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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०८७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में ६-७-६ लेल्या ६, प्रसयम १, प्रज्ञान, प्रसिद्धत्व १ भव्यत्व १, जीवत्व १ । ६ भंग को.नं१७ देखो १ मंग | कोनं०१८ देखो । २६ का भंग को नं. १६ के २७ के मंग। में म १ भयोपशम सम्यक्त्व घटाकर २६ का भंग जानना (२) तिरंच गति में सारे भग ३१....के रंग को नं. १० के ३२-२६ | को० न०१७ दलो के हरेक भंग में में१ वेदक सम्यक्त्व । घटाकर ३१-२८ के मंग जाना २७ का भंग को० नं०१७ के २९ के । (भोग भूमि में) के भंग भे से बेदक सायिक ये २ सम्यक्त्व घटाकर २७ का भंग जानना (३) मनुष्य गति में सारे भंग ३१-२५-२७ के भंग को० नं०१८ के । को० नं.१८ देखो ३३-३०-२६ के हरेक मंग में से क्षायिकक्षयोपशम ये २ सम्यक्त्व पटाकर ३१-२८२७ के भंग जानना (४) देवगति में सारे भंग २५ का भंग को नं. १६ के (भवनत्रिक | को० नं०१६ देखो देव) २६ के भंग में से १ वेदक सम्यक्त्व । घटाकर २५ का भंग जानना कल्पवासो नव बेदक देवों में २७-२४ के भंग को.नं. ९ के २६-२६ के हरेक भंग में में क्षायिक और वेदक सम्यात्व ये २ घटाकर २७-२४ के भंग जानना नव अनुदिया पोर पंचानुत्तर विमान में यहाँ उपशम सम्यक्त्व नहीं होना । | कोनं० १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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