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________________ २८ मुचना:-उपशम सभ्यक्त्व द्वितियोपशम अवस्था ही होती है। प्रथमोवाम अवस्था में मनः पर्षय ज्ञान नहीं होता। अवगाहना--३॥ हाथ से ५२५ धनुष तक जानना। बंध प्रतियो-६६-५६-५-२२-१३-५-१ को नं०६ से १२ देखो । उन्य प्रकृतियां-१ के उदय प्रकृनियों में मे मनः पय ज्ञान के उदय में स्त्री-वेद ननु सक वेदनाहाराविक २, इन उदय नहीं होना इनिये ये ४ घटाकर ७७ का अश्य जानना । ७५-६४-६०-५६-५७ को नं. ६ से १२ देखो। सत्त्व प्रकृतियां --१-१३६-१४.-१३१-१३८-१०२-१-१ को नं.६ से १२ देखो संख्या-नाना जीवों की अपेक्षा असंख्यात जानना । मधेणी वालों की संख्या ६ से १२ गुगा स्थान की संख्या के समान जानना। क्षेत्र-लोक का अमख्यातवां भाग जानना । मन-लोक का असंख्यातवा भाग जानना। ८ इन–नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना। एक जीव की अपेक्षा मन्तमुहूर्त से देशोन् पूर्वकोटि वर्ष तक क्षयोपशम सम्यक्त्व की अपेक्षा जानना। प्रतर-नाना जीवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं । एक जीव की अपेक्षा अन्त मुंहतं स देशोन् अर्ध पुद्गल पराक्तन काल तक मनः पर्यय ज्ञान न हो सके। जाति (पान)-१४ लाख मनुष्य योनि जानना । इ-१८ नाम्न कोटिकुल मनुष्य की जानना
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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