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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५८ कुमति-कुश्रुत ज्ञान में देखो २२ पासव ५५ . सारं भग १ भग सारे मंग१ मंग मा० मिधकाय योग १ । मौ० मिथकाय योग १, । . मनोयोग ४, वचनयोम ४, प्राहारककाय योग ? बै० मिश्रकार योग १. पौर काय योग १, ये २५टाकर-(५५) कार्मागाकाय योग वै काय योग १.ये ये ३ घटाकर (५२) १० घटाकर (४१) ' (१) नरकानि में मारे मंग । १ भंग (१) नरक गति में सारे भंग १ भंग ४६-४४-४० के कीलक्षणो १८ मंग-को. नंको नं०१६ देखो को न०१६ देखा २) नियंच गति में मारे भंग १ नंग ) नियंच गनि में सारे भंग १ भंग ३६-३६-३२-४०-४३-११ को नं०१७ देखो' को नं०१७७35-38-6-४३-४४- को० नं०१७ देखो । को.नं.१७ |2-३३-३-३५-३-281 भंग को० नं १० देखो। ४३.८ के भंग कोज| (2) मनुष्य गति में ' सारे भंग १ भंग १७ देखो। ५१-४ ४२-५,०-४५-११ को नं०१५ देखो को नं. १८ (३) मनुष्य गति में के मंग बोनं०१४ । देखो ४४-३६-४३- के भंग (को० नं०१५ देखो को नं.१८ देस्रो को.नं. १५ देखो । (.) देवनि में | मारे भंग ! १ भंग दे वर्गात में सारे भंग भंग ५.८-४५-११-४६-४:- कोन. १६ देखो । को.२०१९४३-३८-४०-३७ के भंग को. नं० १९ देखो | को० नं० १२ के भंग को नं०११ । को.नं.१६ देखो देखो २३ भाव सारे भंग , भंग सारे भंग १ भंग कुजान में मे जिमका (१) नरक गति में। को नं. १६ देखो को० नं०१६ (१) नरक गति में को.नं. १६ देशो को२०१६ विचार करो यो । २४.२२-२३ के भंग वा. का भंग कुज्ञान, दर्शन २, नं०१६ के २६.२४-२५ । को.नं.१६ के २५ के। लब्धि ५, गति ४, i के हरेक भंग में से जिसका , भंग में से पर्याप्तवन मेष कवाय ४, लिंग ३, ' विचार करो यो, कुजान २ कुज्ञान घटाकर २३ लेश्या ६, मिथ्यादर्शन १.. रहोड़कर गंष २ जान . का भंग जानना प्रमंथम, गजान १. घटाकर २४-२२-२३ के | (3) तिवंच गनि में - सारे मंग १भंग भंग जानना २३-२४-२६-२६-२१-२२ को नं०१७देखो को.२०१७ देखो देखो देखो देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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