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________________ ३ चौंतीस स्थान दर्शन २ को० नं० १ देखो ५ गुंजा को० नं० १ देखी 1 १ मंग 1 १ मंग (१) नरक मनुष्य गति में को० नं० १६-१६ को ० २६-१०१६ देखी १६ देखी हरेक में ६ का मंग 1 को० नं० १६-१०-१२ देखो (२) नियंति में ६-१-४-६ के भंग को० नं०] १७ देखी ܕ ४प्राण १ मंग [को०नं० १ देखा (१) नरक मनुष्य देवर्गात में को० नं० १६-१८ १६ देख हरेक में १० का भंग १० नं०] १६ १६ १६ देखो (२) निर्यच गति में ( YER } कोष्टक नं० ७१ ९ भंग १०-६---७-६-४-१० के भंग को० नं० १७ देखी को० नं० १७ देखी 6 (२) मनुष्य गति में ? भंग १ भंग को० नं० १७ देखो [को० नं० १० देखो १ भग (१) नरक-निर्यच देव मति मे को० नं०१६-१७ १६ देखी हरेक में ४ का भंग को० नं० १९-१०-१३ વો ४३-२१ ० ४ के मंग को०म० १८ देखो ३ १ भंग १ भंग २६ देखी (१) नरक मनुष्य- देवगति को० नं०१६-१००१६-१८में हरेक म का भंग को० नं० १६० १६० १६ देखो । १२ देख (२) नियंच गति में ३३ के भंग को नं० १० देखी अपने अपने स्थान को ६-२-४ पर्याप्त भी होती है। 1 ७ I 1 १ मंग कोनं १६-१०१६ देखी १ भंग कामं० १० देखी १ भग को० नं० १६-१७ १६ देखी १ भंग १६ देखी ( १ ) नरक मनुष्य-देवगति को० न० १६-१८० हरेक में | का भंग को० नं० १६.१० १३ देखो (२) तिचंच पति में ५-७-६-५-४-३ के मंग को० नं० १७ देखी १ भंग [को० नं०] १० देखो अचक्षु दर्शन में I मारे भंग १ भंग को० नं० १८ देखो की०न० १८ देखी T १ भंग को० नं० १७ देखी 1 3 १ भंग १६ दंत्रो (१) निच-मनुष्य- देवगतिको० नं० १६-१७ में हरेक में ४ वा भंग को० नं० १६ १७ १६ देख (३) मनुष्य गति में ४- के मंग को० नं० १८ देख १ मंग कीन० १७ देखी ] १ भंग को० नं० १६-१८ १६ देखी १ भंग को० नं० १७ देख १ योग १६ केन्द्रो को०नं १६-१७ सारे मंग १ मंग को० नं० १ देखो को० नं० १० देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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