SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१२) कोष्टक नं०४६ प्रयोग में चौतीस स्थान दर्शन क० स्थान सामान्य श्रालाप पर्याप्त | अपर्याप्त माना जीवों की अपेक्षा एक जीव के माना समय में । । एक जीव के एक समय में १ गुण स्थान १ गुण स्थान १ बोदव गुण स्थान जानना १ संज्ञी पंजेन्द्रिय पर्याप्त उपचार से जानना सूचनायहां पर अपर्याप्त अवस्था नहीं १ १ समास १ समास होती है। ६ का भंग को.नं. १८ देखो १ मंग ६ का मंग १ भंग ६ का मंग १नायु प्राण- को. नं. १८ देखो ० अतीन मंज्ञा १ गति मनुष्य १ मनुष्य गति-को नं. १८ देखो १ मुरम स्थान चौदहवां गुण २जीव समास संज्ञी पंचन्द्रिय पर्याप्ति । ३ पर्याप्ति ____ को नं०१ देली । ४ प्रारण ग्रायु प्राग्ग । ५ मंडा ६ गति मनुष्यगति ७ इन्द्रिय जाति पंचेन्द्रिय जाति ८ काय घसकाय हयोग १० वेद ११ कषाय १२ जान १३ संयम १४ दर्शन १५ लेश्या १६ भव्यत्व १ गनि मनुष्य १ कानि १जाति १पंचेन्द्रिय जानि-को २०१८ देखो १त्रमकाय मो० नं०१८ देखो (0) प्रयोग जानना (0) अपगन वेद जानना (0) प्रकपाय जानना १ केवल मान जानना १. वयाख्यान संवम जानना १ केवन दर्शन जानना (०) पलश्या जानना १मच्यत्व जानना ...000०.०७
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy