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________________ ( ३२७ ) कोष्टक ०४. चौतीस स्थान दर्शन स्थान सामान्य मालाप पर्याप्त नाना जोब की अपेक्षा एक जीव के नाना एक जीव के एक। समय में | समय में अपर्याप्त १जीब के नाना एक जीव के समय में समय में । एक समय में नाना जीवों की अपेक्षा १गुरण स्थान से गुण० जानना सारे गुरण स्थान १ गुरण दोनों गुण स्थान कोई १ गुण १से है तक के गुण. । को० नं० ४७ के कोन०४७ के | मिथ्यात्व, सासादन मुग अपने अपने कोनं०१७-१८विशेष विवरण को० नं० समान जानना : समान जानना तिच, मनुष्य, देव इन | स्थान के सारे । १९ देखो ४७ में दखो तीनों गति में हरेक में | गुग जानना जानना कोनं०१७-१८ १६ देखो १ समास १ समास १ समास, १समस को. नं. ४७ के समान को० नं. ४७ के समान को० नं०१७ से समान ४७के समान को.नं.७ के समान ४७ के समान २ जीव समास ४ को न.७ देखो ३ पर्याप्ति को.नं०१देखो। ४ प्राण १० को.नं.१देखो। ५ संजी को० नं०१ देखो ६ मति टियंच, मनुष्य, देव ये ३ गति जानना ७ इन्द्रिय जाति १॥ पंचेन्द्रिब जाति १ मंग को.नं.७ के समान को० नं०४७के समान १ गति गति तीनों गति जानना पर्याप्तवत् जानना १जाति १ जाति तीनों गतियी में १ पंचेन्द्रिय जाति जानना | को.नं०१७-१८-१९ देखो तीनों गतियों में १ पंचेन्द्रिय जाति जानमा को.नं. १७-१८-१९ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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