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चौतोस स्थान दर्शन
कोष्टक नं. ५८
कुमति-कुश्रुत ज्ञान में
हरेक भंग में से कुजानों।
से पर्याप्तवत् शेष! में गे जिसका विचार करो।
कुज्ञान (दोनों में में कोई ओ। घोकर शेष
१) घटाकर ३ का भग कुजान पटाकर ३-४ के.
जानना भम जानना
(२) तिर्यच गति में । १ भंग १ उपयोग (२) तिवंच गति में
१मंग १ उपयोग । २-३- -३-३-३-३ के भंग २-३-३-२-३-३-३ के '२-३-३-२-३-३०३ २-३ के भंग को० नं० | २-३ के भंगों में |२-३ के भयों को नं०१७के ३-४-१-मंगों में से कोई 1 के अंगों में से १७ के ३-४ के हरेक भंग | मे कोई भंग में से कोई १ | ३-४-४-४ के हरेक मंग | भंग' जानना कोई१ उपयोग में से कपर के समान कोई जानना उपयोग जानना में से पर्याप्तवतु दोनों
जानना १ कुज्ञान (दोनों में से)
कुशानों में से कोई १ घटाकर २-३ के भंग
कुज्ञान घटाकर २-३-३जानना
२-३-३-३ के मंग ३-४ के भंग-ऊपर के | ३-४ के भंगों में | ३-४ के अंगों में जानना नरक गति के समान यहाँ । से कोई १ भंग
में कोई १ (३) मनुष्य गति में सारे भंग
१ उपयोग भी जानना
उपयोग
३-३ के भंग-ऊपर के पर्याप्तजत् भोगभूमि में
तिथंच गति के समान : E.४ के भंग-ऊपर के
जानना
उपयोग जानना समान जानना
(४) देवगति में
१भंग १उपयोग (2) मनुष्य गति में सारे भंग
३-३ के मंग-ऊपर के । ३-३ के भंगों में ३-४-3-1 के भंग-ऊपर | अपने अपने स्थान
नरक गति के समान में कोई १ मंग
में से कोई के निर्यच गति के समान | के मारे भंग
जानना
जानना
उपयोग जानना जानना
जानना (४) देवगति में
१ भंग १ उपयोग ३-४ के मंग नरक गति ३-४ के भंगों में ३-४ के अंगों में के ममान जानना से कोई १ भंग से कोई १ उपयोगी
जानना
| जानना २१ ध्यान सारे जंग | १ व्यान ।
सारेभंग । १प्यान मार्तध्यान ४, रौद्र- (1) चारों मतियों में हरेक में को० नं०१६ मे को.नं.१६ से | प्राशा बि० घटाकर ()को० . १६ मे । को० न." घ्यान ४, प्राजाविषय के भंग-को० नं०] देखो
१६ देवो . चारों गतियों में हरेक में १६ देखो से १६ देखो धर्मध्यान १ (६) १६ मे १६ देखो
का भंग-को न.१६/
| ३-३ के भंगों
३-३ के भंगों
से ११ देखो