूर्वता होने से नीचे के समय के परिणामों परमतो में मिध्यापना है। से ऊपर के समय के परिणामों में समानता नहीं पामी जासी। देवो गोक. गा० ११. और जीव कांड ६:. त्रिकरणों का स्परुप कहते हैं (१) अनंतानुबंधी कषाय की चौकड़ी के बिना शेष (६) वृित्तिकरण का रूप कहते है२१ चारित्र मोहनीय की प्रकृतियों के क्षय करने के लिये जो जीव अनिवृत्ति करण काल के विवक्षित एक अथवा उ शम करने के निमित्त प्रधः प्रवृत्त करण, अपूर्व समय में जैसे शरीर के प्राकार बगैरह से भेद रूप हो करण, अनिवृत्तिकरण ये करण कहे गये हैं, उनमें से जाते हैं उस प्रकार परिणामों से प्रधः करणादि की तरह पहले प्रधः प्रवृत्तकरण को सातिशय मनमत्त मुख स्थान वाला प्रारम्भ करता है, यहां 'करण' नाम परिणाम का भेद रूप नहीं होते और इस करण में इनके समय-समय है । (देवो गो० क. मा० ८६७ और जीव फांड गोः प्रति एक स्वरूप एक ही परिणाम होता है, ये जीव मुख स्थानाधिकार गाधा ४७) अतिशयनिर्मल ध्यान रूपी अग्नि से जलाये हैं कर्मरूपी (२) अधः प्रवराकरण का शवार्थ से सिद्ध लक्षण वन जिन्होंने ऐसे होते हुये भनिवृत्त करण परिणाम के कहते हैं चारक होते हैं, इस प्रनिपत्ति करण का काल भी मंतजिस कारण इस पहले करग में ऊपर के समय के मुंहूतं मात्र है । (देखो गो क० गा० ६११-६१२३ परिणाम नीचे के समय संबंधी भावों के समान होते हैं ६४. कर्म स्थिति की रचना का सद्भाव कहते हैंइस कारण पहले करण का 'प्रधः प्रवृत्त' ऐसा अन्वये सब कर्मों को स्थिति की रखना में छह राशियों को (अर्थ के अनुसार) नाम कहा गया है, उस अधः प्रवृत्त प्रावश्यकता रहती है। Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८६ ) १. द्रव्य--जो पहले प्रदेश बंधाधिकार में कहे हए ट्रेवों को पल्य के. प्रच्छेदों में घटाने से जो प्रमाण आवे समय प्रबर के प्रमाण बध प्राप्त कर्म पुद्गल समूह हैं। उतनी नाना गुण हानि राशि जाननी चाहिये । २. पिति प्रायात्र - उस समय प्रबच का जीव के ५. निषेकाहार अर्थात् को पुरण हानि-गुण हानि का साथ स्थित रहने का काल स्थिति अायाम है, वह स्थिति गुना प्रमाण निषेकहार होता है, उसका प्रयोजन यह है संख्यात पल्य प्रमाण है। कि निषेकाहार का भाग विवक्षित गुण हानि के पहले निषेक में देने से उस गुण हानि में विशेष (चम) का गुण हानि मायाम निषेकों में शलाकाओं का प्रमाण निकल पाता है। भाग देने से जो प्रमाण हो वह पुरण हानि भायाम का ६. अन्योन्याभ्यस्त राशि-मिथ्यात्वनामा कम में प्रमाण होता है गुण हानि का अर्थ कर्म परमारणों का प्राधा-आधा हिस्सा होना चाहिये। पल्य की वर्ग शलाका को प्रादि लेकर पल्य के प्रथम मूल पर्यत उन वगों का मापस में गुणाकार करने से भन्यो४. नाना गुण हानि--अन्योन्याभ्यस्त राशि की। न्याभ्यस्त राशि का प्रमाण होता है। इस प्रकार पल्य प्रर्धच्छेद राशियों को संकलित अर्थात जोडने से नाना की वर्ग शलाका का भाग पल्य में देने से मन्मोग्याभ्यस्त गुण हानि का प्रमाण होता है, इस प्रकार पल्य की राशि का प्रमाण होता है। वर्ग शलाका का भाग पल्य में देने से अन्योन्याभ्यस्त राशि इस तरह व्यादिकों का प्रमाण जानना (देखो गो० का प्रमाण होता है और पल्य की वर्गशलाका के अर्घ- कगा०६.२ से १२:) शान तोह प्रगुरुलघु चतुष्क-मगुरुलघु १, उपचास १, पर- तक उसका संक्रमण, उदीरणा, उदय या क्षय नहीं होता पात १, उच्छवास १ ये * अथवा अगुरु लघु १, उप- उस काल को प्रचलावली कहते हैं । (गा० १५६, ५१४ धात १, परमात १, उद्योत १, ये ४ जानना । (गो. क. देखो) गा. ४००-४०१ देखो) अषः प्रवृत्ति करणजिस कारण से इस पहले मगुरुलघुद्धि-मगुरुलधु, उपघात ये २ जानना । करण में ऊपर के समय के परिणाम नीचे के समय संबंधी अंगो-पांग दो पैर, दो हाथ, नितम्ब-कमर के पीछे भावों के समान होते हैं उस कारण से पहले करण का का भाग, पीठ, हृदय योर मस्तक ये पाठ शरीर में अंग। नाम 'प्रध: प्रवृति' ऐसे अन्वर्थ (मर्थ के अनुसार) नाम है और दूसरे सब नेत्र, कान वगैरह उपांग कहे जाते हैं। कहा गया है । (गा० ८६८ देखो) मोति कर्म-जीव के अनुजीवी गुणों का नाश प्रष: प्रवृत्ति संक्रमण बंघरूप हुई प्रकृतियों का नहीं करने वाले श्रायु, नाम, गोत्र और वेदनीय ये ४ अपने बंध में संभवती प्रकृत्तियों में परमाणुत्रों का जो कों को भवातिया कर्म कहते हैं । (गा० ६) प्रदेश संक्रमण होना वह अधः प्रवृत्ति संक्रमण है। . प्रबलावली कर्म बंध होने के बाद एक पावली (गा० ४१३ देखो) Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . ( ७८७ ) प्रर्षरछेर-२ इस मस्या को २ संख्या से जितने बार अन्तरमुबंषी कषाय-अनंत नाम संसार का है। गुणाकार करके जो विशिष्ट संख्या प्रावेगी उस संख्या परन्तु जो उसका कारण हो वह भी अनंत कहा जाता है, का उतन ही २ संख्या के प्रांकडद जानना जैसे सो यहां पर मिथ्यात परिणाम को अनन्त कहा गयाहै, ४ का अघच्छेद २x२-४) २ है। १६ का प्रर्धच्छेद क्योंकि वह अनंत संसार का कारण है, जो इस अनंत४ (२x२x२x२=१६) चार जानना (गा० ६२५. मिथ्यात्व के अनु-साथ साथ बंध उस कषाय को अनंतान१२६ देखो) बंधी कषाय कहते हैं, (मा० ४५ देखो) प्रया - काल विशेष जानना (गा० २०५ देखो) अपकर्ष कालमायु बंध होने के जो पाठ विभाग काल होते हैं वे अपरिवर्तमान परिणाम जो परिणाम प्रषिकरण =जिस स्थान में दूसरे (इतर) स्थान समय समय बढ़ते ही जावै अथवा घटते ही जावे ऐसे (प्राय) रहते हैं उसे अधिकरण कहते हैं। (गा० ६६० संक्लेश या विशुद्ध परिणाम अपरिवर्तमान कहे जाते हैं। देखो) 'मा० १०५। प्रधव बंध =जो भन्तर सहित बंध हो अर्थात जिस अपवर्तन घात - प्रायु कर्म के पाठ अपकर्षखों बंध का अंत पा जावे उसे अध्रुव बंध कहते हैं। (गा० (विभागों) में पहली बार के बिना द्वितीयादि बार में जो १०-१२३ देखो) पहले बार में प्रायु बंधी थी उसी की स्थिति की वृद्धि प्रमादि प्रहगल वध्य =जिस पूगल ट्रष्य को अभि. या हानि अथवा अवस्थिति होती है और मायु के बंध तक कभी भी कर्मत्व प्राप्त नहीं हुमा है अर्थात जिसको करने पर जीवों के परिणामों के निमित्त से उदयप्राप्त कभी भी जीवात्मा ने कर्म रूप ग्रहण नहीं किया है । उसे प्रायु का घट जाना उसको अपवर्तन धात (कदली घात) अनादि पुबगल द्रव्य कहते है। (गा० १०५ से १६० कहते हैं। गा० ६४३ देखो) देखो। ___ अप्रत्याख्यान कषाय== जो '' अर्थात् ईषत्-थोड़े से अनादि ष-अनादि काल से जिसके बंध का भी प्रत्याख्यान को न होने दे, अर्थात जिसके उदय से मभाव न हुभा हो। जीव धायक के व्रत भी धारण न कर सके उस क्रोध, अनुकृष्टिषय · अनुकृष्टि के गच्छू का भाग ऊर्वचय मान, माया, लोभ रूप चारित्र मोहनीय कर्म को अप्रत्यामें देने से जो प्रमाण हो वह जानना (गा० १०० से ६०७ ख्यानावरण कषाय कहते हैं । (गा . ४५ देखो) देखो) प्रस्पतर बंध पहले बहुत का बंध किया था पीछे अनुकृष्टिनीने और ऊपर के समयों में समानता थोड़ी प्रकृतियों के बंध करने पर अल्पतर बंध होता है। के खड होने को अनुष्टि कहते हैं। (गा० ६०५ देखो) (गा० ६६ देखो) मनुभागाध्यवसाय स्थान = जिस कषाय के परिणाम प्रवस्थित अंष-पहले और पीछे दोनों समयों में से कर्म बंधन में अनुभाग पड़ता है उस कषाय परिणाम समान (एकसा) बंध होने पर अवस्थित बंध होता है । को जानना (गा० २६० देखो) (गा० ४६६ देखो) भाग पंध= कर्मों के फल देने की शक्ति को प्रवक्तव्य बंध पहले मोहनीय कर्म का बंध न होते हीनता व अधिकता को अनुभाग बंध करते हैं। हये अगले समय में उसका बंध हो जाय तो उसे प्रवक्तव्य (गा० ८६ देलो) बंध कहते हैं । (गा० ४६६ देखो) अनेक क्षेत्र अनेक शरीर से रुकी हई सब लोक के विभाग प्रतिज्येष-जिसका दूसरा भाग न हो ऐसे क्षेत्र को अनेक क्षेत्र कहते हैं (गा० १५६ देखो) शक्ति के अंश को अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं। सो यह Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७८ ) पर उलटे क्रम से कहा है, इसका सीधा क्रम-अविभाग प्राहारकद्विक-याहारक शरीर १, माहारक मंगोप्रतिच्छेद का समूह वर्म, वर्ग का समूह वर्गणा, वर्गणा का पांग १ ये २ स्पर्द्धक, स्पर्द्धक का समुह भूरा हानि गृण हानि का समह गिनी मरण-अपने शरीर की टल प्राप ही समूह स्थान ऐसा जानना चाहिये (गा० २२६) अपने अंगों से करे, किसी दूसरे से रोगादि का उपचार न करावे, ऐसे विधान से जो सन्यास धारण कर मरे उस स मरण को गिनी मरण कहते हैं। (गा० ६१) गुणाकार करने से जो संख्या आवेगी वही जानना । असाप्तावेदन य कम-जो उदय में प्राकर जीव को उच्छिष्टावलो = उदय न होते हुये बचा हुमा प्रथम शारीरिक तथा मानसिक अनेक प्रकार के नरकादि गति स्थिति के निषेक । जन्य दुःखों का 'वेदयति भोग करावे अथवा 'वेद्यते उत्तर धन प्रवधन शब्द देखो। अनेन' जिसके द्वारा जीवन दानों को नोगे वह उदय .. अपने अनुभाग रुप स्वभाव का प्रकट होना असाता वेदनीय कर्म है । (गा० ३३ देखो) अथवा अपने कार्य करके कर्मपने को छोड़ देना मागम भाव कर्म जो जीव कर्म स्थरूप के कहने। (गा. ४३६ देखो) माले मागम का जानने वाला और वर्तमान समय में उसी सदय व्युमितिउदय की मर्यादा जहां पूर्ण होता दास्थ का चिन्तवन (विचार) रूप उपयोग सहिल हो है और मागे उदय नहीं होता उस अवस्था को उदयउस जीव का नाम भावागम कर्म अथवा पागग भाव व्युञ्छित्ति जानना। कर्म कहा जाता है (गा० ६५ देलो) उबयावधि=उदय ध्युच्छित्ति को ही उदयावधि भावेश - मार्गणा को प्रादेश कहते हैं। कहते है। (गा० ६६० देखो) उबीरणा-यागामी उदय में पाने वाले निषकों को प्राधेघ-अधिकरण में जो दूसरे स्थान रहते हैं उवे नियत समय के पहले उदयावली में लाकर फलानुभव प्राधेय कहते हैं। देकर खिर जाना अर्थात बिना समय के कर्म का पक्व प्राबाबा काल कार्माण शरीर नामा नाम कर्म के होना इसको उदीरणा कहते हैं। (गा० २८१, १२९ उदय से योग द्वारा पात्मा में कर्म स्वरूप से परिमता देखो) हया जो पुद्गल द्रव्य व जब तक उदय स्वरूप (फल लिन बंधा हुमा कर्म बंध को उकेल कर दूर देने स्वरूप) अश्या उदीरणा स्वरूप न हो तब तक के उस नाश) करना उजना है। काल को पाबाधाकाल कहते हैं । (गा० १५५ देस्रो) उलन संक्रमण - अध: प्रवृत्त मादि सीन करारूप मायाम स्थिति बंध में जो समय का प्रमाण है परिणामों के बिना ही कर्म प्रकृतियों के परमाणुओं का उसी को प्रामाम जानना । अन्य प्रकृतिरूप परिणमन होना वह उद्वेलन सक्रमण है। प्राय कर्म जो जीव को नरकादि शरीर में रोक (गा०४१३ देखी) रक्वे जसे प्रायु कर्म जानना अथवा विवक्षित गति में उपपाव योग स्थान= उत्पत्ति के पहले समय में जो कर्मोदय से प्राप्त शरीर में रोकने वाले और जीवन के योग स्थान रहता है, वहीं जानना । गा० २१६ देखो) कारण भूत प्राधार को आयु कहते हैं। उपयोग--बाह्य तथा अभ्यन्तर कारणों के द्वारा प्राहारक चतुष्क = याहारक शरीर १, आहारक होने वाली यात्मा के चेतन गुण की परिगाति को उपयोग अंगों पांग १, आहारक बंधन १, आहारक संघात १ ये कहते हैं । ४ जानना। उपशम योग्यकाल-सम्यक्त्व प्रकृति और सम्यग्मि Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { ७९ ध्यास्व प्रकृति इनकी स्थिलि पृथक्त्व सागर प्रमाण प्रस पछ=गुणहानि मायाम को गच्छ जानना। के शेष रहे और पल्य के असख्यातदे भाग कम एक सागर गुरग सक्रमण = जहां पर प्रति समय असंख्यात गुराग प्रमाण एकेन्द्रिय के शेष रह जावे वह 'वेदक योग्य काल' धेणी के क्रम से परमाण-प्रदेश अन्य प्रकृति रूप है और उससे भी सत्ता रूप स्थिति कम हो जाय तो बह ह. परिण में सो गुण संक्रमण है। र उपशम योग्य काल कहा जाता है। (गा. ६१५ देखो) गुरण स्थान-मोह और योग के निमित्त से होने एक क्षेत्र सूक्ष्म निगोदिया जीव की धनांगुल के पाली मात्मा के सम्यादर्शन, ज्ञान, चारित्रादि गुणों की असंख्यातवें भाम अवगाहना (जगह) को एक क्षेत्र सारतम्य रूप विकसित अवस्थानों को गुण स्थान जानना। एकान्तानुषधि योग स्थान एकान्त अर्थात् नियम गुण - अपने प्रतिपक्षी फर्मों के उपदामादिक के कर अपने समयों में समय समय प्रति असंख्यात गुणी होने पर उत्पन्न हये ऐसे जिन प्रोपशमिकादि. भावों कर अविभाग प्रतिच्तुदों की वृद्धि जिसमें हो वह एकान्तानबुद्धि जीव पहचाने जावे वे भाव 'गुण कहलाते हैं। . स्थान है 1 : गा० २२२ देखो। (गा. १२ देखो। प्रोध: गुण स्थान को प्रोच कहते हैं। गुण हानि मायाम =एक एक गुण हानि में जितने मोराल-मोदारिक पारीर को ओराल कहते हैं। समय या स्थान होंगे उन्हीं को गुणहानि प्रायाम प्रौदारितिक प्रौदारिफ शरीर १, औदारिक गुण्य-प्रत्येक गुणस्थान में प्रौदयिक भावों की जितनी होंगे उनको गुण्य कहते हैं । अंतःकोडामोडी-एक कोडी के ऊपर और कोष्ठाफोडी के भीतर । अंगोपांग १ये २ जानना । गोत्रकर्म-कूल की परिपाटी के क्रम से पला पाया कृतकृत्य वेदक =जो वेदक सम्यग्दृष्टि मनुष्य गति में जो जीव का माचरण उसकी गोत्र संज्ञा है अर्थात् क्षायिक सम्यक्त्व को प्रारम्भ करता है वह क्षायिक उसे गोत्र कहते हैं । (गा० १३ देखो) सम्यत्रत्व मनुष्य गति में ही पूर्ण होगा अथवा अगले गति ___घाति कर्म - जीच के अनुजीवी गुणों को धातते में भी होगा। (नष्ट करते हैं ऐसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, फुल=भिन्न भिन्न शरीरों की उत्पत्ति के कारण मन्तराय में ४ धाति कर्म हैं। गा०६) भूत नोकर्म वर्गणा के भेदों को कुल कहते हैं । घरमान योग स्थान - अपनी अपनी शरीर पर्याप्ति कवली घात-अपवर्तन घात शब्द देखो। के पूर्ण होने के समय से लेकर अपनी अपनी भायु के कोशकोडो- एक कोडि को एक कोडि से गूणाकार अन्त समय तक सम्पूर्ण समयों में परिणाम योगस्थान करने से जो संख्या आवेगो उसी को जानना । उत्कृष्ट भी होते हैं और जघन्य भी संभवते हैं और इसी तरह लम पर्याप्तक के भी अपनी स्थिति के सब कांडपा- समय समुदाय में संक्रमण होना । भेदों में दोनों परिणाम योगस्थान सभव हैं। ये घटते ( गा० ४१२ देखो) भी हैं और बढ़ते भी है और जैसे के तसे भी रहते हैं Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो ये सब परिणाम योगस्थान या घोटमान योग समझने, द्रव्य फर्म = ज्ञानाबरणादि रूप पुद्गल द्रव्य का पिट ( मा २२१ देखो) __ द्रव्य कर्म है । (गा ६ देखो) व्य लेश्याम वर्ण नाम कर्म के उदय से पारीर का बय- सामान्य अन्तर को चम कहते हैं। जो वर्ण होता है उसे द्रव्य लेश्या कहते हैं । धूलिका जो कहे हुये अथवा न कहे हुये बा (गा० १४६ देखो) विशेषता से न कहे हुये अर्थ का चितन करना उसे चूलिका द्विधरमप्रतिम के पिछले उपांत्य को द्विधरम कहते हैं । ( गा० ३९२ देखो) कहते हैं। के.गत प्रतर-जगत श्रेणी को जगत् श्रेणी से व क देवमति १, देवगत्यानपूयं १, वक्रियिक गुणाकार करने से जो संख्या पावेगी उसे जानना अथवा हारी..प्रियिक अंगोपांग १, ये ४ जानना । एक एक स्पर्धक में वर्गणाओं की संख्या उतनी ही प्रति देवतिक = देवगति १, देवगत्यानुपूश्य १ ये : जगत श्रेणी के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और एक एक जानना। वर्गला में असंख्यात जगत प्रतर प्रमाण वर्ग है । : वेष मनन्तानुबध्यादि क्रोष ४, मान ४, अरति(गा० २२५ देखो शोक २, भय-जुगुप्सा २, इनके जन्म से जो भाव होता है जगत् श्रेणी लोक की चौड़ाई ७ राजु है इस राजु उसे द्वेष कहते हैं । के रेषा को जगत् श्रेणी कहते हैं। धर्म कथा= प्रथमानुयोगादि शास्त्रों को धर्म कथा जोब समास-जिन सदृश धर्मों के द्वारा अनेक जीवों कहते हैं । ( मा० ८८ देखो ) का संग्रह किया जाय, उन्हें जीव समास कहते हैं। ध्रव ष-जिसका निरन्तर बंध हुमा करे उसको तिर्यक एकाबा = तियं भतिक २, एकेद्रिादि जाति जानना । ४, प्रातप १, उद्योत १, स्थावर १, सूक्ष्म १, साधारण नरकहिक-नरकगति १, नरकगत्यानुपूर्व्य १ ये र १ये ११ जानना। जानना । तिर्यद्विक तिर्यंचगति १, तियंचगत्यानुपूश्यं १ ये मक मंध तत्काल जो नया बंध होता है उसे २ जानना । आनना। तेजोकि तेजस शरीर १, कारण शरीर१ये २ नाम कर्म-जो अनेक तरह के मिनोती अर्याद कार्य जानना। बनावे वह नाम कम है। असनष्क =स १, बादर १, पर्यात १, प्रत्येक १ ये ४ जानना। नारक चतुष्क-नरकगति १, नरकगत्यानपूर्थ १, प्रस क्शक=त्रस १, बादर १, पर्याप्त १, प्रत्येक १, बंक्रियिक परीर १, क्रियिक अंगोपांग १, ये ४ स्थिर १, शुभ १, सुभग १, सुस्बर १, प्रादेय, यक्षः जानना । कीर्ति १ ये १० जानना । नारक षट्क=ऊपर के नारक चतुष्क और = त्रस १, बादर १, पयात १ प्रत्यक, वैऋियिक बंधन १, वैक्रियिक संघात १ ये ६ जानना । स्थिर १, शुभ १, सुभग १, सुस्वर १, मादेय १,ये 8 ___ निवेश-वस्तु के स्वरूप या नाममात्र के कथन करने जानना। . को निर्देश कहते हैं। वध्य =बंध प्राप्त पुद्गल समूह को द्रव्य कहते हैं। गा. ९२२) निष्ठापा = पूर्ण करना इसको निष्ठापन कहते हैं। Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( .७६१ ) निषेक-समय समय में जो कर्म खिरे उनके समूह क एक ही एक समय में सम्भव होता है। इस कारण को निषक कहते हैं। ये पिंड पद हैं। क्योंकि एक काल में एक जीव के जिस निषेक हार-गुण-हानि दूना प्रमाण निषेक हार सम्भवते भाव समूह में से एक एक ही पाया जाये उस होता है । ( गा० ६२६) भाव को पिड पद कहते हैं । {गा. ८५६ देखो) पद- गुणहानि मायाम को पद कहते हैं । प्रत्यनिक-शास्त्र या शास्त्र के जानने वाले। प्रकृति बंध प्रकृति अर्थात स्वभाव उसका जो बंध प्रत्याख्यान - जिस कर्म के उदय से प्रत्याख्यान अर्थात यात्मा के सम्बन्ध को पाकर प्रकट होना प्रकृति अर्थात् सर्वथा त्याग का प्रावरण हो, महाव्रत नहीं हो बंध है । (गा० ८६) सके उसे प्रत्याख्यान कषाय कहते है। प्रवेश बंष - बंधने वाले कर्मों की संख्या को प्रदेशात जीव में जिनके संयोग रहने पर यह जीता बंध कहते हैं। है मौर वियोग होने पर 'यह मर गया' ऐसा व्यवहार प्रचयवन - सर्व सम्बन्धी चयो के जोड़ का ही नाम हो, उन्हें पारण कहते हैं। प्रचयधन है। इसको उत्तर धन भी कहते हैं। फालिएक समय में संक्रमण होने को फालि कहते ( गा०६०१ देखो) हैं । ( गा० ४१२ देखो) प्रचसा-इस कर्म के उ.य से यह जीष मुछ कुछ . 'बंध = कर्मों का और प्रारमा का दूध और पानी . आंखों को उघाड़ कर सोता है और सोता हुया भी थोड़ा ही थोडा जानता है। बार बार मन्द (योड़ा) शयन करता म की तरह प्रापस में एक स्वरूप हो जाना पही बंध है। हतो है । यह निद्रा श्वान के समान है । सब निद्वानों से उत्तम है। (गा २५ देखो) भाव- गुग्ण पाब्द देखो। प्रचलाप्रथला इस कर्म के उदय से मुख से लार भाव कर्म-दथ्य पिंड में फल देने की जो शक्ति बहती है और हाथ वगैरह अंग चलते हैं। किन्तु सावधान वह भाव कर्म है अथवा कार्य में कारण का व्यवहार नहीं रहता यह प्रचला है। होने से उस शक्ति से उत्पन्न हये जो प्रज्ञानादि वा प्रति भाग-.भाजक को प्रति भाग कहते हैं। क्रोधादि रूप परिणाम वेसी भावकर्म ही हैं । परघात चतुष्क- परघात १, प्रातप १, उद्योत्त १, ( गा० ६ देखो) उच्छवास १ ये ४ानना । भंग - एक जीव के एक काल में जितनी प्रकृतियों परमुखोक्य- कर्म प्रकृति अन्य रूप होकर उदय को की सत्ता पाई जाय उनके समूह का नाम स्थान है और पाना । ( मा० ४४५) उस स्थान की एक सी समान संख्या रूप प्रकृतियों में जो संख्या समान ही रहे परन्तु प्रकृतियां बदल जाय तो परिणाम योगस्थान-शारीर पर्याप्ति के पूर्ण होने के समय से लेकर भायु के अन्त तक परिणाम योगस्थान ___ उसे भंग कहते हैं। जैसे कि १४५ के स्थान में किसी कहे जाते हैं। इसको घोटमान योगस्थान भी कहते हैं। जीव के तो मनुष्यामु और देवायु सहित १४५ की ससा है तथा किसी के तिर्यंचायु और नरकायु की सत्ता सहित ( गा० २.० देखो) १.५ की सत्ता है। अतः एक यहां पर स्थान तो एक ही पिड पर एक समय में एक जीव के मध्यत्व प्रभव्यत्व रहा। क्योंकि संख्या एक है परन्तु प्रकृतियों के बदलने इन दोनों में से एक ही नियम से होता है। गति-लिंग- से भंग दो हये। इस प्रकार सम जगह स्थान और मंग कषाय लेश्या-सम्पवत्व इनमें भी अपने अपने भेदों में से समझ लेना । (गां० १५८ देखो) Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फत हा भवनत्रिक = भवनवासी १, व्यंतरवासी १, ज्योतिषी वर्ण चतुष्क स्पर्श १, रस १, गंध १, वर्ण १ ये १ये ३ जानना 1 ४ जानना। भाव लेश्या = मोहनीय कर्म के उदय से, उपशम से, वाम = मिथ्यात्व को बाग कहते हैं । क्षय से अथवा क्षयोपशम से जीव की जो चंचलता होती विष्यात संघमण-मन्द विशुद्धता वाले जीव की, है उसे भाव लेश्या जानना । स्थिति अनुभाग के घटाने रूप भूतकालीन स्थिात कांडक भिन्न मुहतअन्तर्मुहूर्त के उत्कृष्ट, मध्यम, जघन्य और अनुभाग कांडक तथा गुग श्रेणी ग्रादि परिणामों ऐसे सीन प्रकार जानना दो घड़ी प्रर्थात् '४- मिनट का में प्रवृत्ति होना विध्यात संक्रमण है । एक मुहर्त होता है, इनमें से एक समय घटाने से ४८-१ ( गा० ४१३ देखो। =उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त होता है और एक पावली+१ विधान = वस्तु के प्रकार या भेदों को विधान समय-जघन्य अतिमहतं होता है इन दोनों के बीच में कहते हैं। के काल में मध्यम अन्तर्मुहर्त असंख्यात होते हैं इन्हीं विशेष चय को विशेष कहते है। को भिन्न मुहूर्त कहते हैं। वेदक योग्य काल= उपशम योग्य काल शब्द मनुष्य द्विक = मनुष्यगति १, मनुष्यगत्यानुपूर्वी १ ये देखो। २ जानना। वेदनीय - जो सुख दुःख का बेदन अर्थात् अनुभव मार्गणमा को पार मोक करावे वह बेदनीय कर्म है। ( मा०२१ देखो) अवस्थाओं में स्थित जीवों का ज्ञान हो, उन्हें मार्गग्गा वैक्रियिकतिक = वैक्रियिक शरीर १, वक्रियिक प्रगोस्थान कहते हैं। पाग १ ये २। मोहनीय - जो मोहै अर्थात् असावधान (प्रचेत) करे बंकियिक षटक =देवगति १, देवगत्यानुपूर्वी १, यह मोहनीय कर्म है । ( गा० २१ देखो) नरक ति १, नरकगत्मानुपूर्वी १, वैऋियिक शरीर १, योनि कन्द, मूल, अण्डा गर्म, रस, स्वेद आदि की वैक्रियिक अंगोपांग १, ये ६ जानना । उत्पत्ति के प्राधार को योनि कहते हैं । युधित्ति = बिछुड़ने का नाम ब्युम्धिति है मर्यात राग= अनन्तानुबन्धी माया ४, लोभ ४, बेद ३, जुदा होना। हास्यरति २, इनके उदय से जो भाव होता है उसे राग शतार चतुष्क-तिर्यच गति १, तिथंच गत्यानुपूर्व्य कहते हैं। १. तिथंचायु १, उद्योत १ ये ४ जानना । वर्ग- अविभाग प्रतिच्छेद शब्द देखो। समय प्रबद्ध=एक समय में बंधने वाले परमाणु समूह वर्गा-प्रविभाग प्रतिच्छेद शब्द देखो। को जानना । ( गा०४ देखो) . वस्व-जिस शास्त्र में अंग के एक अधिकार का सभ्यस्व गण-संसारी जीव पदार्थ को देखकर अर्थ (पदार्थ) विस्तार से या संक्षेप में कहा जाय उसे वस्तु जानता है गीचे सप्त भंग वाली नयो से निश्चयकर कहते हैं । ( गा० ८) श्रद्धान करता है इस प्रकार दर्शन, शान और श्रद्धान वासमा काल=किसी ने क्रोध किया, पीछे वह दूसरे करना सम्यक्त्व गुण कहा है। ( मा०१५ देखो) काम में लग गया। यहां पर क्रोध का उदय तो नहीं है, सर्व संक्रमण =जो अन्त के कांड की अन्त को परन्तु जिस पुरुष पर कोष किया था उस पर क्षमा भी की फलि के सर्व प्रदेशों में से जो अन्य प्रकृति रूप नहीं नहीं है। इस प्रकार जो क्रोध का संस्कार चित्त में बैठा हुए हैं उन परमाणुषों का अन्य प्रकृति रूप होना वह सवं हुमा है उसी को वासना का काल कहा गया है। संक्रमण है। (गा०४१३ देखो) Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७६३ ) सागर-श्म कोडाकोरी पत्य को सागर कहते हैं। अ स्थायर चतुष्क स्थावर १, मुक्ष्म १, साधारण १, सातावेदनीव-जा उदय में प्राकर देवगति में जीव पर्याप्त १ ये जानना। को शारीरिक नथा मानसिक सुखों की प्राप्ति रूप साता स्थावर स्शक = स्थाबर १, मूक्ष्म १, साधारण १. का 'वेदयति'-भोग-करावे अथवा 'वेधते भनेन जिसके अपर्याप्त १, अस्थिर १, अशुभ १, दुर्भग १, दुःस्वर १ द्वारा जीव उन मुणों को भोगे वह साता वेदनीय कर्म है। अनादेव १, प्रयाः कीर्ति १ य १० जानना । । गा० ३३ देखो) स्थितिबंबाम्यवसाय स्थान जिस कृष य के परि गणाम से स्थिति बंध पड़ता है उम कषाय परिणामो को सारिपुदगल : ... जीव माग सम्य प्रतिमा स्थान को जानना । ( गा० २५६) प्रबद्ध प्रमाण परमारों को ग्रहम्प कर्म रूप परिणुमता है। उनमं किभी समय तो पहले ग्रहण किये जो द्रव्य स्मुखो कम प्रवृत्ति अपने स्वरूप में उदय होने रूप परमाणु का ग्रहण करता है उस द्रव्य को साथिपूद- को कहते हैं। गल द्रव्य जानना । ( गा. १६० ) स्पश चतुष्क =वणं चतुक शब्द देखो . साविष=विवक्षित बंध का बीच में छूटकर पुनः संज्वालन -जिसके उदय से मंयम 'म' एकम्प जो बंध होता है वह सादि ध है। ( गा.. देखो) होकर 'वनति' प्रकाश करे, अर्थात जिसके उदय से स्तष-जिसमें सींग सम्बन्धी अर्थ विस्तार महित कषाय अश में मिला हम संयम रहे, कषाय रहित निर्मल यथाख्यात संयम न हो सके उसे संज्वलन कषाय अथवा संपता से कहा जाय ऐसे शास्त्र को स्तव कहते हैं । ( गा० ३३ देखो) साधन = वस्तु को उत्पत्ति के निमित्त को साधन स्तुति-जिसमें एक अंग (अंश) का अर्थ विस्तार से कहते हैं। अथवा संक्षेप से हो उस शास्त्र को स्तुति कहते है। (गा. ८८ देखो, सुर बदक=देवगति १, देवगत्यानुपूर्व १, वकियिक शरीर, बैकियिक अंगोपांग १, बैंक्रियिक बंधन १, स्थानगृद्धि इस कर्म के उदय से उठाया हा वैक्रियिक संघात १ ये ६ जानना । भी सोता ही रहे, उसींद में ही अनेक कार्य करे तथा मृक्ष्म ऋय -मुक्ष्म १. अपर्याप्त १, साधारण १ ये । कुछ बोले मी परन्तु सावधानी न होय । जानना। {गा. २० देखो) क्षपदेश अपकर्षण का काल को क्षयदेष जानना। स्थान-*ग शन्द देखो। ( गा० ४४५ देखो) स्थिति = वस्तु की काल मर्यादा को स्थिति शाभव-क एवास के १८वं भाग इतनी आयु रहने को क्षुद्रमव जानना । स्थिति मंच-पारमा के साथ कर्मों के रहने की क्षेष=मिलान करना या जोड़ना । मर्यादा को बानगा। Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९१) वापर:-दस कोडाकोसी पल्य को सागर कहते है स्थितिबंधावसापस्थान-जिस कषायके परिणाम सातावेदनीय-जो उदय में आकर देवादितिमें रो स्थिति बंध पडता है उस कपाय परिणामों के स्थान जीवको शारीरिक तथा मानसिक स्खों की प्राप्तिरूप को जानना (गा २५६) साताका देवति'-भोग-करावे, अथवा 'वेधतेअनेन । जिसके द्वारा जीव उन गुस्खोंको मोगबह सातावदनीय स्वमुखोदय-कर्म प्रकृति अपने स्वरूपमें उदय कर्म है (गा ३३ देखो) होने को कहते हैं. स्पर्शचतुष्क-वर्ष चतुक शब्द देखो. साविषदंगलद्रव्य- यह जीव समय समयप्रति संज्वलन जिसने उदयमे मंयम 'म' एकहा होकर समयबद्ध प्रमाण परमाणु को ग्रहणकर कमरूप परिणमाता है उनमें किसी ममय तो पहले ग्रहण किय 'अलति' प्रकार करे, अर्थात जिसके उदयसे कषाय जो व्यरुष परमाणु का ग्रहण करता है उस व्य को अंशसे मिला सा संयम रहे, कषाय रहित निर्मक यथाख्यात संयम न हो सकेग संपलन कषाय कहते सादिपुद्गल द्रष्य जानना. (गा. ८० देखो) है.(गा ३३ देखो ) सादिबंध-विवक्षित बंधका बीच में छुटकर पून! साषम-वस्तुको उत्पत्तिके निमितको कहते है. बोध होता है वह साबिंध है . (गा ८. देखो) सुरषदक-दंवर्गात, देवमस्यानपूयं, वकिमिक अंगोपांग, वैकियिकांधन, वक्रियिक संघात ये ६ स्तब-जिसमें सर्वांग संबंधी अर्थ विस्तार सहित। से जानना, अपना संक्षेपतासे कहा जाय से शास्त्र को स्तव कहति । सूक्ष्मत्रय-गूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण ये ३ जानना क्षयवेवा-अपकर्षणके काल को क्षयदेवा जानना स्तुति-जिसमें एक अंग (वंश) का अर्थ विस्तारसे अमवा संमेसे हो उस शास्त्र को सति कहते है. (गा, ४४५ देखो) (मा. ८८ देखो) क्षद्रभव. एकश्वासक १८ वें भाग इतना आयु सपानगद्धि-इस कर्म के उदय से उठाय। हवा . रहने को भुभव जानना. क्षेप-मिलान करना या जोडना. मी सोताही रहे, उस नींद ही अनेक कार्य करे तथा कुछ गोले भी परंतु सावधानी न होय, (गा. २३देखो) साघु स्तुति स्थान-मंग शब्द देखो. शीतरितू जोर अंगसब ही सकोर. तहां तन को स्पिति-वस्तुकी कालमर्यादा को स्थिति कहते हैं. न मोर नदी धोरें 1 स्थितिबंध-आरमाके साथ कर्मोके रहनेकी मर्यादा को जानना. धीर जखरे जेठ की कोरें, जहां अंडा छो पण पंडी छांह लोरं ॥ स्थावरचतुष्क-स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त ये जानना गिरिकोरता वे घरें घोर घन घोर बटा च? और जोर जयों ज्यों। स्थावरवाशक-स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त अस्थिर, अशुभ, दुभंग, दुःस्वर, अनादेय, अयश- चमत हिलोरें क्यों त्यों फोर बलये अरे तन नेह कीति में १. मानना. तोर परमारथ सो !! Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७९४) प्रीति जो? ऐसे गुरु और हम हाथ अंजुलि करे जीवों का महान उपकार किया है आपके ऐसे पावन कार्यका सबलोग अभिनन्दन करेंगे शीतरित् जो ॥ वरूपसम्बोधन ... मुक्ता मुकपयः कर्मभिः संविदादिना । अक्षयं परमात्मानं ज्ञानमूर्ति नमामि नम् ॥ १३२ श्री महाsकलंक विरचित. ----0 ( १ ) चौंतोसस्थान वर्शनपर अभिप्राय ले. १) ताराचन्द जैन शास्त्री न्यायतीर्थं नागपुर. २) सिगई मूलचंद जैन अध्यक्ष श्री दिर्जन पश्चार मंदिर ट्रस्ट नागपुर श्रद्धेय पूजनीय १०८ श्री आदिसागरजी महाराज ( डवाल) जैन सिद्धान्त के मर्मज्ञ हैं, आपने चारों अनुयोगों के महान ग्रंथों का गंभीर अध्ययन किया है. अतः आप चारों अनुयोगों में अगाध पांडित्य रखते है आपने कर्म सिद्धान्त के ग्रंथ गोम्मटसार कर्मकार लम्पसार आदिका सूक्ष्म दृष्टिसे अध्ययन किया, है. अतः आप कर्मसिद्धान्त के विशेषज्ञ है अपने इस अत्यंत कठिन कर्म विषयको जिजामुओं के लिये अत्यंत सरल और सुबोध बनाने के लिये अत्यधिक प्रयत्न किया है. आपने इस कर्म विषय की पूर्ण जानकारी कराने के लिये तीसस्थान दर्शन' नामका ग्रंथ निर्माण किया है. इस ग्रंथ में जिज्ञासुको अल्प समय में कर्म सिद्धांत का मुगम रीतिरो बोध हो सकता है. कमंप्रकृतिओके मंद प्रभेद और प्रयोजनाविको जानने के लिये ग्रंथ के चौतीसम्थान की संदृष्टियां या चार्ट अत्यंत उपयोगी हैं इन चार्टोका गंभीरता से अध्ययन करने पर कोई मी जिजागु विषय का पूर्ण ज्ञाता बन सकता है. पूज्य महाराज ने इस भगवान विषम काल में महान वीतरागता वर्धक ग्रंथ की रचना करके भव्य आत्महिताकांक्षी भव्य जीव ऐसे महाम ग्रंथों का अध्ययन करें और अपना अज्ञान भाव दूर करें. उग अभिप्राय से ही पूज्य १०८ श्री. आदिसागरजी महाराजने इस ग्रंथ का निर्माण किया है. यह ग्रंथ सभी शास्त्रभंडारों और मंदिरोंमें गंग्रहणीय हैं इस संघ के निर्माण कार्य व सोय ब्रह्मनारीजी उतरायजी रोहतक निवासीने पूर्ण योग दिया है. बह्मचारीजी वृद्ध होने पर भी इस पुनीत कार्य के सम्पादन और प्रशन में अहर्निश संलग्न रहे करने में समर्थ हुये हैं हैं. तभी आप ऐसे कठिन विषय के ग्रंथको प्रकाशित इसलिये गाठकवन्द ब्रह्मचारीजी के भी अत्यंत वृतज्ञ हो (२) ले सूरजभान जैन प्रेम आगरा श्री परराज्य अमीक्षण ज्ञान उपयोगी, चारित्र चूडामणी, उप मूर्ति, श्री १०८ मुनि आदि सागरजी शेडवाल (बेलगाम) मंसूर प्रान्त चरणस्पर्श- सादर विनम्र निवेदन हैकि आज ता. ६ अक्टूबर ६७ को ब्र. उल्फतरायजी (रोहतक) ने अपने चातुर्मासयोग स्थान जैन धर्मशाला टेंकी गृहल्ला मेरठ सदर में चौतीस स्थान वर्शन ग्रंथ के विषय समझाए में उन प्रकाशन के तात्विक विषयों को सुनकर बडा प्रभावित हुवा | इस विशाल ग्रंथ में जीव कांड, कर्म कांड, धवला पूज्य ग्रंथों के आध्यात्मिक विषयों को मणिमाला की तरह एक सूत्र में पिरोया है जो अथक र बिखरे थे, यह ग्रथ परीक्षाओं में बैठनेवाले विद्यार्थियों स्वाध्याय प्रेमियों, विद्वानों जिज्ञासुओं को दर्पण की तरह ज्ञान दुकाने में सहवक होत । . C Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ मुझे ज्ञात हुआ कि आदरणीय पु. ब्रम्हचारीजी ही इस पवित्र ग्रंथ के प्रकाशक हूँ। वास्तव में उन्होनें इस के संकलन में आप को पूर्ण सहयोग दिया है । प्रकाशन आदि के पूरे व्ययभार अपने ऊपर लिया है। उनका परिश्रम और सहायता सराहनीय हैं | मुझे पूर्ण आशा है कि धर्म प्रेमी बन्धु इस अमृत नागरुगी रस के प्रवाह से कल्याण भार्ग की ओर अग्रसर होंगे। इस अन्तर्भावना के साथ मेरी शुभ सम्मति है पुस्तक मिलने का पता सूचना : १) निम्मलिखित स्थानों में से किसी मी स्थान के समाज के प्रमुख सज्जन का पत्र मिलने उपर वहां के जिन मंदिर १०८ मुनि महाराज, तथा जच्च कोटि के विद्यालयों को बिना मूल्य भेंट रूप भेजी जायगी । नं. २ हर प्रांत के सज्जन अपने प्रांत के केंन्द्र ता से पत्र व्यवहार करें जिनकी सूची निम्नलिखित है उनके पास पुस्तकों का भंडार रहेगा । 1) PC Jain, 17 B, Dilkhush Street, Park Circus Calcutta - 17. Bengal (७९५) 6) Dr. S. S. Jain Plat No. 203 Prabhu kunj. Pedder Road Rombay 26 2) Scuh Sukmalchand Jain. B Indarkumar Jain. MA Kishan Flour mill Railway Road Meerut city (up ) 3) Master Jaichand Jain, Jain Street Rohtak city (Hariana) 4} Singhai Moolchandji Jain. Proprietor sundar saree Bhandar Handloom market Gandhibagh Nagpur (Maharashtra) 7) Seth Ralanchand Fakirchand Bhavan, Chaupati 37 A, Shanti Bombay -- 7 Sea Face P. K Jain Times of India 02 || Quartar Gate Puora-2 सूचना ३) निम्मलिखित केन्द्रों से मूल्य पर पुस्तक मिल सकेंगी और वह मूल्य द्रव्य उसी संस्थाके दान खाते में जमा हो जायगा । उस विक्री द्रव्य से प्रकाशक का कोई संबंध नहीं है । 5} Dr. Hemchand Jain, Karanja Distt Akola (Maharashtra ) |} Master Jagadha mal Jain Headmaster, Jain High School, Rohtak city (Hariana ) 2) Shri Shantisagar Digambar Jain Sidhant Prakashni Sanstha P. O. Shri Shanti _Birnagar Mahabirji (Rajasthan ) 3) Digambar Jain Pathshal, Parwar Pura, Nagpur (Maharashtra) Mahabir Itwari 4) Shri Mahabir Digamabar jain Shram, Gurukul, Brahmcharya Karanja, Distt Akola [ Maharashtra] 5} Ratanatraya Swadhyay Mandir Shedbal p o. Shedbal Distt Belgaon, Mysore state 1001-7 Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - शुद्धि-पत्र [नंबर १] चौंतीसस्थान दर्शन कोष्टक के शिरनामा में (हेडिंग में) जो अशुद्धियां है उनका शुद्धिकरण निम्न प्रकार कर लेना चाहिये, पंक्ति अशुद्धता शुद्धता मिस्वास्वगुणस्थान मिथ्यात्वगुणस्थान में (कालम) ६.५-५-७ कोप्टक नंबर २ सातादन गणस्थान के विरनामा डिग) में ३ से८ कॉलम में का विषय कोप्टक नंबर के समान (हेडिंग) सुधार कर मेन। चाहिये. सामान आलाप सामान्य आलाप Wala - सूचना:- इसी तरह और जगह जहां जहां सामान शन्द हो वहां वहां सामान्य समझना. सासादन गुणस्थान मिश्रगुणस्थानमें पर्याप्त और नमीप्त केलीना यह रेखा निकालकर कालम ५-६ के बीच रखना चाहिये कॉलम ३ में ३ अंक लिखलेना चाहिये कॉलम ४ में ४ अंक लिख लेना चाहिये पति और अपर्याप्त के बीच का यह रेखा निकालकर कालम ५-६ के बीच लगाना चाहिये और अपर्याप्त यह शब्द कालम ६-७.८ में चाहिये. पुष्ट ७०, ७३-७५-७८८७ तथा ८३ में नंबर. 99990 पर्याप्त और अपर्याप्त के बीचका यह - रेखा निकालकर कालम ५-६ के बीच में लगाना चाहिये. ६-७-८ शुद्धि-पत्र ( नंबर २) प्रत्येक स्थानका विषयके २ रे कालमसे आगे ८ कालम सक एक विषय के सामने एक एक विषय आना चाहिये परंतु यहां हरेक घने में अनेक जगह का विषय इस प्रकार एक के सामने एक विषय नहीं आया है वितयां ऊपर नोचे हो गये है। उदाहरणार्थ पृष्ट २९ में १२ ज्ञान स्थान देखो ३ रे कालम में ४) कालम में ५ वे कालम में १ भंग १ज्ञान का विषय इस प्रकार एक Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७९७ ३९ को नं. १७ देख ८ (२) (तिर्थंचमति में को नं. १७ देखो यहां ४ थे और ५ वें कालम के ? भंग और १ ज्ञान को पंत्रित (२) तिर्थन गति में के सामन आना चाहिये था परन्तु वैसा न होकर उस पंक्तिके ऊपर के पंक्ति में रख दिया है यह गलत है । इसी तरह नीचे के पंक्ति देखो (३) मनुष्यगति में ( ४ ) देवगति में इन में भी सारेभंग और १ ज्ञान का पंक्तिको एक पंक्ति ऊपर रख दिया है इस गलती को सुधार लेना चाहिये अर्थात तियंच गति के सामने १ भंग १ ज्ञान और मनुष्य गतिके सामने सारे मंग १ ज्ञान देवगति सामने सारेमंग १ शान इस प्रकार समझकर पहा जाय इस तरह और भी अनेक जगह की गलतियोंको सामने समझकर पढ़ना चाहिये. शुद्धि - 1 नंबर ( ३ ) इस पुस्तक में अनेक जगह में मंग के अनुस्वार छूटकर भंग ऐसा छप गया हूं इसलिये यहां सूथ्य देकर सुधार कर लेना चाहिये इसी तरह और भी बंध, संख्या, संज्ञा, संज्ञी, संयम आदि शब्दों के ऊपर का शून्य जहा जहां नहीं हो यहां शून्य देकर सुधार करके पढ़ा जाय. शुद्धिइ-पत्र नंबर [४] पृष्टांक क्रमांक २ ४ ४ ७ १५ १५ ૧૭ १८ १९ २१ २२ २४ २४ १ १२ १२ २६ २६ २६ क २८ २८ २८ २२ १९ ६ २१ ७ १० १९ 19 t २ २० v १ १३ १५ अशुद्ध १ गुणस्थान १४ ( कालम ३ में ) ( १७ ) सभ्यवस्थ (,,) ( कालम १ में ) नामकाय (,,) व असत्य ( कालम २ में ) तिद्यच () (..) चदुरिन्द्रियजन्य ९७ सोमव t, 1 ( कालम १ में ) श्रद्धाल २१ प्रकृतियों के (का. २ में ) ( का. ५ में) अगुणस्थान (,,) अवसभास ( का ३ में ) सम्यक्ष मिथ्या स्व क पृष्टसंख्या- [ २५ ] ( कॉलम ६ में) असंज्ञी [कों] ६ में ) २ के मंग (कॉ, ७ में) ६-७-८-९ के अंग (काँ ७ में) ७-८-९ के मंग शुद्र १ गुणस्थान १४+१ [ १७) सम्यक्त्व - ६ (६) क्षायिक सम्यक्रयनामकर्म न असत्य तियंच चक्षुरिन्द्रियजन्य १७ सयोगकेवली श्रद्धान २५ प्रकृतियों के अतीतगुणस्थान अतीतजीवसमास मिथ्यात्व ( २६ क ) संजी १-२ के भंग ७-८ - ९ के मंग ६-७-८-९ के मंग Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ३१ ३१ ३१ २२ ३२ ३२ क ३२ ३३ ३२ क ३२ क ३२ क २ ३२ क ३ ६३ ३३ २२ ३३ ३३ ३३ ३४ १४ ३४ ३४ ३५ ३५ ३५ ३६ ३७ १५ १ ६ ८ १२ ३७ ३८ ३८ ३८ 1८ १ २ १ १९ १ १२ १७ ८ १८ 19 १ १९ ४ १ २ २ २ ५ [ कॉ. ८ में ) ६-७-८ के भंग ( कॉ. ७ में) भंग (कॉ. ८ में) १ अवस्था (,, ) ९ देखी ( कॉलम ४ में ) सारेमंग को. नं १७ देखो (,) [कॉ] ४ में] १ मंग ( कॉ. ६ में) २४-२५-२७-२२ में) सारंभंग (कों (,, ) को. नं. १७ देख (कॉ. ४ में) १ मंग (,,] फो नं १९ देखों स्पर्श १ र १ व १. ( कालम ७ में ) ७ ( कालम १ में ) २ पर्याप्त ( कालम ४ में ) ०१ ( कालम ६ मे) साधान (का. ६ में) ७-७-६-५-४-५ सामास (.) (का. ७ में) सामास (का. २ में ) ६ (का. ३) ६ (का. ४ में) घटाकर (का. १ में ) संयम असंयम (का. २ मे ) १ (का. ४ में ) लीन (का ७ मे) ०-३-६-३-३-१ के मंग . (का. ३ में ३ से १० रद्द समझना ) (का. ३ में) अनलक हो ( कॉम ७ में) को गिनकर ઇંઢ (का. ७ मे) श्रीपंच [का. १ में) २६ाव २५ एकेन्द्र आदि जाति ४ स्पाटिक अस्थावर अस्थावर ६-७-८-९ के मंग १ भंग १ भंग १९ देखो सारेभंग अपनी अपनी अवस्थाके को नं १७ देखी कोई १ भंग २४-२५-२७-२७ सारेमंग अपनी अपनी अवस्थाके को में १७ देखी अपनी अपनी अवस्था का को. नं. १९ देखो स्पर्श १ रस १ गंव १ वर्ण १ १ ३ पर्याप्त १० प्रमाण ३-३-६-५-४-३ पर्याप्ति पर्याप्त ० घटाकर ९ रायम १ असंयम नोल ०-३-६-३-३-१-३-१ के मंग १] आहारकही ९ को गिनकर सियंत्र २३ भाव एकेन्द्र आदि जाति ४ पाकि स्थावर स्पावर Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ १७ आचरीय यहीवपमा आचार्य लाभ को में से - (कॉलम १ में) पति (का-३ में) ११ काभंग (का. १ में) और काययोग (का ३ में, २ (का. ३ में) २१-२७ के (का. ३ में ११ से १९ देखो यति वृषभाचार्य लाख कोटि में से ३ पर्याप्ति १. कामंग औदारिक काययोग ४०१ ४. १५ ४१ ४१ 4. मिश्रकायोग जीवाव१ये ३३ माव यशीनि १. अपशकौंलि १,३६ लोकका को. नं १६ मे १९ देखी १ (का. २ में)३ (फा ३ में) ३ का २ में) , मिश्रायद्योग २६ [का, २ में)ये ३३ भाव याति १ये ६६ पत्यका (का. ३ में) ६ (का. ४ में) ४ गतियों में से ३ (का.७ में) १० देखो (का, ४ में) १ मंग को.नं. १६ मे १९ देखो (का. २ में) आहार का (का.३ में) कार्याकाय (कोट में को. नं १७ १४ १८ देसी (का. ४ में) स्वमंग (का ४ में) और का. ७ में (का. १ में) और (का में) ३१ भंग १ मंग अंग १ भंग का.६ में) को.नं. १६ (का. ४ में) भंग जाKAF १ गति चारगतियों में से कोई १ गति जानन आहारक कार्माणकाय को. नं. १८-१९ देखो ४५ सारेमंग mxm. Var १ भंग १ भंग सारेभंग सारेभंग सारेभंग सारेमंग सारेभंग को. नं. १९ सारेमंग सारेभंग सारेमंग भोग ४६ २६ (का. ७ में) भंग [का. ६ में] योग ४६ २५ (का. ८ में) को नं. १७ को.नं. १६ Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-२ के मंग ८. ४८. ३ ४९ २ का.३ में) २-३ के मंग का. ३ में | ६-३ जे (कालम ६ में) जानना (का,१ में) १० भ्यान (का. ६ में) को नं. १७ (का. १ में) १२ आव ना. ५ ५२६ (बा.६ में) आर का. यो. (क , ६ में) को. नं १६ (का.६ में) ३३-३३-३२ (.) नं,१०देखो का.८ में को, नं १८ , को. नं. १६ का. १ में १६ भाव (का. ३ में) में १८-१७ गति ३२-१९ कालम ४ में और का ७ में सर्वकाल जानना तथा हरेक को नं. का, २ में में जानना का ५ में १ मंग २ का मंग को नं.१७ देखो ११ व्यान को.नं १६ २२ आस्रव घटाकर ४६ औ. का १वै.का.१ये १० का.. १७ ३३-३३-३३ नं. ११ देखो को. नं.१३ को नं. १८ २३ भाष में २८-२७ में ३२-२९ ३ लोकके असंख्यातवें माग प्रमाणानना ५. १२ हरेनमें १ पंचेन्द्रिय जाति को.नं. में जानना १ योग १७-१८ को नं.१८ प्रमाण को..१७ देखा ५२९-१० ५२ ११ ५३ ५ ६ F अपर्याप्त सूचना नं २पष्ट ५९ पर देखो ५८१ २२ या २० का.५ में १७-१८ (का. २ में) १० शिरनामा में अपर्याप्त कालम ३ में १२-११ का. ३ में २२ या २ का ७ में १६ का. ४ में गति का.२ में का. ५ में का. ४ में १ भंग का. ५ में १ भंगह १ भंग ६०१४ ६. १४-१५ ६०१६ १ १ १वेद सारे मंग Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पंमित अशुद्धता शुद्धता ६३ १८ ७ जानना का.४ में १ भंग का.४ में जानना कोष्टक नंबर कासम ६-७-८ में ५५+२:५९ ७६ जानना सारेभंग जानना को..१८ देखो कोष्टक नंबर ९ सूचना-इस अनिवृत्तिकरण मुणस्थान में अपर्याप्त अवस्था नहीं होती है। २-१के भंगों सारेभंग ६६८ १ मंग ४ का मंग १ ज्ञान का. ५ में क मंगो का. ४ में का. ५ में का. ३ में ३ का मंग का. ५ में १ज्ञान का.४ में ३-३ के का. ५ में ३-३ के १६ के काल १ में बंधप्रकृतियां १३७ प्रकृतियों होते रे 6 ६-२ के ३-२ के १७ के 6 4 • २५ बंधप्रकृतियां १३८ प्रकृतियों होते हैं १४ लाख कोटिकुल जानना ७०८ ७० ७-८ २के भंगमें से कोई योग जानना गुणस्थान में ७४ ७४ ७ ११ को न. १० के २३ भाचों में से ९ का मग कोटि ४ कुल जानना का ४ में १ मंग ३ काम मंग का ५ में कालम ५ में १का भंग का ६-७-८ में गुण में का. ५ में के का, २ में को. नं ५ देखो का ४ में ९ के मंगमें से कोई एक योग जानना का, २ में १ का. २ में कषाय १ का ६ मे १का मंग 1) सारेभंग का ४ में सारेभंग का, ५ में सारेभंग का.५ में सारेभंग कायबल १ कषाय २ का अंग 14725 . 1 १ मंग १ भंग नंग Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट ७९ ८१ ८१ ८५ ८६ ત ७ ܀ पंक्ति २० ४ ८५ २ १२ २ ६ १९ ८२ २३ भाव ८५९० टकारा पाया है अर्थात ८५ ८६ ८७ ८८, ८९ ) ८९) ८९) ८५ घ) ८९) ८९५) ९० इस प्रकार टांक समझना ८७ ८७ ८७ ८८ ८९ ८९ क १६ ८९ १२ ८९ ग ९ ८९ २ ९२ २८ १ १९ १ ९० ८ ९० से १९ अशुद्धता का ८ में १-१ के को. ५ में ३ का मंग का. २ मे १ १ (9) t का १ में १३ माव का कागा २६ का ५ में १ का भंग का. ६ में १ ले ये का. २ में १३ ५ में १ से में कोई का. ६ में से ४ में का. ३ में ऊपर के २ का. ४ में को. नं १ के का २ में ३ का ५ में ३-१ के का में जान का ६ में १ बटाकर ३ ३ का. ५ मे ६ के का. ४ और ५ मे १ २ से ६ ८०१ ९-८-७-६-५-४ के का. ७ में का. ३ में मे ३ इन्द्रि योग 17 का. ४ में १ से गुण मे का. ६ में ७ का मंग १२ १ १२ 14 ९२ १७ ९२ २१ ९१ ૪ ९२ ८ ९३ १-२ के बीच में का, ३ में ९३ } सुजता 피아 ६ का अंग कालम में के २ रे से ७ में नरक के सामने कोरा जगह में कॉटन ४ ओर ५ के भंग का केस जानना. ४ मे १ मे ४ बु का २ मे २० १ से ४ में से कोई गा. २६३ १० का मंग १ ले ४ ११ १४ ऊपर के २३ को १८ E १-२ के ज्ञान ३ ९ पटाकर और १६ के (-) इन पृष्टों में जहाँ जहां गुण, गुणमे, गुण जानना ऐसा लिखा है वहां वहां गुणगुण में गुण जानना इस प्रकार समझना कालम ४ मे १ से ५ गुण २ रे से ५ गुण ९-८-७-१-४ के १ मंग जानना ४ एकेन्द्रिय भोग १ से ४ गुभ में ६ का मंग ४-४ के मंग Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धता पंष्ठ पंक्ति असा २३ ५ का. ४ में ८ का भंग ४ का भंग चंदो काईन का, ५ में से दो लाईन नीचे सरकार पळो । ९४ ८ का. ३ में ३ १४ १२ का. ५ में २-६ के २-१ के ९४ १. का. ८ में भंग १ योग ९४ १३ १ मंग १ योग ९५ प्रारंमसे का, ४ में १ से गण, में ९का मंग ९५ प्रारममें का. ५ में ९ के मंग में से कोई १ योग जानना ९५१. के नीचे का. ७ में ४ ये गण में 1 का भग का , ८ में १ पुरुषवेद जानना का७ में १ मंग सारेभंग ९६ २९ ९६ १८ ९७१ , ३ रे गुण मे २५ का भंग का, ३ में २० का भंगमे से ९५ प्रारंम ९७ का. ४ में का. ६-७-८ मे कमसे ५ ३ ४ थे गण. में २४ का भंग १.का भंग ऊपर के कर्म भूमिके २१ के भंगमें से ६-७-८ के भंग १ शान ये तीनो नीचे के स्थान १२ मानामने रखकर पढ़ो। श्रुत ४थे ५ वंगण में घटाकर ५ ९७७ का. ४ में ४म में र का. ६ में घटाकर १ का. ९ में ११ मंगों १,२के अंगो का. ५ में 1-२के भंगमै २ के मंगमें का.३ में इस सपना को इसके बीवमे गाये हुए कालम ३ और ४के बीच मे का रेखा निकालकर पड़ो। १९ १.१ १८ ११ का.६ में का. १ में २,३,४५.१०० देखो नीचे जो कासम 1 में शुरू हुई सूचना है यह यहां उसके बीच में हरेक कॉलम के रेखाथों को हटाकर पढ़ो। १-१-१-१के भंग २रे से ५ में गुणस्थान में १०१-१८१९के बीच में का. ३ में १.१ २७ का. ३ में २ रेसे पूर्व गुण में १०११३ के ऊपर का.६ में १०११के ऊपर का.६ में तक के १०२ १ का. २ में १ २ तक के जीवों में जन्म लेनेकी अपेक्षा जागना Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुक्ती ८ पंड पंक्ति अशुद्धता १०२ ५ का.४ में १ से ४ १.२ २४ का. में ६ १०३ ११ का. ३ में में २५ का १०७ २३ , २ का मंग १०३ १२-१३ का ६ में ३ १०४ १०४ १०५ ये २५ का ५ का मंग ४ का भंग-पर्याप्त के ५ के भंगमे से कूअबधिज्ञान घटाकर ४ का भंग जानना । ६ के मंगमे से कोई १ उपयोग रोदध्यान ४, घमंध्यान ३ ऊपर के ८ के मंग मे १ले २ रे गुण मे सारेभंग अविरत की जगह ८ गिनकर ३८ चहिता १०५ २१ १०८ १८ १०८ का. ५ में ६ का भंग का. २ में रौद्रयान ३ का. ३ में ऊपर के का. ४ में १ ले गुण मे का.७ में भंग रा, ६ में अविरत ८ की " जगह गिनकर ३९ का. ३ में असंज्ञी पंचेन्द्रिय का, ५ में २७ के का. ७ में १ मंग कोष्टक नं. . का. ४ में २७ का मंग का. १ में २५ का, २ में मन ध्याय १, उच्चगोत्र का. ६ में ३ का, ४ में का. ५ में का. ६ में १ का. ६ में ३ का. ४ में १ भंग का ७ मे १ मंग का. ४ मे १ आयबल प्रमाण का ४ मे १ मंग का. ३ मे ६ गुण के सारेभंग कोष्टक नं. १७ १७ का मंग २६ मनुध्याय १, क्रियिकदिक २ उच्चगोत्र १११ ३ ११३ १ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जामना १ संशी प. पर्याप्त जानना १ ११४ ११४ ११४ ११४ सारेभंग सारेभंग १ आयु बरु प्राण सारेयंग ६ गण के १का मंग के ११७ ९ सारेमंग ११८ १ का. ४ १ भंग में ११८ १ का.५ में सारेवेद ११८१३-१४ का. ६ में सुचना-आहारककाय योगी पुरुषवेदीही होता है अर्थात पुरुषवेदवाले के ही आहारकपुतला बनता है। यह दोनों पक्तियां क्रमसे धोरा भूमि में १ले २ रे गुण और ४ में के सामने पको। ११८ . का. ७ में Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ट पंक्ति अशुद्धता शब्ता ११८ ९, १०, ११ का. ८ में ११९ १ का.३ में • का भंग आग . का भंगआगे के चारों का.३ में देद है हो वेदनहीं १२० का, ३ में १७ का भंग १३ का भंग १२२ १ का. ४ में ६-७-८ काट डालना चाहिये १२२ ४ का. ५ में ४-४-६ १२२ ४-५-६ का.५ में ये तीनों पंक्तियां ६ ३७ ३८ वें यण के सामने पहो । १२२ ७-८ का ५ में २ का भंग जानना यह पंक्ति : 4 गुण, के सामने पढी। १ का भंग जानना. यह १० वे गुण. के सामने पड़ो। १२३ का.८ में १ के मंगमे से कोई १ज्ञान जानना सारे भंगो में १२३ ९ का. ३ में श्रुति श्रुत इसी तरह जहां जहां अति लिखा है वहां वहां श्रुत ऐसा पढ़ो। का. ४ में २-३ केभंग ३-२ के मम १२५ ५ का. २ में ४ ७ २-३-३-१-२-३ २-३-३-३-१-२-३ १२८ १६ का. ५ में ३ का भंग ३ के भंग में से कोई १ सम्यक्त्व १२९ ४ का. ४-५ में १ संज्ञा जानना यह काट डालना चाहिये १२९४ के नीचे का, ४-५ में १जी जानना १२९२ के नीचे का ७-८ में १३० ५ का. ३ में २ का १का १३१ २४ का.३ में ज्ञान शान ३ १३४ २० का. ४ में संशयमिथ्यात्व संशयमिथ्यात्व विनयमिथ्यात्व १३४ २० का. ५ में विनयमिथ्यात्व मह ४ थे कालम में पडो १३५ १९ , धमोकर १-२ का घटाकर २२ का का. ४ में अविरतका ४ का भंग घटाकर यह काट डालना चाहिये का. ४ मे ३२४ गुण में ३ रे ४ थे गुण में १३७ ५-६-७ का ५ में ये तीनों पंक्तियों को ४ थे कालम में लिखें ३ रे ४ थे गुण के सामने पदो। १३७८-९ का, ७ में कोई । यह काट शालना चाहिये १३७ ११ का.७ में कोई १ कोई१ वेद १४१ १४ का. ४ में ४ जीव ५ का ४ जीवघे ५ का १४. ८ का ४ में पृथ्वी आयु पृश्वी, वाय Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धता २ रे गुण ये २० का भंग पृष्टः पंक्ति बसा १४२ १६ का. ३ में १ रे गुण १४२ २४ का.६ में ये १४३ १० का, ६ में १७ के १४३ १२ का.६ में थे ४ ज्ञान १ १४५ १४ का. ३ में का भंग १५१ . का. ४ मे ११ १५५ २. का. ६ में १ रे १५७ ६ का. ६ मे १९ में १५७ २ का.८ में १-२ के १५७ ८ का. ४ में १ ले गुण' में १४२ १७ का.४ में चारों गतियो मे से कोई १ गति १४४ ११ का. ४ में चारोगतियों में में कोई गति का, ४ में तिर्थच या मनुष्य गतियों में से कोई१मति स्त्री पुरुष ये स. निगा ल, अभि. १, २ वेद घटाकर १ले २ रे गुण. में एक मनुष्य गति एक मनुष्य गति एक मनुष्य गति १५२ १६ १५३ ९ नामकर्भ २८ सत्ता जानना मत्ता जानना सम्यग्मिथ्यात्व १, सम्यकप्रकृति । ये ४ वटाकर नामकर्म २७ सत्ता अनन्तानुबंधी कषाय ४ नरफाय १, तिवाय , ये ६ घटाकर जानमा ससा ऊपर की १४२ प्रकृतीको सत्तामे से दर्शन मोहिनी की तीन प्रकृति घटाकर १३९ जानना । सत्ता ऊपर की १३९ प्र. की सत्तामे से देवायु १ घटाकर १३८ जानना। भंग २५ कषायों में से एक ज्ञान घटाकर ५ शान १५३ १३ लत्ता जानना १५८ ३ का, ६ में मंग एक १५९ १ का. ५ में । कुज्ञान १५९ २ का ६ में घटाकर १ १५९ १ का. ८ में १ कुज्ञान १६. ११ का. ३ में ३-१-१ के १६१ ४ का.३ मे ३ १६१ ५ का.६ में २ १६११३ के नीचे का. ३ में १६१ १४ का ५में भंग जानना १ मध्य मानना सम्यवस्य जानना Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- ८०७ पृष्ठ पंक्ति शुद्धिता अशुद्धता का. में आहारक-आहारक का.. में का भंग का. ३ में २६-२७-२५ का.२ में वेदनीय उपश्चात का. ४ मे शायीक का. २ में भतन्तसिद्ध का. में का. २ में १ खंशी का. १ में ५ संशी का. २ में? १७२ १७ १७३ ७ १७६ १२ १७७ ७-८ १८. ५ ११ २ १ आहार--बाहार चक्षुदर्सन, ये ५ का भंग २३-२६-२५ वेदनीय उपधात ! क्षायिक अनन्तसिड १ अमंयम १ असंशो ५ संज्ञा १ तियंचगति दीन्द्रियजाति १सकाय १योग Trm»»४.. का. मे योग का, २ में का, २ में का. २ में २ का,१ में १३ का. २ मे १ १ मषकवेद २३ १८२६ १८२ ५ का.७ में ३ का संग १८२ २३ १३ संयम १ असंयम ३ का भंग १ भंग ३ का भंग १ले ८का भंग ८ के मंग मे से कोई ध्यान ३८-३३ के मंग २४-२२ के मंग १८३ ५ १८३ १३ १८३ २२२३ 1८५ १८५ १८६ १ तिपंचगति का ६में से का ४ में का ५ में का. ६ में का. में का.७ में का.२ में १ मा.५ में का, २ में १ का. २ मे १ का. २ मे, का २ मे १ का.२ मे, का. ६ में १ ले गण में १२ १ १ १ श्रीन्द्रिय जाति १प्रसकाय १नपुसक वेद असंयम १ अचसुदर्शन Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८. शुद्धता १४ पंक्ति १८७ ८ १८७ २० १९. ११ १९११ अशुद्धता का. ८ में का. ६ में २ का. २ में ! का. २ में । १तिर्थधति 1 चतुरिन्द्रिय जाति १ सकाय १ नसकवेद पर्याप्तवत् , १९१ ८ का.७ में का. ८ में ७-८-. का, २ में १ का.४ में २ का भंग का. ७ में ज्ञान का. २ में १ १ असंयम ३ का भंग १ मंग १ असंही १९२ ५ १९२ १९३ १७ पर्याप्तवत् २५ सर्वकाल १९४८ का. २ में का. ६ में कुबधि जा टाकर २५ का. २ में सब लोक , ७ लाख का.२ में १ का. २ में। का.२ में १ का.३ में को.नं. १७ का, ६ में मुण १ में का, २ में स्त्री नषक १ तिर्थचमति १५वेन्द्रिय जाति १५सकाय को, २२ गुण में १९६ १९७ १३ १९८ १७ १९८ २२ स्त्री पुरुष नपुंसक २८ घटाकर १० जानना को.नं. १६ से १९ को. नं. १६ मे १९ २.० १८ २०१ १२ घटाकर ७ बातमा का. ३ में को. नं. १९ का.६ में को.नं. से ११ का. ६ में का.८ में १ संज्ञी पं. का. ७ में १ मंग का. ६ में ने. १७ का.६ में नं. १८ का.३ में ५-६-६-७-६-७ का.६ में ४-६ के का. ३ में १ १ संज्ञी ६. अपर्याप्त सारेभंग नं. १७-१८ २०८ १० १०८ २८ ४-४ के २०८ २०९ २८ १ Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता २०९ १ के ऊपर का ६ मे २०९ २०९ २११ २५ २२ २११ २५ २१४ ८ २१४ १८ २१५ २३ २१५ २१७ १५ २१८ २ २१८ ११८ ५ २१८ ११ २१८ १२ २१९ 5 २२१ ११ २२१ १२ २२१ १३ २२३ २२२ २२२ २२२ ११ २२२ १३ PPV ७ २२४ १० २१५ २२५ २ २२५ ५ 1. » 5-5-3-1 १. ४ मे २०१६-२६-१६ का. २७-०६-१९-१० Be ३ राज तक का १२३ भा कर • शून्य समझना । का में *'. ," " י t १ क. २ मे १ २२२ १४ का. २ मे १ का. ४ में को नं १ २२३ ५ २१३ १४ का २ में २२४ १२ के मीचे का का का. ८ में को नं. २ 7.1. ८०९ ३भय में स्थान क्रमांक १२, १४, १७. २०२३ छोडकर की जगह ६ मं २ में की २ में को नं. २ धूसा मनुष्यगति में ४-१२-६-२ के मंग को. नं १८ समान ३ 4-8--8 १०-१६०१६-१७ १७१६१०१ ܀: नरक न नियंत एकेद्रिय ि पृथ्वीका १ १ अमयम १ अनवन १ श्री १ तिथेचगति एकेन्द्रिय जाति १ जल काय १ नपुंसकमेद १ असंयम सुदर्शन की नं.६१ कॉ.नं. ६१ १ अशी को नं ५१ असंख्यात नव ४ नि का नं. २१ १ लियवमति १ एके व्रजति १ अनिकाय १ Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धता पृष्ठ पंक्ति अशुदत्ता २२५ १० , १ १ असंयम । अचक्षुदर्शन १ मिथ्याब जानना १ असंज्ञा का. ६ में १ ले गुण में का. २में १ २२६ ८ २२६९ के नीचे २२८ . २२८ १. २२८ ११ २६८ १२ २२९ १ ३ का अंग पर्याप्तवत १ मिथ्यात्व १तियंगति । एकेन्द्रम १ बायकाय १ नपुस कवेद १ मिथ्यात्व जानना १ असशी १ असंयम , अचक्षुदर्शन का नं.२१ तिर्थयाति २२९ ७ २३०२ का ३ में को मं ३० का.२ में २३१ १६ १ सम्पनिकाय ' नपुषकद १ असंयम . १ अबक्षुदर्शन १ असंशो २१२ १३ २३५ १७ का, में को.. का २ में का. ३४ का.में१-२-३ पसकाम २४३ . २०१५ का.६१.नं. का. ३ में ८-1-1. , ५१-४६-४ का.५ मे को. ८-९-१० ५१-४६-४२ ११-१. को नं. १८ देखो १ संजी पचेन्द्रिय पर्याप्त ७ का मंग ऊपर के८ ६ काप २८४ ३४ २५३७ २५३ ७ २५३ ९० का ३ में ६ का मंग ., ऊपर के ७ , ७ का भंग Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धता ऊपर के ११-१२-१३ १-३६-३२-३६ के पुच्छ पंक्ति बमुखता २५६ १. ऊपर के ८ , ७ का भंग ૨૬૧ ૨૮ २५४६ का.२में को.नं. १८ २५६ का २में ए केन्द्रि सूक्ष्म प्रयाप्त २५८ २१ का.३ में की का, २ में केवायन २५९ का १ में २१ । सो पवेन्द्रिय पर्याप्त को. मेवशमान २१ धाम + २५७ २५ १ लेश्या १६ भव्यत्व - २६७ १८ २६८ ८ २६८ १३ का. ५ मे १ वर्शन का. १ में १६ स्त्र का. २ में का. २ में को. नं. २५ का. ६ में का. नं, २६ को मं.३६ को नं.३६ १सकाय १ अनुभय वचन योग सारेमंग २७६ १ का. ४ में १ भंग २७६ का, ५ में को.न.८ २७१ ८ का. २में को.नं.१८ २७६ २९ का. ४ में देव २७९ १ का. ३ में ६-५६-६ २८० का. में ५ २८०१ से गुणस्थान में २८५ २६ का, ६ में २४-५-२७ २८८ ३ ९८ उपययोग्य २८८ ११ अंतमहुत तक एक २९० १५ का.३ में २-३-१-९ २९१ २४ का ३ ' ३९२ ४ ५ का. २मे केहीबम १९३ ५ समचतुश्संबसंस्थान २९४ १४ का.२ मे पंचेन्द्रिय २९५ १ का ६ मे १पंचेन्द्रिय २९८ ५ मध्यमान ३०. का २ मे ३ पुरुषवेद १से ४ गुण में २४-२५-२७ १८ उदययोग्य अंतमुहुर्त कम एक . २३-१९ वं. काययोग है समचतुरखसंस्थान १ संज्ञपंचेन्द्रिय १संझी पंचेन्द्रिय बष्यमान १ पुरुषदेद Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ३०२ ३० ३०८ ܘ ܕ ३०.७ ܕ 608 १०६ ३०६ २ ३०६ Pr ६०९ २१८ ३१९ ३२१ ४२२ १२९ ३२९ Feg 2 - હ २५ ३०८ २४ ܪ ܝ ܪ ३१४ * १३ apv १६ ३१६ ३१६ २२४ ३२४ ܪ २६ १२ १७ ३२५ ३०८ १२ ६२८ < ३२९ ܘܕ २१ ? ६ .२९ १८ ३२९ १२५ १६ शक्ति १ '' अशुद्धता टाकर ४६ प्र. का. ६ में का भंग का. ७ में १ का. १ में १० उपयोग का. २ में की क. ९ में ४-६-१-४-६ का ६ में ३४-३७-२८ १६ में १४ स. ७ का ८ में सारेभंग का ६ में १७-१८-१२ का २ में की नं १ का. ८ में को का। ६४९३२ का २ में ३३० - २३१ का ६ में पर्याप्त पर्याप्त का का ६२३-२३ [ का का का का SP २४-२३ के का ७ में भग १६-१८-१८ में का ४ में सभंग का ६३ ७ में १ मंग का मं ५ का में ये का में को. नं १७ ५ *. ६ मे २८-२३-२२ का ८ में कोन १८ में १-२ के मंग का कोन Pro ܕ २५-२४-२५.२८ ६ मे १७-१८९ २ में १ देखी ५ में १६ ३ मे २ ३-३-२-१ में १८ देखी ८११ शुद्धता घटाकर १४६ १ का भंग १६-१८-१९ १ १६-१०-१९ को. नं. २६ को. नं १७ * मंग २० उपयोग कोनं १८ ४-१-१-४-१ ३४-३०-३८ १२४ ३९-३३ ३३०-३३१ अपर्याप्त अपर्याप्त १ मंग २३-२३-२३-२३] के मंग को नं. १७ के २५--२५-२५-२५ के १ भंग को. नं १९ १२. मारंभंग १५ २ की नं. १९ २६-२४-२५-२८ २८ - २३-२१ की नं. १९, १-२-१-२ के मंग हो.नं. ९७ १७-१८-१९ १७ देखी २-२-३-१-२-३ १७ दे १७ Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पंक्ति मारता गुबता ३२९ २१ ३३०१ का. ३ में २३ के भग का ६ में ६-२ २-३-१२-३ ३३१ ४ का, ८ में अपने अपने का. में २५२८-३१-२६-२८-२९-२९ का. में २४.१२ २२-२५-२६-२५ का. में के समान का. में .. १७ देखी जाने प्रायो, कोई एक मंग जानना। २९-२७-२८-३१-२८ २९-२९ २४-२२-२६-१५ ४७ के समान सारेभंग को, नं. १९ देखो को. मं. १९१ मंग ३३२ १. का ८ में । ३३५ ३३५ ३३५ १ ६ ७ काई १ भग को नं. १७६खी कोई : भंग को. में, १७ देखा का.५ में को भ.१६ , १८-१७ देखा का. ८ में को नं. १ का, ८ में १८-१७ देखों का ६ में का.८ में का. मे. २३-२३-२३-२३-२३-२३ .६ में स्त्री का ३ में कों में.. २३७ ११ .. ३३८ ४ को में १६ देखो को में १६ देखो ३२-२३-२३-२३ स्त्री-पुरुष की.न. १६. २-३ के १ असंयम १ असंयम ३२८ का.४ में के नीचे ३३८ १० का ५ में के मीचे ३३८ ११ का. ४ में.२ में से २३८ ११ का ५ में दी में से का.६ में ५-१ में से १-१ में से 1-४-४-३-४-४ भंग ३३.३०-३१-11-२९-२१ ३४५ ३ का. ३ में ३३.३१-३१-२९-२९ का.२ में ४ का ८ में सारेभंग से सारेम ३४५ १अंग १ भंग Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुधति अशुद्धता का. २ में का में थे. मिकाकोग का. ६ में १-१ के मंग का. में १४५ ११ 1s " ३४७ ४८ १४ * १४ १४९ ३४९ ३४९ ३५० ३५२ २५ ५ के ऊपर ३५३ १० ३५३ १२ ३५३ १३ ३५४ ३ ३५४ 1 ३५४ ་ ३५४ १२ ३५४ १५ ३५६ १५ ३५६ २१ ३५६ २४ ३५६ ११ ३५६ १३ ३५६ १५८१६-१७ ३५८ २३ ३५९ ३० ३६१ ३६२ ३६३ १० के नीचे ३६४ २६ ३६५ २ ३६६ ५ १६७ २५ ११-१२-११-१०-११-९ १२० ९ में गुण २१-१० मे गुण. गुण ९ में पुष्टसंख्या (१५० ) का. में का ३२-१-१ से 1. ५ में " सारेभंग का. २२ क. ५ में प्रारंभंग " पाचंग सारेभंग 31 का. ६ में की. नं. १८ ३-२ के मंग ६-२ के भंग " का में सारेभंग की. नं. ६६ " का. ३ में २६-४१ के का. १-२ में ५६ का का. २१ का. ६ में ८१४ का. ३ में १ का ६ में १-१ के मंग का. ८ में १ का' ३ में २ का भंग बुडा ↑ काम कामयोग १ का य १३-१२-११-१०-१०-१ गुण. २१-९ १७-१० वे सुৱ (३५०) ५ ६-१-१ को. नं. १६-१८-१९ देख को. नं. १७ देख १ वेद १२ ९ मग 11 सूचना में कमांक १६ स्थान अव्यय का छूटा हुवा विषय आगे पु. ३६१ पर देख का ८ में को. नं. १६ देखी को. नं. १ से १९ दे को. नं. १६ ४६-४१ के. ३५६ का ४ अपने अपने स्थान की ६-५-४ १ भंग १ मंग १ भंग को. नं १९ ३-१ के भंग. ६-१ के मंग ९ मंग सारेमन भी होती है। १० १-२ के भंग ान २-३ के भंग F 1 I Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.५ पृष्ठ पक्ति बराबता ३६५ १९ का .में को.नं. ११ १६८ १११२ का.८ को.नं.१६लो ३६९ १६ , ७-१८ को नं. १६ को.मं.१६ से १९ देखो १७-१८ १भंग के ऊपर .१ अस्था ३७० १५ वर का.८ में को, नं. १५ का.२ में यकसम्यवस्व का. २१-२६-२ के १७२ २२ की.मे. १६ देवकसम्पवस्व २३ २६.२५२ अपने अपने स्पान की लम्पिवय ६-५-४ भी होती है। मंग मो.नं. १९ रेखो। १७६ १५ १७ १ का. सारेचंग का, ४-५ में ३७७ ८ ७७ १८ मप्रत्या स्थान प्रत्या समान को मं.१६ ३७७ ३७८ ३७९ ३८. २८. ५ ११ २५ १ १६ का.८१ , को.. का. में के का. में 1-1-12 का.२ में २ का, ३में १-१-२ का. म्यक्रम २ भम्य अयम्प सम्यवस्व ३८. ७ ३८१ २५ को..१७ २८२ ३८२ १८३२ ३८५ १५ का. ४ में को.नं. १८ का. -1.के का ६ में १.१ का. ६ में ४०-५-1-३९ अपमें अपने स्थान की मषिण १८६ १७ 1८७ का. ३ में को का. ५ में .. ६-५-४ भी होती को, १७ को नं. १५.१८-१९ देखो Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० पूछ पंक्ति अशवता शुद्धता २८७ १६ ६८७ ६ ३९. १४ का. में को.नं.. का. २ में को नं. ५१ का. ४ में १ मंग का. ७ में १ भंग y 1 . को २६ सारेभंग मारेभंग ६-१ हरेक में जपयोग. का.३ में गति का १.२ में उपयोट २१२ २७ पृथकव चिनची । भंग ३९४ २५ ३९४ २९ ३१५ का, ५ में पृथक्स्य विषार! का में। ध्यान का. में.२९.३१ का ६ में ३५८३९ का ३ मैंनं. १८५१ १०. बंग ३९५ २८ ३९६ २१ १.१. का मंग का. ३ में २७१ २६ का. ६ मे २४३२ प्राप्त हो सके का ६ में ३९७ १. १९८ २१ प्राप्त न हो सके अपने अपने स्थान को लविरुप ६५४ भी जानना । फो.न १६ मे १९ देखो का में को नं १६ मे ४.. १० का. ६ में ३ , २०२२१ का १ में १४ दर्शन ४०२ १६ ३८ ३९४३ ४०३ २८ ४०७ १८ ४.८ ४.८ ५ ८ का में का २ में १० का ५ में ४ देखो . Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता 806 १३ का. ६ में १८ १ के ४०८ १७ १८ १ के " ४०१ ६ का. ८ में को. नं. १९ २ का. २५४ देखी २ ४१० ४१० ४१० ४१० ४१० ७ ४१० २६ ४११ १३ ४११ ११ ४११ १२ ४११ २४ पृष्ठ पंक्ति ४११ २४ ४२१ !! ४१२ १० ४१५ 4 ४१५ ११ ४१५ २५ ४१६ १८ ४१९ १८ ४२१ २६ ४२१ ११ के बी.जे. फा. ६ में ४ देख ४ देखो ७ में ४ देख " का. ४ में १ भंग का में ४२-४३ का. ३ में ४-३६ के का. ६ मे ३३-४-३५ ३३-४-३ का. ६ में और ७-८ में कालम ६ ४ देवगति में ३८-३३-२८-३७ ३२-२८- २८ के मंग की. नं. १९ के ४३-३८-३३-४२ ३७-३३-३३ के हरेक मंग में से पर्याप्त शेष ५ कषाय चटाकर ३८-३३-२८-३७ १२-२८- २८ रे भंग जानना का. ५ में का. ३ में ३३-३-३१ का. ३ में १९ देखो در " क. ६ में १९ देख का ६ में २८ का ५ में की नं १ का. ३ में २ का. ४ में ८१७ शुद्धता १८ १४ १८ १४ के को. नं. ५४ १६ देखी ५४ देखी ५४ देख ५४ देखो सारे मंग ४२- ३३ के ४०-३६ के ३३-३४-३५ ३३-३४ ४ देवगति में का ७ सारेमंग को. नं. १९ देख क। ८ १ मंग को नं. १९ देख को नं. १६ देखो ३६-३०-३१ १८ देखो ૪ १८ २६ को नं. १६ २ ३ के मंग को. नं १६ देखी कोनं १६ देखी Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८१८ गुडता पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता मूचना-नरकगनि में अवधिज्ञान मात्र प्रत्यय होता है । इसलिये यहा ३ का मंग जानना। ४२१ २८. का. ३ में ? २२ १२२ के भंग को, नं, १७ देखो ४२२ २ का. में २२ २ के अंग को, नं. १८ देखा ४२२४ का ३ में २२ २ के भंग को. नं. १९ देखो सूचना - देवगन में अवषिजन भवप्रत्मय होता है । इसलिये यहाँ ३ का मंग जानना । ४२३ ८ का. २ में ओ १ दोनों में से कोई ४२४ ६ का ६ में २३ २ ४२४ १७ का. ४ में १६ से ४२५ १० का. ६ में ३९ ४ ४३ ३९ ४० ४३ ४२७६ १८१४५ १४५ प्र. ४२७ १० सारे कुज्ञानो सादिकुशानी का. १ में काय ८ काम ४३० २ का. ३ में १६ से १६ १६ से १९ ४३२ १५ का. ३ में २८२२३ २८२५ २३ ४३२ १९ का. ३ में २ २२ २३ २१ २२ २३ का ६ में १६९ देखा १६१९ देखो ४३७ १६ का में देखा १६ देखो का ७में देखो १६ देखी का ३ में ६ देखो १६ देखो का.३ में ४४१ २१ ४४२ ८ ४४६ १६ ४४७ ११ १ भंग शानी मरकर ६० देखो का.६ में ६६६६ के का. ५ में भंग का ६ में शान मरकर का ८ में ६ देखो का, ३ में ४३२१११ का. ३ में ७४१ के का ५ में ७४१ का.३मैं २० २०२० १६ १५ १११३ . Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पति आतुरता शुद्धता १७ ૪૫૪ ૨૪ ४५५ ४ ४५६७ का ३ में २२२१२०० का २ में इन उदय नहीं का २ में १० २२२१२०२० सुचना ४५५ पर देखो इम ४ का उदय नही ४५७ ४५८ २२ ९ का. ३ में पेज ५८ पर सर्व लोक १ . अंग पष्ठ ४५८ पर सर्व काल अपने अपने स्थान की लम्धिला ६५४ भी होती है। औ मिश्रकायमोग 4. मिश्रकाययोग १६ देखो १ज्ञान ४६११११३ ४६२ ६ का.६ में औ कायद्योग१ वै. कायमोग १ का, ४ मैं ६ देखो का. ८ में १ यान का ३ में को नं ६ का . . में १ संज्ञा का. ५ में देखो का, ७ में १ भंग ४६४ २८ ४६४ २८ १ संज्ञा १९ देखा सारेभंग वक्षन ३ ४५८ ११ प्राप्त न कर सके १७-१८ देखो १८ लाखयोनी जानना का, २ में दर्शन ५ का. ६ में २४-२३ प्राप्त सके का, ३ में १७-१ देखो का.३ में १८ लाख मनुष्व योनी जानमा का, ३ में ८-९ के का. ३ में ८ देखो का ६ में स्त्री पुरुषवंद का.६ में पेज ७४ पर का.२ में ४ का ३ में ४-४-१ का.२ में श्रेष आसध्यान का ६ में १८ देखो स्री नपुंसकवेद पष्ट ४४८ पर १७६ १४ ४७६ १८ ४७६ १७ ४७६ २५ शेष आध्यान १ मनुष्यगति में ४७७ ७ का.६ में १का भंग १२ का मंग दर्शन ३ Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० शुखता पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता ४७७ ८ का. ३ में ३१-७-३१ १७८ संघ जानना का. ६-७-८ में यही पर अवस्था ४८१ २ का. ४ ५ में १.१ ३१-२७-३१ बंध जानना। को.नं ६ से १ देखो। यहा पर अपर्याप्त अवस्था १मंग १ उपयोग को.नं. १८ देखो को. नं. १८ देखा ४८१ ६ का. ३ में ६ " ७४ के मंग ७-४ के भंग सुक्ष्मलोम १ ४८६ ३ । ४८७ ५ का.२ में सूक्ष्मयांग । का. २ में १ का. ३ में १.४१ के का. ३ में कषाय का. १ में १० उपयोग का.६ में १ देखो ४८८ १०-४-१ के अकषाय २० उपयोग १८ देखो ४८८ ४८८ 2 . ४८८ ४९० २२ ४१० २४ का, ३ में २-३- का, ३ में असाव का.३ में ये ५ जानना अनासत्र ५ जानना. सूचना-पष्ठ ४९१ परदेखो। ५२५ सर्वकाल ५-४-३-७के १.१-०-४ के ४-४ के सर्वलोक का,६ में ५-४-३ के का. ३ में १०-४ के का, ६ में ४ के का. ६ में ४९३ २० ४९३ २८ २४-२४-१९-२३ ४९७ २० ४९८ ६ ४९८ १० ४९८ १४ ४९८ ४९८ १५ ४९९ ८ का.६ में ११-२३-१९ ___ . २४-२४-९-२३ का.३ में १-३. का.३ में १-१-१-३-१ का ६ में १-२ , १-३ के , को, नं.६ का ८ में को नं.६२ का. ६ में मअवधि १-१-३ के को.नं. १६ कृमवधि Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ५.२ ५०२ ५०३ २७ ५०६ २२ ५०६ ५ ५०८ १५ ५०८ १६ ५०८ ५०९ ५१४ ५१४ 71 1 ५११ २३ ५१२ ን ५१२ १२ ५१४ १ १३ १३. ५२१ ५२२ ५२२ ५ के नीचे २ १४ २२ ५१७ ५१७ ५१७ १६ ४११ २१ ५१९ २४ ५२१ २ २२ ५२३ २ ५२७ ५२७ ५२८ ५ ६ ६ के नीचे ५२९ ५ ५२९ १७ ५२९ ی शु का. ३ मे ११-०-४ का. ८ में १७ देखो का. ६ में ७ के का. ३ में ३ के. का का में २६-२ " का ५ में देख का. ६ में २ में " का त्रीन्द्रिय १ का. ३ में की नं १० का ७ में कोनं ७१ का. ८ में को. नं. ७१ का, २ में ८ ७ में सामंग का. ८ में सारेभंगो का ६ में को. न. ६ से का में ३-१-१-० का. ६९-११-१९ का. ६ में हरेक में का. ३ में 13 १ t १ के के ९-१-११ " का ५ में ८ देखी का २ मे वेद का ६ में २८ - २६-२३ का. ३ मे २५-२४-२-२३ का. १-२ में १ वें गुण. ८-१३ जानमा में का ६ में को. नं ६ का ६ में १६-१८-१ का. ७. १-१८ ८२१ ११-७-४ १८ देखी १७ दे २३ के २६-२६ द्यौद्रिय जोन्द्रिय प १ १ १८- १९ देख अपने अपने स्थान के ६५ पर्याप्त भी लब्धिरूप रहती है । को. नं. ७१ को नं. १७ को नं. १७ सारे गुणस्थान सारे गुणस्थानों क.नं. १६ ३-२-१-१-० १९-११-१९ हरेक में १ असंयम जानना. १-१ के १-१ के ९-१०-११ १८ देख वेदक २८-२५-२३ २५-२४-२३-२३ १३ वें गुण. ८५-१३ जानना सूचना- देवगति में पर्याप्त में अशुभ लेख्या नहीं होती १६ १६-१८-१९ नं. १६-१८ Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२० 4 पंक्ति अपुरता शुद्धता सदा-देनानि में पीय प्रयस्था में अशुभ लेश्या नहीं होते । नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा मनुष्यगति में। १ नरक देवति में और कर्मभूमि की अपेक्षा मनष्यगति में। १६-१९-१८ के नीचे ५३० २ ३ मा ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ करक मनुष्म ५३० २३ का. ६ में कर्मममि की अपेक्षा नरक मन व्य देवमति ५३० ६ का, ६ में १६-१८-१९ ५२ १२ १३ का. ३ में कर्मभूमि की . अपेक्षा १ नरक मनध्य देवति ५३० १२१३ का ६ में कमममि की अपेक्षा १ नरक मनुप्य ५३. १६ का, ६ में १६-१८-१९ ५३० २६ २७ का ३ में कर्मभूमि को अपक्षा १ नरक मनुष्य गति में। ५३० २६ २७ का.६ में कर्मभूमि की अपेक्षा १नरक मनुष्य देवगति देवति । का.६ में १६-१८-१९ ५३१ ५ का ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक और कर्म भूमि की अपेक्षा मनुष्यगति में। १ नरक देवगति में और कर्मभूमि की अपेक्षा मनुष्वगति १६-१९-१८ १ नरक और कम ममि की अपेक्षा मनुष्यसि में नरक देवगति में और कमभूमि की अपेक्षा मनष्यति १६-१९-१८ इस पंक्ति को इसके नीचे ८-९ के बीच पढा जाय 1 का. ३ में कर्मममि की अपेक्षा इस पंक्तिको इसके नीचे १९-२० पंक्ति के बीच पढ़ा जाय । का २ में ४ का ३ में कममि की अपेक्षा ५३२ २ इस पक्ति की इसके नीचे ५-६ पंक्ति के बीच पढा जाय । ५३२ २७ का ६ में २-२ ५३३१६-१७ का, ३ में कमभूमि की अपेक्षा इतना पढा जाय । ५३४ २-३ ५३४ २-३ का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक और कर्म भूमि की १परक मनुष्य अपेक्षा मनुष्य । का, में कर्मभूमि की १नरक देवगति में और अपेक्षा १ नरेक मना कर्मभूमि की अपेक्षा देवप्ति मनुष्यगति । Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२३ शुद्धता पृष्ठ पंबित अधुक्ता ५३३ ९-१० का, ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा तीनो ५३४ ५ का ६ में १६-१८-१९ ५३४ १२-१३ का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा तीनो का, ८ में मारेभंग का. में कर्मभूमि की अपेक्षा तीनो का, ८ में को नं. १६ ५३५ १९ .३ में २ नरक और कर्मममि की अपेक्षा तिर्यच और मनुष्य इन डोनो। १६-१९-१८ १ लरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिर्थच मनुष्य । १ नरक और कमभूमि की अपेक्षा तियंच मनुष्य । को. नं १७ ५५ १५ ५३५ २३ ५३६ ११ ५३६ ४ का. ६ में ओ. मिथ काययोग मिथकाय योग ? का ६ में ३४-२५-३८ का. २ में असंयमासंयम का, ४-५ में औ काययोग १वं. का योग १ ३४-३५-३८ असंयम ३ रे का. मैं के २६ आदि ,,,मगो के सामने। इस प्रकार मिन्ह लिख लेना २९-३०-३२ ५३७ ५३९ १ २ का. ३ में ९-३०-३२ का. ३ में कर्म भूमि की अपेक्षा. ५३९ ९-१० का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक मनुष्य को ३ में कमममि की अपेक्षा इस पंक्तिको इसके नीचे -४ पक्तिके बीच पढ़ा जाय। १नाक और कर्मभूमि को अपेक्षा मनुष्य गतिमें। ऊपर के ममान यहां भी लिख लेना ५४. २ १नरक और कर्म भूमि की अपेक्षा मनुष्य तिथंच गतिमें हरेक में। १४. ५४१ २६ २ का.६ में का का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा ५४५ ५४१ ४ ५ का ६ में एक एक जानना का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिर्यंच और मनुष्य ये ३ मनि जानना । एक एक गति जानना. १नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा मनुष्य गति । नरक और कर्म भूमि की अमेभा मनुष्यगति में भौर ५४११ कामें कर्मभूमि की अपेक्षा Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४८ पृष्ठ! पंक्ति ५४२ १-२ के बीच ५४२ ५४२ ५४२ १३ १९४३ ५४३ ૫૪૪ ५४४ १४५ ५४५ ५४५ ५४६ १ के नीचे ५४४ ८ ५४७ ܀ ५४७ 4 ५ ८ २ 1 ५ ४६ २ २ ८ अशुद्धता का ६ में का. २ मॅ ५४७ २ ५४७ १२ ५४७ १५ २ का. ३ में कर्मभूमि को अपेक्षा का. ७. में १ के ऊपर १ का ३ में कर्म भूमि की अपेक्षा ३ में कर्मभूमि का अपेक्षा क. ३ में कर्मभूमि की अपेक्ष का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा का. ३ में तीनों गनियो में का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा का ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा ३ फर्म भूमि की में अपेक्षा ず का३ में कर्मभूमि की अपेक्षा का में कर्मभूमि की अपेक्षा का में कर्मभूमि की जपेक्षा. का. ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा का. ३ में का ३ में कर्मभूमि की अपेक्षा का ६ में ३७-३८-९ का ६ में ४३-८ के का ६ में को. नं ७ * सुन्द्रा और को. न. १ देख १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिर्मच और मनुष्यगति में १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा नरक और कर्मभूमि की रुपेक्षी नियंच और मनुष्यगति में । १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिथंच और मनुष्य गति में । १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिथंच और मनुष्यगति में । देवगति छोटकर तीनों गतियों में. १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिष और मनुष्य इन दोनो गतियों में । १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिथंच और मनुष्यगति में । ? नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिस और मनुष्यगति में । १ तक और कर्मभुमि की अपेक्षा लियच और मनुष्यगति में । १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा तिर्वच और मनुष्यगति में 1 १ नरकगति और कर्मभूमि को . पेक्षा तिथेच और मनुष्य म दोनोगतियों में । १ नरक और कर्मभूमि की अपेक्षा नियंत्र और मनुष्यगतियो में | ३६ १ नरकगति और कर्मभूमि की अपेक्षा निष और मनुष्यगतियों में । ३७-३८-३० ४३ - ३०० के को. नं. ७५ को. नं.९८ Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " पृष्ठ ५५० ५५० ५५० ५५१ १९ ५५२ २४ ५५२ १६ ५५३ १३ ५५३ १२ ५५५ ₹ ५६१ पिं ५५५ २७ ५५६ १ ५६१ ६ के नीचे ४ ५५६ १६ ५५६ २० ५५६ १३ ५६० १९ ५६१ १२ ५६१ ५६१ ५६२ ५६२ ५६३ V ५ केन ५ के नीचे ३ ५६३ १० ५६३ १५ VER ४ ५६४ १८ ५६५ १६ ५६६ ९ ५६६ चे ५६६ १३ अशुद्धता का. ३ में ५६६ १५ ५६६ २५ का ६ में १-२-४-६ का २० का ६ में १८-१ देखो का. ३ में ३ का २६ मे २-१-१ के मा. ३ में ४-३ का ५ में से १९ देखो का २ में २ का ६ में ८-७-९ का. ८ में मंग का. ३ में ३७-५-४५ का. ३ में ५-४६ का ६ में ३-१२ के का ६ मे १ का. ६ में १०-३ वे का ४ में का ५ में कः ऊपर ६ का ५ में के ऊपर १ का. ४ में का. ४ में का ५ में का ६ मे १-२-५ ६-१३ का३ में नं. ७ का ६ में नं ८ का. १ में प्रा का. ६ मे १८-१ का में २-१-१-० का. ३ में ९ का ६ में ४--१९ का ३ में देखे का ३ में ४-३-३ के का. ३ में १-३ ८१५ शुद्धता सूचना- नरकगति में नहीं होते है। १२-४-६ गुण. को. नं. १ देख १८-१९ देव २ का ३-१-१ ४-६-३ देवी १ ८-१-३ १ ध्यान ३७-१०-४५ ५१-४६ ३२-१२ के २ १-२-३ के सारंभंग १ मध्यमत्व सारेभंग सम्पन्नत्व सारेप १ भग १-२-४-६-१३ भूग १७ नं तं १८ ४ पण १८-१९ ३-१-१.० तं १९ २४-१९ १७ दे ४-१-३-३६ १-१-३ Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ घुवता २-३-३-३-१ पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता ५६७ ६ मा. ३ में २-३.३.१ ५६८ १७ का. में ८-९-१०-१-७ ५६९ १६ का ३ में ३७-४० का, ३ में २-२२-२३ का ६-७-८ मे अपर्याप्ति अवस्था नहीं होती, ५७५ ७ का ३ में ३ २४-२२-२३ सुचना-महा अपर्याप्त अवस्था नहीं होती. १-२-४-१-१२ ५७५ ११ ५७८ २० ५५८ २३ को.नं. १६-१७ ३-१-१-. २-१-१ के १३-११-१३ २५-३३ २-३-३-३-३ के. ५७१ २ ५७९ २२ ५७१ १४ ५८०२ ५८. ५८० का ६ में ! का. ८को. नं. १-१७ वा. ६ में ३-१-० का. ६ में २-१ के का. ३ में १३-११-1 का. ६ में २-२३ का. ३ २ -३-३ के का ३ में ३-४ का. ५ में १ देखो का. ७ में न ६-१९ का. ७ में नं ७ का. २ में को. नं.१८ का. १ में १६ सम्यक्त्व । का, ६ में १६ -१ देखो का. ३ में ६-६ के का. ६ में ३२-३३-३५ का. ७ में लोरे का. ४ में देखो का.३ में ६-४-६ का २ में? का, ६ में २-१-२ का. ६ में ४-२४०२३ का. ७ में ६-१८ का. ८ में से का ३ में ५५ का. ३ २४-२५-७ का. ४-५ में - ११ देखो नं १६-१२ नं. १७ को नं १ १७सम्यक्त्व १६-१९ देखो ५८१ २ ५८२ १६ ५८३६ ५८४ ८ सारे १९ देखो ५८८ ६ ५९१ २५ २४-२४-२३ १६-१८ ५९४ २२ २४-२५-२७ ५९७ १४ १-१ Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्ड पंक्ति शुद्धता शुद्धता ५९७ १८ ५९७ १९ ५१७ २. १९७ २३ का. ३ में न अनाहारक का ३ में मप्रभव्य का. ४-५ में .-. का. ४ में - का. ३ में का. २ में १. का, २में १८ देखो २२ लाख न असंही न अनाहारक २ युगपत २ युगपत ५-५ सूचना-पष्ठ २९८ पर देखा. ६.० २० ८२ देखो ८४ लाख २४-२३ को.नं १७ को.नं १८ पत्यका ७ लाख ६१० ६१. ६११ ६११ ६१२ का.३ में २-२३ का.८ में को. नं. १६ का.८ में की मं. १७ पया लाम का. में १६-१९ से का. . का का. ५ में को, नं. १९ से का,४में मो. ५ १ ५ ११ २ १० का की.नं १६ म को. नं. ६१४ २ ६१४१ ६१७ २० का.२ में को. न. ९ का २ में को. नं. १. का ३ में १६-९ देखो को. नं.३ को नं. ३ १६-१९ देखा १ मंग १अरांयम जानना ६१८ २५ का.३ में २०-९-१९ ६१९३.४.५ .का. ४ में परिहारवि बुद्धि घटाकर ४ ६१९ १८ का.३६-१९ का ५ में १ज्ञान का, ६ में १ वर्शन ६२१ २ का ३६-३ के का, ३ में ४१.४-४० ६२२ २१ का. ३ में कल्पवासी नववेदक १ दर्शन १ लेश्या ४१.४०-४० काल्पवासी-नववयक ५९ प्र. में से ६२३ ६२४ ८ ६ ४६.१४६ का. ३ में देवगति में सूचना-नरक नियंच और देवगति में। Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धता १गुण. सारभंग को, नं. १ २१-१७ १८ देखा स्त्री-नषकमेव पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता ६२४ १ का. ५ में गण. ६.४ १० का. ३ म १ ६२४ २१ का. में के ऊपर का,५ में १ मंग ६२५ १४ का. २ में को. नं. का, ३ में २१ का, ८ में १८ ६२७ ४ का. ३ में १८-१९ देखा ६२७ २८ का. ६ में स्त्री-पुरुषवेद २ ६३० ३ का, ६ में मारे मंग का. ८ में के सारेभंगो में का.३ में पंच १० का. ४ में १६ का.३ में ३ के का.६ में ८ का.५ में नं. ७ का.६ में ३३-३३-३३ (देखो गो क, ग) का, ५ में • गुण. का.६ मे था का. ३ में ४ ६४१ १४ का.३ में ६ म सारेगुण. के सारेगण, में पृष्ठ ६४० ३-४-1-1-३ ६३८ नं.१७ ३३-१२-३३ (देखो गो, क. गा. ५५०) का ३ में तिगंगा। म का ३में नियंचति में ६४२ ५ ६४२ १५ ६४२ २२-२६ ६४२ १३ का. ७ग मंग ४ था ४ को काट डालना चाहिये १६ मे सूचना- पृष्ठ ६५२ पर देखा तियंचति में भोगभूमि में तिर्यचति में भ सूचना-पृष्ठ ६५२ पर देखो सारेभंग सुचना-पय ६५२ पर दम्बा तियंचति में भीगभूमि में तिथंचगति में शागर्भाम में १-:-: के तियंचगति में भोगभूमि में २-१-१-४-२० १९ का m १४३ २९ का ३ में निर्यचल में का ६ में तिर्यचति में का २ में -०-२के का ३ में नियंचति में का. ३ में २-११-०-२० का ६ में ९ का Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ पंक्ति परता शुद्धता ६.४ १६ ६४४ २१ ६४४ २७ ६४५ १. ६४५ २३ का. ६ में १९-१-०-९ का.में तिर्यचगांत में का ३ में ३-४-१-४-१ के का। में तियंचगति में का.३ में तिर्यचगति में का. ३ में। संज्ञी जानना १९-११-०-१२ लियंचगति में भांगमि में ३-४-३-४-१-३ के तियंचगति में भोग भूमि में तियंचति में गोगभूमि में सूचना-पृष्ठ ६५२ पर देखा १संजी जानना परंतु तिर्यत्तति में भाग भूमि की अपेक्षा आनना । १ मंशी पर्याप्तवत् जानना नियंचगति में भोगमि में तियं चाति में भोगभूमि में तियंचति में मोगभूमि में ९-७-१-१ तियंगति में मोग मूमि में दर्शन ३ ये क्षयोपशम भात्र की अपेक्षा जानना, केवल दर्शन तो ९क्षायिक भावों में गभित हो सका है। २२-२० के को.नं. १८ के का में संशी जानन! का.३ में तियंगति में का ३ में तिर्य चगति में का, ३ में सियंचगति में का, ६ में ९-७-९ का ३ में तिर्यचत्ति में का.२ में दर्शन ३ ६४८१ १४८ १५ ६४८ २६ ५४९ ७ ६५. ६५. २२ २३ का ३ में २२-२ के का. ३ में को. नं. ६५२ १३ निम्न प्रकार सुचना लिख लेना चाहिय के नीचे सन्चना-चौतीसस्थान क्रमांक २,३,६,७.८और १६ के सामने ३ रेकॉलम में चारोंगतियों में से तिर्यंचगति में गोगममि को क्ष जानना । का. ५ में भंगो में का ६ मे २५-२ २५-२५ ६५६ १८ का ६ में २-३ के 1-२-३ ६५७ ६ का. ३ में २-३-३ का १ में १३ ददान १४ दर्शन ६५७ १४ का ३ में २-३ ६५८१ का, ४ में देखा १६ देखा ६५८ १० ६५९ ६६. ६६१ ६६१ १ ४ ९ ९ का ६ में -६ का ६ में ४ का. ३ मे ३१-२७-१ का ३में २७-२६ २७.२५ Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को.नं. १ के ११७ में से दोनो सामान पर्यत पर्वत १ वैद पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता ६६१ १८ का ६ में २१-२७-२६ की. नं.१ के १०७ में से ६६३ . का.७ में गुस्थान ६६३ १३ का, ३ में । के ऊपर ६६४ ३ का.२ में पर्याप्त ६६४ ५ का.३में पर्याप्त ६६४ ६ का. ५ में वेद ६६४ २० का.६ में१-३ के का. २ में अभय ६६५ १५ का, ३ में २ मिथ्यारव ६६५ २३ का.३ में . के ऊपर ६६५ १२ का, २ में कापोत पीत का, २ में २८ __ का. ३ में २८ ६६६ १२ का. ३ में २७ के का, में २४-२४ का, ५ में . गुण का २ मे को.नं. ६७० १२ का. ५ में की. न. १९ ६७० १६ का, ६ में ४ अमव्य २ का अंग कायोत २७ २४-२५ १ गुण. को, नं. १३ को.नं.१८ ६७२ १ का ७ में सारे मंग सारे गण. ६७३ १३ का. ५ में १ योग का. ८ में १ योग का. ३ में ४-३-१.१ का. ३ में ९-१९ के ६७५ १६ ६७५ २२ ६७५ २८ ६७८ १४ के नारे ६७८ २८ ६७९ २० ६८. ४ का. ५ में वेद . का ६ में २-१९ का. ४ में ५ में १ मंग ४-३-२-१-१.०-४क ९-२-१-१ के १ वेद १ वेद २३-१९ के को.नं. १८ देखा का. ६ में ९ देखो का ३ में ३-५ का.. में ८-१..के Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८.१ शुखता पुष्फ पंक्ति ६८. ७.. १८. १३ ६८. २३ ६८१ २ मानता मो. ई में ८-१.--11- का, ३ में ३ का. ६ में १-३२ का.३ में ५४६ ५१ ४६ २ १०३ ६८. ६८१ का, ९ में ४० ४३ ,३९४ २९४० १२ १३ गुण, को नं. १८ देखा १९ देखा १८२ .८२ ६ का ७ में १७६ ६८२ ६८४७ का ६ में १४१३ ८४ ४ का ४ और ५ में के नीचे का.८ में देखो १८६ ३ का २ में १ १८६ ४ संशी पं. जाति १८५६ १८ देखो ६८५ १४ का. ३ में गतवेद ६८७ का.२ में ५२ ६८७ २३ का..६ में २४ २४९ १८८ १६ का.६ में ११ ६८८ १७ , कोनं ८ १८८२३ १ २२२ भंग ६९.१२ का. ३ में को. नं.१ देखो १ देखो अपगतवेद २५ २४ २४ १९ को. नं. १८ १ २२२३ केभंग १ मनुष्यगति में १९. ११. का. ६ में २४६ के १९१५६ का. ३ में १ मन प्यगति में १९२ १ को २ में ८ १९३ १९ १९४ ५ १९९। का २ में अंध हो जाम है, १९९ ।। अंध हो जाय है, इसी तरह मिथ्यादि जीव मारीच की तरह सच्चे देव गुरू शायमा दर्शन ही नहीं करना । इति १९४ १. दुसरा रकाना अष Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ वक्ति अशुद्धता शुद्धता ६९७ १ चौतीसस्थान वर्शन ६५८ १०१ में २ काने में नियोग ३९८ १ २रेका. में इकरा ६१८ ६९८ २९ चौतीसस्थान दर्शन का विवरण, नियोग इतरा " भानो , जय मानी ईसानो २ रे काने में तरक १ले का. में कर्मकार आतंगति ,, निसच १ले कान में सुधाशिव , परपत्र जन का. २ में का. ११ में ४ बवानो नरक कर्मकाट अतिगति तिर्थप मुर शिव परपंच जन ७०२ ७०४ ५०६ ७०८ ७०८ ४ मादिक १ ले काने में कम २ रे कान में सज्वलन मान ., नामकम के ६५ नामादिक कर्म संघलना क्रोध मान नामकर्म के ६७ भेद है , ८८ " फल २ रे माने में बंधन ५ और फक्त बंधन ५ मंधात ५ और गति ७१० २१ " आणि बंधन ये संथात ५ औदारिक शरीर संघात २ रे काने में गंडरा , पिबका गति देवगति और बंधन आहारकः बारीर । बंधन तंजस शरीरबंधन सफेद पीला ये २ ७११ ७ ७११ २० १ ले काने में ८ १ जानना २८ २१ जानना ७१ २३ २रे कने में अभु अदाम Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुष्ट ७१२ १२ ७१२ २० ७१२ ११ ७१२ २४ ७१२ २६ ७१३ ५ ७१४ १८ ७१४ ७१४ ७१४ ७१५ ७१५ २ ७१५ ३६ ५ ७१५ १२ ७१५ २८ ७१६ २ ७१६ ६ ७१६ 19 ७१६ १३ ७१७ ६ ७१७ १६ ७१७ १८ ७१७ Va ७१८ १८ ७१८ २९ ७१९ ११ ७१९ १७ ७२० V ७२० १८ के नीचे ७२० ११ ७२० रु · ७२० क १५ ७२. २० १ ले रकाने में तिथेच यापूर्वी जातिनामकर्म f २ रे रकाने बँक J मिध्याय १ १८ १७ २ रे काने में बात का. ३ में का. 33 33 12 प का २ में २ २ 37 डा. ३ में 44 १ का २ में ० बा . का, ३ में १३-१४ गुल. +7 13 १५ दिन او 39 का ३ में . वे का. २ में ४ वा कर. ३ में बंध उ. " ७१९ ४ का १ में सदशक १ ७८९ १-१-६-२ निरम्रतिपक्षी ११५ १९ ४ से ९ +3 का २ में १ अपकर्षण ü དྷྭ ● " का. २ में 39 ऑन प्रचल १ ८१६ का ४ में उपसव गोवालों की का ३ नं १-१-१-० का. ४ में २-१-०-० का. ४ में श्रेणी की अपेक्षा शुखला तियं जगत्यानुपूर्वी १ जातिनामक ५ अथ निया है. कप १६ १९. आतप १ उद्यत १ हरयान काट डालना १५ दिन त ७१५ २० २० २० ८ मूर्त १० वा १३ १४ वा गुण. ५ वें ६ व १. गुण में में ४९. ८ अपकर्षण मे १० स्थावरदान जानना तंत्र सदशक १० १-३-२६-२ निरंतर होता रहेगा अर्था और निद्रा १, प्रचला १ ४९-९०० ७२० क से ७२० तक देख उपशम भी या क्षणी 1-1-1-1 १-०-०-० श्रेणीवालों की अपेक्षा Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ ७२० क २८ ७२० १० ७२० ३० ७२० ग ३५ ७२० १३ ७२० ३२ ७२० घ १८ ७२० रु ११ ७२० ड्र ४ ७२७ ङ ७२१ ७२१ पंक्ति ७२२ ७२२ ७२२ ७२१ १९ ७२१ २४ ७२१ २५ E ७२२ ७२२ ५ केमोथे ७२२ ૫૨૨ १५ ७२२ १३ २७ ३० ७२२ ३६ ना.४ मे सम्यक क्षपकश्रेणी का. ४ में किसी सबैद का ४ में स स ० 9 का. ४ में ३२-३०-२ का. ३ में अपर्याप्त अयम्सन होऊ घ का ४ मे १ अशुद्धता श्री ३ मं १०१ का ४ मे १९१-८६-८१ नीचे के सूचना में देखो प्रकृतियों और १४ वें नीचे के सूचना में देखो दोनो से कोई १ वेदनीय कर उदय १ने में में परिमान ने का " २ रे काने में उपगागि دو में है वह स्वा जाय। १ से जाने में १२ रे रे वृषमनाराय नाराच * वध १ ले खाने में और २ रे खाने में की पंक्तिति २६ के नीचे इस तरह पूरा रेखा खीची जाय कारण इस रेखा के नीचे का विषय अलग इस रेसा नोचे जानें में जो प्रश्न है उसका उत्तर दूसरे खाने १ JP " शुद्धता मभ्यश्व और क्षपको किसी भी संवेद १ ले २ रे ३ रे वस्त्रनाराच ४ ६ वृष मनाराज ७ के नीचे जो प्रश्न और उत्तर छपी है वह गलत हैं उन दोनों को निकाल देनी चाहिये । १ ले खाने में २९-३०-१ oodpo १३२-३०-३२ अपत अवस्था में ही हो सकता है । १- १ १-१-० १०१-८५-८५ प्रकृतियों में और १४ वें दोनों में से कोई 1 वेदनीय का उदय परिणम ने परिणमा का उपायाति वज्र नाराष, नाराच २९-३०-३१ २ रे खाने में इस तरह पूरा रेखा ही जाय कारण मी का विषय के खाने में का है अलग है | १ ले खाने में इस कारण इसका कारण के अर्थात ज्ञानावरण के पांच भेदोंकास्पद पंक्ति के नीचे २ रें खाने में इस तरह पूरा रेखा खीची जाय कारग नीचे का विषय अक्रम हूँ । २ कामे मतिज्ञानावरण कर्म नतिजानका जो आवरण इस पंडित को पृष्ठ ७२३ केले खानें की पहली पंक्ति के ऊपर पड़ा जाय। Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३५ पृष्ठ पंक्ति अशुद्धता भुक्ता ७२३ ८ १ ले माने में मनःशानावरण मन:पर्ययमानावरण ७२३ १२ , चक्षु में चक्ष से ७२३ २४ २ रे खाने में साताधेदनीय असातावेदनीय ७२३ ३२ नोष कषाय नोकषाय ७२४ १ १ले खाने में. ७२४ १ १ले खाने में उन ७२४ १२ २रे खाने में में १२ से १९ पंक्तियां यहां गलती से छपी गई है इसलिये इनकों यही पृष्ठ ७२४ के १ ले रकाने में अंतिम पंक्ति के नीचे इस तरह पूरी रेखा खींची जाय और उस रेखाके नीचे इन पाठ पंक्तियों को पटा जाय । ७२४ १९ और २० पंक्तियों के बीच में इस तरह पूरी रेखा खींची जाय कारण इस रेखा के . नीचे का विषय ले खाने में का है बलग है। ७२५ २९ १ले खाने में रें खाने में शरीर के देवशरीर के ७२६ सबसे नीचे का रेखा के नीचे का पंक्ति यहाँ गलतीसे पो गई है इसको १७२५ केरेर काने के सबसे नीचे इस तरह पूरा रेखा खींचकर उसके नीचे पढ़ा जाय । २ रे कान में १-१ ७२७ २८ , आतय १० आलप ७२८ २७ १ ले खाने में ततोस्थि ततो ७२८ २७ २रे खाने में प्रा : प्राज्ञ: . ततो १४३ ७२९ २६ से २७ ये पांचो पंक्तियां २२ रकाने से निकालकर १ ले रकाने में उसी पंबिनयों में पढा आय अर्थात् १० कषायों का नाम कषायों का कार्य इस प्रकार १ ले रकाने में ही पडो कारण ये पांच पंक्तिपा २२ रकाने में गलती से छप गई है। ७३० ६ २ रे खाने में संयास सन्यास ७३० ११ गा. ६७ १. ४ ले रकाने के नीचे श्रमदान श्रद्वान ७१ १७ , और गलहीसे छपी है निकाल देना ७११ ६ २रे रखाने में वर्गरह वगैरह गणस्थानों में ७३१ १७ ९४ से १०२ ७३२-पहले कॉ में जो गणस्थानों के नाम छपे है ये पंक्तिबद्ध नहीं है इसलिये उन को क्रम मे २रेका में के.-१०-४-६-१ इन पंक्तियों के पंक्ति में रख कर पढ़ा जा। ७१२ २२ का. ३ में इस इस माय Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५६ qठं पंक्ति अशुद्धता ७१३९ का. ३ में सुम शुभ । कोर की ४६-३-४३ ७३४ ५ का.५में १७-३-४३ ४३-१० १-३२ ३७-५ की. नं. १ का. ५ में ३२-७-५ ७३६ ७३८ ७३१ १६ ७४. ७४. १ ७४१ १३ प, रकाने में जिस बंध का सप्तत १ रकाने मेंकम स्वरूप में २ रे रकाने में कम विभाग से का. ५ में २२-१२ वेदनाय के ऊपर के १ में से २में से ४ १ लें रकाने में जो २ २ रे रकाने में वा १से रकाने में मेरे २ रे काने में बाको बची सब प्रकृतियों का उदब . का. ५ में अप्रत्याख्यान का ५ में ५६-. २२ गुणस्थानी का. ५ में जिस बंष का चसनत कर्मस्वरूप कम विमाग से २२-२१ वेदनीय के १ प्रकृति साता या असाता ऊपर के २१ में से ये २ऐसे ४ जो २५ ६ वा में से यह विषय २ र रकाने में से निकालकर १ ले रकाने में रखना चाहिये। प्रत्याख्यान ४१ २२ २८ गणस्थाना गं १८ रकाने में अयोगशाम में ११.१-२० भयोपनाम गुण का इस कारण असाता के ११७ ५४५४ २रे रकान में स कारण , असाता देवक का. ३ १० ७४. ७४ २रे रकाने में का ७४७ १३ , ओ ७४८ १ २रे रकाने में करने क और करमेका Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक पंक्ति ७४८ १७ के नीचे ५ ७४८ ७४८ ७४८ ०४९ ७४९ ७४९ ९ ७४९ २० ७५० ५ ७५० ७५० ७५० १४ ७५० २७ २८ ७५० ७५१ ७५१ १६ ७५१ २ ७५१ ७५१ ७५२ ७५२ १४ ७५३ ३२ ८ ७९४ २७ ७५७ १४ ७५७ १४ ७५७ १६ ७५७ १८ ७५७ १२ भशुद्धता १ के खाने में २ रेराने में २ रे रकाने मिं ठिक का "" का. ५ में नरका १ क. १० دا का ५६८३४ का. १०३ १२ का ५४५ १=४५ नाम १३ १ ये ७ ६७२= ७५ גג 3 29 33 पृष्ठ १ सेक ८ प्रत्याख्यान कोणासह २ रे रकाने में अषः प्रवत्तण २ रे रकानें में यो 33 37 12 से ७ स्वष्टि ८३७ प्रतिरूप अपनी अपनी अपनी 39 २१. ८ में ये 31 का.. १ में स्थाय २ रे रकाने में गो. ४० से १ ले रकाने में सूचना पुजता अ] आर्थिकसम्म दृष्टि होने का म एक जीव की अपेक्षा मिध्यात्व गु में आहारवादक ओर तिर्यकर प्रकृतिका तरय केस रहता है। द्विक २ द्विक २ का नरका १ ० १६ २६÷८÷३४ १०३ १०२ ४११०४५ नामकर्म के १३ १ ये ७० ६३+७२= ७५१ अप्रत्यास्थान और प्रत्यास्थान कोषासहित अधःप्रवृत्त प्रयोजन ४ रो ७ सम्यग्दष्ट प्रकृतिक अपनी अपनी ये ३. " त्यान गं. ४१० मे यह सूचना २ रे रकानें में पढा जाय २ रे एकाने में अर्थात जादा होगा परमाणुकात जादा पवा १ ले रकाने के नीचे दशकरण अवस्था धूलिका दशकरण अवस्था चूलिका. १ केरखाने में Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८३८ . . पेष्ठं पंक्ति अशुद्धता शुद्धता परिणमन जाना १ले रकाने में से ४० ७५८ ८ परिणमन हो जाना से ४४० करण ७६१ १३ का. १० में ये ७ Lal • ७६२ १-२ ७६४ ७६४ ५ १ ७६४ २६ ७६६ १२ ७६७ ६ ७१८ ७६८ १. का.३ में. का. ९ में। का. ३ में कुक्षवधिदर्शन अवधिदर्शन गो, क, गा. ५०० पो. क. गा. ५०१ या मार्गणा लेश्या मार्गणा १ले रकान में बालकप्रभा बालकाप्रमा २रे रकाने में ये , द्वीन्द्रिय दीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय चतुरिन्द्रिय २रे रकामे में मरण मरक मरण करना , अपराध अपर १ ले रकाने में १ से १४ का, में ८ अनियत्तिकरण १ अनिवृत्तिकरण . २२ रकाने में हो, यता करे तो देवमति में देव अथवा मनुष्यगति में २ रे रकाने में मरे तो देव मरण हाय तो देव अथवा मनुष्य अथवा मनुष्यगति मनुष्यगति २ रे रकाने में देव, तिर्षभ वेत्र, मनुष्य अपवा अथवा नरक होगा . तियंचगति में जायेगा यदि ४ . . भाग में मरण हा तो देव, मनुष्य तिथंच अथवा नरक होगा। ले रकान में पर्याप्ति काल पर्याप्ति भाषापति काल २ र रकाने में इन दोनो बिसयों को १ ले और दूसरे रकाने के मीच एक पंक्ति में पढ़ा जाय। का. र म कार्माण का योग कामीण काययोग मे रकाने में यह जाव यह जीव , कते है पल्य असंक्यात पत्य के असंख्यात र जावे रहनावे २ रे रकाने में ७६८ ११ . ७५९ ४ ७७. ८ ७७० ११ ७७. ३० ७७. ३१ ७. ९ Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक पंक्ति पशुवसा शुद्धता ७७१ ४७२ ५ ७७१ १८ ७५२ ३ ७५४१ ७५४६ ७५४१. निषेकाची १ले रकाने में पित्या २ रे रकाने ६० १ ले रकाने में कली घान , १. स्व रे काने में उपय ५७ उत्तर मामब के का.२ में ३ का.में आलारक निषकोंको तित्वा ६४० कदली घान १२ स्वर्ग उदय १ आसन के ५७ मर भेद के आहारक काययोग आधारक मिश्रकायाग माव प्रत्यनीक प अंतराय से दुसरे को जाने के भाव १जीवश्व कोई आरार्य मिद्भगति में क्षाविकमात्र मत है उन २६ भेदों को ७७६ ३. ' मागद ७. १ १ का २ में प्रस्यन की ७७६ ३ , से ७७८ २ होने हुए उत्पन्न हुये ७७८२ जावे भाव ७८२ ८ को में . ७८२ सूचना-कोई आचार्य क्षायिक भाव ७८३ २ १ले रकाने में मत है ३३ गेदो को ७८३ : १ले रकाने में ४४८ ७८३ १५ भवरुप . ७८३ १५ २ रे रकाने में ८७८ ७८३१८ १८ वेद ७८३ २१ ७८३ २३ नियसो ७० ३२ दूसरे स्वाने में १४ ७८४ १ १ले रकाने में जोब आसव ७८४ २ . नास्तिकपन भावप १८. भेद अजीवं नियती रमाव. १४ स्वभाव की जीव, अजीर, आयव मास्तिपन सप्तमंग से भेद होते है सप्तभंगसे इसके आगेका विषय न जानना जैसे कि 'जीव' इत्यादी यही ७८४ पृष्ठ के २ रे रकाने के (एक से ७ पंक्ति के और होते है यहां तक समझना । ७८५ २ ३ रे. रकाने में दोनो बानाकी तीन दोनो वा अपवतव्य वा बाकी तीन Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृष्ठ पकिम अशुखास अदत्ता 784 385 7.5 कर्ण अस्तिनास्ति गुणा परिणामों की होना जानना निषेकहार दून। प्रमाण निषेकहार होते है ये अपकर्यकाल मानना 5 2 र रकाने में अस्ति-नारिस , गण , प्रमाणो की १ले रकाने में होना चाहिये / 22 रकाने में निषेकाहार 4. . गुना माण 5 , निषेकाहार 8. ... 2 रे काने में होते हैं व 781 786 786 785 भपरिबर्तमान परिणाम वह शाम मुख्य शब्द के स्थान में पढना चाहिये 469 देखो वर्गणाका सह पद्धक 788 787 26 2 रे काने में 69 देखा 788 2- 3 १ले रकाने में वर्गणाका स्पर्वक 788 4 १ले रकाने में सम्हस्थान " गा. 660 देखो 789 15 के नीचे अंगोपांग य 2 जानना , श्वानके समान 18 स्थान इसको निकाल देना चाहिये अंगोपांग 12 जानमा , गा 20 इसको यहां से निकाल देना श्वानके निवाके समान है गा. 220 प्रत्यनीक प्राण 23 रकाने में प्रत्यनिक , 105 की , मा. 158 मा.३५८