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________________ कोष्टक नं० ५८ कुमति-कुश्रुत शान में होतीस स्थान दर्शन ।। २ । देखो प्रसिदत्व १. पारिवामिक (२) तिर्यच गति में सारे मंग १ २४-२४-२३-२१ केमंग को भाव ३ ये (३२) जानना २३-२४-२६-२६-२७-२८-को० नं०१७ देखो को० नं०१७ । नं०१७के २४-२५-२७२५-२३-२४ के भंग को ! देतो २७-२२-२३-२५-२५-२४नं०१७के २४-२५-२७ । २२ के हरेक भंग में में । के हरेक भंग में से ऊपर | पर्याप्तवत् शेष १ कुज्ञान के समान १ कुशान और । घटाकर २३-२४-२६-२६-। ३१-२६-३०-२७-२५-२६ । |२१-२२-२४-२४-२३-२१ । के हरेक भंग से ऊपर के | के भंग जानना सारे भंग १ भंग समान शेष २ कुशान घटा (३) मनुष्य गति में को० नं. १८ देखो को.नं. १५ कर २३-२४-२६ और २२० २६-२७-२३-२१ के भंग । २७-२८-२५-२३-२४ के । को.नं०१८ के ३०भंग जानना २८-२४-२२ के हरेक भंग (३) मनुध्य गति में सारे भंग १ भंग में मे पर्याप्तत शेष १ २६-२७-२८-२५-३-२४ को००१८ देखो। को० नं०१८ | कूज्ञान पटाकर २६-२७- | के मंग को० नं०१८ के! २३-२१ के भंग जानना ३१-२६-३०.२७-२५.२६ । (४) देवगनि में । सारे भंग १मंग के हरेक भंग में से ऊपर के | २५-२३-२-२३.२२-२० को नं०१९ देखो| को.नं.१६ समान शेष २ कुमान पटा के भग कोन १ के । कर २६-२७-२८-२५-२३ ६-२४-२६-२४-२३-२१ २४ के भंग जानना के हरेक भंग में से । (४) देवत्ति में । सारे भंग । १ भंग । पर्याप्तवत् शेष १ कुज्ञान । -३-२१-२२-२५-२३ २४.को.नं. १६ देखो को. नं०१६ घटाकर २५-२२-२५-२३-. २२-२०-२१ के मंग का० । | २२.२० के भंग जानना नं०१६ के २५-२३-२४- | २७-२५-२६-२४-२२-२३ के हरेक भंग में मे ऊपर | के समान शेष २ कुजान। घटाकर २३-२१-२२-२५- ! २३-२४-२२-२०-२१ के । भग जानना देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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