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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं० २६. संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों में को.नं. १ देखो (३) भोग भूमि में-नियंचमनुष्य गति में का मंग को.नं. १५-१८ के समान जानना | (१) नरक गनिमें १का भंग को नं०१६ देखा । (२) तिर्यन मति में ३ का भंग को० न०१७ देखो (2) मनुष्य गति में ३-६-३-१-३-३-०-१-० के भंग हो० नं. १८ देखो (४) देव पति पे २-१-१ के भंग। कोर नं०११ के ममान जानना (५) भोनभूमि में नियंच मनप्य गति में २ का भग को० नं०१७-१८ के नमान जानना (i) भोगभूमि से तियंच | मनुष्य मा में १-२ के अंग को न० । १७-१८ के समान जानना मंग १ मंग १ वेद सूचना-अपने । अपने अपने | (१) वरक गति में सूचना- | पर्यास्वत् अपने स्थान के | स्थान के भंगों। १ का भंग को० न० पर्याप्तकत जानना | जानना भंगों में से कोई में से कोई | १६ देखो वेद जानना । (२) नियंच गति में ३-३ के भंग को न० १०देवो । (3) मनुष्य गनि में २-१-१-0 के अंग को नं. १८ देखी (४) देव गति में २-१-१ के भंग को० नं. को००१ देखो मारे मंग मुचना-अपने अपने स्थान के मारे मंम जानना (१) नरक गति में २३-१६ के भंग का० नं. १६ । कमभान १२) तिर्यच गति में २५-२५-२२-१७के भंग की. न०१७ के समान जानना (4) मनुष्य यति में (2) भोगभूमि में निर्यच. मनुष्य गति में १ के भंग को १७-१८ के समान जानना । सारे मंग १मंग २५ . मूचना- पर्याप्तवत अपने अपने । (१) नरक गति में पर्याप्तवन जानना । जानना स्यान के भंगा २३-१६ के भंग को नम में से कोई । १६ के समान जानना १ भंग ! (२) तिसंच गति में | । २५ का भंग कोन १७ के समान जानना (६) मनुष्य पनि में !
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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