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________________ चौतीस स्थान दर्शन कोरया: प्रथमोपशम सम्ययत्व में १ भंग ! को नं. १७ देखो लग्या ' को नं. १७ देखो । । (२) तिर्वच गति में t-३-३ के भंग को० नं०१७ देखो (3) मनुष्य गति में 6-3-3 के भंग को नं १८ देखो (४) देवगति में १-३-१-! के भंग को.नं. ११ देखो सारे भंग १ लेश्या को न०१५ देखो । का नं०१८ देखो । र भमलेल्या की नं०१६ देखा , को १६ देखा । १६ भव्यत्व को० नं०१६ मे ११ देखा को नं.१६ से १६ देखा: चारों गलियों में हरेक में १ भव्य जानना को० नं०१६ से १९ देखो १७ सम्यक्त्व प्रथमोपशम सम्यक्त्व चा, गतियों में हरेक में १ प्रथमोपशम सम्यकद जानना १८ संज्ञी मंजी १६ पाहारक चारों पतियों में हरेक में १ मंज्ञी जानना को० नं० १६ से १६ देखो १ चारों गलियों में हरेक में १ माराहक जानना को.नं. १६ मे १६ देखो माहाक | १ उपयोग २० उपयोग ज्ञानोपयोग ४, दर्शनोपयोग ३ ये ७ जानना | को नं०१६-११ देखो । को नं०१५-१६ देखो ! (१) नरक-देवगति में हरेक में ६का भंग को.नं.१६-१६ देखो (२) तिर्यंच गति में ६-६ के भंग को० नं. १७ देखो १ नंग को० नं. १७ देखो १ उपयोग कोनं १७ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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