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________________ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० " ३२ ३३ ३४ ( ४२७ ) सूचना:- (१) कुमति - कुश्रुत इन दोनों ज्ञानों को मिश्र गुण स्थान में मिश्र संज्ञा हो जाती है । सूचना:- ( २ ) इन दोनों ज्ञानों को मिश्र गुण स्थान में मिश्र संज्ञा हो जाती है। धयाना- को० नं० १६ से ३४ देखो । बघ प्रकृतियाँ- १ले २रे ३रे गु० में क्रम से ११७-१०१-७४ प्र० का बंध जानना | को० नं० २६ देखो | उदम प्रकृतियां," -- - " 1 " सत्व प्रकृतिष - 17 " संस्था धनन्दानन्त जानना । क्षेत्र - सर्वलोक जानना स्पर्शन– सर्वलोक । काल- नाना बीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । एक जीव की अपेक्षा सारे कुज्ञानी तंमुहूर्त से देशोन् अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक जाति (योनि) कुल 21 ११७-१११-१०० प्र० का उदय जानना | को० नं० २६ देखो । १४०-१४५ १४५ प्र० का सत्य जानना | को० नं० २६ देखी । जानना। अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं। एक जीव की पेक्षा मादि कुज्ञामी अतंमुहूर्त से देशोन १३२ सागर काल तक उपशम या क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि ज्ञानी बनता रहे। १-८४ लाख योनि जानना । ११६|| लाख कोटिकुल जानना ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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