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________________ चौतीस स्थान दर्शन क० स्थान |मामान्य पालाप: पर्याप्त ( २ ) कोष्टक नं. ४४ आहारक काययोग या आहारक मिश्रकाययोग में अपर्याप्त | एक जोन के नाना एक जीव के एक । ।१जीव के नाना । एक जीव के समय में समय में नाना जीवों की अपेक्षा एक समय में नाना जीद की अपेक्षा समय में | २ समास । १ भंग १ पुरण स्थान १ बां प्रमत गणना । १ ६वां प्रमत्त गुण. ६वां प्रमत्त गुण स्थान जानना २ जीव समास १मभास १समास । समास १ समास संजी पंचेन्द्रिय पर्याप्त । संज्ञो पं० पर्याप्त संज्ञी पं० पर्याप्त | संजी प० पर्याप्त संत्री पं० अपर्याप्त संज्ञी पं० अपर्याप्त संज्ञी पं० अपर्याप्त और अपर्याप्त ये (२) ३ पर्याप्ति १ भंग १ भन १ मंग को नं० १ देखो | ६ का भंग को नं. १८ देखो, ६ का भंग 4 का भंग ३ का भंग कोनं०१८ देखो ३ का भंग ३ का भंग । लब्धि रूप ६ पर्याप्ति । . मंग । ७ १ भंग १ भंग को० नं. १ देखो १० का मंग को. २०१८ देखो | १० का भग १० का मंग का भंग को १८ देखो ७ का भंग ७ का मंग ५.संज्ञा ४ ४ । १ भंग १ भग को० नं. १ देखो ४ का भंग को००१८ देखो । का मंग का भंग कोनं०१८ देखो ४ का भंग ४ का भग मनय गति । मनुम्ब बति मनुष्य पति ७ इन्द्रिय जाति १ पंचेन्द्रिय जाति | परिक्ष्य दाति जानना |पं दिय जाति जागना ७ काय ? १ । निकाय: सकाय जानना अमकाय जानना हयोग माहारक काययोग या | माहारक काययोग जानना माहारक काययोग माहारकः काषयोग, पाहारक मिश्रकाययोग साहारक मित्रकाययोग ! जानना । जान्ना | जानना जिसका विचार करना हो वो योग जानना "
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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