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________________ (२०६ ) कोष्टक नं० २६ चौंतीस स्थान दर्शन संज्ञो पंचेन्द्रिय जीवों में देखो (४) देव गति में (४) देवगति में २-३ के भंग को.नं.१६ ! २-२-३-३ के मंग में को। के समान जानना 'न०१६ के समान जानना (2) भोग भूमि में (५) मोग भूमि में तियं मनुष्य गहमें ! च-मनुष्य गति में २-३ के भंग को.नं. १७ | २-३ का भंग को.नं. १८ के समान जानना । १७.१८ के समान जानना १५ लेश्या १ मंगलेश्या | १ भंग १ तेश्या कृष्ण-नाल-कापोत- (१) नरक गति में चना-अपने अपना अपन अपन१) नरक गति में पर्याप्तवत जानना पयतिवत जानना पीत-पद्य-शुक्ल ३ का भंग को. नं. १६ स्थान के भंगों में में स्थान के भंगों में ३ का भंग को नं. १६ ये ६ जानना | कोई भंग से कोई लेश्वा देखो | (२) तिरंच गति में जानना १२) तिथंच गति में ६-३ के भंग को० नं०१७। ३ का भंग को०म०१७ : के समान जानना देखो ! (३) मनुष्य गति में (3) मनुष्य गति में ६-२-१-० के भंग को नं. ६-३-१ के भंग को. नं. १५ के समान जानना . १८ के समान जानना (४) देवगनि में (४, देव गति में १-2-1-1 के भंग को नं. ३-३-१-१ के भंग को. १६ के समान जानता नं०१६ के समान जानना (1) भोग भूमि में (५) भोग भूमि में तिर्यचनियंच-मनुष्य गनि में मनुष्य मन में हक में का भग को नं०१६ १ का भंग को नं० १३. के समान जानना १८ के ममान जानना १६ मब्बत्व १ भंग : अवस्था । १ भंग १अवस्था भव. अभव्य । चारों गनियों में हरेक में अपने अपने म्यान के अपने अपने स्थान चा मनियों में हरेक म । पर्याप्तवन जानना पापबत जानना | २.१ के भग कार १६ मे १९ भंगों में न कोई १ के भगों में में | २-१ के भय को. नंः । भंग कोई १ अबस्था १६ से १६ के समान
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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