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________________ चौतीस स्थान दर्शन ( ३२६ ) कोष्टक नं०४८ स्त्री वेद में कोनं०१७-१८-१९ देखो को नं० १५देखो (३) देव गति में सारे भंग शान ३-३ के मंग को नं० १६ देखो कोनं०१६ देखो को० नं. १६ देखो १३ संयम १ मंग १संयम भसंयम, संयमामयन, (१) तिर्यच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान तीनों गतियों में हरेक में। सामायिक, छेदोपस्था- १-१-१ के भंग भंग जानना के भंगों में मे | १ असंयम जानना पना, ये ४ संयम जानना को० नं० १७ देखो को नं०१७ देखो कोई संयम | कोन०१७-१८- देखो को०नं०१७ देखो (२) मनुष्य गति में सारे भंग १संयम १.१-३-३-२-१ के मंग को नं०१८ देखो को नं.१८ देखो को.नं. १८ देखो (३) देव गति में सारे भंग १संयम १ पसंयम मानना को नं० १६ देखो कोल्नं०१६ देखो को० नं १६ दलो १५ दर्शन १मंग १दर्शन । को० नं०१ देखो (१) निवन गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान २-३-३-२-३ के मंग | भंग जानना के भंगों में से को० नं०१८ देखो को.नं. १७ देखो कोई १ वर्षान कोनं०१६देखो (२) मनुष्य गनियों | मार भंग १ दर्शन २- के भंग को.नं.१८ देखो कोनं.१६ देवो को २०१८ देवो (३) देवगति में सारे भंग । १ दर्शन । २-३ के भंग को.नं.१६ देखो कोनं०१६ देखो को० नं०१९ देखो १ मंगलेश्या । १ भंग १ लेश्या को.नं. १ देखो कोल नं. ४७ के समान को० नं. ४७ देखो को नं०४७ देखो (1) नियंच गति में को. नं. ४७ देखो कोनं.४७ देखो जानना मलेश्या
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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