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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं ८७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में २१ च्यान १२ । प्रातध्यान ४, गैद्रध्यान ४.' वर्म ध्यान ४ ये (१२) । जानना २० मानव अविरत १२, योग पर के स्थान के१० (पौ० मिथ,बै० मिधा, प्रा. मिश्र, काययोग, वार्मामा कायोग ५ घटाकर १०) काय १ (प्रान्ताबन्दी घटाकर २१७८३) (3) मनुय्य गति में सारे भम् १ उपयोग 4-, के भंग । कोनं०१८ देखा । कोनं०१८ देखो को..?: देखो सारे भंग १व्यान (१) नरक देवगति में हरेक में | कोनं०१६-१६ देखो | कोनं०१६-१६ देखो १० का भम को नं.१५-१६खो । (२) जिवंच गति में भंग १०-११-१. भंग कोनं०१७ देखो को.नं०१७ देखो को १७ नेम्बो (३) मनुष्य नति म सारे भंग १ ध्यान १०-११-3-४-१०के अंग कोग्न १८ देखो कोनं० १८ देखा कोः नं १० देखो . सारे भंग (१) नरक गति में कोनं०१६ देखो वोन १६ देखो ४० का भंग को० नं०१६ देखो (२) निर्वच मन में सारे भंग ४२-३७-४१ के भंग को.नं. १७ देखो को.नं. १७ देखो को०१७ देखो (8) मनुप्य गति में सारे भंग १ मंग ४२ ३७.२२-२३-४१ केभंग कोनं०१८ देखो को.नं०१६ देखो को नं १८ देखो (देवनि में सारे मंग 61-४ -४० केभंग का नं०१६देखो को नं०११ देखो सारे भंग १ भंग (१) नरक गति में को नं०१६ देखो कोनं १६ देखो २६ का भंग की.नं. १६ के २८ के भंग | में से अधिक और श्योपशम ये २ सम्यक्त्व घटाकर २६ का भंग जानना १ भंग | को० नं. १६ देखो २: भाव उप-म सम्यक्त्व १. ज्ञान , दर्शन ३, मन्धि । संपमामयम१, सरम संयम गति ४, कर्षाय ४, लिग ३,
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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