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________________ ( २६८ ) अवगाहना को नं० ४२ के वै. काय योगियों की अवगाहना से कुछ कम अवगाहना जानना । बंध प्रकृतिपा-१०२ को० नं ४२ के १०४ प्र० में से तिकडे, मनुष्याच, १२ घटाकर १०२ जानना । उदय प्रकृतियां-७६ को.नं. ४२ के ८६ प्र. में से मित्र सम्यक्त्व १, नरकगति १, देवगति १. परमात १, उच्छवाम १, बिहायोगति २, स्वरद्विक २, १ घटसकर दोष ७७ प्र० में नरकगत्यानुपूर्वी १, देवमरमानुपूर्वी १ ये जोड़कर ७० प्र० का उदय जानना। सत्य प्रकृतियाँ-१४ भुज्यमान देव या नरकायु में से कोई १ मोर मध्यमान तियं च या मनुष्य प्रायु में से कोई १२ पटाकर १४६ प्र. का सत्व जानना । संख्या-प्रसंख्यात जानना। क्षेत्र-लोक का पसंख्यातवां भाग प्रमाण जानना। स्पर्शन-लोक का संख्यातवां भाग प्रमाण जानना। काल-नाना जीवों की अपेक्षा अंतर्मुहर्त से पल्प के असंख्यातवें भाग तक यह योग निरन्तर चलता रहता है । एक जीव की अपेक्षा अंतमुहर्न से अंतर्मुहूर्त तक जानना । अन्तर-नाना जीवों की अपेक्षा एक समय से १२ मुहूर्त तक संसार में किसी भी जीव के वैक्रियिक मिश्रकाय योग न होता हो यह संभव है। एक जीव की अपेक्षा साधिक दस हजार वर्ष से असंख्यात पुद्गल परायतन काल तक.मिश्रकाय योग प्राप्त न हो सके अन्य पतियों में ही जन्म लेता रहे । जाति (योनि)--- लाख योनि जानना, (नरकगनि ४ लाख, देवगति ४ लाख, ये ८ लाक्ष जानना) कुल- ५१ लाख कोटिकुल जानना, (नरकमति के २५, देवगति के २६ ये ५१ लाख कोटिकुल आनना) १२
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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