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________________ चौंतीस स्थान दर्शन कोष्टक नं०५८ कुति-कुनु त ज्ञान में १ ११ कयाय २५ सारे भंग ! :५ को नं०१ देखी । (१) नरक गति में को.नं.१६ देखो कोनं०१६ देखो (१) नरक गति में को० नं. १६ देनी पो००१६ देखो २३-१६ के भंग २३ का भंव को नं. १६ देखो | को.नं. १६ दंत्रो (२)तियच गति में | सारे मंग , मंग (२) तिर्थर गनि में मारे भंग १ भंग २५-२३-५-२५-२१- कोनं० १७ देखो कोनं०१७ देखो २५-१३-२५-२५-२३. कोनं १७ देसो कोनं. १७ देतो २४-२० के भंग २५-२४ के भंग को न. १७ देखो i को० नं०१७ देखो (३) मनुष्य गति में : सारे भंग १ मंग । (३) मनुष्य गति में । सारे भंग १ भंग २५-२१-२४-२० के भंग को नं०१८ देखो कोनं०१८ देखो २५-२४ के भंग की.नं. १ देखो कोनं०१८ देखो को ना १८ देखो को मं० १८ देखो (४) देवगति में | सारे भंग १ भंग ! (४) देवमति में । सारे भंग १ मंग २४-२०-२३-१६ के भंग को० नं०१६ देखो कोनं०१८ देखो २४-२.-२३ के मंगको न०१६ देखो को.नं.१६ देखो को न १६ देखो को.नं. १६ देनो १२ ज्ञान कुमति-कुथ त इन दोनों चारों गतियों में हरेक में चारों गलियों में हरेक में में गे जिसका विचार । दोनों में से कोई १ जिसका | प्यास् बत जानना करना हो वह ! कुजान] विचार करना हो वह १ बानमा कुज्ञान जानना मूचना २-पेज ४२७ पर १३ सयम प्रसयम चारों गतियों में हरे में । चारों पतियों में हरेक में : १ प्रपंयम जानना प्रसंयम जानना को० न०१६ मे १६ देखी को नं०१६ से ' देखो .१४ दर्शन १ भंग १ दर्शन मंग न प्रचक्षु द०, चक्षु दर्शन | (१) नरक गति में । (१)नक गति में को० नं०१६ देखी को.नं.१६ देखो | २ का भंग को० नं०१६ देखो (२) तिर्यच पनि में १ भंग १ दर्शन (२) नियंच गनि में १ मंग । १दर्शन को० नं०१७ देखो कोनं०१७ देखा १-२-२-२ के भंग कोनं०१८ देखो कोनं-१७ देखो २
SR No.090115
Book TitleChautis Sthan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagarmuni
PublisherUlfatrayji Jain Haryana
Publication Year1968
Total Pages874
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Pilgrimage, & Karm
File Size16 MB
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