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________________ ज्ञान ७, चौतीस स्थान दर्शन २३ भाव उपशमं सम्यक्त्व १. उपण चारित्र १ दर्शन २ ૪૩ ५ सेवक म १, संयमानयम १ सरागसंयम १ निच गति १, मनुष्य गति १ देवगति १. सायिक भाव ज्ञानगा काय ४, लिंग ३, शुक्ल लेच्या १, मिथ्यादर्शन १, असंयम १, अज्ञान १: . . 1 Yis (:) निर्यच गति में २६-२४-२५-२७ के भग। को० नं० १० के ३१२६-०-३२ के हरेक म मेसेचुन लेश्या छोड़कर शेष लेन्या घटकर | २६-२४-२५-२७ के भंग 1 जानना २७-२५-२३-२४-२७ के भंग क० नं०१७ के २६२७-२५-२६-२६ हरेक भग में से गीत- पद्म | के २ घटाकर २७२५-२३-२४-२७ के भंग i १ परिलामिक ४७ मात्र ! I जानना (२) मनुष्य ( ५.३० कोष्टक नं० ७६ ४ सारे भंग को० नं०१७ ૪ १ मंग को० नं० १७ देगो उपशम चारित्र १, | कुअवधि ज्ञान १. | मनः पर्यय ज्ञान है, समाजम T नियंच गति १, स्त्री वेद-नपुंसक वेद २ ये घटाकर ४० जानना न गति में खारे भंग १ नंग २६-२४-२५-२६ के मंगको० नं० १० देखो को० नं० १ को० नं० १० के ३१२६-३०-३३ के हरेक मंग में से १ शुक्ल नेम्वा छोड़कर शेष ५ श्या घटाकर २६-२४-२५-२८| के भंग २५-२६-२५-२६ के मंग को० नं० १० के ३३१-२७-३१ के हरेक भंग में से पीत-पम ये 1 (१) मनुष्य गति में २५-२३-२५ के भंग को० नं० १० के ३०२०-३० के हरेक भंग में से १ शुक्ल लेभ्या छोड़कर शेष ५ वया घटक २५-२३-२५ के भंग जानना देखो २५ का मंग को० नं० १८ के २७ के मंग में से ये २ लेश्या घटाकर २५ का भंग जानना १४ का भंन को न० १८ के गनान जानना (२) देवगति में पवासी देवों में २४-२२-२६ के भंग को० नं० १६ के २६२४-२८ के भग शुक्ल लेश्या में : 19 गारं भंग रेमंग को० नं० १८ देखी | . सारे मंग [को० नं० १६ देखो म १ भंग १. भंग नं० १८ देखो १ भंग को० नं० १६ देख
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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