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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टमः नं. ८ दिलीपशम सम्वत्व में ० स्थान मामान्य माना गयति आप - - नाना जीवों क सोपा | एक जीप के नाना एक बीच काव समय में समान माना जातानी मा नाना । जोव के एक य में | समय में ६ होता १ गुम स्थान ८ मारे गुरा स्थान • गुगा सारे गूगा० ४ मानक के मुमा वर्मभूमि की पना अपन वन स्थात अपने अपने न प ग में | प्र.अनि स्थान पर मानेन 1) मनुष्य रति म के मारे मुग्ग स्थान के गुगा में में दिनी विमान न कमामा के मारे गग. भोगभूमि म-निनीयोपशम | जानना गाना में न कोई सा नहीं होना भौग भूमि में-पर्याप्तवन १२) देवगति में द्वितीयोपशम सा नहीं होता १२) देवर्गान में ४ था | २जीब ममाम २ : १ संजी पं० पर्याप्न १ समाम । १ समास समीपं. अपर्याप्त १सगास ! समास मझी पं० पर्याप्त अप. (:) मनुप्य गति में कोल नं १८ देखो को. नं०१८ (२) देवगति म-१ संज्ञी को० नं १६ देखो । को०१६ १ का भग-को नं०१५ | देखो पं० अपय प्न । दयों देखो को. नं०१६ देखो ३ पर्याप्ति १ भंग भंग १ भंग १ भंग को० नं. १ देखो (११ मनुष्य गति में को नं०१८ देखो को० नं०१८ जगान में कोरन देवो । को नं: १६ कर्मभूमि वी भगक्षा देखो ! ३ का भंग-को० नं. ६ का भंग को नं०१८ देवो देखो ब्धि रूप का भंग भी ४प्राण . मारे मंग मारे भंग | को नं । देखो ।(१॥ मनुज गति में को नं०१८ देवी को.नं.१ (१) देवगनि में को.नं. १६ देश को नं. १६ १० का मंग-को न०१८ देतो 3 का भंग-को० नं । दवो ।१६ देखो ५ मजा का० नं. १ देखो गारे भंग अंग को१८ देखो को.नं.१८ (१ देवगनिम देखो १४ का भंग (1) मनाय गति में १४-३-२-१-१.. के भग को नं.१६ इन्त्रो को नं. १ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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