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________________ । ३२८ ) कोष्टक नं. ४८ चौतीस स्थान दर्शन स्त्री वेद में काय प्रसकाय योग १३ प्रा० मिथकाययोग १ आहारक काययोग १ ये २ घटाकर (१३) १० वेद स्त्री वेद तीनों मतियों नीमें गतियों में १सकाय जानना १ त्रसकाय जानना को न०१७-१८-१९ देखो कोनं०१७-१८-१९ देखो १ मंग १ योग १ भंग योग प्रो० मिधकाययोग १, अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान मो. मिथकाफ्योग | पर्याप्तवत जानना पर्याप्तवत् जागना २० मिथकाययोग 1 मंग जानना के भंगों में से 40 मिनवाययोग १, कार्मारण काययोग १, कोनं०१७-१-१२ कोई १ योन | कारण काययोग १ ये ३ पटाकर (१०) देखो ये ३ योग जानना को नं०४७ देखो (१) तियन, मनुष्य, देव गति में १-२ के मंग कोनं०१७-१५-१६ देखो १ तीनों गतियों में हरेक में | तीनों गतियों में हरेक में | १ स्त्री वेद जानना १स्त्री देद जानना सारे मंग १ भंग २३ सारे भंग भंग तीनों गलियों में हरेक में को०२०४७ देसो कोनं०१७ देसो नीनों गनियों में हरेक में को० नं०४७ देखो कोनं०४७ देखो दोलनं. ४७ के समान ! को.नं.' के समान ] जानना परन्तु यहां जानना परन्तु यहां स्त्री वेद के जगह पुरुष वेद स्त्रीचंद के जगह पुरुष । वटाना चाहिये। वेद घटाना चाहिये । १ भंग | १ मंग१ज्ञान (१) तियंच गति में अपने अपने स्थान के अपने अपने स्थान प्रवधि ज्ञान पोर ३ जान पाने अपने स्थान के अपने अपने स्थान २-३-३-३-३ के भंग । भग जानना । के भंगी में से | घटाकर (3) सारे भंग जानना । के भंवों में से को० नं०१७ देखो को.नं. १७ देखो | कोई ज्ञान | (१) तिर्यंच गति को० नं. १७-१८- कोई जान कोनं०१७ देखो। मनुष्य गति में १६ देखो कोनं०१७-14(२) मनुष्म गति में सारे भंग १ज्ञान । देव गति में हटेन में १ से ४ गुमा० में को० न० १८ देखो को०नं० १८ देखो २-२ के भंग ११ कषाय २३ पुरुप बेद, नपुंसक वेद ये २ वेद घटाकर (२३) १०ज्ञान मनः पर्ययः ज्ञान १ केवल जान १ये २ घटाकर (६) १६ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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