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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं. ४४ आहारक काययोग या आहारक मिथकाय योग में - पुरुषवेद १० वेद पुरुष वेद जानना ११ कषाय सारे भंग १ भंग संज्वलन कापाय ४, ११ का भंग को नं' के | ४-५-६ के मंग - कोल नं.१८ हास्यादि नोकवाय ६ । ममान जानना को.नं०१८ देखो देखो पुरुषदेव१ये (११) पुरुष वेद जानना सारे भंग १ भंग १ का भंग पर्याप्तत को नं०१८ देखो | को० नं. १ देखो ३ सारे भंग ३ का भंग ! १ भंग | ३ का भंग समान सारे भंग २ का भंग संयम | २ का भंग मति-श्रुत-पवधि शान | ३ का भंग को० नं०१८ के मे ३ जानना १३ संयम २ सामायिक, वेदोपस्था- २ का भंग को० नं०१८ के पना ये २ जानना समान जानना १४ दान प्रचक्षु दर्शन, चक्षु दर्शन ३ का भंग को.नं.१८ के अवधि दर्शन समान जानना १५ लेश्या शुभ लेश्या ३ का भंग को नं०१८ के समान जानना १६ भव्यत्व भव्य १ भव्य जानना को० नं०१८ देखो १७ सम्यक्त्व सायिक, क्षयोपशम स० २ का मंग को० नं०१८ | देखो |३ का भंग जानना। ३ का भंग ३ का भग | को० नं०१८ के समान । सारे भंग १संयम २ का भंग २ का भंग | २ का भंग को.नं.१८ के समान जानना सारे भंग दर्शन ३ का भंग ३ के भंगों में से ३ का भंम को० नं०१८ | कोई १ दान | के समान जानना। सारे भंग | लेश्या | ३ का मंग के भंगों में से ३ का भंग कोई १ लेश्या को नं. १६ देखो सारे भंग पर्याश्वत १ दर्शन पर्याप्तवत् १ लेश्या पर्याप्तवत मारे भंग पर्याप्तवत् १ १भव्य-जानना सारे मंग २ का भंग । १सम्यक्त्व के भंग में से कोई १ सम्यक्त्व सारे भंग २ का मंग २ का भंग को.नं०१८ देखो । सम्यक्त्व २ में से कोई सम्यक्त्व १८ संशी का अंग को.नं.१८ संत्री संशो संजी संजी देखो का अंग को० नं. १८ देखो १६भाहारक माहारक | काम को.नं.१- देखो। माहारक पाहारक १ का मंग को० नं०१८ देखो पाहारक पाहारक
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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