SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 654
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चौतीस स्थान दर्शन कोष्टक २०५७ प्रथमोपशम सम्यक्त्व में को नं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में ३- के भंग को० नं०१८ देखो सारे भंग को नं. १८ देखो १जान कोन०१८ देखो | १३ संयम पसंयम, संयमासंयम, सामाविक, छेदोपस्थापना परिहार विशुद्धि य (५) १संयम परिहार विशुद्धि घटाफर ! को नं० १६-१६ देखो (१ नरक-देवगति में में हरेक में १ अर्मयम जानना को० नं० १६-१६ देखो (२) तिरंच गति में 1-1-1 के मंग को न देखो (1) मनुष्य गति में १-१-३-३-१के भंग को० नं. १८ देखो को० नं. १६-१६ देखो। भंग १ मंयम कोनं०१७ देखो | को० नं.१७ देखो सारे मंग को.नं. १५ देखो संयम ' को नं०१८ देखो १४ दर्शन केवन दर्शन घटाकर (३) १भंग १ज्ञान को.नं. १६-१६ देखो वोल्नः १६-१६ देखो (१) नरक-देवगति में हरेक में ३ का भंग कोनं ६-१९ देखो (२) तिर्मन गति में - के भंग कोन. १७ देखो () मनृप्य मति में 1-1-1-के भंग को.नं-१८ देखो १ भंग को.नं. १७ देखो • दर्शन कानं०१७ देखो यारे भंग को० नं०१८ देखो दर्शन फो.नं. १८ देखो १ दर्शन को १६ देखो कॉ० नं. १ देखो । कोनं० १६ देवी १)गरक गति में ३ का भंग कोनं०१६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy