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________________ २४ २५ २६ २७ २८ RE ३० ३१ ३२ ३४ ( ३६ ) प्र -को० नं० १७-१८-१६ देखो । बंध प्रकृतियां १२० सामान्य मालाप से जानना । ११२ मित्य पर्याप्त अवस्था में आयु ४ चबप प्रकृतियां – १०७ उदययोग्य १२२ में से स्त्रो वेद १, सूक्ष्म १, स्थावर १, भपर्यात १, आतप १, सत्य प्रकृतियां - १४८ जानना । नरकवि २, माहारकद्विक २, ये नपुंसक वेद १, नरकविक २, तीयंवर प्र० १, ये १५ घटाकर प्रकृति घटाकर १९२ जानना । नरकायु १, एकेन्द्रियादि जाति ४, साधारण १० १०७ प्र० का उदय जानना । संख्या - प्रसंख्यात जानना । क्षेत्र- लोक का धसंख्यातवां भाग जानना । स्पर्शन-सनाडी को घपेक्षा लोक का संख्यातवां भाग जानना । १६वे स्वर्ग से ३रे नरक तक आने की अपेक्षा रानु जानना, नव वेयक से नरक में जाने की अपेक्षा मारणान्तिक समुद्घाट में पुरुष ३ नरक तक पाने के शक्ति की अपेक्षा है राजु जानना । मध्यलोक से ७ वेद का उदय होने की अनेक्षा ६ राजु जानना । काल - नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल जानना । रहे । एक जीव की अपेक्षा अंतर्मुहूर्तसे नवसी (१००) सागर तक निरन्तर पुरुष वेदी ही बनता प्रस्तर -- जाना जोवों की अपेक्षा कोई अन्तर नहीं एक जीव की प्रपेक्षा एक समय से श्रसंस्पात पुद्गल परावर्तन काल तक पुरुष वेद को धारण न कर सके । जाति (योनि) – २२ लाख योनि जानना, (नियंच ४ लाख, देव ४ शख, मनुष्य १४ साख ये २२ लाख जानना) कुल ६३॥ लाख कोटिकुल जानना, (नियंत्र ४३॥, देव २६, मनुष्य गति १४ लाख कोटिकुल ये ८३।। लाख कोटिफुल जानना)
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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