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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नम्बर १८ मनुष्य पति १० बंद ३ कोनं.१ देखो मारे अंग बंद :-३-:--2-2-2-२-१-०-२ अपने अपने स्थान के ३-१-१-०-२-१ सपने अपने स्थान के के भंग के भंग जानना (१) कर्म भूमि में ३ के मंग में में कर्म भूमि में १ ४ मुगा० में ३ का भंग में कोई १ वेद -: गूगा में ३ का भंग भगों में मे ३ का भय न सक, स्त्री. जानना ३ का भंग पर्याप्तवन तीनों। कोई बंद पुन्य वेद ये : का भंग जानना । वेद जामना जानना वे गुग में .: का मंग चे गूगा में गुरुप वेद जानना पुरुष वेद ३ का भग पर के तीनों वेद १ पृष वेद जानना जानना जानना ६ गुण में । ने राग में 2-१ व भंग जानना ३-१ क भंगों में प्राहारक मित्र काययोग १ पुरूप बंद ३ का भग भी काय यान की में काई बंद को अपना १ पुरुप वेद जानना अपना जगर तीन बंद जानना जानना जानना १. गुग में १ का भंग आहात काययोग (0) बा भंग केवल समृद्को अपेक्षा एक कर वंद भान को अवस्था में प्रगजानना गत वंद जानना अब वे नगा। म ३ का भंग के भंग में मनना-नय पनिक का भग का कमान वेद काई १ वेद मनुष्य नामक वेद वेदी जानना डानना हा होना है और नग्ग- म --१-. -2-1-3 अंगों भिग्यान ही रहता है ना भंग के अंगों में से भन जानना में मे कोई । वेद (दरा गो. क. गा० कोई वेद का ग ? भाग में जानना FE: मोर !.। जानना नग्नों वेद निप .श्री-गुरुप) 17 भोग भूमि में १ गुरप वेद जनना। १ पुरुष देव बननः ने नगण में जानना का भरे भान में दी. पु। ये व मानना - जनना का भग भ: म १ पुरुष वेद जानना १ पृरए देव जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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