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________________ चौतीस स्थान दर्शन ३२० । कोष्टक नं० ४७ पुरुष वेद में १६ भव्यत्व २ १ भंग २ १ भंग १ अवस्था मव्य, ममव्य (1) तिर्यच गति में अपने अपने स्थान | २ में से कोई १ (१) निर्यच गति में । पर्याप्तवत् । पर्याप्तवत् २-१-२-१ के मंग के गंग रानना ! प्रवलला २-१.२-१ के मंग को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखो को० नं.१७ देखो को. नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो| का० नं०१७ देतो । (२) मनुष्य गति में । सारे भंग १ अवस्था - (२) मनुष्य गति में सारे भंग । १ अवस्था २-१-२-१ के मंग को० नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो २-१-२-१ के भयकोनं.१८ देखो कोनं०१८ देखो को नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो (6) देवगति में १ भंग १अवस्था (३) देवगति में १ भंग १ अवस्था २-१ के मंग को० नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो - के भंग को.नं. १६ देखो कोनं०१६ देखो को० नं० १९ देखो | कोल नं०१६ देखो १ भंग १ सम्यक्त्व । !मंग १ सम्यक्त्व को नं०१६ देश (1) निर्यच गति में अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान मित्र घटाकर (५) अपने अपने स्थान अपने अपने स्थान १.१-१-२-१-१-१-३ के भंग के अंग जामना । के भंगों में से । (१) तिथंच गति में । के मंग जानना | के मंगों में से को न०१७ देखो को नं०१७ देखो कोई १ सम्यक्त्व, १-१-१-१-२ के मंगको .नं०१७ सो कोई १ सम्यक्त्व कोन०१७ देखो को नं०१७ देखो । कोन०१७ देखो (२) मनुष्य गति में १ सम्यक्त्व । (२) मनुष्य गति में सारे मंग१ सम्यक्त्व १-१-१-३-१.२-३-२.१-१- ] को०१८ प्रमाग कोष्टक १८१-१-२-२-१-१-२ केभंग को.नं. १५ देसो कोने०१८ देखो १-३ के मंग को नं० प्रमाण को न०१८ देखो। १८ देखो (२) देवगति में सारे भंग १ सम्यक्त्व । (३) देवगति में सारे भंग १ सम्यक्त्व १-१-१-२-३-२ के भंग । १-१-३ के भंग को.नं. १६ देखो को० नं०१६ को.नं.१६ देखो को० नं० १९ देखो । देखो १८ मंज्ञो १ भंग | अवस्था । अंग . १ अवस्था संशी, प्रमही ।(१) नियंत गति में अपने अपने स्थान | २ में से कोई । (१) तिर्यंच गति में । पर्याप्तवन् । पर्याप्तवत् १-१-१-१ के भंग के भंग जानना ] १अवस्था 1-1-1-1-1-1 के भंग को० नं. १७ देखो | को० नं. १७ को० नं०१७ देखो को नं० १७ देखो कोनं०१७ देखो, कोनं १७ देवी देखो (२) मनुष्य गति में | १ भंग । १ अवस्था । (२) मनुष्य गति में १अवस्था १-१ के भंग कोनं०१८ देखो को.०१८ देखो १-१ के भंग कोन०१५ देखो को नं.१५ को। नं. १८ देखो | फो० नं०१८ देखो २ देखो
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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