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________________ चौतीस स्थान दर्शन (३१) - - - (१४) एकत्ववितर्क अवीचार-एक ही अर्थ में एक ही योग से उन्हीं शब्दों में श्रुत के चिन्तवन को एकत्ववितर्क अवीचार शुक्लध्यान कहते हैं। (१५) सूचनक्रिया प्रतिपाति-सयोग केवली के अतिम अन्तर्मुह में बार बादर योग भी नष्ट हो जाता है तब सूक्ष्म काययोग से भी दूर होने के लिए जो योग, उपयोग की स्थिरता है उसे सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति शुक्लध्यान कहते हैं । (१६) व्युपरतक्रिया निवृत्ति-समस्त योग नष्ट हो चुकने पर अयोग केवली के यह व्युपरकिया निवृत्ति नामक शुक्लभ्यान होता है। २२. आस्रव आत्रब-कर्मों के आने के कारणभूत भाव । को आस्रव कहते हैं । इसके ५७ भेद है ।। (१) एकान्त मिथ्यात्व-अनन्त धर्मात्मक वस्तु होने पर भी उसमें एक धर्मका ही श्रद्धा न करना एकान्त मिथ्यात्व है।। (२) विपरीत मिथ्यात्व-वस्तू के स्वरूप से विपरीत स्वरूप को श्रद्धा करना विपरीत मिथ्यात्व है। (३) संशय मिथ्यात्व-वस्तू के स्वरूप में संशय करना संशय मिथ्यात्व है। (४) वनयिक (विनय) मिथ्यात्व-देव, कुदेव में तत्त्व, अतत्व में शास्त्र, कुशास्त्र में, गुरू, कुगुरू में, सभी को भला मानकर विनय करना विनयमिथ्यात्व है। (५) अजान मिथ्यात्य-हित, अहित का विवेक न रखना अज्ञान मिथ्यात्व है। (६) पृथ्वीकायिक अविरति-पृथ्वीकाबिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को पृथ्वीकायिक अविरति कहते हैं । (७। जलकायिक अविरति-जलकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को जलकाय: अभिरति कहते हैं। (८) अग्निकायिक अविरति-अग्निकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को अग्निकायिक अविरति कहते हैं। (९) वायुकायिक अविरति-वायुकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को वायुकायिक अविरति कहते हैं। (१०) वनस्पतिकायिक अविरति-बनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को बनस्पतिकायिक अविरति कहते हैं । (११) सकायिक अविरति-यसकायिक (द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय) जीवों की हिंसा से विरक्त न होने को प्रसकायिक अविरति कहते हैं। (१२) स्पर्शनेन्द्रिय विषय-अविरतिस्पर्शन इन्द्रिय के विषयों से विरक्त न होने को स्पर्शनेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । (१३) रसनेन्द्रिय विषय-अविरतिरसना इन्द्रिय के विषय (स्वाद) से विरक्त न होने को रसनेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । (१४) घ्राणेन्द्रियविषय-अविरति-घ्राण इन्द्रिय के विषय से विरक्त न होने को धाणेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं । (१५) चक्षुरिन्द्रिय विषय-अविरति-वक्ष इन्द्रिय के विषय से विरक्त न होने को चक्षुरिन्द्रिय विषय-अति (१६) श्रोत्रेन्द्रिय विषय-अविरतिश्रोत्र इन्द्रिय के विषय से विरक्त न होने को धोत्रेन्द्रिय विषय-अविरति कहते हैं ।
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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