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________________ २४ २५ २६ २७ २५ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ अवगाहनाको० नं० १६-१७-१८ देखो । बंध प्रकृतियां - १२० सामान्य मालाप की अपेक्षा जानना । उदय प्रकृतियां तत्व प्रकृतियां - १४८ जानना । ( ३४४ ) १०८ नित्य पर्याप्त अवस्था में आयु ४, नरद्विक २, देवद्विक २, वैक्रियिकद्विक २, ग्राहारकद्विक २, ये १२ घटाकर १०८ जानना । -११४ उदययोग्य १२२ में से देवत्रिक २ देवायु १, आहारकविक २, स्त्री वेद १, पुरुष वेद १, तीर्थंकर है, ये घटाकर ११४ प्र का उदय जानना । सच्या अनन्तानन्त जानना । क्षेत्र- लोक का प्रसंख्यातवां भाग १४ राजु ६ राजु । स्पर्शन - सर्वलोक १४ राजु जानना । ७वे नरक का नारकी मध्य लोक में जन्म लेने की अपेक्षा ६ राजु आनना । - - काल-नाना जीवों की प्रपेक्षा सर्वकाल जानना नपुंसक वेदी ही बनता रहे । अन्तर- नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं जाति (योनि) – ८० लाख जानना (देवगति के ४ कुल १७३।। लाख कोटिकुल जानना (देवगति के २६ लाख कोटिकुल घटाकर जानना ) एक जीव की अपेक्षा खादि नपुंसक बैदी एक समय से श्रसंख्यात पुद्गल परावर्तन काल तक एक जीव की अपेक्षा अन्त हूर्त से नवस (१००) सागर काल तक नपुंसक वेदी नहीं बने। लाख घटाकर शेष ८० लाख जानना)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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