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________________ ( ४२० । कोष्टक नम्बर ५८ चौतीस स्थान दर्शन कुमति-कुश्रुत ज्ञान में १ काय (२) तिर्यंच गति में (२) तिर्यच गति में । काय ६-१-१ के भंग को० नं. १७ देतो को० नं. १७६-१-१ के भग को नं०१७ देखो | को.नं.१७ को: नं. १७ देखो को० नं०१० देखो देखो योग १ भंग १ योग ! 'याहारक मिश्रकाय प्रो० मिथकाय योग १ ग्रा०मिश्रकाय योग १, योग, मा० काय 4. मिथकाय योग १, बै० मित्रकाय योग । योग १, ये २ वटाकर कार्माणकाय योग १, कार्मासाकाय योग : । ये ३ घटाकर (१०) ये योग जानना ११. नरक-मनुष्य देवगति में १ भंग १ योग । (१)नरक-मनुष्य देवगति १ भंग | १योग हरेक में को न०१६-१८- को००१६-१८- मैं हरेक में को० नं०१६-१८- | को००१६का मंग | १६ देखो । १६ देखो १-२ के मंग । १६ दखा १५-१६ देखो को० नं०१६-१८-१९ कोल नं. १६-१८-१६ देखो (२) तिर्यंच गति में | १ मंग १ योग (२) तिर्यंच गति में . १. भंग १ योग ६-२-१-६ के मंग को.नं०१७ देखो को नं०१७ देखो १-२-१-२ के भंग को० को० न०१७ देखो को०१७ देखो को नं०१७ देखो नं. १७ देखो १. वेद १ भंग ! १ वेद ३ .. . १ भंग वेद को.नं.१ देखो । १) नरक गति में को० नं०१६ देखो को नं०१६ देतो (१) नरक गति में...को० नं०१६दसो कोनं०१६ देखो १ का भंग-को मं०१६ । १ का अंग को. नं. . देखो १६ देखो | (२) निर्यच गति में | १ भंग १वेद ।(२)तिवेंच गति में मंग वेट ३-१-३-२ के भंग । को० नं.१७ देखो को०नं०१७ देखो| ३-१-३-१-३-२ के अंग को०१७ देखो कोनं०१७देखो को० न०१७ देखो | कोनं०१७ देखो (३) मनुप्य गति में सारे भंग १ वेद (३) मनुष्य गति में ' मारे भंग १ वेद ३-२के मंग को.नं.१५ देखो कोनं०१८ देखो -२ के भंग को० नं. १८ देखो कोनं०१८ देखो को.नं. १८ देखो को नं. १८ देवी (४) देवपति में । सारे मंग १ वेद ४) देवगति में सारे भंग वेद २-१ के मंग को० नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो २-१ के भंग का० नं. को.नं. १६ देखो को.नं.१६ देखो को० नं. १६ देखो रस देखा
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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