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________________ चौतोस स्थान दर्शन कोष्टक नं०७ अप्रमत्त गुण स्थान :--- - .-. . .- -. २३ भाव को नं. ६ देखा ३१का भग की नं.१८ मजिब १.क! भर कान- कमबब भगो मे गमा गजाननः मन... पक्षमाहना को नं. १ देनः। बंब प्र—ि५६ को ० के ६ प्रतियों में अस्थिर, धन, पराश को.नि १. वर्ग: शाक ! प्रमाना! घटाकर और प्राहारक होकर अर्थात :.-.५+५६ प्रकृतियां बनन' । उनय, प्रहनियां-कोन. ६ के १ कुतियों में में महानिद्रा (निद्रा निवा. प्रचना बना पाई। ग्राहारकर से ५ पर जानना। मात्र प्रकृतियां-४६ या ??: को न० कविध जानना । सम्या - FREE.३दी फगर छान नाद निन्चानबे हजार एक मौ नॉन निन।। मेव-नोक के संव्यानवें नाग प्राग हानना। स्पर्शन- के प्रसन्यान भाग प्रमाण जानना। कार-काना जीवों को पटा पाल जानना । पप जात ना पक्षा ममा जमा" । सूचना-मन-नाप्रमान गुमधन ने ममा मना में मान द्वननत रहते हैं। प्रत्तर--नाना जीवों को धरना पनर नहीं है । जीव की यात्रा न नहान TRA र मन पर ननदो गां। न र ननाय पनि आनना । कुल ल काम हागना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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