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________________ चौतीस स्थान दर्शन (६८७ । कोष्टक नं० ६५ अनाहारक मे को.नं. १ देखो मकषाय जानना को.नं. १६ देखो (२) तिर्यंच गति में ३-१-१-१-३-२-१ के मंगको० नं० १७ देखो को००१७ देखो को०० १७ देखो (३) मनुष्य गत्ति में मारे भंग । १ वेद ३-१-०.२-१ के भंगको० न०१८ देखो कोन०१-देखो को००१८ देखो (४) देवगति में | सारे भंग | १ वेद २-१-१ के भंगको .नं. १६ देखो कोनं०१६देखो को० नं०१६ देखो | सारे मंग१ मंग (१) नरक गति में को० नं०१६ देखो कोनं०१६ देखो २३-१६ के भंग को नं०१६ देखो (२) तिथंच गति में ] सामंग १ भंग २५-२३-२५-२५-२३-२५. को०० १७ देखो कोन०१७ देखो २४-१६ के भंग कोनं. १७ देखो (३) मनुष्य गति में सारे भंग १ भंग २५-१६.०-२४-११ केभंग को.नं०१८ देखावोनं०१५ देखो कोनं० - देखो (४) देवनि में सारे भंग १ भंग २४-२८.२३-११-१६ को २०१६ देखो को०१९ देखो के मंग को नं०१६द . सारे मंग (१) नरक गति में को० नं. १६ देखो कोन.१६ देखो २-३- के मंग कोल्नं०१६ देखो । १२ज्ञान ६ (१) मनुष्य गति में कुमवधि शान है, १ केवल ज्ञान जानना मनः पर्यय ज्ञान १, | कोनं०१८ देखो ये २ घटाकर ()
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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