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________________ अवगाहना-को.नं.१६१६ देखो। बंध प्रकृतियां-७७-६७-६२-५७ प्रकृति को नं० ४-५-६-७के समान जानना परन्तु को००७ के १६ प्र० पाहारकद्विक २ ये दो घटाकर ५७ प्रा। जानना । उबय प्रकृतिया-६६ को नं.४ के १०४ में से गत्वानुपूर्वी ४, सम्यक्त्व प्र०१ये ५ पटाकर ६९ जानना। ८६ को नं.५ के ८७ में से सम्परत्व प्र.१ पटाफर ८६ जानना । ७६ को ३८१ से मार दिसम्यन्त्र गरिने ३ घटाकर ७ जानना । ७५ को नं.७ के ७६ में से सम्यक्त्व प्रकृति १ घटाकर ७५ जानना । सत्त्व प्रकृतिमां-१४-१४७-४६-१४६ को नं. ४से के समान जामना । संख्या-मसच्यात जानना। कोत्र-लोक का असंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-लोक का असंख्यातवां माग, ८ राजु को.नं. २६ के समान जानना । काल-नाना जीवों की अपेक्षा अन्त मुहूर्त से पल्य का असंख्यातवां भाग जानना । एक जीव की अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त से अन्तर्मुहुर्त तक जानना । अन्तर-नाना बोवों की अपेक्षा एक समय से ७ अहोरात्र (रातदिन) जानना । एक जीव की अपेक्षा प्रसंरूपात वर्ष से देशोन् अर्व पुद्गल परावर्तन काल तक प्रथमोपशम सम्यक्त्व नहीं हो सके। जाति (योनि)-२६ लाख योनि जानना । को नं०२६ देखो कुल--१०८।। लाख कोटिकुल जानना। "
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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