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________________ उवयम्यु. गुण १२वां गुग में १२वा मुरण में ( ७१६ .) २६-उदय प्युपछत्ति के पहले उप मुश्यिति जिनके होवे वे प्रकृतिया-८१ है - प्रकृति खव्यषिकशि गुणस्थान ज्ञानावरणीय के ५ बां गुण. में दर्शनावरणीय के ६. में से प्रयक्ष, ।। १०वा गुण में चक्षु, अवधि, केवल व... स्त्यान, निद्रा निद्रा, प्रचला-प्रचला | २रे गुणांक में बे३ महानिद्रा। निद्रा, प्रचला ये । वां गुण के प्रथम भाग में असातावेदनीय १, ६वां गुग में साता वेदनीय १, १३ गुप में मोहनीय के संज्वलन लोभ १, स्वां गुण० के ५वा भाग में " स्त्रीवेद १, २रे गुण में " नपुतकवेद, १के गुराक में " अरतिशोक ये २. पायुकर्म के नरकायु १, ६वां गुरण में १२वा गुण में १३-१४ गुण. १०वा गुण में ६वें ले " रे । " तियंचायु १५ " मनुष्यामु', १ले गुणों में म ४थे गुरग में २२ ५वे १४वे मग में ४० गुग में ८वो गुण के ६वां भाग में से गुण में २रे गुरण में २रे गुण में है वे नामकर्म के नरकगप्ति १, " तिर्यंचगति १, " मनुष्यगति १, नामकर्म के नेटि जाति १, " औदारिक शरीर १, " तेजस-कार्मारण शरीर २, " प्रसंसा सुपाटिका संहनन १, वचनाराच संहनन । नाराच संहनन १, अर्धनाराच संहनन १, सीलक संहनन १, वजवृषभ नाराच सं०१, प्रौदारिक अंगोपांग १, हुंडक संस्थान १, न्यग्रोध, स्वाति०, रजक, बामन सं.४ समचतुरस्र सं० ., स्पर्श, रस, गन्ध वर्ग नरकगत्यानुपूर्वी १, तियंचगस्यानुपूर्वी १, अगुरुलधु, उपघात, परषात ये ३, उपोत प्रकृति १, उच्छवास १, प्रदास्तविहायोगति १, भप्रशरतविहायोगति १, प्रस, बादर, पर्याप्त ये ३, प्रत्येक पारीर, स्थिर ये २, गुण के ६वां भाग में इसे गुग में U ८वां गए० के ६वां भाग में रे गए में दवा गुण० के ६वा भाग में २रे गुण में वो गुणा के ६वां भाग में इवे
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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