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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २६ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में १७ सम्बक्त्व सारे भंग १ सम्यक्त्व : सार मंग । सम्यक्त्व मिथ्यात्व, सासादन, (१) नरक गति में सूचना-अपने । अपने अपने | मिश्र घटाकर (५) सूचना-पर्याप्तवत्।। पर्याप्तवत मिथ, उपशमसम्यक्त्व, १-१-१३-२ के भंग को० । अपने स्थान के | स्थान के मंगों जानना । जानना भाविक, नागोमाम मकान में जानना में में कोई १ (१) नरस गमि में । ये ६ सम्यक्त्व जागना (२) नियंच गति में । सम्यक्त्व १-२-२ भंग को.नं. । १-१-१-२ के भंग को नं. जानना समान जानना १७ के समान (२) तियं च गति में (1) मनप्य गति में १-१-० के भय को० १-१-१-३-३-२-३-२-१ के नं०१७ समान जानना भंग को० नं०१८ के समान (३) मनुध्य गति में जानना १-१-२-.-2 के भंग (४) देव गति में को० नं०१८ मे समान १-१-१-२-३-२ के मंग को (४) देव नति में । नं. १६ के समान १-१-३ के भग को.नं.: (५) भोगभूमि में तिर्यच १६ के समान मनुष्य गनि में (2) भोगभूमि में तियंच १-१-१-३ के भंग को.नं. मनुष्य गति में १७-१८के समान १-१-२ के भंग को | २०१७-१% के समान | १८ संजी १ मंग १अवस्था १ भंग २ अवस्था संजी, (१) नरक-देव गति में । सूचना-अपने अपने अपने । (१) नरकदेव गति में सुचना–पर्याप्तवत का रंग को. नं०१६-२६ अपने 'यान के स्थान के का भंग को नं०१६-| जानना जानना के समान जानना भंगों में से कोई भंगां में से १६ के समान वानना (१) तिर्यच गति में १ भंग जानना कोई१ (२) तिर्यच गति में । १-१ के मंग को.नं० १७.. अवस्था १-१.१ के मंग को के समान जाननानं०१७ के समान जानना। (३) मनुष्य गति में । (३) मनुष्य गति में । १-० के भंग को नं. १८ के | 2-0 के भंग को नं समान जानना १८ के समान जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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